३.७.
जगदानन्द झा 'मनु'
३.८.
दमन कुमार झा
जवाहर लाल काश्यप
यौ मीत,
गाबु कोन गीत
लिखु कोना गजल,
जिन्दगी नहि छै,
सुर-ताल मे सजल
नहि छै कोनो मुखरा,
ने कोनो अंतरा
नहि वर्णक विचार,
ने कोनो मात्रा
बस अतुकांत कविता जेना,
एकटा गति छै
शुरु हेबाक, चलैत रह्बाक, खत्म हेबाक...
ने कोनो मतलब, ने कोनो महत्व
बस आकंक्छा के बलिवेदि पर
जीवनक वलि देबाके छै
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड
रिसर्च सेण्टर, निगडी – प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४
मधुश्रवणी गीत - १
सखी हे ! चलू
मधुबन फूल - पात लोढ़य लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
बितल आषाढ़, आयल अछि साओन ।
ऋतु
बरसातक परम सोहाओन ।
लागय
वसुधा सुन्नर अनुपम ।
चहु दिशि बाट करैत’छि गमगम ।
सखी हे ! प्रकृतिक मनभाओन
शिंगार देखय लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
कारी घटा देखि नाचय मयूर ।
शोभित जहँ - तहँ बहु - विधि फूल ।
हरियर घास लसित भेल विपुला ।
उमड़ल जल सञो पोखरि -
सरिता ।
सखी हे ! मह -
मह शीतल बसात
बहइए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
फूल फुलायल भरि –
भरि डारि ।
चम्पा
– चमेली आ
नेवारि ।
देखितहि
बनय कनैलक कुञ्ज ।
लुबुधल जाहि पर मधुपक
पुञ्ज ।
सखी हे ! कामिनी - कञ्चन –
कनैल लोढ़य लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
बैसलि डारि करैछ खग
कलरव ।
गूँजय बेकल पपीहाक मधु –
स्वर ।
सखी हे ! कोइलियो प्रेमक गीत गाबैए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
मधुश्रवणी गीत - २
चलै गे बहिना !
फुलडाली लय फूल तोड़य लए
।
अड़हूल तोड़य लए ।
सखी ! अड़हूल तोड़य लए ।।
भाँति – भाँति केर फूल फुलायल,
लुबुधल
भरि - भरि डारि ।
बेला – बेली, जाही – जूही,
गेना - गुलाब
- नेवारि ।
चलै गे बहिना !
फुलडाली लय फूल तोड़य लए
।
अड़हूल तोड़य लए ।
सखी ! अड़हूल तोड़य लए ।।
बेलपात आ फूल
सखी हे,
तोड़ब
भरि – भरि डाली ।*
बिसहरि - गौड़ - महादेव पूजब,
माँगब सिनुरक लाली ।
चलै गे बहिना !
फुलडाली लय फूल तोड़य लए
।
अड़हूल तोड़य लए ।
सखी ! अड़हूल तोड़य लए ।।
आदिकाल सञो यज्ञभूमि,
मिथिला केर अछि ई तिहार ।
छी मिथिला केर बेटी, तेँ ई
जन्मसिद्ध
अधिकार ।
चलै गे बहिना !
फुलडाली लय फूल तोड़य लए
।
अड़हूल तोड़य लए ।
सखी ! अड़हूल तोड़य लए ।।
* डाली = मैथिलीक “बाँसक कमचीक बनल
वस्तुविशेष”, नञि कि हिन्दीक “गाछक
शाखा”
सिनुरदानक गीत
सखी हे ! चलू आजु मिथिलाधाम
।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
मड़बा अछि चारू दिशि साजल,
केरा गाछ सञो द्वारि बनाओल ।
भाँति - भाँति केर चित्र लिखल अछि,*
साजल बहुविधि फूल आ पल्लव ।
गाबय सखि
सभ मंगल – गान
।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
सकल महीप पराभव जखने,
शिवक महाधनु तोड़ल रघुवर ।
कतेक विघ्न केर बाद आयल अछि,
ई पुणीत शुभदिवस सुअवसरि ।
लागल मिथिला शोभा महान ।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
माथ उघाड़ि सिया छथि बैसलि,
दर्शन दिव्य,
देवगण उमरल ।
वरण कयल मन, वर सम्मुख
छथि,
धनि शिव-गौड़ मनोरथ पूरल ।**
देथिन्ह
सिऊँथेँ सिनूर श्रीराम
।
होयतन्हि सिय केर सिन्दुरदान ।।
* प्राचीन मैथिली मे “चित्र लिखब” शब्द थिक ”चित्र
बनायब” या “चित्र पाड़ब” शब्द आधुनिक मैथिलीक देन अछि ।
