भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, September 30, 2012

'विदेह' ११४ म अंक १५ सितम्बर २०१२ (वर्ष ५ मास ५७ अंक ११४) PART II



बेचन ठाकुर
 महान सामाजि‍क मैथि‍ली नाटक
बाप भेल पि‍त्ती
बेचन ठाकुर
पहि‍ल अंक
दृश्‍य- एक
     (स्‍थान- लखनक घर। दलानपर लखन, लखनक कक्का मोतीलाल, भाए बौहरू बड़का बेटा मनोज आ छोटका बेटा संतोष उपस्‍थि‍त छथि‍। लखन चि‍न्ति‍त मुद्रामे छथि‍। सभ कि‍यो चौकीपर बैस वि‍चार-वि‍मर्श कए रहल छथि‍। बारह वर्षीय मनोज आ दस बर्षीय संतोष दलानपर माटि‍-माटि‍ खेल रहल अछि‍।

मोतीलाल-     लखन, चि‍न्‍ता-फीकीर छोड़ू। की करबै? भगवानकेँ जे मर्जी होइत अछि‍, ओकरा के बदलि‍ सकैत अछि‍? अहाँ कनि‍याँकेँ एतबे दि‍नका भोग छेलै। आब अहाँक की वि‍चार भऽ रहल अछि‍?

लखन-       कक्का, अपने सभ जे जेना वि‍चार देबै।

मोतीलाल-     हम सभ की वि‍चार देब? पहि‍ने तँ अहाँक अपन इच्‍छा।

लखन-       दूटा छोट-छोट बौआ अछि‍। ओकर पति‍पाल केना हाएत? जँ कुल-कनि‍याँ नीक भेटत तँ दोसर कऽ लइतौं।

मोतीलाल-     भातीज, अहाँक नीक वि‍चार अछि‍। ऐ उमेरमे अहाँक ि‍नर्णए हमरो उचि‍त बुझना जाइत अछि‍।

बौहरू-       कक्का, एगो कहबी जे छै सतौत भगवानोकेँ नै भेलैसे?

मोतीलाल-     बौआ, तोहर की कहब छह? लखनकेँ बि‍आह नै करबाक चाही की?

बौहररू-      हँ, हमर सहए कहब रहए। भैया कनी ति‍याग कऽ दुनू छौंराकेँ पढ़ा-लि‍खा कऽ बुधि‍यार बनाबि‍तथि‍। ओना भैयाकेँ कनि‍याँ केहेन भेटतनि‍ केहेन नै।

मोतीलाल-     हमरा वि‍चारसँ लखनक परि‍स्‍थि‍ति‍ बि‍आह करैबला अवस्‍स अछि‍।

लखन-       कक्का, नजरि‍मे दऽ देलौं। जदी सुर-पता लगए तँ जोगार लगाएब।

मोतीलाल-     बेस देखबै।

पटाक्षेप।


दृश्य- 2

(स्‍थान- मदनक घर। ओ अपन बि‍आहल बेटीक बि‍आहक चि‍न्‍तामे लीन छथि‍। कातमे पत्नी-गीता दलान झाड़ि‍ रहल छथि‍। मोतीलालक समधि‍क समधि‍ हरि‍चन मोतीलालकेँ मदनक ऐठाम कुटुमैतीक संबंधमे लऽ जाए रहल छथि‍। हरि‍चन मदनक ग्रामीण छथि‍ हि‍नका दुनूक पहुँचैत मातर गीता घोघ तानि‍ अन्‍दर चलि‍ जाइत छथि‍। दलानपर तीन-चारि‍टा कुर्सी लागल अछि‍। मोतीलाल आ हरि‍चनक प्रवेश।)

हरि‍चन-      (कर जोड़ि‍) नमस्‍कार मदन भाय।

मदन-        नमस्‍कार नमस्‍कार।

मोतीलाल-     नमस्‍कार कुटुम।

मदन-        नमस्‍कार नमस्‍कार। बैसै जाइ जाउ।
(दुनू जन बैसलाह।
संजय, संजय, बेटा संजय, संजय।

संजय-       (अन्‍दरसँ) जी पि‍ताजी, हइए ऐलौं। (संजयक प्रवेश।)

           (हरि‍चनकेँ मदन पकड़ि‍ कऽ अंदर लऽ जाइत छथि‍।)

मदन-        लड़ि‍काकेँ बेटा दुगो छै आ अस्‍था-पाती?

हरि‍चन-      गोटेक बीघाक अन्‍दरे छै। अपना भरि‍ कोनो दि‍क्कत नै छै।

मदन-        की करी की नै, कि‍छु नै फुराइए।

हरि‍चन-      हमरा सभकेँ लट होइए। यदि‍ वि‍चार हुअए तँ हुनका लड़ि‍की देखाए दि‍यनु। नै तँ कोनो बात नै।

मदन-        बेस अपने दलानपर चलू। हम बुच्‍चीकेँ लेने आबै छी।
(हरि‍चन दलानपर आबि‍ गेलाह कि‍छुए काल बाद मदन सेहो आबि‍ गेलाह।)

मदन-        चलू, देखल जेतै। कऽ लेबै। आगू भगवानक मर्जी। हम लड़ि‍कीक बाप छि‍ऐ। तँ हमरा लड़ि‍का देखबाके चाही। मुदा हम सभ दि‍न अहाँपर वि‍श्वास करैत रहलौं। आइ कोना नै करब?

हरि‍चन-      हम अहाँक संग बि‍सवासघात केलौं?

मदन-        से तँ कहि‍यो नै। ओना दुनि‍याँ बि‍सवासेपर चलै छै।
(वीणाक संग मीनाक प्रवेश। मीना सभकेँ पएर छूबि‍ गोर लगैत अछि‍।)

हरि‍चन-      कुर्सीपर बैसू बुच्‍ची।
(मीना कुर्सीपर बैसैत अछि‍। वीणा ठाढ़े अछि‍।)
मोतीलाल बाबू, लड़ि‍कीकेँ कि‍छु पूछबो करबनि‍, तँ पुछि‍यौ।

मोतीलाल-     की पुछबनि‍, कि‍छु नै।

हरि‍चन-      बुच्‍ची अहाँ चलि‍ जाउ।
(मीना सभकेँ गोर लागि‍ अन्‍दर गेलीह।)

मदन-        हरि‍चन भाय, लड़ि‍की अपने सभकेँ पसीन भेलीह?

मोतीलाल-     हँ, लड़ि‍की हमरा लोकनि‍केँ पसीन अछि‍।

मदन-        तहन अगि‍ला कार्यक्रम की हेतै?

हरि‍चन-      जे जेना करीऔ। ओना हम वि‍चार दैतौं जे बि‍आह मंदि‍रमे कऽ लैतौं। चीप एण्‍ड बेस्‍ट।

मदन-        कहि‍या तक?

हरि‍चन-      कहि‍या तक, चट मंगनी पट बि‍आह। काल्हि‍ये कऽ लि‍अ। बढ़ि‍या दि‍न छै। कुटुमैती लगा कऽ नै रखबाक चाही।

मदन-        भाय, ओरि‍यान कहाँ कि‍च्‍छो छै?

हरि‍चन-      जे भेलै सेहो बढ़ि‍या, जे नै भेलै सेहो बढ़ि‍याँ। आदर्शेमे आदर्श।

मदन-        बेस, काल्हुके रहए दि‍औ।

हरि‍चन-      जाउ, जे भऽ सकए, ओरि‍यान करू। हम सभ सेहो जाइ छी। जय रामजी की।

मदन-        जय रामजी की।
(हरि‍चन आ मोतीलालक प्रस्‍थान।)
होनी जे हेबाक हेतै, सएह ने हेतै। आप इच्‍छा सर्वनाशी, देव इच्‍छा परमबल:।

पटाक्षेप।



दृश्‍य- 3
(दूश्‍य- लखनक बरि‍आतीक तैयारी। वर-लखन, मोतीलाल, बौहरू, मनोज आ संतोष मदनक ओइठाम जा रहल छथि‍। मदन अपन घरक कातमे एकटा शि‍व मंदि‍रक प्रांगणमे बि‍आहक पूर्ण तैयारी केने छथि‍। सात गोट कुर्सी आ एक गोट टेबूल लगल अछि‍। पंडीजी गणेश महादेवक पूजा कए रहल छथि‍। मदन, मीना, गीता हरि‍चन, संजय आ वीणा मंदि‍रक प्रांगणमे थहाथही कए रहल छथि‍ तथा बरि‍यातीक प्रतीक्षा कए रहल छथि‍। मीना कनि‍याँक रूपमे पूर्ण सजल अछि‍। बरि‍याती पहुँचलाह। डोलमे राखल पानि‍सँ सभ बरि‍याती हाथ-पएर धोइ कऽ कुर्सीपर बैसलाह आ लखन बरबला कुर्सीपर बैसलाह। बापेक कातमे एक्के कुर्सीपर मनोज आ संतोष बैसलाह। मदन प्रांगणमे आबि‍ जलखैक बेवस्‍था केलनि‍। सभ कि‍यो जलखै कऽ रहल छथि‍।)

मनोज-       पापा, पापा, नाच कखैन शुरू हेतै?

लखन-       धूर बूरबक, अखैन कि‍छु नइ बाज। लोक हँसतौ।

मनोज-       कि‍अए हौ, लो हँसतै तँ हमहूँ हँसबै। कहऽ न नटुआ कखैन औतै?

लखन-       चुप चुप, नटुआ नै कही। लड़ि‍की औतै।

मनोज-       कए गो लड़ि‍की औतै? कार्केस्‍ट्रा कखैन शुरू हेतै? लड़ि‍की संगे हमहूँ नचबै, गेबै आ रूमाल फाड़ि‍ कऽ उड़ेबै। पापा हौ, लड़ि‍कीकेँ कहबै खाली रेकाँडि‍ंगे हांस करैले। अगबे भोजपूरीयेपर।

लखन-       चूप बड़ खच्‍चर छेँ रौ। आर्केस्‍ट्रा नै हेतै। डंस नै हेतै।

मनोज-       तखन एतए की हेतै हौ पापा?

लखन-       हमर बि‍आह हेतै बि‍आह।

संतोष-       पापा हौ, तोहर बि‍आह हेतै आ हमर नै।

लखन-       हँ हँ, तोरो हेतै।

संतोष-       कहि‍या हेतै?

लखन-       नमहर हेबहीन तहन हेतौ।

संतोष-       हम नमहर नै छि‍ऐ। एत्तेटा तँ भऽ गेलि‍ऐ। आब बि‍आह कहि‍या हेतै?

लखन-       बीस साल बाद हेतौ।

संतोष-       बीस साल बाद बुढे भऽ जेबै तँ बि‍आह कए कऽ की हेतै? हम आइये करब।

लखन-       आइ तोरा ले लड़ि‍की कहाँ छै?

संतोष-       आँइ हौ पापा, तोरा ले लड़ि‍की छै आ हमरा ले नै छै। केकरोसँ कऽ लेबै।

लखन-       केकरासँ करबि‍हीन?

