भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, August 12, 2012

'विदेह' १११ म अंक ०१ अगस्त २०१२ (वर्ष ५ मास ५६ अंक १११) PART V



१. राजदेव मण्‍डल- जगदीश प्रसाद मण्‍डलक कवि‍ता संग्रह राति‍-दि‍नक समीक्षा २.डॉ. धनाकर ठाकुर- समीक्षा – फूल तितली आ तुलबुल (लेखक -श्री सियाराम झा 'सरस')

राजदेव मण्‍डल
जगदीश प्रसाद मण्‍डलक कवि‍ता संग्रह
राति‍-दि‍न
:: समीक्षक राजदेव मण्‍डल

मैथि‍लीक नव कवि‍ताक नि‍रन्‍तर वि‍कास भऽ रहल अछि‍। श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल पूर्ण नि‍ष्‍ठा आ तल्‍लीनताक संग ऐ वि‍कास कर्ममे संलग्‍न छथि‍। आ तेकर प्रति‍फल सम्‍मुख अछि‍- कवि‍ता पोथी- राति‍-दि‍न। ऐ पोथीमे 52 गोट कवि‍ता संकलि‍त अछि‍।

कवि‍ता भाव, बुधि‍ कल्‍पना आर शैलीक समन्‍वि‍त परि‍णाम थीक।
ऐ गुण आदि‍सँ अलंकृत मानस सृजनक गम्‍भीर, सचेत प्रक्रि‍यासँ संचालि‍त भऽ सकैत अछि‍। तइ कारणे कवि‍ अत्‍यधि‍क सवेंदनशील होइत अछि‍। हरेक कालावधि‍मे मनुखक अन्‍तसमे अभीप्‍सा पालि‍त-पोषि‍त होइत रहै छै आ ओइपर जखन तुषारापात होइ छै तँ जन मानस आन्‍तरि‍क वेदनासँ भरि‍ जाइत छै। मोह भंग भऽ जाइत छै। बेकतीक अन्‍तसँ उपजै छै। वि‍द्रोह, कंुठा, आक्रोश, संत्रास, क्षुब्‍धता, आत्‍म रक्षाक सबालादि‍। अही सबहक अभि‍व्‍यक्‍ति‍ मैथि‍लीक नव कवि‍ता थीक।
मण्‍डलजी सन सवेंदनशील कवि‍ जे ऐ यथार्थकेँ भोगने छथि‍ से केना चुप्‍प रहि‍ सकैत छथि‍। हुनका लेखनीसँ तँ संघर्षक स्‍वर नि‍कलबे करतैक।
“जि‍नगीक होइत संघर्ष।
सीमा बीच जखन अबैत
मचबए लगैत दुर-घर्ष।
घर्ष-दुरघर्ष बीच जखन
जि‍नगी करए रस्‍सा-कस्‍सी।
बीच समुद्र सि‍रजि‍ मथान
पकड़ए लगैत अपन-अपन रस्‍सी।”
(संघर्ष)

कवि‍ अखण्‍ड राज भोगी सभपर व्‍यंग्‍य प्रहार करैत कहैत छथि‍-
“मुसक खुनल बील पकड़ि‍
नाग-नागि‍न कहबए लगैए।
नागे तँ धरती टेकने छै
अखण्‍ड राज भोगै छै।”
(मानव गुण)

कि‍छु लोक बहुरूपि‍या बनल अछि‍। हरेक क्षण गि‍रगि‍ट जकाँ रंग बदलैत रहैत अछि‍। समाजकेँ दि‍शा भ्रमि‍त करैत अछि‍। ऐ सम्‍बन्‍धमे कवि‍क उक्‍ति‍ अछि‍-
“गि‍रगि‍टि‍या मनुक्‍खो तहि‍ना
दि‍न-राति‍ बदलैत चलैए
गीरगि‍टेक जहर सि‍रजि‍-सि‍रजि‍
बीख उगलैत चलैए।
भेद-कुभेद मर्म बि‍नु बुझने
देखा-देखी ओढ़ैत चलैए
ओढ़ि‍-ओढ़ि‍ ओझरा-पोझरा
डुबकुनि‍या काटि‍ मरैए।”
(घोड़ मन, भाग-२)

मनुखक रीत-नीत आ बेवहारमे कतेक परि‍वर्त्तन भऽ गेलैक अछि‍। बदलैत जुग-जमानापर हि‍नकर कहब छन्‍हि‍-
“जुग बदलल जमाना बदलल
बदलि‍ गेल सभ रीति‍-बेवहार।
चालि‍-ढालि‍ सेहो बदलि‍ गेल
बदलि‍ गेल सभ आचार-वि‍चार।
मुदा, राति‍-दि‍न एको ने बदलल
नै बदलल चान, सूर्ज, अकास।
पूरबा-पछबा सेहो ने बदलल
नै बदलल जि‍नगीक बि‍सवास।”
(जुग बदलल जमाना बदलल)

अंग्रेजी भाषापर शब्‍दक प्रहार करैत कहैत छथि‍-
“अंग्रेजी पढ़ि‍ अंग्रेजि‍या बनि‍-बनि‍
पप्‍पा-मम्मी आनत घर।
बाप-दादाक कि‍ भेद ओ बुझत
अड़ि‍-अड़ि‍ बाजत नि‍डर।”
(घरक लोटि‍या बुड़ले अछि)

