ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ११९ म अंक ०१ दिसम्बर
२०१२ (वर्ष ५ मास ६० अंक ११९)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.१.कैलाश दास- नेता जी २. प्रबीण चौधरी प्रतीक३.सत्यनारायण झा-हे भगवान
३.८.बिन्देश्वर ठाकुर- अभागलमे शुभकामना एक/अस्पतालक हाल/ जनकपुरक रेल्वे/ एक एहनो नारी/गजल
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ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल
मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक
महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
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श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह) 28.52%
श्री विनीत उत्पलक “हम पुछैत छी” (कविता
संग्रह) 5.08%
श्रीमती कामिनीक “समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता
संग्रह) 3.91%
श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 3.13%
श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह) 22.27%
श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा नहि” (कविता
संग्रह) 5.86%
श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह) 5.47%
श्री आदि यायावरक “भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा
संग्रह) 3.91%
श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी” (कविता
संग्रह) 20.31%
Other:
2%
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
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श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम
खाण्डेकर) 33.6%
श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन" (कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर
मावजो) 11.2%
श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास श्री दिव्येन्दु पालित) 11.2%
श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ" (नेपालीक अनुवाद मूल-
रेमिका थापा) 21.6%
श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द ( जयदेव
संस्कृत) 12%
श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी शिवशंकर पिल्लैक मलयाली
उपन्यास) 9.6%
Other:
0.8%
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य अकादेमी, दिल्ली
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श्री राजनन्दन लाल दास 44.92%
श्री डॉ. अमरेन्द्र 36.44%
श्री चन्द्रभानु सिंह 16.95%
Other:
1.69%
1.संपादकीय
जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी
आगाँ
करीब अढ़ाइ बजे काली बाबूक ऐठाम जगदीश प्रसाद मण्डल
पहुँचला। नीक फुलवाड़ी, आठ कोठरीक नीक डेरा,
होम गार्डक ड्यूटी। पहिने हुनकर पत्नी देखलखिन कारणो छलै जे ओ रोडे दिसक कोठरीमे
रहथि, खिड़की खोलि बाहर आबि गेट खोलि आगू बढ़ि काली
बाबूकेँ कहलखिन, ओ डेराक सभसँ दछिनवरिया कोठरीमे भुँइयेँपर
शतरंजी बिछा पड़ल रहथि। धड़फड़ाएले उठि आबि कऽ एकटा कोठरी देखा कहलखिन,
झोड़ा राखि दिऔ। बाथ रूम देखबैत कहलखिन, गाड़ीक
झमाड़ल छी पहिने नहा लिअ। जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ अपनो सएह मन रहनि। सएह केलनि।
नहा कऽ कोठरीमे अबिते कहलखिन, खेला बाद अराम करब। जगदीश
प्रसाद मण्डल कहलखिन- “भूख लागल छलए, बसे
स्टेण्डमे खा लेलौं।”
साँझू पहर चाह-ताह पीब दुनू गोटे दोबरा कऽ लुंगी जकाँ धोती
आ बिना गंजियेक कुर्ता पहिरने रहथि। कारणो छलै, मौसम। डेरासँ
बगलिते पछवरिया डेराक सम्बन्धमे कहए लगलखिन्ह। ओ डेरा डी.एम.क छल जे मणीपुरी
छलाह। १९८४ बैचक आइ.ए.एस। डेराक आगूमे ठाढ़ देखि ओ निकलि कऽ एला। अबिते काली
बाबू बंगलामे कहलखिन जे बंधु छथि। तखन ओ हिन्दीमे गप-सप केलखिन। आगू बढ़िते
आइ.जी.क डेरा। आइ.जी.क बेटा संग कालीबाबूक बेटाकेँ दोस्ती। डेरा लग पहुँचते दुनू
गोटे हूल दऽ डेरासँ निकलल। ओ बंगाली छलाह। अगरतलाक बंगला भाषी। पहिल दिन १९६०
ई. धरिक अपन चरिकोसीक विद्यार्थीक ओतऽ चर्च भेल छल। दोसर दिन सबेरे चाहे पीबैत
काल ओ कहलखिन जे आइ ऑफिस होइत दछिनमे बूढ़ी काली मंदिर अछि तइठाम तक चलब।
सबेरे दस बजे संगे दुनू गोटे ऑफिस गेला। ऑफिस सभ नमहर-नमहर रहै मुदा अपन आॅफिस
छोटेटा छलनि। एकटा अलमारी, दूटा कुर्सी, एकटा टेबुल। सोझे अपना कोठरीमे पहुँचलाह। पहुँचते एकटा बंगाली प्यून
(बी.ए. पास धुड़झाड़ बजैबला) पहुँचलनि। ऑफिसक सम्बन्धमे पुछलखिन। सभ बात सुनि
कहलखिन- चाह पिआउ। चाह पीब दुनू गोटे विदा भेला। बाजारसँ निकलिते चाहक खेती
दिस बढ़ला। सड़कक दुनू कात पहाड़ी जमीन छै। जहिना अपना ऐठाम पहिने लोक पतिआनी
लगा बेढ़ीक काज करैत छलाह तहिना पानक बड़ैब जकाँ ढलुआ बनाओल छल। भरि-भरि छातीक
गाछ। ओइमे अधिक महिला पीठपर बोको लदने चाह-पत्ती तोड़ैत छलीह। चाहक गप-सप चलबैत
कहलखिन जे हालेमे ग्रीन टी कऽ कऽ नव िकस्म आएल अछि, ओना
खेती बहुत अधिक नै भेल अछि मुदा दुनियाँक बजारमे सभसँ बेसी मांग अछि। कीमतो
सभसँ ऊपर छै। कनिये आगू बढ़लापर रबड़क गाछ देखलनि। पतिआनी लगा रोपल। गाछक आकारसँ
बूझि पड़लनि जे पनरह-बीस बर्खक हएत। बहुत भारी नै देखलनि। छाती भरि ऊपरमे खोधल, जइमे सँ लस्सा (दूध) निकलैत। सभ दिन भिनसरू पहर ओइ दूधकेँ समेटि-समेटि
लऽ कऽ रबड़ बनबैत।
करीब बारह बजे बूढ़ी काली स्थान पहुँचला। छोट-छीन जगह। कमे
दोकान-दौरी। सए बर्खसँ ऊपरक बूझि पड़लनि। सुर्खीपर जोड़ल मकान फाटि-फुटि,
झड़ि-झूड़ि गेल छलै। मूर्ति देखि निकलि गेला। पुरान कलाक मूर्ति। मुदा हुनका
बहुत रास मंत्र सभ पढ़बाक छलनि तँए ओ मंदिरमे रहलाह। बाहर निकलि गाछ सभ िहयेलनि
तँ कैम्पसेमे एकठाम आम, कटहर, गमहारि, शीशो-जामुनक गाछ देखिलनि। अखन धरि गौहाटीक उपरान्त एहेन पचमेल गाछ कतौ
ने देखने छला। तँए किछु बात मनमे उठलनि। अंतमे मन-मानि गेलनि जे मिथिलाक कियो
पुजेगरी रहल हेताह। जगदीश प्रसाद मण्डल पुजेगरीसँ किछु काल गप-सप करिते रहथि आकि
ताबे ओहो निकललाह। निकलिते कहलखिन जे कहने जे छलौं कमल सागर देखब, से यएह छी। हिया कऽ देखलनि तँ बूझि पड़लनि जे बेरमाक बड़की पोखरिसँ
छोटे छै। पंचो ठीके-ठाक बूझि पड़लनि। किएक तँ बेरमा बड़की पोखरिसँ ओहो परिचिते।
तहूमे बेरमा बड़की पोखरि आ कछुबी बड़की पोखरिक तुलना तँ दुनू गामक लोक करबे करैत
रहैए। तइमे बेरमा बीस, तँ बड़कियो पोखरि बीस। जगदीश प्रसाद
मण्डल कहलखिन- “एकर नाओं किअए सागर पड़ल?” भूगोलक विद्यार्थी ठमकि गेलाह। ठमकिते दोहरा देलखिन जे बेरमा बड़की
पोखरिमे एक महारक लोक दोसर महारबलाकेँ नै चिन्है छै, से
तँ देखै छिऐ दस कट्ठा पेट हेतै। पोखरिक पछबरिया महारपर बंगला देसक सीमा गाड़ल।
बाँसक खुट्टा। तखने थोड़े हटि चटगाम बला रेल पास केलकै। जगदीश प्रसाद मण्डल विदा
होइसँ पहिने मिठाइ खा पानि पीब चाह पीलनि। ओना ओ चीनिया बेमारीसँ ग्रसित,
मुदा तैयो परसाद जकाँ खेलनि। दिनगरे डेरापर पहुँचै गेला।
अखन धरि काली बाबूक परिवार वैष्णव बनि गेल छलनि। शुद्ध
शकाहारी परिवार। चारि बजे भोरेसँ नाचि-नाचि भजन करए लगैत छलाह जे पड़ोसिया, मणीपुरबला कहबो करैत छलनि। ईटा सिमटीक छहरदेवाली नै रहने झलफले झाझनक
टाट। हुनका देखथि जे व्यायाम बहुत करैत छलाह। मांसक प्रिय। अपने ओ मिथिलांचलेक
लोक जकाँ (शरीरसँ) रहथि मुदा पत्नी पहाड़नी जकाँ छोटे कदक। दुर्गापूजाक समए रहबे
करै, बगले पूवारि कात, करीब दू बीघा
