ज्योति झा चौधरी
एक युग़: टच वुड
वक्रतुंड महाकाय
सुर्यकोटिः समप्रभ. निर्विघ्नः कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।
आजुक दिन 22 नवम्बर 2012 हमर जिनगीक बड़ विशिष्ट दिन छल। संयोग सँ हमरा अपन आफिसमे एकटा बहुत स्टाइलिस्ट फाइल
उपहारमे भेटल जइमे बारह टा विभाजन छलै, हमर निजी मासिक बिलक सम्हार लेल बड़ उपयुक्त
छल। जे कियो ई देने छलथि तिनका बुझल छलनि जे हम अखन आत्मनिर्भर हुनके प्रयासमे
छलौं आ हमरा सामने जँ विश्वक सभसँ सुन्नर गहनाक दुकान आ स्टेशनरीक दुकान होइ तँ
हम स्टेशनरीक दुकानमे जाएब।
मुदा हुनका ई नै बुझल रहनि जे आइ
हमर विवाहक बारहम वर्षगॉंठ अछि, टचवुड।
हम कहबो नै केलियनि
कारण एतुक्का रहन-सहनमे हमर विवाह जेना चलि
रहल छल से किछु प्राचीन बुझाइत छल, ई बात अलग छै जे हम अपन पिछड़ापनमे संतुष्ट छलौं। कहक गप्प नै
जे हमर मोनमे पहिल विचार आएल अपन
विवाहक बारह वर्षक अम्मत आ मिठगर स्मृतिकेँ
सँवारी। ओना हमरा अपन बिल राखै लेल पेपर फाइलक जरूरत कम पड़ैत अछि। हम बेसी काल काज ऑनलाइन
करैत छी । ऐ रचना लेल सेहो हमर छोट नोटबुक काफी अछि मुदा ई
फाइल एकटा प्रेरणा अछि।
ई रचना लिखबाक लेल हम स्वयंकेँ
भाग्यशालिनी
मानैत छी जे अपन विवाहक बारह साल
हम अपन पति संगे बितेलौं। कोनो आश्चर्य नै जे बहुत याद असौहाद्र्रपूर्ण सेहो छल मुदा हमर
अपन विवेचन ई कहैत अछि जे अइ कऽ मुख्य
कारण छल हमर दुनुक बड्ड अलग व्यक्तित्व।
हमर नौकरी करबाक इच्छा आ सबतरि बहावक संग
बहइ कऽ
बदले अपन तर्कपूर्ण दिमाग लगेबाक आदति। ईहो सच अछि
जे दुर्भाग्यवश हमरा लोकक मार्गदर्शनमे चलैक अवसर भेटबे नै कएल। बहुत बेर हम अभिभावक आ मार्गदर्शकक दुःखद कमी
भोगने छी।
ई कमी समाप्तप्राय लागैत अछि अखन, टचवुड, जखन
हम अपन व्यवसाय बनाबैक प्रयासमे छी। हम किछु एहेन
लोक सभसँ
भेँट केलौं जे वास्तवमे सहायक आ प्रेरणावर्धक छथि
आ ऐ क्रममे जे हमरा ई फाइल देली से सभसँ
ऊपर छथि। अन्ततः. हम आइ खुश छी आ अपन पति आ
परिवारक निरन्तर खुशीक प्रार्थना कऽ रहल छी।
मोन पड़ि रहल अछि जे
हमरा बच्चामे पारम्परिक मैथिल तरीकासँ
विवाह करै लेल कतेक ललक छल। हम हमेशा घोघ तानैक अभ्यास करैत रहैत छलौं। अतऽ
जखन कखनो जैकेटक हुड माथपर चढ़ाबै छी तँ हँसी आबि जाइत अछि। हमरा घोघ तानि कऽ झात
करैमे बड्ड मजा आबैत छल। सभ छुट्टीमे
मियाँक दौड़ मस्जिद गामे जाइत छलौं आ सभसँ
गँवार बनि कऽ लौटै छलौं। गेटपर तौनी बा
शालसँ घोघ तानि कऽ बैसि जाइ छलौं आ बाबुजीकेँ ताबे नै घर
घुसऽ दैत छलियनि जाबे ओ हमर घोघ हटा कऽ नै कहि दैथि जे
बड्ड सुन्नर कनियाँ छह।
हमरा पूरा विश्वास छल
जे बाबुजी हमरा लेल एकटा खूब सुन्नर लम्बा गोर बड़ कऽ देता। ओना हम लोककेँ ओकर व्यवहारसँ
चिन्हनाइ जल्दिये सीख लेलौं। कतेक हास्यास्पद छै जे हम पैघो भेलापर ई कहियो नै सोचलिऐ जे
हमर पति लेल सेहो हम ओतबे महत्वपूर्ण हेबाक चाही। हमर सपना छल जे हमर बरियातीमे खूब फटक्का फोड़ल जाए।
हम कहै छलिऐ
जे दीदीक बियाह गाममे करबियौन, सभ बुढ़बा सभ फटक्कासँ डेरा
कऽ घरमे नुका जेतै आ हमर बियाह शहरमे कराउ। हमर ई सपना तँ बढ़ि चढ़ि कऽ
पूरा भेल। खूब बाजा फटक्का सभ भेल, संगे बूढ़-बूढ़ ससुर सभ सेहो बरियातीमे खूब
नचला। हम ईहो कहिऐ जे
हमर बियाहमे हमरा ३० टा साड़ी देब की नै। तइपर हमर
छोटका भायक कहब छनि जे दीदीकेँ तखन तीसे तक गीनऽ आबै छलनि।
जखन कखनो हम अपन पतिक
कल्पना करी तँ हम हमेशा स्वप्न देखलौं संगे पूजा केनाइ, एके रंगक कपड़ा पहिरनाइ। आंगनमे खुजल आकाशमे बैसनाइ। मुदा चाह पिनाइक सपना नै
छल, कारण चाय कॉफी हमर नजरिमे एकटा खराब हिस्सक
