१. राजदेव मण्डल २.ओमप्रकाश झा
१
राजदेव मण्डल
कविता-
अकाल
परसाल तँ बचलौं बाल-बाल
ऐबेर धऽ लेलक असुर अकाल
खाली पेट नै फुटतै गाल
सबहक भेल अछि हाल-बेहाल।
हर-हर पुरबा बहि रहल अछि
कानि-कानि काका कहि रहल
अछि-
झर-झर आगि बरिस रहल अछि
धानक बीआ झड़कि रहल अछि।
पियाससँ धरती फाटि रहल
अछि
मवेशी दूबिकेँ चाटि रहल
अछि
कतेको माससँ नै खसल एको
बून पानि
की भेलै केना भेलै से नै
जानि
अपनहि उजारलहक अपन
सुख-चैन
गाछ कटौलहक फानि-फानि।
जलक महत बुझए पड़त
नै तँ ई दुख सहए पड़त
काल चढ़ए तँ बिगड़ए बानि
घुन सँगे सतुआ देलहक सानि
चारूभर पसरल घुसखोरबा पापी
खसल पड़ल अछि पूरा चापी
टक-टक तकैत अछि अफारे खेत
पानि बिनु उड़ैत अछि
सूखल रेत
पछिला करजासँ हाल-बेहाल
ऐबेर बिका जाएत देहक खाल
नै रोपल जाएत एको कट्ठा
धान
केना कऽ बचत सालभरि प्राण
ऊपर अछि धूरा भरल आसमान
नीचा अछि परिवारक
मान-सम्मान
लोक कहैत अछि-
धीरज धरह सरकार देतह
हम कहैत छी-
तेजगर लोक सभटा खेतह
रहब छूच्छे केर छूच्छे
आमजनकेँ कतौ ने कियो पूछए
बाहर कतए जाएब यौ भाय
बेंगू
परदेशमे धऽ लेत डेंगू
ने खेबाक नीक आ ने सुतबाक
ठीक
जेबीसँ पाइ लेत उचक्का
झपटि-झींंक
कियो लेत बेचि कियो लेत
कीनि
ठामहि रहि जाएत कपार परक
ऋृण
कतए बेचब कतएसँ आनब
पाइ नै रहत तँ कथी लऽ कऽ
फानब।
आब अछि आशा अगिला जेठ
यौ अन्नदाता घटा दियौ
अन्नक रेट
सभ काटि रहल एक-दोसरकेँ
घेंट
केना कऽ भरतै सबहक पेट।
मनमे छल चाह
धियाकेँ करब बिअाह
धऽ लेलक अकालक ग्राह
आब केना कऽ करब निरवाह
केना कऽ पढ़तै धिया-पुता
फाटल वस्त्र आ टुटल
जूत्ता
देहमे नै बचल आब
तागत-बुत्ता
दुआरिपर कनैत अछि भूखल
कुत्ता।
सभमे परिवर्त्तन सभमे
उत्थान
ठामहिपर अछि हमर
गहुम-धान
धन्य हे ज्ञान धन्य विज्ञान
हमरो दिस दियौ एकबेर धियान
वएह खेत-पथार, वएह खरिहान
घरो छै टुटले कतए देखबै
मकान
कतए बेचबै कतए रखबै धान
नै छै बजार नै छै गोदाम
वएह खाद-बीआ ओहिना पानिक
दाम
वएह हड़-बड़द ओहिना बथान।
यौ सरकार करू जलक प्रबन्ध
फेर उठतै धरासँ धानक गन्ध
दमकल, नलकूपक करू उपाए
चन्द
धार-नदीपर करू तटबन्ध।
हम छी ऐ अंचलक किसान
देशक बढ़ेबाक अछि
मान-सम्मान
बचेबाक अछि सबहक प्राण
भूखसँ दिएबाक अछि त्राण
हम करब संघर्ष नै छी बेजान
फेरसँ गाएब कजरी गान।
२
ओमप्रकाश झा
रूबाइ
जागल आँखि केर सपना बनल
जिनगी
कुहरल आश केर झपना बनल
जिनगी
फाटल छल करेज हम सीबैत
रहलौँ
रूसल सुखक आब नपना बनल जिनगी
गजल
चमकल मुख अहाँक इजोर भऽ
गेलै
अधरतिए मे लागै जेना भोर
भऽ गेलै
काजर बूझि हमरा नैन मे बसा
लिअ
अहाँक नैना मारूक चितचोर
भऽ गेलै
कुचरै कौआ रहि रहि मोर
आंगन मे
जानि अबैया अहाँक मोन मोर
भऽ गेलै
नैनक इशारा दैए प्रेमक
निमन्त्रण
आब लाजे कठुआ कऽ बन्न ठोर
भऽ गेलै
बनल नाम अहींक
"ओम"क प्राण-डोरी
अहाँक आस मे करेज चकोर भऽ
गेलै
सरल वार्णिक- १५ वर्ण
१.शिव कुमार झा किशन कारीगर
१
शिव कुमार झा
अस्तित्वक
प्रश्न?
