भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Saturday, July 14, 2012

'विदेह' १०९ म अंक ०१ जुलाइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५५ अंक १०९) PART II


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
कामिनी कामायनी
            महानगर मे सुनीता
हाली हाली खा लू भनसा हो गैल है. . आभीतरी से कुंडी लगा के सूति रहब।आहे गे निसा .. तू देखीहै बौआ के  .. .  कोठरिये मे खेलीहै सब कोनो ।अपन घरक सबटा काज निबटा क’ . . . तीनों धिया पुत्ता के खुआपिया कएक गोट डिब्बा मे सूती साडी के लत्ता मे गिन गिन कसोहारी रखलक़ . दू गो नीसा. . दू गो रीता .. एगो बऊआ. . दू गो हम. . नीसा के पप्पा तखाईए लेलकै. . भाई जखनी औतै. . तखनी देखल जैतै. . ।अखनी तहम चाह पी के चल जाए छी .. ओ ठीना कोनो नै कोनो घर मे चाह बिस्कुट भेंटिए जाए है. .. आदुपहरिया के खाना बनाब सॅ निचिन्त. . .आ जहिया नहि बनाबै . . भोर मे देर से ऑखि खुजै. . .तनीसा अपन सबके रोटी बना लैत छै. . पप्पा आमामा के खुआ कओकर लंच से हो बान्हि दैत छै. . मन मे सोचैत गुनैत मुस्कैत. ..नीसा के काबीलती पर गुम्हरैत . चप्पल पहिर कघर से निकलबा सॅ पहिने सोझा ठाढ तीनों धियापुत्ता पएक नजरि फेरैत ओ नीसा के फेर से सब बात बूझौलकै. . .घरवला एक कोना मे बैसल चुपचाप बीडी धूकि रहल छल. ।मुॅह पकोनो भाव नै. . कहियो नै रहलै आब कत्त से हौक . ।
        जल्दी जल्दी ओ घरक सीढी उतरि गेल . . मुदा भरि बाट अपना संग चलय वाली संग फदकैत रहलै. . हे गे सोनी .. कनियो देर हो जेत्तौ. .. .तऊ जे बारह नंबर बाली हौ. . आगि उगले लगतउ मूॅह से एत्ता देर क्यों हूआ.  ..हमरो बडा खीस बडलौ. . ।ठामे जबाब देलियै. . कोनो सरकारी नौकरी है .. जो हमको ऐसे डॉटते हो ।मुॅह चुप्पे रहि गेलै ।आ उ जे सात नंबर बाली हौ. . .एक कप चाह पिया कबेटा बेटा करि केढेर के ढेर काज कराबे लगतौ   . . ।कोनो नीम्मन घर पकडा जैतै .. तहम ओकरा छोडि देतीयै  .. ।फोन अतउ तकहतौ .. तुम्हारा तो बहुत फोन आता है ।
      काज से घुरती काल टहटहौआ  रौद .. .सुशीला के काज सेहो एक बजे धरि खतम हो जाय छै. . तएक घर बचलै . .कपडा वला. . जे काल्हियो हो जैतै .. कौन बेगरता है. . सोचि के ओहो ओकरा संग घर चलि पडल छल .. ।सुरेनदर भेटलै रस्ता मे. . .ई चिकरल हौ जीजा .. .बिजली बला काम हमे डेढ सौ से एक दमडी कम मे नहीं करबौ. . .।ओ चुपचाप मुस्कैत जाईत रहल छल .. .। आहॉ के बिजलियो के काज आबै है।सुसीला अकचका क पुछलकै तओ फुलि कतुम्मा होईत बाजल हे हम सब काज कयले हीयै. . .घर बनाबे के रोजा मिसतिरी बला .. माली बला .. सब्जी उपजाबए बला. .  . .सब काज केले छिए इहॉ पर .. .गाव मे रहिए तहमर बडकी दियादिनी. . राति क ले जाए रहै खेत मे कटनी करवाबै ।
      घर पहुॅचल तदरवज्जा खूजल देखि कओकर
करेज हिल गेलै. . .नीसा के बाबू. . फोंफ काटैत नीचा मे बीछल चादर पर ओंघडायल. . .तीनों मे से एको धियापुत्ता ने घर मे. . उनटे पैरिए भागल जेना बिच्छा डंक मारि देने होय पैर मे .. .पाछॉ बाला पारक मे ताकल .. पीपरीक गाछ तरे मझली बेटी रीता कानैत ठाढ .. .माय के देखिक ओकर कोढ आर फैट गेलै. . मम्मी बौआ हेराय गेलौ. . दीदी गेलौ है खोजे. . .।ओ तपहिनहीं सॅ आतंकित. . .बिन क्षण गमेने. . लग के मस्जिद मे मौलवी लग पहुॅचल. . .आ  मौलवी के कही सुनी के निहोरा पाती करैत माईक सॅ एनाउंस करबा देलकै.  डेढ बरक के बच्चा. . रंग गोरा. . गरा मे करिया तागा .. लाल रंगक टी शर्ट पहिरने. . माथ पर बडका बडका झोंट .. .हेरा गेल छै. . जे भले आदमी के भेटै. . .कृपाकरी कओकरा सेक्टर तीन के महजिद पर आनय के नेक काज करौ ।त एही काजक एवज मे अहू के अल्ला दौलते असबाब से भरि देत।मौलवी के बोल भरोस पर ओ कनी हल्लुक भ
अप्पन घर दिसा बढल तबडकी बेटी नीसा सेहो पारक दिस से आबैत छलै.। .मम्मी लग दौडल . . पप्पा सूति रहलौ .. .दरवज्जा खूजल देखि के बऊआ नीचा जाय लेल जीना से एतना तेजी से उतरलौ. . कि जाबेत हम चप्पल पहीरिय पएर मे ताल्ले त उ निपात्ता .. .।भायक प्रेम से बेसी मतारी के भयानक आतंक  .. आब तझोंट पकडि कहमरे मारत ई सोचि कसात बरखक नीसा ऑखि से ढरढर नोर बहाबैत जोर जोर से कानय लागल छल।
 दूनू बेटी के लओ घर आयल  .. घरबाला तखनि धरि फोंफे कटैत रहै. . ।पीत्त से आन्हर सुनीता पहिने तअप्पन माथ कपार केपीट अपन भाग्यके सरापलक़ . जे केहेन निकम्मा जोरे भगमान ओकरा बॉध देने हथीन .. .।तेकरा बाद सूतल आदमी के पएर झीक झीक कउठौलक .. हे उठू नै .. इहॉ परलय मचल है आ अहॉ निभेर भेल सूतल हती .. देखीयौ. . .बौआ काहॉ चल गेलइ .. .माय गे माय ।कानय लागल ।. . .. बौआ कहॉ चली गेलै.  .’ई वाक्य जेना ओकरा कान मे घुसि माथ फोडैत निकैल गेल होय .. ।बौआ  .. पाथर पर के दूब .. .सोरह सोमबारी कैलकै. . तखनी भगमान देलखिन .. ततेक धडफडा के उठलै . . . जे खिडकी के पल्ला से माथ मे ठॉय चोट लगलै. . कपार दबने उठी के बैस तरहल मुदा एको आखर मूॅह से बहरैलै नहिं ।सुनीता बजैत रहलै . .कनैत रहलै. . ।फेर पाछॉ घुरि ककहलहक  दूनू बहिनी घर बन्न केने रहिए कोनो आदमी कहतौ त न खोलिहै. . .आअहॉ चलू हमरा जोरे  . .पुलिस लग .. आजीजा के सेहो फोन करि दैत छिए।भाय परसू सेहो ताधरि डिउटी पर से आबि चुकल छल ।
  सब मिलकफेर से मस्जिद पर पहुॅचल .. .ताबैत घंटा भरि भगेल छलै . .आकियो अनठिया सेक्तर तीन के झूलाबाला पारक के गेट पर कानैत ओही डेढ बरखक बच्चा के उठा कमस्जिद पआनि कराखि देने छलै. . . बौआ के देखक सुनीता के जान मे जान अयलै।हुलसि कओकरा कोरा लेलक आ दूनू हाथ से कसि कअपन करेज मे सटा लेलकै. . .अनमोल धन हमर. . ।
    अहि अलबा दोलबा मे सांझ पडय लगलै. . तदौडल सांझ बला काज लेल ।  .. .राति कभनसा बन्ोबा काल. . .घरबला के खूब खूब लोहछि ककुबोल सुनोलक़ . . बच्चा तक अॉहा के देखे पार नै लगैय. . . . मकान मालिक किराया मॉगे आबै है तअहॉ लुका जाय छी .. एतनो नै .बोलल होइय जे दू तीन दिनक बाद आऊ . .बा घरे प किराया पहुॅचा देबए. . .पेठिया से तीमन तरकारिए आनि कराखि लीअ. . खाली मुॅह लटकौने . .धौना गिरौने बैसल रहता जे बलु है न सुनीता सरदार ।
तू ही न पहिलुका नौकरी छोडबा के ई लगबा देले है. . जे इहॉ बेसी पैसा भेटत. . आब नाइट गाड के दूनू सिप्ट के नौकरी करि के तहमर पराने निकल जेतै. . .हम नै करबौ ई नोकरी गावे चल जैबे .. ऊहें खेती पथारी करबै. . .।गाव के नाम सुनि सुनीता के दिमाग जेना आसमान से धरती पर आ गेलै .. .  नै .. दूनू सिप्ट के नोकरी नै करू एके बेर करू. . तनिका आरामो त जरूरी है.इए है .. .।ओकर अकड कनि कमजोर पडलै .. स्वर सेहो कनि मोलायम .. .सूतू ततनिका कुंडी त लगा लैतीयै भीतर से  केत्ते फिरीशानी होलै . ।
हे हम कुंडी लगाबए लगलियै तनीसा चिकरए लगलै. . नै करहू बन्न .हम नीचा खेलय जेबै तहमे की करितीयै. . ।पति अपन पल्ला झाडि सात बरखक बेटी के माथ पराखि देलकै. . .जेकरा इसकूल छोडबा के दूनू छोट भाई बहिनी के देखभाल करै के जिम्मेवारी के संगे आटा सानब .. रोटी पकायब बरतन मॉजब दोकान से बीडी गूटका आनब आआर आर काजक संग कतेको काज करए पडैत छलै. . .उठौलक माय छोलनी आदे दनादन .. .पीठ पदू चारिये छोलनी सॅ कमजोर बच्चा . .फर्श पखैस पडले. . चान्ह आबि गेलय जनू .. . ई देखि ओकर मगजक पारा तुरंते नीच्चा आबि गेलै. . .हे संतोषी माय .. ई की भेलै ..  .. गै .. बऊआ .. .नीसा .. गै .. ऑखि खोल नीसा .. .कोरा मे लपानि छिटलकै मुॅह प’.  .ठोर अलगा कपानि ढारलकै मुॅह मे .. . .. .कनी काल मे नीसा ऑखि खोललकै. . . । धिया पुत्ता के एना नै मारे के चाही ।बाप कुनमुनेलै. . तमूॅह लटकौने माए .. .सब के भोजन भात कराकअपनहू खा पीबी कसूति रहल छल. . .घरवला के तरतुका डिउटी .. .ओ तगेल काज प
  हे दिन तसब कोने के फिरीसानिए मे कटै हैक . . निफिकिर चाही तगावे मे न रहितीयै. . ।ऑय हे. . राति एतना हो हल्ला मारपीट काहे भेल. . .।  क़थी कहियो बहिना .. .छोटका बौआ के फल फुला के तुम्मा भगेल है भरि भरि राति कानैत रहै है. . ई तभिनसरे खा पीबि कअपन टैंपू निकालि ककाम पर चल जाए है. .  .. कनिये हटि कहमर बाप मतारी के घर है ।तकाल्हि खुन बच्चा के ले के हम डाकडर के देखाबे गेलीयै. . .आबैत जात  बेरो हो गलई आ थाक़ सेहो गलियै .. .हम माय भीरा खा लेलीयै. . .सोचलियै. . .जे एकर पप्पा तरोज बाहरे खाय है. . ।काल्हि बाहर न खैले रहै. . .रोटी के डिब्बा खोललक तखाली .. .बस पीत्ते आन्हर. . .सूतलाहा बच्चा के डेंगा उठा के जाय रहै फेके बाहर . . दारू के नसा मे सांड बनल. . तहमहूॅ पीत्ता गेली. . गैस के पाईप खोलिक अपना देह मे आग लगबै लगलियौ. . ओपडोसिया हल्ला सुनि के दौडलै. . आहम्मर चुन्नी से आगि मिझैलकै. . .दू थापड मरदावा के मारबो कैलकै .. .तखनि जा कसांत भेलै ।
जे बूझे छियै . .तकथी लै नहिं दू गो रोटी बना के सदिखन घर मे रखने रहै छी. . ऊ न खतई तधिया पुत्ता खा लेतै. . कोनो जिआन थोडे न होत.  .मीना के हिरदय एखेन धरि ओही आगि मे झुलसि रहल छलै. . ।ओकर स्वर बदलि गेलै. . मार मू झौंसा के ओकर करेज नै डाहब जे आब दलीद्दर के भनसा करि कखुएबै. . .हम तजाय हिए माय भीरे ।सुनीता के करेज ओकर दुख से पसीझ गेलय ।ओ ओकर मदैद करए चाहलकै. . के भर जिनगी बैठा के खुऔत. . .कोनो काज किए नै पकडि लैत छी. . काज के कोन कम्मी है. . ईहॉ पैसा बरसै है. . .कोठी वाली सब के कनि आटा सानि दिऔ तदू सौ टाका. . सब्जी काटि दियौ  ..एक टैम खेनाई बनाए के अढाई हजार .. .। अहॉ के बीमार बच्चा ठीक हो जाएत तपकडि लेब माय तनि बच्चा के तराखिये लेत न. . ।
ओकर नजरि एके संग पानी के टैंकर आअपना घर के सोझा खटौली पबैसल बुधनी पपडलै. . हे बुधनी पानी के गाडी अलौह जो भर ले डिब्बा सब मे. ।ओकर सलाह पबुधनी उछलि कबाजल  ओ जंग तमारा पीटी हो रहल है ।’’ ‘है चल. . हमहू चलै छियो देखे हिये केकर बाप के मजाल   है . . . न भरे देतई. .   .पॉच पॉच लिटर के दू डिब्बामे .. .भीड मे घुसि घासि ककहुना ओ भरिये नेने छल।बुधनी के कहलकै. जखनी देखीहै ..टैंकर हमरा फोन करि दीहै. . हम दौडल आबि के पाानि भरबा लेब तोरो आअपनो।चार चार दिन पपानी आबै है .. तलोक की करतै. ।