छल। हमर ईहो सपना छल जे हमर पति हमर भाइक बढ़िया दोस्त बनथिन कारण ओ सभ बचपनसँ
बड्ड सुकमार छलथि। हँ, हमरा एकटा छोट घरक इच्छा छल जइमे
बस जरूरतक सभ सामान होइ। एकबेर हम अपन बहिन संगे पार्क गेलौं। बहिन कहलथि जे एहेन बड़का बगान अप्पन हुअए तँ
कतेक मजा हेतै। हम कहलियनि जे बाप रे बाप, साफ के करतै। दीदी कहलखिन, जकरा लग बड़का बगान हेतै से नौकरो तँ राखि लेतै। हमर मतलब छल जे घरमे एक दिन
काजवाली नै आबै तँ
कोहराम मचि जाइत छल। सभ भन्साघरक काजमे लागैत छलथि आ हमरा बाहरी काज भेटैत छल। हँ, तँ
हमर सपना
हमर छोट घरक दिवारपर सम्पूर्ण
परिवारक फोटो लागल हुअए जइमे सभसँ महत्वपूर्ण पैघ हुअए हमर मॉं-बाबूजी
आ सास-ससुरक फोटो। हमरा खूब घुमनाइ-फिरनाइक
शौक सेहो छल जे बड़ कम पूरा भेल मुदा तकर कुनो अफसोस नै अछि। बस कमी लागल तँ परिवारक जुटानक। यद्यपि कखनो कऽ परिवारक जुटान भेल छल
जखन माँ-बाबूजी, दाइजी आ दीदीक सास-ससुर केँ लऽ कऽ आएल छलथि।
फेर मौसीक परिवार तऽ जान छलथि हमरा ओतए।
हमर सास-ससुर सेहो आएल छलथि मुदा
तखन हम काज लेल १२ घण्टा घरसँ बाहर रहै छलौं।
ओ छोट सनक दू कमरा आ
एकटा बड़का बेडरूम जतेक पैघ किचेन-कम-डायनिंगबला
फ्लैट हमर स्वप्न महल छल, जतए हमरा अपन सभ सपना लगभग पूरा होइत देखाएल।
(जारी…)
जगदीश
प्रसाद मण्डल
उपन्यास- बड़की बहिन/ सधवा-विधवा
१
बड़की बहिन
उपन्यास
चारि भाए-बहिनक बीच सुलोचना, पहिल रहने बड़की बहिनक नाओंसँ गाम भरिमे
जानल जाइत छथि। बीघा दू-अढ़ाइक जमीनबला परिवार।
छियासी बर्खक
अवस्थामे जिनगीक ढलानक आखिरी सीढ़ीमे पहुँचल सुलोचना भातीजक संग बिलसपुर-मध्य प्रदेशसँ
अपने गाड़ीसँ गाम पहुँचली। गाम पहुँचते हलचल भऽ गेल सुलोचना बहिन एली। ओना पछिला
पीढ़ीक अनुकरण करैत अगिलो पीढ़ी, दीदीक जगह बहिने कहै छन्हि। एक्के-दुइये टोलक धिया-पुता आ जनि-जातियो पहुँचए
लगली। डेढ़ियापर गाड़ी रोकि रघुनाथ (छोट भाइक जेठ बेटा) उतरि एका-एकी सभकेँ उतारए
लगल। दू बर्खक पोताकेँ सुलोचना कोरामे नेने गाड़ीसँ उतरली।
रिष्ट-पुष्ट शरीर, चानीक बल्ला
दुनू हाथमे, महीन, सादा साड़ी पहिरने।
थुल-थुल
देह। उतरिते चारू दिस आँखि उठा तकलन्हि तँ बूझि पड़लन्हि जे जेबा कालसँ विपरीत
सभ किछु बूझि पड़ैए। जिनगीक आशा तोड़ि घरो-दुआर आ गामोकेँ
गोड़ लागि कहने रहियनि जे अंतिम दर्शन केने जाइ छी। कहाँ आशा छल जे गामक मुँह
फेर देखब। तइ बीच जेठ भौजाइपर नजरि पड़लन्हि। नजरिसँ नजरि मिलिते दुनूकेँ
बघजर लागि गेलन्हि। मुँहक बोल बन्ने रहलन्हि तइ बीच झुनकुट चेहरा, ठेंगा हाथे
बसमतिया दीदी सेहो पहुँचली। जहिना सुलोचना गामक बेटी तहिना बसमतिया दीदी सेहो।
एक उमेरिये दुनू गोटे, मुदा
सुलोचना बहिन तीन मास जेठ छथि। बसमतिया दीदीकेँ देखिते सुलोचना बजली- “साले भरिमे एते
लटैक गेलैं?”
दुनूक जिनगी बच्चेसँ एकठाम बीतने बजैमे कोनो कमी रहबे ने
करए। निधोक भऽ बसमतिया दीदी बजली- “तूँ ने
भाए-भातिजक
कमेलहा खा कऽ गेंड़ा बनि गेलैं, हमरा के देत?”
सुलोचना- “किअए
भगवान तोरा थोड़े बेपाट छथुन जे नै देनिहार छौ?”
बसमतिया- “हँ से
तँ अछिये, मुदा
जएह कमाएत तेहीमे ने देत। अच्छा, कह जे टुटलाहा लग कज्जी ने तँ रहलौं। नीक जकाँ हड्डी जूटि
गेलौं किने?”
“हँ। आब
तँ बाल्टीनो उठबै छी, पोतोकेँ
कोरो-काँखमे
लऽ कऽ खेलबै छिऐ। अपने गाड़ियो छी, आब गामेमे रहब।”
“ऐ
उमेरमे असकरे रहि हेतौ?”
“छोट भाए- मुनेसरो रहत किने? काल्हि ओहो
आओत। ताबे कहुना अही टुटलाहा घरमे रहि पजेबाक घर बनाओत। हम सभ कते जीबे करब। मुदा
जाबे आँखि तकै छी, ताबे
तकक ओरियान तँ करए पड़त किने?”
