आशीष अनचिन्हार- काफिया
काफिया मने तुकान्त। आ तुकान्त मने स्वर-साम्यक तुकान्त चाहे ओ वर्णक स्वर-साम्य हो की मात्राक स्वर-साम्य। रदीफसँ पहिने जे तुकान्त होइत छैक तकरा काफिया कहल जाइत छैक। आ ई रदीफे जकाँ गजलक हरेक शेरक (मतला बला शेरकेँ छोड़ि) दोसर पाँतिमे रदीफसँ पहिने अनिवार्य रुपें अएबाक चाही। काफिया दू प्रकारक होइत छैक (क) वर्णक स्वर-साम्य आ (ख) मात्राक स्वर-साम्य। वर्णक काफिया लेल शेरक हरेक पाँतिमे रदीफसँ पहिने समान वर्ण आ तकरासँ पहिने समान स्वर-साम्य होएबाक चाही। एकटा गप्प आर, बहुतों शाइर खाली रदीफक बाद बला वर्ण वा मात्राकँे काफिया बूझि लैत छथि से गलत। काफियाक निर्धारण काफिया लेल प्रयुक्त शब्दकेँ अंतसँ बीच वा शुरू धरि कएल जा सकैए। उदाहरण देखू---------
करेज घसैसँ साजक राग निखरै छै
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै
एहि शेरक पहिल पाँतिमे रदीफ "निखरै छै" छैक। आ रदीफसँ ठीक पहिने "राग" शब्द छैक। जँ अहाँ "राग" शब्द पर धेआन देबै तँ पता लागत जे ऐ शब्दक अंतिम वर्ण "ग" छैक मुदा ऐ "ग" संग "आ" ध्वनि (रा) सेहो छैक। तहिना दोसर पाँतिमे रदीफ "निखरै छै"सँ पहिने "ताग" शब्द अछि। आब फेर अहाँ सभ "ताग" शब्दकेँ देखू। ऐमेे अंतिम वर्ण "ग" तँ छैके संगहि-संग "आ" ध्वनि (ता) सेहो छैक। मतलब जे उपरक शेरक दुनू पाँतिमे रदीफ "निखरै छै" सँ पहिने "ग"वर्ण अछि, "आ" स्वर (ध्वनि)क संग। अर्थात "आ" ध्वनि संगे "ग" वर्ण ऐ शेरक काफिया भेल। आब ऐठाम ई मोन राखू जे जँ उपरक ई दुनू
शेर कोनो गजलक मतला छैक तँ ओइ गजलक हरेक शेरक कफिया "ग" वर्णक संग "आ" ध्वनि होएबाक चाही। अन्यथा ओ गजल गलत भए जाएत। आब ऐ गजलक दोसर शेरकेँ
देखू--
इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन
बहै घाम तखन सुतल भाग निखरै छै
ऐ शेरमे पहिल पाँतिमे ने रदीफ छैक आ ने काफिया मुदा दोसर पाँतिमे रदीफ सेहो
छैक आ रदीफसँ पहिने शब्द "भाग" अछि। ऐ शब्दक अंतमे "ग" वर्ण तँ छैके संगहि-संग "ग"सँ पहिने "आ" ध्वनि सेहो छैक। ऐ गजलक आन काफिया सभ अछि "लाग", "बाग", "पाग"। एकटा आर दोसर उदाहरण देखू--
कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा
ऐ मतलाक शेरमे "हमरा" रदीफ अछि। आ रदीफसँ पहिने पहिल पाँतिमे "सकल" शब्द अछि। संगहि-संग दोसर पाँतिमे "ठरल" शब्द अछि। आब हमरा लोकनि जँ एहिमे काफिया निर्धारण करी। दुनू शब्दकेँ नीक जकाँ देखू। दुनू शब्दक अंतिम वर्ण "ल" अछि मुदा पहिल पाँतिमे "ल"सँ पहिने "अ" ध्वनि अछि (क) आ दोसरो पाँतिमे "ल"सँ पहिने "अ" ध्वनि अछि (र)। तँ एहि दुनू शब्दक मिलानके बाद हमरा लोकनि देखै छी जे दुनूमे "ल" वर्ण समान अछि। संगहि-संग वर्ण "ल" सँ पहिने "अ" स्वर अछि। आब सभ व्यंजन हलन्तमे अ लगिते छै तखने ओ गुणिताक्षर बनै छै (कचटतप, य-ह) तँए ऐ गजलक काफिया कोनो कचटतप वर्ग(कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग) वा य-ह संग "ल" वर्ण भेल। आब शाइरकेँ बाँकी शेरमे काफियाक रूपमे एहन शब्द चुनए पड़तन्हि जकर अंतमे "ल" वर्ण अबैत हुअए एवं तइसँ पहिने कोनो "कचटतप, य-ह" भऽ सकैए। ऐ गजलमे प्रयुक्त भेल आन काफिया अछि-"जरल ", "खसल", "रहल" "कहल"|
तेसर उदाहरण सेहो देखू-
रानी मेघ सगरो जल पटाएत ना
बौआ हमर खेलत आ नहाएत ना
ऐ मतलामे "ना" रदीफ अछि। आ रदीफसँ पहिल पाँतिमे "पटाएत" शब्द अछि आ दोसर
पाँतिमे "नहाएत"। जँ दुनू शब्दमे मिलान करबै तँ "एत" दुनू पाँतिक काफियामे
कामन छै आ "एत" सँ पहिने "आ" स्वरक मात्रा छै (पहिल पाँतिमे "टा" आ दोसर पाँतिमे "हा"। ऐ मतलामे काफिया हएत "आ" मात्राक संग "एत" वर्ण समूह। ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया अछि बहाएत, बनाएत, चलाएत आ खाएत। जँ मतलाक दुनू पाँतिक काफियामे
किछु वर्ण समूह कामन रहै छै तँ ओकरा तहलीली रदीफ कहल जाइत छै। उपरका मतलामे "एत"केँ तहलीली रदीफ कहल जाइत छै। काफियाक ऐ विवरणकेँ एना बूझी तँ नीक रहत-
१) जँ कोनो मतलामे "छन" आ "दन" काफिया छै तँ ऐमे "न" वर्ण मूल वर्ण भेलै (काफियाक मिलान सदिखन अंतसँ कएल जाइत छै) आ ओइसँ पहिलुक वर्णक स्वर सेहो
बराबर हेबाक चाही। उपरका उदाहरणमे "न" वर्णक बाद क्रमशः "छ" आ "द" वर्ण बचै छै आ दुनूक स्वर "अ" छै मने अकारान्त छै तँए कोनो मतलामे ई काफिया सही हएत। आब ऐ गजलमे आन शेर सभमे एहने काफिया हेतै जेना- "हन", "मन", "जीबन" आदि। ऐठाम ई बात बुझबाक अछि जे जँ मतलामे "छन" आ "धुन" रहितै तँ काफिया गलत भऽ जेतै कारण मूल वर्ण "न" केर बादक स्वरक मात्रा सेहो अनिवार्य रूपें मिलबाक चाही मुदा ऐ उदारहरणक एकटा काफियामे "न" केर बाद "अ" स्वरक गुणिताक्षर छै तँ दोसरमे मूल वर्ण "न" केर बाद "उ" स्वर छै, तँए ई गलत भेल। ऐठाम ईहो मोन राखू जे "छन" आ "दन" केर बाद कोनो आन शेरमे "धुन", "आन", "निन" आदि काफियाकेँ नै लऽ सकैत छी। ईहो मोन राखू जे एकै गजलक आन-आन शेरमे मूल वर्ण एकै रहतै। जेना उपरका उदाहरणमे "छन" आ "दन" काफिया छै तँ आन शेरक काफियाक अंतमे "न" वर्ण अनिवार्य रूपसँ रहतै।