   सडक टपि कसीधा पबलीक इसकूल छलै . .. आओकरे सीधा मे ओ कालोनी जाहि सॅ सटल ई गाम.. जतय किराया पकोठरी लई सब रहै छलै. . . ।काज पअबैत जायत ओकर नजरि इसकूल के गेट पठाढ माली पपडलै. . कई दिन सॅ ओ सोचैत रहै ओकरा सॅ गप करए के. ।ओही दिन ओ झटकि कओकरा दिस बढल आ गप सप्प मे पता चललै जे ओहो ओकरे ईलाका दिसुका छै. . . अही ठिना माली गिरी के ठिका नेने हैय. . .। माली के काम तहमहूॅ करैत रहलियै हबिजबासन के फारम मे  . .. बडकी चूकी नरसर्ररी रहलै ह. . बडका बडका गमला उठाबी राखी. . .खाद पानी दियै. . निकौनी करियै. . बडी दिन तलक हम ऊ सब काम कयले हियै. . .।’. . . “काहे छोडलू. . .उहॉ . ।
फारम के मालिक तबडा मानैत छलै हमरा. . .ओही मे ओकर बडका कोठी रहलै ह’. . हमरा बौआ के जनम मे हमर कोठरीपर आके पच्चीस सौ रूपीया देने रहै .. कहलकै. . जे एकर जनम हमरे जनम दिन हुआ है देखना ई कतना बडा आदमी . बनेगा. . .मुदा ओ तसदिखन बाहरे रहैत छलै. . . आ ऊ ठेकेदरबा  पैसा देबै मे.. .बडा हरामी . .. सब सनि रबि के पैसा के खातिर ओकरा से झगडा फसाद होय. . . ।अही से इहवा चलि अलीयै .. ।आ बड चलाकी सॅ मुसैक मुसैक कओ अपन घर बाला आभाय लेल माली के काज गछबा लेलक़ कि होतै. . रात मे डिउटी करथिन आदिन मे माली के काज कलेथीन. . दूनू सिप्ट गाड के काम मे बडा परेसानी तनिको आराम नै. . .।.
प्रसन्नता के  मारे ओकर पएर जेना हवा से बात करए चाहै. . .हाली हाली पहुॅची घर आहाली से बताबी ई खबरि . . ।
 कि है. . काहे एतना धडफडी देखा रहल छहू  .. . जीजा सेहो कोठरिये मे बैसल  भेट गेलय. . ।आ डबल नोकरी के गप सुनि सब कियो के मन ताताथैया करए लगलै. . .।  चलू कुछो नींम्मन पकाऊ. . .खीर पूडी बनाऊ ।. .पाटी करू. . ।आय हमरा तरफ से. . ... जो गे नीसा . . लछमीया के दोकान से .. .एक पैकेट दूध आआधा लीटर तेल नेने आ. . .. . आटा है न कि उहो मॅगाबे के पडतै. . . .. ।सुनीता के जबाब मे  कि आटा हो जैतेओ बड अधिकार सॅ अपन शर्ट के जेब सॅ नमरी निकालि नीसा दिस बढौलकै. . तनीसा उछेल पडलै. हम चिप्स लेबै. ।अपन उदारता के परिचय दैत जीजा पचास टाका और निकाललक . .. .रीता सेहो ठुमकल. . हम टॉफी लेबै .. ।’ . “जो जो जे मन होउ खरीद लिहै . .।
   जीजा सुनीता के बूझैलकै. .  अब एतना पैसा के की करबहक़ . . दूनू के नाम पर एल आई सी खोलबा दियौ. . .महीने महीने हजार वा पनरह सौ जमा करै के होयत .. आछौ साल मे एके बेर छौ लाख उठैब तदेखाईयो पडत. .  .. नाईट गाड बला पैसा खा पीब  घरे भेज .. .आ माली बला पैसा जमा करए .. दू गो बेटी है बियाहे के. ।छौ लाख के नाम सुनि सुनीता के मुॅह खूजल के खूजले रहि गेलै. . .। फेर कनि काल मे बाजल . ठीके तकहैत हथीन जीजा .. खोलि दहु आहमहूॅ तकमेटी लगौने छियै. . . ई सामने वाला कोठी. है न ललका फूल बाला . .इहॉ जे अंटी रहै है .. आओकर बेटा दूनु मिल क  कमेटी चलाबे हैई ।बडा भला आदमी है. . बोली केहेन मीठ .. जेना मौध चुबे हई. . .सब के समय काल पडला पमददियो करे है. . ।’ “हॅ. . हॅ जनेत हीय ए महल्ला मे भला ओकरा लोकनि के के नहिं जानै है. ।
  इंनिरा आवास मे जे पैंतीस हजार के चेक दु मरतबे मिलतै. . .तहम पहिले जाकए ईंट ..सूरखी .. गिरा लेबै. . आपनरह दिन के भीतर खाली जमीन पर मकान के जोडैया करबा देबै. .  . .ताकि दोसर चेक .. जल्दी से मिल जाए. .  ताले . हलबैया बला दू कट्टा जे घरे के सोझा मे बिकाऊ है. . ओ खरीद कछोडि देबै ..।अपन भविष्यके योजना मे लीन सुनीता मूडी झूका कपूडी बेलैत बाजि रहल छल .. .। आहॉ के घर नै हकी . .।जीजा पूडी आखीर के अचार संग सुआद लैत पूछलक .तमुडी उठा कसुनीता चमैक कबाजल घऽऽऽऽऽर ।बियाह से पहिनहीं के है. . पक्का के मकान है. . ई पंजाब मे रहै हलखिन तहिये बनौने छलखिन. . .।  त फेर .. अहॉ के इनिरा आवास के पईसा कोना भेटल. . .।’. . “सबके भेटलै परोपट्टा मे  .. दू हजार दे कआइल रहियै. . पोरकॉ .. .जे हमर नाम गरीबी रेखा के नीचे बाला लिस्ट मे आबे के चाही .. न तहम सूद सहित पईसा बोकरा लेनाय जाने हियै . .।घरवला एकदम चुप्प  .. जेना सुनीता मालकिन .. आ ओ ओकर खवास. . .।भाय सेहो चुप्प ।हब्बर हब्बर सबके खुआ पिया कओ अईंठ बासन समेटय लागल छल .. दूनू नाइट गार्ड अपन अपन कम्म्ल. .ओढना झोरा झपटा लओही पूसक थरथराति हाड हाड कॅपाबैत राति मे डियूटी पर जाय लेल निकलल ।छोटका बच्चा तसांझे सूति रहल छल. . दूनू बहिनी खाईत मातर पटापट ओछेना पर खसि कबेसुध  ।तीनो के पतियानी से सुता के कम्मल चद्दरि ओढबैत झॉपि तोपि कनिचिंत भेल . .।पछवारी देबाल प बडका कलेंडर टॉगल रहै. . हॅसैत लडकी के ।ई की. . ई तफाटल है. .कनि सुन अटकल. . .ओकर दिमाग फेर सॅ गरमाय लगलै. . ई हे छौडी सब के करिस्तानी होतै. . ।मन भेलै. . सूतले मे एक एक  लात दूनू के मारी घींच क’ .. मुदा चुपचाप मन के बलजोरी काबू मे राखि .. कनिसून आटा घोरी कआगि पबरकौलक़ . आतपते तपते चमस सॅ उठा कदेबार पकलेंडर के साटि देलकै. . .।
     जीजा सेहो दूनू गोटे के संगे निकलि गेल रहै. . .मुदा कनिकबे काल के बाद ओ आपस कोठरी मे आबि गेलै।सुनीता बरतन धोकए दरबज्जा बन्न करितै कि ओ कोठरी मे पइस गेल रहै. . कनि काल लेल तओकर मुॅह सूखा गेलै .. .मुदा की बजितै. . .। हे देखियौ आय बिदेसी बोतल अनने हियै. . .अहू पीबियौ न एक घोंट. . ।आ जबरदस्ती बोतल खोलि कओकर मुॅह मे लगा देलकै. . सात रंगक मूॅह बनबैत ओ बाजल . धूर मंसा .. अहू नै हद करै हीयै. . जाउ न मेहरारू रस्ता देखैत होयत . ।’ ‘ कनि देरे से जेबे तकोन जुलुम भै जेतै. . ।सौंसे बोतल एके बेर मे पीबी गेलई 
    गोर नार . . लमगर पारत नीक नाक नक्स. . .बाली सुनीता . . . बीतबा कारी बूढ घरबाला. . .तखन जै जमाना मे बियाह भेल छलै. . सुखीतगर घर छलै. . लडिका पंजाब मे कमाइत छलै. ।. ओ बजाज के गमकौआ तेल. . पचास रूपया बाला. . .. . चमचमौआ नूआ पहिर छडी सन देह . . मलकैन बाली शेखी सॅ चलै  छोटका के संग बडका लोक के नजरि सेहो ओकरा पअटकि जाय .।  ओ पंजबिया के घर छोडि देलियै. . .अंटी जी तभिनसरहीं काज पर निकलि जाए. . आ साहब भरि दिन घरे मे .. कहै सुनीता पैर दबा .. माथ दुखाता है माथ दबा. . ।बजै जे हबाई जहाज के उडाबै है. . मुदा भर दिन तघरे मे घुसल देखीयै. . ।जेने जेने काज करियै. . .गिलास मे दारू नेने ठाढ भजाय. . कहै. . जे तूमको पलौट लिख देंगे. . .।ओकरे पलौट लेल हम खग्गल हीयै. . .मन तकहिया से घोर मठ्ठा हो रहल छलै. . मुदा बेटा के बियाह के दिन ओकर घर के काज छोड देलीयै .. .।कत्तनो कहलकै. . मैडम जी तैयो न गेलियै. . पइसो लेबे न गेलियै ।रानू के सुनबैत चलल जाय रहल छल ।
 है  हाली हाली किएक चलल जाए छी ।सुशीला ओकरा बडका बडका डेग मारैत देखि क पूछलकै तचलिते चलिते ओ बाजल. . कुछ न पूछू दिमाग खराप भेल है. . नीसा के पप्पा के ठंढी मार देलकै. . .जीजा के फोन आयल छलै. . .जाय हिए डाकडर लग।
   घर आबि कलहसून तेल बरका कसौंसे देह मे मालिस कैलकै. . .गरम गरम चाह बना कदेलकै. . दलदल्ली तइयो नै कम भेलै .. ।तखन पडोस मे रहय बला
डाकडर  ओत्त लगेलय. . देह मे गरमी आनै के सूईया देलकै . . .।गार्ड के ठेकेदार के फोन नंबर ओकर मोबाईल मे फीड छलै. . कोनो नै कोनो चेन्हासी लगा देने छलै जीजा. . .सब नंबर के सोझा  .. जाहि से ओकरा कोनो प्रकारक फिरीसानी नै होय फोन करय मे . . .तुरंत  ओ ओकर घंटी बजौलकै. . हैलौ. . हम सुनीता बोलता है. . नीसा का पप्पा को ठंढी मार दिया है. . डाकडर के पास है. . आज रात का डियुटि नहीं करेगा . . ।आहे भाई साहब उसको दिन का डियुटि दे दो न .. बडी ठंढी है. .गरम कपडा भी जादा नहीं है.  एतना तकीरपा करो भैया .।आ ओकर डियुटि किछु दिन क लेल बदलबा देलकै. . ।
    इम्हर किछु दिन से ओकर माथ चकरायल रहै छलै. . कुछ न  कुछ गडबड हो रहल है. . .तेसरा महीना चढि गेलै. . ।जेठ मे बौआ के मूडन गछने हीयै भगता के इहॉ. . सब गुड गोबर हो जेतै. . ओ अपने नसबंदी करौने है. . ।ओकर मन धुक धुक करैत बेसुध होबय लगलै. . .कि करू कि नै करू किछु फुरैत नै है. . तुरंते फेर जीजा के फोन लगौलक़ . हे जीज्जा .. . . . ।ओ ओकरा भरिपोख भरोस देलकै. . . अहि मे फीरीसान होबै के कोैना बात है. . सनिच्चर के दू बजे दिन मे आबै हिय .। 
घरबाला घरे मे रहै बजलक बडा तबियत खराप लागे है. . पेट मे मोचाड . .दस्त .. जाड .. जेकॉ लगैहै.  डाकडर लग जाय हीये .. नीसा खेनाय बना देत तखा पी कडिउटी पर चल जायब. . उहॉ तदेखबे केले हीयै कतना भीड रहै है. . .।
    ंमहिपालपुरक एक गोट किलनिक मे जतय ओ एक बेर और आयल छल. . सुरेन्दर संगे. .पहुॅच त गेल मुदा डाकडरक टेबुले पर ओ बेहोस भगेलै. . चारि बोतल गुलकोज चढैल गेलै   तीन घंटा के बाद ऑखि खूजलै .. त
 ऑटो मे बैसा कओकर घर से तनिका पहिनही उतारि जीजा अपन घर जैत रहल. . .।कहुना लडखडाति .. .हॉफैत .. .ई अप्पन कोठरी मे आबि पहिनहीं से बिछौल चदरि पधडाम सॅ पडि रहल. . मम्मी मम्मीधिया पुत्ता सब हल्ला कयने रहै त बड मोसकिल . से ऑखि खोलि कअंगुरी ठोर पराखि क चुप रहबा के ईसारा केलकै. .। सात बरखक नीसा बड बूझनूक  तुरंत बूझि गेलै .. मम्मी के मोन जादा कराप है. . गिलास मे बोतल से ढारि क पानि देलकै. . अपन छोट छोट हाथ से माथ मे गमकौआ तेल लगेलकै. . हाथ पएर जॅतलकै. . .ओ निन्न पडि गेल छल ।
    देह पीयर . . . ऑखि पीयर.  .. .एकदम कमजोर । कोठी बाली सब फोन पफोन करय लगलै. . .तफोन के स्वीच ऑफ करि कराखि देलकै. . . मने मन गरियैलकै. . जरलाही सब मरलो मे चैन नही लेबए देत. ।चारि दिन अपने से बरतन मॉजि ल्ोतै तहाथ घीस जतई।आठ दिनुका बाद कहुना करि ककाज पपहुचल .. तदू टा काज तछुटिये गेलए. . .के ओतेक दिन बिन कोनो सूचना के  .बिन आस के इंतजार करितै. . ।
  हे ई की हल्ला सुनै हीयै. . .।सब कहै है. . लाल फूल बाला कोठी के अंटीजी राताराति अपन मकान बेच के भागि गेलय. . .दूनु माय बेटा.  .’ “आय  .. भागि गलई. . दादा हो दादा . .हमर एक लाख रूपया ओकरे हिया  जमा रहै हो दादा .. . दू बरख से हाड हाड गला के  .रिक्सा खींच खींच के  .. पेट काटि काटि के ढेऊआ जमा कयने रही हो दादा. . ।बीरेन साह बेसुद्व भेल अपन माथ पमुक्का मारैत ठामे के ठामे बैस रहल छलै. ।नथुनी राय से फराक अपन छाती कपार पीटय लागल ..  हमर डेढ लाख .. . रूपीया .. कतबो कहलकै. . मालिक .. पोस्टापीस मे राखे लेल. . मुदा नै मानलियै .. हमे. . .कहलियै जे हमरा लोकनि के अंटीये बैंक आपोस्टापीस है. . न कोनो फारम भरे के झंझट .. .नै .. लिखा पढी करे के. . एको रजिसटर पर लिख लै है. . आअंगूठा छाप लगबा लैत है. . ओ भगतीन बेचारी सदिखन मातारानी के नाम लैत रहै है.. .।जहीर अल्ला के नाम लकरेज मे मुक्का मारय लागल छल ..  अल्ला हो अल्ला. . ड़ूबि गेलो सब रूपा. . . हो अल्ला .. आब काहॉ से खरादिबौ अपन एसकूटर हो अल्ला ।
   सुसीला. मालती .मीरा .जोती. .सबहक ऑखि कनैत कनैत लाल टरेस. . आब की होतै हो बाबा .. दुरगतिया पर दुरगतिया. . .  .. बेटी के बियाहे लेल रखले रही पैसा. . .अब कइसे होखी बियाह. . .। एतबे मे पी पी पी पी करैत सोर मचबैत .. मीडिया के गाडी सब आबे लगलै  .. .लोक सब अपन ब्याकुल चेहरा नेने न्याय के आस मे ओकरा घेर लेलकै .. .” . ..आजतक बाला के टीम अपन कैमरा लकखनो फूलबाला कोठी के फोटो लै. . कखनो उपस्थित .. जन समुदाय के. . .।एकाध गो पुरूख पात से पूछताछ करि. चिक्कन चुनमुन जनानी सब पअपन कैमरा फोकस करय लगलै. . .।आगॉ खडा सुनीता सॅ माइक नेने पुछलकै. . अहॉ बताउ  .कहिया से ओकरा सब के जनैत छलीयै। आअहॉके कत्तेक पाय ले कभागल. . । हम तइहॉ साल भर से हीयै. . .इलाका मे अंटी जी के बड इज्जत छलै. . भंडारा करै रहै. . कीरतन करै. . सब लोक पएर छूबै. . .।हमर तअस्सी हजार छलै. . मुदा हमर भाय के एक लाख पचीस हजार .. ।गाडी जहीना पींपा करैत आयल छलै. . तहिना  पीं पां करैत चलि गेलै. . .।
    ओय दिन भरि आजतकप इएह समाचार आबैत रहल छल .. .।हजारों लोक के रूपैया ठैक कओ सब नै जाने कोन पताल मे घुसि गेल रहै. . पुलिस के थू थू होबैत रहल. . ।
     कनि दिन सब कानि खींज कगारि सराप दअपन मन के आगि मिझबैत रहल. . . ।एक दोसर के बोल भरोस दैत बाजै. . चलू बूझबै जे कमेबे नञि कयली. . ।समांग रहतै तआरो कमा लेबे. . .लेकिन ओही पपीयहबा  सब के नरक मे से गिंजन होतै. . ।’ “एकनी के की कहल जाव अपन घराडी आजनानी दूनू बेच बिकिन क रूपीया कमाय मे माहिर .. .जनानियो एकर सब के एहने होबै है. ।न कऊनो दीन न ईमान. .।  परदेस हीकै  की करबीही भाय. . .केकरा भीरे जेबीही. . .टीभी मे तदेखेलकौ की होलै. . .गरीबन के आबाज के सुनै है ..।टप टप टप ऑखि सै नोर मात्र खसि रहल छल सबहक .।
        बड दिन से जीजा के फोन नै आबै है. . करबो करै हियै. . तकहै है. .जे ई नंबर मोज्ूाद  नै है. . ।कहले रहथिन जे कत्त दन त सौ गजा पलाट खरीदै हिये. . पचास गज आहॉ के आ पचास गज हम्मर. . दूनू गोडे उहे मिलके
घर बनायब. . ।पइसो पचास हजार देने रहियै. . ।कि भेलै. . जमीन के रजीसटीरी भेले की नोई .. .।अपन कोठरी मे बैसल . .बडका थारी मे आटा सानैत सोचि रहल छलै कि भाय आबि गेलै. . हो भैया तनी देखहू तसुरेन्दर जीजा के बड दिन से कोनो खोज पुछारी नै भेलै. . कहैत रहै जनू अपन बेटी के बियाह करतै.  गाम घर तनै चलि गेलै. . .।ओकर आंगन बाली सेहो नै फोन उठाबै है. . तनि ओकर कोठरी पजा के बूझतीय्ौ . .हाल चाल निम्मन है न।
     परसूराम अपन देह से कंबल उतारेत. . उनटे पएरे विदा भेल. . ।जायके ततनिको मोन नै करे. . .सोचने रहै. . कोठरी मे जाकए खायब आसूति रहब. . मुदा जौं सुनीता के बात नै मानतै तओ बेनग्गन करि देतै. . .।ई गली छोडि के तेसरा गली मे  ओकर कोठरी छलै. . .।पतरकी सीरही चढि कऊपर तीन तल्ला पपहॅुचल तदेखैत अछि. . .दरबज्जा पललका परदा टांगल. . .।केबाड खूजल रहै. . .परदा हटा कभीतर घुसय चाहलक .. तकोठरी के कोना मे इसटोप पभनसा करैत  जनानी दबाडलकै. . .के छहू  . .एना अनठिया लोक केना घूसल जाय है. . ।फेर ओ बाहर निकैल कपूछलके केकरा ताकै हियै ।परसू अकबकायल सन बाजि उठल. . ओ बिजली मिसतीरी सुरेन्दर अही ठिना रहेत हथिन नै.. ।जनानी के किछू नै बूझैले सिरही के
 दोसर दिस आंगूर  देखबैत बाजल हुनकारा से पुछियौन ओही जानैत होथिन्ह ।हम सब नाया किरायेदार हीयै ।
      परसू के उदास उतरल मूॅह देखि सुनीता तुरंत चुल्ही पर से ताबा उतारि गैस बन्न कबेकल भपुछलक़ . बीमार सीमार है की ..।भाय के किछु नहिं बाजैत देखि कओ तेजी से उठि कघर से बाहर जयबा लेल पएर मे चट्टी पहिरए लागल कि भाय के मुॅह से फुटलै                                           कहिया से जानैत छलही ओकरा. . .ओकर माथ पओही ठंढी मे सेहो पसीना चुहचुहा गेल छलै. . किएक पूछै छहू. . . दू तीन बरख से जनितै रहलियै ह  ओकर कोनो पता ठेकाना मालूम हौ. . ।
से तनई अ. . .कहने रहै जे बलु अहॉ के गामे के बगल के गाम मे हमर ससुरारी है. .  .. अब कोन गाम से तनई पूछले रहियै. . .। से की भेलै. . ई लाल बूझक्कड जेना काहै बूझाबय लगलहू .. .हाली हाली कहू नै की बात है ।नै तहम अपने जाय ही ओकरा घर ।
अब जाय के कोन फायदा .. . होतौ. . .ऊ तकोठरी छोडि के कतहू आर चलि गेलै. . यैलाईसी के नकली एजेंट बनी .. कतना आदमी के पईसा ठकि लेलकै. . अपन मकान मालिक के सेहो चूना लगा के भगलै.  हम्मर किसमत हे भगबान. ।सुनीता के चक्कर आबि गेलय ओ एक डेग आगॉ डू डेग पाछॉ झूमैत झूमैत. . .ठाढे ठाढ धडाम सॅ जमीन पर खसि कबेहोस भचुकल छल ।।            