चौदह बर्खक अवस्थामे सुलोचनाक बिआह
भेलन्हि। जहिना पिताक साधारण किसान परिवार तेहने परिवारमे बिआहो भेलन्हि।
समाजमे अखन धरि धन नै कुले-मूलक महत अधिक रहल मुदा लेनो-देन तँ चलिते
छल। नीक-मूलक
कन्याक माङो बेसी। ओना अपन-पिताक कुल-मूलसँ दब परिवारमे बिआह भेलन्हि, मुदा कोनो हिनके
टा नै, समाजमे
कतेको गोटेकेँ भेल छन्हि आ होइतो अछि। कोनो प्रश्ने नै उठल।
मिथिलांचलक ओइ गाममे सुलोचनाक जन्म
भेल छलन्हि जइ गाम होइत एकटा धारो अछि आ पूबसँ कोसीक पानि आ पछिमसँ कमलाक
पानि सेहो बरसातक मौसममे बाढ़ि बनि अबिते अछि। ओना कोसी-कमलाक बान्ह नै
रहने अबैत-अबैत
बाढ़ि पतरा जाइत मुदा बरखोक तँ कोनो निश्चित ठेकान नहिये छै। जइ साल बरखा बेसी
भेल तइ साल बाढ़ियो नमहर-नमहर आएल आ जइ साल कम बरखा भेल बाढ़ियो छोट अबैत।
खेतीक लेल बरखा छोड़ि दोसर कोनो साधन नै छल। लकड़ीक करीनसँ किछु खेती होइत छल
मुदा ओ तँ पोखरिसँ होइत छल जे बैशाख-जेठमे अपने सुखि जाइत। जे पोखरि गहींर रहैत ओइ
पोखरिक पानि ऊपर अनैमे तीन-चारि गाड़ करीन लगि जाइत। गहुमक खेती नहियेँक
बराबर होइत छल, कियो-कियो दू-चारि कट्ठा कऽ
लैत छलाह।
छह गोटेक परिवार चलबैमे सुलोचनाक पिता
हरिहरकेँ कठिनाइ तँ रहबे करनि मुदा गाममे मात्र हरिहरे एहेन नै बहुतो एहेन
छलाह जे हुनकोसँ भारी जिनगी जीबैत छलाह। एक तँ महिला शिक्षाक चलनि नै, दोसर गाममे
साधनोक अभाव। ओना बाहरसँ कम सम्पर्क रहने गाममे शिक्षाक ओते जरूरतो नहियेँ छल।
बेवहारिक ज्ञानक जरूरत छल जे सभमे छलैक, अखनो छैक। स्कूलक मुँह सुलोचना नै देखली।
बिआहक तीन साल पछाति सुलोचनाक दुरागमन
भेल, सासुर
गेली। बर्ख-पाँचे-छबेक पछाति
सासुरसँ सुलाचनाकेँ भगा देलकन्हि। भगबैक कारण रहैक जे सन्तान नै भेलन्हि।
ओना ने कहियो डॉक्टरी जाँच कराओल गेलन्हि आ ने सन्तान नै हेबाक दोष किनकामे
छन्हि, से
फड़िछाओल गेल।
समाजमे एहेन धड़ल्लेसँ होइत जे कोनो महिलाकेँ
कुरुप कहि सासुरसँ ठोंठिया कऽ भगाओल जाइत तँ कोनोकेँ सौतिन तर बसा भगाओल जाइत।
इत्यादि-इत्यादि।
वैदिक पद्धति एक-पुरुष
एक नारीक सम्बन्धकेँ पहिल श्रेणीक विचार समाज मानने अछि, तइठाम रंग-रंगक बाधा बना
नारीकेँ अगुआइसँ रोकल गेल। रंग-रंगक सगुन-अपसगुन कहि, तँ उढ़री-ढढ़री बना दबाओल
गेल। एहेन स्थितिकेँ जँ रोगक जड़ि बिना तकने आ ओइठामसँ वैचारिक बाट बनौने बिना
आइ एक्कैसम शताब्दीमे पहुँचल छी। ई बिलकुल सत्य छैक जे कियो शेर होइ आकि सियार
सभकेँ अपन कालखण्डक लेखा-जोखा होइ छै। तँए ओ अगिला-पछिला दोखक
भागी भेला, बूझब ई
ननमति भेल। हँ, जँ कियो
अपना हाथे किछु केलन्हि तेकर जबावदेह तँ भेबे कएल।
सुलोचनाक पिता हरिहर समाजक ओहन व्यक्ति
जे आँखिक सोझामे कियो गाछक आम तोड़ि लैत वा खेतक धान नोचि लैत तँ एतबे चेतावनी
दैत बजैत छलाह जे जाइ िछयौ बापकेँ कहए जे ई छौड़ा धान नोचलक कि आम तोड़लक। बुझिअहन्हि
जे जखन तोरा कनैठी पड़तौ। समाजमे सहयोगक विचार छल। अपन गारजन अपने बच्चाकेँ सिखबैत
छल। मुदा एकटा जबरदस गुण परिवारमे छलन्हि जे महीनाक चारि-पाँच रवि, चारि-पाँच सोमक
सोमवारी संग कतेको पावनिक उपाससँ सोलो छोट कऽ नेने छलाह। सरस्वतीक आगमन परिवारमे
भऽ गेल छलन्हि। िसर्फ अपने हरिहरेटा नै पढ़ने। कारणो छल समंगर परिवारमे एक
समांग गिरहस्थियो करैत छलाह। तँए शुरुहेसँ पढ़ाइ दिस नै लगाओल गेलन्हि। काल-क्रमे ओहन-ओहन भैयारी
पछुआएल। ई दीगर भेल। ओना किछु समाज एहनो छल जे एहेन-एहेन अवस्था (सुलोचनाक संग
जेहेन भेल तेहेन)
केँ बाहुबलसँ रोकलक मुदा समाजोक कटनियाँ तँ बड़का मूस कतिते छै। जाति-जातिकेँ बाँटि
सभ रोगसँ रोगाएल छी। कियो कम कियो बेसी। मुदा एहेन-एहेन अपराध
समाजक मुद्दा नै बनि बनि,
जातिय मुद्दा बनि कमजोर पड़ैत गेल। काल-क्रमे जातियोसँ
