भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
१.चंदन कुमार झा- बाल गजल २.डॉ. दमन कुमार झ-एकैसम
शताब्दीक पहिल दशकमे मैथिलीबालसाहित्य३.डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
१
चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान
मधुबनी, बिहार
बाल-गजल
दऽ रहल छी अपन शपथ, नै कानू बौआ
लेबनचूस लऽ पप्पा औताह, कुचरे कौआ
हम तऽ माय छी सत्ते,मुदा बेबस लाचारे
कीनि खेलौना देब कतऽसँ,नहि अछि ढौआ
भरना लागल खेत, महाजन के तगेदा
फेर कोना के सख पुरौताह बाप कमौआ
अहीँ पुरायब सख सेहन्ता आस धेने छी
अहीँ जुड़ायब छाती बनिकऽ पूत कमौआ
कबुला,पाती,विनय,नेहोरा, करैछी भोला
बेलपात "चंदन" चढ़ायब खूब चढ़ौआ
--------वर्ण-१६----------
२
डॉ. दमन कुमार झा, अध्यक्ष, मैथिली विभाग, जगदीश नंदन महाविद्यालय,मधुबनी .
एकैसम शताब्दीक पहिल दशकमे मैथिलीबालसाहित्य
बालसाहित्य नेनाक साहित्य थिक, नेनाक हेतु लिखल
साहित्य थिक, नेनाक हेतु अर्थात नेनाकें सत्पथपर अनबाक हेतु
लिखल साहित्य. ओ सत्पथपर कोना आओत, कोन माध्यमसं आओत,तकरप्रमुख स्रोत अछि
बालसाहित्य. बालसाहित्यक प्रति नेनाक आकर्षण ओहि मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाक परिणाम
थिक जे ओकरा आकर्षक वस्तुक प्रति जिज्ञासु बनबैत छैक. जिज्ञासा शांत करबाक इच्छा
एतेक प्रबल रहैत छैक जे से ओकरा पाठशालामे शांत नहि भ’ पबैत
छैक.ओ ओकरा जेना-तेना शान्त कर’ चाहैत अछि. साक्षर भेलापर
तें ओकरा पोथी पढबाक रूचि जगैत छैक. तें बालसाहित्यक स्वतंत्र अस्तित्व छैक.
अपना सभक समक्ष
बालसाहित्यक की स्थिति अछि, से ककरो सं नुकायल नहि अछि. बालसाहित्य समृद्ध नहि अछि, ई तथ्य थिक. किएक
नहि अछि – ई चिन्ताक विषय थिक .ताहू सं अधिक चिन्तनक विषय
थिक. सभसं प्रधान कारण अछि प्राथमिक विद्यालयमे मैथिलीकें शिक्षाक माध्यम नहि होयब
.एखन हमरालोकनि एहि प्रयासमे लागल छी जे
कहुना ई सरकारी स्कूलमे शिक्षाक माध्यम रूपमे स्वीकृत भ’ जाओ .सरकार कहैत
अछि जे -- से तं अछिए .विद्यार्थी पढिते नहि अछि ,अभिभावक
अपन पाल्यकें पढ़वहि नहि चाहैत अछि .ताहिमे सरकार की क’ सकैत
अछि ?ई तं एक समस्या भेल. मानि लिय’ ताहिमे
हमरालोकनि कने सफलो भ’ गेलहुँ ,प्राइमरी
स्कूलमे मैथिलीक माध्यमसं पढ़ौनी शुरूहो भ’ जायत तं ताहि सं
की समस्याक समाधान भ’ जायत ? हम बुझैत
छी नहि .कारण ,कतेक प्रतिशत नेना सरकारी स्कूल मे पढ़’
जाइत अछि ?असल समस्या तं अछि पब्लिक स्कूलक
.जाधरि मिथिलाक सभ पब्लिक स्कूलमे मैथिली नहि लागू होयत ,विषयक
रूपमे सेहो आ माध्यम रूपमे सेहो ,तावत धरि नेनाकें अपन
मातृभाषाक दिस आकृष्ट करब आकास-कुसुमे रहत .
नेनाकें जैह पढाइ
होयतैक ,सैह ने ओ पढतैक ?की ओकरा सं ई
अपेक्षा करबैक जे ओ कहय जे हम हिन्दीमे नहि पढब ,अंगरेजीमे
नहि पढब, हम मैथिलीए मे पढब ? नेना ई
नहि कहत. ई कहत नेनाक माता-पिता, अभिभावक .मुदा नेनाक बेसी
अभिभावक कें ई बुझले नहि छनि जे मैथिलीओ मे बालसाहित्य छैक . हम कहैत छी छैक,
आन भाषाक तुलनामे कम भने रहौक !
एक्कैसम शताब्दीक
पहिल दशकपर ध्यान दी तं अनेको बालसाहित्यक पोथी विभिन्न विधामे प्रकाशित अछि .
कविता ,कथा ,जीवनी ,निबंध ,विज्ञानविषयक पोथी, चित्रकथा
आदि .ई दशक मैथिली बालसाहित्यक लेल एक आओर कारणे महत्वपूर्ण रहल अछि. एही दशकमे
साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली बालसाहित्य पुरस्कार सेहो प्रदान कयल जाय लागल .
