ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १०९ म अंक ०१ जुलाइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५५ अंक १०९)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.जगदानन्द झा 'मनु'
३.८.दमन कुमार झा
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान
अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ
धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन
कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला
लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
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ऐ बेर मूल
पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी
उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting!
श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा”
(कविता-संग्रह) 12.73%
श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक
अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक) 10.3%
श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट”
(उपन्यास) 6.36%
श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति”
(कथा संग्रह) 4.85%
श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक) 5.76%
श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत
बिगड़ैत” (कथा-संग्रह) 5.15%
श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह) 5.76%
श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त
जीवन (आत्मकथा) 8.48%
श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ
आ बलचन्दा” (दूटा नाटक) 7.27%
श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह) 5.45%
श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) 5.15%
श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा
घैल” (नाटक) 8.18%
श्रीमती नीता झाक “देश-काल”
(कथा-संग्रह) 6.06%
श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि
(गजल संग्रह) 6.97%
Other:
1.52%
ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस”
(कविता संग्रह) 28.67%
श्री विनीत उत्पलक “हम
पुछैत छी” (कविता संग्रह) 7.69%
श्रीमती कामिनीक “समयसँ
सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह) 6.29%
श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती
वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 4.9%
श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल
संग्रह) 18.88%
श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा
नहि” (कविता संग्रह) 6.29%
श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै
(कविता संग्रह) 7.69%
श्री आदि यायावरक “भोथर
पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह) 5.59%
श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी”
(कविता संग्रह) 12.59%
Other:
1.4%
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी,
दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
Thank you for voting!
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास
श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर) 33.33%
श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन"
(कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो) 13.98%
श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास
श्री दिव्येन्दु पालित) 11.83%
श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ"
(नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा) 15.05%
श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली
गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत) 12.9%
श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी
शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास) 11.83%
Other:
1.08%
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य
अकादेमी,
दिल्ली
Thank you for voting!
श्री राजनन्दन लाल दास 53.33%
श्री डॉ. अमरेन्द्र 26.67%
श्री चन्द्रभानु सिंह 18.67%
Other:
1.33%
1.संपादकीय
१
१
जे आर्य छथि
से भारतक पच्छिम भागसँ मिथिलामे एलाह, आ हुनका सभक एबासँ पूर्व वेदक किछु
अंश विद्यमान छल, तेँ ने बहुत रास शब्द जे मैथिलीमे अछि,
बहुत रास उच्चारण जे मैथिलीमे अछि ओ वैदिक संस्कृतमे अछि,
मुदा लौकिक संस्कृतमे नै अछि। अविद्या, कर्मसिद्धान्त,
जन्म आ पुनर्जन्मक आवाजाही आ मोक्ष ई सभ अनार्यसँ आर्यकेँ भेटलै।
तेँ ने उपनिषदमे मोक्ष प्राप्तिक मार्ग छै, स्वर्ग
प्राप्तिक नै। मोक्ष भेटत कोना? यज्ञ केलासँ? नै, ई भेटत ज्ञानसँ आ मनन-चिन्तन आ समाधिसँ।
राजा जनकक संरक्षणमे याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक उपनिषदक तिरहुतक अनार्य क्षेत्रमे
रचना केलन्हि।
वाचस्पति
मिश्र सांख्यकारिकाक सन्तावनम सूत्रक व्याख्या करैत कहै छथि जे की ई कहि सकै छी जे
अचेतन दूध केर पोषणसँ परु पोसाइए आ अचेतन प्रकृतिक संचालनसँ जीवकेँ मुक्तिक ज्ञान
भेटैए?
ईश्वर तँ स्वयंमे पूर्ण छथि तँ ओ कोन उद्देश्ये विश्वक सृष्टि
करताह आ जीव लेल जँ ओ सृष्टि करताह तँ सृष्टिक बादे तँ जीव बन्हाइए आ सृष्टिसँ
पूर्व तँ बन्हेबाक प्रश्ने नै अछि, तखन जीवक प्रति कथीक
दया? से प्रकृति द्वारा सृष्टि होइए आ जीव अपन प्रयाससँ
अपवर्गक प्राप्ति करै छथि। आ विवेकसँ होइए प्रलय। से ईश्वरवाद नै निरीश्वरवाद अछि
वाचस्पतिक व्याख्या। प्रकृति संचालनमे जँ ईश्वर भाग लै छथि तँ ओ चेतन प्रक्रिया
हएत जे कोनो उद्देश्येसँ हएत आ तकर कोनो खगता ईश्वरकेँ छन्हिये नै। न्यायसूत्रक
रचना केनिहार मिथिलाक गौतम सोलह पदार्थक ज्ञानसँ जीवक निःश्रेयस प्राप्त करबाक
चर्च करै छथि, मुदा ऐ सभमे ईश्वरक कतौ चर्च नै अछि जे
हुनको द्वारा मुक्ति सम्भव अछि। वैशेषिक सूत्र कहैए जे वेद विद्वान लोकनि द्वारा
रचल गेल अछि नै कि ईश्वर द्वारा। कुमारिल भट्ट कहै छथि जे सृष्टिक पूर्व ईश्वरक
विषयमे कोनो विश्वसनीय चर्चा असम्भव अछि।
२
विद्यापति पुरस्कार कोषक पुरस्कार- मैथिली भाषा, साहित्य, कला संस्कृतिक लेल नेपाल सरकार द्वारा स्थापित नेपालमे सभसँ बड़का राशिक
पुरस्कार।
विद्यापति पुरस्कार कोषक लेल विभिन्न पाँच विद्यामे
२०१२ (२०६८ कातिक १८ गते नेपाल सरकार एक करोड रुपैयाक विद्यापति पुरस्कार कोषक स्थापना
कएने छल, तकरा बाद र्इ पुरस्कार पहिल वेर देल जा रहल अछि।)
दु लाखक नेपाल विद्यापति मैथिली भाषा साहित्य
पुरस्कार मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमलकेँ।
एक लाखक नेपाल विद्यापति मैथिली कला संस्कृति
पुरस्कार शहीद रंजु झाकेँ
एक लाखक नेपाल विद्यापति मैथिली अनुसन्धान पुरस्कार
डा. रामावतार यादवकेँ
एक लाखक नेपाल विद्यापति मैथिली पाण्डुलिपी पुरस्कार साहित्यकार
परमेश्वर कापडिकेँ
एक लाखक नेपाल विद्यापति मैथिली अनुबाद पुरस्कार डा. रामदयाल
राकेशकेँ
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
जगदीश प्रसाद मण्डल
लघुकथा-परदेशी बेटी
उबानि होइते घटक काका दाँत पीसैत काकीपर बिगड़ैत
घर छोड़ि विदा भेला। मनमे उठलनि जे एहेन पड़ाइन पड़ा जाइ जे दोहरा कऽ ने घरक
मुँह देखी आ ने घरेवालीक। मुदा ओहन क्रोधे आकि हँसऽबे कि जे दोसरपर नै बिसाए।
घरक बात (पति-पत्नीक बीचक) तँए अनका कहबो उचित नै। दुनियाँमे केकरो कोइ ने कहै
छै। भलहिं बिनु कहनौ दुनियाँ किअए ने बुझैत होउ। मने मन घटक काकाक पकिया िनर्णए
भऽ गेलनि। लोकोकेँ कोन मतलब जे बताह जकाँ अनेरो अनका देखि हँसि देब अाकि बिनु
मतलबोक घंटा भरि सोखर पसारि देब। आन जकाँ नै जे आंगनसँ निकलि डेढ़ियोपर सँ
पाछू घूमि-घूमि देखैत, देखबो केना करितथि? कोनो कि अदी-गुदी विचारक
चोट लागल छन्हि, पुरुखे छियाह जे अखनो धरि बरदास
केने छथि नै तँ मूसक दबाइ पीब नेने रहितथि।
एक तँ ओहुना अखन घटक काकाकेँ टोकैक लग्न नै, कारण लगनक समए नै छी, लगनक समैमे ने पतिआनी लागल काज रहै छन्हि कुसमैमे तँ दुनियाँक निअमे
छै जे अपनो लोक पूछैले तैयार नै होइत अछि, घटक काका तँ
सहजहि विदाइ लेनिहार छथि। बिनु रेटक आमदनी। जेहेन मुँह तेहने आमद। नै टोकैक
इहो कारण रहनि जे मध-असरेसक गिरहस्ती चलैत, जते समए
लोक केकरोसँ गप करत तते काल जँ देहे कुरिया लेत तँ ओइसँ बेसी नीक। भगवान केकरो
अधला बना पठबै छथिन, भलहिं रोगे-व्याधि किअए ने होउ।
जँ सभ अधले रहैत तँ किअए कियो देह कुरिअबैले सोनाक सिक्का बना-बना आगूमे रखैत।
ओहिना पैघ शैरीकार कहै छथि-
“हौहटिमे मजा है कि कलकलि में है,
खुदा ने दिया खुजली, कुरियाने में मजा है।”
खैर जे होउ। ओना किसकारक समए रहने देवियो
देवता अखन छुट्टी लऽ लेने छथि, चौरचनक पछाति ज्वाइन करताह। जहिना फुलही थारीमे जते काल दही रहैत
ओते बेसी कसाइन होइत, तहिना घटक काकाक मन कसाइन होइत
जाइत रहनि। जहिना भरल पेटक प्रेम गीतक स्वर आ जरल पेटक प्रेम गीतक स्वरमे
मात्राक भेद होइत तहिना घटक काकाक मनमे उठैत रहनि, जे
आइ धरि कहियो नै उठल रहनि। केना नै उठितनि? सभ दिन
दस गोटेक बीच हँसि-बाजि समए खटियबैत रहला आब जखन शिव लिंग फुल जकाँ वा नारियल-ताड़
जकाँ फड़एबला भेला तँ आनक कोन गप जे जाँघ तर बसैवाली पत्नियो दुतकारि देलकनि। ई
तँ हुनके चाबस्सी होन्हि जे जहर-माहुरक कोन गप जे केकरो लग बजौ नै चाहैत छथि।
कसाइन बीच बिसाइन घटक काकाक मन उठलनि। जिनगी भरि घरे बसबैक काज करैत एलौं
मुदा......?
