भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, November 01, 2012

'विदेह' ११६ म अंक १५ अक्टूबर २०१२ (वर्ष ५ मास ५८ अंक ११६) PART V



१.कैलास दास-कम्प्यूटर २.प्रमोद रंगीले- मच्छर राज ३.शंभु सौरभ- गीत
कैलास दास

कम्प्यूटर
हमर काम अनेक अछि
करैत नहि छी करबैै छी
सभ क्षेत्र मे हम अबै छी ।
हम कम्प्यूटर छी

हम नहि झुठ बजैत छी
बजबै तऽ पुछैत छी ।
करबै तऽ करैत छी ।
सभ क्षेत्र मे हम अबै छी ।

निरक्षर हम दोस्त नहि
नहि जनने हमरा लोक बुझैत नहि अछि
कामक हमर अन्त्य नहि अछि
हम कम्प्यूटर छी

हम हँसबए आ खेलबय छी
गेम फिल्म सभ देखबै छी ।
सभहक प्रोबल्म सोल्भ करैत छी
हम कम्प्यूटर छी

तेल
, मोविल हमर आहार नहि
भाई वहिन आ साथीसँ सरोकार नहि
परिश्रम हमर बाट अछि
हमर नाम कम्प्युटर अछि

बिजुली पर हम चलैत छी
ओकरा बिना हम मरल छी
हम सभ क्षेत्रमे अबै छी
हम कम्प्यूटर छी

हमर जे स्नेह करैत अछि
ओकरा हम सभचिज दैत छी
जे हमरा सँ दूरी रखैत अछि
ओकरा हमहँु दूरे रखैत छी
प्रमोद रंगीले
मच्छर राज
जनकपुर शहर पर करू सभ गाेटे नाज
गुलाम बनू मच्छरक यएह अछि काज
खुन पिपासु केँ देखू केहन छै अन्दाज
सलाम ठोकू सभ गाेटे आबि गेल मच्छर राज

पर्यटन दिवस नै , मनाउ मच्छर दिवस
मच्छरसँ कटबैबला हाेउ विवश
सुनु मच्छर संगीत बन्द करू अावाज
सलाम ठोकू सभ गाेटे आबि गेल मच्छर राज

महलमे रहू या बनाउ झाेपडी
सहनशीलता नै अछि तँ फोड़ू खाेपड़ी
दिन भरिक टेन्सनकेँ अाउर बढाउ, जखन पड़ैए साँझ
सलाम ठाेकू सभ गाेटे आबि गेल मच्छर राज

ऐ शहरमे रहै कऽ अछि तँ ई सत्य जानि लिअ
ऐ दुखक निवारणा केउ नै करत, बात हमर मानि लिअ
हारि मानि कऽ, देवता जानि कऽ पहिराउ ताज
सलाम ठोकू सभ गाेटे अाबि गेल मच्छर राज

शंभु सौरभ, पता-गाम- भरवाड़ा, जि‍ला- दरभंगा।
गीत
चलैत चल चलैत चल
पएरसँ पलैत चल
तृण, तुषार तृप्‍त कण
मृत्‍यु केर अदि‍प्‍त पल।
जलैत चल......।

मुद्रा अघाएल रहू
प्रकृति‍ तत्व धैल रहू
भावनाक लोलकीपर
चेतना डम्हाएल रहू
चलैत चल......।

सि‍नेह भरल दृष्‍टि‍ हो
स्‍वर्णमयी सृष्‍टि‍ हो
कर्ममयी कामना
फुलाएल सदा शि‍‍ष्‍ट हो
स्‍वाँसमे हो स्‍वर-समर
एक गीत, एक स्‍वर
घेंटसँ मि‍ला कऽ घेंट
वायुसँ मि‍लैत चल।
चलैत चल......।