 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
नारायण झा
रहुआ संग्राममे गृष्मकालीन शैक्षिक शिविर सह टैगोर पुरस्कारसँ सम्मानित श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक सम्मान समारोह- २०१२
 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
:: दुर्गानन्‍द मण्‍डल
समीक्षा- जीवन-संघर्ष

मैथि‍ली साहि‍त्याकाशमे एकटा एहेन नक्षत्र जे अद्रा नक्षत्र जकाँ सुधी पाठककेँ सभ तरहेँ मनोरंजनसँ लऽ आदर्शवादी समाज, व्यक्ति‍‍, व्याक्तिक कुत्सिष्‍त एवं दमि‍त भावना, मनमे उठैत वि‍भि‍न्न प्रकारक समस्या आ ओकर नि‍दानक रूपमे भरि‍पोख मार्ग दर्शन करैत अछि‍, जीवन-संघर्ष। जीवन संघर्ष थि‍क आ संघर्षे जीवन। जौं जीवन अछि‍ आ जीवनमे संघर्ष नै तँ ओ जीवन जीवन नै। तहि‍ना जदी संघर्ष अछि‍ तँ ओ संघर्षे जीवन थि‍क। एक-दोसराक बि‍ना दुनू शब्द अक्षुण्न सन बुझना जाइत अछि‍। जीवन अछि‍ तँ संघर्षसँ अपने बचि‍ नै सकै छी आ जौं संघर्षेकेँ जीवन मानि‍ लेब जीवन थि‍क। अर्थात् जीवन-संघर्ष उपन्यास अपन संज्ञाक अनुसार आदि‍सँ अंत धरि‍ खड़ा उतरल अछि‍। सम्पूर्ण उपन्यासमे जे पात्र लोकनि‍ छथि‍ ओ कखनो संघर्षसँ अलग नै भऽ सकला अछि‍। जे संघर्षकेँ स्वीरकार कऽ लेलन्हि ‍ हुनका जीवनक लेल एक नै अनेको बाट स्वागतार्थ प्रकृति‍क संग नैसर्गिक सुख लऽ उपस्थित भेल।

उपन्यासकार एकटा लब्ध प्रति‍ष्ठित जाहुरी जकाँ वि‍भि‍न्न प्रकारक संघर्षकेँ जे देखौलन्हि तँ ओकर समाधानो तकबामे कतौ पाछाँ नै रहला। जीवनमे संघर्षक समाधाने तँ जीवनक अभि‍प्राय थि‍क। ऐ बातकेँ स्पष्ट‍ करबामे उपन्यासकार शत-प्रति‍शत सफल भेलाह। उपन्यासक आदि‍येमे उपन्यासकार बँसपुरा गामक एक गोट नववि‍वाहि‍त यौवना जे जीवनक आ यौवनक सुआद मात्र बुझने हेतीह। गामक सटले आयोजि‍त दुर्गापूजाक मेला देखए गेलीह। गनगनाइत मेला चहुओर लॉडस्पीकरक गगनभेदी आबाज चरि‍कोसि‍क नीन्न उड़ेने, गामक तीनटा लफुआ छौड़ा बहला-फुसला कऽ भनडार घर लऽ जा हुनका संग बलत्कार.....। समाजक सामंतवादी व्यवस्थाक ज्वलंत उदाहरण अछि‍। आखि‍र ऐ तरहक जे बेवस्थाक  हमरा समाजक बीच बाल-बच्चामे व्याप्त अछि‍ जे माए-बहि‍नक संग बलात्कारक संग प्रस्तुत हुअए तखन इज्जत केकर बँचि‍ पाओत? के इज्जतदार रहताह? एकटा प्रश्नचि‍न्ह छोड़बामे उपन्या्सकार पूर्णत: सफल भेलाह अछि‍।

समाजमे व्याप्त ई जे कुबेवस्था  अखनो अछि‍ नि‍श्तुकी ओ हमरा सभकेँ लज्जित करबामे कनि‍यो धोखा-धड़ी नै। जइसँ संभव अछि‍ जे समाजक ऐ कुबेवस्थासँ गाम-घरक धारमे पानि‍क बदला शोनि‍त बहए लागत। उपन्यासकारक उपन्‍यासक उदाहरणसँ स्पाष्ट जे पत्नी-बेटीक मुँहक बात सुनैत-सुनैत पति‍केँ कहलक- जहि‍ना हमर बेटीक इज्जत सि‍सौनीबला लुटलक तहि‍ना सि‍सौनीक दुर्गास्थानमे मनुखक बलि‍ परत।
मुदा बाह-रे उपन्यासकार! जखन सम्पूर्ण बँसपुराबला सि‍सौनीबलाकेँ कचरमबध कऽ लहाशक ढेरी आ शोनि‍तक बहबैले तैयार रणक लेल शंखनादक ध्वनि‍, लाठी, फरसा, ग्रांस लऽ मरै आ मारैले सि‍सौनी दि‍स बि‍दा भेल तखन गामक सभसँ बेसी उमेरक मनधन बाबा द्वारा रस्तापर चेन्ह दऽ ई कहब- ऐ ढाँहि‍सँ जौं कि‍यो एक्को डेग पएर आगाँ बढ़ेबह तँ हम एत्ते प्राण गमा देब।
मनधन बाबाक ई एक वाक्य, आगि‍मे पानि‍क काज केलक। सभ शान्त भऽ जाइ छथि‍।

तखन सि‍सौनी दुर्गापूजाक प्रति‍रूप बँसपुरामे कालीपूजा ठानल गेल। अध्य‍क्ष, उपाध्यक्ष चुनल गेलाह। एक्कैस आदमीक कमि‍टी बनाओल गेल। कोनो काज हुअए ओ सर्वसम्मपति‍सँ हुअए। ऐठाम उपन्यासकार सामाजि‍क सद्भावनाकेँ स्पष्ट करबामे शत-प्रति‍शत सफल भेलाह। जे उत्तर आधुनि‍क कालक मध्य‍ उन्नत समाजवादी दर्शनक कसौटीक झलक सहजहि‍ भेल। समाजकेँ आगाँ बढ़ेबामे दसगर्दा काज जरूरी अछि‍। जाधरि‍ लोकक मनमे दसनामा काजक प्रति‍ झुकाउ नै हेतैक ताधरि‍ समाज आगू मुँहेँ बढ़त केना? समाजेक बीच मंगल सन सोझमति‍या लोक अछि‍ तँ गणेश सन ठकहर सेहो। जइ संबंधमे उपन्यासकार कहए चाहैत छथि‍-एक्के कुम्हारक बनाओल पनि‍पीबा घैल सेहो छी आ छुतहरो। मुदा देखैमे दुनू एक्के रंग होइ छै।

उपन्यासकारक नजरि‍ लगि‍चाइत अमवसि‍या दि‍न साँझे दि‍वाली आ नि‍शा राति‍मे कालीपूजा। गाममे आएल धी-बहि‍नसँ बेसी साइरे-सरहोजि‍, तहूमे परदेशि‍या सारि‍-सरहोजि‍ आबि‍ कऽ गामक तँ रंगे बदलि‍ देलक। मेलाक लेल मुजफ्फरपुरसँ नाटक आ मेल-फि‍मेल कौव्वालीसँ लऽ महि‍सोंथाक नाचक आयोजनक संग वि‍भि‍न्न प्रकारक दोकान सभपर नजरि‍ सेहो छन्हि। मेलामे वि‍भि‍न्न प्रकारक दोकानक बीच, चेस्‍टरबला दोकान सेहो उपन्यानसकारक नजरि‍सँ नै बचि‍ सकल तँ दोसर दि‍स रमेसरा सन लोकक ई कथन- धूर बूड़ि‍ दि‍ल्लीस तँ हौआ छि‍ऐ।
अर्थात् पलायनवादी संस्कारकेँ चुनौती दैत गामेमे आयोजि‍त कालीपूजामे बाजार देखि‍ चारि‍-पाँच हजारक समान बनौलक। जे नोकर नै बनि‍ मालि‍क बनब! कतेक पैघ स्वाभि‍मानक परि‍चायक अछि‍? एवं प्रकारे वि‍भि‍न्न प्रकारक जाति‍ वि‍शेषसँ जुड़ल व्यवसायपर बल दऽ ग्रामीण उद्योगकेँ बढ़ाबा देलन्हि ,‍ जे सम्राज्‍यवादी प्रदुषणकेँ साफ करैत अछि‍।

ऐ प्रकारे उपन्यासक सार समस्त मि‍थि‍ला आ मैथि‍ल समाजक समस्याकक चि‍त्रण करै छथि‍। समाजक बीच व्याप्त वि‍भि‍न्न प्रकारक समस्या जे खाहे पलायनवादी होइ वा कि‍सान मजदूरक। सरकारी मसोमातक होइ वा सामाजि‍क मसोमातक। वि‍भि‍न्न प्रकारक जाति‍ वि‍शेषसँ जुड़ल व्‍यवसायसँ हुअए वा कोसी कहरक समस्या। हमरा समाजक बीच धर्मक आड़ि‍मे राजनैति‍क समस्या सभपर उपन्यासकारक दूर दृष्टि छन्हि। खास कऽ वि‍धवाक लेल कएल गेल प्रयासक पाछाँ बूझना जाइत अछि‍ जे उपन्यासकार कोनो-ने-कोनो रूपमे नायकक भूमि‍कामे होथि‍। चूँकि‍ वि‍धवाक समस्याकेँ एतेक लगसँ देखब आ ओतेक बढ़ि‍या समाधान नि‍कालब साधारण व्यक्तिक लेल संभब नै। अधंवि‍श्वासक आड़ि‍मे भगति‍ खेला केकरो शीलभंग करब आ जहल खटब, सेहो उपन्यासकारक नजरि‍सँ नै बचि‍ सकल। समाजेक मंगलक वि‍चार जोगि‍न्दारकेँ नीक लागब आ सामाजि‍क वि‍धवाक सहायताक उपाए करब, कि‍नको नीक लागि‍ सकैत अछि‍। एतबे नै, दुखनीक वि‍चारकेँ दुखनि‍येक शब्‍दमे उपन्यासकार लि‍खलन्हि- हमहूँ तँ पाइयेबला ऐठीन रहलौं मुदा सभ सुख-सुवि‍धा रहि‍तो ओकरा एहेन नीन कहाँ होइ छै।'' देखै छी जे पेट खपटा जकाँ खलपट छै, भरि‍सक खेबो केने अछि‍ कि‍ नै। तखन जोगि‍न्दिर घुट्ठी हि‍लबैत बाजल-
काकी, काकी....।आ मोटरी खोलि‍ जोगि‍न्दनर जोर भरि‍ साड़ी, साया आ एकटा आंगीक संग दसटा दस टकही आगूमे राखि‍ देलक। ऐ तरहक समाजक दबल, कुचलक मसोमात वर्गक सेवाधारीक रूपमे हुनक यथार्थ सेवा भावना ओहि‍ना झलकि‍ रहल अछि‍, जे ओ कतेक पैघ समाजसेवी छथि‍।
ऐ तरहेँ उपन्यासक एक-एक पाँति‍ जीवन-संघर्षक सार्थकताकेँ प्रमाणि‍त करैत अछि‍। पाठककेँ उपन्यास- जीवन एकटा संघर्षक रूपमे बुझना जाइत अछि‍। प्रस्तुत उपन्यासमे सभ तरहक उदाहरण- हँसब, बाजब, कानब, मारि‍-पीट इत्यादि‍सँ लऽ नव उत्सा‍ह, नव चेतना आ नव दि‍शा भेटैत अछि‍। आन कोनो ओझराएल उपन्यासकार जकाँ जि‍नगीकेँ कोनो चौबट्टीपर नै छोड़ि‍ बल्कि एकटा नव सृजनात्मक रास्ता खोजि‍ पाठकक संग समाजोक लोककेँ देखौलन्हि अछि‍। जहि‍ना नदीक पानि‍ अपना जीवनमे अनेको उतार-चढ़ाबकेँ पार करैत अपन बाट अपने‍ बनबैत अछि‍ तहि‍ना प्रस्तुत उपन्यासमे उत्‍पन्न भेल समस्याक समाधान करैत समाजोकेँ एकटा प्रशस्त‍ मार्ग देखबैत नि‍र्विरोध आगाँ बढ़ल जा रहल अछि‍। उपन्यासमे एकटा समस्या नै अपि‍तु अनेको समस्या उपस्थित होइत अछि‍ मुदा ओइ समस्याक स्वत: बुधि‍-वि‍वेक द्वारा नि‍दान सेहो समस्येसँ नि‍कलैत अछि‍। समाजक सभ वर्ग चाहे ओ दुखनी हुअए आकि‍ पवि‍त्री, श्यामा हुअए आकि‍ तमोरि‍यावाली भौजी। नारीक एकटा सशक्त शक्तिक रूपमे देखा उपन्यासकार एकटा कृत केलन्हि ‍अछि‍। सम्पूर्ण उपन्याससमे उपन्यासकार मि‍थि‍ला समाजक सभ्यता एवं मान्यताकेँ देखाएब सेहो नै बि‍सरला अछि‍। मैथि‍ल बेटीक प्रेम माए-बापक प्रति‍ श्यामा द्वारा आनल गेल पाँच गो दलि‍पुरी, एक धारा चाउर, सेर तीनि‍येक खेसारी दालि‍, एकटा उदाहरण अछि‍। ओतबए नै, मसोमात दुखनीक बेटा भुखना द्वारा आनल रूपैयाक गड्डी देखि‍ ई बाजब आ सोचब-
झाँपह-झाँपह नै तँ लोक सभ देखि‍ लेतह। आखि‍र ढहलेलो अछि‍ तँ बेटे छी कि‍ने।मने-मन भगवानकेँ गोड़ लागि‍ बाजल- भगवान केकरो अधलाह नै करै छथि‍न।

