गजेन्द्र ठाकुर
नाटक- गंगा ब्रिज
कल्लोल एक
दृश्य १
स्टेजक
एक कात किछु मजदूर सभ खट-खुट कऽ गिट्टी पजेबा तोड़ि रहल छथि लगैए जे गंगापुलक
मरोम्मति भऽ रहल अछि, कारण किछु मजदूर जय माँ गंगे कहि मंचक नीचाँ प्रणाम सेहो
कऽ रहल छथि। स्टेजक दोसर कात दूटा लोक नीचाँ राखल नगाड़ा-ढोलपर चोट दऽ रहल अछि।
तखने एकटा ढोलहो देनहारक प्रवेश।
ढोलहो
देनहार :
गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो
आवेदन दऽ सकै छथि। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।… गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक
मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो
आवेदन दऽ सकै छथि।
एकटा
लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि मजदूर सभकेँ अकानैत ढोलहो देनहार लग अबैए , मुदा दोसर लोक आस्ते आस्ते डंका बजबिते रहैत अछि): देखै छिऐ जे काज तँ चलिये
रहल छै, तखन
फेर?
ढोलहो
देनहार:
एतबे मजदूरसँ काज नै चलतै। पूरा पुल हिल रहल छै। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।… गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक
मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो
आवेदन दऽ सकै छथि।
दोसर
लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि कऽ ढोलहो देनहार लग अबैए): एतबे दिनमे कोना ई हाल भऽ
गेलै। सुनै छिऐ जतेक पाया ऐ पुलमे छै ततेक कए करोड़ टाका एकरा बनबैमे खर्च भेल रहै।
ढोलहो
देनहार:काज
ढंगसँ नै भेल रहै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही।
स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ,
सुनै जाउ।
एकटा
लोक: देखै छिऐ, जहिया बनिये रहल छलै,
बनि कऽ तैयारो नै भेल रहै, तहियेसँ ऐ
पुलक मरोम्मति शुरू छै।
दोसर
लोक: चिप्पीपर चिप्पी पड़ि रहल छै। उद्घाटनसँ
पहिनहिये सँ चिप्पी पड़नाइ शुरू भऽ गेल रहै।
ढोलहो
देनहार: सरकारी
पुल छिऐ, चिप्पी
नै पड़तै तँ इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा कोना एतै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
एकटा
लोक: हौ ढोलहोबला, से तँ बुझलिऐ,
मुदा से ने कहऽ जे दुनियाँ मे आनो ठाम पुल बनै छै, से ओतुक्का इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा पड़ै छै आकि नै हौ।
ढोलहो
देनहार: किजा
ने गेलिऐ, मुदा सुनै छिऐ अंग्रेजबला पुल मजगूत होइ छलै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
दोसर
लोक: हौ, अनेरक पाइ आबै छलै
लूटिक तँ जे एकाध टा पुल अंग्रेज बनेलकै से मजगूते ने हेतै हौ।
एकटा
लोक:ई इन्जीनियर आ ठिकेदार सभ
लूटिमे अंग्रेजसँ कम नै छै,
मुदा पुल मजगूत किए नै बनबै छै हौ। ओइ बनबैमे अंग्रेज सन किए नै छै
हौ।
दोसर
लोक: मजगूत
बना देतै तँ फेर मरोम्मतिक ठेका कोना भेटतै हौ। की हौ ढोलहोबला..
ढोलहो
देनहार: किजा
ने गेलिऐ। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष,
बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ, सुनै जाउ।
(ढोलहो
बला चलि जाइए। पाछाँसँ दू-दूटा तिरंगा झण्डा लेने बच्चा सभ अबैए। संगमे दूटा शिक्षक
छै। एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) आगाँ-आगाँ आ एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) पाछाँ-पाछाँ
चलि रहल छथि। सभ मजदूरकेँ एक-एकटा झण्डा दऽ देल जाइ छै। “ओइ दुनू टा लोककेँ
सेहो एक-एकटा झण्डा देल जाए”- ई गप शिक्षक इशारामे कहै छथि,
मुदा झण्डा घटि गेलै, से ओ दुनू खाली हाथ रहि
जाइ छथि आ सभक मुँह ताकऽ लगै छथि।
मजदूरक
सोझाँ ओ दुनू लोक ठाढ़ भऽ जाइए आ फेर डंके लग आबि ठाढ़ भऽ जाइए आ आश्चर्यसँ देखऽ लगैए।
त्रिवार्णिक
झण्डा लऽ कऽ बाकी सभ गोटे मंचपर छितरा जाइ छथि आ स्टेजपर ठाढ़ भऽ जाइ छथि। उल्लासक
वातावरण सगरे पसरल अछि, दुनू लोककेँ छोड़ि सभक मुँहपर (मजदूर सभक सेहो)
हँसी-प्रसन्नता आबि जाइ छै।
जखन
सभ ठाढ़ भऽ जाइ छथि तखन दुनू शिक्षक (वा शिक्षिका) बच्चा सभक आगाँ आ दर्शक सभक
सोझाँ ठाढ़ भऽ जाइ छथि।
“१५ अगस्त” ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस” ई सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) १: बौआ-बुच्ची। आइ ई त्रिवार्णिक झण्डा हमरा सभक हाथमे फहरा रहल अछि। पहिने
हम सभ दोसराक अधीन छलौं,
पराधीन छलौं, ई झण्डा झुकल छल, फहरा नै सकै छलौं। झण्डा फहराइत रहए ओइ लेल हमरा सभकेँ जोर लगाबैत रहऽ
पड़त। (चारू दिस हाथ पसारैत) ऐ इलाकामे आब खुशी पसरत। जमीन्दारक राज खतम भऽ
गेल। सभ कियो पढ़ि सकै छथि। झगड़ा-झाँटी, युद्ध, आब सभ खतम भऽ गेल। हमरा सभक जीवनमे एकटा नवका भोर आएल अछि। नवका शिक्षा,
नवका खेतीक चलनि हएत।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) २: बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान चिमनीबला
फैक्ट्रीमे तैयार हएत। बड़का-बड़का बान्ह ओइ धारकेँ बान्हि-छेक कऽ सञ्जत कऽ देत। खूब
उपजत खेत,
बर्खा बरखत इन्द्रक नै हमरा सभक प्रतापसँ। खेते-खेत बहत धार, हएत पटौनी। छोट-पैघक भेद मेटा जाएत।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) १: छोट-पैघक भेद मेटा जाएत? बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह छोट-पैघक भेद मेटाएत?
शिक्षक
(वा शिक्षिका) २: हँ। पटौनी हएत खेते-खेत। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान आब एतै चिमनीबला
फैक्ट्रीमे तैयार हएत।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) १: बड़का बान्ह आ बड़का फैक्ट्रीसँ ढेर रास समस्या सेहो आबै छै। ओकर निदान जरूरी
छै। विकास एकभग्गो भऽ जाएत।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) २: विकास एकभग्गू कोना हएत?