बाट अनचि‍न्‍हार छौ
सन्‍मुख अन्‍हार छौ
बक्र धार चक्र बनि‍
कालचक्र ठाढ़ छौ

छोट हृदए खोह छौ
वयसो अजोह छौ
वि‍षम बाट-घट छैक
दौड़ैक बेछोह छौ

चि‍न्‍तइ जे जीवनकेँ
जीबैले योवनकेँ
कर्मक आलोकमे
मर्मकेँ छीलैत चल
चलैत चल......।

मानवता कानि‍-कानि‍
ठोहि‍ पारि‍ रहल मांगि‍
जि‍नगीक मोल रे
खोल हृदए द्वारि‍ फानि‍

कान्‍ह परल भार छल
मृत्‍युक हँकार छौ
हि‍म्‍मतसँ काज ले
ले-ऊँच पहाड़ छौ

क्षि‍ति‍ज दृष्‍टि‍ हीन छैक
कल्‍पना नवीन छैक
तोँ प्रवीण यात्री बनि‍
सि‍न्‍धुमे पि‍लैत चल
चलैत चल......।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.राजदेव मण्‍डल जीक दू गोट कवि‍ता २.डॉ॰ शशिधर कुमरविदेह” 
राजदेव मण्‍डल जीक
दू गोट कवि‍ता-

कुहेस

कतौ नै कि‍छु बचल अछि‍ शेष
चारूभर पसरल कुहेस
कठुआ गेल देह भीजल अछि‍ केश
अधभि‍ज्‍जू सन भेल सभटा भेष
घुरि‍या रहल छी ठामहि‍-ठाम
कि‍यो नै देत अछि‍ समैपर काम
टुटल जा रहल सभ आस
ऊपरसँ लगि‍ गेल दि‍शाँस
कुहेस और भऽ गेल सघन
इजोत लगैत अछि‍ टीका सन।

खेत-खरि‍हान, घर, जंगल-झार
सभटाकेँ गि‍ंर गेल अन्‍हार
उनटि‍ गेल अछि‍ जेना माथ
छूटि‍ गेल सभ संग-साथ।

नै भेटैत अछि‍ बाट
नै अपन घाट
लगे-लग औनाइत
मन भेल उचाट
सभ गोटे धऽ लेने छी खाट
देखा दि‍अ जाएब कोन बाट।

कहि‍या फटत ई कुहेस
भेटत अपन घर परि‍वेश
हे सुरूज कि‍रि‍णकेँ जगाउ
आबो तँ ऐ कुहेसकेँ भगाउ।





जानवरक बोली

सुनहट बाट अन्‍हार भरल
अछि‍ कि‍छो गोंगि‍या रहल
देह थरथराइत मन डरल
भूत जकाँ के अछि‍ अड़ल
सुनमसान अछि‍ चारूभर
ने लोग आ ने अछि‍ घर
जानवर ठाढ़ अछि‍ आरि‍ ऊपर
बाजि‍ रहल अछि‍ भऽ चरफर-
हे यौ, जल्‍दी लग आउ
बोली सूनि‍ नै घबराउ
कहब आब रहस्‍यक गप
बोलीक लेल बड्ड केलौं तप
अहाँ देलौं अपन बोली
हमर पूरा भेल आसा
नै घबराउ हम देब आब
अपन भेस-भाषा।

जानवरक मुँहसँ मनुक्‍खक बोली सूनि‍ रहल छी
अचरजमे डुमल अपने माथ घूनि‍ रहल छी।
नै सुनब तँए कान मुनि‍ रहल छी
वि‍कासक क्रमकेँ गुनि‍ रहल छी।
डॉ॰ शशिधर कुमर विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,


मृगतृष्णा  मे  पानि  तकै  छी


मृगतृष्णा  मे  पानि  तकै  छी,
कोना  भेटत  से  अँहीं  कहू ?
छाँह पकड़बा केर  इच्छा  अछि,
कोना भेटत  से  अँहीं  कहू ??

अग्निराशि   पर  खाली  पएरेँ,
निःसंशय  भऽ   कोना  चलू ?
काँट  भरल  सभ  बाट-घाट मे,
बिनु आहत भऽ  कोना चलू ??

रोपल बाँस आ आम आश अछि,
फड़त  कोना  से  अँहीं  कहू ?
सौंसे  विष  केर  धार   बहइए,
अमिय कहाँ  से  अँहीं  कहू ??

