भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, August 12, 2012

'विदेह' १११ म अंक ०१ अगस्त २०१२ (वर्ष ५ मास ५६ अंक १११) PART VI



३. पद्य

३.१.१.मुन्नी कामत-सातटा कविता २.रूबी झा- बाल गजल ३.श्रीमती इरा मल्लिक-- बाल गजल

३.२.१. मुन्ना जी २.प्रशांत मैथिल-बाल गजल ३.पंकज चौधरी (नवलश्री)४.जवाहर लाल काश्यप५.क्रांति कुमार सुदर्शन

३.३.१.जगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल- १.बाल गजल/ २.की भेटल आ की हेरा गेल (आत्म गीत)(आगाँ...) २.कामिनी कामायनी- चिडैक अभिलाष

३.४.१.अमित मिश्र-बाल गजल २. ओमप्रकाश झा- बाल गजल

३.५.१.शिव कुमार यादव- बाल गजल २.शिव कुमार झा- कविता/ गजल३.किशन कारीगर- हास्य कविता

३.६.चंदन कुमार झा- बाल गजल

३.७.१.जगदानन्द झा 'मनु' -बाल गजल २.राजेश कुमार झा- दूटा कविता ३. जगदीश प्रसाद मण्‍डलक किछु गीत/ कविता

३.८.१. राजीव रंजन मिश्र- बाल गजल २. मिहिर झा- बाल गजल ३.गजेन्द्र ठाकुर- बाल गजल
 
१.मुन्नी कामत-सातटा कविता २.रूबी झा- बाल गजल ३.श्रीमती इरा मल्लिक-- बाल गजल



मुन्नी कामत

जिंदगीक मरीचिका
लटैक रहल छल
गुच्छा गाछमे
रसभरल मीठ आमक
शरारती मन
ललचाइत जी
कहलक तोड़ि खाइ अकरा
मुदा कि करी
भय छल पहरेदारेक।
मन नै मानलक
पाइन मुँॅहमे भरि गेल
फेर सोचलूँ
बस एगो तोरू
तक डर केहन
यएह तँ निअम अछि संसारक।
सभ खाइत अछि
छुपि कऽ
कखनो घरमे
तँ कखनो बाहरमे
ऊँच,नीच सँ बनै यऽ
अतऽ सभ अपन
यएह पथ पर तँ चलैत अछि
सभक सभ।
पर सच जे अनभिग अछि
सभसँ ई अछि
ई मीठ फल नै
जहर अछि कोनो
जे बदलि रहल अछि
हमर नियत आ
हमर संस्कार
जे दऽ कऽ अपन मिठासक लालच
झोंकि रहल अछि
धधकैत भट्ठीमे।
जिन्दगीक राहमे              
ऐत नित्य कतेक मरीचिका
पर सिखब हम अकरेसँ
संघर्षक रोज नया सलीका ।


 ताकैत जिनगी कूड़ा ढ़ेरमे।
देह सुखल
पेट हाड़ी
आँखि दुनू लाल छल।
टुकुर, टुकूर
ताकैत छल हमरा दिस ओ
ओकरा मुखमे
अनंत सवाल छल।
पटनाक रेलवे लाइन पर
ठार एगो मासुम बच्चा
फटल पुरान लटकौने
टाँगने छल एगो बोरा
अपन पीठ पर
देखि कऽ ओकरा एना लागल जेना
ताकि रहल अछि अपन जिन्दगी
गन्दगीक ढ़ेरमे।
पर नै जानि कतेक मासुम
कहिना पनपैत अछि अहि संसारमे।
नित ताकैत अछि अपन मंजिल,
अपन भविष्य
अहिना कूड़ाक ढ़ेरमे।

