जगदीश प्रसाद मण्डल
तीनटा विहनि कथा-एकटा
लघुकथा
(1)
पटोर
किशोरी ऐठाम बिआहक काज
तेतरी सोहो देखलक। पक्का पति परायण तेतरी। राति-दिन पतिक विचारक सेवा हृदैसँ
करैत।
रंग-रंगक पटोर साड़ी पहिरल
देखि लाड़-झाड़ करैत पति-गुलेतीकेँ तेतरी कहलक-
“हमरो पटोर साड़ी
कीन दिअ?”
अनुकूल रखै दुआरे गुलेती
अनुकूल शब्दक सहारा लैत सोचए लगल जे जहिना अन्हार घर साँपे-साँप होइ छै तहिना
ने दुनू गोरे छी। रंगक चमकी देखि ओ (तेतरी) लटुआएल अछि आ अनुकूलक अपने लटुआएल
छी। मुदा छी तँ दुनू एक्के रंग। जखन एक्के रंग छी तखन बीचमे बाधा कथीक। जेहने अपने
पटोर साड़ीक सम्बन्धमे जननिहार, किनिनिहार छी तेहने ने ओहो अछि। तखन तँ
भेल जे, की परसै छी, तँ फूसि।
तहन कनी लगा कऽ देबै। ओना अपन आँट-पेट देखि गुलेती सहमल नै। बुझलक जे जहिना
गुलेतीक शिकार तहिना ने मुँहक शिकार होइए। दुनूक सोल्हैनी गाराँटी थोड़े अछि।
तहूमे चोबिसो घंटा संग रहनिहारि नारीक नश-नश नै बुझी तँ ई केकर दोख। जहिना
कलीसँ गुलाब छिटैक छिटकए लगैत तहिना चौवन्निया मोती छिटकबैत गुलेती बाजल-
“केहेन पटोर लेब?”
जहिना स्वर्गक आशामे लोक, सभ किछु दान
करैले तैयार रहैत अछि तहिना पटोरक आशामे तेतरी भेल। हजारोक भीड़मे जहिना प्रेमी
प्रेमीकेँ पकड़ि सटि जाइत, तहिना गुलेतीक हृदैमे तेतरी
सटि गेल। गोदीक बच्चाक सुतैक भार जहिना गोद लैत तहिना एेलिसाएल तेतरी बाजल-
“जेहने किशोरीक
अंगनामे देखलिऐ।”
“एक्के रंगक देखलिऐ?”
“नै, सभ रंगक रहै।”
एकटा संगी रहने ने लोक
हराइए जौं तइसँ बेसी होइ तँ केना हराएत? जेतइ हराए लागल ततै संगी भेट जेतै।
पत्नीकेँ हराइत देख गुलेती बाजल-
“अहाँक विचार नै
मानब तँ दुनियाँमे केकर विचार मानै बला अछि। अहाँकेँ हाथ पकड़ि अनने छी तहन विचार
केना नै मानब। अहाँक मांग मानि लेलौं। कागजमे लिख लेलौं। जइ दिन बजार जाएब तइ
दिन किनने आएब। खाली बजार जाइ घड़ी पुरजी मोन पाड़ि देब अहाँ। अच्छा एकटा बात
बूझल अछि, ओ साड़ी (पटोरबला) एक्के बेर पहिरला बाद खिंचल
जाइ छै से। से सभ दिन कतए खिंचबै?”
साड़ी खिंचब सूनि
तेतरीकेँ तरास उपकल। उपकिते पिआससँ बाजलि-
“तहन ऐबेर छोड़ि दिऔ।
आगू साल अगते कीन देब।”
भार घुसकैत गुलेती दुनू
जाँघपर हाथक शान पिजबैत बाजल-
“कहू तँ भला, अच्छा अहीं माेन पाड़ि दिअ जे एतेक उमेरमे अहाँक कोन गप कहिया
कटलौं?”
केकरो गप अपने टूटि जाइ
छै तँ ऐमे केकर दोख। हँ तखन ई बात जरूर भेल अछि जे गामक चालि बदलल! पहिने गाममे
चोरकेँ अबिते जएह देखलक सएह चोर-चोर हल्ला करए लगैत छल मुदा अर्थक चक्का तेहेन
दिशा पकड़ि लेलक जे सामाजिकता तहस-नहस भऽ गेल अछि। जहिना राम-रावणक बीचक जे
तीर चलए आ दस-दस बीस-बीस गर्दनि कटि हवामे उधियाइत एकठाम भऽ सटि जाइत तहने ने
भऽ रहल अछि।
(ई कथा, पटोर मुन्नाजी
लेल...)
(2)
अजाति-
(2)
गुरु काका, बड़का काका,
पढ़ुआ काका, लाल काका, भैया काका, दोस काका, संगी काका सभ एकठाम बैस रघुनाथक गप चलौलनि।
गुरु काका बजलाह-
“शेतानक चरखी अछि
रघुनाथा।”
सह मारैत बड़का काका कहलखिन-
“एहेन छुतहर एकोटा
ने कुल-खनदानमे भेल।”
एकमुरही गप देखि दोस काका
बजलाह-
“एना गौं-गौं केने
नै हएत? किछु स्पष्ट विचार करए पड़त।”
अपन भार हटबैत पढ़ुआ काका
टपकि गेलाह-
“भने दोसक विचार
छै। लाल भाय अहीं अपन िनर्णए सुना दिऔ।”
गंभीर होइत लाल काका फैसला
देलखिन-
“रघुनाथ अजाति भऽ
गेल।”
(3)
फुसियाह
(3)
सुभितगर समए भेने अनुकूल
काजक वृद्धि जिनगीकेँ आगू मुँहेँ ओहिना ससारैत अछि जहिना प्रतिकूल भेने विपरीत
दिशामे पछु मुँहेँ ससारैत अछि। मुदा किछु भेद तँ भइये जाइत अछि। ओ छी कम-बेशीक
गणित।
साँझक आठ बजैत। ओना माघक
आठ राति कहबैत अछि मुदा से नै साओन-भादोक आठ साँझे कहबैए। आठ घंटा दमकल चला घरपर
आबि कमलदेव गद्गदाएल मने पत्नी-सुचित्राकेँ कहलनि-
“पहिने चाह पिआउ,
पछाति एकटा गप कहब?”
जहिना कर्म कऽ वचन सदति
दबैत रहैत अछि तहिना सुचित्रा चाह बनबैसँ पहिने हठ करैत बजलीह-
“सुनल रहत तँ चाहो
बनबै बेर विचारब, ओना खट-खुट मन केने कहीं चाहो ने दुइर
भऽ जाए।”
पत्नीक बात सुनि कमलदेव
सोचमे पड़ि गेलाह। शुभ काजमे अशुभ बात ओहन करामात कऽ दैत जहिना एकटा छिक्का हाइ
कोटक फैसला उनटा-पुनटा दैत अछि। हो ने हो कहीं अही गपक धूनिमे चाहक धूनि बिसरि
जाथि। तखन तँ दिन-भरिक मेहनति तँ मेहनते रहि जाएत, बाजल-
“अनेरे कोन झूठ-फुसिक
फेरिमे पड़ै छी पहिने चाह पिआउ, तखन दुनियाँ-दारीक
गप-सप हेतइ।”
मुस्की दैत सुचित्रा
उत्तर देलनि-
“तँए ने पहिने
घर-परिवारक काज निबटा लिअ चाहै छी। अहीं सन पुरुख हम थोड़े छी जे भरि दिन
छाती भरे खटै छी आ गामक लोक फुसियाहा कहैए।”
पत्नीक बात सुनि कमलदेवक
मनमे झोंक एलनि। जहिना गुम हवामे सूर्यक ताप अपन करामात करैत तहिना एक तँ
कमलदेवक मनमे चाहक झोंक चढ़ल तइपरसँ पत्नीक मुँहेँ फुसियाह सुनि झोंक तेज भऽ
गेलनि, बजलाह-
“ने अहाँ कहने कटहर
हएत आ ने गौआँ कहने बरहर हएत। कटहर कटहरे रहतै, बरहर
बरहरै रहतै। एक रंग आँठी-कमड़ी भेनहि की हएत?”
