कामिनी कामायनी
लघुकथा
कठजीब
नाम त’ हुनक पिता पितामह बड़ दीव ‘अन्नपूर्णा’ धयने छ्लखिंन्ह ,मुदा
कपार , कत्त के अन्न आ’ केहेन पूर्ण ? आ’ शने;शने; लोक वेद हुनक नाम के छोट करैत करैत ,अंत मे पुरनी
दाय बना क’ भरि टोल कि भरि गाम लेल जेना निश्चित करि देलकइ।
हुनक
आबक रैन बसेरा वा घर जे कहि दादे कका के गोहाली छल । ओ त’ आब
अपने नै छलाह ,काकी छलखिन्ह।त’ हुनके
आग्रह प’ ओ जखन अपन पिता के डीह स उपाड़ी फेकल गेली त’ हुनक अनंत धार नॉर के पोछै लेल नबकी काकी अपन आचरि बढ़ोने छलखिन्ह ।अप्पन
झोरा झपटा ,गेरुआ ,सीरक ओछोंन बीछोन टूटलाही फूटलाही कासा ,पितड़िया
बासन उसरगलहा लोटा सब
सईत समेट क, रखलन्हि।आ’ ओहि दिन स ओ हुनक अघोषित अड्डा ।
भरि
टोल मे दु चारि त आँगन एहेन छल जतए हुनक बैसब उठब छल ।मुदा हेम क्षेम त’ सबस ।बड़ कम लोक हुनका अनेरे बइसल वा तमसाइत देखने होयत ।सदिखन कोल्हू के
बरद बनल काज मे जुटल ,पाईन बुनि के हुनके चिंता, टहटहौवा रौद के हुनके चिंता , रोपनि कटनी के हुनके चिंता ,ससुर बाइस बेटी के भार साठे के हुनके चिंता ,
दुरगमनीया कनिया के अहिब के फड़ बनबए के हुनके चिंता ,भरि गाम
के नौतल हकारल अहिबाती के तेल
सिनुर परसब के हुनके चिंता ,पाहून पड़क के आव भगत के हुनके चिंता, एतबा नहि परसौती के दबाए रानहब ,सोइरी मे चिल्का
चिलकोड़ लेल चमाइन बजाएब ,किसुनमा दोकान स चीज़ वोस्तआनब केकरो कोनटा लागि क
सीआईडी गिरि करब ,
सत पुछू त’ हुनक चिंता
अनंत छल ।नई घर
, , नई घराड़ी आगा नाथ नई पाछा पगहा , , तखन माथ प’ एतेक बोझ ,, ,
। तखन जे नहीं करबे पापी पेट , , ।
‘दाय सुने छथिंह , कनी सोनरबा ओत चली जाथु , , ,एखन धरि नंकिरबा के कानक कुंडल नहीं पठेलकई । , ,
कखनों कोनो गाम बाली बाजि उठेक “ये दाय ,कनी
डोमबा के ओत जाकय चारि टा सूप ,, कोनिया ,डगरा आ’ दुई टा चलनी लेल समाद पठा देथुंह ‘
,, मुनेशरा के कहने रहिए मार बाढ़ेन्न जरलहबा के अपन ससुरारि मे जाकए बईस रहलई , , कहथीन कनी परसू भिनसरे पठा देतय’। आधा
घोघ आधा मोड़त काढ़ने कोनो भौज दूरखा स’ झकैत बजा लईत छलिह ‘दीदी , , एखनि धरि संजुआ के
बाबू नै एलखींन जोगबन्नी से , ,बड़का
गाम बला ,जमाए आबि क’ द्लान प’ बईसल छथिन्ह,घर मे किछू कत्तों नै , , ,एक कप
चाह देबए से
नई दूध ,नई चाहक पत्ति , , ,कनी किसुनमा के दोंकान मे ई फुलही थारी बंधकी राखि क’ किछू पाए ल’आबौथ आ’ कनमा भरी
घी आ’ मखान सेहो ल’ लिहथि’।
आ’
हुनक ई सहयोगात्मक काज
गामे टा मे
नहीं अटकल छल ।दु ई कोश दूर मधबन्नी सहर “दाय ,, पर पाहून लेल तुलसी फूल
चौर निघटी गेल छईक, , दुइयों सेर ल’ लिहथि , नारिकेरक तेल , कडु
तेल ,हींग ,किनको खरपा, टकुआ ,लहठी ,टिकुली ,सिनुर , बांग , फुइस फड़क ,लटखुट ,चरखा,बेलना ,पापड़, पटिया ,, ,जेठक कड़ कड़कडौआ रौद
, , माथ प’ पथिया मे बड़का बोझ रखने , ,धिपईत
कारी स्याह पघिलल पिच रोड , , , पएर मे नै कोनो चट्टी , , ,घामे पसीने अपस्यात , , सबहक
चीज बोस्त किन बैसाही क’ आनि दैत छलिह त’ ओय दिन हुनक बड़ मान, कियो कियो बियेन स’ हौंक सेहो दैन ।
दिन
त’ दिन ,घोर निशा रैतियो मे हुनक
निस्वार्थ सेवा लेबा स’ लोक नहि हीचूके ।संकराति के दोसरे
राति धीरुवा के पेट मे मोचाड उठलई , ,
जे ओ छर पट्टी काटय लागल ,, ,घर मे सुतल अहि खाट प’
कखनो माए
के उठाबै त’ कखनो
ओहि खाट प’ सुतल काकी के ,
,।अलसायल ,ओंघाएल दुनु बिछाऊँन प’ पडल पडल बजलथी ‘की होएछो?’ “माए गे बाड़ी जाएब’। आब त’ दुनु के नींद
पड़ेल ।ललटेंमक टेमी उकसबईत माए बजलिह ‘भरी दिन हुरईत रहेत
अछि आ’ सुतली राति मे हिनका दिशा फिरबा के ज़ोर मारे छैन ।अहि जड़ काल मे ,अनहार मे ककरा उठबिए’ ।काकी के तुरंत
फुरेलेंह ‘पुरनी दाय के कहथुन नै’ । “आब के जेतय गोहाली हुनका उठाबै’ । माए कनी ओकताएल सन
बजली त’ पितीयानि हाफ़ी लईत सीरक तर स’
बजली “ बिसरी गेलखिन ईएह त’ कहने रह
थीन जे
आय कोनो पुरुख पात द्लान प’ नै छै ओसारा प सुति रहबई ,कहथून नै’। माए सेहो सिरके तर स’सोर
पाड़ली ‘ दाय , ,यई पुरनी दाय , , ,यई मरि गेलहू की जिबते छी’
।मुदा हुनक स्वर बाहरि के घोर अंधकार स’ एकाकार होइत शून्य
मे बिला गेल छल।इमहर धीरुवा पेट पकड़ने अहि कोन स’ ओहि कोन मोंगरी माछ जका तड़फैत, , घरे मे भ’जायत गे , , दे ललटेंम , ,हम एसगरे जायब , , मुदा
ललटेंमक प्रतीक्षा सेहो नहीं करि सकले
आ’ जिन जका दौड़ीक बाड़ी के केवाड़ी खोली चुकल छल
।माय हदबदा क’ उठली , , ‘भरी दिन अगत्ति धिया पूता के चक्कर मे कनी काल चैन स’ पड़िओ नही सकैत छि राइतो मे सेह’ । आ ओसारा प’ आबि भीम जका फोंफ काटेत दाय के देह हिल्बइत बजली ‘यई
भिशिंड़ जका सुतल छी ,, क तेक मोट निन भ’ गेल ,
कुंभकरंक कान कटल्हू ,’।दाय हड्बड़ा क’
उठि बैसली ‘की भेले ,की भेले’ ।त’ माए बजल खिन ‘हे ते की
अंगोरा , , धीरुवा अन्हारे मे भागले
बाड़ी दिस , डोलमे पानि लक कनी जाथुन, हैया लीअ ललटेंम’ ।बोरा ओढने खालिए पएर भुतहा बाड़ी
मे डोल नेने चलि गेल छलिह।
दाय
के खेनाय कखनों अहि
आँगन स’ कखनों ओहि आँगन स’ भेटय
।स्त्रीगन सभक कहबी छल जे ओ जीभ के बड़ पातर ,ओना सब कीछू भकोसी जाए
छथी ,सब
किछू मे की , , जेना चारी दिनका मटकूड़ि मे सड़ल
दही ,ट्टायल खाजा ,बज़्जर भेल ठकुआ ,, आ’ कटहरक को स’ ल’ क’ ओकर कामड़ी नेरहा धरि । आ’ पचि सेहो जायन्ह ।आकड़
पाथर पचाबए वाला जीब ,गज़ब के पाचन शक्ति । दुपहरिया क’
बइसारी मे स्त्रीगन सब हुनक पाचन शक्ति के एक स’ एक उदाहरण
दैत हस्सी ठठा करैत अपन मोंन बहटारई छलिह।
भरि
दिन काज ‘यै दाय ,कनी हमर राहड़ी राखल
छै उलैल ,
दस सेर लगीच दरड़ि
देथुंह कनी ,कनी
अरबा चौर क चिक्कस सेहो पीस दिहथी कतेक दिन स’ बंभोलिया के बगिया खेबाक मोन करैत छै’.।आ’ दाय टोलक भौजी स’ ल’क’ हुनक पुतहुओ सबहक अड़हैल काज मे दासोदास भेल ।कखन
भोर होए आ’ कखन सांझ ,,के जाने ।
कखनों काल जौ कोनो काज नै त’ जनानी के बइसारी
मे कोनो अधलाह काज वा
झगड़ा फसाद के गप्प प’ कोनो पुतहु बाजि उठए ‘ई काज पुरनिए दाय के भ’ सकैत अछि ,’ वा ‘ई लुतरी लाड़ब मे वएह ओस्तद छथीन’।सेहो परोछ मे नै मुहे प’ ।दाय गुमसुम भ’ जायथ, , कखनों “ह ह हम कीएक कहबई , ,सप्पत खुआ
लीय’ ।मुदा हुनका त’ पूतौह सभक टोंट आ’ अपमान सहबा के जेना आदति पड़ी गेल छलैन ।
