१.डा.राजेन्द्र विमल, ‘घरमुहाँ’ – प्रभाव आ प्रतिक्रिया २. जगदीश प्रसाद मण्डल- कथा-सतभैंया पोखरि
१
डा.राजेन्द्र विमल
‘घरमुहाँ’ – प्रभाव आ प्रतिक्रिया
कार्य–कारण–श्रृंखलामे सुगुम्फित
ओहि गद्य कथानककेँ उपन्यास कहल जाइत अछि, जाहिमे
अपेक्षाकृत अधिक विस्तारसं जीवने–जगतमे अनुभव कएल
यथार्थकेँ कल्पनासँ रङि कए रसात्मक विचारोत्तेजक रुपमे प्रस्तुत कएल जाइछ ।
मैथिलीक ख्यातनामा आख्यानकरि श्री रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क पहिल उपन्यास ‘घरमुहाँ’ नेपालक मधेस–आन्दोलनसँ उपजल उमड़ल जनआकांक्षा,
मोहभंग, विकृति, पीड़ा, भावनात्मक उद्वेलन, विक्षोभ आ जटिलताकें घोर यथार्थपरक चित्रावली उरेहैत समन्वय दर्शनसंग
मर्मस्मर्शी इति पबैत अछि ।
आन्दोलन जखन एक गोट ऐतिहासिक उँचाई ल’ रहल होइत अछि तँ
ओहिमे आन्दोलनकारीक छदम श्वेत भेष द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठाक नकली खोल ओढ़बामे सफल
गुन्डाक सरदार कामेश्वर–सन आपराधिक मनोवृत्तिक व्यक्ति
सचक निरन्तर प्रवेश होबए लगैत छैक । हत्या, अपहरण,
आतंक आ डर–धमकी द्वारा ई वर्ग खास कए
पहाड़ी समुदायसँ पैसाक उगाही करैत अछि । अपन अधिकार, पहिचान
आ विकसित मुद्दाक एहि विराट जनक्रान्तिमे शहादत दैत युवकसभक प्रत्येक दिन लहासपर
लहास खासि रहल छै आ ओहर ई लुटेरा–तत्व पहाड़ीक दोकान सभमे
आगि लगा रहल अछि, सामान लूटि रहल अछि, ओकरा सभक घरपर पाथर फेकि–आतङ्क पसारि रहल अछि
। आतङ्कभरल एहि वातावरणमे पहाड़ी होइतो धोतीकुर्ताधारी मास्टर रमेश उपाध्याय अपना
घरमे डरे दबकल रहैत छथि । मोन तँ मास्टरो साहेबक होइ छैन्हि जे – अपन मधेसी मित्र जगमोहन अधिकारी जेकाँ जुलुसमे जा जोर–जोरसँ नारा लगा आन्दोलनकेँ समर्थन दिऐक, मुदा
सोचै छथि –“जे उन्माद एखन युवा सभमे छै ओ की हमर (पहाड़ी)
अनुहारकेँ पचा सकत ?” अदंकसँ भरल मास्टर साहेबकेँ अपन घर
ल’ अनबाक विचार जगमोहनकेँ होइत छन्हि, मुदा मास्टर रमेश एहि दुआरेँ अपन मधेश–आन्दोलनक
अगुआ मित्र जगमोहनक घर जाएसँ अस्वीकार कए दैत छथि जे कलहु आन्दोलन कमजोर ने पड़ि
जाइक । १ जून २००७, २५ जुलाई २००७, २८ जुलाई २००७, ५ अगस्त २००७ क वार्ता असफल
भेलाक बाद ३० अगस्त २००७क’ २६ बूँदापर सहमति होएब मुदा
कायान्वयनमे आनाकानीसँ आन्दोलनक फेर उग्र लपट ऊठब – ऐतिहासिक
दस्तावेज अछि, जे उपन्यासमे प्रस्तुत भेल अछि ।
मास्टर रमेश उपाध्यायक विपत्तिक तमिस्रा अओर सघन तखन अओर सघन भ’ जाइत छैन्हि जखन हुनका पता चलैत छैन्हि जे हुनकर बेटी किरण दछिनबरिया
टोलक कामेश्वरक बेटा राजीवसँ पे्रम करैति अछि । ताबत ई ककरो ने बूझल छैक जे गामक
सम्पन्न आ सम्भ्रान्त मानल जाएबला व्यक्तित्व कामेश्वर गाममे व्याप्त हत्या,
अपहरण, चन्दा–आतंक
आदिमे संलग्न गिरोहक मुख्य सूत्रधार आ खलनायक अछि । मास्टर महाविपत्तिक समुद्रमे
उबडुब कैए रहल छथि कि बेटी किरणक अपहरण भए जाइ छैन्हि आ दश लाख टाका फिरौतीक लेल
फोनसँ दिन–राति धमकी आबए लगैत छैन्हि । मास्टर अपन
सम्पूर्ण सम्पत्ति बेचिकए विस्थापित होएबाक लेल बाध्य छथि ओमहर कामेश्वरक एकलौता
बेटा राजीव अपन बापक कुकृत्यसँ परिचित भ’ जाइत अछि आ मायक
माध्यमसँ किरणक मुक्तिक लेल दबाब बनबैत अछि । कामेश्वरकेँ ईं जानि ग्लानि होइत छैक
जे ई उएह किरण थिक जकरा पुतहु बना घर अनबाक मोन हुनक परिवार बना चुकल अछि । बसमे
चढ़ि चुकल मास्टर रमेश उपाध्यायक ओकर परम मित्र जगमोहन आ अपहरणकारी कामेश्वर गाम
घुरा अनबामे सकल होइत छथि ।
आख्यानकार ‘भ्रमर’ अपना समयक
प्रामाणिक खिस्सा आबएबला पीढ़ी–दर–पीढ़ीधरि सुनएबामे उत्सुक छथि । तेँ प्रस्तुत उपन्यास मूक इतिहासक मुखर
सहोदर भए गेल अछि । राजनैतिक घटनाक्रमक धरातलपर कल्पनाक फट्ठा, मृत्तिका, सन्ढी, स’न आदिसँ समकालीन मधेसक जीवन्त मूर्ति तैयारक’ सामाजिक
सम्बन्ध–बन्धक रागमयताक रंग ढ़ेउरल गेल अछि जे हृदयहारी
अछि । उपन्यास ऐतिहासिक महत्वक दाबेदार एहू कारणें अछि जे ई पहिल नेपालीय मैथिली
उपन्यास थिक जे समकालीन राजनैतिक घटनाक्रमपर आधारित अछि ।
रमेश उपाध्याय, जगमोहन, कामेश्वर,
राजीव, किरण, बन्ठा,
लुखिया आदि सभ वर्गीय प्रतिनिधि पात्र अछि । सम्बादमे
स्वाभाविकता आ सजीवता छैक । भाषाशैलीक नाटकीयता आ चित्रात्मकताक कारण उपन्यास
आदिसँ अन्तभरि सिनेमाक रीलजेकाँ चलैत अछि, जे पाठककेँ
आरम्भसँ अन्तधरि बन्हने रहैत अछि । पहाड़ी–मधेसीक एकता
संबर्धनक उद्देश्यसँ प्रणित एहि उपन्यासक यात्रा उबड़खाबड़, पहाड़–जंगल, खुरपेड़ियाक
जटिल यात्रा नहि, सोझ–सपाट
मैदानक सरल–सरस यात्रा थिक जे सरसराकए अपन गन्तव्यधरि
पहुँचैत अछि । तेँ उपन्यासक संरचनामे पेँच–पाँच आ ओझराहटि
नहि अछि । मधेस–मिथिलाक आम लोकक भाषामे प्रयुक्त ‘लल्हका’, ‘लभका’, ‘बढ़का’,
‘खुर्सीं’ आदि शब्दक सचेत उपयोग उपन्याक
भाषाकेँ सहज स्वाभाविकता आ अभिनवता प्रदान करैत अछि । आख्यानकार श्री ‘भ्रमर’क ई सद्यःजात कृति नेपालीय मैथिली
उपन्यास साहित्यक एक गोट उपलब्धि थिक, ताहिमे सन्देह नहि
।
२
जगदीश प्रसाद मण्डल
कथा-
सतभैंया पोखरि
पोखरि
कहिया खुनौल गेल, के
खुनौलनि? मिथिलांचलक इतिहासे जकाँ अखन धरि हराएले
अछि मुदा एते गामक सभ मानैत अछि जे पोखरिक बतारी ने एकोटा गाछ-बिरीछ अछि आ ने
आन कोनो दोसर वस्तु। ओना पोखरि नमहर रहने रंग-बिरंगक किस्सा-पहानी अछिये। कियो
दैंतक खुनौल कहैत अछि तँ कियो राजा-रजवारक। मुदा जे होउ, हजार बर्खसँ ऊपरक पोखरि जरूर अछि जे सभ मानैत अछि। शुरूमे पोखरिक
महार वा अग्नेय जेहेन रहल हुअए मुदा अखन महारो झड़ि-झुड़ि गेल अछि आ पोखरिक
पेटो गदियाह भऽ गेल अछि। गाममे एकेटा पोखरि मुदा एहेन अछि जे एते सघन गाम रहितो
पोखरिक अभाव गौंआकेँ नै हुअए दैत अछि। चाकर-चौड़गर पेट अखनो अछिये। मुनहर जकाँ
दर्जनो ठेक-बखारी सदृश तँ अछिये।
गाममे
सभसँ पुरानो आ झमटगरो परिवार मात्र सतभैंयाकेँ रहलनि। पोखरियो हुनके सबहक छियनि।
केना भेलनि से तँ नीक जकाँ किनको नै बुझल छन्हि मुदा जहियासँ देखै छी तहियासँ
हुनके सबहक कब्जामे रहलनि अछि। ओना पोखरि तँ गामे-गाम अछि मुदा आन गामक पोखरिसँ
अलग पहिचान अखनो अछिये। ने एते नमहर कोनो गामक पोखरि अछि आ ने एना चारू महार
घाट अछि। एक घाट रहने पारो नै लगैत जेना आन-आन गामक पोखरिमे अछि। आन गामक पोखरिमे
बड़ बेसी अछि तँ एकटा दूटा घाट अछि। एकटा मरद लेल आ दोसर जनाना हेतु। तहूमे
रंग-बिरंगक बेवहार बनल अछि। जइक चलैत जँ कहियो गाममे आगि-छाइ लगैए तँ गामे सुन
भऽ जाइए, मुदा एकोटा
पोखरि आइ धरिक इतिहासमे कहियो ऐ गाममे नै भेल अछि। ओना गामक बनाबटिसँ आन
गामसँ भिन्न अछि। कते गाम पूबे-पछिमे सूर्यमंडल गढ़निक बनल अछि जइसँ
पूर्बा-पछबाक झोंकमे, आगि लगने धुआ-पोछा जाइए।
बिनु
जाठिक पोखरि रहने, अनगाैंआ
तँ पोखरि मानबे ने करैत मुदा पोखरिक सभ काज पूर्ति होइत, गौंआ धैन-सन। कियो अनगौंआँक गपपर धियानो ने दैत। सभ यएह मानि चलैत
जे कियो अपन मुँह दुइर करैए। नीककेँ अधला कहने थोड़े अधला भऽ जाएत आ अधलाकेँ नीक
कहने थोड़े नीक भऽ जाएत जँ एहेन बजनिहार अछि तँ ओ अपन मुँह दुइर करैए। सभकेँ
अपन-अपन गुण-धर्म होइ छै से तँ अछिये। चारू महार घाट रहने सबहक काजो चलिते अछि।
तहूमे आन गाम जकाँ कोनो रोक-राक अछिये नै जे ई घाट पुरुखक छिऐ तँ ई घाट जनानाक।
ई फल्लांक खुनौल छियनि तँए दोसरकेँ नहा देथिन आकि नै, ई हुनकर मन-मरजी छियनि। कियो जाठि गाड़ि पोखरिक पहिचान बनौने छथि
तँ हेतै। पोखरिक पहिचान भलहिं जाठि होउ मुदा झील-सरोवर धारमे जाठि कहाँ रहैए।
तँए कि ओकरा कुमार कहि कात कऽ देबै। आम खेनिहारकेँ आम चाही आकि गाछ आ गाछी
गनत। हँ, ई बात जरूर जे आमक गाछ केना होइ छै, केना लगौल जाइ छै, केना ओकर सेवा कएल जाइ छै
एकर जानकारी जरूर रहक चाही। जइ जाठि लऽ लऽ अनगौंआँ नचै छथि ओ तँ ईहो कहता ने जे
जाठिक काज की होइ छै। जँ बीच पोखरिक पानिक नाप मानल जाए तँ जइ पोखरिक किनछड़ियेमे
उपयोग करै जोकर -नहाइ-धोइ-क पानि रहत ओकर बीचक नाप नपैक जरूरते की रहत। ओहन पोखरिक
मानिये कते हएत जे एकटा घाट जे भलहिं सिमटिये-ईटाक किअए ने होउ, बना बाकी भागमे मोथी रोपि खेत बना लेब। जँ कहीं आगि लागत तँ
छूत-अछूत कहि गामे जरा देब, मुदा आगि लगबे ने करै से ने
सोचब आ करब। जनियेँ कऽ पोखरिकेँ अघट बना दुइर कऽ लेब, नहाइ-धोइ
जोकर नै रहए देब तँ ओइमे दोख केकर? खएर जे होउ मुदा चारू
महार घाटो आ बिनु जाठिक पोखरि तँ अछिये।
शुरूहेसँ
गामक सतभैंया परिवार जोतल-चौकिऔल खेत जकाँ समतल रहल अछि। बीच-बीचमे बाढ़ि-भुमकममे
थोड़-बहुत ऊवर-खावर बनबो कएल तँ ओकरा पुन: सरिया समतल बना लेल गेल। मुदा भविष्य
दिस नै देखि, भूते दिस
देखने तँ भूत लगबे करै छै। मुदा तेकरो भगबैक तँ उपाए होइते अछि। बाबेक अमलदारीसँ
सतभैंया अपन परिवारक पहिचान परोपट्टामे बनौने रहल अछि। ओना सात भाँइक भैयारीमे
तीन भाँइक परिवार नावल्द भऽ गेलनि जइसँ अगिला पीढ़ी अबैत-अबैत सातसँ चारि
भैयारी रहि गेल। सात भाँइसँ सतरह हेबाक चाहै छल से नै भऽ चारिपर उतरि गेल तेकर
कारण भेल जे एक भाँइ बेटीक बाढ़िमे दहा गेलाह। ढेनुआर नक्षत्र जकाँ बेटीक आगमन
जोड़ा-पल्ला जे अाबए लगलनि से ठीके सातसँ सतरह तँ नै मुदा
एकसँ एगारह जरूर भऽ गेलनि। मुदा एकसँ एगारह होइतो हुनकर मुँह
कहियो मलीन नै भेलनि। मनक विश्वास अंत धरि बनले रहि गेलनि जे प्रकृतिकेँ
अपन गति छै, ओ अपन निअम-निष्ठासँ चलैत अछि। से नै तँ
एक कम्पनीक वस्तु एक रंग होइ छै मुदा तइमे ओहन मेल-पाँच केना भऽ जाइ छै जे
मेल-पाँच भेलोपर चारि-पाँच वा पाँच-छअसँ आगू-पाछू नै होइत अछि। भऽ तँ ईहो सकैत
छल जे एक रंगाहे होइत वा एकसँ पाँचो होइत वा आरो अन्तर भऽ सकैत छल। मुदा से कहाँ
होइए। जहिना एकसँ सय धरि गनू आ सएसँ एक दिस गनू पचास तँ बीचेमे रहत। तँए
बेटा-बेटीक बाढ़ि आबौ कि रौदी होउ, मुदा अपन व्यासक
अनुकूले रहैत आएल अछि आ रहबो करत।
दोसर
भाए जे बच्चेमे कुभेला भेलासँ गाम छोड़ि परदेश गेलाह। से पुन: घूमि कऽ नहिये
एलाह। बाल-बोधकेँ सेवाक जरूरति होइ छै, होइत एलैए आ सभ दिन होइत रहतै। मुदा जखन वएह बाल-बोध चेतन भऽ जाइ छथि
तखन हुनक विवेक कि कहै छन्हि से तँ आनक-आन नै बूझि सकत। ओ अपने अपन कर्तव्यकेँ
िनर्धारित कऽ जीवन-पथपर चलताह। खैर जखन धड़तिये भूमि छी तँ जतए बास करब ओकरे
मातृभूमि बना लेब। तहूमे ओइ बच्चाक तँ अधिकार बनिये जाइए जेकर जन्म जतए बनि
गेल हुअए। मुदा प्रश्न तँ अहूसँ आगू अछि। जँ धरती स्वर्ग वा वैकुण्ठ बनए चाहए
तखन अपनामे बँटि कऽ बनत आकि सम्मलित भऽ कऽ। जँ से नै तँ हम कतए छी, ई तँ देखए पड़त। मुदा मिथिलांचलोक भूमि तँ वएह भूमि छी जे सभ दिन
प्रकृति प्रदत्त रहल अछि, अखनो अछि आ आगूओ रहबे करत।
जँ से नै तँ कहाँ अरब-करोड़पर लटकल वा करोड़ लाखपर। सभ दिन जहिना रहल तहिना
अखनो अछि। भलहिं कतौसँ हमहूँ कहिऐ जे छीहे।
तेसर
भाइक परिवार ऐ लेल आगू नै बढ़लनि जे शरीरसँ िनरोग रहितो मन सनक बच्चेसँ भऽ
गेलखिन। जइसँ ने बिआह केलनि आ ने कोनो भाइक बात-विचारमे कहियो रहलनि। तहिना
बाँकी भाय मिलि घरक मोजरे समाप्त कऽ देलकनि। मुदा तइले हुनको मनमे कहियो दुखो
नहिये जन्म लेलकनि। जखन भाय सभ लगमे बैसथि तँ गरजि-गरजि बजथि जे मने सभ किछु
छी। जे मनक मालिक ओ सबहक मालिक। मुदा भाइयो सभ बिना किछु टोकारा देने चुपे-चाप
सुनि लैत जे अनेरे टोकने आरो बरदिआएब। से नै तँ एक झोंक बाजि नारद जकाँ वीणा