परिवारमे पहुँच गेल। एक जातिकेँ नीच देखाएब वा जातिक भीतर कोनो परिवारकेँ निच्चाँ
मनोरंजनक साधन बनि गेल अछि।
सरस्वतीक आगमनसँ हरिहरक परिवारक विचारमे
किछु नवीनता तँ आबिये गेल अछि। सासुरसँ भगाओल सुलोचनाकेँ परिवार सहर्ष अपना
लेलन्हि। अपनबैक कारण भेल जे परिवारक सभ अपने गल्ती मानि लेलन्हि जे ओहन
कुल-मूलमे
डेगे नै उठबैक चाही। ओहनसँ मुँहो लगाएब नीक नै हएत। बापक दुलरूआ बेटा दोसर बिआह
कऽ लेलन्हि। मुदा सुलोचना अपनाकेँ वैधव्य नै बुझलन्हि। हाथक चुड़ी रखनहि
रहली। समए आगू बढ़ल। लक्ष्मी जहिना दरबज्जापर हँसी-खुशीसँ आबि जाइ
छथिन तखन केतबो ताड़ी-दारूक खर्चा हराएले रहै छै। तहिना ने सरस्वतियो रगड़ी-झगड़ी छथि।
सुलोचना जकाँ नै ने छथि जे मने-मन संकल्पक संग जीबैक बाट पकड़ैत, ओ तँ तेहेन
रगड़ी छथि जे एकटा सौितनक कोन गप जे हजारो सौतिनकेँ झोंटिया अपन हिस्सा लैये
कऽ छोड़ैत। पुरुखक कहने भऽ जेतै जे जेठकीक जेठुआ जोश कमा देतै।
सरस्वतीक रूप परिवारमे बदलल। संस्कृत
पद्धतिक जगह नव-नव
पद्धति शुरू भेल। संस्कृतोक पद्धति रहबे कएल। मुदा शिक्षाक बुनियादी पद्धतिसँ
उछालि देलक। सुलोचनाक पीठ परक जेठ भाए युगेसर मैट्रिक पास तमुरिया स्कूलसँ
केलन्हि। गरीबी बेकारीसँ त्रस्त परिवार। नोकरीक तलासमे कलकत्ता गेला। दू साल
रहलाह। भाषाक दूरी, शहर-गामक दूरी तँ स्पष्टे
रहै। दू साल पछाति युगेसर टीचर्स ट्रेनिंग केलन्हि। लोअर प्राइमरीक शिक्षक
बनलाह।
युगेसरसँ छोट मुनेसर सेहो मैट्रिक पास
तमुरिया स्कूलसँ केलन्हि। साइंस पढ़ैत। जनता काओलेजमे साइंसक पढ़ाइ नै होइत। गर
लगबैत खगड़ियाक गर लगौलन्हि। ओही ठामक संस्कृत विद्यालयमे विद्यार्थीकेँ
भोजन-डेराक
बेवस्था सेहो करैत अछि। कोसी कओलेज सेहो छैहे। साइंसक विद्यार्थी, नीक जकाँ बी.एस.सी केलन्हि तइ
बीच बिआहो अफसरक परिवारमे भऽ गेलन्हि। चारि भाँइक भैयारी हरिहरक छलन्हि, तइमे बँटवारा
भऽ गेलन्हि। दुनू परानी हरिहरो मरि गेलखिन। दुनू भाँइक परिवार...।
(जारी..)
2
सधवा-विधवा
उपन्यास
सत्तरि वर्षीय सरोजनी मैयाँकेँ अखनो वएह सुधि-बूधि छन्हि जेना
पहिने छलन्हि। अखनो ओहने झोंकाह जकाँ जिनगीकेँ झोंकि चलै छथि जेना जुआनीमे
सभ चलैत अछि। तहूमे मरणक अगिला बेठेकान सीमा रहने अगिला सीमे हराएल छन्हि।
नर्क-निवारण
चतुर्दशीक दिन। मरद तँ कमो-सम मुदा अधिकांश स्त्रीगण पावनिक उपास केने। एक तँ
किसान-बोनिहारक
बैसारीयेक दिन दोसर दिनोक आँट-पेट छोट रहने उपासो असान। देखते-देखते दिन कटि
जाइत अछि, तहूमे
सूर्योदयसँ अस्ते भरिक ने उपास। किरिण डुमिते फलहार कऽ पावनिक विसर्जन कए
लेल जाइत अछि। बेर झुकिते सरोजनी-मैयाँ दिनक वाँकी काज दिस नजरि उठौलन्हि तँ भक
दऽ मन पड़लन्हि जे आन दिन समए पाबि खा विद्यालय देखि अबै छलौं, मुदा बिसरैक
कारण भरिसक उपासे तँ ने भेल। एक-सँ-सए धरिक गिनतीमे एकाएकी अगिला संख्या अबैत जाइत
अछि, भरिसक पैछला
काज छुटने अगिला ने तँ भोतिया गेल। मुदा छोड़लो तँ नै जा सकैत अछि। तखन उपाए? हँ उपाए यएह जे, जे समए शेष बचल
अछि ओहीमे बीच-बचा कऽ
देख आएब नीक हएत।
अंगनाक काजमे विराम
लगबैत सरोजनी मैयाँ घुमौन रस्ता छोड़ि गाछियेक एकपेरिया पकड़ि विद्यालय
पहुँचली। भकोभन देखि हिया-हिया चारू दिस देखए लगली। पाँचो विद्यार्थी नै अछि
शिक्षकोमे नउएँ-काउएँक
एक गोटे छथि। मन चौंकलन्हि। जाधरि अपन बेवस्था छल, ताधरिक रूतबा आ
अखुनकामे अकास-पतालक
अन्तर भऽ गेल अछि। खैर अनका लेल जे होउ, अपन तँ वएह छी जे मानि ठाढ़ केलौं।
पइँतिस वर्षीय
शिक्षिका रूक्मिणी, मैयाँकेँ
देखिते उठि कऽ ठाढ़ भऽ दोसर कुरसीपर बैसबैत कहलखिन- “मैयाँ, पावनिक दिन दुआरे एकोटा विद्यार्थी नै
आएल स्टाफो सभ उपास केने,
तँए चलि जाइ गेला।”
विद्यालयक पक्ष देख रूक्मिनीकेँ मैयाँ पुछलखिन- “अहीं, किअए रहि
गेलौं?”