काज
तिहारक घर मे दाय के काज पानक लत्ती जका लतरल चलल जाए ।कखनों सिनेह स’ त’ कखनों आदेश स’ तिरस्कार स’ लोहछल बोल स , “ऐ यै ,देखियोन्ह त’ हिंकर सौख , , किदन कहबी छै
जे ,
,जेकरे दादा ,, मर बाढ़्नि ,बिसरिओ
गेलिये ,उठु
,ई अदौड़ी खोटय अहाँ की बैसि रहलहु बौवासिन सब जेंका , ,जइयो कनी गुवरबा के कहने आबिओ बीस
सेर दूध काल्ही भोर स’ भोर पहुँचा दै आँगन मे ,” “ ललबा अखन
धरि नै एलई बजार स’ चौक प’ दारू तारु त’ नै पीबए लगलई ,कनी देखथुन त ,
आ हे जों
भेटईन्ह त’ कहिहथी जे हम ओकरा नानी गामक बाट मोंन पड़ा देबई
जखनहमारा स’ पईच लेब आयत” । आ’
पुरनी दाय ,भुट्ट
,कनी मोट गर गेंद जका अहि ठाम स’ ओहि
ठाम गुड़कइत ।मौसम चाहे कहनों होय लोक के त’ अपन बेगरता पुर
हेबा क चाही।ओय हुईल मालि मे केदन त’ हुनका खाय लेल पुछैन्ह ,आ’ सांझे मे खाइतथि त कोन जुलुम भ’ जेतय ।
जहिया ककरो आँगन मे काज तिहार रहए ,ओय
दिन हुनक मैल नुआ के जबर्दस्ती हटा क’ साफ सुथरा व नब नुआ
अपन आसन जमा लईत छल ,दाय के त’ छवि
सेहो बदलि जायन्ह।ओ थुस्स स’ नई कत्तों बईसइथ, अपन पएर प’, पीढ़ा प’ चौखटी
प’
,पटिया प ,नब नुआ नई मैल भ जाए । अहि नुआ के एवज मे
मास मास दिन धरि रातिदिन खटनाइ ,अहि बीच जों केकरो खड़ सेहो छुबए लगथि त’ घरक मलकाइन चिचिया उठेथ ‘हे लोक सब देखियोन्ह चक्र
चालि हिनकर , ,नब नुआ देलीयेन्ह
भोजन बेर मे दौगल ओतिह , आ’ काज क’ बेर दोसरा के आँगन सूईझ रहल छनहि , ,कनिओ धाक छईन आखि मे’।
आ’
एकर ओकर काज करि क’ पेट भरब के प्रक्रिया सुखद त’ नहीये रहल हेतइक।हिनका हुनका आँगन स थारी गोहाली मे पहुँच त’जाए आ’ के जाने अहि मे कोनो दिन उपासे सुइत रहैत
हेती ।
लाचार
बेसहारा अनिश्चित जिनगी के एक टा बडका ऐब सेहो गहूम मे सूड़ा जका सेनहियाएल छल
हुनका मे ,आंखि बचा क’ कोनो बोस्त इमहर स’ ओमहर करब
के , बड़का चीज क त्तय ,मुदा किछों, , ।आ’ ककरो गरुड पुराण सुनबा
काल जखन
पंडित जी क’ प्रवचन चलै ,कोन पाप के कोन दंड भेटैत छै नरक मे , चोरनी के नाम
प, दाय दिस ताकि ताकि क’ स्त्रीगन सब मुसके ,एक दोंसरा के बीट्ठू कटे ,।एकर आभास भेला के
बावजूदों दाय निर्विकार भाव स’ अपन बड़का बडका आंखि ,नाक ,कान सब के एक सीध मे राखि क’ कथा वाचक् के चरण कमल
मे बकोध्यान लगौने बइसल ।
टोलक
कोन मे अपन सहोदर भाय भाउज , एकटा बहिन ,सेहो
बाल विधवा ,, सासुर स’ देउर आयल छलेनह लेब’ त’ अपन जनक् क प ए र छानि कानए लगलिह दहो बहो कि हम
आब नहीं जायब ओहि नगर ,। माए बाबू बेटी के दुख देखबा मे अपना
के असमर्थ बुझेत कनीए दिन मे धरती स’ अलोप भ’गेलथि ,आ’ भोजाय नामी नट्टीन्न, , भाय घरबाली के मुट्ठी मे ,।
पहिने त’ सब कियो संगे रहे छलथि, कतबों गुहागिज्जी होए ,मुदा
ओय दिन नही जानि कोन गप्प प’ झगड़ा झाटी भेलय ,आ’ पटलपुर वाली हुनक सिकी मौनी, अड़जाल खड़जाल नुआ ,झोरा आदि सबटा निकालि दिरघु कका
के खरिहान मे फेंक देलखिन ।गोबर स’ घर आँगन नीप क’ गंगाजल छीट डंका के चोट प’ ई उद्घोषित करी देलथी जे
पुरनी दाय ह मरा लेल मुइल छथि। तहन बास के दईतन्हि ,नबकी
काकी के छोड़िए क’ ।गोहाली मे त’ आब गाय
बरद छै ने । योग्य पूत सब ,किओ
कीछू बिगाडिओ नै सकेत छल ।
मुदा
सहोद्र भाय लेल हुनकर अनुराग रहि रहि क’ चुबै न , ,छोट छोट भातिज भतीजी सब के इमहर उमहर स चोरएल ,नुकेल
समान द’ दैत ।राइत बिराति सबहक आंखि बचा के ओकर आँगनो चली
जाथि।भौज सेहो आब तेहन डाहीन नहि रहल छली ।
‘नुनु
(छोट भाय ) कतदन पड़ा क’ चलि गेलय ,नई
खाय के ठेकान नई पीबय के, धिया पूता सब बिलटी रहल छै” ।ककरो ओसारा प बइसी जखन ओ विलाप करैत त’ लोकक मों न
खिन्न भ जाए “ऊह फुटली आंखि नै देखेत छनही आ’ हिनक व्याकुलता देखियौन्ह”।
एक राति
पटोर बाली काकी चुप्पे पएर दाबि हिनका पाछा अपन आँगन मे अयली ,त’हींकर करनी देखि हुनका सौसे देह मे खौता फुकि देल कैन “हे ,हे ।हे दाय , , की करैत छी?” कनी
कड़गर सन स्वर मे बजली ,त’ ओ घबड़ा क’ मड़ुआ के ढेर प’ख़सी पडली आ’
हुनक मुंह स निकसि गेलन्ह “मड़ुआ चोरबे छी”।
भिनसरे
सौसे टोल मे हल्ला भ’ गेले ‘दाय मड़ुआ
चोरबे छली राति मे’ ।मुदा हुनका लेल धन सन ,ओ मजगुत प्राणी ,ओमहर इमहर बुलैत टहलेत ,कोनो कोनो काज् क ब्योंत मे अपना के एना खटबईत जेना ई कथा कोनो आन के भ’ रहल होय ।
पराग
कका बनारस
मे रहेत छला ,माए के देख चारि दिन लेल आयल छ लैथ,नबका
धुइस छ्लेन्ह ,, , बड़ गरम , , ,जाड़क
मास ,घर मे अलगन्नी प रखने छलथी ,कतेक
ताकल गेल ,धरती
गिड़ गेलै की अकास खा गेलै, कत्तों ने भेटलै ।ओ अहुरिया काटि क’
आपस छली गेलाह बनारस । “घर स आखिर लेते के ?’आ’ शक के सुइया सदी खन दाय प’
जा क’ अटकीजाए ,मुदा प्रमाण की ?’ आ’ एकटा धाक सेहो ,फुइस अकंड़
नई उठाबी ककरो ,।कियो इहों बाजी उठेक ,
‘जाय दिओ गरीब ,अबला छ थिन्ह ,पराग बाबू के
एकबाल बनल रहौक ’। “मुदा ओ केलखिन की ? ओढ़ेत बिछबइत त किओ नहीं देखलख’ ।
“भौजाई के द’ आएल हेती राताराती’। आ’ सब किओ बईस क’ अपन अपन
मगज मारी करी क’ गहीड श्वास छोड़ैत मौन भ जायथ।
हुनका
खेनाय देबा मे त’ सबके अखरए लगे ।नीत रोगी के पुछै के ,, भाति भाति के फकड़ा पढ़ल जाए ।एक दिन क’ पाहून के
तरुवा तीमन ,स चार लगा क’ लोक खुवा देत
छै,मुदा नीत दिन ,” । क हुना करि क’
हुनका सोझा थारी पठा दैल जाए छल।केकरो भुखल ने रखबा चाहि ,धर्म
के नाम प, कर्तव्य के नाम प’ हुनका
खेनाय भेटन्ह ।
मुदा ओय दिन
जखन दुरगमनिया कनिया के पाजेब कोहबरे स’ हेरा गेले तखन त’ हुनक सौस महेशक माए के तामसे जेना बुट्टी बुट्टी चमकय लगलन्ह ‘ई जुलुम आब ने सहबा जोगर छैक
,महेशक विवाह में नबका नुआ देने छलियेन्ह” ।ओ अहिना अगिया बेताल छलिह,तुरंत फाड़ बान्ह वाली ज़नानी । भानस चढ़ल चुल्ही
प’तेकरा छोड़ि झटा झट बढ़ ली गोहाली दिस ,अपना पीठ प’ चारि ज़नानी के फौज नेने ।चीज क’ नाम प’ गेरुआ खोल मे डोरी लगा क’ एक टा झोरा ,दुई तीन टा नुआ,एक
गोट चादरी,केथरी,आ’ एक टा खूब मोटगर सन गेरुआ ।सब टा मैल चिक्कट ,कखनों
काल साफ करैत ,इमहर ताकल,ओमहर ताकल ,अहि दोग देखल ,ओई दोग देखल,।
माटि मे त गाड़ि क’नहि रखने छथी,मुदा