संकल्प
छोड़ि जाएत माझी पतवार
उफनैत जिन्दगीक राहमे
अछि हसरत हुनकर कि,
थामैय पतवार हुनके अंश अहि मजधारमे।
छी गर अहाँ कृति हुनकर
तँ राही बनू अहि राहक
उठाउ पतवार आ माझी बनू
जिन्दगीक अपन राहक।
ऐल छी अहां जतऽ तक
ओइसँ आगुक कल्पना करू
देख रहल अछि राह मंजिल अहाँक
मुस्कुराइत ओइ पारमे।
छोड़ि कऽ मोह वट वृक्षक
समना करू हवा आ पानिक
तब बनत व्यक्तित्व अहाँक
अहाँक नामसँ अहि संसारमे।
अहाँ अगर अंश छी हुनकर
तँ बुझाइ नै कहियो ई दीप
जे छोड़ि गेल अपन सब कुछ
बस एगो अहींक विश्वासमे।
           ४                    
ठमकल शब्द
रूकि जाइत
ई हवा
ई नजारा
ई बहार, दुनियाक
हम
भऽ जाएब विलीन कतैव
रूकि जाइत ई कलम
आर
हरा जाइत शब्द कतैव।
नै उठत
वेदना मनमे
नै उमड़त भावना कोनो।
जब जाएब
खामोश अतऽ सँ
तँ मेटौ जएत
सब हसरत दिलक
ने आएब हम
याद ककरो
ने करब हम याद किनको
ओइ अज्ञात सफरमे
नै मिलत हमराही कोनो
बरसैत मेघ, चिलमिलाइत धूप
सबहक बीचमे
रहब हम असगर ठार
ने लऽ जएब, ने छोड़ि जएब किछो
बस एगो दिया जे जरत
अहि ठाम सदखन, सबहक मनमे
हएत ओ हमर कृति,
हमर करमक ज्योत।

दहेजक बिहाड़ि।
कहिया तक रहबै हम
समान यौ भइया
कहिया मिटतै ई अभिशाप यौ
हमरो तँ परमतमे भेजलक
मुदा अबैत ऐ संसारमे सब हेय सँ देखलक
कोय कुलच्छनि तँ कोय कलंकनी कहलक।
भइयाकेँ दुलार केलक
हमरा धुतकाइर कऽ माय भगौलक
दिन-राइत हम मायक हाथ बटै छी
बाबू-दायक सेवा करै छी
तइयो किए ई फटकार सुनै छी
सुनि रहल छी सबहक मुॅंहसँ
दहेज बिनु नै हएत हमर व्याह
जे थामत हाथ हमर
बाबू भरत पहिले जेब ओकर।
हम बेटी छी आ कि समान
जे गाम-गाम सँ आउत लोग
करै लऽ हमर दाम छाम।
आब सजबऽ पड़त सभ बेटीकेँ
अपन आत्मदाहक साज
आर कहिया तक  पिसाइत रहतै
बेटीक समाज।

हरैल हमर रूप
जब एलौं तँ रूइ छेलौं
कोमलताक सागरमे डूबल छेलौं
प्यार सँ छुबै छल सभ हमरा
हम सपनामे सूतल छेलौं।
अंजान छेलौंव दुनियाक हकीकत सँ
ऐ शोर शराबा, ऐ धधकैत भट्ठीसँ
छिन गेल ओ स्वरूप
देलक दुनिया हमरा नया रूप।
देख कऽ दुनियाक रंग
कॉंइप रहल अछि हमर अंग
छल, कपट, धोखाधरी
सब अछि सबहक संग।
कतेक अरब रामक ऐमे पड़त
करै लेल अतऽ सँ पापक अंत
देखकऽ ई हम छी दंग
आइ सबहक मनमे बसल अछि
हजारो रावणक अंग।
७                  
विदाइ
जो गै बेटी,
आब कि निहारि रहल छी
नोराइल आँखिसँ ककरा ताकि रहल छी।
अतै तक लिखल छेलै साथ
अतै तक छेलियौ हम तोहर बाप।
एक जनम तूँ अतऽ गमेलऽ
हमरा संगे सभ सुख दुख हँसि कऽ बितेलऽ
अहिना तूँ ओतौ रहिअ
खुशीक दीप जराइयहँ
केलियौ आइ हम तोरा पराइ
मन रोबैत अछि
ठोर हंसैत अछि
कऽ रहल छी आइ तोहर विदाइ।