२) जँ कोनो मतलामे "जीवन" आ "तीमन" छै तँ काफिया "अ" स्वरक संग "न" मूल वर्ण हएत। आ तँए आन शेरक काफिया लेल "धूमन", "केहन", "पावन" एहन शब्द उपयुक्त रहत।
३) जँ कोनो मतलामे काफिया "तीमन" आ "नीमन" शब्द छै तखन कने धेआन राखए पड़त। दुनू शब्दकेँ धेआनसँ देखू, अंतमे "मन" वर्ण समूह उभयनिष्ठ छै तँ एहन काफियामे "मन" मूल वर्ण समूह भेल आ तइसँ पहिने दुनूमे "ई" स्वरक मात्रा छै (ती, नी) तँए एकर काफिया भेल "ई" स्वरक मात्राक संग "मन" वर्णक समूह। जँ कोनो शाइर "तीमन" आ "नीमन" केर बाद कोनो आन शेरमे "जीबन", "धूमन", "केहन", "पावन" काफिया लेताह तँ गलत हएत। सही काफिया हेत- "परिसीमन" आदि। ऐठाम ईहो मोन राखू जे जँ कोनो मतलामे "तीमन" आ "धूमन" काफिया छै तँ ओ गलत हएत कारण "मन" वर्ण समूहसँ पहिने एकटामे "ई" स्वरक मात्रा छै तँ दोसरमे "उ" स्वरक मात्रा। तेनाहिते "खाएत" एवं "आएत" काफियामे अंतसँ "एत" उभयनिष्ठ छै एवं तइसँ पहिने "आ" स्वरक मात्रा छै, तकर बाद आन शेरमे "जाएत", "नहाएत", "पाएत", "बुड़िआएत" आदि काफिया सही हेतै।
४) कोनो मतलामे "खौंझाएत" आ "बुझाएत" शब्दक काफिया नै भए सकैए से आब अहाँ
सभ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै। जँ कोनो शाइर एहन काफिया लै छथि तँ काफियामे "सिनाद दोष" आबि जाइत छै।
५) केखनो काल किछु एहन शब्द आबि जाइत छै काफियामे, जे अधिकांशतः एकसमान रहैत
छै जेना- "पसार" एवं "सार"। ऐ दूटा शब्दमे अंतसँ "सार" उभयनिष्ठ छै आ केओ कहता जे "सार" सँ पहिने बला स्वरक मात्रा सेहो मिलबाक चाही। मने "पसार" एवं "सार" मे "प"
अनकामन छै तँए " सार" सँ पहिने "अ" स्वर हेबाक चाही, मुदा शाइरीक निअमक हिसाबेँ मतलामे एहन काफियाक प्रयोग गलत होइत छै। अर्थात कोनो मतलामे अहाँ "पसार" एवं "सार", तेनाहिते "विचार" क संग "चार" आदि काफिया नै लऽ सकैत छी।
६) आब कने संयुक्ताक्षर बला काफियाकेँ देखी। किछु आर विवरणसँ पहिने किछु संयुक्त शब्द सभकेँ देखल जाए। प्रस्थान, चुस्त, दुरुस्त, किस्मत। आब ई देखू जे संयुक्त वर्ण अंतसँ कोन स्थानपर पड़ैत अछि। जँ ई अंतसँ तेसर आ ओकर बाद मने चारिम या पाँचम स्थानपर अबैत हो तँ काफियाक निअम पहिने जकाँ हएत। मुदा जँ इएह
संयुक्त वर्ण काफिया बला शब्दक अंतसँ दोसर स्थान पर अबैत हो तँ कने धेआन देबए पड़त। मानि लिअ जे मतलाक पहिल पाँतिमे "मस्त" काफिया छैक। तँ आब हरेक काफियाक अंतमे "स्त" रहबाक चाही। उदाहरण लेल "मस्त" क काफिया "दस्त", "पस्त", "हरस्त" आदि भऽ सकैए। उदाहरण रूपमे एकटा शेरकेँ देखल जाए--
हएत कोना गुदस्त जीबन
भेल चिन्तासँ हरस्त जीबन
आब ऐ शेरमे रदीफ "जीबन" भेल आ पहिल पाँतिमे काफिया "गुदस्त" अछि, आब संयुक्ताक्षर बला निअमक हिसाबें काफिया बला शब्दमे अंतसँ दोसर वर्ण "स्त" होएबाक चाही। आब दोसर पाँतिके देखू रदीफसँ पहिने काफियाक रूपमे "हरस्त" अछि जकर अंतसँ "स्त" संगे-संग "अ" वर्णक स्वर साम्य सेहो छै जे निअमक मोताबिक सही अछि। ऐ गजलमे आन काफिया सभ एना अछि- "व्यस्त", "मदमस्त", "मस्त", "सस्त" आदि। उपरके निअम जकाँ मतलाक पहिल पाँतिमे जँ "मस्त" काफिया छै तँ ओकर बाद आन शेरमे "चुस्त" "सुस्त" आदि काफिया नै आबि सकैए। संयुक्ताक्षरक ई निअम मात्रा बला काफिया लेल कने अलग ढ़ंगसँ छैक।
७) तँ आब आबी कने "ए" आ "य" बला प्रसंगपर।
ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि। मुदा "ए" केर प्रयोग प्राचीन मैथिलीए सँ अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नै करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि। मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली " य "क अपेक्षा "ए"सँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
एतेक जनलाक बाद आबी "ए" वा "य" केर ध्वनि लोप पर। ओना "ए" वा "य" क संगे-संग आन ध्वनि लोप सेहो होइत छै मुदा ओकर चर्चा एतए आवश्यक नै। तँ देखी ध्वनि लोपक निअम-
ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ "ए" वा "य" केर ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओइ सँ पहिने अंक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नै लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