तेहन कोनो चेन्ह नहि देखाय । एक जन के जे अपना के जासूस क महतारी बुझैत छलिह,के नजरि मोटका गेरुआ प’अटकल छल ,समस्त भीड़ के उक्साबईत बजली ‘गेरुआ के देखू नै’ । नेता के आदेश के पालन तुरंत होब लागले ,आय जेना
महान रहस्यक उदघाटन होबए
जा रहल छल ,अहि समाजक सब स’ भ्रष्ट आ’ पतित ,चोर क’ चारित्रिक हनन होबि रहल छल ,प्रमाणक संग । गेरुआ के
सियों न खोलल गेल, तेकरा निच्चा फेर मुंह बन्न,,आखिर मे सर्व सम्मति स’ गेरुआ के फाड़ी देल गेल ,आब ओत ठाढ़ ज़नानी सबहक आंखि फाटल रही गेलय ,केकर सरौता,केकर पनबट्टा,केक्कर नुआ, केकर
आंगी, साया, केकर कुर्ता, ,, मुदा पाजेब कत्तों नहि
निकललै । दाय
ककरो काज स’ लोहरबा ओत गेल छलथि । ताबेत में ढनमनाई त
ढनमनाइत ओहो आबी परमान
पुर बाली के दु
आरि प सुस्ताए लेल बइसी गेल
छलिह । गोहाली मे बिरनी के छत्ता जकां उमड़ल भीड़ देखि ओहो ओत स’उठी अकचकायल सन ओत आयल छलिह ।आ’ ई प्रलयंकारी दृश्य
देखि ओ जेना बज्र भ गेल छलिह ,एकदम शून्य ,जेना पाथर ,
, , ।चुप्प् चा प लद स ‘ओत बैसि रहली ।साक्षात ताड़का बनल महेष् क माए के मुंह स धधकल धधकल अंगोरा निकलि रहल छल
“पाजेब की केलिये? नब नुकूत कनिया के
छले ,एहेन कोन सौख मौज बुढाढ़ी मे पईस गेल ,पाए के बेगरता छल त’ हमारा कहितहु” । “यए काकी ,सोनरबा के ओतय
राखी देने हेथिह” आए
काल्ही बड़ एनाय जेनाय होय
छन। सोनरबा ओत मदना के दौडएल गेल ।मुदा ओ एक्दमे नकारी देलके ,केहनों सप्पत खे बा लेल तैयार , ,।कियो मुसकी माँरेत बाजल “ओ किए नाक प’ माछी बैसय देतै, , कहबी छईक चोर चोर मोसियौत”।
बाजि
ताजि क’,माथ कपार भंगैत ओ खोजी दल ओहि ठाम स’आपस
भ गेल छलिह..त’ लोक के लगलए आब बेचारी
मुंह उठा क’ कोना जिबती,कोनो पोखरी , धार मे संहिया जेती वा जहर माहुर खा क’
सूती रहती ।किछू दयामंत सबके
हुनक दुर्गति प’ आंखि झहरय लगलेन्ह ,’सब
साय पूत बाली सब जेना दुधक धोल हौक ,अब्बल दूब्बल प’सिथूवा चोख”।
त’किछू करेजगर ज़नानी के अपन ऐब नुकबए के
बहन्ना भेट गैल ।‘ई त’सिन्हा चोर
निकलली ,ओय दिन दूध औट क चीन _बारे प’ छोड़ि देने रहिए ,जे कनी सुसुम हेते तखन पौर क’ सिक प’लटका देबै ।मुदा कनिए काल मे नहा क’ आबे छी त’आधा दूध गायब ,दाय ओसारा प,सिलौट प, मसल्ला पिसेत छलिह” ।मुदा सत छल जे बीमार दियादनी
के गायक दूध पिनाए हुनका नहीं सोहाए आ’कखनों,बिलाड़ी के नाम प,कखनों उधिया क। खसबा के अड़ में कनी
पैइनफेंट के अपने पीबी जायथ। ओम्हर साँझ पड़बा स’ पहिने कनिया के भाय नैहर स, दौगल एलै ,पाजेब नैहरे मे छूटि गेल रहै ।महेशक माए अहि खबरि के पीबी गेलिह ,एतेक शक्ति त नहीं छलेन्ह जे जा क’ दाय स माफी मांगि
लइतथी । ओए राति केकरो घर क थारी दाय छूबों नहीं कयल्खींह ।कोना गिड़ल जेते अन्न ,एहेन कलंक्क ॰बाद ।
भिनसर भेने सब देखलक “दाय अपन गेरुआ के सीबी रहल छलिह । कनिए कालक़ बाद टोल मे एकरा ओकरा आँगन जा
क कतो दालि ,कत्तों चिक्कस ,कुटिया
पिसिया मे एना
लागी गेल छली जेना किछू गप्पे नहि भेल होमए ।
मुन्नी कामत
नाटक
जिन्दगीक मोल
प्रथम-दृश्य
राम रतन- बाबू सुतल छिऐ?
भिक्खन- कि कहै छहक बउआ? जागले छिऐ, बाजऽ, बहुत परेशान लागि रहल छहक।
राम रतन- बाबू, हम बाहर कमाइ लेल जाइ के
सोचि रहल छी। तोहर की विचार छऽ।
भिक्खन- नै बउआ, हम अतेक दिन तक तोरा नै
कतौ जा देलियऽ। आबो नै जा देबऽ। तोरा सिवा हमरा के छै। तोहर माइ तोरा हमरा कोरामे
दऽ कऽ दुनिया छोड़ि देलक। तहियासँ हमर सभ कुछ तूँ छहक। हम तोरासँ एक पल खातिर दूर
नै रहि सकै छी।
राम रतन- बाबू आब हम १८ बरसक भऽ गेलिऐ। हम अपन ख्याल राखैमे
सक्षम छी। हमरा बाहरक दुनियाँ देखै कऽ एगो मौका दऽ दिअ,
बस एक बेर जा दिअ, फेर अहीं संगे रहब।
भिक्खन- नै, अबकी बैशाखमे तोहर बियाह
करै कऽ अछि। बियाह करि लऽ, फेर तोरा जतऽ जाय कऽ मन हेतऽ
जायहक।
राम रतन- बाबू आब माइनो जाउ। किछु दिनक तँ बात छै। फेर अहाँ
जेना कहब हम तहिना करब।
भिक्खन- ठीक छै, अहाँक हठक आगू हमरा
झुकइये पड़तै। ककरा संगे आ कतऽ जेबहक?
राम रतन- बाबू, काल्हि फुलचनमा हिमाचल
जा रहल छै। हम ओकरे संगे हिमाचल जाएब।
भिक्खन- ठीक छइ, काइले जेबहक तब तँ पाइ
कौरीक ओरियान करऽ पड़तै। कखुनका गाड़ीसँ जेबहक।
राम रतन- रातिक ११ बजे निर्मली सँ गाड़ी पकड़बै। आब हम जाइ छी,
अपन कपड़ा-लत्ता साफ करै लऽ।
।
पटाक्षेप।
दोसर दृश्य
भिक्खन- बउआ हइए..... फूलचन एलऽ।
राम रतन- आबैय छी बाबू। कपड़ा पिनहै छी।
भिक्खन- बउआ फूलचन। तूँ तँ ओतै रहै छहक। तोरा तँ ओतौका सभ
किछु कऽ पता हेतऽ।
फूलचन- हउ कक्का, तूँ चिंता नै करऽ। राम
रतन हमरे संगे रहतै। ओतऽ ओकरा कोनो चीजक तकलीफ नै हेतै।
भिक्खन- तूँ तँ दवाइबला कम्पनीमे काज करै छहक नऽ! कथीक काज
करै छहक?
फूलचन- हँ कक्का। दवाइयेबला कम्पनीमे छिऐ। ओइमे तँ बहुत
तरहक काज होइ छै। जे काज भेटल सएह करि लेलौं।
भिक्खन- अच्छा चलऽ, ठीक छै।
राम रतन- चल फूलचन!
भिक्खन- बउआ सभ किछु ठीकसँ लऽ लेलहक नऽ? आ सभ िदन हमरा फोन करैत रहिअ। बाहर जाए छहक,
गाड़ी-घोड़ा देख कऽ चलइहक।
राम रतन- ठीक छै बाबू, अहाँ चिंता बिलकुल नै
करू। अपन ख्याल रखब। समय-समयपर खाना खाइत रहब आ बेसी काज नै करब। हम जल्दी घुइम-फिर
कऽ आबि रहल छी।
सबहक प्रस्थान!
।पटाक्षेप।
तेसर दृश्य
(हिमाचल पहुँच कऽ)
राम रतन- फूलचन, आइ गामसँ एला छऽ दिन भऽ
गेलैए। तूँ तँ काम पर चलि जाइ छऽ आ हमरा असगर पहाड़ जकाँ समय लगै यऽ। हमरो कतउ काज
लगा दे नऽ।
फूलचन- अच्छा ठीक छै। काल्हि हम अपन मालिकसँ तोरा लऽ बात
करबउ।
दोसर दिन
फूलचन- राम रतन, काल्हिसँ तूँहो चलियहन
हमरा संगे। ८ हजार मासिक तनखुआ पर हम तोरा लऽ बात केलियौहँ,
मंजूर छउ नऽ। मन लगा कऽ काज करबही तँ अओर तनखुआ बढ़ेतउ।
राम रतन- ई तँ हमरा लऽ बहुत खुशीक बात अछि। अखने हम बाबूकेँ
ई शुभ समाचार दै छी।
पटाक्षेप।
चारिम दृश्य
कम्पनीक कैनटिंगमे बैठ राम रतन आ फूलचन खाना खाइत गप्प करैत
अछि।
राम रतन- फूलचन अतऽ कोन काज होइ छै। हमरा सँ आइ कोनो काज नै
करेनकैए। डॉक्टरबला कोट पहिरने एगो आदमी एलै आ हमरा एगो गोली खिया कऽ चलि गेलै।
कुछो समझमे नै आबै छै, उ हमरा कथीक दवाइ देलकैए। ओतऽ चारि-पाँच
गरऽ अओर छेलै, सभकेँ वएह दवाइ देलकैए।
फूलचन- अतऽ अलग-अलग बिमारीक दवाइ बनै छै,
ओकरे जाँच खातिर कम्पनी किछु लोककेँ नौकरी पर रखै छै, जइमे
सँ एगो तुहो छी।
राम रतन- ओइ दवाइसँ कोनो हानि तँ नै होइ छै?