संतोष-       मौगी सभ औतै न तँ ओइमे जे सभसँ मोटकी मौगी हेतै, ओकरेसँ करबै। दूधो खूब पीबै नम्‍हरो हेबै आ मोटेबो करबै। पापा हौ, हमरा लोकनि‍यामे तोरे रहए पड़तह।

लखन-       बेस रहबौ बौआ।
(जगमे पानि‍ आ गि‍लास लऽ कऽ संजयक प्रवेश। सभ कि‍यो पानि‍ पीलनि‍ आ हाथ-मुँह धोइ अपन-अपन जगहपर बैसलाह। पंडीजी पूजा पूर्णाहुति‍क पश्चात बर लग बैस जलखै केलाह।)

गणेश-       अहाँ सभ वि‍लंब कि‍अए करै छी? बि‍आहक मुहुर्त्त हुसि‍ रहल अछि‍। हौ, हौ, जल्‍दी चलै चलू। कोनो चीजक टेम होइ छै कि‍ने?
           (लड़ि‍कीक संग सरयातीक प्रवेश। सभ कि‍यो मंदि‍रपर गेलाह। सतहपर बि‍छाएल दरीपर बैसलाह।)
गणेश-       आउ लड़ि‍का-लड़ि‍की, हमरा लग बैसू।
(लखन आ मीना पंडीजी लग बैसैत छथि‍। पंडीजी दुनूकेँ अपन रामनामबला चद्दरि‍ ओढ़ा दैत छथि‍न। दुनूकेँ हाथमे अरबा चाउर आआेर कुश दइ छथि‍न।)

गणेण-       लड़ि‍का-लड़ि‍की पढ़ू-
मंगलम् भगवान विष्‍णु, मंगलम् गरूड़ध्‍वज:
           मंगलम् पुण्‍डरीकाक्ष मंगलाय तनोऽहरि‍:।।

लखन, मीना-   मंगलम्.....।

           (पंडीजी तीन बेर ई मंत्र पढ़ा कऽ अपना बगलमे राखल सेनूरक पुड़ि‍यामे सँ एक चुटकी सेनूर लड़ि‍काक हाथमे देलनि‍।)

गणेश-       बि‍आहक मुहुर्त्त बीति‍ रहल छल। तँए हम एक्केटा मंत्र बि‍आह करा दै छी। आब सि‍न्‍दुरदान होइए।
लड़ि‍का, लड़ि‍कीक मांगमे सेनूर दि‍अनु।
           (लखन मीनाक मांगमे सेनूर देलनि‍।)
आब अपने सभ दुर्वाक्षत दि‍अनु।
(पंडीजी पैघ सबहक हाथमे दुर्वाच्‍छत देलखि‍न।)
मंत्र- ऊँ. अाब्रह्न ब्राह्मणो।

मि‍त्राणामुदयस्‍तव।
(मंत्रक बाद सभ कि‍यो लड़ि‍का-लड़ि‍कीकेँ दुर्वाक्षत देलखि‍न।)
लाउ, दुनू समधि‍ दक्षि‍णा-पाती। सस्‍तेमे अहाँ सभ नि‍महि‍ गेलौं।
(दुनू समधि‍ एकावन-एकावन टका दक्षि‍णा देलखि‍।)
इएह यौ, एक्को कि‍लो रहुक दाम नै। खाइर जाउ।

मदन-        पंडीजी लड़ि‍की-लड़ि‍कीकेँ असीरवाद दि‍अनु।
           (लड़ि‍का-लड़ि‍की पंडीजीकेँ पएर छूबि‍ प्रणाम करैत छथि‍। पंडीजी असीरवाद दइ छथि‍न।)

मोतीलाल-     पंडीजी मोनसँ असीरवाद देबै।

गणेश-       हँ यौ, दक्षि‍णे गुणे ने असीरवाद भेटत।
           (सभ कि‍यो जा रहल छथि‍।)

पटाक्षेप।



दृश्‍य- चारि‍
         

(स्‍थान रामलालक घर। रामलालक दुनू पत्नी लक्ष्‍मी आ संतोषी घरमे हुनका सेवा कऽ रहल छथि‍। लक्ष्‍मी पक्षमे दूगो बेटी-एगो बेटा छन्‍हि‍। तथा संतोषी पक्षमे एगो बेटी-दूगो बेटा छन्‍हि‍। छओ भाए-बहि‍न एक्के पब्‍लि‍क स्कूलमे पढ़ए गेल छथि‍।)

रामलाल-     लड़की सभ धि‍या-पुता नीक जकाँ घरपर पढ़ै-लि‍खै अछि‍ न? हम तँ भि‍नसर जाइ छी से राति‍येमे अबै छी। पेटक पूजा तँ बड़ पैघ पूजा छै कि‍ने? हम नै पढ़लौं से अखैन पछताइ छी।

लक्ष्‍मी-       छौड़ाक लक्ष्‍ण अखैन बड़ नीक देखै छि‍छे, अग्रि‍म जे हुअए। हमरा सभकेँ पढ़ैले कहए नै पढ़ै अछि‍।

रामलाल-     छोटकी, अहाँ कि‍छु नै बजै छी।

संतोषी-      दुनू गोटे एक्के बेर बाजि‍ देब तँ अहाँ की सुनबै आ की बुझबै?

रामलाल-     कोनो तकलीफ अछि‍ की?

संतोषी-      जेकरा अहाँ सन घरबला रहतै, तेकरा तकलीफो हेतै आ अहुँसँ होशगर बड़की छथि‍। स्‍वामी, एगो गप्‍प पूछी?

रामलाल-     एक्के गो कि‍अए, हजार गो पूछि‍ते रहू।

संतोषी-      अहाँ, एहेन चि‍क्कन घरवालीकेँ रहैत दोसर बि‍अाह कि‍अए केलि‍ऐ?

रामलाल-     बड़कीसँ बेटा होइमे कि‍छु बि‍लंब देखलि‍ऐ तँए दोसर केलि‍ऐ।

संतोषी-      नै यौ, दोसर गप्‍प भऽ सकै छै।

रामलाल-     हमरा तँ नै बूझल अछि‍, अहीं बाजू दोसर की भऽ सकै छै?

संतोषी-      अहाँकेँ अहाँकेँ अहाँकेँ एगोसँ मोन नै भरल।

रामलाल-     बस करू, बस करू, अहाँ तँ लाल बुझक्करि‍ छी। अहाँ तँ अंतर्यामी छी। ओना मोनकेँ जतए दौगेबै, ओतए दौगतै।
           मन ही देवता, मन ही ईश्वर,
मन से बड़ा न कोइ।
मन उजि‍यारा जब जब फैले,
जग उजि‍यारा होय।।
(इसकूल पोशाकमे सोनीक प्रवेश।)

सोनी-       पापा, पापा, इसकूलक फीस दि‍यौ।

रामलाल-     माएकेँ कहि‍यौ बुच्‍ची।

सोनी-       माए, इसकूलक फीस दहि‍न।

लक्ष्‍मी-       कत्ते फीस लगतौ?

सोनी-       तों नै बुझै छीही छअ गो वि‍द्यार्थीक छअ सए टाका।

लक्ष्‍मी-       छोटकी, जाउ, दऽ दियौ ग।

संतोषी-      बेस लेने अबै छी।
(संतोषी अन्‍दर जा कऽ छअ सए टाका आनि‍ सोनीकेँ देलनि‍ आ फेर पति‍ सेवामे भीर गेलीह।)

रामलाल-     छोड़़ै जाइ जाउ आब। अंगना-घर देखि‍यौ। अहुँ सभकेँ कनी काज होइ छै।
(दुनू पत्नी चलि‍ गेलीह।)

पटाक्षेप



दृश्‍य- पाँच

(स्‍थान- रामलालक घर। रमाकान्‍त मुखि‍याक संग बलदेब वार्ड सदस्‍यक प्रवेश।)

बलदेव-      (दलान परसँ) रामलाल रामलाल भाय।

रामलाल-     (अन्‍दरेसँ) हइए एलौं भाय। दलानपर ताबे बैसु। जलखै कएल भऽ गेल।

बलदेव-      मुखि‍योजी एलाह, कने जल्‍दि‍ये एबै।

रामलाल-     तहन तुरन्‍त एलौं।
(हाथ-मुँह पोछि‍ते प्रवेश। प्रणाम-पाती कऽ अन्‍दरसँ दूटा कुर्सी अनलनि‍। रमाकान्‍त आ बलदेब कुर्सीपर बैसलाह मुदा रामलाल ठाढ़े छथि‍।)

रामलाल-     मुखि‍याजी, आइ केम्‍हर सूरूज उगलै? आइ रामलाल तरि‍ गेल सरकार। कहि‍यौ सरकार हम केना मन पड़लौं। इनरा आवासबला कोनो गप्‍प छै की?

बलदेव-      गप्‍प तँ इएह छै। मुदा पहि‍ने कुशल-छेम, तहन ने अगि‍ला गप-सप्‍प। कहु अपन हाल-समाचार।

रामलाल-     अपने सबहक कि‍रपासँ हमर हाल-समाचार बड्ड बढ़ि‍याँ अछि‍। भाय, अपन हाल-चाल कहु।

बलदेव-      भाय, एकदम दनदनाइ छै।

रामलाल-     आ मुखि‍याजी दि‍शि‍का।

रमाकान्‍त-     हमरो हाल-चाल बड़ बढ़ि‍या अछि‍। वएह एलेक्‍शन नजदीक छै तँए पंचायतमे घुमनाइ अावश्‍यक बुझलौं। संगे संग अहुँक काज रहए।

रामलाल-     तहन अपने कि‍अए एलि‍ऐ, हमहीं चलि‍ अबि‍तौं।

रमाकान्‍त-     देखि‍यौ, जनता जानार्दन होइ छै। पहि‍ने जनता तहन हम। जनता मुखि‍याकेँ बड़ आशासँ चुनै छै। ओइ आशाक पूर्ति केनाइ हमर परम कर्त्तव्‍य छै।

रामलाल-     अपने महान छि‍ऐ। अपनेक आगू हम की बजबै?

बलदेव-      मुखि‍याजी, कने ओकरो ऐठाम जाइक  छै। हि‍नकर काज जल्‍दी कऽ दि‍यनु।

रमाकान्‍त-     तहन दऽ दि‍यनु।
(बलदेव बेगसँ बीस हजार टाका नि‍कालि‍ रामलालकेँ देलखि‍न।)

रामलाल-     (पाँच सए टाका नि‍कालि‍) मुखि‍याजी, ई अपने राखि‍ लि‍औ।

रमाकान्‍त-     नै, ई नै भऽ सकैए। ई अपने रखि‍यौ। हमरा पेट ले बहुते फंड छै। कहबी छै- ओतबे खाइ जइसँ मोंछमे नै ठेकए।

रामलाल-     भगवान, एहेन मुखि‍या सगतर होइ छै।

बलदेव-      रामलाल भाय, जतए-ततए सुनै छी अहाँक परि‍वारक संबंधमे। तँ मन हर्षित भऽ जाइए। एहेन सुन्‍दर ढंगसँ परि‍वार चलेनाइ आइ-काल्हि‍ असंभव अछि‍।

रामलाल-     सभ भगवानक कि‍रपा छनहि‍ आ अपन करतब तँ चाहबे करी।

रमाकान्‍त-     हमरा लोकनि‍ जाइ छी। जाउ, अहुँ अपन काम-काज देखि‍यौ।
(रमाकान्‍त आ बलदेवक प्रस्‍थान)

रामलाल-     धन्‍यवाद बलदेव भाय, धन्‍यवाद मुखि‍याजी एहि‍ना सभ जनतापर खि‍आल रखबै।

पटाक्षेप।



दृश्‍य- छह

(स्‍थान- लखनक घर। मीना अपन बेटी रामपरी आ बेटा कृष्‍णाक संग बैडमि‍ंटन खेल रहल अछि‍।

रामपरी-      मम्मी, कसि‍ कऽ मारहीन ने। काँर्क नै उड़ै छौ।

मीना-        बेसी कसि‍ कऽ नै लगै छै। कम-सँ-कम बौओ जकाँ बमकाही ने?
           (मनोजक प्रवेश)

मीना-        ओएह, एलौ सरधुआ भांड़ैले।

रामपरी-      आबए दहीन ने मम्‍मी। भायजी छथि‍न।

मीना-        भायजी छथि‍न। कप्‍पार छथि‍न। काँर्क फूटि‍ जेतौ तँ आनि‍ कऽ देतौ?

