भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Wednesday, June 20, 2012

'विदेह' १०७ म अंक ०१ जून २०१२ (वर्ष ५ मास ५४ अंक १०७) - PART IV


१.डा. धनाकर ठाकुर २.नवीन कुमार आशा

डा. धनाकर ठाकुर
(26.5.2012क फारबिसगंजमे
24म अन्तरराष्ट्रिय मैथिला सम्मेलनक काव्य संध्यामे मंच
पर रचित आशु कविता।)
जँ हो अपना पर विश्वास

चाही त सुना सकैत छी
राति भरि अहाँकेँ
बना-बनाकेँ कविता
चाही त झुमा सकैत छी
राति भरि अहाँकेँ
बना-बनाकेँ कविता

मुदा करब नहि से
सुनु बस किछु पांति
पांति अछि इ भोगल
पांति अछि इ भीजल
जीवनक धारमे
डूबैत-उतराइत
अपन मंझधारमे।

जरैत रौदमे
पैघ बाधमे
एक हरियर गाछ
हारलकेँ जीवनक आश



गर्मीमे पीपरिक
हरियर-हरियर पात
जरैत जीवनक आश।

भादवक घटाटोप मेघक
रातिमे बिजलीक इजोत
भटकल पथिककेँ
देखाइत बाट
भेटल जीवनक आश।

दाहल कोशीमे
दहाइत लोक
देखल एक गाछक
लबदलि डारि
भेटल जीवनक आश।

नागक फूफकारसँ
गेल जीवनक आश
उड़ैत बाजक झपट
भागल नाग
भेटल जीवनक आश।
शीतमे हरियर-हरियर
दूबि पर
ओसक धवल बिन्दु
उगलाह सूर्य
सप्ताह पर
भेटल जीवनक आश।

समुद्रमे डूबैत
जहाजीक लग
डगल जमीनक ढ़ेप
डूबैतकेँ
भेटल जीवनक आश।

जीवन जखन
हारैत देखाइत अछि
कतहुसँ भेटैत अछि
जीवनक आश
जँ हो अपना
पर विश्वास।

नवीन कुमार आशा
विदेह परिवार बिनु रहब कोना
फाटल करेज के सिबब कोना
विरह गीत मेँ सेहो नहि सुर
ओहि मय तान लगायब कोना
कलम जे चलल छल सजि के
ओकरा उजर नुआ पहिनाबु कोना
ज्ञान क अलख जे जगोलथि हमरा मय
ओ प्रनेता के बिसरब कोना
मचान पर बैसल सोचि ऐतबा
बिछरल परिवार सँ मिली कोना
विदेह परिवार छमा माँगु कोना
बिना क्षमा के रहब कोना
जीवन के इ शौक अछि
बिनु रोजगारे रहब कोना
ऐतबा लिख रहब कोना
बिनु आशीष जियब कोना
विदेह लेल रहब सदिखन उपस्थित
पर किछु दिनक मोहलत माँगु कोना।
 
[अपने सब सँ दूर रहेक उदासी अछि 
पर बिनु रोजगारे जीवन खाली अछि। विदेहक जनक गजेन्द्र ठाकुर आ समस्त परिवार के समर्पित]

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।

 

विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
राजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )

.
उमेश मण्डल

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी  (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।

 




विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
बालानां कृत
१.चंदन कुमार झा- बाल गजल २.डॉ. दमन कुमार झ-एकैसम शताब्दीक पहिल दशकमे मैथिली  बालसाहित्य३.डॉ॰ शशिधर कुमर विदेह

चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान
मधुबनी, बिहार


बाल-गजल
दऽ रहल छी अपन शपथ, नै कानू बौआ
लेबनचूस लऽ पप्पा औताह, कुचरे कौआ
हम तऽ माय छी सत्ते,मुदा बेबस लाचारे
कीनि खेलौना देब कतऽसँ,नहि अछि ढौआ
भरना लागल खेत, महाजन के तगेदा
फेर कोना के सख पुरौताह बाप कमौआ
अहीँ पुरायब सख सेहन्ता आस धेने छी
अहीँ जुड़ायब छाती बनिकऽ पूत कमौआ
कबुला,पाती,विनय,नेहोरा, करैछी भोला
बेलपात "चंदन" चढ़ायब खूब चढ़ौआ
--------वर्ण-१६----------

डॉ. दमन कुमार झा, अध्यक्ष, मैथिली विभाग,  जगदीश नंदन महाविद्यालय,  मधुबनी .