पूब पूजा होइत छल। अपन-अपन परिवारक संग अफसर सभ देखैत छलाह। अपना सभ ऐठाम जकाँ दस
दिनक पूजा नै। परीबसँ शुरू नै भऽ छठम दिनसँ शुरू होइत अछि। मुदा मिथिलांचलसँ
बहुत बेसी होइत अछि। काली बाबू कहलखिन जे ऐठाम त्रिपुरो आ बंगलो देशमे काली
पूजा सभ करैत अछि। असामसँ उत्तर-पूब लऽ कऽ दछिन धरि मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर,
अरूणाचल, नागालैंड राज्य अछि। ट्रेनक रास्ता
थोड़ेक आगू धरि। मुख्य सवारी बस-ट्रक छी। जंगल-पहाड़सँ भरल। हजारो किसिमक
गाछ-िवरीछ। उपजाऊ जमीन कम। ओना जइठाम रंग-रंगक गाछ-विरीछ अछि तइठाम खाइबला फल
सेहो हेबे करतै। ढकिया साग बाध-बोनक घास जकाँ उपजल। ओना गेलापर कहि देलखिन जे
अपना ऐठामसँ जे भिन्न अछि ओ देखबो करब आ खेबो करब। एक तँ ओहिना ओ (कालीबाबू)
तते भँजिआह अपने जे सभ ठेकनौने रहथिन। तुलनात्मक दृष्टिसँ ओइ इलाका (त्रिपुरा
आदि) मे अपना सभसँ बेसी बरखा होइ छै जइसँ अपने सबहक चौरी खेत जकाँ अधिकांस धानक
कटनी पानियेमे होइत अछि। जइसँ अपना सभ जकाँ कतिका खेती कम लगै छै। अपना ऐठाम
कातिक नीक मास ऐ लेल बूझल जाइत अछि जे अन्नक एक मौसम बनैत अछि। तइ संग
तीमन-तरकारी, फल-फलहरीक सेहो बनैत अछि। मोटामोटी यएह जते किसिमक
खेती कातिकमे होइत अछि, ओते ने आन कोनो मौसममे। बिलंबसँ
खेतक पानि सूखने किछु तेलहन, पटुआ आ धानक खेती होइत अछि।
त्रिपुराक करीब साठि-सत्तरि प्रतिशत जंगल-झाड़, पहाड़सँ
घेरल अछि। तीस-चालिस प्रतिशतक जमीन उपजाउ। धान मुख्य फसिल छी। जइ तरहक सम्पदा
इलाकामे छै, िवकास नै भेल अछि। जनमानसँ धोखा अखनो कएल जा
रहल अछि। त्रिपुराक आदिवासी समुदायकेँ एते महगाइक सामना करए पड़ि रहल छै, जे बिसवास नै कएल जा सकैए। ओना विदेशी संस्था सभ शिक्षाक एहेन ढर्रा
धड़ा देने अछि जे रेलक विकास नै होउ। हँ ई बात जरूर अछि जे अपना सभ जकाँ रेलवे
लाइन बैसबैमे असान नै छै, पहाड़ी क्षेत्र रहने महग अछि।
अोना अपनो ऐठाम किछु राजनीतिक दल ओहनो छथि जे सड़क-पुल िनर्माण, नहर-छहर िनर्माणमे मशीनक प्रयोग नै होउ। ट्रेक्टर माटि नै उघए। लोके
उघत आ बनाओत। हुनका सभकेँ देखए पड़तनि जे गाममे िसर्फ गिरहस्तीकेँ समुचित
बनाओल जाए तइ लेल केनिहार (श्रमिक) नै भेटतनि। तइठाम नहर-छहर, बान्ह–सड़क बाधित कएल जाए, ई
कते उचित भेल। पशुपालन नहिये जकाँ ओइ इलाकामे छैक, तेकर
अर्थ ई नै जे से केनहि अछि आकि पशु छइहे नै। जंगलमे ओहन-ओहन पशुक भरमार अछि
जेकरा आगू अपना सबहक गाए-महीसिक मूल्य फीका पड़ि जाएत। तहिना गाछो-विरीछक हाल
अछि। सुन्दरवन इलाकामे हजारक कोन बात, लाखक कोन बात जे
करोड़-करोड़ रूपैया मूल्यक गाछ सभ अछि। बाँसक तँ चर्चे नै। खिस्सा जे फल्लाँ
खलीफा बाँसे उखाड़ि कऽ दतमनि करैत छलाह, से प्रत्यक्ष
भेलनि। ओहनो बाँसक बोन सभ अछि जे जेहेन बाँसक कड़ची होइए। एकटाकेँ काटि कऽ दतमनि
केलनि। एकर माने ई नै भेल जे एहेने बाँस ओइ इलाकामे होइ छै। बाँसक दर्जनो किस्म।
कड़चीसँ लऽ कऽ ओहनो-ओहनो बाँस सभ अछि जे अपना ऐठामक सँ डेढ़िया-दोबर मोट अछि।
बिनु माटिक खेती पहाड़पर होइ छै। झूम सिस्टम कहल जाइ
छै। छोट-छोट किआरी बना ओइमे उगल घास-फूस, बोन-झाड़ काटि आगि लगा
जरा देलक आ खेती केलक। ई तीन साल पछाति छोड़ि दोसर खेत बनौलक। बंगला देशक लोक
बहुत गरीब छथि। तेकर कारणो अछि एक तँ अपने सभ जकाँ १९४७ ई.सँ पूर्व छला। आजादीक
संग बँटा कऽ पाकिस्तानक हाथ पड़ि गेल। दुनूक बीच अनेको रंगक विषमता अछि; भाषा, बेवहार, खेती इत्यादिक।
सत्ता पाकिस्तानक हाथ पड़ल, पूर्वी बंगाल पछुआ गेल। एक तँ
अहुना समुद्री इलाकाक देश, समुद्री-तूफानसँ बेसी बर्बादी
होइत अछि तइपर शासनक विपरीतता, आरो धकिया देलक। एक तँ
त्रिपुरोक आर्थिक-स्थिति ओते सुदृढ़ नहिये अछि, मुदा
सरकारी अनुदान भरपूर भेटै छै। ओना सरकारी अनुदानक सही उपयोग नै भऽ बेसी लुटाइते
छै। मुदा तैयो किछु उद्योग-धंधा छोट पैमानापर चलिते अछि। जूटक एकटा कारखानाक
संग लघु उद्योगक रूपमे बाँसक छत्ताक बेंट (डंटा), बाँसक बनल
आरो-आरो वस्तु बनैत अछि। अगरतल्लाक बजारो तते नमहर तँ नहिये अछि। अल्मुनिया
बर्तन सेहो बनैत अछि। बंगला देशक हजारो श्रमिक अगरतलामे रिक्शो चलबैत अछि आ
मजदूरियो करैत अछि। दुनूक बीच बीजाक (पासपोर्टक) बेवस्था प्रायोगिक स्तरपर नै
छै। सभदिन बंगला देशक श्रमिक भिनसरे अगरतलामे प्रवेश करैत अछि आ साँझू पहर घूमि
जाइत अछि। सीमापर अबितो काल आ जाइतो काल गिनती कऽ लेल जाइ छै वा नै से नै जानि।
जगदीश प्रसाद मण्डल जखन सीमाक चौकी देखए गेला, तखन मध्य
प्रदेशक सिपाही ड्यूटीमे छलाह। हिन्दी भाषी, तँए किछु
गप-सप भेलनि। पुछलखिन तँ कहलकनि जे सभ दिन भिनसर ६ बजेसँ आठ बजे तक ई सभ (बंगलादेशी)
प्रवेश करैए, सभकेँ गनि कऽ लइ छिऐ आ वापसी काल ५ बजेसँ सात
बजे सेहो गनि लइ छिऐ!
भाषाक दृष्टिसँ त्रिपुरामे अंग्रेजी, ककवार्क, बंगला आ मणिपुरी चलैत अछि। जगदीश प्रसाद
मण्डल जइ समए गेल रहथि (१९९८) ओइ समए काली बाबू डी.आइ.जी. (होमगार्ड) रहथि। काजो
हल्लुके रहनि। अपनो जहिना झड़-झंझटसँ कात रहए चाहै छला तहिना छलनि। जगदीश
प्रसाद मण्डलकेँ चारि दिन जखन पहुँचना भेलनि आकि बदली भऽ गेलनि। डी.आइ.जी.
(प्रशासन) बना उत्तरी त्रिपुरा बदली कऽ देलकनि। पाँचम दिन अपनो सभ परिवार आ
जगदीश प्रसाद मण्डल कैला शहरक लेल विदा भेला। दस बजे छहटा फोर्सक संग विदा भेला।
अगरतला पच्छिमी त्रिपुरामे पड़ैत अछि। बंगलादेशसँ सटले। दछिनी त्रिपुरामे
उग्रवादी उपद्रव अधिक छल तँए नै घूमि पेला। ओना जाइ काल बेसी रातियेकेँ पास
केने रहथि तँए बेसी नै देखि पेला मुदा अगरतलासँ कैला शहर अबैमे देखैक बेसी समए
भेटलनि। दस बजेमे जे विदा भेला अगरतलासँ से साढ़े चारि बजे कैला शहर पहुँचला।
बीचमे तीन ठाम, पनरह-बीस मिनट कऽ कऽ रूकबो केला। नव जगहपर
सभ नबे रहथि तँए दू दिन घुमै-फिरैक कोनो कार्यक्रम नै बनलनि। तेसर दिनसँ घुमब-फिरब
फेर शुरू भेलनि। आसीन मास रहने बाधमे धानोक फसल रहै। ओना ऊँचगर जमीन सेहो तेलहन आ
अल्लू लेल तैयारी चलैत रहै। जंगल-पहाड़क क्षेत्र छीहे अपना ऐठामसँ भिन्न गाछ-विरीछ
देखथि। ओना आमक गाछ सेहो अछि। मुदा अपना सबहक आमसँ भिन्न अछि। ओइठामक आम अपना
सभ जकाँ पकलापर नै खाएल जाइत अछि। जखने आम पकैपर होइत कि ओइमे कीड़ा फड़ि जाइत
अछि जे गुद्दाकेँ भुर-भूरा बना दइत, जे खाइ जोकर नै रहि
पबैत अछि। त्रिपुराक प्रमुख स्थानमे उनीकुटी सेहो अछि। उनीकुटीक कार्यक्रम
बनलनि। उनीकुटीक सम्बन्धमे कहल जाइत अछि जे जखन द्वापर जुगक अन्त हुअए लागल आ
कलयुगक आवाहन हुअए लागल तखन देवता सभ सोचलनि जे कलयुग बहुत खराब जुग आबि रहल अछि।
मान-मर्यादा, इज्जत-आवरू बँचब कठिन अछि। से नै तँ धरती
छोड़ि समुद्रे बास करब नीक हएत। उनक अर्थ एक होइत अछि। जहिना अपना सभ उनचालीस,
उन्नैस, उनतीस, उनहतरि
इत्यादि कहै छिऐ, जेकर अर्थ होइत चालीसमे एक कम, बीसमे एक कम इत्यादि तहिना उनकुटिक करोड़मे एक कम। स्थानक नाअों सुनि
मन खूब खुशी भेलनि। खुशीक कारण ईहो रहै जे काली बाबू तेहन ढंगसँ नाचि-नाचि कथा
सुनौलखिन जे आरो जिज्ञासा बढ़ि गेल रहनि। तइपरसँ अखन धरि चौरासिये लाखक नाआें
सुनने छला, आइ तँ करोड़ देखैक मौका। लाभ ईहो जे दोसर स्थान
नहियो जेता तैयो तँ फल भेटबे करतनि। राता-राती सभ देवता पड़ा कऽ समुद्र दिसक रस्ता
धेलनि। पएरे रहथि। जाइत-जाइत त्रिपुरा (उनीकुटि-माताहारी) पहुँचैत-पहुँचैत भोर
भऽ जाइ गेलनि। महिंसबार सभ महींस खोलि-खोलि चरबए विदा भेल रहए। सभ देवता
सोचलनि जे दिन-देखार पड़ाएब नीक हएत, सभ कियो एकेठाम डेरा