मैयाँक प्रश्न सोझ-साझ छलन्हि, मुदा रूक्मिनीकेँ
लत्ती लतड़ल बूझि पड़लन्हि। जहिना आन-आन विद्यालयमे प्रधानाध्यापक छोड़ि आन
दरमहे उठबैले अबैत तँ दोसर दिस आॅफिसक हाकिमे नै अबैत। दुनू तँ सरकारिये संस्था
छी तखन एना किअए? स्पष्ट
उत्तर नै पाबि संयासी जकाँ रूक्मिणी उत्तर देलखिन- “ओ सभ उपासल छलाह, हम उपास केनहि
ने छी।”
रूक्मिणीक उत्तर सुनि दादी चौंकली। विद्यार्थीसँ शिक्षक
धरि एक भाग आ असकरे रूक्मिणी एक भाग। जरूर धारक नाव जकाँ आकि गाड़ीक जुआ जकाँ
वामी-दहिनी
किछु बात हेतै। आँखि उठा दिनकर दिस देखलन्हि तँ बूझि पड़लन्हि भरिसक दू-अढ़ाइ घंटा अस्त
होइमे वाकी अछि। भने एक गोटे भेटिये गेली, किअए ने पारिवारिके गप-शपमे समए खटिया
ली। कोनो कि बहुत ओरियानो-बात करैक अछि। बइर पछुआरेमे अछि, केशौर सेहो
उखाड़ि कऽ रखनहि छी। बजली- “ऐठाम जे
असकरे बैसल छी तइसँ नीक होइत जे घरपर जा बालो-बच्चाक देख-भाल करितौं।”
मैयाँक प्रश्नसँ
रूक्मिणी ठमकि गेली। बजली किछु नै मुदा आँखिमे जिनगीक धार चलए लगलन्हि।
चुप देख मैयाँ दोहरा देलखिन- “चुप किअए
छी? हमहूँ
कियो आन छी जे घरक बात बजैमे संकोच होइए। परिवार तँ परिवार छी जेहने अपन तेहने
दाेसराक। सभ परिवारमे बाबा-दादासँ लऽ कऽ जनमौटी बच्चा धरि रहैत अछि। सबहक जिनगी
छै जिनगी अनुकूल काज छै। तइमे संकोचक कोन बात?”
मैयाँक दोहराएल
प्रश्नसँ रूक्मिणीक छाती चड़चराए लगलन्हि। जहिना पानि भरल घैल फुटने पानि छिड़िया
जाइत तहिना रूक्मिणीक हृदैक विचार छिड़ियाए लगलन्हि। मुदा घैलोक पानि कि
एक्के रंग चारू कात छिड़िआइ छै। जेमहर ढलान रहै छै ओमहर धार जकाँ बहए लगै छै आ
जेमहर ढलान नै रहल ओमहर पतराइत चलै छै। पोखरिक किनछड़ि जकाँ मैयाँ जेत्ते रूक्मिणीक
लग आबए चाहथि तत्ते थाल-पानि बेसिआइते जाइत। पाश बदलैत मैयाँ पुछलखिल- “पुरुख-पुरुखमे
पुरुखपाना लऽ कऽ भेद भऽ सकै छै मुदा नारीक तँ नारीत्व एके होइत, भलहिं परिस्थिति
लऽ कऽ भिन्न-भिन्न
रूपमे किअए ने होय। तखन सकुचाइक कोन काज?”
बजैत-बजैत दादीक मन अपने ठमकि गेलन्हि। घरक बात किअए
ने लोक छिपाऔत बाहरसँ एक-रंगाह रहितो भीतरसँ बेदरंग रहै छै। रंग तँ रंग भेल
मुदा बेदरंग कि भेल? जँ
बेदरंगकेँ छिपाऔल नै जाए तँ लोक कि कहतै। मुदा अपनाकेँ संयत करैत पुन: मैयाँ बजली- “अखैन तँ दुइऐ छी, तखन सकुचाइ-घकुचाइक कोन बात
अछि? जे
मुँह नै खोलै छी?”
बजिते छेली आकि रूक्मिणीक दुनू हाथपर नजरि गेलन्हि।
एक हाथमे चुड़ी, दोसरमे
घड़ी। अचंभित भऽ मैयाँ पुछलखिन- “एक
हाथमे चुड़ी देखै छी दोसर हाथ खाली अछि, एना किअए अछि?”
जहिना बहैत
धाराकेँ आगू बन्हिते पानि मोटा कऽ बान्ह तोड़ि निकलए चाहैत तहिना रूक्मिणीक
विचार आगू मुँहेँ बढ़ल- “मैयाँ, हम ने विधवे
छी आ ने सधवे छी।”
रूक्मिणीक उत्तर सुनि मैयाँ बौआ गेली। मर ई की भेल? ने विधवे छी आ
ने सधवे छी! नवतुरियाकेँ
एहेन प्रश्नो केना दोहराओल जाए। दुनियाँ कतए-सँ-कतए बदलि गेल।
पुरुख-पुरुखसँ
आ नारी-नारीसँ
सम्बन्ध बनबए लगल अछि। मुदा कोनो बात केकरो थोपैसँ पहिने तृण-मूल ओकर बूझि
लेब नीक होइत। से तँ बिना पुछने आ उत्तर पौने नै हएत। मुदा सोझे-सोझी पुछबो नीक
नै हएत। घुमबैत मैयाँ पुछलखिन- “उमेर
कत्ते अछि?”