राति अन्हरिया,  पुनमि बाद पख,
चान भेटत  कोना - कतए कहू ?
धारक गति अतिप्रबल  पूब दिशि,
जायब  पच्छिम  कोना  कहू ??





आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी



जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  दीव  लगै  छी ।।


जकर  राग  युग युग सञो राजित,
जकर  बोल  दिक् - दिक् मे भाषित,
सरस   सिंगारहि   रस   अनुसिञ्चित,  गीत   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


जकर  परस  मरु,  उपवन  साजित,
विद्युत - हास - चपल  तव  याचित,
जकर   हृदय    प्रीतक   मोती,   से   सीप   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


माँझ   जलधि  लघु  द्वीप   समाने,
हीरक - द्युति   जनु  कोयला  खाने,
जार मास निशिभाग अन्हरियाराति प्रकाशित दीप लगै छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।


जकर  प्रतिक्षा  युग युग  कयलहुँ,
जनम-मरण कत’  छाड़ि कऽ अयलहुँ,
कालक    गति    निर्बाधेँ,    पर   मनमीत   लगै   छी ।
जानि   किए   नञि,   आइ  अहाँ  बड़  नीक  लगै  छी ।।





आइ याद हुनिक बहुते आयल




आइ   याद   हुनिक,  बहुते  आयल ।
कऽ  गेल   मोन,  अतिशय  घायल ।।



नञि जानि    कतऽ सँ     कोन  वेग,
उड़ितहि उड़ितहि  एहि ठाँ   आयल ।
संगहि   अपना,    हुनिकर    मोनक,
सन्दर्भ   केहेन,   की की,  आनल ।

अछि   अनुनादित    मस्तिष्क मोन,
किछु चंचल सनि, किछु किछु पागल ।।



स्मृति   पटल   पर   द्योतित   सनि,
छवि  हुनिकहि  सद्यः  अछि  आयल ।
पवनक   परस   अनुराग   भरल,
जनु प्रीति हुनिक भरि - भरि लाओल ।

श्रवणहि   हास  श्रुतिगोचर  थिक,
अछि  जकर  मोन अतिशय कायल ।।



छी  बैसल  एहि   ठाँ   क्लासहि  मे,
पर  मोन तँ  कोसहु  चलि  आयल ।
लेक्चर   श्रवणहि    श्रुतिगोचर   छी,
मन   सन्निकर्ष    हुनिक   पायल ।

लगइत अछि  जेना   आइ  एतए,
संगहि  तँ  सम्मुख  छथि  आयल ।।



क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

पानि
पाइन, पइन, पैन
अछि
अइछ
अग्निराशि
अग्निराशि
राति
राइत
अन्हरिया
अन्हरिया, अन्हैरया
पुनमि
पुनैम
गति
गइत
अतिप्रबल
अतिप्रबल, अइतप्रबल
दिशि
दिशि, दिश
१०
जानि
जाइन
११
कत
कते
१२
छाड़ि
छोइड़
१३
सनि
सइन, सन
१४
अतिशय
अतिशय, अइतशय






ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.मुन्नी कामत- किछु कविता २.रूबी झा- दूटा गजल ३.शान्तिलक्ष्मी चौधरी-दुर्गापूजा ४.नंद वि‍लास राय