रामपरी-      मम्‍मी, भायजी कतए सँ आनि‍ कऽ देतै, तोंही कह तँ। आकि‍ पापा आनि‍ देथि‍न।

मीना-        पापाकेँ हम जे कहबै, से करथुन। तोहर कहल नै करथुन।

रामपरी-      मम्‍मी, ई गप्‍प तोहर नीक नै भेलौ आ पापोकेँ नीक नै भेलनि‍।

 मीना-       तों पंचैती करैले एलँह की बैडमि‍ंटन खेलैले? खेलबाक छौ तँ खेल नै तँ जो एत्तएसँ।

रामपरी-      तोंही सभ खेल, हम जाइ छी।
(खीसि‍या कऽ रामपरीक प्रस्‍थान। रामपरीबला बैटसँ मनोज बैडमि‍ंटन खेलए लगैत अछि‍। मीना बएटेसँ ओकरा मारैले छुटैत अछि‍। फेर दुनू माय-पुत बैडमि‍ंटन खेलए लगैत अछि‍।)

कृष्‍णा-       मम्‍मी, तोरा दीदी जकाँ खेलल नै होइ छौ। कने पापाकेँ कहबीन सीखा दइले से नै।

मीना-        बौआ, पापा हमरा की सि‍खेलखुन, हमहीं सीखा दइ छि‍ऐ।

कृष्‍णा-       तेकर माने तों पापासँ जेठ छीही?

मीना-        उमरमे भलहि‍ं छोट हएब मुदा अकलमे नि‍श्चि‍ते जेठ।
(संतोषक प्रवेश)

संतोष-       हमहूँ खेलबै कृष्‍णा। (बैट लऽ कऽ खेलए लगैत अछि‍। झटसँ मीना संतोषक हाथसँ हाथ मोचारि‍ कऽ बैट लऽ लैत अछि‍। टुनकीबला आ मुड़ीमचरूआ कहि‍ बैटसँ मारैले दौगैत अदि‍। संतोष भागि‍ जाइत अछि‍। ओइपर खीसि‍या कऽ कृष्‍णा एक बैट मम्‍मीकेँ बैसा दैत अछि‍।)

कृष्‍णा-       तों बड़ खच्‍चर छेँ मम्‍मी। खेलल-तेलल होइ छौ नहि‍येँ आ जमबै छेँ। अखैन संतोष भायजी रहि‍ते तँ खूम बैडमि‍ंटन खेलतौं की नै।

मीना-        संतोशबा तोहर भायजी नै छि‍औ। जेकर छि‍ऐ से बुझतै। तोरा ओकरासँ कोनो मतलब नै।

कृष्‍णा-       कि‍अए मम्‍मी? उहो तँ हमरे पापाक बेटा छि‍ऐ ने?

मीना-        मुदा तोहर मम्‍मीक बेटा नै ने छि‍ऐ।

कृष्‍णा-       बुझबीहीन तँ कि‍अए नै हेतै? नै बुझबीहीन तँ हमहूँ-हमहूँ तोहर दुश्मन छि‍औ।

मीना-        बकबास नै कर। काल्हि‍ जनमलेँ आ बुढ़बा जकाँ गप्‍प करै छेँ। सभ बात तों अखैन नै बुझबीहीन। आब काल्हि‍ खेलि‍हेँ चल।
           (बैट-काँर्क लऽ कऽ मीना-कृष्‍णाक प्रस्‍थान।)

पटाक्षेप।


अंक दोसर

दृश्य- एक

(स्‍थान- रामलालक घर। संतोषी बि‍स्‍तरपर पड़ल अछि‍। पाँच भाय-बहि‍न इसकूल गेल अछि‍। मुदा सोनी घरेपर अछि‍ सोनीक तबीयत ठीक नै अछि‍।)

संतोषी-            सोनी बुच्‍ची, कनी देह दबा दि‍अ तँ?

सोनी-       हमरा अपने माथ दुखाइए। तँए इसकूलो नै गेलौं। अखन धरि‍ बासि‍ये मुँहेँ छी। खैर अहाँ तँ छोटकी माए छी। अहाँक अज्ञाक पालन केनाइ हमर परम कर्त्तव्‍य छी।

संतोषी       बुच्‍ची अहाँ बुधि‍यार छी ने।
           (सोनी संतोषीक देह दबाए रहल अछि‍।)

साेची-       छोटकी माए, बड़ भुख लागल-ए, कनी खाइले दि‍अ।

संतोषी-            हमरा नै हएत। जाउ अपनेसँ लऽ लि‍अ गऽ।

सोनी-       एक दि‍न अहीं कहने छेलि‍ऐ, अपनेसँ खाइले कहि‍यो नै लइले। धि‍या-पुताकेँ घटि‍ जाइ छै। तँए हम अपनेसँ नै लेब।

संतोषी-      लि‍अ वा नै लि‍अ। हमरा बुते नै हएत देल। अपना देहमे करौआ लागल अछि‍।

सोनी-       जाइ छि‍ऐ बड़की माएकेँ कहैले।
(सोनी, लक्ष्‍मीकेँ कहैले अन्‍दर गेलीह एम्‍हर संतोषी और गबदि‍आ कऽ पड़ि‍ रहलीह। सोनी आ लक्ष्‍मीक प्रवेश।)
लक्ष्‍मी-       छोटकी, छोटकी, छोटकी।

सोनी-       अखने जगले छेलै। तुरन्‍ते देखही। गै माए सूतल लोक ने जगैए, जागल की जगतै।

लक्ष्‍मी-       (जोरसँ) छोटकी, छोटकी, छोटकीऽ ऽ ऽ ऽ।
           (संतोषी फुरफुरा कऽ उठै छथि‍।)

संतोषी-            की कहलि‍ऐ दीदी?

लक्ष्‍मी-       सोनीकेँ अहाँ कि‍अए कहलि‍ऐ, देहमे करौआ लागल अछि‍?

संतोषी-            हम से कहाँ कहलि‍ऐ। हम अपना दऽ कहलि‍ऐ जे हमरा देहमे करौआ लागल अछि‍ की। एतबेपर बुच्‍ची भागि‍ गेलीह।

सोनी-       अपन बेटाक माथपर हाथ रखि‍ कऽ कहबै?

संतोषी-            हम बजबे नै केलि‍ऐ। एतेक आगि‍ कि‍अए उठबै छी सोनी।

साेनी-       आगि‍ तँ अहाँ उठबै छी आ लगबै छी। हमरे माथपर हाथ रखि‍ कऽ बाजू तँ।

संतोषी-      हँ यै साँच बात कि‍एक ने बाजब। आउ, लग आउ।

लक्ष्‍मी-       बूझि‍ गेलौं अहाँ कत्ते साँच बजै छी। अनकर बेटा-बेटी उपरेमे अबै छै आ अपन बड़ कसेब कऽ छै। ि‍नर्लज्‍जी नहि‍तन। झूठ बजैत कोनो गत्तरमे लाजो नै होइ छन्‍हि‍।

संतोषी-      ि‍नर्लज्‍जी तँ अहाँ छी जे बेटीक पक्ष लऽ कऽ फेफि‍या कऽ उठै छी।

लक्ष्‍मी-       ि‍नर्लज्‍जी ि‍नर्लज्‍जी करब तँ अखैन झोंटा पकड़ि‍ कऽ पोटा ि‍नकालि‍ देब।

संतोषी-      कनी देखि‍यौ तँ झोंटा पकड़ि‍ कऽ।
(रामलालक प्रवेश)

रामलाल-     अहाँ सभ कतीले हल्‍ला-फसाद करै छी? चुपै जाउ। छोटकी, की बात छै?

संतोषी-      दुनू माइ-धीन हमरा कहैए, झोंटा पकड़ि‍ कऽ पोटा नि‍कालि‍ देब।

रामलाल-     बड़की, अहाँ से कि‍अए कहलि‍ऐ?

लक्ष्‍मी-       हँ हँ, हमरा सींग बढ़ि‍ गेलै तँए दुआरे। ओकरे पुछि‍ऐ तँ।

रामलाल-     की बात छै छोटकी?

संतोषी-      ओकरे सभकेँ पुछि‍यौ।

रामलाल-     की भेलै बुच्‍ची?

सोनी-       हमरा माथा दुखाइ छेलए। इसकूलो नै गेलौं। बासि‍ये मुँहेँ रही। छोटकी माएकेँ कहलि‍यनि‍ खाइले दि‍अ। तँ ओ कहलनि‍, अपनेसँ लऽ लि‍अ। देहमे करौआ लगल अछि‍। ई बात बड़की माएकेँ कहलि‍यनि‍ तँ ओ माएसँ लड़ैले तैयार छथि‍।

रामलाल-     हमरा तोरापर वि‍श्वास अछि‍ बुच्‍ची। तों फूसि‍ नै बाजि‍ सकै छेँ। हम बात बूझि‍ गेलौं। छोटकी, सोलहन्नी अहाँक गलती अछि‍। बड़कीसँ अहाँ लगती मानू। नै तँ एहेन घारवाली हमरा नै चाही। अपन जोगार देखू। जेहने हमर परि‍वारक सुबेवस्‍थाक चर्चा सौंसे गाम होइ छेलए तेहने परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठाकेँ माटि‍मे मि‍लबए चाहैत अछि‍। तुरन्‍त सोचि‍ कऽ बाजू, की चाहै छी?

संतोषी-      (कि‍छु सोचि‍ कऽ, बड़कीक पएर पकड़ि‍) हमरेसँ गलती भेलै। आब गलती कहि‍यो नै हेतै।

रामलाल-     बड़की, आइ माफ कऽ दि‍यनु। आइ दि‍नसँ गलती नै करतै। सदि‍खन मीलि‍ कऽ रहै जाइ जाउ।
जहाँ सुमति‍ वहाँ सम्पत्ति‍ नाना।
जहाँ कुमति‍ वहाँ वि‍पत्ति‍ नि‍धाना।

पटाक्षेप।



दृश्‍य- दू

(स्‍थान- लखनक घर। लखन दलानपर बैसल छथि‍ आ पारि‍वारि‍क स्‍थि‍ति‍क संबंधमे सोचि‍ रहल छथि‍।)

लखन-       की करी नै करी, कि‍छु ने फुराइत अछि‍। बेटी रामपरी सेहो ताड़ जकाँ बढ़ि‍ रहल अछि‍। आमदनी कम छै आ परि‍वारमे खर्चा बड़ छै।
           (मनोज आ संतोषक प्रवेश।)

मनोज-       पापा, बहुते छौंड़ा सभ इसकूल जाइ छै पढ़ैले। हमहूँ सभ जाएब। हमरो सभकेँ नाम लि‍खा दि‍अ ने सरकारी इसकूलमे।

लखन-       नाम लि‍खबैमे पाइ लगतै, कि‍ताब-कोंपीमे पाइ लगतै, टीशन पढ़ैमे पाइ लगतै। हमरा ओतेक सकरता नै अछि‍। हमरा बुते नै हेतौ। पहि‍ने पेटक चि‍न्‍ता कर।

संतोषी-      पापा, रामपरी आ कृष्‍णा जे पब्‍लि‍क इसकूल जाइ छै से? ओकरा सभकेँ पाइ नै लगै छै?