अद्यावधि दू गोट पोथीकेँ पुरस्कृत कयल गेल अछि . ओ थिक तारानंद वियोगीक
दीर्घबालकथा – ‘ई भेटल तं की भेटल’ ?आ
दोसर थिक ले.कर्नल मायानाथ झाक बालकथासंग्रह – ‘जकर नारि चतुर होइ’ .
‘ई भेटल तँ की
भेटल’ तारानंद वियोगीक कथा-पोथी थिक. एहिमे मोद्गल आ ग्लावक
खिस्सा अछि. दुनू ऋषि छथि, दुनू शिष्यकें शिक्षा दैत छथिन .
मुदा ग्लाव मोद्गल कें कखनो मोजर नहि दैत छथिन . ओ सदिखन अहंकारमे जीबैत छथि.
एकदिन मोद्गल ग्लावक शिष्य सुतापी द्वारा समाद पठौलथिन जे अहाँक गुरु ग्लाव चारिम
वेदक विषयमे की बुझैत छथि? जखन सुतापी चारिम वेदक विषयमे
पुछलथिन तं ग्लाव बजलाह – तीन वेद कोन कम भेलै जे ओ चारिम
लेल झखै छथि ? मोद्गल ई सुनि बुझि गेलाह जे ओ असली ऋषि नहि
छथि. मोद्गल हुनका सं एक प्रश्न पुछलनि. प्रश्न छल –‘एकटा
कियो छथि, हुनका बारह टा मिथुन छनि, चौबिस
योनि छनि, एक आँखि भृगु छथिन, दोसर आँखि
अंगिरा छथिन. बुझनिहार हुनका शक्ति कहै छनि, हुनके असरापर सभ
टिकल अछि. अहाँक गुरूजी कहथु जे वास्तवमे ओ के छथि ? हुनक
रहस्य की छनि? हुनका कियो कोना पाबि सकैत अछि?---प्रश्नक उत्तर ओ जहिया चाहथि, तहिया देथि. खोज क’
लेथि, मुदा जं उत्तर नहि द’ सकताह तं हुनक नाश निश्चित अछि
.
ई सुनि गलावक हाथ–पयर सुन्न हुअ’ लगलनि. राति–राति
भरि जगल रहला .अंतमे ओ मोद्गलक शिष्य बनि गेलाह .ज्ञानप्राप्तिक बाद जखन उपदेशक बेर अयलनि तं
मोद्गल गायकें देखा हुनक सेवा करवाक हेतु कहलथिन. एक साल बाद मोद्गल गलाव सं
पुछलथिन की सिखलहुँ---गाय कें घमण्ड नहि छनि . घमण्ड व्यर्थ चीज थिक. पुनः मोद्गल
बेंग सं शिक्षा लेबा लेल कहलथिन .एक साल बाद पुछलथिन ,तं गलाव बजलाह
---ओ जीवनक पारखी होइत छथि भगवन् ! कोनो हालमे जीबी सकै छथि. ओ समय कें चिन्है
छथि. दुर्दिनकें बर्दास्त करै छथि . ठीक अछि, एखन उपदेशक समय
नहि आयल अछि .अहाँ गाछ–बृक्ष सं शिक्षा लिय’ . गलावकें गाछ –वृक्ष कें सेवा करैत असली ज्ञानक
प्राप्ति भेलनि. ओ बजलाह–गाछ अपना लेल किछु नहि करैत अछि. ओ
दोसरेक हेतु होइत अछि .जखन एहि बातक भान गलावकें भेलनि तं ओ गाछकें पकड़ि क’
कान’ लगलाह . ई दृश्य देखि मोद्गल गदगद भ’
गेलाह .गलाव मोद्गलकें देखि चिकरि उठलाह ---भेटि गेल गुरुदेव
....हमरा सभ-किछु भेटि गेल .ग्लावक मुखमण्डल पर ज्ञानक अखंड ज्योति जगमगा रहल छल
.कथाकार ई कह’ चाहैत छथि जे सभसँ पैघ सेवा परोपकार थिक .
दोसर पुरस्कृत पोथी
थिक ले.कर्नल मायानाथ झाक – ‘जकर नारि चतुर होइ’ .एहिमे एक्कैस गोट कथा संगृहीत अछि .सभ कथा मनोरंजक आ उपदेशात्मक अछि .जे
नेना कें मनोरंजनक संग ज्ञानक ज्योति सेहो देखबैत अछि. सभ कथा बुद्धिक महिमा
देखबैत अछि ,ज्ञान दैत अछि जे बिना सोचने किछु नहि करी ,नारीक चतुर्य, निरंतर अध्यवसाय, समयक पाबंद होयब आदि बीजमंत्र सिखबैत अछि. कथाक भाषा सरल , सरस आ बोधगम्य अछि . बालमनक संग–संग किशोर मनकें
सेहो ई कथा सभ उद्वेलित करैत अछि .