शिक्षक
(वा शिक्षिका) १: बड़का फैक्ट्री सभ ठाम नै लागि सकत, कतौ-कतौ लागत, ओतऽ
बोनिहारक पड़ैन हएत। बड़का बान्ह बनलासँ ओकर भीतरक गामसँ सेहो लोकक पड़ैन हएत। बड़का
बान्ह जँ मजगूत नै हएत तँ ओ टूटत आ प्रलय आएत। बड़का फैक्ट्री आ बड़का बान्ह लोकक
जिनगीकेँ छहोछित कऽ देत।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) २:एक पीढ़ीकेँ तँ बलिदान देबैए पड़त। बच्चा सभ, बाजै जाउ। अहाँ सभ देश लेल अपनाकेँ
समर्पण करब आकि नै।
शिक्षक
(वा शिक्षिका) १: बच्चा सभ, बाजै जाउ, अहाँ सभ की बनऽ चाहै छी। समाजकेँ की देबऽ
चाहै छी।
बच्चा
१: हम इन्जीनियर बनब आ सड़क, पुल, नहर बनाएब। जइसँ लोकक दुःख दूर हेतै।
बच्चा
२: हमहूँ
इन्जीनियर बनब। बड़का-बड़का बान्ह, बड़का-बड़का चिमनीक धुँआ।
धुँआ सुंघैमे हमरा बड्ड नीक लागैए। कतेक नीक दिन आएत, बड़का-बड़का
बान्ह, बड़का-बड़का चिमनी देश भरिमे पसरि जाएत।
बच्चा
१: मुदा धुँआसँ
खोँखी होइ छै। हमर माए खोँखी करैत रहैए। हमरा धुँआसँ परहेज अछि।
बच्चा
२:मुदा
हमर माए तँ भनसाघर जाइतो नै अछि। मुदा हम जाइ छी, चोरा-नुका
कऽ, आ धुँआक गंध, बड़का देवार, ई सभ हमरा बड्ड नीक लगैए।
शिक्षिका
२: नीकगप। मुदा
विकास केहन हुअए, ई सभ हमरा सभक हाथमे नै अछि। पटना आ दिल्लीमे ई निर्णय हएत जे हमरा सभ लेल
केहन विकास हेबाक चाही।
शिक्षिका
१: नीकगप, नीक गप जे हमरा सभक
विकास लेल पटना आ दिल्लीमे सोचल जा रहल अछि। मुदा ओतऽ बैसि कऽ वा एकाध दिनक
हलतलबीमे कएल दौड़ासँ ओ सभ उचित निर्णय लऽ सकता? जे से,
मुदा हम सभ समाज लेल काज करी, से सतत ध्यान
रहए। पूरा इमानदारीसँ, जान जी लगा कऽ ऐ देशक इतिहास हमरा
सभकेँ बनेबाक अछि, से ध्यान रहए। आइ १५ अगस्त १९४७ केँ हम ई
प्रण ली, वचन दी।
सभ
बच्चा: हम सभ वचन दै छी, हम सभ पूरा
इमानदारीसँ जान जी लगा कऽ ऐ देशक नव इतिहास लिखब।
(“१५ अगस्त” ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस” ई सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि। बच्चा आ शिक्षक सभ मजदूर सभसँ झण्डा
आपस लऽ लै छथि। मजदूर सभ फेर बैसि कऽ ठक-ठुक करऽ लगैए। दुनू लोक ओतै हतप्रभ ठाढ़
रहैए। फेर पर्दाक पाछाँ कोनमे देखऽ लगैए जेना ककरो एबाक प्रतीक्षा कऽ रहल हुअए।
तखने दुनू हरबड़ा कऽ जाइए आ एकटा कुर्सी आनि कऽ राखैए। एकटा ४०-४५ बर्खक
अभियन्ता मंचपर अबैए। अभियन्ता कनेक हाँफि रहल अछि, कुर्सी देखिते ओ धबसँ
ओइ कुर्सीपर बैसि जाइए। फेर साँस स्थिर कऽ ठाढ़ होइए। ठक-ठुक बन्द भऽ जाइ छै आ मजदूर
सभ फ्रीज भऽ जाइए, ओ दुनू लोक कोन दिस दंका लग चलि जाइए आ
फ्रीज भऽ जाइए। अभियन्ता बाजऽ लगैए।)
अभियन्ता: (कुर्सीकेँ झमाड़ैत) एना।
एना हिलि रहल अछि ई, ई गंगा ब्रिज। सीमेन्ट, बालु, गिट्टीक कंक्रीटसँ बनल ई पुल कठपुलासँ बेशी हिलैए। जहिया आबै छी, मरोम्मतियेक काज चलैत रहै छै। वन-वे, एक दिस; एक्के दिसुका मात्र भऽ कऽ रहि गेल अछि ई। एक्के दिस पुल खुजल छै, दोसर दिस कोना चलत, अदहा पुलपर मरोम्मतिक काज भऽ रहल
अछि। (तखने ओ आभासी रूपमे हिलऽ लगैए आ ओकर बाजब थरथरा उठै छै।) ई पुल तँ
एत्ते हिलि रहल अछि जत्ते गामक कठपुलो नै हिलैए।
(तखने एकटा ठिकेदार अबैए।)
ठिकेदार (अभियन्तासँ): हइ इन्जीनियर। तोहूँ वएह कऽ
वएह रहि गेलेँ। बालुकेँ एना कऽ चालनिसँ चालू, ओना कऽ चालू, जेना ओ
चाउर दालि हुअए मुदा हम सेहो चाललौं। ठीक छै ठीक छै। तूँ कहै छलेँ जे रोटी बनेबा
लेल जेना चालै छी तहिना पुल बनेबा लेल चालू, तखने नीक रोटी
सन नीक पुल बनत। ठीक छै ठीक छै। फेर एतेक सीमेन्ट, एतेक बालु,
एतेक.. हम कहने रही जे हम तोहर सभ गप मानब, मुदा
तखन नेता, दोसर इन्जीनियर, गुण्डा,
एकरा सभकेँ कमीशन कतऽ सँ देबै? तोरा कहलासँ
बालु चालऽ लगलौं आ कमीशन बन्द कऽ देलिऐ। हमर तँ किछु नै भेल मुदा तोहर बदली भऽ
गेलौ, तोहर दरमाहा बन्न भऽ गेलौ। बच्चा सभक नाम स्कूलसँ
कटाबऽ पड़लौ, गाम पठाबऽ पड़लौ बच्चा सभकेँ। हम कहने रहियौ तोरा, जे बालु चालब, एतेक सीमेन्ट, एतेक
बालु, सभ निअमसँ देबै। हमरा की? इलाकाक
पुल, सड़क… जतेक मजगूत रहतै ततेक ने
नीक। हमरो लेल नीके। मुदा हमरा बूझल छल जे तोहर बदली भऽ जेतौ। चीफ इन्जीनियर,
नेताक दहिना हाथ.. पहिने हमरे कहने रहए तोरा रोलरक नीचाँमे पिचड़ा कऽ
दैले.. बइमान चीफ इन्जीनियर। देख, पहिने हमरो होइ छल जे
तोहूँ ओकरे सभ जेकाँ छेँ, अपन रेट बढ़ाबैले ई सभ कऽ रहल छेँ।
मुदा बादमे हम देखलौं जे नै, तूँ अलग छेँ। मुदा हम की करू? हम अपन बच्चाक नाम स्कूलसँ नै कटबा सकै छी। मुदा जौँ तोरा सन चीफ
इन्जीनियर आबि जाए.... कहियो से दिन आबए... तखन हम फेरसँ बालु चालब शुरू करब आ वएह
चालल बालु, एत्ते बालु एत्ते सीमेन्टमे मिलाएब। एत्ते बालु,
एत्ते सीमेन्ट, सभटा ओहिना जेना अहाँ तूँ कहै
छलेँ। मुदा जखन तोरा सन कियो आबए तखने किने। ताधरि तँ...