** पुष्पवाटिका मे देल गेल माए
पार्वतीक आशिर्वाद ।
परिछनि गीत
(द्विरागमन / दुरागमन /
गौना केर बादक परिछनि)
चलू – चलू सखी आजु अयोध्या,
परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।
नेने आयल
छथि संग मे
बहुरिया, जनकपुर केर चान केँ ।।
गेल छलाह यज्ञक रक्षा लए,
मुनि कौशिक केर संग
।
जाय जनकपुर कयलन्हि
ओहिठाँ,
शिवक धनुषकेँ भंग ।
जाय मिथिला नगरिया
रखलन्हि ओ, मिथिलेशक मान – सम्मान केँ ।
चलू – चलू
सखी आजु अयोध्या,
परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
कान दुहु कुण्डल लटकै
छन्हि,
गला मे कञ्चन हार ।
डाँढ़ शोभन्हि बिअहुतिया धोती,
माथ पर ललका पाग ।
सुन्नर हिनकर सुरतिया लगय
छन्हि, आ मुँह पर मधुर मुस्कान गे ।
चलू – चलू
सखी आजु अयोध्या,
परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
श्रीराम – सिया, भरत ओ माण्डवी,
लखनोर्मिल, शत्रुघ्न – श्रुतिकीर्त्ति ।
मोनहि मोन होइछ हर्षित सभ,
देखि ई अनुपम चारू जोड़ी ।
सुन्नर चारू ई जोड़िया
लगैत’छि,
सखी जेना चकोर
आ चान गे ।
चलू – चलू
सखी आजु अयोध्या,
परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
कनक दीप ओ घी केर बाती,
कञ्चन थार सजल दुहु हाथ ।
हर्षित मन परिछथि तीनू माता,
एकाएकी बारम्बार ।
देखि चारू बहुरिया, होइ छथि हर्षित, सभ बासी अयोध्या
धाम केर ।
चलू – चलू सखी
आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
उच्चारण संकेत :-
अंग्रेजी आदिक पोथी सभ मे
“आन
भाषा – भाषी”क लेल वा “नवसिखिया” सभक लेल कोष्ठ मे “उच्चारण
संकेत” (Pronunciations / Phœnetic symbols) देल रहैत छै । मैथिली मे ई परिपाटी नहि, तथापि हमरा लगैत अछि जे देबाक चाही, तेँ एहि बेर सञो
शुरू कए रहल छी ।
मैथिली मे बहुधा “साहित्यिक शब्द
लेखन” ओ “शब्दोच्चारण”क बीच थोड़ेक अन्तर देखल जाइछ, जकरा “आन भाषा – भाषी मैथिली शिक्षणार्थी” लोकनि वा “नवसिखिया” लोकनि ठीक
सँ नञि बूझि पबैत छथि आ “हिन्दी व्याकरण” केर आधार पर उच्चारण करैत छथि ।
बहुत बेर “मैथिल” लोकनि “सर्व – साधारण गप्प –
शप” मे तँ सही उच्चारण करैत छथि परञ्च जञो “लिखित मैथिली” केँ पढ़ि कऽ उच्चारण करबाक हो तँ ओ “हिन्दी” व्याकरणक आधार पर उच्चारण करैत पाओल जाइत
छथि ।
एहि सभ कारण सँ कए बेर
लिखल कविता वा गीत वा गजल सभक उच्चारण, लय, ताल, मात्रा आदि बदलि जाइत अछि । ओना तँ एहि बदलाव सभ केँ रोकब पुर्णतः सम्भव
नञि आ पाठक ओ गायक लोकनिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता सेहो । पर कएक बेर ई बदलाव एहि
स्वरूपक होइछ जे अभिप्रेत लय, ताल पुर्णतया बदलि जाइत अछि ।
नचरी, डिस्को भऽ जाइत अछि आ सुगम संगीत पॉप या रैप ।
तेँ उपरोक्त कारण सभक
द्वारेँ, हम अप्पन रचना मे प्रयुक्त किछु शब्द सभक उच्चारण संकेत एहि बेर सँ देअब
शुरू कएल अछि ।
क्रम संख्या
|
गीत वा कविता सं॰
|
लिखित शब्द
|
अभिप्रेत उच्चारण
|
१
|
१
|
अहिबात
|
अहिबात, ऐहबात
|
२
|
१
|
साओन
|
साओन, साउन
|
३
|
१
|
सोहाओन
|
सोहाओन, सओहावन
|
४
|
१
|
मनभाओन
|
मनभाओन, मनभावन
|
५
|
१
|
करैत’छि
|
करैतैछ, करै अछि
|
६
|
१
|
सरिता
|
सैरता
|
७
|
१
|
पोखरि
|
पोखैर
|
८
|
१,२
|
भरि
|
भइर, भैर
|
९
|
१,२
|
डारि
|
डाइर, डाइढ़
|
१०
|
१,२
|
नेवारि
|
नेवाइर
|
११
|
१
|
देखितहि
|
देखितहि, देखिते
|
१२
|
१
|
जाहि