एहि महक अधिकांश
दादा-दादी, माय-पितिआइनिसं कथा सुनि क’ लिखल गेल अछि .कथाकार जेना कथा सुनलनि, ठीक तहिना
लिखबाक प्रयास कयलनि अछि. मात्र छओ गोट कथा लेखकक अपन छनि, यथा
----ख्याली पुलाव ,लुच्चा गीदर, उपाय आ
अपाय, अकठ-विकठ , प्रभुलीला एवं भगवान जे करैत छथिन. सुनल कथामे
एक अछि – साहसी फुद्दी. ई कथा नेनामे सभ गोटे सुनने होयब .कथा कहबाक ढंग गद्य–पद्यमय अछि .एहि कथामे ई शिक्षा देल गेल अछि जे हारि नहि मनवाक चाही. लगन
रहत तं सफलता भेटबे करत . एहने एकटा कथा अछि – टिकरमबाजी. एहि
महक किछु कथा दीर्घ अछि .किछु प्रमुख कथा थिक—प्रारब्ध ,प्रेतवास, भन्नू, आंतरिक प्रेम
.
हिनके दोसर बालकथा
संग्रह थिकनि--- ‘इजोत’. जाहिमे नबासी
गोट कथा अछि . एहि कथा सभपर प्रकाश दैत प्रो. भीमनाथ झा कहैत छथि-----‘’सभ कथा प्रेरक अछि ,ज्ञानवर्धक अछि ,मनुष्यक उदात्तभावनाकें जगोनिहर
अछि ,कुसंस्कारी अन्हार घरमे संस्कारक इजोत खिरौनिहार अछि
.विशेषतः किशोर लोकनिक हेतु तं ई प्रकाशपुन्जे थिक’’.१ से ठीके ले. कर्नल मायानाथ झा
धियापुताक हेतु प्रकाश पुन्जे भ’ क’ अवतरित भेलाह अछि. ई एहिना लागल
रहताह तं नेना लोकनिक हेतु एक-सं-एक कथा जे विलुप्त भ’ रहल
अछि ,से सामने अबैत रहत . एहि महक किछु प्रमुख कथा अछि
---साहस ,विषक बदला , क्षमा ,बलिदानी ,शिक्षा ,मातृभाषाक
सेवा .
‘दहीक खोंइचा’---पंडित श्री चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ कें लिखल छनि. एहिमे छबीस गोट कथा संगृहीत अछि. अमरजीक लिखल कथा हो,
सेहो नेना लोकनिक हेतु हो, तँ मनोरंजक होयबे
करत. ताहिमे संदेह नहि. कहबाक छटा एकदम रम्य अछि. पढैत जाउ,
हँसैत जाऊ. पहिले कथा – दहीक खुइंचा मे कोनो कविजी दहीक
छाल्हीकें दहीक खुइंचा कहलनि. तकरे रोचक वर्णन भेल अछि .तहिना, एकटा कथा कहबाक लुतुक पर आधारित अछि – ‘अहाँके...’
. जाहिमे सभ बातमे अहाँके लगाक’ कथाके रोचक
बना देल गेल अछि .तहिना, बकरीक हसबैंड, तामस , मुट्ठी आ चुटकी ,कचोट ,सोहारीक जरुआ मनलग्गू कथा अछि . एहि महक ‘भूजा’
कथा देखल जाय ---------------‘’जलखैमे भूजा
हमरा सभ दिन सं प्रिय रहल अछि .एक दिन भूजा फंकैत काल भूजा शब्दक अर्थ दिस ध्यान
चल गेल. एकाएक एक टा अर्थ बिजली जकाँ माथमे चमकि उठल ------‘भू’मने पृथ्वी ,ताहिमे ‘जा’ अर्थात जन्म लेने छथि जे, सेअर्थातसीता .तुरंत दुनू पयर मोड़ि, ठेहुन भरें बैसि, भूमिमे माथ सटा भूजाकें प्रणाम कयल
आ गुरूजीकें जा क’ कहि देलियनि ---अपने नहि बुझबै. संस्कृतक
बात थिकै .’’२
‘प्रेत कथा’----एकर लेखक हंसराज थिकाह .एहिमे छओ गोट कथा अछि .’प्रेतविवाहपद्धति’ आ ‘यावत पढबह रूद्र’ बाललोककथा
थिक. एहिमे प्रेतयोनिक अद्भुत् कृत्य सभकें रोचक ढंगसं प्रस्तुत कयल गेल अछि .
‘मैथिली लोककथा’----रामलोचन ठाकुरक लिखल छनि. एहिमे छतीस गोट लोककथा संगृहीत अछि. लोककथाक
मादे स्वयं लेखकक मंतव्य छनि जे ------‘’लोककथाक सभसँ प्रमुख
विशेषता थिक जे ई अलिखित अछि आ आरंभ कालसं आइ धरि एक कंठसं दोसर कंठमे प्रवाहित
आबि रहल अछि .एहि कारणे एकर बाहरी रूपमे परिवर्तन अबस्से भेलै-ए, परन्च आंतरिक रूपमे कोनो टा परिवर्तन नहि भेलै-ए. एकर मौलिकता ओहिना छैक.’’३ एहि महक किछु कथा दीर्घ अछि .सभ कथा रोचक आ मनोरंजक अछि .यथा-–गदहा, खेने कोनो ने दोष, काजरि,
एकटा गरीब वाभन रहथि, नारद मुनि आ साँप,
लालबुझक्कर आदि.
‘पिलपिलहा गाछ’
-----मुरलीधर झाक ई बालकथा संग्रह थिक .एहिमे एक्कैस गोट कथा
संगृहीत अछि. कथा सभ सरल आ छोट-छोटवाक्यमे लिखल अछि .एहि पोथीक पाठक बारहसं
सत्रह वर्षक नेना भ’ सकैत अछि, जखन ओकर
मानसिक स्तर ऊँच भ’ जायत छैक . एहि संग्रहक प्रसंग डॉ.