बेटा प्रेमसँ चाहे बिगड़ि कऽ आकि पड़ा कऽ
परदेश चलि गेल तँ चलि गेल। सबहक बेटी सासुर बास करैए, ओहो करह। मुदा पत्नी तँ पत्नी छी।
जँ घरे नै तँ घरवाली की, आ घरेवाली नै तँ घर केहेन। भाड़ा
घर जँ अपना घर सन होइतै तँ मुसे किअए घरमे घर बनबैत। ओकरो तँ पानिये पाथरसँ ने
जान बँचबैक छै। मुदा किअए? अपन घर कियो अपन विचार अपन
आँट-पेट आ लम्बाइ-चौड़ाइ नापि बनबैत तँए बेसी सुरक्षित होएत। मुदा गणेशजी अपन
वाहनकेँ ई बात ने किअए बुझा देलखिन जे लोकक घरमे जे घर बनबै छेँ, से अपने जोकर बनबिहेँ। जइ भीतपर घर ठाढ़ अछि ओकरे किअए जंजल बना
देइए। जखन भीते-जंजल भऽ जाएत तखन हथियाक झाँट केना बरदास करत। मुदा घर खसत घर बन्हनिहारकेँ
ओ तँ बीलमे अन्नक ढेरीपर अरामसँ पड़ल रहत। अकाससँ धरतीपर घर खसत, मुदा ओ तँ पताल दिस बनौने अछि। किअए ने ओकर जान बँचले रहतै। तइ बीच
घटक काकाक मनमे एकटा घटकैती आबि गेलनि। मन पड़िते मुस्की आबि गेलनि। ठोर
वरदास नै कऽ सकलनि। खापड़िक तीसी जकाँ चनचना उठलनि। कहू जे बेंगबा सन छौड़ाकेँ
इन्द्रक परी सन कन्या केकरा किरतबे भेलै। मुदा कलयुगक उपकार हत्या बराबरि।
जौं से नै तँ जँ ओकरा अपन उपकार मन पाड़ि देबै तँ कि ओ नै कहत जे पाँचो टूक
कपड़ा आ दैछना कथीक लेने रहिऐ। ओ खुशनामा देने रहए आकि काज करैक बोइन। मन घूमि
पत्नीक ओइ बातपर आबि अँटकि गेलनि जे कहू ई केहेन भेल जे मुँह फोड़ि दुसैत कहलनि
जे आगू-पाछू किछु सोचै नै छी आ जहाँ कोसीकातक बकेनमा दूधक दही आ तिलकोरक तरूआ
आगू पड़ैए आकि बुद्धिये बिगड़ि जाइए। जइ परिवार लेल जिनगी भरि झूठ-फूसि
बाजि, नीक-अधला काजक विचार नै केलौं तइ परिवारमे एहेन
गंजन हुअए तँ मनुक्ख केना रहत? खौंझ आरो तेज भेलनि। ओ
(पत्नी) रस्तामे रोड़ा अँटकौनिहार के? दस गाम घूमै छी,
दस लोकमे रहै छी हम आ उपदेश देती ओ? जे
सभ दिन जाँघक निच्चा रहल ओ छड़पि कऽ छातीपर चढ़ि मुक्का देखाओत; एहेन पुरुष हम नै छी। जहिया जे हेतै से हेतै अखन घरसँ नै पड़ाएब। भक्क
खुजलनि तँ देखलनि जे किलोमीटर हटि दोसर टोल लग पहुँचि गेल छी। घूमि कऽ अांगन
केना जाएब? केतबो किछु भेल तँ भेल पुरुष अपन पुरुखपाना
केना छोड़ि देत? नेराओल थूक केना चाटत? मुदा अपने फुरने घुमऽबो केहेन हएत? मरदक बात
वाण समान होइत जे धनुषसँ निकलि गेल निकलि गेल। कहि दुनू हाथक तरहत्थी माथपर
लऽ बैसि रहलाह।
जहिना किसान, बिनु खुरपियोक गाछक जड़ि लग बैसि
चुटकियेसँ खढ़ उपाड़ि कमठौन करए लगैत, तहिना घटक काका
घुमैक ओरियान सोचए लगलाह। मुदा लगले मन तुरुछए लगलनि। ई तँ धोबियो कुकुड़सँ टपब
हएत जे, घरक आ ने घाटक। जँ बलजोरी घरमे रहौ चाहब तँ ओ
(पत्नी) कत्ते मोजर देतीह। मन घुमलनि। हमरो एते नै अगुतेबाक चाहै छल। गल्ती अपनो
भेल। एना जे लोक छोट-छोट बातपर घरसँ पड़ाएत तँ कहियो कुकुड़-बिलाइ जकाँ अपन घर
हेतै। साँझू पहर कऽ जखन लोक बाध-बोनसँ अबैए तखन केकरा घरमे ने हर-हर, खट-खट होइ छै, मुदा कहाँ कियो हमरे जकाँ फूलि
कऽ पड़ा जाइए। जँ एक रत्ती दब-उनार बात पत्नी कहबे केलनि तँ कि होइतै। कोनो कि
जड़ि भीरा कऽ टिक काटि लेलनि। अर्द्धांगिनी छथि,
बाल-बच्चा आ परिवारपर जते अधिकार पतिक होइत तइसँ कम कि पत्नियोक होइत अछि।
बेटा-बेटी तँ दुनूक छी। ई तँ समैक दोख छी जे कखनो गरमी चढ़ा (रौदमे) गरमा दैत अछि
तँ कखनो ठंढा दैत अछि। सझुका झगड़ा राति खसैत-खसैत मेटाइये जाइए किने। आकि
हमरे जकाँ दिन-राति धेने रहब। भोर होइते दुनू परानी घर-अंगनाक काजमे लगि जाइए।
कहाँ एको मिसिया मान-दोख मनमे रखैए। जहिना डिक्शनरीक नवका शब्द अबितो अछि
आ जाइतो अछि तहिना ने घरोमे किछु-ने-किछु अबैत रहैए आ किछु-ने-किछु जाइत
रहैए। मन आगू घुसुकलनि। मन पड़लनि बिआहक दिन? समाजक
बीच सरिआती-बरिआती, तँ हमहीं ने हाथ पकड़ि जिनगी भरि
संगे रहैक वादा केने रही, से कि भेल? जहिना कटही गाड़ी कुमड़क रस्तामे कनी दब-उनार भऽ उनटिये जाइए तँए
कि गाड़ीवान गाड़ी रखनाइये छोड़ि देत। जँ छोड़ि देत तँ आगू केना घुसकत? औगुताइमे एहेन भारी गल्ती नै करक चाही। कोन दुरमतिया चढ़ि गेल जे
एना केलौं। एको रत्ती उम्रोक लेहाज-विचार केलौं। जुआन लोक जकाँ िनर्णए केलौं।
कहू जे आब हमर उमेर अछि जे संगी छोड़ि असकरे रहब। कोनो कि संयासी छी जे दोसर नै
सोहाएत। अपने दिन-राति घीमे डुमल रहब मुदा दोसरकेँ कुत्ता जकाँ पचै नै देब। भरि
दिन शनियाही गुड़-चाउर चिबबैत रहब आ अनका देखबे ने करब। मुदा कतौ जाएब तँ पेट
संगे जाएत। पेटक आगि जेहने परिवारमे तेहने तीर्थ-स्थानमे जगैत अछि। ओकरा तृप्ति
करब आवश्यक होइत। जँ से नै तँ भूखे भजन किअए ने होइत। खाइले के देत? जँ देबो करत तँ एक मुट्ठी देत? एक दिन
खेलासँ जिनगीक भूख मेटाएत। जँ से होइत तँ डिबियो लऽ कऽ तकलापर एकोटा भिखमंगा
नै भेटैत। मन घुमलनि। हारि मानी झगड़ा फड़िआए।
जहिना बाढ़िक तेसरा दिन पानि ठाढ़ भऽ
उनटा-पुनटा दिशा पकड़ए लगैत तहिना घटक काकाक मनमे सेहो भेलनि। अपन विचारक
अनुकूल बात केकरा अधला लगै छै। संयोगो नीक रहलनि। मुदा मनमे खरोच लगलनि। समाजो
तेहेन भऽ गेल अछि जे केकरा के पूछत? जहिना भोजक जएह बारीक मिठाइ पड़सैत अछि सएह माछो-मासु। कहू ई केहेन
भेल। सभ तरहक पनचैती बड़के काका करताह। जमीनोक पनचैती आ दुनू परानियोक झगड़ा
हुनके चाही। जँ जमीनक पनचैती अमीन नै करत, एहिना सभ गुणक
आधार से आदमी नै करत तँ खीर-खिचड़ीमे कोनो भेद नै रहत। एते मनमे रहबे करनि कि
देखिते सुनरलाल कहलकनि-
“भाय सहाएब, अहीं
ऐठाम जाइ छी?”
अहीं ऐठाम जाइ छी सुनि घटक काका औना गेलाह।
अपन ठौर कतए अछि जे जाएत। कि कहबै, भरमे-सरम आँखि मूिन लइ छी जे बूझत हवामे अलिसा गेल छथि। उत्तर नै
पाबि सुनरलाल दोहरा देलकनि-
“भाय सहाएब झखाएल छी, भक्क खोलू।”
अकचकाइत घटक काका बजलाह-
“नै, नै! कनी आँखि लागि गेल। की कहलह?”
सुनरलाल- “घरपर चलू। निचेनसँ बुझा देब। रस्ता-पेराक गप नै छी।”
एक तँ राकश दोसर नौतल। घटक काका हरे-हरे कऽ
घर दिस बिदा भेलाह। मनमे उठलनि जे कोनो विचार दोहराइयो कऽ होइत अछि, किअए ने दुनू परानी मिलि फेरसँ
विचारि लेब। घर दिस विदा होइते घटक काका पुछलखिन-
“गपो शुरू करह। जते भेल रहत ओते तँ
काजे ने भेल रहत?”
छुब्द होइत सुनरलाल बाजल-
“देखिऔ भाय,
बिअाह भेल केकरो आ जहलमे अछि हमर बेटा।”
अकचकाइत घटक भाय बजलाह-
“से कि, से
केना?”
