भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, July 14, 2012

'विदेह' १०९ म अंक ०१ जुलाइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५५ अंक १०९) PART IV

रामदेव प्रसाद मण्डल झारुदार
झारू-
काम-क्रोध मद लोभ मोह सन, सभ खेतमे दुक्‍खक बीज।
जँ पनपल ई मौका पा कऽ सुख केर भऽ गेल पावर सीज।।

गीत-
देखि‍यो सभ बाबू-भैया
ई सभ की करै छै
सुख ले एलै बोड़ा लऽ कऽ
दुख कि‍अए भरै छै

लोभ-मोहमे सभ अन्‍हरेलै
पढ़लो-लि‍खलो लोक बनरेलै
दुनि‍याँ-दारी के बताबए
भाइयोसँ लड़ै छै
सुख..........।

करोध-कठोरता सभ छै धेने
अहंकार छै बेबस केने
दोर केर सुख-शांति‍ देखि
कि‍अए ई जरै छै
सुख........।

बहुत कम छै एहन कलामी
जे नै करै छै कामक गुलामी
जेकरा चढ़लै ई गि‍रगि‍टि‍या
नरकमे सड़ै छै
सुख..........।



झारू-
कि‍छु ने देतै मंदि‍र-मस्‍जि‍द, देतै ने कि‍छु गि‍रि‍जाघर।
मनक सपना पूरा हेतै, जीव-जगत केर सेवा करतै।।‍

गीत-
धरम करैत जे हुअए हानि‍
तैयो ने छोड़ि‍ धरमक बानि‍
हमर माए ई सि‍खबैत रहए
साँझ-भोर-दुपहर दि‍न रानि‍।

जानि‍ बूझि‍ ने केकरो सतैहनि‍
सदि‍खन सत्तक रोटी खैहि‍हेँ
भऽ सकौ कि‍छु सेवा करि‍हेँ
दि‍न-दुखी दुख अपन जानि‍
धरम..........।

दया प्रेमक रखि‍हेँ आगाँ
टुटौ ने मानवता धागा
भुखलकेँ तूँ अन्न खि‍यैहेँ
पि‍यासलकेँ पि‍यबि‍हेँ पानि‍
धरम........।

सत् डगर कखनो नै छुटौ
असत् अन्‍हार लोभ नै लुटौ
नैति‍कता नि‍ष्‍ठामर्यादा
धरम इमान कऽ जीबि‍हेँ मानि‍
धरम.............।


झारू-
बचल जीवन छै घोर अन्‍धेरा, जराउ प्‍यारसँ ज्ञानक दीप।
वर्णा देखेतै एतए नै कि‍छो, मोती भरल सागरमे शीप।।

गीत-
कर भला तब हो भला
कर भला तब हो भला।
हम नै कहै छी ज्ञानी गुणी
सबहक नीक लेल कहि‍ गेलाह।

दोसर सता कऽ दुख नै कि‍नू
सुख-शांति‍ ले सेवा बुनू।
जानै नै जे परक पीड़ा
जगमे अन्‍धा रहि‍ गेला।
कर भला.........।

जे जानलकै परक पीड़ा
तकरा मि‍ललै सच्‍चा हीरा।
नाम अमर छै धरा धाममे
गैर खड़ा छै धरम कि‍ला।
कर भला...........।

हि‍ंसा छोड़ि‍ सेवाकेँ पकड़ू
डोरी प्रेममे सभकेँ जकड़ू।
नै केकरोसँ शि‍कबा-सि‍काइत
केकरासँ ने कोनो गि‍ला।
कर भला...........।


स्‍वागत गीत

हम नै छी अहाँ योग यौ पाहुन
अहाँ छी बड़ महान
स्‍वागत स्‍वीकारू श्रीमान्।

अहाँ छी गंगा अहाँ छी यमुना
पग धूलसँ पावन भेल अंगना।
अहाँक सेवाक ज्ञान नै हमरा
हम बालक अज्ञान
स्‍वागत.........।

अहाँ छी अल्‍ला अहाँ छी शंकर
अहाँ छी हीरा हम छी कंकर
चरण धूल हम माथ लगा कऽ
कल जोड़ि‍ करै छी परनाम
स्‍वागत..............।

हमरा नै सोना सि‍ंघासन
मन दै छी हम आसन
बैस बि‍राजू देव अति‍थि‍
हम छी गरीब महान
स्‍वागत............।



झारू-
चलए समैसँ सूरज-चंदा, समैसँ होइ छै सुबहो-शाम।
समैसँ बान्‍हल सौंसे दुनि‍याँ, अहूँ करू सभ समैसँ काम।।