पतिक विचारकेँ अंकैत
सुचित्रा बजलीह-
“अहाँ तमसा गेलौं।
तमसाउ नै। लोक जे अहाँकेँ फुसियाह कहैए तेकर कारण अछि जे काजक हिसाबसँ समए नै
दइ छिऐ, घड़ीक हिसावसँ समए दऽ दइ छिऐ।”
पत्नीक विचारकेँ आंकति
अमलदेव दोहड़बैत बाजला-
“कनी फरिछा कऽ कहियौ?”
सुचित्रा- “केकरो खेत पटबैक जे
समए दइ छिऐ ओ खेतक हिसाबसँ समए दिऔ। काजक समए दोसर होइ छै आ घड़ीक समए दोसर।”
लघुकथा
जन्म तिथि
तीस बर्ख नोकरी केला उत्तर
रविकान्त आइ.जी. पदसँ सेवा निवृत्ति भेलाह। जखन कि रविशंकर आइ.जी.सँ आगू
बढ़ि डी.जी.पीक पदभार सम्हारलनि। साल भरि ऐ पदपर रहताह। ओते नोकरीक अवधि वचल
छन्हि। तीन दिन रविशंकरकेँ पदभार सम्हारला उत्तर रविकान्तकेँ मन पड़लनि जे
मीत-रविशंकरकेँ बधाइ कहाँ देलियनि। कारणो भेलनि जे पनरह दिन पहिनेसँ जे
कार्य-भार दिअए लगलखिन ओ नोकरीक अंतिम दिन धरि नै फरिछौट भऽ सकलनि। मनमे
एलनि जे मोबाइलेसँ बधाइ दऽ दिअनि। मुदा एक्के काजक तँ भिन्न-भिन्न जुइत होइत
अछि। जुइतिक अनुकूले ने काज अनुकूल होइत अछि, तँए मोबाइलसँ बधाइ देब उचित नै
बूझि पड़लनि। ओना तत्काल जानकारीक रूपमे दऽ समए लेल जा सकैत छल। मुदा से नै
भेलनि। चाहक कप टेबुलपर रखि, दहिना बाँहि उठबैत
पत्नी-रश्मिकेँ कहलखिन-
“की ऐ बाँहिक शक्ति
क्षीण भऽ गेल जे काज नै कऽ सकैए। मुदा.....?”
रश्मि अपना धुनिमे
छलीह। ओना एके टुबलपर बैसि चाहो पीबैत छलीह आ मेद-मेदीन चिड़ै जकाँ मुँहमिलानी
गपो-सप करैत छलीह। अपने धुनिमे मनो बौआइत छलनि। एकठाम बैसि चाह पीबितो मन
दुनूक दुदिशिया छलनि। रश्मिक मनमे रविशंकरक पत्नी किरण नचै छलखिन। जिनगी
भरि सखी-बहीनपा जकाँ रहलौं, मुदा आइ? आइ ओ रानीसँ महरानी
बनि गेली आ....? की हम ओइ बटोहिनी सदृश तँ ने भऽ गेलौं
जेकरा सभ किछु छीनि घरसँ निकालि देल जाइ छैक।
जहिना कोनो नीनभेर बच्चा
माइक उठौलापर चहाइत उठैत बेसुधमे बजैत तहिना पतिक प्रश्नक उत्तर रश्मि देलखिन-
“ऐ बाँहिक शक्ति
ओतबे काल रहै छै जते काल शान चढ़ाएल हथियार ओकरा हाथमे रहै छै। नै तँ प्राणशक्ति
निकलला उत्तर शरीर जहिना माटि बनि जाइ छै तहिना बनि कऽ रहि जाइत अछि।
हाथसँ हथिहार हटिते जिनगी हहरए लगै छै।”
पुन: चाहक कप उठा चुस्की
लैत रविकान्त बजलाह-
“बच्चेसँ दुनू गोरे
संगे रहलौं। खेनाइ-पीनाइ, खेलेनाइ-धुपेनाइ, घुमनाइ-फीरनाइ सभ संगे रहल। कहाँ कहियो मनमे उठल जे दुनू गोरेमे कोनो
दूरी अछि। अपनाकेँ के कहए जे घरो-परिवार आ सरो-समाज कहाँ कहियो बुझलनि। मुदा
आइ....?”
“मुदा आइ की?”
“इहए जे...। आइ बहुत
दूरी बूझि पड़ि रहल अछि। बूझि पड़ैए जे जेना अकास-पतालक अंतर भऽ गेल अछि। कोन
मुँह लऽ कऽ आगू जाएब, से मन िनर्णये ने कऽ पाबि रहल अछि।”
“तखन?”
“सएह ने मन असथिर
नै भऽ रहल अछि। जिनगी भरिक संगीकेँ ऐहेन शुभ अवसरपर केना नै बधाइ दिअनि। मुदा
एते दिन बराबरीक विचार छल आब ओ थोड़े रहत। कहाँ ओ सिंह द्वारपर विराजमान केनिहार
आ कहाँ हम देशक अदना एकटा नागरिक। कि अपनाकेँ ओइ कुर्सीक बुझी जइसँ हेट भेलौं।
सीकपर राखल वा तिजोरीमे राखल वस्तु ओतबे काल ने जते काल ओ ओतए रहैत। रविशंकर आइ
ओतऽ छथि जतऽ हमरा सन-सन जिनगी अंतिम छोड़पर पहुँचनिहार हुनकर हुकुमदारी करैत
अछि। कोन नजरिये ओ देखै छल आ आइ कोन नजरिये देखताह?”
रविकान्तक अन्तरमनकेँ
रश्मि आंकि रहल छलीह। मुदा जते अाँकए चाहै छलीह तइसँ बेसी घबाएल माछ जकाँ अपन
सड़नि बढ़ल जाइत रहनि। कि आँखिक सोझक देखल झूठ भऽ जाएत। केना नै भऽ सकैए। दू
गोटे बीचक बात तँ ओतबे काल धरि सत्य रहैए जते काल धरि दुनू मानैत अछि। काज
थोड़े छी जे गरजि कऽ कहत जे तोरा पलटने हम थोड़े पलटि जाएब। मन असथिर होइते रश्मिक
मनमे विचार जगलनि। दुखक दवाइ नोर छी। पैघ-सँ-पैघ दुख लोक नोरक धारमे बहा वैतरणी
पार करैत अछि। बजलीह-
“जहिना अहाँक मनमे
उठि रहल अछि तहिना हमरो मनमे रंग-बिरंगक बात उठि रहल अछि। कहाँ रविशंकरक
पत्नी किरण राजरानी आ कहाँ हम....? कहाँ राधा संग कृष्ण
आ कहाँ....? काल्हि धरि दुनू गोरे एकठाम बैसि एक
थारीमे खेबो करै छलौं आ एके गिलासमे पानियो पीबै छलौं, मुदा
आइ संभव अछि। आखिर किअए?”
हवाक तेज झोंकमे जहिना
डारि-डारिक पात डोलि-डोलि एक-दोसरमे सटबो करैत आ हटबो करैत तहिना रश्मिक
डोलैत विचार सुनि रविकान्त स्वयं डोलए लगलाह। एक तँ पहिनेसँ मन डोलि रहल
छलनि तइपर रश्मिक विचार आरो डोला देलकनि। गन्तव्य जगह पहुँचलापर जहिना सभ
हरा जाइत तहिना हराएल मने रविकान्त बजलाह-
“कानसँ सुनितो,
आँखिसँ देखितो किछु बूझि नै पाबि रहल छी जे कि नीक कि
अधला। की करी की नै करी। मुदा साठि बर्खक संगीकेँ एते दूर केना बूझब। मुदा लगो
केना बूझब। साठि बर्खक पथिक संगी जँ दू दिशामे संगे चली तखन कते दूरी हएत। मुदा
साठि बर्खक जिनगियो तँ छोट नै भेल?”