आब एक बेर फेर घुरि जाइ उच्चारण पर। उच्चारणमे लोप-सूचक चिह्न ( ' ) वा विकारी (ऽ) केर कोनो महत्व नै होइत छैक। मने लोप सूचक चिन्ह वा विकारीसँ पहिने जे वर्ण छै तकरे पूरा-पूरी उच्चारण हेतै कनेक नमहर उच्चारणक संग ( मुदा ऐ कने नमहर उच्चारणक कारण ओ वर्ण दीर्घ नै मानल जाएत। डा. रामावतार यादव ऐ नमहर उच्चारणकेँ दीर्घ तँ मानै छथि मुदा गनतीमे शब्दकेँ लघु मानै छथि )। जेना "लए" शब्दमे ल केर बाद ए केर उच्चारण होइत अछि मुदा जखन ओही "लए" शब्दकेँ "ल'" वा "लऽ" लिखबै तखन ओकर उच्चारण बदलि जाएत आ एकर उच्चारण "ल" केर बराबर हएत। मतलब जे "ल'" वा "लऽ" केर उच्चारण "लए" वा "लय" शब्दसँ बिल्कुल अलग अछि। तेनाहिते "खस'" वा "खसऽ" केर उच्चारण "खसए" वा "खसय" शब्दसँ अलग अछि। एहन-एहन शब्द जकर अंतमे "ए" वा "य" लोप होइत होइ तकरा लेल एहने सन निअम हेतै।
जँ कोनो शाइर ध्वनि लोपक चिन्ह वा विकारी बला शब्दक काफिया बनबै छथि तँ ओ धेआन राखथि जे हरेक काफियामे लोप-सूचक चिह्न ( ' ) वा विकारी ( ऽ) सँ पहिनुक वर्ण एकसमान राखथि। जेना "ल'" वा "लऽ" केर काफियाक बाद शाइर एहन शब्द चुनथि जकर अंतमे लोप-सूचक चिह्न ( ' ) वा विकारी ( ऽ) लागल हो तकरा बाद वर्ण "ल" हो जेना "चल'" वा "चलऽ"। जँ कोनो शाइर "राख'" वा "राखऽ" केर काफिया "बाज'" या "बाजऽ" रखताह तँ ओ गलत हेतै। "बाज'" या "बाजऽ" केर बाद "साज'" वा "साजऽ" काफिया हेतै। संगे-संग काफियाक उपरका बला निअम सभ पहिनेहें जकाँ अहूमे लागू रहत। जँ कोनो एहन शब्द जकर अंतमे "ए" वा "य" केर लोप भेल छै आ तइसँ पहिने कोनो मात्रा छै तँ ओकर काफिया लेल मात्राक काफिया बला निअम लागत जकर विवरण आगू देल जा रहल अछि।
आब अहाँ सभ ई बूझि सकैत छिऐ जे --
लए---- ह्रस्व-दीर्घ
लs------ह्रस्व
ल'------ह्रस्व
लय----- ह्रस्व- ह्रस्व वा दीर्घ
आ दए, कए आदि लेल एहने सन निअम रहत।
आशा अछि जे एतेक उदाहरणसँ ई निअम सभ बुझबामे आएल हएत।
८)
पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जइ वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक ऐ बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ ऐ मे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नै भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ क सँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नै देखल जाइछ।
आब कने आबी काफिया पर (ऐठाम हमर आग्रह जे पंचमाक्षरक प्रयोग कएल जाए। ओना पहिने हम अपने अनुस्वारक प्रयोग करैत छलौं मुदा आब पंचमाक्षरक प्रयोग करैत छी आ ईएह मैथिलीक हितमे छै) जँ मतलाक कोनो काफिया मे पंचमाक्षर वा अनुस्वारक प्रयोग छैक तँ हरेक शेरक काफियामे अनुस्वार वा पंचमाक्षर हेबाक चाही ओहो ठीक ओही स्थान पर जइ पर पहिल काफियामे छैक। जेना मानि लिअ कोनो मतलाक पहिल पाँतिक काफिया "बसंत" छैक, तँ आब अहाँकेँ ओहन शब्द काफियामे देबए पड़त जकर अंतसँ दोसर वर्ण पर अनुस्वार वा पंचमाक्षर अबैत होइक जेना की "अनंत", "दिगंत" इत्यादि। आ एहने सन निअम चंद्रबिंदु लेल सेहो छैक। एकटा बात आर जँ कोनो मतलाक दुनू पाँतिमे अनुस्वार बला काफिया छै तँ ओकर बाद बला शेरक काफिया लेल पंचमाक्षर बला शब्द सेहो लए सकैत छी जेना--- जँ मतलामे की "बसंत" आ "अनंत" छै तँ बाद बला शेरक काफिया लेल "दिगन्त" सेहो लए सकैत छी। आन सभ पंचमाक्षर लेल एहने निअम बुझू। मुदा एहन ठाम ई मोन राखू जे पंचमाक्षर अपने वर्गक हेबाक चाही।
मात्रा बला काफिया पर विचार करबासँ पहिने कनेक फेरसँ तहलीली रदीफ आ मैथिली विभक्ति पर विचार करी। कारण जे मैथिली विभक्ति मूल शब्दमे सटि जाइत छैक। आ तँए ओ केखन काफियाक रूप लेत आ केखन रदीफक से बुझनाइ परम जरूरी।
विभक्ति------
मैथिलीमे विभक्ति चिन्ह समान्यतः पाँच गोट अछि।
कर्म---- केँ
करण--- एँ /सँ
अपादान-- सँ
सम्बन्ध---क
अधिकरण--मे /पर
ऐकेँ अतिरिक्त विद्वान लोकनि कर्ताक चिन्हकेँ सुन्नाक रूपमे लैत छथि। ई पाँचो चिन्ह मूल शब्दमे सटि जाइत छैक। आ ऐ पाँचोमेसँ "एँ" चिन्ह मूल शब्दक ध्वनि बदलि दैत छैक। उदाहरण लेल देखू-- "बाट" शब्दमे "एँ" चिन्ह सटने " बाटेँ" होइत छैक। "हाथ" शब्दमे सटने "हाथेँ" इत्यादि। आब कने ई विचारी जे जँ कोनो शाइर एहन शब्द, जइमे विभक्ति सटल होइक जँ ओकर काफिया बनेता तँ की हेतै। ऐ लेल किछु एहन शब्द ली जइमे विभक्ति सटल होइक। उदाहरण लेल--
मूल शब्द-------------- विभक्तिसँ सटल शब्द
हाथ------------------- हाथक /हाथेँ/ हाथसँ/ हाथमे/ हाथकेँ
फूल-------------------- फूलक /फूलसँ /फूलेँ
संग-------------------- संगमे /संगेँ
राति------------------- रातिएँ/ रातिसँ /रातिमे
ऐ विवरणकेँ हमरा लोकनि दू भागमे बाँटि सकै छी------
१) एहन मूल शब्द जे अंतसँ अकारान्त हुअए, आ
२) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्राक प्रयोग होइक
