गोविन्द झा
(नाटक) गाम जएबै गाम जएबै गाम जएबै ना
(आरम्भ 23.09.2012 ---- समाप्ति 17.10.2012)
पहिल दृश्य
[बूढ़ा खाट पर बैसल छथि। दूर सँ हल्ला सुनि पड़ैत अछि
---पकड़- पकड़। दौड़-जैड़। कोम्हर रौ। हे
ओम्हर गाछी दिस। बूढ़ी दौड़ि कें अबैत छथि।]
बूढ़ी – अएँ, ई कथीक हल्ला भए रहल छै ?
बूढ़ा – के कहत कथी।.
तान्त्रिक – (बाहरहि सँ) इएह हम कहब जे कथीक हल्ला
थिकैक।
बूढ़ी – आउ-आउ। हमरा तँ बड़ डर भए गेल।
[ तान्त्रिक प्रवेश कए कुरसी पर बैसैत छथि ]
तान्त्रिक – कोनो डरक बात नहि। एहि गाम मे तँ
कोनो-ने-कोनो हल्ला-फसाद होइतहि रहै छै।
बूढी – एखन कथीक हल्ला भेलै।?
तान्त्रिक – फटफटिआ पर सबार चारि-पाँच टा छौंड़ी सब
हुड़हुड़ करैत अएलै आ ओ रंगदार छौंड़ा रघुबिरबा अछि ने तकरा पकड़ि कें लए गेलै।
बूढा – अपहरण ?
तान्त्रिक – नहि, अपहरण नहि।
बूढ़ा – तखन की?
तान्त्रिक – एकटा छौंड़ी औकरा सँ बिआह करतै।
बूढी – बलजोरी ?
तान्त्रिक – हँ, सएह बूझू।
बूढ़ा – विचित्र बात।
तान्त्रिक – आजुक युग मे कोनो बा त
विचित्र नहि। सुनू, बुझा दैछी। आजुक पढुआ छओंड़ा सभ हठे बिआह
नहि करत। माए-बापक कथा के सुनैए। बाप एक सँ एक उत्तम
कन्या तकैत रहथु, बेटा कें कोनो मतलब नहि। जखन जबानी जोर
मारतै तँ बाट-घाट मे लुचपनी करैत फिरत।
बूढ़ा – ठीके कहैछी अहाँ।
तान्त्रिक – छौंड़ा कें एहि मे कोनो खतरा नहि। खतरा छै
खाली छौंड़ी कें। तें छौंड़ी सभ एकटा दल बना कए अभियान चलओलक अछि जे एहन-एहन
छुट्टा कुकुर सब कें एक-एक लड़ाकू छौंड़ी लगा नाथि देल जाए जे जीवन भरि टीक पकड़ने
रहैक।
बूढ़ा – ओ, आब बूझल। एही अभियान मे एखन ई
रघुबिरबा पकड़ाएल। उचित सजाए भेटलैक।
बूढ़ी – की करतै ओकरा?
बूढ़ा – नहि बुझलिऐ? आर की, मन्दिर मे लए जा कए बिआह करा देतै।
तान्त्रिक – अस्तु, छोड़ू अनकर
गप। एखन हम एकटा शुभ संवाद लए आएल छी।
बूढ़ा – केहन संवाद ?
तान्त्रिक – हमरा हाथ मे एकटा एहन वस्तु आएल अछि जे
पाबि कें अहाँ धन्य-धन्य भए जाएब।
बूढ़ा – एहन कोन वस्तु से तँ कहू।
तान्त्रिक – एक टा कन्यारत्न। परिचय सुनब?
बूढ़ा – ( गम्भीर साँस लए ) कन्यारत्न. (गुम)।
तान्त्रिक – (प्रतीक्षा कए) एना गम्भीर किएक भेलहुँ ?
बूढ़ा – हमर सब हाल अहाँ कें बुझले अछि, तखन कहू
की।
तान्त्रिक – तैओ एक बात बूझि लिअ। गाम मे एखन जे घटना
भेल अछि से गामहु सँ बेसी विदेश मे भए रहल अछि, तरीका भनहि
किछु भिन्न हो।
बूढा – जनै छी।
बूढ़ी - जनै
छी ताहि सँ की। किछु सोचहु पड़त।
तान्त्रिक – सोचल जाए। एखन आज्ञा हो। फेर भेट होएत।
[ तान्त्रिकक
प्रस्थान।]
बूढ़ा – सुनलहुँ?
बूढ़ी – सुनब की कपार। हम कहैत-कहैत हारि गेलहुँ जे बिमारिऔक लाथें
बौआ कें बजा लिऔ, नहि तँ पछताएब।.
बूढ़ा – की हैत बजा कए। अएले तँ छल
परुकाँ कि तेसरुकाँ। की कहलक से मन पारू।
बूढ़ी – मने अछि। बिसरत कोना। मुदा
एक बेर जे हारए से कि फेर....?
बूढ़ा – चुप रहू। हमर टूटल मन कें आओर नहि तोड़ू। जेहन हमर-अहाँक मन
तेहन आजुक जनमल ओकर मन कोना हेतै। हम-अहाँ चुप्पे
रही सएह उचित।
बूढ़ी – अहाँ तँ कोनो बात मे तेना जिद पकड़ि लै छी
जे हमरा किछु नहि
फुरैए। जँ एक बेर बजाइए लेबै तँ कोन अनर्थ ...।
बूढ़ा – हँ, भए जएतै अनर्थ। अहाँ नहि जनै छी जे
आइ-काल्हि नीक नोकरीक की हाल छै। केहनो जरूरी काज रहए, जँ छुट्टी लेलहुँ तँ बूझू नोकरी गेल। हम अपन मोह-ममता देखू कि बेटाक
कल्याण। अपना भरोसें जिबैत रहलहुँ, अपना भरोसें जिबैत रहब। अहाँ घबराउ नहि।
बूढ़ी – जहिना अहाँ कें बेटाक नोकरीक चिन्ता अछि तहिना तँ हमरा अहाँक
बिमारीक चिन्ता।
बूढ़ा – हम ठीक भए रहल छी। कोनो चिन्ता नहि।
[ अचानक डाक्टरक प्रवेश ]
बूढ़ा – आउ-आउ, बैसू। बुझबिऔन हिनका।
डाक्टर – (बूढ़ीक प्रति) ठीके कहलनि जनार्दन बाबू, कोनो चिन्ता नहि। क्रमशः
निकें भए रहल छथि। (आला लगाए देखि कें) ठीक छी। चित्त प्रसन्न राखू। एखन आज्ञा
दिअ। मरीज सब बाट तकैत हैत। (बूढ़ा उठए लगैत छथि) अहाँ उठू नहि, बैसले रहू। फेर आएब दबाइ लेने। (जाइत छथि)।
बूढी – (ठाढि भए अरिआतैत) एक कप चाहो नहि देलहुँ।
डाक्टर – (बूढ़िक कान लग) हृदय किछु कमजोर भए गेल छनि। हिनका हरदम
प्रसन्न रखबाक प्रयास करू। हम तकर उचित उपाय कए रहल छी।
बूढ़ी - कोन उपाए ?
डाक्टर – से एखन नहि कहब।
पछाति अपनहि बूझि जएबैक।
[ डाक्टर जाइत छथि। बूढ़ी घुरि कें बूढ़ा
लग आबि कें बैसैत छथि।]
बूढ़ी – (बूढा कें माथ पर हाथ देने
देखि) एना माथ पर हाथ किएक देने छी ?
बूढ़ा – नहि पूछी सएह नीक। जँ मनक बात कहब तँ
अहूँ हमरहि जकाँ माथ पर हाथ देब।
बूढ़ी – ई कोना हैत जे अहाँ कनैत रही आ हम हँसैत रही ?
