३.७.१.बाल मुकुन्द पाठक- किछु गजल २.सन्दीप कुमार साफी- दूटा कविता
३.८.१.विनीत उत्पल- गजल २.अनिल मल्लिक- गजल ३.किशन कारीगर- (हास्य कविता)
जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
की
भेटल आ की हेरा गेल (आत्म गीत)- (आगाँ)
बिजली कौखन कऽ अबै छली
किछु हँसै छली, किछु कनै छली
सभ बाट अहिल्या सन शापित
नित बाट रामकेर तकै छली
निशिचरक उपद्रवसँ सभठाँ
छल यज्ञस्थल सभ घिना गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
हम थहाथही करइत रहलहुँ
अन्हड-बिहाड़ि भोगइत रहलहुँ
कूकुर, हाथी आ गहुमनसँ
डरइत रहलहुँ, भगइत रहलहुँ
बतहा हाथी केर तरबा तर
चुट्टी अनगिनती पिचा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
हम देखलहुँ सबहक सोझाँमे
बकरीमे खुट्टा बान्हल अछि
सौंसे आकाशक बदलामे
कागत एक टुकड़ी तानल अछि
निर्वासित रहबा केर दुख छल
मैथिलीक भाग्यमे लिखा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
देखलहुँ हम नवगछुलीकेँ
देखलहुँ हम पुरना गाछीकेँ
देखलहुँ हम गाछक धोधरिकेँ
देखलहुँ हम गाछक बाँझीकेँ
छल हहरि गेल सभ गाछ, मुदा
लत्ती-फत्ती सभ मोटा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
मनकें जे आलोकित केलक
से छल इजोत ‘मिथिला मिहिर’क
‘मिथिला दर्शन’ आ ‘माटि
पानि’
‘भारती’ आ विद्यापति पर्वक
‘जय जय भैरवि’ केर शंंखनाद
चेतना-भूमिमे समा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
यात्री, हरिमोहन जगा गेला
नित नऽव पराती सुना गेला
आंगन-आंगन आ घर-घरमे
मैथिलीक पूजा सिखा गेला
‘जय मैथिली’ कहइत-कहइत
छल आँखि हुनक डबडबा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
१.जगदीश प्रसाद मण्डलक लगभग दर्जन भरि गीत २.मिहिर झा
गजल ३.अमित मिश्र-भगवती गीत/ गजल ४.अच्छे लाल शास्त्री- दूटा
कविता
१
जगदीश प्रसाद मण्डलक
लगभग
दर्जन भरि गीत
भीख
मांगि......
भीख
मांगि दुनियाँ भिखारी
दानी
शिव कहबै छी यौ।
हे
यौ भोलानाथ
दानी
शिव कहबै छी यौ।
राित-दिन
समैट-समटै छी
भीखमंगा
कहबै छी यौ
धड़ि
भीख धारा बनै छी
धार
भीख बहबै छी यौ
धार
भीख......।
खिखर
सिर अकुर-सकुर
चोटी
सिर पकड़ै छी यौ
धार
बनि धड़ा-धड़ा
पहुँच
समुद्र धड़ै छी यौ।
पहुँच
समुद्र......।
हे
यौ भोला बाबा
पहुँच
समुद्र धड़ै छी यौ।
बकरी
खुट्टी......
बकरी
खुट्टी खुटेस-खुटेस
जिनगी
पाठ पढ़ै छै।
कुन्ज
भवन, लाल
बिहारी
लीला
रचि रास करै छै।
लीला
रचि......।
रंग-बिरंगक
पात खुआ
रस
अमरीत चुसै छै।
मन
मक्खन चोरि छोड़ि
गरदनि
बान्ह पड़ै छै।
मीत
यौ, गरदनि......।
बीर्त
रहितो बकरी जेना
साँढ़-धाकर
कहै छै।
मनहाएल-मनहाएल
रहितो
उरीति
रीति गबै छै।
मीत
यौ, उरीति......।
अमरा
अँचार......
अमरा
अँचार चटै छै
मीत
यौ, अमरा
अँचार चटै छै।
अमौर-मौर
बनि बना
अबिते
रस बदलै छै।
पानि
जीह पाबि पनिया
चहटि
चुहुटि धड़ै छै।
मीत
यौ......।
जेहने
फड़क रंग-रूप
तेहने
ते पातो धेने छै।
नमहर-नमहर
गीरह-गाँठ
बिनु
गिरहेक डारि पकड़ै छै।
मीत
यौ......।
चटिते
अचार अम अमड़ि
अमरजोत
देखै छै।
जीवन
जन छोड़ि-मोड़ि
मरण
वाणि पकड़ै छै।
मीत
यौ......।
घरे-घरे......