हाथमे लेताह आ जेमहर मन हेतनि तेमहर विदा हेताह। असगरूआ परिवारमे एककेँ बौड़ने
परिवारेक उसरन होइए मुदा गनगुआरि जकाँ एकटा टाँग टुटनहि कि हएत। एक तँ परिवार, टोल, समाज
गढ़ि लइए। हम सभ तँ कहुना तैयो चारि भाँइ बँचल रहबे करब। बाॅझी लगने डारि फड़ै
नै छै मुदा तँए ओ गाछसँ हटल रहैत एहेन तँ नै होएत।
पिताक
अमलदारीमे चाकर-चौड़गर, चौघारा
घरक आंगन हथिसार सन दरबज्जा, चन्द्रकूपसँ इनार सरोवर
सदृश बिनु जाठिक पोखरिक बीच जिनगियो संयमित तँए हर-हर खट-खटक प्रश्ने किअए
उठत। ओना सातो भाँइक सातो काज सात रंगक। ओना जिनगीक लेल सातो उपयोगी मुदा गुण,
बेवहार आ उपयोगक हिसाबसँ छोट-पैघ। हर-हर खट-खट नै होइक कारण
एकटा देासरो छल जे अपन-अपन बुधिक उपयोग कऽ स्वतंत्र रूपसँ अपन-अपन काज सम्हारैत
छलाह। एक काजमे ने करैक बखेरा ठाढ़ होइत जे एना-हेतइ, एना
नै हेतइ। मुदा एक विचारमे तँ से नै होएत। मुदा समटल बिछानक सुख जेहेन सुतिनिहारकेँ
होएत, तहिना ने समटल परिवारोकेँ होएत। छोट ओसार रहत आ
बच्चा बेसी रहत तँ ओंघरा-ओंघरा खसबे करत। खाइ काल भिन्ने छिपली-बाटी फुटत जहिना
वस्तु व्यापारक सहायक छी तहिना व्यापार उपयोगक। जइ वस्तुक जते उपयोग जिनगीक
लेल होएत ओ व्यापार ओते चतड़ैत अछि। मुदा प्रश्न अछि जँ सभ फूल फूले छी तँ
देवताक बीच बटाएल किअए अछि? जँ देवताक परसाद परसादे छी
तखन महादेव किअए बॉतर।
अखन
धरि सतभैंया परिवारमे घराड़ीसँ लऽ कऽ बाध धरिक जमीनमे दुइये बेर बटबारा भेल
छलनि जे खूटे-खूट भेल छलनि मुदा ऐबेर रूप बदलि गेलनि। भीतरिया गुमराहटि आबि
गेल छलनि। मुदा खुलि कऽ आगू भऽ बजैले कियो डेग आगू नै बढ़बए चाहैत। मुदा जहिना
सूखल जरनाक बीच आगि हवा पबिते लहरि उठैए तहिना पोखरिक लहरि जकाँ उठए लगलनि।
कारणो छन्हि जे कहिया कतए जे कँचका ईटापर खपड़ा घर बनौलनि सएह अखनो धरि चलि
अबैत छनहि। निच्चा जहिना मुसहनि माटि भरल तहिना अकासक तरेगन जकाँ फुटल
खपड़ा लग इजोत होइत। शुद्ध किसानक घर। चाहे खेतमे रहि बरखा हुअए आकि सुतली रातिक
बरखा हुअए कोनो अन्तर नै। जहिना गोनरिक दुनू भाग एक्के रंग भेने उनटा-पुनटाक
प्रश्ने नै। पहिलुका चद्दरिक चारू भाग बराबरे होइत छलै आ जे बँचल अछि ओ अखनो
अछिये। तहिना धोतियोक मुदा आजुक जे सिंह-मांगबला चद्दरि वा अन्य जे वस्त्र
अछि ओ एक भग्गुए नै, संयुक्त
परिवारक एकांकी रूप जकाँ बनि गेल अछि। जहिना जनमौटी बच्चा छोटसँ पैघ बढ़ैत िसर्फ
मानवे नै महाभानवो बनैत अछि मुदा वएह मनुष्य मृत्युक पश्चात अछियामे जखन जरबए
जाए लगैत अछि तँ पैघसँ छोट बनैत-बनैत लोथरा जकाँ बनि जाइत अछि तहिना ने भऽ रहल
अछि। ओना खूटे-खूट बटनौं छुतकाक केश कटबैकाल सभ बराबरे भऽ जाइत छथि। बाधक जमीनमे
कनी घटियो-बढ़ी भेलनि मुदा घराड़ी आ पोखरिमे कोनो तरहक कमी-बेशी नहिये भेल
छलनि। अपन-अपन उपयोगक अनुकूल रहैत आएल छथि। मुदा सतभैंया परिवारकेँ गामक लोक
एके परिवार बूझि ने कियो किछु बजैत आ ने किछु पुछैत। जइसँ पूर्बा-पछबाक कोनो
लसरि नहिये लगल छलनि। जखन लसरिये नै तँ असरि किअए। ततबे नै ईहो बुझैत जे जहिना
गाछक डारि फुटने -छिटकने- फूल-फड़ थोड़े बदलि जाइ छै। अनेरे देह रगड़ने तँ अपनो
रगड़ा लगबे करै छै। मुदा से नै भेल, भऽ ई गेल जे सात
भैयारीमे तीन भाँइकेँ सुखने गाछक डारि जकाँ चारिये टा रहि गेलनि। तहू चारिमे
दूटा बँझिआइये गेलनि तँए फल-फूलक असे नै रहलनि। मुदा दुइयो भाँइ रहने चारि
भैयारीक परिवार पसारै जोकर तँ भइये गेलनि। गड़बड़ एतबे भेल जे एक भायकेँ एक आ एक
भायकेँ तीन बेटा भेलनि। एक रहितो मानवीय विचार आर्थिक विचारमे बदलिते
रगड़ा-रगड़ी शुरू भेल। जखने तीन भाँइ एक दिस हएत आ दोसर दिस कियो असगरे पड़त तँ
निश्चिते छह हाथ पएरक जगह दूटा हाथ-पएर झँपेबे करत। मुदा चद्दरि तँ ओइठाम ने
झाँपि चारूकात अड़िअबैत जइठाम ओढ़िनिहारसँ डेढ़िया-दोबर होइत, से तँ परिवारमे भइये गेल छन्हि।
विचारवान
परिवार सभ दिनसँ रहलनि जँ से नै रहलनि तँ आन-आन गाममे एहेन-एहेन परिवार मटियामेट
भऽ गेल। मटियेमेट नै कते जहल भोगलक तँ कते अस्पताल, कते फाँसीपर लटकल तँ कते कपार फोड़ा
मरल। मगर विचारेक चलैत ने परिवारमे ने कहियो सम्प्रादायिक आ ने जाइतिक हवा
कनियो डोलौलकनि। ओना समैक प्रभाव तँ सभ किछुपर पड़िते अछि से तँ परिवारोमे
भेलनि। ओना जेकरा समए कहै छिऐ -दिन-राति- ओइमे ओते बदलाव कहाँ आएल, किएक तँ अखनो बारहो मास आ छबो ऋृतु होइते अछि। अपन-अपन गुण-धर्म तँ
सभ बचौने अछि। मुदा एकटा गड़बड़ तँ परिवारमे भइये गेलनि। ओ ई जे एक भाइक बेटा
श्याम, भैयारीमे असगरे छथिन। असगर भेनाइ तँ बड़ पैघ बात
नहिये भेल मुदा पिताक भैयारीमे छोट भाइक बेटा रहने किछु गड़बड़क संभावना तँ
जनमिये गेलनि।
बाबाक
अमलदारीमे सातो भाँइक बीच बटबारा भेलनि मुदा ओ पुन: समटा गेलनि। कारण ई जे
शुरूमे तँ बटबारा भेलनि मुदा तीन भाँइक परिवार घटने फेर समटा गेलनि। केना नै
समटाइत, तीनूकेँ कियो
पानियो देनिहार तँ नहिये रहलनि।
चारू
भाइक बीच एहेन संबंध बनल रहलनि जे भीन-भीनौजीक परिस्थितिये पैदा नै लेलकनि।
तेकर कारण भेल जे चारू भाइक चारि तरहक कारोबार रहलनि। एक काजमे चारि गोटोकेँ
रहने वैचारिक मतभेद होइक संभावना रहै छै। किएक तँ एक्के काज कते ढंगसँ कएल जा
सकैत अछि। तहूमे जखन समैक मोड़ अबै छै तखन काजोमे मोड़ अबै छै। सभठाम भलहिं नै
आबौ मुदा नहिये अबै छै सेहो नै कहल जा सकैए। चारू भायकेँ परोछ भेने परिवारमे भिनौजिक
संभावना बनलनि। संभावनाक कारण भेलनि जे एक भायकेँ एकेटा बेटा जखन कि दोसरकेँ
तीन भेलनि। दू भाँइ तँ मेटाइये गेलखिन।
छोट
भाइक बेटा रहितो श्याम भैयारीमे सभसँ जेठ खाली भैयारियेमे जेठ नै पढ़ै-लिखै दिस
विशेष झुकान रहनि। एक तँ पढ़ैक लगन दोसर सुभ्यस्त परिवार रहबे करनि। मुदा
तीनू भाँइ घनश्याम खेलौड़िया बेसी। सदिखन सिनेमे-पत्रिका आ खेले पत्रिका
उनटा-पुनटा देखैत। पढ़ैपर तँ ओते नजरि नै,
मुदा फोटोपर बेसी नजरि पड़ैत। ओना अखन धरि श्यामक विचारमे
कोनो दूजा-भाव नै आएल छलनि जइसँ कोनो तरहक नीक-अधलाक प्रश्ने नै उठल छल। जे किछु
कारोबार छलनि सामूहिक छलनि। तहूमे एकटा जबर्दस्त गुण श्याममे छन्हि जे घरसँ
बाहर धरिक जे कोनो काज होइ छन्हि ओ तीनू भाँइ -अपना लगा चारू- केँ जरूर
जानकारीमे दइये दैत छथनि। मुदा भैयारीक संग दियादनियो तँ बराबर भइये जाइत अछि।
एक बाप-माए वा सहोदर पीती-पितिआइनिक बीच जे सिनेह रहैत ओ तँ चारि गामक चारि
दियादिनी एने तँ किछु-ने-किछु गड़बड़ भइये जाइत अछि। कारणो अछि मिथिलांचलोमे
एक सीमा कातक गाम आ दोसर सीमा कातक गामक बीचक दूरी किछु-ने-किछु खान-पान,
रहन-सहन, बोली-वाणीमे किछु ने दूरी
बनले आबि रहल अछि। तहूमे जइ इलाकामे बाढ़िक उपद्रव कम छै आ जइ इलाकामे बेसी छै, दुनूक जीवन शैलीमे बदलाब अबै छै। जखने जीवन-शैली बदलत तखन जीव पद्धति
बदलत। जखने जीवन पद्धति बदलत तखने जीवन लीला बदलए लगैत अछि। तहिना गाममे
अखड़ाहा रहने किछु-ने-किछु लूरि कुस्तीक भइये जाइ छै।
तहिना
मध्य मिथिलांचलक भाषामे पश्चिम भोजपुरी सीमा क्षेत्रक सुआसिन एने भाषामे किछु-ने-किछु
रूप बदलले रहै छै। जइसँ भाषा -बोली-वाणी- मे प्रभाव पड़ै छै। तहिना पूवरिया
इलाका वा दछिनवरिया इलाकाक प्रभावसँ पड़िते आबि रहल अछि। जहाँ धरि कुटुमैतीक
प्रश्न अछि ओ तँ भागलपुरसँ मोतिहारी आ जनकपुरसँ सिमरिया धरि होइते आबि रहल
अछि।
एकाएक
श्यामक मनमे भाइक प्रति सिनेह किछु कमए लगलनि। सिनेहमे कमी एने काजमे कमी
आबए लगलनि। जेना शुरूसँ परिवारक काजक जानकारी सभकेँ दैत अबैत छेलखिन तइमे किछु
कमी आबए लगलनि। तीनू भाँइ खेलौड़िया स्वाभावक रहबे करनि, तइ बीच काजक आदेश कम पाबि आरो
खेलौड़िया भऽ गेल। अखन धरि घनश्यामक नजरिमे श्याममे कोनो कमी नै देखि पड़नि।
हिसाबक जरूरते ने बुझथि। श्यामक मनमे िसनेह कमैक कारण भेल जे पत्नी सदति काल
कानमे घोरि-घोरि पिअबनि जे सम्पत्ति अपन आ सुख-मौज दियाद सभ करैए। पहिने
तँ श्याम पत्नीकेँ सेवक बुझैत आबि रहल छलाह। ई नै बुझैत छलाह जे दिआदिनीसँ दियादियो
ठाढ़ करैत अछि। मुदा विचारो तँ किछु छिऐ अड़ि कऽ पत्नी पूजे करैकाल खिसिया-खिसिया
बाजए लगलखिन-
“जइ पुरुखकेँ कोनो बात बुझैक ज्ञाने ने छै, ओ
पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।”
पत्नीक
बात श्यामकेँ छातीमे धक्का देलकनि। मन कहए लगलनि जे झड़क अर्थ तँ ओ होइत जे कखन
अछि आ कखन अपने झड़ि जाएत तेकर कोनो ठेकान नै। जे पाछू दिस ससरत ओ पौरुष केना
पाबि सकैए। मुदा अखन मुँह खोलैक तँ समए नै अछि िसर्फ सुनैक समए अछि। जहिना
बाल्टी भरि पानिमे िनेबो आ चीनी रखिये देने तँ सरबत नै बनैत अछि। नेबोकेँ
काटि कऽ गाड़ि रस मिलौल जाइत अछि तहिना चीनियोक अछि। जँ एक शब्द वा एक
पाँति पढ़लासँ बूझिमे नै अबैत तं या तँ दोहरा-दोहरा पढ़लासँ वा अगिला-पछिला
पाँतिक मिलानसँ बुझल जाइत अछि तहिना अगिला बातक प्रतीक्षामे श्याम आँखि उठा
पत्नीपर देलनि। नजरिक पानि देखि पत्नी बूझि गेलखिन जे अगिला बात सुनैक
प्रतीक्षा कऽ रहला अछि। जहिना मधुमाछीक सभ छत्तामे एक्के रंग मधु नै रहैत छैक, कोनोमे कम तँ कोनोमे बेसियो रहैत आ
संग-संग नव-पुरान -पहिलुका-पछिला- सेहो रहैत अछि। तँए ठिकिया कऽ ओइ छत्ताकेँ पकड़ब
बुद्धियारी छी जइमे डगडगी भरल नवका मधु रहैत अछि। पुरना तँ दवाइ-दारूक लेल नीक,
खेबा लेल तँ नवके नीक। वकील जकाँ अपन पक्ष रखैत पत्नी बजलीह-
“अखन धरि अहाँ एतबो ने बुझै छिऐ जे चारू भाँइक बीच पनरहटा बाल-बच्चा
आंगनमे अछि। पनरहोक खर्च तँ सम्मिलितेसँ चलैए। एके रंग लत्ता-कपड़ा, खेनाइ-पीनाइ अछि मुदा ई बुझै छिऐ जे ऐमे अपन कते हएत आ दियाद-वादक
कते हएत?”
श्यामक
नजरि धसए लगलनि। पत्नीक विचारमे किछु तत्व बूझि पड़लनि मुदा स्पष्ट नै भऽ
सकलनि। प्रतीक्षाक नजरि उठा आगू तकलनि। अवसरक लाभ उठबैत पत्नी दोहरौलनि-
“पनरहटा बाल-बच्चामे अपन तीनटा अछि। बाकी बारह तँ भैयारियेक भेल। तइ
संग अपने दू परानी छी आ ओ छअ परानी अछि। कनी जोड़ि कऽ देखियौ जे अधा हिस्सामे
अपन कते हएत आ कते हुनका सबहक।”
श्यामक
मन सहमलनि। मन कहलकनि जे पत्नी अक्षरत: सत्य कहलनि। सम्पत्तिक अर्थ होइत छै
सुख-भोग आकि परसादी बाँटब।
पूजासँ
उठि भोजन कऽ श्याम घनश्यामकेँ सोर पाड़ि कहलखिन-
“घनश्याम, दुनियाँक तँ बेवहारे भैयारीमे भीन
होएब रहल अछि। अपनो सभकेँ कम नै निमहल। गाममे देखै छिऐ जे कते छौड़ाकेँ मोछक
पम्हो ने आएल रहै छै आ बापसँ भिन भऽ जाइए अपना सभ तँ सहजहि धीगर-पूतगर भेलौं।
भीन भऽ जाह।”
जेना
धनश्यामो प्रतीक्षेमे रहए तहिना धाँइ दऽ बाजल-
“भैया, सभ दिन अहाँक आदेश मानैत एलौं, आइ नै मानब से उचित हएत। मुदा अहाँ जहिना जेठ भाय छी तहिना तँ
रामो-बलराम छी। भलहिं ओ छोट भाए छी, जे करबै से करत।
मुदा तैयो बिना पुछने किछु नै कहब।”
“बड़ बढ़िया, अखन जा कऽ पूछि लहक। सुति कऽ
उठै छी तखन फेर गप करब।”
घनश्याम
उठि कऽ विदा भेल।
भाइयो
आ तीनू दियादनियो आ दुनू भाइयोक एकत्रित कऽ घनश्याम बाजल-
“सबहक बीचमे कहै छी। भैया बजा कऽ कहलनि जे भीन भऽ जाह। से कि विचार?”
बलराम-
“विचार की भैया,
ओ असगर छथि तँ जीविये लेताह आ हम तँ सहजहि तीन भाँइ छी। हुनका
जे मनो खराप हेतनि तँ ने कियो डॉक्टर ऐठाम लऽ जाइबला हेतनि आ ने बजारसँ दवाइ
कीनि कऽ अनैबला हेतनि।”
घनश्याम-
“सबहक की विचार भेल?”