बूढ़ा – अहूँ कनबा मे संग देबहि चाही तँ सुनू छाती कें मजगूत कए कें।
(कनेक रुकि कें) एखन जे ओ घटना सुनल तकर की अर्थ से अहाँ नहि बुझलिऐ। सुनू हम बुझा
दै छी हुनक पेटक बात। पहिल बात ई जे ओ हमरा चेतओलनि, जँ हम
बेटा कें बजाए चटपट ओहि कन्यारत्न सँ विवाह नहि कराए देबैन तँ गामक वा विदेशक
छौंड़ी सभ ओएह हाल करतनि जे रघुबिरबाक
कएलक।
बूढ़ी – ओ कोन बेजाए कहलनि।
बूढ़ा – बात तँ बड़ सुन्दर, मुदा एना धमकी दए डर
देखाए कुटुमैती होअए ? आ असल बात ई जे की बेटा अहाँक बात मानि कें दौड़ल आओत आ
अहाँक बात मानि केँ ओहि कन्यारत्न केँ अपन अर्धांगिनी बनाए लेत ?
बूढ़ी – तँ साफ-साफ जबाब दए दिऔन। एहि लेल मथा हाथ किएक ?
बूढ़ा – हमरा मन कें अहाँ जतेक खोधब ततेक नव-नव राक्षस बहराइत जाएत।
हमरा तँ लगैए जे अहाँक बेटा ओतहि विवाह कए चुकल अछि। तहिं दू-तीन बरख सँ आबि नहि
रहल अछि। तेसराँ आएल रहए तँ अहाँ बड़ आग्रह कएने रहिऐक, मुदा
टस सँ मस नहि भेल। किएक ?
बूढ़ी – अहीं कहू किएक।
बूढ़ा – हमरा तँ लगैए जे ता ओ विवाह कए चुकल छल।
बूढ़ी – अहाँ तँ अनेरे किदन-कहाँदन सोचैत रहै छी। छोडू ई सभ चिन्ता।.
चलू भोजन
करए।
[ दूनूक प्रस्थान ]
दोसर दृश्य
[ ड्रॉइङ रूम मे एक उच्च अधिकारी आदित्य सिंह, हिनक यूरोपिअन पत्नी जेन क्रिस्टल उर्फ प्रभाक संग सोफा पर बैसल आ पाँच
वर्षक बालक वरुण फर्श पर खेलाइत।]
आदित्य – (मोबाइल कान मे लगबैत) आदित्य स्पीकिङ।
मोबाइल – हम अपनेक गाम सँ बाजि रहल छी।
आदित्य – की बात ?
मोबाइल – अपनेक पिता बाबू जनार्दन सिंह....।
आदित्य – कुशल छथि ने ?
मोबाइल – हँ, जिबैत छथि। मुदा स्थिति नीक नहि
छनि। अपनेक माता बेर-बेर कहैत रहलथिन जे बौआकें बजाए लिऔक। मुदा ओ नहि बजओताह।
अपने यथासंभव शीघ्र आएल जाए।
आदित्य – पिताजी अपने किएक नहि सूचित कएलनि ?
मोबाइल – पुछै छिअनि तँ कहै छथि, अपना भरोसें
जीलहुँ, अपनहि भरोसें जिअए दिअ। एक चिकित्सकक रूप मे हम अपन कर्तव्य
बूझल जे अपने कें सूचित कए दी।
आदित्य – ( मोबाइल कात कए पत्नीक प्रति) सुनलहुँ ? कनिआँक आँखि मे नोरे ने, पड़ोसिनि भोकारि पारथि। (प्रतिक्रिया जनबाक हेतु प्रभाक मुँह
निहारै छथि)।
प्रभा – हमर मुँह की निहारै छी। चलबाक इन्तिजाम
करू। हमर फादर इन लॉ बड़ स्वाभिमानी आ स्वावलम्बी छथि। अन्तिमो अवस्था धरि ओ नहि
बजओताह। क्षमा करी तँ तकर कारणो कहि दी।
आदित्य – कहबाक प्रयोजन नहि। हम अपन अपराध स्वयं जनै छी। बेर-बेर बजबैत
रहलाह, मुदा.....।
प्रभा – मुदा अहाँ कें फुरसति नहि। लगैए जे अहाँ बाप केँ आगिओ
नहि दए सकब। अहाँकें कोन ? अहाँ
खूब भोगि चुकल छी माए-बापक दुलार। हम तँ ने माइक मुँह देखल
ने बापक। सुनैत रही जे अहाँक देश मे सासु अपन पुतोहुक आबेस बेटिअहु सँ बेसी करैत
अछि। इएह सोचि कें अहाँक संग धएलहुँ। मुदा अहाँ तीन वर्ष सँ ठकैत-फुसिअबैत रहलहुँ।
अहाँक दोख नहि. हमर कपारक दोख।
आदित्य – ( तेज अबाज मे ) अहीं सुनबैत रहब कि हमरो बात सुनब ?
प्रभा – ( आओर तेज अबाज मे ) नहि सुनब अहाँक बात। सुनैत-सुनैत कान
पाथर भए गेल। ( कनै छथि)।
प्रवीण – (बाहरहि सँ) ई कोन नाटक भए रहल छै. मैडम ?
आदित्य – प्रवीण ,
आबह-आबह।
प्रवीण – (प्रवेश कए सविस्मय) अएँ. श्रीमतीजीक आँखि मे नोर ?
आदित्य – ई एकटा विकट समस्या ठाढ़ कए देलनि अछि।
प्रवीण – कोनो समस्या नहि। मैडम, एना नोर ढारने ई
पाथर नहि पसिजत। पहिने नोर पोछू आ मन प्रसन्न करू। तखन देखू जे कोना ई मिस्टर
सोल्यूशन छन भरि मे अहाँक सभ समस्याक समाधान कए दै छथि। (आदित्य दिस
आङुर देखाए) एकरा कानि-खीजि कें अहाँ नहि सोझ कए सकै छी। ( आदित्य सँ ) हओ, हमर कहल मानह आ तुरन्त गाम जएबाक तैआरी करह। एकसर नहि, तीनू एक संग।
आदित्य – मुदा छुट्टी ?
प्रवीण – मूर्ख छह तों। हौ, आइ-काल्हि नोकरी
मे छुट्टी देल नहि जाइ छै, छुट्टी लेल जाइ छै। केवल सूचना दए निकलि
पड़ह। हम छी ने, कोनो खतरा नहि। छुट्टीक मंजूरीक प्रतीक्षा
करबह तँ बापक सराधो नहि कए सकबह।
आदित्य – एकटा आओर विकट समस्या अछि तोहर मेम साहेब कें लए। कट्टर पुरना
विचारक लोक हमर माता-पिता हिनका घरो नहि टपए देथिन।
प्रवीण – हओ, एतेक दिन संग रहलह तैओ तों चीन्हि
नहि सकलह हमर मेम साहेब कें। जे तोरा सन बेकूफ कें नाथि देलनि से अबस्से छन भरि मे
सासु-ससुर कें रिझाए लेतीह। की से आत्मबल अछि ने, मेम साहेब ?