रामदेव झा लिखैत छथि जे -----‘’एहि संग्रहक कथा सभ मे पुरान
मानसिकताक अनुरूप बालमानसकें बोझिल बना देनिहार अकर्तव्यताक निषेध ,कर्तव्यताक आदेश अथवा नैतिकताक उपदेश देवाक बलात् चेष्टाक स्थान मे घटित घटना ,पात्रक स्वभाव ओ
चरित्र अथवा आचरणक माध्यमे अनायास सहज रीतिसं सद्भावना ओ सत्प्रेरणाक सन्देश
सम्पुटित अछिजे बाल वर्गीय
पाठकक चरित्र –निर्माणमे परोक्ष भावसं सहायक भ’ सकैछ .’’४ कथामे ठाम –ठाम चित्रक प्रयोग कयल गेल अछि जे कथाकें आकर्षक बना देलक अछि .कथाक
नामकरण ‘पिलपिलहा गाछ’ आमक गाछ पर कयल
गेल अछि ,जे अत्यन्त दुर्वल ,क्षीणकाय ,मरदुआरी अछि .अन्य कथा सभमे भैयारी , धैर्य ,
हर्षक नोर , कृतज्ञ , मर्यादा
,तृप्त ,जुग-जुग जीबू आदि प्रमुख अछि
.संग्रहक कलेवर आकर्षक अछि .
वर्तमान कालमे बाल
साहित्यक क्षेत्र मे ऋषि वशिष्ट बढियाँ काज क’ रहल छथि. हिनक
किछु बालपोथी आयल अछि .यथा --- ‘कोढ़िया घर स्वाहा’ ,’झुठपकरा मशीन’ आ ‘जे हारय से
नाक कटाबय’ . ‘कोढ़िया घर स्वाहा’ मे
आलसी मनुष्यक चित्रण कयल गेल अछि .आलस कें अपना भीतर पैसय नहि दी जाहि सं कोनो
भारी नोकसान भ’ जाय . ‘झूठपकरा मशीन’
नैतिक शिक्षा पर आधारित अछि. एहिमे छात्रसं तंग आबि क’ गार्जियन झूठ पकर’ वाला मशीन होयबाक बात सोचैत छथि,
जाहिसँ ओ झूठ नहि बाजय तकर प्रयास करइ छथि. ‘जे
हारय से नाक कटाबय’ लोक कथा पर आधारित अछि. ई तीनू पोथीमैथिली बालसाहित्यक विकासमेसहायक सिद्ध भेल अछि. श्री जगदीश प्रसाद
मंडलक – ‘तरेगन’प्रेरककथाक एक महत्वपूर्ण संग्रह थिक .
मैथिली
बालसाहित्यक क्षेत्रमे बाल-चित्रकथा एकटा अपूर्व आनंदक सृष्टि कयलक अछि. ई एकटा
आंदोलन थिक . एहिक्षेत्रमे देवांशु
वत्स आ प्रीति ठाकुर नीक काज क’ रहल छथि .हिनका लोकनि सं
आगुओ आशा कयल जाइत अछि .देवांशु वत्स ‘नताशा’ नामक पहिल मैथिली चित्रश्रृंखला प्रकाशित क’ नेनाक
हाथमे पोथी पहुंचा देलनि .ओकरा सुन्दर-सुन्दर चित्र आसटीक आ छोट-छोटवाक्यक माध्यमसं मनोरंजनक वस्तु प्रदान क’
देलनि. एहि पोथीमे अठतालीस गोट रोचक घटना अछि .एही क्रम कें आगू
बढबैत प्रीति ठाकुर सेहो नीक काज क’ रहलीह अछि .हुनक ‘गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा’ एवं ‘मैथिली चित्रकथा’ ई दू टा पोथी प्रकशित भेलनि अछि
.एहिमे गोनू झाक छोट-छोट खिस्साकें चित्रक माध्यम सं प्रस्तुत कयल गेल अछि. जे
नेना लोकनिकें मनोरंजन प्रदान करैत अछि .
बालकविता ====
मैथिली बालकविताक क्षेत्रमे नव-पुरान दुनू कोटिक कवि विशेष रूपसं आकृष्ट भेलाह
अछि. ताहिमे प्रमुख छथि--- गोविन्द झा ,चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’, जीवकांत , सरसजी ,भोला झा विमल ,कालीकांत झा ‘बूच’,
सत्यनारायण झा, डॉ.आर.के.रमण, गजेन्द्र ठाकुर आदि .
सभसं पहिने मैथिलीक सुप्रतिष्ठित साहित्यकार जीवकांतक
चर्चा करब .हिनक लगातार चारि गोटे बालकविता संग्रह एहि अवधिमे प्रकाशित भेलनि अछि.
