१.बलराम साह २.मुन्नी कामत
१
बलराम साह
जन्म- 21/11/1973
पिताक नाओं श्री जीबछ साह, गाम- नौआबाखर, पत्रालय- हटनी, भाया- घोघरडीहा, जिला- मधुबनी (बिहार)
संप्रति- अधिवक्ता, जिला न्यायलय, मधुबनी
सांसद प्रतिनिधि, झंझारपुर।
द्वन्दक मझधार
एकटा एहेन लोक जेकरा करिया आखरसँ भेँट नै
एकटा एहेन लोक जेकरा हाथमे अखवार अछि।
एकटा एहेन नेना जेकरा पेटमे अन्न नै
एकटा एहेन नेना जेकरा खेलौनाक भरमार अछि।
एकटा ओ समाज जे खाइत नित मारि अछि
तँ एकटा ओ समाज जेकरा हाथमे तरूआरि अछि।
एकटा ओ जाति जिनक बौआक पएर पवित्र अछि
एकटा ओ जाति जेकरा छुनिहार पापक भागीदार अछि।
देखबामे कहबामे हम सभ छी एक्के मुदा
हमरा मोनमे आइयो द्वन्दक मझधार अछि।
२
मुन्नी कामत
मुन्नी कामत
१
बेटी
बेटी अभिशाप नै वरदान अछि।
तिलकक बिहारिसँ
बेटीकेँ नै बहाबू
ई छी घरक लक्ष्मी
अकरा नै समान बनाबू।
नै अछि ई बोझ
नै अभागी
शक्तिक ई प्रतिरूप अछि
अकरा नई शापित बनाबू।
दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती
संगे सीतो अइमे समाइल अछि
हिनकर आॅंचलमे हमर काल्हि अछि
अकरा नै कलंकित बनाबू।
२
दहेजक आइग।
सुनथुन यै सासुमा
हमहूॅं छी किनको बेटी
हमहूॅं किनको दुलार छी
हमहूॅं ९ महिना किनको कोइखमे
आस आ ममता सँ सिंचल छी।
नै बुझियौ आन हमरा
हमहूॅं एगो मायक अंश छी
लऽ कऽ आइल छेलौं
आश एगो कि,
माय कऽ छोड़ि, माय लग जाइ छी,
बाबू छोड़ि बाबू लग
यएह अरमान बसैनउ हम
सपना सजेने एलौं हम।
बाबू हमर अछि गरीब
बेटीक कन्यादान कऽ कए
तँ राजा जनको भऽ गेल छल फकीर
जब दिलक टुकड़े सोंइप देलकनि
तँ कि आगाँ चाह रखैत छी।
दहेजक खातिर कतनो बेर अहॉं हमरा जरैब
तइयो नै अहॉं अपन
एक बितक पेटक अग्निकेँ बुझा पएब
छोड़ू ई लालच, मोह
अहूॅं तँ ककरो बेटी छी।
आइक नै तँ काल्हिक चिंता करू
घरमे बेटी अछि अहूँक जवान
अपन नै तँ ओकर परवाह करू।
३
ओइ पार
तूँ बता रे माझी
कि छै ओइ पारमे
माय, बाप,भाइ, बहिन
अपन, पराया सभ नाता, रिश्ता
मिलतै ओइ संसारमे।
सुनै छिऐ राजा हुअए या रंक
छोड़ऽ पड़तै सभकेँ ई देहक संग
तूँ बता रे माझी
बिन देहक वएह मलार
मिलतै ओइ संसारमे।
नै मंजिलक अछि खबर
नै रस्ताक पहचान
तूँ बता रे माझी
अन्हार राह पर चलैत हम
एकोगो राह बना पेबै
ओइ पारमे।
४
नेताजी
सफेद लिबासमे लिपटल नेताजी
हाथ जोड़ि, नतमस्तक नेताजी
जुबान खामोश, अबोध नेताजी
देखियौ आइल हमर गाम
हमर पालन हार, नेताजी।
मॉंगै लेल भीख
आश लगौने नेताजी
भिखक नाम पर
खून मॉंगैत अछि, नेताजी।
कतेक सालसँ हम सभ चुसाइत छी
आब बस पाइन अछि देहमे
यौ नेताजी।
ब्ुझि रहल छी करतुत अहॉंक
सफेद वस्त्रक भीतर