प्रभा - पुछलहुँ
तँ जड़ि सँ सुनू। हमरा सन अभागलि दोसर नारी नहि भेटत। हम ने माए कें देखलहुँ ने
बाप कें। एकटा अशरण वृद्ध शरण देलनि। जखन हिनका सँ विवाह भेल, मनहि मन प्रसन्न भेलहुँ जे आब सासु-ससुर सँ ओ दुलार भेटत जे माए-बाप सँ
भेटैछै। एही लेल भारतीय पड़ोसी सँ साड़ी पहिरब सिखलहुँ। एही लेल बड़ जतन सं मैथिली
सिखलहुँ।
प्रवीण – बाह. अहाँ तँ मैथिली बजबा मे प्रवीणहु सँ प्रवीँण भए गेलहुँ।
प्रभा – अहाँक मित्र कें अङरेजी सँ बड़ अनुराग।
प्रवीण – तखन सिखलहुँ कोना ?
प्रभा – ओ अङररेजी बाजथि तँ हम कान मूनि ली। एखनहु से जिद ठनने छी।
मुदा....।
प्रवीण – आब मुदा की ?
आदित्य – हम एकसर तँ जएबा लेल तैआर छी, मुदा
हिनका लए जएबा मे एकटा बाधा अछि।
प्रवीण – केहन बाधा ?
आदित्य – हम विवाह कएलहुँ से बात माए-बाप सँ आइ धरि छिपओने रहलहुँ। तखन
कोना हिनका लेने....?
प्रवीण – हम तोहर मनक सभ बात जनैछिअहु। तों बापक तीन–तीन टा बड़का अपराध कएने छह। पहिल – तीन बरख सँ
माए-बाप कें मुह नहि देखओलह। दोसर – चुपेचाप विवाह कए लेलह।
तेसर – इसाइ कन्या सँ विवाह कएलह।
प्रभा – ठीक कहैछी अहाँ। एही लाजें...।
प्रवीण – तों पढ़ि-लिखि कें लोढ़ा भए गेलह। हओ, जनै
नहि छह, सभक बाप धृतराष्ट्र होइछै, पक्का
धृतराष्ट्र। लाख अपराध माफ। तखन डर कोन ? बड़ क्रोध हेतनि त कहथुन, कान पकड़ि कें दस
बेर उठह-बैसह। बस, सभ क्रोध निपत्ता।
वरुण – ( खेलाएब छोड़ि कान पकड़ि कें उठब-बैसब सुनि कें स्वयं करैत )
डैडी, अहूँ एहिना करू ने। (हाथ पकड़ि घिचैत अछि। आदित्य संग
दैछथिन।)
प्रवीण – बाह रे बौआ, बाह ! एक्सेलेन्ट ! देखह, हओ. बापक हृदय केहन हइछै। एहिना तों बापक
आगाँ कान पर हाथ देने ठाढ़ भए जएबह कि बस, आनन्दे आनन्द। (प्रवीण
सँ) बाउ. तों सब गाम जएबह।
वरुण – सत्ते गाम जएबै ?
आदित्य आ प्रभा – हँ, सत्ते गाम जएबै।
[ वरुण नाचि-नाचि गबैत अछि। ताहि मे माए, बाप आ प्रवीण तीनू संग दैत छथिन ]
गाम
जएबै गाम जएबै जाम जएबै ना
दही
खएबै चूरा खएबै आम खएबै ना
गाम जएबै गाम जएबै जाम जएबै ना
दादा
के देखबै दादी के देखबै भैया के दखबै ना
गाम
जएबै गाम जएबै जाम जएबै ना
प्रभा – बस, नाच खतम। आब चलैचलू डिनर मे।
[ सभक प्रस्थान ]
तेसर
दृश्य
[ पुरान-सन पक्का मकान। नमहर बरंडा। बामा
कात एक कोठली। बरंडा पर खाट, ताहि पर रोगग्रस्त बूढ़ा जनार्दन
ठाकुर पड़ल। बूढ़ी पाएर जँतैत। खाटक एक कात किछु कुरसी ]
बूढ़ा – अहाँ किछु कहए लागल रही ?
बूढ़ी – हँ, ठीके।
बूढ़ा – कहलहुँ नहि .
बूढ़ी – हँ, मुह सम्हारि लेलहुँ। मनक बात मनहि
राखल।
बूढ़ा – से किएक ?
बूढ़ी – कहैत-कहैत थेथर भए गेलहुँ। सभ बेकार। तखन फेर कहि कें कोन फल ? जेहने बाप चंठ तेहने बेटा।
बूढ़ा – (उठि कें बैसैत क्रोध सँ) हे, हमरा जे
कहब से कहू, हमर बेटा चंठ नहि अछि। कोना बुझाउ अहाँ कें जे
नीक नोकरी केहन वस्तु थिकैक। की हमर मुह आ अहाँक मुह देखैत रहने ओकर मुह भरतै ?
बूढ़ी – हमहूँ कोना बुझाउ अहाऎ कें। जेना अहाँ कें बौआक नोकरीक चिन्ता
अछि तहिना तँ हमरहु अहांक प्राणक चिन्ता।
बूढ़ा – देखू, पाँच-पाँच टा डाक्टर-वैद्य
तत्परतापूर्वक इलाज कए रहल छथि। हम स्वस्थ भेल जा रहल छी। तखन कोन चिन्ता ?
[ वाम दिस सँ आदित्य, प्रभा आ वरुणक
प्रवेश। तीनू अलक्षित रूपें कात मे ठाढ़ छथि। ]
आदेत्य – (कातहि सँ) इएह, इएह थिक हमर घर।
बूढ़ी – (अबाज सुनि कें झटकारने आगाँ बढ़ैत कचकाए) अएँ, के ? बौआ ? आबि गेल, आबि गेल हमर बौआ !
बूढा – (हड़बड़ाए उठि कें दौड़ैत) अएँ, अचानक
आबि गेल !
आदित्य – बाबूजी, बाबूजी, एना
नहि दौड़ू। खसि पड़ब। (बाँहि पकड़ि कें खाट पर बैसाए पिता आ माता कें प्रणाम करैत
छथि) ।
बूढ़ा – (माथ पर हाथ दए पँजिअबैत) जहाँ रहह, निकें
रहह।
बूढ़ी – जुगजुग जीबह, निकें रहह।
प्रभा आ वरुण – (दूरहि सँ कर जोड़ि कें) प्रणाम बाबूजी,
प्रणाम माताजी।
बूढ़ा – (दूनूक मुह निहारि सविस्मय) अएँ, ई के ?
आदित्य – ( अचानक बूढ़ाक आगाँ ठाढ़ भए) बाबूजी, बाबूजी,
हमरा ओहिना कान ऐंठू जेना नेना मे ऐंठै छलहुँ। ऐंठू, ऐंठू ने। (आँखि मे नोर )।
बूढ़ा – (अकचकाए) अरे, तोरा ई की मोन पड़लहु।
(मुह निहारि) अएँ, हँसीक जगह नोर किएक ?