मुन्नी कामत
भेल पुरा आस
उमरल ऐल
देखी कारी मेघ
चलि गेल धान
पुबरिया खेत।
बंजर भूमि आब
पनिया जेतै
मिटतै आब अपनो दुख
सगरे अन्न उझला जेतै।
बुच्ची लऽ लब आंगी अनबै
तोरा लऽ लव साड़ी
अबकी जतरामे
निर्मली बजारक खेबै पकौरी।
आइ पुबाइर बाध रोपबै
काल्हि पछबाड़ि
परसू उत्तरबाड़ि आ दक्षिणबाड़ि
चारू दिस लहलहेतै खुशहाली
सुख-सम्पन्न हम सब भऽ जएब।
भाइयक स्नेह
जब छोट छेलौं
तँ कतेक स्नेह
करै छल हमरा भइया
हमर एगो लोर पर
कतेक रूप बदलै छल भइया
हाथी घोड़ा भालू बनि कऽ
मनबै छल हमरा भइया।
पहिलुक कर हमरा खिया कऽ
फेर सुगा मैना कऽ हिस्सा
सेहो खियाबै छल भइया।
पर आब एगो अलगे रूप बदललखिन भइया
भिन-भिनौजक खेल
खेला रहल छथिन भइया।
कतनो कनै छी
तइयो नै देखै लऽ अबैए भइया।
आब हम नै खेलबै ई खेल
रहि नै सकबै भइया करि कऽ बैर
भगवान हमरा फेरसँ
बच्चा बना दइए
हमरा भइया सँ ओ स्नेह मंगा दइए।
 
अलहर मेघ
बजबैए मेघ
तबला ढोल
बरसाबैए पानि
टिपिर-टिपिर
झनर-झनर
राग अनमोल।
सन-सन-सन
हवा सनसनाय
तन-मन केँ ओ
थिरकाबैत उड़ि जाए।
झमकि कऽ आबैए
कारी बादल
चुमै लऽ
धरतीक चरनकेँ
तृप्त भऽ
ई अल्हर बादल
हँसैत खिलखिलाइत
यएह आसमानमे पुनः
विलुप्त भऽ जाए।
रूबी झा

गजल 


आंखि सँ दहs बहs नोर बहै छल ओ कहलेन धुर पानि रहल
 
आंखि हमर दुहु रंजित भेल केहन कठोर ओ नै जानि रहल
 

 
श्वांस केर प्रवाहधारा थोड़ भs गेल प्राण नहि बांचल शेष जनु
हुनका लेल छल सभ खेल तमाशा हम तरेगन गानि रहल
 

गुदरी सिबि सिबि दिवस हम काटी अजीर्ण नुआ देह में छारल
 
साग पात तोरिकs जे आनलौ नोरे सँ हम ओकरा छानि रहल
 

बारह बरख पर ओ एला एक घड़ी छाहों नहि भेटल हमरा
 
हरिबासर आ तीज सबटा केलौ कठिन ब्रत हम ठानि रहल
 

विदीर्ण भs गेल मोन कल्पित भेल काया नोर सँ पोखरि बनि गेल
 
निर्दयी छलीतs ओ ओरे सँ छथि कथी लेल रूबी अहाँ कानि रहल
 

सरल वार्णिक बहर वर्ण -२५
 
 

आश टूटल भाग फूटल
 

आंखि इनहोरे सँ शीतल
 

लेख भाग्यक जनु इहे छल
 

ठोढ़ कम्पित मोन तीतल
 

मलिन भेलै चान उज्जर
 

राहु गरसिकs सौंस बैसल
 

छन पलक के खिलल फूलो
 

मौलि गेलै पुष्प कोमल
 

पेट रूबी नूर बान्हल
 

पहर चारू कानि काटल
 

२१२२ -२१२२ सभ पांति में
 



आइ हम बड़ उदास छी
नै बुझी किए हतास छी

 
छांह रौद आएत जाएत 
लागै किए चैती बतास छी

आंखिसँ निन्न गेल कतए
मुहं लगे सुखेल घास छी
 

घर में नै नै बाहर चैन
 
नै निकले उहे भरास छी
 

लागि अछि जगसँ विछुब्ध
रूबी नेने अहाँ सन्यास छी
 

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१०
 

शान्तिलक्ष्मी चौधरी
दुर्गापूजा

सिमसिम जाड़क हुलकी
ओ भोरे केँ सितायब
अधिराइते सँ भनभन
भिनसरबे केँ जागब

हिंग रसूनक बदही
सतसुइया केँ बान्हब
नजरि-गुजरिकेँ जन्तर
डायन-जोगिनके दागब

फुल चोरीके हो-हो
बुढ़ियाक फौती सरापब
भगजोगनीक रोसनी
आँखिफाड़ि अधकोढ़ी निहारब

लालटेनक भकचोन्ह
मिलिजुलि पार्थिब बनायब
नेनतुर के भुसभुस
ओ दादीक फटकारब

चिकैनि-गोबरौरके धवधव
घुरघुराक चालब
डेरहीक पिछड़ौन
नेनाक जहिंतहिं नहायब

दोहारा तीराक लाली
सिंगरहारक गमकब
थलकम्मल फुलडाली
कनेल-तरक हबगब

बेलपत्र काँटक सिबसिब
दुइभक मुरी खोटब
बेजन्त्री पत्ता केर गिनती
मुरिपत्ता केराक काटब