फूलचन- नै! अगर हेबे करतै तँ अतऽ डॉक्टरक आ दवाइयक कोनो कमी
छै? जे खर्चा ओकर इलाजमे लगतै सभ कम्पनी देतै। हमहूँ तँ कतेक साल
तक यएह काज केलिऐ, कहाँ किछु भेलै।
एक आदमी- फूलचन, राम रतनकेँ पठाउ, डॉक्टर साहेब बजेने छै।
फूलचन- जी। (रामरतनसँ) जो देखहीं की
कहै छउ।
राम रतन डॉक्टरक चेम्बरमे जाइत अछि।
राम रतन- साहेब अहाँ बजेलौं।
डॉक्टर- ई दवाइ खा लिअ आ एतऽ पड़ि रहू, किछु इन्जेक्सन लगेबाक अछि।
दवाइ खा कऽ राम रतन सुइ लइ लऽ मेज पर लेट जाइए!
२ घंटा बाद
डॉक्टर- राम रतन ओ राम रतन उठू।
डॉक्टर राम रतनकेँ हिलाबैत अछि आ फेर नब्ज देखऽ लागैत अछि!
डॉक्टर- ई की, ई तँ मरि गेल। कियो अछि,
डॉक्टर खुरानाकेँ बजाउ।
डॉक्टर खुराना- की भेल?
डॉक्टर- सर, एकरा देखू, की भऽ गेलै, नब्ज नै चलै छै।
डॉक्टर खुराना- ओह नो! ई मरि गेल। कोन दवाई देलौं एकरा?
डॉक्टर-सर ई तीनू।
डॉक्टर खुराना- की अहाँ पागल छी? एक साथ एतेक दवाइ, सेहो पहिले बेरमे। पहिने अहाँ
एकरा नींदक गोली खुएलौं, तकर बाद एतेक पावरक दू-दू इन्जेक्सन
दऽ देलौं?
डॉक्टर-सर आब की हएत?
डॉक्टर खुराना- हमरा सभ ऐठाम तँ ई रोजक बात अछि। एकर परिवारबलाकेँ
मुआवजा दऽ कऽ चुप करा दियौ, आ हँ जखन सभ चलि जाए तखन बॉडी बाहर निकालब।
ता तक एकर मरबाक खबर ऐ चहरदिवारीसँ बाहर नै एबाक चाही, बुझि
गेलौं।
रातिक ९ बजे
फूलचन- सर, राम रतन कतऽ अछि, ओकर छुट्टी नै भेल?
डॉक्टर- आइ एम सॉरी फूलचन, राम रतन आब ऐ
दुनियाँमे नै रहल। हमरा एकर अफसोस अछि। ओकर परिवारबलाकेँ कम्पनी एक लाख रूपैया
मुआवजाक तौरपर देत। हम ओकरा नै बचा पेलौं।
फूलचन मने-मन सोचैत अछि
-आब हम की जबाब देब कक्काकेँ। केना कहब कि ओकर जिअइ कऽ सहारा
छिन गेल। केना जिथिन ओ, हे भगवान, एना
केना भऽ गेल।
पटाक्षेप!
अंतिम-दृश्य
फूलचन- हेल्लो.. कक्का, तूँ जेना छहक तहिना अखने
गाड़ी पकड़ि लए। राम रतन बहुत जोर बीमार छऽ।
भिक्खन- बउआ, एक बेर हमरा राम रतन सँ
बात करा दए। की भेलैए हमर बाबूकेँ। हम तँ देखनइयो नै छिऐ हिमाचल तँ केना एबऽ।
फूलचन- कक्का, हमर छोटका भाइ तोरा लऽ
कऽ एतऽ। ओ अखने तोरा घर आबि रहल छऽ, तूँ बस जल्दी आबि जा।
भिक्खन- हम अबै छिअ बउआ, तूँ हमरा बउआक ख्याल रखियहक।
फूलचन- ठीक छै, आब फोन रखै छिअ।
कहैत-कहैत फूलचन कानऽ लगैत अछि
दोसर दिन हिमाचल पहुँच कऽ
भिक्खन-बउआ........बउआ राम रतन कतऽ छहक?
फूलचन- कक्का पहिले अहाँ किछो खा लिअ। राम रतन ठीक यऽ।
भिक्खन- पहिले हम अपना बेटाकेँ देखब तब किछो मुँहमे लेब।
फूलचन भिक्खनक गला पकड़ि कानऽ लगैए आ सभ किछु बता दइए।
भिक्खन- फूलचन, हमरा बेटाक जीवनक सौदा
तूँ ८ हजार मे केलहक। तूँ सभ किछु जानै छेलहक, तइयो ओइ मौतक
मुँहमे हमरा बेटाकेँ धकेल देलहक। तूँ हमर सभ किछु लऽ लेलहक,
हमरा निष्प्राण बना देलहक। हमर बेटाक मौतपर हमरा १ लाखक भीख तोहर कम्पनी देतऽ,
उ ओकरे मुँह पर फेक दिहक। हमरा नै चाही कोनो भीख। आइ हमर बेटा मरल, काल्हि ककरो अओरक बेटा मरत। आखिर ई मौतक खेल किए खेलल जाइए? जे दवाइक परीक्षण जानवरक ऊपर करबाक चाही ओकरा भोला-भाला गरीब मनुष्यक ऊपर
करैत अछि। कि अकरा रोकै लेल कोनो कानून नै अछि?
एक घार रूदनक संगे पटाक्षेप
खुशबू झा
मैथिली कथा संग्रह जिद्दी पढलापर
साहित्यमे किछु पढबाक मोन भेल तऽ हम कथे पढैत छी । कखनो काल समाचार
बनबैत–बनबैत थाकि गेलहुँ तऽ नेटपर कोनो कथा खोजए लगैत छी ।
युवा पत्रकार सुजीत कुमार झाक कथा संग्रह जिद्दी जखन हमरा भेटल एमएकेँ परीक्षा
चलैत समयमे पढि लेलहुँ । सुजीतक पहिल कथा संग्रह चिड़ै आ दोसर कृति रिपोर्टर डायरी
हम एहि सँ पहिने पढि लेने छी । कथ्यक हिसाव सँ चिडै आ जिद्दीमे खासे अन्तर नहि
लागल । मुदा क्रमशः उचाई धऽ रहल छथि से पढबाक क्रममे हमरा भेटल । कोनो व्यक्तिकेँ
एक वर्षमे ३ टा पुस्तक आएब साहित्यकेँ प्रति सुजीत कतेक समर्पित छथि तकर एहि सँ
बडका उदाहरण दोसर नहि भऽ सकैत अछि । फेर जाहि रुप सँ हिनकर पुस्तक चर्चामे आबि रहल
अछि हिनका लेल मात्र नहि मैथिली साहित्यक लेल सेहो उपलब्धीक बात अछि । जिद्दी एहि
पुस्तककेँ नाम एकटा कथाक कारण पड़ल से हमरा नहि लगैत अछि । जिद्दीक वारहो कथामे
जिद्द भडल अछि । जँ ओ जिद्दी नाम सँ कथा नहि लिख कितावक नाम मात्र लिख देने रहितथि
तैयो फरक नहि पडैत ।
१ सय १४ पृष्ठक एहि कथा संग्रहमे १२ टा कथा अछि । पहिल कथा ‘फूल फुलाइएकऽ रहल’ संग्रहक नाम सँग पुरा वष्तुनिष्ट
बुझाइत अछि । अहुँमे जिद्द अछि । कथामे पिंकी अपन अधुरा सपनाके टुटैत नहि छोडि
एकटा दृढ विश्वासक सँग पुरा कऽ एकटा सच्चा आ कर्तव्यनिष्ट पत्निक रुपमे ठाढ़ भेल
छथि ।
तहिना ‘नव व्यपारमे’ साधना
उपर आधुनिकताक प्रभाव देखाओल गेल अछि जे अपन पति आ घर दुआरक जिम्मेवारीकँे बिसरि
क्लब आ राजनीतिक हिस्सा बनल छथि । ‘खाली घर’, ‘लाल डायरी’, ‘जिद्दी’, ‘जादु’,
‘आदर्श’, ‘अर्थहिन यात्रा’ आ ‘व्यर्थक उडान’ ई सभ कथामे
महिलाक मनोविज्ञानके चित्रण बहुत सुन्दर ढंग सँ कएल गेल अछि । तहिना ‘निष्ठा कि देखावा’ मे अपन कर्तव्यके समाजक लेल मात्र
निर्वाह करय बला औपचारिकता बुझि पतिक सेवा करय बाली नकारात्मक विचारधाराक महिलाक
चित्रण कएल गेल अछि । ‘केहन सजाय ?’ नामक
कथामे कामनी मैडम जेहन जुझारु महिला जे अवलाके सवला बनैत देखि खुश होइत छली । ओहन
सकारात्मक विचारधाराक महिलाक प्रस्तुत कएल गेल अछि तऽ ओ कथामे पुत्र भेलापर गोद
लेल वच्चाकेँ छोड़ि देबएबला घटना पढि रोइया ठाढ कऽ दैत अछि । ‘मेनका’मे एकटा एहन महिलाक चित्रण अछि जे एकटा बेरंगक
जीवन बिता रहल छली मुदा जखन रंग भड़य बला भेटल तऽ ओ अपन रंग उजारय बाली जेहन नहि
बनबाक प्रण कएलन्हि आ अपन बेरंग जिनगीक दोसर यात्रा तय कएलन्हि । अर्थात
महिलाद्वारा पीडित महिला दोसरकँे पीडा नहि देबए चाहलथि ।
अर्थात पुरा कथा संग्रह महिला आ महिलाक आचरण पर केन्द्रीत अछि जे
एहि समाजक सत्यताक उजागर करैत अछि ।
एहिमे प्रस्तुत सभ महिलाक मोनमे एकटा अलग द्वन्द्व प्रस्तुत कएल गेल
जे एहि पुरुषबादी समाजक देन अछि । आ ई काल्पनिक कथा होइतो एकटा कटु सत्य बातक पोल
खोलि दैत अछि । एहि संग्रहक मोलिकते इएह अछि । हम चाहब सुजीतक नयाँ पुस्तक जल्दि
आबए । खास कऽ महिला सँ जुड़ल समस्यासभकेँ आओर गम्भीरता संग उठैक एकर अपेक्षा हमरा
तऽ अछिए । मैथिलीके पुस्तक प्रकाशन काज दुरुह भेलाक बादो आफन्त नेपाल जिद्दी पुस्तक
छापयके प्रयत्न कएलक अछि । एहिके लेल आफन्तोके धन्यबाद देबहे पडत ।