रविकान्तक विचार सुनि
रश्मि टपकि पड़लीह-
“जिनगी तँ एक दिन,
एक क्षण, एक घटनामे बदलि जाइए आ साठि-बर्ख
कि धो-धो चाटब।”
“तखन?”
“सएह नै बूझि रहल
छी। एतेटा जिनगी एक संग बितेलौं मुदा आइ जइ जिनगीमे पहुँचि गेल छी तइ जिनगीक
संबंधमे किछु विचार कहियो नै केलौं।”
पत्नीक बात सुनि रविकान्तकेँ
जहिना आन गामक चौबट्टी,
तीनबट्टीपर पहुँचिते भक्क लगि जाइत, जइसँ
पूब-पच्छिमक दिशे बदलि जाइत। मुदा एहनो तँ होइते अछि जे लगलो भक्क ओहने
चौबट्टी, तीनबट्टीपर खुजितो अछि। अपन भक्क तँ तेना भऽ
कऽ नै खुजलनि, खाली एकटा प्रश्नेटा उठलनि जे बच्चासँ
सियान भेलौं, सियानसँ चेतन भेलौं, चेतनसँ बुढ़ाड़ीक प्रमाणपत्र भेट गेल। हरवाह थोड़े छी जे अधमड़ुओ अवस्थामे
बुढ़ाड़ीक प्रमाण नै भेटै छैक। केना भेटिते प्रमाणपत्रक संग पेन्शनो ने अबै छै।
मुदा मन किअए धक-धका रहल अछि। जिनगीक चारिम अवस्था वानप्रस्त होइ छै,
संयासीक होइ छै जे दिन-राति दौड़ैत दुनियाँक हाल-चाल जानए
चाहैत अछि। से कहाँ मन मानि कऽ बूझि रहल अछि। पतिकेँ गंभीर अवस्थामे देखि
रश्मि टिपलनि-
“अहाँक मनमे जे नाचि
रहल अछि उहए हमरो मनमे नाचि रहल अछि। मुदा ईहो बात तँ झूठ नहिये छी जे जिनगीक
संग बोटो बनै छै। आ बाटे संग बटोहियो बाट बनबै छै।”
रविकान्त- “की बाट?”
पतिक प्रश्न सुनि रश्मि
विह्वल भऽ गेलीह। हेराइत संगीकेँ बाट देखाएब बहुत पैघ काज छी। मुदा लगले मनमे उठि
गेलनि जे तखन अपने किअए एते बौआइ छी। कम-सँ-कम चाह पीबै काल बैसारियोमे ऐ बातक
विचार करैत अबितौं तँ आझुका जकाँ तँ नै बौऐतौं। जहिना जोतल आ बिनु जोतल खेतमे
चललासँ पहिने धड़िआइ छै,
धड़िएलाक पछाति पतिआइ छै, पतिएलाक
पछाति पेरिआइत पेरा बनै छै। वहए एकपेरिया बहुपेरिया बनैत चलै छै। रश्मि
बजलीह-
“अहाँ कओलेज छोड़ला
उत्तर जिम्मा उठा सरकारी बाट पकड़ि साठि बर्ख पूरा लेलौं। ने कहियो जमीन दिस
तकैक जरूरति महसूस भेल आ ने तकलौं। मुदा आइ तँ ओतइ उतरि आबि गेल छी जेकर रस्ता
अखन धरिक रास्तासँ भिन्न अछि।”
पत्निक विचार सुनि रविकान्त
मुड़ी डोलबैत आँखि उठा कखनो पत्नीक आँखिपर रखैत तँ कखनो उतारि धरतीपर दइत। जहिना
आगिपर चढ़ल कोनो बरतनक पानि निच्चासँ ताउ पाबि ऊपर उठि उधियाइक परियास
करैत तहिना रविकान्तक वैचारिक मन सेहो उधियाइक परियास करैत रहनि। मुदा जहिना
पिजराक बाघ पिजरेमे गुम्हरि कऽ रहि जाइत, तहिना आइ धरिक जे मन रूपी बाघ एहेन शरीर
रूपी पिजरामे फँसि गेल छलनि जे जत्ते आगू मुँहेँ डेग उठबैक कोशिश करैत ओत्ते
समुद्री बादल जकाँ आस्ते-आस्ते ढील होइत रहनि। आगूक झलफलाइत बाट देखि रमाकान्त
बजलाह-
“विचारणीय बात जरूर
अछि, मुदा बिनु बुझलक जिनगीक संग तँ अहुँक जिनगी चलल।
कहाँ कतौ बेवधान भेल। आइ जे कहलौं ओ तँ ओहू दिन कहि सकै छलौं, जइ दिनसँ बहुत आगू धरि बढ़ि गेलौं। से तँ रोकि कऽ मोड़ि सकै छलौं।
मुदा आइ तँ जानल-बिनु (ज्ञानी-मूर्ख) जानल दुनू संगे बौआए चाहै छी!”
पतिक बात सुनि रश्मि
मने-मन विचार करए लगलीह जे दुनियाँमे एहनो लोकक कमी नै अछि जेकरा जरूरति भरि
लूरि-बुधि नै छै, मुदा ईहो तँ झूठ नै जे जेकरा छेबो करै ओइमे बेसी ओहने अछि जे या तँ
उनटा वाण चलबैए वा नहिये चलबैए। तखन सुनटा वाण केना आगू बढ़त जँ बढ़बे करत तँ कते
आगू बढ़त जेकरा आगू दुश्मन जकाँ चौबगली उनटा वाण घेरने अछि। मुदा उपाए की? शुद्ध तेल-मोबिल देल मजगूत इंजनो चढ़ाइपर दम तोड़ए लगै छै मुदा टुटलो
चक्का बिनु तेलो-मोबिलक भट्ठा गरे दौगैत बिनु ब्रेकक गाड़ी जकाँ केत्तेकेँ जानो
जइए आ केत्तेकेँ मुँहोँ-कानो फोड़ैए। डेग आगू उठाएब जरूर कठिन अछि। मुदा लगले
मनमे उठलनि जे जइ बाट पकड़ि आइ धरि चललौं जौं ओही बाटकेँ छोड़ि दोसर बाट पकड़ि
नव बटोही जकाँ विदा होइ, ई तँ संभव अछि। जहिना चिन्हार
जगहक चोर पड़ा दूर देश जा अपन क्रिया-कलाप बदलि नव-मनुष्यक जिनगी बना जीबए
चाहैत ओ तँ संभव छै...।
वाण लागल पंछी जकाँ पतिकेँ
देखि अनुभवक सान्त्वना भरल शब्द निकालि रश्मि बजलीह-
“जहिना अहाँक जिनगी
तहिना ने हमरो बनि गेल अछि। यएह बुढ़ापा अहाँक सएह ने हमरो अछि। मुदा एकठाम तँ
दुनू गोटे एक छी। एके दवाइक जरूरति दुनू गोरेकेँ ने अछि। तँए विचार दइ छी जे आब
ने ओ रूतबा रहल आ ने ओकाइत, तखन जानि कऽ जहरो-माहूर खा
लेब सेहो नीक नै।”
रश्मिकेँ आगूक बात
पेटेमे घुरिआइत रहनि तइ बीचेमे रविकान्त टिप देलखिन-
“बेसी दुख तँ नै
बूझि पड़ैए मुदा साठि बर्खक प्रोढ़ा अवस्था धरि हमरा सबहक नजरि नै गेल।
सरकारीक पैघ जिन्मामे रहलौं। समायानुसार काज करितो मुदा अपन जिनगी तँ सुरक्षित
रखितौ। साठि बर्खक पछातियो तँ चालीस बर्ख जीबाक अछि। कि नै जनैत छलौं जे
दरमाहा टूटि जाएत जिनगीक आवश्यकता बढ़ैत जाएत ओहन स्थितिमे कि कएल जा सकै
छै।”
पतिक विचारकेँ गहराइत
समुद्र दिस जाइत देखि मुँहक दसो वाण साधि रश्मि छोड़लनि-
“अनेरे मनमे
जूर-शीतलक पोखरिक पानि जकाँ घोर-मट्ठा करै छै। घोरे मट्ठा ने घीओ निकालैए आ
अनहै सेहो निकालैए। संयासी सभ केना फटलाहा कमलक मोटरी बान्हि कन्हामे लटका लइए