समाजक रूप वर्णन ऐ पाँति‍सँ लक्षि‍त भऽ रहल अछि‍-
“अगम-अथाह रूप समाजक
असथि‍र भऽ सागर कहबैए।
बर्खा बुन्नी बीच-बीच
ओला-पाथर बरि‍सा दइए।
पबि‍ते पाबि‍ पृथ्‍वी पसरि‍
धरि‍या-चालि‍ धड़ए लगैए।
उट्ठी-बैसी खेल खेलैत
मोइन-धार बनबए लगैए।
टूक सुपारी समाज कटि‍-कटि‍
टुकड़ी जाति‍ बनल छै।”
(अपनेपर)

नव बि‍म्‍वक प्रयोग संवेदनशीलता आ मार्मिकताकेँ संगे होएबाक चाही। आ से मण्‍डल जीक कवि‍तामे वि‍षयक अनुरूप बि‍म्‍बक प्रयोग भेल अछि‍।
“झि‍लहोरि‍ झील खेलाइत रश्‍मि‍
आकर्षित-आकर्षण करैए।
प्रेमास्‍पद पबि‍ते पाबि‍
प्रेम-प्रेमी कहबए लगैए।

पाबि‍ प्रेमी प्रेमी जखन
सागर गंगा मि‍लए चाहैए।
बॉसक पुल बना समुद्र
गंगा-सागर स्‍नान करैए।”
(शील)

“अजस्र धार भवसार सजल छै।
नाओं एक खाली पड़ल छै।”
(संघर्ष)

स्‍थि‍ति‍क अनुकूल बि‍म्‍ब, नव उपमान, प्रतीक नव कवि‍ताक लेल साधन मानल गेल अछि‍। आ से ऐ संग्रहक सभ कवि‍तामे परि‍लक्षि‍त भऽ रहल अछि‍।
“जहि‍ना धरती अकास बीच
गाछ-वि‍रीछ लहलह करैत।
तहि‍ना वि‍वेक वि‍चार संग
सदि‍ हँसि‍-गाबि‍ कहैत।”
(प्रि‍य)

मण्‍डलजी प्रि‍य कवि‍तामे शैली आ भाषाक सम्‍बन्‍धमे कहने छथि‍-
“सम्‍पन्न शब्‍द, शैली सम्‍पन्न
शब्‍द कोष सि‍रजए लगै छै।
जड़ि‍-छीप पकड़ि‍ भाषाक
संसार-साहि‍त्‍य गढ़ए लगै छै।”

राति‍क अवसान भेलापर दि‍नक आगमन नि‍श्चि‍ते होइत अछि‍। जे कटुसत्‍य अछि‍। राति‍-दि‍न सर्वजन परि‍चि‍त शब्‍द अछि‍। शब्‍दमे व्‍यापकता सेहो अछि‍। राति‍-दि‍न कवि‍ता संग्रहक शीर्षक अनुकूल अछि‍। कवि‍ता सबहक भाव, वि‍षय, उद्देश्‍य इत्‍यादि‍ ऐ शीर्षकमे छि‍पल अछि‍।
साँझ-भोर कवि‍तामे कवि‍क कथन उजागर भेल अछि‍-
“केकरो साँझ केकरो भाेर छी
केकरो उदय केकरो अस्‍त छी।
दि‍नक अस्‍त साँझ अगर छी
राइति‍क तँ उदये छी।
बारहे घंटा दि‍नो चलै छै
ततबे टा ने राइति‍यो होइ छै।”

पुरान ठाठ आ खूँटा वि‍छि‍न्न भऽ रहल छै। नवका-नवका जि‍नगीक खूँटा आ घर ठाठ करए पड़तै। तँए कवि‍ “चेतन चाचा” कवि‍ताक माध्‍यमे कहने छथि‍ जे ई काल चेतबाक थि‍क-
“चेत-चेत चलू चेतन चाचा
सरसड़ाइत समए ससरैए।
समए छोड़ि‍ कतबाहि‍ जखने
ठहकि‍-ठहकि‍ नक्षत्र कहैए।
आगू डेग उठबैसँ पहि‍ने
चारू दि‍शा देखैत चलू।
चारू कोण ठेकना-ठेकना
आगू डेग बढ़बैत चलू।”

तँए जि‍नगीमे सीखबाक उपक्रम होएबाक चाही। बि‍नु सीखने कि‍छु नै भऽ सकैत अछि‍।
“जि‍नगीमे कि‍छु करब सीखू
जि‍नगीमे कि‍छु लड़ब सीखू।
सभ जनै छी, सभ देखै छी
अज्ञान-अबोध बनि‍-बनि‍ अबै छी।
सज्ञान-सुबोध तखने बनब
संघर्षक बाट जि‍नगी धड़ब।”
(कि‍छु सीखू कि‍छु करू)

“मुँहक झालि‍” कवि‍तामे कवि‍ ललकारि‍ कऽ कहि‍ रहल छथि‍-
“मुँहक झालि‍ बजौने कि‍ हएत,
काजक झालि‍ बजबए पड़त।
फोकला-खाख अन्ने की
सुभर दाना उपजबए पड़त।”

कहबाक तातपर्य ई अछि‍ जे सि‍रि‍फ गाल बजौने कि‍छु नै होएत। कर्म करै पड़त। जइसँ देस-दुनि‍याँक कल्‍याण संभव भऽ सकत। तँए कर्मशील होएब परमावश्‍यक अछि‍। तखने अपन इति‍हास लि‍खि‍ सकैत छी।
“कर्मक स्‍वरलहरी सीखू
अपन इति‍हास अपने हाथसँ
स्‍वार्णाक्षरमे लि‍खनाइ सीखू।”

अपन इति‍हास अपनेसँ सृजन करब बहुत कठि‍न कर्म अछि‍। ऐ लेल सतत कर्म आ वश्‍वास चाही तखनहि‍ संभव भऽ सकैत अछि‍।