खसौलनि। ओहए स्थान उनीकुटी छी। नमहर क्षेत्रमे स्थान पसरल अछि। नमहर-नमहर
पहाड़, गाछ-विरीछ, बोन-झाड़सँ भरल।
पहाड़पर सँ झरना झहरैत। मनुष्यसँ पूर्वक जे जीव-जन्तु अछि वएह सभ देवी-देवता।
पहाड़ी भूमि मुदा रंग-रंगक पाथर सभक अछि। बाल-पाथर काँच पत्थरसँ सक्कत जुआएल
पत्थर धरिक स्थान। ओहनो पत्थर जे हाथसँ टूटि जाइत अछि। आ ओहनो पत्थर जे खूब
सक्कत अछि। खाइयोबला फलक आ केरोक बोन अछि। बीचमे दोकान-दौड़ी। ओ बाहरे अछि।
जइठाम पहाड़पर सँ झरनाक पानि झहरैत अछि तइठाम द्वापर युगक अर्जुन-कृष्णक रथक चित्र
बनाओल अछि जे स्थानक मुख्य बिन्दु छी। पूर्वांचल (असाम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा,
अरूणाचल, नागालैंड आ सिक्किम) मिला
अपने-आपमे एक देश छी। जंगल, पहाड़, झील,
नदी घाटीक समूह। भाषाक दृष्टिसँ सेहो बहुभाषी अछि। अपन-अपन
क्षेत्रक भाषा सेहो छै। मोटा-मोटी बंगला, अंग्रेजी, हिन्दी, खासी, गारो, ककवार्क, मणिपुरी, मिजो,
आओ, कोंयक, अंगामी,
सेमा, लोथा, मोंपा,
अका मिजू, शर्दुकमेन, निशि, अपतनी, हिलमिदि, तगिन,
अदी, इदु, दिगारू,
मिजिखम्री, सिंगफू, तंगला, नोक्टे, वांचू, लोपचा,
भोटिया, नेपाली लिंबू इत्यादि।अगरतलाक राजा
(सामंती युगमे) बर्म्मन-परिवारक छलाह। अखन जे फिल्मीस्तानमे गीतकार-संगीतकार
वर्म्मन सभ छथि ओ ओतुके छथि। हुनके देल मकानमे त्रिपुराक सभा भवन (सदन) अछि।
आदिवासीक बीच अपना सभसँ भिन्न भोजनक चलनि अछि। खाइ-पीबैक वस्तुमे सेहो अन्तर
अछि। हुनका सबहक भोजमे अपना सभ जकाँ नै जे भात-दालि-तरकारीसँ शुरू केलौं आ
जना-जना आगू बढ़ैत जाएत तेना-तेना नीक-नीक विन्यास आओत। ओइठाम से नै छै। नीक-नीक
वस्तु पहिने बँटाइत अछि आ जेना-जेना आगू बढ़ैत अछि तेना-तेना पछुआइत जाइत अछि।
दू हजार ईस्वीक पछाति काली-बाबू रोगाए लगलाह। पहिने आँखि
खराब भेलनि। कलकत्तामे ऑपरेशन करौलनि। कब्जियतक शिकाइत शुरूहेसँ भऽ गेल रहनि।
मधुमेह सेहो भऽ गेलनि। आइ.जी. बनला उत्तर किछु दिन नीक रहलाह। ओना बीचमे
डी.जी.पी. बनि मेघालय (शिलाँग) सेहो एलाह। मुदा ओइठाम मन नै लगलनि। छह मास
पछाति पुन: घूमि कऽ अगरतले आइ.जी. बनि चलि गेलाह। रिटायर होइसँ चारि बर्ख
पूर्व ओछाइन पकड़ि लेलनि। नोकरीदार रहने गाम नै एलाह। ओतै इलाज करबैत रहलाह। दिल्ली, कलकत्ता सभ ठाम गेला मुदा स्वस्थ नै भऽ सकलाह। देहक कोनो गंजन नै रहलनि।
तीन या चारि बेर पेटक ऑपरेशन भेल छलनि। कष्टसँ मनो चिड़चिड़ा गेलनि। दू बर्ख
पछाति (सेवा-निवृत्त होइसँ पहिने) गाम आबि गेलाह। दुनू तरहक रोग -शारीरिक-मानसिक-
सँ भीतरे-भीतर ग्रसित भऽ गेलाह। मानसिक रोगक कारण भेलनि- जखन आइ.जी. बनलाह,
गृह विभाग सँ जबाब-तलब भेलनि। लिखितमे जबाब तँ दऽ देलखिन मुदा
बिमारियाह शरीर भेने दौड़-धूप तँ कऽ नै सकलाह। ड्यूटीसँ सेहो अलग भऽ गेल रहथि।
एक दिश गृह-विभागक चाप, दोसर दिस ड्यूटीसँ अलग हएब,
आर्थिक समस्या उपस्थित भऽ गेलनि। तइपर पथ्य-पानि, दवाइ-दारूक खर्च काफी बढ़ि गेल रहनि। बेवस भऽ गेलाह। काली बाबूकेँ पंडित
कहैक कारण अछि जे गीता (श्रीमद्भगवदगीता) पर अपन दृष्टिकोण छलनि। आचार्य
रजनीशक आठो खंडक (आठ खंडमे संगृहित, जेकर ओइ समैमे अठारह सए
दाम छलै) नीक अध्ययन छलनि, जे दृष्टिकोणकेँ बदलने छलनि।
जिनगीक आशा टूटि गेलनि। अंतिम दौड़क भेँटमे विभागीय बहुत बात कहलखिन जे
देखैआ कि अछि आ चोरौआ कि अछि। नोकरीक शुरूक जिनगीसँ लऽ कऽ अखन धरिक बहुत बात
संगी होइक नाते जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ ओ कहलखिन। अगरतला पहुँचते (डी.एस.पी.) अपन
पहिचान छबे मासमे बना लेलनि। इमानदार अफसरक रूपमे प्रशासनसँ जनमानसक बीच आबि
गेलाह। नगद रूपैआ, गहना-जेबर वा लत्ता-कपड़ा कहियो केकरोसँ
नै छुलनि, मुदा खाइ-पीबैक वस्तु नै घुमबैत छलाह। शुरूक
पाँच बर्खक जिनगी एक कालखंडक जिनगी बनि गेल छलनि। शराब पिबैत छलाह, सिगरेट पीबैत छलाह, मुर्गी-अंडा खाइत छलाह। ओही
दौड़मे (१९७२ ई.) बंगला देशक लड़ाइ-पाकिस्तानक संग भेल रहए। मिथिलांचलक भाय
लोकनिकेँ मन हेतनि जे सालो भरि बरखा सेहो भेल रहए। साले बरसातक भऽ गेल। घर
छाड़ैले जे कियो खढ़-पात रखलनि सबहक सड़ि गेलनि। एक तँ ओहिना लत्ती-फत्ती
माने चार परक सजमनि कदीमा रहने खढ़क घरकेँ कोनो दशा नै रहैत छैक, तँए नै छड़ाएब तँ पटोटनो देबक आवश्यकता भइये जाइत छलै। ओना बोनिहार
श्रेणीक अधिकतर धनखेती (धानसँ पहिने जे मड़ूआ होइत छल) ओकर सस्ती छलै। सस्ती ई
जे जखन मड़ूआ पाकि जाइ छलै तखन गिरहत खेतमे रहैत छलाह, नार
कटनिहार सभ मड़ूआ गिरहतकेँ दऽ दैत छेलखिन आ नार लऽ कऽ अपन घर छाड़ैत छलाह।
बंगला देशक (१९७१ ई.) लड़ाइमे बंगला देशकेँ भारत संग देलक। इन्दिराजी प्रधान
मंत्री रहथि। रूसक (सोवियत संघक) भरपूर सहयोग भेटलनि। ओही समए सोवियत संघ बहुत
शक्तिशाली छल। ओना अखनो अछि मुदा....? बीस बर्खक दोस्तीक
समझौता भारत-सोवियत संघक भेल। नीक जबाब पाकिस्तानक संग देनिहार अमेरिकाकेँ
भेटल। दुनियाँक इतिहासमे ३१ हजार सेना बंगलेदेशमे हाथ उठौलक। सरेण्डर केलक।
बंगला देशक ओइ लड़ाइमे शीर्ष नेता सभ त्रिपुरेक अगरतलामे रहथि। इन्दिराजी सेहो
चुप-चाप (बिना किछु जानकारीक) जािथ। त्रिपुरा मलेट्रीक छाबनी बनल रहए। ओइ समए
भोलेंट्रीक हाथमे लड़ाइ कमान रहै, सुरक्षाक कमान तँ
प्रशासनेपर रहए। ओइ गेस्ट हाउसक जिम्मा हिनके (काली बाबूक) रहनि। जइमे बंगला
देशक कर्णधार सभ रहथि। ओइ बीच (बंगला देशक लड़ाइसँ पूर्व) एकटा जिम्मेदार अध्यक्ष
केँ गारियो पढ़लखिन आ मारबो केलखिन, भेल ई जे हिनका
नाओंपर एकटा माछक बेपारीसँ ओ खूब माछ खाए। बंगाली भाय, तहूमे
त्रिपुराक पानि आरो मन्द छै, एक दिन ड्यूटीमे जाइत रहथि
कि सलाम ठोकि ओ बेपारी हँसैत कहि देलकनि। ओइ बातकेँ पीठिया ठोक केलनि, वएह (अध्यक्ष) पकड़ा गेला। मुदा लूटमे चरखा नफा। त्रिपुरामे कम्युनिस्ट
पार्टी आ कांग्रेस पार्टीक बीच कशमकस राजनीति रहए। तीन गोटेक कमिटी नृपेन बाबूक
(नृपेन चक्रवर्ती, जे आजन्म अविवाहित रहलाह, कम्युनिस्ट पार्टीक नेतृत्व करैत रहथि ट्रिपुल एम.ए. रहथि, दू बेर मुख्य मंत्री सेहाे बनलाह) अध्यक्षतामे बनल। जिनगीक संघर्षक
अनुभव काली बाबूकेँ विद्यार्थीये जिनगीक रहनि। संगी-साथी प्रशासनिक अफसर सभ
कहनि जे मोटरी बान्हि कऽ रखने रहू। तेकर जबाब देथिन- बन्हले अछि। नृपेन बाबू
घटनाक जड़ि तक पहुँचलाह। इनक्वाइरी दौड़मे गप-सप करैक बहाने जंगलक एकटा गेस्ट
हाउसमे लऽ गेलनि। कोनो जानकारी केकरो नै देलखिन। मुदा देखिनिहारो तँ देखिते
रहै। भरि राति ओतै रहलाह। जइसँ आरो प्रतिष्ठा बनि गेल रहनि। मुदा प्रतिष्ठो
तँ जनमारा होइ छै। काली बाबू अपने पाँच भाइक भैयारी आ चारि संतान अपने छन्हि।
तीन कन्या एक लड़का। तीनू कन्याक बिआह कऽ लेने छलाह। भाए आ पिता जीविते छलखिन।
थेहगर दुनू, अपनासँ एक बर्ख पहिने पिता मुइलखिन। भाए छन्हिये।
बेटाक बिआह पछुआएल छलनि। ओना गप-सप (बिआहक) सुपौल जिलामे चलैत रहनि। ओहो (कन्यागत)
रेलबेक एस.पी., जखन मन मानि गेलनि जे आब नै जीब, तखन हुनका तत्काल बजा मंदिरमे बिआह सम्पन्न केलनि। नोकरी समाप्त भेला
पनरहे-बीस दिनक पछाति मरि गेला। मुदा पेंशनक समस्या तँ उठिये गेलनि।
जगदीश प्रसाद मण्डल त्रिपुरा जाइसँ पहिने हैदराबाद गेल
रहथि। हैदराबादमे राष्ट्रीय स्तरक साहित्यिक, राजनीतिक
कार्यक्रम छल। ग्रुपमे मधुबनी जिलासँ गेल छला। रेलक एक मासक पास सभ कियो बनबौने
रहथि। मुदा रूटक हिसाबसँ बनल रहनि। ओही समए मधुबनी जिलाक पार्टी अन्तर्गत स्व.