उपन्याँस जेना-जेना आगाँ बढ़ैत अछि‍ सारगर्भित भेल जा रहल अछि‍। पाठक एकसूरे पढ़ैक लेल बाघ्य छथि‍। उपन्यासक मादे भोजनो-भातक धि‍यान नै रहि‍ जाइत अछि‍। अंत: उपन्यासक सारक रूपमे प्रोफेसर कमलनाथ द्वारा प्रस्तुत कथन-
रतुका घटना दुखद भेल। मुदा ओ काल्हुक भेल। कालक तीन गति‍, भूत, वर्त्तमान आ भवि‍ष्य । जे समए बीत गेल वएह समए वर्त्तमान आ भवि‍ष्यक रास्ता देखबैत अछि‍। ढंगसँ एकरा बुझैक खगता अछि‍। दुखक भागब माने आएब भेल।

ऐ प्रकारे जीवन-संघर्ष उपन्यास कल्पना नै अपि‍तु यथार्थपर आधारि‍त बुझना जाइत अछि‍। तँए अंतमे ई कहब जे आशाक संग जि‍नगीकेँ आगू मुँहेँ ठेलैत पहाड़पर चढ़ा अकाशमे फेक दि‍यौक। स्पष्ट अछि‍ जे जीवन संघर्ष थि‍क आ संघर्ष जीवन, अर्थात् जगदीश प्रसाद मण्डलक जीवन-संघर्ष। आ प्रकाशक छथि‍ नागेन्द्र कुमार झा जे मैथि‍ली साहि‍त्याकाशमे पोथी प्रकाशनक झंडा फहरा-फहरा कऽ बहुत कि‍छु कहि‍ रहल छथि‍‍। ऐ लेल श्रुति‍ प्रकाशनक संग उपन्यासकारकेँ सेहो दुर्गानन्द तरफसँ बहुत-बहुत साधुवाद।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र- लघुकथा- चन्‍दा २. उमेश मण्‍डल- मैथि‍ली युवा रचना-धर्मिता :: परंपरा परि‍वर्त्तन आ भवि‍ष्‍य

डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र
लघुकथा- चन्‍दा
राघवकेँ चन्‍दाक संगति‍ सोहनगर लगैत छलन्‍हि‍। राघव आ चन्‍दा समवयस्‍क रहथि‍- लगभग पंद्रह बर्खक। दू-चारि‍ मासक दुनूमे कि‍यो छोट तँ कि‍यो पैघ। चन्‍दा छलीह सांवरि‍, सुन्‍दरि‍। शरीरसँ पुष्‍ट मुदा लोथगर नै। सांमरि‍ चाम मुदा चमकैत। आँखि‍ मध्‍यम कदक मुदा रसगर। ठोर मोट मुदा चहटगर। नाक पातर आ नोक लेने। शायद राघव केर दृष्‍टि‍मे सुन्‍दरताक नीक वि‍वरण यएह छलन्‍हि‍। चन्‍दा छलीह चंचल, कनीक ठसकसँ भरल आ ऐ गुमानमे तनल जे ओ दबंग पि‍ता एवं दबंग परि‍वारसँ छथि‍! चन्‍दाकेँ केवल दू बहि‍न आरो छलथि‍न्‍ह। एक्को भाइ नै। ताहि‍ चन्‍दा अपने-आपकेँ बेटा बुझैत छलीह। पन्‍द्रहम वयसि‍मे अएलाक उपरान्‍तो चन्‍दा अपन उन्नत वक्षकेँ नै झपैत छलीह। ऐमे हुनक उदेस अपने-आपकेँ कामुक बनेबाक नै छलन्‍हि‍ बल्‍कि‍ बेटा जकाँ बेटी छथि‍ तइ बातक गुमान! मुदा जुआनीक दरबज्‍जा खटखटबैत वक्ष, नाक, आँखि‍क गुमानसँ की मतलब! चन्‍दाक गुमानमे हुनकर शारीरि‍क अंग अपन कामुकताक भावकेँ अनेने प्रदर्शन करए लगैत छलन्‍हि‍। आर-तँ-आर चन्‍दा राघव एवं अन्‍य समवयस्‍की छौड़ा सभ संगे कखनो कबड्डी तँ चोरा-नुक्की खेलाए लगैत छलीह। जखन कबड्डी खेलाइत छलीह तँ चेतऽकऽबऽड्डी..... डी...डी...डी... करैत हुनकर वक्ष सेहो शब्‍दक लयक संग संगीतक धूनमे मस्‍त भऽ ऊपर-नीचा होमए लगैत छलन्‍हि‍।
कतेको बेर जखन चन्‍दा कबड्डी पढ़ैत राघव दि‍स अबैत छलीह, राघवकेँ मारबाक हेतु तँ राघव चन्‍दाकेँ पकड़बाक प्रयास करैत छलाह। प्रयास ई जे चन्‍दाक सांस टूटि‍ जाइन्‍हि‍। मुदा चन्‍दा ऐ प्रयासमे जे बि‍ना सांस तोड़ने राघवकेँ छू ली, आ बि‍ना राघवक चंगुलमे कबड्डी पढ़ैत अपना दि‍सि‍ आपस भऽ जाइ। एक-आध बेर चन्‍दा अपन रणनीति‍मे सफलो भेलीह। मुदा अन्‍तत: छलीह लड़की। केना सकतथि, राघवक ठोस, बलीष्‍ठ कद-काठीक समक्ष? अधि‍कतर समैमे राघव चन्‍दाकेँ पकड़ि‍ लैत छलथि‍न्‍ह। आब चन्‍दा राघवसँ अपने-आपकेँ छोड़ेबाक हेतु पूरा प्रयास करैत छलीह। राघव सेहो अपने-आपकेँ एे प्रयासमे लगा लैत छलाह जे बि‍ना सांस टुटने चंन्‍दा नै छुटथि‍। ऐ नोक-झोकमे बि‍ना कुनो गलत भावनाकेँ कतेको बेर छीना-झपटी करैत राघव केर हाथ अनायास चन्‍दाक वक्षपर लागि‍ जाइत छलन्‍हि‍। चन्‍दा बुझैत छलीह जे राघव कुनो दोसर वि‍चारसँ ई सभ नै कऽ रहलाह अछि‍। तँए चन्‍दाक मुँहपर कुनो तामस, लज्‍जाक भाव, प्रति‍कार, घृणा आदि‍क भाव नै अबैत छलन्‍हि‍। बि‍ल्‍कुल स्‍वभावि‍क रहैत छलीह। मुदा कहि‍ नै कि‍एक राघवक कठाेर हाथक स्‍पर्शकेँ अनुभव करैत छलीह। हुनका कि‍छु-कि‍छु होमय लगैत छलन्‍हि‍। आँखि‍ अनेरे आनन्‍दाति‍रेकमे मुदा जाइत छलन्‍हि‍। की होइत छलहि‍ तकरा ओ शायद केवल अनुभव कऽ सकैत छलीह, ओकर बखान शब्‍दक माध्‍यमसँ संभव नै। एहने हालति‍ राघवोकेँ होइत छलन्‍हि‍। नहुु-नहु राघवकेँ एना लागए लगलन्‍हि‍ जेना चन्‍दाक वगैर जीवन अर्थहीन हुअए। चन्‍दासँ जइ दि‍न राघव भेँट नै करथि‍ तइ दि‍न मोन खि‍न्न भऽ जान्‍हि‍। चन्‍दा सेहो राघवसँ ओतबे सि‍नेह करैत छलीह। मुदा राघव आर चन्‍दाक सि‍नेह छल नि‍श्‍छल!

राघव छलाह आर्थिक रूपसँ वि‍पन्न ब्राह्मण कूलक बालक। एकर ठीक वि‍परीत चन्‍दा छलीह एक सुभस्‍य ब्राह्मण कन्‍या। चन्‍दाक पि‍ताकेँ तेरह बीघा ठोस खेतीहर जमीन आ खूब नीक लगानी केर कार्य चलैत छलन्‍हि‍। चन्‍दाक पि‍ताक नाओं छलन्‍हि‍ बुलेसर। बुलेसर बलंठ छलाह। छह फूट्टा मर्द, पहलवान, केवल अपन नाओं आ संख्‍याक ज्ञान छलन्‍हि‍। लगानीक ललका बहीकेँ कऽ टऽ कऽ लि‍खैत-पढ़ैत छलाह। गरीब लोक सभकेँ सूदि‍पर टाका दैत छलथि‍न्‍ह‍। बन्‍धकमे गहना, वर्तन, जमीनक कागत इत्‍यादि‍ राखि‍ लैत छलथि‍न्‍ह। सूदि‍क दरसूदि‍ जखन गरीब लोक सभ आसीन-काति‍क मासमे भूखे मरय लगैत छल तँ बुलेसर बाबू ओतए सबैया-डेओढ़ापर धान अथवा आन अन्न लेमय जाइत छल। बुलेसर बाबू अपने हाथे अन्न जोखैत छलाह। एक मोनक बदला हमेसा 38 सेर दैत छलथि‍न्‍ह। ओहूमे अनाजमे धूल-माटि‍ मि‍लल। छाँटल पखरा अथवा आन कुनो मोटका धान। आ लेबय काल एक मोनक बदला 41 सेरक आसपास लैत छलाह।

कतेको लोक पाइ दैयो दैत छलन्‍हि‍ तैयो अपन लगानीक ललाक बहीसँ नाओं कटैत छलथि‍न्‍ह। चारि‍-पाँच बर्ख चुप भऽ जाइत छलाह। फेर एकाएक एक दि‍न बही लऽ कऽ ओइ व्‍यक्‍ति‍क घरपर महाजन बनि‍ पहुँचि‍ जाइत छलाह, तगेदा हेतु। बेचारा परेशान! मुदा अपन बलंठीसँ चूर बुलेसर बाबू ओइ व्‍यक्‍ति‍केँ गरदनि‍ अपन गमछासँ जकड़ि‍ लैत छलाह। फेर ओकरा लाचार कऽ दैत छलथि‍न्‍ह पंचैती बैसेबाक लेल। पंच की तँ छह-सात चमचाक दल। सभ बुलेसर बाबूकेँ हँ-मे-हँ मि‍लबैबला। सभ हुनके सबहक बात कहएबला। बेचारा असहायक बातकेँ सुनैत अछि‍? लाचार कऽ ओइ व्‍यक्‍ति‍सँ ओकर जमीन आर गहना इत्‍यादि‍ हथि‍या लैत छलाह। अही प्रक्रि‍यासँ चारि‍ बीघासँ तेरह बीघा जमीन भऽ गेल छलन्‍हि‍ बुलेसर बाबूकेँ।

एकबेर तँ बुलेसर बाबू एहेन काज केलन्‍हि‍ जेकरा लोक अखनो धरि‍ नै बि‍सरल अछि‍- नृशंसकारी, जघन्‍य, हत्‍या समान, बल्‍कि‍ साक्षात हत्‍या! एना भेलैक जे टुनटुनमा मलाह बुलेसर बाबूसँ अपन पत्नीक इलाजक हेतु तीन सए टाका सूदि‍पर लेलकन्‍हि‍। ई कहि‍ जे छह मासमे सूदि‍क संग आपस कऽ देतन्‍हि‍। मुदा कि‍छु कारणवश एक बर्ख धरि‍ आपस नै कऽ सकलन्‍हि‍। एक दि‍न प्रचण्‍ड जाड़सँ कपैत टुनटुनमा राघवक दरबज्‍जापर आबि‍ राघवकेँ पि‍तामह संगे घूर तापि‍ रहल छल। तमाकूल चुना राघवक पि‍तामहकेँ देलकन्‍हि‍ आ अपनो खेलक। कि‍छु कालक बाद अपन एक लठैतक संग बुलेसर बाबू सेहो राघव केर दरबज्‍जापर घूर तापअ आबि‍ गेलाह। टुनटुनमाकेँ देखैत मातर हुनका तामस चढ़ि‍ गेलन्‍हि‍। वि‍भत्‍स गारि‍ देमय लगलथि‍न्‍ह ओकर-
रौ बहान ...ोद! तूँ एखन धरि पाइ आपस नै केलयँ?”
टुनटुनमा कहए लगलन्‍हि‍-
मालि‍क! हमर हाथ तंग अछि‍। बेटा कलकत्तासँ आबैबला अछि‍। अबि‍ते मातर दऽ देब, बि‍थुत नै करब।
मुदा बुलेसर बाबूक तामसे दुर्वाक्षा बनल छलाह। आरो गारि‍ पढ़ैत गमछा टुनटुनमाकेँ गरदनि‍मे फँसा उठा लेलथि‍न्‍ह। टुनटुनमा लाचार भऽ घेँघयाए लगल। बुलेसर बाबू सोहाइ चमेटा ओकरा ओकरा कानक जाड़ि‍मे मारलथि‍न्‍ह। हे भगवान! जाड़क मास बुढ़ शरीर, भुखाएल पेट, जीने काया, बेचारा टुनटुनमाक कानसँ खून बहए लगलैक। मुदा तखनो बुलेसर बाबूकेँ संतोष नै भेलन्‍हि‍। गमछासँ टुनटुनमाकेँ घि‍सि‍याबए लगलाह। ई देखि‍ राघवकेँ पि‍तामहकेँ भेलन्‍ह जे कहीं टुनटुनमा हुनके दरबज्‍जापर नै मरि‍ जान्‍हि‍। ओ बीचमे आबि‍ गेलाह आ कहखि‍न्‍ह-
हौ बुलेसर! ई हमरा दरबज्‍जापर आएल अछि‍। मरि‍ जएतैक। अतए कि‍छु नै करहक।
ऐ बातपर बुलेसर बाबू कहलखि‍न्‍ह-
ठीक छै कारी कक्का, हम ऐ सार मलहाकेँ धोबि‍या गाछी लऽ जाइ छी।
ई कहि‍ टुनटुनमाक गरदनि‍मे फँसाओल गमछा घि‍चैत धोबि‍यो गाछी दि‍सि लऽ गेलन्‍हि‍।मरता क्‍या नहीं करता, बेचारा टुनटुनमा जेना कसाइ लग गाए जाइत अछि‍ तहि‍ना बुलेसर बाबूक संग वि‍दा भेल।‍ आ बुलेसर बाबू जखन धोबि‍या गाछी गेलाह तँ एक लात मारि‍ टुनटुनमाकेँ धरतीपर पाड़ि‍ पुन: एक ऐँर मारलखि‍न्‍ह। फेर अपन ठेंगा ओकर नि‍कासमार्ग -गुदामार्ग-मे घुसा देलथि‍न्‍ह। खूनक फुचुक्का नि‍कलि‍ पड़लैक। बेचारा ओतहि‍ कनैत बेहोश भऽ गेल। मुदा बुलेसर बाबूक चेहरापर अफसोस पसरि‍ गेलनि‍ आ मुँहसँ नि‍कलन्‍हि‍-
ठेंगो अपवि‍त्र भऽ गेल!
टुनटुनमाकेँ ओतहि‍ ओही हालति‍मे छोड़ि‍ अपन घर दि‍सि‍ वि‍दा भऽ गेलाह।