(अभियन्ता आ ठिकेदारक प्रस्थान। लागल जेना फ्रीज लोककेँ अभियन्ता आ
ठिकेदारक गपक विषयमे बुझल नै भेलै जेना ई सभ आभाषी छल। दुनूटा लोक फ्रीज स्थितिसँ
घुरि असथिरसँ डंका बजबऽ लगैए आ तखन मजदूर सभ सेहो फ्रीज स्थितिसँ आपस आबि जाइए आ
फेरसँ ठकठुक करऽ लगैए। दुनू लोक डंकाक अबाज आस्ते-आस्ते तेज करऽ लगैए आ फेर
ठक-ठुकक अबाज मद्धिम पड़ि जाइए आ डंकाक अबाजक संग पर्दा खसैए।)
कल्लोल
२
दृश्य
१
(इन्जीनियरिंग
कॉलेजक दीक्षान्त समारोह, विद्यार्थी सभ ठाढ़ अछि आ शिक्षक (बा शिक्षिका) भाषण दऽ रहल
छथि। अभियन्ता सेहो विद्यार्थी सभ मध्य ठाढ़ अछि।)
शिक्षक/
शिक्षिका १:
अहाँ सभक आइ ऐ इन्जीनियरिंग कॉलेजमे अंतिम दिन अछि। एतुक्का जीवन आ असल जीवनमे
बड्ड अन्तर छै। आब अहाँ सभकेँ धूरा-गर्दामे जेबाक अछि। काज करबाक अछि। मोन लगा कऽ
काज करबाक अछि। एतेक काज करबाक अछि जे ई खेत सोना उपजाबऽ लागए। लोकक जीवनमे
समृद्धि आबि जाए। दिन-राति नै देखबाक अछि। यएह हमर गुरुदक्षिणा हएत। ऐ दीक्षान्त
समारोहमे अहाँ सभसँ हम यएह आग्रह करै छी।
हमर
देश, हमर
लोक बड्ड मुश्किलसँ स्वतंत्र भेल अछि। मुदा ई स्वतंत्रता मानसिक रूपसँ आबि जाए तखन
ने। आर्थिक रूपसँ हम दोसरासँ स्वतंत्र भऽ जाइ, ककरो आगाँ हाथ
नै पसारऽ पड़ए, बजबाक स्वतंत्रता तखने आबि सकत। अभियन्ता माने
बनेनहार, सर्जक। सड़क बनेनहार, नहर
बनेनहार, पुला बनेनहार। अभियन्ता माने जोड़ैबला। ई पुल लोककेँ
लोकसँ जोड़त। सड़क सभ बनत। लोकक जीवनमे गति आएत, दौगत जिनगी।
नहरि, पोखरिसँ भरल इलाकामे सोना उपजत।
(विद्यार्थी
सभक करतल ध्वनि।)
शिक्षक/
शिक्षिका २:अहाँ
सभकेँ बड़का-बड़का काज करबाक अछि। बड़का-बड़का बान्ह बनेबाक अछि। ओहीसँ विकास हेतै, ओहीसँ तेजीसँ विकास
हेतै। सगरे विश्वमे अही तरहेँ विकास भेल छै। भारतकेँ स्वतंत्रता भेटल छै,
आ ई स्वतंत्रता तखने काएम रहि सकत जखन तेजीसँ विकास हएत। आ तेजीसँ
विकास हएत बड़का-बड़का फैक्ट्री आ बड़का-बड़का बान्हसँ।
शिक्षक/
शिक्षिका १: ओना
तँ हमरा विकासक ओइ बड़का पथसँ मतभिन्नता अछि, कारण बड़का फैक्ट्रीमे हमर लोक मजदूरे बनि कऽ
ने रहि जाए, बड़का मजगूत पक्का बान्ह बनबैमे जतेक पाइ चाही
तत्ते ऐ देश लग छैहो नै, तखन बड़का कच्ची बान्ह कतेक गामकेँ
अपन पेटमे लेतै, ओतेक मजगूत नै रहतै, टुटैत
भंगैत रहतै, सदिखन ओकर मरोम्मतिये होइत रहतै।
शिक्षक/
शिक्षिका २: मुदा
मुजफ्फरपुरक ऐ दीक्षान्त समारोहमे विकासक पथक दिशा नै तय कएल जा सकैए। ओ तँ दिल्ली
आ पटनेमे तय हएत। आब…(जोरसँ बजैत) ऐ दीक्षान्त
समारोहमे सभसँ बेशी नम्बर लऽ कऽ पास केनिहार छात्रकेँ हम बजबऽ चाहै छियन्हि।
(अभियन्ताकेँ हाथक इशारासँ बजबैए आ मेडल पहिराबैए)।
(विद्यार्थी
सभक करतल ध्वनि। शिक्षक/ शिक्षिकाक प्रस्थान।)
अभियन्ताक
मित्र: दोस। अभियंत्रणक पढ़ाइमे तँ तूँ बाजी मारि गेल छेँ। आब असल जिनगी शुरू हएत।
देखी ओतऽ के बाजी मारैए।
अभियन्ता: कोनो अभियन्ताक जीत
छै जे ओकर बनाएल पुल कतेक मजगूत छै, ओकर बनाएल नहरि आ बान्ह पानिक
निकासीमे बाधा तँ नै दै छै। ओ लोकक जिनगी सुखी बना पाबैए आकि नै। काज समयसँ पूर्ण
होइ छै आकि नै।
अभियन्ताक
मित्र: बड़का काजमे कने-मने गलती तँ होइते रहै छै। जे कहीं भाइ, हमरा तँ बड़का छहर, बड़का फैक्ट्री, बड़का चिमनी बड्ड नीक लगैए। धुँआक सुगन्ध तँ हमरा बच्चेसँ नीक लगैए,
तोरा तँ बुझले छौ।
अभियन्ता:आ हमर माएकेँ धुँआसँ
खोँखी होइ छै, हमरा धुँआ नीक नै लगैए। तोरा तँ बुझले छौ।
अभियन्ताक
मित्र:देख भाइ, हमरा आ तोरामे की अन्तर अछि। हम तँ ओइ पथपर
आगाँ बढ़ि जाएब जे दिल्ली बा पटना हमरा लेल निर्धारित करत। मजगूत बड़का पक्का बान्ह
बनाबैले कहत तँ से बनेबै, कमजोर बड़का कच्चा बान्ह बनाबैले
कहत तँ से बनेबै। जे उपरका हाकिम कहत से करबै।
अभियन्ता: चाहे ओ नीक हुअए बा
खराप।
अभियन्ताक
मित्र: ऊपरमे बैसल छै तँ कोनो गुण छै तेँ नै बैसल छै। आ गुणी लोक अधला गप किए
कहतै?
अभियन्ता:तखन एतऽ पढ़ि कऽ,
ज्ञान अर्जित कऽ कऽ की फाएदा?
अभियन्ताक
मित्र:छोड़ भाइ।आइ खुशीक मौका छै, आइ तूँ जीतल छेँ तेँ आइ
तोरे गप सही, मुदा आइये धरि।
जारी...