आ सौंसे दुनियाँ घुमैए। अहाँकेँ तँ सहजहि चरि-चकिया गाड़ी चलबैक लूरियो अछि।”
पत्नीक विचार सुनि रविकान्त
ओझरा गेलाह। एक दिस संयासीक बात बाजि कहि रहल छथि जे जहिना कानूनी अधिकारसँ
जीवन-रक्षा होइत तहिना ने संयास अवस्था -वानप्रस्त- पवित्र मनुष्यक नैतिक
अधिकार सेहो छी। दोसर दिस चरि चकिया गाड़ीक चर्चा सेहो करै छथि जे भरिसक
अपनो लगा कऽ कहै छथि। संगी देखि रविकान्त दहलाए लगलाह। जहिना कोसी-कमलाक
बाढ़िमे भँसैत घरपर बैसि घरवारी वंशियो खेलाइए आ कमला-कोसीक गीतो गवैए, तहिना विह्वल भऽ
रविकान्त बजलाह-
“हँसी-मजाक छोड़ू।
आब कोनो बाल-बोध नै छी। हम सभ अपन जीवन अपन सामाजिक जीवन नै बनाएब तँ देखिते छिऐ
जे मनुष्य एक दिस चान छूबैए तँ दोसर दिस सीकीक वाणक जगह बम-वारूद लऽ मनुष्यक
बीच केहेन खेल दुनियाँमे खेल रहल अछि। खैर, ओते सोचैक
समए आब नै रहल। जेकर तिल खेलिऐ ओकरा बहि देलिऐ। अपन चलीस बर्खक जिनगी अछि, ने हमर कियो मालिक आ ने हम केकरो मालिक छिऐक। भगवान रामकेँ जहिना
अपन वानप्रस्त जीवनमे अनेको ऋृषि-मुनि, योगी-संयासी
सभसँ भेँट भेलनि आ अपनो जा-जा भेँटो केलखिन। तहिना ने अपनो दोसराक ऐठाम जाइ आ
ओहो अपना ऐठाम आबए। मुदा विचारणीय प्रश्न ई अछि जे रामकेँ के सभ भेँट करए एलनि
आ किनका-किनका ओतए भेँट करए स्वयं गेलाह। ई प्रश्न मनमे अबिते गाछसँ खसल पघिलाएल
कटहर जकाँ मन छँहोछित्त भऽ गेलनि। खोंइचा-कमरी संग एक दिस तँ दोसर दिस कोह
उड़ि-उड़ि कौआ आगू पहुँचि जाइत। आँठी छड़पि-छड़पि बोन-झारमे बच्चा दइ दुआरे
जान बँचबैत, तँ नेरहा उत्तर-दछिने सिरहाना दऽ पड़ल-पड़ल
सोचैत जे जते पकबह तते सक्कत हेबह तँए समए रहैत भोजन बना लैह नै तँ दुइर भऽ जाएब।
रविकान्त सोचैत-सौचैत जेना अलिसाए लगलाह। हाफी भेलनि।
रविकान्तकेँ हाफी होइत
देखि रश्मिक मनमे उठलनि जे हाफी तँ निनिया देवीक पहिल सिंह दुआरिक घंटी
छी। भने नीक हेतनि जे सुति रहताह नै तँ एे उमेरमे जौं निन उड़लनि तँ अनेरे
सोलो-महीनेमे बदलि जेतनि। फटकारि कऽ बजलीह-
“जते माथ धुनैक हुअए
वा देह धुनैक हुअए अपन धुनू। हमर जे काज अछि तइमे हम विथूत नै हुअए देव। हमरा
लिये तँ अहीं ने सभ किछु छी।”
तीन सए घरक बस्ती बसन्तपुर।
छोट-नमहर चालीस टा किसान परिवार शेष सभ खेत-बोनिहारसँ लऽ कऽ आनो-आनो रोजगार कऽ
जीवन-बसर करैत अछि। अनेको जाति गाममे। ओना मझोलका किसान बेसी। ओकरो दशा-दिशा
भिन्न-भिन्न। तेकर अनेको कारणमे दूटा प्रमुख। जइसँ विधि-बेबहारमे सेहो अंतर।
किछु जातिक लोक अपने हाथे हरो-जाेइत लैत आ खेतक काजो करैत जइसँ आमदनीक बचतो होइत
आ किछु एहनो जे अपने हाथसँ काज-उदम नै करैत तँए बचत कम। कम बचत भेने परिवार दिनानुदिन
सिकुड़ैत जाइत। ओना गामक बनाबटो भिन्न अछि। एक तँ ओहुना दू गामक बनाबट एक रंग
नै अछि। तेकर अनेको कारणमे प्रमुख अछि, खेतक बुनाबट, जनसंख्या
जाति इत्यादि। बसन्तपुरक बुनाबटि आरो भिन्न। ऊँचगर जमीन बेसी निचरस कम अछि
जाइसँ गाछी-बिरछी सेहो बेसी अछि आ घर-घ्राड़ी, रस्ता-पेरा
सेहो ऐल-फइल अछि।
बसन्तपुरमे दूटा नमहर किसान
बाँकी छोट। नमहर किसान परिवार रहने गामोक आ अगल-बगलक आनो गामक लोक जेठरैयती परिवारो
बुझैत आ जेठरैयत कहबो करैत अछि। राजक जमीन्दार तँ नै मुदा गमैया जमीन्दार सेहो
किछु गोटे बुझैत। तेकर कारण जे दुनूक महाजनियो चलैत आ गामक झड़-झंझटक पनचैतियो
करैत। कनी-मनी अनचितो काजकेँ गामक लोक अनठिया दैत। तइमे राधाकान्त आ कुसुमलाल
दुनू गोटेक जमीनोक बनाबटि आरो भिन्न अछि। चौबगली टोल सभ बसल अछि आ बीचक जे
तीस-पेंतीस बीघाक प्लॉट छै ओ मध्यम गहींर अछि। जइसँ अधिक बर्खा भेने नाला होइत
पानिक निकासी कऽ लैत, कम भेने चाैबगलीक ओहासी एने रौदियाहो समैमे उपजिये जाइत। ओना दुनू
गोरे बोरिंग सेहो गरौने छथि। तँए रौदियाहो समए भेने खेतक लाभ उठाइये लैत छथि।
पच्चीस-तीस बीघाक बीचक दुनू किसान। मुदा दुआरपर बखारियो आ पोखरिक महारपर
दू-सलिया तीन-सलिया नारोक टाल रहिते छन्हि।
राघाकान्तो आ कुसुमलालोक
परिवार बीच तीन पुस्तसँ उपरेक दोस्ती रहल छन्हि। ओना दुनू दू जातिक मुदा
अपेक्षा-भाव एहेन जे चालि-ढालिसँ अनठिया नै बूझि पबैत जे दुनू दू जातिक छथि।
किअए तँ कोनो काज-उदेममे एक-दोसराक बाले-बच्चे एक-दोसरठाम जाइत। ओना आने गामक
कुटुम जकाँ दुनू परिवारक बीच कपड़ा-लत्ताक वर-विदाइक चलनि सेहो अछि। मुदा तैयो
सराध-बिआह आदि पारिवारिक काजमे दुनू दू जातिक परिचय देबे करैत अछि।
नमहर भूमकम होइसँ पहिने
जहिना नहियो होइबला बच्चा सबहक जनम भऽ जाइत अछि जइसँ दोस्तिआरेक संभावना
अनेरो बढ़ि जाइत अछि, मुदा से नै राधाकान्त आ कुसुमलाल दुनू गोटेकेँ एक्के दिन बेटा भेलनि।
ओना कियो-केकरो ऐठाम जिगेसा करै नै गेलखिन तेकर कारण भेलै जे अपने-अपन घर ओझड़ा
गेलनि। ओना पमरिया-हिजरनी महीना दिन धरि दौड़-बड़हा करैत रहल। दाइयो-माइ छठियारमे
रविदिन एकक नाओं रविकान्त आ दोसराक नाओं रविशंकर रखि देलकनि। अनेरे फूलक
बोनमे टहलितथि आकि साँप-कीड़ाक बोनमे। बोन तँ बोने छी, दुनूक छी। तँए हरहर-खटखटसँ नीक दिनेकेँ पकड़ि लेलनि। ओना एकटा आरो