आदित्य – अहाँ नहि ऐंठब तँ हम अपनहि ऐंठैछी।
[ आदित्य
कान ऐंठैत उठैत -बैसैत छथि। वरुण नकल करैत अछि। प्रभा पकड़ि कें कोर लए लैछथिन। ]
बूढ़ा – ( आदित्य कें पकड़ि खाट पर अपना लग बैसाए) एना नहि करह,
बाउ। बात की थिकै से कहह।
आदित्य – आइ, बाबूजी, अहाँक
आगाँ आ माए, तोरो आगाँ हम लाज-बीज कात कए अपन अपराध कबूल
करैछी आ तकर जे दण्ड हो से ......।
बूढा – पहिने ई तँ कहह जे तों कोन अपराध कएलह।
आदित्य – एक नहि, तीन-तीन टा अपराध। नम्बर एक –
तीन वर्ष सँ गाम नहि अएलहुँ। नम्बर दू – अहाँ
कें बिनु पुछनहि चुपेचाप विवाह कए लेलहुँ। नम्बर तीन – अहाँक
प्रस्तावित कन्यारत्नक उपेक्षा कए एहि क्रिश्चन कन्या सँ विवाह कए लेल। आइ अहाँ
एहि सभ अपराधक दण्ड दिअअ. हम सहर्ष भोगि लेब।
[ आदित्य, प्रभा आ वरुण तीनू कर
जोड़ने एक पाँत मे ठाढ़ होइछथि। एक मिनट सभ स्तब्ध भेल एक दोसराक मुह अपलक तकैत
छथि। ]
प्रभा – हम हिनकर पुतोहु दूरहि सँ गोड़ लगैछिऐन। ( आँजुर माटि धरि
झुकाए प्रणाम करैत छथिन)।
बूढी – (सहसा आगाँ बढ़ि कें कोर करैत) अहोभाग, अहोभाग
हमर। केहन सुन्नर पोता आ केहन सुन्नरि पुतोहु। दूधे नहाउ पूते बिआउ। (बूढ़ा सँ)
लछमी घर अइलीह। लग आबि कें आसिख दिऔन। ( प्रभा कें आशीर्वाद देबाक लेल हुनक माथ
दिस हाथ बढ़बैत लग जाइत छथि।)
प्रभा – (पाछु हटैत) हाँ-हाँ। हमरा छूबथु नहि।
बूढ़ी – ( अकचकाए ठमकि के) अएँ, से किएक ?
प्रभा – हम अङरेजक बेटी, अछोप।
बूढ़ी – (मर्माहत भए दू डेग पाछु हटैत) अएँ, मे......म !
[ बूढ़ा
अचानक बेहोस भए ठामहि पडि रहैछथि। ]
बूढ़ी – ( छाती पिटैत) दैबा गे दैबा !
प्रभा – माइ गॉड ! हमरा
सभक अबितहिं ई की भए गेलनि।
आदित्य – दीज ओल्ड फोक कुड नॉट टोलरेट आवर प्रेजेन्स। लेट अस फ्लाइ बैक
ऐज सून ऐज पॉसिबुल।
प्रभा – प्लीज हैभ पैशेन्स ए मोमेन्ट। ( बूढ़ी सँ ) माजी, लग मे कोनो डाक्टर छथि ?
बूढ़ी – हँ, लगहि मे छथि। चारिए-पाँच घर बामा
दिस।
प्रभा – हम डाक्टर कें बजा अनैछिऐन। ई पंखा हौंकैत रहथुन। किछु टोकथुन
नहि।
[ कनेक काल सभ स्तब्ध। प्रभाक संग डाक्टर अबैछथि। ]
बूढ़ी – डाकदरबाबू. देखिऔन. की भए गेलनि हिनका।
डाक्टर – घबराउ नहि। लगले ठीक भए जएतनि। (जाँच कए छाती पकड़ि कें
डोलबैत) जनार्दन बाबू, मन केहन अछि ?
बूढ़ा – ( अस्पष्ट ध्वनि मे ) म.....म, मम...ता....।
डाक्टर – की कहलहुँ ?
बूढ़ा – ध....धर...धर।
डाक्टर – डेलिमा. क्लिअर केस ऑफ डेलिमा। एक दिस ममता आ दोसर दिस धर्म –
दूनूक प्रबल आघात सहि नहि सकलाह।
आदित्य – एकर प्रतिकार ?
डॉक्टर – पहिने ई कहल जाए जे अपने के ?
आदित्य – ई हमर पिता, ई माता आ ई...।
[ तीनूक बीच नमस्कार ]
डाक्टर – तखन तँ एकर प्रतिकार अपनहि दूनूक हाथ मे अछि। खास कए अपनेक
श्रीमतीजीक हाथ मे।
प्रभा – से कोना ?
डाक्टर – ममता कें ततेक जगाउ जे ओ धर्म पर विजय पाबए। अपने कें फोन
हमही कएने रही। नीक कएल जे आबि गेलहुँ। आब कोनो चिन्ता नहि। होस आबि रहल छनि। कनेक
काल मे नॉर्मल भए जएताह। एखन आज्ञा हो।
[ डाक्टर
जाइत छथि। आदित्य, प्रभा आ वरुण फेर ओआआहिना पाँती लगाए ठाढ़
भए जाइछथि। बूढ़ी भारी दुबिधा मे पड़लि बकर-बकर पुतोहुक मुह तकैछथि। ]
आदित्य – बाबूजी होस मे आबि गेलाह । आब की कएल जाए।
प्रभा – लेट मी प्ले ए ट्रिक नाउ। ( बूढाक लग जाए कें ) बाबूजी,
आब हिनक मन
केहन छनि ?
बूढ़ा – ठीक अछि।
प्रभा – कहथु तँ, ई के थिकाह ?
बूढ़ा – बेटा।
प्रभा – हम के छी ?
बूढ़ा – हमर पुतोहु।
प्रभा – आ ई ?
बूढ़ा – ई हमर पोता।
प्रभा – हम एतेक दूर सँ किएक अएलहुँ।
बूढ़ा – अपन सासु, अपन ससुर आ अपन घर-आङन देखए।
प्रभा – से तीनू देखि लेल। आब आज्ञा हो, जाइछी।
बूढी – ( अकचकाए) अएँ, से किएक।
प्रभा – हम अछोप मेम छी। हमरा रहने हिनकर घर छूति जएतनि। (कनैत) हाए
रे हमर कपार। बड़ मनोरथ छल, नहि माए-बाप तँ सासु-ससुर सँ
माए-बापक दुलार भेटत। ......तेहन पुरुखक हाथ धएलहुँ जे सासुओ-ससुर देखि कें दूर
पड़ाइत छथि।.......हिनका लोकनिक भाखा सिखलहुँ, साड़ी पहिरब
सिखलहुँ। सब बेकार, सब बेकार।
बूढ़ी – ( दौड़ि कें जाए प्रभा कें पँजिआए आँचर सँ नोर पोछैत ) नहि
बाजह, एहन कथा नहि बाजह हमर बेटी ( मुह चूमैछथि)।
बूढ़ा – (उठि कें प्रभा कें डेन धए घिचैत) बेटी, पहिने बाप कें गोड़ लागह, तखन माए कें।
प्रभा – ( ठेहुनिआँ दए बूढ़ाक पाएर पर माथ दए) प्रणाम,बाबूजी।
बूढ़ा – (दूनू डेन पकड़ि कें उठबैत) कल्याणवती भव, सौभाद्यवती भव।
प्रभा – बाबूजी, आब ई पड़ि रहथु ( बाँहि पकड़ि
कें खाट पर बैसाए ओहिना बूढ़ी कें प्रणाम करैत छथि। छन भरि बूढ़ीक मुह निहारि कें
) मा, तों सत्ते हमरा अपन बेटी बुझैछें ?