मने-मन महावीरजी केँ गोड़ लगलनि। निसाँस
छोड़ैत, सोचए लगलाह जे
बाप रे एकटा काजमे जँ एना भेल, हम तँ जिनगी भरि इएह
केलौं। खुनी केसमे बेसी दिनक सजा होइ छै। मुदा खुदरो-खुदरी केश मिला तँ ओहूसँ
बेसिआइये जाइ छै। हे भगवान रच्छ रखलह। आबो छोड़ि देबाक चाही। मुदा जइ इंजीनियरकेँ
जइ मशीनक बोध भऽ गेल अछि, जँ मशीनक तकनीक बदलि जाएत तखन
की हएत? दोसर काजक लूरि कहिया भेल जे करब। हे भगवान जनिहह
तूँ।
सुनरलाल कहए लगलनि-
“भैया देखियौ, हमरे बेटा फुलबाक बिआह बंगलोरमे करा देलकै। ओहन-ओहनकेँ गाममे के पूछै
छै। मुदा ट्रन्सपोर्टमे नोकरी भेने दिन-दुनियाँ बदलि गेलै। भषो सीखि लेलक।
अलगरजा कमाइ हुअए लगलै। बी.ए. पास लड़ीक संग बिआह करा देलकै।”
घटक काका- “बी.ए. पास लड़की गछलकै केना?”
सुनरलाल- “केहेन गप करै छी। जखने लोक कमाए-खटाए लगैए तखने ने
सर्टिफिकेटक ओरियान करए लगैए। एम.ए. पासक सर्टिफिकेट कीन लेने अछि।”
घटक काका- “लड़कीबला कतक छिऐ?”
सुनरलाल- “नवटोलीक छिऐ। तीस-पेइतीस बर्ख पहिने गामसँ पड़ा कऽ
गेल। नोकरी करए लगल। ओतै परिवारो रखैए, घरो-दुआर बना
लेलक। अपन इलाकाक जाति बूझि कुटुमैती कऽ लेलक।”
घटक काका- “आब की भेल?”
सुनरलाल- “बिआहक बाद लड़की जोर केलक जे गाम जाएब। एबो कएल। मुदा
जहिना पढ़ल सुग्गा बौक होइत तहिना वेचारीकेँ भऽ गेलै। पनरहे दिनमे नाकोदम भऽ
गेलै। जहिना सासु अल्हरि कहए लगलै तहिना ससुरो माथा ठोकैत। सर-समाजक तँ चर्चे
कोन? ने भाषाक ताल-मेल बैसैत आ ने खाइ-पीबैक वस्तुक।”
घटक काका- “जा, ई तँ भारी जुलुम भेल! तखन की भेलै?”
सुनरलाल- “लड़की पड़ा कऽ दरभंगामे गाड़ी पकड़ि बंगलोर चलि गेल।
हमरा बेटापर केश कऽ देलक। जेलमे पड़ल अछि।”
डेढ़ियापर अबिते घटक काका बजलाह-
“एहेन खच्चरपन्नी गाममे चलतै। अच्छा
कनी ओहू पार्टीक बात बूझि लेब तखन कहबह। अखैन जाह, कनी
हमहूँ औगुताएले छी।”
दरबज्जापर गल-गूल सुनि रेखा आंगनसँ आबि, खरिहानक मेह जकाँ बीचमे आबि ठाढ़
भऽ सोचए लगली जे केहेन पुरुख छथि जे थूक फेकि पड़ाएल रहथि जे घूमि कऽ ऐ घरक
मुँह नै देखब, से सालक कोन गप जे दिनो भरि नै निमाहि
सकलाह। मुदा मन ठमकलनि। सप्पत-किरिया लोककेँ थोड़े टिक पकड़ि उखाड़ै छै,
जँ से उखाड़ितै तँ भरि दिन लोक किअए सभ बातमे जय गंगाजी आकि
माटि उठा-उठा बजैत अछि। जहिना लोक भात-रोटी खाइए तहिना ने सप्पतो-किरिया
खाइक वस्तु भेल। खेलक पचलै फेर खेलक फेर पचलै। रसे-रसे एहेन पचान पचि जाइ छै
जेहन झूठ-सच्चमे पचल अछि सच्च–झूठमे। जँ तुकबन्दी
करैक लूरि भऽ जाए तँ कवि, शायर बनबे करब आ जँ झूठ-सच्च
पचबैक लूरि भऽ गेल तँ वक्ताक के कहए सेसर अनुभवी वक्ता बनबे करब। तहिना तँ हिनको
(पतिक) जिनगी तेहने रहल छन्हि। तहूमे समाज तेहन लाइसेंस दऽ देने छन्हि जे
साले-साल थोड़े रिनुअल करबए पड़तनि, ताजिनगीक लेल बनि
गेल छन्हि। आँखि उठा घटक काकापर देलनि तँ देखलनि जे मुँह धुआँ केने लटकौने
छथि आ जहिना कोयलाक धुआँमे चमकैत बिजली बनैत तहिना उपदेश झाड़ि रहल अछि। मन
रोषा गेलनि। घरे परिवारक लोक िकअए ने होथि मुदा गलत गलत छी तहिना सहियो तँ
सही छिहे। गल्तीक कोनो पारावार छै रावण जकाँ लाख-सबा लाख धिया-पुता
जहिना त्रेतामे छलै, जे घटि कऽ
द्वापरमे सय-सैकड़ापर चलि एलै, तहिना ने अखनो अछि।
तहूमे कलयुग छी। पापेक युग। देवतो सभ पड़ा कऽ उनीकुटी चलि गेल छथि। जाए तँ
चाहलनि समुद्र दिस मुदा भोर होइते लाजे सभ रस्तेमे रहि गेला। रोषाएल रेखा झपटि
कऽ बजलीह-
“बौआ, अहीं
सभ ने सर-समाज छी। जेहने समाज रहैए तेहने लोक काजो-उदेम करैए।”
रेखाक बात सुनि सुनरलालक मनमे पंचक एहसास
भेलै। पंचक एहसास होइते अपन बात बिसरि गेल। बिसरि गेल बेटाक जहलक उपाए। दमकलक
चक्का जकाँ पहियाक रूप बदलि एक सूरे मुड़ी डोलबैत बाजल-
“हँ, से तँ
छिहे। केकरो कटने समाज कटै छै। तेहेन लस्सा बनल छै जे कतबो कटतै तैयो सटिते
रहतै।”
“नइ बुझलौं अहाँक बात?” रेखाक मुँहसँ निकलल।
जहिना नमहर नागड़ि नमहर जानवरक पहिचान छी
तहिना ने काजक नागड़ि मनुक्खोक होइ छै। जँ से नै तँ रावणसँ पैघ आसन हनुमान कथीक
बनौलनि। ओही नागड़िक बले ने सौंसे लंका जरा देलनि आ अपना किछु ने भेलनि।
बूझल-बिनु बूझल दुनियाँमे केहेन हएत जे नै हएत। कोनो प्रश्नक उत्तर दुनूक एक भऽ
सकैए। मुदा होइ छै। बुझिनिहार संग बुझिनिहार रहैत तँ बिनु बुझिनिहारोक संग
तँ बिनु बुझिनिहार हेबे करतै। जइ काजमे सुनरलाल अपने ओझराएल तही काजक ओझरी
छोड़बैक भार लैत बाजल-
“भौजी, अहाँ-हमरामे
कोन भेद अछि। नीक-अधला सभ गप तँ िदओर-भौजीमे होइते अछि। से कि कोनो आइये अछि
आकि अदौसँ आबि रहल अछि। देखियौ, जहिना करौटन फूलक
पत्ता-पत्तामे गाछ पैदा करैक शक्ति अछि, तहिना ने
समाजोक बनबै-मेटबैक दुनू शक्ति छै।”
सुनरलालक विचारमे सूर-मे सूर मिलबैत रेखा
बजलीह-
“बौआ, पहिने
कनी भैयाकेँ बुझा दिअनु जे रूसि कऽ जे भगलाह से कोन अनचित बात कहलियनि।”
नमहर झगड़ा देखि सुनरलालकेँ नमहर पंचक
एहसास भेल। जहिना नमहर लबि जाइत, तहिना सुनरलाल लबैत बाजल-
“भौजी, केना
कहबनि हम। सँए-बहुक झगड़ामे लबड़े टा पड़ैए। अहाँकेँ कहलौं से तँ भाइयो-सहाएब
सुनबे केलनि।”
जहिना एक चुरुक जलसँ सौंसे घरक वस्तु पवित्र
बनि जाइत तहिना घटक काका अपन गनजन सम्हारैत बजलाह-
“हौ सुनरलाल,
जहिना तूँ छोट भाए भेलह तहिना ओहो घरेवाली भेलीह। तँए बजैमे थोड़े कोनो
धड़ी-धोखा हएत। जुआनमे मौगी घरसँ पड़ाइत अछि आ उमेर बढ़ने पुरुख। तँ तोहीं कहह जे
कोन गल्ती केलौं।”
मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
“से के कहैए जे अहाँ अधला केलौं।”
पाशा बदलैत देखि रेखा बजली-
“बौआ, नौंए-कौंए
कऽ भगवान एकटा बेटा देलनि। अपने दुनू परानी ने सोचब जे केहेन पुतोहु एने घरक
गाड़ी ससरत। सिनेमा-नाटक जकाँ थोड़े मनुक्खक जिनगी क्षणे-झण बदलि सकैए आकि
क्षणे-झण आगू-पाछू भऽ सकैए।”
रेखाक बात सुनि, मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
“हँ, से तँ
होइते छै। अहीं कहू भौजी, केकरा चलैत हमहीं एते तबाह छी।
उएह छोड़ा माने हमरे बेटा एहेन किरदानी किअए केलक। जहिना बिआह भेने अनेरे लोक
घटक बनि जाइए तहिना किअए बनल। नइ बनल तँ जहलमे किअए अछि।”
रेखा- “अहाँ अपनापर नै लिऔ। बेटा केलहा काजक दोखी बाप नै होइए
मुदा माए-बाप.....। काल्हि भऽ कऽ जे कोनो दोख लगा बेटाकेँ कहबै तँ ओ नै मुँह
दुसैत कहत जे केकर केलहा छिऐ। जहिना अपन बेटीकेँ पोसि-पािल बिआह करै छिऐ तहिना
ने सभ करैए। मुदा घरक मिलानी जँ नै करबै तखन पढ़ल सुग्गा बौक नै हेतै।”
पत्नीक बात सुनि घटक काका सहमलाह। पाछू
घूमि तकलनि तँ बूझि पड़लनि जे कते घूर-बहूर काज भेल अछि। र्इहो हएत। यएह ने
दस गोटेमे बजलौं। कोनो कि इएह टा बात बजलौं। सदिखन तँ एहेन-एहेन बात चलिते
रहैए। बड़ हएत तँ बाजब जे पत्नीक विचार नै भेलनि। तहूमे के एहेन छथि जे पत्नीक
बात काटि सकै छथि।
मन झिलहोरि खेलाए लगलनि। जहिना पघिलल
कटहर गाछसँ खसिते छहोछित भऽ उड़ि जाइत तहिना घटक काकाक मन छहोछित भऽ गेलनि।
~
सुजीत कुमार झा
लघुकथा
निष्ठा कि देखाबा
घरक कलवेलक घण्टी बाजल । हमर परम मित्र सोहन गेटपर चुपचाप भाव हीन
मुद्रामे ठाढ़ छलाह संगमे हुनकर कनियाँ नीमा सेहो । हम आह्लादित होइत सोहनकँे अपन हृदयसँ
लगएलहुँ ।
ओ धड़फड़एलैथि । दम्माक रोगी जकाँ हकमऽ लगलैथि, ‘श्रीनाथ हमरा छोड़ब नहि, अन्यथा खसि पड़ब ।’
हम घबराकऽ हुनका अपन बाँहिसँ पकड़ि लेलहु, ‘सोहन
अहाँक मुँह सुखा किए गेल अछि ?’