अनन्त भगत साहित्यिक मोर्चापर जिम्मामे रहथि। साधारण परिवारसँ आएल अनन्त
भगत, जेहने पितमरू रहथि तेहने वफादार। आर्थिक स्थिति नीक
नै रहलोपर पार्टीक होलटाइमर नेता रहथि। ओइ समए मधेपुरक भार हुनके भेटल रहनि।
चारि दिनक कार्यक्रम हैदराबादमे छल। सािहत्यिक मंचपर प्रेम चन्द साहित्य
छल आ राजनीतिक मंचपर देशमे कानून बनैक, ओकर व्याख्या आ िनर्णए
लइमे कि समस्या अबैत अछि, तइपर विशद चर्चो आ आगूक लेल
कार्यक्रमोक िनर्णए भेल छलै। प्रेमचन्द साहित्यपर विशद व्याख्या रमेश चन्द
उद्घाटन भाषणमे देलनि। ओना ओ पंजाबक छलाह मुदा अंग्रेजीमे बाजल रहथि। कारण छल जे
एक तँ दछिनी भारतमे कार्यक्रम छल, तहूमे जइठाम हिन्दीसँ
अधिक अंग्रेजीक बोलवाला अछि। बहुत पैघ कार्यक्रम छल। एकमतसँ प्रेमचन्द प्रगतिशील
विचारक साहित्यकार मानल गेलाह। राजनीतिक मंचपर मुख्य वक्ता छलाह-भूपेश गुप्ता
जे राज्य सभामे लगातार एक सएसँ ऊपर बैसारमे सम्मिलित छलाह। कानून बनबैक
प्रक्रियामे कि बाधा उपस्थित होइत अछि, तेकर विशद व्याख्या
करैत कोन रूपमे काज कएल जाइत अछि, कहलनि। भूपेश गुप्त
बंगालक छलाह। आजन्म अविवाहित रहलाह। एक संग स्व. इन्दिराजी (प्रधानमंत्री
इन्दिरा गाँधी) स्व. ज्योति बाबू (ज्योति बसु, मुख्यमंत्री
बंगाल) आ भूपेश गुप्त इंग्लैडमे
कानूनक शिक्षा लेने रहथि। दोसर मुख्य वक्ता रहथि न्यायमूर्ति बी. आर. अय्यर।
बी. आर. अय्यर सहाएब सुप्रीम कोर्टसँ सेवा निवृति भेल छथि। समस्याक िनर्णए
करब कते कठिन अछि तइपर विशद भाषण देलनि। वएह बी. आर. अय्यर सहाएब जे १९६७ ई.
मे बिहारमे महामाया बाबूक सरकारक भ्रष्ट पूर्वमंत्री सभपर जे आयोग बैसौने रहथि।
एकटा जानल-मानल न्यायाधीश। तेसर मुख्य वक्ता छलाह, मध्यप्रदेश
हाइकोर्टक एकटा सीनियर अधिवक्ता। न्यायालयमे बहस करैमे कि समस्या उपस्थित
होइत अछि तइपर विषद चर्च केने रहथि।
स्वभावो आ मेहनतोमे ओ सभ दछिन भारतक लोक भिन्न छथि। ओ
सभ जी खोलि कऽ काज करैमे विश्वास रखै छथि। जगदीश प्रसाद मण्डलक अपन इच्छा छलनि
जे किछु ग्रामीण क्षेत्र देखथि, मुदा से नै भेल। गाड़ीसँ (ट्रेन) जे
देखबो केलनि ओ से नै भेल जे देखए चाहै छला। चारिये दिन हैदराबादमे रहबाक छलनि, तहूमे जइ कार्यक्रममे आएल छला ओ छोड़ि केना सकै छला। हैदराबाद शहरो
नमहर। तैयो मुख्य-मुख्य जे दर्शनीय अछि से तँ देखबे केलनि। ऊषा कम्पनी,
संगमरमरक पहाड़, चारमीनार, निजामक राजशाही मकान, झील इत्यादि देखलनि। काफी
व्यस्त शहर हैदराबाद अछि। ओतए गाड़ी-सवारीक पर्याप्त बेवस्था अछि, मुदा तैयो काफी भीड़-भारबला शहर हैदराबाद अछि। खाइ-पीबैक िवन्यास अपना
सभसँ किछु भिन्न अछि। मुदा देश स्तरक कार्यक्रम तँए देश भरिक खान-पानक बेवस्था
रहबे करै। ओना कटहरक जे विन्यास छलै ओ अपना ऐठाम सँ भिन्ने नै नीको अछि। विदा
होइ काल, वापसीमे किछु धड़फड़ी भऽ गेलनि। ओना टिकट आरक्षित
रहनि मुदा प्लेटफार्मपर पहुँचैत-पहुँचैत गाड़ी खुजि गेलनि। सभ कियो (मधुबनीक)
सभ दिस भऽ गेला। अगिला स्टेशनपर एकठाम हेता, लेडी कम्पार्टमेंट
(महिला बोगी) मे चढ़ि गेला। अखन धरि महिला बोगी नै देखने छला। चढ़ि कऽ बइसौक
जे विचार तँ सौंसे बोगी महिले बैसल देखलनि। टी.टी सेहो महिला। मुदा अपना ऐठाम
जकाँ यात्री झौं-झौं कऽ नै छुटलनि। जगदीश प्रसाद मण्डल ओकरा सभ दिस देखैत जे किछु
पूछतनि तखन ने कहथिन। ओहो सभ चुपचाप देखबो करैत आ मुस्कियो दैत। जगदीश प्रसाद
मण्डलकेँ कोनो चिन्ते ने रहनि। एक्के देशक रेलगाड़ीमे दू रीति अछि, तखन कि हेतै? किछु काल पछाति टी.टी. लगमे एलखिन।
ओ बूझि गेल रहथिन जे ई उत्तर भारतक मेल गाड़ी छी। कहलकनि जे ई लेडी कम्पार्टमेंट
छिऐ। ओना ओ हिन्दियेमे कहलकनि मुदा जहिना अपना ऐठामक मिड्ल स्कूलक बच्चा
हिन्दी बजैत अछि तहिना। परिचयक जरूरी बूझि पड़लनि। अपना यात्राक चर्च करैत
कहलखिन जे धड़फड़ा कऽ चढ़ि गेला तँए ऐ कोठरीमे चलि एला। ने तँ किअए अबितथि।
कहलखिन जे आगू बदलि लेब, संगियो सभ छथिन, ओहो सभ भेट जेतनि।
जारी...
२
विद्यापति पुरस्कारक घोषणा
दू लाखक पुरस्कार रामभरोस कापड़ि भ्रमरकेँ
विद्यापति स्मृति दिवसक अवसरपर नेपाल सरकार द्वारा गठित
विद्यापति पुरस्कार कोष सोम दिन पुरस्कार सभक घोषणा कएलक अछि ।
घोषित उक्त पुरस्कार सभमे सभसँ महत्वपूर्ण पुरस्कार दू लाख
टाकाक एकटा आ एक एक लाखक चारिटा पुरस्कार रहल अछि । दू लाख टाकाक नेपाल विद्यापति
मैथिली भाषा साहित्य पुरस्कार नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ एवं संस्कृति
विभाग प्रमुख प्राज्ञ राम भरोस कापड़ि भ्रमरकेँ देबाक निर्णय कएल गेल अछि । तहिना
मैथिली कला संस्कृति पुरस्कार मैथिलीक नाटककार महेन्द्र मलंगियाकेँ, मैथिली अनुसंधान पुरस्कार डा. योगेन्द्र
प्रसाद यादवकेँ, मैथिली अनुवाद पुरस्कार पंडित सूर्यकान्त
झा आ मैथिली पाण्डुलिपि पुरस्कार विराटनगरक राम नारायण सुधाकरकेँ देबाक निर्णय कएल
गेल अछि ।
रामभरोस कापडि ‘भ्रमर-जन्मः २००८
साल, साओन, बधचौडा, जि.