गाछ झूल-झूल में 63 गोट कविता छनि, छाह सोहाओनमे 57 गोट, खिखिरक बिअरिमे 12 गोट आ ‘हमर अठन्नी खसलइ वनमे’
मे 20 गोट बालकविता संगृहीत अछि . जीवकान्तक बालसाहित्यकें
डॉ.प्रेमशंकर सिंह चरि भागमे विभाजित कयलनि अछि—‘’वात्सल्य
भावमया, वात्सल्य समय, शिशु बोध आ शिशु
कल्पना’’.५ जीवकान्तकबालकवितामे खेलकूद,
पढाइ-लिखाइ, प्राकृतिक सुषमाक विविध स्वरूपक चित्रण भेटैत
अछि, ताहिमे जीवनक विभिन्न पक्ष, बाध-बोन,
महापुरुषक जीवनी आदि सहजतासं ताकल जा सकैत अछि .यैह कारण थिक जे
जीवकांत नव क्षितिजक अन्वेषण करैत सार्थक जीवनमूल्यकें स्थापित करबाक प्रयासमे
लागल छथि. नेनाक जिद्दकें जीवकांत कोन तरहें चित्रित कयलनि अछि से देखल जाय ‘’बाबक पेन’मे --- ‘’ लेब अहाँकें
पेन बाबा / ए बी सी डी हमहूँ करबै / लेब अहाँ कें पेन ......
गंदा पेन अहाँ हमरा दय / किए ठकै छी / अपने निकहा पेन नुकाकए
/ खूब लिखइ छी ....
देशप्रेमक-सन्देश सूचक
हिनक ‘देश’ कविता देखल जाय’’ ....६
पर्वत टपि कए पक्षी आबइ हमर देशमे / लोल भिजाओलक बहुते जलमे
हमर देशमे’’ ...७
‘छाह सोहाओन’क भूमिकामे पंडित गोविन्द झा
हिनक बालकविताक प्रसंग लिखैत छथि जे -----‘’हमरा जनैत
प्रस्तुत पुस्तकमे कमसं कम दू गोट कविता एहन अछि जे ‘बाबा
ब्लैकशिप’ आ ‘ट्विंकल –ट्विंकल’ सं टक्कर ल’ सकैत अछि
.पहिल थिक---एक एक दिन ताक धिनाधिन .......आ दोसर थिक ---पिपरक पात हवा मे डोल......’’
८
हमरा विश्वास अछि
जे एहन गीत सभकें जं एक बेर मैथिल नेनाक ठोर पर चढाय देल जाय ,तं इहो बाबा ब्लैकशिप जकां मिथिलाक घर-घर मे पसरि जायत .हिनक पद्यकथा पर
आधरित दू गोट पोथी अछि. ‘खिखिरक बीयरि’ एवं ‘हमर अठन्नी खसलइ वनमे’ . खिखिरक
बीयरिक सरल शब्दावली आ तुक–छंद, नेनाकें सहजें अपना दिस आकर्षित करैत अछि. ’नवान’ मे मिथिलाक
चित्र देखल जाय .....’’..सुगा खोलल ललका लोल / बाजल ओ बोली
अनमोल / धानक खेत झुकइए शीश / हम लाएब दाना दस-बीस . आएल सुन्दर अगहन मास / धान
भरल अछि पूरा चास / करब नबान देखायब मेल /सभ मिलि करबै उत्सव खेल’’९ . तहिना ‘हमर अठन्नी खसलइ
वनमे ‘क सभ कविता मिथिलाक संग-संग पोराणिक –ऐतिहासिक चरित पर आधारित अछि .हिनक बाल कविताक प्रसंग डॉ. भीमनाथ झा लिखैत
छथि ----‘’जहिना कथानकक भिन्नता तहिना छंदक विविधता आकृष्ट
करैछ ,चमत्कृत सेहो .कोनो छंद प्राय: दोहराओल नहि गेल अछि
.प्रत्येक छंद कसल-सधल अछि. काव्यप्रवाह कलकल करैत अछि .कथा सभक मूलमे अछि पाठककें
शिक्षित करब, देशप्रेमक भावना भरब, आलस्य
कें हरब तथा मानवताक सेवा लेल प्रेरित करब.’’१० एहि तरहें जीवकान्तक कवितामे ठेठ मैथिली शब्दक
प्राचुर्य अछि ,लोकोक्तिक सुन्दर प्रयोग भेल अछि. हिनक बालकविता संग्रह मैथिलीक बालकाव्य
साहित्यक अनुपम धरोहर थिक .