‘हिनका बोखार छैन्हि, तीन–चारि महिनासँ,’ नीमा बाजि उठलीह ।
बहुत दुःख भेल । ‘भितर चलू ।’ हम हुनका सहारा दैत कहलहुँ । मुदा ओ आगा नहि बढ़ि सकलैथि । ठाढ़े रहलाह ।
हुनका आँखिमे मजबुरीक भाव छलैकि आएल, ‘श्रीनाथ, हम स्वयं चलियो नहि सकैत छी ।’
हम हुनका कोरामे उठा लेलहुँ आ ड्राइंगरुम दिस बढ़ि गेलहुँ ।
‘ओमहर नइँ जाहिमे हमरा राखब, ओतऽ लऽ चलू ।
थाकि गेल छी, विश्राम करब ।’
हम हुनका अपन शयनकक्षक बगलबला रुममे लऽगेलहुँ । ‘श्रीनाथ, आब हम एकटा बोझ भऽ गेल छी ।’ हुनकर आँखि बन्द छल । ओ लम्बा–लम्बा साँस लऽ रहल
छलाह ।
‘घबराउ नहि मित्र, सभ ठीक भऽ जाएत ।’
‘आब किछु नहि भऽ सकत । डाक्टर जबाब दऽ देने अछि । नीमाक जिद्द छल
धरानमे देखएबाक तँए आबऽ पड़ल । हमर किडनी खराब भऽगेल अछि शायद ।’
‘हम अहाँकेँ डाक्टर सरोज कोइरालासँ देखाएब । एहि रोगक विशेषज्ञ छथि
। हुनकर बहुत नाम छैन्हि । मुर्दामे सेहो जान पूmकि सकैत छथि
। हम एखने नम्बर लगाबऽ जारहल छी । अबेर कएलासँ नम्बर नहि भेटत ।’
घरसँ प्रस्थान करऽसँ पूर्व हम अपन कनियाँसँ कहलहुँ, ‘ई हमर विशेष पाहुन छथि । स्वागत सत्कारमे कमी नहि हएबाक चाही ।’
‘बूझल अछि, अपने निश्चिन्त रहू,’ओ कहलीह ।
डाक्टर सरोज कोइरालाक क्लिनिकमे बहुत लम्बा लाइन छल मुदा पछिलका
द्वारसँ जा कऽ अपन जोगाड़ कऽ लेलहुँ । घूमिकऽ अएलाक बाद हुनका सभकेँ लऽकऽ जल्दीसँ डाक्टर
लग पहुँचलहुँ । तखन प्रारम्भ भेल हुनकर जाँचक चक्र ।
‘हिनकर दुनू किडनी सड़ि गेल अछि ।’
‘डाक्टर साहेब ई बदलल सेहो जा सकैए ।’
‘भारतक भेल्लोरमे किडनीके प्रत्यारोपण होइत अछि ।’ ‘हम हिनकर इलाज ओतहि कराएब , अपने रेफर कऽ देल जाउ ।’
‘बढियाँ बात अछि । तहियाधरि हिनका हमर लीखल दबाइ चला दियौ । एक
हप्ताक कोर्ष अछि । प्रत्येक दिन एकटाकऽ सुइ । मुदा ध्यान राखब कोनो प्रशिक्षित कम्पाउण्डर
सँ मात्र सुइया लगाएब । नशमे सुइ लागत एहि दवाइसँ बोखार उतरि जाएत तथा हिनका राहत
महशुस हएत ।’
हम डाक्टर सरोज कोइरालाक क्लिनिक आगा रहल दवाइ दोकानसँ दवाइ किनलहुँ
। तखन नीमा धीरेसँ हमरा कहलैन्हि, ‘श्रीनाथ जी, दवाइ फिर्ताकऽ दियौ ।’
‘....किए ?’
‘एतऽसँ सीधा अपन गाम जाएब । हमरा सभकँे एकटा गाड़ी रिजर्वकऽ दिय कनिक
जीप टाइपक हएवाक चाही । उबर–खाबर गामक सड़कपर जीपे चलि सकैत
अछि ।’
हम अकचका गेलहुँ । ‘ई की कहि रहल छी ?’
इलाज नहि करएबाक अछि की ?
‘श्रीनाथजी अपनेकँे कनी उटपटाङ्ग लागत, मुदा
एखन अपनेकेँ सम्झाइयो नहि सकैत छी । हमरा लग एतेक समय नहि अछि । हिनका होश रहिते
घरपर पहुँचब आवश्यक अछि । कतेको आवश्यक कागजपर हिनकर सही लेवाक अछि । पेन्सन
कागजपर सेहो ।’
‘नीमा आश्र्चयक बात करैत छी, अहाँ अपन
स्वार्थमे आन्हर तऽ नहि भऽगेल छी ? किछु आओर कठोर बात कहबाक
मोन भेल मुदा अपनाकेँ रोकि लेलहुँ । वा ई कही हुनकर पतिभक्ति आ निष्ठाक सम्बन्धमे
एहिसँ पहिने कोनो दोष नहि देखने छलहुँ । सोहन हुनकर सभ दिन बराइए करैत रहैत छलाह ।
.....सम्भव अछि ..... किडनी सड़बाक बात सूनिकऽ घबरा गेल होइथ, तँए हम शान्त स्वरमे स्मरण करएलहुँ, ‘अहाँक गाममे
प्रशिक्षित कम्पाउण्डर नहि हएत । ई सुइया ककरासँ लगाएब ?’
‘एकटा कम्पाउण्डर सेहो ठीककऽ दिअ जे सङे जाए, जे
मगत ओ देल जएतै ।’ हुनकर स्वर बदलल–बदलल
छल । आग्रह नहि, बरु टालमटोल बला ।
हुनका प्रति हमरा विभिन्न शङ्का सभ होबऽ लागल मुदा बीच सड़कपर
हुनकासँ झगड़ा करब हम नीक नहि बुझलहुँ तँए कनी धीरेसँ हम कहलहुँ, ‘सभ व्यवस्थाकऽ देब, मुदा एहिमे किछु समय लागत । अहाँ
सभ ताधरि हमर घर चलू । हम जल्दिए जीप आ कम्पाउण्डर लऽकऽ अबैत छी ।
अहाँ सभ ओतहि रहब ।’ हुनकाधथसभकँे सम्झएला
बुझएलाक बाद ओ सभ हमर घर दिस विदा भेल आ हम चैनक साँस लेलहुँ, मुदा स्वयं घर जाएबाक हिम्मत नहि जुटा पाबि रहल छलहुँ ।
किछु देरक बाद घर पहुँचिते नीमा अपन घर जाएके बात करऽ लगलीह । तखन
हमरा वर्दास्त नहि भेल । तत्काल सोहनकँे सुइ लगाएब हमर प्राथमिकतामे छल । सात दिनधरि
हुनका कोनो हालतमे रोकि हम योजना बनाबऽ लगलहुँ । मोनमे विचारक बिहारि उठि रहल छल ।
ओ नीमाक रुप छल वा विरोधक उपाय ? एनामे हुनका भेल्लोर कोना
लऽ जा सकब ? एहि चिन्तामे किछु देर सोचैत रहलहुँ ।
साँझ भऽगेल तखन एकटा कम्पाउण्डर लऽकऽ घर पहुँचलहुँ । सोहन आँखि
मूनिकऽ ओछाएनपर पड़ल छलाह । हम घबराकऽ हुनका दिस बढ़लहुँ । हुनकर नाड़ी असमान्य गतिसँ
चलि रहल छल । ओ वेहोशीक अवस्थामे छलाह । ‘कम्पाउण्डर साहेब
कनी जल्दी इन्जेक्शन लगाउ ।’
‘श्रीनाथ जी हम दवाइ फिर्ताकऽ देलहुँ अछि,’ नीमा
कहलीह ।
‘किए ? हम डपैटकऽ हुनकासँ पुछलहुँ ।
ओ डरा गेलीह । ‘इएह कहने छलाह ।’ओ सोहन दिस इशारा करैत बजलीह । हमर टेम्पे्रचर बढ़ि गेल, ‘ई अहाँसँ जहर मगता तऽ ओहो अहाँ दऽदेबै ? छी ।’
हम जमीनपर थूकि देलहुँ ।
ओतऽ हुनकर छाया छल । हम दौड़ैत फेरसँ सात दिनक लेल दबाइ किनकऽ लऽ
अनलहुँ । कम्पाउण्डर हुनका सुइ लगओलक । हम ओकरा पैसा दऽकऽ विदा कएलहुँ । किछु देरक
बाद सोहनके आँखि खूजल । हमरा चिन्ह लेलाह, ‘श्रीनाथ अहाँ कखन
अएलहुँ । बहुत प्रतीक्षा करओलहुँ । हमरा जाएके व्यवस्था भऽ गेल ?’