घरे-घरे
ज्योति दीप
गाम
अन्हार पड़ल छै।
घरे-घर
समाज कहि-कहि
अध-मरल
गाम पड़ल छै।
अध-मरल......।
इतिहास
मिथिला कहि
पुर
जनक धाम बनल छै।
वक्र
आठ गीत गाबि
ज्योतिरमान
जगै छै।
ज्योतिरमान......।
बनि
कनियाँ-पुतरा कठपुतरी
मूक
नाच नचैत रहै छै।
राति-दिन
एकबट्ट बरहबट बनि
नाचि
नाच नचैत रहै छै।
नाचि
नाच......।
बेटी
किअए......
बेटी
किअए बनेलौं, शिव यौ
बेटी
किअए बनेलौं।
भूख
पेट दुख बनि बना
हमरे
किअए सजेलौं
हमरे
किअए......।
सजि
साजि सिर सजा
सजायाक्ता
किअए बनेलौं
किछु
ने कामना मनमे ठनने
एहेन
किअए बनेलौं।
बेटी
किअए......।
मन-मन
माली बैसल छै
मालिन
किअए बनेलौं
मन-मलिन
मुँह कानि-कानि
बेटी
किअए बनेलौं।
हे
शिवदान हे बमभोला
बेटी
किअए बनेलौं।
मनक
भाव......
मनक
भाव समेटि-समेटि
मनोभाव
पनपए लगै छै।
सुभाव
अभाव कुभाव भव
रूप
रंग सजबए लगै छै।
रूप
रंग......।
महकि
महि परखि निखारि
भवन
भव सिरजए लगै छै।
उक-भाव
लपकि लपाक
बिन
भावुक सजबए लगै छै।
बनि
भावुक......।
भाव-भावुक
रमकी-चमकी
भाव
लोक सिरजए लगै छै।
आनन
कानन मानन मानि
भवानन
कहबए लगै छै।
भवानन......।
िसरजन
सिर......
सिरजन
सिर पकड़ि-पकड़ि
जड़ि
धरती धड़बै छै।
पति-पन
पाँति पतिया
उपवन-वन
सजबै छै।
भाय
यौ, उपवन......।
सजिते
वन उफनि उपनि
धरती
धार बहबए लगै छै।
सुध-असुध
कहि सुनि-सुनि
घटि-बढ़ि
घाट बनबए लगै छै।
भाय
यौ, घटि-बढ़ि......।
कोने-कानी
कुटि-कुटि
धोबि
घाट सेहो बनबै छै।
निरजन, निरमल बसि-बसु
हारि-जीत
दुनियाँ कहै छै।
भाय
यौ, हारि-जीत......।
दूधक
भूखल......
कनि-कनि
कानि कहै छै।
कमी-कमी
कान पकड़ि पेकड़ि
जड़ि
कनु अंग धड़ै छै।
भाय
यौ, जड़ि
कनु अंग धड़ै छै।
कनि-कनि......।
रंग-रंग
कनजरि बनि वन
रंग-रंग
मुँह धड़ै छै।
रंग-रंग
सुनि गुण-गुनि
फलाफल
मुँह छिटकै छै।
कनि-कनि......।
जड़ि
कोनो फल फलागम
कोनो
फुलहरि झड़ै छै।
जड़ि-जड़ि
कनकि-कनकि कान
कलशल
डारि कहबै छै।
अपेछित, कलशल डारि कहबै छै।
कनि-कनि......।
संगे-संग......
संगे-संग
न्यों घरक खुना गेल
मीत
यौ, एके
संग न्यों खुना गेल।
मीत
यौ, ई
गड़बड़ भेल उ गड़बड़ भेल?
नै
यौ, हँ यौ,
हँ यौ, नै यौ, हँ....।
संगे-संग......।
अदलि
नीक बदलि अधला
अदलि-बदलि
बदला गेल।
गारा
गर पकड़ि-पकड़ि, मीत
गारा
घेघ बनबैत गेल, मीत यौ.....।
संगे-संग......।
बाम
दहिन बनु बुझने-सुझने
छटि
बाम बूच छटिया गेल।
डाली
कसतारा सजि सजबए
ई
अधला भेल, मीत यौ ई अधला भेल।
संगे-संग......।
चोटी
छुबै......