केलनि जे दुनूमे सँ केकरो जातिक पदवी नै लगौलनि।
सुभ्यस्त परिवार रहने
तीन बर्खक पछातिये स्कूल जाइ जोकर भऽ गेल मुदा चारिम बर्खमे दुनूक नाओं गामेक
स्कूलमे लिखौल गेल। ओना जेहने सेझमतिया राधाकान्त तेहने कुसुमलालो। मुदा नाओं
लिखबै दिन रविकान्तक पिता गेलखिन आ राधाकान्त अपने नै जा भायकेँ पठौलखिन आ
रविशंकरक पित्ती एक बर्ख घटबी कऽ कऽ लिखौलखिन। ओना राधाकान्तकेँ स्कूलपर
जेबाक मनो ने होइत छन्हि। किएक तँ स्कूल सबहक जे किरदानी भऽ गेल ओ देखबा जोग
नै अछि। शिक्षक सभ विद्यार्थीकेँ नहिये पढ़ैक लेल प्रेरित आ नहिये पढ़ैक जिज्ञासा
जगा पबैत छथि। छड़ी हाथे पढ़बए चाहैत छथि।
एक तँ एक रंगाह परिवार
तहूमे दोस्ती। दुनू गोरे तेहेन चन्सगर जे गामेक स्कूलसँ पटका-पटकी करैत निकलल।
पटका-पटकी ई जे एक साल रविकान्त फस्ट करैत तँ दोसर साल रविशंकर ओना हाइ स्कूलमे
थोड़े गजपट भेल, स्कूलक शिक्षक आंकि लेलनि जे केतबो उपरा-उपरी छै तैयो सोचन शक्तिमे
दुनूमे अन्तर किछु जरूर छै। कओलेज तँ बिना माए-बापक होइए, केकरा के देखत। मुदा आनर्सक संग दुनू गोटे प्रथम श्रेणीमे निकलल।
आइ.पी.एस. कऽ दुनू गोटेक
ट्रेनिंग आ ज्वानिंग सेहो भेल। अपेक्षामे बढ़ोत्तरी होइते गेल।
१.नवेंदु कुमार झा- गंगा नदी पर पूलक माध्यम सँ बढ़त
कारोबारक चालि/ महिषीमे आयोजित होयत सांस्कृतिक महोत्सव/
सर्वसम्मतिसँ सभापति आ उपाध्यक्षक निर्वाचित/ बिहारमे शिक्षाक लेल मदति करत विश्व बैंक २.अमित मिश्र- कतिआएल आखर
१
नवेंदु कुमार झा
गंगा नदी पर पूलक माध्यम
सँ बढ़त कारोबारक चालि/ महिषीमे आयोजित होयत सांस्कृतिक महोत्सव/ सर्वसम्मतिसँ
सभापति आ उपाध्यक्षक निर्वाचित/ बिहारमे शिक्षाक लेल मदति
करत विश्व बैंक
१
गंगा नदी पर पूलक माध्यम
सँ बढ़त कारोबारक चालि
प्रदेश मे गंगा नदी पर
पूलक कमीक कारण प्रदेश मे कारोबार के गति नहि भेटि रहल अछि। नीतीश कुमारक नेतृत्व
बला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार प्रदेशमे विकासक गति देबाक संगहि
कारोबारकेँ गति देबाक दिस सेहो डेग उठौलक अछि। कारोबारक एहि समस्याक समाधानक लेल
सरकार गंगा नदी पर पूल बनैबा पर विशेष जोर दऽ रहल अछि। एखन गंगा नदी पर तीनटा पूल बनि
रहल अछि आ चारिम पूलक लेल सेहो केन्द्र सरकार सॅ अनुमति भेटि गेल अछि। ओ तँ एखन
गंगा नदी पर चारिटा पूल अछि जाहि मे पटनाक महात्मा गांधी सेतू आ मोकामाक राजेन्द्र
पूल पर बेसी भार रहैत अछि। एक दिस महात्मा गांधी सेतू संरचनात्मक खराबीक कारण
मात्र एक लेन चालू अछि जाहि सॅ हरदम पूल पर जाम लागल रहैत अछि। तऽ दोसर दिस
राजेन्द्र पूल बेसी पुरान होयबाक कारण बेर-बेर मरम्मतिक लेल बंद करय पड़ैत अछि। एहि
स्थिति मे प्रदेशक पूर्वी आ पश्चिमी भागक मध्यक आबाजाही मे परेशानी बढ़ि गेल अछि।
सरकार एहि समस्याक जनतब लेलक अछि आ एहि समस्याक समाधानक प्रयास कऽ रहल अछि। गंगा
नदीक ऊपर पूल यातायात लोक सुविधा आ कारोबारक लेल आवश्यक अछि तें राज्य सरकार
प्रदेश मे नव पूल बनैबाक काज तेजी सॅ चलि रहल अछि।
पथ निर्माण मंत्री
नंदकिशोर यादव जनतब देलनि जे एखन सरकार गंगा नदी पर दू टा पूल बनैबाक योजना बनौलक
अछि। एहि मे एकटा ताजपुर-बख्तियारपुरक मध्य बनाओल जा रहल अछि। ई पूल
सार्वजनिक-निजी-भागीदारी (पीपीपी)क अंतर्गत बनि रहल अछि। चारि लेनक एहि पूल पर
गोटेक 1700 करोड़ टाका खर्च होयत। एकर 20-20 प्रतिशत टाका
केन्द्र आ राज्य सरकार दऽ रहल अछि तथा 60 प्रतिशत टाका
निजी साझेदार कम्पनी लगा रहल अछि। श्री यादव जनौलनि जे महत्वक एकटा योजनाक अंतर्गत
ई पूल बनाओल जा रहल अछि। एकर अंतर्गत सरकार प्रदेश के उड़ीसाक पारादीप बन्दरगाह सॅ
जोड़बाक योजना बनौलक अछि। एहि परियोजनाक मंजूरिक लेल केन्द्र सरकार सॅ लगातार गपसप
चलि रहल अछि। ज्यों एकर मंजूरि भेटि जाईत अछि तऽ ई प्रदेशक लेल महत्वपूर्ण होयत आ
कारोबारी गतिविधि मे सेहो तेजी आओत। ओना ताजपुर-बख्तियारपुर पूल वर्ष 2016 धरि बनि कऽ तैयार भऽ जायत।
सरकार के पटनाक महात्मा
गांधी सेतूक समानान्तर सेहो नव पूल बनैबाक अनुमति केन्द्र सॅ भेटि गेल अछि। पथ
निर्माण मंत्री जनौलनि जे सरकार कतेको दिन सॅ एहि पूल के बनैबाक अनुमति केन्द्र सॅ
मांगि रहल छल। दरअसल महात्मा गांधी सेतु आब आवश्यकताक पूर्ति करबा मे छोट पड़ि रहल
अछि। पटना प्रदेशक आर्थिक गतिविधिक केन्द्र अछि। तें एहि ठाम आधुनिक आ नव पुलक
आवश्यकता अछि। केन्द्र सरकार महात्मा गांधी सेतुक समानांतर छह लेन एहि पुलक अनुमति
देलक अछि। एहि सॅ प्रदेशक आवश्यकताक पूरा भऽ सकत। एहि सॅ उŸार आ दक्षिण बिहारक मध्य आबा जाही
आसान भऽ सकत। संगहि प्रदेश मे संगहि गंगा नदी पर बनल पूल पर बोझ कम होयत। ई पूल
लोक निजी साझेदारी (पीपीपी)क आधार पर बनाओल जायत। एहि लेल साझेदारक खोज कयल जा रहल
अछि। एकर अलाबा सरकारक नजरि रेलवेक परियोजना पर सहो अछि। दरअसल एखन पटना आ मुंगेर
मे दू-दूटा सड़क सह रेल पूल रेलवे द्वारा बनाओल जा रहल अछि। हालांकि रेलवेक खाली