मायक फिसफिस गौरीमंत्र
बहिनदायक आरती गायब
बाबा केर सप्तसती श्लोक
हनुमानचलिसा एककंठेँ खेहारब

पानक बिचकी खिल्ली
कतरा सुपारीकेँ खोंसब
पिचकल मखाना पर किर्री
ओंकरल मुँगकेँ प्रसादब

कुमारिक नववस्त्रम
मुट्ठीमुट्ठी पान चिबायब
पायल के झुनमुन
नाक धरि सिनुर टघारब

ब्राह्मणक पीड़ही
क्षीर-भोजन खायब
दहुँदिश खीरक पत्ता
निलका-माँछी नाचब

बान्हल बरदक हुरब
कुकुर केँ दबारब
बिज्जीकेँ कनकटुआ
छागरकेँ नाँगरि मोचारब

खेसारिक छिम्मरि
घासबोझ पर घोलटब
लदहाक झुल्ला
पालो पर झुलब

नीलकंठकेँ ढ़ेंपा
 
बिढ़निकेँ मारब
रसचोभीक फुदफुद
टिकुलीकेँ शिकारब

लिय आबि गेलीहेँ मैया
धीयापुताकेँ खेलाअब
आउ आबैजाउ गाम
दुर्गापुजा मनायब

नंद वि‍लास राय
कवि‍ता

वोट

पंचायत चुनावक पकड़ने छल
प्रचार-प्रसारक बड्ड जोर
सभ चौक-चौराहा पर छल
रेडीक अावाजक शोर।

बैसल रही हम अपन दलानपर
चुनावक सरगर्मी रहए उफानपर
ताबति‍मे हमर हरबाहा
जकर नाम अछि‍ मंगला
देखबा-सुनवामे तँ ओ
बुरि‍बक लगैत अछि‍
मुदा अछि‍ बड्ड चंगला।

आएल ओ कहलक-
गि‍रहत कनी खैनी दि‍अ।

हम खैनीक डि‍ब्‍बी दैत कहलि‍ऐ-
चुनाबह अपनो खा
आ हमराे खुआबह।

ओ खैनी चुनौलक
हमरो दि‍स बढ़ौलक
हम एक जूम खैनी
ढोर तरमे लेलौं।
आ पुछलौं-
कहऽ मंगल
की छअ समाचार
वोट केकरा-केकरा दइले
करैत छहक वि‍चार?”
ओ बाजल-
की कहू गि‍रहत
कि‍नडीडेट सभ
ने दि‍न बुझैए
ने राति‍ बुझैए
आ जखनि‍-तखनि‍
भोट मंगैले
चलि‍ अबैए।

हम कहलि‍ऐ-
आन पदक कण्‍डीडेट सभमे तँ
करए पड़तह वि‍चार
मुदा सरपंचमे
मांगनि‍ दि‍आदे छह ठाढ़
आदमि‍यो नीक अछि‍
अनकासँ ठीक अछि‍।

ओ बाजल-
की कहलि‍ऐ गि‍रहत
दि‍आद?
परसाल हमर बकरी
उखरि‍ कऽ ओकर चारि‍टा गाछ
खाए लेने रहए कोबी
तइले बि‍खनि‍-बि‍खनि‍ कऽ
गारि‍ देने रहए हमरा
ओकर मौगी
ओकर गारि‍क
लागल अछि‍
हमरा बड़ चोट
हम ओकरा
कि‍न्नौं नै देब
अपन भोट।

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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