लगभग आधा घंटाक पछाति‍ ऐ घटनाक जानकारी टुनटुनमाक बेटाकेँ पता लगलैक। जो ओकरा उठा कऽ घर लऽ गेलैक। पैसा नै रहैक तँए देसी दबाइ प्रारम्‍भ केलकैक। भरि‍ पेट खेबाक सेहो सामर्थ्‍य नै, तइ मनुक्‍खपर एहेन अत्‍याचार! बेचारा टुनटुनमा 10 दि‍नक भीतर कराहि‍-कराहि‍ कऽ मरि‍ गेल। मनुक्‍खपर मनुक्‍ख द्वारा एहेन अत्‍याचार! हे भगवान कि‍एक नै देखैत छी एहेन लोक सभकेँ। कि‍छु अही तरहक वि‍चार राघव केर लोक कि‍शोर मनमे अएलन्‍हि‍ जखन टुनटुनमाक सम्‍बन्‍धमे पता लगलन्‍हि‍। मुदा बुलेसर बाबूक हृदैपर कुनो प्रभाव नै पड़लन्‍हि‍। ओ अपन बलंठगरीरीमे लागल रहलाह।

बुलेसर बाबूक दू व्‍यक्‍ति‍त्‍व छलन्‍हि‍। लहनाक मामलामे ओ बलंठ, हृदैहीन, कसाइ आ कईंया छलाह। ठीक एकर वि‍परीत पि‍ताक रूपमे स्‍नेहशील, उदार आ अनुरागी। राघवकेँ चन्‍दाक नेनपनक दृश्‍य यादि‍ आबए लगलन्‍हि‍। जखन चन्‍दा चारि‍-पाँच बर्खक छलीह तँ बुलेसर बाबू सदि‍काल चन्‍दाकेँ अपना कन्‍हापर चढ़ेने रहैत छलाह। दुलारक अन्‍त नै। चन्‍दाकेँ सदि‍काल चन्‍दा बेटा कहि‍ सम्‍बोधि‍त करैत छलाह। चन्‍दा अगर कुनो कारणे रूसि‍ जाइत छलीह कि‍ंवा कनैत छलीह तँ बुलेसर बाबू चन्‍दाकेँ कोरामे उठा गीत गाबि‍-गाबि‍ बौसैक प्रयास करैत छलाह। गीतक आखरि‍ कि‍छु ऐ प्रकारक होइत छलैक-
चन्‍दा तोरे देबौ गे
सभ धन तोरे देबौ गे
तेरह बीघा के जोता चन्‍दा तोरे देबौ गे
गहना तोरे देबौ गे
सोना-रूपा तोरे देबौ गे....।

आ गुमानसँ तनल चन्‍दा शनै: शनै: कानब बन्न कए अपन पि‍ताक चौरगर छातीसँ चीपकि जाइत छलीह। पि‍ता-पुत्रीक अगाध प्रेम। एहेन प्रेम जइमे प्रेमाधि‍क्‍य आ सि‍नेहक धार सदि‍खन बहैत रहैत छल।

राघवक कि‍शोर मनमे बुलेसर बाबूक प्रति‍ धोर घृणा उत्पन्न होमय लगलन्‍हि‍। मन होन्‍हि‍ जे बुलेसराकेँ उठा कऽ पटकि‍ दी बीच चौबट्टि‍यापर। लाते-लाते खनि‍ दी।मुदा ई हुनका नीक जकाँ ज्ञात छलन्‍हि‍ जे बुलेसर बाबूक समक्ष्‍ज्ञ हुनकर परि‍वारक अस्‍ति‍त्‍व शुन्‍य छन्‍हि‍। आर-तँ-आर राघव केर पि‍ता सेहो बुलेसर बाबूसँ ऋृण लेने छलथि‍न्‍ह। फेर राघवकेँ वि‍चार अएलन्‍हि‍ जे कि‍एक नै चन्‍दासँ बात कएल जाए? मुदा फेर ओ अपना-आपकेँ चेतलाह। चन्‍दा तँ थीकीह अन्‍तत: बुलेसरेक बेटी ने। साँपक गर्भसँ कुनो हंस जन्‍म लेलकैक अछि‍। साँपक नेना साँपे जकाँ डॅसबे करतै। चन्‍दाकेँ कहने की लाभ? ऊपरसँ अगर चन्‍दा अपन पि‍तासँ शि‍काइत करतीह तँ हमरो घरमे वि‍पत्ति‍क भूकम्‍प आबि‍ जाए!
...ई सोचैत राघव चुप्‍पी साधि‍ लेलन्‍हि‍। मुदा जखन-जखन टुनटुनमा बेटाकेँ बापक कर्म करैत देखैत छलाह तखन-तखन घृणा आ पश्चातापक ज्‍वारि‍मे जरए लगैत छलाह। मुदा छलाह बेवश! लचार!! मरता क्‍या नहीं करता!!!

कहि‍ नै कि‍एक चन्‍दा राघवकेँ बि‍ना अपने-अापकेँ अनेरे बेचैन अनुभव करए लगलन्‍हि‍। एकबेर राघव आठ दि‍नक हेतु मातृक गेलाह। चन्‍दाकेँ बि‍ना कहने। चन्‍दा राघव केर घर लगका पोखरि‍मे नहाए अएलीह। जखन राघवकेँ नै देखलन्‍हि‍ तँ मनमे ई भेलन्‍हि‍ जे राघव कतौ इम्‍हर-उम्‍हर चलि‍ गेल छथि‍ कि‍छु क्षणक हेतु। मन तँ नै लगलन्‍हि‍। चुप-चाप जल्‍दी-जल्‍दी स्‍त्रगनाही घाटपर जाए पोखरि‍मे हम डुम देलीह। एक लोटा अछिंजल लए ओतुक्के पंचमुखी महादेवपर आधा मनसँ जल ढारलन्‍हि‍। राघवसँ भेँट नै भेलन्‍हि‍ ऐ बातक कचोट करैत घर चलि‍ गेलीह। घर जाए आधा मनसँ आधा-छीधा अन्न खेलीह आ सोझे आमक गाछी आम ओगरए लेल चलि‍ अएलीह। आमोक गाछीमे चन्‍दाकेँ मन नै लगलन्‍हि‍। चन्‍दा मोने-मन भगवानसँ प्रार्थना करए लगलीह-
हे भगवान! जल्‍दी-जल्‍दी राति‍ करू। सूति‍ रही। जल्‍दी-जल्‍दी भोर करू जे राघव भेट जाए।
मुदा राघव तँ आठ दि‍नक हेतु गामेसँ बाहर भऽ गेल छलाह। खैर! चन्‍दा मुन्‍हारि‍ साँझक बाद घर अएलीह। माय पुछलखि‍न्‍ह-
चन्‍दा, अतेक देरीसँ कि‍अए अएलेँह?”
चन्‍दा बजलीह-
चोरा सभ आम तोरबाक फि‍राकमे छल। सोचलौं जखन मखना रखबार आबि‍ जाएत तखने कलम छोड़ब।
चन्‍दाक ऐ जबाबसँ प्रसन्न भऽ बुलेसर बाबू अपन सीना चौड़ा करैत पत्नीकेँ कहलखि‍न्‍ह-
बुझलि‍ऐक, कतेक ज्ञानी आ बुझनुक अछि‍ अप्‍पन चन्‍दा? चन्‍दा सन भगवान अगर बेटी देथि‍ तँ बेटाक कुन प्रयोजन?”
तइपर चन्‍दाक माय कहलखि‍न्‍ह-
अहाँ अनेरे बजैत छी। लड़कीकेँ कुनो हालति‍मे साँझ भेला उत्तर घरसँ बाहर नै रहबाक चाही। समए-साल खराप चलि‍ रहल छैक। कुनो ऊँच-नीच भऽ गेलैक तँ की हेतैक।
मुदा बुलेसर बाबू कतए चुप हुअएबला छलाह। कहलखि‍न्‍ह-
की बाजि‍ रहल छी? केकरा हि‍म्मति‍ छैक जे हमर चन्‍दा संग कनीकबो बद्तमीजी करए। जे सोचबो करत तकर आँखि‍ नि‍कालि‍ लेबैक।
मुदा चन्‍दा अपन माता-पि‍ताक वाक्-युद्धमे हि‍स्‍सा नै लेलन्‍हि‍। बि‍ना कुनो हर्ष-वि‍षादक चुपचाप ठाढ़ि‍ रहलीह।

चन्‍दा मोने-मन प्रसन्न भेलीह- चलू, बाबूजी हमरा अतेक सि‍नेह करैत छथि‍। हे भवाबान! जन्‍म-जन्‍म भरि‍ एहने पि‍ता देब। ओना माइयो कुनो अधलाह नै कहलनि‍। अतेक सांझ धरि‍ आमक गाछीमे हमरा नै रहबाक चाही। मुदा माता-पि‍ताक प्रसंगसँ चन्‍दाकेँ एक लाभ ई भेलनि‍ जे चन्‍दा राघवक कमीकेँ कि‍छु क्षणक हेतु बि‍सरि‍ गेलीह। भोजन-भात करैत राति‍क आठ बाजि‍ गेलैक। चन्‍दा अपन दू छोट बहि‍न सबहि‍क संग सूति‍ रहलीह। कनीकाल राघवकेँ स्‍मरण एलन्‍हि‍। तामसो चढ़लन्‍हि‍- कतए चलि‍ गेलाह राघव! भेँट नै भेलाह। फेर भेलन्‍हि‍, भऽ सकैत अछि‍ कुनो प्रयोजनसँ कतौ गेल होथि‍। काल्‍हि‍ तँ भेँट भइये जाएत। मोन भेलन्‍हि‍, राघवकेँ पुछबनि‍ जे कतए गेल रही। मुदा लोक अगर सुनत तँ की कहत। राघव सेहो की सोचताह! फेर वि‍चारलन्‍हि‍, कि‍छु नै कहबन्‍हि‍। अही तरहक अनेक वि‍चारक श्रृंखलामे चन्‍दा तल्लीन भऽ गेलीह। पता नै सोचैत-सोचैत कखन नि‍सभेर भऽ गेलीह।

भोरे उठि‍ चन्‍दा नवका पोखरि‍ दि‍स स्‍नान करक हेतु वि‍दा भेलीह। सोमक दि‍न रहैक। माय कहलथि‍न्‍ह-
चन्‍दा, पंचमुखी महादेवकेँ आइसँ हरेक सोम एगारह लोटा अछि‍ंजल चढ़ाउ। गंगेश पण्‍डि‍त कहलन्‍हि‍ अछि‍ जे ऐसँ अहाँक कल्‍याण हएत।

बुलेसर बाबू पत्नीसँ पुछलखि‍न्‍ह-
गंगेश पण्‍डि‍तजी कल्‍याणक अर्थ की कहलन्‍हि‍?”
चन्‍दाक माय- कल्‍याणक अर्थ ई भेल जे चन्‍दाकेँ योग्‍य घर-वर भेटतनि‍। सोम दि‍न महादेव आ पार्वतीक दि‍न छन्‍हि‍। सोमक जल ढारक बड्ड महत छैक। ताहि‍सँ सोलचौं, गंगेश पण्‍डि‍त जीक उक्‍ति‍सँ चन्‍दाकेँ अवगत करा दि‍यन्‍हि‍।
बुलेसर बाबू पत्नीक बातकेँ स्‍वीकृति‍ गर्दनि‍ हि‍ला देलखि‍न्‍हि‍। कि‍छु बजलाह नै। मोने-मन भोलानाथसँ व्‍याहुत बेटी लेल नीक वरक वरदान अवश्‍य मंगलन्‍हि‍। सभकेँ ठसकसँ लगानीपर द्रव्‍य आ वस्‍तु देनि‍हारक हाथ आइ भगवान भोलानाथ लग आर्त-भावसँ लेबाक लेल पसरल छलन्‍हि‍। कनीक क्षण लेल अनुभव भेलन्‍हि‍ जे बेटीक बाप भेनाइ केकरा कहैत छैक!!
खैर! चन्‍दा फुलडाली, फुलही लोटा, वस्‍त्र, बांसक कर्चीक दतमनि‍ लऽ नवका पोखरि‍ दि‍स वि‍दा भेलीह। एकपेरि‍या रस्‍तामे चलैत मोने-मन उमंगमे डूमल जे आ राघवसँ भेँट हएत। उल्‍लसि‍त मोनसँ चलैत नायि‍का सेहो एकपेरि‍या रस्‍तापर अपन शरीर आ सोचक संग एक अनुपम सामंजस्‍य स्‍थापि‍त कऽ लैत अछि‍। मोन जेना-जेना अपन सोचमे उतार-चढ़ाव, गति‍, उद्वेग, तरंग अनैत छैक, तहि‍ना शरीरक अंग सभ प्रदर्शन कए मोनक भावनाकेँ व्‍यक्‍त करैत छैक। चन्‍दो संग सएह भेलन्‍हि‍। भरि‍ रस्‍ता चन्‍दा कखनो राघव तँ कखनो अपन माइक कहल आदेशक सम्‍वन्‍धमे सोचैत रहली। राघवपर चन्‍दाकेँ तामस आ सि‍नेहक भाव एक्के संग आबए लगलन्‍हि‍। तामस ऐ हेतु जे राघव कतए गेला बि‍ना कहने।
सि‍नेह ऐ दुआरे जे राघव बड्ड नीक लोक अछि‍। सोचलन्‍हि‍- गरीब तँ छथि‍ राघव, मुदा छथि‍ व्‍यवहार आ वि‍चारसँ नीक।
चन्‍दाकेँ एक क्षण लेल पहि‍ल बेर ई एहसास भेलन्‍हि‍ जे शायद राघव हुनका जीवनमे बहुत पैघ स्‍थान रखैत छथि‍न्‍ह। चन्‍दाकेँ यादि‍ आबए लगलन्‍हि‍ कबड्डी आ नूका-चोरी। चन्‍दाकेँ यादि‍ एलन्‍हि‍ तीन-चारि‍ वर्षक पूर्वक एक घटना जखन चन्‍दा कि‍छु आर लड़का-लड़की संगे मि‍लि‍ कऽ कनि‍या-पुतराक खेल खेलाइत छलीह। राघव सेहो आइ खेलक पात्र छलाह। राघवकेँ घरमे कि‍यो नै रहन्‍हि‍। दुपहरि‍याक समए छलैक। पाँच-छह नेना सभ कनि‍या-पुतरा खेलाए लागल। भेलैक ई जे ऐ खेलमे एक बर आ एक कनि‍या हेतैक। कनि‍याक पि‍ता आ माता हेतैक। बर आ कनि‍याक बि‍आह हेतैक। गीत-नाद आ वि‍धि‍ बेवहार हेतैक। चन्‍दा बनलनि‍ कनि‍या आ राघव बर। दुनुक बि‍आह भेलन्‍हि‍। गीत-नाद भेलैक। चतुर्थी भेलन्‍हि‍। कोहबर बनलै। कोहबर घरमे चन्‍दा आ राघव बर कनि‍या बनि‍ आराम करए गेलाह। कोहबर घर की तँ राघवकेँ पि‍ताक मच्‍छरदानी टांगि‍ ओकर चारू कात नूआसँ झांपि‍ देल गेलैक। राघव आ चन्‍दाकेँ कोहबर घरमे राखि‍ सभ बच्‍चा सभ थोड़ेक कालक हेतु बाहर चलि‍ गेल। राघव आ चन्‍दा अपना-आपकेँ ठीकेमे बर-बनि‍या मानि‍ एक दोसरकेँ पकड़ि‍ सूति‍ रहलनि‍। कनीक-कालक बाद बच्‍चा सभ आबि‍ गेलैक।

चन्‍दा यएह सभ सोचैत-सोचैत नवका पोखरि‍ दि‍स जाइत छलीह। कखनो कमर लचकन्‍हि‍ तँ कखनो वक्ष हि‍लय लगन्‍हि‍। कखनो नि‍तम्‍ब डग-मग करए लगन्‍हि‍ तँ कखनो आनंदाति‍रेकमे अवते चलबाक गति‍ तेज भऽ जाइन्‍हि‍। जखन तेज चलथि‍ तँ वक्ष आ जखन नहु-नहु आनन्‍दि‍त होइत चलैत तँ नि‍तम्‍ब डोलए लागन्‍हि‍। दुनू अवस्‍थामे चन्‍दा लगैत छलीह सुन्‍दरि‍, आकर्षक......।