पहिल
दियादिनी- “अपन परिवार
बूझि नौरी जकाँ दिन-राति खटै छी तइपर जे पाँचो मिनट चाहमे देरी हेतनि तँ
साँढ़-पाड़ा जकाँ गर्द करए लगताह। भने नीक हएत। जानो हल्लुक हएत।”
सुति
उठि चाह पीब पान खा श्याम घनश्यामकेँ सोर पाड़लखिन। अबिते घनश्याम लगमे बैसि
बाजल-
“जे विचार अहाँक अछि भैया, से हमरो अछि।
अखने बाँटि लिअ।”
घनश्यामक
बोली सुनि श्याम सहमलाह। मनमे उठलनि जे हम जे बुझै छिऐ तइसँ भिन्न ने तँ
बुझैए। मुदा बात तँ आगू बढ़ि गेल आब जँ पाछू हटब सेहो नीक नै।
श्याम-
“बटवारामे कोनो व्यवधान
तँ छहै नै। सभ किछु अधा-अधी भेलह। तखन बाप-पुरुखाक बनौल जेठांश होइए से तँ तोंही
बजबह।”
श्यामक
विचार सुनि घनश्याम बाजल-
“अहाँ पितासँ हमर पिता जेठ छलाह। संयोग नीक रहलनि जे भिनौजी नै
भेलनि। जखन पिताक अधिकारक हिसाबसँ आइ बटै छी तँ हुनकर जेठांश कते हेतनि से तँ
हमर हएत किने।”
श्याम-
“देखह, तमसा कऽ नै बाजह। सभ दिन अपन सतभैंया परिवार विचारक परिवार मानल
जाइत रहल अछि, तइठाम कनी-मनी चीज ले झगड़ब नीक नै।”
घनश्याम-
“बात तँ बड़ सुन्दर आ
बड़ सोझगर कहलौं मुदा एक वंशक सभ रहितो अहाँकेँ अइल-फइलसँ रही आ हम सभ बटाइत-बटाइत
एते बँटा जाइ जे घसाएल सिक्का जकाँ सभ किछु रहितो चलबे ने करी, से केहेन हएत?”
श्याम-
“तोहर की विचार?”
घनश्याम-
“तीनू भाँइक विचार अछि
जे घरसँ घराड़ी, खरिहानसँ खेत धरि चारू भाँइ एकरंग कऽ
लिअ। से नै तँ.....।”
श्याम-
“तँ की?”
घनश्याम-
“ई तँ माटिक चर्च
केलौं। पोखरि सेहो तहिना बाँटब। जँ से दइले तैयार नै हएब तँ जमीनक फैसला जमीनपर
हएत।”
श्याम-
“सएह।”
घनश्याम-
“हँ, सोलहन्नी सहए।”
सुजीत कुमार झा
कथा
syf
मेनका
शहर बदैल गेलासँ बहुत किछु बदैल जाइत अछि । ओतऽ ओ महिला क्याम्पसमे
बर्षोसँ पढ़ा रहल छलीह । तँए सह शिक्षणके लेल एहि क्याम्पसक माहोल किछु अजिब सन
लागि रहल छलैन्हि । मुदा कुल मिला कऽ ई परिवर्तन मनकेँ निके लागि रहल कहल जा सकैए
। एक रस्तासँ शायद ओहो एखनधरि अगुता गेल छलीह ।
नया स्थान, नया परिवर्तन .... धीरे–धीरे ओ सभसँ परिचित भऽ रहल छलीह । समस्या एक्केटा छलैन्हि कि पहिल
पिरियडकेँ लेल घरसँ भोरे–भोर निकलऽ पड़ैत छलैन्हि । बहुत
प्रयासक बाद हुनका भाड़ा बला घर भेटल रहैन्हि आ ओहो क्याम्पससँ बहुत दूर ।
‘अहाँ राजीव सरसँ कहिकऽ अपन समय किए नहि बदलबा लैत छी ?’ गौरी हुनका सल्लाह देलीह ।
‘राजीव सर .....,’मेनका किछु चौंकली ।
‘हँ, ओहे तऽ सहायक क्याम्पस चिफ छथि । टाइम
टेवल ओहे बनबैत छथि ।’
‘कतऽके छथि ?’
‘गजव छी मैडम । अतेक दिन भऽगेल एखन धरि अहाँके राजीव सरसँ परिचय नहि
भेल अछि ।’
मेनका किछु लजा सन गेलीह । फेर ओहि दिन ओ हुनकर कार्यालयमे पहुँचलीह
। फर्मपर माथ झुकाकऽ किछु चेककऽ रहल छली । हुनका देखिते उल्टे कहलैन्हि, ‘बैसू मेनका जी ।’
‘मेनका .....’एक्कहि संग कएटा प्रश्न चिन्ह
उभैर आएल हुनकर मुखाकृतिपर ।
‘अहाँके शायद स्मरण नहि अछि अहाँक पुरनका क्याम्पसमे भेल कथा
गोष्ठीमे अहाँसँ भेट भेल रहए,’ राजीव मुँहपर कनी मुस्कान
अनैत बजलाह ।
‘ओह.....,’ तखने हुनका राजीवक नाम किछु परिचित
सन लागल छल । ओ मनेमन स्वयंसँ कहलीह,‘ हमहूँ कतेक बिसराह छी
।’
फेर एक्के स्वरमे सभ किछु बाजि गेलीह, ‘हमरा
अपन पिरियडके समय बदलएबाक अछि । बहुत समस्या होइत अछि, घर
बहुत दूर अछि । सवारी तक नहि भेटैत अछि ।’
‘ओ ..........,’ गम्भिरतासँ बजलाह राजीव,
‘मूल समस्या अपनेक घरक अछि ने ? अहाँ एना किए
नहि करैत छी हमरे घरमे आबि जाउ ? उपरका तल्ला खालिए रहैत छैक
। घर एहि क्याम्पसक लगेमे अछि,’ कहिकऽ राजीव सर एकटा प्रश्न
सूचक दृष्टि हुनकर मुँहपर देलैन्हि ।
‘जी.........’ओ कनी अकचका गेलीह ।
‘ठीक छैक, पहिने अपने घर देखि लिअ, तखन तय करब ।’
हुनकर घरसँ एलाक बाद मेनका बहुत दुविधामे पड़ि गेलीह । की करु ?
हुनका पुरा–पुर अस्वीकार कऽ देबऽ चाहैत छल ?
मुदा नहि जानि किए ओ चुप रहली । किए नहि कहि सकलीह की हुनका
महल्लाबला घर पसिन नहि अबैत अछि ? हुनका तऽ दूर एकान्त चाही ।
जतऽ पत्ता तक नहि हिलए । एहने वातावरण पसिन छलैन्हि हुनका । मुदा आब की करतीह ?
मोन मारि कऽ राजीव सर संगे जाए पड़लैन्हि । ओतऽ परिचय भेलैन्हि राजीव
सरके कनियाँ आरती आ हुनकर दूटा बच्चासँ । ओ सुखद गृहस्थीकें देखिकऽ मोन भितर उठऽ
बला टीसके ओ बहुत मुस्किलसँ दबा सकलीह ।
आरती हुनका खुब आदर–सत्कार कएलीह । बच्चा तऽ
पहिल भेटेमे घूलिमिल गेल छल । आश्चर्य अतेक दिनक बाद कोनो घर परिवारमे अपनापनमे
डूबल जेकाँ लागल ।
‘दिदी, आइए अहाँ अपन सभ समान आनि लिअ । सभ
गोटे मीलिकऽ रहब,’ आरती बहुत आत्मियतासँ बजलीह ।
हुनकर आग्रहकँे अस्वीकार नहिकऽ सकलीह मेनका ।
धीरे–धीरे ओ परिवारके विषयमे बहुत किछु जानि
गेल छलीह । राजीव सर किछु लजकोटर छलाह । बेसी काल अपने अध्ययन, लेखनमे व्यस्त रहैत छलाह । सहायक क्याम्पस चिफ भेलाक बादो विभिन्न
राजनीतिक गोष्ठी सभसँ दूरे रहैत छलाह । आरती बहुत मिलनसार आ गृहणी प्रवृतिकें छलीह
। बहुत पढ़ल–लिखल नहि भेलाक बादो अपन आत्मियता आ सहजपनासँ
सभके मोन मोहि लैत छलीह ।
ओहि दिन राजीव सर अपन नयाँ कथा पूरा कएलाह । जाढ़Þक साँझ छल, चाहक चुस्कीक संग ओकर
चर्चाकऽ रहल छलाह । आरती तरकारी काटऽमे व्यस्त छलीह । मेनका धैर्यताक संग ओ कथाक
प्लट सूनि रहल छलीह । राजीव सर जाही ढंगसँ नायिकाक चरित्र चित्रण कएने छलाह,
हुनका किछु जँचल नहि । ओ भावावेशमे बजलीह, ‘हमरा
बुझऽमे नहि अबैत अछि कि जे नायिका अतेक पढ़ल–लिखल, बुभऽय बाली अछि ओ परिस्थितिसँ लड़बाक सार्मथ्य किए नहि रखैत अछि ? किए नियतिके हाथमे सोपि दैत अछि ।’ तखने लागल जे
राजीव सर एकटक हुनका देखि रहल छलाह । की छल हुनकर आँखि भितर ......... सिहरिकऽ ओ
दृष्टि झुका लेलीह । ओहि समय आरती भितर जाकऽ धीया–पुताकें पढ़ऽ
लेल कहि रहल छलीह ।
ओ चुपचाप उठिकऽ अपन रुममे चलि अएलीह । मुदा ओ दृष्टि...... अबेरधरि
ओ आँखि हुनका स्मरण अबैत रहल । राजीव सर कहियो काल हुनका एना किए देखऽ लगैत छथि ?
ओह, नहि ......
फेर एक हप्ताक बाद राजीव सर ओही कथाक पाण्डूलीपि हुनका हाथमे धऽ
देलाह । रातिमे अबेरधरि ओहिमे डूवल रहलीह । सुखद आश्चर्य हृदयकेँ छूबि गेल छल । सत्ये.....
कि हुनका कहला मात्रसँ राजीव सर अपना कथामे अतेक परिवर्तनकऽ देलाह, नायिकाक चरित्र पुरापुर बदैल देलाह ।
‘कहू, आब तऽ पसिन आएल ?’ ओकर दोसर दिन राजीव सर पुछलैन्हि ।
ओ मुस्कियाकऽ रहि गेलीह । राजीव सर अबेरधरि अपन ओहि कथाक विषयमे बात
करैत रहलाह । ओ सेहो बीच–बीचमे अपन सल्लाह दऽ दैत छलीह ।
अहाँ पढ़बैत छी तऽ बोटनी, मुदा साहित्यमे
अहाँकें बढ़ियाँ पकड़ अछि । किए नहि अहू कथा कविता लिखैत छी ?’
राजीव सरक अवाज हुनका कतहु दूरसँ अबैत लागल । कथा, कविता..... तऽ की राजीव सरकेँ ई पता छैन्हि हमर स्वंयके जीवन कोनो कथा
उपन्याससँ कम थोरहे अछि, जकरा ओ चाहिकऽ सेहो नहि लिख सकैत
छलीह । मात्र स्मृति कतेको घाओकेँ खखोरि दैत अछि आ दऽ दैत अछि एकटा असहनीय पीड़ा ।
ओहि राति सेहो उएह स्मृति फेरसँ सजीव भऽ उठल छल । चन्द्रभूषणसँ
परिचय । फेर वियाहक बाद हुनका संग बिताएल दू बर्षक मधुर सम्बन्ध । हँ, आब स्मरणे शेष रहि गेल अछि । की चन्द्रभूषण सेहो स्मरण करैत हएताह,
ओ बितल क्षणकेँ ? घरपरिवारमे डूबल कहियो सोचि
पबैत हएताह ?
एकटा सिसकी निकलि गेल हुनक मुँहसँ । कतेक सुख दैथि ओ ।
किए नहि ओ एहि सभसँ निकलि पबैत छथि ? किए नहि
.... शायद कोनो गरम बाउलमे धँसि गेल छथि । भागऽ चाहैत छथि, मुदा
फेर ओहिमे धँसि जाइत छथि । कहियो मुक्त भऽ पएतिह एहि धीपल रेगीस्तानसँ ?
ओ जेना निन्नमे चिचिया उठल छलीह । रातिमे उठिकऽ पुरे एक जग पानि
ढ़ारि लेने छलीह । भोरमे सहीमे हुनका बोखार लागि गेल छल । भोजन आदिसँ निपैटकऽ उपर अएलीह
आरती । हुनका सूतल देखि हुनकर देह छुलिह फेर चांैककऽ कहलीह,‘ अँएयै दिदी एतेक बोखार अछि..... आ अहाँ खबरो नहि कएलहुँ अछि ?’
आरती तत्काले डाक्टर बजओलिह, दबाइ मंगबओलैन्हि
। अर्धविक्षिप्त सन अवस्थामे आरती देखैत रहलीह ।
‘रहऽ दियौ नहि ई दबाइ । एहिसँ किछु नहि हएत, हम
आब अपने ठीक भऽ जाएब,’ ओ कमजोर अवाजमे प्रतिवाद करैत रहलीह ।
ओ कोना कहतिह मोनक विकार दबाइसँ थोरहे जाएत । धीरे–धीरे जखन स्मृति सभक दंश कम हएत तखन अपने सभ समान्य भऽ जाएत ।
पता नहि आरती की सोचलैन्हि उपरसँ निच्चा उतैर गेलीह । साँझमे राजीव
सर उपर अएलाह । चद्दरि हँटाकऽ ओ उठिकऽ बैसऽ चाहलिह मुदा, हुनका
चक्कर आबि गेल ।
‘ओहो ! अहाँ पड़ले रहू ने, ’तकिया उठाकऽ राजीव
सर सहारा दैत कहलाह, ‘देखू दबाइ अहाँकें दुश्मन नहि अछि,
फेर किए अहाँ अपनाके समाप्त करऽमे लागल छी ?’ कहैत
राजीव सर अपना हाथसँ दबाइ आ पानिक गिलास एना बढ़ओलैन्हि जेना ई हुनकर आग्रह नहि
बल्कि आदेश हुअए ।
ओ आदेशके अवहेलना मेनका नहि कऽ सकलीह । चुपचाप ओ गोटीकें घोटि
लेलैन्हि ।
‘बस आब चुपचाप सूतल रहू । आरती सुप आ फलपूmल
लऽकऽ अबैत हएतिह । किछु खाएब–पीयब नहि तऽ विमारीसँ कोना लड़ि
पाएब ?’