रूक्मिणी- “पेंइतीसम
छी।”
पेंइतिसम सुनिते मैयाँक मन उड़ि गेलन्हि। आगूक बात
सुनैसँ पहिने एते दूर चलि गेलन्हि जे सुनबे ने केलक। अकासमे उड़ैत कौआ जकाँ
ऊपरेसँ टाँहि देलकन्हि- “अहाँक
एकटा हाथमे तँ चुड़ियो देखै छी, हमर दुनू हाथ भगवान हरि नेने रहथि।”
आगू किछु बजैले
बाँकिये रहनि आकि बोली थकथका गेलन्हि। जहिना रास्ता चलैत बटोहीक आगूक रस्ता
बोनाह, टुटल, अतिक्रमित वा
अन्य कोनो कारणे झँपाएल रहने थकथका चारू दिस तकए लगैत तहिना दुनू गोटे, मैयाँ आ रूक्मिणी
थकथका गेली। मुदा, की ओहन
बाटपर पहुँचला पछाति बटोही कि बुझैत जे हरा गेलौं। हराइत तँ लोक ओतऽ अछि जतऽ
बाटक बोध नै रहैत अछि। मुदा आेहो तँ हराएब नहियेँ भेल? कारण जे जेत्ते
दूर धरि बाट बनल छल ओतबे ने देखब भेल तइसँ आगू तँ बुझए पड़त जे आगू बनबे ने कएल
वा बनि कऽ बोनाओल गेल कि अतिक्रमण भेल आकि बाढ़िमे टूटि कऽ दहा गेल। इत्यादि-इत्यादि। ने
मैयाँ किछु बजैत आ ने रूक्मिणी।
घरहटिया जहिना
कोनो-बत्तीक
अगिला बान्ह बन्हैसँ पहिने पछिला वा बगलमे छुटल वा टुटल बान्ह देख पहिने
सरियाबए चहैत, जँ से
नै हएत तँ अगिला वानि उवानि हेवाक डर रहैत। मैयाँ अपन पेंइतीस बर्खक भूतमे भुतिआइत
तँ रूक्मिणी वर्त्तमान पेंइतीसम बर्खक दिन महिनाक बन्हन बन्है-खोलैमे लगल।
थैरक माल जकाँ एक दोसरकेँ खाली देखैत, बजैत किछु ने। तँए कि ओकरा बोल नै छैक। बाजि कऽ
केकरो बाधा नै दिअए चाहैत। मुदा बिनु बजनौं तँ काज नहियेँ चलत। नै किछु करब तँ
बजबो नै करब, जँ
बजबेक मन हएत तँ कि बाजब,
मुदा भूख-पियास
तँ से नै मानत। जखन कंठ जरतै तँ मुँहक मुँहठी फूटि बोमिएबे करत। मनुष्य तँ से
नै छी। बुधिक मालिक छी। नीक-अधलाक विचार तँ करबे करत। जिनगी तँ जिनगी छी, नीक कि अधला चलबे
करत। तहूमे नव काजमे सोलहनी नीक असंभव। नइकेँ हँ बनैमे दूरी छइहे।
नीचाँ-ऊपर दुनूक नजरि
उठबो करैत आ खसबो करैत। कखनो एकक खसल रहैत दोसरकेँ उठैत तँ कखनो दोसरकेँ खसल रहैत
तँ एकक उठैत। तइ संग ईहो भऽ जाइत जे कखनो दुनूक धरती दिस खसल रहैत तँ कखनो अकास दिस
उठैत। धरती दिस खसल रहने एक-दाेसरक चेहरा नै देख पबैत मुदा अकास दिस उठिते भक-इजोत जकाँ देखबो
करैत आ नहियोँ देखैत।
बौआइत मैयाँक मन
जिनगीक पेंइतीसम गाछ लग पहुँचते किछु देखलकन्हि। देखिते मन चनचनेलन्हि।
ओही बर्ख हाथक चुड़ी फूटल। एना किअए भेल? बिनु चुड़ीक पुरुखक हाथ जिनगीक हथियार उठा चलैत
अछि आ नारीक दुनू हाथक चुड़ी कखनो सौन्दर्य सजबैए तँ कखनो अपसगुन कहबैए। जे
प्रकृति पुरुष-नारीक
बीच भेद बना सृष्टि सृजनक बाट बनौलक ओ की दुनूकेँ जीबैक बाट नै बनौने हएत। मुदा...? अपन पेंइतीसम
बर्खक परिवार देखलन्हि। पिता पढ़ल-लिखल किसान छलाह। एक किसान ओहनो हाेइत जे पढ़ल-लिखल नै छथि।
मुदा पिता ओहन पढ़ल-लिखल छलाह जे विद्यालय, महाविद्यालयक सेवा कऽ सकै छलाह मुदा
इच्छा रहितो अवसर नै भेटलन्हि। कारणो स्पष्ट अछि जे ‘गनल कुटिया
नापल झोर’ छलैक।
गनल-गूथल
जगह रहने दोसराकेँ अवसर किअए आ कतए भेटत? हंशराजक स्वभावो एहेन जे बीत भरिक पेट कोन असाध
अछि जे जिनगीकेँ एते भयावह बुझै छी। तहूमे मरौसी खेत जखन अछिये तँ ओकरे सेवा किअए
ने कऽ कऽ परिवारक फुलवाड़ी लगाएब। जइ दिन जमाए मुइलखिन (सरोजनीक पति) तइ दिन घरक
केवाड़ जहिना भीतर-बाहरकेँ जोड़ैत अछि, मुदा अन्हारमे चोटो लगैत अछि तहिना हंशराजक मनमे
उठलन्हि। बेटी-सरोजनीक
उमेरे कि भेल? अधोसँ
कम। जतबो अपने दुनू परानी संग देखलौं ततबो बेटी कहाँ देख सकत। तहूमे अगिला सहारा
सेहो नै छैक। भगवानक केहेन लीला छन्हि जे दुनू सन्तानो हरि लेलखिन आ आइ स्वामीकेँ
सेहो हरि लेलखिन। मनमे उठलन्हि जे जहिना अपन बेटी छी तहिना ने मदनेसरक बहिन
सेहो छिऐ। आइ जीबै छी तँए बेटीक ममता अछि, जँ मरि गेल रहितौं तँ नीक कि बेजाए मदनेसरे करैत।
तहूमे संयोगो नीके अछि जे दुनू परानीक संग बेटो-पुतोहु तँ अछिये।
पोता-पोती जँ
अछियो तँ पूछब ओते जरूरी नहियेँ अछि। से नै तँ मदनेसरकेँ पुछैसँ पहिने ओकरा
माइयेकेँ पूछब उचित हएत। जहिना दुनूक पिता छिऐ तहिना तँ माइयो दुनूक छथिन।
सोर पाड़ि पुछलखिन- “आब
सरोजनीक जिनगी केना आगू बढ़तै?”