लखन-       से मम्‍मीसँ पुछही गऽ। पाइ कोनो हम दइ छि‍ऐ।

संतोषी-      मम्‍मीकेँ बजा कऽ एत्तऽ आनू। कनी अपनेसँ कहबनि‍।

लखन-       जो बजा आन।
           (संतोष शीघ्र मीनाकेँ बजा कऽ अनैत अछि‍।)

मीना-        की कहै छी?

लखन-       की कहब। मनोज-संतोष कहैए हमहूँ पढ़ब, से की करबै।

मीना-        कप्‍पार करबै, अंङोरा करबै, धधकलहा करबै।

लखन-       एना कअए बजै छी? बोलीमे कनि‍यो लसि‍ नै अछि‍। हरदम निशाँमे चूर रहै छी।

मीना-        बड़ फटर-फटर बजै छी। मुँह बन्न करू नै तँ बूझि‍ लि‍अ। जाउ अहाँ एत्तएसँ। एकरा सभकेँ हम जबाब दइ छि‍ऐ।
(लखनक प्रस्‍थान)
की कहलेँ मनोज?

मनोज-       मम्‍मी, हमरो सभकेँ इसकूलमे नाम लि‍खा दि‍अ बहुते छौड़ा सभ इसकूल जाइ छै।

मीना-        बड़ पढ़ुआ भऽ गेलेँ तो सभ? गाँड़ि‍मे गूँह नै माए गै हग्‍गब। बि‍ना ढौए के पढ़ाइ छै की खेनाइ होइ छै? पेट भरै छौ तँए फुराइ छौ। एत्तऽ सँ अक्खैन भाग। नै तँ बढ़नी देखै छीहीन। कमा कऽ लाऽ तँ खो वा पढ़। नै तँ घर नै टपि‍ सकै छेँ तों सभ।

मनोज-       मम्‍मी, हमरा सभकेँ कमाएल हेतै। जन मे के रखतै?

मीना-        नै कमाएल हेतौ तँ भीखे मँगि‍हेँ आ ओम्‍हरे खँहिहेँ।

संतोष-       अपना बेटा-बेटीकेँ पढ़ाबै ले होइए आ हमरा बेरमे की होइए?

मीना-        भगलेँ सरधुए सभ की?
           (बढ़नी लऽ कऽ मारैले दौगल। संतोष भागि‍ गेल। मनोज पकड़ा गेल। पढ़ुआकेँ सार अछि‍ भगलेँ एत्तए से कहि‍ कहि‍ मनोजकेँ मीना बढ़नीसँ झँटलक। अन्‍तमे हाथसँ छूटि‍ कऽ कनैत-कनैत भागि‍ गेल।)
पढ़ैए। फोकटेमे पढ़ाइ होइ छै।
           (हकमैत-हकमैत) ऊपरेमे अल्हुआ फड़ै छै।

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कुमार भास्कर
 लघुकथा
लछमिनीया
अनमन सासुसे सनके लछमिनीयाँ ! बूढियापुरैनियाँ सनके सबटा छिच्छा भाषा नवकनिए सऽ छै। साउस अजिया सबउस सब बड़ काया-कष्टसऽ धनवीत अरजने छै, आ ओहिू सऽ बेसी जे ओ सब ओकरा बचा संयोगि कऽ रखने छै। दै-दियादमके सब खेत-पथार विका गेल छै आ एकर बूढिया सब रौदियो अकालमे, शादीयो विवाहमे एकौ ओंठा जमीन बेचने नै छै। तेसरमे अपन सबटा गुण लुरि एकरा पढ़ा कऽ पास करा देने छै। तैं ईहो आइ एतेक कौजली चौतरी। ऐ बातके गुण ई अपन दुनू  पुतौहके पुस्तैनीके रुपमे दिअ चाहै छै, से पढ़लाहीलिखलाही सब अपने ढाठी चलि कऽ, एकरा बात पर काने-ध्यान नै दै छै।
जेहने रहै लछमिनीयाँ साउस, बातबात पर फकरा सुनबऽ बाली, तेहने ढाठीछिच्छा एकरो छै।  ओहिना बात-बात पर मुँह सऽ फकरा-फदका निकलि जाइ छै।
ओना लछमिनीयाँके घरबला परफेसर, बेटा कमैआ तैयो लछमिनीयाँके बड़ दुख। दुख खाय पियऽके, पहिरऽओढ़ऽके नइ, दुख काजराजके। जनकपुरमे रहए तऽ गामके आ गाममे रहए त जनकपुरके चिन्ता। इहे दुख रहै छै। आइ गामके सब आम होतै तोड़ि लेने, सब रवीराई होतै चरालेने, आ कहि जे साँचे किछ तोड़ि लेने, चरा लेने रहए त जतै सऽ देखेए ततैसऽ शुरु भऽ जाए होलियाबऽके— “कहै छलियै मरदबा के हम आइये गाम जाइ छी तऽ रोकि देलक, नइ हमरा मिटिङ्गमे जाए पड़तै कनि धोतीकुरता धो दिअ। झुठोके मिटिङ्गमाटिङ्गमे जाइत रहैए। एको रुपैया त दै नै हइ आ ओहि मिटिङ्गला दूदू दिन अगते सँ अपनो लिखापढ़ी करैत, फोनफान करैत, बेहाल रहैय आ हमरो धोतीकुरता त इ खोजी दे त ऊ निकालि क ध दे करैतकरैत पेड़ने रहैय। हम काल्हिए आएल रहिती त अते राइछिइ होइत, जेहे खैति सेहो त कयामनुवा जुड़ैति से नइ। एगो छरो जे हइ ओकरा कहैत रहै छियै से रे बौआ जो कनी गाछीविरछी, रवीराइ सव देखलीहे आ तुरन्ते अपन चलि अइहे से ओकरा गाम अबैत तेना बाघ गिरैत रहै हइ कि कथी से नै जाइन।
लछमिनीयाँके घरबला परफेसर हइ तहुके ओकरा बड़ दुख। ओकरा हिसाबे जते काले मिटिङ्ग करतै ओते कालमे त खेत जोता लेतै किछ वाग क देतै जाहिसऽ किछ उवजो-बारी होतै, ओकरे बेचिकऽ ढौओ रुपैया होतै।
अहिना सवदिन जकाँ कुहि होइत भनभनाइत जनकपुर आएल। घर लग पहुचते घरक आगूपाछुमे रहल गाछ, लत्ती सभके ठेकानैत, बिचारैत आएत आ  कहूँ कोइ किछु तोड़ने त नइ हए। आ कहि जे कोनो किछु घटल रहल तऽ घरके दुहाइरे सँ बाजऽ के शुरु करऽ लागल देखी कहि क गेल छलियै एकरा सबके अपन अगोरा पछोड़ा तकै रहिये। तैयो अतेक लोक घरमे हइ आ एगो लक्ष्मिनिया नै हइ त सब जरमजरी सब चरा लेलक ! सबहे तोड़ि लेलकै। सबटा हमर कएलधएल नाश भऽ गेल।
अते सुनिते बेटापुतहू सब हाँइहाँइ कऽ दौगल आब की भेलै? जेठकी पुतहू कहैहम तकिते छीऐ। कहाँ,  केउ नै किछुमे भिड़लैए।
—“नै कोइजे भिरलै त ओइ लुहरीमे एगो कम केना हइ।लक्ष्मिनिया बाजल गाम जाए बेरमे हम देख कऽ गेल छली  तऽ तिनटा छलै आ अखनि दुइएटा हइ”?
बूढिया आरो नै खिसिया जाए तै डरे छोटकी पुतहू बाजल— ”ए उ त हम ओकरा सरियाबऽ गेलिऐ तऽ एगो डाढ़ि टुटि गेलै ।
तब जाऽ कऽ लछमिनीयाँ किछ ठण्ढाएल। भन भेलै जे तों अपने सरियाबऽ गेल छला, हे रनियाँ!
नाँ गुणे लछमिनियाँ अतेक बेहाल बेटेपुतहु ला रहए। किछ लाबए त बिछलबिछल घरबला, बेटापुतहू लागि राखए।  अपना कनहेकोतरे, बसीआएल, बिगरलहे खाँ लिए।
बेटाके नोकरी दोसर सहरमे भेलै त चारिपाँच दिन अगतेसँ सरसमानके मोटा, बोरा ओरिआबऽ लागल। नूनहरदी, दालिचाउर, बर्तनबासन, ओछानबिछान माने कते कहू घर परिवारमे जे जतेक चिउज-वित लगै छै तेकरा सबके ओरिआयोन बुढिआ फकरा पर फकरा पढैत कएने गेल।
एल लएली बेल लएली, छ घैला तेल लएली........ । नुन तेल सँ लऽ कऽ कपड़ालत्ता तक ओरिआओरिआ धरऽ लागल जे कहि किछ बेटापुतहूके छूटि नए जाए। बेटापुतहू कहए कि जे चिज-वित छुटि जएतै से ओतै किन लेवै। लछमिनिया अनमनएले ले त धर तोरा ओतै सब चिज भेटतौ तकहलक।
लछमिनीयाँके सैतल किछ कहि छुटे, मात्रे एगो घर दुहारि पोछ लागि पुरानधुरान कपड़ा कतऽ स लाउँ। बेटा सोचलक आब घरेसऽ कोइ अएतै त ओकरे स मङा लेव जे माइके कहि दै छियै। पुतहू कहे नइ माइ कहि पित्ता जएतै। बेटा कहए एह नइ पित्तैतै। बेटा लछमिनीयाँके फोन कएलक माइ कानो पुरानधुरान कपड़ा घर दुहारी पोछ ला चाहि केउ अएतै त पठा दिहे। लछमिनीयाँ बाजके शुरु कएलक उँ तहिया कहलियौ ठकानीठेकानी कऽ समान सव राखऽ त नइ आखिर छुटिए गेलौ। जेहो फाटलपुरान नुआ छलै जे हम जायनगरमे किनने रहियै सेहोके तऽ दोकानबला ठकिए लेने रहए से बला नुआके त काल्हिए ओइ बर्तनवालीसँ बदलि लेलिऐ। तेहन चुट रहै उहो बर्तनवालीसे ओतेकटाके नँ सायमे किनने रहि तेकरा एगो कटोरा मात्रे देलक उहो कते झगड़ि तब जाऽ कऽ देलक। तों पहिने कहिते। अच्छा थमः अइ छराके गंजी हइ जे उँ नै पेन्है हइ जेकरा कहै बड़ पुरान भऽ गेलै से हम पठा देवौ। आब राख फोनके बिल वेस उठतौ।
एम्हर लछमिनीयााँ के बेटा जे आधा घंटा सँ पुरान कपड़ा ला फोन कएने छल से कहलक अच्छा होतै”, ओकरो आब कोनो दोसर विषयपर किछु पुछके मन नै भेल आ फोन राखि देलक। आ अपन कनिया जे तखनसऽ लछमिनिया माइ कि कहलकै से बुझऽ लेल उत्सुक छल। तकरा दिसी घुमि कऽ अपन जेबी मेके रुमाल ओकरा दऽ कऽ कहलक होउ ताबे अहि लऽ कऽ काम चलाउ