पूनम मण्डल
विदेह विचार गोष्ठी एक झलक-
आकाशवाणी दरभंगाक जातिवादी प्रवृत्तिक विरोधमे आ दसटा घोर
जातिवादी परिवारक मैथिलीकेँ मारैक षडयन्त्रमे आकाशवाणी दरभंगा द्वारा देल जा रहल
सहयोगक विरोधमे "विदेह गोष्ठी- सह कवि सम्मेलन" ७ अक्टूबर २०१२, स्थान, अशर्फी दास साहु-समाज महिला इण्टर महाविद्यालय, निर्मली,
सुपौल मे सम्पन्न भेल। लोकमे अपार उत्साह देखल गेल।
ई तथ्य सोझाँ मे आएल जे मैथिलीक पहिल जनकवि आ मैथिलीक भिखारी
ठाकुरकेँ सेहो डेढ़ साल पहिने फॉर्म भरबाओल गेलन्हि मुदा आकाशवाणी दरभंगा द्वारा
कोनो सूचना तकर बाद नै देल गेलन्हि। ओ कहलन्हि जे आकाशवाणी दरभंगा बाहर
देबालपर "झारू" साटि देबाक मोन होइए।
आकाशवाणी दरभंगा मैथिलीक जातिवादी
रंगमंच आ साहित्यक प्रसारक आ प्रचारक बनि कऽ रहि गेल अछि।
िनर्मली/सुपौल- स्थानीय अशर्फी दास, साहु-समाज र्इ. महिला
महाविद्यालय परिसरमे दिनांक 7 अक्टूबरकेँ दुपहर 2 बजेसँ संध्या 6:30 बजे धरि
कवि, कथाकार, गीतकार, अल्हा गौनिहार, रसनचौकी बजेनिहार इत्यादिक
संग-संग अनेक श्रोता सबहक जमघट कसबामे दलमलित केलक।
आकाशवाणी दरभंगाक जातिवादी
प्रवृत्तिक विरोधमे आ दसटा जातिवादी परिवारक मैथिलीकेँ मारैक षडयंत्रमे
आकाशवाणी दरभंगा द्वारा देल जा रहल सहयोगक विराधमे विदेह विचार गोष्ठी सह कवि
सम्मेलन सुसम्पन्न भेल। कवि राजदेव मण्डलक अध्यक्षतामे आ पवन कुमार साह एवं
दुर्गानन्द मण्डल जीक मंचसंचालनमे पहिल आ दोसर दुनू सत्रक अर्थात् विचार गोष्ठी
आ काव्य गोष्ठीक समापन भेल जेकर संयोजक रहथि उमेश मण्डल। एहेन पहिल बेर देखल
गेल जे मिथिलाक कला-संस्कृतिक हराएल प्रेमी अपन-अपन विचार खुलि कऽ रहखलनि।
जेकर दू-टुक विवरण ऐ तरहेँ अछि-
शंभू
सौरभजी- “हक-अधिकार
आ कर्तव्यक संग लड़ाइ लड़ू तखन जे खोजि रहल छिऐ ओकर प्राप्ति अवस्स हएत।”
वीरेन्द्र
कुमार यादव- “अपनामे एकता हेबाक चाही। तखने अधिकारक प्राप्ति भऽ सकत। ओइ वर्गक लोक
अपना सभकेँ सदियोसँ ठकि रहल अछि।”
रामदेव
प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’- “अपना संग भेल
दरभंगा रेडियो स्टेशनक फुसलाओल कथा विस्तारसँ सुनेलन्हि।”
राहुल
कुमार साहु- “अपने सभ एकता करू आ हम सभटा-युवा क्रांतिकारी अहाँ सबहक संग छी। अधिकार
प्राप्ति करबाक लेल जे करए पड़तै हम सभ संग रहब।”
राम
विलास साहु- “मात्र सात प्रतिशत लोक मैथिली विकासक हेतु अर्थात मिथिलाक साहित्यिक
विकासमे जे कोनो सरकारी वा गैर सरकारी संस्था सभ अछि तइपर कब्जा केने अछि। जे
बिलकुल अनुचित अछि, अनुचित ई जे तखन तँ समुचित विकास
तँ नै हएत। जखन कि सामुहिक विकास आवश्यक अछि।”
मनोज
कुमार साहु कहलनि- “अपने सभ अपन लेखनीक तागतिकेँ आओर बढ़ाउ आ तखन अधिकार प्राप्तिक लेल
संघर्ष करू सफलता अवस्स भेटत, ई हमर शुभकामना।”
कपिलेश्वर
राउत कहलनि- “दरभंगा रेडियो स्टेशनक जातिवादी बेवस्था अविलम्ब हटबाक चाही। वास्तवमे
तखने मिथिलाक विकास हएत। जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ जे टैगोर लिटरेचर
अवार्ड भेटलनि, जे मैथिली लेल पहिल अछि; से समाचार नहियेँ कोनो
दैनिक अखबार (दरभंगा-मधुबनीक)मे छपल आ ने आकाशवाणीयेमे समाचार-प्रसारित भेल। जे
बहुत किछु कहि रहल अछि।”
नंद
विलास राय- “मैथिलीक नामपर जे कोनो फंड सरकार द्वारा देल जाइए ओ मात्र मुट्ठी भरि
लोकक बीच रहि जाइए। माने तेकर फैदा खाली दस प्रतिशत ब्राह्मणेटा उठबैए। आेतबे नै,
चौक-चौराहापर मिथिलाक मान-प्रतिष्ठा मात्र भोजनेकेँ कहैत रहैए।”
कृष्ण
राम कहलनि- “समाजकेँ खण्ड-खण्ड कऽ वर्णवादी बेवस्थाक तहत बाभन सभ बाँटि कऽ बेवसाय
कऽ रहल अछि।”
हेम
नारायण साहु- “मात्र मुट्ठी भरि लोक अपन आधिपत्य कायम केने अछि आ एमहुरका लोक सभकेँ
गप-गप दऽ दऽ आ पूजा-पाठ करा कऽ आर्थिक आ मानसिक लूट करैत रहल अछि। ओ सभ रूपैयाक
लेल जे-नै-सेहो कऽ सकैए आ कऽ रहल अछि।”
राम
प्रवेश मण्डल- “हम सभ जगबाक प्रयास कऽ रहल छी आ बूझू जे जागि गेल छी। आब निश्चित अपन
अधिकारकेँ पाबि लेब।”
वीपीन
कुमार कर्ण- “जहिना माताकेँ सम्मान हेबाक चाही तहिना मैथिलीकेँ सेहो। एते दिन अपना
सभ बूझू जे भाषाकेँ भरना लगा देने रहिऐ आब ओ छोड़बैक समए आबि गेल अछि। कथनी आ
करनीमे अंतर खाली नै हेबाक चाही।”
उमेश
पासवान- “बाभन
सभ मैथिलीकेँ कद्दै जकाँ धेने अछि। लेकिन आब हमरा सभ छोड़बै नै ढावक जकाँ दौग
कऽ जेबै आ छोड़ा लेबै। खाली अपना सभमे एकता हेबाक चाही।”
श्री
जगदीश प्रसाद मण्डल- “किछुये लोकक ई किरदानी अछि जे मात्र बोलियेपर काज चला रहल अछि। देखबै
जे मक्कै खेतमे ऊचका मचान बना कऽ नेंगराे-लुल्हाकेँ ओइपर बैसा बजबबैत रहैए जे “हैआ आबए दे, के छिअँ रौ, अखने देखा दइ छिऔ, रूक....।”
अर्थात् टिटकारी दैत रहल छथि। मात्र एक धक्का देबाक जरूरति अछि। परिणाम सामने
आबि जाएत आ समाजक विकासक असली आ बुनियादी रास्ता सबहक सोझामे आबि जाएत मिथिलाक
चिन्तन पंचदोवोपासनाक रहल अछि। कोनो साधारण चिंतन नै।”
नाटककार
बेचन ठाकुर- “किछुए लोक मैथिलीकेँ बपौती सम्पति बूझि शब्दजालमे फसा कऽ लूट कऽ रहल
अछि। जे हर बहए से खढ़ खाए आ बकरी खाए अचार।”
उमेश
मण्डल- “ब्राह्मणोमे
सभ ब्राह्मण ऐ खेलमे शामील नै छथि मात्र पाँचसँ दस प्रतिशत लोक ई कारनामा मैथिलीक
संग कऽ रहल छथि। अोहुँमे माने ब्राह्मणोमे वंचित साहित्य-प्रेमी सभ्ा छथि।
खाली ऐ पेंचकेँ बुझबाक अछि आ तइपर धक्का लगेबाक अछि। मणिपद्मम आ हरिमोहन झाक
साहित्यक अखन तक जे मूयांकण भेल से संबंधित विचारधाक पहिचान छी...।”
अच्छेलाल
शास्त्री कहलनि- “संगठन हेबाक चाही तखने अधिकारक प्राप्ति भऽ सकत; ऐ
जगमे के नै जनैए बाभनक कारनामा।”
कवि
उपेन्द्र नारायण अनुपम- “लक्ष्यपर पहुँचि रहल छी आ पहुँचबे करब।”
संचालक
द्वय श्री पवन कुमार साह आ दुर्गानंद मण्डल- “मंच संचालनक क्रममे अपन उद्गार व्यक्त करैत
कहलनि, एहेन-एहेन विचार गोष्ठी मासे-मास हेबाक चाही। मिथिलाक
विकासक बाधापर बहुत रास जातिवादी मुद्दा अछि जेकरा जँ साहित्यकार-विद्वान नै
बुझताह तँ के....?”
अध्यक्ष
राजदेव मण्डल- “सम्बन्धित विषयपर अर्थात् ‘आकाशवाणी दरभंगाक
जातिवादी प्रवृत्तिक विरोधमे आ दसटा घोर जातिवादी परिवारक मैथिलीकेँ मारैक
षड्यन्त्रमे आकाशवाणी दरभंगा द्वारा देल जा रहल सहयोगक विरोधमे’ सभ वक्ताक वक्तव्य सुनलौं। ऐपर सामुहिक विचार करैत वैधानिक तरिकासँ
डेग उठाएब आवश्यक अछि। विकासक क्रम तखने सोझराएत। नै तँ....!!!!!