गीत-
बाबू समए कम छै काम छै बेसी डटू ना
आब तँ पाछाँ हट्टू नै यौ।

भुदानी सभ छै अमीरकेँ पास
ऐमे गरीबकेँ नै छै आश।
फेरसँ भूमि‍ भुदानी पुर्नवि‍चारसँ वि‍चारू ना
आब तँ..........।

चलता-फि‍रता बनबू न्‍यायालय
गाम होइ जकर कार्यालय।
गौआँ-अफसर मि‍ल कऽ
केस फाइलकेँ छाँटू ना।
आब तँ............।

वि‍कास पहाड़ पड़ल छै आगू
आबो युवा वर्ग सभ जागू।
एकताक डोर पकड़ि‍ कऽ
भेद-वि‍ष्‍मता काटू ना।
आब तँ.........।

जब पौरुषे धीरज खोतै
ऐठाम केना कऽ जनता जि‍तै।
नि‍ष्‍ठावानक बेटा
सुख जन-जनमे बाॅटू ना।
आब तँ.............।



झारू-
शासक होइ जन-जनमे स्‍नेही, हर जनपर होइ हुनकर प्‍यार।
होइत साकार शब्‍द प्रजा-वत्‍सल, होएत देश खि‍ल कऽ गुलजार।।

गीत-
बहि‍ना आब नै रहतै पाछाँ अपन बि‍हार गै
एलैए नीतीश कुमार गै ना।

सभटा सड़क ढलेतै पक्का
आब नै धँसतै गाड़ी चक्का
बहि‍ना वि‍कासमे बनतै
नव-नव मि‍नार गै।
एलैए.........।

न्‍यायमे लगतै लबका दाउ
मि‍टतै सबहक पुरना घाउ
आब नै रहतै कोर्टमे
केस फाइलक पहाड़ गै
एलैए...........।

खेत हेतै चकबन्‍दी सि‍ंचि‍त
रहतै कतौ नै बि‍लजी वंचि‍त।
बहि‍ना खेतमे हेतै
लबका हरा-बहार गै।
एलैए...........।

एतै मेल एकतामे जोड़
हेतै सुख-शांति‍ केर भोर।
सभ मि‍लि‍ धकेलि‍ गि‍रेबै
जाति‍-धर्मक देबाल गे।
एलैए............।



झारू-
दीप जराबू प्रेमक बाती, भरि‍ कऽ तइमे सि‍नेहक तेल।
फुटै आभा सुख-शांति‍क, जन-जनमे होइ सम्मत मेल।।

गीत-
बनि‍ जीबै हम सभ भैयारी हम बाके बि‍हारी।

जाति‍-धरमकेँ करबै पाछाँ
तब ने राज कहेतै अच्‍छा
हि‍न्‍दु-मुस्‍लि‍म सि‍ख-इसाई
सभ छि‍ऐ पहि‍ले बि‍हारी यौ
हम बाके.........।

एकताक प्रमाण चढेबै
अपना बि‍हारकेँ आगाँ बढेबै
हर हाथमे रोजी दि‍एबै
मूलसँ मेटेबै वेरोजगारी यौ
हम बाके.............।

अन्‍धवि‍श्वासक राज हटेबै
कुरीति‍केँ धूल चटेबै
भूख-गरीबी रोग अशि‍क्षा
और भगेबै भ्रष्‍टाचारी यौ
हम बाके..........।



झारू-
राज हुनकेसँ चलि‍ सकै छै, जि‍नका रगमे दानी खून।
स्‍वामी भाव अंग-अंगमे भरल होइ, और भरल होइ सेवा गुण।।

गीत-
केकरोसँ नै रहबै पाछाँ
सभसँ जेबै अगारी यौ
सि‍र उठा गौरवसँ कहबै
हम छी बाबू बि‍हारी यौ

मेल एकताक फूल खि‍लेबै
घर-घर शांति‍ दीप जरेबै
जग अमन केर झोरा लऽ कऽ
घर-घर बनबै भि‍खाड़ी यौ
सि‍र उठा...........।

हक हमर जे आब कि‍यो छि‍नतै
अपना ले दुख अपने छि‍नतै
आब ने केकरो मारल जेतै
दसो नहक देहारी यौ
सि‍र उठा..........।

न्‍याय वि‍कास प्रमाण चढेबै
राजक नाम दुनि‍याँमे बढ़ेबै
अन्‍धवि‍श्वास अज्ञान-कुरीति‍
सभकेँ करबै पछाड़ी यौ
सि‍र उठा.........।