|
जाहि, जइ
|
१३
|
१
|
बैसलि
|
बैसैल
|
१४
|
२
|
अड़हूल
|
अड़हूल, अढ़ूल
|
१५
|
२,३
|
भाँति
|
भाँइत,भाँति
|
१६
|
२
|
बिसहरि
|
बिसहैर
|
१७
|
२
|
आदिकाल
|
आदिकाल, आइदकाल
|
१८
|
२
|
अधिकार
|
अधिकार, अइधकार,
ऐधकार
|
१९
|
३
|
सखी
|
सखी
|
सखि
|
सखि, सइख, सैख
|
२०
|
३
|
होयतन्हि
|
होयतन्हि, हेतन्हि,
हेतैन्ह, हेतैन
|
२३
|
३
|
दिशि
|
दिशि, दिश
|
२४
|
३
|
द्वारि
|
द्वारि, द्वाइर,
दुआइर
|
२५
|
३
|
अवसरि
|
अवसइर, अवसैर
|
२६
|
३
|
उघाड़ि
|
उघाइड़, उघाइर
|
२७
|
३
|
धनि
|
धनि, धैन
|
२८
|
३
|
सिऊँथ
|
स्यूँथ, सीथ
|
२९
|
४
|
परिछनि
|
परिछैन, परिछनि
|
३०
|
४
|
लए
|
लए, लेऽ
|
३१
|
४
|
कयलन्हि
|
कयलन्हि, केलन्हि,
केलैन्ह, केलैन
|
३२
|
४
|
छलाह
|
छलाह, छला
|
३३
|
४
|
मुनि
|
मुनि, मुइन
|
३४
|
४
|
शोभन्हि
|
शोभन्हि, शोभैन्ह,
शोभैन
|
३५
|
४
|
बिअहुतिया
|
बिअहुतिया, बिहौतिया
|
३६
|
४
|
परिछथि
|
परिछथि, परिछइथ,
परिछैथ, पइरछैथ, पैरछैथ
|
३७
|
४
|
देखि
|
देखि, देइख
|
३८
|
सर्वत्र
|
केर (सम्बन्ध कारक विभक्ति)
|
केर (।।, एकमात्रक दू
आखर/अक्षर),
के (ऽ, द्विमात्रिक एक
आखर/अक्षर )
|
३९
|
सर्वत्र
|
केँ (कर्म ओ सम्प्रदान कारक
विभ॰)
|
केँ (ऽ, द्विमात्रिक),
के (ऽ, द्विमात्रिक)
|
४०
|
सर्वत्र
|
के (प्रश्नवाचक सर्वनाम वा
प्रश्नवाचक सार्वनामिक सम्बोधन)
|
के (एक-, द्वि- या
त्रिमात्रिक)
|
४१
|
सर्वत्र
|
अछि
|
अछि, अइछ, ऐछ, अइ
|
४२
|
सर्वत्र
|
छन्हि
|
छन्हि, छैन्ह, छैन
|
४३
|
सर्वत्र
|
छथि
|
छथि, छैथ
|
१.
मुन्नी कामत २.
जगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल
१
मुन्नी कामत
दूटा कविता
नोराएल आँखि
उजरल घरमे पोखरिक पानि
पीब रहल अछि अखनो लोक
पूछि रहल अछि मासुम बच्चा
कहिया तक भोगबै हम ई सोग।
केना उजरल घर बसतै
केना एकर नोर सुखतै
आैर कतेक दिन
अहिना भोगतै ई भोग।
सबहक दाता वएह एगो माता
जिनकर अछि समान पूत
कोइ कहाबए हिन्दू-मुस्लिम
आ कोइ अछूत।
भाइ-भाइकेँ जातिमे बाँटि
धुतकारैत देखैत छी समाजमे
की कहब हम ई विडम्बना
कतेक चोट लगैत अछि काेढ़मे।
किअए छी हम अछूत
वएह विधना हमरो बनौलक
वएह रँग-रूप-गुण देलक
पर अबिते ऐ संसारमे
परजाति कहि कऽ सभ धुतकारलक।
पहिले जाति बारि कऽ गाम बँटलक
मनक संग पाइनो बँटलक
नै ई कोइ सोचलक हमरा मनुख
देखि कऽ सभ मुँह फेरलक।
कहू पर हे बुधिजीवि
हमरेसँ सभ उद्धार होइए
हमर बनेलहा दौरा देवताक
सिरपर चढ़बैत अछि
वएह माटिपर हमहूँ ठाढ़ छी
तँ हम किअए अछूत कहाइ छी!!
२
जगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल
सभ्यता आ संस्कृति ( कविता )
हम कहलियनि हमरा नोकरी भेटि गेल
बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह
हम कहलियनि हम अपन विवाह सेहो ठीक क' लेलहुँ
बाबूजी नाराज भ' गेलाह
हम कहलियनि विवाहमे दस लाख भेटत
बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह
हम कहलियनि कनियाँक नाम पर बैकमे जमा रहत
बाबूजी नाराज भ' गेलाह
हम कहलियनि कनियाँ सेहो नोकरी करैत छथि
बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह
हम कहलियनि कनियाँ सेहो संगे आबि गेल छथि
बाबूजी सन्न रहि गेलाह !
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4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
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