एकैसम शताब्दीक पहिल दशकमे मैथिली  बालसाहित्य                                                    
बालसाहित्य नेनाक साहित्य थिक, नेनाक हेतु लिखल साहित्य थिक, नेनाक हेतु अर्थात नेनाकें सत्पथपर अनबाक हेतु लिखल साहित्य. ओ सत्पथपर कोना आओत, कोन माध्यमसं आओत,तकर  प्रमुख स्रोत अछि बालसाहित्य. बालसाहित्यक प्रति नेनाक आकर्षण ओहि मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाक परिणाम थिक जे ओकरा आकर्षक वस्तुक प्रति जिज्ञासु बनबैत छैक. जिज्ञासा शांत करबाक इच्छा एतेक प्रबल रहैत छैक जे से ओकरा पाठशालामे शांत नहि भपबैत छैक.ओ ओकरा जेना-तेना शान्त करचाहैत अछि. साक्षर भेलापर तें ओकरा पोथी पढबाक रूचि जगैत छैक. तें बालसाहित्यक स्वतंत्र अस्तित्व छैक.
              अपना सभक समक्ष बालसाहित्यक की स्थिति अछि, से ककरो सं नुकायल नहि अछि.  बालसाहित्य समृद्ध नहि अछि, ई तथ्य थिक. किएक नहि अछि ई चिन्ताक विषय थिक .ताहू सं अधिक चिन्तनक विषय थिक. सभसं प्रधान कारण अछि प्राथमिक विद्यालयमे मैथिलीकें शिक्षाक माध्यम नहि होयब .एखन हमरालोकनि  एहि प्रयासमे लागल छी जे कहुना ई सरकारी स्कूलमे शिक्षाक माध्यम रूपमे स्वीकृत भजाओ .सरकार कहैत अछि जे -- से तं अछिए .विद्यार्थी पढिते नहि अछि ,अभिभावक अपन पाल्यकें पढ़वहि नहि चाहैत अछि .ताहिमे सरकार की कसकैत अछि ?ई तं एक समस्या भेल. मानि लियताहिमे हमरालोकनि कने सफलो भगेलहुँ ,प्राइमरी स्कूलमे मैथिलीक माध्यमसं पढ़ौनी शुरूहो भजायत तं ताहि सं की समस्याक समाधान भजायत ? हम बुझैत छी नहि .कारण ,कतेक प्रतिशत नेना सरकारी स्कूल मे पढ़जाइत अछि ?असल समस्या तं अछि पब्लिक स्कूलक .जाधरि मिथिलाक सभ पब्लिक स्कूलमे मैथिली नहि लागू होयत ,विषयक रूपमे सेहो आ माध्यम रूपमे सेहो ,तावत धरि नेनाकें अपन मातृभाषाक दिस आकृष्ट करब आकास-कुसुमे रहत .
               नेनाकें जैह पढाइ होयतैक ,सैह ने ओ पढतैक ?की ओकरा सं ई अपेक्षा करबैक जे ओ कहय जे हम हिन्दीमे नहि पढब ,अंगरेजीमे नहि पढब, हम मैथिलीए मे पढब ? नेना ई नहि कहत. ई कहत नेनाक माता-पिता, अभिभावक .मुदा नेनाक बेसी अभिभावक कें ई बुझले नहि छनि जे मैथिलीओ मे बालसाहित्य छैक . हम कहैत छी छैक, आन भाषाक तुलनामे कम भने रहौक !
               एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकपर ध्यान दी तं अनेको बालसाहित्यक पोथी विभिन्न विधामे प्रकाशित अछि . कविता ,कथा ,जीवनी ,निबंध ,विज्ञानविषयक पोथी, चित्रकथा आदि .ई दशक मैथिली बालसाहित्यक लेल एक आओर कारणे महत्वपूर्ण रहल अछि. एही दशकमे साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली बालसाहित्य पुरस्कार सेहो प्रदान कयल जाय लागल . अद्यावधि दू गोट पोथीकेँ पुरस्कृत कयल गेल अछि . ओ थिक तारानंद वियोगीक दीर्घबालकथा – ‘ई भेटल तं की भेटल’ ?आ दोसर थिक ले.कर्नल मायानाथ झाक बालकथासंग्रह  – ‘जकर नारि चतुर होइ’ .
             ई भेटल तँ की भेटलतारानंद वियोगीक कथा-पोथी थिक. एहिमे मोद्गल आ ग्लावक खिस्सा अछि. दुनू ऋषि छथि, दुनू शिष्यकें शिक्षा दैत छथिन . मुदा ग्लाव मोद्गल कें कखनो मोजर नहि दैत छथिन . ओ सदिखन अहंकारमे जीबैत छथि. एकदिन मोद्गल ग्लावक शिष्य सुतापी द्वारा समाद पठौलथिन जे अहाँक गुरु ग्लाव चारिम वेदक विषयमे की बुझैत छथि? जखन सुतापी चारिम वेदक विषयमे पुछलथिन तं ग्लाव बजलाह तीन वेद कोन कम भेलै जे ओ चारिम लेल झखै छथि ? मोद्गल ई सुनि बुझि गेलाह जे ओ असली ऋषि नहि छथि. मोद्गल हुनका सं एक प्रश्न पुछलनि. प्रश्न छल –‘एकटा कियो छथि, हुनका बारह टा मिथुन छनि, चौबिस योनि छनि, एक आँखि भृगु छथिन, दोसर आँखि अंगिरा छथिन. बुझनिहार हुनका शक्ति कहै छनि, हुनके असरापर सभ टिकल अछि. अहाँक गुरूजी कहथु जे वास्तवमे ओ के छथि ? हुनक रहस्य की छनि? हुनका कियो कोना पाबि सकैत अछि?---प्रश्नक उत्तर ओ जहिया चाहथि, तहिया देथि. खोज कलेथि, मुदा जं उत्तर नहि दसकताह तं हुनक नाश निश्चित  अछि .
              ई सुनि गलावक हाथपयर सुन्न हुअलगलनि. रातिराति भरि जगल रहला .अंतमे ओ मोद्गलक शिष्य बनि गेलाह .ज्ञानप्राप्तिक  बाद जखन उपदेशक बेर अयलनि तं मोद्गल गायकें देखा हुनक सेवा करवाक हेतु कहलथिन. एक साल बाद मोद्गल गलाव सं पुछलथिन की सिखलहुँ---गाय कें घमण्ड नहि छनि . घमण्ड व्यर्थ चीज थिक. पुनः मोद्गल बेंग सं शिक्षा लेबा लेल कहलथिन .एक साल बाद पुछलथिन ,तं गलाव बजलाह ---ओ जीवनक पारखी होइत छथि भगवन् ! कोनो हालमे जीबी सकै छथि. ओ समय कें चिन्है छथि. दुर्दिनकें बर्दास्त करै छथि . ठीक अछि, एखन उपदेशक समय नहि आयल अछि .अहाँ गाछबृक्ष सं शिक्षा लिय’ . गलावकें गाछ वृक्ष कें सेवा करैत असली ज्ञानक प्राप्ति भेलनि. ओ बजलाहगाछ अपना लेल किछु नहि करैत अछि. ओ दोसरेक हेतु होइत अछि .जखन एहि बातक भान गलावकें भेलनि तं ओ गाछकें पकड़ि ककानलगलाह . ई दृश्य देखि मोद्गल गदगद भगेलाह .गलाव मोद्गलकें देखि चिकरि उठलाह ---भेटि गेल गुरुदेव ....हमरा सभ-किछु भेटि गेल .ग्लावक मुखमण्डल पर ज्ञानक अखंड ज्योति जगमगा रहल छल .कथाकार ई कहचाहैत छथि जे सभसँ पैघ सेवा परोपकार  थिक .
                            दोसर पुरस्कृत पोथी थिक ले.कर्नल मायानाथ झाक – ‘जकर नारि चतुर होइ’ .एहिमे एक्कैस गोट कथा संगृहीत अछि .सभ कथा मनोरंजक आ उपदेशात्मक अछि .जे नेना कें मनोरंजनक संग ज्ञानक ज्योति सेहो देखबैत अछि. सभ कथा बुद्धिक महिमा देखबैत अछि ,ज्ञान दैत अछि जे बिना सोचने किछु नहि करी ,नारीक चतुर्य, निरंतर अध्यवसाय, समयक पाबंद होयब आदि बीजमंत्र सिखबैत अछि. कथाक भाषा सरल , सरस आ बोधगम्य अछि . बालमनक संगसंग किशोर मनकें सेहो ई कथा सभ उद्वेलित करैत अछि .