पति-हंशराज जहिना पढ़ल-लिखल रहथि तहिना
पत्नी विद्यालयक आँखि नै देखने। मुदा तँए कि परिवारकेँ आगू बढ़ैमे वाधा भेल
आकि होइए। किअए हएत। मुदा कोनो काजक ओझरी छोड़बैक दुनूकेँ अपन-अपन नजरि तँ
छन्हियेँ। जे काज सभदिना अछि ओ तँ दिनक गिनती जकाँ अछि। अबैत रहत पाछू
ससरैत रहत। मुदा जे सभदिना नै अछि ओकर महत तँ अलग होइते छैक। पतिक मुँह दिस
देखैक हूबा सावित्रीकेँ हेबे ने करैत। आँखि जँ उठबो करैत तँ बेटीक पाछू जमाए
आगूमे ठाढ़ भऽ जाइत। मिथिलानी जकाँ, जतए िनर्मल, कोमल नयन रहैत ततए िनर्झर िनरन्तर सबुरक गाछकेँ
सेवा केनिहार सबूर-दानाक घाैंदाक बीच रहि अपन पूर्ण वय व्यतीत करैत फलाहार
बनैत अछि। सावित्रीक मनमे किअए पतिक विचार अँटितनि अपने बेथे बेथाएल। किछु
हँ हूँ नै बाजि सकली। किछु उत्तर नै पाबि हंशराज बेटा मदनेसरकेँ सोर पाड़लन्हि।
मदनेसर एम.ए. पास। हाइ स्कूलक
शिक्षक। हंशराज कहलखिन- “बौआ, सरोजनीक अगिला
जिनगी केना कटतै?”
पिताक प्रश्नक जबाब दइसँ पहिने मदनेसर मने-मन विचारए लगल
जे, प्रश्न
जते सोझ-साझ
केलन्हि उत्तर ओते सोझ-सााझ नै छैक। तहूमे भाय-भौजाइक बेवहार
जग-जाहिर अछि।
तेहेनठाम आगू बढ़ि बाजब धड़फड़ बाजब हएत। पुन: प्रश्न दोहरबैत
हंशराज कहलखिन-
“बौआ, जहिना दुनियाँक
सभ काजक लिंक बनल अछि तहिना ने सामाजो आ परिवारोमे अछि। अखन जे समस्या परिवारमे
उपस्थित भऽ गेलह, ओ तँ
परिवारेक सभ मिलि ने समाधानो करबह।”
मदनेसर उत्तर देलकन्हि- “बाबू, जहिना अहाँ पुछब उचित बुझलौं तहिना बहिन-सरोजनीसँ सेहो
जरूरी अछि?”
हंशराज- “विचारणीय
उत्तर देलह। मुदा आगू?”
मदनेसर- “जेहन जिनगी
ओ जीबए चाहत तइले जतए मदति संभव हेतै, सएह ने कऽ सकै छिऐ।”
जहिना रूमाल
चाेरक गेन पतिआनीक एक गोटे पाछू राखि खेलल जाइत तहिना धरतीक पतिआनी लगल मनुष्यमे
हरेकक अपन पाछू गेन राखल छैक।
रूक्मिणीक जिनगी
मैयाँ जकाँ नै जे भूत दिस देखलासँ लोहियाक जिलेबी जकाँ पेनसँ ऊपर उठि जाइत
तेना अछि जेना केकरो पाछूक भोग भोगल आ आगूक भोग सोझमे राखल रहैत।
गामक सुभ्यस्त
परिवार रहने रूक्मिणी मैट्रिक पास केने रहथि। ओना हाइ-स्कूलक नियमित
छात्राक रूपमे नै पढ़लन्हि मुदा घरेपर पढ़ैक बेवस्था पिता कऽ देने रहनि। अपनो
पढ़ै-लिखैसँ
विशेष रूचि तइ संग एकटा पारिवारिक शिक्षक सेहो रखने रहथि। प्राइवेटेसँ पढ़ि
रूक्मिणी जिला स्कूलमे मैट्रिक प्रथम श्रेणीसँ पास केने रहथि। एक होइत पास
करब आ दोसर होइत नीक रिजल्ट करब आ तेसर होइत कोनो खास विषयमे भरपूर नम्बर आनब।
गृह-विज्ञानमे
रूक्मिणीकेँ देखनुक नम्बर रहनि।
अठरह बर्खक अवस्थामे
जखन रूक्मिणीक बिआहक चर्च उठल तखने परिवारमे मतभेदक जोरन सेहो पड़ि गेल। रूक्मिणीक
पिता देवाननक विचार जे बेटीक बिआह अपने सन परिवारमे करब। जइसँ रूक्मिणीक जिनगीमे
कहियो अलढ़पन नै औतै। सभ जिनगीक सभ काजक लूरि छइहे अपन करैत रहत। किअए हमरे
कलंक लागत जे साउसो-ससुरक मुँहसँ कहियो नै सुनत जे जेहने ढहलेल-बकलेल बाप-माए रहतै तेहने
ने बेटो-बेटी
हेतै। बेटीक बिआह केहेन घरमे हुअए तइ सम्बन्धमे पतिसँ भिन्न विचार माए-दमयन्तीक।
दमयन्तीक विचार जे संक्षेपमे छलन्हि मुदा गंभीर। ओ ई जे बर-कन्याक मिलान
आ पाँच कर भोजन पाँच हाथ वस्त्रक दुख नै होय। जँ से नै हेतै तँ परिवारमे रगड़े-झगड़े किअए
हेतै। भने चैनसँ दिवस गुदस कऽ लैत, भगवान बाल-बच्चा देबे करथिन ओकरो अपने जकाँ जहिना
अरिआइत कऽ आनत तहिना करै जोकर बना अपन...। तँए धन्य–सन जखन बिआहक
बात पक्का हुअए लगत तखन अपन विचार राखब। मुदा मामक विचार किछु भिन्न छलन्हि।
बैंकमे नोकरी करैत, तँए
बैंकमे नोकरी केनिहारक संग भगिनीक बिआह करब उचित बुझैत। जँ पाइयो-कौड़ीक मदतिक
जरूरत पड़तै तँ बूझल जेतै। अपनो परिवार तँ तेहेन नहियेँ छै जे खर्च नै कऽ पाओत।