ककरासँ
कहबै के पतियेतै अपने तरंगमे भीजल दुनियाँ
बड़
अथाह स्वार्थक अर्णव ई शुभ बनि गेलै लोलुप बनियाँ
शोणित
बोरि-बोरि टाट बनएलौं
खर
खोड़ि टिटही लऽ गेलै
फाटल
आॅचरसँ कोना कऽ झॅपबै
खाली
चिनुआर बेपर्द भऽ गेलै
व्याल
दृष्टिसँ राकस गुड़कए चिहुकि-बिचुकि कऽ कानए रनियाँ
कर्मक
नाहमे भेलै भोकन्नर
वामे
हाथे पानि उपछलौं
भदवरिएमे
पतवारि हेराएल
दहिना
हाथक लग्गा बनएलौं
सभटा
आङुर पानि खा गेलै, कोना बजतै दर्दक हरमुनियाँ
कछेरमे
विषनारि उगल छै
थलथल
पॉक पएर धॅसि गेलै
अन्हार
मोनिमे कछमछ कऽ रहलौं
बिनु
जाले टेंगड़ा फॅसि गेलै
कोनो
कऽ हमरा बाहर करतै नोर चाटि हहरए सोनमनियाँ...
किछु
छिद्दीक तरमे दबि कऽ
पंद्रह
अाना अकसक कऽ रहलै
भारी
भेल कुकर्मक सोती
ओकरे
धारमे गंगा बहलै
घनन
दरिद्रा तांडव करतै,
अस्तित्वक-
प्रश्न बनल पैजनियाँ...
२
किशन कारीगर
घोंघाउज आ
उपराउंज
(हास्य कविता)
हम अहाँ के गरिअबैत छि
अहाँ हमरा गरिआउ
बेमतलब के करू उपराउंज
धक्कम-धुक्की करू खूम
घोघाउंज.
कोने काजे कहाँ अछि
आब ताहि दुआरे त
आरोप-प्रत्यारोप मे
ओझराएल रहू
मुक्कम-मुक्की क करू
उपराउंज .
श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जूनि पछुआउ
कंट्रोवर्सी मे बनल रहू
फेसबुक पर करू खूम
घोघाउंज.
मिथिला-मैथिल के नाम पर
अहाँ अप्पन रोटी सेकू
अपना-अपना चक्कर चालि मे
रंग-विरंगक गोटी फेकू.
अहाँ चक्कर चालि मे
लोक भन्ने ओझराएल अछि
अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ
अपनों ओझराएल रहू हमरो
ओझराऊ.
ई काज हमही शुरू केलौहं
नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा
अछि
धू जी ई त फेक आई.डी छि
अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत
छी?
बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी
त अहाँ मने की हम चुप्पे
रहू?
हम की एक्को रति कम छी
फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.
आहि रे बा बड्ड बढियां काज
गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज
कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू
सभ मिली करू उपराउंज आ
घोंघाउज.