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१.ओम प्रकाश-भोथ हथियार/विहनि कथा- बीस टाका २.शत्रुधन प्रसाद साह- मैथिली महिला आ जिद्दी ३.कैलास दास-महिलाक प्रेरक कथा संग्रह जिद्दी
ओम प्रकाश
 
भोथ हथियार
श्री सुरेन्द्र नाथक कहल मैथिली गजलक संग्रह अछि "गजल हमर हथियार थिक"। ऐ पोथी मे हुनकर अडसठि टा गजल प्रकाशित भेल अछि। ई संग्रह २००८ मे आएल अछि जकर आमुख श्री अजीत आजाद जी लिखने छथि। ऐ पोथी केँ आदि सँ अन्त धरि पढबाक बाद हमर यैह अभिमत अछि जे गजलक व्याकरणक दृष्टिसँ ऐ संग्रह मे अनेको कमी अछि, जाहि सँ बचल जा सकैत छल।

पृष्ठ संख्या १३, ६७ आ ७० परहक गजल मे चारिये टा शेर छै, जखन की कोनो गजल मे कम सँ कम पाँच टा शेर हेबाक चाही। संग्रहक कोनो गजल बहर मे नै अछि। हमर ई स्पष्ट मनतब अछि जे गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे बहरक उल्लेख करबाक चाही आ जँ आजाद गजल कहने छथि तँ इहो स्पष्ट रूपेँ लिखबाक चाही।

ऐ पोथी मे काफियाक गलती भरमार अछि। कतौ कतौ तँ ई बूझना जाइ छै जे गजलकार बिना काफिया आ रदीफक मतलब बूझने गजल कहबा लेल बैस गेल छथि। एकर उदाहरण पृष्ठ १५ परहक गजल पढबा पर भेंट जाइ छै। ई तँ हम एकटा उदाहरण कहि रहल छी। आरो गजल ऐ दोख सँ प्रभावित छै, जतय काफियाक नियमक धज्जी उडा देल गेल अछि। जेना पृष्ठ १८, १९, २०, २१, २७, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३९, ४०, ४१, ४३, ४४, ४५, ४६, ४७, ५२, ५३, ५६, ५७, ५८, ६६, ६७, ६८,७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७७, ७९ आदिमे काफिया तकलासँ नै भेंटैत अछि आ ऐ खोजमे मोन अकच्छ भऽ जाइत छै। ओना आनो पृष्ठ काफिया दोखसँ ग्रसित अछि, मुदा ई उदाहरण हम ओइ पृष्ठ सभक देने छी, जतय काफियाक झलकियो तक नै भेंटै छै। मैथिली गजल आइ जाहि सोपान पर चढि चुकल अछि, ओइ हिसाबेँ ऐ तरहक रचना गजलक नामसँ स्वीकृत होइ बला नै अछि। कियाक तँ बिना दुरूस्त काफियाक गजल नै भऽ सकैत अछि। ई संग्रह "अनचिन्हार आखर" युगक शुरूआत भेलाक बाद लिखल गेल अछि, तैँ हमरा ई आस छल जे गजलकार कमसँ कम काफिया आ रदीफक नियमक पालन ठीकसँ केने हेताह, कियाक तँ "अनचिन्हार आखर" जुग मे आब गजलक व्याकरणक सभ नियम चिन्हार भऽ चुकल अछि। मुदा गजलकार काफिया आ रदीफक नियम पालन करबामे पूरा असफल रहलथि। ओना ऐ संग्रहक काफिया दोखकेँ पोथीक आमुख लेखक श्री अजीत आजाद पोथीक आमुखमे दाबल आवाजमे स्वीकार करैत कहै छथि जे कतेको ठाम काफिया "गडबडायल सन" बुझना जाइत अछि। ओना ई अलग गप थिक जे काफिया "गडबडायल सन" नै अपितु पूरा पूरी गडबडायल अछि। फेर श्री आजाद ऐ गलतीकेँ झाँपबा लेल इहो कहैत छथि जे "रचनाकारकेँ अपन सीमासँ बाहर आबि शब्द-व्यापार करबाक चाही"। मुदा गजलक अपन व्याकरण छै, जकर पालन केने बिना रचना गजल नै भऽ कऽ पद्य मात्र रहि जाइत छै। गजल आ कविताक बीचक अंतर जे अंतर छै, से ऐ तरहक तर्कसँ समाप्त नै भऽ जाइ छै। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक अनुपालन नै हेबाक कारणेँ श्री सुरेन्द्र नाथक ई संग्रह गजल संग्रह नै भऽ कऽ एकटा पद्यक संग्रह भऽ कऽ रहि गेल अछि।

संवेदनाक स्तर पर किछु रचना नीक अछि आ जँ गजलकार गजलक व्याकरण पर धेआन देने रहतथिन्ह, तँ नीक गजल लिखि सकैत छलाह। गजलकारक ई पहिलुक मैथिली गजल संग्रह बहुत आस तँ नै जगबैत अछि, मुदा हुनकर संवेदनात्मक प्रतिभा देखैत हम ई आस जरूर करै छी जे ओ गजलक व्याकरणक पालन करैत आगू नीक गजल कहताह आ "गजल हमर हथियार थिक" केँ चरितार्थ करताह। गजल तँ हथियार होइते अछि, मुदा बिनु काफिया, रदीफ आ बहरक नियमक पालन केने रचना गजल नै होइत अछि आ भोथ हथियार भऽ जाइत अछि। पद्यक हथियार पर काफिया आ बहरक सान चढल हुनकर नब गजल-हथियारक प्रतीक्षा रहत।
विहनि कथा
बीस टाका
हम भोरे भोर उठि कऽ अपन बगीचा मे फूलक गाछ सब केँ पटबै छलहुँ। करीब सात-सवा सात बाजैत हेतै। तावत सडक दिस सँ हो-हल्ला सुनायल। हमर निवास मुख्य सडकक काते मे अछि, तैं सडक पर होय बला सब घटना आ दुर्घटना देखाइत आ सुनाइत रहैए। हम हल्ला सुनि सडक दिस ताकलहुँ। देखै छी जे हमर फाटकक ठीक सामने मे एकटा मिनी ट्रक लागल अछि आ ओकरा आगाँ एकटा सिपाही मोटरसाईकिल लगा कऽ ठाढ अछि। ओ सिपाही ट्रकक ड्राईवर केँ गरियौने जाईत छल आ ट्रक जब्त करबाक धमकी सेहो दऽ रहल छल। सिपाही कहलक- "नो इंट्रीक टाईम भऽ गेल छै आ तों सब ट्रक शहर मे ढुका देलही। आब चल थाना, जब्ती हेतौ ट्रकक। तोरा सबकेँ बूझल नै छौ जे सात बजेक बाद नो इंट्री भऽ जाइ छै।" ट्रक पर पाछाँ मे एकटा महीस छल आ ओइ महीसक संग एक गोटे ठाढ छल जे कने कडगर भऽ बाजल- "यौ सिपाही जी, एखनी सात बाजि कऽ पाँचे मिनट भेल छै आ हम सब शहर मे जखन ढुकल छलियै तखनी पौने साते बाजै छलै। आब ई नो इंट्री कोना भऽ गेलै। शहर मे ढुकबा काल ओतुक्का सिपाही जी केँ नजराना सेहो देने छियै, अहाँ मोबाईल सँ फोन कऽ कऽ बूझि लियौ।" आब तँ सिपाही जे बमकल से नै पूछू। सोझे ड्राईवर लग गेल आ बाजल- "पाछाँ मे ओकील चढेने छी की? सार हमरा कानून झाडैए। ओकरा तँ जे हम करबै से केलाक बादे बूझतै ओ .................., तू चाभी ला, ट्रक जब्त हेतौ। सात बाजि कऽ दस मिनट भऽ गेल छै आ नो इंट्री मे ट्रक ढुका कऽ कानून छाँटै जाइए।" ड्राईवर ऐ लाइनक पुरान खेलाड छल। ओ हाथ जोडैत कहलकै- "सरकार, कथी लए तमसाई छी। ओ मूर्ख छै। अहाँ हमरा सँ गप करू ने। हे ई लियऽ दस टाका चाह पानक खर्चा आ हमरा जाई दियऽ बड्ड दूर जेबाक छै।" सिपाही कने नरम होईत ओकर हाथक टाका दिस लुब्धता सँ ताकैत कहलक- "हे रौ तू होशियार बूझाईत छैं, मुदा दस टाका सँ काज नै चलतौ। बड्ड महगी छै, बीस टाका निकाल।" ड्राईवर बाजल- "पछिलो चौक पर पाई लेलखिन्ह सिपाही जी आ अगिलो चौक पर लेबे करथिन्ह। एकटा महीसक पाछाँ कतेक जगह काटब अहाँ सब। सरकार पएर पकडै छी, अहाँ एहि सँ काज चला लियऽ।" सिपाही गरमाईत कहलक- "चल थाना। टाईम खराप नै कर। बोहनी बेर मे भोरे भोर सबटा नाश नै कर। तोहर दिमाग ठेकाना पर नै छौ।" आब ओ ड्राईवर बूझि गेल रहै जे ई सिपाही मानै बला नै छै। ओ तुरत बीस टाका निकाललक आ सिपाही दिस बढेलक। सिपाही चारू कात देखैत मुट्ठी मे बीस टाका दाबलक आ चेतावनि दएत कहलक- "जो भाग जल्दी, तोहर नसीब ठीक छौ। बडा बाबूक नजरि मे जँ आबि गेलही बाउ तँ ओ बिनु एक सय केँ नै छोडथुन्ह। हुनकर मौर्निंग वाकक समय भऽ गेल छैन्ह। आबिते हेथुन्ह केम्हरो सँ।" ई कहैत ओ सिपाही अपन मोटरसाईकिल इस्टार्ट कएलक आ विदा भेल आ ट्रक सेहो दस मिनटक घेंघाउज आ बीस टाकाक दक्षिणाक बाद गन्तव्य दिस चलि देलक।