हम अज्ञ छी तथापि‍ एतबा धरि‍ जरूर कहब जे प्रस्‍तुत “राति‍-दि‍न” पोथीमे बोधक अनुकूल नव बि‍म्‍ब, प्रतीक, नव उपमान इत्‍यादि‍क प्रयोग भेल अछि‍। भाषा-शैलीमे आंचलि‍कता अछि‍। मि‍थि‍लांचलक गंध समाहि‍त अछि‍। सुधी पाठकगण स्‍वागत करताह। आ संगहि‍ नवाकुंरक लेल पाथेय बनत।


डॉ. धनाकर ठाकुर
समीक्षा – फूल तितली आ तुलबुल (लेखक -श्री सियाराम झा 'सरस')
समीक्षक –- डॉ. धनाकर ठाकुर
३.६.२०१२क श्री सियाराम झा 'सरस'क पोथी ‘फूल तितली आ तुलबुल’क लोकार्पण रांचीमे भेलन्हि जाहिमे श्रीरमणजी, पटना मुख्य अतिथि छलाह।
पोथी बै नी आ ह पि ना ला -१ यानी सतरंगी इन्द्रधनुषक रंगक जकां आबयबला सात कड़ीमे ई प्रथम अछि तकर विशेष संकेत पृष्ठ ४८मे (बाबा दिनकरमे पनिबोडा गीतके भीतर सातो रंग फरिछा देबाक छल).
पोथीक अनेक पन्ना रंगीन अछि , बालोपयोगी अछि आ संस्कारवर्धक (पृ. २०मे अंटी-बँटी नहि कहू), आ ज्ञानवर्धक प्रायः सब पन्ना अछि जेना दिनक नाम(पृ. ३८), गाडीक प्रकार(पृ. ३९-४०), बापूक चरखा, सचिन, धोनी, विद्यापति, मंडेला, आवश्यकता आ आविष्कारमे मेट्रो रेलसँ मिसाइल कंप्यूटर तक, टाकाक लाथे (पृ.४२-४३मे) रूपाक नव निशान, खेल-खेलमे(पृ.४४-४५) कुश्तीस ओलम्पिक तक.
विज्ञान लेखकक प्रिय विषय अछि (पृ.१८-१९,बिजली रानीमे पवन बिजली तकके चर्चा अछि संगही मिथिला-मैथिलीस प्रेमवर्धक (नेनाक मायस पृ. ६-७ मे नीक बात कहल गेल अछि जे मैथिली बाजय पढयबला सेहो नीक पद पर पहुँचैत अछि), मिथिलाक्षरहूँ अछि अंतमे. मिथिलाक एक नक्शा कतहु रहितय से नीक (अगिला कड़ीमे देल जाय), खेल -खेलमे सेहो राम, कृष्णक चर्चा(पृ. ४४-४५), जगदीशचन्द्र बसुक हँसैत-कनैत गाछक रूपमे ऋतु वर्णन(पृ.४९), सागरक वैविध्य वर्णन(पृ.६३-६४), विज्ञान प्रश्नोत्तरी(पृ. ६८), आविष्कारक माय आवश्यकता(पृ ७२) मे भारतक अंक- शून्यक अवदान आदि.
म स मिथिला आर लेखक क गाम मेहथसँ आर की की नै ( पृ.६५)- एक कड़ी एहिना अ, आ सँ ज्ञ तक बनायल जा सकैत छैक बच्चाके अपन संस्कृतिक ज्ञान दैत.
सब पन्ना सचित्र अछि ताकि नेना बुझि सकय
अधिकाश गीत गेय अछि
लगैत अछि बालोपयोगी जानि बहुत ठाम व्याकरणक नियम पालन नै भेल - जेना पोथीक नाममे फूलक बाद अल्पविराम (कोमा)
बच्चा चुलबुलक नामके नेना भुटकाक उच्चारण तुलबुल
आ एहेन अनेक ठाम (पृ.१४,.... )
बालक -बालिकाक जे चित्र मुखपृष्ठ पर देखावल गेल अछि ओहिमे कोनो गामक नहि, शहरीआ विकासकक परिचायक (पृ.२४) जखन की गामक चीज पर बहुत चर्चा अछि -चेत कबड्डी(पृ.५०), सोचु, सोचु(पृ.५१)मे किसानक महिमा) आ पर्यावरण(पृ.१२,२२,२३),आ रंगीन आर्ट पेपर पार्क फूलआ तितली, टून मून रे क जंतु संसार छपर छैयांक पनिबोडाक रंग, गाछ रोपिह फलदार, दादा-दादीक रोपल गुलाबक फूल(?) आ आन फूल पर बहुत चर्चा अछि, सौरमंडल , दुतियाक चान, (पृ.२५)क चुन्मुनी, २६, २७, २९ क आम, पृ.३३क बगुला, पृ.३५क फूलवती, बाबा दिनकर, ई धरती, सागरक संपदा, धरतीक सिगार चिडी-चुन्मुनी, गीध जकां दुर्लभ चिड़ी के बचबयके आग्रह, जाडक रौद, ऋतू वर्णनमे गाछ (पृ.४९), गाछ रोपीह (पृ.५७), सागरक सैर (पृ.६३),चिंता कचड़ास बचाब जल-नभ-स्थलके(पृ.६६), कछ्मछी(पृ.६७). एही लेल आ स्वतंत्रता हेतु, बाबा पोता गीत(पृ. ७१) मे अछि पर्यवरण, जल जीवन अछि (पृ.७६-७७ )मे जल संचय आ जल छाजनक बात अछि,बाघ मारक विरोध(पृ. ७९-८०) आदि.
मुदा 'हैप्पी बल्थ डे'(पृ.१४)आआर्ट पेपर पर पर सेहो शुभ जन्मदिन आ तहिना दू-ददू बेर हैप्पी दिवाली आ हुक्का लोली(पृ.५४मे) मुदा भरदुतिया आ होली नहि भेटल जे सबस अधिक प्रिय बच्चाके