१.मो. गुल हसन २.चंदन कुमार झा
१
मो. गुल हसन
गीत
मो. गुल हसन
सभटा किसानमे हमहीं बकलेल
अंगना सन जोति-जोति
खेत हम बनेलौं
डी.ए.पी. पोटास संग गहुम
बुनलौं
सभटा किसानमे हमहीं
हमहीं बकलेल
दौगू-गौगू यौ काका
जुलुम भऽ गेल।
एहेन सुन्दर गहुम काका
परा चरि गेल
दौगू-दौगू यौ काका
जुलुम भऽ गेल।
कच्ची आध कोस धरि
पाइपो पसारलौं
महग पानि कीनि एकरो
पटेलौं
नै जानि दैवा ई विपत्ति
किअए देल
दौगू-गौगू यौ काका डाका
परि गेल।
अहीं सरपंच काका आँखि
खोलि देखियौ
घसबहिनी-चरबाहाक
उपद्रवकेँ देखियौ
खर्चा जोड़ैत-जोड़ैत
हमर खून सूखि गेल
दौगू-दौगू यौ काका गहुम
बकरी चरि गेल।
लिखैत ई बात गुल हसन कहैए
कि कहूँ काका आब किछु ने
फुड़ैए।
केलहा-धेलहा सभटा पानिमे
चलि गेल
दौगू-दौगू यौ काका डाका
पड़ि गेल।
२
चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान
मधुबनी, बिहार
गजल-1
मोनक बात
मोनहि मे रखैत छी
चुप्पी
लाधि हम जिनगी कटैत छी
चकमक जगत,लागल
चौन्ह लोकके
घर
अन्हार चैनक निन सुतैत छी
झूठक लेल
आमिल लोक छै पिने
हम सत्तो
जनेबा ले कुथैत छै पिने
बेचल खेत
डाबर-डीह गुजर ले
तैयो केस
कित्ता दस लडैत छी
जुन्ना
जड़ल ऐंठन एखनो बचल
"चंदन" बोल तै ऐंठल बजैत छी
२२२१
२२२१ २१२
गजल -2
ककरो तऽ
जुन्ना आँत भेल छै
केयो
खा-खा अप्सयाँत भेल छै
पिसा
रहलै देशक जनता
कानूने-व्यवस्था
जाँत भेल छै
बुड़िबके
लोक नेता बनलै
विकास
नेनाक खाँत भेल छै
समाज
बुड़लै बरु खत्ता मे
संसद
भोजक पाँत भेल छै
------------वर्ण-११-----------
गजल-3
द्वेशक
धाह सँ बेशी स्नेहक छाह छै शीतल
नैनक नोर
सँ बेशी देहक घाम छै तीतल
देहक खून
सँ बेशी लोकक मोन छै धीपल
अप्पन
सोच सँ बेशी आनक सोच छै रीतल
ककरो हाथ
सँ बेशी ककरो गात छै भीजल
खूनक छाप
सँ देखू सगरो बाट छै तीतल
ककरो खाप
सँ बेशी कत्तहु आम छै बेढ़ल
ककरो सगर
जिनगी धार-कात छै बीतल
ककरो बोल
समदाउनक भास छै भरले
गाबय
"चंदन" उदासी जग बुझै छै गीतल
-----------वर्ण-१७--------
गजल-4
हम रूकल
छी, लेखनी ठमकल अछि
सभ
कल्पना ठामे-ठाम दरकल अछि
प्रगतिक
पहिया आइ बिच्चे बाट पर
भ्रष्टाचारक
ओठ लागि अरकल अछि
भोगी
भूपति सभ धयने बाना योगी के
रोटी
प्रजाके खाय क्रमशः सरकल अछि
ज्ञान-शील, तप-त्याग
संकुचित भेल छै
मुदा
संकीर्ण सोच सौंसे फलकल अछि
"चंदन"लोकके निश्चय प्रतिकार चाही
कि फेर
अनेरुए मेघ ढनकल अछि ?
---------------वर्ण-१५--------------
जे भान नहि !!
आजादीक पैंसठि बरख
बितलाक बादो
एखनो
मोन अछि जे कहिया
विदेशी जिंजीरक
बनहन सँ
मुक्त भेल रही |
मुदा, देशी
जुन्ना सँ
कहिया गछारल गेलहुँ
से भान नहि ।
१.कपिलेश्वर राउतमातृभाषा २.जगदानन्द झा 'मनु' -हम एहन किएक छी?/ कोना मदर डे हैप्पी ? ३.राजेश कुमार झा (कन्हैया)- देश भक्ति
१
कपिलेश्वर राउत
कविता-
मातृभाषा
माइक ओद्रमे जे भाषा सिखलक
परदेश जा सभ बिसरलक।
गाम आबि काहे-कुहे बजैए
लोक कहैत आब बड्ड बुझैए।
पढ़ल-लिखल तँ आर बिगारलक
बाल-बच्चाकेँ कनभेन्ट
धरेलक।
चालि-ढालि अंग्रेजिया
पकड़ि
मातृभाषाक खिल्ली
उड़ौलक।
अप्पन भाषा बिसरि
बहरबैया भाषा अपनौलक।
अहाँ मैथिलीकेँ केना आगू
केलौं
अपने तँ गेबे केलौं बच्चोकेँ
भँसिएलौं।
जेतबो इज्जत गौआँ दइए
परदेशी ओकरा थकुचैए।
गौआँ-घरूआ मैथिली जियाबए
परदेशिया बाहर भगाबए।
कनिये अंग्रेजिया जोर
लगबिऔ
मैथिलीकेँ आगाँ देखबिऔ।
जनक आ सीताक भाषा अपनाउ
कर्म छोड़ू नै अपनाकेँ
बनाउ।
विद्यापति आ यात्री कहि
गेला
मण्डन आ अयाची कर्मवीर
भेला।
अप्पन भाषा सभ जन मिठ्ठा
एकरा नै बुझू हँसी ठठ्ठा।
माइक ओद्रमे जे भाषा सिखलक
परदेश जा सभ बिसरलक।
१
जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीह्टोंल, मधुबनी
हम एहन
किएक छी ?