रूबी झा


1
बाल गजल


निन्न सँ मातल अछि बौआ आबि कऽ सूताउ यै
कतय गेलि बौआ माए ओछैन तँ ओछाउ यै


खेलके नै ओ दिने सँ केहेन कठोर माइ छी
भेल नै भानस तँ चड़े दूध नेना बुझाउ यै

खन बाबा खन हमरा कोरा झुकि खसय छी
अहाँ झट सँ जा किछु तँ बौआकेँ खुआउ यै

कते महग गए किनलौं दुलरा पोता लेल
नेना काया मे दूध बुन्न नै झट सँ पिआउ यै

आबू यौ बौआ हमही दै छी अहाँकेँ दूध पिआ
कनी ''रूबी'' आबि नेनाकेँ लोड़ियो तँ सुनाउ यै
आखर -१७
2
बाल गजल
दाइ कने दे तँ हमरो तेल गमकौआ लगेबै
माँथ परमे हमहुँ टिक़ुली झलकौआ लगेबै

तेल लगा हम गुहबै जुट्टी लाल बान्हब फित्ता
जुट्टी मे फूल फित्ता केर हम फलकौआ लगेबै

भैर भैर हाथ हमरो दाइ गै चूडी पहिरा दे
आगु पाछु दुनु कात कंगन खनकौआ लगेबै

सोनरा सँ दलहिन एहन सन पायल किन दे
ओइमे हम सौंसे झुनकी तँ झनकौआ लगेबै

एकेटा चीज आर छै ललका साडी ओहो किन दे
साड़ीमे हम चान आ सितारा चमकौआ लगेबै
आखर~१८

3
बाल गजल
आ रौ छौरा बान्हि दियौ तोहर हम झोट्टा रौ
ढील लिख सोहैर गेलौ आब हेतौ जट्टा रौ

हे रौ कने छौरा कऽ पकड़ि कऽ आन भगतौ
देख तँ कसि कऽ पकड़ जा ओकर गट्टा रौ

दलान पर सँ बजा आनलौं फेर भगलै
आब जौँ पकरबौ तँ तोरा मारबौ सट्टा रौ

ऐ बेर दुर्गा मे कटबा देब तोहर लापेट
छागरो तँ दाइ कबूलने छथुन जोट्टा रौ

छोर नै छूबौ तोहर केश खएले कने आ
राखने छी आ नै चुड़ा दही भऽ जेतौ खट्टा रौ
आखर~१६

4
बाल गजल

चलहिन आइ तूँ गाम पर खुएबौ हम तोरा मारि गै
चोरी कऽ के हाथ नुका कऽ बड़ बनल छैं तों होशियाइर गै

पहिने खेत सँ मटर चोरेलैं गाछक तों बैर झटाहलैं
हम जौं माँगी तोरा सँ तँ बिखिन्न बिखिन्न पढ़ै छैं गाइर गै

नानाक देलहा फराको तों फारलहीं माँ कऽ जा कहबौ हम
अपनों तोरा काँट गरलौ बैरोक तोड़लहिन डाइर गै

मोन छौ की उलहन माँ क बटेदार सँ सुनेबे करेभिन
सौंसे देह तँ चुट्टा बिन्हलकौ कतेक चलबें तों झाइर गै

पढ़ लिखमे नै मोन लगे छौ उचक्की बनि घूमल चलै छैं
के तोरा संग बियाहो करतौ कोना बसबें ससुराइर गै
आखर -२२