पं. श्री गोविन्द
झाक बालसाहित्यक क्षेत्र मे महत्वपूर्ण योगदान छनि. हिनक ‘पाकल
आम’ कविता ककर ठोरपर नहि आयल छैक? एम्हर
हिनक ‘प्रलाप’ नामक कविता संग्रह आयलनि
अछि, ताहि मे किछु बाल कविता सेहो छनि. ओही महक ‘हेंको-हेंको’ कविताक निम्नलिखित पंक्ति देखल जाय ,जे नेना कें उपदेशपरक छैक -------
‘’सभसं पैघ
बुद्धिकें मानह बुद्धिक बिनु सब गुन हो गोबर
खूब पढ़ह ओ बुद्धि बढाबह
मन लगाय पहिनहुं सं दोबर
नहि तं तोहूँकहयबहगदहा उघबह मोटा हेंको –हेंको
पएबह नित सब ठाम अनादर
खएबह सोंटाहेंको-हेंको’’११
पं.श्री
चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’क कवितासंग्रह ‘’ठाहि-पठाहि’’
मे किछु बालकवित संगृहीत अछि . ‘दिगदिग थैया
लड़ेलड़े’ क किछु अंशदेखल जाय, जे अबोध नेना पर आधारित अछि -------‘’दिग दिग थैया लड़ेलड़े / काज करक अछि बड़ेबड़े / लड़िते चललहुँ जें सय डेग /
बढ़िते चल जायत ई वेग /मा , मामा ,बाबा,सब बोल / सिखलाहु ,करइत छी अनघोल’’ ...१२
गजेन्द्र ठाकुर अपन पोथी –‘कुरुक्षेत्रम
अन्तर्मनक’ ल’क’ बालसाहित्यक
क्षेत्रमे प्रमुखताक संग उपस्थित भेलाह अछि. वर्तमान जीवनशैलीक सभपक्षकें हिनक
बालकविता समाहित कयने अछि. हिनक बाल कवितामे शहरी आ ग्रामीण परिवेशकें सहजे देखल
जा सकैत अछि .यथा क्रिकेट खेल पर हिनक कविता देखू ----------हम बाबा करू की पहिने/
बालिंग आ की बैटिंग /बालिंग कय हम जायब थाकि / बैटिंग करि हम खायब मारि ?/ पहिले दिन तू भासि गेलह / से सुनह ई बात बौ़आ / बैटिंग –बालिंग छोड़िछाड़ि / पहिने करह
ग’ फिल्डिंग हथौआ .. १३ (पृष्ठ -७.१२१ )
एकर अतिरिक्त भोला
झा विमलक-- ‘सुप्रभात’ ,कालीकांत झा ‘बूचक’—‘कलानिधि’ ,आ ललित कुमार
झाक—‘सोन्हगर –सोन्हगर गीत’ संग्रहमे सेहो बालकविता आंशिक रूप मे छपल अछि .
विज्ञान ==== ‘हमर बीच विज्ञान’ ई पोथी विज्ञानविषयक थिक. दैनिक
जीवन मे उपयोग होएवला वैज्ञानिक उपकरणक प्रति जिज्ञाशाकें ई शांत कर’वला अछि .एहिमे विशिष्ट वैज्ञानिकक व्यक्तित्व आ सौरमण्डलक गतिविधिक विशद
चर्चा भेल अछि. एहि पोथीक लेखक छथि प्रो.धीरेन्द्र कुमार झा, जे स्वयं भौतिकीक विद्वान ओ प्रोफेसर छथि. एहि पोथीमे लेखक नेनाक उत्सुकताकें
तार्किक रूप सं ,सहज ,सरल शब्दमे शांत
करवाक प्रयास कयलनि अछि .ई पोथी ने केवल नेनाक अपितु वयस्कोक हेतु ओतबे लाभकारी
अछि .कतहु-कतहु अर्थ व्यापकताक हेतु अंगरेजी शब्दक उपयोग भेल अछि .एहिमे 43 गोट
निबंध अछि ,जे विभिन्न विषयक अछि ,यथा
----ग्रह-उपग्रह की थिक, विज्ञान विभूति नोबेल पुरस्कार
विजेता डॉ. सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, एटम बम : उद्भव ओ विकास ,
यन्त्र मानव रोबोटकें बुझू ,विज्ञानक चमत्कार ‘कम्प्यूटर’ , मंगलग्रहक अनुसन्धान आदि. किछु लेख
प्रदूषणपर आधारित सेहो अछि.
जीवनी ==== ‘कालजयी’ नामक पोथी डॉ. हरिप्रसाद वर्माक लिखल छनि ,जाहिमे 20
गोट जीवनी अछि. भाषा सहज एवं बोधगम्य अछि .कम शब्दमे बहुत बात समेटल गेल अछि
.एहिमे जाहि महापुरुषक व्यक्तित्वकें चित्रित कयल गेल अछि ,ताहिमे
प्रमुख छथि ---झाँसीक रानी लक्ष्मीबाइ ,राम प्रसाद विस्मिल, विरसा मुंडा ,भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम
बोस आदि .झाँसीक रानी लक्ष्मीबाइक एक अंश देखल जाय -------‘’मणिकणी
उर्फ मनुक जन्म 16 नवंबर 1834 ई. मे भेल छल .मात्र चारि वर्षक अवस्था मे मायक
छत्रच्छाया सं वंचित भ’ गेली .पिता श्री मोरोपंत हिनक शिक्षा–दीक्षा क व्यवस्था घरे पर कयल. मात्र 13 वर्षक अवस्था मे झाँसीक महराज
गंगाधर राव संग हिनक विवाह भेलनि .विवाहोपरांत हिनक नाम रानी लक्ष्मीबाइ राखल गेल
.’’१४सभ जीवनी आदर्श
एवं उत्प्रेरक अछि .