पूनम मण्डल-१.दाग (उपन्यास) : गौरीनाथ- लोकार्पण २."सगर राति दीप
जरय"क दोसर फेज (चरण)क पहिल सगर राति दीप जरय ०१ दिसम्बर २०१२ शनि दिन
सन्ध्याकेँ केँ दरभंगामे ३.समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय
भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व
विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस
१
दाग (उपन्यास) : गौरीनाथ- लोकार्पण
बहुत दिन भेल, एक्कैस वर्ष, मातृभाषाक प्रति अनुरागक एक टा विशेष क्षण मे मैथिली मे लिखबाक लेल उन्मुख
भेल रही—1991 मे— एहि एक्कैस वर्ष मे
लगभग दू गोट कथा-संग्रह जोगर कथा आ दू गोट वैचारिक (आलोचनात्मक, संस्मरणात्मक आ विवरणात्मक) पुस्तक जोगर लेख यत्र-तत्र प्रकाशित आ
छिडि़आयल रहितो ओकरा सभ केँ पुस्तकाकार संग्रहित करबाक साहस एखन धरि नइँ भेल। ई
प्राय: अनके कारणेँ, जकर चर्चा बहुत आवश्यक नइँ। मुदा,
ई उपन्यास एहि लेल पुस्तकाकार अपने सभक समक्ष प्रस्तुत क’ रहल छी जे एकरा पत्र-पत्रिका द्वारा प्रस्तुत करबाक सुविधा हमरा लेल नइँ
छल। मुदा हमरा लग ई विश्वास छल जे मैथिलीक ओ पाठक वर्ग पढ़’ चाहताह
जे प्राय: तेरह वर्ष सँ 'अंतिका’ पढ़ैत
आयल छथि। मैथिली पत्रकारिताक दीर्घकालीन ओहि इतिहास—जे
मैथिली पत्रिका पाठकविहीन आ घाटा मे बहराइत अछि—केँ फूसि
साबित करैत जे पाठक वर्ग 'अंतिका’ केँ
निरंतर 'घाटारहित’ बनौने रहलाह हुनक
स्नेह पर हमरा आइयो विश्वास अछि। निश्चये ओ पाठक वर्ग हमर उपन्यास सेहो कीनिक’
पढ़ताह आ हमर पुरना विश्वास केँ आरो दृढ़ करताह।
—लेखक
Price : 150.00 INR
स्त्री आ शूद्र दुनू
केँ हीन आ मर्दनीय मान’वला कुसंस्कृतिक अवसानक कथा जे अपन तथाकथित 'ब्रह्मïशक्ति’क छद्ïम अहंकार मे परिवर्तनक ईजोत
देखिए ने पबै यए...जखन देख’
पड़ै छै तँ पाखंडक कील-कवच ओढि़ लै यए, अहुछिया
कटै यए, घिनाइ यए आ अंतत: एक टा 'दाग’
मे बदलै यए जे कुसंस्कृतिक स्मृति शेषक संग परिवर्तनक संवाहक,
स्त्री आ शूद्रक, संघर्ष-प्रतीक सेहो अछि।
उपन्यास पठनीय अछि, विचारोत्तेजक अछि आ
मैथिली मे बेछप।
—कुणाल
गौरीनाथ मैथिलीक चर्चित
आ मानल कथाकार छथि। पठनीयता आ रोचकता हिनकर गद्य मे बेस देखाइत अछि। माँजल हाथेँ ओ
ई उपन्यास लिखलनि अछि। गौरीनाथ मैथिली साहित्यक आँगुर पर गनाइ वला लेखक मे छथि जे
जाति-विमर्श केँ अपन विषय वस्तु बनौलनि। आन भारतीय भाषा मे साहित्यक जे लोकतांत्रिकीकरण
भेल, तकर
सरि भ’क’ हेबाक मैथिली एखनो प्रतीक्षे
क’ रहल अछि। ई उपन्यास मैथिली साहित्यक लोकतांत्रिकीकरण लेल
कयल एक टा सार्थक आ सशक्त प्रयास अछि।
'दाग’ अनेक अंतद्वंद्व सबहक बीच सँ टपैत अछि विश्वसनीयता, रोचकता
आ लेखकीय ईमानदारीक तीन टा तानल तार पर एक टा समधानल नट जकाँ। एत’ सामंतवाद आ ब्राह्मणवादक मिझेबा सँ पहिनेक दीप सनहक तेज भ’ जायब देखाइत अछि। धुरखुर नोचैत नपुंसक तामस आ वायवीय जाति दंभ अछि। नवतुरियाक
आर्थिक कारणेँ जाति कट्टरताक तेजब सेहो। दलित विमर्श अछि, ओकर
पड़ताल सेहो। दलितक ब्राह्मणीकरण नहि भ’ जाय, तकरो चिंता अछि। दलित विमर्शक मनुष्यतावाद आ स्त्रीवादक नजरिञे पड़ताल
सेहो।
आकार मे बेसी पैघ
नहियो रहैत एहि मे क्लासिक सब सनहक विस्तार अछि अनेक रोचक पात्रक गाथाक बखान संग।
आजुक मैथिल गाम जेना जीवंतता सँ एहि उपन्यासक पात्र बनि केँ सोझाँ अबैत अछि, से अनायासे
फणीश्वरनाथ रेणु केँ मन पाडि़ दैत अछि। गामक नवजुबक सबहक दल यात्रीक नवतुरियाक
योग्य वंशज अछि।
जँ आजुक मिथिला, ओकर दशा-दिशा आ संगहि
ओत’ होइत सामाजिक परिवर्तन रूपी अमृत मंथनक खाँटी बखान चाही,
तँ 'दाग’ केँ पढ़ू।
एहि रोचक आ अत्यंत
पठनीय उपन्यासक व्यापक पाठक समाज द्वारा समुचित स्वागत हैत आ गाम-देहात सँ ल’क’ नगर परोपट्टा मे एहि पर चर्चा हैत, एहेन हमरा पूर्ण
विश्वास अछि।
—विद्यानन्द
झा
स्त्री आ दलित एहि
दुनू विमर्श केँ एक संग समेट’वला उपन्यास हमरा जनतब मे मैथिली मे नहि लिखल गेल अछि। ई उपन्यास एहि
रिक्ति केँ भरैत भविष्यक लेखन लेल प्रस्थान-विन्दु सेहो तैयार करैत अछि।
'दाग’ अपन कैनवास मे यात्रीक 'नवतुरिया’ आ ललितक 'पृथ्वीपुत्र’क
संवेदना केँ सेहो विस्तार प्रदान करैत अछि। ताहि अर्थ मे ई मैथिली उपन्यास परंपराक
एक टा महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हैत। 'नवतुरिया’क 'बम-पार्टी’क विकास-यात्रा
केँ 'गतिशील युवा मंच’ मे देखल जा सकैत
अछि। जाति, धर्म, लिंग आदि सीमाक
अतिक्रमण करैत मनुष्य ओ मनुष्यताक पक्ष मे लेखकीय प्रतिबद्धताक प्रमाण थिक सुभद्रा
सनक पात्रक निर्माण जे अपन दृष्टि सँ जातीय-विमर्श सँ आगाँक बाट खोजैत अछि,
'पहिने मनुष्य बचतै तखन ने प्रेम!’
अभिनव कथ्य आ शिल्पक
संग मिथिलाक नव बयार केँ थाह’वला उपन्यास थिक 'दाग’।
—श्रीधरम
उसार-पुसार
ई उपन्यास हम लगभग
दस वर्ष पहिने लिखब शुरू कयने रही। 2003 मे। एक्कैसम शताब्दीक नव गाम मे तखन धरि जे
किछु थोड़ेक सामाजिकता बचल छल, एहि बीच सेहो खत्म जकाँ भ’
गेल। खगल केँ के देखै यए, हारी-बीमारी धरि मे
तकैवला नइँ! अहाँक नीक जरूर दोसर केँ अनसोहाँत लगै छै। लोभ-लिप्साक पहाड़ समस्त
सम्बन्ध आ हार्दिकता केँ धंधा आ नफा-नुकसान सँ जोडि़ देलक अछि।...गाम सँ बाहर रह’वला भाइ-भातिज केँ बेदखल करबाक यत्न बढ़ल अछि। खेती-किसानीक जगह व्यापार आ
बाहरी पाइ पर जोर। सुखितगर होइते लोक शहर जकाँ आत्मकेन्द्रित भ’ रहल अछि आकि नव तरहक दबंग बनि रहल अछि, नंगटै पर
उतरि रहल अछि। संगहि की ई कम दुखद जे जाति-धर्म, पाँजि-प्रतिष्ठा
सनक मामिला मे एखनो; थोड़े कम सही; उग्र
कोटिक सामाजिक एकता, आडम्बर आ शुद्धता देखाइते अछि?...
सवर्ण समाज दलित-अछूतक
कन्या पर अदौ सँ मोहित होइत रहल आ एम्हर आबि विवाह आदिक सेहो अनेक घटना सोझाँ आयल।
मुदा दलित युवकक संग गामक सिरमौर पंडितजीक कन्याक भागि जायब, घर बसायब आ ओकर
स्वावलंबी हैब पागधारी लोकनि केँ नइँ अरघैत छनि तँ एकरा की कहबै?
खेतिहर समाज लेल खेती-किसानी
सँ बढि़ ताग आ पाग कहिया धरि रहत से नइँ कहि सकब!...
ओना मिथिला-मैथिल-मैथिलीक
मामिला मे 'पूबा-डूबा’क हस्तक्षेप पश्चिमक श्रेष्ठता-ग्रंथि केँ
कहियो स्वीकार्य नइँ रहल—खासक’ शुद्धतावादी
लोकनि आ पोंगा पंडित लोकनि केँ!...
निश्चये ओहेन व्यक्ति
केँ मैथिल समाजक ई पाठ बेजाय लगतनि जे मनुक्ख आ मनुक्ख मे भेद करै छथि, एक केँ श्रेष्ठ आ
दोसर केँ हीन बुझैत छथि!...