बाल गजल


हे रौ बौआ तों एना रुसल छेँ किए
दूध-भात लेल तों बैसल छेँ किए


रे तोरा तँ खुएबौ कोरामे सुतेबौ
माएके दूध लेल अरल छेँ किए


कीनि देबौ लाल गेन आ घुरकुन्ना
छोड़ ने जिद्दपन डटल छेँ किए


आबो दहुन बाबा के देथुन्ह पेरा
पेरा सन नीक की नठल छेँ किए


कहबै नाना के देथुन्ह धेनु गैया
आबो बड़ेरीपर चढ़ल छेँ किए


वर्ण-१३


बाल गजल




चलय ठुमकि बौआ कते सोहावन लागय छै
बाजय बौआ तोतल माँ मनभावन लागय छै


दादी केर आँचर तर जाए नुकाय गेल बौआ
खेलै चोरीया नुकैया मोन भुलावन लागय छै


दादी केर पनबसन सँ बौआ खाय लेल पान
ठोर लाल पिक दाढी पर लुभावन लागय छै


उल्टे खराम बाबा केर एना पहिर लेल बौआ
खसय खन उठय जिया जुरावन लागय छै


जिद्द ठानलैन बौआ लेब देवी आगुक मिसरी
डटलैन माँ फुसीये नोर बहावन लागय छै


वर्ण १८-









रुसिये गेल बौआ मनाएब कोना कए
निर्धन माय बौआ बुझाएब कोना कए


ठाढ भेल कटोरी भरि माँगय छै दूध
चिक्कस के झोर ले बजाएब कोना कए


एहन किए निर्धन बनाओल विधाता
दूधो नहि जूडय जुड़ायब कोना कए


देलक जे जन्म पुराओत सैह विधाता
लाज हुए अनका बताएब कोना कए


मानि जाउ बाबू अहाँ छी बड्ड बुधियार
छूछ माय जिद्द के पुराएब कोना कए


(वर्ण १५)


रुबी झा





बाल -गजल


कंटीरबा आ कंटीरबी माँ बापक लेल दुनू आँखिक पुतली
एकटा अछि हीरा त' दोसर मोती भेल दुनू आँखिक पुतली


बौआ खेलय गेल गेंद कब्बडी बुच्ची खेलय कनिआ-पुतरा
डाँर में घुघरू पैर पाजेब बाजि गेल दुनू आँखिक पुतली


ठुमैक चलै अछि बौआ ललन छ्मैक चलै बुच्चीया लालपरी
जुडबै छाती माँ के बापक ओ शान भेल दुनू आँखिक पुतली


बौआ खेलक खोआ मिश्री बुच्ची खेलक करकर कचरी माछ
फरिछ बाजै बुच्ची बौआ त' तोतला गेल दुनू आँखिक पुतली


रूबी लेल दुनू गौरब छै बौआ राजाबाबू बुच्ची छै लालपरी
बनै कोनो हाकिम बच्चे ओ माँ बाप लेल दुनू आँखिक पुतली


वर्ण-२३



हे रौ गुलेटेनमा  सुन रौ टुनटुनमा एलै छुट्टी गर्मी  क'
चल इस्कूल क' कहिये हम टाटा आब भेलै छुट्टी गर्मी क'


अन्हर बताश में खूब हम घुमब गाछी जा आमो चुनब
पाकल आमक रस निचोरब आई चढ़लै छुट्टी गर्मी क'


मेघ बुन्नी में खूब नहायेब माई क' हम बातो नै मानब
हत्ता-खत्ता में चल मान्छ जा' क' मारब बढ़लै छुट्टी गर्मी क'


हाट बजार में त' बाबु संग जेबै लेमंचुस बिस्कुट खेबै
मेला में जा' क' हम झुला झुलब कम बचलै छुट्टी गर्मी क'


इस्कूल क' गृहकार्य बांचल अछि रत्तियो नै त' वक्त छैक
अछि मोन विधुआयेल किये ख़तम भ' गेलै छुट्टी गर्मी क'


सरल वार्णिक बहर वर्ण -२२


१०
टुअर टापर बहिन कs टुअरे एकटा भाई छैक
सड्क कात मे बैस कs कोना झिल्ली मुरही खाई छैक


माँथ मे नै तेल छैक एको बुन छिट्टा जकाँ केश छैक
सभ कियो क रहतो ओ केहन टुअर बुझाई छैक


तन नै चिथरो देने पढेता लिखेता की साढ़े बाईस
देशक भविष्य देखियौ किये एहन कs घिनाई छैक


दर्जन पुराब मे निर्लज्ज कs लागये छै मोन कतेक
छी तs हम बड्क़ा एको बेर कहितो नै लजाई छैक