कारी मन अहॉंक नेताजी।
कतनो खाइ छी तइयो
दैतक खुनल पेट नै भरैत अछि
अहॉंक नेताजी।
ज्यों फेर पकड़ा देब बंदूक
हवलदार बनि
हमरे सभ पर दहारब अहॉं
यौ नेताजी।
५
पहिल बरखा
छू कऽ हमर मनकेँ
गुदगुदेलक ओ प्यारसँ
छुलक हवाक झोका हमरा
अपन शीतलताक मलारसँ।
छिटका रहल छल चॉंद-चॉंदनी
जे थपथपैलक हमरा गालकेँ
अपन ममतामय दुलारसँ।
झमौक कऽ ऐल कारी मेघ
नहलाकऽ गेल अइ जहाँ केँ
अपन होठक मिठास सँ।
छू कऽ हमर अंग-अंगकेँ
चुइम कऽ धरतीक कण-कणकेँ
पुचकारलक सहलैलक
अपन स्नेहक बरखा सँ।
६
किसान
होइत भिनसरे
अजबे नजारा सभ गामक
कोइ पकड़ि बड़दक जुआ
कोइ खाय रोटी संग नुनमा
दौड़ल अपन काम पर।
सबे परानी माइट संगे
अपन जीवन बिताबैए
बच्चा तँ बच्चा
बड़को अहिना पोसाइए।
दिन-राइत मेहनत कइर ई
धरतीक कौइख सँ अन्न उपजाबैत अछि
नै कोनो थकान अकरा
नै ककरो सँ शिकाइत अछि।
एहन निर्मल अछि
हमर किसान जिनकर
प्रतिदान आ संतोषे
संस्कार आ पहचान अछि।
विनीत उत्पल
१
राजनीति
कतेक रास गप करैक अछि अहाँ सँ
जिनगीकेँ लऽ कऽ
घर-बाहर केँ लऽ कऽ
साहित्य केँ लऽ कऽ
राजनीति केँ लऽ कऽ
एकटा गप पुछैत छी
की हमर आपन सबहक जिनगी
राजनीति क बिसात मे जकड़ल अछि
शतरंजक मोहरा जना हम सभ छी
जे जेना खिलाड़ी चलत तना हम चलब
घर मे राजनीति
भाय-भौजायक-भाबौक राजनीति
बहिन-बहिनाय- साढ़ूक राजनीति
कका-काकी-बाबाक राजनीति
खाना खाइक, बड़ी-भातक राजनीति
खेत मे राजनीति
बांट-बटेदार, खेत-पथारक राजनीति
पइन पटैबा, बिआ बुनइक राजनीति
फसल चराबैक, फसल चोराबैक राजनीति
फसल काटैक, फसल बेचबाक राजनीति
ऑफिस मे राजनीति
प्रमोशन, डिमोशनक राजनीति
कर्मयोगी, अकर्मयोगीक राजनीति
बॉसक आगाँ-पाछाँ करैक राजनीति
तेल लगाबैक राजनीति
मुदा, एकटा गप मन मे आबैत अछि
ई सभ राजनीति कोन राजनीति अछि
आ एकर स्थान कतए अछि
जखन साहित्यक राजनीति धरगर भऽ रहल अछि
साहित्यक नाम पर सरकारी संस्थासँ पाइ वसूलैक राजनीति
बेटी-बहिनकेँ बदनाम कऽ आपन धौंस आ ब्लैकमेलिंगक राजनीति
एनजीओ बनाकऽ संस्थाक नाम पर पाइ उघाबैक राजनीति
नाटक, गीत-नाद, कला आ संस्कृतिक नंगा नाच देखबाक राजनीति
जखन एहन राजनीति दमगर अछि
तखन देशक विकास आ शासनक राजनीतिक स्थान कतए अछि
गांधी आ अंबेडकरक देसमे ईहो राजनीतिक हिस्सा अछि
जेकरा कोनो स्कूलमे नै पढ़ाऔल जाइत अछि
मुदा हम वा अहाँ सभ नेनासँ घोंटि-घोंटि कऽ पीने छी
ताहिसँ रग-रगमे अछि राजनीति।
२
भाषा
भाषाक एकटा इतिहास होइत अछि
जहिना-जहिना दंड-पल बदलैत अछि
तहिना-तहिना भाषामे सेहो बदलाव आबैत अछि
ओहिनो कोस-कोसपर भाषा तँ बदलिते अछि
मुदा भाषा की होबाक चाही, एकर उत्तर के देत?