खजाना के देखि ई योजना सभ जल्दी पूरा भऽ सकत। एकर भरोसा राज्य सरकार के सेहो नहि
अछि। राजधानी पटनाक दीघा आ सोनपुरक परमानन्दपुर मध्य बनि रहल रेल सह सड़क पूलक
निर्माण स्थिति रेलवेक वास्तविकता जाहिर कऽ रहल अछि। पछिला दस वर्ष सॅ ई परियोजना
चलि रहल अछि आ एखन धरि पूरा नहि भेल अछि। वर्तमान स्थिति केँ देखि संभावित समय सीमा
2015-16 धरि पूरा होयबाक उम्मीद नहि अछि। पथ निर्माण मंत्री जनौलनि जे राज्य
सरकार दीघा आ परमानन्दपुरक मध्य बनि रहल रेल सह सड़क पूल के जल्दी पूरा करबाक आग्रह
केन्द्र सॅ करता एहि वास्ते राज्य सरकार अन हिस्साक टाका उपलबध करा देलक अछि।
२
महिषीमे आयोजित होयत सांस्कृतिक
महोत्सव
मिथिलांचल ऐतिहासिक शक्ति
पीठ उग्रतारा स्थान मे नवरात्राक अवसर पर उग्रतारा सांस्कृतिक महोत्सव आयोजित कयल
जायत। सहरसाक महिषी स्थित उग्रतारा स्थान मे 17 आ 18 अक्टूबर केँ
आयोजित एहि दू दिनक महोत्सवक उद्घाटन बिहारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करताह। एहि
दरमियान मिथिलांचलक सांस्कृतिक, सामाजिक आ धार्मिक
विरासतक महत्व पर विचार-विमर्श होयत आ मिथिलाक सांस्कृतिक परम्परा सॅ लोकसभ केँ
अवगत कराओल जायत। एहि महोत्सवक लऽ कऽ मिथिलांचल सहित पड़ोसी देश नेपालक तराई वला
क्षेत्रक लोक सभ मे उत्साह देखल जा रहल अछि।
३
सर्वसम्मतिसँ सभापति आ
उपाध्यक्षक निर्वाचित
बिहार विधान मंडलक मॉनसून
सत्रक दरमियान बिहार विधान सभाक उपाध्यक्ष आ बिहार विधान परिषद्क सभापतिक चुनाव
सम्पन्न भेल। भाजपाक वरिष्ठ नेता अवधेश नारायण सिंहक विधान परिषद्क सभापति आ एहि
दलक अमरेन्द्र प्रताप सिंह विधान सभाक उपाध्यक्षक पद पर सर्वसम्मति सॅ निर्वाचित
घोषित भेलाह। दूनू पदक लेल मात्र एक-एकटा नामांकन होयबाक कारण हुनका निर्वाचित
घोषित कयल गेल।
४
बिहारमे शिक्षाक लेल मदति
करत विश्व बैंक
विश्व बैंक बिहार मे
गुणात्मक शिक्षाक लेल 1600
करोड़ टाकाक मदति करत। एहि पर सैद्धांतिक रूप सॅ सहमति बनि गेल
अछि। शिक्षा मंत्री पी.के. शाही विधान मंडलक मॉनसून सत्रक दरमियान ई जनतब दैत
कहलनि जे ई टाका दिसम्बर मास धरि उपलब्ध भऽ जायत। एहि टाका सॅ प्रदेशक प्रशिक्षण
संस्थानक आधारभूत संरचना के मजगूत कयल जायत।
२
अमित मिश्र
कतिआएल
आखर
बात चारि बर्ष पहिलुक अछि हमरा संगे एकटा संगी हमरे रूम मे रहैत
छल । पढ़ैमे कने कमजोर छलै मुदा कंपटीसनमे हमरासँ 2-3 घंटा
बेसीए राति कऽ जागै छल आ एकर फलस्वरूप 10 टा मे 4 टा सबाल जरूर हल कऽ लै छलै ।ओना तऽ हमरासँ बेशी बात नै करैत छल मुदा
भोर होइते बाँकी बचल सबालक लेल हमरा लऽग जरूर आबि जाइत छल आ एखन ओ मित्र बी .टेक
कऽ रहल अछि ।इ घटना चारि सालक बाद मोन पड़ल मुन्ना जीक एकटा शेर पढ़िकऽ
डाहसँ पहुँचब कोस-दू कोस
आगू बढ़बा लेल तँ प्रेम चाही
पिछला डेढ़ महिनासँ मुन्नाजीक गजल संग्रह "माँझ आँगनमे
कतिआएल छी " थोड़े-थोड़े पढ़ै छलौँह मुदा काल्हि भरि राति एकर गहन अध्ययन केलौँ
।कुल 50 टा गजल आ 10 टा रूबाइ के
संग्रह अछि "माँझ आँगन मे कतिआएल छी" ।पोथीक नाम पढ़ि मोनमे किदन-कहाँदन
बात सब उठऽ लागल ।कतिआएल उहो माँझ आँगनमे बिचित्र सन लागल मुदा पढ़लाक बाद हमरा
लागैत अछि जे शाइर एहि समाजके आँगन आ एहि समाज रुपि आँगनक माँझ मे अपन बैसार बनेने
छथि ।इ भऽ सकैए जे समाजक किछु भागसँ इ कतिआएल हेताह मुदा पूरा समाजसँ किन्नौह
कतिआएल नै लागै छथि । हमर इ कथनक सत्यता एहि संग्रह के पढ़लाक बाद बुझा जाएत । इ तऽ
प्रेमो केलनि तऽ समाजके ध्यान मे राकि तेँए तँ कहै छथि
सब उमरि वर्ग के प्रेम चाही
मरितो दम धरि कुशल छेम चाही
आशा आ निराशाके फरिछाबैत कहलनि
निराशा संग आशापर टिकल छै दुनियाँ
जँ देखलँहुँ भगजोगनी तँ दिबाली बुझू
बिहारक ताकत आ कमजोरी के समेटने इ शेर
बिहारक सिरखारी बदलि गेल सन लगैए आब
श्रमिक घटलासँ कंपनी मालिक लगै बिहारी जकाँ
एहन-एहन कतेको दमदार शेर सबसँ सजल इ गजल संग्रह अपना-आप मे अलग
पहचान बनबैत अछि ।
पहिले गजल के देखलापर एकटा बात हमरा खटकल जे छल मात्र चारि टा
शेर । गजलमे कमसँ-कम पाँच टा शेर रहबाक चाही मुदा एहि संग्रहक गजल संख्याँ 1,2,7,10,11,19,22,23,24,25,27,28,32,34,35,37,39,42,43,44,47,48
मे मात्र चारिए टा शेर अछि जे की गलत अछि ।ओना शाइर आमुखक
अंतीममे इ गलती स्वीकार करै छथि आ एकर जिम्मेदार अपना के मानैत भविष्यमे एकर
सुधारक वादा करैत छथि मुदा हुनक शब्दक पकड़ आ भावक अध्ययन केला के बाद हमरा लागैत
अछि जे शाइरक लेल उपरोक्त गजलमे एक-एक टा शेर बढ़ेनाइ कोनो भारी बात नै छलै तेँए हम
एकरा आलस मानै छी ।
आब चलु काफियापर । एहि संग्रहक किछु गजलमे एकै काफियाक प्रयोग
भेल अछि जेना 26म गजल मे तीन ठाम काफिया
"चाहैए" अछि ।29मे पाँच ठाम "एखनो" 31मे पाँच ठाम "उघारू" 46म मे पाँच
ठाम"केकरो-केकरो" अछि ।किछु और गजलमे इ बात अछि ।ओना काफियाक दोहरेलासँ
गजल गलत नै होइ छै ।
तेसर गजलमे मतला नै अछि किएक तँ इ गजलक पहिल शेर अछि
फाटैत छल जतए मेघ आ जमीन
पहुँचल पहिने ओतहि अभागल