‘बहुत निष्ठुर छी अहाँ । हमरासँ अपन मृत्यु मागि रहल छी । अरे हम
अहाँके मित्र छी यमदूत नहि । हम अहाँक यमफाँसकँे काटि देब । भेल्लोर लऽ जाएब
अहाँकेँ । ई हमर निवेदन अछि । एकरा अपने हमर हठ सेहो बूझि सकै छी ।’
‘एतेक रुपैया नहि अछि हमरा लग । सेवा निवृतिक बाद दूटा बेटीक बियाह
कएलहुँ हम, से अहूँकेँ बूझल अछि । एहि बियाहमे हमर सव पैसा
समाप्त भऽ गेल आओर जे किछु बाँकी छल बिमारीमे लागि गेल ।’
‘पैसाक चिन्ता नहि करु । एकर उपाय अछि हमरा लग । एतेक रुपैया अछि
हमरा लग ।’
‘आइधरि हम ककरोसँ कर्जा नहि लेने छी आ जाधरि जीव लेबो नइँ करब ।’
‘एकरा हमर सहयोग बुभूm ।’
‘हम ककरो एहसान उधार नहि रखने छी आब उतारबाक सामथ्र्य नहि अछि,
तँए नहि लेब,’ सोहन दृढ स्वरमे कहलैन्हि ।
नीमाक मुँहपर परम तृप्तिक भाव पसरि गेल, ‘श्रीनाथजी
अपने अनावश्यक रुपसँ हमरापर तमसा रहल छलहुँ, अपने सेहो
सम्झाकऽ बूझि गेलहुँ ने ।’
हम हुनकर जवाब तमैककऽ देलहुँ, कर्जा नहि,
एहसान नहि, अहाँ अपन जमीनक किछु भाग बेच लिअ,
अहाँके दू–चारि बिग्घा जमीन अछिए, ओहिमेसँ किछु हटा दियौ ।’
‘एतेक जल्दी बढियाँ ग्राहक नहि भेटत, भेटबो
करत तऽ सही दाम नहि देत । किनऽ बला हमर आवश्यकताके मजबुरी बूझिकऽ कम मोलमे किनऽ
चाहत,’ नीमा ठीक कहि रहल छथि ।
हम हुनका बहुत सम्झएलहुँ, मुदा ओ नहि मानलथि ।
तखन हुनकापर हम कसिकऽ बरसि गेलहुँ, ‘जीवनदायनी दवाइ किनबाक
समय रुपैयाके मोह त्यागऽ पडैÞत छै । भाव मोलक समय वर्वाद नहि करबाक चाही । फेर अहाँ सभ एहि
परिस्थितिके घुमा किए रहल छी । ई केहन पति भक्ति भेल अहाँके ? ई केहन निष्ठा ?
महिला जातिक लेल अहाँ कलङ्क छी । अहाँकेँ मात्र अपनासँ मतलव अछि ।
पेन्सन पेपरपर सही लेवाक स्वार्थ ।’
‘श्रीनाथ, नीमाक अपमान नहि करीयौ ई सभ आरोप
अछि, हमही कहने छलहुँ मृत्यु पूर्व कागज सभके ठीक करबऽ लेल ।
ई एक पति–परायण महिला छथि । ई हमरा खुब सेवा करैत छथि । हमरा
हिनकासँ कोनो शिकायत नहि अछि, ’ सोहन कड़ा प्रतिवाद कएलैन्हि ।
ओ अपन इज्जत नुका रहल छलाह । ओ अपन आँखि खोलला मुदा हुनका सत्य नहि
देखा रहल छल । अर्ध चेतनमे ओ सही आ गलतक आकलन सेहो नहि कऽ रहल छलाह ।
‘नीमा अहाँ अपन जमीनक मोल लगाउ अहाँक इच्छा अनुसार मोलपर हम जमीन
किनब । हमरा लग बन्हकी सेहो राखि सकैत छी । सुविधा अनुसार रुपैया दऽकऽ छोड़ा सेहो सकैत
छी ।’ मुदा नीमा चुप भऽ गेली । एना किए ? हमर प्रस्ताव सर्वथा स्वागत योग्य छल तैयो ओ कोन उल्झनमे छथि । कतहु हुनकर
सम्वेदना देखाबटी तऽ नहि अछि ?
अपन पति प्रति हुनकर निष्ठा कृत्रिम तऽ नहि अछि ?
‘की अहाँक पति भक्ति एकटा ढोङ मात्र अछि ?’
‘नहि श्रीनाथ ई नहि ..... अपन जमीन बिक्री होबऽ नहि देब । हमर
कनियाँ आ धीया–पुता की खाएत ? इएह
हिनका सभक लेल एक मात्र आधार रहि गेल अछि ।’ सोहन अपना कनियाँकेँ
बचाब कएलैन्हि । अपन मुक्तिक मार्ग प्रशस्त करबाक लेल हुनकर युक्ति छल ।
किछु होउक, मुदा हम उपचारसँ विमुख नहि होबऽ
देब । तँए अन्तमे हम ब्रह्मास्त्रक प्रयोग कएलहुँ, ‘नीमा
अहाँ लग किछु गहना अछि, ई बात हमरा बूझल अछि, एहिसँ पतिक इलाज कराउ ई अहाँक पति निष्ठाक अन्तिम परीक्षा अछि ।’ मुदा नीमा अपन गर्दैनि झुका लेलीह । हमरा दुःख लागल । हम आश्चर्यमे छलहुँ
। हम चुपचाप माता जानकीक प्रार्थना करऽ लगलहुँ, हे माता !
हिनका सभकेँ सद्बुद्धि दिऔ ।’
‘श्रीनाथ हमर बात सुनऽ हमर स्थिर मन प्राणके अवाज सुनऽ भाइ । हमर
सूर्य अस्त होबऽ बला अछि । हमरा एकर अभाष भऽ रहल अछि । हम विदेशमे शरीर त्यागऽ नहि
चाहैत छी । हम भेल्लोर कोनो हालतमे नहि जाएब , ई हमर अन्तिम
इच्छा अछि । घर जएबाक व्यवस्था कऽ दिअ मित्र ।’
सोहन निराश भऽगेल छलाह । हुनका अपन चारु दिस अपन मृत्यु नजर आबि रहल
छल । मृत्युक भयसँ डेराएल ई हुनकर वेदना छल । मुदा नीमा हुनका झुठोके सान्त्वना देवाक
औपचारिकता नहि बुझलीह, ओ हुनकर मृत्यु गीतक कनिको विरोध नहि
कएलैन्हि । आखिर किए ? किए ?? हम फेरसँ
सक्रिय भेलहुँ, ‘ई अहाँके मात्र भावुकता अछि मित्र । जीवन आ
मृत्युमे बहुत अन्तर होइत अछि जेना दिन आ रातिमे । जाधरि साँस ताधरि आश अछि बुझऽ
पड़त । ई हमरा सभक कर्तव्य सेहो अछि । अहाँ सेहो एहिना करितहुँ । अहाँक स्थानपर यदि
नीमा होइतथि तऽ अहाँ की करितहुँ ? हिनका अहाँ भेल्लोर नहि लऽ
जएतहुँ ।’
सोहन पुनः अपन आँखि बन्दकऽ लेलाह अपन मुँह सेहो बन्दकऽ लेलाह ओ झुठ
नहि बाजि सकैत छलाह । सत्य सेहो स्वीकार नहि कऽ सकैत छलाह ओ । ओ मात्र रुसि सकैत छलाह,
जिद्द कऽ सकैत छलाह, जीवाक लेल किछु तऽ चाही,
ओ नीमामे नहि छल हम हुनकर मोनक अर्थ बूझि गेल छलहुँ ।
नीमा स्वयं जीप गाडी रिजर्व कऽ अनलीह । संगमे कम्पाउण्डर नहि जाएत
एकर व्यवस्था अपने लगक शहरसँ ओ कऽ लेतिह । हम भरि राति एहि बातकेँ लऽकऽ चिन्तित रहलहुँ
। हमर मोन कोना–कोना भऽ रहल छल । भोरमे जखन हमरासँ बिदा लेबऽ
आएल तखन हम हुनकासँ पुछलहुँ, ‘इलाज नहि करएबाक छल तऽ एहि ठाम
एलहुँ किए ?’