बूढी – सत्ते नहि तँ फूसि।
प्रभा – हमरा तखन विश्वास हैत जखन तों हमर हाथक छूअल खएबें।
बूढ़ी – खोआ दे जे खोअएबाक होउ।
प्रभा – (बैग सँ टिफिन बॉक्स निकालि ओहि सँ एक-एक चमचा लए सभक हाथ मे
दैत छथि, वरुण कें भरि प्लेट ) खो दही-चूरा-आम भरि पेट।
वरुण – (खाइत आ नाचि-नाचि गबैत अछि)
गाम जेबै गाम जेबै गाम जबै ना
दही खेबै चूरा खेबै आम खेबै ना
गाम जेबै गाम जबै गाम जेबै ना
( माए-बाप कें हाथ पकड़ि कें घिचैत) प्लीज ऐकम्पनी मी ।
आदित्य – नहि मानत.। बड़ जिद्दी अचि ई छओंड़ा। ( तीनू नचैत-गबैत छथि।)
[ तान्त्रिक, जोतखी, वैद्य आ होमिओपैथक प्रवेश। नाच समाप्त कए
तीनू यथास्थान बैसैत छथि।]
तान्त्रिक – सुनल जे अपने अचेत भए गेल रही, तें हमरा तोकनि पहुँचि गेलहुँ। एतए तँ आनन्दे-आनन्द देखैछी।
बूढ़ा – ठीके छन भरि अचेत भए गेल रही। डाक्टर साहेब कहलनि, अधिक आनन्द भेला पर एना होइछै। आब ठीक छी। आनन्द कोना नहि हो। एतेक दिन पर
ई पुत्ररत्न अएताह अछि।
आदित्य – नमस्कार।
बूढ़ा – आ तनिका संग ई पुत्रवधूरत्न
प्रभा – नमस्कार।
बूढ़ा – आ तनिका कोर मे ई पौत्ररत्न।
तान्त्रिक – एना अचेत होएब नीक नहि थिक। फेर नहि हो तकर
उपाए हम कए दैछी। ( बूड़ाक माथ पर हाथ दए फुसुर-फुसर मन्त्र पढि ) बस. मा दुर्गाक
प्रसादें फेर कहिओ नहि हैत।
जोतखी – औजी, ग्रह विपरीत रहतै तँ अहाँक मा
दुर्गा की करतीह ? ग्रहक
महिमा आब बड़का-बड़का वैज्ञानिको सब मानैत छथि। मूर्छा थिक मनक रोग। मनक मालिक
थिकाह चन्द्रमा। सतत चानीक औंठी पहिरने रहू, फेर कहिओ एना नहि हैत।
होमिओपैथ – कनेक मुह बाओल जाए ( बूड़ा मुह बबैछथि, डाक्टर
चारि-पाँच गोली खसा दैछथि।)
आदित्य – अपने किछु बजलहुँ नहि?
होमि. - हमर बोलीक काज हमर गोली करैत अछि।
वैद्य – मन तँ आनन्द-आनन्द भए गेल मुदा बल ?
बूढ़ा – बल एखनहु नहि आएल अछि।
वैद्य – ( एक पुड़िआ दैत) हमर ई भीमपराक्रम रस बकरीक दूध मे घोरि तीन
दिन खाए लेल जाए। अपने भीमहि कें पछाड़ि देबनि ओहिना जेना जबानी मे पछाड़ैत रहिऐन।
आदित्य – अपने लोकनिक फीस ?
वैद्य – राम-राम! हमरा
लोकनि कारनीक ओतए कहिओ एक टुक सुपारिओ नहि लेल!
तान्त्रिक – हँ, तैओ जँ सत्कार
करबाक हो तँ मा दुर्गाक प्रसादक संग एक साँझ....।
वैद्य – धुरजी! एना
घिनाउ नहि। आब चलैत चलू एतए सँ। हिनका बेटा-पुतहु सँ गप करए दिऔन।
( सभ चिकित्सक जाइत छथि।)
आदित्य – बाबूजी, सुनल तान्त्रिक महोदयक प्रस्ताव?
बूढ़ा – वैद्यजी भनहि धुरजी कहि देथुन, हमरा तँ
बड़ आनन्द भेल।
आदित्य – से किएक?
बूढ़ा – सुनह। हमरा आशंका छल जे समाज बारि ने दिअए। समय बहुत बदलि
गेलै। परन्तु समस्या अछि जे सम्हरत कोना.? हम सब अथबल आ तों सब परदेसी।
बूढ़ी – ब्राह्मन मुह खोलि कें भात मङलनि तँ कोना नहि देबनि? जेना हैत तेना हम सम्हारि लेब।
प्रभा – गुड आइडिआ! सुनैछी
मिथिला मे खूब भोज होइए आ ताहि मे खूब व्यंग्य-विनोद. हास-परिहास होइए।
आदित्य – ठहाका पर ठहाका चलैए। जे सुनैत रही से देखिए लिअअ। ( बूढ़ीक
प्रति) माए, तों कोनो चिन्ता नहि कर। देखैत रह, आइए साँझ खन भोजक सभ सामग्री हबा गाड़ी पर आबि जाएत।
बूढ़ा – भोजक ओरिआओन पछाति, पहिने भोजनक ओरिआओन
होअओ।
आदित्य - आइ पाँचो गोटए एक संग भोजन करब। माए, तोरहु हमरा सभक
संग खाए पड़तौ।
बूढ़ी – ( विस्मय सँ दाढ़ी पर हाथ दए ) गे मैया ! एहनो कतहु भेलैये।
प्रभा – ओना नहि मानबें त हम पकड़ि कें अपना संग बैसा लेबौ।
बूढ़ा – ( बूढ़ीक प्रति ) अहाँ जाउ पूआ-पकमान छानए ।
बूढ़ी – बेटी, चल हमरा संग. तोरा अपन घर-आङन,
बाड़ी-झाड़ी देखा दैछिऔ।
आदित्य – ( विनोदक मुद्रा मे ) तोहर घर छुततौ नहि ?
बूढ़ी – छूतत किएक? लछमीक
पाएर पड़त तँ अन-धन सँ भरल-पूरल रहत।
[ बूढ़ी, प्रभा आ वरुणक प्रस्थान ]
बूढ़ा – तोंहू ओहि कोठली मे विश्राम करह गए। बाट-घाटक थाकल-ठेहिआएल
छह। हमरहु आब विश्राम करक चाही।
[ दूनूक
प्रस्थान। ]
चारिम दृश्य
[ दूनू कात
चारि-चारि कुरसी। बीच मे चौकी। एक कातक कुरसी पर तान्त्रिक आ जोतखी। शेष खाली।]
तान्त्रिक – मा दुर्गे, मा
दुर्गे। देखू तँ अशिष्टता ! अतिथि
आबि गेलाह आ घरबैआ घरहि मे सुटकल छथि।
वैद्य – औजी, ई भोज नहि थिकैक, ई थिकैक पार्टी। पार्टी मामूली लोक नहि दए सकैए। आदित्य बाबू सुट-बूट,
स्नो-पाउडर लगओने ने एक सेकेंड पहिने, ने एक
सेकेंड लेट ठीक घड़ीक सुइ पर उपस्थित भए जएताह।
तान्त्रिक – आ भानस-भात तकरो कतहु धुआँ-धुकुर नहि
देखैछिऐ।
वैद्य – बड़ भूख लागल अछि? जमाइन फाँकि कें आएल छी की? धैर्य
धरू। समय पर सभ सामग्री पहुँचि जएतै।
[ डाक्टर आ
होमिओपैथ अबैछथि आ दोसर कातक कुरसी पर बैसैछथि।]
होमिओ. – देखू तँ तमासा, एतेक दिन बापक कोनो खोजे
नहि। बाप-पुरुखाक बनाओल
मकान ढहल-ढनमनाएल जा नहल छनि तकर सुधिए नहि, आ पहुँचि गेलाह पार्टी
कए कें अपन बड़प्पन देखबए।
डाक्टर – पहुँचलाह कोना आ किएक से लग आउ, कानमे
कहैछी। हम फोन कएलिऐन जे बाप मरै पर छथि तखन अएलाह। ने बाप कें बेटा सँ मतलब,
ने बेटा कें बाप सँ। उँच्चा चढि-चढि देखा घर-घर एके लेखा। बूढ भेला
पर हमरो-अहाँक इएह दशा हैत।
वैद्य – आ पार्टी किएक भए रहल छै से बुझलिऐ ?