स्वास्थ्य संबंधी नीक जानकारी(पृ.१५) संतुलित आहार (पृ.५५) नीक अछि जे नून आ चीनी कम खेबाक अछि आ फल फूल साग खेबाक आ पौष्टिक आहारक (पृ.१५,) मुदा टाफी चर्चा नै रहितय त नीक (पृ.२८), आमा माइक पेटारीमे (पृ.५२) ग्रामीण नुश्खा मे तुलसी, नेबो आदि ठीक मुदा धात्री फलं सदा पथ्यम नै देखल .
संस्कार लेल अनेक बात अछि ((पृ.१६,३४) नब जटा - जटीन, विद्यार्थीक पञ्च लक्षणक सचित्र विवरण(पृ.५९), सर-कुटुम (पृ.४८), सीखक लेल भीख(पृ.८२), बालश्रमक विरोध(पृ.८३) ई ठीक बात नै .
समाजक बिविध भागक जानकारी लेल मुस्लिम लेल अलीखान (पृ.६०), कारीगर (पृ. ६१-६२),
राहुलक माता यशोधरास प्रश्न मार्मिक अछि (पृ.६९ )पिताजी कत गेलाह? आखर यागक धुआं मे शिक्षाक महत्ता अछि (पृ. ७०), मूलमंत्र(पृ. ७३-७४मे) सत्यनिष्ठा, समर्पणस गांधी, सचिन, कलाम बनक गाथा चिरई,चुट्टी, मूसक सतत कर्म जकां.
भारत भक्तिक संग संगीतक वर्णन (पृ.७७), प्रकृति चित्रण अछि(पृ. ७८) आबी गेले अलेदाले भोर आ अनेक बालसुलभ गीत यथा (पृ.८१),
अनेक सुधार अगिला संस्करणमे संभव अछि-
बै नी आ ह पि ना ला क मैथिली पूरा रूप देनाई नीक जे केवल पीअ र लेल लिखी देलासँ भयजाइत (पि नहि)
पृ.९- 'मात्रा के यात्रा' नहि 'मात्रक यात्रा'मे (आ तहिना बाबाक अंगुरी (पृ. ८१) 'बाबा के अंगुरी' क जगह), दीर्घे कीस दादीजी नीक रहैत -(स्कूलमे आब मिस पढ्बैत छथि दीदी कहाँ ?)
पृ.१० एम् एल अ क उदहारण सटीक नै
पृ.११- चटापटा शब्द ?
पृ.४७- 'बड़े- बड़े' सपनामे, पृ.६३ सागरक 'सैर' मे हिन्दीक छाप अछि ( से आन अनेक आनो ठाम अछि)
पृ.१२- स्कूलमे जाईबला बच्चा लेल हाती आ एहिना सब शब्द कियैक- या त नर्सरीक बच्चा लेल केवल अलग अध्याय हो (बादक बच्चा लेल ई अनुपयोगी गलत उच्चारण सीखबयबला जेना बिरस्पति(पृ. ३८) ?
पृ. ३८- ६० अलीखानक इम्तिहान छनि त हुनक पिताजी नै अब्बाके आबक छल आ मायके नै अम्मीके आ तपक हुनका प्रयोजन?
एहिना बहुत ठाम
ध्यान राखी जे कोनो किताबक पाठकवर्गक आयु यदि तय अछि तखनहु ओकर विशेष आयु वर्ग लेल चीज बाँटल होयबाक चाही
इन्द्रधनुषक सात रंग नै सात वर्ष तकके बच्चा लेल पोथी हर वर्ष लेल अलग अध्यायमे रहक छल आ जाहीमे पहिल माय लेल दोसर तुलबुल लेल आ एहिना होइत पांचम छठम लेल लिखैत काल शंकरक 'अपूर्णे पंचमे वर्षे.' जरूर याद राखक चाही -
कार्यक्रममे गीतके प्रस्तुत करयबला जे बालक-बालिका छलथि ओहिमे अधिकांश शुद्ध उच्चारण कय सकयबला आयुवर्गक छलथि (पृ. ३०, ३१, ३७) ई ध्यान रखैत अध्यायभाजन अगिला कड़ीमे जरूर हो.
लगैत अछि एतेक परिश्रमसँ तैयार किताबक ठीक सम्पादन नहि कयल गेल आ जे कियो सरसक गीतक प्रशंसक छलाह ओ सब एकर गीत बेर-बेर सुनि-सुनिकय सेहो केवल नीक -नीक बात बजयबला मुदा समाजमे स्वस्थ आलोचकक सेहो कमी नै
पोथी लेखक सरस भनही दादा नहि भेलाह अछि (जे बादमे बात केला पर मालूम भेल) हमरा लागी रहल छल जे ई सरस ककाक(पृ.५ )नहि सरस दादाक उपहार अछि नेना भुटका लेल जे अनेक ठाम आयल अछि - बाबा, पोता संवाद(पृ. ७१), बाबाक अंगुरी (पृ. ८१) ('बाबा के अंगुरी' नहि).
८४ पृष्ठ + २४ आर्ट पृष्ठ पोथीक मूल्य १०१ रूपा अधिक नै अछि (जे कियो २०० रूपा राखि सकैत छल)- सरसजीक संपर्क – 9931346334, 0651-2560786
(NOTE-टाकाक जगह बेगुसरायक रूपा लिखब हमरा नीक लगैत अछि जे रानी विक्टोरियाक चांदीक/ सिक्का/ रूपा चाल जाहीस एक टाका बनल अछि)