कवि
सम्मेलनक एक झलक-
प्रेम
आदित्य कुमार- उपेदसात्मक कवितक पाठ केलनि।
वीपीन
कुमार कर्ण- भारत िनर्माण केना भऽ रहल अछि आ केना हेबाक चाही तकरा उजागर करैत
कविताक पाठ केलनि।
शंभू
सौरभ- लोक गीत सुना दर्शक दीर्घाक लोट-पोटक स्थिति बनौलनि। गुरु जीक चित्र
हुनक कवितामे देखल गेल।
रामदेव
प्र. झारूदार- प्रदूषणसँ मुक्ति लेल वृक्षा-रोपन कार्यक्रमपर बल दैत कविताक पाठ
केलनि।
दुगानंद
ठाकुर- वर्षा कतए चलि गेल...। तइ कारण फसिलक केहेन दुर्गति भऽ गेल...। अपना कविताक
माध्यमसँ रखलनि।
कवि
उमेश पासवान- कतए हरा गेल छी यौ भाय सभ; कतए हरा गेल छी।’ कहैत
भाव-विह्वल भऽ गेलाह।
कवि
नंद विलास राय- बेटी विआहमे कतेक समस्या उत्पन्न होइए तेकर नीक चित्र अपना कविताक
माध्यमे रखलनि।
पलल्वी
कुमारी- जगदीश प्रसाद मण्डल लिखित गीतांजलिक साभार करैत जुग-जुग आस लगेने मैइये
शीत रौद चटैत एलौं... गीत गौलनि।
अच्छेलाल
शास्त्री- घर-घरमे दुख अछि पसरल, ऐ दुखमे केना लुटनाहार लूटि रहल अछि तेकर चित्रण
केलनि।
बेचन
ठाकुर- अखुनका समैक विचित्रताक वर्णक अपना कविताक माध्यमे केलथि।
हेम
नारायण साहु- हिनक कवितामे केहेन-केहेन जुलुम भऽ रहल अछि तकर साफ-निच्छल चित्र
आएल।
राम
विलास साहु- रौदीक वर्णक करैत सामाजक आडम्बरी सबहक चित्रांकण केलनि।
कवि
कपिलेश्वर राउत, राजदेव मण्डल, जगदीश प्रसाद मण्डल, पवन कुमार साह, दुर्गानन्द मण्डल इत्यादि अनेको
कवि अपन-अपन नूतन कविताक पाठ केलनि।
दुर्गानन्द मण्डल
नेना लेल सुन्दर चित्रकथा
श्रीमती प्रीति ठाकुरक दू गोट चित्रकथा (पहिल
गोनू
झा आ आन मैथिली चित्रकथा, दोसर मैथिली चित्रकथा) मैथिली साहित्यमे पहिल बेर श्रुति
प्रकाशन नई दिल्लीसँ प्रकाशित
भेल। दुनू चित्रकथा एक संग श्री उमेश मण्डल
जीक माध्यमे भेटल। एक-आधटा पन्ना उनटैबिते मन गद्-गद
भऽ
गेल। लागल जे आब हम मैथिल दरिद्र नै सभ कथुसँ सम्पन्न भऽ रहल छी। साहित्यक तँ अनेको विधा होइ अछि जइमे कथा एक
विधा थिक तहूमे चित्रकथा तँ बाल साहित्य
लेल
प्रमुख। चित्रकथाक माध्यमसँ अपन भूलल-बिसरल संस्कृतिक झलक सेहो भेटैत अछि। निश्चित
रूपे मैथिली साहित्यमे एकर अभाव बहुत दिनसँ
खटैक रहल छल। जेकरा श्रीमती प्रीति ठाकुर अपन चित्र कथा मैथिल समाजक बीच राखि एकटा असीम प्रतिभाक परिचय
देलनि अछि।
बुझना जाइ छल जेना हम अपनेकेँ स्वयं विसरि
गेल छी। विसरि गेल रही ओइ समैकेँ जइ समैमे मैयाँ अपन पोता-पोती
लऽ
जा कऽ घूड़ लग बैसि गोनू झाक खिस्सा सुनबैत छलीह जे अति मनोरंजक आ गोनूक तीव्र बुधिक परिचायक छल। तहिना आनो
आनो कथा जेकरा प्रीति जी चित्रवत् कऽ हमरा
लोकनिक
साेझामे रखलीह। जइमे रेशमा-चूहरमल, नैका
बनिजारा, ज्योति पंजियार, महुआ
घटवारिन, राजा सलहेस, छेछण महराज आ
कालिदास छथि। जे कहियो आम छल, आब लुप्त प्राय: भेल जा रहल छल, ओकरा
एकबेर पुन: परिचित
करौलनि। जइमे लोक जनलक जे रेशमा के आ चूहड़मल के?
एतबे नै, प्रेमक पराकाष्ठाक परिचयक रूपमे जे लोकक ठोरपर हीर-रांझा
वा
लैला-मजनू रहैत छल, की
ओकरासँ कम निस्वार्थ प्रेम रेशमा आ चूहड़मलक छल ई देखेबाकमे साकांक्ष रहलीह। जतए
चुहड़मल दुधवंशी दुसाध जातिक तँ दोसर तरफ रेशमा भुमिहार ब्राह्मण जातिक बेटी।
जखन जुहड़मलकेँ दंगल जीत कऽ अबैत देखलक तँ दुनूक भेँट गंगाक तटपर, ओतहि प्रेमकथाक प्रारम्भ भेल। अर्थात् प्रेममे जाति-पातिसँ
कोनो
लेन-देन नै अपितु प्रेम तँ प्रेम थिक। प्रेम
कएल नै जाइ छै अपने भऽ जाइ छै। तहिना नैका
बनिजारा
सेहो प्रेमेक पराकाष्ठाक परिचायक छी। भगता ज्योति पंजियार अपन वीरता आ
पराक्रमक कारणे पूजित भेल। आइ जँ धर्मराजक पूजा तँ ज्योति पंजियार सेहो पूजित
छथि। धर्मराजक भक्त ज्योति पंजियार बारह बर्खक तपस्याक बाद कंचन काया लऽ कऽ
घूमि घर एलाह। माइक कोखि पवित्र भेल। जे एहेन पैघ भगता ओकरा कोखिसँ जनमल।
तहिना महुआ घटवारिन सेहो अपन इज्जत
बचाबए खातिर कौशिकी धारमे जान गमा अपन सतीत्वकेँ अकिंचन बना कऽ रखलीह। राज
सलहेसक कथा तँ नाचो रूपमे प्रसिद्ध अछि। जेकरा प्रीतिजी चित्रवत् कऽ इतिहास
बना देलनि। एकटा धरोहरक रूप दऽ देलथि। अनचिन्हार जकाँ छेछन महराज कथाक संग
कालिदासक चित्र कथा आ हुनक यादव कुलमे जन्म हएब, हुनक यर्थाथ परिचए भेल। बहुतोकेँ ई बूझल हेतनि जे कालिदास
तँ कर्ण-कायस्थ छलाह। ऐ लेल सेहो प्रीति जीकेँ धन्यवाद।
प्रीति जीक दोसर रचना मैथिली चित्रकथामे
कुल दस गोट कथा वर्णित अछि। जइमे राजा सलहेस,
बोधि कायस्थ, दीना-भदरी, नैका-बनिजारा, विद्यापतिक
आयु अवसान प्रमुख अछि। ऐ प्रकारे दुनू चित्रकथा पढ़लापर एहेन लागल जे ई कथा सभ
ऐतिहासिक महत पाओत। ऐ प्रकारक रचनाक सर्वथा अभाव सन छल। जेकरा प्रीतिजी हमरा
सबहक समक्ष राखि एकरा धरोहरि स्वरूप महत देलनि। ऐ पोथीकेँ नैना-भुटुकाक
पहिल
पसिन कहल जा सकैत अछि। खास कऽ जे बच्चा नंदन, वालहंश, वा अन्य पोथी पढ़बाक हिस्सक लगौने छल आब ओ लेखिका द्वारा रचित रचनासँ
लाभ उठाओत। पोथीक प्रत्येक चित्र तथ्यात्मक आ उद्देश्यपरक अछि। चित्रकथाक माध्यमसँ
प्रीतिजी मिथिलाक विलुप्त प्राय भेल विषय-वस्तुकेँ कथाक रूप दऽ
जीवंत कऽ देलनि। मैथिली प्रेमी ऐ तरहक रचनाकेँ नजरअंदाज नै कऽ सकैत छथि। आबैबला पीढ़ीक लेल ऐ प्रकारक
रचना नै मात्र मनोरंजक अपितु प्रेरणादायक सेहो
सिद्ध
हएत। पोथीक सभसँ पैघ बात ई अछि जे प्रत्येक चित्र एकटा विशेष अंदाज आ दशाकेँ
प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि जे लिखल गेल पाँतिक भाव स्पष्ट कऽ रहल अछि।
प्राय: सभ जातिक लोकक चित्रण
ऐ चित्रकथामे समाएल अछि। जे प्रीति जीक
समन्वयवादी
सोचक परिचायक अछि। प्रगतिशील विचार तँ सहजहि। मिथिला सभ दिनसँ उदारक परिचायक
रहल मुदा किछु लोक बेवसायिक एवं जातिवादी सोचक लाड़नि बीचमे चलौलनि आ चलाइयो
रहल छथि। हमरा हर्ख भऽ रहल अछि ऐ चित्रकथाक लेखिकापर जे एतेक सुन्दर, सुगम,
आ प्रगतिशील डेग बढ़ा मैथिली साहित्यक विकासमे एकटा बेछप स्थान
बनौलनि अछि।
हमर शुभकामना सतत रहत जे प्रीतिजी ऐ
प्रकारक रचना करैत रहती आ श्रुति प्रकाशन प्रकाशित करैत रहत तँ निश्चित रूपेँ
मिथिला, मैथिली आ मैथिलामे
रहनिहार सभ पूर्णत: समृद्ध भऽ
जेताह।
१.अमित मिश्र- विहनि कथा- परिभाषा २.सन्दीप कुमार साफी दूटा विहनि कथा ३.राम विलास साहु दूटा िवहनि कथा ४.वीरेन्द्र कुमार यादव-लघुकथा-
बाबाक गाछी
१
अमित मिश्र
विहनि कथा
परिभाषा
माएक मोन एकाएक बड खराप भऽ गेल ।गाममे एहि रोगक डाँक्टर नै छथि तँए एकटा
मित्रक संग शहर एलौँ ।रवि दिन ,क्लिनिक बंद ।डाक्टर
साहेबक डेरापर जाएबाक
योजना बनल ।मुदा . . . ।
पिछला दू घंटासँ गली-गली भटकि रहल छी ।जालमे फँसल माछ जकाँ मोहल्ला भरिमे
अहुरिया काटि रहल छी ।लोक सबसँ पूछि रहल छी ,मुदा . . .।
डाँक्टर साहेबक
डेरा नै भेटल । मोन खौंझा गेल ।
मित्र बजलनि ,"जानबरसँ पूछि रहल छी तँए जबाब नै भेटैत
अछि ।"
ई सुनि एकटा लड़का रूकि गेल आ कहल ,"भाइजी एकरे नाम तँ
शहर छै ।गामक लोक
अगल-बगलकेँ दस गामक लोककेँ चिन्हैत अछि मुदा शहरमे बायाँ हाथ, दायाँ हाथकेँ नै चिन्है छै। एक फ्लैटमे जन्मदिन होइ छै आ दोसरमे श्राद्ध,
ककरोसँ कोनो मतलब नै। शहर तँ शमसान थिक जतऽ तांत्रिक बनि लोक अपन स्वार्थपूर्तिक
लेल तपस्या कऽ रहल छथि । किओ ककरो खोज-खबरि नै लै छथि, नै तँ
तपस्या भंग भऽ जेतै। ईएह तँ थिक शहरक परिभाषा।"
इम्हर सह-सह करैत मनुखक बीच डेरा खोजबामे असमर्थ भेलहुँ आ उम्हर माएक
साँसक डोर टूटल ।
२.