             एहि महक अधिकांश दादा-दादी, माय-पितिआइनिसं कथा सुनि कलिखल गेल अछि .कथाकार जेना कथा सुनलनि, ठीक तहिना लिखबाक प्रयास कयलनि अछि. मात्र छओ गोट कथा लेखकक अपन छनि, यथा ----ख्याली पुलाव ,लुच्चा गीदर, उपाय आ अपाय, अकठ-विकठ , प्रभुलीला एवं  भगवान जे करैत छथिन. सुनल कथामे एक अछि साहसी फुद्दी. ई कथा नेनामे सभ गोटे सुनने होयब .कथा कहबाक ढंग गद्यपद्यमय अछि .एहि कथामे ई शिक्षा देल गेल अछि जे हारि नहि मनवाक चाही. लगन रहत तं सफलता भेटबे  करत . एहने एकटा कथा अछि टिकरमबाजी. एहि महक किछु कथा दीर्घ अछि .किछु प्रमुख कथा थिकप्रारब्ध ,प्रेतवास, भन्नू, आंतरिक प्रेम .
            हिनके दोसर बालकथा संग्रह थिकनि--- इजोत’. जाहिमे नबासी गोट कथा अछि . एहि कथा सभपर प्रकाश दैत प्रो. भीमनाथ झा कहैत छथि-----‘’सभ कथा प्रेरक अछि ,ज्ञानवर्धक अछि ,मनुष्यक उदात्त  भावनाकें जगोनिहर अछि ,कुसंस्कारी अन्हार घरमे संस्कारक इजोत खिरौनिहार अछि .विशेषतः किशोर लोकनिक हेतु तं ई प्रकाशपुन्जे थिक’’. से ठीके ले. कर्नल मायानाथ झा धियापुताक हेतु प्रकाश पुन्जे भ अवतरित भेलाह अछि. ई एहिना लागल रहताह तं नेना लोकनिक हेतु एक-सं-एक कथा जे विलुप्त भरहल अछि ,से सामने अबैत रहत . एहि महक किछु प्रमुख कथा अछि ---साहस ,विषक बदला , क्षमा ,बलिदानी ,शिक्षा ,मातृभाषाक सेवा .
             दहीक खोंइचा’---पंडित श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमरकें लिखल छनि. एहिमे छबीस गोट कथा संगृहीत अछि. अमरजीक लिखल कथा हो, सेहो नेना लोकनिक हेतु हो, तँ मनोरंजक होयबे करत. ताहिमे संदेह नहि. कहबाक छटा एकदम रम्य अछि. पढैत जाउ, हँसैत जाऊ. पहिले कथा दहीक खुइंचा मे कोनो कविजी दहीक छाल्हीकें दहीक खुइंचा कहलनि. तकरे रोचक वर्णन भेल अछि .तहिना, एकटा कथा कहबाक लुतुक पर आधारित अछि – ‘अहाँके...’ . जाहिमे सभ बातमे अहाँके लगाककथाके रोचक बना देल गेल अछि .तहिना, बकरीक हसबैंड, तामस , मुट्ठी आ चुटकी ,कचोट ,सोहारीक जरुआ मनलग्गू कथा अछि . एहि महक भूजाकथा देखल जाय ---------------‘’जलखैमे भूजा हमरा सभ दिन सं प्रिय रहल अछि .एक दिन भूजा फंकैत काल भूजा शब्दक अर्थ दिस ध्यान चल गेल. एकाएक एक टा अर्थ बिजली जकाँ माथमे चमकि उठल ------भू  मने पृथ्वी ,ताहिमे जा अर्थात जन्म लेने छथि जे, से  अर्थात  सीता .तुरंत दुनू पयर मोड़ि, ठेहुन भरें बैसि, भूमिमे माथ सटा भूजाकें प्रणाम कयल आ गुरूजीकें जा ककहि देलियनि ---अपने नहि बुझबै. संस्कृतक बात थिकै .’’
        प्रेत कथा’----एकर लेखक हंसराज थिकाह .एहिमे छओ गोट कथा अछि .प्रेतविवाहपद्धतियावत पढबह रूद्रबाललोककथा थिक. एहिमे प्रेतयोनिक अद्भुत् कृत्य सभकें रोचक ढंगसं प्रस्तुत कयल गेल अछि .
        मैथिली लोककथा’----रामलोचन ठाकुरक लिखल छनि. एहिमे छतीस गोट लोककथा संगृहीत अछि. लोककथाक मादे स्वयं लेखकक मंतव्य छनि जे ------‘’लोककथाक सभसँ प्रमुख विशेषता थिक जे ई अलिखित अछि आ आरंभ कालसं आइ धरि एक कंठसं दोसर कंठमे प्रवाहित आबि रहल अछि .एहि कारणे एकर बाहरी रूपमे परिवर्तन अबस्से भेलै-ए, परन्च आंतरिक रूपमे कोनो टा परिवर्तन नहि भेलै-ए. एकर मौलिकता ओहिना छैक.’’३ एहि महक किछु कथा दीर्घ अछि .सभ कथा रोचक आ मनोरंजक अछि .यथा-गदहा, खेने कोनो ने दोष, काजरि, एकटा गरीब वाभन रहथि, नारद मुनि आ साँप, लालबुझक्कर आदि.
          पिलपिलहा गाछ’ -----मुरलीधर झाक ई बालकथा संग्रह थिक .एहिमे एक्कैस गोट कथा संगृहीत अछि.  कथा सभ सरल आ छोट-छोट  वाक्यमे लिखल अछि .एहि पोथीक पाठक बारहसं सत्रह वर्षक नेना भसकैत अछि, जखन ओकर मानसिक स्तर ऊँच भजायत छैक . एहि संग्रहक प्रसंग डॉ. रामदेव झा लिखैत छथि जे -----‘’एहि संग्रहक कथा सभ मे पुरान मानसिकताक अनुरूप बालमानसकें बोझिल बना देनिहार अकर्तव्यताक निषेध ,कर्तव्यताक आदेश अथवा नैतिकताक उपदेश देवाक बलात्  चेष्टाक स्थान मे घटित घटना ,पात्रक स्वभाव ओ चरित्र अथवा आचरणक माध्यमे अनायास सहज रीतिसं सद्भावना ओ सत्प्रेरणाक सन्देश सम्पुटित अछि  जे बाल वर्गीय पाठकक चरित्र निर्माणमे परोक्ष भावसं सहायक भसकैछ .’’   कथामे ठाम ठाम चित्रक प्रयोग कयल गेल अछि जे कथाकें आकर्षक बना देलक अछि .कथाक नामकरण पिलपिलहा गाछआमक गाछ पर कयल गेल अछि ,जे अत्यन्त दुर्वल ,क्षीणकाय ,मरदुआरी अछि .अन्य कथा सभमे भैयारी , धैर्य , हर्षक नोर , कृतज्ञ , मर्यादा ,तृप्त ,जुग-जुग जीबू आदि प्रमुख अछि .संग्रहक कलेवर आकर्षक अछि .
             वर्तमान कालमे बाल साहित्यक क्षेत्र मे ऋषि वशिष्ट बढियाँ काज करहल छथि. हिनक किछु बालपोथी आयल अछि .यथा --- कोढ़िया घर स्वाहा’ ,’झुठपकरा मशीनजे हारय से नाक कटाबय’ . ‘कोढ़िया घर स्वाहामे आलसी मनुष्यक चित्रण कयल गेल अछि .आलस कें अपना भीतर पैसय नहि दी जाहि सं कोनो भारी नोकसान भजाय . झूठपकरा मशीननैतिक शिक्षा पर आधारित अछि. एहिमे छात्रसं तंग आबि क गार्जियन झूठ पकरवाला मशीन होयबाक बात सोचैत छथि, जाहिसँ ओ झूठ नहि बाजय तकर प्रयास करइ छथि. जे हारय से नाक कटाबयलोक कथा पर आधारित अछि. ई तीनू पोथी  मैथिली बालसाहित्यक विकासमे  सहायक सिद्ध भेल अछि. श्री जगदीश प्रसाद मंडलक – ‘तरेगन  प्रेरककथाक एक महत्वपूर्ण संग्रह थिक .
             मैथिली बालसाहित्यक क्षेत्रमे बाल-चित्रकथा एकटा अपूर्व आनंदक सृष्टि कयलक अछि. ई एकटा आंदोलन थिक . एहि  क्षेत्रमे देवांशु वत्स आ प्रीति ठाकुर नीक काज क रहल छथि .हिनका लोकनि सं आगुओ आशा कयल जाइत अछि .देवांशु वत्स नताशानामक पहिल मैथिली चित्रश्रृंखला प्रकाशित कनेनाक हाथमे पोथी पहुंचा देलनि .ओकरा सुन्दर-सुन्दर चित्र आ  सटीक आ छोट-छोट  वाक्यक माध्यमसं मनोरंजनक वस्तु प्रदान कदेलनि. एहि पोथीमे अठतालीस गोट रोचक घटना अछि .एही क्रम कें आगू बढबैत प्रीति ठाकुर सेहो नीक काज करहलीह अछि .हुनक गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथाएवं मैथिली चित्रकथाई दू टा पोथी प्रकशित भेलनि अछि .एहिमे गोनू झाक छोट-छोट खिस्साकें चित्रक माध्यम सं प्रस्तुत कयल गेल अछि. जे नेना लोकनिकें मनोरंजन प्रदान करैत अछि .