शत्रुधन प्रसाद साह
मैथिली महिला आ जिद्दी

मैथिली भाषामे पुस्तक प्रकाशनक अभाब रहल समयमे युवा पत्रकार सुजीत कुमार झा मैथिली साहित्यक क्षेत्रमे एकटा नव आयामक रुपमे स्थापित भऽ रहल छथि ।
पत्रकारिता सन व्यस्त पेशा सँ जुड़ल अवस्थामे सेहो साहित्यक क्षेत्रमे सेहो डेग राखव अपने आपमे कम भारी बात नहि रहल अछि ।
ओतबे नहि तीन
तीन महिनामे पुस्तक प्रकाशन करवाक उद्घोष करव आ सफलता सेहो प्राप्त करब आजीगुजी बात नहि अछि ।
पहिल कथा संग्रह
चिडैक माध्यम सँ मैथिली साहित्यमे प्रवेश कएने सुजीतक दोसर कृति रिपोर्टर डायरीआ एकर किछुए दिनमे प्रकाशित भेल कथा संग्रह जिद्दीसेहो ओतबे लोकप्रिय रहल अछि ।
जिद्दीक पहिल कथा
फुल फुलाइए कऽ रहलकथामे मैथिली नारी संग भऽ रहल व्यवहारकँे प्रष्ट रुपमे देखाओल गेल अछि ।
एहि कथामे महिला संग हुनक पति झुठक नाटक कऽ विवाह करैत छथि मुदा पतिक वास्तविक अवस्था आ हैसियत देखलाक बाद कथाकँे नायिका अन्तरद्वन्द्वमे परैत अछि मुदा अन्तमे गम्भीर भऽ सोँचलाक बाद महत्वपुर्ण निर्णय लऽ हुनक पतिद्वारा देखल गेल सपनाकँे पुरा करय ओ सफल भेल छथि । ई कथा पढलाक बाद हमरा काली दास स्मरण आबि जाइत छथि । हुनको जीवनकेँ महत्वपूर्ण बनाबएमे हुनक पत्नीक महत्वपूर्ण भूमिका रहल अछि । मिथिलाञ्चलक कतेको व्यक्तिकेँ काली दास वनाबएमे एखनो हुनकर कनिया सहायक भऽ रहल अछि ।
तहिना
नव व्यापारकथामे रोगी पात्र जितेन्द्र प्रसाद आ आधुनिकताक फैशनमे डुबल कनिया बीचक अवस्थाकँे स्पष्ट चित्रण अछि । एहि कथाक माध्यम सँ परिवारिक कलह आ कथित आधुनिकता परिवारकेँ तहसनहस कऽ सकैत अछि तएँ परिवारमे मेलमिलापक वाताबरण होबए पर जोड देल गेल अछि ।
तेसर कथा
खाली घरपरिवारिक जीवनमे होबयबला उतार चढाब आ उथल पुथलकेँ देखाओल गेल अछि ।
खाली घर कथामे परिवारिक जीवनक महत्व नीक जेकाँ कथाकार देखाबए सफल भेल छथि । जोशमे होस नहि गुमाबक चाही एहि कथाक संदेश अछि ।
लाल कितावकथामे समाजक पुरान सोच आ भुतप्रेत प्रतिकँे विश्वासकँे सेहो देखौने छथि । मुदा सुजीतक कहबाक अन्दाज गजब अछि ।
जिद्दी कथामे एकटा महिलाक महत्वकाँक्षा आ ओहि सँ उत्पन्न होबयबला परिस्थितिक देखौने अछि । तएँ ओहिठाम हुनक माए अपन ईच्छाकेँ पुरा करय लेल बेटीकेँ आगा बढबैत छथि । अभिभावककेँ धियापुतापर नियन्त्रण आवश्यक अछि ई संदेश करिव करिव एहि कथापर लागु होइत अछि । मुदा कथाकार ई स्थिति महिलेपर किए चुनलथि से नहि बुझिसकलहुँ । ओ महिलाकेँ बेटाकेँ सेहो एहि घटनामे सहभागि करा सकैत छलथि ।
निष्ठा की देखाबाकथा समाजमे आधुनिकताक नाममे पसरल विकृतिकँे नीक जेकाँ प्रस्तुत करय सफल भेल छथि ।
एहि ठाम महिलाक अपन पतिक मृत्यु सँ बेसी पतिक मृत्युक बाद कोना सुरक्षित आ नीक जेकाँ रहब ताही बातक चिन्ता रहैत छन्हि ।
तहिना
केहन सजायकथा सेहो बहुत नीक अछि । एहि कथामे समाजमे रहल अपराधी सभ उपर होबए बला सजाय आ देशक कानुनी व्यवस्थाके देखावय खोजने अछि । तहिना मेनकाआ अन्य कथासभ सेहो एक पर एक रहल अछि । कोनो कथा आलोचना करय जेहन नहि अछि ।
सुजीतक कथा संग्रहमे रहल भाषा शैली
, कथाक बनाबट बहुत नीक अछि आ आम मैथिली प्रेमी सभक लेल बहुत बेसी लोकप्रिय कथा संग्रह बनए से आशा करैत छी । ओना हमरा विश्वास तऽ अछिए । मैथिली भाषाक कितावक अभाब रहल समयमे आबि रहल सुजीतक कथा संग्रह सभ अहिना लोकप्रिय बनैत रहत से कामना अछि । एहि सँ मैथिली साहित्यप्रति युवा सभ प्रेरित तऽ हेबे करत संगहि मैथिली पाठककेँ संख्यामे सेहो बढोत्तरी हएत । सुजीतक चारिम कृतिक प्रतिक्षामे हमरा तऽ रहबे करत ।
लेखक खोज पत्रकारिता केन्द्र काठमाण्डू सँ आवद्ध छथि ।
कैलास दास
पत्रकार, जनकपुरधाम
महिलाक प्रेरक कथा संग्रह जिद्दी



समाजके परिपक्व, विकृति आ विसंगति रहित वातारणक निर्माणमे साहित्यके महत्वपूर्ण योगदान होइत अछि । हमरा एतेक भूमिका लिखएके पाछु मैथिली भाषाक युवा साहित्यकार एवं पत्रकार सुजीत कुमार झा तेसर कृति कथा संग्रह जिद्दीपढ़लाक बाद लागल । हुनकाद्वारा लिखित कथा संग्रह जिद्दीमे १२ टा कथा राखल गेल अछि । ओना कथा लिखबाक काज गहन अध्ययन चिन्तन आ लम्बा समयक साधना बिना सम्भव नहि होइत अछि । मुदा कथा लिखैतकाल लेखककेँ लेखन समय सन्दर्भ, सामाजिक वातावरण आदी इत्यादिसभकेँ ध्यान देबए पड़ैत अछि । ताहिमे युवा पत्रकार तथा कथाकार सुजीतकुमार झा लगभग सफल देखल गेल छथि । ओ एकटा कथाकार मात्र नहि छथि, विभिन्न सञ्चारमाध्यममे काज कऽ कऽ अनुभव प्राप्त करवाक गन्ध एहि कथा संग्रहमे देखल गेल अछि ।
कथा संग्रह जिद्दीमनोवैज्ञानिकढ़ङ्ग सँ सत्यक खोजी करैत अछि । प्रत्येक कथाकेँ एहिना बढाओल गेल अछि जे पाठक पढैतपढैत आब आगा कि हएत कहैत आश्चर्यमे पड़ि जाइत अछि आ कथाक अन्त होइत अछि । डा. राजेन्द्र विमलक शब्दमे सुजीतक कथाक घटना परिघटना ज्यामितिय चित्र जेकाँ एक दोसरकेँ कटैत, ओझरबैत सोझरबैत आगा बढैत रहैत अछि । कथाक तीर सनसनाइत जाइत अछि आ अर्जूनक लक्ष्य भेद जेकाँ सुगाक आँखिमे मात्र भेदन करैत अछि ।
फूल फुलाइए कऽ रहलकथा उच्च कुलशील, सुशिक्षिता नायिका पिंकी अन्तरद्वन्दमे फसल रहैत अछि ।
पिंकी एमए पास कएने अछि । बेटी कतबो पढल लिखल किए नहि होइक दोसरकेँ घरमे जाए पड़ैत छैक वएह बुझि बेटी बेसी पढाबएकेँ आवश्यकता ई समाज नहि बुझैत अछि ।
मुदा पिंकीक मायबाबु बेटा बेटी समान होइत अछि कहि एहि प्रथाकेँ तोडवाक प्रयास कऽ अपन बेटी पिंकीकेँ एमए धरि पढबैत अछि । जखन पिंकीक मायबाबु विवाहक लेल समतुल्य बरक खोजी करैत छथि तऽ लडका पक्षक अभिभावकसभ पिंकीक पढाइक महत्व नहि बुझि दहेज मांगैत अछि ।
पिंकीक मायबाबु मांग अनुसार दहेज नहि दऽ सकलापर पिंकीक विवाहक उमेर वितैत जाइत अछि । एक दिन पिंकीक बाबु रेल यात्रा कएने रहथि । ओहि क्रममे स्वजाति युवा सँ भेटघाट होइत अछि आ ओ लडका अपने सहायक स्टेशन मास्टर रहल परिचय दैत अछि । पिंकीक माय बाबु पिंकीक सम्बन्धक चर्चा ओ लडका सँग करैत अछि आ सहायक स्टेशन मास्टर रहल लडका ओ कथा स्वीकार करैत अछि ।
इम्हर पिंकी सेहो सहायक स्टेशन मास्टर सुनिकऽ अपने भाग्यमानी छी समझि हर्षित रहैत अछि आ विवाह सेहो होइत अछि । किछु महिनामे पिंकीकेँ सभ यथार्थ जानकारी भऽ जाइत अछि । जे लडका हुनका सँ सहायक स्टेशन मास्टर कहि कऽ विवाह कएने रहैत अछि अपन सम्पूर्ण समर्पण कएने रहैत अछि ओ लडका स्टेशन मास्टर नहि एकटा साधारण पैटमैन रहैत अछि । सुनलाक बाद पिंकी किछु समयक लेल क्षतविक्षत भऽ पागल जेकाँ करय लगैत अछि । ओकरा आँखि सँ निन्न गाएब भऽ जाइत अछि आ रात भरि सोचिते रहि जाइत अछि । पिंकी अपन मोनमे ठानि लैत अछि जे धोखेबाज लडका संग नहि रहब ? व्याकुल भऽ जाइत अछि । रातभरि ओ नहि सुतैत अछि ।
फेर भोर होइते सोचैत अछि आब हम कि करु ? सम्बन्ध विच्छेद कएलाक बाद कतए जाउ ? घरक लोकसभ कि कहत ? एहिमे मायबाबुक कि दोष ? धीरेधीरे हिम्मत जुटा संकल्प लैत अछि केहनो भेलाक बादो अपन श्रीमानकेँ स्टेशन मास्टर बनाए कऽ छोडब । हुनक श्रीमान् एसएलसी धरि मात्र पढल रहैत अछि ।
हुनका क्याम्पसमे नाम एडमिशन करा अपनो एकटा बोर्डिङ्ग स्कुलमे नोकरी करय लगैत छथि । सात वर्षमे ओ श्रीमानकेँ एमए पास करबैत अछि तकरबाद हुनका स्टेशन मास्टरमे नियुक्त होइत अछि । सात वर्षमे हुनकासभकेँ एकटा बेटा सेहो होइत अछि । ई कथा पढलाक बाद काली दासक घटना स्मरण अबैत अछि । काली दासक सेहो प्रेरणाक स्रोत कनिए छल ।एहि कथामे सेहो करीबकरीब एहने संदेश रहल अछि ।
नयाँ व्यापारकथामे रोगग्रस्त नायक जितेन्द्र प्रसाद आ महत्वकाँक्षी हुनक श्रीमती बीचक अवस्थाकेँ चित्रण कएल गेल अछि । अतिमहत्वाकाँक्षाक कारण लोक कतए चलि जाइत अछि से एहि कथामे देखाओल गेल अछि । तहिना तेसर कथा खाली घरमे परिवारिक जीवनमे होबएबला उथलपुथलकेँ बढिया सँ चित्रण कएल गेल अछि । संगहि एकर निष्कर्ष परिवार संस्थाकेँ बढाओल गेल अछि । एहन कथा आर्दशमे सेहो अछि ।
विवाह संस्थाकेँ तोडला पर अन्ततः पछताए पडैत अछि । दुनू कथाक निष्कर्ष रहल अछि ।लाल किताबकथाक माध्यम सँ भुतप्रेतक बातकेँ देखाओल गेल अछि । विज्ञान कतए सँ कतए पहुँच गेलाक बादो भूतप्रेतक कथासभ आबि रहल अछि । जिद्दीकथा एकटा महिलाक महत्वकांक्षा आ ओतए सँ उत्पन्न परिस्थितिकेँ देखाओल गेल अछि । अपने नहि कऽ सकल काज बेटीक माध्यम सँ कएल जा रहल अछि । एहि कारण माय बेटीकेँ हरेक इच्छा पुरा करैत अछि । ई हरेक इच्छा बेटी व्याभिचारिणी आ दुव्र्यसनी भऽ जाइत अछि ।
निष्ठा की देखावाकथा आधुनिकताक नाममे देखल गेल बिकृति दिस संकेत कएने अछि । एक गोटे महिलाकेँ पति सँ बेसी पतिक मृत्युक बाद अपने कोना सुरक्षित रहब तकर चिन्ता रहैत अछि । वर्तमान समयमे समाज कतए चलि गेल आ ओकर नहि नीक अवस्थाकँे चित्रण कएल गेल अछि । केहन सजायकथा संग्रहक सभ सँ बढिया आ कमजोर दुनू अछि । जे कथ्य एहिमे उठाओल गेल अछि ओ गजबकँे अछि । मुदा एकर अन्तिम निष्कर्षकेँ कथाकार सुजीत सुकान्त बनेबाक प्रयासमे आगिकेँ ठण्डा कऽ देने छथि ।
मेनकाजादुकथा सेहो बढिया अछि । समग्रमे कहल जाए तऽ सुजीत कुमार झाक कथाक विषय चयन, बनावट तथा भाषा शैली बढिया अछि । हुनक पहिल कथा संग्रह चिडै
Þ सँ शुरु भेल यात्रा उडान भड़ि रहल संकेत दऽ रहल अछि । मुदा साहित्य साधनाक विषय अछि । जतेक साधना कएल जाए फल ओतक बढिया प्राप्त होइत अछि । तएँ साधनाकेँ निरन्तरता देबए पड़तन्हि ।