मौन आ नोराएल दृष्टिसँ ओ राजीव सर दिस देखैत रहलीह । के अछि आब एहि
संसारमे जे हुनकर चिन्ता करए ? फेर किए नहि पुरा जञ्जालसँ छूटि
जाइत छथि । राति भरि एहने सन विचार मोनकेँ उद्वेलित करैत रहल ।
राजीव सरके एहि प्रकारक अधिकारपूर्वक बात करब देखि हुनकर मोन
भेलैन्हि जे ओ तकियामे मुँह झाँपि सिसकऽ लगलैथि । चिचिया–चिचियाकऽ
कहथि, ‘किए नहि हमरा मरऽ दैत छी ? ककरा
लेल जिबू ?’ तऽ की राजीव सर हुनकर मोनक बात बूझि लेने छथि,
नहि तऽ क्षण भरिक लेल हुनक समीप किए आबि गेल छलाह । हुनकर गरम साँस
अचेतन अवस्थामे सेहो निकटसँ अनुभव कएने छलीह ।
‘मेनका ........... ’ओ हुनकर माथपर हाथ धऽकऽ
कहने छलाह, ‘हम बुझैत छी कि अहाँकें अतीत सुखद नहि रहल अछि
मुदा की स्मृतिक संसारमे हेराकऽ अपनाकेँ मेटा देब नीक बात भेलैक ? क्षण भरिक लेल सुखद आ अन्धकारसँ बाहर निकलू आ वर्तमान तऽ एतेक खराब नहि
अछि ।’ कहैत–कहैत राजीव सरक स्वर भावुक
भऽ गेल छल । ओहि समय मेनकाक इच्छा भेल ओ हुनकर बाँहिपर माथ राखि खुब कानथि । सभ
किछु बता दैथि । हुनकर मन शायद एहिसँ किछु हल्लुक भऽ जाइन ।
‘नहि ..........,’ दोसरे क्षण विचार आएल छल ।
अपन पीड़ाकेँ ओ ककरोसँ नहि बटती । राजीव सर संगे सेहो नहि ।
दबाइक प्रभावसँ आँखि किछु मुनाए लागल छलैन्हि । बाँहिपर हाथ थपथपाकऽ
राजीव सर निचा उतरि गेलाह ।
एहि विमारीक बाद ओ राजीव सरके किछु आओर निकट आबि गेल छलीह । अखनधरि गम्भिरताकें
जे मुखौटा ओ सदैब सावधानीसँ ओढ़ने रहैत छलीह, ओ धीरे–धीरे किछु घटि रहल छल । कहियो–कहियो मुस्किआइके,
किछु गुनगुनाएके इच्छा भऽ जाइत छलैन्हि ।
ओहि दिन क्याम्पससँ किछु पहिने आबि गेलीह । देखलीह आरती आ राजीव सर
निच्चा ठाढ़ छलाह । हुनका अबिते आरती बजलीह, ‘दिदी चलू चौरी
दिस घुमऽ ।’
‘हम ?’मेनका चौँककऽ बजलीह ।
‘हँ बस, दस मिनट दैत छी झटपट तैयार भऽकऽ आउ,’
राजीव सर आग्रहक स्वरमे कहलैन्हि ।
हाथ–मुँह धोकऽ मेनका फटाफट सारी बदलि लेलीह ।
माथमे क्लिप ठीक करैत निच्चा उतैर गेलीह ।
‘चलू । अहाँ दस मिनट कहलहुँ हम आओर जल्दी आबि गेलहुँ ।’
हुनकर बात सूनि आरती मुस्किया देलीह । तखने मेनका देखली राजीव सर
चोराकऽ हुनका दिस ताकि रहल होथि ।
चौरी दिस घुमब हुनका नीक लागि रहल छलैन्हि । बहुत दिनक बाद ओ
अपनाकँे तनावसँ दूर पाबि रहल छलीह । मोनू आ सञ्जूकें लऽकऽ ओ आगाँ बढ़ि गेलीह आ
हुनके कोनो बातपर ठहक्का मारिकऽ हँसि देलीह तखने राजीव सरक धीरेसँ आवाज सुनाइ देलक,‘अहाँ हँसैत काल कतेक नीक लगैत छी ।’
स्वरक गहराइ हुनका भितर तक बिन्ह देने छल । हुनकर मुँह लाल भऽगेल छल
। लजाकऽ चौरमे रहल गुलमोहरके पूmल दिस ताकऽ लगलीह ।
राजीव सरके एहि प्रकारक एकटक देखैत रहब, भितर
गहींर तक उतरि जाएबला ओ दृष्टि किछु नहि कहऽ बला बहुत किछु कहि दैत छल । हुनका
लागल केओ अपनाकेँ जतेक समेटकऽ राखबाक प्रयास करैत छल ओ ओतबे बन्हैत जा रहल छलीह ।
आरती किछु दिनक लेल नैहर गेल छलीह । बच्चाक बिना घरमे किछु बुझाइ
नहि रहल छल । राजीव सर अपन अध्ययन कक्षमे व्यस्त रहैत छलाह आ ओ अपना कक्षमे । बेर–बेर निच्चा उतरऽमे हुनका सङ्कोच लगैत छलैन्हि । ओहि दिन क्याम्पसेमे हुनका
थकान जकाँ लागि रहल छल । घर पहुँचकऽ भोजन के बनाओत, ई सोचिकऽ
ओ बाटेसँ पाउरोटीके एकटा प्याकेट अनने छलीह ।
भोजन शुरुए कएने छलीह जे कतऽसँ नहि कतऽसँ राजीव सर उपर चलि अएलाह ।
ओ देखिते चाँैक गेलीह ।
‘ओहो ! हम तऽ ई उम्मिदमे आएल छलहुँ की हमरा अहाँ भोजनपर आमंत्रित
करब, मुदा अहाँ तऽ स्वंय पाउरोटीसँ ......,’ बहुत मजकिया स्वरमे राजीव सर बजलाह ।
‘जी .......,’ मेनका लजा गेलीह । सहीमे हुनका
ध्याने नहि रहल छल राजीव सर असगरे कोना आ की खाइत हेताह ? कमसँ
कम औपचारिकताक नातासँ आमंत्रित करबाक चाहैत छल ।
‘एखने सभ बनि जाएत, अपने बैसल जाउ ने ।’
राजीब सर टेबुल लग राखल कुर्सीपर बैसि रहलाह आ टेबुलपर राखल पत्रिका
ओ अपना हाथमे राखि लेलाह ।
देखिते–देखिते मेनका बहुत चीज बना लेलीह ।
ककरो मात्र उपस्थिति कतेक सुख दैत अछि अन्यथा भोजन तऽ ओ दैनिक बनबैत छथि मुदा कतेक
मोनसँ ।
ओहि दिन सेहो राजीव सर भोजन कऽकऽ उठले छलाह कि दू कप कफी बना लेलीह
। राजीव सरके हाथमे कप पकड़ऽबैत हुनका किछु स्मरण आएल । बजलीह, ‘काल्हि तऽ आरती सेहो आबि जएतिह, ’हुनकर स्वरमे बितल
दिनक स्मरण झलैक उठल ।
‘ हँ, ’ कहिकऽ राजीव सर चुपचाप कपमे चम्मच
घुमबैत रहलाह । कप फेरसँ टेबुलपर राखिकऽ अपन हाथ मेनकाके हाथपर राखि देलाह । एहि
स्पर्शसँ ओ सिहरि उठलीह, मुदा हाथ हँटा नहि सकलीह ।
मेनु, की अहाँ एहि तरहे आजन्म हमरा संग नहि
रहि सकब ? अहाँकँे नहि बूझल अछि अहाँ हमर कतेक आवश्यकता बनि
चूकल छी ।’
राजीव सरक ई स्वर हुनका झिकझोरि देलक ।
‘नहि सर, हम अपना कारण ककरो संसार नहि उजारि
सकैत छी । राति–दिन जे शब्द मष्तिस्कपर रहैत छल ओहे बात
ठोरपरसँ पिछड़िकऽ बाहर आबि गेल छल ।
राजीव सर चाहियोकऽ किछु नहि कहि सकलाह ।
ओहि राति क्षण भरिके लेल सेहो नहि सूतल छली । दुःखद स्मृतिक बन्द
पन्ना फेरसँ फर–फराए लागल । अहिना कहियो नीनासँ चन्द्रभूषण
कहने हएताह , ‘हम अहाँक बिना नहि रहि सकब ।’
मोनमे कचोट उठलैन्हि । चन्द्रभूषणक पत्रक ओ पंक्ति, ‘हम नीनासँ विवाह कऽ रहल छी ।’
हुनका लागल छल ओ कागजपर लिखल मात्र पंक्ति नहि बिषसँ भरल बाण छल,
पापा, भैया, दिदी,
पाहुन कतेक तमसाएल छल ।
‘मेनु, तों कतेक कायर छेँ ? चन्द्रभूषण तोरा धोखा देलकौ आ तों प्रतिकारक एक शव्द नहि कहि सकलएँ ।’
ओ चुपचाप सुनैत रहलीह । कोना कहितथि, सम्बन्ध
तऽ मोनक होइत अछि हृदयक होइत अछि । जखन ओ हृदयसँ निकालि देलाह तऽ केहन प्रतिकार ?
कोन बातक प्रतिकार ?
तखनसँ ओ एकटा मुखौटा चढ़ा लेने छलीह । आब ओ हरेक क्षण खिलखिलाकऽ हँसऽ
बाली मेनु नहि कक्षामे गम्भिरतासँ बोटनीपर भाषण देबऽबला प्राध्यापिका छलीह । मुदा
राजीव सर आब हुनकर मोनसँ ओढ़ल ओ मुखौटा किए तोडऽ चाहैत छथि ? ओ
किए चाहि रहल छथि मेनका फेरसँ मेनु बनऽ ...... उएह पुरनाका मेनकु
आरतीक एलाक बाद सेहो मेनका निच्चा जाए कम कऽ देने छलीह राजीव सरके
आगाँ तऽ पड़बे नहि करैत छलीह ।
‘की बात छैक ? शायद हम एहि बेर नैहर असगरे चलि
गेलहुँ तऽ अपने तमशा गेलियै की ? मुदा दोसर बेर तऽ संगे
चलबाक कार्यक्रम बनओने छी ,’ कहैत ओहि दिन आरती हुनकर शयन
कक्षमे आबि गेलीह । नोटस तैयार करैत मेनका हुनकर आवाजपर चौँककऽ बजलीह, ‘कतऽ ?’
‘होरीके छुट्टीमे पोखरा घुमऽ जारहल छी । ओ कहैत छलाह जे अहूँकें संग
लऽ जएबाक छैक ।’
मेनका चुप रहलीह । राजीव सरके संग ...... मोनमे फेर किछु हलचल जकाँ भेलैन्हि
। धीरेसँ बजलीह, ‘नहि, आरती हम कहाँ जा
सकब छुट्टीमे हम एकटा सम्मेलनमे जारहल छी, कार्यक्रम तय भऽ
चूकल छैक ।’
सूनिकऽ आरतीके उत्साह समाप्त भेल सन लागल । हुनक उदासी देखि मेनका
मधुर स्वरमे फेर बजलीह, ‘कोनो बात नहि । एहि बेर अहाँ सभ
घूमि आउ, फेर कहियो संगे चलबाक कार्यक्रम बना लेब ।
आरतीके गेलाक बाद सेहो ओ बहुत अबेरधरि गम्भीर चिन्तन करैत रहलीह ।
तऽ की राजीव सर ई सभ जानि–बूझिकऽ कहि रहल छथि ? तऽ फेर हुनकासँ निच्चा एक–दू बेर भेट भेल तऽ कतराकऽ
किए चलि गेलाह । मेनकाकेँ हुनकर व्यवहारमे कोनो रुसल व्यक्ति जँका लागल । ओ की
करथि ? प्रश्न बहुत विचित्र छल । ई सत्य छल जे सम्मेलनके
असानीसँ छोड़ल जासकैत छल अन्ततः ओ निर्णय लेलीह ठीक छैक जखन राजीव सर स्वंय किछु
कहता तऽ ओ पोखरा घुमऽ जएतीह ।
मुदा राजीव सर जाइतो नहि बजलाह । आरती चुपचाप सभ तैयारी करैत रहलीह
। मेनकाके मोनमे किछु टीस छल,‘ठीक छैक, ओ छथिए के ?’
जाइत समय सभकेँ छोड़ऽ लेल रिक्सा तक आएल छलीह । आरती आ हुनकर बच्चा
हुनका प्रणाम कएलक मुदा राजीव सर मुँह नुकबैत रिक्सापर बसि रहलाह ।
सभकँे जाइत देखि मेनकाके मोन भेलैन्हि जे जोड़–जोड़सँ
कानऽ लागैथि । ओ किनका की बिगारने छथि, जे सभ हुनका दुःखे
पहुँचबैत अछि । फेर उएह उदास क्षण........... उएह अकेला पन । मोन भेलैन्हि असगरे
चलि जाइ मुदा कतऽ ? ओ प्रत्येक दिन पोखरा जएबाक दिन किए गनैत
छलीह । छोटको आहटसँ किए चौँकि जाइत छथि ? किए बेर–बेर इच्छा होइत छैन्हि राजीब सरक फोन आबय ?
आठम दिन सहीमे द्वार पर प्रवेश भेल ।
‘के ?’ भोर चारि बजे राजीव सरकेँ अबैत देखि ओ
घबरा गेलीह । तखने राजीव सर आगा बढ़ि हुनकर कान्हपर हाथ राखि देलाह ।
‘एहि तरहे स्वंय सेहो परेशान रहलहुँ आ हमरो चयनसँ नहि रहऽ देलहुँ,’
राजीव सर धीरेसँ बजलैन्हि, ‘जनैत छी, मोन नहि लागल घुमऽमे । बहुत दिन सोचलहुँ फोन करी मुदा..........’
‘आरती कहाँ छथि ?’ मेनकाकेँ स्मरण आएल आखिर
राजीव सर संग हुनकर परिवार सेहो गेल छल ।
‘घुमैत काल हुनकर बहिन रोकि लेलक बादमे अएतीह ।’
राजीब सर धीरेसँ मेनकाकेँ आओर अपन निकट आनि लेलाह । फेर स्नेहक
स्वरमे बजलाह, ‘सुनू, हम आरतीसँ बात कऽ
लेने छी हम तीनू गोटे अहिना सँग–सँग रहि सकैत छी आब तऽ रहब
ने हमरा संग ?’
राजीव सरक मुँह मेनकाके माथपर भूmकि गेल ।
तीब्र चुम्बकीय आकर्षणमे बान्हल ओ ओहिना हुनकर छातीसँ लागल रहलीह ।
‘ठीक छैक चलू । भोरे एकटा बैसारमे भाग लेबऽ जएबाक अछि । बाँहिपर हाथ
थप–थपबैत अपना रुम दिस राजीव सर घूमि गेलाह ।
हुनका गेलाक बाद मेनकाकेँ किछु सोचबाक समय भेटल । किए एना भऽगेल ?
किए ओ एना बहि गेलीह ? किए नहि प्रतिकार कएलीह
? फेर स्मरण आएल राजीव सरक ओ शब्द, ‘आरतीकें
कोनो आपत्ती नहि अछि ।’ मुदा मोनमे फेर किछु सेहो खटकलैन्हि
। कोन एहन महिला हएत जे चुप–चाप सभ किछु लुटैत देखि सकत ।
चन्द्रभूषणके नीनाक संग विवाहक बात सूनि कोना ओ कनैत रहलीह । लोक
गेट पीट–पीटकऽ हारि गेल छल मुदा, हुनकर
उएह जिद्द छल । फेर ओ क्षण की, ओ अखनोधरि नीनाके गाढ़ि पढैÞत नहि छथि ? हुनका लागल अनेरे फेर
नीना आगाँ आबि गेल अछि आ हँसैत पूछि रहल अछि, ‘की आब तऽ अहूँ
नीना बनि गेल छी ।’
‘नहि,’ ओ चिचिएलीह । देवालक सहारा नहि रहैत तऽ
ओ चक्कर खा कऽ खसि परितैथि । आधा घण्टाधरि ओ अहिना चुपचाप बैसल रहली ।
बस स्टैण्डपर कनी–मनी लोक छल वातावरणमे
बेरियाक खालीपन व्याप्त छल मुदा मोनमे तऽ बहुतरास बिहारि घेरने छलैन्हि । शायद
किछु क्षणक बाद कोनो बस आएत आ हुनका लऽ जाएत मुदा कतऽ ? स्मरण
आएल ओ आवेदन–पत्र । एकटा लम्बा छुट्टी आ दोसर बदलीके ।
बस आएल । बसक हर्न हुनकर ध्यान तोड़लक हुनकर चाल यन्त्रवत् ओहि दिस
बढ़ल । आगाँ दूर तक सुनसान सड़क देखाइ दऽ रहल छल । छुटैत हरियर वृक्ष शायद ओ अहिना अपन
प्राप्त सुखकेँ एक बेर फेर छोड़ि अएलीह । हुनकर आँखि नोराए लागल छल, जकरा नियतकँे कठोर हात पोछि देने छल ।
राजदेव मण्डलक
उपन्यास
हमर टोल
गतांशसँ
आगू-
गामक
चौबटिया। असलमे तीनबटियाकेँ सभगोटे चौबटिया नाम राखि देलकै। दस गोटे जे कहलकै
सएह साँच। गाए बाहलै तँ हँ। बड़द बाहलै तँ हँ। की करबै, गामक तँ एहने रूल छै।
पीपरक
गाछ तर अजय धिया-पुताकेँ पढ़ा रहल छै। ई गप्प कतेक दिन टोलबैयाकेँ कहलकै लेकिन
कोइ धियान नै देलकै। केना कऽ धियान देतै,
फुरसत हेतै तब ने। खेती-गिरहस्ती आ बीच-बीचमे सराध-बिआह आबि
जाइ छै। फेर पावनि-ितहार संगहि झगड़ा-लड़ाइ तँ सभ दिन होइते रहै छै। एक-दोसराक
टाँग पकड़ि कऽ घिचैक तैयारी। दुसमनक काजमे बाधा नै देल हुए तँ सोझामे हवा जरूर
छोडि देत। दुरगन्धे निकलतै। दोसराकेँ बढ़ैत देखि चुप रहब बड़ कठिन।
एहन
टोलपर अजय धिया-पुताकेँ पढ़ेबाक कोशिश कऽ रहल छै।
लोकक
दुआरिपर गप उड़ि रहल छै।
“सरकारी नोकरी तँ भेटलै नै। आब चचलै, गामकेँ
सुधारै वास्ते।”
“अपना जेना बड़ सुधरल। दोसरो धिया-पुताकेँ निकम्मा ने बना देलक तँ
फेर कथीले।”
“बकटेट भऽ गेलै। नै घरकेँ अहित ने घाटकेँ। कहै छलै जे सभगोटे पैखाना
कोठली बनाउ। रूपैया कतएसँ लबतै लोक।”
“बकरी-गाए चरेतै तँ दू पाइक उन्नति करतै, धिया-पुता।
जँ अजैयाक सभटा गुण सिखतै तँ समाजमे सभसँ लड़ैत रहतै।”
किछु
लोक सभ जगह अलग तरहक होइत छै। ओकर सबहक सोच भिन्न छलै।
“धिया-पुता उच्चका जकाँ भरि दिन खेलाइते रहै छै। ऐठाम पढ़लासँ
फ्रीमे दू अछरक बोध भऽ जेतै। अजैया केहनो छै तइसँ की। काज तँ नीके कऽ रहल छै।”
“लोक सभ किछो कहौ हमरा सबहक धिया-पुता पढ़तै।”
रसे-रस
गाछ तरक स्कूल चलतै की, दौड़ए लगलै। आ ढोढ़ाइ गुरुजी तामसे भेर। दियादक संगे अकलू मड़रक पलिवार
ढाठल छै। जाति आगि पानि बन्न कऽ देने छै। ओकरा छौड़ा बीचेमे बैसि कऽ ककहारा
पढ़ि रहल छै। अजय कनीकालक लेल कोनो चलि गेल छलै। ताबे छौड़ा सभ हड़-हड़ खट-खट
शुरू कऽ देलकै।
“हे रौ, तूँ तँ ढाठल-बान्हल छी। हमरा सबहक
बीचमे किएक एलही।”
“ई केकरो दुआरि थोड़बे छै। ऐठाम किअए ने एबै।”
“नै रहए देबौ ऐठाम। भागि जो, नै तँ बापसँ भेँट
करा देबौ।”
“बापक नाम लेबही।” “चटाक-फट्ट”
“दुनू तरफसँ थप्पर-मुक्का शुरू भऽ गेलै। पेंट-गंजी फटि गेलै। ठोरसँ
खून छड़-छड़ बहए लगलै। छौड़ा कनैत अंगना दिस भगलै।”
अजय
तेजीसँ पहुँचल। सभकेँ फटकारैत पाँितमे बैसौलक। ओकरा सबहक दिस तकलक।
सभटा
बनैया धिया-पुता सन लगैत अछि। हजारोक भविष्य अन्हार दिस जा रहल छै। बचेबाक
प्रयासमे अपनो भविष्य अन्हारमे चलि जेतै बलिदान तँ करए पड़तै। प्राप्त करबाक
लेल किछु हरा जाएब स्वभाविके छै।
अकलूक
पितियौता भाय रामरती मड़र गरजैत आबि रहल छै।
“ई झटकूक बेटा माहटर बनि गेलै। खूनियाँ माहटर। ठीके कहै छलै, ढोढाइ गुरुजी- हम तँ धान-चाउर लऽ कऽ पढ़बै छलौं। लेकिन अजैया खून लेत।”
“की भेल मड़र?”