चोटी
छुबै चट-चटिया
चटिया
चाट सिखै छै।
जीनगानिक
रंग रभस
जिन्दादिली
गाबै छै।
चोटी
छुबै......।
बून-बून
अकास बनि-बनि
धड़-धरती
छुबैत रहै छै।
चूह
चुहुट साटि सटि छती
दूध-फूल
बनबै लगै छै।
चोटी
छुबै......।
करम-धरम
खेल सिर सिरजि
नचनी
नाच नचैत रहै छै।
बाट-बटोही
पकड़ि-पकड़ि
मूंगबा
मुँह विलहि चलै छै
चोटी
छुबै......।
२
मिहिर झा
गजल
सारंगीक तार
पर जेना फिरैत उँगरी
जूता पर टकुआ संग छै चलैत उँगरी
देश बनल कूडा डिब्बा फैलल सौंसे गंध
कौखन एम्पायर जेकाँ छै उठैत उँगरी
अंग अंग कानि उपर आनि सेहो भरल
लंकाक छोट रहितो छैक तनैत उँगरी
छौड लपेट माछ के निकबैत आ तरैत
पिठाड सों सामा चकेबा के ढोरैत उँगरी
छैक गाम अलग कुल परिवारो अलग
हृदय मिलबै छै सिंदूर करैत उँगरी
३
अमित मिश्र
१
भगवती गीत
राति सुनहरी,उगल इजोरीया ,चक-मक चमकत
चान यौ
भऽ कऽ शेर सबार एथिन मैया हमरो गाम यौ
कार्तिक एनिन गणपति एथिन ,संगमे सब बहिनियाँ
एथिन
ललका चुनरी शोभैत हेतै ,रूपसँ मनमोहिनी हेथिन-2
सब मिल करबै हमहू-2बारम्बार प्रणाम यौ
भऽ कऽ शेर सबार . . . . . . .
निमियाँकेँ छाँवमे अम्बे ,बनौथिन अपन डेरा यौ
गीतो हेतै झालियो बाजतै ,और बाजतै नगाड़ा यौ-2
झूमऽ लागथिन मैया भवानी-2 संग-संग सगरो गाम यौ
भऽ कऽ शेर सबार . . . . . .
कष्ट सबहक दूर करथिन ,करथिन नैया पार यौ
अरहुल फूलक माला बनाबू ,चलू अम्बे द्वार यौ-2
अन्तमे जयकारा लगाबू-2 लऽ दुर्गाकेँ नाम यौ
भऽ कऽ शेर सबार एथिन मैया हमरो गाम यौ-6
२
गजल
उठि कऽ बैसल मरदबा एखनी कुच्छो होतै की
छै समय ई भोरका एखनी कुच्छो होतै की
साँप
दू मूँहाँ भरल छै सगर घरमे की करबै
बीनपर कठफोड़बा एखनी कुच्छो होतै की
नोट हमरे लोककेँ संग हमरे थानेदारो
देश हमरे चोरबा एखनी कुच्छो होतै की
बाण चललै कोन देखू करेजा छलनी भेलै
घावमे छल नेहिया एखनी कुच्छो होतै की
चान धरि पहुचल मनुख आब तारापर चलि जेतै
काल्हि घर ओतै मुदा एखनी कुच्छो होतै की
पाँति किनको छै गजल हमर भेलै ई कर्मक फल
बादमे लिखबै कता एखनी कुच्छो होतै की
2122-2122-1222-222
४
अच्छे लाल शास्त्री
पिताक
नाओं स्व. बिलट यादव
गाम-
सोनवर्षा
कविता-
किसानक
भेल पिसान
देखू
सभ जन महग भेल समान
जखन
सभसँ सस्ता बिकैत धान।
कियो
अछि चलैत चिबबैत पान
जखन
अखन किसान भेल पिसान।
खेल
करैत अछि, बीचक दलाल
तेजगर
चक्कूसँ करैत हलाल।
अछि
भड़ैत दूनू जेबीमे माल
हाल
देखि रहल छी सालक साल।
ठोकि
रहल अछि सभ समस्या ताल
सभ
दिन किसानकेँ बजरल ताल।
नै
कहैत कियो किनको हाल
कहियो
दाही अछि कहियो अकाल।
नै
एकता जाधरि किसानक भेल
चलैत
रहत ताधरि एहने खेल।
कृषि
लागतपर हुअए उचित दाम
खुशी
हुअए सभ लोक गामक गाम।
जखन
किसानपर अछि देशक ताज
सभसँ
कमजोर किएक हुनक अबाज।
सरकारकेँ
चाही विशेष धियान
सभ
बात जानि रहला भगवान।
२
आबो चेत चलू
जहन
हम मनुख बनि एलौं ऋृषि-मुनिक देशमे
तियाग
तपस्या दान परोपकार उद्देश्यमे।
अखनो
नै बाजू सूनू देखू कोनो झूठ
असत्य
अत्याचार तोड़ि रहल सत्यक घूठ।
देखलौं
न्यालय-कचहरीमे झूठक बेवहार
राखि
मिलान केहेन करैत एहेन विचार।
स्वदेशीसँ
स्वदेशी टाका कमा रहल अछि
देशक
जन-धन प्रगतिक क्षण सभ गमा रहल अछि।
कानून
देशक नै मालिक जानि रहल अछि
गलती
करैत चलती धरैत फानि रहल अछि।
अंग्रेज
भागि गेल मुदा रहि गेल बनल डगर
पूर्खाक
कृति धूमिल भेल सगर गाम-नगर।
स्वदेश
प्रेम नै जिनका ओ बनलाह दलाल
नमक
हराम देशक देशकेँ करैत हलाल।
कानून
जानि मानि प्रगति करैत चलू देसमे
जहन
हम मनुख बनि ेएलौं ऋृषि-मुनिक देशमे।
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