१) आब जँ कोनो शाइर एहन मूल शब्द जे अकारान्त छैक आ ओइमे विभक्ति लागल छैक तकरा काफिया बनबै छथि तँ हुनका ई मोन राखए पड़तन्हि जे बादमे आबए बला हरेक आन-आन काफियामे वएह विभक्ति कोनो आन मूल शब्दमे आबै जे अकारान्त होइक संगहि-संग स्वर-साम्य सेहो रखैत हो। उदाहरण लेल----- मानू जे केओ मूल "हाथ" शब्दमे "क" विभक्ति जोड़ि "हाथक" काफिया बनेलक। दोसर आन-आन काफिया लेल ई मोन राखू जे आबए बला ओइ काफियाक अंतमे "क" विभक्ति तँ एबै करतै, मुदा विभक्ति "क"सँ ठीक पहिने अकारान्त वर्ण एवं स्वर-साम्य होएबाक चाही जेना की मानू "बात" शब्दमे विभक्ति "क"जुटला पर "बातक" शब्द बनैत अछि। आब पहिल काफिया "हाथक" आ दोसर काफिया "बातक" मिलान करु (काफियाक मिलान सदिखन शब्दक अंतसँ कएल जाइत छैक)। देखू पहिल काफिया "हाथक" आ दोसर काफिया "बातक" दुनूक अंतमे विभक्ति "क" अछि संगहि-संग विभक्ति "क" केर बाद दुनू काफियाक शब्द "थ" आ "त" अकारान्त अछि, संगहि-संग "हा" केर स्वर-साम्य "बा" सँ छैक। आब फेर तेसर शब्द "पात" लिअ आ जँ ओइमे "क" विभक्ति जोड़बै तँ "पातक" शब्द बनतै। आब पहिल काफिया "हाथक" आ दोसर काफिया "पातक" मिलान करु। देखू अंतसँ दुनू शब्दमे "क" विभक्ति छैक आ ठीक ओइसँ पहिने दुनू शब्द अकारान्त छैक आ संगहि-संग "हा" क स्वर-साम्य "पा"सँ छैक। एनाहिते दोसर उदाहरण देखू- मूल शब्द "पात" विभक्ति "मे" जुटला पर "पातमे" शब्द बनैत अछि। फेर दोसर शब्द "बाट" विभक्ति "मे" जुटला पर "बाटमे"। आब फेरसँ मिलान करु- दुनू शब्दक अंतमे विभक्ति "मे" लागल छैक। विभक्ति "मे" सँ ठीक पहिने अकारान्त वर्ण सेहो छैक संगहि-संग "पा" केर स्वर-साम्य "बा"सँ छैक। किछु आर उदाहरण लिअ- "कलमसँ", "पतनसँ", "बापकेँ", "आबकेँ" इत्यादि।
मुदा ऐठाम ई बात एकदम धेआन राखू जे जँ कोनो शाइर लेखनमे हिन्दीक प्रभावसँ मूल शब्दमे विभक्ति नै सटबै छथि तैओ उच्चारणमे मूल शब्द आ विभक्ति स्वतः सटि जाइत छै तँए विभक्ति सटा कऽ लिखू वा हटा कए बिना रदीफक गजल हेबे करत। एकरा एना बूझी--- कोनो मतलामे " कलमसँ " आ " पतनसँ " काफिया बनि सकैए आ संगे-संग मतलामे " कलम सँ " आ " पतन सँ " सेहो काफिया बनि सकैए आ एकरा बिना रदीफक गजल कहल जाएत तेनाहिते "आँखिसँ" आ चाँकिसँ " काफिया सेहो ठीक रहत आ "आँखि सँ" आ चाँकि सँ " सेहो । ओना जँ कोनो उर्दू-हिन्दीक शाइर कोनो गजलमे " कलमसँ " आ " पतनसँ " वा " कलम सँ " आ " पतन सँ " काफिया देखताह तँ ओकरा गलत कहि देताह, मुदा ई बात सदिखन मोन राखू जे उर्दू-हिन्दी भाषा अलग छै आ मैथिली भाषा अलग छै, एकर व्याकरण आ उच्चारण पद्धति अलग छै तँए अरबीमे पारित पूरा-पूरी निअम मैथिलीमे लागू नै भऽ सकैए।
२) एहन मूल शब्द जकर अंतमे मात्रा होइक ओकर काफिया लेल धेआन राखू जे विभक्तिक बाद ठीक वएह मात्रा स्वर-साम्यक संग एबाक चाही। उदारहरण लेल-
आँखिसँ----चाँकिसँ----बाँहिसँ, इत्यादि
रातिमे----जातिमे--- जाठिमे, इत्यादि
घुटठीकेँ---गुड्डीकेँ---चुट्टीकेँ, इत्यादि
पानिक--आनिक, इत्यादि
केखनो काल दूटा विभक्ति एकै संग जुटि जाइत छैक जेना "रातिएँसँ" एहन समयमे अहाँकेँ दोसरो काफिया ओहने लेबए पड़त जइमे दुनू विभक्त समान होइक स्वर-साम्यक संगे। उदाहरण लेल " रातिएँसँ" केर काफिया "छातिएँसँ" "हाथिएँसँ" "बाटिएँसँ" आदि-आदि भऽ सकैत अछि। विभक्ति बला काफियाक संबंधमे एकटा आर खास गप्प। कोनो एहन मूल शब्द जकर अंत कोनो एकटा खास विभक्तिसँ साम्य रखैत हुअए, विभक्तिसँ पहिने बला वर्ण अकारान्त वा मात्रा युक्त (जेहन स्थिति) हुअए संगहि-संग ओइसँ पहिने स्वर-साम्य हुअए तँ ओ दुनू काफियाक रूपमे लेल जा सकैए। उदाहरण लेल एकटा विभक्ति बला शब्द "पातक" वा "बाटक" लिअ। आ आब एहन मूल शब्द ताकू जकर अंतमे "क" होइ, "क" सँ पहिने अकारान्त वर्ण होइक (जँ अकारान्त वर्णसँ पहिने स्वर-साम्य होइ तँ आरो नीक) तँ ओ दुनू (एकटा विभक्ति युक्त आ दोसर मूल) शब्द काफिया भऽ सकैत अछि। उदाहरण लेल उपर लेल दुनू विभक्त युक्त शब्द "पातक" आ "बाटक"क मूल शब्द "बालक" पालक" वा "चालक"सँ मिलाउ। जँ गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे ई शब्द सभ काफिया लेल एकदम्म उपयुक्त अछि। तेनाहिते मात्रा बला शब्द जइमे विभक्ति सटल हुअए आ ओहन मूल शब्द जे ओकरासँ मिलैत हुअए एकदोसराक काफिया बनि सकैत अछि। जँ कोनो मतलाक अंत मूल शब्दसँ सटल विभक्तिसँ होइक तँ ओकरा बिना रदीफक गजल मानू। उदाहरण लेल-
पसरल छै शोणित सगरो बाटपर
घर-आँगन-बाड़ी-झाड़ी घाटपर
ऐ गजलक आन अंतिम शब्द अछि---- "हाटपर", "खाटपर", "टाटपर"। देखू ऐ सभमे अंतसँ " पर " सेहो छै एवं " आ " स्वरक संग " ट " वर्ण सेहो छै। मुदा तैओ एकरा बिना रदीफक गजल मानल जाएत।