“ई कालू मड़र, सार अपनाकेँ लाइट सहाएब समझै छै।
अपना धिया-पुताकेँ सनका देलकै। धरहा कुत्ता जकाँ लोककेँ काटनो फिड़ै छै। हमरा
छौड़ाकेँ अंगा फाड़ि देलक। मारैत-मारैत खून बोकरा देलकै। ई बहींचो मैनजन छी आकि
काल। ओकरे धिया-पुताकेँ आइ हम थकुचि देबै।”
कालू
मड़र ओमहरसँ अबैत छलै। गारि सुनिते गरजैत कहलकै- “ऐ रामरती, मुँह खाली नै कर।
मरदक बेटा छेँ तँ हमर कोनो बेदराकेँ हाथ लगा कऽ देखही। ओहीठाम हाथ काटि देबौ।”
कुत्ताक
झुंड एक दोसरपर भूकए लगलै। धिया-पुता सभ किताब लऽ कऽ पड़ाएल।
“भाग रौ खून खतरा हेतौ। दूनूक दियादवाद लाठी-भाला लऽ कऽ निकलि गेल
छै। टोलमे हड़कम्प मचि गेलै।”
मुँहपुरुख
सभ बीच-बचाव कऽ रहल छै।
“आपसमे किएक लड़ै छी। सबूर करू। शान्त रहू मड़र। गपकेँ नै बढ़ाउ।”
ढोढाइ
गुरुजीकेँ दाउ सुतरि गेलै। फेर क, ख, पढ़बैक बदला एक बोड़ा धान लेतै। कुदि कऽ
आगाँ अबैत बजल-
“सभटा नाटक अजैया कऽ रहल छै। झगड़ाक जड़ि।”
दुनू
पक्षकेँ लोक सभ ठेल-ठालि कऽ हटा देलकै। असगरे अजय गाछ तर ठाढ़ अछि।
गाछसँ
स्वर निकलि रहल छै- एकटा बीयासँ हमर जनम भेल। छोट-छीन बीयामे नुकाएल छलौं। बाहर
एलापर हजारो बीया हमरासँ निकलि रहल अछि। एकसँ अनेक। हमरा छाँहमे कतेक जीव-जन्तु
सुखक निसाँस लऽ रहल अछि। तैयो हमरेपर झटहा......।
विहनि कथा १.जवाहरलाल कश्यप २.रवि भूषण पाठक ३.जगदानन्द झा 'मनु'४.चंदन कुमार झा
१
जवाहर लाल कश्यप
विहनि कथा
ड्युटी
रमेसरा हाथ मे दवाई के
पार्सल लेने घुमि रहल छल / बार- बार पता बला पर्ची के देखैत छल
/ कतेक आदमी स ओ पता पुछि चुकल छल / कियौ सही
उत्तर नहि देने छल / जेठक गरमी मे गाम स आयल सीधा- सादा बच्चा बंबई सन शहर मे परेशान भ गेल /गर्मी स बेहाल पुरा मुह लाल भेल पशीना स भीजल सरीर आ संगे भीजल कपडा ओ एक रोड स दोसर रोड, एक गली स दोसर गली,
मे घुमि रहल छल /आ पता छलहि जे भेट नाहि रहल
छल / दुपहरिया मे लोक सबहक आन जान सेहो कम छल ताहि लेल पता
खोजय मे और दिक्कत भ रहल छल / तखने ओ एकटा
बुड्डा के देखलक ओकरा जान मे जान आयल, जे शायद ई सही पता बता सकैत अछि /ओ पता के पर्ची देखेलक
नवनीत बिलडिंग अपोजिट बैंक आफ इंडिआ बान्द्रा ईस्ट/ बुड्डा कहलक आगे से राईट लेकर पहला छोरकर दुसरा लेफ्ट् लेना वहीं है / सामने बैंक आफ इंडिआ देखि मोन खुशी स
भरि गेल/ बैंक आफ इंडिआ के सामने बला बिलडिंग मे ओ घुसि गेल / गेट पर वाचमैन नहि रहै ओ अंदर घुसि
गेल /सामने स एकटा साहेब के आबैत देखि ओ ठाढ भ गेल / साहेब क्रोध मे पुछलखिन्ह किधर जाना है ? बिना पुछे
अंदर कैसे आ गया ? वाचमैन किधर है ? ताबटिधरि मे वाचमैन आबि गेल / साहेब तमकि क पुछलथि
तुम लोग किधर रहता है ? चोर -उच्चका
अंदर घुस जाता है / वाचमैन आव देखलक ने ताव, थप्परे-थप्पर रमेसरा के मारय लागल आ अप्पन ड्युटी के
निर्वाह करय लागल /
२
रवि भूषण पाठक
तीनटा विहनि कथा
१
तीन-चारि सालक छौड़ी मुदा अलबत्ते चरफर ।बाजै भूकै ,चलै-फिरै ,दौड़ै-घूमै मे केकरो बूझि नइ पड़ै जे ई एत्ते छोट छैक आ माए कें हरदम
सर्टिफिकेट दिय’ पड़ै ।छोट मोट टोहल होए ,दोकानक काज ,कंसार जेनए ,बथुआ
तोरनए ,हकार देनए आ जनी-जाति सबक बीच मे बैसि के गीत-नाद मे
पाछू पाछू सूर मिलेनइ.....अलबत्ते रहै राम सोहागक बेटी ।आ बुचिया के माए कहबो करै
...ई रहै त’ बेटे मुदा भगवान के नीन्न आबि गेलेन आ ई बेटी भ’ गेलै ।
आ जखन बोखार लागलै ,तखन पूरा दू महीना तक
भूपेंद्र डॉक्टर आबिते जाइत रहलै ,कखनो ई दवाए त’ कखनो ऊ दवाए .....आब ई टॉनिक दियओ , आब छोटका
गोट्टी शुरू करू आ जखन बेमारी कम हेबाक कोनो लक्षण नइ देखेलकए तखन कहलखिन जे एकरा
दरभंगा मे फलां बाबू ओइ ठाम देखाबू ।आ फलां बाबू देखिते कहि देलखिन ,जे एकरा त’ बड़का बोखार अछि ,मुदा
कहलखिन एना जे भूपेंद्रक प्रति मोन मे ककरो कोनो शंका नइ जनमै ......आखिर चेला त’ हुनके रहेन ।
आब बात एना फसलै जे ठीक हेतै त’ कते हेतै आ पैसा लागतै त’ कत्ते लागतै ......राम सोहागक ओकादि क’ पूरा
मानचित्र डॉक्टर साहेब एक-दू दिन मे बना देलखिन ,आ पूरा दया
देखबैत मात्र महीसे बेचेलखिन .......बेटी जाइत बला बात.....फलां बाबू जे अपन
डिग्री क’ अंत मे एफ0आर0सी0एस0 लगबैत छथिन स्पष्टे कहलखिन
जे यदि बेटा रहत तखन त’ हम आर किछु कहतौं ,मुदा ई त’ बेटिए अछि तें आब जत’ अछि कथा के ओतै समाप्त करू आ राम सोहाग अपन छोटकी बेटी के नेने गाम आबि
गेला ।बेटी जे ने बाजि सकै छलै ,ने उठि-बैस सकै छलै ।सूतले
सूतल खाए आ पैखाना करै ।टोल पड़ोसक लोक सब शुरू मे आबैत गेलै ,कुशल क्षेम आ भगवानक नाम.......राम सोहाग सेहो पंजाब चलि गेला....आब बचलै
केवल बुचिया आ ओकर माए ......आ माए सेवा कर’ लागलै ,भगवान ,भाग के गारि-बात कहैत .......ओइ दिनक
प्रतीक्षा कर’ लागलै जखन कि बुचिया क’
प्राण छूटतै आ बुचिया कें ऐ कष्ट सँ मुक्ति मिलतै...........
२
भाय साहेब कार सँ मामा गाम जेबा के विचार बनेलखिन ।भौजी निच्चे आंखिए एना
देखलखिन जेना ऐ यात्रा मे भाय साहेब सब किछु लुटा देता । फेर भौजी कें बौंसए क कम
सँ कम पनरह साल पुरान तरीका अपनाबैत कहलखिन ‘चिन्ता नइ करू ।बहुत दिन बाद जा रहल छी ,खाली हाथ कोना आबए देता , आ माए सेहो कत्ते दिन बाद
गेलै हन ।‘ भौजी क’ चिंता तैयो समाप्त
नइ भेलेन ,तखन भाए साहेब बड़का बेटा के सेहो तैयार क देलखिन
।मानि लियओ जे जेना खरचा हेतइ त हेतइ विदाइयो त ऽ हेबे करतइ । आ विदाइ के समै बेटा के पांच सौ टका मामा देब ऽ
लागलखिन त ऽ छौड़ा बाप दिस
देख ऽ लागलए । भाए साहेब के पित्त चढ़ेन
जे छौड़ा लै किएक नइ छइ आ वौआ बूझइ जे लेला क ऽ बाद
पप्पा डांटि ने देथि । आ माए गुम्मे रहलखिन भाए कें पैसा खर्च होए के चिंता अलग
आ वौआ गाड़ी सँ आयल से चिंता अलगे ............
३
एकात वला रस्ता
दूनू कवि भोरूका टहलौनी मे एहन रस्ता खोजि लेलखिन ,जइ रस्ता मे केओ
नइ देखाइ ।कखनो काल कोनो सरलहिया कुकुर ,कखनो कोनो कबाड़ी
तेजी सँ आबादी दिस बढ़ैत ,बस यैह हलचल ।ने एक्कोटा अखबार
वला कऽ सायकिल ने इसकुलिया बस क धूम-धक्कर ,कखनो-कखनो हनुमान मंदिर सँ भजन कऽ आवाज
आबै ।भजनो नबका धुन पर ,कविगण ऐठाम निचेन सँ अपन पेट पर ढ़ोल
बजा सकैत छला ,पेटे नइ ,पीठो दिस आ
नीच्चों ,ऐठाम के देखए वला ।आ ऐठाम खूब नीक जँका विरोधी पर
टिप्पणी कएल जा सकैत छलै आ रंगबिरही गारि सेहो ।
३
जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीह्टोंल, मधुबनी
दूटा विहनि कथा
१-एक करोड़क दहेज
संजना आ संजय केँ विवाहक तैयारी में जोर-सोर सँ संजना केँ पिताजी आ हुनक सभ परिबार तन-मन-धन सँ लागल
| संजना आ संजय दुनु एक्के संगे मेडिकल में पढ़ै छल ओहि बिच
दुनु में पिआर भेलैंह आ आब सभहक बिचार सँ विवाह भय रहल अछि | चूकी संजय केँ पिताजी
अपन ऑफिस कए काज सँ युएसए गेल रहथि आ एहि ठाम हुनक अभाब में हुनकर सबटा काज हुनक
छोट भाई अर्थात संजय केँ कक्का
केलन्हि |
आब काईल्ह विवाह छैक त' ओ आई गाम एलाह |
गाम परक सभ तैयारी देख ओ प्रशन्न भेला | बातक
क्रम में हुनका ज्ञात भेलन्हि जे कन्यागत दिस सँ पंद्रह लाख रुपैया दहेज सेहो संजय कें कक्का तय केलन्हि
आ कन्यागत देबैक लेल सेहो मानि गेल छथि | मानितथि किएक नहि
उच्च कुल-खनदान, वर डॉक्टर,वरक बाबू
बड्डका डॉक्टर, गाम में सय बीघा खेत, बेनीपट्टी
में शहरक बीचो-बिच चारि बीघाक घडारी |
मुदा संजयक बाबू केँ ई बात सँ किएक नहि जानि खुसी नहि भेलैंह | ओ तुरंत ड्रायबर केँ कहि गाड़ी निकलबा कन्यागत ओहिठाम पहुँचलाह |
काईल्ह विवाह छै आ आई वरक बाबूजी उपस्थीत, मोनक
संका केँ नुकबैत कन्यागत
दिस सँ कन्याँक बाबू सहीत सभ दासोदास उपस्थीत | पानि,
चाह शरबत, नास्ता,पंखा
सब प्रस्तुत कएल गेल | संजयक बाबू ओई सभ केँ नकारैत दू टूक बात संजनाक बाबू सँ बजलाह
-" समधि कनी हमरा अपने सँ एकांत में गप्प करैक अछि |"
हुनक संकेत पाबि सभ गोते ओहि
ठाम सँ हति गेलाह,मुदा सभहक मोन में अंदेसा भरल, कतेको गोटा दलानक
कोंटा सँ सुनैक चेष्टा में सेहो | सभ केँ गेला बाद संजयक बाबू संजनाक बाबू सँ
-"समधि ! हम त' एखने दू घंटा पहिने युएसए सँ एलहुँ
क्षमा करब पहिने समाय नहि निकालि पएलहुँ, मुदा ई की सुनलहुँ
अपने पन्द्रह लाख रुपैया दहेज में दय रहल छी |"
संजनाक बाबू दूनू हाथ जोरने -"हाँ समधि जतेक अपनेक सबहक मांग रहनि हम
अबस्य पूरा करबनि |"
संजयक बाबू -"जखन मांगेक बात छैक त' हमरा एक करोड़ रुपैया चाही |"
ई सुनिते संजनाक बाबुक आँखिक आँगा अन्हार भय गेलैंह, आ आनो जे सुनलक
सेहो दांते आँगुर कटलक | संजनाक बाबू पुर्बबत दूनू हाथ
जोड़ने -"एहेन बात नहि कहु समधि पंद्रह लाख जोडै में त' असमर्थ छलहुँ आ ई एक करोड़ त' हम अपनों बीका क'
नहि आनि सकै छी |"
कहैत निचा झुकलनि शायद संजयक बाबूक पएर पकडैक चेष्टा में मुदा निचा झुकै सँ पहिले संजयक बाबू हुनका उठा
अपन करेजा सँ लगा -"ई की पाप दय रहल छी, पएर त' हमरा अपनेक
पकरबा चाही जे अपने अपन बेटी दय रहल छी | आ रहल पाई त'
हमरा एक्को रुपैया नहि चाही भगबानक कृपा सँ हुनक देल सब किछ अछि |
आ एक करोड़क बात तकरा क्षमा करब ओ छ्नीक ठीठोली छल, जखन मांगने पंद्रह लाख भेटत त' एक करोड़ किएक नहि जे
आगु कोनो काजो नहि कर' परए | आ दोसर की
अपनेक बेटी आ हमर पुतौह एक करोड़ सँ कम केँ
छथि हा हा हा .... | एका
एक चारू कात नोराएल आँखि सँ ड़बड़बेल खुशिक ठहाका पसरए लागल |
२-उपकार
रग्घू कनियाँ पीलिया सँ ग्रस्त अंतिम
अवस्था में दिल्लीक लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में आई दस दिन सँ भर्ती जीवन आ
मृत्युक बिच संघर्ष करैत | पीलिया केँ अधिकता आ कोनो आन कारणे आँखि में से इन्फेक्सन भय
गेलनि | लोकनायक जयप्रकाश
अस्पतालक डाक्टर रग्घू सँ कहलकनि जे कनियाँक आँखि लोकनायक जयप्रकाश अस्पतालक
बगले में आँखिक अस्पताल गुरुनानक आई हॉस्पिटल छैक ओहिठाम सँ जाँच करा क' आनै लेल |
रग्घू डाक्टरक बात मानि
एहि काज में लागि गेला | लोकनायक आ गुरुनानक दुनु सरकारी
अस्पताल छैक तैं खर्चाक बात नहि मुदा रग्घू केँ बोनि मजुरी रहैन रोज कमाऊ आ रोज खाऊ आ आई दस दिन सँ
अपन बोनि छोरि कनियाँ संगे एहि ठाम अस्पताल में छथि | दस दिन सँ नव काज
नै | जमा पूंजी खत्म | एखन तत्काल
लोकनायक सँ गुरुनानक अस्पताल तक जाई में
पन्द्रह रुपैया जईती आ पन्द्रह रुपैया आईबती, कुल तिस रुपैया चाहि | हुनका लग छलनि कुल दस रुपैया | ओहि दस रुपैया में
अपन किछ नास्ता भोजन सेहो, कनियाँ केँ त' अस्पताले में भेट
जाइ छलनि | ओई ठाम सँ काज करै लेल कतौ जेबों करता ताकी पाई
होईन त' कम सँ कम दस रुपैया बस भारा चाहियैन |
इ सब समस्या केँ जनैत रग्घूक कनियाँ रग्घू सँ कहलनि- " फोन कय क' अपन भैया सँ दू
सय रुपैया मईन्ग लिय, काइल्ह-परसु काज केला बाद पाई होएत त'
दय देबैन |"
रग्घू अपन कनियाँ केँ कन्हा पर उठा लोकनायक सँ
गुरुनानक अस्पताल केँ लेल बिदा भ' गेला आ चलैत-चलैत बजला -"अहाँ जुनि
चिंता करु, रिक्सा सँ नीक सबारी हमर पिठक होएत आ रहल इ
मुसीबत त' ई त' चारि दिन बाद खत्म भय
जाएत मुदा केकरो उपकार सधबै में पूरा जीवनों कम परत |"
४
चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान,मधुबनी, बिहार
बिहनि-कथा - लोहनावाली
भोरक करीब सात बजैत रहै. लोहनावाली भनसाघर मे चुल्हा पजारति
रहय.सिमसल चेरा पजरैत नहि रहय खाली धुआँइत छलैक. धुआँ भरल भनसाघर. फुकैत-फुकैत
अकच्छ मोन भेल छै. आँखि फुटि रहल छलैक ओहि
धुआँभरल भनसाघर मे. आँखि लाल बून्न भ' गेल रहय. आँखि सँ
नोर बहय लागल रहय मुदा कनैत नहि रहय एखन लोहनावाली. ओ त' आँखि
मे धुआँ लागि गेल रहय तइँ नोरा गेल रहय.कानल त' राति मे रहय
ओ. भरि राति कानल रहय...भरि राति कि जीवन भरि त' कनिते रहल
अछि. ...नहि..नहि..जीवन भरि नहि .....जहिया से एहि घर मे वियाहि के आयल अछि तहिया
से..जा धरि वियाह नहि भेल रहै, नैहर मे रहैत रहय, कहियो कोनो दुख-दर्दक भान नहि भेलै.बेटी भऽ जनम नेने छल तइयो बड्ड प्रेम
भेटैत छलै माय-बापक.तीन भाय-बहिन मे एसगर बहिन तहू मे सबसे छोट.सभक मुहलगुआ..मायक
रधिया..बाबूक राधा बेटी,......लोहनावाली........चुल्हि फुकैत
लोहनावाली.