तान्त्रिक – हम मुह खोलि कें बजलहुँ तें।
वैद्य – मा दुर्गा अहाँ कें जीह तँ बड़ सुन्दर देलनि, मुदा बुद्धि देबा मे कने कंजूसी कएलैन। एकरा पार्टी नहि, बूढ़ाक श्राद्ध बूझू।
तान्त्रिक – धुरजी ! बापक जिबितहि कतहु श्राद्ध भेलैए?
वैद्य – जीबी तँ की-की ने देखी। आब इहो चललैए। बाप कें सन्देह जे
मुइला पर बेटा श्राद्ध करत कि नहि। बेटा सेहो सोचलथिन श्राद्ध करए फेर आबए नहि
पड़त।
तान्त्रिक – ( घड़ी देखि ) आब गप बन्द। पार्टीक समय भए
गेल। जे घड़ी ने साहेब पहुँचलाह।
[ आदित्य, प्रभा, बूढ़ा, बूढ़ी आ तनिक
कोर मे वरुणक प्रवेश। आदित्य ठाढ़ रहैत छथि, आओर सभ सोफा पर
बैसैत छथि।]
आदित्य – हम अपना दिस सँ आ पूज्य पिताजीक दिस सँ अपने लोकनिक अभिवादन आ
स्वागत करैत छी। अपने लोकनि हमर पूज्य पिताजीक प्राणरक्षा कएल तदर्थ हम अपने सभक
सदा आभारी रहब। हमरा ई जानि कें बड़ प्रसन्नता भेल जे चिकित्सा मे अपने लोकनिक
प्रवीणता आ सेवापरायणताक प्रसादें हमर ई गाम आदर्श स्वस्थ ग्राम घोषित भेल। आइ
हमरा अपने लोकनिक श्रीमुख सँ ई सुनबाक लालसा भए रहल अछि जे कोना-कोना अपने लोकनि
हमर गाम कें ई सौभाग्य प्राप्त कराओल आओर कोना-कोना हमर पिता कें रोगमुक्त करैत
गेलहुँ। धन्यवाद। ( प्रभाक
लग बैसैछथि।)
तान्त्रिक – ( ठाढ़ भए ) ओं नमो दुर्गायै। आदरणीय
जनार्दन बाबू, आ आदित्य बाबू, एहि गाम
कें ई सौभाग्य आन ककरो कएने नहि, मा दुर्गाक कृपा सँ प्राप्त
भेलैक। हम घर-घर, गाम-गाम चन्दा माङि-माङि....
वैद्य – ( बीचहि मे ) अपन मकान बनओलहुँ।
तान्त्रिक – ( तमसाए कें ) चुप ! पहिने हमरा बाजए दिअअ, पछाति जतेक बकबाक हो बकब। की कहैत रही ? हँ, मन पड़ल, चन्दा कए-कए
ग्रामवासीक कल्याणक संकल्प कए तीन बेर सहस्रचण्डी महायज्ञ कएल। तहिआ सँ एहि गाम मे
हमर चण्डीपाठे सभ रोगक रामबाण भए गेल। तैओ केओ-केओ आतुरतावश चण्डीपाठक संग-संग
डाक्टर-बैदक औखधो भकसि लैत अछि, भनहि ओहि मे जहर-माहुर रहओ।
डाक्टर – (ठाढ भए) की बजलहुँ, की बजलहुँ ?
वैद्य – मुह सम्हारि कें बाजू !
डाक्टर – कृपया सुनल जाए एहि दूनू धन्वन्तरिक एक प्रसिद्ध कथा। एक दिन
ई तान्त्रिकजी आ बैदजी अपना मे की गप करैत रहथि से सुनल जाए। तान्त्रिकजी पुछलथिन
बैदजी सँ, अओ, ने अहाँ चण्डीपाठ
कएलहुँ. आ ने हम ककरहु कोनो दबाइ देलिऐक; तखन चिता किएक जरैत अछि ?
वैद्य – चुप रहू। अहींक, अहींक इंजेक्शन तँ ओकर
जान लेलकै।
तान्त्रिक – एहन मुह रहत तँ बाट-घाठ मे मारि खाएब।
होमिओ. – गरहत्ता दए गाम सँ बैलाउ एहि डाकू डकडरबा कें।
डाक्टर – माफ कएल जाए। हम स्वयं पड़ा जाए
चाहैछी । अपने सभ शतमारी वैद्य आ सहस्रमारी वैद्यराज थिकहुँ। भुजैत आ भजबैत रहू
एहि स्वस्थ ग्राम कें।
तान्त्रिक – जनार्दन बाबू, कान
खोलि कें सुनि लिअअ। गरहत्था दए कें एतए सँ निकालू किडनीक सौदागर एहि डकदरबा कें।
नहि तँ खाउ अपम पार्टी अपनहि। चलैत चलू सभ केओ एतए सँ।
प्रभा – हाए रे हमर कपार ! की करैत की भए गेल। जलदी पड़ाउ एहन गाम सँ। हमरा बड़ डर होइए।
आदित्य – अहाँ घबराउ नहि। कने काल धैर्य धरू।
प्रभा – माइ गॉड ! (
ठाढ़ि भए लग जाए कान मे ) एहि भयंकर आगि कें अहाँक चुरू भरि पानि किन्नहु मिझाए
नहि सकत। जलदी पड़ाउ।
आदित्य – कोनो डर नहि। छन भरि धैर्य धए देखू तमाशा। हम जनैछी, एहन सिचुएशन कें कोना कन्ट्रोल कएल जाइत अछि।
प्रभा – बेस, लड़ैत रहू अहाँ एहि सिचुएशन सँ। हम
आँखि मूनि लैछी। ( आबि कें बैसैछथि।)
आदित्य – आदरणीय अतिथि गण, कृपया हमर दू शब्द
सुनि लेल जाए, तखन जनिका जे करबाक हो से करैत जाएब। अपने
लोकनिक एहि अनुपम प्रतिस्पर्धा कें देखि कें हमरा अपार आनन्द भेल। किएक तँ एकर मूल
लक्ष्य रहल गामक लोक कें स्वस्थ राखब। तें हम सभ अतिथिक हृदय सँ प्रशंसा करैत छी।
अपने सभ एक सँ एक आगाँ बढ़ि कें हमर पूज्य पिताक प्राणरक्षा कएल ताहि हेतु
हम अपने सभक प्रति आजीवन कृतज्ञ रहब। अपने सभक पाएर पकड़ि प्रार्थना
करैत छी जे जेना हमर पिताक प्राण बचाओल तहिना हमर प्रतिष्ठा बचाओल जाए।
वैद्य – बाह ! अपने
बड़ कौशल सँ एहि विषम परिस्थिति कें सम्हारि लेल।
तान्त्रिक – वैद्य जी भनहि सन्तुष्ट भए जाथु, हमर समाधान नहि भेल। हम अपनेक पूज्य पिताजीक मुह सँ ई सुनए चाहैछी जे ओ
ककर चिकित्सा
सँ स्वस्थ भेलाह।
[ किछु काल सभ
बूढ़ाक मुह तकैत अछि। ]
बूढ़ा – ( किछु काल सोचि कें ) हमरा पुछैछी तँ हम एतबे कहब जे हम ककरो
चिकित्सा सँ नहि, बेटा सपरिवार आबि गेलाह तकर ततेक, ततेक आनन्द भेल जे सभ रोग-बलाए बिलाए गेल।
[ सभ चकित भए एक
दोसराक मुह तकैत छथि। ]
डाक्टर – आब मुह की तकैछी। भेटि गेल उचित बिदाइ। चलैत चलू अपन-अपन घर।
खाथु आदित्य बाबू अपन बापक श्राद्धक पिण्ड अपनहि।
आदित्य – ( घबराए कें दूनू हाथ जोड़ि ) हम सभक पाएर धरैछी। एहन कठोर
दंड देबा सँ पहिने एहि अपराधीक मुह सँ दू शब्द सुनि लेल जाए।
बूढ़ा – ( आयासपूर्वक ठाढ़ भए कें ) एक बूढ़ आ ताहि पर चिर रोगी। हमरा
होस नहि रहल जे की बाजी की नहि। माफ.....मा..(बोल लटपटाइत छनि आ खसैत जकाँ बैसि
जाइत छथि।)
आदित्य – पिताजीक एहन स्थिति कें देखैत कृपया अपने लोकनि छन भरि बैसि
गेल जाए। ( सभ बैसैत छथि। ) सुनल जाए जे पिताजीक मुह सँ एहन कथा किएक बहरएलनि। (
प्रभा सँ ) कने पानि। (दू घोंट पानि पीबि कें ) सुनल जाए। हम आजुक दुनिआँक
चकाचौन्ह मे पड़ि कें आ ( प्रभा दिस संकेत कए ) हिनक मायाजाल मे फँसि कें....