            बालकविता ==== मैथिली बालकविताक क्षेत्रमे नव-पुरान दुनू कोटिक कवि विशेष रूपसं आकृष्ट भेलाह अछि. ताहिमे प्रमुख छथि--- गोविन्द झा ,चन्द्रनाथ मिश्र अमर’, जीवकांत , सरसजी ,भोला झा विमल ,कालीकांत झा बूच’, सत्यनारायण झा, डॉ.आर.के.रमण, गजेन्द्र ठाकुर आदि .
            सभसं पहिने मैथिलीक सुप्रतिष्ठित साहित्यकार जीवकांतक चर्चा करब .हिनक लगातार चारि गोटे बालकविता संग्रह एहि अवधिमे प्रकाशित भेलनि अछि. गाछ झूल-झूल में 63 गोट कविता छनि, छाह सोहाओनमे 57 गोट, खिखिरक बिअरिमे 12 गोट आ हमर अठन्नी खसलइ वनमेमे 20 गोट बालकविता संगृहीत अछि . जीवकान्तक बालसाहित्यकें डॉ.प्रेमशंकर सिंह चरि भागमे विभाजित कयलनि अछि—‘’वात्सल्य भावमया, वात्सल्य समय, शिशु बोध आ शिशु कल्पना’’. जीवकान्तक  बालकवितामे खेलकूद, पढाइ-लिखाइ, प्राकृतिक सुषमाक विविध स्वरूपक चित्रण भेटैत अछि, ताहिमे जीवनक विभिन्न पक्ष, बाध-बोन, महापुरुषक जीवनी आदि सहजतासं ताकल जा सकैत अछि .यैह कारण थिक जे जीवकांत नव क्षितिजक अन्वेषण करैत सार्थक जीवनमूल्यकें स्थापित करबाक प्रयासमे लागल छथि. नेनाक जिद्दकें जीवकांत कोन तरहें चित्रित कयलनि अछि से देखल जाय ‘’बाबक पेनमे ---        ‘’ लेब अहाँकें पेन बाबा / ए बी सी डी हमहूँ करबै / लेब अहाँ कें पेन ......
गंदा पेन अहाँ हमरा दय / किए ठकै छी / अपने निकहा पेन नुकाकए / खूब लिखइ छी ....
       देशप्रेमक-सन्देश सूचक हिनक देशकविता देखल जाय’’ ....
‘’धोन्हि फाड़ि कए उगय गोसैयाँ हमर देशमे / चारि रंग केर छइ सतभैया हमर देशमे.
पर्वत टपि कए पक्षी आबइ हमर देशमे / लोल भिजाओलक बहुते जलमे हमर देशमे’’ ...
छाह सोहाओनक भूमिकामे पंडित गोविन्द झा हिनक बालकविताक प्रसंग लिखैत छथि जे -----‘’हमरा जनैत प्रस्तुत पुस्तकमे कमसं कम दू गोट कविता एहन अछि जे बाबा ब्लैकशिपट्विंकल ट्विंकलसं टक्कर लसकैत अछि .पहिल थिक---एक एक दिन ताक धिनाधिन .......आ दोसर थिक ---पिपरक पात हवा मे डोल......’’
       हमरा विश्वास अछि जे एहन गीत सभकें जं एक बेर मैथिल नेनाक ठोर पर चढाय देल जाय ,तं इहो बाबा ब्लैकशिप जकां मिथिलाक घर-घर मे पसरि जायत .हिनक पद्यकथा पर आधरित दू गोट पोथी अछि. खिखिरक बीयरिएवं हमर अठन्नी खसलइ वनमे’ . खिखिरक बीयरिक  सरल शब्दावली आ तुकछंद, नेनाकें सहजें अपना दिस आकर्षित करैत अछि.  नवानमे मिथिलाक चित्र देखल जाय .....’’..सुगा खोलल ललका लोल / बाजल ओ बोली अनमोल / धानक खेत झुकइए शीश / हम लाएब दाना दस-बीस . आएल सुन्दर अगहन मास / धान भरल अछि पूरा चास / करब नबान देखायब मेल /सभ मिलि करबै उत्सव खेल’’ . तहिना हमर अठन्नी खसलइ वनमे क सभ कविता मिथिलाक संग-संग पोराणिक ऐतिहासिक चरित पर आधारित अछि .हिनक बाल कविताक प्रसंग डॉ. भीमनाथ झा लिखैत छथि ----‘’जहिना कथानकक भिन्नता तहिना छंदक विविधता आकृष्ट करैछ ,चमत्कृत सेहो .कोनो छंद प्राय: दोहराओल नहि गेल अछि .प्रत्येक छंद कसल-सधल अछि. काव्यप्रवाह कलकल करैत अछि .कथा सभक मूलमे अछि पाठककें शिक्षित करब, देशप्रेमक भावना भरब, आलस्य कें हरब तथा मानवताक सेवा लेल प्रेरित करब.’’१०  एहि तरहें जीवकान्तक कवितामे ठेठ मैथिली शब्दक प्राचुर्य अछि ,लोकोक्तिक सुन्दर प्रयोग भेल अछि. हिनक बालकविता संग्रह मैथिलीक बालकाव्य साहित्यक अनुपम धरोहर थिक .
                          पं. श्री गोविन्द झाक बालसाहित्यक क्षेत्र मे महत्वपूर्ण योगदान छनि. हिनक पाकल आमकविता ककर ठोरपर नहि आयल छैक? एम्हर हिनक प्रलापनामक कविता संग्रह आयलनि अछि, ताहि मे किछु बाल कविता सेहो छनि. ओही महक हेंको-हेंकोकविताक निम्नलिखित पंक्ति देखल जाय ,जे नेना कें उपदेशपरक छैक -------
                   ‘’सभसं पैघ बुद्धिकें मानह बुद्धिक बिनु सब गुन हो गोबर
                    खूब पढ़ह ओ बुद्धि बढाबह मन लगाय पहिनहुं सं दोबर     
                    नहि तं तोहूँ  कहयबह  गदहा उघबह मोटा हेंको हेंको  
                    पएबह नित सब ठाम अनादर खएबह सोंटा  हेंको-हेंको’’११
          पं.श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमरक कवितासंग्रह ‘’ठाहि-पठाहि’’ मे किछु बालकवित संगृहीत अछि . दिगदिग थैया लड़ेलड़ेक किछु अंश  देखल जाय, जे अबोध नेना पर आधारित अछि -------‘’दिग दिग थैया लड़ेलड़े / काज करक अछि बड़ेबड़े / लड़िते चललहुँ जें सय डेग / बढ़िते चल जायत ई वेग /मा , मामा ,बाबा,सब बोल / सिखलाहु ,करइत छी अनघोल’’ ...१२
                गजेन्द्र ठाकुर अपन पोथी –‘कुरुक्षेत्रम अन्तर्मनकबालसाहित्यक क्षेत्रमे प्रमुखताक संग उपस्थित भेलाह अछि. वर्तमान जीवनशैलीक सभपक्षकें हिनक बालकविता समाहित कयने अछि. हिनक बाल कवितामे शहरी आ ग्रामीण परिवेशकें सहजे देखल जा सकैत अछि .यथा क्रिकेट खेल पर हिनक कविता देखू ----------हम बाबा करू की पहिने/ बालिंग आ की बैटिंग /बालिंग कय हम जायब थाकि / बैटिंग करि हम खायब मारि ?/ पहिले दिन तू भासि गेलह / से सुनह ई बात बौ़आ / बैटिंग बालिंग छोड़ि  छाड़ि / पहिने करह गफिल्डिंग हथौआ .. १३                     (पृष्ठ -७.१२१ ) 
        एकर अतिरिक्त भोला झा विमलक-- सुप्रभात’ ,कालीकांत झा बूचक’—‘कलानिधि’ ,आ ललित कुमार झाक—‘सोन्हगर सोन्हगर गीतसंग्रहमे सेहो बालकविता आंशिक रूप मे छपल अछि .
               विज्ञान ==== हमर बीच विज्ञानई पोथी विज्ञानविषयक थिक. दैनिक जीवन मे उपयोग होएवला वैज्ञानिक उपकरणक प्रति जिज्ञाशाकें ई शांत करवला अछि .एहिमे विशिष्ट वैज्ञानिकक व्यक्तित्व आ सौरमण्डलक गतिविधिक विशद चर्चा भेल अछि. एहि पोथीक लेखक छथि प्रो.धीरेन्द्र कुमार झा, जे स्वयं भौतिकीक विद्वान ओ प्रोफेसर छथि. एहि पोथीमे लेखक नेनाक उत्सुकताकें तार्किक रूप सं ,सहज ,सरल शब्दमे शांत करवाक प्रयास कयलनि अछि .ई पोथी ने केवल नेनाक अपितु वयस्कोक हेतु ओतबे लाभकारी अछि .कतहु-कतहु अर्थ व्यापकताक हेतु अंगरेजी शब्दक उपयोग भेल अछि .एहिमे 43 गोट निबंध अछि ,जे विभिन्न विषयक अछि ,यथा ----ग्रह-उपग्रह की थिक, विज्ञान विभूति नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, एटम बम : उद्भव ओ विकास , यन्त्र मानव रोबोटकें बुझू ,विज्ञानक चमत्कार कम्प्यूटर’ , मंगलग्रहक अनुसन्धान आदि. किछु लेख प्रदूषणपर आधारित सेहो अछि.
                  जीवनी ==== कालजयीनामक पोथी डॉ. हरिप्रसाद वर्माक लिखल छनि ,जाहिमे 20 गोट जीवनी अछि. भाषा सहज एवं बोधगम्य अछि .कम शब्दमे बहुत बात समेटल गेल अछि .एहिमे जाहि महापुरुषक व्यक्तित्वकें चित्रित कयल गेल अछि ,ताहिमे प्रमुख छथि ---झाँसीक रानी लक्ष्मीबाइ  ,राम प्रसाद विस्मिल, विरसा मुंडा ,भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस आदि .झाँसीक रानी लक्ष्मीबाइक एक अंश देखल जाय -------‘’मणिकणी उर्फ मनुक जन्म 16 नवंबर 1834 ई. मे भेल छल .मात्र चारि वर्षक अवस्था मे मायक छत्रच्छाया सं वंचित भगेली .पिता श्री मोरोपंत हिनक शिक्षादीक्षा क व्यवस्था घरे पर कयल. मात्र 13 वर्षक अवस्था मे झाँसीक महराज गंगाधर राव संग हिनक विवाह भेलनि .विवाहोपरांत हिनक नाम रानी लक्ष्मीबाइ राखल गेल .’’१४  सभ जीवनी आदर्श एवं उत्प्रेरक अछि .
                  उपन्यास ==== उपन्यासक  रूपमे चन्द्रहासनामक अनूदित बालउपन्यास आयल अछि ,जकर अनुवादक प्रो. अमरनाथ झा छथि .ई रायबहादुर ए.सी. मुखर्जीक मूल अंगरेजी उपन्यास –The story of Chandrahas’क मैथिली अनुवाद थिक .एहिमे एकटा नेनाक खिस्सा अछि जे बाद मे चन्द्रहास भराजा बनाओल जायत अछि. चन्द्रहास जखन नेने रहैत अछि तं एकरा भगवतभजन नीक लगैत छैक. इएह गबैत-गबैत एकदिन कन्तलक राजभवन धरि पहुँचि गेल. ओतराजा पंडित लोकनि कें उपहार बांटि रहल छलाह,एकर भजन सुनि ठमकि गेलाह .ओकरा भीतर बजाओल गेल .पांच वर्षक नेनाक आकर्षक दीप्त आँखि ओ सुन्दर मुँह देखि सभ मुग्ध छल.ओ भजन गयबाक उद्देश्यकें स्पष्ट करैत कहलक – ‘’एकमात्र अभिलाषा ईश्वरमे विश्वास रखवाक अछि आ ओहि विश्वासकें जन-जनमे प्रचार करब कर्तव्य बुझैत छी.’’
           राजाक मुख्य पुरोहित बालकक पूरा शरीर देखि राजासँ कहलनि जे ई बालक राजकुमार प्रतीत होइत अछि .ओकर ललाट पर राज चिह्नों देखलनि. ओ एकरा अपने राजदरबारमे राखि उचित शिक्षा-दीक्षाक संग अपन कन्यासं विवाह कराय राजसिंहासनक भावी उत्तराधिकारी धरि बनयबाक बात कहलनि.
            एम्हर राजाकमंत्री घृत दुष्ट छल. ओकरा ई नहि सोहयलैक. ओ राजाक बेटीसं अपन बालक मदनक विवाह करबय चाहैत छल.ओ एकरा अपहरण कमरबा देबाक योजना बनओलक. ताहिमे ओ सफल नहि भसकल .चांडाल सभ भगवानक प्रति एकर असीम भक्ति देखि छोडि देलकैक आ ओहो सभ भगवत भजनमे लागि गेल . ओ बालक कोना कोना संकटसं उबरैत अछि आ अन्ततः गद्दीनसीन होइत अछि ,तकर रोचक रोमांचक वर्णन अछि. नेनाक उत्सुकताकें बढबैत कथा चरमधरि जायत अछि.अनुवाद सुन्दर अछि. एहिमे बच्चेसं भगवानक प्रति आस्था देखाओल गेल अछि.        
          पत्रिका ====एम्हर नव कलेवरमे आकर्षक रूप-सज्जाक संग नचिकेताक संपादनमे कोलकातासं ‘’मिथिला दर्शन’’ नामक  द्वैमासिक पत्रिका  प्रकाशित भरहल अछि .ताहू मे नेना-भुटकानामसं बाल स्तम्भ अछि . नचिकेताक कथा -उकरू काकाक उनटा पुरान, डॉ.अणिमा सिंहक शिशु गीत,जीवकान्तक लिख रे सोनू ,रामलोचन ठाकुरक अटकन मटकन ,करिया झुम्मरी ,चेत कबड्डी ,हुक्कालोली ,अप्पन गाम, ऋषि वशिष्टक कथा ने घरक ने घाटक, आदि प्रमुख रचना थिक.एकर मुख्य आकर्षण वर्गपहेली थिक, जे नेना लोकनिकें मनोरंजनक संग ज्ञानवर्धन सेहो करैत अछि. कुमार राधारमण धन्यवादक पात्र छथि, जे ओ नेनालोकनिक जिज्ञासा कें बुझलनि आ ओहि अनुरूप वर्ग पहेली कें रखलनि. पत्रिकाक छपाई सफाई अत्यंत उच्चकोटिक अछि ,जे नेनाकें आकर्षित करैत अछि.
          नेपालक श्री रामानन्द युवा क्लव ,जनकपुरधामसं सेहो एक गोट पत्रिका प्रकाशित भेल अछि ,जकर नाम –‘मैथिली चौपाड़िअछि. एहू मे उच्चस्तरीय बाल रचना प्रकाशित होइ़त रहैत अछि.  
                      बाल साहित्य एतबे किन्नहुं नहि अछि. एहिसं कतोक बेसी अछि .हमरा जे तत्काल उपलब्ध भसकल तकर मात्र सूचना टा देल अछि .नेनालोकनिकें पोथीओ किनबाक अभ्यास लगयबाक चाही . ई काज नीक जकाँ अभिभावके कसकैत छथि. ई संतोषक बात थिक जे मैथिलीमे किछु नवागन्तुक कवि साहित्यकार शिशु साहित्यक निर्माणमे सफल भेलाह अछि .परन्तु हुनक संख्या कम अछि .एहिमे आओर विकासक आवश्यकता अछि .अंत में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोरक एहि कथन सं अपन बात समाप्त करचाहैत छी .ओ कहैत छथि -----‘’बालसाहित्यक सृजन सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कर्म थिक .यदि पैघ लेल लिखवला साहित्यकार नेनाक लेल नहि लिखलनि ,ओहिसँ पैघ अभागल आर के होयत जे ओ अपन नेनपन कें फेर सं जीवि सकबाक सुअवसर गमा देलनि ?’’