भाषाक विकृतीकरण एकटा शब्द अछि
जेकरा लेल विद्वानजन गहींर-गंभीर अछि
कियो हिंदीक पाछाँ भागैत अछि
केकरो अंग्रेजीक नशा चढ़ल अछि
ओना हिंदीक लोक हिंग्लिशसँ तंग अछि
मुदा मैथिलीमे कोनो 'मैथिलीश" क कोनो कांसेप्ट नै अछि
भाषाक परिवर्तन वा परिमार्जनक गप बेसी गंभीर अछि
परिवर्तन गतिशील अछि आ संस्कृतिकरण सेहो एकटा शब्द अछि
एकटा भाषाकेँ दोसर भाषामे घुसपैठ आ अंतरंगता कोनो मुद्दा नै अछि
अंग्रेजी आ हिन्दीक आधिपत्य स्वीकार करहि बला संस्कार जखन रग-रगमे विचरण कऽ रहल अछि
तखन अहाँ की कऽ सकैत छी आ की कहि सकैत छी?
मैथिलीक विद्वतजन जखन घरमे हिन्दी वा अंग्रेजीमे टिपिर-टिपिर करैत अछि
लंद-फंदसँ जागत, लंद-फंदसँ सुतत़
जकर हर सांसमे अछि लंद-फंद
प्रगतिशील कहाबैक लेल पर-गतिक बाटपर अछि
तखन भाषाविद कतेक गंभीर भऽ सकैत अछि, एकरा आशंका जता जा सकैत अछि।
३
शंका
दुनियाँमे अछि बड़ रास बीमारी
माथ दुखा रहल अछि केकरो तँ कियो अछि पेट गुड़-गुड़सँ तंग
आँखिसँ नोर बहि रहल अछि तेँ कानमे दर्द अछि केकरो
सूगर बेसी भेल तँ जिनगी भरि मीठ नै खा सकैत छी
सूगर कम भेल तँ तुरंते अहाँकेँ गूलकोज पीबए पड़त
केकरो हाइ ब्लड प्रेशर अछि तँ केकरो लो
कियो एड्ससँ ग्रसित अछि तँ कियो कैंसरमे जकड़ल
जतेक रास बीमारी अछि ततेक रास दवाइयो
कियो नीम-हकीम लग जाइए तँ कियो कराबैए
एलोपैथी, होमियोपैथी आ आयुर्वेदिक इलाज।
दुनिया भरिक डॉक्टर आ वैज्ञानिक
नब-नब रोग आ ओकर छुटाबैक दवा बनाबैमे लागल अछि
मुदा, हमरा जानल एकटा एहन बीमारी अछि जकर इलाज नै
आजुक बाजारवाद, तथाकथित प्रगतिशीलवाद जुगमे
बाप करैए बेटा पर शंका
बेटा करैए बाप पर शंका
माय करैए पुतोहु पर शंका
पुतोहु करैए माय पर शंका
ननद करैए भौजाइ पर शंका
भौजाइ करैए ननद पर शंका
जतए देखि ओतए शंके शंका
घर मे शंका, ऑफिस मे शंका
बॉस केँ शंका, कर्मचारी केँ शंका
किनै मे शंका, बेचै मे शंका
रौद मे शंका, मेघ मे शंका
पानि मे शंका, दूध मे शंका
प्रेम मे शंका, घृणा मे शंका
दोस्ती मे शंका, दुश्मनी मे शंका
साँस मे शंका, पलक झपकै मे शंका
खाइ मे शंका, पीबै मे शंका
बुलै मे शंका, सुतै मे शंका
नोचै मे शंका, खुजलाबै मे शंका
शंके शंका, सनातन शंका