धनुषा, शिक्षाःएम.ए. (त्रि.वि.वि.) पी. एच. डी. (मानद)
सम्प्रतिः सदस्य, प्राज्ञ परिषद्, नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान, कमलादी।प्रकाशित कृति-
काव्यः बन्न कोठरी औनाइत धुंवा (कवितासंग्रह):
२०२९ साल, नहि, आब नहि (दीर्घकविता) २०३६
साल, मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल),
अप्पन अनचिन्हार (कवितासंग्रह): १९९० ई.,
भयो अब भयो (अनुवाद) बस अब नही (हिन्दी अनुवाद) ।
कथासंग्रहः तोरासंगे
जएबौ रे कुजवा (कथासङ्ग्रह) १९८४ ई., हुगली ऊपर बहैत गंगा (कथासङ्ग्रह) २०६५ । उपन्यासः घरमुहाँ २०६९ । नाटकः रानी चन्द्रवतीः
२०४५ साल, एकटा आओर वसन्तः २०५२ साल, महिषासुर
मुर्दावाद एवं अन्य नाटकः २०५४ साल, भ्रमरका उत्कृष्ट
नाटकहरू (नेपाली अनुवाद) २०६४ भैया अएलै अपन सोराज (नाटक) २०६७ । शोधः जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका
सांस्कृतिक सम्पदाहरूः २०५६ साल, राजकमलक कथासाहित्यमे नारीः २०६४ साल,
लोकनाट्यः जट–जटिनः २०६४। मैथिली लोकसंस्कृति
(आलेख संग्रह) २०६६
। तराईको फांट देखि हिमालको कांख सम्म (आलेख संग्रह), प्रकाशकः
साझा प्रकाशन, २०६७ । विविध:आजको
धनुषाः २०३९ साल, जनकपुर लोकचित्रः २०४६ साल । समयको अन्तराल
पछ्याउदै(आलेख संग्रह, २०६६ साल) ठेकान पर (विचार संग्रह),
समय–सन्दर्भ (निबन्ध संग्रह) २०६८ । सम्पादनः
मैथिली पद्यसङ्ग्रहः (नेपाल राजकीय प्रज्ञाप्रतिष्ठान): २०५१
साल, लाबाक धान (कवितासङ्ग्रह) २०५१
साल, त्रिशूली (स्व. माथुरद्वारा लिखित खण्डकाव्य) २०४९ साल,
नेपालक
मैथिली पत्रकारिताः २०४४ साल, मैथिली लोकनृत्यः भावभंगिमा
एवं स्वरूप (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान) २०६१, अन्तराष्ट्रिय
मैथिली सम्मेलन आ नेपालः २०६५
साल, हम और तुम (हिन्दी कवितासंग्रह):
२०६६ साल । मैथिली नाटक–संग्रह (नाटक
संग्रह) २०६७, महाकवि विद्यापति आ नेपाल(निबन्ध संग्रह) २०६८,
मैथिली लोक संस्कृति संगोष्ठी प्रतिवेदन,२०६९,लोकनायक सलहेस (निबन्ध संग्रह) २०६९ । सम्मान: नेपाल राजकीय
पज्ञा–प्रतिष्ठान द्वारा प्रदत्त प्रथम ‘मायादेवी
प्रज्ञापुरस्कार’ द्वारा सम्मानितः २०५२
साल, विद्यापति सेवा संस्थान, दरभङ्गाद्वारा ‘मिथिला
विभूति’ सम्मान, शेखर प्रकाशन, पटना द्वारा ‘शेखर सम्मान’, ने.
मैथिली साहित्य परिषद्, जनकपुर द्वारा ‘वैदेही प्रतिभा पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली
सम्मेलन मुम्बई द्वारा ‘मिथिलारत्न’ सम्मान,
मधुरिमा नेपाल द्वारा ‘मधुरिमा सम्मान’,
चेतना समिति, पटना द्वारा यात्री चेतना
पुरस्कार, साझा
प्रकाशन द्वारा साझा लोक संस्कृति पुरस्कार (२०६८) आदि दर्जनो सम्मान, पुरस्कार
प्राप्त। विशेषः पूर्व अध्यक्षः साझा प्रकाशन ,ललितपुर।
विशेष उल्लेखनीय- नेपालक पहिल आधुनिक कथा संग्रह “तोरा संगे जयबौ रे कुजबा “(१९८४ ई.) क प्रणेता”। नेपालक पहिल आ आइधरि एक मात्र साहित्यकार जकर कथा संग्रह “तोरा संगै जयबौरे कुजवा” क प्रकाशन बिहार (भारत) क
सरकारी संस्था मैथिली अकादमी कएलक। सम्पूर्ण मैथिली
साहित्यमे पहिल प्रेमपरक दीर्घकविता “नहि, आब नहिं” क कवि । नेपाल
राजकीय प्रज्ञा–प्रतिष्ठानसं पहिल बेर प्रदान कएल गेल “मायादेवी प्रज्ञा–पुरस्कार”(२०५२)
क प्राप्तकर्ता जकर प्रशस्तिमे लिखल गेल छल–मैथिली भाषा
साहित्य एवं मैथिली पत्रकारिताक क्षेत्रमे विशिष्ट योगदानक लेल । नेपालसं प्रकाशित
पहिल मैथिली समाचारपत्र “गामघर साप्ताहिक”क सम्पादन–प्रकाशन, जे अनवरत
रूपें विगत तीस वर्षसं प्रकाशित भऽ रहल अछि । नेपालसं प्रकाशित पहिल आधुनिक कविता संग्रह “बन्न
कोठरीः औनाइत धुआँ”क कवि । नेपालक पहिल मैथिली कवि
जकर कविता बंगला भाषामे अनुवाद भऽ साहित्य अकादमी, दिल्लीक
संग्रहमे छपल। पहिल साहित्यकार जकरा साझा प्रकाशन, ललितपुर
द्वारा सर्वप्रथम “साझा लोक संस्कृति”पुरस्कार
प्रदान कएल गेल। नेपालक
पहिल मधेशी एवं मैथिली साहित्यकार जे साझा प्रकाशनक गरिमामय अध्यक्ष पद पर नियुक्त
भेल आ प्रज्ञा–प्रतिष्ठानमे सदस्य नियुक्ति (२०६७, माघ २१ गते) धरि बनल रहल। नेपालक पहिल मैथिली साहित्यकार जे सर्वप्रथम
नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक प्राज्ञ सभा सदस्य बनल आ बादमे
प्राज्ञ परिषद् सदस्य सेहो वर्तमानमे अछि । साझा प्रकाशनक अध्यक्षक रूपमे पहिल बेर
नेपाली बाहेक मैथिली समेतक भाषाक प्रकाशनक शुभारम्भ कएल, जाहिमे
पहिल मैथिली बालकथा संग्रह “बगियाक गाछ” प्रकाशित भेल। नेपालमे पहिल बेर काठमांडूमे अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली
सम्मेलन (२०६७) क सफलतापूर्वक आयोजन कएल, जकर उद्घाटन नेपालक
राष्ट्रपति आ विसर्जन नेपालक उपराष्ट्रपति कएलनि । काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय
कवि गोष्ठीमे सर्वप्रथम नेपालक मैथिली कविक रूपमे प्रतिनिधित्व कएल । नेपालक पहिल
साहित्यकार जकर रचना नेपालक पाठ्यक्रममे मात्र नहि बिहारक मैथिली पाठ्यक्रममे सेहो
पढाई भऽ रहल अछि । नेपालक सर्वाधिक मौलिक रचनाक लेखक । एखन धरि तीन दर्जन धरि सभ
पुस्तक प्रकाशित । तत्कालीन नेपाल
राजकीय प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक प्राज्ञ सभाक सदस्य होइते
सर्वप्रथम प्रज्ञा–प्रतिष्ठानद्वारा मैथिलीमे “आँगन” पत्रिकाक प्रकाशन प्रारम्भ कएल । अन्य गतिविधि
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन, दिल्लीक आयोजनमे होबऽ बला
अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलनमे भारतक मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई, तिरुपति आ गुआहाटीमे नेपालक प्रतिनिधि
मंडलकें नेतृत्व करैत भाग लेल । “एकटा आओर वसन्त” फिल्मक निर्माण-कथा-पटकथा-सम्वाद-गीत लेखन । नेपाल टेलिभिजन लेल जनकपुरधाम पर
डकुमेन्ट्री लेखन-प्रदर्शन। “सीता”
लगायतक किछु नेपाली फिल्ममे गीत लेखन। नेपाल सरकार संस्कृति
मंत्रालयद्वारा गठित विद्यापति पुरस्कार कोषक विधान, मापदण्ड
निर्धारण कार्यदलक सदस्य आ अन्तर्राष्ट्रिय स्तरक अवधारणा पत्र प्रस्तुत (बादमे
एहिमे व्यापक परिवर्तन कऽ) विवादित बनादेल गेल) । नेपाल पत्रकार महासंघक का.वा.