आब कने मात्रा बला काफिया पर विचार करी। मैथिली वर्णमालामे १६ गोट स्वर देखाओल गेल अछि। अ, आ, इ, ई उ, ऋ, ॠ, लृ,( आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप) ऊ, ए, ऐ. ओ. औ, अं एवं अः। जइमे "अ" तँ हरेक वर्णक (जइमे हलन्त् नै लागल होइक)मे अंतमे अबिते छैक। अन्य छह गोट स्वर ( ऋ,ॠ, लृ आ लृक आर एकटा दीर्घ रूप, अं एवं अः) खाली तत्सम शब्दमे अबैत छैक। बचल नओ गोट स्वर आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, एवं औ (एकर लेख रूप क्रमशः--ा, ि, ी, ु, ू, े, ै, ो एवं ौ अछि)। संगे-संग हम मैथिलीमे रेफ बला काफिया पर सेहो बिचार करब। मतलब जे ऐठाम हम कुल दस गोट मात्रा पर बिचार करब। मुदा ऐ दसोमे "इ", "उ" आ रेफ पर बिचार हम बादमे करब। एकर कारण जे मैथिलीमे ऐ तीनूक उच्चारण कने अलग ढंगसँ होइत अछि। तँ चली मात्रा बला काफिया पर। मतलामे रदीफसँ पहिने जँ वर्णमे कोनो मात्रा छैक तँ गजलक हरेक शेरक काफिया मे वएह मात्रा अएबाक चाही चाहे ओइ मात्राक संग बला वर्ण दोसरे किएक ने हो।
पूब मे उगल ललका थारी त' देखू
दूइभक घर चमा चम मोती त' देखू
(अमित मिश्र)
ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया सभ अछि- किलकारी, बेमारी, पारी, साड़ी आ तरकारी। ऐठाम ई धेआन देबए बला बात अछि जे मतलामे जे काफिया प्रयोग भेल छै तकर अंतमे " ई " केर मात्रा छै वर्ण मुदा अलग-अलग छै मुदा ओइसँ पहिने बला स्वर नै मीलि रहल छै एकर मतलब ई भेल जे मात्रा बला काफिया लेल शब्दक अंतमे जे मात्रा छै सएह आन शब्दक अंतमे अएबाक चाही बशर्ते कि वर्ण अलग-अलग हुअए। आब ऐठाम ई देखू जे जँ मतलामे " थारी " क संग साड़ी रहितै तखन आन काफियामे "ड़ी" वा " री" कामन रहितै आ तइसँ पहिने " आ" केर स्वर साम्य रहितै। जेना " बाड़ी ", उधारी, अधकपारी इत्यादि। जँ " थारी " आ " बाड़ी" केर बाद "मोती" शब्दक काफिया लै छी तँ सिनाद दोष आबि जाएत आ काफिया गलत भऽ जाएत। तेनाहिते जँ कोनो मतलामे " मोती " आ कोठी" काफिया लेबै तखन साड़ी, उधारी आदि काफिया भऽ सकैए। कोना से आब अहाँ सभ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै। ऐ निअमक अधार पर हमर प्रकाशित पोथी " अनचिन्हार आखर " केर बहुत रास काफिया गलत अछि। मुदा ओइ समय हमरा लग काफिया जतेक समझ छल ओइ हिसाबसँ ओकर प्रयोग कएल। आ तँए ओइ पोथी महँक किछु काफियाक निअम आब पूर्णतः बेकार भऽ चुकल अछि। संगे संग ईहो धेआन राखू जे आन मात्रा बला कफिया लेल एहने निअम रहत।
एकटा गलत उदाहरण देबासँ हम अपनाकेँ रोकि नै रहल छी। ई शेर हमरे थिक----
एनाइ जँ अहाँक सूनी हम
नहुँएसँ सपना बूनी हम"
(काफिया "ई"क मात्रा)
गजलक अन्य काफिया अछि---- "चूमी", "पूछी", "बूझी", "खूनी", ,"लूटी", "सूती" आदि। आब ऐ शेरमे देखू दुनू पाँतिक काफियामे " नी " कामन छै आ तइ हिसाबसँ हमरा एहन काफिया चुनबाक छल जकर अंतमे " नी " अबैत हो आ तइसँ पहिने " ऊ " केर मात्रा हुअए। ऐ शेरमे " ऊ " केर मात्रा तँ लेल गेल अछि मुदा " नी " केर पालन नै भेल अछि तँए ऐ गजल महँक एकटा काफिया " खूनी " छोड़ि आन सभ ( जेना चूमी", "पूछी", "बूझी ""लूटी", "सूती" ) आदि गलत अछि| अन्य बचल मात्राक लेल एहने समान निअम अछि आ हरेक मात्राक एक-एकटा उदाहरण देल जा रहल अछि।
१) छोड़ि कऽ जे बिनु बजने जा रहल अछि
हृदै चिरैत आगि सुनगा रहल अछि
( काफिया " आ " केर मात्रा)
( गजेन्द्र ठाकुर )
ऐ गजल आन काफिया सभ अछि------कना, भसिया, जा, खा इत्यादि।
२) "जँ तोड़ब सप्पत तँ जानू अहाँ
फाँसिए लगा मरब मानू अहाँ"
(काफिया "ऊ" क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
ऐ गजलमे लेल गेल अन्य कफिया- "गानू", "आनू", "टानू" आदि।
३) "मोन तंग करबे करतै
देह भाषा पढबे करतै"
(काफिया "ए"क मात्रा)
ऐ गजलमे लेल गेल अन्य कफिया ---"खुजबे", "उड़बे", "सटबे" आदि अछि।
४) भोरे उठि मैदान गेलै बौआ
ओम्हरहिसँ दतमनि तँ लेतै बौआ
(आशीष अनचिन्हार )
(काफिया "ऐ"क मात्रा)
ऐ गजलक आन काफिया सभ अछि- एतै, जेतै, बनतै, चलतै आदि-आदि।
ऐ केर मात्राक एकटा आर उदाहरण देखू----
करबा नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ
(ओमप्रकाश )
ऐ गजलमे लेल गेल आन काफिया अछि------चढ़बै, मढ़बै, गढ़बै आदि-आदि।
केखनो काल "ऐ" केर उच्चारण "अइ" जकाँ होइत अछि। जेना "सैतान" बदलामे सइतान, बैमानक बदलामे "बइमान" इत्यादि।
५) आब हरजाइकेँ तों बिसरि जो रे बौआ
मोन ने पड़ौ एहन सप्पत खो रे बौआ
(काफिया "ओ"क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
ऐ गजलमे लेल गेल अन्य कफिया------ओ, खसो, पड़ो इत्यादि अछि।
६) एक बेर फेर हँसिऔ कनेक
ओही नजरि सँ देखिऔ कनेक
(काफिया "औ"क मात्रा)
(आशीष अनचिन्हार, सरल वार्णिक)
ऐ गजलमे लेल गेल अन्य कफिया ---"रहिऔ", "चलिऔ", "बुझबिऔ" आदि अछि।
**** केखनो काल "औ" केर उच्चारण "अउ" जकाँ होइत अछि।
आब हमरा लोकनि फेरसँ एकबेर संयुक्ताक्षर बला शब्दपर चली। मात्रा बला संयुक्ताक्षर लेल पहिनेसँ कने अलग ढङसँ देखू। ई गप्प उदाहरणसँ बेसी फड़िच्छ हएत। मानू जे मतलाक पहिल पाँतिमे काफियाक रूपमे "चुट्टी" शब्द लेल गेल। आब दोसर काफिया लेल मोन राखू जे "ई" मात्रा युक्त कोनो शब्द भऽ सकैत अछि। उदाहरण लेल "चिन्नी", "बुच्ची", "खटनी" आदि "चुट्टी"क काफिया भऽ सकैत अछि। मुदा जँ मतलाक काफिया "मुट्ठी" आ "घुट्ठी" छैक तखन आन शेरक काफिया "चिन्नी" या "बुच्ची" नै भऽ सकैत अछि। कारण तँ अहाँ सभ बुझिए गेल हेबै।