प्रभा – आ हमरा अपन मायाजाल फँसा कें।
आदित्य – चुप रहू। एखन मजाक नहि। हमरा कनेको होस नहि रहल जे पिताक हृदय
आ माताक ममता केहन होइछै। हम माए-बाप कें सालक साल कलपबैत-कनबैत रहलहुँ। धन्यवाद
डाक्टर साहेब कें जे हमर ओ मोह निद्रा तोड़लनि। धन्यवाद एहि ( प्रभा दिस संकेत)
ममतामयी नारीरत्न कें जे हमरा मानू कान पकड़ि कें एतए
घीचि अनलनि। बहुत-बहुत वर्ष पर एक संग बेटा, पुतोहु आ पोताक
मुह देखितहि आनन्दक लहरी मे सभ रोगव्याधि दहा गेलनि । तहिं ओहन कथी मुह सँ बहराए
गेलनि। एहि सभ दुखद घटनाक अपराधी हम छी। क्षमा करू अपने तोकनि। क्षमा करू बाबूजी।
क्षमा कर माए। ( माए-बापक पाएर पकड़ि कें कनैत छथि। माए आँचर सँ नोर पोछैत छथिन। )
बूढ़ा – ( डेन धए उठबैत ) बाउ, ई अहाँक दोख नहि।
ई एहि घोर कलिकालक दोख थिक। उठू आ सभ कें आदरपूर्वक भोजन करबिऔन गए।
तान्त्रिक – आब वितम्ब किएक ? मा दुर्गाक प्रसादें बीझो होअओ।
( आगाँ आदित्य आ प्रभा, तनिक पाछाँ सभ चिकित्सक जाइत छथि.। )
बूढ़ी – बाउ, आँखि खोलह। आब भोज हेतै। चलह
देखैले।
वरुण – ( झट उठि कें हर्ष सँ हँसैत नचैत )
भोज हेतै भोज हेतै
भोज हेतै ना
भोज खेबै भोज खेबै
भोज खेबै ना
गाम जेबै गाम जेबै गाम जेबै ना
भोज खेबै भोज खेबै
भोज खेबै ना
भोज खेबै भोज खेबै
भोज खेबै ना
[ बूढ़ी
आ वरुणक प्रस्थान। ]
बूढ़ा – ( शून्य दृष्टि सँ चारू दिस ताकि ) चारू दिस सुन। सभ चल गेल,
सभ। एहि सुन मे कतेक काल, कतेक काल एना बैसल
रहब ? कतेक काल ? हमरहु आब जएबाक चाही। कोम्हर ? कतए ?
नेपथ्य सँ – जतए सँ फेर केओ घुरैत नहि अछि।
यद् गत्वा न
निवर्तते। यद् गत्वा न निवर्तते
-
मुन्नी कामत
एकांकी -हत्यारा समाज
प्रथम-दृश्य
सूर्यकला- काकी......
हयइ लवकी काकी, कतऽ छेतहिन?
लवकी काकी- की कहै छिऐ कनियाँ!
अतऽ पुबरिया घरमे छी आउ।
सूर्यकला- काकी, रमकलिया मै कऽ सुनै छिऐ फेर किछु छै, आइ भोरका गरी
सँ रमकलिया बाबू लऽ कऽ गेलैए अल्ट्रासाउण्ड करबै लऽ दरभंगा।
लवकी काकी- धैउररर उंउंउंउं पापी नरकी कऽ की बात करै छी...
छौरा तँ जान सँ मारि देतै मौगीकेँ। देखियौ, देहमे कोनो जान छै जेे
फेर गेलै खुुुुनमा-खून होइ लऽ।
सूर्यकला- की करतै काकी
बेटी जनमा कऽ जे मै-बाप सब दिन मरतै, से बलू एक्के बेर मरि
जा, वएह ठीक ने। आब तँ ई पाप घरही होइ छै। अकरा कोनो पाप नै
समझदारी कहल जाइ छै। देखतुुहुन, अतेक दिन छेलै जे बेटीकेँ नै
पढ़बै छी तैं उ बोझ अछि। आब तँ पढ़बैयोमे खर्चा आ बियाहोमे खर्चा होइत अछि। केना कऽ
हम गरीब बेटी जनमैब। बेटा जनमा कऽ चौराहा पर राखि देब तँ दू साँझ हमर चुल्हा जरत, मगर बेटी तँ हर पग-पग पर कलंक बोटरने घर आनत। ओकर उजर चुनरीमे कारिख लगैत
देर नै हएत। आब कहू काकी ओइ शर्मसँ मरी आकि अहिना मरी।
लवकी काकी- तोेहर बात सही छऽ कनियाँ
पर अही सोचकेँ तँ बदलै कऽ छै। जे लोग निअम बनेने छै आ कहै छै बेटा बैटी एक समान, वएह बेटीक इज्जतक दुश्मन बनि जाइ छै। घोर कलयुग छै। सभ मजबूर छै।
पटाक्षेप।
दोसर-दृश्य
रामेश्वर- रमकाली माय, की करबै, डॉक्टर साहेब कहै छै जे फेर बेटी अइ। महग
युगमे चारि टा बेटी पहिले सँ अछि। बेटाक खातिर छः बेर अहाँकेँ सफैया करा चुकलौं, आब तँ अहाँक शरीर देख डॉक्टर सफैया करैसँ सेहो मना करैत अछि। कहै छै जे
अहाँक देहमे खूूून नै यऽ। चलू गाम चलू, ओतऽ निचेेेेनसँ
विचारि कऽ कोनोे काज करब।
कमला- हयौ रमकाली बाबू, हम अहाँसँ सभ बेर निहौरा
करै छी कि अहाँ हमरासँ एतेक बड़का पाप नै कराउ। अकर बध हम दूनू परानिये टा कऽ नै
पुरे परिवारकेँ लागत। आइ बेटी बेटासँ कम छै जे अहाँ बेटा लऽ आनहर भेल छी आ हमर
जानक दुश्मन बनि रहल छी।
रामेश्वर- अपन मुॅंह तूँ बंदे राख। नै तँ अतैसँ लतियाबैत
गाम लऽ जेबौ। जेना अतेक साल तक मुँह सिने छँ तहिना आगुओ सिने रह। तूँ मर या जी,
हमरा तकर परवाह नै अछि। जाबऽ तक तोरा देहमे जान छउ ताबऽ तक जेना जेना कहबौ करैत
रह।
कमला- तँ लऽ लिअ ने हमर जान, मुक्ति मिल जैत
हमरा। अहाँक मारि-गारि सँ आ अइ पाप करैसँ.............