अध्यक्ष (धनुषा) आ नेपाल प्रेस युनियन, (धनुषा)क अध्यक्षक
रूपमे काज कऽ चुकल । नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक प्राज्ञ
सदस्यक हैसियतसं मैथिली लोक नाट्य जट–जटिनक गीत संकलन कऽ
तकरा रेकर्डिङ कराओल आ जटजटिनक कथानककें नाट्य रुपान्तर कऽ मंचपर प्रदर्शित कएल जे
अद्यावधिक जारी अछि । नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान द्वारा राजा
सलहेसपर नेपाल–भारतक विद्वान् सभक गोष्ठी कएल आ कार्यपत्र
सहित एकटा पुस्तक प्रज्ञा–प्रतिष्ठानसं “लोकनायक सलहेस” प्रकाशित कएल । जनकपुरधाममे
सर्वप्रथम “अखिल नेपाल मैथिली साहित्य परिषद्”क गठन २०३० सालमे कएल आ लगभग डेढ दशक धरि विद्यापति पर्व लगायत अन्य
मैथिली गतिविधि संचालन कएल । मैथिली पत्रिका “अर्चना”
“आंजुर” आ “गामघर”
क माध्यमसं आइ काल्हिक बहुतो मैथिली साहित्यकारकें साहित्य
क्षेत्रमे पदार्पणक अवसर प्रदान कएल। राष्ट्रिय, अन्तर्राष्ट्रिय
स्तरक गोष्ठी, सेमिनार सभमे कार्यपत्र प्रस्तोता एवं सहभागिताक
रूपमे आमंत्रित भऽ भाग लेल। नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठानमे
सर्वप्रथम विद्यापति स्मृति पर्व मनएबाक शुभारंभ कएल। आजुक तिथिमे नेपालमे मैथिली
साहित्यक कोनो विधामे सर्वाधिक रचना लिखबाक श्रेय प्राप्त। नेपाल सरकार, संस्कृति मन्त्रालय द्वारा राष्ट्रगानकेँ मैथिली अनुवाद करएबाक क्रममे
मैथिली अनुवादक हेतु विज्ञ मनोनित कएलापर राष्ट्रगानकें मैथिलीमे अनुवाद कऽ मूल
गीतक संगीतकार अम्बर गुरुङसँ प्रमाणित करा मन्त्रालयमे बुझाओल।
(विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ अखन धरि ११९ देशक १,६२६ ठामसँ ८५,६२२ गोटे द्वारा ४३,६३१ विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,७४,६०६ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल
एनेलेटिक्स डेटा।)
आशीष अनचिन्हार
लघु-दीर्घ निर्णय भाग-1
हमर ऐ लेखमे मात्र पं. गोविन्द झा
जीक चर्च अछि तकरा अन्यथा नै लेल जाए से हमर आग्रह। पं. गोविन्द झा जीकेँ हम
मैथिली व्याकरणक धूरी मानैत ई लिखल अछि। निश्चित रुपें पं. जी अपन अग्रजसँ नियम
ग्रहण केने छथि आ अपन अनुज सभकेँ बेसी प्रभावित केने छथि तँए हम मात्र पं. जीक उपर
ई लेख केन्द्रित केलहुँ जाहिसँ हुनक अग्रज आ हुनक अनुज सभ ऐ लेखक माँझमे आबि सकथि।
तँ आउ कने चली मात्रा केना गानल
जाइत छै ताहिपर। मात्रा गनबाक लेल मोन राखू जाहि अक्षरमे "अ", "इ", "उ", "ऋ" एवं "लृ" नुकाएल हो तकरा लघु मानू आ तकरा बाद सभकेँ
दीर्घ। संगहि संग अनुस्वार तँ दीर्घ अछि मुदा चन्द्रबिन्दु लघु। चन्द्रबिन्दु जँ
लघु अक्षरपर रहतै तँ लघु मानल जेतै आ जँ दीर्घ अक्षरपर रहतै तँ दीर्घ मानल जाएत।
संगहि-संग जँ कोनो शब्दमे संयुक्ताक्षर हुअए तँ ताहिसँ पहिलेक अक्षर दीर्घ भए जाइत
छैक चाहे ओ लघु किएक ने हुअए। उदाहरण लेल--प्रत्यक्ष शब्दमे दूटा संयुक्ताक्षर अछि
पहिल त्य एवं क्ष। आब एहिमे देखू "त्य" सँ पहिने "प्र" अछि
तँए ई दीर्घ भेल आ "क्ष" सँ पहिने "त्य" अछि तँए इहो दीर्घ
भेल। ई नियम जँ दू टा अलग-अलग शब्द हो तैयो लागू हएत जेना उदाहरण लेल--- हमर प्रेम
छी अहाँ... ऐमे "प्रे" संयुक्ताक्षर भेल आ ताहिसँ पहिने बला शब्द "
र" दीर्घ भए जाएत। मतलब जे "हमर" शब्दक अंतिम अक्षर "र"
दीर्घ भए जाएत । सङ्गे-सङ्ग मोन राखू "न्ह" आ "म्ह"
संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला शब्दमे लघु दीर्घ सेहो हएत। जेना की "कुम्हार"
मे "म्ह" सँ पहिने "कु" दीर्घ भेल तेनाहिते
"कन्हाइ" शब्दमे सेहो "न्ह"सँ पहिने "क" वर्ण दीर्घ
भेल। क्ष, त्र आ ज्ञ संयुक्ताक्षर अछि। तेनाहिते.... प्र,
र्व, आदि सेहो संयुक्ताक्षर अछि। मुदा
"मृत" शब्दमे "मृ" संयुक्ताक्षर नै अछि।
गजलमे दूटा लघुकेँ एकटा दीर्घ
सेहो मानल जाइत छै। बहुत गोटेंकेँ समस्या होइत छन्हि जे इ लघु-दीर्घ कोना होइत छै।
प्रस्तुत अछि किछु उदाहरण---
बिगड़ि-----------एहि शब्दकेँ
ह्रस्व-दीर्घ मानू वा दीर्घ-ह्रस्व मानू। बहरक जेहन जरूरति हो। अरबी बहरमे तीन टा
लघु सँ कोनो बहर नै छै तँए लघु-लघु-लघु मानबाक कोनो जरूरति नै।
हुनकर---------- एहि शब्दकेँ
दीर्घ-दीर्घ मानू वा दीर्घ-लघु-लघु मानू वा लघु-लघु-दीर्घ दीर्घ मानू जेहन जरूरति
हो। अरबी बहरमे चारिटा लघु सँ कोनो बहर नै छै तँए लघु-लघु-लघु-लघु मानबाक कोनो
जरूरति नै।
घर------- एहि शब्दकेँ दीर्घ मानू
वा लघु-लघु बहरक जेहन जरूरति हो।
चोर------ इ साफे तौर पर
दीर्घ-लघु अछि।
जँ कोनो शेरमे एना पाँति छै---
बिगड़ि चलै ।
आब एहि दू शब्दकेँ बान्हू। या तँ
अहाँ " बिग" मने एकटा दीर्घ मानू आ "ड़ि" मने एकटा लघु फेर
"च" एकटा लघू भेल आ "लै" एकटा दीर्घ। एकर मतलब जे "
बिगड़ि चलै" केर संभावित बहर भेल--दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ।
एहि शब्दकेँ एकटा आर रूप दए सकैत
छी जेना की---- "बि" के लघु मानू "गड़ि"केँ दीर्घ मानू आ फेर
"च" एकटा लघू भेल आ "लै" एकटा दीर्घ। एकर मतलब जे "
बिगड़ि चलै" केर संभावित बहर भेल--- लघु-दीर्घ-लघु-दीर्घ।
आब एहि दू रूपकेँ अहाँ बहरक
हिसाबें प्रयोग करू। कतेको आदमी " बिग" केँ दीर्घ मानताह फेर
"ड़ि" "च" केँ मिला दीर्घ मानताह आ "लै" भेल दीर्घ
मने दीर्घ-दीर्घ -दीर्घ मुदा इ रूप गलत भेल। मुदा ऐठाम एकटा गप्प मोन राखू जे किछु
शब्दमे धेआन सेहो राखए पड़त जेना एकटा शब्द " कमल " लिअ। आब जँ अहाँ एकर
उच्चारण क-मल ( मने लघु-दीर्घ) करबै ताहिसँ एकटा फूलक अर्थ निकलत मुदा जखन अहाँ
एही शब्दकेँ कम-ल ( मने दीर्घ-लघु) करबै तखन एकर अर्थ घटनाइमे हेतै जेना - पानि कम'ल
की नै इत्यादि। तँए हमर आग्रह जे पहिने कोनो शब्दकेँ उच्चारणक हिसाबेँ अर्थ देखू
जाहिसँ उच्चारण अनर्थ नै हुअए।
मैथिलीमे वर्तनीकेँ हिसाबेँ ई
उदाहरण देखू----
लए---- ह्रस्व-दीर्घ
लs------ह्रस्व
ल'------ह्रस्व
लय--- ह्रस्व-ह्रस्व वा दीर्घ
इएह निअम कए, कs वा स', भए भs वा भ' लेल छै आन प्रारूप लेल एहने बात बूझल जाए।
ऐठाम ईहो कही जे लघु लेल ह्रस्व शब्दक प्रयोग सेहो कएल जाइत छै तेनाहिते दीर्घ लेल
गुरू शब्द छै।
ई तँ छल सूत्र रूपमे। कने एकरा
फरिछा कए देखी------
1) 1) पं. गोविन्द झा अपन पोथी " मैथिली छंद शास्त्र" (
मिथिला पुस्तक केन्द्र दरभंगासँ प्रकाशित, द्वितीय संस्करण १९८७)मे
पृष्ठ १३ मे लिखैत छथि जे
" सँ, जँ, तँ, हँ आदि
गुरू अछि" मने चंद्रबिंदुकेँ पं. गोविन्द झा जी दीर्घ मनने छथि। मुदा फेर पं.