राति मे फेर जुगेसरा पी के आयल रहय.बड़का पियक्कर निकलि
गेलैए.रोज ताडी-दारू चाही.सभटा जथा-पात बेचि पीबि गेलै.बड्ड मना करैत छैक
लोहनावाली मुदा के सुनैए ओकर गप्प. बेचारी के रोज गारि-फज्झति सुन' पड़ैत छै उनटे.की
करतइ अबला नारी, सहि लैत छैक सभटा.मुदा आब ओकरो कखनो-काल
बर्दाश्त सँ बाहर भऽ जाइत छैक.मोन होइछै जे मरि जाय.एहन जीवन से त' मुइनहि नीक.फेर, दूनू बच्चा के मुँह देखि शांत भऽ
जाइत अछि.आठ बरखक सुधीर आ पाँच बरखक सरिता छैक.इसकुलक मास्टर कहैत छथिन्ह जे सुधीर
पढ़ै मे बड्ड तेज छैक आ' तइँ एतेक मारि-गारि खेलाक बादो
लोहनावालीक एकेटा मनोरथ जियौने छैक जे सुधीर पढ़ि लेतै त' सभटा
कलेश दूर भऽजेतइ.सरिता त' बेटी छियैक.अनकर धन.बस कोनो नीक
ठाम बियाह भऽ जेतइ तँ सभ चिन्ता दूर भऽ जेतइ लोहनावाली के....आँच एखनो नहि
पजरलैए...बियनि तकैत लोहनावाली.
रामावतार, लोहनावालीक जेठ भाय. बड्ड स्नेह करै छै लोहनावाली से
रामावतार. कोनो एहन मास नहि होइछै जे ओ' नैहर से लोहनावाली
ले सनेस नहि अनैत हो...सनेस की आब त' लोहनावालीक गुजरो
नैहरेक बल पर होइ छै. हरदम पाइ-कौड़ी नैहर से अबैत रहैत छै.पन्द्रहो दिन नहि भेलैए
दू गारी आमक चेरा पठा देने रहै रामावतार.एखनो सौसे दरबज्जा पसरल छै. पानि मरैले
रौद मे देने रहए.ओही चेरा मे से एकटा घीचि के जुगेसरा राति मे मारने रहै लोहना
बाली के. पाँजर मे एखनो कारी-सियाह चेन्ह भेल छै. ई चेन्ह त' तइयो मेटा जेतइ मुदा करेजा मे जे अपमान आ' दुत्कारक
चेन्ह लागल छै से त' मुइनहि मेटैते....आँचर सँ नोर पोछैत
लोहनावाली.
परसू रामावतार आयल रहै. जाइत काल गोरलगाइ मे एक सय टाका दैत
गेल रहै लोहनावाली के. एकमास से सुधीर किताब कीनि दै ले हल्ला मचौने छेलइ.पचास
टाका किताबे किनइ मे खर्च भऽ गेल रहय.बीस टाका गामबाली काकी से पैँच लेने
छल.सरिताक दबाइक खातिर. ओहो सधा देलकै. तीस टाका बचल छेलै.ओहे तीस टाका काल्हि
साँझ मे जुगेसरा के देने रहै लोहनावाली आ' बेर-बेर बुझा के कहने रहय जे घर मे सिधहा
खतम भऽ गेल छै से ई पाय कत्तौ अनतऽ नहि खर्च करबा लेल.....अनतऽ की......एहि पाय के
पीबै लेल नहि.मुदा हेहर भऽ गेल छै जुगेसरा.कोनो मतलब नहि छै ओकरा जेना बहु बच्चा
से. दारू भेट जाउ बस आर किछ नहि चाही.भरि दिन टहलानी मारैत रहै छै.कोने-कोन गाजा
तकैत रहैत छै.महा निशाँबाज भऽ गेल छै...पीबि गेलै ओहो तीस टाकाक दारू.साँझखन छूछै
हाथ डोलबैत अबैत देख लोहनावाली के तामश चढ़ि गेल रहए.तामश एहि दुआरे नहि चढ़ल रहए
जे ओ की खायत,लेकिन धिया-पुता के कोना भूखले सूत' देतइ.साँझे सँ बाट तकैत छल चुल्हि लग बैसलि.एकोरत्ती मोन मे विचार नहि अछि?
कोना के पी गेलियै?...एतबे बाजल रहै लोहनावाली
कि धेले चेरा मारि देलकै जुगेसरा.लोक-लाजक डर की बाजत.चुप्पे रहि गेल
लोहनावाली.ओहन झाँट-बिहाड़ि एलै किछु नहि बुझलकै ओ.सून्न भऽ गेल रहैक ओकर दिमाग
जेना.सभटा चेरा भीजि गेलइ.सुधीर आ' सरिता मायक कोरा मे मूड़ी
नुकौने निन्न पड़ि गेलै.भुखले सूति रहलै...आ टक-टक तकैत रहि गेल लोहनावाली....भरि
राति कनैत रहल लोहनावाली.
जखन लाल बहादुर शास्त्री देशक प्रधानमंत्री बनल रहथि तखन
देशमे अन्न-संकट छल आ' ओहि समय मे गाम-घर मे एकटा प्रथा जनमल जे गृहणी लोकनि जखन
सिधहा लगाबय लागथि तखन ओहि मे सँ एकमूठ्ठी चाउर निकालि के अलग राखि लैत छलीह आ'
एकरा मुठिया चाउर कहल जाइत छल.एहि जोगाओल चाउरक उपयोग ओ' विपरीत काल मे घर चलैबाक लेल किनइ-बेसाहइ मे करैत छलीह.लोहनावाली सेहो माय
के देखने रहै मुठिया चाउर जोगबैत आ' तइँ ओहो जोगा के रखइत छल
मुठिया चाउर.
पैर नहि उठैछै भनसाघर दिस जाइक लेल.की करतइ ? भरि राति
धीया-पुता भूखले छै.जल्दी-जल्दी चुल्हा लग आयल जे किछ बना के देतइ बच्चा सभ के.
सुधीर के बजेलक आ एकटा तौला मे राखल मुठिया चाउर के पोटरी बान्हि दालि किनबा ले
दोकान पठा देलकै.ओही तौला मे सँ सिधहा सेहो निकाललक.आँच धधकि गेलै.कतेक दिन तक ओ
चलेतै घर एहि मुठिया चाउरक बलेँ...सोचैत अछि लोहनावाली..अधहन चढ़बैत
लोहनावाली...सुधीरक बाट तकैत लोहनावाली.आब तऽ एकटा सुधीरे सँ आशा छैक जकरा बलै दिन
काटत लोहनावाली.
डा0 अरुण कुमार सिंह मैसूर, कर्णाटक
भाषा जातिगत
सम्पत्ति नहि अपितु सामाजिक सम्पत्ति
भाषाक
उत्पति समाजमे भेल अछि आओर समाजक विकास भाषाक आधार पर होइछ। एहि तरहेँ भाषा आओर
समाज दुनू अन्योन्याश्रित अछि। एहि मादे हम कहए चाहैत छी जे मैथिली भाषा कोनो जाति
विशेषक सम्पत्ति नहि अपितु ई तँ सामाजिक सम्पत्ति थिक। सामाजिक व्यवहारे भाषाक
मुख्य उद्देश्य अछि। भाषाक विकास आ संरक्षण समाजमे होइछ आओर एकर प्रयोग सेहो
समाजमे होइछ। मैथिलीकेँ दूरगामी क्षति पहुँचाबैवला किछु लोकक कहब अछि जे घर-घरारी
सदृश मैथिली सेहो हमरा सभक पैतृक संपत्ति अछि, जे कि सर्वथा अनुपयुक्त, किएकतँ
सम्पूर्ण मिथिलामे रहएवला सभ वर्गक नेना जन्मेसँ अपन मातृभाषा मैथिली बजैछ।
हमसब
भाषाक बलेँ असगरमे सोचैत एवं मनन करैत छी मुदा ओ भाषा एहि सामान्य यादृच्छिक
ध्वनि-प्रतीक पर आधारित भाषासँ भिन्न होइछ। भाषा आद्योपांत समाजसँ संबंधित
होइछ।भाषा एक सामाजिक सम्पत्ति अछि। एहि सँ स्पष्ट होइत अछि जे कोनो साहित्यकार वा
भाषाप्रेमी भाषाक निर्माता नहि भए सकैछ। भाषामे होइबला परिवर्तन व्यक्तिकृत नहि
भएकें समाजकृत होइछ।
भाषाक
सामाजिक स्तर पर अन्तर भए जाइछ। विस्तृत क्षेत्रमे बाजल जायवला भाषाक आपसी भिन्नता
देखल जाए सकैछ। सामान्य रूपमे सम्पूर्ण मिथिलाक लोक मैथिलीक प्रयोग करैछ,मुदा अलग-अलग क्षेत्रक मैथिलीमे
पर्याप्त भिन्नता होइछ। एहन भिन्नता ओकर शैक्षिक, आर्थिक,
व्यावसायिक, सामाजिक,सांस्कृतिक तथा भौगोलिक स्तरक कारणेँ होइछ। पढल-लिखल लोक जतबा साकांक्ष
भएकेँ भाषाक प्रयोग करैछ, साधारण अथवा बिनु पढल-लिखल लोक
ओतेक साकांक्ष भएकेँ भाषाक प्रयोग नहि कए सकैछ। एहन स्तरीय बात कोनो भाषाक समय
विशेषमे कएल गेल भाषा-प्रयोगसँ अनुभव कएल जाए सकैछ।
विश्वक
सबटा काजक संपादन प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूपेँ भाषेक माध्यमसँ होइछ इ तथ्य सर्वमान्य
अछि। सबटा ज्ञान भाषे पर आधारित अछि। व्यक्ति-व्यक्तिक संबंध वा समाज-व्यक्तिक
संबंध भाषाक अभावमे असंभव अछि, इहो भाषाक सर्वव्यापकताक प्रबल प्रमाण अछि।
मनुष्यक संग-संग
भाषा सतत गतिशील रहैछ। समाजक संग भाषाक आरंभ भेल आओर आइ धरि गतिशील अछि। मानव समाज
जा धरि रहत ता धरि भाषाक अस्तित्व बनल रहत। कोनो व्यक्ति वा समाजक द्वारा भाषामे
कमोवेश परिवर्त्तन कएल जाए सकैछ, परंच एकरा समाप्त करबाक सामर्थ्य ककरोमे नहि रहैछ। भाषाक
परिवर्त्तनशीलताकेँ व्यक्ति वा समाज द्वारा रोकल नहि जा सकैछ। संसारक सभ वस्तु
सदृश भाषा सेहो परिवर्त्तनशील अछि। जेना-संस्कृतमे ‘साहस’ शब्दक अर्थ अनुचित वा अनैतिक काजक लेल उत्साह देखाएब छल, मुदा आब ई शब्द मैथिलीमे नीक काजमे उत्साह देखैबाक अर्थमे प्रयुक्त
होइछ।
भाषा परिवर्त्तनशील
अछि। इएह कारण अछि जे सब भाषा एक युगक बाद दोसर युगमे पहुँचि कए बहुत फराक भए
जाइछ। एहि प्रकारेँ परिवर्त्तनक कारणेँ भाषामे विविधता आबि जाइछ। जँ
भाषा-परिवर्त्तन पर साफे नियंत्रण नहि राखल जाएत तँ तेजीसँ परिवर्त्तनक
परिणामस्वरूप किछुए दिनमे भाषाक रूप अबोध्य भए जाएत। भाषा-परिवर्त्तन पूर्ण रूपसँ
रोकल तँ नहि जा सकैछ, परंच
भाषामे बोधगम्यता बनाकेँ रखबाक लेल ओकर परिवर्त्तनक क्रममे एकटा मानक रूप रहब अति
आवश्यक।
अन्ततः
हम कहए चाहब जे भाषा अपन समाजक संप्रेषणक अन्यतम साधन थिक। एकर माध्यमसँ वर्त्तमान
एवं अतीतकेँ परखल जा सकैछ संगहि ओकर भूत एवं वर्त्तमानक पृष्ठभूमि पर भविष्यकेँ
देखल जा सकैत अछि। भाषा मुखरित भए व्यक्तिकेँ सम्प्रेषित करैछ, मुदा कतेको बेर मौन रहि सम्पूर्ण
समाजक भावनाकेँ अभिव्यक्त कए दैत अछि। भाषाकेँ भाषेक माध्यमसँ बुझल जाइछ आ तेँ ई
प्रक्रिया एतेक सरल प्रतीत होइत अछि। यद्यपि इहो देखल जाए सकैत अछि जे हमसब एकर
सही क्षमताकेँ नहि आंकि दिगभ्रमित भए जाइत छी। अंततः समाजेकेँ बहुत रास चीज गमाकेँ
एकर क्षतिक आकलन करए पड़ैत छैक, जे कि कोनो भाषाक
विकासकेँ अवरूद्ध ओ गतिहीन बनबैछ।
***************
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
कथा
चन्दा
(गतांशसँ
आगू..)
चन्दा
मोने-मन प्रसन्न भेलीह- “चलू, बाबूजी हमरा
अतेक सिनेह करैत छथि। हे भवाबान! जन्म-जन्म भरि एहने
पिता देब। ओना माइयो कुनो अधलाह नै कहलनि। अतेक सांझ धरि आमक गाछीमे हमरा नै
रहबाक चाही।” मुदा माता-पिताक प्रसंगसँ चन्दाकेँ एक लाभ
ई भेलनि जे चन्दा राघवक कमीकेँ किछु क्षणक हेतु बिसरि गेलीह। भोजन-भात करैत
रातिक आठ बाजि गेलैक। चन्दा अपन दू छोट बहिन सबहिक संग सूति रहलीह। कनीकाल
राघवकेँ स्मरण एलन्हि। तामसो चढ़लन्हि- “कतए चलि
गेलाह राघव! भेँट नै भेलाह।” फेर
भेलन्हि, “भऽ सकैत अछि कुनो प्रयोजनसँ कतौ गेल होथि।
काल्हि तँ भेँट भइये जाएत। मोन भेलन्हि, राघवकेँ
पुछबनि जे कतए गेल रही। मुदा लोक अगर सुनत तँ की कहत। राघव सेहो की सोचताह! फेर विचारलन्हि, किछु नै कहबन्हि।” अही तरहक अनेक विचारक श्रृंखलामे चन्दा तल्लीन भऽ गेलीह। पता नै
सोचैत-सोचैत कखन निसभेर भऽ गेलीह।
भोरे उठि
चन्दा नवका पोखरि दिस स्नान करक हेतु विदा भेलीह। सोमक दिन रहैक। माय कहलथिन्ह-
“चन्दा,
पंचमुखी महादेवकेँ आइसँ हरेक सोम एगारह लोटा अछिंजल चढ़ाउ।
गंगेश पण्डित कहलन्हि अछि जे ऐसँ अहाँक कल्याण हएत।”
बुलेसर
बाबू पत्नीसँ पुछलखिन्ह-
“गंगेश
पण्डितजी कल्याणक अर्थ की कहलन्हि?”
चन्दाक
माय- “कल्याणक अर्थ ई भेल जे चन्दाकेँ योग्य घर-वर भेटतनि। सोम दिन
महादेव आ पार्वतीक दिन छन्हि। सोमक जल ढारक बड्ड महत छैक। ताहिसँ सोलचौं,
गंगेश पण्डित जीक उक्तिसँ चन्दाकेँ अवगत करा दियन्हि।”
बुलेसर
बाबू पत्नीक बातकेँ स्वीकृति गर्दनि हिला देलखिन्हि। किदु बजलाह नै।
मोने-मन भोलानाथसँ व्याहुत बेटी लेल नीक वरक वरदान अवश्य मंगलन्हि। सभकेँ
ठसकसँ लगानीपर द्रव्य आ वस्तु देनिहारक हाथ आइ भगवान भोलानाथ लग आर्त-भावसँ
लेबाक लेल पसरल छलन्हि। कनीक क्षण लेल अनुभव भेलन्हि जे बेटीक बाप भेनाइ केकरा
कहैत छैक!!