सन्दर्भ संकेत
१.      इजोत-ले.कर्नल मायानाथ झा ,प्र.-अंतिका प्रकाशन ,दरभंगा ,प्र.सं.-२०११. भूमिका भीमनाथ झा पृ-७
२.      दहीक खुइंचा श्री चंद्रनाथ मिश्र अमर’, प्र.-नवरत्न गोष्ठी ,प्र.सं.-२००७, दरभंगा, पृ.६९ .
३.      मैथिली लोककथा रामलोचन ठाकुर ,प्र.-अरुणोदय प्रकाशन ,कोलकाता, दो.सं.-२००६. सन्दर्भ कथा .
४.      पिलपिलहा गाछ श्री मुरलीधर झा ,प्र.-मिथिला रिसर्च सोसाइटी,लहेरियासराय, प्र.सं.-२०१०,भूमिका- डॉ.रामदेव झा पृ -८ . 
         मैथिली बाल-साहित्यक स्थिति ओ अपेक्षा सम्पादक.डॉ.सत्य नारायण मेहता .प्र.-चेतना समिति ,पटना ,प्र.सं-२०११, लेख-मैथिली-बाल-काव्यधारा प्रो. प्रेमशंकर सिंह पृ.-१२.
६. गाछ झूल-झूल-जीवकांत, प्र.-चतुरंग प्रकशन ,बेगुसराय ,प्र.सं.-२००४.पृ.-३५.
७. छाह सोहओन जीवकांत, प्र.-शेखर प्रकशन,पटना,प्र.सं.-२००६, पृ.-१८.
८. तत्रैव-भूमिका-पंडित गोविन्द झा
९. खिखिरक बीअरि- जीवकांत, प्र.-किसुन संकल्प लोक ,सुपौल प्र.सं.-२००७, पृ.-३७.
१०. हमर अठन्नी खसलइ वनमे जीवकांत,प्र,-जखन तखन,दरभंगा, प्र.सं.-२००९, भूमिका-भीमनाथ झा
११. प्रलाप-गोविन्द झा ,प्र.-नंदन प्रकाशन ,पटना,प्र.सं.-२००१,पृ.-६३.
१२. ठाँहि-पठाँहि श्री चंद्र नाथ मिश्र अमर’,प्र.-नवरत्न गोष्ठी ,दरभंगा,प्र.सं.-२००१. १०९.
१३. कुरुक्षेत्रम अन्तर्मनक सं.-गजेन्द्र ठाकुर पृ.-७.१२१.
१४. कालजयी डॉ.हरिप्रसाद वर्मा ,प्र.-हरिप्रभा ,दरभंगा. पृ.-१८.