उम्मेद अछि जे उपर देल गेल मात्रा बला उदाहरणसँ काफिया संबंधी निअम बेसी फड़िच्छ भेल हएत।
तँ आब चली "इ", "उ" आ रेफ पर। मैथिलीमे "इ" आ "उ" लेख आ उच्चारण दुनू पहिने लिखल आ कएल जाइत छैक। एकरा हम उदाहरणसँ देखाएब, तँ पहिने "इ" केर उदाहरणसँ शुरु करी। शब्द "राति" मुदा ओकर उच्चारण भेल "राइत", लिखल जाइए "गानि" मुदा बाजल जाइए "गाइन", तेनाहिते "पानि" केर उच्चारण "पाइन" भऽ गेल। मैथिलीमे वर्ण "इ" तेहन उत्फाल मचेलक जे बहुत आन शब्द सभ "इ" वर्णक संग लिखल जाए लागल जेना की "जाइत", "खाइत" आदि। एकटा आर महत्वपूर्ण गप्प, मैथिलीमे "इ"कार दू रूपमे प्रयोग होइत अछि- पहिल रूप भेल जइमे मात्रा अबैत अछि आ दोसर रूपमे "इ"कार वर्णक रूपमे अबैत अछि। पहिल रूपक उदाहरण "राति", "जाति" सभ भेल आ दोसर रूपक उदाहरण "जाइत", खाइत" सभ भेल। आब कने हमरा लोकनि काफिया पर आबी। जँ अहाँ कोनो एहन शब्दक काफिया बना रहल छी जकर अंतिम वर्ण "इ"कार युक्त अछि तँ अहाँकेँ आन-आन काफिया लेल "इ" कार युक्त वएह वर्ण लेबए पड़त जे पहिल काफियामे अछि। उदाहरण लेल जँ अहाँ "राति" शब्द काफिया लेल लेलौं तँ आब अहाँकेँ दोसर काफिया लेल "त" वर्ण "इ"कार युक्त हेबाक चाही। जेना कि "पाँति", "जाति", आदि अथवा एहन शब्द लिअ जकर अंतमे "त" होइक आ तइसँ पहिने "इ" वर्णक रूपमे रहए जेना की "जाइत"। एकर मतलब जे "राति" शब्दक काफिया लेल "जाति", "पाँति" क संगे "जाइत", "खाइत", "नहाइत" सेहो आबि सकैत अछि। आ हमरा जनैत ऐठाम मैथिली गजल उर्दू गजलसँ पूर्णतः अलग भऽ जाइत अछि। आ संगहि-संग ई विशेषता मैथिली गजलक एकटा अपन अलग छवि बनैैत अछि। आ ई विशेषता ह्रस्व "उ", "ऐ, "औ", आ रेफ बलामे सेहो अबैत अछि।
आब कने ह्रस्व "उ" पर धेआन दी। मैथिलीमे जँ शब्दक अंतमे "उ" अबैत हो आ ठीक ओइसँ पहिने अकारान्त वर्ण हुअए तखन "उ" केर उच्चारण प्रायः औ/ अउ जकाँ होइत अछि। उदाहरण लेल मधु शब्दक उच्चारण मौध/ मउध होइत अछि। आ जँ "उ"सँ पहिने आकारान्त वर्ण हो तखन "इ"ए जकाँ "उ" केर उच्चारण पहिने होइत अछि। उदाहरण लेल "साधु" केर उच्चारण "साउध", "बालु" केर उच्चारण "बाउल" इत्यादि। ओना उच्चारण लेल आनो शब्द लेल जा सकैए। आब ई देखी जे ऐ प्रकारक शब्दक काफिया कोना बनतै। जँ अहाँ "उ" सँ पहिने अकारान्त बला वर्णसँ बनल शब्द काफिया लेल लैत छी तँ धेआन राखू जे आन-आन काफियाक उच्चारण "कोनो वर्ण( एक वा एकसँ बेसी) + औ/अउ + अंतिम निश्चित वर्ण" आबै। आब उपरकेँ बला शब्द "मधु"केँ लिअ। एकर उच्चारण "म + औ/अउ + ध" अछि, तँए एकर दोसर काफिया "कोनो वर्ण( एक वा एकसँ बेसी) + औ/अउ + ध" हेतै। आब जँ अहाँ दोसर शब्द "पौध" लेलहुँ, तँ एकर उच्चारण "प + औ/अउ + ध " अछि। अर्थात "मधु" केर उच्चारण "पौध" केर बराबर अछि। तँए "मधु" केर काफिया "पौध" हएत। एनाहिते आन-आन शब्द सभ काफियाक लेल ताकल जा सकैए। आब आबी ओहन शब्दपर जकर अंत "उ" होइक आ ठीक ओइसँ पहिने आकारान्त वर्ण होइक (जेना कि उपरमे एकर उच्चारण पद्धित देखा देल गेल अछि, तँए सोझे काफिया पर चली)। ठीक ह्रस्व "उ" जकाँ निअम छैक एकरो। मानि लिअ जँ अहाँ "बालु" शब्द लेलहुँ, तँ मोन राखू दोसर काफियाक उच्चारण "आकारान्त कोनो वर्ण + उ + ल" होइक जेना की "भालु" इत्यादि। संगहि-संग ह्रस्व "इ"ए जकाँ "चाउर" केर काफिया "चारु" एवं "बालु" केर काफिया "आउल" ( owl) भए सकैत अछि। मैथिलीमे बहुत काल "उ" आ चन्द्रबिंदु एकै संग अबैत अछि। जेना "कहलहुँ" ,"सुनलहुँ", "रहलहुँ" आदि। मानि लिअ जँ ई शब्द सभ जँ काफियाक रूपमे आबि रहल अछि तँ एहन समयमे धेआन राखू जे काफियामे ठीक वएह वर्ण "उ" आ चन्द्रबिंदुक संग आबए। से नै भेला पर काफिया गलत भऽ जाएत। उपरमे देल तीनू शब्दकेँ देखू । तीनू शब्दक अंत "ह" सँ अछि, ओहो "उ" आ चन्द्रबिंदुक संग। मने ई तीनू काफिया लेल उपयुक्त अछि।
आघात बला शब्दक काफिया-------
मैथिलीमे दू प्रकारक आघात अछि मात्रात्मक आ बलाघात। मुदा मात्रात्मक आघात ओतेक महत्व नै रखैत अछि, तँए हम एतए खाली बलाघात पर बिचार करब।
मैथिलीमे कोन शब्दमे कतए आघात पड़त तकरा देखल जाए-
१) दू वर्ण धरि बला एहन शब्द जइमे एकौटा गुरू वर्ण नै हुअए- एहन शब्दमे अंतसँ दोसर शब्द पर आघात पड़ैत छैक। जेना "घर", "बर"। एकर उच्चारण "घऽर", "बऽर" आदि होइत अछि। मतलब "घ" आ "ब" पर आघात पड़ल छैक। जँ एक या एकसँ बेसी दीर्घ हुअए तँ पहिल दीर्घ पर आघात पड़ैत छैक। जेना "हाथ", "खत्ता" आदि। मतलब "हा" आ "त्ता" पर आघात छैक। "हाथी" "माछी" । ऐ शब्द सभमे पहिल गुरू "हा" एवं "मा" पर आघात छैक।