‘नहि लबितहुँ तऽ गामक लोक हमरा धिक्कारैत तँए । घर–घरमे फुसुर–फुसुर होइत .... नीमा
पतिकँे बढियाँ इलाज नहि करओलैन्हि । जहियाधरि चलैत–फिरैत
रहथि तहिया लगक शहरमे हिनका उपचार करबैत रहलियैन्हि, मुदा
एहिपर केओ ध्यान नहि देलक । सोचैत छल हएत पेन्सन लेबऽ लेल जाइत । जीपपर लादिकऽ
गामसँ हिनका लेलहुँ अछि तखन गामक बच्चा–बच्चा बूझि गेल,
आब केओ हमर इमानपर आङुर नहि उठाओत ।’
हुनकर सम्वेदनशीलता पुरा–पुरा कुण्ठित भऽगेल
छल । हुनकर कर्तव्य परायणता आ पतिनिष्ठा खोखला भऽगेल छल । ओ एक यांत्रिक महिला
छलिह । अपन गामक लोकक अभिमतके लेल अपन पतिक इलाजक नाटक कएलैन्हि । हम जाइतो जाति
व्यंङ्गवाण छोड़य सँ पाछू नहि रहलहुँ, ‘ड्राइभर साहेब साँझसँ
पूर्वे प्रवेश करियह, कारण गामक लोक जल्दी सूति रहैत अछि ।
धीरेसँ गाडी चलबियह आ जोड़सँ लगातार हर्न बजबियह । कारण सभ लोककँे पता चलि जाइक सती–सावित्री सत्यवाणकँे ल कऽ चलि आएल छथि ।
तीन दिनक बाद सोहन स्वर्ग विदा भऽ गेलाह ।
ऐ रचनापर अपन
मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
दुर्गानन्द मण्डल
लघुकथा-
कुकर्मा
मिथिलांचलक राजधानी जिला मधुबनी धरमपुर
गाममे एकटा प्रकाण्ड विद्वान ज्योतिषी रहै छलाह। ज्योतिषी विद्यामे एकदम निपुण
जइसँ भूत, वर्त्तमान आ
भविष्यक नीक ज्ञाताक रूपमे जानल जाइ छलाह।
एक दिन मधेपुर प्रखण्डक लौफा गामसँ सत्यनारायण
भगवानक चौपहरा पूजा करा सबेरे-सकाल गाम अबै छलाह। बाटमे, जोरला गाम जखन एलाह तँ देखलनि। हाइ
स्कूल जोरलाक पाछाँ बहति मरता धारमे एकटा नरमुण्ड धारक कातमे राखल छैक। जइपर लिखल
छलै “किछु कर्म भऽ गेलै आ किछु बाकी अछि। एकटाक जनम आ
तीनक मृत्यु।”
ज्योतिषी जीकेँ हरलनि ने फुड़लनि, नरमुण्डकेँ उठा झोरामे रखि लेलनि।
घर आबि चुपचाप, एकटा उज्जर कप्पासँ बान्हि, चिनवारमे खोंसि देलनि। मुदा पण्डिताइनकेँ ऐ संबंधमे किछु ने
कहलकनि। एक-आध दिनक बाद पण्डिताइनक नजरि ओइ उज्जर कप्पापर पड़लनि। सोचथि
आखिर की बात छिऐ जे आन दिन जे किछु ज्योतिषीजी लाबथि तँ हलसि कऽ कहथि जे
पण्डिताइन ई लिअ उ लिअ, हे एकरा राखू ओकरा उसारू।
मुदा.....।
पण्डिताइनकेँ हरलनि ने फुड़लनि ओ जिज्ञासावस
कप्पामे बान्हलकेँ उतारि कऽ देलखनि, नरमुण्ड देखिते बताहि भऽ गेलीह आ तामसे ओइ नरमुण्डकेँ उक्खरिमे
दऽ समाठ लऽ बढ़ियासँ कुटि बुकनी-बुकनी कऽ देलनि। आ एकटा सीसीमे ओइ बुकनीकेँ भरि
भनसा घरक चारमे खोंसि देलनि। आ सगर पोखरिमे एकटा मात्र पोठी जे कहबी छै,
अति सुन्नरि नाम सुनयना वएस सोलह बर्ख अपन बेटीकेँ कहलनि-
“ऐ सीसीमे माहुर अछि। एकरा कियो ने
छुअए आ ने खाए, जौं खएत तँ मरि जाएत।”
सुनयना नामक अनुरूप ओतबे सुन्नरि। बेस गोरि-नारि
नमगर-छड़गर-पोरगर केराक वीर जकाँ कोमल आ सुन्दर। सोल्हम साउन पार केने, अनेरे आँखियोक भाषासँ गप्प
करैवाली। सुनयनाक आँखिमे धार तेहेन जे बिनु कटनहि आँखिसँ घाएल करैवाली। दिन-राति
प्रेमक बोखारमे बौआइतो मुदा ज्योतिषीक मर्यादाकेँ अखन धरि बचौने। उमेरक संग जे
लांछन होइ छै से एक-कान-दू-कान होइत पण्डिताइन आ ज्योतिषी जीक कानमे पहुँचए
लगल। कहबियो ठीके छै जे बेटी जखन जुआन होइ छै तँ घरबैयाकेँ बादमे मुदा बहरबैयाकेँ
पहिने पता लागि जाइ छै।
टोल-पड़ाेसक लोक काना-फुसी करए लगल जे पण्डिताइनक
बेटी तँ फल्लमाक बेटासँ बुढ़ियागाछीमे गप-सप्प करै छलै। एक-आध दिनक बाद फेर कियो
गप्प उखाड़ि दइ जे ज्योतिषी जीक बेटी तँ अरूण डाक्टरसँ हँसि-हँसि कऽ काली
स्थानमे गप करै छलै। एकदिन सुखेतोवाली कनिया बाजलि छलीह जे पण्डिताइनक बेटी
रामदेब बाबूक खेतमे बदामक साग तोड़ै छलै। हुनक मझिला बेटा आड़िपर ठाढ़ भऽ रेडी
बजबै छलै आ बड़ीकाल धरि दुनू गोटे हँसि-हँसि कऽ गप-सप्प करै छलै। अर्थात्
एक-आध दिनक पछाति सुनायनासँ जुड़ल कोनो-ने-कोनो गप्प-सप्प चलिते रहैत छलै।
ज्योतिषीजी बेटीक ई किरदानी सूनि सत्यनारायण
भगवानकेँ कहथिन-
“हे भगवान एक तँ एकटा कुलकन्या देलह,
तहूपर एतेक मानि हानिक गप्प! एे सँ तँ खनदानक बड़ हानि भऽ
रहल अछि। ऐसँ तँ नीक होइत जे सुनायना जहरो-माहुर खा लइतए आ ऐ दुनियाँसँ उठि
जइतए।” ई गप्प बूझू जे हरिदम ज्योतिषी जीक मुँहसँ निकलैत
रहै छलनि।
सुनायना एकदिन सुनलक, दोसर दिन सुनलक आ तेसर दिन जखन
सुनैत-सुनैत बरदाससँ फाजिल भऽ गेलैक तँ सोचलक जे भनसा घरक चारमे माए तँ माहुरक
एकटा सीसी खोंसि रखने अछि। से आइ उ माहुर खा अपन प्राण तियागब। सुनायना ओइ राति
सएह केलक।
मुदा ओ तँ जहरक सीसी छल नै। छल तँ ओइ नरमुण्डक
चूर्ण जइपर लिखल छलै, किछु
भऽ गेल आ किछु बाकी..।
जे खएलासँ सुनायना मरल तँ नै मुदा गर्भवती
जरूर भऽ गेलीह। आब तँ दिन बीतल, मास बीतल। एक-कानसँ-दू-कान गुल-गुल हुअए लगल जे ज्योितषीक बेटी तँ आब
पेटसँ छैक। एत्ते दिन कहै छलियनि तँ ज्योतिषीजी आ पण्डिताइन मुँहपर माछियो
ने बैसए दैत छल। विसबासे ने होइत छलनि। अाब देखथुन अपन बेटीक किरदानी। जे बापक
दुलारू धिया दूरि गेली दूरि गेली, आ माथापर तम्मा लऽ
कऽ उड़ि गेली उड़ि गेली। आब देखथुन जे बेटी केहेन कुलगोरनि छन्हि। देखिते-देखिते
नअो मास बीतल आ सुनायना देलनि एकटा अति सुन्दर बालकक जन्म। जेकर भाग्यक रेखा
किछु औरे कहि रहल अछि। मुदा पण्डिताइन आ ज्योतिषीजी ओकर नाओं रखलनि ‘कुकर्मा’।
एक दिनक गप छी। जे ओइ राज्यक रानीकेँ माछ
खएबाक मोन भेलनि। राजाक आदेश भेल, मलाह बजाओल गेल। नीकसँ-नीक माछ मारबाक आदेश दऽ देल गेल। संयोग एहेन जे
कनिये कालमे निक्के माछ ऊपर भेल। मलाह राजाक आदेश पाबि सोझे रनिवास धरि गेल आ
रानीक हाक देलकनि। हाक सुनि रानी महलसँ बाहर एलीह। तँ देखै छथि जे आंगनमे बड़
सुन्दर माछ राखल अछि। मुदा माछ देखि जेतबए मन प्रसन्न भेलनि मल्लाहकेँ देखि
मन ततबए दुखी। किएक तँ मल्लाह रानीकेँ देखि लेलकनि। रानीकेँ तँ तामसे मन
माहुर-माहुर भऽ गेलनि। मनमे उठलनि जे केहेन मुर्ख राजा छथि जे हमर इज्जतिकेँ
इज्जति नै बूझि जेकरे-तेकरे महलमे पठा दैत छथि। ई तँ नीक बात नै भेल। आ तामसे
मलहाकेँ, अनाप-सनाप बजैत धक्का दऽ बाहर करबा देलकनि।
आंगनमे जे माछ राखल छल। ओ ई सभ खेला देखि जखन बर्दास्त नै भेलै तँ ओ माछ हँसि
पड़ल। आब तँ रानीकेँ कोनो अर्थे नै लगनि जे माछ हँसल तँ किअए? आब रानी राजाकेँ कहलनि-
“ई माछ हँसल किअए, से कहू नै तँ हम अन्न-पानि तियागि देब।”
रानीक गप सुनि राजाकेँ किछु फुरबे नै करनि।
असमंजसक स्थितिमे आबि राजा भरि राज्यमे ढोलहो दिआ देलखिन जे रानीकेँ देखि
माछ किअए हँसल? जे ई
बात बता देत ओकरा भरपुर इनाम भेटत अन्यथा छअ मासक जहल दऽ देल जाएत। राज्यक पैघसँ
पैघ विद्वान, पण्डित, ज्योतिषी
लोकनि एलाह। दरबार लागल। मुदा माछ किअए हँसल रहए से कारण कियो नै बता सकलाह। जइ
कारणे हुनका सभकेँ छअ मासक जहल दऽ देल गेलनि। अंतमे धरमपुरक ज्योतिषीजी बजाओल
गेलाह। अबेर भेने ज्योतिषीजी राजाकेँ समाद पठा देलनि जे आइ तँ आब अबेर भऽ गेल
तँए आइ नै, काल्हि तरगरे आएब।
प्रात भने ज्योतिषी स्नान-धियान कऽ
चानन-ठोप दऽ विदा भेला राज-दरबार दिस। कुकर्मा जे बथानपर मालक थैरमे खेलाइत छल, देखलक जे ज्योतिषीजी चलला
राज-दरबार दिस। कुकर्मा बाजल-
“नाना, यौ
नाना कतए जाइ छिऐ? हमहूँ जाएब यौ नाना।”
ज्योतिषीजी अनेक प्रकारे कुकर्माकेँ
फुसलौलनि। मुदा तखनो कुकर्मा बात मानक हेतु तैयार नै। एक्केटा जिद्द धेने जे आइ
हमहूँ जाएब अहाँ कतए जाइ छिऐ।
हारि-थाकि ज्योतिषीजी बजलाह-
“राज-दरबार।”
“किअए?”