शंका ब्रह्मा, शंका विष्णु, शंका देवो महेश्वर
शंका साक्षात परम ब्राह्म, तस्मै श्री शंकायै नम:।
जोर सँ बाजू
शंका रहए मन मे
शंका रहए तन मे
शंका खाएब, शंका पीअब, शंका सुतब, शंका मूतब
एक-दोसर पर शंका करब, हम नै प्रेमसँ रहब
ओम शंकाय नमः ।
४
स्मृति लोप
हमर स्मृति लोप भऽ रहल अछि
ई गप एतेक धरगर अछि जइ सँ
हम कतेको काज सँ बरजि जाइत छी
एकरा सँ हमरा कियो चरियाबै नै अछि
आब हमर धर्म भऽ गेल अछि, काज कम बपराहिट बेसी।
हमर जे मनक मुताबिक नै होइत अछि
ओकरा लेल सीधे फूइस बाजि दैत छी
जे हमरा कोनो काज-धाज ख्याल नै रहैत अछि
ई कहि कऽ हम घर संगे ऑफिस मे दयाक पात्र बनैत छी
एकरा सँ देहक आराम भेटि जाइत अछि
किएकि हमर देह आ मोन आब कामचोर बनि रहल अछि।
काल्हि कार्यालय मे हमरा एकटा भारी-भरकम काज देल गेल छल
ओतेक भारी नै जतेक हम वर्णन कऽ रहल छी
महत्वपूर्ण गप ई जे आब हम बूढ़ा गेलौं मन आ तन दुनू सँ
किए कि हमरा आब कोनो प्लानिंग नै अछि जिनगीक
तइसँ दोसर दिन कहि देलौं जे हमरा ख्याल नै रहल।
ओना अहि “स्मृति लोप" क पाछाँक खेला बड़ पैघ अछि
एकर आर मे नै जानि कतेक रास गप अछि
कोनो नीक गपक लेल लेल कोनो आहटक जरूरतो आब नै अछि
मुदा अधलाह गप तँ स्मृति मे मृत नै होइत अछि
आइ धरि हमर कक्का, काकी, बाबू, माय, बहिन-भैयारी
की केने अछि, की बाजल अछि, सभटा ख्याल अछि।
हम नेना मे जेना ककहरा कक्षा मे सुनाबैत छलौं
तहिना हम सभटा गप सुना सकैत छी
जे कियो हमरा संग नीक काज करलक
ओकरा तँ जरूर बिसुरि गेल छी
मुदा अधलाह काज, अधलाह गप
सभटा ख्याल अछि
हमरा सेहो गपक ख्याल अछि
जे अपना हिसाबे हमरा संग नीक करलक
मुदा हम ओकरा अधलाहे लेलौं आ बुझलौं।
५
प्रश्न
अहाँ केँ बुझल अछि एकटा प्रश्नक उत्तर
अहाँ प्रश्न सुनि कऽ कहब जे ई कोनो प्रश्न अछि
अहाँ बूरबक छी जे एहन प्रश्न करैत छी
बुझि गेलौं जे अहाँ पढ़ल-लिखल भेलाक बादो अज्ञानी छी
मुदा, हम सत कहैत छी
एकटा प्रश्न हमर आँखि केँ चौन्हरा रहल अछि
हमर शांतिकेँ नाश करए मे लागल अछि
हमरा नीन नै होइत अछि
ओइ प्रश्नक उत्तर ताकहि मे बताह भऽ रहल छी
हमर प्रश्न बड़ सोझ अछि
मुदा ओकर उत्तर ततबे ओझराएल अछि