सिमराही-प्रतापगंज-ललितग्राम-फारबिसगंज
बीचक आ कात-करोटक 'पूबा-डूबा’ गाम-घरक किछु शब्द (ककनी, कुरकुटिया, ढौहरी, दोदब आदि),
किछु ध्वनि, भिन्न-भिन्न तरहक उच्चारण आ वर्तनीक
विविधता कोसी-पश्चिमक किछु पाठक केँ अपरिचित भनहि लगनि, आँकड़
जकाँ प्राय: नइँ लगबाक चाहियनि किएक तँ कोसी पर नव बनल पुल चालू भ’ गेल अछि...जाति मे भागनि आकि अजाति मे, बेटी-बहिन
घर-घर सँ भागबे करतनि...ताग आ पाग धयले रहि जयतनि!...नव-नव बाट आ पुल आकर्षक होइत
छै! से जनै अछि छान-पगहा तोड़बा लेल आकुल-व्याकुल नव तुरक मैथिल कन्या! हँ,
पंडिजी बुझैतो तकरा स्वीकार’ नइँ चाहैत छथि।
उपन्यासक अन्तिम पाँति
पूरा क’ हम
विश्रामक मुद्रा मे रही...कि पंडीजी, माने पंडित भवनाथ मिश्र,
आबि गेलाह। पुछलियनि—पंडित कका, अंकुरक प्रश्नक उत्तर के देत? कहू, ओकर कोन अपराध?... पंडित कका किछु ने बजलाह, बौक बनि गेलाह!...मुदा हुनका आँखि मे अनेक तरहक मिश्रित क्रोध छलनि! ओ
पहिने जकाँ दुर्वासा नइँ भ’ पाबि रहल छलाह, मुदा भाव छलनि—खचड़ै करै छह! हमरा नाँगट क’क’ राखि देलह आ आबो पुछै छह...जाह, तोरा कहियो चैन सँ नइँ रहि हेतह!...
अंकुरक छाती पर जे
दाग अछि, तेहन-तेहन
अनेक दाग सँ एहि लेखकक गत्र-गत्र दागबाक आकांक्षी पंडित समाज आ विज्ञ आलोचक लोकनि
लग निश्चये अंकुरक सवालक कोनो उत्तर नइँ हेतनि। सुभद्राक तामस आ ओकर नजरिक दापक
दाग सेहो हुनका लोकनिक आत्मा पर साइत नहिए बुझाइत हेतनि!... मुदा सुधी पाठक,
दलित समाज सँ आगाँ आबि रहल नवयुवक लोकनि आ स्त्रीगण लोकनिक नव पीढ़ी
जरूर एकर उत्तर तकबाक प्रयास करत, से हमरा विश्वास अछि।
—गौरीनाथ 01
सितम्बर, 2012
२
"सगर राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क
पहिल सगर राति दीप जरय ०१ दिसम्बर २०१२ शनि दिन सन्ध्याकेँ केँ दरभंगामे
-"सगर
राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क पहिल सगर राति दीप जरय ०१ दिसम्बर २०१२ शनि
दिन सन्ध्याकेँ केँ दरभंगामे
-आयोजक छथि श्री
अरविन्द ठाकुर
--"सगर
राति दीप जरय"क पहिल चरणमे बहुत रास घुसपैठिया घुसि गेल रहथि आ ई अपन मूल उद्देश्यसँ
दूर भऽ गेल छल।
-लोक भरि राति
सुतैत रहथि, जातिवादिताक स्वर सोझाँ आबि गेल छल, लॉबी बना कऽ होइत समीक्षा आ ब्राह्मणवादी-आमंत्रण धरि गप पहुँचि गेल छल।
साहित्य अकादेमीक हस्तक्षेपसँ मामला आर गरबड़ा गेल। ७५म सगर राति दीप जरयमे पटनामे
किछु गोटे द्वारा शराब पीलापर धनाकर ठाकुर विरोध सेहो प्रकट केलन्हि। तकर बाद
ओहीमेसँ किछु गोटे ऐ गोष्ठीकेँ दिल्ली लऽ गेला, मुदा विभिन्न
कारणसँ आ साहित्य अकादेमीक दवाबपर मैथिली पोथी प्रदर्शनी नै लगाओल जा सकल, कारण आयोजक तकर अनुमति नै देलन्हि, ऐ साहित्य
अकादेमीक कथा गोष्ठीकेँ ७६म -"सगर राति दीप
जरय"क मान्यता नै देल जा सकल (ओना किछु ब्राह्मणवादी कथाकार आ घुसपैठिया
लोकनि एकरा ७६म सगर राति दीप जरय कहि रहल छथि!!) । ७६म -"सगर राति दीप
जरय"क आयोजन विभा रानी द्वारा चेन्नैमे भेल जतए मात्र एकटा कथाकार पहुँचला।
कियो माला नै उठेलनि आ सगर राति दीप जरयक पहिल चरणक दुखद अन्त भऽ गेल।
--"सगर
राति दीप जरय"केँ फेरसँ जियेबाक प्रयत्नक स्वागत कएल जा रहल अछि। "सगर राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क
पहिल सगर राति दीप जरय ०१ दिसम्बर २०१२ केँ "किरण जयन्ती"क
अवसरपर आयोजित भऽ रहल अछि। आशा अछि जे ई नव "सगर राति दीप
जरय"क दोसर फेज (चरण)क पहिल सगर राति दीप जरय पुनः अपन ओइ पथपर आगाँ बढ़त,
जे प्रभास कु. चौधरी ऐ लेल सोचने छला।
३
समन्वय २-४
नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC
INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद,
ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस
-भारतीय भाषा महोत्सव २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल- -ज्योतिरीश्वर पूर्व
विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक
नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक
-समन्वय २-४
नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4
November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/
- ३ नवम्बरकेँ
मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे
प्रेमक गीतपर भेल बहस
-बहसमे भाग
लेलनि उदय नारायण सिंह नचिकेता, देवशंकर नवीन, विभा रानी आ गजेन्द्र ठाकुर; आ मोडेरेटर रहथि
अरविन्द दास
-आकाशवाणी दरभंगा,
हिन्दी अखबार सभक दरभंगा संस्करण, सी.आइ.आइ.एल.
, साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट आ
अंतिका- मिथिला दर्शन, जखन-तखन केर लेखकक प्रोफाइल, विद्यापतिकेँ पाग पहिरा कऽ विद्यापति पर्व केनिहार चेतना समितिक पत्रिका
घर बाहर, झारखण्ड सनेस आ जातिवादी रंगमंचक नाटकक शब्दावली
आदि, ऐ सभ द्वारा मैथिली साहित्यकेँ ब्राह्मणवादी बनेबाक प्रयासक
विरुद्ध गएर-ब्राह्मणवादी समानान्तर धाराक चर्च गजेन्द्र ठाकुर द्वारा भेल
-ज्योतिरीश्वर
पूर्व गएर ब्राह्मण विद्यापति आ ज्योतिरीश्वरक पश्चात बला कट्टर संस्कृत-अवहट्ठ
बला विद्यापतिक बीच अन्तर गजेन्द्र ठाकुर रेखांकित केलन्हि
ऐ सँ पहिने हिन्दी आ
मणिपुरीक कार्यक्रम सेहो भेल।
डा.रमानन्द झा ‘रमण’
कलकत्ता
विश्वविद्यालयमे मैथिली- राजा टंकनाथ चौधरी
कलकत्ता
विश्वविद्यालयमे मैथिलीक अध्यापनक प्रारम्भक होएबाक सदर्न्भमे डा. जयकान्त मिश्र
(मैथिली साहित्यक इतिहास,
साहित्य अकादेमी ) लिखने छथि - स्वर्गीय सर आशुतोष मुखर्जी कलकत्तामे
मैथिलीक महान सम्पोषक कहल जाए सकैत छथि। कुमार गंगाानन्द सिंह, बाबू गङ्गापति सिंह, ब्रजमोहन ठाकुर, विद्यानन्द ठाकुर आदि महानुभाव लोकनिक प्रयाससँ तथा दुर्गागंज पुरनियाँक
राजा टंकनाथ चौधरीक उदार वित्तीय सहायतासँ 1917 ई. मे
कलकत्ता विश्वविद्यालयमे मैथिली चेयर स्थापित भेल।
डा.