 
डॉ॰ शशिधर कुमर विदेह                              
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,


रौदी दाही
(बाल कविता)



 विदेह मिथिला  केर  धरती,
अजबहि एक्कर खिस्सा यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


देखू   सूरज   माथ  चढ़ै  अछि ।
माथ सँ टप - टप घाम चुबै अछि ।
धरती जरइत अछि  धह - धह कऽ,
बरखा  दाइ   निपत्ता  यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


रस्तेँ   पएरेँ,    धूर    उड़ैए ।
कुक्कुरहु  हकमए,  छाँह  तकैए ।
कोन   दैत्य   केर  पहरा  पड़लै,
पोखरि सूखल   खत्ता यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


जोतल  खेत  पड़ल अछि परती ।
दमकल केर अछि बाढ़ल चलती ।
दमकल केर सेहो दम अछि निकलल,
जड़ि गेल बीया  कत्ता  यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


पानि पतालहि धँसैत गेल अछि ।
कऽल ईनारहु भँसकि गेल अछि ।
सूतल   इन्द्रदेव   केँ   मनबथि,
झिझिया खेलथि  धीया यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


बरखा बरिसल,  लोक नचैतछि ।
हऽर - बरद आ बीया तकैतछि ।
जहिना - तहिना, जतबा - जे हो,
धनरोपनी भेल  बढ़िञा यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


बरखा झर झर बरसि रहल अछि ।
हृदय लोक केर  हहरि  रहल अछि ।
इन्द्रक कोप,  की  सभ मेहनति केँ,
करत   फेर  बेपत्ता  यौ  ?
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


कोशी  उमरल,  कमला  उफनल ।
बागमती गण्डक  सेहो  चतरल ।
सहमि  गेल   हँसइत   जिनगी,
की करतीह कोसी मैय्या यौ ?
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


बान्ह टुटल कत धार फुटल नव ।
भाँसि दहायल, जलमज्जित सभ ।
लोक   मरैए,   हक्कन   कनैए,
गामक गाम  निपत्ता यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com  पर पठाउ।


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी  धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आसर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आघोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आयुवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आनेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आऔषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आमित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽबिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1 to 8.3 MAITHILI LITERATURE IN ENGLISH



विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन  

Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
English to Maithili
Maithili to English

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विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली २.मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

१.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.१. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक
  उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, , , न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण र् हजकाँ होइत अछि। अतः जतऽ र् हक उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आन ठाम खाली ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्द सभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहि सभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु क उच्चारण जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएबला शब्द सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, यावत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमे सँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़गेलाह, लेल, उठपड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग) स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ) वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ) क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च) क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटि कऽ दोसर ठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु (माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्द सभमे ई निअम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्द सभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषा सम्बन्धी निअम अनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरण सम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्ष सभकेँ समेटि कऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनीकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽबला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषी पर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़ि रहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषता सभ कुण्ठित नहि होइक, ताहू दिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

१.२. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

१. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि
, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर
, तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन
, अखनि, एखेन, अखनी
ठिमा
, ठिना, ठमा
जेकर
, तेकर
तिनकर। (वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ
, अहि, ए।

२. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैकल्पिकतया अपनाओल जाय: भऽ गेल
, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। करगेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

३. प्राचीन मैथिलीक
न्हध्वनिक स्थानमे लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

४.
तथा ततय लिखल जाय जतस्पष्टतः अइतथा अउसदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

५. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह
, सैह, इएह, ओऐह, लैह तथा दैह।

६. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे
के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

७. स्वतंत्र ह्रस्व
वा प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ वा लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

८. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे
ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

९. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव
लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

१०. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ
, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। मेमे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। क वैकल्पिक रूप केरराखल जा सकैत अछि।

११. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद
कयवा कएअव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

१२. माँग
, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

१३. अर्द्ध
ओ अर्द्ध क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ’ , ‘’, तथा क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

१४. हलंत चिह्न निअमतः लगाओल जाय
, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

१५. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क
लिखल जाय, हटा कनहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

१६. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

१७. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

१८. समस्त पद सटा क
लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ ,  हटा कनहि।

१९. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

२०. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

२१.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा
' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

  २. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
२.१. उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-   
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग
गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथि- छ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ऐ सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा ऐमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री  रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- ऐ लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव  http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ / कऽ हटा कऽ। ऐमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना
छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नै। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए-
रहै मुदा सकैए (उच्चारण सकै-ए)।
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा। पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो ऐ तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- (उच्चारण संजोगने)
केँ/  कऽ
केर- (
केर क प्रयोग गद्यमे नै करू , पद्यमे कऽ सकै छी। )
क (जेना रामक)
–रामक आ संगे (उच्चारण राम के /  राम कऽ सेहो)
सँ- सऽ (उच्चारण)
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नै। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- (उच्चारण राम सऽ)  रामकेँ- (उच्चारण राम कऽ/ राम के सेहो)।

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ , तऽ , , केर (गद्यमे) एे चारू शब्द सबहक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना, के कहलक? विभक्ति क बदला एकर प्रयोग अवांछित।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ, नइं ऐ सभक उच्चारण आ लेखन - नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नै) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नै- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नै)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नै)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नै)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/ पोछै लेल/ पोछए लेल
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन) पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नै)
ओइ/ ओहि
ओहिले/
ओहि लेल/ ओही लऽ
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक/ (देखिऔक नै- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ / जेकाँ
तँइ/ तैँ/
होएत / हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ/ नै
सौँसे/ सौंसे
बड़ /
बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि), मुदा गाइक दूध (गाएक दूध नै।)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलौं/ समझलौं/ बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नै)
होइन/ होनि
जाइन (जानि नै, जेना देल जाइन) मुदा जानि-बूझि (अर्थ परिव्र्तन)
पइठ/ जाइठ
आउ/ जाउ/ आऊ/ जाऊ
मे, केँ, सँ, पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेसी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ। जेना ऐमे सँ ।
एकटा , दूटा (मुदा कए टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नै। आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नै (जेना दिअ
,/ दिय’ , ’, आ नै )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एतए सेहो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नै दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे/ ऐमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ, नै)
सँ ( सऽ स नै)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
 तै/तइ जेना- तै दुआरे/ तइमे/ तइले
जै/जइ जेना- जै कारण/ जइसँ/ जइले
ऐ/अइ जेना- ऐ कारण/ ऐसँ/ अइले/ मुदा एकर एकटा खास प्रयोग- लालति‍ कतेक दि‍नसँ कहैत रहैत अइ
लै/लइ जेना लैसँ/ लइले/ लै दुआरे
लहँ/ लौं