तइ सँ कतेको रास प्रयत्न करबाक बादो
हम ओकरा सोझराबै मे सफल नै भेलौं
ओझराएल आ सोझराएल शब्द मे हमहूँ हेरा गेल छी
प्रश्न कतेको रास भऽ सकैत अछि
अहाँ खाइत किए छी
अहाँ बाजैत किए छी
अहाँ गाइर किए दैत छी
अहाँ फूइस किए बजैत छी
अहाँ दोष आरोपित किए करैत छी
अहाँ पाइक लेल हाइ-हाइ किए करैत छी
अहाँ केकरो बेटीकेँ बदनाम किए करैत छी
जखन अहाँ एक दिन मरबे करब
अहाँ केँ बुझले हएत जे मरलाक बाद अंतिम संस्कार लेल
बस चार हाथि धरती चाही आ ओकर दाम आना मे होइत अछि
अहाँ जइ दाममे मकान बनबाक लेल जमीन रजिस्ट्री करेलौं
ओइ दामक तुलनामे ई किछु नै अछि
मुदा जहिया श्मशान ओइ चार हाथ जमीनक दाम रजिस्ट्रार ऑफिस तय करए लागत
तहिया अहाँ केँ कोन ठाम स्थान भेटत, ई कनी सोचू
यएह प्रश्न अछि जे हमरा देह-दिमागकेँ सुन कए रहल अछि
अहाँ की सोचए लागलौं, कनी एकर उत्तर दिअ।
६
नामर्दक शहरमे
आइ जइ कालमे हम सभ रहि रहल छी, ओ नामर्दक जुग अछि
हमर कवितामे नामर्द कोनो जाति नै अछि
वा कोनो मनुष्यक शारीरिक अवगुणक उपहास नै कएल जा रहल अछि
ई छी मानसिक दिवालियापनकेँ लऽ कऽ एकटा शब्द
कहैत छी जे हम वैश्विक भऽ गेलौं
ग्लोबल विलेजक कांसेप्ट आगू राखि रहल छी
ट्विटर, फेसबुकक जमानामे रहैत छी
मुदा रहैत छी नामर्दक शहरमे
आइ सांस्कृतिक आ सामाजिक दिवालियापनक ई हाल अछि जे
कोनो स्त्री जातिकेँ कोनो तरहेँ अहाँ सहायता नै कऽ सकैत छी
कोनो दलित जातिकेँ कोनो तरहेँ अहाँ सहायता नै कऽ सकैत छी
कोनो हासियासँ बहराएल लोकक सहायता नै कऽ सकैत छी
ऐ नामर्दक शहरमे जौँ अहाँ अपन सहृदएता देखाएब
अहाँक चरित्र, व्यवहार, मेल-जोलक प्रति
विषवमन हएत, गारि-फजीहत हएत
साहित्यिक विद्वान छद्म नामसँ अहाँक माय-बहिन एक करत
अहाँकेँ नै बुझाएल हएत जे हुनकर शब्दकोषमे केहन-केहन शब्द अछि
केहन-केहन सोच अछि, केहन-केहन वाक्य अछि
ओना चिन्ताक कोनो गप नै अछि, जौँ अहाँ अपना दिससँ नीक छी
जकरा लग जे शब्द हएत, जेहन संस्कार भेटल हएत, जेहन मायक दूध पीने हएत
ओकरासँ बहराइक ताकति ओकरामे नै छै
यएह ओकर असली रूप छै, जे रहैत अछि नामर्दक शहर मे।
१. जगदीश प्रसाद मण्डल२.मुकुन्द मयंक
१
जगदीश प्रसाद मण्डल- पाँच गोट गीत-
सुखले मे सभ....