सुभद्र झा (मैथिली: वृत्त ओ परिधि, चेतना समिति) तात्कालिक स्थिति आ सहयोगकेँ
स्पष्ट करैत लिखल अछि जे मैथिलीक अध्यापनक हेतु दू टा प्राध्यापक नियुक्त भेल
छलाह। एहिमे एक गोटेक वेतन रजौरक राजा स्व. टंकनाथ चौधरी द्वारा देल द्रव्य राशिसँ
तथा दोसर गोटेक वेतनक राशि बनैलीक स्व. राजा कीर्त्यानन्द सिंह प्रभृति द्वारा देल
द्रव्यसँ देल जाइत छल तथा ई लोकनि क्रमशः रजौर तथा बनैली व्याख्याता कहल जाथि।
एहि
प्रसंग ब्रजमोहन ठाकुर (विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेश, चेतना समिति) लिखल
अछि- जखन हम पूर्णियाँसँ घूरि के ँकलकत्ता पहुँचलहुँ तखन ज्ञात भेल जे राजा
श्रीटंकनाथ चौधरी सेहो उदारदातापूर्वक साढ़े तीन हजार टाका देबाक सूचना सर
मुखर्जीके ँ देलथिन्ह अछि। ओ ‘टंकनाथ चौधरी चेयर’ स्थापित करबाक अनुरोध कएलन्हि अछि। एहि तरहे ँ दूनू (राजाबहादुर
कीर्त्यानन्द सिंह) मिलाके ँ एगारह हजार टाका तात्कालिक कार्य चलएबाक हेतु संगृहीत
भए गेल। अर्थात् विश्वविद्यालयमे मैथिलीक अध्यापन कार्य प्रारम्भ होएबाक निमित्त
आवश्यक निधि उपलब्ध करेबाक हेतु जे दू उदारमना मातृभाषा अनुरागी आर्थिक सहयोग कएल
आ कलकत्ता विश्वविद्यालयमे सर्वप्रथम मैथिलीक अध्यापन कार्य प्रारम्भ भए सकल एवं
जाहिसँ मैथिली शिक्षणक बाट खूजल, ओहिमे एक छथि राजा टंकनानाथ
चौधरी।
राजा
टंकनाथ चौधरी राजा बुद्धिनाथ चौधरीक पुत्र छलाह। हिनक जन्म 11 नवम्बर 1884 ई. के ँदुर्गागंज, कटिहारमे भेलनि। ओ अपन बेमात्रोय
भाए कुमार छत्रानाथ चौधरीसँ मात्रा छओ मास छोट छलाह। हिनक पिता राजा बुद्धिनाथ
चौधरीक देहान्त जेष्ठ 1885 ई. मे भए गेलनि। ओहि समयमे दूनू
भाए नावालिग छलाह। जेना महाराज महेश्वर सिंहक देहावसानक उपरान्त हुनक दूनू पुत्रा
महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह एवं महाराज रमेश्वर सिंहक अल्पवयस्कताक कारणे ँ दरभंगा राज
‘कोर्ट ऑफ वार्ड्सक अन्तर्गत चल गेल छल, ओहिना राजा बुद्धिनाथ चौधरीक जमीनदारी कोरट लागि गेलनि।
राजा
टंकनाथ चौधरीक प्रारम्भिक शिक्षा नवद्विप जिलाक कृष्णनगरमे भेलनि। 15 वर्षक अवस्थामे ओ
कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ प्रथम श्रेणीमे इंटर पास कएल। प्रेसिडेंसी कालेजसँ अङरेजी
तथा दर्शन विषयक संग स्नातक भेलाह। अग्रिम शिक्षाक हेतु दर्शनशास्त्रा लए एम. ए.
मे नाम लिखाओल। किन्तु 1904 ई.मे जखन जमीनदारी कोरट मुक्त
भेलनि तँ औपचारिक शिक्षा समाप्त कए जमीनदारीक प्रबन्धक दायित्व सम्हारि
लेल।
राजा बुद्धिनाथ चौधरीक जमीनदारी बिहार आ बंगााल- दूनू राज्यमे छलनि। ओकर
सुप्रबन्धक हेतु बिहार क्षेत्रक प्रबन्ध कुमार छत्रनाथ चौधरी तथा बंगााल क्षेत्रक
प्रबन्ध राजा टंकनाथ चौधरी सम्हारल। राजा टंकनाथ चौधरीक विवाह कोइलख, मधुबनी ग्राम निवासी
पण्डित जानकीनाथ झाक कन्यामे छलनि। राजा साहबके ँ तीन पुत्र एवं तीन कन्या भेलथिन।
हिनक परिवारमे कतेको खाढ़ीसँ पिताके ँ कन्यादानक सौभाग्य नहि होइत छलनि। राजा
साहबके ँ ई सौभाग्य भेटलनि। राजा टंकनाथ चौधरी यद्यपि स्वयं उच्चशिक्षा प्राप्त
नहि कए सकल छलाह मुदा, समाजमे शिक्षाक व्यापक प्रचार हो,
तदर्थ आजीवन प्रयत्नशील छलाह। एहि हेतु 1915
ई. मे अपन पिताक नाम पर रामनगरमे स्कूल स्थापित कएल। शिक्षाक क्षेत्रामे हिनक
अवदानक उल्लेख करैत मिथिला मिहिर (16 जून, सन 1928 ई.) लिखैत अछि- ‘शिक्षा
प्रचार में आप सदा आगे रहते थे। अपनी राजधानी रामगञ्ज में अपने स्वर्गीय पिता के
स्मारक में बुद्धिनाथ इन्सटिच्यूशन नाम से एक हाईस्कूल स्थापित कर उसमें अनेको
विद्यार्थियों को अपनी ओर से सब खर्च देते थे।’
ओहि
स्कूलमे मैथिल छात्रक निःशुल्क शिक्षाक व्यवस्था छलैक। खगल आ मेधावी छात्रक आवास
आदिक प्रबन्ध राजक दिशिसँ होइत छल। बंगालमे रहितो हुनक समस्त पारिवारिक सम्बन्ध आ
सरोकार मिथिलासँ छल। ते ँ ओतय मैथिल छात्रक संख्या पर्याप्त रहैत छल। ओ मैथिल
छात्र संघक स्थापना कएल जकर नियमित बैसार होइत छलैक। ओहि बैसारमे मैथिली निबन्ध
तथा कविता पाठ होइत छल। मिथिलासँ गेल
ओहने
एक छात्रमे छलाह काशीनाथ झा जे पछाति मैथिलीक कवि कथाकारक रूपमे ख्यात भेलाह। पं.
काशीनाथ झा जखन मैट्रिक पास कए लेलनि तँ ओही स्कूलमे हुनक नियुक्ति एक शिक्षक
रूपमे भए गेलनि। तदुपरान्त,
ओ अपन अनुज काञ्चीनाथ झा (डा. काञ्चीनाथ झा ‘किरण’)
के ँ गामसँ आनि लेलनि। किरणजी ओतहिसँ मएट्रिक एवं राजा टंकनाथ
चौधरीक आर्थिक सहयोग पाबि कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ इण्ट्रेंस
पास
कएलनि। एहि तथ्यके ँ स्पष्ट करैत राजा टंकनाथ चौधरीक पुत्र रुद्रनाथ चौधरी
(देहावसान, 2004 ई.) लिखैत छथि-
At
Ramganj, he established a High School in 1915, in the memory of their father.
The Maithil Students from
Mithila
area were taught free of tuition fee, they were allowed free food and seats in
the Maithil Hostel of the school.