फेर चन्‍दाकेँ भेलन्‍हि‍ जे राघव तँ हमर कुनो मूलो-गोत्रक नै छथि‍। तखन की चन्‍दा आ राघवकेँ बि‍आह भऽ सकैत छन्‍हि‍? फेर सोचलन्‍हि‍, केना हेतैक? एक्के टोलमे जे छी। आर राघव तँ गरीब घरसँ छथि‍। हमर पि‍ता कखनो ऐ लेल तैयार नै हेताह। ई सोचैत चन्‍दाक चालि‍ मध्‍यम भऽ जाइन्‍ह। माथपर पसीना आबए लगलन्‍हि‍। चेहरा उदास भऽ गेलन्‍हि‍। मुदा सुन्‍दरता अपन दोसर रूपमे प्रस्‍फुटि‍त होइत रहलन्‍हि‍। नि‍तम्‍ब नहु-नहु उभारक प्रदर्शित करए लगलन्‍हि‍। आब चन्‍दा अपन बि‍आहक संबंधमे सेचए लगलीह। केकरासँ बि‍अाह हएत? ओ लड़का केहेन हेतैक! हमरा संग ठीक बेवहार करत की नै? छोटकी बहि‍न सभकेँ जि‍म्‍मेवारी माय असगरि‍ केना सम्‍हारतीह। आदि‍-आदि‍। फेर चन्‍दा अपना-आपकेँ भगवान भोलानाथपर छोड़ि‍ देलन्‍हि‍। मोने-मन गाबए लगलीह- पूजाक हेतु शंकर, आएल छी हम भीखारी।

यएह सोचैत-सोचैत चन्‍दा आबि‍ गेलीह नवका पोखरि‍ लग। पोखरि‍सँ ठीक पहि‍ने राघव केर दलान। दलानपर राघवकेँ पुन: नै देखलखि‍न्‍ह। मोन रोष आ अव्‍यक्‍त वि‍रहसँ वि‍दग्‍ध भऽ गेलन्‍हि‍। चारू कात देखलनि‍। मुदा राघव कतौ नै। चन्‍दाक मुँह ओइ फूल जकाँ मुरझा गेलन्‍हि‍ जकरा तोड़ि‍ लोक जेठक प्रचण्‍ड रौदमे छोड़ि‍ दैत छैक। नि‍ष्‍ठुर राघव कि‍एक कतौ बि‍ना कहने चलि‍ गेलैक।

खैर! चन्‍दा चारू कात राघवकेँ तकलन्‍हि‍। मुदा राघव जखन घरपर रहतथि‍ तखन ने चन्‍दाकेँ भेट होइतन्‍हि‍। अन्‍तमे चन्‍दा मन्‍दि‍रक पाछाँ फुलवारीमे फूल लोढ़ए गेलीह। चम्‍पाक गाछमे पीअर-पीअर रमनगर आ सुगन्‍धि‍त चम्‍पा फुलाएल रहैक। रहैक मुदा बड़ ऊँचका ठाढ़ि‍पर फुलाएल। चंदा सोचलीह चलू अही बहाने राघवक घर जाइत छी।
ई सोचैत चंदा राघवक घरपर आबि‍ गेलीह। राघवक मायकेँ पुछलखि‍न्‍ह-
काकी, हमरा चम्‍पा-फूल पंचमुखी महादेवकेँ चढ़ेबाक अछि‍। मुदा फूल तँ बड्ड ऊँचका डारि‍पर फड़ल छैक। हम नै पबैत छी। कनी राघवकेँ कहबनि‍ जे कि‍छु फूल तोड़ि‍ देताह?”
राघवक माय कहलखि‍न्‍ह-
बुच्‍ची, राघव तँ मातृक काल्‍हि‍ भाेरे गेल। कलकत्तासँ ओकर छोटका मामा-मामी सपरि‍वार आएल छथि‍न्‍ह। कहि‍ कऽ गेल अछि‍ जे सात-आठ दि‍नक बाद आओत। आब अहीं कहू जे केना फूल टुटत?”
फेर कि‍छु देर सोचैत राघव केर माय अंगनासँ एक गोट पाहुनकेँ बजेलखन्‍हि‍। जे जरैलसँ अपन बहि‍न लग आएल छलाह। ओइ पाहुनकेँ कहलखि‍न्‍ह-
यौ पाहुन, ई थीकीह चन्‍दा, हम्‍मर गामक बेटी। हि‍नकर पि‍ता बड्ड कलामा। ई भगवान पंचमुखी महादेवकेँ चढ़ेबाक लेल कि‍छु चम्‍पा फूल तोड़ए चाहैत छथि‍। मुदा फूल गाछक फुनगीपर लागल छैक। कनी अहाँ हि‍नका फूल तोड़ि‍ दि‍यौन्‍ह। फूल तोड़ैबला सेहो फूल चढ़बैबला अतेक धर्म होइ छैक। राघव रहैत तँ कुनो बाते नै। ओ मातृक गेल अछि‍। कनी, अहीं फूल तोड़ि‍ दि‍यौन्‍ह चन्‍दाकेँ।
पाहुन हाथमे लग्‍गी लऽ बि‍ना कि‍छु कहने चम्‍पा फूल तोड़ए लेल चन्‍दा संग बि‍दा भेलाह। चन्‍दाक मुँह जेना लटकि‍ गेलन्‍हि‍। गाल जेना सि‍याह भऽ गेलन्‍हि‍। आँखि‍ नोराह भऽ गेलन्‍हि‍। ठोर सुखाए लगलन्‍हि‍। छाती धरकए लगलन्‍हि‍। मुदा जवानी केर दरबज्‍जापर आबि‍ गेल चन्‍दा सोचल्‍नि‍ जे कनि‍या काकी अर्थात् राघवक मायकेँ धन्‍यवाद अवश्‍य देल जाए। जाइत-जाइत कहनखि‍न्‍ह-
कनि‍याँ काकी, पाहुन खराप तँ नै सोचताह?”
राघवक माय झट दऽ उत्तर देलखि‍न्‍ह-
की सोचै छी बुच्‍ची? पाहुन आन कि‍योक ने छथि‍। जरैलवाली कनि‍याँक भाय छथि‍न। बहि‍नक ननदि‍ लेल फूल कनी तोरि‍ देलखि‍न्‍ह तँ की भऽ जेतन्‍हि‍। अहाँ नि‍श्चि‍न्‍तसँ जाऊ।

चम्‍पा फूल अपन फुलडालीमे राखि‍ चंदा स्‍त्रीगनाही घाटमे स्‍नान केलनि‍। माइक आज्ञाकेँ मानै डोले-डोले अछि‍ंजल लऽ एगारह लोटा जल पंचमुखी महादेवक ऊपर ढाड़लनि‍। लगभग 15 मि‍नट घर महेशवानी, नचारी इत्‍यादि‍ सेहो गेलीह। आ अन्‍तत: घर दि‍स बि‍दा भेलीह।
घरपर माय पुछलखि‍न्‍ह-
चन्‍दा, पंचमुखी महादेवकेँ जल चढ़ेलौं बेटी?”
चन्‍दा बि‍ना कि‍छु कहने गर्दनि‍ हि‍लबैत हँ कहि‍ देलखि‍न्‍ह। माइक मोन तीरपीत। जल्‍दीसँ चन्‍दाक आगूमे भोजन परसि‍ देलखि‍न्‍ह। मुदा चन्‍दा मोनसँ नै खेलीह। राघवकेँ यादि‍मे डुमल रहलीह। केकरो लग नै बजलीह अपन वेदना।
समए बीतए लगलैक। एक दि‍न बुलेसर बाबूक पत्नी अर्थात् चन्‍दाक माय बुलेसर बाबूकेँ कहलखि‍न्‍ह-
सुनै छी, चन्‍दा आब बि‍आह जोगरक भऽ गेल अछि‍। हमरा सभकेँ बेटा ई तीनू बेटि‍ये अछि‍। तँए नीक घर-बर ताकि‍ ऐ तीनूकेँ बि‍आह कऽ दि‍औक। सम्‍पति‍ राखि‍ की करब? जखन तीनू बेटीकेँ बि‍आह भऽ जाएत आ ओ सभ अपन-अपन सासुर बसए लागत तँ धराड़ी आ कि‍छु कलम छोड़ि‍ तमाम सम्‍पति‍ बेच, सभ पैसाकेँ बैंकमे राखि‍ अपने दुनू प्राणी काशी चलि‍ जाएब। बैंकक सूदि‍सँ जीवन चलत। नौमनी तीनू बहि‍नकेँ बना देबैक। मुदा ई सभ तखन सम्‍भव अछि‍ जखन अहाँ जीमन, लगानी, वस्‍तु, पैसा इत्‍यादि‍केँ बँटवारा कऽ लेब। कहि‍यनु कन्‍हाइ बाबूकेँ जे बाँटि‍ कऽ सभ वस्‍तु ब-हि‍स्‍सा बराबरि‍ कऽ कऽ दऽ देथि‍।
बुलेसर बाबू कहलखि‍न्‍ह-
हँ, हँ। कन्‍हैया कि‍एक नै देत। ओकरा तँ तरीकासँ हमरा जेठाँस देमाक चाही। बपौती सम्‍पति‍क अलाबे जे अर्जन भेल अछि‍ तइमे हम्‍मर योगदान कन्‍हैयासँ बहुत ज्‍यदा अछि‍। हम काल्हि‍ये कन्‍हैय्या लग ई प्रस्‍ताव राखैत छी।
बुलेसरकेँ पत्नी कहलखि‍न्‍ह-
जखन कन्‍हाइ बाबू दऽ देताह तखने कहब। कहि‍ नै कि‍एक हमर मोन बड्ड घबरा रहल अछि‍।
बुलेसर बाबू बजलाह-
अहाँ अनेरे घबराइ छी। स्‍त्री छी स्‍त्रीगन जकाँ रहू। जाउ भोजन-भात बनाउ गऽ। हम काल्हि‍ये कन्‍हैया लग ई प्रस्‍ताव राखब आ एक मासक भीतर सभ चीज बाँटि‍ लेब। फेर नीक जकाँ तीनू बेटीकेँ बि‍आह करब। आब ऐ केर अलाबा हमरा सभकेँ कार्ये की?”

दोसर दि‍न दुपहरमे बुलेसर बाबू दरबज्‍जापर अपन छोट भाए कन्‍हाइ बाबू लग बैसल रहथि‍। कन्‍हाइ बाबू कनीक बुलेसर बाबूसँ ज्‍यादा पढ़ल छलाह। मुदा पाँचसँ ज्‍यादे नै। एक नम्‍बरक घुइयाँ आ कइयाँ। कन्‍हाइ बाबूकेँ चारि‍ बालक आ दू बालि‍का। बालक सभ पढ़ैमे भोथ मुदा कन्‍हाइ बाबू घरेमे मि‍डि‍ल स्‍कूल केर एक मास्‍टर साहेबकेँ रखैत छलाह। हुनका मुफ्तमे भोजन आ रहबाक व्‍यवस्‍था कऽ देने छलखि‍न्‍ह। कखनौं कालकेँ कि‍छु आर्थिक मदति‍ सेहो कऽ दैत छलखि‍न्‍ह। कृतज्ञ मास्‍टर नि‍यमि‍त रूपसँ कन्‍हाइ बाबूकेँ भोथ आ नालायक बेटा सभकेँ पढ़बैत रहैत छलाह। कन्‍हाइ बाबू चोरा-चोरा कऽ पैसा इत्‍यादि‍ अपन पत्नी तथा बेटा सबहक नामसँ गामक पोस्‍ट आॅफि‍स तथा अपन सासुरमे रखैत छलाह। ऐ बातक जानकारी बुलेसर बाबूकेँ नै छलन्‍हि‍। कन्‍हाइ बाबू मोने-मोने ई प्‍लान कऽ रहल छलाह जे बुलेसर बाबूकेँ बेटीक बि‍आह कुनो सामान्‍य परि‍वारमे करा बुलेसर बाबूक तमाम जमीन आ चल-अचल सम्‍पति‍केँ हथि‍या लेताह।
बुलेसर बाबू कहलखि‍न्‍ह-
कन्‍हैया, हम आ तूँ दुनू भाँइ एके संग रहलौं। मि‍ल कऽ सम्‍पति‍ बनेलौं। तोरा भगवान चारि‍टा लड़का देने छथुन्‍ह। मुदा हमरा तीनटा बेटि‍ये अछि‍। ई तीनू बेटी हमरा लेल बेटासँ कम नै अछि‍। आब चन्‍दा बि‍आह जोगरक भऽ गेल अछि‍। आनो सभ उपरे-नीचा छैक। चन्‍दाक माय हमरा सदि‍खन एकर सबहि‍क बि‍आह करा देबक हेतु कहैत रहैत छथि‍। हम सोचैत छी, जे मरला उत्तर हम्‍मर सम्‍पति‍केँ हकदार यएह सभ हएत। फेर हम अपन जीबैत सम्‍पति‍ बेचि‍ एकर सभकेँ नीक घरमे कएक नै बि‍आह करा दि‍ऐक? मुदा हमरा तँ अधि‍कार केवल अपन हि‍स्‍सापर अछि‍। सझि‍या-साझपर नै। तँए दुनू भाँइ अपन तमाम सम्‍पति‍क बँटवारा कऽ लैत छी। तोहर की वि‍चार करतौक। तों अनेरे चि‍न्‍ता नै कर।
ई बात होइते रहैक ताबतेमे चन्‍दाक माय आंगनसँ दरबज्‍जापर आबि‍ गेलीह। कहए लगलखि‍न्‍ह-
सभ चीज ठीक छै कन्‍हाइ बाबू। मुदा बँटवारा तँ भऽ जेबाक चाही। सझि‍या-साझमे हमरा समस्‍या अछि‍ कुनो चीज करहौक मन हएत तँ मोन मसौसि‍ कऽ रहए पड़त। बि‍आह-दानक बाद जे सम्‍पति‍ रहतैक से अहुना अहि‍ंक बच्‍चा सभकेँ रहत। अहाँ हमरा सभकेँ सभ सम्‍पति‍ बाँटि‍ दि‍अ।

कन्‍हाइ बाबू ऐ बातपर चि‍चि‍आइत बजलाह-
भौजी! अहाँ आंगन जाउ। हमरा दुनू भैयारीमे अहाँ नै बाजू। हमरा सभकेँ जेना हएत तेना करब। अहाँ जाउ। लप्‍प दनी दरबज्‍जापर आबि‍ जाइत छी। जएब की नै?”