बचल चारिटा शेरमे "अभागल" के काफिया मानि क्रमश:
"राँगल ,भाँजल , माँजल आ
साधल लिखल अछि ।4म गजलक मतलामे "करैए" आ
राखैए" "ऐए" तुकान्त संग अछि मुदा पाँचम शेर मे काफिया
"होइए" अछि । छठम गजलक अंतीम शेरमे"कहाइ" के बदला गलत काफिया
"कहाइत" लिखा गेल । 32म गजलक मतला अछि
हमरा तँ सुख भेटैए गजलक गाँतीमे
ओहिना जेना जाड़ मे गर्मी भेटैए गाँतीमे
एहिठाम "गाँतीमे" रदीफ भेल आ काफियाक अता-पता- नै अछि
।ओना आन शेरमे काफिया "आतीमे" तुकान्त संग अछि ।
41म गजलक मतलामे काफिया "झमका आ चमका " तुकान्त
"मका" संग अछि मुदा दोसर शेरमे काफिया "उठा" अछि ।
44म गजल मे काफियाक तुकान्त "एल" अछि मुदा दोसर शेरमे
काफिया "रखैल" "ऐल" तुकान्त अछि ।
17म गजलमे अंग्रेजी शब्दक काफिया "गेम" आ
"ब्लेम" लिखल अछि ।
एहि संग्रहक सबटा गजल सरल वार्णिक बहरमे अछि ।ओना तँ इ बहर गजलक
सबसँ हल्लुक बहर अछि मुदा शाइर इहो बहरमे बहुते बेर धोखा खाइत छथि । हमरा जानैत 26टा गजल गजलक कोनो शेरमे एक-दू टा वर्ण बढ़ा देलनि तँ कोनो मे घटा देलनि
।जेना
दोसर गजलक अंतीम शेरमे 15 के बदले 16
वर्ण अछि ।7म गजलक तेसर शेरमे 18
के बदले 19 वर्ण अछि । 9म मे दोसर शेरमे 11 के बदले 10 वर्ण अछि । 11म गजलक अंतीम शेरक अंतीम पाँतिमे
18 के बदले 17 वर्ण अछि ।एहन
गजती गजल संख्याँ 12,14,15,18,19,20,22,24,26,28,29,30,31,32,34,35,38,42,43,46,47आ 48 मे सोहो भेल अछि ।
ओना जँ भावक बात करी तँ एहि गजल संग्रहके ऊँचाइ पर पहुँचा देने
अछि एकर भाव । सबटा गजल हृदय के छू लैत अछि आ सोचबाक लेल मजबूर करैत अछि तेँए इ आन
संग्रह सबसँ बिल्कुल अलग अछि आ एकर आखर आन संग्रहक आखरसँ कतिआएल अछि । भावक कारणे
इ संग्रहक "कतिआएल आखर" पढ़बाक योग्य अछि ।हमर सलाह अछि जे एकबेर एकरा
अजमा कऽ जरूर देखू ।
बेस तँ अहूँ सब पढ़ू आ हम जाइ छी दोसर गजलक खोजमे . . .
शिव कुमार झा
१
कृष्णजन्म :: कथाकाव्यक
सूत्रपात
मैथिली साहित्यमे महाकाव्यक
पहिलुक छाँह रतिपति भगतक “गीत-गोविन्द”सँ सन 1723ई.क
लगिचमे देखएमे आएल। जइ छाहरिकेँ स्पष्ट बिम्बक रूप मनवोध द्वारा 18म शताब्दीक
मध्यमे “कृष्ण जन्म” स्वरूपे
देल गेल। मनबोध मध्यकालीन मैथिलीक विशिष्ट रचनाकार मानल जाइत छथि।
जौं पदावलीकेँ छोड़ि देल
जाए तँ ज्योतिरीश्वर आ विद्यापतिक अधिकांश रचना तत्समसँ लीपित छल। मनबोधक
प्रवेश मैथ्ज्ञिली काव्य जगतमे अत्यन्त महत्वपूर्ण किएक तँ “कृष्णजन्म” तत्सम परम्पराकेँ तोड़लक मात्र नै संग-संग चन्दा झा रचित मिथिला
भाया रामायणसँ आधारशीला सेहो प्रदान कएलक। डाॅ. ग्रियर्सनक मते कृष्णजन्म
महाकवि विद्यापति आ आधुनिक मैथिलीक हर्षनाथ झा आर तत्कालीन अन्य महाकाव्यक
योजक कड़ी थिक। ई िनर्विवाद सत्य जे कृष्णजन्मक भाषा ओ शैली संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ओ अवहट्ठसँ विलग जनभाषामे
रचत पहिलुक काव्य थिक। रतिपति भगतक गीत-गोविन्दक विपरीत कृष्णजन्मक व्यापक
प्रचार-प्रसार भेल किएक तँ कतौ भाषामे क्लिष्टता नै। तँए प्राय: सभ समालोचक एक
मतेँ स्वीकार करैत छथि जे तुलसीकृत रामचरित मानस जकाँ “कृष्णजन्म” मैथिली साहित्यकेँ प्रबंध
काव्यक पहिलुक सबल स्तंभ प्रदान कएलक। विद्यापतिक रचना रीतिकाव्यात्मक
मुदा मनवोध ऐ परम्पराकेँ तोड़ि जे नवल बिम्ब ओ शैलीक सृजन कएलनि ओइसँ चन्दा
झा अवश्य प्रेरित छथि।
सुभाषचन्द्र यादव लिखैत
छथि “मनवोध” कथाकाव्यक परम्पराक आरंभ कएलनि। श्रृंगारिक काव्य परम्पराकेँ विराम
दऽ कऽ ओ वात्सल्य भावसँ युक्त रचनामे विशेष रूचि देखैलनि। मनवोध विषय आ शिल्प
दुनू स्तरपर परम्पराक अतिक्रमण करैत छथि। विषयक स्तरपर कृष्णक नेनपन आ
पराक्रम हुनका आकृष्ट करैत छन्हि तँ शिल्पक स्तरपर चौपाइ। लोक भाषासँ सम्पृक्ति
सन विद्यापतिक परम्पराकेँ मनवोध अखुण्ण बनौने रखैत छथि।
दुर्गानाथ झा श्रीशक शब्दमे
“अठारहम
शताब्दीक अंतिम चरणमे मनवोध अवश्य कृष्णजन्मक रचना कएलनि ओ अद्भुत लोक
भाषात्मक प्रवाह ओ विलक्षण संक्षिप्त मुदा सजीव वर्णनक दृष्टिसँ लोकप्रिय
सेहो भेल। परन्च कृष्णजन्मसँ प्रबंधकाव्यक विकास परम्परा स्थापित नै भेल।
ई स्थापित भेल कवीश्वर चन्दा झाक मिथिला भाषा रामायण एवं लालदासक रमेश्वर
चरित रामायणसँ। “कृष्णजन्म झुझुआन काव्य तँए महाकाव्य
वा प्रबंध काव्यक श्री गणेश श्रीष एकरा नै मानैत छथि संग-संग महाकाव्यीय परम्पराक
सर्ग विभाजन ऐमे नै भऽ कऽ अध्यायमे बिभक्त अछि। एकर एकटा आर िनर्वल पक्ष जे
अठारह अध्यायमे विभक्त ऐ कृतिक पहिल दस अध्याय मात्र मौलिक आ खॉटी मैथिलीमे
रचित अछि। अन्य आठ अध्याय जनभाषा ओ रचनाक दृष्टिऍं विवादित तँए श्रीश जीक
मत अंशत: सत्य मानल जाए मुदा महाकाव्यीय मरम्पराक पहिलुक अनुपालन कृष्णजन्ममे
भेल तकर प्रणाण एकर पहिल अध्यायक उल्लेखमे तँ मंगलाचनण नै थिक मुदा आर्यभाषाक
महाकाव्यक मूल बिन्दु मंगलाचरणक छाँह ऐठाम अवश्य भेटैत अछि-
प्रणमो गिरिवर कूमारि-चरण
जे वल कवि सभ त्रिभुवन
वरन
हमहू कएल अछि मन मड़ गोट
कृष्णजन्म परिणय नै छोट
कोनपर होएत तकर निरवाह
एखन लगै अछि अगम अथाह...