Poor
students of the area were also allowed teaching free of fees. A Maithil Chhatra
Sangha was established in which
essays
and verses were read. Late Pandit Kashinath Jha, who passed Matriculation from
there was appointed as a teacher
of the
school. Pt. Kashinath Jha was the elder brother of Mithila's eminent writer and
thinker, Dr. Kanchinath Jha
"Kiran",
took great interest in Maithili literature. The students were encouraged to
write more and more and read them in
the weekly
gathering. Movements for Mithilakshar type was done. (चेतना समिति
स्मारिका, 1988)।
राजा
टंकनाथ चौधरीक व्यक्तित्व सहज छल। ओ मिलनसार छलाह। पैघ-छोटक भेदभाव मनमे बिना अनने
लोकसँ भेंट करैत छलाह। हिनक व्यक्तित्वक एहि विशेषताक प्रसंग ‘मिथिला मिहिर’
लिखने अछि - ‘हमारे राजा साहब बी.ए. होने के
अतिरिक्त सुवक्ता, कार्यकुशल, अथक
परिश्रमी, निरभिमानी, शिक्षाप्रेमी,
तथा मिलनसार थे। आप बड़े से बड़े और छोटे से छोटे तक में दिल खोलकर
बातें करते थे।’ हुनक पुत्र
रुद्रनाथ
चौधरीक निम्नलिखित कथनसँ सेहो एहि बातक पुष्टि होइत अछि। ओ लिखैत छथि -
When at
Ramnagar, he used to sit in the maidan in front of the palace for about one and
half hour with some
officials
and relations. where the general public and tenants were free to talk to him
about their grievances, if any, which
were noted
down and redressed as far as possible. (चेतना समिति स्मारिका,
1988 ई.)।
राजा
टंकनाथ चौधरी उदार प्रवृतिक लोक छलाह। मिथिला मिहिरसँ स्पष्ट होइछ हिनक एहि
उदारताक प्रतिकूल प्रभाव पड़ैत छलैक तथा ओ कर्जमे भए गेल छलाह। तथापि सामाजिक
कार्यसँ किंचितो विमुख नहि भेलाह। राजा साहबक उदारताक एक ज्वलन्त उदाहरण अछि जे 1926 ईमे सितावगञ्ज आ
ठाकुरगाँव बाटे दिनाजपुरसँ रूहिया धरि जखन रेललाइन बनय लागल, जे हुनक जमीन बाटे जाइत छल, तँ राजा टंकनाथ चौधरी
रेलवेके ँनिःशुल्क जमीन दए देलथिन। राजा टंकनाथ चौधरी दिनाजपुर जिला वोर्डक
गैर-पदाधिकारी अध्यक्ष तथा दिनाजपुर म्युनिसिपल बोर्डक 15
वर्ष धरि अध्यक्ष रहलाह। बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिलक गठन भेला पर ओकर सदस्य
निर्वाचित भेलाह। हिनक अवदानक प्रसंग मिथिला मिहिर लिखैत अछि - ‘बहुत दिनों तक आप दिनाजपुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चेयरमैन रहे और इस अवधि
में आपने अच्छे-अच्छे काम किये जिनके लिये दिनाजपुर जिला बोर्ड में आज भी आप का
नाम आदर के साथ लिये जाते हैं। आजकल आप कदमा थाना की ओर से पूर्णिया जिला बोर्ड
में मेम्बर थे। और बंगाल कौंसिल का भी मेम्बर थे। बंगाल के भूतपूर्व गवर्नर ने
आपकी उदारता और शिक्षा-प्रेम की कई वार प्रशंसा की थी। और ‘राजा
साहब’ की उपाधि से सम्मानित किया। रुद्रनाथ चौधरी लिखल अछि -
Being
pleased at his devotion for public welfare the British Government honoured him
with the title of Raja on
Nov. 25,
1925 in a Durbar held by the Governor of Bengal.
राजा
टंकनाथ चौधरी नित्यपूजा आ देवीभागवत पाठ कएल करथि। किन्तु दोसर धर्मक प्रति
असहिष्णु नहि छलाह। 1926 ई.मे कलकत्ताक संगहि आनोठाम जखन साम्प्रदायिक दंगा पसरि गेलैक एवं ओकर
पसार दिनाजपुर धरि होअए लागल तँ राजा साहेब तत्काल पण्डित एवं मौलवीकेँ आमन्त्रित
कएल। दूनू गोटाके ँ एकठाम बैसाय धर्मशास्त्र पर प्रवचन दिआओल। ई कायक्रम एक मास
धरि चलल छल। राजा साहबक एहि प्रयाससँ धार्मिक साहिष्णुता बढ़ल एवं शान्ति व्यवस्था
भंग नहि भेलैक। ओतय कटिहार हाट लगाओल, जे अद्यावधि लागि रहल
अछि। रामगञ्जमे ओ भगवतीक एक मन्दिरक निर्माण कएल। भारत विभाजनक उपरान्त 1951 ई. मे राजा टंकनाथ चौधरीक पुत्र आदि पूर्वी पाकिस्तानसँ जान बचाए पडे़लाह,
ताधरि ओतय दुर्गापूजा खूब धूमधामसँ होइत छल। राजा टंकनाथ चौधरी
दुर्लभ पुस्तक तथा पाण्डुलिपिक संग्रह कए विशाल पुस्तकालयक स्थापना कएने छलाह। जखन
हुनक एक प्राध्यापक सेवानिवृतिक उपरान्त बिलेंत जाए लगलथिन तँ हुनक समस्त संग्रह
राजा साहेब कीनि लेल। रुद्रनाथ चौधरी लिखल अछि - Huge collections
of
manuscripts on Talpatra, Bhojapatra and thick papers on different subjects,
collected by his ancestors were being
transcribed
by eminent pandits for years. He spent hours in reading books in night.
राजा
साहब संगीतक बड़ प्रेमी छलाह। बेतिआक संगीतकार मल्लिक लोकनि हुनक दरवारमे अबैत रहैत
छलथिन। शतरंज एवं फोटोग्राफी हुनक हॉबी छल। छात्र जीवनमे फुटबाल, हेलब एवं घोड़सबारी
प्रिय छलनि। ओ एक कुशल शिकारी सेहो छलाह। जखन कोनो सरकारी अमला अथवा बंगालक गर्वनर
अबैत छलथिन तँ हुनक सम्मानमे विशेष शिकार अभियान होइत छलैक। एहि लेल हुनका अपन
जमीनदारीसँ बाहर नहि जाए पड़ैत छलनि।
मिथिला
मिहिर एवं मिथिलामोदक ‘मैथिल महासभा’ विषयक रिपोर्ट एवं समाचारमे राजा
टंकनाथ चौधरीक उल्लेख निश्चित रूपसँ भेटैत अछि। एहिसँ स्पष्ट होइछ जे ओ मैथिल
महासभाक अधिवेशनमे नियमित रूपसँ सम्मिलित होइत छलाह। ईहो स्पष्ट होइछ जे ओ
समाजोपकारी, सुधारात्मक प्रयास एवं प्रस्तावक समर्थक छलाह। ओ
एक नीक वक्ता छलाह जे मिथिला मोद (उद्गार, 61 1911 ई.) मे
मैथिल महासभाक तेसर
अधिवेशनक
(3-5
नवम्वर 1911 ई. दरभंगा)क प्रकाशित निम्नविवरणसँ स्पष्ट होइत।
ओ लिखैत अछि - द्वितीय दिन (4 नवम्बर 1911 ई.) 2 बजे श्रीमान कनिष्ठ रजौराधीश टंकनाथ चौधरी (B.A.) महोदयक सुन्दर वक्तृता भेल। सर्वज्ञात अछि जे राजा टंकनाथ चौधरी कलकत्ता
विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेशक लेल उदारतापूर्वक दान देल। किन्तु मैथिली
भाषा-साहित्य एवं संस्कृतिक विकास एवं संरक्षणक क्षेत्रमे हुनक इएह टा अवदान नहि
अछि। जखन ओ अपन पिताक नामपर स्कूल स्थापित कएल तँ ओहिमे मैथिल छात्रक लेल विशेष
व्यवस्था छल। मैथिल छात्र संघक तत्त्वावधानमे रचनाक पाठ कराए ओ सर्जनात्मक
प्रतिभाकेँ प्रोत्साहित करैत छलाह। मिथिलाक्षरक संरक्षणक लेल प्रशिक्षण अभियान
चलौने छलाह। ओहिना जखन मैथिल महासभामे वा ओकर बाहर समुद्र यात्रा पर घर्मथन होइत
छल तँ एहि विषयक निबन्ध लेखन प्रतियोगिता आयोजित कराओल। एहि सम्बन्धमे पण्डित
जानकीनाथ झा, व्याकरणतीर्थक नामसँ एक निवेदन मिथिलामोद,
उद्गार - 61, शाके 1833, सन 1319 सालमे प्रकाशित अछि। निवेदन अछि - 50 टाका पुरस्कार श्रीमान रजौराधीशसँ - आधुनिक कालमे मैथिल ब्राह्मणके ँ
उन्नत्यर्थ विलायत जाएब अनुचित - एतद्विषयमे मिथिला भाषा मध्य जे मैथिल ब्राह्मण
विद्वज्जन प्रमाण सहित सर्वोत्तम लेख लिखताह, तनिका 50 टाका मूल्यक पदक (मेडल) देल जैतन्हि।’ लेख 15 दिसम्बर 1911 ई. सँ पूर्व निवेदकके ँपठा देबाक
अनुरोध अछि। समुद्र यात्राक पक्ष-विपक्षमे मिथिलामोद(1911ई.)