रामेश्वर- की कहली पाप..... पाप नै करिऐ तँ की करिऐ। साले-साल
बेटी जनमाबैत रहिऐ। जब हम घरसँ निकलैत छी तँ लरेग हमरा देख मुँह फेर लइए। भोरे-भोर
कोइ हमरा देखै यऽ तँ कहै यऽ कि अही निपु़तराहाक दरसन करि हमर अजुका दिन खराब भऽ
गेल। तूँ की बुजबिही कि अइ बदनामीकेँ लऽ कऽ हम केना तिल-तिल मरि रहल छी। चल घर चल,
हम सफैया करैबला दवाइ लऽ कऽ अबै छी।
पटाक्षेप।
तेसर-दृश्य
(कमला गाड़ीसँ उतड़ि किछु दूर चलैत बेहोश भऽ गिर पड़ैत अछि।)
रामेश्वर- रमकाली माय..... रमकाली माय..... की भेल? कोइ कनी पानि दिअ।
(एक व्यक्ति एक गिलास पाइन रामेश्वरकेँ पकड़ाबैत छथि। रामेश्वर
पाइन कमलाक मुँह पर छिटैत अछि। कमला भक सँ आँखि खोलैत अछि।)
कमला- कनी पियै लऽ पाइन दिअ।
(रामेश्वर पाइनक गिलास कमलाकेँ दै छथि।)
रामेश्वर- रमकाली माय, की भेल? ठीक छिऐ ने, टाइर गाड़ी मंगाबी घर पर सँ आकि रसे-रसे
जएल भऽ जएत।
कमला- हम ठीक छी। उ गाड़ीमे छेलिऐ ने, तइ सँ मन घूर गेल। अहाँ चलू, हम धीरे-धीरे अबै छी।
(कमला मने-मन भगवानक स्मरण करैत कहैत छथि- हे भगवान, हमरा देहमे ई की भऽ रहल अछि जेना लगैए पुरा देह कोइ गोधना गोधै यऽ। कखनो
कऽ तँ जेना पताए लगै छी। भगवान अगर हम मरि जाइऐ तँ हमर बाल-बच्चाक रक्षा करिहक।)
पटाक्षेप।
चौथा-दृश्य
रामेेश्वर- कतऽ गेलिऐ..... लिअ,
ई गोली खा लिअ।
कमला- हमर बात मानू आ अइ बच्चाकेँ नै गिराउ। चारिम महिना
चलि रहल छै। आबऽ दियौ जे आबैए, अपने भागे एतै। हमरा भागमे बेटा नै
लिखल छै तैँ तँ नै होइ छै। हम ई दवाइ नै खएब।
रामेश्वर- (एक थप्पर कमलाक गालपर दैत कहैत अछि)
से किए एहन करम छउ तोहर जे तोरा कोइखमे बेटा पनपबे नै करै छउ। कोन
गै घरमे आगि लगेने छेलही से एहन वंशहीन कोइख दऽ कऽ भगवान पठेलकौ। कुलक्छिनी....
कलंकनी, कहाँ कऽ हमरे कपारमे सटल छेल। चुपचाप ई दवाइ खा ले
नै तँ जबरदस्तीयो खुऐल होइ छै हमरा, बुझलिही कि नै।
कमला- ठीक छै, अहाँक मर्जीक खिलाफ आइ
तक एको गो काज नै केलौं आ आइयो नै करब, अहाँ जे चाहै छी हम
वएह करब। हम दवाइ खाइ छी, आगू राम राखए।
(कमला दवाइ खाइ यऽ आ रामेश्वर पएर झमाड़ैत ओतऽ सँ चलि जाइ यऽ।)
पटाक्षेप।
अंतिम-दृश्य
(गामक सरकारी अस्पतालमे अधमरा अवस्थामे कमला खुन सँ लतपत पड़ल
अछि।)
नर्स- डॉक्टर साहेब, की करिऐ? कारनी कऽ हालत बहुत सिरियस भेल जाइ यऽ।
खून बन्दे नै भऽ रहल अछि। देहक आधासँ बेसी खून निकलि गैलै,
की करबै?
डॉक्टर- हम अहाँ की करि सकै छिऐ। हम तँ बस प्रयास करबै जे
कि राइतेसँ कऽ रहल छिऐ। इंसान जे जेना करै छै, तहिना पबै छै।
(10 सालक रमकाली कनैत डॉक्टर लग अबै अछि। डॉक्टर साहेब देखियौ
ने, माय कऽ की भेलैए। साँसो नै लै छै।)
(डॉक्टर साहेब दौड़ कऽ कमला लग जाइ छथि जतऽ रामेश्वर कमलाक माथा
अपना कोरामे लऽ कऽ विलाप करै छथि।)
डॉक्टर- चुप रहू, अतऽ एना कननाइ बंद करू, सबहक जड़ि अहाँ छी। आब अइ लोरसँ हमदर्दी देखबै छी।
(डॉक्टर कमलाक नारी देखैए आ आलासँ सेहो जाँच करैए।)
रामेश्वर- की भेलै डॉक्टर साहेब,
किए ई एना लारू-बातू भऽ गेलैए।
डॉक्टर- अकरा मुक्ति मिल गेलैए। अहाँक अत्याचारसँ। आब ई अइ
पापक नगरीकेँ छोड़ि चलि देलखिन। लऽ जाउ अकरा आ पुछबै कि अहाँक बेटा देने बिना ई किए
दुनियाँ छोड़ि देलक। अहाँक मर्जी बिना किए आँखि बंद कऽ लेलक। जाउ आ पुछियौ। अकरा
देहसँ निकलल अइ खुनक रेतसँ। अहाँ हत्यारा छी। बेटाक लालचमे घरवालीकेँ मारि देलौं।
अहाँकेँ तँ मौतो नसीब नै हएत।
रामेश्वर- हँ डॉक्टर, हम कातिल छी। अपन
खुशीकेँ...अपन जीवन संगनीकेँ...अइ बच्चा सबहक ममताकेँ।
डॉक्टर- आखिर कहिया तक अहाँ सब अनहार घरमे बैठल रहब। अइ
अनहार घरसँ निकलू, देखियौ बाहर कतेक प्रकाश छै। हमरो बेटा नै
छै, दू टा बेटी छै जे हमरा लऽ बेटा समान छै। फेर अहाँ किए
बेटा खातिर अतेक भुखौइल छी।
रामेश्वर- डॉक्टर साहेब, ई समाजक लोग हमरा
निपुत्र कहि-कहि कऽ हमर जिनैइ दुर्लभ करि देलक आ बेटा पाबै कऽ भूख अओर बढ़ा देलक। हम नै बुझलौं जे अकर अंत ई हएत।
डॉक्टर- बेटा आ बेटी कोनो स्त्रीक भाग पर नै बल्कि पुरूष पर
निर्भर करै छै। अइमे स्त्रीकेँ कोनो दोष नै छै। आइ देखियौ, एहन कोनो क्षेत्र नै छै जतऽ बेटी बेटाक बराबरीमे खरा नै छै, फेर ई भेद भाव किए? बेटी होय या बेटा, आखिर दुनू तँ अहींक अंश अहींक संतान छी।
रामेश्वर- डॉक्टर साहेब, हमर तँ दुनियाँ उजड़ि गेल
मुदा हम अन्हार सँ आब इजोतमे आबि गेलौं। हम अपन चारू बेटीकेँ खूब पढ़ैब-लिखैब आ
बेटा सँ उच्च दर्जा देब। आब यएह हमर चौस कंधा छी।
पटाक्षेप।
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