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
हम पुछैत छी: गुणनाथ झासँ चन्दन कुमार झाक गपशप
चन्दन कुमार झा: अपनेक जुड़ाव साहित्यक संग कोना भेल ?

गुणनाथ झा : साहित्यसँ जुड़ाव तऽ छात्र-जीवने सँ छल । हमर पिताजी पं॰घनानाथ झा सेहो साहित्यकार छलाह । हुनकर तीनटा कृति प्रकाशित सेहो भेल छलन्हि । हुनकर लिखल "भक्त गोविन्ददास" आ' "धरु गोविन्दक पएर" ग्रन्थालय सँ प्रकाशित भेल छलन्हि । ई दुनू पोथी गोविन्ददासक जीवनी छलैक । एकर अलावे "सहोदर वृहत गल्प" सेहो प्रकाशित भेल छलन्हि । हुनकर लिखल "चामुण्डा" आ' "सैव्या हरिश्चन्द्र" एखनो अप्रकाशित अछि मुदा पाण्डुलीपि एखनो उपलब्ध भऽ सकैत छैक । ई पोथी सभ आब हमरो ल'ग उपलब्ध नहि अछि । भऽ सकैत छैक जे दरभंगाक पुस्ताकलयमे कतहु होइ वा पं.चन्द्रनाथ मिश्र"अमर"जी ल'ग सेहो भऽ सकैत छन्हि । ई पोथीसभ जखन प्रकाशित भेलैक तखन हम स्नातकमे पढ़ैत रही आ' हमहीँ एकर प्रूफ देखने रही । ओहि समयमे साहित्य पढ़बाक रुचि तऽ रहए मुदा साहित्य-लेखन हम कोलकाता एलाक बाद प्रारंभ कएलहुँ ।


चन्दन कुमार झा: अहाँ कोलकाता कहिया ऐलहुँ आ' एतय मैथिली साहित्य आ'रंगमंच सँ कोना जुड़लहुँ ?

गुणनाथ झा : हम दिसम्बर १९६३ ईस्वीमे कलकत्ता आयल छलहुँ । तारीख हेतैक २३ वा २४ दिसम्बर । ओहि समयमे हम एम.ए. द्वितीय बरखक छात्र रही आ' एतय एबाक मुख्य-प्रयोजन छल आगाँक पढ़ाइ करब । जीवनमे पहिल बेर कोनो महानगर देखलियैक । कलकत्ता प्रथम दृष्टिए बड़ नीक लागल । ऐठाम हमर प्रथम ठेकान वा बासा छल भवानीपुर । जतए स्व. जयदेव लाभक ठेक रहन्हि । हम हुनके लग रही । ओतए हम मात्र तीन-चारि दिन रहलहुँ आ' एहि क्रममे स्व.श्रीकांत मण्डल भेँट भेल रहथि आ फेर ओ हमर परममित्र भऽ गेलाह । फेर किछु मास हुनके संग बीतल आ कालक्रममे कतेको बासा बदलल तकर आब ठेकानो नहि अछि ।ओही समयमे श्रीकांतजी सँ जे गप्प-सप भेल रहए तकर निचोर जँ कही तऽ यएह छल जे मैथिलीमे आधुनिक नाटकक परम अभाव छलैक जखन कि बङलामे सब प्रकारक नाटक लिखल गेल आ' मंचित होइत छलैक । श्री प्रवीर मुखर्जीक नाट्यदल"राजा-साजा" सँ श्रीकांत जी जुड़ल छलाह । प्रवीरबाबू स्वयं नाटककार, अभिनेता आ निर्देशक छलाह । ओ मैथिली नाटक सभक निर्देशन सेहो करैत छलाह । हमर "पाथेय"के सेहो ओ निर्देशन कएने छलाह आ एकर उल्लेख यादवपुर विश्वविद्यालय सँ प्रकाशित नाट्य-संकलनमे सेहो अछि । प्रवीरदाके नाटकक नीक परख रहन्हि । एहि तरहेँ हुनका सभक गोष्ठीमे श्रीकांतजीक संगे अबरजात भऽ गेल आ कलकत्ता अयलाक बाद शीघ्रे हम मैथिली नाट्य गोष्ठी " मिथिला कला केन्द्र" सँ जुड़ि गेलहुँ । बादमे एकर मंत्री सेहो भेलहुँ ।मुदा एहिक्रममे परमश्रद्धेय प्रबोधबाबूक अथक प्रयासक बादो हमर अपूर्ण पठन-पाठन चिरदिनेक लेल अपूर्ण रहि गले आ एलआइसीमे कार्यरत भऽ गेलहुँ ।


चन्दन कुमार झा: अहाँ नाट्य-लेखन दिश कोना आकर्षित भेलहुँ ?

गुणनाथ झा : कलकत्ता अएलाक बाद एहिठामक मैथिलजनक स्थिति देख मोनमे जेना उड़ि-बीड़ी लागि गेल रहए । दरभंगा धरि हमरा ई ज्ञान नहि रहए जे हमर समाजक लोक एतेक निराखर,एतेक अकिञ्चन आ परदेशोमे एतेक अवहेलित सन जिनगी जिबैत छथि । एहिठामक मैथिल-मैथिलीक ई दृश्य हमर निन्न जेना तोड़ि देलक । मोनमे बेर-बेर हुअए जे स्वजनक एहि दुर्दशाक प्रतिकार हेतु किछु करी । एहन संयोग भेलैक जे एकदिन रासबिहारी मोड़ पर फेर वएह बात उठलै जे कहियो श्रीकांत जी कहने छलाह । स्व.सुखदेव ठाकुर चर्च कए देलखिन्ह जे मैथिली भाषामे आधुनिक नाटकक लेखन नहि भऽ सकैछ । ओहिदिन ई बात जेना हमरा मोनमे गड़िगेल । मोनहि मोन प्रण लेलहुँ जे हम लिखब मैथिलीक आधुनिक विषय पर नाटक । विषय हमरा ल'ग रहबे करए । आ' से एक्कहि मासक अवधिमे हम मधुयामिनी आ पाथेय लिखलहुँ ।ओना एहिसँ पूर्व हम कनिञा-पुतरा लिखने रही मुदा ओकरा हम अपनहुँ आधुनिक नाटकक श्रेणीमे नहि गनैत छी । हमर आधुनिक नाटक-लेखन यात्रा "मधुयामिनी"सँ प्रारंभ भेल । फेर हम कनिञा-पुतरा, शेष नञि, आजुक लोक, लाल बुझक्कर, सातम चरित्र आ' जय मैथिली लिखलहुँ । महाकवि विद्यापति नामक एकटा एकांकी सेहो लिखने छी मुदा आब सोचैत छी जे एकरा पूर्णांक नाटक बना दियैक । एहि नाटक सभक कतेको बेर मंचन भेल । एकर अलावे हालहिमे बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह जाहिमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा एकांकीक संकलन अछि,तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद कएलहुँ । ई पोथी साहित्य अकादमी दिल्ली सँ प्रकाशित अछि । मुदा अपन लिखल नाटक सभमे मात्र पाथेयप्रकाशित अछि सेहो आब बजारमे पोथी उपलब्ध नहि छैक । हमरो ल'ग मात्र एक्कहिटा प्रति बाँचल अछि । मधुयामिनी आ सातम चरित्र लोकमंच नामक नाट्य-पत्रिकामे प्रकाशित भेल रहए ।



चन्दन कुमार झा: नाटकक अलावे अपने कोनो आन विधा मे किछु लिखलियैक ?