मे अनेक लेख प्रकाशित भेटैत अछि। सम्भव थिक जे ओही प्रतियोगिता हेतु लिखल गेल हो।
समाज सुधारक संग मातृभाषा मैथिलीक विकासक प्रति राजा
साहब
कतेक साकांक्ष छलाह, से एहि निबन्ध प्रतियोगिताक आयोजनसँ स्पष्ट होइत अछि। समस्यापूर्ति
प्रतियोगिता तँ होइत छल, मुदा मैथिलीमे निबन्ध लेखन
प्रतियोगिताक आयोजन प्रायः सर्वप्रथम राजा टंकनाथ चौधरी, सएह
आरम्भ कराओल। राजा टंकनाथ चौधरी महाराज रमेश्वर सिंहक प्रियपात्र छलाह। ओ समय-समय
पर मिथिला, मैथिल एवं जमीनदारीक समस्यापर विचार करैत रहैत
छलाह। ओ जखन कोनो गम्भीर समस्याक समाधानक लेल गवर्नर वा वायसरायसँ भेंट करबाक हेतु
जाइत छलाह, तँ राजा टंकनाथ चौधरी
हुनक
संगमे रहैत छलथिन। आर जखन हुनक देहावसान भेलनि तँ महाराज रमेश्वर सिंह राजा टंकनाथ
चौधरीके ँ Mouthpicee of
North Bengal कहि अपन शोक संवेदना व्यक्त कएल। एहन मातृभाषा अनुरागी
राजा टंकनाथ चौधरीक, मात्रा 44 वर्षक
अवस्थामे जेठ पूर्णिमा रवि, प्रातः काल 3 जून 1928 केँ देहान्त भए
गेलनि।
राजा साहबक रोग आ देहावसानक प्रसंग मिथिला मिहिर, लिखैत अछि - ‘बहुमूत्र
रोग से ग्रस्त रहने पर भी स्वास्थ्य, सबल और प्रभावशाली जान
पड़ते थे। मृत्यु से कई दिन पहले उसी के उपसर्ग से कुछ अस्वस्थ्य हो गये, जिसके निवारणार्थ दिनाजपुर में ‘इन्जकशन’ कराये! काल बली था, बुरा होने वाला था; इन्जकशन से फायदा नहीं पहुँचा, उलटे बाँह फूल गया,
चित्त विकल हुआ, दिनाजपुर से कलकत्ते आये,
बड़े-बड़े डाक्टरों ने देखा, दबा की; परन्तु निष्ठुर काल के आगे किसका चलता है, उसका दबा
कौन कर सकता है? गत रविवार ता. 3 जून,
1928 ई. के भोर में दुखी परिवारों को रोते हुये छोड़ कर इस संसार से
सदा के लिये चल बसे!’
राजा
साहब पुत्रा नवालिग छलथिन। परिणामतः फेर हुनक जमीनदारी कोर्टस आफ वार्डक अन्तर्गत
चल गेल। मैथिलक एक केन्द्र समाप्त भए गेलैक। एहि प्रसंग रुद्रनाथ चौधरी लिखने छथि
- With his passing away
hundreds of relations, employees and dependents became unsettled, and the
Estate being
taken
over by the court of wards, they all went away to other places or their home.
The family shifted to Calcutta for the
education
of the children.
बंगलादेश
निर्माणक बाद बनल सौहार्दपूर्ण वातावरणमे रजौरक एक विश्वासपात्र दुर्गागंज आबि
राजा साहेबक पुत्र (देहावसान 2004 ई.)सँ घूमि चलबाक अनुरोध कएने छलनि जे बंगबन्धु मुजिवुर
रहमानक हत्याक उपरान्त भारत विरोधी वातावरणमे विलीन भए गेल। राजा साहेबक पुत्रबधु
जे हुनक नवजात पौत्र (प्रो. जी.एन. चौधरी, पूर्व अध्यक्ष,
स्नातकोत्तर समाजशास्त्रा विभाग, ल.ना.मि.वि.वि.
दरभंगा) के ँ अपन आंचरमे नुकाके ँ पड़ाएल छलीह, अपन आँखिमे
मैथिली भाषा-साहित्य एवं संस्कृतिक प्रभावशाली केन्द्रक उत्कर्ष आ त्रासदीक
चित्रके ँ आँखिमे जीवन भरि (देहावसान 2009 ई.) जोगौने रहलीह।
एहि संग राजा साहेबक परिवारक भावात्मक सूत्रा रामगञ्जसँ भङ्ग भए गेलैक। जेना
रुद्रनाथ चौधरी लिखल अछि जे राजा साहबक देहावसानक बाद कतेको मैथिल परिवार आश्रय
विहीन भए गाम वा अन्यत्र चल गेलाह, ओहिमे काशीनाथ झा वा
कांचीनाथ झा ‘किरणे’ टा नहि छलाह,
कोइलख ग्रामवासी पण्डित गोवर्द्धन झा, प्रसिद्ध
गोनू बाबू सेहो छलाह। गोनू बाबू पुत्र श्री सुधीर कुमार झा, आइ.पी.एस.
(सेवानिवृत्त) जखन 2006 ई. मे अपन पिताक आश्रय स्थलक
अन्वेषणमे रामगञ्ज बंग्लादेश अपन पुत्रक संग पहुँचलाह तँ ओतय मन्दिर देखल। हुनक
कलमबाग देखल। खेत-पथार देखल, जाहि पर हुनक मैनेजरक सन्तानक
गौर-कानूनी अधिकार छैक। आ बिना केबार-खिड़कीक ठाढ़ लूटाएल एवं खण्डहर बनल राजा साहबक
महल देखल। राजा साहबक लुटाएल एवं खण्डहर भेल महल प्रत्येक अनुरागीके ँ मैथिली भाषा
साहित्यक विकास-गाथा ठोहि पारि कहैत रहैत अछि। राजा साहबक देहवसान पर शोक व्यक्त
करैत मिथिला मिहिर लिखैत अछि - ‘आँखें भर आती है, कलेजा फटा जाता है, लेखनी थर्रा रही है। न रोये बिना
कलेजा हल्का नहीं होता, इसलिये मेरा लिखना रोना समझिये। काल!
तूँ सचमुच काल ही नहीं, क्रूर और निष्ठुर भी हो। अभी पण्डित
राधाकृष्ण झा की मृत्यु शोक जरा भी मलिन होने नहीं पाया था कि हमारे समाज गगन के
ज्वलन्त नक्षत्रा राजा टंकनाथ चौधरी बी.ए. को उठा ले गया।’ किन्तु
जाधरि मैथिली भाषा साहित्य रहत एवं विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेशक सन्दर्भ
जखन-जखन आओत, राजा टंकनाथ चौधरीक नाम पहिल श्रेणीक मातृभाषा
अनुरागीक रूपमे आदरक संग स्मरण कएल जाइत रहत।
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