सन्दीप कुमार साफी
दूटा विहनि कथा
१
साउस पुतोहु
-कनियाँ, घरमे छी यै?
-की भेलनि माए?
-आँइ यै छौँकावाली, एतेक निचेनसँ सितै किए
छी यै? दुपहरक काज-राज अहिना पड़ल छै।
कनी म्हिसोकेँ पानि देखा ने दियौ, पियासल महीस खुट्टा तोड़ि
रहल छै। एतेक कहूँ मनुख सुतए। कतेक नीन आबैए अहाँकेँ यै।
-तँ की करू, सुतबो नै करू। भरि दिन खटैत-खटैत हाथ-पएर कारी-झामर भऽ
गेल। ओम्हर चिलका तंग करए, इम्हर भानससँ तंग। हिनका होइ छै,
हम भरि दिन खटैते रही, हमरासँ नै हएत महीसकेँ
पानि पिआए। हमर माथ बड़ जोर दुखाइए, डाँर-पिट्ठी सेहो तोड़ने जाइए। एखन हमरासँ किछु नै हएत कएल।
-आँइ यै, एतेक कहूँ पुतोहु बानसब्बर हुबए।
सुनियौ यै ढुकरीक माए। अहाँ सभ कहबै जे साउसक दोख। हम की बैसल छी। भरि दिन गोरहा
पाथैत-पाथैत दुपहर भऽ गेल, एक टाएर
गोबर छल हन। एखन तक पूजो नै केलौं। कखैन खाएब कोनो ठीक नै। ऐ महरानीकेँ देखियौ जे
हमरेपर हाथ-पएर चमकाबैए। बड़का छोटका कऽ आइयक कनियाँ कोनो
माने-मतलबे नै राखैए। अपन जएह मोन भेल वएह केलक। के
खेनहारकेँ देखैए, जे ससुर भैंसुर खेलक की नै, अपन पेट भरि गेल, दोसर आब जेना रहए। अपन भूख तँ चुल्हा
फूक, दोसरक भूख तँ माथा दुख।भगवान हमरे बेटाक कपाड़मे ई
नसिनियाँ बथाए छल। जाइ छी नहाइ लए, एकरासँ मुँह लगाएब तँ
अपने मुँह खराब हएत। मुदा एकरा जाबे तक बेटासँ पिटबाएब नै ताबे तक हमहूँ सुख-चैनसँ नै रहब। हमहूँ ऐ कनसिनियाँकेँ देखा कऽ रहब, जँ
बेटा वशमे रहत तँ ऐ जनानीकेँ केहन होइ छै। साउससँ जबाब-सवाल
केनाइ सभ हम देखा देबै। महीस जेना नाथि देबै।
पुतोहु- देखियौ यै मकरा काकी। हम सभ सुनि रहल
छी। साउस कहूँ पुतोहुपर एतेक आगि-बाउल ढारै अइ यै। खिखरी माए,
हमर साउस पहिने पुतोहु नै छलै की, जे
पुतोहुकेँ एना सताबै छै। जँ ई बुढिया बेटासँ हमरा मारि खिया देलकै तँ घरमे यएह रहत
की हमहीं रहब। झोँटा-केस हम नै उखाड़ि लेलिऐ तँ फेर की।
साउस- यै, सुनियौ यै
टोल-पड़ोसक लोक सभ। ऐ भत खोखरीकेँ हम कोन आगि-बाउल ढारि देलिऐ जे ई हमर झोटा-केस उखारत। कोनो हमरा
कियो देखनाहर नै अए। आइ आबऽ दही बुढ़बाकेँ, नै किछु कहलकौ तँ
फेर की।
पुतोहु-हाँ-हाँ,
देखब ने अहाँ हमर की बिगाड़ि लेब। जँ बेसी ओम्हर-आम्हर करब तँ हम छोटका भाएकेँ फोन कऽ के नैहरे चलि जाएब। तखन अहाँ अहिना
असगरे चुल्हा फुकैत रहब। कहिया मरतै ई बुढ़िया, हमरा जानपर
अछि।
२
सगुन
ठकोकाका-हर्षित बाबू। एना माथपर हाथ धेलासँ
काज-राज चलैबला नै अछि। किएक तँ अपन मिथिलामे भऽ एलैए जे
परम्परा, तेकरा तँ निभाबैए पड़त। किएक तँ अखुनका जइ मनसूबे
चलि रहल अछि, तेकरा संग हमरा लोकनिकेँ चलऽ पड़त ने। अच्छए,
खएर बात अपन समाजमे गरीब होइए वा धनिक, मुदा
बेटी विवाह कोनो धरानीए भइए जाइत अछि। तइ लेल घबड़ेबाक कोनो बात नै। सभ बाबा उगना
ठीक कऽ देथिन। ठीक छै तँ जाइ छी हर्षित बाबू, ठीक छै।
हर्षित बाबू-आ ठको काका। हाँ कहू,
की कहै छी। देखियौ जे चढ़ैत शुद्धमे बेटीक कन्यादान कऽ के हम सभ
दिल्ली जल्दी जाए चहै छी। तइ दुआरे काका हम अहाँकेँ सलाह लिअ लए आएल छी। जल्दीसँ
कतौ भाँज लगेबै।
ठकोकाका-हर्षित बाबू। ओना हम सखबारमे एगो लड़का
देखने छलिऐ, हमरा बड पसन्द आएल। लड़का बंगलोरमे इन्जीनियरिंगक
तैयारी करैत अछि। बुझबामे आएल, लड़का नीक गोत्रसँ संलग्न अछि।
भाव-विचार बड मधुर आ स्वभाविक सेहो छै। मुदा हर्षित बाबू,
लड़का कऽ माय-बाप नै अछि, ओकरा मामा-मामी आ नाना-नानी
पालने अछि।
हर्षित बाबू-ठकोकाका, जँ अहाँ ओ भाँज लगबितौँ तखन तँ बुझु जे सभ ठीके-ठाक
रहितै।
ठकोकाका-ओ लड़का बुझु जे अहाँकेँ सेट भऽ गेल।
सगुन ठीक अछि अहाँक यौ हर्षित बाबू।
हर्षित बाबू-शुभ लगनमे देरी की। जे
नगद लेता अओर लड़का जे लेतहिन। हम सभ देबनि दै लेल। चैनकेँ गलामे देबनि, मोटर साइकिल देबनि। मुदा ओ लड़का हमरा बड पसन्द आएल। ठकोकका, अहाँ जल्दीसँ ई चक्कर चलाउ। हमर कन्यादान भऽ जाए। जल्दीसँ सगुन लऽ कऽ जाउ,
गोर लगै छी।
३
राम विलास साहु दूटा िवहनि कथा
इमानदारीक पाठ
ननुआँ पुछलक कनुआँसँ- “भैया आइ-काल्हि तँ गामोक
स्कूलमे बड़ सुविधा पढ़ाइ होइ छै तैयो विद्याथी सभ शहरक स्कलमे किअए पढ़ै छै?”
कनुआँ जबाब देलक- “गामक इस्कूलमे इमनदारीक
पाठ आ शहरक इस्कूलमे रोजगारक पाठ पढ़बै छै।”
“से केना?” -ननुआँ पुन: पुछलक।
कनुआँ उत्तर देलक- “गामक इस्कूलमे एहेन पाठ
पढ़बै छै जे कहुना साक्षर भऽ जाए, गाए-भौंस चराबए आ नमहर
भेलापर हर-फार जोतए, खेती करए। अन्न उपजा कऽ अपनो खाए आ
आनोकेँ खियाबए। ई छिऐ ने इमानदारीक पाठ मुदा शहरक इस्कूलमे विद्यार्थी सभकेँ
रोजगारक पाठ पढ़बै छै। ओ सभ पढ़ि-िलखि रोजगार लेल आन-आन शहर चलि जाइ छै। अपन
घर-परिवार आ समाज सेहो छुटि जाइ छै। समाजसँ बेमुख भऽ जाइ छै। आब तोहीं कह जे
इमानदारीक पाठ के पढ़तै?”
बौआ बाजल
पढ़ल-लिखल बेरोजगार छी मुदा दिन केना कटै छल तकर कोनो
सुधि-बुधि नै छल। ऊपरसँ परिवारक बोझ, आगू पढ़बाक इच्छा रहितो
किछु नै कऽ सकलौं। एक दिन मनमे फुराएल जे किछु नेना-भुटकाकेँ पढ़ाएल जाए। अहुना
तँ हम बुड़िआएले छी औरो बुड़िया जाएब।
एक दिन भोरमे बौआ-बुच्चीकेँ ओसारपर पढ़बै छलौं। दुनू
बेरा-बेरी प्रश्न पुछए आ हम उत्तर दइ छेलिऐ। अहिना स्थितिमे बौआ पुछलक-
“लोक एत्ते मेहनतसँ किअए पढ़ैए, जे पढ़ैए
सेहो आ जे नै पढ़ैए ओहो तँ एक ने एक दिन मरिऐ जाइए?”