खैर! चन्दा
फुलडाली, फुलही लोटा, वस्त्र,
बांसक कर्चीक दतमनि लऽ नवका पोखरि दिस विदा भेलीह। एकपेरिया
रस्तामे चलैत मोने-मन उमंगमे डूमल जे आ राघवसँ भेँट हएत। उल्लसित मोनसँ चलैत
नायिका सेहो एकपेरिया रस्तापर अपन शरीर आ सोचक संग एक अनुपम सामंजस्य स्थापित
कऽ लैत अछि। मोन जेना-जेना अपन सोचमे उतार-चढ़ाव, गति, उद्वेग, तरंग अनैत छैक, तहिना शरीरक अंग सभ प्रदर्शन कए मोनक भावनाकेँ व्यक्त करैत छैक। चन्दो
संग सएह भेलन्हि। भरि रस्ता चन्दा कखनो राघव तँ कखनो अपन माइक कहल आदेशक सम्वन्धमे
सोचैत रहली। राघवपर चन्दाकेँ तामस आ सिनेहक भाव एक्के संग आबए लगलन्हि। तामस ऐ
हेतु जे राघव कतए गेला बिना कहने।”
सिनेह ऐ
दुआरे जे राघव बड्ड नीक लोक अछि। सोचलन्हि- गरीब तँ छथि राघव, मुदा
छथि व्यवहार आ विचारसँ नीक।
चन्दाकेँ
एक क्षण लेल पहिल बेर ई एहसास भेलन्हि जे शायद राघव हुनका जीवनमे बहुत पैघ स्थान
रखैत छथिन्ह। चन्दाकेँ यादि आबए लगलन्हि कबड्डी आ नूका-चोरी। चन्दाकेँ यादि
एलन्हि तीन-चारि वर्षक पूर्वक एक घटना जखन चन्दा किछु आर लड़का-लड़की संगे मिलि
कऽ कनिया-पुतराक खेल खेलाइत छलीह। राघव सेहो आइ खेलक पात्र छलाह। राघवकेँ घरमे कियो
नै रहन्हि। दुपहरियाक समए छलैक। पाँच-छह नेना सभ कनिया-पुतरा खेलाए लागल।
भेलैक ई जे ऐ खेलमे एक बर आ एक कनिया हेतैक। कनियाक पिता आ माता हेतैक। बर आ
कनियाक बिआह हेतैक। गीत-नाद आ विधि बेवहार हेतैक। चन्दा बनलनि कनिया आ राघव
बर। दुनुक बिआह भेलन्हि। गीत-नाद भेलैक। चतुर्थी भेलन्हि। कोहबर बनलै। कोहबर
घरमे चन्दा आ राघव बर कनिया बनि आराम करए गेलाह। कोहबर घर की तँ राघवकेँ पिताक
मच्छरदानी टांगि ओकर चारू कात नूआसँ झांपि देल गेलैक। राघव आ चन्दाकेँ कोहबर
घरमे राखि सभ बच्चा सभ थोड़ेक कालक हेतु बाहर चलि गेल। राघव आ चन्दा
अपना-आपकेँ ठीकेमे बर-बनिया मानि एक दोसरकेँ पकड़ि सूति रहलनि। कनीक-कालक बाद
बच्चा सभ आबि गेलैक।
चन्दा
यएह सभ सोचैत-सोचैत नवका पोखरि दिस जाइत छलीह। कखनो कमर लचकन्हि तँ कखनो वक्ष
हिलय लगन्हि। कखनो नितम्ब डग-मग करए लगन्हि तँ कखनो आनंदातिरेकमे अवते
चलबाक गति तेज भऽ जाइन्हि। जखन तेज चलथि तँ वक्ष आ जखन नहु-नहु आनन्दित होइत
चलैत तँ नितम्ब डोलए लागन्हि। दुनू अवस्थामे चन्दा लगैत छलीह सुन्दरि,
आकर्षक......।
फेर चन्दाकेँ
भेलन्हि जे राघव तँ हमर कुनो मूलो-गोत्रक नै छथि। तखन की चन्दा आ राघवकेँ बिआह
भऽ सकैत छन्हि? फेर सोचलन्हि,
केना हेतैक? एक्के टोलमे जे छी। आर राघव तँ गरीब घरसँ छथि।
हमर पिता कखनो ऐ लेल तैयार नै हेताह। ई सोचैत चन्दाक चालि मध्यम भऽ जाइन्ह।
माथपर पसीना आबए लगलन्हि। चेहरा उदास भऽ गेलन्हि। मुदा सुन्दरता अपन दोसर
रूपमे प्रस्फुटित होइत रहलन्हि। नितम्ब नहु-नहु उभारक प्रदर्शित करए लगलन्हि।
आब चन्दा अपन बिआहक संबंधमे सेचए लगलीह। केकरासँ बिअाह हएत? ओ लड़का केहेन हेतैक! हमरा संग ठीक बेवहार
करत की नै? छोटकी बहिन सभकेँ जिम्मेवारी माय असगरि
केना सम्हारतीह। आदि-आदि। फेर चन्दा अपना-आपकेँ भगवान भोलानाथपर छोड़ि देलन्हि।
मोने-मन गाबए लगलीह- “पूजाक हेतु शंकर, आएल छी हम भीखारी।”
यएह
सोचैत-सोचैत चन्दा आबि गेलीह नवका पोखरि लग। पोखरिसँ ठीक पहिने राघव केर
दलान। दलानपर राघवकेँ पुन: नै देखलखिन्ह। मोन रोष आ अव्यक्त विरहसँ विदग्ध
भऽ गेलन्हि। चारू कात देखलनि। मुदा राघव कतौ नै। चन्दाक मुँह ओइ फूल जकाँ
मुरझा गेलन्हि जकरा तोड़ि लोक जेठक प्रचण्ड रौदमे छोड़ि दैत छैक। निष्ठुर
राघव किएक कतौ बिना कहने चलि गेलैक।
खैर! चन्दा
चारू कात राघवकेँ तकलन्हि। मुदा राघव जखन घरपर रहतथि तखन ने चन्दाकेँ भेट
होइतन्हि। अन्तमे चन्दा मन्दिरक पाछाँ फुलवारीमे फूल लोढ़ए गेलीह। चम्पाक
गाछमे पीअर-पीअर रमनगर आ सुगन्धित चम्पा फुलाएल रहैक। रहैक मुदा बड़ ऊँचका
ठाढ़िपर फुलाएल। चंदा सोचलीह चलू अही बहाने राघवक घर जाइत छी।
ई सोचैत
चंदा राघवक घरपर आबि गेलीह। राघवक माएकेँ पुछलखिन्ह-
“काकी,
हमरा चम्पा-फूल पंचमुखी महादेवकेँ चढ़ेबाक अछि। मुदा फूल तँ
बड्ड ऊँचका डारिपर फड़ल छैक। हम नै पबैत छी। कनी राघवकेँ कहबनि जे किछु फूल
तोड़ि देताह?”
राघवक
माए कहलखिन्ह-
“बुच्ची,
राघव तँ मातृक काल्हि भाेरे गेल। कलकत्तासँ ओकर छोटका
मामा-मामी सपरिवार आएल छथिन्ह। कहि कऽ गेल अछि जे सात-आठ दिनक बाद आओत। आब
अहीं कहू जे केना फूल टुटत?”
फेर किछु
देर सोचैत राघव केर माए अंगनासँ एक गोट पाहुनकेँ बजेलखन्हि। जे जरैलसँ अपन बहिन
लग आएल छलाह। ओइ पाहुनकेँ कहलखिन्ह-
“यौ
पाहुन, ई थीकीह चन्दा, हम्मर
गामक बेटी। हिनकर पिता बड्ड कलामा। ई भगवान पंचमुखी महादेवकेँ चढ़ेबाक लेल किछु
चम्पा फूल तोड़ए चाहैत छथि। मुदा फूल गाछक फुनगीपर लागल छैक। कनी अहाँ हिनका
फूल तोड़ि दियौन्ह। फूल तोड़ैबला सेहो फूल चढ़बैबला अतेक धर्म होइ छैक। राघव
रहैत तँ कुनो बाते नै। ओ मातृक गेल अछि। कनी, अहीं फूल
तोड़ि दियौन्ह चन्दाकेँ।”
पाहुन हाथमे लग्गी
लऽ बिना किछु कहने चम्पा फूल तोड़ए लेल चन्दा संग बिदा भेलाह।
क्रमश: ......................
कामिनी कामायनी
संटू क उपनैन
बसकट्टी धरि त’ सब किछु
बड नीक जकॉ चलि रहल छल . ।मंझौल वाली काकी अपन .चारों पोता के उपनैन लेल कहिया .सॅ
नहि देवता पीतर के भखनै छलीह. . . . . . चारों परदेया बेटा आखिर छुट्टी ल क’
गाम में आबि क’ उपनैन करए लेल तैयार की
भेला . . कका काकी के जेना बूडल राज्य भेंट गेलन्हि. . .चारू दिस जेना रोनके रौनक
।
पूरा घर दलान ढौरल गेल. . .खेत खरिहान साफ सफाई भेल ।दलान क सोझा राखल जारैन गोरहा
सब के पछुअैती में आमक गाछक तर तेना क’ तह लगा क’
राखल गेल जे क’ल’ प’ हाथ पैर धोबै लेल आबय वला लोकक नजरि में नै
गडै ।
पछवारि टोल .. .टोलबा प’ कत्त कत्त नै लोक दौडैत रहै दिन
भरि. . . काजक ब्योंत में .. ।
“हे .. ओकरा सब के साफ सुथरा में चलए. . बूलए के आदति छैक
.. . .ई गामक रस्ता .. .आ’ ओहि में बसबिट्टी. . . . . . .
कनि महेसबा के कहियौ. . .नीक जकॉ एतए सॅ अपन बसबिट्टी धरि के रस्ता साफ करि देतै.
. .भरि टोलक लोक त’ जेना . . . ।” काकी. महेसबा के माय सॅ बजैत बजैत. .नाक भौं सिकोडति अपन ऑचरि उठा क’
नाक प’ राखि नेने छलीह ।ओ कठजीव. . .
तुरंते आबि क ल’ग में ठाढ़ ‘हजार
रूपैया सॅ कम नञि लेब .. .एतेक गंदा है ऊहॉ .. . .।”ओ
अलगे नाक ऑखि मूनैत. . भिनकैत भिनकैत जेना बाजल त’ काकी
तुरंते हामी भरि देलखिन्ह. ‘रे .. .जो. . न । .. पाय कौडी
जे हेतै से त’ देबे करबौ न।’
आ. बसकट्टी के बाद महेसर. . अपन गाल बजबैत .. . जनानी सॅ भरल ऑगन में अंगेठी.
मोचाड लईत बाजि रहल छल. ‘दू .दिन से. . बलू. . . . . .
टोली वला सब के रोकने रहियै. . .ऊहॉ गंदा नै करै लै .. .छौडा सब के बिस्कुट
चॉकलेटक लालच देलियै. . . देखलियै . . .आहॉ सब कत्ते साफ सुथरा हल्लै. . .सडक . ..
आ’ बसबिट्टी. . . एतेक साफ त’ कलक्टरो
के नै रहै. . . ।’ गणेश .सुरेश .. .दिनेश तीनों संगहि
बाजल. . . “तैं न तोरा प’ ई बडका
काज छोडल गेल छलौ. . .तू बड काबील छै. . .।’
ताबैत में सॅझला भाय मॉ के तकैत आंगन में अयला . ‘हलवाय
के कत्त बैसैल जाए. ।’ काकी झट दनी भगवती घर सॅ कोनो काज
छोडि बहरेली. “ललन बाबूके दरवज्जा प’ बैसाबही नै .. . ओतय अ’ड’ छै. . . आ’ जगहो चौरस. . ।’
म्ॉझला भाय जे चारों कात खरिहान सॅ ल’क’ पिछुबाडि धरि साफ सफाई भेल जगह के फेर सॅ साफ करबा में लागल छलाह ‘कुटुम सब के एला सॅ पहिनहीं चारों लैट्रिन बाथरूम एकदम चकाचक भ’
जेबाके चाही।”
छत के ऊपर मॅडबा बनाओल गेल छल .. मॅडवा. छाजए के .. . .. .चरखट्टी के .मधुर .. गीत
नाद सॅ चारो कातक वातावरण मॅह मॅह करए लागल छल . .. लाल पीयर धोती .. .अंगना सॅ छत
धरि डोरी प’ सुखैत. .बड मनोरम दृश्य उत्पन्न केने छलै. .
।
कुम्हैनिया के ऑगन में पैसैत मातर .. .दीसपुर वाली पीसी चिकरए लगलीह ‘आय गै. . .आब तोरो सबके बिदागिरीए करबा क’ आनल
जेतौ .. . .दू दिन सॅ मुनमा . .दौग दौग क’ जा रहल छै. .
कुम्हर टोली .. .आ’ तोरा सब के कनियो दरेग नैं .. जे
जल्दी जल्दी हाथी घोडा रैंग ढोर क’ पठाबी. . . अखन बरूआ
सब बरमस्थान जेतै .. .घोडा चढाबए लेल. . . आ’ तू एखने आबि
रहल छैं. . मार बाढैन तोरा. . ।’
कुम्हैंनियॉ .. .गोगैं करैत बाजल “दीदी. . .केते लगन हैक
भरि गाम में . . .मूडन . .उपलैन. . .वियाह. . . हाली हाली त’ सबके समान पहुॅचाईये रहल छिये . .”आ हुनक
क्रोध सॅ बचाबा लेल दॉत निपोरि क’ ठिठियाय लगलै. . . ।
“नेग दियौ. . बडकी पीसी बरूआ के. ।”
“हे . .हम बरूआ के बापे के पीसी छिए. . . .छिनरो .. .ई हो
नै .. बूझल छौ. . .।” बडकी पीसी ओकरा दबाडैत. . . .चिकरैत
बजली ‘गै आबै जाही बरूआ के पीसी सब. . .कुम्हेंनिया के
नेग दै जाही ।”
नेग खोंईछ में राखैत. .ओकरा मुॅह प’ प्रसन्नता के लहरि
दौड गेल रहै ।
गोटागोटी करैत सब कुटुम सब आबि गेलाह. . .दलान प’ पूरूख आ’
घर ओसारा प’ स्त्रीगण . .. ।
बिध बाध सबटा ऊपर छत प’ मॅडबा लग भ’ रहल छलै. . .जेठ मास. . .सरबत लस्सी सब के इंतजाम करि क’ राखल छल. तौला के तौला जमल दही बोरा मे भरल चूडा. मूॅगबा पैनतोआ . मुदा
परसनहारे निपता . .. हलवैया .. .एखनधरि. . .आगि नै पजारने . “ मार बाढनि जनपिट्टा के. . .रै बौआ .. .केहेन हलबैया आनलैंहै. ।”
संझला भाय कुरसों वाली पीसी के गप प’ ही
ही करि क’ हॅसए लगला “ततेक लगन
छै. . .सबटा हलवैया .. .पहिनहीं सॅ बुक .. . एक गोट पीपरौलिया बाला गछने छल. . .एन
मौका प’ धोखा द’ देलकै. . .ई नब
छै. . .हमरे ओतए सॅ काज सीखतै. . . ।” “केहेन जुलुम केलही
तुहु रे .. ऐ सॅ’ नीक त’ हमरे
कहितहि त’ सब मिल जुल क’ भानस
करि दैतियौ।”
किनको पानि भेटन्हि त’ चाह नै. . .किनको दबाए खेबाके
रहैन्ह .. मुदा भिनसरे सॅ बासी मुॅहे. . .।भीषण अव्यवस्था . .... ब्डकी कनिया घोघ
तर. सॅ छोटकी ननदि के बजौलखिन्ह .. “कीचन में जाकए फटाफट
.. कुकर में भात चढा दियौ. . .दीदी सब भूखले छथिन्ह .. .हलबाई सॅ दालि तीमन आनि क’
हिनका सब के खुआ दैतियैन्ह . ।”
मॅझिला भाय के सासुर सॅ बड बेशी पाहुन आ’ सबसॅ कम चुमौन
.. . .. ।पाहुनक खातिर दारी हुनके प’ छलैन्ह .. .मुदा
बडका पद सॅ रिटायर्ड ससुर के कुरसी लग नीचा बैस क’ ओ
हुनकर म्ूॅह देखैत पैर में चुरूक भरि तेल पचब ‘में लागि
गेल छलथि ।बडका भाय ब्रह बनल मडॅवे प’बैसल .. .सॅझिला
हलुवाई के टीक प’ ठाढ़ . .कतहॅू किछु चोरा नै लिअ ..
.छोटका. . जै पाहुन दिस खेनाय पिनाय ल’क’ जाथि. . . ओहि ठाम बैस मुख्यमंत्री बनबा के अपन उत्कृष्ट महत्वकांछा के
घोडा प’ घोडसवारी करए लागैथ. . . बचला . .कका स्वयं . .
.त’ अस्सी बरखक अथबल . . सुनाईयो नहि पडैन्ह. . ।
मॅझली भौजी . . .अपन तीनों भौजाई . .बहिन आ’ माय के ल’क’ घरक पट बंद करि लेलथि ।दू घंटा के बाद पट
खुजलै. . .त’ छोटकी ननदि सबहक कान में फुसफुसा क’ कहि रहल छलीह ‘देखलियै .. जादू. . .आयल छलैथ त’
सब केहेन कारी कारी झमारल झमारल . . . .आ’ घर बंद करि क’ कोन एहेन क्रीम पाउडर लगैेलथ जे
सब गोर गोर. . .कि कपडा लत्ता. . .बनारसी . पटोर. . ।”
बडकी भौजी छोटका भायके बरूआ के केश नेने छलथि ताहि लेल ओ अनौने .. . .।काकी .कहनौ
छलखिन्ह. “बडकी बीमारे रहै छै. . .मझॅलीए ल’ लैतै केश. . ।” त’ मॅझली
चट सॅ चमकि क’ बजलीह “ंंमॉ हमरा
सधा क’ पठौतिह. . ।” हारि क’
बडकीए कनिया के लेबए पडलै केश . .।
सबसॅ मुॅहजोर मैझिली. . . . . कत्थी लेल ककरो एक रत्ती पानियो लेल पूछतथि ।बेर बेर
नूआ फेर क’ अपन संबंधी लग जा बैसैथ ।बिध लेल सोर होय “है मॅझली भौजी .. .है. . संटु के धोती दियौ नै. . .।’ कनि भन भनाइत कनि मुॅह चमकाबैत .. . रानी रूपमती के अंदाज में अपन पएर
उठबैत आबैथ ।
“चारू बरूआ के समान एक ठाम डाला प’ राखि दियौ. . ।बेर बेर आबए पडै छै. . .।’ ननकू
बाजल त’ मॅझली अपन करिया मुॅह चमकाबैत .. . बजलीह “सबहक हम ठेका नेने छी की. . . हमरा संटु बाबू सॅ मतलब अछि ।’
दनौही में . . .बरूआ सब नहा ‘क’ ठाढ़
. .बडकी भौजी छोटका बरूआ के बिधकरी .. .ओकरे में लागल. . .अपन बेटा के धोती कुरता
बिसरि गेलथि ।काकी के तामस चढय लगलै. . मॅझली के छोट बुद्वि के जबाब नै. . एतेक
दिन सॅ बाहरि रहै छै. . तैयो. .किछो बाजबै त’ भरल आंगन
में घिनमाघिन करए लागत ।” कल्याणपुर वाली पीसी एईठ क’
बजली” ऐ बाहर रहने की होय छै. . चालि ..
प्रकृति .. बेमाय .. ई तीनों संगहि जाय. . .माय केहेन छै. . ककरो सॅ बजबो
नहिकेलकै. . दछिनाहा सब. . ।” ननदि सब फेर ननकू के निहोरा
करि क दौडेली . ‘जो बौआ भगवती के सोझा में ललका डाला प’
शुभम के पीरा धोती राखल छै. नेने आ दौडल .. ।”ओ बिफरल “हम त’ मझली
भौजी के पहिनहि कहने रहियै. . कहलखिन्ह जे ठेका लेने छियै ।” मुदा ननकू जल्दी सॅ सायकिल सॅ जाकए धोती नेने आयल ।
उम्हर पोखरि सॅ घुरि क’ ऑगन पहुॅचैत मातर दोसरे दृश्य . .