झारू-
चलि‍ गेला सभ कहैबला, जग अमन केर रोपू जड़ि‍।
के पढ़तै आब फेर ई फकरा, चि‍न्‍ति‍त छै सभ पेट पोखरि‍।।

गीत-
यार दि‍लदार यार, की रौ भजार यार
तूँ बि‍हारमे जा कऽ की देखलेँ।

राजकर्मीकेँ सुतैत देखलौं
फुहरीकेँ घूमि‍-घूमि‍ मुतैत देखलौं।
न्‍याय केर नामपर लुटैत देखलौं
जनताकेँ राजा कुटैत देखलौं।
न्‍याय मरै छल घूस अभावे
राज धृष्‍टराष्‍टक चलैत देखलौ।

यार दि‍लदार यार, की रौ भजार यार
तूँ पटनामे जा कऽ की देखलेँ।

राजभवनमे गदहा चलैत देखलौं
पदगौरवमे राजा मरैत देखलौं।
सभ गाड़ीमे पुलीश उड़ैत देखलौं
मंदि‍रमे महि‍ला मुड़ैत देखलौं।
लुच्‍चा-लंपट कुर्सी धऽ धऽ
मांसु मदि‍रापर पलैत देखलौं।

यार दि‍लदार यार, की रौ भजार यार
रेलगाड़ीमे चढ़ि‍ कऽ की देखलेँ।

सही टि‍कटपर फाइन लगैत देखलौं
यात्रीकेँ नरक भोगैत देखलौं।
पुलीसक वर्दीमे डकैत देखलौं
टीटीकेँ पैसा ठकैत देखलौं।
पुलीश टीटी सभ दल बना कऽ
मुँह दुबराकेँ लुटाइत देखलौं।
यार.............।


झारू-
जनता बनू अयोध्‍यावासी, गुणि‍ कऽ मानवताक मंत्र।
तन धुअल संतोष जलसँ, गला बान्‍हल होइ मर्याया यंत्र।।

गीत-
छूक-छूक-छूक-छूक रेल वि‍कासी
आब चलेबै पटरीसँ।
आब सभ कुछ बि‍जलीसँ हेतै
चलतै नै कि‍छो बैटरीसँ।

राजकर्मी बनतै मधुमेबा
जमि‍ कऽ करतै जनता सेवा।
अमन चैनक फल खि‍येतै
खोलि‍-खोलि‍ वि‍द्या मोटरीसँ।
आब सभ कुछ..............।

गामे-गामे एकता बनेबै
अपन काज अपनेसँ करेबै।
आब नै केकरो घूसमे जेतै
बान्‍हल पैसा गठरीसँ।
आब सभ कुछ.............।

शि‍क्षा केर अाब लगतै झड़ी
घर-घर बनतै ज्ञानक बरी।
सभसँ कम जे पढ़ल रहतै
कम नै रहतै मेट्रि‍कसँ।
आब सभ कुछ..................।



झारू-
चाहे ओला पुस गि‍राबै, टपकि‍ रहल होइ जेठक घाम।
लि‍खलक कि‍ष्‍मत कहाँ वि‍धाता, बैस घरमे करी आराम।।

गीत-
कतेक कहब हे बाबा वनजरैया
अपना मनक मुराद हे।
कहि‍या देखतै गरीब आजादी
केना कऽ हेतै आजाद हे।

आबो दलाली जीवि‍ते रहतै
अनबूझकेँ खून पि‍बतै रहतै।
साफ हेतै ई कचरा केना
देश हेतै केना आवाद हे।
कहि‍या............।

के लेतै ऐ गरीबक जि‍म्‍मा
एकरा हक ले सोच धि‍म्‍मा।
ऐ गरीबक दुख हरै कऽ
के देतै बुनि‍याद हे।
कहि‍या............।

सभ गरीब मजदूर मेहनतकस
बनि‍ जीबै छै देशमे बेबस।
आजादी घर-घर पहुँचेतै
पैदा करह औलाद हे।
कहि‍या.............।



झारू-
हे भूमि‍क भाग्‍य वि‍धाता, जगक अन्नदाता भगवान।
कहाँ पता तोरा शि‍बा छै केकरो, छूपल कतए छै खेतमे धान।।

गीत-
सुनह हौ बाबू सुनह हौ भैया
केना होइ छै ई टोना हौ।
माटि‍मे जौं गोबर मि‍लै छै
तब बनै छै सोना हौ।