२) तीन वर्ण बला एहन शब्द जइमे तीनू लघु वर्ण हो- एहन शब्दमे अंतसँ दोसर वर्ण पर आघात पड़ैत छैक। जेना "तखन", अगहन" । ऐमेे "ख" आ "ह" पर आघात छैक। जँ एक या एकसँ बेसी दीर्घ हुअए तँ पहिल दीर्घ पर आघात पड़ैत छैक। जेना "ओसारा"मे "ओ" पर आघात छैक। "बतासा" मे "ता" पर आघात छैक।
३) चारि वर्ण बला शब्दमे अंतसँ दोसर वर्ण पर आघात पड़ैत छैक। उदाहरण लेल "भिनसर" मे "स" पर आघात छैक, "अगहन" मे "ह" वर्ण पर छैक। जँ चारि वर्ण बला ओहन शब्द जइमे दीर्घ सेहो छैक तकर आघात उपरमे देल गेल आने निअम जकाँ अछि। जेना "उच्चारण" मे च्चा पर आघात छैक।
कुल मिला कऽ एकसँ चारि वर्ण धरिक शब्द लेल एकै रंगक निअम अछि।
३) पाँच वर्ण बला शब्दमे अंतसँ तेसर वर्ण पर होइत छैक चाहे ओ लघु हो की दीर्घ। मने पाँच वर्णमे आघात सदिखन बीच बला वर्ण पर पड़ैत छैक। उदाहरण लेल "देखलहक" मे अंतसँ तेसर वर्ण "ल" पर आघात छैक, तेनाहिते "कमरसारि" मे "र" पर आघात छैक, "कनपातर" मे "पा" पर आघात छैक।
४) छह आ छहसँ बेसी वर्ण बला शब्दमे दू ठाम आघात पड़ैत छैक। शब्दक अंतसँ दोसर वर्ण पर आ अंतेसँ चारिम वर्ण पर चाहे ओ लघु हुअए की दीर्घ। ऐठाम इहो मोन राखू जे शब्दक अंतसँ दोसर वर्ण पर पड़ल आघात बेसी कठोर मुदा चारिम स्थान पर पड़ल आघात मन्द होइत अछि।
* विभक्ति बला शब्दमे आघात निर्धारित करबाक लेल विभक्तिकेँ हटा कऽ गणना करु। जेना की "पातक" शब्दमे आघात गणना "त" वर्णसँ शुरु हएत ने कि अंतिम वर्ण "क" सँ। सभ विभक्ति जुटल शब्द लेल इएह मोन राखू।
आब कने आघात बला शब्दक काफिया देखी। एहन ठाम ई मोन राखू जे आघात बला स्थान आ वर्णक मात्रा समान रहए। उदाहरण लेल "घर" आ "मजूर" दुनूमे दोसर स्थान पर आघात छैक मुदा मात्रा अलग-अलग छैक, तँए ई दुनू एक-दोसराक काफिया नै बनि सकैए। तँ "घर" शब्दक काफिया लेल "बर", "तर", " हर", “भिनसर" आदि उपयुक्त रहत । आ "मजूर" लेल "मयूर", "हजूर" आदि उपयुक्त रहत। आनो-आन आघात बला शब्दक काफिया लेल ईएह निअम बुझू। ऐठाम हम फेर मोन पाड़ी जे काफियाक निर्धारण खाली मतलामे होइत छैक आ बाँकी शेरमे ओकर पालन। तँए जँ केओ मतलामे विभक्ति बला शब्दकेँ "फूलक" आ हाथक" काफिया लेताह तँ सही हएत आ बादबाँकी शेरमे "अक" काफियाक प्रयोग हेतैक। मुदा जँ केओ गोटे मतलामे "फूलक" आ "अड़हूलक" लेलक आ तकरा बादक शेरमे "हाथक" प्रयोग करत तँ ओ बिल्कुल गलत हएत। "फूलक" आ "अड़हूलक" बाद आन शेर लेल काफिया "ूलक" होएबाक चाही।
आब कने "रेफ" बला काफिया पर बिचार करी। रेफ "र" वर्णक एकटा रूप अछि जे "र्" मने आधा "र्" मानल जाइत अछि। मैथिलीमे रेफ आ ओकर पूर्ण रूप ( र वर्ण ) दुनू चलैत अछि। जेना-
मर्द------ मरद
बर्खा-----बरखा
बर्ख-----बरख
चर्चा----चरचा
उपरका चारिटा शब्द देखलासँ ई बुझाइत अछि जे रेफक पूर्ण रूप आ रेफ बला शब्दक उच्चारणमे कनेक अंतर भऽ जाइत छै। संगे-संग किछुए शब्द अपन रेफकेँ छोड़ि पूर्ण र केर स्वरूपमे अबैत अछि। तँए काफियाक संबंधमे हमर ई विचार अछि जे जँ शब्द रेफ युक्त हुअए मुदा बिना मात्राक हुअए तँ समान स्वर आ उच्चारणक प्रयोग करी। जेना मानि लिअ अहाँ मतलामे " सर्द " आ "पर्द" काफिया लेलहुँ आ तकरा बादक शेरमे " मरद" काफियाक प्रयोग हमरा हिसाबें गलत हएत कारण स्पष्ट रूपेँ "गर्द" आ "पर्द" शब्दक उच्चारण "मरद" शब्दसँ अलग अछि। तेनाहिते मतलामे "सर्द" आ "मरद" शब्दक काफिया गलत हएत। "मरद" शब्दक बाद "बड़द", "शरद", "दरद" आदि काफिया ठीक रहत। मुदा जँ कोनो एहन शब्द जकर अन्तमे रेफ हुअए आ संगे-संग ओ शब्द मात्रा बला हुअए तँ निअम बदलि जेतै। मतलब जे शाइर तखन बिना कोनो दिक्कतक काफिया बना सकैत छथि। कहबाक मतलब जे जँ अहाँ मतलाक पहिल पाँतिमे काफिया "गर्दा" लेलहुँ आ तकरा बाद आन काफिया बर्खा या बरखा लेलहुँ तँ बिलकुल सही हएत। आब अहाँ सभ बुझि सकैत छिऐ जे कोनो मतलामे "बर्खी" आ "करची" बनि सकैत अछि। स्वर साम्य, सिनाद दोष आ ईता दोष बला प्रसंग सभ आने काफिया जकाँ अहूमे लागू हएत। तेनाहिते ई मोन राखू जे जँ रेफ शब्दकेँ अंत छोड़ि (शुरूमे वा बीचमे कतौ) छैक तँ संस्कृतक शब्दमे तँ रेफे रहत मुदा विदेशज खास कऽ अरबी-फारसी आ उर्दू बला शब्दमे "र" भऽ जाइत अछि। जेना कि पर्वतकेँ " परवत" नै लिखल जा सकैए मुदा शर्बतकेँ "शरबत" जरूर लीखि सकैत छी। ऐठाम ई मोन राखू पर्वत आ शरबत दुनू एक दोसराक काफिया भऽ सकैए।
काफियाक संबंधमे एकटा गप्प आर- काफियामे वर्ण "र" केर उच्चारण "ड़" क बराबर मानू संगहि-संग "स", "श" आ "ष" केर उच्चारण सेहो समान मानू। जइठाम "ष"क उच्चारण "ख" जकाँ हएत ततए पूर्ण "ख" काफियाक रूपमे आबि सकैत अछि। जँ "ढ" अक्षर शब्दक शुरूमे छैक तँ ओकर उच्चारण "ढ" जकाँ होइत छैक मुदा तकरा बाद ओकर उच्चारण "रह्" जकाँ छैक। आ हमरा विचारे काफियामे "ढ", "र" एवं "ड़" समान अछि। उदाहरण लेल "ठाढ़"क काफिया "विचार", "हुराड़" आदि भऽ सकैत अछि। केखनो काल "त्र" केर लेख रूप "तर्" आ "क्ष" केर लेख रूप "च्छ" अबैत अछि। शाइर उपरके निअमक हिसाबे एकर काफिया बनाबथि।