गेलौं/ लेलौं/ लेलँह/ गेलहुँ/ लेलहुँ/ लेलँ
जइ/ जाहि‍/ जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/
अइ (वाक्यक अंतमे ग्राह्य) /
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/ जीब 
भलेहीं/ भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/ गै 
छनि‍/ छन्‍हि ...
समए शब्‍दक संग जखन कोनो वि‍भक्‍ति‍ जुटै छै तखन समै जना समैपर इत्‍यादि‍। असगरमे हृदए आ वि‍भक्‍ति‍ जुटने हृदे जना हृदेसँ, हृदेमे इत्‍यादि‍।  
जइ/ जाहि‍/
जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/ अइ/
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/
जीब 
भले/ भलेहीं/
भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/
गै 
छनि‍/ छन्‍हि‍
चुकल अछि/ गेल गछि
२.२. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
नीचाँक सूचीमे देल विकल्पमेसँ लैंगुएज एडीटर द्वारा कोन रूप चुनल जेबाक चाही:
बोल्ड कएल रूप ग्राह्य:  
१.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
२. आ’/आऽ
३. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
४. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए
गेल
५. कर’ गेलाह/करऽ
गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
६.
लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
७. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करैबला/क’र’ बला /
करैवाली
८. बला वला (पुरूष), वाली (स्‍त्री) ९
.
आङ्ल आंग्ल
१०. प्रायः प्रायह
११. दुःख दुख १
२. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
१३. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
१४.
देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
१५. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
१६. चलैत/दैत चलति/दैति
१७. एखनो
अखनो
१८.
बढ़नि‍ बढ़इन बढ़न्हि
१९. ओ’/ओऽ(सर्वनाम)
२०
. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
२१. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
२२.
जे जे’/जेऽ २३. ना-नुकुर ना-नुकर
२४. केलन्हि/केलनि‍/कयलन्हि
२५. तखनतँ/ तखन तँ
२६. जा
रहल/जाय रहल/जाए रहल
२७. निकलय/निकलए
लागल/ लगल बहराय/ बहराए लागल/ लगल निकल’/बहरै लागल
२८. ओतय/ जतय जत’/ ओत’/ जतए/ ओतए
२९.
की फूरल जे कि फूरल जे
३०. जे जे’/जेऽ
३१. कूदि / यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/
यादि (मोन)
३२. इहो/ ओहो
३३.
हँसए/ हँसय हँसऽ
३४. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/ नौ वा दस
३५. सासु-ससुर सास-ससुर
३६. छह/ सात छ/छः/सात
३७.
की  की’/ कीऽ (दीर्घीकारान्तमे ऽ वर्जित)
३८. जबाब जवाब
३९. करएताह/ करेताह करयताह
४०. दलान दिशि दलान दिश/दलान दिस
४१
. गेलाह गएलाह/गयलाह
४२. किछु आर/ किछु और/ किछ आर
४३. जाइ छल/ जाइत छल जाति छल/जैत छल
४४. पहुँचि/ भेट जाइत छल/ भेट जाइ छलए पहुँच/ भेटि‍ जाइत छल
४५.
जबान (युवा)/ जवान(फौजी)
४६. लय/ लए ’/ कऽ/ लए कए / लऽ कऽ/ लऽ कए
४७. ल’/लऽ कय/
कए
४८. एखन / एखने / अखन / अखने
४९.
अहींकेँ अहीँकेँ
५०. गहींर गहीँर
५१.
धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
५२. जेकाँ जेँकाँ/
जकाँ
५३. तहिना तेहिना
५४. एकर अकर
५५. बहिनउ बहनोइ
५६. बहिन बहिनि
५७. बहिन-बहिनोइ
बहिन-बहनउ
५८. नहि/ नै
५९. करबा / करबाय/ करबाए
६०. तँ/ त ऽ तय/तए
६१. भैयारी मे छोट-भाए/भै/, जेठ-भाय/भाइ,
६२. गि‍नतीमे दू भाइ/भाए/भाँइ  
६३. ई पोथी दू भाइक/ भाँइ/ भाए/ लेल। यावत जावत
६४. माय मै / माए मुदा माइक ममता
६५. देन्हि/ दइन दनि‍/ दएन्हि/ दयन्हि दन्हि/ दैन्हि
६६. द’/ दऽ/ दए
६७. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
६८. तका कए तकाय तकाए
६९. पैरे (on foot) पएरे  कएक/ कैक
७०.
ताहुमे/ ताहूमे
 ७१.
पुत्रीक
७२.
बजा कय/ कए / कऽ
७३. बननाय/बननाइ
७४. कोला
७५.
दिनुका दिनका
७६.
ततहिसँ
७७. गरबओलन्हि/ गरबौलनि‍/
 रबेलन्हि/ गरबेलनि‍
७८. बालु बालू
७९.
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
८०. जे जे’
८१
. से/ के से’/के’
८२. एखुनका अखनुका
८३. भुमिहार भूमिहार
८४. सुग्गर
/ सुगरक/ सूगर
८५. झठहाक झटहाक ८६.
छूबि
८७. करइयो/ओ करैयो ने देलक /करियौ-करइयौ
८८. पुबारि
पुबाइ
८९. झगड़ा-झाँटी
झगड़ा-झाँटि
९०. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
९१. खेलएबाक
९२. खेलेबाक
९३. लगा
९४. होए- होहोअए
९५. बुझल बूझल
९६.
बूझल (संबोधन अर्थमे)
९७. यैह यएह / इएह/ सैह/ सएह
९८. तातिल
९९. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ/ एनाइ
१००. निन्न- निन्द
१०१.
बिनु बिन
१०२. जाए जाइ
१०३.
जाइ (in different sense)-last word of sentence
१०४. छत पर आबि जाइ
१०५.
ने
१०६. खेलाए (play) –खेलाइ
१०७. शिकाइत- शिकायत
१०८.
ढप- ढ़प
१०९
. पढ़- पढ
११०. कनिए/ कनिये कनिञे
१११. राकस- राकश
११२. होए/ होय होइ
११३. अउरदा-
औरदा
११४. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
११५. बुझएलन्हि/बुझेलनि‍/ बुझयलन्हि (understood himself)
११६. चलि- चल/ चलि‍ गेल
११७. खधाइ- खधाय
११८.
मोन पाड़लखिन्ह/ मोन पाड़लखि‍न/ मोन पारलखिन्ह
११९. कैक- कएक- कइएक
१२०.
लग ल’ग 
१२१. जरेनाइ
१२२. जरौनाइ जरओनाइ- जरएनाइ/
जरेनाइ
१२३. होइत
१२४.
गरबेलन्हि/ गरबेलनि‍ गरबौलन्हि/ गरबौलनि‍
१२५.
चिखैत- (to test)चिखइत
१२६. करइयो (willing to do) करैयो
१२७. जेकरा- जकरा
१२८. तकरा- तेकरा
१२९.
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
१३०. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/ करबेलहुँ करबेलौं
१३१.
हारिक (उच्चारण हाइरक)
१३२. ओजन वजन आफसोच/ अफसोस कागत/ कागच/ कागज
१३३. आधे भाग/ आध-भागे
१३४. पिचा / पिचाय/पिचाए
१३५. नञ/ ने
१३६. बच्चा नञ
(ने) पिचा जाय
१३७. तखन ने (नञ) कहैत अछि। कहै/ सुनै/ देखै छल मुदा कहैत-कहैत/ सुनैत-सुनैत/ देखैत-देखैत
१३८.
कतेक गोटे/ कताक गोटे
१३९. कमाइ-धमाइ/ कमाई- धमाई
१४०
. लग ल’ग
१४१. खेलाइ (for playing)
१४२.
छथिन्ह/ छथिन
१४३.
होइत होइ
१४४. क्यो कियो / केओ
१४५.
केश (hair)
१४६.
केस (court-case)
१४७
. बननाइ/ बननाय/ बननाए
१४८. जरेनाइ
१४९. कुरसी कुर्सी
१५०. चरचा चर्चा
१५१. कर्म करम
१५२. डुबाबए/ डुबाबै/ डुमाबै डुमाबय/ डुमाबए
१५३. एखुनका/
अखुनका
१५४. लए/ लिअए (वाक्यक अंतिम शब्द)- लऽ
१५५. कएलक/
केलक
५६. गरमी गर्मी
१५७
. वरदी वर्दी
१५८. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
१५९. एनाइ-गेनाइ
१६०.
तेना ने घेरलन्हि/ तेना ने घेरलनि‍
१६१. नञि / नै
१६२.
डरो ड’रो
१६३. कतहु/ कतौ कहीं
१६४. उमरिगर-उमेरगर उमरगर
१६५. भरिगर
१६६. धोल/धोअल धोएल
१६७. गप/गप्प
१६८.
के के’
१६९. दरबज्जा/ दरबजा
१७०. ठाम
१७१.
धरि तक
१७२.
घूरि लौटि
१७३. थोरबेक
१७४. बड्ड
१७५. तोँ/ तू
१७६. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
१७७. तोँही / तोँहि
१७८.
करबाइए करबाइये
१७९. एकेटा
१८०. करितथि /करतथि
 १८१.
पहुँचि/ पहुँच
१८२. राखलन्हि रखलन्हि/ रखलनि‍
१८३.
लगलन्हि/ लगलनि‍ लागलन्हि
१८४.
सुनि (उच्चारण सुइन)
१८५. अछि (उच्चारण अइछ)
१८६. एलथि गेलथि
१८७. बितओने/ बि‍तौने/
बितेने
१८८. करबओलन्हि/ करबौलनि‍/
करेलखिन्ह/ करेलखि‍न
१८९. करएलन्हि/ करेलनि‍
१९०.
आकि/ कि
१९१. पहुँचि/
पहुँच
१९२. बत्ती जराय/ जराए जरा (आगि लगा)
१९३.
से से’
१९४.
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
१९५. फेल फैल
१९६. फइल(spacious) फैल
१९७. होयतन्हि/ होएतन्हि/ होएतनि‍/हेतनि‍/ हेतन्हि
१९८. हाथ मटिआएब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटियाएब
१९९. फेका फेंका
२००. देखाए देखा
२०१. देखाबए
२०२. सत्तरि सत्तर
२०३.
साहेब साहब
२०४.गेलैन्ह/ गेलन्हि/ गेलनि‍
२०५. हेबाक/ होएबाक
२०६.केलो/ कएलहुँ/केलौं/ केलुँ
२०७. किछु न किछु/
किछु ने किछु
२०८.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ/ घुमेलौं
२०९. एलाक/ अएलाक
२१०. अः/ अह
२११.लय/
लए (अर्थ-परिवर्त्तन) २१२.कनीक/ कनेक
२१३.सबहक/ सभक
२१४.मिलाऽ/ मिला
२१५.कऽ/
२१६.जाऽ/
जा
२१७.आऽ/
२१८.भऽ /भ’ ( फॉन्टक कमीक द्योतक)
२१९.निअम/ नियम
२२०
.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२२१.पहिल अक्षर ढ/ बादक/ बीचक ढ़
२२२.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
२२३.कहिं/ कहीं
२२४.तँइ/
तैं / तइँ
२२५.नँइ/ नइँ/  नञि/ नहि/नै
२२६.है/ हए / एलीहेँ/
२२७.छञि/ छै/ छैक /छइ
२२८.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२२९. (come)/ आऽ(conjunction)
२३०.
आ (conjunction)/ आऽ(come)
२३१.कुनो/ कोनो, कोना/केना
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि-गेलनि‍
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ-कएलहुँ/केलौं
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/आ। आब'-आब' /आबह-आबह
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ- घुमेलाें
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/ होन्हि/
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५
.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौं
/ ज्योँ/ जँ/
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो/ कोनहुँ/
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कोना/ केना/ कन्‍ना/कना
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलनि‍/
गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि/ केलनि‍/
२५८.लय/ लए/ लएह (अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक/कनी-मनी
२६०.पठेलन्हि‍ पठेलनि‍/ पठेलइन/ पपठओलन्हि/ पठबौलनि‍/
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नै/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह (बिकारी) क प्रयोग उचित
२६५.केर (पद्यमे ग्राह्य) / -/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत/
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१
.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक/पि‍येबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह/ औताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जइ/ जै/
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जअए/ जए (लालति‍ जाए लगलीह।)
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै/ तइ
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलौं/ कहै छलौं- अहिना चलैत/ पढ़ैत
(पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित) - आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझै छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/ सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/ बिन। रातिक/ रातुक बुझै आ बुझैत केर अपन-अपन जगहपर प्रयोग समीचीन अछि‍। बुझैत-बुझैत आब बुझलि‍ऐ। हमहूँ बुझै छी।
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट/ भेँट
२९१.
खन/ खीन/  खुना (भोर खन/ भोर खीन)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/ गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नै अछि। वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८
.वाली/ (बदलैवाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
३००. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (
भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६. (come)/ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, यथासंभव बीचमे नै।
३०९.कहैत/ कहै
३१०.
रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच/ कागत
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