जे मि‍लबै छै खेतमे गोबर
तकरा घरमे अन्न छै दोबर।
ई जेकरा महकै छै बाबू
दुखमे करै छै घौना हौ।
माटि‍मे..........।

जे कोइ चुल्हीमे जरबै छै
समझू सोनाकेँ हरबै छै।
जे फेकै छै एने-ओने
तकर ि‍वकास छै बौना हौ।
माटि‍मे.............।

जे नै करै गोबरक आदर
फटले रहतै तकर चादर।
आदर नमन जे एकरा करै छै
हरदम रहै दि‍वाना हौ।
माटि‍मे..............।



झारू-
पैसासँ सभ इज्‍जतबला, काज करै चाहै सैतान।
तैयो पुजै ओकरे दुनि‍याँ, कि‍एक तँ ओ छै पैसामान।

गीत-
आंगनबाड़ी खेत खेसारी
बनि‍ उजडै छै भाय हो।
सभटा खाइ छै भैंस अनेरबा
कोइ रोमए नै जाइ हौ।

रोमैले जेकरा भेजै गि‍रहतबा
दइ छै आजादी खाउ भरि‍पेटबा।
हमर भाग हमरा ले छोड़ू
जे छै हरा केलाइ हौ।
सभटा..........।

के करतै एकर नि‍गरानी
गि‍रल छै सबहक आँखिक पानी।
नीति‍-धरम नि‍ष्‍ठा-मर्यादा
सभटा गेलै बि‍लाए हौ।
सभटा............।

कर्मी संग रजो छै अन्‍धा
तँए छै चौपट्ट वि‍कासी धंधा
नि‍हि‍त हएत राजकोषक पैसा
सभटा गेलै समाए हौ।
सभटा............।


झारू-
जगि‍ कऽ रहब बाबू-भैया, और रहब चौकस हथि‍यार।
फेर नै पाबए राजक कुर्सी, लुच्‍चा-लंपट चोर-चुहार।।

गीत-
सुनह हौ बाबू सुनह हौ भैया
बाके बि‍हारी बन्‍धु मन मि‍त।
ई एलेक्‍शन एहेन बुझाइ छै
असत्‍यक ऊपर सत्‍यक जीत।

सभ कोइ कहि‍यौ हम नीतीश छी
सोलह नै सभ कोइ बत्तीस छी।
भूख गरीबी रोग अशि‍क्षा
सभ मि‍लि‍ कऽ करबै वि‍स्‍मि‍त।
ई............।

गामे-गामे एकटा बनेबै
घर-घर शान्‍ति‍ दीप जरेबै।
जाति‍-धरमसँ मनसँ भगा कऽ
गाबबै सभ मानवताक गीत।
ई..............।

स्‍वाभि‍मानकेँ सभ कोइ जगेबै
लोभ-लालचकेँ मनसँ भगेबै।
सभ मि‍ल ऊजरल घर सजेबै
सभ कोइ जपबै जय-जनहीत।
ई...............।



झारू-
तरे स्‍वर्ग पण्‍डि‍त पूजासँ, जे देखलक नै आइ तक कोइ।
जौं सच्‍चा ई जानैत मानव, पण्‍डि‍तसँ नै पुजाबैत कोइ।।

गीत-
अन्‍धवि‍श्वास अज्ञान कुरीति‍
भूख गरीबी भ्रष्‍टाचार।
ई अंग्रेज केना कऽ भगतै
बाबू-भैया करू वि‍चार।

हरदम घुमै चन्‍दा केर चक्कर
धरम करैत लोक भेलै फक्कर।
छप्पन करोड़केँ पुजैत-पुजैत
उजरल जाइ छै घर-दुआर।
ई.............।

मुर्ख पढ़लमे की छै अन्‍तर
सभ पढ़ै छै एक्के मंतर।
बेचि‍ धरम-नि‍ष्‍ठामर्यादा
लगबै छै पैसाक जोगार।
ई..............।

देखि‍यौ ई अज्ञानक धंधा
गाड़ने छै कुरीतक झंडा।
भूख गरीबी बढ़बै खाति‍र
कऽ रहलै घर-घर परचार।
ई...............।



झारू-
छोड़ि‍ सत्‍य इमान-धरमकेँ, ताकै अज्ञानसँ तनक सुख।
मि‍ट सकै छै भूख तात्‍कालि‍क, मेटाइ नै ऐसँ केकरो दुख।।

गीत-
एबरी हमरा जीताबह हौ बाबू
वि‍कासक करबह काम हौ।
आब केकरो सतेबह हौ बाबा
आब पकड़ै छी कान हौ।