मनबोध सोलह कलासँ निपुण
कृष्णकेँ ऐमे कोनो अभिसार पथपर विहुँसैत राधाक सिनेही नै बनौने छथि।
मनवोधक कृष्ण वास्तममे
नायक छथि।
‘धर्म संस्थापनार्थाय
सम्भामि युगे-युगे’क हुंकार भरैबला कृष्णक मात्र जन्म
कथा नै, मात्र प्रीति गाथा नै हुनक समग्र जीवन दर्शनक
अभिप्राय थिक ‘कृष्णजन्म’ भागवत
ओ हरिवंश पुराणक कथापर आधारित ‘कृष्णजन्म‘क नायक कृष्ण राम जकाँ गंभीर, लक्ष्मण जकाँ
मर्यादित सिनेही, स्वंय कृष्ण जकाँ वात्सल्य भावसँ
भरल शिशु आ नरसिंह जकाँ आक्रोशित दुष्ट नाशक छथि। ऐमे पहिलुक क्रांति जे
कृष्ण जीवन वृतांतक धार श्रृंगारसँ कर्त्तव्यवोध धरि चलि आएल। बाल मनोविज्ञानक
विश्लेशणक दृष्टिऍं कृष्णजन्म पहिलुक वास्तविक वाल्य शैलीसँ भल महाकाव्य
थिक-
गुड़कल-गुड़कल भिडुकल जाए
जतय अछल दुइ िवर्छ अकाय
जमला अर्जुन कनला-नाथ
जुगुति उपारल छुइल न हाथ
खसल महातरू हँसल मुरारि
भेल अघात जगतपर चारि....
डाॅ. चेतकर झाक शब्दमे
वस्तुत: ई पौराणिक महाकाव्य मात्र थिक आकि महाकाव्य ई अखन चरि विद्वत
समाजमे विवादक विषय बनल अछि। विवादक विषय ईहो अछि जे अठारह अध्यायमे विभक्त“ कृष्णजन्म” सम्पूर्ण रूपेँ मौलिक अछि आकि मात्र दस अध्याय धरि।
समालोचकक मन्तव्य जे
होन्हि मुदा ई अक्षरश: सत्य जे कृष्णजन्मक रीति नीति आधार-विचार, खान-पान, बात-विचारक संग-संग व्यवहार मिथिलाकसँ प्रभावित अछि। लगैछ जेना
कृष्णक कथा गोकुलक कथा नै मिथिलाक कोनो भूभागक कथा थिक। गाम भरि हकार, चुमाओन, तेल-सेनूर, नाच-गान,
भदवा, सोहर, वटगवनी,
झटहा आ ठेंपा फेंकब, टेलवा टेलइक खेल
खेलाएब सन खाँटी मैथिल परम्परा ऐ काव्यकेँ मिथिला धरापर जीवन्त कऽ देलक।
म. म. डाॅ. उमेश मिश्रक
अनुसार ई कथा दशम अध्याय धरि श्रीमद्भागवतक दशम स्कंधक पूर्वाधक आधारपर लिखल
गेल अछि, एगारहमक अध्यायसँ अन्त धरि हरिवंश विष्णुपर्वक आधारपर लिखल गेल
अछि।
प्रो. रमानाथ झाक कहब छन्हि-
“मनवोध
पहिल कवि छलाह जे अपन कृष्णजन्ममे श्रृंगार रससँ शून्य भक्ति रसमय एकछन्द
मे जे राग ताल प्रभृति गीतक विषयसँ रहित अछि अपन एक गोट नूतन शैलीमे काव्यक
रचना कएलनि। ई छन्द आब चौपाइ कहल जाइत अछि परन्तु ताहि दिन ई गाहिक मेर
बूझल जाइत छल।”
राग-लय, गति, यति ओ नियतिक रचनात्मक मर्यादा जे हुअए अपितु ई अक्षरश: सत्य जे
कृष्ण जन्मक महाकाव्यीय सृजनतामे वएह मौलिक स्थान जे स्थान संस्कृत साहित्यमे
वेदव्यास ओ वाल्मीकिक अछि। अर्थातृ वेद व्यास ओ वाल्मीकि हदृश मनवोध मैथिली
महाकाव्यक शलाका पुरुष छथि।
सुमन जीक शब्दमे प्रकृति
वर्णन, भने ओ जड़ प्रकृति होअ अथवा मानव प्रकृति मनवोधक रचनामे सहज, सुबोध एवं हृदयावर्जक बनल अछि। संज्ञा, क्रिया
विशेषण, नामधातु ओ अनुध्वनिक विलक्षण प्रयोग ऐमे
भेटैत अछि।
मैथिली काव्यमे गीत-शिल्पक
जे परम्परा छल तकरा लागि स्वतंत्र कथा-काव्यक पहिल प्रयोग “कृष्णजन्म”मे भेल। बाल साहित्यक दृष्टिसँ जौं देखल जाए तँ प्रयोगकेँ वादक
धरातलपर आनि महाकाव्यक रूप रेखामे बाल मनोविज्ञानकेँ पूर्णत: स्पर्श मनबोधसँ
पूर्व कियो नै कऽ सकलाह। शब्द-शब्दमे प्रवाह हास्य स्पर्शी ओ सजीव अछि। तँए
दशम अध्याय धरि उत्तर आधुनिक काव्यक लेल सेहो अनुगामी तँ रचनाकालमे एकर महत्व
की हएत ई मंथनक विषय थिक।
तँए ई सत्य मानल जाए जे
मात्र एक छन्दमे लिखल समस्त महाकाव्यक शैलीक ई मैथिलीक प्रयोग ग्रंथ थिक जे
भाषा विन्यासक संग-संग बिम्बक मौलिक स्पर्श आ बाल साहित्यक लेल अखन धरि
उपयोगी अछि।
२
क्षणप्रभा
“क्षणप्रभा”क अर्थ होइछ बिजरी जेकरा प्रबुद्ध जन तड़ित कहैत छथि। हम कोनो नैसर्गिक
कवि नै, क्षणिक भावना कविताक रूपेँ अभिव्यक्त भेल
जेकर प्रासंगिकताक िनर्णए पाठकगणपर छन्हि।
हमर कहब मात्र इएह जेे हमर
ई पहिलुक प्रयास थिक ऐमे काव्य लक्षणा ओ व्यंजनाक अनुपालन भेल वा नै ऐ विषयमे
हम किछु नै कहि सकैत छी,
मात्र इएह कहबाक लेल नीति संगत हएत जे जइ भाषाकेँ बाल कालहिंसँ
िहआमे लगा कऽ रखलौं ओइ भाषामे अपन किछु अभिव्यक्ति पाठकगण लग परसि रहल छी।
हमर जन्म अपन मातृक
बेगूसराय जिलाक मालीपुर मोड़तर गाममे भेल। कहिओ ई भूमि मैथिलीक प्रांजल कवि
फजलुर रहमान हासमी जीक कर्मभूमि छल। हमर पिता मैथिलीक चर्चित आशुकवि कालीकान्त
झा ‘बूच’
आ हासमी जीमे बड़ आत्मीयता छलनि। माए चन्द्रकला देवी सेहो
मैथिलीमे किछु पद्य लिखने छलीह। बालकाल मातृकमे बीतल, तकर
बाद पैतृक गाम उदयनाचार्यक भूमि करियनक माटि-पानिमे रमि आगाँ बढ़ैत गेलौं। पिताक
कवित्वक कारणेँ महाकवि आरसी, चन्द्रभानु सिंह,
प्रवासी प्रो. नरेश कुमार विकल, प्रो.
विद्यापति झा, प्रो. राम कृपाल चौ. राकेशसँ परिचय भेल।
तकर परिणाम थिक ई छोट-छीन कृति।
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