गुणनाथ झा : हाँ नाटकक अलावे हम किछु कविता आ आलेख सेहो लिखलहुँ । ई सभ विभिन्न पत्र-पत्रिकादिमे छपल जेना पटना सँ प्रकाशित "मिथिला मिहिर"मे आ' देवघरसँ प्रकाशित "स्वदेशवाणी" मे ।

चन्दन कुमार झा: अहाँ मिथियात्री नामक नाट्य संस्था सेहो शुरु कएने रही तकर मादेँ किछु जानकारी देल जाउ ।

गुणनाथ झा : जखन हम कलकत्ता आएल रही तहियो आइए जकाँ मिथिला-मैथिली सँ संबंधित अनेक संस्थासभ छलैक । ओहि समयमे दयानंद ठाकुर एकटा नव नारा देने रहथिन्ह जकर चर्चा एखन कतहु नहि होइत देखैत छी । ओ कहलथिन्ह जे सभसंस्थाके एकीकरण कएल जाए मुदा ओहि समयमे हम एहिबातक विरोध कएने रहियैक । हमर मानब रहय जे सभ संस्था सब यदि अलग-अलग थोड़बो-थोड़बो काज करतैक तऽ मैथिलीक लेल कुल मिलाके बेशी काज हेतैक आ एहि सँ मैथिलीक बेशी प्रचार-प्रसार हेतैक । एहि क्रममेँ आपसी मतांतरक चलते मिथिला कला केन्द्र बंद भऽ गेल । हम स्व. फुलेश्वर झा, स्व. विश्वंभर ठाकुर,निरसन लाभ, दयानाथ झा, सूर्यकांत झा,' राजेन्द्र मल्लिककेँ संगे मिथियात्रिक स्थापना केलहुँ । दोसरदिश सीताराम चौधरी सेहो मैथिली रंगमंचक स्थापना केलाह । मिथियात्री बेशी दिन नहि चललै मुदा एकर नाट्य प्रस्तुति सालमे दू बेर होइत छलैक आ' आन-आन संस्था सभ प्रायः सालाना आयोजन करैत छल से कम्मो समयमे एकर नाट्यमंचनक संख्या एतेक भऽ गेलैक जे ई मैथिली रंगमंचक इतिहासक एकटा अभिन्न अंग बनि गेल रहैक । मुदा अपन मध्यायुक अबितहि हम आकस्मिक रूपेँ बीमार भऽ गेलहुँ आ' अपेक्षित सहयोगक अभाव मे बुझू तऽ दिवालिया भऽ गेलहुँ ।फलतः ने अभिष्ट दिशामे कोनो काज भऽ सकल आ ने आने किछु । लेकिन सभसँ बेशी जे बातक कचोट अछि से जे आन-आन संस्था सभ तऽ चलिते रहलैक लेकिन फेर हमर कोनो प्रयासक कतहु चर्चो तक किएक नहि भेलैक ? एहिसाल फेर किछु युवासभ सक्रिय भेलाह अछि आ' आशा करैत छी जे पूर्वक मिथियात्रीझंकारआपसमे मीलि "मिथियात्रीक झंकार"केँ तत्वाधानमे अगिला दिसंबर तक गोटेक नाटकक मंचन करत ।

चन्दन कुमार झा: गुणनाथ झा मैथिली रंगमंच सँ कतिआएल गेलाह तकर कोन कारण अहाँक नजरि मे अबैत अछि ?

गुणनाथ झा : ओना तऽ हमर जन्मो दरबारेक परिवेशमे भेल छल मुदा बचपने सँ हमरा कहियो दरबारीपन नहि सोहाएल । शाइद तइँ हम एकात कऽ देल गेलहुँ । सभदिन हमर मूलमंत्र रहल अछि -"एकला चलो" लेकिन अपन काज करैत रहू । बीचमे कतेको संस्था वा रंगमंच हमरा सम्मानित करबाक आ'कि कहियौ जे अपना गुटमे सम्मिलित करबाक प्रयास कएलनि मुदा हम अपनाभरि एहिसभ सँ बचबाक प्रयास कएलहुँ । हम बुझैत छी जे एखन तक हम कोनो एहन काज करबे नहि कएलहुँ जाहि हेतु हमरा सम्मानित कएल जाए । हमर सोचल बहुत रास काज एखनो अपूर्ण अछि । ई सभ काज जहिया पूर्ण होयत तहिए हम मैथिलीके किछु सेवा कए सकलहुँ से बूझब । ओना कोनो संस्था हमरा सम्मानित केलक कि नहि एहिबातक हर्ष-विषाद हमरा मोनमे कहियो नहि रहल । हमरा लेल असली सम्मान हमर नाटकक दर्शकक थोपड़ी अछि । एकबेर "पाथेय" केर संबंध मे रामलोचनजी कतहु लिखने रहथिन्ह जे पाथेय तऽ एहन नाटक छैक जकरा यदि मंच पर सँ केयो एकगोटे पढ़ि मात्र देतैक तइयो दर्शक नहि हिलत । हमरा लेल एहन तरहक समीक्षा सभसँ पैघ सम्मान थिक । ओना कुल मिलाकऽ कहब जे क्रमशः लोकक धारणा बदलि रहल छैक । आस्था कतहु ने कतहु छैक मुदा कष्ट होइत अछि जखन काजके आगाँ बढैत नहि देखैत छी । संस्था सभसँ साहित्य आ' समाजकेँ कल्याण होइत नहि देखैत छी ।

चन्दन कुमार झा: अपने कहल जे एखनहु किछु काज अपूर्ण अछि । कोन काज छैक ई सभ ?
गुणनाथ झा : सभसँ पहिने तऽ जे किछु लिखने छी से समाजक लेल लिखने छी । तैँ समाजक चीज समाजक हाथमे पहुँचि जाइ से प्रयासमे लागल छी । एकरा अलावे मैथिली रंगमंचक उत्थान होइ ताहि खातिर सेहो काज करब ।
अहाँ मैथिली नाटकक भविष्य केहन देखैत छी ?
नाटक एकटा पैघ आ' क्लिष्ट विधा छैक । एकरा लेल रंगमंच चाही संगहि दर्शक सेहो चाही । मुदा, वर्तमान मे नाटकक स्तर आ कलाकारक गुटबाजीमे दर्शक कमि गेलैए । एहनामे कखनो काल तऽ बुझाइत अछि जे मैथिलीमे नाटक कहीँ खतमे ने भऽ जाइ । फेर जखन कखनो नवतुरियाक सक्रियता देखैत छिऐक तऽ एकटा आस सेहो जगैत अछि ।


चन्दन कुमार झा:  फेर मैथिली नाटकक विकास कोना हेतइ ?

गुणनाथ झा : नाटकक विकासके लेल आवश्यक छैक जे सम-सामयिक विषय पर केन्द्रित भऽ नाट्य-लेखन कएल जाए । नाटक बिना गुटक वा मंडलीक संभव नहि मुदा रंगमंचक गुटके रचनात्मक हेबाक चाही । नाटकमे संवादक भाषा पर सेहो धेयान देब आवश्यक होइत छैक । भाषा ओहन होइ जकरा पात्र सुगमतापूर्वक उच्चारण कए सकय आ' दर्शकके सेहो तत्काल भाव स्पष्ट होइ। एहिसँ ओवर-एक्टिंग सेहो नहि हेतैक । लेकिन भाषाक सुगमता माने एकदम्मसँ बोलचालक भाषा सेहो नहि हेबाक चाही । साहित्यक गरिमाकेँ सेहो धेयानमे राखल जेबाक चाही । एहिठाम हमरा एकटा बात मोन पड़ैत अछि जे बहुत दिन पहिनेके बात छैक । एकटा नाटककार, जिनकर स्थान वर्तमान मैथिली रंगमंच पर सर्वश्रेष्ठ कहल जाइत छन्हि, के पहिल नाटकक मंचन होइ बला रहैक । संयोग सँ हमर एकटा परिचित कलाकार ओहि रिहर्सल मे रहथि । रिहर्सलेके क्रममे निर्देशक ओहि नाटककारके सूचित कएलखिन्ह जे अहाँक एहि नाटकमे बड्ड गारि छैक से कने कम्म कऽ दियैक । तकर प्रत्युत्तर दैत ओ नाटककार कहलखिन्ह जे हमरा अपना जतेक गारि अबैत अछि ओकर दसांशो नहि एहि नाटकमे छैक । हमरा हुनकर ई बात सुनि छगुन्ता लागि गेल । आब कहू जे एहि सँ नाटकक स्तर केहन बचतैक ? नाट्यकारके हरदम ई प्रयास करबाक चाही जे मैथिली नाटक सर्वभारतीय मंच पर प्रतिष्ठित होइ । मैथिलीक नाटकक पोथीके भारतक आन-आन भाषामे अनुवाद कएल जाए आ' मंचन कएल जाए । तखने मैथिली नाटकक विकास हेतैक ।


चन्दन कुमार झा: तकनीकी दृष्टिकोण सँ मैथिली नाटक कतेक पछुआएल छैक ?

गुणनाथ झा : बहुत..बहुत पछुआएल छैक । एतय आइधरि कोनो एहन संस्था नहि छैक जतए नाटकक समुचित पढ़ाइ आ ट्रेनिंग देल जाए । बंगाली रंगमंच सँ कतेको गोटे सिनेमामे गेल लेकिन मैथिली रंगमंचमे कतहु एहन व्यवस्था नहि छैक । संगीत आ मंच परहुक प्रकाश व्यवस्था सेहो नाटक मंचनक हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण होइत छैक आ से एहि क्षेत्र सभक विकास हेतु सेहो प्रयासक जरुरति छैक । रंगमंच सँ जुड़ल संस्था सभकेँ नाट्यगृह बनेबा पर सेहो धेयान देबाक चाही ।


चन्दन कुमार झा: वर्तमान मे कोन नाटककार अहाँकेँ सभसँ बेशी प्रभावित करैत छथि ?
गुणनाथ झा : आधुनिक मंच पर हम जतेक नाटककारके पढने-देखने छी ताहिमे कियो हमरा प्रभावित नहि करैत छथि । पुरानमे ईशनाथ झाक उगनाचीनीक लड्डूएवं गोविन्द झाक बसातहमरा बेस प्रभावी लगैत अछि ।


चन्दन कुमार झा: कहल जाइत छैक जे मैथिली रंगमंच पर गुटबाजी के संगे जातिवादिता सेहो छैक । अहाँक केहन अनुभव अछि ?

गुणनाथ झा : हाँ...हम एहि सँ सहमत छी । ओना हमरा व्यक्तिगत रूपे कहियो एहिसँ (जातिवादिता) पाला नहि पड़ल अछि मुदा छैक ..निश्चिते छैक से हम अनुभव कएल । लेकिन ई सभटा नाटकक विकासक बाटमे बाधक छैक । एहिसभसँ हमरा सभकेँ खासकऽ नवतुरियाकेँ बचबाक चाही । रंगकर्मी के जाति-पाति से कोनो लेना-देना नहि हेबाक चाही । ओकरा लेल तऽ रंगमंचे मंदिर हेबाक चाही । ओना एहन तरहक बात बेबहार किछु पाइक लोभमे सेहो किछु लोक करैत छथि । मुदा ई सर्वथा निंदनीय अछि ।

चन्दन कुमार झा: अहाँक अगिला योजना की सभ अछि ?

गुणनाथ झा : अगिला योजना कहबे केलहुँ जे सर्वप्रथम अपन अप्रकाशित कृतिसभकेँ प्रकाशित करेबाक चेष्टा करब बादबाँकि आब अपना तऽ किछु बचल नहि अछि ।कोनो ने कोनो विधि सभटा एहिसभमे उत्सर्ग भऽ गेल ।से आब जीवनो मात्र समाज आ' साहित्येक बलेँ व्यतीत करबाक अछि ।


चन्दन कुमार झा: नवतुरिया के किछु कहए चाहबनि ?


गुणनाथ झा : नवतुरिया केँ एतबे कहबनि जे ओ अपन काज करथि । गुटबाजी आ' जातिवादक फेरमे नहि पड़थि । जौं गुटबाजी रचनात्मक उद्देश्य के लेल हो तऽ गुटबाजियो नीक । जीवनमे कखनो घबरेबाक नहि चाही । समाजक लेल सदति क्रियाशील रही । हमर जीवन एकटा पाठ अछि आ हम एहिसँ जतबा सिखलहुँ ताहि आधार पर कहब जे बाधा-विघ्न जिजीविषाकेँ मात्र तीव्र आ' जाग्रत करैत छैक ।



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