-कुकर्मा बाजल।
ज्योतिषीजी कहलखिन-
“रानीकेँ देखि माछ किअए हँसल,
राजा ऐ रहस्यकेँ जानए चाहै छथि। जे सही उत्तर देथिन तेकरा उचित
इनाम भेटतैक अन्यथा छअ मासक जहल। से तूँ अखन धिया-पुता छह नै जाह।”
मुदा तैयो कुकर्मा मानैले तैयार नै। फेर
बाजल-
“नाना अहाँ बुतै ऐ बातक जबाक नै देल
हएत। अहाँकेँ तँ ई बुझले नै अछि जे हमर माए कोन कुकर्म केलक आ तइ दुआरे हमर नाम
कुकर्मा राखल गेल। की अहाँ वा कियो देखने छेलिऐ? से नै
तँ अहाँ राजाकेँ जबाक की देबै। अहाँ हमरा नेने चलू राजाकेँ हम जबाब देबै। नै तँ
अहाँकेँ छअ मासक जेल हेबे करत।”
ज्योतिषीजी कुकर्माकेँ संग कऽ लेलनि।
पहुँचला राज-दरबार। दरबार लागल। प्रश्नक संग शर्त राखल। सुनि ज्योतिषी बजलाह-
“ई छोट-छीन प्रश्न हमरासँ नै पूछल
जाए। एकर जबाब हमर नाति कुकर्मा देत।”
राजा एक िदस कुकर्माकेँ देखथि तँ दोसर दिस
प्रश्नक जटिलताकेँ। मनमे भेलनि जे आइ दुनू गोटाकेँ जलह लिखले छन्हि। प्रश्न
सुनि कुकर्मा बाजल-
“राजा सहाएब, ऐ प्रश्नक रहस्यकेँ नहिये बूझू तहीमे कल्याण अछि।”
मुदा राजाक जिज्ञासा बढ़िते गेल। अंतमे
राजा आदेश पाबि कुकर्मा बाजल-
“राज सहाएब, अखनो
सोचि लिअ। भलाइ अहीमे अछि जे नै बुझियौ। अन्यथा अकल्याण निश्चित।”
मुदा राजा बातकेँ मानैले तैयारे नै होथि।
तखन कुकर्मा बाजल-
“जौं अपने ऐ रहस्यकेँ बुझबे करब तँ
रानीकेँ राज-दरबारमे बजाओल जाए।”
राजाकेँ आदेश पाबि रानी आ हुनक दुनू दाइ
सेहो बजाओल गेल।
कुकर्मा बाजल-
“राजा सहाएब, दस हाथक दुरीपर दूटा खम्हा गारल जाउ। आ भरि जाँघ ऊपरमे एक खम्हासँ दोसर
खम्हामे एकटा मजगूत रस्सी बन्हबा देल जाउ।”
तहिना कएल गेल। ओकर बाद कुकर्मा रानीकेँ
कहलक-
“रानी, आब
अहाँ ऐ रस्सीकेँ फानू।”
रानी रस्सीकेँ फानि गेलीह। तकर बाद रानीक
संग आएल एकटा दाइकेँ कहलक जे आब अहँू ऐ रस्सीकेँ फानू। दाइ फानए लगल। तखने
कुकर्मा हुनक साड़ीक एकटा खुट पकड़ि लेलक। दाइ फानल सारी खूजि गेल। भरल दरबारमे
दाइ चिन्हार भऽ गेलीह जे ओ दाइक रूपमे मौगी नै मरद छल। तहिना दोसरो दाइक सएह
रूप। उहो दाइ मरदे। सबहक पोल खूजि गेल। तखन कुकर्मा बाजल-
“राजा सहाएब,
अखनो बुझलिऐ जे माछ किअए हँसल छलै? जइ रानीकेँ अपन
प्रजाकेँ पुत्र वत्सल मानक चाही तकरा देखि ओ अनेरे क्रोधसँ आन्हर भऽ गेलीह। आ
अनेको तरहक बात कहलनि। मुदा जे स्वयं स्त्रीक भेषमे दूटा मरदकेँ अपन भजार बना
मौगीक रूपमे रखने छथिन। तकर कोनो लाजे-गराइन नै। यएह सभ किरदानी देखि, तखन उ माछ हँसल छल।”
राजा सभ वृतान्त देखि सुनि म्यानसँ
तलबार निकालि रानी सहित दुनू मरदकेँ दू-दू खण्ड काटि देलक। जहलमे भरल सभ विद्वान
आ ज्योतिषी लोकनिकेँ मुक्त कऽ देल गेल। धरमपुरक ज्योतिषी जीकेँ उचित आदर-सम्मानक
संग प्रयाप्त अशर्फी पुरस्कार स्वरूप देल गेल। ज्योतिषी जीकेँ कुकर्मा
प्रतापे जय-जयकार भेल। ऐ तरहेँ ओइ मुण्डपर लिखल ई बात सत्य भऽ गेल-
जे किछु होतब से भऽ गेल, किछु बाँकी छै
एकक जन्म आ तीनक मृत्यु।
ऐ तरहेँ कुकर्मा अपनो खूब नाम कमेलक आ अपन
माए सुनायनाक लाज बचेलक।
आशीष अनचिन्हार
आधुनिकताक समस्या ( आलोचना )
जागरण, पुनर्जागरण वा नवजागरण
दुनियाँक हरेक हिस्सामे अपना समय पर होइत एलैए मुदा ओकर व्याख्या हरेक समयमे अलग-अलग ढ़गसँ होइत छै।
एकटा घटना जकरा पहिल लोक जागरण मानैत अछि तँ दोसर ओकरा पुनर्जागरण मानैत अछि तँ
तेसर नवजागरण। आ एही तीनूक दृष्टिकोणक व्याख्यासँ आधुनिकताक सूत्रपात होइत छै।
पश्चिमक पुनर्जागरणसँ
प्रभावित मनुख सभ सुविधाकेँ अपना नाम कए लेलक। ई पुनर्जागरण मात्र सुविधा नै बल्कि
हमर सभहँक मान्यता, भावना, विचार, आचरण, व्यवस्था आदिमे सेहो परिवर्तन
केलक। एही पुनर्जागरणक कारण परस्पर विरोधी संस्था आ व्यवस्थाक जन्म भेल। राष्ट्रीय
आ अंतरराष्ट्रीय सत्ता एवं नियंत्रणक चालि-चलन आएल। आ एही कारणें परंपरागत आस्था आ प्रेर
मूल्यमे कमी आएल।साहित्य आ कलाक क्षेत्रमे अतियथार्थवादक जन्म भेल, साझी आश्रमक विघटन भेल आ मनुख
एकौर भए गेल जाहि कारणें मनुखक विवेक आ आत्मनियंत्रणमे कमी आएल।
महानगरसँ होइत नग्र आ गामक
संबंध जटिल बनि गेल छै। जीबनमे नीरसता, असुरक्षा, दुश्चिन्ता, विक्षिप्ता आदि बढ़ि गेल छै।
नव-नव
बेमारी उपकि रहल छै खास कए हृद्य रोग,बल्डप्रेसर आ
अनिन्द्रा। तहिना लोकक रुचि सेहो बदलि गेल छै। जतेक तेज गीत-संगीत
बाजत ओतेक नीक मानल जाइत अछि। तेनाहिते साहित्यमे सेहो अभूतपूर्व परिवर्तन भेल अछि।
अपराध कथा, सत्यकथा, आ मनोहर कहानी सन साहित्य केर
डिमांड जोर पर अछि। आ ऐ तरहें मनुखक जीवन शैलीमे सेहो परिवर्तन भए रहल अछि। संगे
संग मनोवृतिमे बहुत बेसी। आजुक समयमे मनुख लग ने सहनशीलता छै आ ने बात बुझबाक समय।
आ एही दुआरे आब लोक बात-बात पर हतोत्साहित भए जाइत अछि। आशा,उम्मेद जाहि कौआ
केर नाम छै से आब केकरो टाट पर नै कुचरैए।
एखन हम साल 2006मे बनल आ मे गिब्सन
द्वारा निर्देशित फिल्म एपोक्लिप्टो बाइसम बेर देखि कए उठलहुँ अछि। ई फिल्म
मेक्सिको केर भाषामे जकर नाम Yucatec छै आ "माया" सभ्यता पर आधारित छै। ऐ फिल्मक
शुरुआतमे एकटा कबीला अपना गाममे शांतिपूर्वक खा-पीक आनंद मना रहल अछि। तखने दोसर कबीला
दिससँ हमला भेलै। पहिल कबीला हारि गेल आ ओकर गामकेँ जरा देल गेलै। नायक सहित
अधिकांश आदमीकेँ बन्ही बना लेल गेलै। मुदा गर्भवती नायिका अपन एक मात्र बच्चाक संग
बचि निकलैत अछि आ सुरक्षा लेल गँहीर खत्तामे शरण लैत अछि। बंदी बनेलाक बाद विजेता
बंदी सभकेँ अपना कबीला लए जाइत अछि। भाट भरि नायक अपनाकेँ आ अपन संगीकेँ बचेबाक
प्रयास करैत अछि मुदा से सफल नै होइ छै।
एम्हर नायिका जे खत्तामे छै
से नाना प्रकारक कष्ट सहैत बच्चा संग समय बितबैत अछि। एकाएक बर्खा अबैत छै आ सेहो
झमटगर। नहुँ-नहुँ खत्ता भरए लागैत छै। पानि जखन डाँड़ भरि भए जाइत छै तखन नायिकाकेँ
प्रसव पीड़ा होइत छै....................आ ओही पानिमे बच्चाक
जन्म होइत छै। नायक अपन संगी सभहँक संग विजेताक राज्यमे आबि गेल अछि। राज्यक हाटमे
किछु बंदीकेँ बेचल जाइत अछि आ किछुकेँ राजाक सामने देल जाइत अछि। राजाक सामने
उपस्थित भेला पर राजपुरोहित द्वारा पर सूर्यपूजा केला बाद बलि लेल अयोग्य बंदी
सभकेँ छाँटि योग्य बंदीकेँ नायकक सामने बलि चढ़ा देल जाइत छै। अंतमे नायककेँ वेदी
पर सुताएल जाइत छै कि तखने...........................मेघ
झाँपि लेलकै। आ तखने राजपुरोहित सूर्यकोप मानि ओहि दिन लेल बंद करबा देलक। आ नायक
बलिसँ एना बाँचि गेल। मुदा मृत्यु एखनो लीखल छलै। नायक सहित सभ बाँचल अयोग्य
बंदीकेँ एकटा मैदानमे आनल गेलै आ सभकेँ भागए कहलकै। आ भागैत बंदी सभकेँ निशाना साधि-साधि मारकल। मुदा नायक एतहुँ बाँचल आ भागि पड़ाएल। विजेता सभ ओकर पाँछा
केलक आ करैत रहल मुदा नायक भागैत आ बाँचैत रहल। आ भागैत-भागैत
नायक समुद्रक कछेरमे पहुँचैत अछि आ देखैत अछि जे ओम्हरसँ एकटा जहाज आबि रहल छै।
नायक फेर पाछू तकलक, ओकरा पकड़बाक लेल विजेता तैयार
मुदा ओहो सभ जहाजकेँ देखि सहमि गेल छल आ पाछू हटए लागल छल। आ एना नायक बाँचि गेल आ
अपन परिवार लग पहुँचल।
ऐ फिल्ममे हमरा सभसँ नीक गप्प
लागैए जे हरेक सीन, हरेक कथन आशासँ भरल छै। खास
कए तीन ठाम पहिल- जखन खत्ताक पानिमे बच्चाक
जन्म होइत छै, दोसर--जखन नायककेँ बलिवेदी
पर सुताएल जाइत छै आ तेसर-- जखन नायक जहाज आ अपन दुश्मन
बीचमे रहैत अछि।
ई कथानक पढ़लासँ आशाक कनेकबे
दर्शन भेल हएत। फिल्म देखू हरेक शाट आशामे भीजल छै। ई फिल्म आधुनिक कालक थिक मुदा
जखन कालिदास मेघदूत लिखला तखन की सोचि यक्ष द्वारा मेघकेँ दूत बनेलाह। मेघ निर्जीव
छै ई बात कालिदासकेँ पता छलन्हि आ नायक यक्षकेँ सेहो। की ई आशावादक चरम नै थिक। आ
जा धरि मेघ यक्षणी लग समाद लए पहुँचैत अछि ता धरि श्रापक समय खत्म। बात जखन मैथिल
कोकिल विद्यापतिकेँ ( ओ विद्यापति जे की गीत लिखला) तखन हुनक गीतमे भक्ति आ
श्रृंगार जतेक रहैए ताहिसँ बेसी आशा रहैत अछि। किछु भए जाए विद्यापति अपन आशाकेँ
नै छोड़ै छथि। चाहे पति परदेशमे होथिन्ह मुदा ओ नायिकाकेँ जरूर कहै छथिन्ह जे
चिन्ता नै करह तोहर प्रिय जरूर अबिते हेतह। एहन बहुत उदाहरण अछि, किछु देखल जाए----
1
लोचन धाय फोघायल हरि नहिं आयल
रे !