कतबो करता बाप- बाप रोकल जाई जनसंख्याँ
पढ़ल लिखल गदहा एता बड़ बेशी देखाई छैक


कतै करब बखान मातबरी मे नुकैल गरीबी कs
नेना सभक दशा देखि 'रुबी' कs किछ नै फुराई छैक


आखर --२०


११


मए गै आकाश सौ ओ चन्ना मंगा दे
हनुमान जी ध्वजा केर फन्ना मंगा दे

रोज ईस्कुल जा क भ गेलहु हरान
सर सौ आई छुट्टी क बहन्ना मंगा दे


दाई केलेन अनोना माँ क एकसन्झा
दाई आगु सौ आलू केर सन्ना मंगा दे




िददी खेलक बर्फ ललका धान बेिच
हमरो कनेक दाई सौ मरधन्ना मंगा दे




नै िलखब िसलेट पर नै चोक माटी
बाबु सौ कलम एकोटा पन्ना मंगा दे


आखर~१४


१२
कक्का के अंगना में लीची केर गाछ फरल बेजौर गै
गेन खेलय गेल दुलरुआ गेन खेलल बेजौर गै


काकी बजथिन कोठा चढ़ी सुनु ऊपराग बौआ माय
अहाँ केर बौआ लड़ीकबा लीची क' तोरल बेजौर गै


आंखि मे नोर भैर क' बजै बौआ सुन गै माई हमर
माँ हम किछुओ नै जानि लीची कतए छल बेजौर गै


मांथ धय बैसली बौआ माई कोन करू हम उपाए
सच बजै छै काकी नेनोक छै नोर बहल बेजौर गै


असमन्जस परलै रूबी बौआ बिहुँशे मुख दबाई
पाछु हाथ नुकेने झोरा अछि लीची भरल बेजौर गै
सरल वार्णिक बहर आखर -- २०


१३


बाल गजल


जए दे हमरो दिदी केर सासुर गै माँ
हमहु खेबै माँछ भात आ काकुर गै माँ


जिजा भए क संग हम खेलब कबड्डी
बहिन संग मे पकरबै दादुर गै माँ


दिदी देलकै चुप्पे चिट्ठी देबै जा जिजा क
भेंट करै ल दिदी भेल छै आतुर गै माँ


बहला फुसला मना जिजा के ल आनब
ध घिसिया क आनब नै त पाखुर गै माँ


एना नै डांटे हमहु आब बरका भेलौ
मुह फुला बैसै नै हो पित्ते माहुर गै माँ


आखर~१५
रुबी झा



श्रीमती इरा मल्लिक
1
डेग हमर छोट एखन लछ्य बहुत दूर अछि
नापि लेबै सफलताक बाट मेहनतिसँ बुझै छी


केतबो बाधा एतय बाटमे ढकेलि आगू बढ़बै
मनमे जँ ठानि लेलौँ फेर पाछु मुड़ि नहि सकै छी


मिथिलाक गौरवगाथासँ कहाँ कियौ अनजान छै
छलै कहियो दिव्य मिथिला एखन तँ माटि फकै छी


खूब पढ़ि आगू बढ़बै देशक हित काज करबै
स्वर्णिम मिथिलाके सपना अपन आँखिमे तकै छी


मिथिला अछि सुँदर ठोप भारतक ललाट केर
विश्वमे सम्मानित हो से भगीरथ प्रयास करै छी


(वर्ण -19)

2
सौँसे गाम तूँ मारने फिरैछेँ भरिके खूब टहल्ला रौ
जँ पढ़ै लिखै लेल कहबौ तँ बहुत करै छेँ हल्ला रौ


छौँरा सब सँग खेलै छे भरि दिन कबड्डी गुल्ली डँडा
नहि परलौ एखन धरि तोरा बपहियासँ पल्ला रौ


आबय दहिन गाम हुनका देखथुन तोहर लिल्ला
दैवो नहिँ बचेथुन जखन तोरथुन तोर कल्ला रौ


हम्मर बातक मोजर नै कैन्को ख़ूब कर्हि बदमस्ती
एकै बेरक सटकानि सँ खुलि जेतौ ग्यानके तल्ला रौ


आखर 20



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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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