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.जवाहर लाल काश्यप- विहनि कथा- जमाना बदलि गेलै  २.जगदानन्द झा 'मनु'- विहनि कथा- मसोमात/ रहस्य ३.सुजीत कुमार झा- मिथिला पेन्टिङ्गक विदेशमे मांग बढल -छत्तामे मिथिला पेन्टिड्ड४.श्री जगदीश प्रसाद मण्डल- लघुकथा-सूदि‍ भरना


जवाहर लाल काश्यप
विहनि कथा
जमाना बदलि गेलै
रमेश बाबा दलान पर बैसल रहैत आ रामायण गाबैत छलाह। बाहर दू टा बच्चा खेल रहल छल । ओ दुनु  बहुत हल्ला कऽ रहल छल जइ लेल बाबा केँ बहुत दिक्कत भऽ रहल छल ।
ओ बेर- बेर बच्चा केँ चुप रहय लेल कहैत छलाह मुदा बच्चा चुप नहि भऽ रहल छल। ई देखि हमरा सेहो तामस आबि गेल । हम दुनु बच्चा केँ दु थापर लगा देलियै । बच्चा कानैत आंगन चलि गेल ।  आंगन मे बच्चा केँ माय पुछलखिन्ह "के मारलकौ"?
बाबा हमरा कहलथि  बौआ जमाना बदलि गेलै । पहिले जे बच्चा आंगन मे कानैत पहुँचैत छल तँ माय पुछैत छल किएक मारलखुन्ह ? अर्थात कि गलती केलहीं, आब पुछैत अछि   के मारलकौ"? मतलब ककर अतेक हिम्मत भेलै जे तोरा मारलकौ ।


जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीह्टोंल, मधुबनी

दूटा विहनि कथा

१. मसोमात
चारि बरखक बाद, गामक माटि-पानि जेँ देह में बहि रहल अछि हिलकोर मारलक  तँ सभ काज-बाज छोरि नोकरी सँ सात दिनक छुट्टी लय कए गाम बिदा भेलहुँ | जेना-जेना गामक दुरी  कम भेल जए तेना-तेना हृदयक बेग आओर गामक माटिक गंध दुनू तेज भेल जए | ट्रेन आ बसक यात्रा क्रमसँ  खत्म भेला बाद गामक चौक सँ पएरे गाम हेतु बिदा भेलहुँ जेकर दुरी करीब एक किलोमीटर रहै | ओनाहितो असगर, समानक नाम पर कन्हा पर एकटा बैग आ दोसर गाम देखक लौलसा, रिक्सा छोरि पएरे चलैक लेल प्रेरित कएलक |
अपन  टोल में प्रबेश करिते सभसँ पहिले छोटकी काकी पर नजैर परल | ओना गामक सम्बन्ध में ओ हमर बाबी लगैत छलथि मुदा गाम में सभ कियो हुनका छोटकी काकी कहि सम्बोधित करैत छलनि तइँ हमहुँ हुनका छोटकी   काकी कहैत छलियैन | उज्जर पढिया सारी पहीरने आँचर सँ माथ आ एकटा खूट सँ नाक तक मुह झपने | रस्ता सँ आँगन जाईत  घरक कोन्टा पर ओहो हमरा देखलथि, जा हुनका गोर लागि आशीर्वाद लेलहुँ |
"केँ... बच्चू" छोटकी काकी केँ मुह सँ खडखराइत अबाज निकलल
"हाँ काकी "
"कहीया एलअ"
"एखन आबिए रहल छी काकी "
"एसगरे एलअ हेँ "
"हाँ "
"आ दिल्ली में कनियाँ, धिया-पुता सब ठीक"
"अहाँक आशीर्वाद सँ सभ कुशल-मंगल, अहाँक की समाचार नीके छी ? "
ई प्रश्न सुनिते हुनका आँखि सँ नोर झहरअ लगलनि नोर रोकैक असफल प्रयास करैत -" कि बौआ, एहि मसोमात केँ की नीक आ की बेजए, बेजए तँ ओहि दिन भय गेलहुँ जहिया अहाँक काका नबाडिये में छोरि स्वर्ग चलि गेला, आब तँ एहि बुढ़ारी में कियोक धूओ नहि देखए चाहैए, देखला सँ सभ केँ अमंगल होएत छैक | नहि जानि बिधाता एहि अभागनि केँ आओर कतेक ओरदा देने छथि | आई महीनों केँ बाद ककरो सँ दूमुह गप्प केलहुँ आ कियो हमरो द पुछलक ....."
ई  कहैत काकी अपन नोर केँ नुकबैत कोन्टा सँ अँगना दीस चलि गेली आ हमहुँ गामक जिनगीक, बिधबा, मसोमात, बुढ़ारी सोचैत आगु  बढि गेलहुँ |  
२. रहस्य
बाबा-बाबीक विवाहक चालीसम बर्खगांठ | दुनू गोटे अपन सम्पूर्ण परिवार केँ बिच घेरएल  बैसल | चारूकात एकटा खुशीक वातावरण बनल | सभ केँ मुह पर हँसी, खुशी आ प्रशन्ता झलकि रहल छल | बाबीक पंद्रह बरखक पोती, बाबीक गरदनि पर पाछू सँ लटकि कए झुलति पुछलक -"बाबी एकटा गप्प पुछू |'
बाबी -" हाँ पूछै"
पोती -"बाबा-बाबी हम अहाँ दुनू केँ कहियो झगडा करति नहि देखलहुँ, एकर की रहस्य छैक |"
बाबी लजाईत अपन पोती केँ कन्हा सँ उतारैत -"चल पगली, एकरा ई की फुरा गेलै |"
बाबीक छोटका बेटा -"नहि मए ई तँ हमरो बुझैक अछि, ओनाहितो हमर नव-नव विवाह भेलए ई मन्त्र तँ  चाहबे करी |"
बाबी -" चल निर्लज, सब एक्के रंग भए गेलै, अपन बाबू सँ पूछै हुनका सब बुझल छनि |"
छोटका बेटा बाबू सँ -"हाँ बाबू अहीँ कहु न अपन सफल विवाहिक जीवनक रहस्य | हमहुँ अहाँ दुनू में कहियो झगडा नहि देखलहुँ, ई मन्त्र हमरो दिय न ' ( अपन कनियाँ दिस देख क') देखू ने निर्मल तँ  सदिखन हमरा सँ लडिते रहैत अछि |"
बाबा, एकटा नमहर  साँस लैत जेना अतीत केँ देखैक प्रयास कए रहल छथि | छोटका केँ माथ पर स्नेह सँ हाथ सहलाबैत बजला -"एकरा कियो झगडा कहैत छैक ? अहाँ दुनू में जे स्नेह अछि ओहि  में किछु नोक-झोंक भेनाई सेहो आवश्यक छैक | जेना भोजन में चटनी, जीवन में सब पक्ष केँ अपन-अपन महत्व छैक मुदा हाँ ई मात्र नोक-झोंक तक रहवा चाहि झगडा नहि, नहि तँ  एहि सँ आगू जीवन नर्क भए जाईत छैक | पती पत्नीक  बिचक आपसी सम्बन्ध नीक अछि तँ  स्वर्गक कोनो जरुरी नहि आ यदि सम्बन्ध नीक नहि अछि तँ  नर्कक कोनो आवश्यकता नहि ओहि अवस्था में ई जीवने नर्क अछि |"
सभ कियो एकदम चूप एकाग्रता सँ हुनक गप्प सुनैत | चुप्पी केँ तोडैत  बाबा आगू बजलाह -"रहल हमर आ तोहर मए केँ बिचक सम्बन्ध तँ  ई बहुत पुरान गप्प छैक, जखन हमर दुनू केँ विवाह भेल आ हम दुनू एक दोसर केँ पहिल बेर देखलहुँ तखने हम तोहर मए सँ वचन लेलहुँ जे जखन हमर मोन तमसे ' तँ  ओ नहि तमसेती आ जखन हुनकर मोन तमसेतनि तखन हम नहि तमसाएब | बस ओ दिन आ आई तक हमरा दुनू केँ बिच नोक-झोंक भेल झगडा कहियो  नहि |"
*****