सिव-सिव जिव नहिं जाय आस
अरुझायल रे !१!
….......................................
सुकवि विद्यापति गओल धनि धइरज
धरु रे !
अचिरे मिलत तोर बालमु पुरत
मनोरथ रे !४!
2
कान्ह हेरल छल मन बड़ साध !
कान्ह हेरइत भेलएत परमाद !१!
…...................
विद्यापति कह सुनु बर नारि !
धैरज धरु चित मिलब मुरारि !७!
3
के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास !
हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास !१!
…........................
विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास !
आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास !४!
ई मात्र किछु उदाहरण अछि। उपर
जतेक गीत हम देलहुँ ताहिमे गौर कए देखू भक्ति आ श्रृगांर तँ मात्र बहन्ना छै। मूल
बात तँ छै आशा देब, केकरो नोर पोछब। भक्ति आ
श्रृगांर विद्यापतिक गीतमे मात्र साधन अछि साध्य नै। साध्य तँ छै निराशाकेँ हटाएब।
विद्यापतिक गीतकेँ बहुत आलोचना भेलभक्ति आ श्रृगांरक चश्मा लगा मुदा आशावादक
दृष्टिकोणसँ संभवतः ई पहिल आलोचना अछि ( जँ पहिले केओ केने हेताह आ
प्रकाशित हेतै तँ एकरा हमर अज्ञानता बूझल जाए)। आ तँए विद्यापति हमर प्रिय कवि छथि। बात
जखन लोकगीतक करी तँ एही आशा केर कारण " सोहर " हमर प्रिय गीत अछि। आ जखन
हमरा लग किछु नै बचैत अछि तखन बेर-बेर हम विद्यापति गीत पढ़ैत-सुनैत छी। सोहर सुनैत छी, मेघदूतक यक्ष बनि जेबाक
प्रयास करैत छी आ एपोक्लिप्टो देखैत छी।
आइसँ तीन साल पहिने हमरा गामक
जिनगी पढ़बाक मौका भेटल छल। लेखक छथि जगदीश प्रसाद मंडल आ ऐमे कुल 19टा कथा अछि। ऐ
पोथीकेँ जाहि तरीकासँ हम पढ़लहुँ से रोचक प्रसंग अछि। भए सकैए जे ई प्रसंग अहाँ सभ
लेल नीरस हो आ एकरा आलोचनाकेँ कमजोर कड़ी सेहो मानी मुदा हमरा बुझने आलोचना तखने
सार्थक होइत छै जखन की कोनो पोथी मात्र " पाठक "क दृष्टिकोणसँ
पढ़ला बाद आलोचकीय विवेकसँ लिखाइत हो। ऐठाम तँ किछु समीक्षक पोथीक नाम लिखै छथि, कथा पात्रक नाम आ घटना लीखै
छथि आ अंतमे प्रकाशक नाम, पोथीक दाम आदि लीखि आपना
आपकेँ समीक्षक मानि लै छथि। वस्तुतः ऐ प्रकारक आलेखकेँ पोथी परिचय तँ मानल जा सकैए
मुदा समीक्षा वा आलोचना नै।
तँ आबी कने अपन प्रसंग पर।
अपान कम्पनीक टेन्डर भरबाक लेल हरिद्वार गेल छलहु भेल( BHEL ) मे। मात्र भरबाके नै छल बल्कि
पूरा रेट हमरे तय करबाक छल। हम अपन बुद्धि हिसाबें रेट तय कए टेन्डर जमा कए देलिऐ।
लगभग दस बजे रातिमे जखन टेन्डर खुजलै तखन पता लागल जे ओ हमरा हाथसँ निकलि चुकल
अछि। हमर कम्पटीटर हमरासँ पाँच लाख कम रेट देने रहै। कुल मिला ओहि समयमे हम
हतोत्साहित भए गेल छलहुँ। ई अलग बात जे तखनसँ एखन धरि हम 118टा टेन्डर जमा कए
चुकल छी आ ओहिमेसँ 44टामे सफल सेहो
भेलहुँ। मुदा हरिद्वारमे हम असफल भेल छलहुँ। मोन दुखी छल। मुदा ऐ घटना पर हमर कोनो
वश नै छल। कुल मिला दू बजे रातिमे बस पकड़लहुँ। निन्न हेबाक प्रश्ने नै। हारि-थाकि कए ई पोथी निकाललहुँ ( हमर बैगमे हरदम किताब, हाजमोला आ मंच नामक चाकलेट
रहैए ) आ सोझे-सोझ बीचक कथा " चूनबाली"क अंतिक पन्ना
नजरि पर पड़ल आ ताहूमे अंतिमे पाँति सभ पर............................" फुलियोक नजरि मटकुरियाकेँ
मुसकियाइत देखलक। एकटकसँ एक दोसराक आँखि गरौने अपन जिनगी देखए लगल"
आ कि हमरो अपन जिनगी देखाए
लागल। पूरा कता पढ़ि गेलहुँ। आ तकरा बाद पलथी ( बसक सीट पर पलथी मारि बैसब
खतरनाक होइ छै ) मारि शुरू केलहुँ आ गुड़गाम
अबैत-अबैत
खत्म। सभ कथा पढी गेलहुँ। एक-एक पाँति पढ़ि गेलहुँ। मुदा
हरेक कथाक अंतिम दू-तीन पाँति बहुत नीक लागल। कारण ई पाँति
सभ हमर नोर पोछबाक काज केने रहए। ओहन समयमे जखन की हम अपन असफलता पर दोसर नग्रमे
कनैत रही तखन " बिसाँढ़"क पाँति आएल " सुगिया दिस.........................परानी विदा भेल "। जखन हम दोसरक
आशा चाहैत रही तखन " पछताबा " केर पाँति आबि गेल " पतिक............. गिनगी देखए लगलीह"। जखन हम ई सोचैत
रही जे आब हम अपन सीनीयर लग की कहबै तखन हमरा लग " भेंटक लावा " केर पाँति आएल " मुँहसँ ठहाका............कैंचा गनए
लगल"। मतलब जे हरेक कथा हमर नोरकेँ पोछबाक काज केलक।
हमर हाथ पकड़ि उठेबाक काज केलक। आ तँए हमरा ई पोथी मेघदूत, पदावली, सोहर आ एपोक्लिप्टो नाकम
फिल्मक आधुनिक स्वरूप लगैए। अर्थात कहबाक ई मतलब अछि जे जगदीश प्र.मंडल कालिदास, विद्यापति, सोहर पदक अज्ञात रचनाकार आ
मेल गिब्सनक आधुनिक अवतार छथि। ऐठाम प्रस्तुत पोथीक आर बहुत रास विशेषता छै। जँ
अहाँ महात्मा गाँधीक स्वराज दर्शन बूझए चाहैत छी तँ " गामक जिनगी " पढ़ू। जँ राजाराम मोहन रायक
कुरीति भगेबाक अवधारणा चाही तँ " गामक जिनगी " पढ़ू। जेना सरदार पटेल
राज्यसँ राज्यकेँ जोड़लाह तेनाहिते जगदीश जी गामकेँ गामसँ जोड़लाह आ ताहूसँ बेसी ओ
लोककेँ लोकसँ जोड़बाक पक्षमे छथि। जँ गीताक कर्तव्य चाही तैयो " गामक जिनगी " पढ़ू आ जँ सन्यासक क्रम
बुझबाक हो तैयो " गामक जिनगी " पढ़ू। कुल मिला कए ई पोथी
हमरा हिसाबें डिप्रेस्ड आदमीकेँ समान्य करबाक क्षमता रखैए।
आधुनिकतासँ जन्मल जते समस्या
छै ताहिमे ई डिप्रेशन सभसँ बेसी खतरनाक छै ( कारण चाहे जे हो )। एहन समयमे जँ " गामक जिनगी " पढ़ल जाए तँ अपेक्षित लाभ
भेटतै। ओना ई आशावादी दृष्टिकोण जगदीश जीक हरेक रचनामे भेटत आ ताहिमे एकटा प्रमुख
नाम थिक हुनक उपन्यास " उत्थान-पतन "। तँए हम पाठक
सभसँ ई अपेक्षा रखैत छी जे जगदीश जीक हरेक रचनाकेँ ऐ दृष्टिकोणसँ पढ़थि...... एना केलासँ निश्चित रूपें
समाजक भलाइ हेतै।
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