गली-कुच्‍चीमे सड़क दौगैबह
घर-घरे हम कल गड़ेबह।
ई सभटा कागजेपर हेतह
अपन भरबै मकान हौ।
आब नै..................।

सौर ऊर्जाले फरम भरेबह
अपना चुल्हा लग तकरा गड़ेबह।
जौं कुच्‍छो कोइ बजबह बाबू
तकर धरब हम कान हौ।
आब नै....................।

फन्‍ड वि‍कासी घर ढुकेबह
सभ जनताकेँ घून पि‍सेबह।
केकरो शि‍काइत तँ काेइ ने सुनै छै
वि‍धि‍ छै देशक बाम हौ।
आब नै....................।



झारू-
पैसा होइ छै शशि‍सँ शीतल, जौं पाबै ज्ञानी-होशि‍यार।
कऽ कऽ सेवा दीन-दुखीकेँ, कऽ लेलक अप्‍पन बेड़ा पार।।

गीत-
झुमका देबौ बाली देबौ
गै बेटी तूँ पढ़ गै।
धरापर लटकल ज्ञानक डोरी
पकड़ि‍ कऽ ऊपर चढ़ गै।

श्रद्धा रखि‍हेँ गुरु-गोसाँइ
गुरुचरण गहि‍ धड़ गै।
जौं पढ़ैमे मन नै लगतौ
जोतमेँ केना घर गै।
धरापर...........।

पढ़ वि‍ज्ञान तूँ गढ़ि‍-गढ़ि‍ कऽ
जगसँ मेटा कहर गै।
लोक खड़ा अज्ञान आगि‍मे
पी-पी बि‍ख जहर गै।
धरापर.............।

जनहि‍त केर तूँ पोथी पढ़ि‍ कऽ
नेता बन तूँ बड़ गै।
गला लगा मानवता माला
गि‍रलकेँ कर ऊपर गै।
धरापर..............।



झारू-
सादी रीति‍ सभ धर्ममे, छोट नै छै अति‍ छोट छै।
फँसि‍ कऽ ई अज्ञान-अंधेरा, घर उजाड़ि‍ कऽ जरबै नोट।।

गीत-
कनी देखही गै दाइ कनी सुनही रौ भाय
कनी मानही गै माइ सासु अज्ञानवश बनलै कसाइ।

नोट गीन-गीन कऽ नोट गनै छै
अपने फाँसी आप बनबै छै।
ई अज्ञानक देन कुरीति‍
कऽ रहल दहेज छै सबहक धुलाइ।
कनी..............।

लोभक कारण लोभी बनै छै
बँचतै नै कि‍छो सेहो जनै छै।
तब नै कि‍अए आदर्श देखा कऽ
मस्‍जि‍द-मन्‍दि‍रमे करै सगाइ।
कनी...............।

सासु-पुतोहुकेँ रोज कनबै छै
कम-जहेजक रोब जमबै छै।
सदी एक्केसम चलै छै बेटी
सासुकेँ दही कि‍छु सबक सि‍खाइ।
कनी...............।



झारू-
हम और हमरा केर जालमे, फँसल एतए छै सभटा बन्‍दा।
एही मोहकेँ कारण मानब, कर्म करै छै बनि‍ कऽ अन्‍धा।।

गीत-
पढ़ै छेलि‍ऐ लि‍खै छेलि‍ऐ सि‍खै छेलि‍ऐ ज्ञान
केना देशक हाल सुधरतै
दुखक हेतै केना नि‍दान।
बाजू भैया रामे-राम
रामे-राम हाै भाय
सभ अन्‍हरेलै अज्ञानक अन्‍हारमे।

सबहक मनमे लोभ जकरलक
सुझै नै नीति‍ वि‍धान।
गला दाबि‍ कऽ दहेज गि‍नाबै
रि‍स्‍ता भेल बदनाम।
बाजू...........।
सभ उजरलै दहेजक लहरि‍मे।

अन्‍धवि‍श्वासक डंका पीट-पीट
नोटक बान्‍है बोझ।
कुरीति‍क जाल फैला कऽ
सभकेँ केने छै सोझ।
बाजू..............।
बि‍हार फँसल छै कुरीति‍क जालमे।

जनसेवाक पाठ बि‍सरि‍ कऽ
सेबैए मूर्ति-भगवान।

छोड़ि‍ अपना कर्त्तव्‍य-कर्मकेँ

देवीपर देने छै धि‍यान।

बाजू..............।

लोक ओझरेलै अन्‍धवि‍श्वासक जालमे।

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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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