Festivals of Mithila
DATE-LIST (year- 2011-12)
(१४१९ साल)
Marriage Days:
Nov.2011- 20,21,23,25,27,30
Dec.2011- 1,5,9
January 2012- 18,19,20,23,25,27,29
Feb.2012- 2,3,8,9,10,16,17,19,23,24,29
March 2012- 1,8,9,12
April 2012- 15,16,18,25,26
June 2012- 8,13,24,25,28,29
Upanayana Days:
February 2012- 2,3,24,26
March 2012- 4
April 2012- 1,2,26
June 2012- 22
Dviragaman Din:
November 2011- 27,30
December 2011- 1,2,5,7,9,12
February 2012- 22,23,24,26,27,29
March 2012- 1,2,4,5,9,11,12
April 2012- 23,25,26,29
May 2012- 2,3,4,6,7
Mundan Din:
December 2011- 1,5
January 201225,26,30
March 2012- 12
April 2012- 26
May 2012- 23,25,31
June 2012- 8,21,22,29

FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-20 July
Madhushravani- 2 August
Nag Panchami- 4 August
Raksha Bandhan- 13 Aug
Krishnastami- 21 August
Kushi Amavasya / Somvari Vrat- 29 August
Hartalika Teej- 31 August
ChauthChandra-1 September
Karma Dharma Ekadashi-8 September
Indra Pooja Aarambh- 9 September
Anant Caturdashi- 11 Sep
Agastyarghadaan- 12 Sep
Pitri Paksha begins- 13 Sep
Mahalaya Aarambh- 13 September
Vishwakarma Pooja- 17 September
Jimootavahan Vrata/ Jitia-20 September
Matri Navami- 21September
Kalashsthapan- 28 September
Belnauti- 2 October
Patrika Pravesh- 3 October
Mahastami- 4 October
Maha Navami - 5 October
Vijaya Dashami- 6 October
Kojagara- 11 Oct
Dhanteras- 24 October
Diyabati, shyama pooja-26 October
Annakoota/ Govardhana Pooja-27  October
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-28 October
Chhathi-kharna -31 October
Chhathi- sayankalik arghya - 1 November
Devotthan Ekadashi- 17 November
Sama poojarambh- 2 November
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 10 Nov
ravivratarambh- 27 November
Navanna parvan- 29 November
Vivaha Panchmi- 29 November
Makara/ Teela Sankranti-15 Jan
Naraknivaran chaturdashi- 21 January
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 28 January
Achla Saptmi- 30 January
Mahashivaratri-20 February
Holikadahan-Fagua-7 March
Holi-9 Mar
Varuni Yoga-20 March
Chaiti  navaratrarambh- 23 March
Chaiti Chhathi vrata-29 March
Ram Navami- 1 April
Mesha Sankranti-Satuani-13 April
Jurishital-14 April
Akshaya Tritiya-24 April
Ravi Brat Ant- 29 April
Janaki Navami- 30 April
Vat Savitri-barasait- 20 May
Ganga Dashhara-30 May
Somavati Amavasya Vrata- 18 June
Jagannath Rath Yatra- 21 June
Hari Sayan Ekadashi- 30 June
Aashadhi Guru Poornima-3 Jul


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६.विदेह मैथिली क्विज
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१७. विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका वीडियो आर्काइव
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१९. मैथिल आर मिथिला (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
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३४. विहनि कथा
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३५. मैथिली कविता
http://maithili-kavita.blogspot.in/
३६. मैथिली कथा
http://maithili-katha.blogspot.in/
३७.मैथिली समालोचना
http://maithili-samalochna.blogspot.in/



 महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक  निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइट http://www.shruti-publication.com/ पर
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे

कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर

 

गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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विदेह: सदेह : १: २: ३: ४ तिरहुता : देवनागरी "विदेह" क, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिका (http://www.videha.co.in/) क चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह:सदेह:१: २: ३: ४
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर।
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२. संदेश-

[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]

१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।  
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन  भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। विदेहनिरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे।  मुदा अहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण-  श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)...   अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई। 
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधन जे विरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रश‍ंसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनकविदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद; कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद। 
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित विदेहकुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनकविलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मे  समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा "विनोद": गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने छल। शुभकामना। अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार कश्यप: गजेन्द्र ठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि बएसमे कऽ गेल छी ताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७८.श्री मणिकान्त दास: अहाँक मैथिलीक कार्यक प्रशंसा लेल शब्द नहि भेटैत अछि। अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सम्पूर्ण रूपेँ पढ़ि गेलहुँ। त्वञ्चाहञ्च बड्ड नीक लागल।
 ७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।

विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

(c)२००४-१२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: वनीता कुमारी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल आ प्रियंका झा। सम्पादक- अनुवाद विभाग- विनीत उत्पल।

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