आब कने शुरुआत बला प्रश्न पर चली। पहिल प्रश्न छल जे जँ कोनो मतलामे "छोड़ए" आ "फोड़ए" काफिया हुअए तँ बाद बला शेरमे काफिया की हेतै। उत्तर स्पष्ट अछि बाद बाँकी शेरमे काफिया "ओड़ए" वा "ओरए" हेबाक चाही। नै तँ गजल गलत भऽ जाएत। संगहि-संग दोसर प्रश्न छल जे जँ "छोड़ए" आ "फोड़ए" क बाद "जाए" हुअए तँ सही हएत की गलत। एकरो उत्तर स्पष्ट अछि- जाए क उच्चारण "ओड़ए" वा "ओरए" सँ नै मिलैत अछि तँए "जाए" काफिया "छोड़ए" आ "फोड़ए" क बाद गलत हएत।
आब कने एक बेर काफियामे ईता दोष देखल जाए---
ईता दोष काफियामे बहुत बड़का दोष मानल जाइत छै। ऐपर कने विचार कऽ ली। एकरा चारि भागमे देखू----
१) ईता दोष मात्र मतलामे होइत छै।
२) जँ मतलाक दुनू काफिया मात्रा युक्त हुअए वा प्रत्ययसँ बनल हो वा सन्धिसँ बनल शब्द तँ दुनू काफियाक मात्रा हटा दिऔ, वा प्रत्यय हटा दिऔ वा सन्धि विच्छेद कऽ दिऔ। आब ई देखू जे मात्रा, प्रत्यय वा विच्छेदक बाद जे पहिल शब्द बचल शब्द छै से सार्थक छै की निरर्थक। जँ दुनूमेसँ एकौटा निरर्थक अछि तँ चिन्ता करबाक गप्प नै कारण एहन स्थितिमे ईता दोष नै रहत।
३) जँ दुनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ ओइ बचल पहिल सार्थक शब्दक आपसमे काफिया बनि रहल छै तखन मात्रा वा प्रत्यय वा सन्धिबला शब्द सेहो काफिया बनत आ ऐमे ईता दोष नै हएत।
४) मुदा जँ दुनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ ओइ बचल पहिल सार्थक शब्दक आपसमे काफिया नै बनि रहल छै तखन मात्रा वा प्रत्यय वा सन्धि बला शब्द सेहो काफिया नै बनत आ ऐमे ईता दोष हएत।
आब कने उदाहरणसँ देखी ऐ प्रकरणक- मानू जे मतलामे "बिमारी" आ "आदमी" काफिया छै। तँ आब जँ दुनूक मात्रा हटेबै तँ क्रमशः " बिमार " आ " आदम " शब्द बचै छै जे की सार्थक छै। मुदा "बिमार" आ " आदम" एक दोसराक काफिया नै बनि सकैए। तँए मतलामे "बिमारी" एवं " आदमी" काफिया नै बनत। उर्दूमे जँ केओ एहन काफिया बनबै छथि तँ ओकरा ईता दोषसँ ग्रस्त मानल जाइत छै। एकटा दोसर उदाहरण लिअ-- दोस्ती आ दुश्मनी मतलामे काफिया नै बनि सकैए। कारण वएह मात्रा हटेलाक बाद दोस्त आ दुश्मन शब्द बचै छै जे की दुनू सार्थक छै आ दुनू एक दोसराक काफिया नै बनै छै तँए दोस्ती आ दुश्मनी मतलामे काफिया नै बनि सकैए।
मैथिलीमे प्रत्यय बला शब्द संग सेहो एना कएल जा सकैत अछि। प्रत्यय बला शब्दक किछु उदाहरण देखू- धान शब्दमे गर प्रत्यय लगेलासँ नव शब्द बनै छै "धनगर"। तेनाहिते मोन शब्दमे गर प्रत्यय लगेलासँ "मनगर" शब्द बनै छै (किछु गोटेँ मोनगर सेहो लिखै छथि)। एनाहिते आन प्रत्ययसँ बहुत रास नव शब्द बनै छै।
आब कने ऐ नव शब्दक काफियापर आउ- जँ धनगर शब्दक काफिया मनगर बनेबै तँ ईता दोष नै रहतै। कारण जँ ऐ दुनू नव शब्दमे सँ गर प्रत्यय हटेबै तँ क्रमशः धन आ मन बचै छै आ दुनूमे काफिया सेहो बनि रहल छै (ऐठाम ई मोन राखू जे प्रत्यय हटलाक बाद धन शब्द मिलाएल जेतै ने की धान, तेनाहिते मन मिलाएल जेतै ने की मोन)।
आब जँ मतलामे धनगर संगे दुधगर आबै तँ देखू की हेतै। प्रत्यय हटलाक बाद क्रमशः धन आ दुध बचै छै मुदा दुनू एक-दोसराक काफिया नै बनि रहल छै तँए धनगर आ दुधगर एक-दोसराक काफिया नै बनि रहल अछि।
आन-आन प्रत्यय वा सन्धि वा मात्रा लेल एहने सन बुझल जाए।
आब जँ बिमारी संग उधारी आबै तँ देखू की हेतै। बिमार एवं उधार दुनू शब्द (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) सार्थक छै आ संगे संग दुनू एक दोसरक काफिया बनि रहल छै तँए बिमारी आ उधारी सेहो एक दोसरक काफिया बनत आ ऐमे ईता दोष नै रहतै।
आब जँ बिमारी संग जिनगी लेबै तँ देखू की हेतै। बिमार एवं जिनग (मात्रा, प्रत्यय हटेलाक बाद वा विच्छेदक बाद) बिमार शब्द सार्थक छै मुदा जिनग शब्द निरर्थक तँए बिमारी आ जिनगी सेहो एक दोसरक काफिया बनि सकैए। किछु शब्द एहन होइत छै जकरा पर मात्रा रहैत छै तखन अलग मतलब होइत छै आ मात्रा हटलाक बाद दोसरे मतलब बनि जाइत छै जेना "कारी" तँ एकर मतलब भेलै रंग कारी। मुदा जँ एकर मात्रा हटा देबै तँ बचतै "कार" जे की गाड़ीक संदर्भमे सार्थक शब्द तँ छै मुदा मतलब दोसर छै। तँए अहूँ काफियामे ईता दोष नै रहत। आन शब्द एनाहिते ताकल जा सकैए। आब केओ कहि सकै छथि जे बिमार आ बिमारी शब्द अलग-अलग छै मुदा हमर कहब जे बिमार आ बिमारी दुनूक अर्थ एकदोसरामे निहित छै मुदा कारी आ कार शब्दमे से नै छै।
अस्तु ई भेल ईता दोष प्रकारण।
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