उपन्यास ==== उपन्यासकरूपमे ‘चन्द्रहास’
नामक अनूदित बालउपन्यास आयल अछि ,जकर अनुवादक
प्रो. अमरनाथ झा छथि .ई रायबहादुर ए.सी. मुखर्जीक मूल अंगरेजी उपन्यास –The
story of Chandrahas’क मैथिली अनुवाद थिक .एहिमे एकटा नेनाक खिस्सा
अछि जे बाद मे चन्द्रहास भ’ राजा बनाओल जायत अछि. चन्द्रहास
जखन नेने रहैत अछि तं एकरा भगवतभजन नीक लगैत छैक. इएह गबैत-गबैत एकदिन कन्तलक
राजभवन धरि पहुँचि गेल. ओत’ राजा पंडित लोकनि कें उपहार
बांटि रहल छलाह,एकर भजन सुनि ठमकि गेलाह .ओकरा भीतर बजाओल
गेल .पांच वर्षक नेनाक आकर्षक दीप्त आँखि ओ सुन्दर मुँह देखि सभ मुग्ध छल.ओ भजन
गयबाक उद्देश्यकें स्पष्ट करैत कहलक – ‘’एकमात्र अभिलाषा
ईश्वरमे विश्वास रखवाक अछि आ ओहि विश्वासकें जन-जनमे प्रचार करब कर्तव्य बुझैत छी.’’
राजाक मुख्य
पुरोहित बालकक पूरा शरीर देखि राजासँ कहलनि जे ई बालक राजकुमार प्रतीत होइत अछि
.ओकर ललाट पर राज चिह्नों देखलनि. ओ एकरा अपने राजदरबारमे राखि उचित
शिक्षा-दीक्षाक संग अपन कन्यासं विवाह कराय राजसिंहासनक भावी उत्तराधिकारी धरि
बनयबाक बात कहलनि.
एम्हर राजाकमंत्री
घृत दुष्ट छल. ओकरा ई नहि सोहयलैक. ओ राजाक बेटीसं अपन बालक मदनक विवाह करबय चाहैत
छल.ओ एकरा अपहरण क’ मरबा देबाक योजना बनओलक. ताहिमे ओ सफल
नहि भ’ सकल .चांडाल सभ भगवानक प्रति एकर असीम भक्ति देखि
छोडि देलकैक आ ओहो सभ भगवत भजनमे लागि गेल . ओ बालक कोना –कोना
संकटसं उबरैत अछि आ अन्ततः गद्दीनसीन होइत अछि ,तकर रोचक –
रोमांचक वर्णन अछि. नेनाक उत्सुकताकें बढबैत कथा चरमधरि जायत
अछि.अनुवाद सुन्दर अछि. एहिमे बच्चेसं भगवानक प्रति आस्था देखाओल गेल अछि.
पत्रिका ====एम्हर
नव कलेवरमे आकर्षक रूप-सज्जाक संग नचिकेताक संपादनमे कोलकातासं ‘’मिथिला दर्शन’’ नामक द्वैमासिक पत्रिका प्रकाशित भ’ रहल अछि .ताहू मे ‘नेना-भुटका’
नामसं बाल स्तम्भ अछि . नचिकेताक कथा -‘उकरू
काकाक उनटा पुरान, डॉ.अणिमा सिंहक –शिशु
गीत,जीवकान्तक –लिख रे सोनू ,रामलोचन ठाकुरक –अटकन मटकन ,करिया
झुम्मरी ,चेत कबड्डी ,हुक्कालोली ,अप्पन गाम, ऋषि वशिष्टक कथा – ने
घरक ने घाटक, आदि प्रमुख रचना थिक.एकर मुख्य आकर्षण वर्ग–पहेली थिक, जे नेना लोकनिकें मनोरंजनक संग
ज्ञानवर्धन सेहो करैत अछि. कुमार राधारमण धन्यवादक पात्र छथि, जे ओ नेनालोकनिक जिज्ञासा कें बुझलनि आ ओहि अनुरूप वर्ग –पहेली कें रखलनि. पत्रिकाक छपाई –सफाई अत्यंत
उच्चकोटिक अछि ,जे नेनाकें आकर्षित करैत अछि.
नेपालक श्री
रामानन्द युवा क्लव ,जनकपुरधामसं सेहो एक गोट पत्रिका
प्रकाशित भेल अछि ,जकर नाम –‘मैथिली
चौपाड़ि’ अछि. एहू मे उच्चस्तरीय बाल रचना प्रकाशित होइ़त
रहैत अछि.
बाल साहित्य एतबे
किन्नहुं नहि अछि. एहिसं कतोक बेसी अछि .हमरा जे तत्काल उपलब्ध भ’ सकल तकर मात्र सूचना टा देल अछि .नेनालोकनिकें पोथीओ किनबाक अभ्यास लगयबाक
चाही . ई काज नीक जकाँ अभिभावके क’ सकैत छथि. ई संतोषक बात
थिक जे मैथिलीमे किछु नवागन्तुक कवि –साहित्यकार शिशु
साहित्यक निर्माणमे सफल भेलाह अछि .परन्तु हुनक संख्या कम अछि .एहिमे आओर विकासक
आवश्यकता अछि .अंत में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोरक एहि कथन सं अपन बात समाप्त कर’
चाहैत छी .ओ कहैत छथि -----‘’बालसाहित्यक सृजन
सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कर्म थिक .यदि पैघ लेल लिख’वला
साहित्यकार नेनाक लेल नहि लिखलनि ,ओहिसँ पैघ अभागल आर के
होयत जे ओ अपन नेनपन कें फेर सं जीवि सकबाक सुअवसर गमा देलनि ?’’