हम एहन किएक छी ?
माटि-पानि छोरि कए
जाति-पाति पर लडैत किएक छी ?
हम एहन किएक छी ?
आएल कियो हाँकि लेलक
जाति-पाति पर बँटि देलक
ऊँच-निच केँ झगरा में
अपन विकास छोरि देलहुँ
हम एहन किएक छी ?
केँ छी अगरा
केँ छी पछरा
सभ मिथिलाक
संतान छी
फोरि कपार देखु तँ
सबहक सोनित एके छी
हम एहन किएक छी ?
मुठ्ठी भरि लोक
अपन स्वारथक कारणे
अपना सब केँ
तोर रहल अछि
मोर रहल अछि
जाति पाति में ओझरा कए
मिथिलाक विकाश रोकि रहल
अछि
धरति केँ कोनो
जाति है छैक ?
मएक कोनो
जाति है छैक ?
तँ हम सब
सन्तान
बटेलौंह कोना ?
हम एहन किएक छी ?
आबो हम सँकल्प करि
जाति-पाति पर नहि लरि
अपन मिथला हमहि संभारब
सप्पत मात्र एतबे करि
हम एहन किएक छी ?
-----------------------------------
कोना मदर डे हैप्पी ?
आब केहन जमाना आबि गेल
बर्ख में एक्के दिन
मए केँ यादि करै
छी,
'मदर डे' केँ नाम पर
मए केँ याद करै
छी
की हुनक सुखएल घा केँ
काठी कए कँ जगाबै
छी |
हम बिसैर गेलहुँ
अपन मए केँ
मुदा ओ नहि बिसरली,
जाहिखन हुनका भेटलैन्ह
सुन्दर कार्ड 'हैप्पी मदर डे' लिखल
भेलैन्ह करेजा तार-तार
नोर टघैर कए
अपन स्पर्श सँ
गाल केँ छुबैत
हुनक करेजा तक चलि गेल
आ करेजा में बंद
महामए केँ कोंढ़ सँ
सोनित में डुबल शव्द निकलल
आह!
की ई हमर ओहे लाल ?
जेकरा पोसलौं खून सँ
पाललहुँ अपन दूध
सँ
अपने सुतलहुँ भिजल में
ओकरा लगेलहुँ
करेज सँ |
आई
चारि बर्ख सँ भेटल नहि
रहि रहल अछि परदेश
अपन कनियाँ
सँग
बिसरि गेल बिधवा मए केँ
आई अकस्मात मए यादि एलैह
ई सुन्दर चिट्ठी (कार्ड) पठेलक
मुदा की लिखल ?
'हैप्पी मदर डे'
नमहर साँस लैत
हुनक मन आगु बाजल
जखन मदरे नहि हैप्पी
तँ कोना
मदर डे हैप्पी
तँ कोना
मदर डे हैप्पी ?
२
राजेश कुमार झा (कन्हैया), पिताक नाम :-
श्री विजय कुमार
झा, गाम :-
घोघरडीहा (पुबाई
टोल), पोस्ट ऑफिस + थाना :
-घोघरडीहा , जिला :-
मधुबनी, (बिहार ) -847402
देश भक्ति
भारत देश यऽसभदेशमे महान
हम सब छी, अही मायक
संतान
राम-कृष्णक धाम छी, ई यऽ एहेन पावन
गंगा-यमुना बहै छथि, अमृत
धार जेहेन
भारत देश यऽ
सभ देशमे महान
हम सभ छी, अही मायक
संतान
ई छी ब्रह्मंडक, सृष्टिक शान
एतऽ जनम लऽ बढ़ल हमर मान
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी, अही मायक
संतान
एही गोद मे खेलिकऽ भेलौं जबान
यएह हमरा
लेल, उपजेलथि अन्न-पानि
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
हम बनऽ चाहै छी, एहन सुंदर संतान
जिनकर माला जपैए एहन वीर जबान
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
निकालब कट्टरता-आतंकबादक जान
मिटा देबै
ऐ दुश्मनक नामो निशान
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
लड़ैत-लड़ैत जौं चलि गेल जान
करै छथिन
भगवानो ओकर सम्मान
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
भारत माँ पर, भऽ जाउ बलिदान
ओइ वीरक, होइ छै सृष्टिमे पहचान
भारत देश यऽ
सभ देशोमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
दिया दिअ
माइसँ एकटा
इहै वरदान
हर बार जनम ली एत्तै चाही बनी हिन्दू-मुसलमान
भारत देश यऽ
सभ देशमे
महान
हम सभ छी
एही मायक संतान
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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