सुजीत कुमार झा

मिथिला पेन्टिङ्गक विदेशमे मांग बढल -छत्तामे मिथिला पेन्टिड्ड

मिथिला पेन्टिङ्गकेँ देश विदेशमे मांग भऽ रहल समयमे पेन्टिङ्ग व्यावसायीसभ नयाँ नयाँ चीजमे पेन्टिङ्ग बना कऽ बजारमे आनए लागल अछि ।
एहि क्रममे जनकपुरक नारी कला केन्द्र कुवा छत्तामे मिथिला पेन्टिङ्ग पारि बजारमे आनएकेँ तैयारी कऽ रहल अछि । केन्द्रक प्रमुख संतोष मिश्रक अनुसार जल्दीए अन्तराष्ट्रिय बजारमे मात्र नहि जनकपुर सहित सभ ठाम एहन छत्ता भेटत । साढे तीन सय रुपैया सँ साढे चारि सय रुपैयामे ओ छत्ता उपलब्ध हएत । नारी कला केन्द्रक मंजुला ठाकुरक नेतृत्वक कलाकार मिथिला पेन्टिङ्ग बला छत्ताकेँ आकृति देने छथि ।
केन्द्रक प्रमुख मिश्रक अनुसार छत्तामे मिथिला पेन्टिङ्ग राखएकेँ सल्लाह अष्ट्रेलियन नागरिक टोनी सेन्ड्रेस देने छलथि । हुनके सल्लाह अनुसार छत्तामे मिथिला पेन्टिङ्गक रुप देल गेल ओ कहलन्हि ।
मिथिला पेन्टिङ्ग बला छत्ता अमेरिकाक सन्ताफेमे होबएबला सांस्कृतिक प्रदर्शनीमे सेहो राखल जाएत । १९८९ ई. मे जनकपुर नगरपालिका १२ कुवामे स्थापित नारी कला केन्द्रमे मिथिला पेन्टिङ्ग सँ जुडल विभिन्न आकृतिसभ बनाओल जाइत अछि ।
जनकपुरमे बनल मिथिला पेन्टिङ्गकेँ अन्तराष्ट्रीय स्तरमे बहुत मांग रहल अछि । एहि ठाम नेपाली कागजमे मिथिला पेन्टिङ्ग, अएना, कप, सिलाई कढाई, सेरामिक्सक सामानसभ बनाओल जाइत अछि ।
अमेरिकी नागरिक क्लियर वर्कटद्वारा शुरु कएल गेल नारी कला केन्द्रकेँ एखन अष्ट्रेलियन दूतावास सहयोग कऽ रहल अछि ।