बौआकेँ हम समझबैत कहलिऐ-
“जीवन-मरण तँ प्रकृतिक निअम छी। ओ निरंतर होइत रहैत अछि।”
बौआ फेर पुछलक-
“तखनो लोक किअए पढ़ैए?”
“मनुख पढ़ि-लिख ज्ञान अर्जित करैए आ ओइ ज्ञानसँ अपन जिनगीकेँ
सुलभ बना असली जिनगी जीबैए। लोक पढ़ि-लिखि डाक्टर-इंजिनियर, औफिसर, कवि लेखक आ उपदेशक इत्यादि बनैए। अच्छा
ई कहह जे तूँ की बनबऽ?”
बौआ बाजल- “हम पढ़ि-लिख कोनो काज
कऽ सकै छी मुदा कवि-लेखक नै बनब। सभ कमा कऽ सुख-मौजसँ जिनगी बितबै छथि मुदा
कवि-लेखककेँ कोनो कमाइ नै होइत छन्हि।”
४
वीरेन्द्र कुमार यादव
लघुकथा
बाबाक गाछी
आमसँ लदल गाछ। बिनु ओगरबाहक गाछी तुलसिया चाँपक कछेरमे।
तुलसिया गाममे अभिजात वर्गक लोक सबहक संगे एक घर अक्षोप सेहो छल। राजू मल्लिक
ओइ अछोप परिवारक पढ़ल-लिखल युवक छल।
सरकार आरक्षणक पक्षमे ओही गाम-पंचायतकेँ सुरक्षित कए लेलक।
गामक प्रमुख लोक सभ विचार कए कऽ राजूकेँ मुखिया आ मोहिनीकेँ प्रतिनिधि
चुनलक। मोहिनी ओही गामक पैघ शशिबाबूक पुत्र वधु छलीह। मोहिनीक पति भरि-दिन
गाँजा-भांग पीबैत, बिनु धिया-पुताक जवानियेमे स्वर्ग चलि
गेल।
नव िनर्वाचित प्रतिनिधि सबहक सम्मेलन भेल, जइमे पहिल बेर मोहिनी आ राजूक भेँट भेल। आ ई भेँट दुनू गोटेक छातीमे
मीलक पथ्थर जकाँ गड़ि गेल। दुनूक मोनमे एक-दोसरकेँ अपनेबाक आग सुनगए लगल।
पिरितक आतुरतामे मोहिनी चैत-बैसाखक रौदमे बाबा गाछी दिस
विदा भेल। बाबा गाछीक बगलमे चाँपमे राजू मल्लिक अपन सुगर टहलाबए गेल छल।
राजूपर मोहिनीक नजरि पड़िते मोहनीक प्रीति उमड़ि पड़ल।
मोहिनी जोरसँ बाजि उठल-
“राजू, एम्हर गाछक छाँहमे आउ, ओतए रौदमे किएक खून सुखबै छी?”
एतेक सुनिते राजू दौग कऽ मोहिनी लग आबि गेल। मोहिनी
राजूक हाथ पकड़ि कऽ लगमे आनए चालहक, मुदा राजू अपनाकेँ अछूत
बूझि अलग भऽ गेल। मोहिनी एकटा फकड़ा सुनबैत राजूकेँ अपना लगमे खींच लेलक-
“प्यास ने मानए धोबी घाट, नीन ने बुझए
टुटल खाट आ प्रीति ने मानए ओछी जात।”
राजूक देहपर मोहिनीक हाथक स्पर्शसँ राजूक हृदए शीतल भऽ
गेल आ मोनमे भेलै जे ई चमत्कार केना भऽ गेलै जे एतेक पैघ घरक पुत्र-वधुक लगमे हम
बैस गेलौं।
मोहिनी बाजल- “ऐ राजू अहाँ हमरा हृदैमे
छी। हम अहाँकेँ ईश्वरसँ आगू मानै छी। हमर जीवनक संगी बनबाक लेल स्वीकार करू।”
एतेक बात सुनिते राजू बाजल-
“ई केना होएत? अहाँ पैघ लोक छी आ हम अछूत।
ओना तँ अहाँक नजरि पड़िते हमहूँ ई सूधि बिसरि जाइ छी जे हम अक्षोप छी। मोहिनी
बाजल इंसान अछोप नै होइत अछि। कर्मसँ लोक ऊँच आ नीच होइत अछि। बाबा साहेब अम्बेदकर
जातिसँ अछोप छलाह मुदा ओ अपन शिक्षा आ कर्मसँ ऐ समाजकेँ देखौलक जे समाजक आगूक
पाँतिमे हुनक स्थान छन्हि।”
मोहनी आ राजूक प्रेम-प्रसंग बीचेमे कलुबा जे शशि बाबूक
मुँह लगुआ आ चालिसँ चुगला छल, किछु दूरसँ ई खेला देखैत पोखरि दिस
जाइत छल।
कलुआ अपन नजरि पड़िते राजू डरसँ सहमि गेल आ इशारासँ मोहिनीकेँ
देखौलक। मोहिनी राजूकेँ हिम्मत बन्हैत अलग भऽ गेलीह। आ फेर भेटबाक समए निश्चित
केलक।
ऐ प्रेम-प्रसंगक चर्चा सौंसे गाममे होमए लागल। हिम्मत बान्हि
कलुआ शशिबाबूसँ ई बात कहैत रहनि ओही समैमे गामक औरो पैघ लोक सभ आबि गेल आ शशिबाबूकेँ
उतार-चढ़ाउक बात कहए लागल। शशिबाबू बाजलाह-
“रजुआक बाप रामा डोमकें बोलाबा भेजू।”
बोलाबाक लेल गेल धीरू रामा डोमकेँ सभटा बात बतौलक। रामा डोम
दारू पीब कऽ मस्त छल। मालिकक बोलाबापर रामा दौगल आएल आ दुनू हाथ जोड़ि बाजल-
“मालिकक जे हुकुम हेतै हम मानब।”
कलुआ बाजल- “रे राम तूँ चारि दिनमे
ऐ गामसँ आन गाम चलि जो, फेर घुरि कऽ ऐ गाम नै अबिहेँ।”
रामा डोम मालिकक हुकुम मानैत बाजल-
“मालिक अहाँक हुकुमक पालन अवस्स करब।”
ई कहि रामा डोम ओइठामसँ विदा भऽ गेल। घर पहुँचि रामा, पुत्र राजूकेँ थप्पड़ मारैत कहलक-
“तोरा होश-हवाश नै, एतेक जुलुम किएक
केलेँ।”
राजू कनैत बाजल- “बाबूजी, हमर कोनो दोख नै, हम िनर्दोष छी। रामाक गुस्सा
शान्त भेल।”
भोरबाक चारि बजिते बगलक गामसँ अजान सुनिते मोहिनी घरसँ
भऽ बाबा गाछी आएल। ओही गाछीमे राजू छल। दुनू गोटे गाम छोड़ि चलि गेल।
भोर होइते ई खबरि सौंसे गाम आगि जकाँ पसरि गेल। शशिबाबू
गामक लोकसँ विचार केलक आ थानामे अपहरणक रपट लिखैलक जइसँ राजू आ रामाक नाम देलक।
ओम्हर राजू मोहिनीक संगे कोर्ट मैरेज केलक आ किछु दिन
अनतए रहबाक निश्चय केलक। तइ बीच गामक लोक सभ रामा डोमकेँ पुलिससँ पकड़बा देलक।
पुलिस मारि-पीट कऽ रामाकेँ जहल पठा देलक। ई खबरि सुनिते राजू मोहिनीक संग
कोर्टमे हाजिर भेल। रामाक जमानत करौलक आ गाम दिस विदा भेल। रातिमे रामा, राजू आ मोहिनी गाम आएल।
भोर होइते सौंसे गामक लोक शशिबाबूक दुआरिपर जमघट लगा
देलक। कियो बाजैत-
“ई डोमरा छातीपर मुँग दररि रहल अछि।” तँ
कियो बाजए-
“एहेन हुलुम कहियो नै भेल रहए।”
ऐ तरहेँ चुपचाप शशिबाबू सुनैत रहला। किछु कालक बाद बजलाह-
“हे यौ समाजक लोक सभ परिवर्त्तन दुनियाँक निअम छी। काल्हिक
ऊँच आइ गहींर, काल्हिक पैघ आइ बरोबरि। बदलैत कालक चक्रसँ
किछु सिखबाक चाही। आब अपना सभकेँ कोनो चारा नै अछि। मोहिनी िवधवा पुत्रवधु छी,
जन-प्रतिनिधि सेहो बना देलियनि। समाजकेँ सही आ नव दिशा देबाक
लेल प्रतिनिधि होइत अछि। अपना सभ रूढ़िवादी विचारक तियाग करू। विधवा विवाह
होबाक चाही। संगहि ऊँच-नीचक भेद-भाव छोड़ू। सभ लोक ईश्वरक संतान छी। कियो
ऊँच-वा-नीच नै होइत अछि। सभकेँ समान बुझबाक चाही। अंतरजातीय विआहकेँ सरकार
प्रश्रय दऽ रहल अछि। ऐ अवसरपर समाजक लोककेँ हम आइ साँझक िनमंत्रण दइ छी। साँझमे
सामाजिक रिति-रेबाजक अनुसार मोहिनी आ राजूक बिआह होएत।”
ई सभ गप्प कहैत शशिबाबू उठि गेलाह आ कलुआ केर संग
रामा डोमक घर दिस विदा भेल।
साँझमे राजू दुल्हा बनि बरिआतीक संग शशिबाबूक
दुआरिपर पहुँचल मोहिनी आ राजूक बिआह भेल। शशिबाबू अपन दोसर टोलक कामत परहक
घर-दुआरि आ जमीन मोहिनी आ राजूकेँ देबाक घोषणा केलनि।
ऐ तरहेँ आधुनिक समता-मूलक लोक जकाँ राजू आ मोहिनी
जीवन-बसर करैत ग्राम-पंचायतक प्रतिनिधित्व करए लगलाह।
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