सन्दर्भ –संकेत
१. इजोत-ले.कर्नल मायानाथ
झा ,प्र.-अंतिका
प्रकाशन ,दरभंगा ,प्र.सं.-२०११. भूमिका
–भीमनाथ झा पृ-७
५मैथिली बाल-साहित्यक स्थिति ओ अपेक्षा –सम्पादक.डॉ.सत्य नारायण मेहता .प्र.-चेतना समिति ,पटना
,प्र.सं-२०११, लेख-मैथिली-बाल-काव्यधारा
–प्रो. प्रेमशंकर सिंह पृ.-१२.
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/
रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/
Roman.)
English
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Maithili to English
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोषप्रोजेक्टकेँआगू
बढ़ाऊ,
अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
महत्त्वपूर्ण
सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास
(सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे
संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७Combined ISBN No.978-81-907729-7-6विवरण एहि पृष्ठपर
नीचाँमे आ प्रकाशकक साइट http://www.shruti-publication.com/पर।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल
बेर सर्च-डिक्शनरी)एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server
Maithili-English and English-Maithili Dictionary.विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह
(सहस्राब्दीक चौपड़पर),
कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च
आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमेसंपूर्णई-प्रकाशनक
बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist
edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)-
essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups
literature in single binding:
Language:Maithili ६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside
india)
(add courier charges Rs.50/-per copy for Delhi/NCR and Rs.100/- per copy for
outside Delhi)
For Libraries and overseas buyers $40 US (including postage)
[विदेह ई-पत्रिका,विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक
सात खण्डक-निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि),पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर),कथा-गल्प (गल्प गुच्छ),नाटक (संकर्षण),महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ
बाल-मंडली-किशोर जगत-संग्रहकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ
तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ।
सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल।
हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
३.श्री विद्यानाथ झा
"विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन
महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक
अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह
"नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक
इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट
मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल
अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि
विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन,
मैथिलीक प्रति
समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट
फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष
शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया
बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहनभव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर
हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
७. श्री ब्रजेन्द्र
त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका
"विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार
सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक
समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि
दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई
जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक
क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि।
पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा-
कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग
करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान
यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर-
मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु
हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र
यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित
हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र
प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग
रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा-
"विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ
एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि
अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि
"भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ
अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन
अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन
लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब
तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ
होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ,
मुदा उमर आब
बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति
अछि सात खण्डमे। मुदाअहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा
प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।
(स्पष्टीकरण-श्रीमान्,अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री
आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/परबिना मूल्यक डाउनलोड लेल
उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ
प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण
नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक प्रति अशेष
शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह-
अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत
मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ
मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक
प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर
आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर
छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे
मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ
समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी।
"विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽसकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा
सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त
मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि-
बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२३. श्री भालचन्द्र झा-
अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर
विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे
उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा-
अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ।ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य
शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक
उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक मेहमर उपन्यास स्त्रीधनकजेविरोध कएल
गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।...कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल
जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी-
सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ
गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार
चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ-
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य
मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र-
विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन-
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद,
शुभकामना आ
बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास
अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा
समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर-
अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत
तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक
पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब
नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ
सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार
सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा
सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत।
ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम्
तँ अशेष अछि।
४९.श्री बीरेन्द्र
मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति
प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण-
अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल।
हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह
पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ
गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द-
विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि
नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता-
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद;
कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक
स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद।
५९.श्री धीरेन्द्र
प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित
सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन-
विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज-
अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा
शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान
हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी
छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा
"सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी
अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद
मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ
पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक,
एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन्
सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष
मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल
शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद
मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि
अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे
एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र-
प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण
पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि
प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि -
श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ
ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ।
मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक
चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि
आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक
लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि
देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्रीमंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल
आ संगहि अहाँक मैगनम ओपसकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसेहो,अति उत्तम।मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय
अछि।
७२. श्री हरेकृष्णझा-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचनाकौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ
अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमेसमाजक इतिहास आ वर्तमानसँ
अहाँकजुड़ाव बड्डनीक लागल, अहाँ एहिक्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनकसन किताब मैथिलीमे पहिले
अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी-
मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन
होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल।
पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो
अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा
"विनोद":गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने
छल।शुभकामना।अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार
कश्यप: गजेन्द्रठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि
बएसमे कऽ गेलछीताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक
ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ
अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००४-१२. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक
ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक:
शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ
पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: वनीता कुमारी आ रश्मि रेखा सिन्हा।
सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक-
नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल आ
प्रियंका झा। सम्पादक- अनुवाद विभाग- विनीत उत्पल।
रचनाकार अपन मौलिक आ
अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.comकेँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt
फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ
अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे
टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल
प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक
बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। ’विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका अछि आ एहिमे
मैथिली, संस्कृत आ अंग्रेजीमे मिथिला आ मैथिलीसँ संबंधित
रचना प्रकाशित कएल जाइत अछि। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक
०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) 2004-12 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटारचनाआ आर्काइवक
सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाकअनुवाद आ पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक
हेतुggajendra@videha.co.inपर संपर्क करू। एहि
साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरीआ रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल।
सिद्धिरस्तु
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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