.हलवैया एखन धरि भोजन नै बनौने .. . तरकारी बनि क’ एक दिस
राखल . . .आब पूडी छानय लेल लोहिया चढा रहल छल. . . “एै
रौ. . .एतेक देर किएक भेलौ. ।सांझ पडि रहल छै .. कुटुम सब भुखलै. . बैसल छथि .. ।”बडकी पीसी के गप प’ हलवैया बाजल. . . ‘तखनी सॅ चाह कौफी. . बनाय रहल छलीयै. . मंझली कनिया आबि क’ कहलखिन्ह. .दस बीस गो परोठा बना दिय हुनकर बाबू भाय सब नै खेने छथिन्ह
.. ।” “हलबैया लग सॅ सब टा रसगुल्ला गायब छै. . कन्हैया
कहलकै .. मॅझली कनिया कोठरी में पहुॅचा दै लेल कहने छलखिन्ह ।”छोटकी ननदि का्रेध मगज प’ चढल .।काकी क’
ल जोरि के बेटी के चुप करौलन्हि. ‘ . घिना
नै . .कत्तो सॅ सुनतौ त’ जुलुम भ’ जेतै .।’
“छोटका दियर आबि क’ मॅझली भौजी
के कहलखिन्ह “भौजी अहॉ अपना सर कुटुम के त’ भोजन करा दियौ ।”
रंगल टीपल मुॅह प’ विचित्र सन भाव आनैत पटुआ सन तित स्वर
में बाजि उठलीह ‘लाज नै होईत अछि .. ।’ई वाक्य के व्याख्या तखन भेल जखन पोल खूजलै जे ओ त’ पहिनहीं अपन कुटुम सब के खुआ पिया चुकल छलीह .. मुदा चाहै छली जे सब
कियो हुनके कुटुम के आव भगत में लागल रहै .
मॅडबा प’ बरूआ सब के भीख देबा काल .. मॅझली फेर अडि गेली “पहिनै हुनके माय भौजाय भीख देथिन्ह. ।”काकी के
मन घोर भ’ गेलन्ह ।बडकी पीसी आगॉ बढि क’ बजलीह “कनिया पहिने घरक लोक भीख देतै ..तखन
बाहरक़ . ।अहिना बिध होईत छै. . .।हुनक ऑखि लाल होमय लगलैन्ह . .माथ प’ कनि घोघ तानैत .. .कन्हुआ क’ बडकी दियादिनी
दिस देखली .. । ‘एकरे खातिर माथ प’ नूआ आ घोघ तानए पडैत अछि .. ।’मोने मोन
गरीयेने छलीह ।मुदा मोन मसोसि क’ भिक्षाटनक विधि संपन्न
होमय देलखिन्ह ।
उपनैनक परात चारूकात अहि बातक चर्च होमय लगलै. . ‘मंझली
कनिया के सबटा कुटुम बिगैड क’ चलि जायथ रहलखिन्ह. . .नीक
जकॉ सुआगत जे नहि भेल रहैन्ह. . ।’ छोटका भाय अपन कपार
ठोकैत बजला “आहि रे बा. . सब के छोडि क’ हुनके सब में लागल रहितहू सब गोटे. ..अपन जमाय बेटी त’ सब लाज धाक तजि क’ लागले छलैन्ह ।जै कुटुम के
आव भगत में त्रुटि रहि गेलन्हि. . ओ बेचारा सब त’ किछु
नहि बजलखिन्ह. . ।” काकी ऑखि सॅ ईसारा करि ओहि प्रसंग के
समाप्त करबा लेल कहि क’ ओहि ठाम सॅ उठि क’ जायत रहल छलीह।
१.दुर्गानन्द मण्डल-कथा-
कुकर्मा २. परमेश्वर कापड़ि, संयोजक मिथिला
राज्य संघर्ष समिति/ परमेश झा अनिलचन्द्र झा ३.पूनम मण्डल-मिथिला विभूति स्मृति
पर्व समारोह २०१२
१
दुर्गानन्द मण्डल
कथा-
कुकर्मा
मिथिलांचलक
राजधानी जिला मधुबनी धरमपुर गाममे एकटा प्रकाण्ड विद्वान ज्योतिषी रहै छलाह।
ज्योतिषी विद्यामे एकदम निपुण जइसँ भूत,
वर्त्तमान आ भविष्यक नीक ज्ञाताक रूपमे जानल जाइ छलाह।
एक
दिन मधेपुर प्रखण्डक लौफा गामसँ सत्यनारायण भगवानक चौपहरा पूजा करा सबेरे-सकाल
गाम अबै छलाह। बाटमे, जोरला
गाम जखन एलाह तँ देखलनि। हाइ स्कूल जोरलाक पाछाँमे बहति मरता धारमे एकटा नरमुण्ड
धारक कातमे राखल छैक। जइपर लिखल छलै “किछु कर्म भऽ गेलै
आ किछु बाकी अछि। एकटाक जनम आ तीनक मृत्यु।”
ज्योतिषी
जीकेँ हरलनि ने फुड़लनि, नरमुण्डकेँ उठा झोरामे रखि लेलनि। घर आबि चुपचाप, एकटा उज्जर कप्पासँ बान्हि, चिनवारमे
खोंसि देलनि। मुदा पण्डिताइनकेँ ऐ संबंधमे किछु ने कहलकनि। एक-आध दिनक बाद
पण्डिताइनक नजरि ओइ उज्जर कप्पापर पड़लनि। सोचथि आखिर की बात छिऐ जे आन दिन
जे किछु ज्योतिषीजी लाबथि तँ हलसि कऽ कहथि जे पण्डिताइन ई लिअ उ लिअ,
हे एकरा राखू ओकरा उसारू। मुदा.....।
पण्डिताइनकेँ
हरलनि ने फुड़लनि ओ जिज्ञासावस कप्पामे बान्हलकेँ उतारि कऽ देलखनि, नरमुण्ड देखिते बताहि भऽ गेलीह आ
तामसे ओइ नरमुण्डकेँ उक्खरिमे दऽ समाठ लऽ बढ़ियासँ कुटि बुकनी-बुकनी कऽ देलनि।
आ एकटा सीसीमे ओइ बुकनीकेँ भरि भनसा घरक चारमे खोंसि देलनि। आ सगर पोखरिमे
एकटा मात्र पोठी जे कहबी छै, अति सुन्नरि नाम सुनयना
वएस सोलह बर्ख अपन बेटीकेँ कहलनि-
“ऐ सीसीमे माहुर अछि। एकरा कियो ने छुअए आ ने खाए, जौं खएत तँ मरि जाएत।”
सुनयना
नामक अनुरूप ओतबे सुन्नरि। बेस गोरि-नारि नमगर-छड़गर-पोरगर केराक वीर जकाँ कोमन
आ सुन्दर। सोल्हम साउन पार केने, अनेरे आँखियोक भाषासँ गप्प करैवाली। सुनयनाक आँखिमे धार तेहेन जे बिनु
कटनहि आँखिसँ घाएल करैवाली। दिन-राति प्रेमक बोखारमे बौआइतो मुदा ज्योतिषीक
मर्यादाकेँ अखन धरि बचौने। उमेरक संग जे लांछन होइ छै से एक-कान-दू-कान होइत पण्डिताइ
आ ज्योतिषी जीक कानमे पहुँचए लगल। कहबियो ठीके छै जे बेटी जखन जुआन होइ छै तँ
घरबैयाकेँ बादमे मुदा बहरबैयाकेँ पहिने पता लागि जाइ छै।
टोल-पड़ाेसक
लोक काना-फुसी करए लगल जे पण्डिताइक बेटी तँ फल्लमाक बेटासँ बुढ़ियागाछीमे
गप-सप्प करै छलै। एक-आध दिनक फेर कियो गप्प उखाड़ि दइ जे ज्योतिषी जीक बेटी
तँ अरूण डाक्टरसँ हँसि-हँसि कऽ काली स्थानमे गप करै छलै। एकदिन सुखेतोवाली
कनिया बाजलि छलीह जे पण्डिताइक बेटी रामदेब बाबूक खेतमे बदामक साग तोड़ै छलै।
आ हुनक मझिला बेटा आड़िपर ठाढ़ भऽ रेडी बजबै छलै आ बड़ीकाल धरि दुनू गोटे हँसि-हँसि
कऽ गप-सप्प करै छलै। अर्थात् एक-आध दिनक पछाति सुनायनासँ जुड़ल कोनो-ने-कोनो
गप्प-सप्प चलिते रहैत छलै।
ज्योतिषीजी
बेटीक ई किरदानी सूनि सत्यनारायण भगवानकेँ कहथिन-
“हे भगवान एक तँ एकटा कुलकन्या देलह, तहूपर
एतेक मानि हानिक गप्प! एे सँ तँ खनदानक बड़ हानि भऽ रहल अछि। ऐसँ तँ नीक होइत
जे सुनायना जहरो-माहुर खा लइतए आ ऐ दुनियाँसँ उठि जइतए।” ई गप्प बूझू जे हरिदम ज्योतिषी जीक मुँहसँ निकलैत रहै छलनि।
सुनायना
एकदिन सुनलक, दोसर दिन
सुनलक आ तेसर दिन जखन सुनैत-सुनैत बरदाससँ फाजिल भऽ गेलैक तँ सोचलक जे भनसा घरक
चारमे माए तँ माहुरक एकटा सीसी खोंसि रखने अछि। से आइ उ माहुर खा अपन प्राण तियागब।
सुनायना ओइ राति सएह केलक।
मुदा
ओ तँ जहरक सीसी छल नै। छल तँ ओइ नरमुण्डक चूर्ण जइपर लिखल छलै, किछु भऽ गेल आ किछु बाकी..।
जे
खएलासँ सुनायना मरल तँ नै मुदा गर्भवती जरूर भऽ गेलीह। आब तँ दिन बीतल, मास बीतल। एक-कानसँ-दू-कान गुल-गुल
हुअए लगल जे ज्योितषीक बेटी तँ आब पेटसँ छैक। एत्ते दिन कहै छलियनि तँ ज्योतिषी
जी आ पण्डिताइन मुँहपर माछियो ने बैसए दैत छल। विसबासे ने होइत छलनि। अाब
देखथुन अपन बेटीक किरदानी। जे बापक दुलारू धिया दूरि गेली दूरि गेली। आ माथापर
तम्मा लऽ कऽ उड़ि गेली उड़ि गेली। आब देखथुन जे बेटी केहेन कुल गोरनि छन्हि।
देखिते-देखिते नअो मास बीतल आ सुनायना देलनि एकटा अति सुन्दर बालकक जन्म।
जेकर भाग्यक रेखा किछु औरे कहि रहल अछि। मुदा पण्डिताइन आ ज्योतिषी जी ओकर
नाओं रखलनि ‘कुकर्मा’।
शेष
अागू....।
२
परमेश्वर कापड़ि
संयोजक
मिथिला राज्य संघर्ष समिति
नेपाल संघीयताक दिशामे डेग बढारहल समयमे विभिन्न क्षेत्र, वर्ग,
धर्म, लिङ, जाति आ
भाषाभाषी तथा समूहसब अपन अपन अधिकारक माँग करैत विभिन्न प्रकारसँ आन्दोलन करैत
आविरहल अछि । जे सबहक लोकतान्त्रिक अधिकार छैक ।
लोकतान्त्रिक आचरण अनुरुप भ’ रहल आ होबएबला हरेक अधिकारवादी
आन्दोलनक नामपर किछु समूह देशभरि पसरिरहल अराजकताप्रति समितिक गम्भीर ध्यानाकर्षण
भेल अछि ।
मिथिला राज्यक माँगप्रति समर्थन कएने कहैत नेपाली काँग्रेसक नेता विमलेन्द्र निधिक
जनकपुरस्थित घरपर तोड़फोर कएल गेल घटनाके मिथिलाराज्य संघर्ष समिति भत्र्सना करैत
अछि । तहिना राजधानीमे सञ्चारकर्मी उपर भेल आक्रमणके निन्दा करैत अछि ।
एहन अराजकतत्वके पहिचान क’ कारवाही करए समिति सरकारसँ माँग
करैत पीडितके क्षतिपूर्तिक माँग करैत अछि ।
२
परमेश झा अनिलचन्द्र झा
सदस्य महासचिव
मैथिली विकास कोष मिथिला नाट्यकला परिषद
मिथिला राज्यक आन्दोलनप्रति ऐक्यबद्धता जनौने कारण नेपाली काँग्रेसक नेता
विमलेन्द्र निधिक जनकपुर – १ स्थित घरपर कएलगेल तोड़फोरके
घटनाप्रति गम्भीर ध्यानाकर्षण भेल अछि । एहन अलोकतान्त्रिक कृयाकलापके भत्र्सना
करैत दोषीउपर कारवारी आ पीडितके क्षतिपूर्तिक माँग करैत अछि ।
लोकतन्त्रमे अपन विचार राखएके नागरिक अधिकारउपरके अहि हस्तक्षेपकारी काजके तत्काल
बन्द करए अपील सेहो करैत छी।
३
पूनम मण्डल
मिथिला विभूति स्मृति पर्व समारोह २०१२
दिल्लीक रफी मार्गपर अवस्थित
मावलंकर सभागारमे २० मइ २०१२ केँ मिथिला विभूति स्मृति पर्व
समारोह २०१२ सम्पन्न भेल।
दिल्लीक विकासमे बिहारीक
योगदान सभसँ बेशी अछि, ई गप दिल्लीक मुख्यमंत्री शीला दीक्षित २० मइ २०१२ ई. केँ अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा आयोजित मिथिला विभूति स्मृति पर्व
समारोह २०१२ मे मिथिलाक विशिष्ट विभूति सभकेँ
सम्मानित करबाक बाद देल अपन भाषणमे कहलन्हि। ई जे दिल्लीक
प्रशंसा विश्व भरिमे भऽ रहल अछि से बिहारी लोकनिक योगदानसँ विशिष्ट बनल अछि, ओइमे सँ किछु गोटेकेँ
सम्मानित कऽ हुनका खुशी भेल छन्हि से ओ कहलन्हि। ओ महाबल मिश्र सांसदकेँ मैथिलीक
प्रयोगमे लाज करबा लेल हँसी मे आलोचना सेहो केलन्हि, ओ
कहलन्हि जे मैथिलीक प्रचार-प्रसार एकर विकास लेल जरूरी अछि, ओ
कहलन्हि जे जँ महाबल मिश्र मैथिलीक प्रयोग करितथि तँ ऐ सँ हुनकर मैथिलीक ज्ञानमे
अभिवृद्धि होइतन्हि। ओ भाजपा सांसद प्रभात झासँ कहलन्हि जे ओ अपन मूल प्रदेशक
मैथिली भाषी सांसदसँ संसदमे मैथिलीक प्रयोग लेल प्रेरित करथि। शीला दीक्षित
दिल्लीक मैथिली-भोजपुरी अकादमीक काज
असंतोषजनक हेबाक गप कहलन्हि आ ओकर काज आगाँ ब्ढ़ेबामे सरकार सहयोग देत से कहलन्हि।
महाबल मिश्र मिथिला विभूति स्मृति पर्व
समारोह २०१२ मे मैथिलीमे अपन भाषण देलन्हि। ऐ
अवसर पर पूर्व सांसद श्री गौरीशंकर राजहंस आ दिल्लीक पूर्व विधायिका आ सांसद
कीर्ति आजादक पत्नी श्रीमती पूनम आजाद सेहो रहथि।
सांसद प्रभात झा सीताक
जन्मस्थली पुनौरा (सीतामढ़ी),
विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी (जिला दरभंगा) आ कालिदासक
ज्ञानप्राप्ति स्थली उच्चैठ (जिला मधुबनी) क पर्यटन उद्देश्यसँ बढ़ावा देबाक
आवश्यकता जनौलनि, ऐ स्थल सभक वर्तमान दुर्दशाक ओ चर्च
केलन्हि आ ऐ संगे आन पर्यटन स्थल सभक विकास हेबाक आवश्यकता जनौलनि।
अखिल भारतीय मिथिला संघक
महासचिव श्री विजय चन्द्र झा अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा कएल जा रहल कार्यक
जनतब देलन्हि आ मैथिलीक विकास लेल सभकेँ आगाँ एबाक आह्वान केलन्हि।
मिथिला विभूति स्मृति पर्व
समारोह २०१२ मे रंगमंच अभिनेत्री श्रीमती
प्रेमलता मिश्र प्रेम, नाट्यकार श्री
महेन्द्र मलंगिया, नाट्य निर्देशक श्री उत्पल झा, मैथिलीक ई-पत्रकार आ राष्ट्रीय सहाराक श्री हितेन्द्र गुप्ता, ध्रुपद गायक श्री अभय नारायण मल्लिक, शतरंज खिलाड़ी श्री श्रीराम झा, गोल्फ खिलाड़ी श्री अशोक कुमार, चिकित्सक डॉ. राज्यवर्धन आजाद, चिकित्सक डॉ. अजय चौधरी , उद्यमी श्री अनिल कुमार शर्मा, गायिका श्रीमती कुमुद झा, श्री रवीन्द्रनाथ
ठाकुर (गीत-संगीत), श्री गजेन्द्र नारायण सिंह (संगीत) आ दिल्ली नगर निगमक हालक निर्वाचित पाँच टा पार्षद श्री सुनील झा, श्री रामदयाल महतो, श्रीमती तिलोत्तमा चौधरी, श्रीमती विमला देवी आ श्रीमती कल्पना झा सहित १९ गोटेकेँ मिथिला विभूति सम्मानसँ सम्मानित कएल गेल। श्री गजेन्द्र ठाकुरकेँ “पुरातात्विक तिरहुता भोजपत्र अभिलेखक
पुनरोद्धार आ गूढ़ाक्षरकेँ स्पष्ट कऽ तकर देवनागरीमे लिप्यंतरण” लेल मिथिला विभूति सम्मानसँ सम्मानित कएल जेबाक छल मुदा कोनो कारणवश ओ सम्मान लेबा लेल नै एलाह।
(स्रोत समदिया)
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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