बुलेसर बाबू बीचेमे अपन पत्नीक बातक समर्थन करैत बाजि‍ उठलाह-
कन्‍हैया, भौजी तँ वएह बात कहै छथुन्‍ह जे हम कहि‍ रहल छि‍अह। तों तामस नै कर आ सम्‍पति‍ बाँटि‍ ले। सभटा लहनाकेँ बही, द्रव्‍य-जात, पैसा इत्‍यादि‍ एकठाम कर आ बाँट।
कन्‍हैया तामसे घोर भऽ गेलाह। कहए लगलखि‍न्‍ह-
भैया, लगानीमे बारह अना हम्‍मर अछि‍ केवल चारि‍ अना तोहर। तों घरमे जोखैत छेँ, खेती करैत छेँ।
हम चारू बापुते गामे-गामे, घरे-घरे जा कऽ तगादा करैत छी आ डुमल पाइ वापस लबैत छी।
बुलेसर बाबूकेँ आँखि‍क आगु अन्‍हार भऽ गेलन्‍हि‍। बजलाह-
हम की नै केलौं। कर्म-कुकर्म सभ। राति‍-दि‍न तोहर संग देलयौक। लोक सभसँ झगरा-फसाद केलौं। आब कहैत छेँ जे द्रव्‍य-जात एवं पैसापर हम्‍मर हक केवल चारि‍ आना? हे भगवानक डांगसँ डर कन्‍हैया!!! चल पाँचटा पंच बैसबैत छी। काल्हि‍ये ऐ बातक नि‍बटारा भऽ जेबाक चाही।
कन्‍हैया कहलखि‍न्‍ह-
नि‍वटारा की हेतैक भैया, नि‍बटारा भेले बूझ। तोरा चारि‍ आना हि‍स्‍सा भेटतै द्रव्‍य-जात अा लटनामे।
ई कहि‍ कन्‍हैया अपन बरका बेटाकेँ लगानी बला सन्‍दूर चाभी देमए लगलाह।
ई चीज बुलेसर बाबूकेँ बरर्दास्‍त नै भेलन्‍हि‍। तुरत झपटि‍ कऽ चाभी छन्‍हि‍ लेलन्‍हि‍ आ बाजय लगलाह-
रे ककर मजाल छैक जे हमर आधा हि‍स्‍सा रोकि‍ लेत। तकरा कुट्टी-कुट्टी काटि‍ देबैक।
बुलेसर बाबू सन्‍दुक चाभी छीनि‍ घर दि‍स बि‍दा भेलाह।
पाछाँसँ कन्‍हाइ बाबू हुनका भरि‍-पाज कऽ पकरलन्‍हि‍ आ हुनकर हाथसँ चाभी छीनए लगलाह। बुलेसर बाबू छलाह बलि‍स्‍ठ। एकै बेरमे कन्‍हाइकेँ उठा कऽ पटकि‍ हुनकर छातीपर चढ़ि‍ गेलाह। मुदा पाछाँसँ कन्‍हाइ केर ई बालक लाठी लऽ ताबर-तोर बुलेसर बाबूपर प्रहारक देलकन्‍हि‍। कपार फूटि‍ गेलन्‍हि‍। माथक शोनि‍त पोछए लगलाह। अतबेमे कन्‍हाइ बाबू हुनकर हाथसँ चाभी छीनए लगलथि‍न्‍ह। मुदा बुलेसर बाबू चाभी नै देलखि‍न्‍हि‍। आब कन्‍हाइ बाबू तीनू-बाप बेटा मि‍ल बुलेसर बाबूपर प्रहार करए लगलखि‍न्‍ह। हत्‍थम, लत्तम, श्रुत्तम आ लाठीक प्रहार। असगर बुलेसर बाबू की करि‍तथि‍? देह चूर-चूर भऽ गेलन्‍हि‍। चाभी सेहो छि‍ना गेलन्‍हि‍।

बेचारी पत्नी लाचार भऽ अपन देअर आ देअरक बेटा सभकेँ गारि‍ दैत रहलीह। सरापैत रहतीह।
नि‍पुत्रीपर हाथ उठेलक अछि‍। सर्वनाश भऽ जएतैक। तड़पि‍-तड़पि‍ कऽ मरत कन्‍हैया सरधुआ! कुस्‍टी फुटतैक। वाक् बन्‍द भऽ जएतैक। देहसँ गन्‍ध नि‍कलतैक। अपन संतान आ घरवाली तक काज नै अएतैक।
बुलेसर बाबूक पत्नी गारि‍ पढ़ैत रहलीह आ अपन ढेर भेल पति‍केँ मरहम पट्टी करैत रहलीह। कनीक कालक बाद चौकसँ जीतू कम्‍पाउण्‍डर अएलाह आ बुलेसर बाबूकेँ मल्हम-पट्टी केलन्‍हि‍। दर्द बड्ड रहन्‍हि तकर नि‍वारण हेतु दूटा सूई आ बहुत रास दबाइ सेहो देलकन्‍हि‍। बुलेसर बाबू कराहैत रहलाह। छटपटाइत रहलाह। चंदा पाथर भेल ठाढ़ छलीह। आँखि‍सँ नोर दहो-बहो खसैत रहलन्‍हि‍। गुमान जेना धरासाइ भऽ गेलन्‍हि‍।

जखन ऐ घटनाक जानकारी राघवकेँ भेटलन्‍हि‍ तँ राघव मोने-मोन बड़ प्रसन्न भेलाह। राघवकेँ भेलन्‍हि‍ जे आइ गुलेसर मलाहक अपमान आ ओकरा सतेबाक बदला बुलेसरकेँ नीक जकाँ भेटलन्‍हि‍। हलांकि‍ भोरे-भोर जखन पोखरि‍क कछेरपर चन्‍दाक मुँहकेँ देखलनि‍ तँ कनीक कष्‍ट जरूर भेलन्‍हि‍। सदति‍काल गुमान आ ठसकसँ चूर चन्‍दा आइ ग्‍लानि‍ आ बेदनाक मूद्रामे छलीह खीन्न आ शान्‍त। शायद असहाय सेहो। फेर यादि‍ अएलन्‍हि‍ बेचारा लाचार मल्‍लाहक दशा- आइ गाय जकाँ जे ई जनैत अछि‍ जे ओ कसाइ लग बाध्‍य हेबाक लेल जा रहल अछि‍। तथापि‍ ओ लाचार भऽ डंटाक भयसँ जाइत अछि‍ कसाइखानामे। तहि‍ना अपन फँसल गर्दनि‍क संग असहाय भय गुलेसरा बुलेसर बाबू संगे अखाड़ा गाछी गेल छल। आ ओतय एहन यातना भेटलैक जे ओही बेथे तड़पि‍-तड़पि‍ कऽ प्राण ति‍यागि‍ देलक। जखन राघवकेँ ई बात सभ स्‍मरण अएलन्‍हि‍ तँ फेर मोन प्रसन्न भेलन्‍हि‍। सोचलाह।
नीक भेल सार बुसेराकेँ! कसाई बनैत छल। अपन तागत आ सम्‍पति‍क नाशामे बतहा कुकुड़ बनल छल। आब बुझह।
मुदा राघव चन्‍दाक प्रति‍ प्रेमक भाव रखैत छलाह। कहि‍ नै कि‍एक राघवो चन्‍दाकेँ चन्‍दासँ कम सि‍नेह नै करैत छलाह।
ऐ घटनाक तीन दि‍नक बाद चन्‍दा दुपहरमे नवका पोखरि‍पर आबि‍ पंचमुखी महादेवक मन्‍दि‍र केर पाछाँ फुलवारीमे अएलीह। राघव ओतय पहि‍नेसँ छलाह। आर कि‍योक नै छलैक। राघवकेँ देखैत चन्‍दा कहलखि‍न्‍ह-
राघव, अहाँकेँ एगो बात बूझल अछि‍?”
राघव बजलाह-
की?”
चन्‍दा कहलखि‍न्‍ह-
कन्‍हाइ काका हम्‍मर पि‍ताकेँ बड्ड मारलखि‍न्‍ह अछि‍। हमर पि‍ता छलाह असगर आ कन्‍हाइ काका तीन बापुते। गलती हमर पि‍ताकेँ केवल एतेक जे ओ कहलखि‍न्‍ह जे तमाम सम्‍पति‍क बॅटबारा कऽ लि‍अ। ओ सभ जानवर जकाँ मारलकन्‍हि‍। कपार फोर देलकन्‍हि‍। शरीरमे कम-सँ-कम 25 लाठी लागल छन्‍हि‍। पपि‍याहा चण्‍डेश्वर पंच जे अपनाकेँ सरकार बुझैत अछि‍ हमर पि‍ताकेँ थाना नै जाय देलकन्‍हि‍। कहलकन्‍हि‍ जे ऐसँ कन्‍यादानमे व्‍यवधान हएत। की ई हेबाक चाही?”
राघव बजलाह-
हँ चन्‍दा, हमरा सभ बात काल्हि‍ जखन हम मातृकसँ एलौं तँ ज्ञात भेल।

एकाएक राघव केर धि‍यान चन्‍दा दि‍स गेलन्‍हि‍ तँ देखैत छथि‍ चन्‍दाक आँखिसँ नोर खसि‍ रहल छन्‍हि‍। राघव केर मोनमे चन्‍दाक प्रति‍ दयाक भाव उमरि‍ गेलन्‍हि‍। चन्‍दा लग गेलाह आ अपन गमछासँ चन्‍दाक नोर पोछए लगलाह। फुलवारीमे राघव आ चन्‍दाक अलाबे आर कि‍योक नै छलैक। चन्‍दो राघवकेँ पकडि‍ कानय लगलीह। राघव चन्‍दाकेँ भरि‍ पाँज कऽ पकड़ि‍ लेलन्‍हि‍। राघवकँ चन्‍दाक हृदैक धरकन स्‍पष्‍ट सुनाइत छलन्‍हि‍। बुझेलनि‍ जेना चन्‍दा आ राघव हमेशाक लेल एक भऽ गेल छथि‍। चन्‍दा सेहो राघवकेँ बाहि‍सँ ग्रसि‍त भऽ अपना-आपकेँ सुरक्षि‍त बुझैत छलीह। मुदा कनीकबे कालक बाद दुनू अलग भऽ गेलाह। भलन्‍हि‍ लोक देखत तँ की कहत???

कन्‍हाइ बाबू पंच लोकनि‍केँ कहलखि‍न्‍ह
अहाँ सभ चारि‍म दि‍न बैसारमे आऊ। हम आब बुलेसर भैय्यासँ बॅटबारा कऽ लेब।

इम्‍हर कन्‍हाइ बाबूक बेटा आ पत्नी सभ मि‍लि‍ कऽ दलाल रूपी लोभी पंच सभकेँ कि‍छु-कि‍छु प्रलोभन दऽ सभकेँ अपना पक्षमे कऽ लेलन्‍हि‍। ऐ तमाम प्‍लॉटसँ बुलेसर बाबू अनजान छलाह।

ि‍नर्धारि‍त दि‍न आ समैपर पंच सभ अएलाह। पंचायत शुरू भेलैक। पंच सभ काचें गाए खेलाह। केवल 30 प्रति‍षत लहना आ नगदी हि‍स्‍सा बुलेसर बाबूकेँ भेटलन्‍हि‍। खेत-पथार-घड़ारी इत्‍यादि‍मे आधा हि‍स्‍सा जरूर भेटलन्‍हि‍। चन्‍दाक माय भरि‍ इच्‍छे पंच सभकेँ गारि‍ पढ़लन्‍हि‍-
एक कप चाह, एक सेर तेल, पाँच सेर धानमे अपन इमान बेचैत अछि‍ सरधुआ पंच। आ ई चन्‍द्रशेखर सरकार। ई तँ साक्षात यमराज अछि‍। बहुखौका! जवानीमे घरवालीकेँ खा गेल। दि‍न भरि‍ चौकपर चाहक जोगारमे लागल रहैत अछि‍। बेटा कचरी-मुरही आ चाह बेचैत छैक। ओहीसँ गुजर चलैत छैक। सरधुआ के जरूर कन्‍हैयाक बहु सए-सैकड़ाक प्रलोभन देने हेतैक। अगर भगवान कतौ हेताह तँ गुँह गीज कऽ मरत सरधुआ सरकार!!”

बॅटबाराक बाद बुलेसर बाबूक पहि‍ल उद्देश्‍य छलन्‍हि‍ चन्‍दाक बि‍आह। एक दि‍न ओलारपर बैसल छलाह बुलेसर बाबू तँ बाध दि‍ससँ लूटन एलखि‍न्‍ह‍ आ कहलखि‍न्‍ह-
बुलेसर भाय, अहाँ कन्‍हाइ लेल की नै केलौं। से कन्‍हाइ सम्‍बन्‍धक मर्यादाकेँ िबसरि‍ गेल। अपने तँ मारबे केलक बेटा सभसँ सेहो मरबेलक अहाँकेँ। एहेन जधन्‍य कृत्‍य! फाटू हे धरती!”

बुलेसर बाबू कनैत बाजए लगलाह-
की कहूँ लूटन भाय, ई भाए नै कसाइ थि‍क। हम साँपक पोवाकेँ पोसलौं। कून-कून कर्म नै कएल कन्‍हैया लेल। सभ बि‍सरि‍ गेल। हे महादेव जनि‍हेँ तुहीं। जहि‍ना हमरा कना रहल अछि‍ तहि‍ना ओहो कानत।

लूटन बाबू बजलाह-
भाय, एक बात कहूँ?”
जटैतकेँ बंगट पहलमानक दोसर बेटाकेँ पहि‍ल कनि‍याँ मरि‍ गेल छैक। प्रथम पत्नीसँ मात्र एक पूत्र दैक अपार संपति‍ तँ छैक। लाठी केर जोरगर ओ सभ सेहो अछि‍ अगर अहाँ कही तँ चन्‍दाक बि‍आहक चर्चा करी। अगर ई काज भऽ गेल तँ कन्‍हाइ औकातमे आबि‍ जएताह। अहाँ ताकतवर भऽ जाएब। चन्‍दा आ लड़कामे करीब चौदह बर्खक अन्‍तर छैक। ताहि‍ लेल कुनो बात नै। पहलमान छै, अपना उमेरसँ दस बर्ख कम्‍मे लगैत ैछक। आ चन्‍दो तँ ऊँचाइमे ठीक अछि‍।
लूटन केर प्रस्‍ताव बुलेसर बाबूकेँ नीक लगलन्‍हि‍। बजलाह-
कन्‍हैयाकेँ औकात देखेनाइ जरूरी।
फेर कहलखि‍न्‍ह-
लूटन भाय, ई कार्य हमरा पसन्‍द अछि‍। चन्‍दा सभ तरहेँ ओइ घरमे राज करत। नौकर-चाकर सभ छैक। कुनो वस्‍तुक कमी नै छैक। लड़काकेँ पहि‍ल पत्नीसँ एक बेटा छैक तँ की भेलै? मुदा हमरा ऐ सम्‍बन्‍धमे कनि‍क चन्‍दाक मायसँ वि‍मर्श करबाक अछि‍। हमरा वि‍श्वास अछि‍ ओ मना नै करतीह। काल्हि‍ हम अहाँकेँ नीचाेड़ बता देब।

घर जाइते मातर बुलेसर बाबू चन्‍दाक मायसँ जरैलक बंगट पहलमानक बेटाक सम्‍बन्‍धमे बात केलन्‍हि‍। दोती बर छैक ई जानि‍ चन्‍दाक माय कनी दुखी भेलीह परन्‍तु जखन आरो बातक जानकरी भेलन्‍हि‍ तँ मानि‍ गेलखि‍न्‍ह। फेर की छल, 15 दि‍नक अन्‍दर चन्‍दाक बि‍आह भऽ गेलन्‍हि‍।

जहि‍या बि‍आह रहन्‍हि‍ चन्‍दाकेँ तहि‍या राघव सेहो सरि‍याती दि‍ससँ छलाह। जखन राघव चन्‍दाक वरकेँ देखलखि‍न्‍ह तँ मोन दग्‍ध भऽ गेलन्‍हि‍। 17 बर्खक चन्‍दाकेँ 31 बर्खक वर। बाहि‍ं सभपर गांठ पड़ल। चौरगर हाथ। माथपर तलबार आ कह्टाक चारि‍ नीशान! हे भगवान! चन्‍दा तँ बानरक हाथमे नारि‍केर भऽ गेलीह। खैर! पीअर परि‍धानमे सजलि‍ चन्‍दा बड्ड आकर्षक लगैत छलीह। बि‍आहमे बुलेसर बाबू तीन बीघा खेत बेचलाह।

छह मासक बाद चन्‍दा सासुर गेलीह। इम्‍हर राघव दि‍ल्‍ली आबि‍ गेलाह। राघव जखन चारि‍-पाँच बर्खक बाद गाम गेलाह तँ संयोगसँ चन्‍दा सेहो आएल छलीह। हलि‍ कऽ काँट-काँट भेल! लोक सभकेँ पुछलखि‍न्‍ह तँ पता चललन्‍हि‍ जे चन्‍दाकेँ कुनो असाध्‍य बि‍मारी भऽ गेल छन्‍हि‍ जकर इलाज संभव नै छैक। चन्‍दा श्रीहीन भऽ गेल छलीह। अधि‍कांश समए नैहरमे बि‍तबैत छलीह। चन्‍दाक छोट बहि‍नक बि‍आह सेहो भऽ गेल छलन्‍हि‍।

छह मासक बाद चन्‍दा मरि‍ गेलीह। चन्‍दाकेँ कुनो संतान नै भेलन्‍हि‍। चन्‍दाक मृत्‍युक समाचार सुनि‍ बुलेसर बाबू ओछाइन पकड़ि‍ लेलन्‍हि‍। लुटन बाबू एक बेर फेरो चन्‍दाक माय लग आबि‍ कहलखि‍न्‍ह जे चन्‍देक वरसँ चन्‍दाक सभसँ छोट बहि‍नक बि‍आह करा देल जाए। चन्‍दाक माय मानि‍ गेलीह। बुलेसर बाबू सुधि‍हीन भऽ गेलाह।
चन्‍दाक छोट बहि‍नक बि‍आह चन्‍दाक दोती वरसँ भऽ गेलन्‍हि‍ जे चन्‍दाक बहि‍न लेल तृती वर छलखि‍न्‍ह। बि‍आहक सोल्हमे दि‍न द्वि‍रागमन भऽ गेलैक। द्वि‍रागमनक दस दि‍नक भीतर बुलेसर बाबू प्राण त्‍यागि‍ देलाह। चन्‍दाक माय नीकसँ श्राद्ध-शुरू केलथि‍न्‍ह। आब लगभग चारि‍ बीघा जमीन आ घराड़ी शेष छलन्‍हि‍। चन्‍दाक माय सभ बेचि‍ दरि‍भंगामे एक कमरा भाड़ा लऽ चलि‍ गेलीह। पैसा बैंकमे राखि‍ देलथि‍न्‍ह। ओही पैसाक सूदि‍सँ गुजर चलए लगलन्‍हि‍।