सुखले मे सभ पिछड़ि रहल छै
मुँह-कान सभ तोड़ि रहल छै।
सूखल जानि पएर जतऽ रोपै छै
काह-कूह सभ ततऽ जमल छै।
सुखले मे सभ.....।
सूखल धरती जतए पड़ल छै
झल-फल नजरि ततए जाइ छै।
सुखले मे सभ......।
अन्हर-जाल फरिच्छ मानि बूझि
भोर-भुरुकबा सूर्य बुझै छै।
सुखले मे सभ......।
दीनक दिन केना.....
दीनक दिन केना कऽ चढ़तै
मन कहाँ कहियो मानै छै।
रतुके काजे दिनो काटि-खोंटि
बढ़ती कहाँ तानि पबै छै।
दीनक दिन केना.....।
बिनु तनने घोकचि-मोकचि
जाड़ माघ अबैत रहै छै।
चैतक चेत चेतौनी चेति
सिर जेठ धड़ैत रहै छै।
दीनक दिन केना.....।
तीन जेठ एगारहम माघ
तीनू लोक देखैत सुनै छै।
देह-पसेना सुरकि चाटि
माघे ने माघो कहबै छै।
दीनक िदन केना.....।
कोढ़ पकड़ि.....।
कोढ़ पकड़ि कोढ़ी कहै छै
कोंढ़िया कोढ़ पकड़ने छै।
केना कऽ फड़बै-फुलेबै
रेहे-देहे पकड़ने छै।
कोढ़ पकड़ि.....।
देखबोमे नहि देख पड़ै छै
सुनबोमे नहि सुनि पबै छै।
टीश-पीड़ा टीशा पीड़ा
घोर-घोर मन बनौने छै।
कोढ़ पकड़ि.....।
नहि कहियो फड़बै-फुलेबै
झखि-झखि आशा तोड़ने छै।
सकारथ भऽ अकारथ बनि-बनि
दिन-राति अनियाय करै छै।
कोढ़ पकड़ि.....।
मीत यौ, जाल समाज.....
जाल समाज महजाल बनल छै
हाना बनि परिवार सजल छै।
जाल समाज महजाल बनल छै।
बिनु नाप हाना बनल छै
हाना मध्य खाना सजल छै।
हाना बूझि खाना लपकि
खानामे जा-जा फँसै छै।
मीत यौ, जाल समाज.....।
जान गमाएब खेल खेलि
बचैक नहि उपाए करै छै
ऊपर कूदि-कूदि फानि चाहि
गोरिया-गोरिया गुहारि करै छै।
मीत यौ, जाल समाज.....।
मीत यौ, देहक पानि.....
मीत यौ, देहक पानि तखन फुलाइ छै
कोढ़ी बनि काज रूप लगै छै।
देहक पानि तखन फुलाइ छै।
कोढ़िये ने फुलो-फड़ो संग
बाँहि पकड़ि संकल्प कुदै छै।
देहक पानि.....।
जाधरि मन संकल्पित नहि
ताबे केना उद्देश्य कहबै छै
संकल्पे ने तन-मन बीच
सीमा दइत डेग बढ़बै छै।
मीत यौ, देहक पानि.....।
काम-धाम जहिना बनै छै
तहिना ने कर्मो-धर्म कहबै छै
धर्मे ने धारण करैत
पथ-पानि चढ़बैत चलै छै।
मीत यौ, देहक पानि.....।
२
मुकुन्द मयंक
कविता
कनियाँक आयल लगबो नै कएल एक्को साल
भs गेल कनियाँ मास्टरीमे बहाल
जहिया सँ भेली ओ टिचर बदलि गेल हमर फ्युचर
पहिने करै छलौं मालिकक जी हजुरी
आब बनि गेलौं घरक बिल्ली
हम करै छी घरक काज
बुढ़िया करैए बच्चाक परिस्कार
बुढ़बाकेँ छै आब देखनाहर
सोचै बुढ़िया करितौं मुर्खे कनिया
काटए तँ नै पड़ितए घुसकुनियाँ
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4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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