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल
लघुकथा
सूदि‍ भरना

बालपनमे लागल चोट जहि‍ना अधवेशू वा बुढ़ाड़ीमे उपकि‍ जाइत तहि‍ना डोमीकाकाकेँ बेटी बि‍आहक चोट मास दि‍नक पछाति‍ उपकलनि‍। रोगाएल अवस्‍थामे जखन कि‍यो जि‍नगी-मृत्‍युक मचकीपर झुलए लगैत तखन जहि‍ना धर्मराजक दरवार लगैत तहि‍ना हुअए लगलनि‍। नि‍ष्‍पक्ष समीक्षक जहि‍ना साहि‍त्‍यक कोण-कोणक समीक्षा करैत तहि‍ना डोमीकाका सेहो करए लगलाह। अन्‍तो-अन्‍त अही ि‍नर्णएपर पहुँचलाह जे गाममे रहने जीवन-यापन नै कऽ पाएब तँए बि‍नु परदेश गेने जीब असंभव अछि‍। केना नै असंभव होएत? पाँच बीघा जमीनबला डोमीकाकाकेँ दू बीघा घर-घराड़ीसँ लऽ कऽ गाछी-बि‍रछी, खरहोरि‍मे बरदाएल बाकी तीन बीघा जोतसीम। समाजोक देखा-देखी आ कुटुमो-परि‍वारक स्‍तरक अनुकूल तँ करए पड़तनि‍। जहि‍ना धरमोक स्‍वरूप समायानुसार बदलि‍ जाइ छै तहि‍ना ने समाजोमे जे बेसी लाम-झामसँ बेटीक बि‍आह आ माए-बापक सराध करैत ओ समाजमे ओते ऊपर होइत। ततबे नै जइ समाजमे दोससँ बेसी दुश्‍मन रहैत तइ समाजमे ईहो पुरौनाइ तँ जरूरि‍ये होइत जे अनकासँ कि‍ मोर छी।

दलानक ओसारक दछि‍नबरि‍या चौकीपर चि‍त्त भेल पड़ल, दहि‍ना हाथ मोरि‍ दुनू आँखि‍पर लेने डोमीकाका परि‍वारक बदलैत स्‍वरूपपर आँखि‍ गड़ा सोचि‍ रहला अछि। मनमे उठलनि‍ गलती अपनो भेल। ई तँ नजरि‍पर आएल जे समाज आ कुटुम-परि‍वारक देखौंस करब जरूरी अछि‍ मुदा ई नै आबि‍ सकल जे ओहूमे पति‍आनी लगल अछि‍। एकठाम सभ समटल कहाँ छथि‍। भैयारि‍योमे तँ होइते अछि‍ जे संगे-संग जि‍नगी बनौनि‍हारि‍ पि‍ति‍औत बहि‍नक बीच एककेँ इंजीनि‍यर, डाॅक्‍टर संगी भेटैत तँ दोसरकेँ ऑफि‍सक कि‍रानी वा स्‍कूलक शि‍क्षक भेटैत अछि‍। भूल भेल, आगू दि‍स तकलौं मुदा पजरबािह आ पाछू दि‍स नै तकलौं। एकरा के उचि‍त कहत जे एक-ओद्रक बेटा-बेटीक बीच इमान-बेइमान बनि‍ जाउ। पाँच बीघा जमीन अछि‍ चारू भाए-बहि‍न हि‍स्‍साक संग पाँचम अपनो दुनू परानीक हेबे करत। जँ से नै हएत तँ अपन जि‍नगी अनका हाथमे जेबे करत। मुदा गलती भेल, धड़फड़ी केने। तहूमे पत्नी आरो मन घोर कऽ देलनि‍। ई कहू जे अर्द्धांगि‍नी भऽ केहेन वि‍चार देलनि‍ जे ऐ गाममे कर्ज नै भेटत तँ हम नैहरसँ आनि‍ देब। एकटा मुर्गी जँ दसठाम हलाल हुअए तँ ओकरा की कहबै?
एक तँ ओहि‍ना परि‍वार महजालमे ओझराएल अछि‍ तइपर हमरा कि‍रतबे समाजक ऊपर आन समाजक कर्ज आबि‍ जाए, एहेन काज जीता-जि‍नगी नै करब। मुदा तइमे कनी औगताइ भेल। औगताइ ई भेल जे पच्‍चीस-तीस हजार रूपैये कट्ठाक चीज पाँचे हजार रूपैये भरना लगा देलि‍ऐ। मुदा बीतलकेँ बि‍सरबे नीक। जँ से नै करब तँ भूतलग्‍गू जकाँ अपन देह-हाथ अपने नोचए पड़त। फेर मन भरना जमीनपर घुमलनि‍। केना लोक पावनि‍-ति‍हारमे सेर-पसेरी लऽ खेतो भरना लगबैए आ बेचबो करैए। मनमे खौंझ उठलनि‍, कानूने बनने कि‍ सुथनी हएत जे आठ बर्खक पछाति‍ भरना जमीन घूमि‍ जाएत, मुदा होइ कि‍ अछि‍। ततबे कि‍अए, जहि‍ना महाजनीक सूदि‍केँ सीमामे बान्‍हि‍ देल गेल जे दोबरसँ बेसी कहि‍यो ने हएत, तहि‍ना बैंकक कर्जकेँ कि‍अए ने बान्‍हल जाइए, जे ग्रामीण-दशा (गामक लोकक जि‍नगी) आगू मुँहे नै ससरि‍ पाछुए मुँहे ससरि‍ रहल अछि‍। जइठाम एते महग पढ़ाइ भऽ गेल अछि‍, लाखक इलाज (शरीरक) भऽ गेल अछि‍, लाखक घर बनि‍ रहल अछि‍ तइठाम, कि‍ उपाए अछि‍। हँ एते जरूर हेबाक चाही जे जखन सभ अपने छी तखन बीचमे इमान-बेइमान नै बनए। जहि‍ना बरसातक मासमे एक दि‍सुका पानि‍केँ दोसर दि‍सुका रोकि‍ तेसर दि‍सक रास्‍ता पकड़ैत तहि‍ना घीचा-तीरीमे डोमीकाकाक मन असथि‍र भेलनि‍। पड़ले-पड़ल पत्नीकेँ सोर पाड़लखि‍न।