इम्‍हर कन्‍हाइ बाबूकेँ कंठमे घाव भऽ गेलन्‍हि‍। पैघ ऑपरेशन कराबए पड़लन्‍हि‍। जखन ऑपरेशन भऽ गेलन्‍हि‍ तँ पता चललैक जे कैंसर छन्‍हि‍। धीरे-धीरे आबाज समाप्‍त भऽ गेलन्‍हि‍। गर्दनि‍सँ सदरि‍काल पीज चूबए लगलन्‍हि‍। मुँह आ गर्दनि‍सँ दुर्गन्‍ध गन्‍हाए लगलन्‍हि‍। बड़ बेटा-पुतोहु कि‍योक आगाँ लग नै आबन्‍हि‍। धन्‍य कहीं एक बेरोजगार नाति‍केँ जे नानाक कि‍छु-कि‍छु सेवा करन्‍हि‍। वाकहीन कन्‍हाइ बाबू सन्‍दूकसँ चोरा कऽ अपन पाइमे सँ लाख टका अपन नाति‍केँ दऽ देलथि‍न्‍ह। बहुत कि‍छु बाजए चाहैत छलाह कन्‍हाइ बाबू मुदा वाक् बन्‍द भऽ गेल छलन्‍हि‍। घावमे पि‍लुआ सेहो फरि‍ गेल छलन्‍हि‍। शायद ओ मोनहि‍ मोन अपन कर्मपर पश्चाताप करैत छलाह। ऐ घोर कष्‍टमे सेहो कन्‍हाइ बाबू नौ मास छटपटाइत रहलाह आ जीलाह।

अन्‍तत: एक दि‍न कन्‍हाइ बाबू अपन शरीरक त्‍याग केलन्‍हि‍। शरीरसँ अतेक गन्‍ध अबैत छलन्‍हि‍ जे एग्‍यारह आदमी कठि‍यारीमे जएबाक लेल तैय्यार नै। राघव संयोगसँ गाम आएल छलाह। माय कहलथि‍न्‍ह-
राघव, अहाँ जाउ। हमरा लोकनि‍ ऐ समाजमे रहैत छी। अहूँ नै जएबैक तँ अहूँक माता-पि‍ता बेरमे कि‍योक नै आएत।
राघव माइक आज्ञाकेँ सम्‍मान करैत कन्‍हाइ बाबूक दाह संस्‍कारमे गेलाह। जखन मृतक केर शरीरमे आगि‍क ज्‍वाला बढ़लैक तँ राघवकेँ लगलन्‍हि‍ जेना ओतए ओइ मृत्‍युपर गुलेसरा मल्‍लाह, बुलेसर बाबू आ चन्‍दा जेना समवेत रूपसँ जश्न मना रहल छथि‍। गुलेसरा मल्‍लाह जेना डंटा उठा बुलेसर बाबू आ कन्‍हाइ बाबूकेँ डांग मारि‍-मारि‍ अपन बदला लऽ रहल हो। आ चन्‍दा गुलेसरा मल्‍लाहसँ अपन पि‍ताक रक्षाक नि‍वेदन करैत छलीह। अही प्रक्रि‍यामे कन्‍हाइ बाबूक शरीर खाक् मे वि‍लि‍न भऽ गेलन्‍हि‍। सबहक संग राघव सेहो कठि‍यारीसँ आपस आबि‍ गेलाह। मोने-मोन सोचए लगलाह राघव- स्‍वर्ग नर्क तँ अतहि‍ अछि‍। जे जेहेन करत से तेहेन पाऔत।

उमेश मण्‍डल

मैथि‍ली युवा रचना-धर्मिता :: परंपरा परि‍वर्त्तन आ भवि‍ष्‍य


रचनाक धर्मिता, साहि‍त्‍य सृजनक धर्म एवं ओकर भवि‍ष्‍य कतेक महत्‍वपूर्ण वि‍षय अछि‍। प्रति‍पाद्य वि‍षयपर जतबा रचना पढ़ल गेल संभव, वि‍चारणीय अछि‍। सन्‍दर्भक मूल अछि‍ इमानदारीसँ, नि‍ष्‍पक्ष भऽ रचना करब, रचना एवं रचनाकारक धर्म-कर्म यएह थि‍क। धर्म-कर्म, काम-धाम दुनूक प्रयोग अपना सबहक बीच होइत आएल अछि‍, सभ बजैत आएल छी, रहै छी। वि‍चारणीय अछि‍ जे जहि‍ना कर्म-धर्म, ओहन काजकेँ कहल जाइत जे धर्मक रास्‍तासँ चलैत अछि‍। आ कर्मक अर्थ काम सेहो होइत अछि‍। जेकरा संग धाम शब्‍दक प्रयोग होइत अछि‍- काम-धाम। धाम अलंकार रूपमे प्रयोग होइत अछि‍ जेकर तात्‍पर्य स्‍थानसँ होइत अछि‍ जेना वैद्यनाथ धाम। स्‍पष्‍ट अछि‍ अपना सबहक धाम मि‍थि‍ला थि‍क, मि‍थि‍ला धाम। आ मि‍थि‍लाक वि‍कास उद्देश्‍य।

जइ देशमे अनेको भाषा, अनेको जाति‍-सम्‍प्रदय एक संग डेग-मे-डेग मि‍ला चलैत आबि‍ रहल अछि‍। हमरा सभकेँ ओइ शक्‍ति‍केँ चि‍न्‍हबाक अछि‍, पकड़बाक अछि‍ एवं मजगूतीसँ पकड़ि‍ रखबाक अछि‍। जे एतेक पैघ देशकेँ एक तागमे बान्‍हि‍ कऽ रखने अछि‍। आ ई चीज कोनो आइये नै भेल, अदौसँ आबि‍ रहल अछि‍। उदाहरण लेल अहाँ कोनो गामकेँ लऽ लि‍अ। गामक श्रेष्‍टता ओइ गामकेँ होइ छैक जइ गाममे छत्ति‍सो वर्णक बास अछि‍। ऐ छत्ति‍सो वर्णकेँ आर्थिक आ वौद्धि‍क रूपमे देखल जाए तँ गरीबसँ गरीब (भि‍खमंगा) आ अमीरसँ अमीर छथि। जहि‍ना नि‍म्नसँ नि‍म्न जाति‍ एवं उच्‍चसँ उच्‍च जाति‍ सेहो गाममे समाजमे बसै छथि‍।‍ मुदा सामाजि‍क बंधन ओहन अछि‍ जे सभ अपना-अपना सीमामे स्‍वतंत्र रूपसँ जीब रहल छथि‍। देखि‍ सकै छी, सोचि‍ सकै छी जे एक्के गामक एक धरतीपर भि‍न्न-भि‍न्न सम्‍प्रदायक उत्‍सव-समारोह साले-साल होइत आएल अछि‍, होइत रहैए।
हमरा सभकेँ ऐ सभ महत्‍वपूर्ण वि‍न्‍दुपर वि‍चार कऽ ओइ शक्‍ति‍केँ अक्षुण्‍न रखबाक दायि‍त्‍व बनैत अछि‍। जइसँ मात्र वर्त्तमाने नै भवि‍ष्‍य सेहो सशक्‍त रहत एवं दुनि‍याँक समक्ष जइ वि‍शेषताक लेल अपन सबहक पहि‍चान अछि‍ सेहो बनल रहत।
समस्‍या जटील जरूर बूझि‍ पड़ैए मुदा समाधानक उपाय सेहो समाजेमे अछि‍। समाजेक भीतर अछि‍। जे सनातनी पद्धति‍ माने परि‍वत्तनीय पद्धति‍सँ समाधान कएल जा सकैए। हँ एहेन जरूर भऽ गेल अछि‍ जे आकाश-पातालक दूरी बीचमे बनि‍ गेल अछि‍। मुदा की हम सभ हाथ-पएर समेटि‍ थुसुकुनि‍या मारि‍ ली? सीरा नै भट्ठा दि‍सि‍ दहाइत रही? अपना महत्‍वकेँ बि‍सरि‍ जाय? नै। बल्‍कि‍, कान ठाढ़ कऽ सुनबाक, बुझबाक एवं कि‍छु करबाक लेल अपनाकेँ तैयार करबाक चाही। अपन मि‍थि‍लाक वैदि‍क पद्धति‍पर नजरि‍ लऽ जाए इमानदारीसँ बुझबाक अछि‍। भारतीय चि‍न्‍तनधारामे पातालोसँ आकाश आ आकाशोसँ पाताल आबि‍ जाए तकर संवाद परि‍चालन होइत रहल अछि‍। दृढ़ता अनबाक लेल ऐठाम एकटा कहावत मोन पड़ि‍‍ रहल अछि‍ जे कहबी छै बि‍ना कारणे टि‍टही नै लगै छै।

मूल प्रश्न अछि‍- समाज केना सशक्‍त बनए, देश केना सशक्‍त बनए। ऐ दायि‍त्‍वकेँ बूझि‍ रचनाक सृजन हेबाक चाही। तँए साहि‍त्‍य की? साहि‍त्‍य दर्पण आकि‍ दर्शन?
साहि‍त्‍य दर्पण थि‍क, मात्र कहने व्‍यापकताक अभाव बनल रहि‍ जाइत अछि‍। दर्पणक शीशाक एक भागमे पॉलि‍श कएल रहैत अछि‍। जेकर परि‍णाम होइत अछि‍ जे ओ एकभगाह भऽ जाइए। युवा साहि‍त्‍य सृजक भाय-बहि‍न, अपना सभकेँ वि‍चार करबाक आवश्‍यकता अछि‍ जे साहि‍त्‍य आखि‍र छी की? दर्पण आकि‍ दर्शन? जइमे चारू दि‍शा देखल जाइत अछि‍।
भौगोलि‍क भाषामे दि‍शा ि‍नर्धारि‍त अछि‍, पूब-पश्चि‍म, उत्तर-दक्षि‍ण, ऊपर-नीचा इत्‍यादि‍। मुदा दर्शानि‍क भाषामे वएह चीज वि‍चारधारा कहबैत अछि‍। जे परि‍वक्‍व भेलापर दर्शनसँ दि‍ग्‍दर्शन बनि‍ जाइत अछि‍। आ वएह वि‍चारधार रूपमे आगू सेहो बढ़ैत अछि‍। अहीठाम हम सभ वि‍चार करी जे हमरा सबहक लक्ष्‍य केहेन हेबाक चाही ओइ पॉलि‍श कएल एकभग्‍गु  शीशा सन जे मात्र एक दि‍शा देखि‍ एकभग्‍गु भेल रहत? नै। बल्कि‍ ई सोचबाक अछि‍ जे चारू दि‍शा केना देखब, चौमुखी एवं सर्वांगि‍न वि‍कास केना होएत। तइ लेल ओहन दर्शन, ओहन दृष्‍टि‍कोण या फेर ओहन वि‍चारधारकेँ पकड़ि‍ चलबाक अछि‍ आ रचना करबाक अछि‍। जइमे हमर सबहक वि‍वि‍धता, व्‍यापकताक रक्षा भऽ सकए। साहि‍त्‍य समाज वा देशक ओहन सम्‍पति‍ छी जे कठीन-सँ-कठीन परि‍स्‍थि‍ति‍क रस्‍तो बतबैत अछि‍ आ आगू बढ़ैक उपाए सेहो करैत अछि‍। मुदा तइ लेल समाज आ देश-दुनि‍याँक गहन अध्‍ययन, चिन्‍तन-मननक संग रचनाक जरूरति‍ अछि‍।

भारतीय चि‍न्‍तनधारा ओहन ि‍चन्‍तनधारा थि‍क जेकरा समुचि‍त ढंगसँ रखलापर केहनो अन्‍हर-तुफान कि‍एक ने उठौ मुदा ओहन डोलान नै डोलत जेहन डोलैत रहैए या फेर डोलबाक भय बनि‍ गेल अछि‍। मुदा तइ लेल हमरा सभकेँ थोड़ेक व्‍यापकता दि‍सि‍ बढ़ए पड़त, समाज दि‍शि‍ बढ़ए पड़त। व्‍यक्‍ति‍वादी आ जाति‍वादी सोचसँ ऊपर उठि‍ सामाजवादी एवं साम्‍यवादी सोचक पूजारी बनबाक खगता अछि‍।‍

हमरा अहाँक मात्र नै जन-जनक दायि‍त्‍व अछि‍ जे संग-संग चलि‍ दुनि‍याँक बीच अपन मातृभूमि‍, मातृभाषा, साहि‍त्‍य, संस्‍कृति‍केँ ओइ रूपेँ जीवि‍त बना कऽ राखी जे समृद्धशाली देशक मुख्‍य पहि‍चान अछि‍।

आब अपन वक्‍तव्‍यमे वि‍राम दैत एक फराक प्रसंगपर वि‍चार करब आवश्‍यक बूझि‍ आदेश लि‍अए चाहब आ कहब चाहब जे आजुक ऐ संगोष्‍ठि‍क आयोजक साहि‍त्‍य अकादेमी अछि‍। जे प्राय: साहि‍त्‍य समृद्धि‍ लेल गोष्‍ठी-संगोष्‍ठि‍ करबैत रहल अछि‍। कि‍छु दि‍न पूर्व कोलकातामे सेहो भेल छल। आ होइते रहैत अछि‍। से प्राय: राजधानी, नगर-महानगरमे होइत रहैए। ओना प्रवासी मैथि‍ली सेवी लेल हेबाको चाही। जे सभ जनै छी। मुदा गोष्‍ठी गामो-घरक शहर-कसबामे हुअए जेना झंझारपुर, मधेपुर, सकरी, धनश्‍यामपुर, मधुबनी, जयनगर, लोकहा, फुलपरास, ि‍नर्मली, कुनौली, भपटि‍याही, सरायगढ़, या फेर पूर्णिया-समस्‍तीपुरक गामक कसबामे। ई सभ मैथि‍लीक नेटि‍व स्‍पीकर क्षेत्र छी। ऐ सभ क्षेत्रमे सेहो गोष्‍ठी-संगोष्‍ठी हेबाक चाही। ऐसँ आरो साहि‍त्‍यकार सभ सोझा औताह। संभव, जे दि‍ल्‍ली-मुम्‍बइ, कोलकाता आ पांडीचेरीक गोष्‍ठीसँ बेसी लाभदायक सि‍द्ध हुअए। खरचो कम आ लाभो बेसी, जइसँ एकान्‍त बासक साहि‍त्‍य सृजक लोकनि‍ मात्र नै अपि‍तु पाठाकोक संख्‍यामे अप्रत्‍याशि‍त वृद्धि‍ होएत। जन-जनमे उत्‍साह सेहो जगत जइसँ हम सभ मजगूत हएब।
काल्‍हि‍यो कवि‍ गोष्‍ठीक आयोजन हुअएबला अछि‍ संभत: अही परि‍सरमे। ओइमे एकैसम शताब्‍दीक पहि‍ल दसकक सर्वश्रेष्‍ठ कवि‍ राजदेव मण्‍डल आ आन-आन कतेको कवि‍केँ कोनो सूचना नै छन्‍हि‍। जे दुखत अछि‍। आ ऐ तरहक सूची बनौनि‍हार लोकनि‍क सोचमे कि‍ छन्‍हि‍ से वएह सभ बता सकताह। ओ लोकनि‍ गामक माटि‍-पानि‍मे लटा कऽ जीवकोपार्जनक संग साहित्‍य सृजन करैत रहलाहेँ। हुनको सभकेँ सूचना हेबाक चाहैत छल। ओतबे नै, अझुको गोष्‍ठीमे बहुतो युवा रचनाकार जेना उमेश पासवान, आशीष अनचि‍न्‍हार, चन्‍दन झा, संजीव साफी, वि‍नीत उत्‍पल, संजय कुमार मण्‍डल, ज्‍योति‍ सुनीत चौधरी, मुन्नी कामत, अमित मि‍श्र, अखि‍लेश कुमार मण्‍डल, सुमित आनन्द आ मनोज कुमार आदि‍केँ कोनो सूचना नै देल गेलनि‍।  

अंतमे, प्रसंगसँ हटि‍ चरचा कएल जे आवश्‍यक छल। जौं ऐसँ कि‍नको दुख पहुँचल हेतनि‍ तइ लेल क्षमा मंगैत एकबेर फेर साहि‍त्‍य अकादेमीक संग अपने लोकनि‍क प्रति‍ सादर आभार व्‍यक्‍त करैत अपन वाणीकेँ वि‍राम दैत छी।


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com  पर पठाउ।

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।