गोविन्द झा जी शेखर प्रकाशनसँ २००६मे प्रकाशित अपन पोथी " मैथिली
परिचायिका" केर पृष्ठ २०पर लिखै छथि जे " अनुस्वार भारी होइत अछि आ
चंद्रबिंदु भारहीन" मने ऐ पोथीमे पं. जी चंद्रबिंदुकेँ लघु मनने छथि आ एहने
सन विचार ओ मैथिली अकादेमीसँ २००७मे प्रकाशित अपन पोथी "मैथिली परिशीलन"क
पृष्ट ३५पर देने छथि। आब हमरा एहन पाठक लेल ई बड़का प्रश्न अछि जे चंद्रबिंदुकेँ
लघु मानल जाए की दीर्घ, कारण एकै पं. गोविन्द झा जी अपन
भिन्न-भिन्न पोथीमे भिन्न विचार देने छथि आ ई प्रचारित करबाक उपक्रम करै छथि जे
जाहि पोथीमे हम जे लीखि देलहुँ से सही अछि। जँ पं. गोविन्द झा जी बाद बला पोथीमे
लीखि देने रहितथिन्ह जे " मैथिली छंद शास्त्रमे चंद्रबिंदु केर सम्बन्धमे हम
जे लिखने छी से गलत थिक आब आब हम ऐ पोथीमे एकरा सुधारि रहल छी" तखन हमरा जनैत
भ्रम नै पसरितै आ ऐसँ हुनक महानता सेहो सिद्ध होइत। मुदा से नै भेल। कोनो भाषाक
वैयाकरणक उपर ओहि भाषाक हरेक लोककेँ विश्वास होइत छै। मैथिल सेहो पं. जीपर विश्वास
करैत छथि ( हमरा सहित) आ तँए बहुत मैथिल लोकनि चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि बैसल छथि।
एकर सभसँ बड़का उदाहरण श्री रमण झा सन अलंकार शास्त्री अपन पोथी "
भिन्न-अभिन्न"क पृष्ठ ६७-७३ मे देने छथि जतए श्री रमण जी पं. गोविन्द झा जीक संदर्भ दैत
चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। अस्तु ई गप्प फरिछाएल अछि जे चंद्रबिंदु लघु
होइत अछि आ अनुस्वार दीर्घ। एही क्रममे एकटा आर गप्प भए सकैए जे पं. गोविन्द झा जी
कविवर सीताराम झा जीक कविताकेँ देखि चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने होथि तँ से
गप्प फराक, कारण कविवर सीताराम जी अपन अधिकांश कवितामे चंद्रबिंदु युक्त
लघु शब्दकेँ दीर्घ जकाँ प्रयोग केने छथि। मुदा ऐठाम ई मोन राखए पड़त जे छंदमे
जरूरति पड़लापर ( मात्र आवश्यक स्थितिमे) लघुकेँ दीर्घक बराबर वा तेनाहिते दीर्घकेँ
लघु बराबर उच्चारण कएल जाइत रहलै। तँए जँ कविवर सीता राम जी जँ आवश्यकता पड़लापर
जँ चंद्रबिंदु युक्त लघुकेँ दीर्घ जकाँ प्रयोग केने छथि ताहिसँ ओ नियम नै बनि जेतै
वस्तुतः नियम तँ इएह छै जे चंद्रबिंदु लघु अछि। एकटा गप्प आर संस्कृतमे लघुकेँ
दीर्घक बराबर वा तेनाहिते दीर्घकेँ लघु बराबर उच्चारण मान्य नै छै। मैथिलीमे
लघुकेँ दीर्घक बराबर वा तेनाहिते दीर्घकेँ लघु बराबर उच्चारण प्राकृत एवं अप्रभंश
भाषासँ भेल अछि।
2) 2) मैथिली छन्द शास्त्रक पृष्ठ १४पर पं. गोविन्द झा जी लिखै
छथि जे ----" न्ह आ म्ह संयुक्ताक्षरसँ पूर्व लघु वर्ण गुरू नै होइत अछि, कन्हाइ, कुम्हार, एहिठाम क ओ
कु गुरू नहि थिक।" मुदा जँ अहाँ मैथिली उच्चारणकेँ अकानब तँ साफ-साफ सुनबामे
कन् + हाइ ध्वनि आएत तेनाहिते कुम् + हार ध्वनि सुनबामे आएत। मैथिलीमे क + न्हाइ
वा कु + म्हार ध्वनि कदाचिते भेटत आ जेना की गजल उच्चारणपर आधारित अछि तँए गजलमे
कन्हाइ लेल दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत आ कुम्हार सेहो दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। ओना
गजलेमे किएक हरेक छन्द, हरेक पद्य उच्चारणपर अछि तँए हरेक
छंदमे कुम्हार दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। आब कने आर विस्तारसँ चली। उर्दू भाषामे
न्ह, म्ह आ ल्ह सँ पहिनुक अक्षर दीर्घ नै होइत छै मने जे
जाहि सङ्गे ल्ह, म्ह वा न्ह रहैत अछि तकरे उपर ओ प्रभाव दै
छै जेना " तुम्हारा " ऐ शब्दक उच्चारण उर्दूमे "तु + म्हारा"
होइत छै तँए उर्दूमे " तुम्हारा लेल लघु + दीर्घ + दीर्घ प्रयोग होइत छै। ओना
ऐठाम ई कहब बेजाए नै जे उर्दूमे न्ह, म्ह, ल्ह केर ध्वनि संस्कृतसँ आएल मुदा उर्दूक सचेष्ट विद्वान सभ उच्चारण अपने
हिसाबसँ रखलथि। उर्दूक ई उच्चारण हिन्दीमे आएल ( बजबा कालमे उर्दू आ हिन्दी एक
समान होइत अछि)। मुदा जँ मैथिली उच्चारणकेँ देखबै तँ साफे-साफ अंतर बुझना जाएत। आ
एही अन्तरक कारणें मैथिल हरेक आन राज्यमे जल्दिये पहिचानमे आबि जाइत छथि। मैथिलीमे
आने संयुक्ताक्षर जकाँ म्ह,न्ह आ ल्ह केर प्रभाव होइत छै तँए
कुम्हार आ कन्हाइ लेल दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। संस्कृतमे सेहो “ म्ह, ल्ह आ न्ह “सँ पहिने केर
लघु दीर्घ मानल जाइत छै। आब देखू तुलसी दास जी द्वारा लिखल ई स्त्रोत-------------
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं
विभू व्यापकम् ब्रम्ह वेदः
स्वरूपं
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम
अछि----
ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घदोसरो
पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
| आब ऐ श्लोकक दोसर पाँतिक ब्रम्ह शब्दपर धेआन देबै सभ बुझबामे आबि जाएत।
3) 3) पं. गोविन्द झा जी मैथिली छंद शास्त्रक पृष्ठ १३मे
संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ हएत की लघु तकर व्यवस्था देखेने छथि। हुनका
मतें जँ एकैटा शब्दमे संयुक्ताक्षर हो तखने टा संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ
हएत। सङ्गे-सङ्ग ईहो कहने छथि जे प्रचलित समासमे जँ अलगो-अलग अक्षर छै तखन
संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। सङ्गे-सङ्ग ओ एकर सभहँक अपवाद सेहो देने
छथि। लगभग इएह नियम मैथिलीक सभ लेखक अपनेने छथि। सङ्गे हम ईहो कहि दी जे
हिन्दीयोमे एहने सन नियम छै ( आन आधुनिक भारतीय भाषामे की छै से हमरा नै पता) मुदा
ई नियम संस्कृतमे नै छै। संस्कृतमे चाहे एकै शब्दमे संयुक्ताक्षर हो की अलग-अलग
शब्दमे दूनू स्थितिमे संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। संस्कृत पद्यक किछु
उदाहरण देखू------पहिने आदि शंकराचार्यक ई निर्वाण षट्कम देखू-----------
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न
च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:
न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना
मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न
दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव
शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम
अछि----
ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
--------| दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम
अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ---------
। जँ अहाँ नीकसँ पढ़बै तँ पता लागत जे संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला
अक्षर जे अलग शब्दमे छै ओहो दीर्घ भए रहल छै। आब शंकराचार्योसँ पहिनुक रचना देखी।
तँ पढ़ू रावण रचित ई शिवतांडव स्त्रोतम्। एहूमे संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ
भेल अछि चाहे ओ एक शब्दमे अछि वा अलग शब्दमे। लघु-दीर्घक-लघु-दीर्घ-----ऐ रूपकेँ
पालन 14 श्लोक धरि पालन कएल गेल अछि।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेवलम्ब्य लम्बितां
भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः
शिवम् ॥ 1 ॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि
।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं
मम ॥ 2 ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे
।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु
वस्तुनि ॥ 3 ॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे
।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि
॥ 4 ॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी
विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां
चकोरबन्धुशेखरः ॥ 5 ॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-निपीतपञ्चसायकं
नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥
6 ॥
करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके
।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि
त्रिलोचने मतिर्मम ॥ 7 ॥
नवीनमेघमण्डली
निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः
प्रबन्धबन्धुकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु
कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं
जगद्धुरन्धरः ॥ 8 ॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
-विलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्
।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं
मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं
भजे ॥ 9 ॥
अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी
विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं
मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं
भजे ॥ 10 ॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट्
।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित
प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ 11 ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः
सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः
प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं
भजे ॥ 12 ॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे
वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा
शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललाटफाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी
भवाम्यहम् ॥ 13 ॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं
स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो
विशुद्धिमेतिसन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति
नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य
चिन्तनम् ॥ 14 ॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां
रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति
शम्भुः ॥ 15 ॥
ऐ के अलावे पूरा संस्कृत पद्ये
एकर उदाहरण अछि। मुदा से देब ने हमरा अभीष्ट अछि आ ने उचित।
मैथिलीमे ई नियम नै छै तकर कारण
प्राकृत-अप्रभंश भाषाक प्रभाव छै। मैथिली सहित आन-आन आधुनिक उत्तर भारतीय भाषामे ई
सेहो ई नियम नै मानल जाइत छै प्राकृत-अपभ्रंशक प्रभावें। आब ई देखू जे ई
प्राकृत-अपभ्रंश कोन भाषा थिक। प्राकृतक सम्बन्धमे नाट्य शास्त्रक प्रणेता भरत
मुनि कहै छथि जे------
एतदेव विपर्यस्तं संस्कार गुण
वर्जितम्
विज्ञेयं प्राकृतं पाठ्यं नाना
वस्थान्तरात्मकम्।
मने जे मूल शब्दक अक्षरकेँ
आगू-पाछू कए वा सरलीकृत कए बाजब प्राकृत पाठ कहाइए। ऐठाम मूल शब्द मने संस्कृतक
शब्द भेल, मुदा मूल शब्द कोनो भाषाक भए सकैए। तेनाहिते आचार्य भर्तृहरि
जी प्राकृतक सम्बन्धमे कहै छथि जे --------
दैवीवाक् व्यवकीर्णेयम शकतैरभि
धातृभिः
मने जे दैवीवाक् ( संस्कृत )
अशक्त लोकक मूँहमे आबि भिन्न-भिन्न रूपमे आबि जाइ छै। मुदा महाभाष्यकार पतञ्जलि
प्राकृतकेँ अपशब्दक रूपमे देखैत छथि आ हुनका मतें ऐ तरहक अपशब्दक प्रयोग चाहे ओ
बाजल जाइ की सूनल जाइ दूनू रूपमे अधर्म थिक।
प्रायः-प्रायः हरेक भाषाविज्ञानी
प्राकृतक बाद बला रूपकेँ अपभ्रंशक नाम देने छथिन्ह। लगभग नवम आ दशम शताब्दी धरि
प्राकृतक प्रयोग खत्म भए गेल छल आ अपभ्रंशक प्रयोग शुरू भए गेल छल। मुदा ऐ ठाम मोन
राखू जे अधिकांश भाषाविज्ञानी अप्रभंशकेँ प्राकृतसँ अलग मनने छथि मुदा दूनूक
प्रकृति एक समान हेबाक कारणें " प्राकृत-अपभ्रंश " नाम बेसी चलै छै।
प्राकृतमे शब्दक निर्माण मुख्यतः लोक रूचिपर निर्धारित छै ने की व्याकरणपर। एकटा
उदाहरण देखू-----चन्द्र शब्दसँ चन्दा प्राकृत शब्द भेल मुदा इन्द्र शब्दसँ इन्दा
शब्द नै बनल ब्लकि इन्दर शब्द बनल। तेनाहिते वधू शब्दसँ बहु बनि तँ गेल मुदा साधु
शब्दसँ साहु नै बनल। साहु अलग शब्द अछि। आ लगभग एहने हालति अपभ्रंशक अछि। ई बात
जननाइ महत्वपूर्ण अछि जे जेनाहित प्राकृत लेल मूल शब्द संस्कृत छै तेनाहिते
अपभ्रंश लेल मूल शब्द प्राकृत छै। आ बादमे एही अपभ्रंशसँ मैथिली आ आन आधुनिक
भारतीय भाषा सभहँक जन्म भेल। ओना प्राकृतक बहुत रूप छै। तेनाहिते अपभ्रंशक सेहो
अनेको रूप छै। मैथिलीमे अपभ्रंशकेँ अपभ्रष्ट वा अवहट्ट सेहो कहल जाइत छै। मुदा ई
प्राकृत रूप हरेक समयमे होइत रहलैए। वेदक नाराशंसी एकर उदाहरण अछि | आ ऋगवेदमे ओहि समयक सामानान्तर भाषाक बहुत रास शब्द भेटत। तेनाहिते अशोक
वाटिकामे हनुमान जीक ई चिन्ता जे हम सीता जीसँ देवभाषामे गप्प करी की मानुषी
भाषामे सेहो ऐ गप्पक प्रमाण अछि जे ओहू समयमे संस्कृतक समानान्तर भाषा छलै आब ओकर
नाम मानुषी होइ की वा अन्य कोनो। महत्वपूर्ण तँ ई छै जे वेदसँ लए कए एखन धरि
संस्कृतक समानान्तर धारा बहैत रहल आब भले ही ओकर नाम जे रहल होइ।
संस्कृत शब्द जखन प्राकृत रूपमे
आबए लगलै तखन संयुक्ताक्षर शब्दपर बहुत बेसी प्रभाव पड़लै। जँ गौरसँ देखबै तँ पता
लागत जे प्राकृत बाजए बला सभ संयुक्ताक्षर शब्दकेँ अपन लक्ष्य बनेने छल ताहूमे एहन
संयुक्ताक्षर बला शब्द जे शब्दक शुरूआतमे छल। एकर कारण छलै जे संयुक्ताक्षर बला
शब्दकेँ बजबामे बहुत सावधानी आ शिक्षा चाही छल। संस्कृतक संयुक्ताक्षर बला शब्द प्राकृतमे
दू रूपमे तोड़ल गेल---
१) जै संस्कृतक शब्दक शुरुआत
संयुक्ताक्षरसँ भेल छै तकरा प्राकृतमे पूरा-पूरी लोप कए देल गेलै। केखनो-केखनो
शुरूआतक संयुक्ताक्षरकेँ बादमे आनि देल गेलै जेना-----
“ग्रह” संस्कृत छै मुदा एकर प्राकृत “गिरहो” छै। तेनाहिते स्कन्द लेल खन्दो, क्षमा लेल खमा वा
छमा, स्तम्भ लेल खम्भ, स्खलितं लेल
खलिअं, क्लेश लेल किलेसो इत्यादि।
२) जँ शब्दक शुरुआत छोड़ि कतौ
संयुक्ताक्षर छै तँ केखनो ओकर लोप भए गेल छै वा नव रूपमे संयुक्ताक्षर छै जेना
----
चतुर्थी लेल चउत्थी, चैत्र लेल चइत्ता, चन्द्रिमा लेल चन्दिमा, क्षेत्रम् लेल छेतम् आदि-आदि। कुल मिला कए प्राकृत-अपभ्रंशमे एहन स्थिति
बनल जे दूनू भाषामे सँ कोनो भाषामे एहन शब्द नै छलै जकर शुरूआत संयुक्ताक्षर
शब्दसँ होइत हो।
एतेक विवेचनाक बाद हम अपन मूल
उद्येश्य दिस चली। हमर मूल उद्येश्य छल जे मैथिलीमे संस्कृते जकाँ अलग-अलग शब्द
रहितों संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ किएक नै होइए। आब जँ गौरसँ उपरका
विवरण पढ़ने हएब आ जँ आर प्राकृत-अपभ्रंशक पोथी सभ पढ़ब तँ पता लागत जे
प्राकृत-अप्रभंशमे तँ संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत शब्द छैके नै। आ मैथिलीयो अपभ्रंशसँ
निकलल अछि आ प्रारंभिक मैथिलीमे संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत होइत कोनो शब्द नै अछि। आ
तँए मैथिलीमे संस्कृतक ई नियम नै आएल। आ अहाँ अपने सोचियौ ने जे जै भाषामे
संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्द छैके नै से एहन तरहँक नियम किएक राखत। मुदा जँ नवीन
मैथिली भाषाक किछु प्रतिष्ठित लेखकक रचनाकेँ देखी तँ ओ मात्र क्रियापदकेँ छोड़ि सभ
संस्कृतक शब्द ( तत्सम शब्द )केँ प्रयोग केने छथि। आन-आन कम प्रतिष्ठित लेखक अपन
रचनामे तत्सम शब्दकेँ फिल्मी मसल्ला मानि जोरगर प्रयोग करै छथि। एतबा नै पं.
गोविन्द झा जी अपन पोथी "मैथिली परिशीलन"क पृष्ठ २९-३० पर गौरव पूर्वक
नवीन भारतीय भाषा ( जै मे मैथिली सेहो अछि )केँ तत्सम निष्ठ हेबाक बहुत रास फायदा
गनौने छथि। आब हमरा सन जिज्ञासु लग ई प्रश्न अपने-आप आबि जाइए जे जँ संस्कृतक शब्द
लेलासँ बहुत रास फायदा भेलै ( वा भए सकैत छै ) तखन तँ संस्कृतक सम्बन्धित नियम
लेलासँ सेहो फायदा भेल रहितै ( वा भए सकैत छै )। ओनाहुतो मैथिलीमे वा अन्य कोनो
आधुनिक भारतीय भाषाक पद्यमे संस्कृत शब्दक प्रयोग होइ छै तखन ओ नियम स्वतः पालन भए
जाइत छै। अहाँ अपने मैथिली महँक एहन कोनो पद्य गाउ जाहिमे संयुक्ताक्षरसँ शुरू
होइत कोनो संस्कृत शब्द हो स्वतः अहाँकेँ बुझा जाएत जे अलग शब्द रहितों
संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ होमए लगैत छै। ऐठाँ
फेर मोन राखू जे प्राकृत-अपभ्रंश भाषामे एहन शब्द छलैहे नै जकर शुरूआत
संयुक्ताक्षरसँ होइ तँए ओहि भाषामे ई नियम नै पालित भेल। आब एतेक विवेचनक बाद अहाँ
सभकेँ मामिला बुझबामे आएल हएत। तँए हमर आग्रह जे जँ ऐ नियमसँ बचबाक हो तँ
संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्दक तद्भव रूप प्रयोग करू जेना " प्रकाश "
लेल परकाश, " प्रयोग " लेल परियोग इत्यादि। हमर कहबाक मतलब जे जेना पुरना कालमे
प्राकृत संयुक्ताक्षरकेँ हटा देलकै वा आधुनिक कालमे बंगला भाषामे संयुक्ताक्षर हटि
गेलै तेनाहिते मैथिलीमेसँ संयुक्ताक्षर सेहो हटा दिऔ। आ जँ अहाँ संस्कृते शब्द लेब
तखन पूरा नियम सहित लिअ। आब अहाँ जँ सकांक्ष पाठक हएब तँ हमरासँ पूछब जे जँ केओ
संस्कृत छोड़ि आन भाषाक शब्द लेत तखन की ओहि भाषाक नियमक पालन करत ? ऐ लेल हमर उत्तर रहत जे नै। कारण संस्कृत हमर मूल भाषा थिक तँए ओकरा दिस
ताकब हमर मजबूरी नै बल्कि कर्तव्य सेहो अछि। मुदा ओकरा छोड़ि जँ आन भाषाक शब्द लै
छै तखन ओकरा मैथिलीक नियम हिसाबें प्रयोग करू। जेना की अरबी-फारसी-उर्दू भाषामे
" ग़ज़ल " लिखल जाइत छै मने ग आ ज केर निच्चा नुक्ता लगाएल जाइत छै मुदा
मैथिलीमे नुक्ता नै छै तँए मैथिलीमे " गजल " लीखू। नुक्ता लगा कए लिखब
बेकार । कोनो संस्कृतक शब्दकेँ वा अन्यदेशीय शब्दकेँ मैथिलीकरण कोना करी आ कोना नव
शब्द बनाबी तकर विवेचना आगू हएत।
ई छल हमर पहिल तर्क। आब कने दोसर
तर्क दिस चली---
संस्कृत पद्यमे एकटा पाँतिकेँ
इकाइ मानल जाइत छै। आ जँ हम शब्दकेँ भिन्न-भिन्न करै छिऐ मने अलग-अलग शब्दक
संयुक्ताक्षरसँ भेल दीर्घ नै मानै छिऐ तँ एकर मतलब जे हम पाँतिकेँ नै बल्कि
शब्दकेँ इकाइ मानि रहल छिऐ आ हमरा जनैत पद्यमे शब्दकेँ इकाइ मानब उचित नै। पद्यमे
इकाइ सदिखन पाँति होइ छै। एकटा विडंबना देखू जे मैथिलीक सभ व्याकरण शास्त्री आ कवि
लोकनि शब्दकेँ इकाइ तँ मानै छथि मुदा जखन जगण-मगण केर गिनती करै छथि तखन पाँतिकेँ
इकाइ मानि लै छथि। एकटा उदाहरण लिअ जे की वसन्त तिलका छन्दक अछि। ऐ छन्दक व्यवस्था
एना अछि----
तगण+ मगण+जगण +जगण + गा + गा
मने की ----दीर्घ-दर्घ-लघु
+दीर्घ-लघु-लघु +लघु-दीर्घ-लघु +लघु-दीर्घ-लघु +दीर्घ+ दीर्घ
आब एकर पद्य उदाहरण देखू----
" ई ने अहाँक सन वीरक
काज थीकs"
( कविवर सीताराम झा,
मैथिली छन्द शास्त्र, पृष्ठ-४५)। ऐ एकटा
पाँतिमे देखू जे " ई " आ "ने " दूटा अलग-अलग शब्द अछि
सङ्गे-सङ्ग तेसर शब्द " अहाँक" केर पहिल अक्षर " अ " लए कए
मात्र एकटा " तगण "बनल अछि। आब हमर कहब अछि जे जँ अहाँ पद्यमे शब्देकेँ
इकाइ मानै छिऐ तखन दू-तीनटा अलग-अलग शब्दकेँ सानि एकटा जगण-मगण किएक बनबै छी। जँ
केओ शब्देकेँ इकाइ मानै छथि तकर मतलब ई भेल जे ओ अपन पद्यमे एहन शब्दकेँ प्रयोग
करथि जे हरेक जगण-मगण मने कोनो दशाक्षरी खण्ड लेल समान रूपसँ रहए। तँए हमर मानब जे
संस्कृतक पद्ये जकाँ जँ अलग-अलग शब्द होइ तैयो संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक बला अक्षर
दीर्घ हएत। ऐठाँ ई मोन राखू जे एकटा पाँति खत्म भेलै तँ ओ इकाइ खत्म भेलै। आब जँ
दोसर पाँतिक शुरूआत संयुक्ताक्षरसँ भए रहल छै तकर प्रभाव पहिल पाँतिक अन्तिम शब्दक
अन्तिम अक्षरपर नै पड़त। ………………… क्रमशः जारी..............
( लघु-दीर्घ लेल शेष निघात सम्बन्धी अवधारणक खण्डन विदेहक अगिला
अङ्कमे …)
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