आंगनक ओसारक शीतल पाटीपर बैसि‍ दायरानी बि‍आहक उनटा गि‍नगी करैत रहथि‍। फल्लांक करौछ हरा गेलइ, ओकरा तँ कहब जरूरी अछि‍। जँ से नै कहबै तँ अनेरे ओ दस ठाम बाजत जे फल्‍लाँ करौछ राखि‍ लेलक। कोन चीज छी जखन एते खर्च भेबे कएल तखन एकटा करौछे कि‍ छी। जहि‍ना जि‍नगी बनबैमे जि‍नका जेहेन कठि‍न मेहनति‍ भेल रहैए तहि‍ना ने ति‍नकर जि‍नगीयो ठाढ़ होइए। जँ से नै तँ लाखक जि‍नगी केना पाँच-दसमे हारि‍ मानत। फेर दायरानीक मनमे खुशी एलनि‍, अपना जँ बौको डाँड़ लागल तैयो बैहरी दादीकेँ नफे भेलनि‍।
टुटल चंगेरा लेलि‍यनि‍, नवका कीनि‍ कऽ देलि‍यनि‍। केना नै दैति‍यनि‍ ओ थोड़े बुझलखि‍न जे हमरा चंगेरामे केरा-आम छोड़ि‍ दोसर चीज जाइबला नै अछि‍। ओना हमरो तँ काज चलि‍ऐ गेल भने पुरना गेल नव आएल से नीके भेल। पति‍क अवाज सुनि‍ ओसारेपर सँ एते जोरसँ बजलीह जे डोमीकाकाकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे लगमे नै कनी हटल छथि‍।

डोमीकाका लग तँ दायरानी काकी पहुँचि‍ गेली मुदा मनमे अपने घि‍रनी नचैत रहनि‍। एक चालि‍ चलि‍ जहि‍ना घि‍रनी वि‍श्राम लैत तहि‍ना काकीकेँ सेहो भेलनि‍। आँखि‍ उठा तकलनि‍ तँ देखलखि‍न जे ग्रीष्‍मकालीन घास-पात जकाँ कुम्‍हलाएल मुँह, जेठुआ गरेक मेघ जकाँ चि‍न्‍तासँ लादल आँखि‍, नि‍रजन वनमे हेराएल बटोही जकाँ देखि‍ मन सहमि‍ गेलनि‍। अपन कर्तव्‍यक एहसास भेलनि‍। पि‍यासल लेल जहि‍ना पानि, तबधल लेल पंखाक हवाक जरूरति‍ होइत तहि‍ना चि‍न्‍ताएल मनक लेल सेहो मीठ बोलक जरूरत होइत अछि‍। आँचरसँ ढबढबाएल पति‍क दुनू आँखि‍ पोछैत बजलीह-
“एहेन सकल-सूरत कि‍अए बनौने छी?”
सि‍कीक वाण सदृश पत्नीक बोल डोमीकाकाक हृदैमे बेधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत बजलाह-
“उपाये कि‍ अछि‍ जे.....?”
दायरानी- “तखन?”
डोमीकाका- “परदेश जाएब। दुनू बेटोकेँ नेने जाएब, नहि‍यो कमा कऽ देत पेट तँ पालत ने। जँ दसो हजार महीना कमाएब ते एक बरखे नै दू बरखे, पाँचो बरखे ते खेत छोड़ाइये लेब।”
दायरानी- “तइ बीच?”
डोमीकाका- “अहाँकेँ जाबे धरि‍‍ बरदास हएत ताबे धरि‍ रहब नै तँ भाएकेँ नैहर समाद पठा देबनि‍।”
नैहरक नाओं सुनि‍ते दायरानी बजलीह-
“अहाँ सभ जखन चलि‍ऐ जाएब तखन घरमे कोठि‍ये-भरली लऽ कऽ की करब। मसोमातक चुड़ी जकाँ कि‍अए ने ओकरो सभकेँ फोड़ि‍-फाड़ि‍ कऽ फेकि‍ये देबइ।”
पत्नीक बातकेँ डोमीकाका ताड़ि‍ गेलाह। कहलखि‍न-
“हँसी-ठठा छोड़ू एहेन गरूगर समए केना टपब, से वि‍चार दि‍अ। आखि‍र अहूँ तँ अर्द्धांगि‍नि‍ये छी कि‍ने?”
पति‍क वि‍चार सुनि‍ वि‍चारवान पत्नी जकाँ दायरानी कहलखि‍न-
“पच्‍चीस-तीस हजार रूपैये कट्ठाक जमीन अछि‍। दस-बारह कट्ठा बेचि‍ लेब, भरना छूटि‍ जाएत। बुझबै जे तीन बीघा जोतसीम नै अढ़ाइये बीघा अछि‍।”

अखाढ़क पहि‍ल बरखाक पहि‍ल बुन पड़लासँ जे जमीनक सुगंध नि‍कलैत ओहने सुगंध डोमीकाकाकेँ पत्नीक वि‍चारमे लगलनि‍। मुस्‍की दैत आँखि‍-पर-आँखि‍ गड़ा धन्‍यवाद देलखि‍न।

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