एक दिस जहिना डाॅक्टर लड़का डाॅक्टर लड़की संग बिआह करए चाहैत अछि, जइसँ एक जतिया
परिवार (काजक
एकरूपता रहने) बनि
रहल अछि, तँ
दोसर दिस किसान परिवारसँ डाॅक्टर, इन्जीनियर, वकील, प्रोफेसर, शिक्षक इत्यादि पैदा लऽ रहल अछि। तँ दोसर दिस किसानी
जिनगीसँ भिन्न अनेको जिनगी ठाढ़ो तँ भेले जाइ छै। सार-बहिनोइक (रूक्मिणीक पिता
आ मामक) मतभेद
नीक जकाँ सोझामे आबि गेल। देवानन पेशोपेशमे पड़ि गेलाह। कन्यादान सन यज्ञ परिवारमे
हएत तइठाम एक पक्षे विरोधमे ठाढ़ भऽ जाएत। मुदा फेर मनमे उठि जान्हि जे अपन
परिवार अपना ढंगे नै चला सकलौं तँ पुरुखे कि भेलौं एके पीपही ने ढोल-नङेरा संग सेहो
बजैए आ वीणा संग सेहो बजैए। खाली कनी रूपे ने बदलै छै। अपन पुरुखपना दुनियाँकेँ
की देखाएब? मुदा
मन ठमकलन्हि। पत्नीकेँ जानकारी देब जरूरी बूझि पड़लन्हि।
जहिना देवानन
पेशोपेशमे पड़ल छलाह तहिना पत्नियो पड़ि गेली। किएक तँ दुर्वासा जकाँ भाए-यशोधर कहि
देलखिन जे जँ हमर विचार नै रहत तँ हमरा कोनो मतलब बहिन-बहिनोइ अर भागिन-भगिनीसँ नै
रहत। थूक फेकए दरबज्जापर नै आएब। एक दिस नैहर दोसर दिस सासुर, एक दिस जन्मसँ
अठारह बर्खक परिवार आ दोसर दिस अठारह बर्खक पछातिक परिवार, एक दिस पति
दोसर िदस भाय, कि करब?
अपन सभ बात
दमयन्ती खोलि कऽ पतिकेँ कहि देलखिन। द्वन्द्वमे पड़ल पत्नीक विचार सुनि
देवानन झोंकमे कहि देलखिन- “जँ
पुरुख भऽ कऽ जन्म नेने छी,
पुरुषारथक सवारीसँ परिवारकेँ पार उतारब। जँ से नै तँ जाबे जीबै छी ततबे दिनक
कर्ता-धर्ता
छी, पछाति
देखए आएब।”
रूक्मिणीक बिआह
होइसँ पहिने बपहर-मात्रिकक
बीच कसमकस विवाद फँसि गेल। मुदा पत्नी आ अपन सहोदर-बहिनक विचार
सुनि देवानन पघिल गेला। जहिना पाथर शील पैदा करैए तहिना ने पानियो-हवा करैए। भाइक
सिनेह जीवित रखैत बहिन देवाननकेँ कहलकन्हि- “भैया, आइक युगमे कन्यादान परिवारक सभसँ पैघ मोटा बनि
गेल अछि, ओना
काजक हिसाबे परिवारक सभसँ पैघ काज नै छी। ओहूसँ पैघ-पैघ काज अछि।
मुदा भारी मोटा उठबैमे दोसराक सहारा लिअए पड़ै छै नै तँ मोटाकेँ खसै-पड़ैक डर रहै
छै।”
बहिनक विचार
देवानन मानि गेला। बिआहक भार सार (यशोधर)केँ सुमझा देलखिन। दू बीघा खेत देवाननक बेचा रूक्मिणीक
बिआह कमर्शियल बैंकक किरानी संग यशोधर करा देलखिन।
बैंकक नोकरीक
तीन बर्ख पछाति सुखदेव मिलल-जुलल रहल। गामसँ, किसान परिवारसँ पहिले-पहिल शहर
पहुँचल रहए। ओना असकरूआ परिवार तँए दुइये कोठरीक भाड़ाक मकानसँ काज चलबैत। अपने
भानसो करैत आ हाटो-बजार।
नोकरी करितो असगरूआ जिनगी जीबैत रहए।
तीन बर्ख पछाति
सुखदेवक दुरागमन रूक्मिणीक संग भेल। परिवारसँ लऽ कऽ दुनू बेकती -सुखदेवो आ रूक्मिणियो- लेल पर्याप्त
वस्तु–जातसँ
लऽ कऽ नगदो आ द्रव्यो बिआहमे भेटले रहै। बिआहक किछुए दिन पछाति सुखदेवक
परमोशन सेहो भेल। सार्वजनिक जिनगीसँ भिन्न व्यक्तिगत जिनगीक क्रिया-कलाप सेहो होइत अछि।
प्राइवेट बैंक रहने सुखदेवक परमोशन किरानीसँ किरानी नै भऽ क्षेत्र बदलि गेल।
फील्डक काज भेटलै। व्यापारी, उद्योगपतिक संग आरो-आरो कतेक रंग-विरंगक लोकक
बीच जाइ-अबैक
अवसर भेटलै। भेँट-घाँट, उपहार, भोज-भातक संग आरो-आरो अवसर
सुखदेवकेँ हाथ लगलै।
दू कोठरीक मकान, वस्तु–जातसँ तेना भरि
गेल जे उठब-बैसब, चलब-फिड़बमे
असोकर्ज हुअए लगलै। बैंकक लेन-देनक नव-नव जानकारी सेहो भेलै। अँटाबेशक जगह दुआरे मकान बदलैक
विचार करिते सुखदेव जमीन-कीनि अपन मकान बनबैक विचार केलक।
दुनू दिसक
आमदनी देख मकान बनाएब हल्लुके बूझि पड़लै। भारी तँ ओतए होइत अछि जतए पेटक भूख, बेटीक बिआह आ
बाल-बच्चाकेँ
पढ़बैक समस्या पकड़ने अछि। भूखल पेटक जिनगी पहिने अन्न पानि मंगैत, भलहिं ओ निवस्त्रे
टुटले घरमे किअए ने रहैत हुअए से तँ सुखदेवकेँ नै। जइ परिवारमे जनम भेलै सेहो
मध्यम परिवार छलैक, तँए भूख-पियास, वस्त्र-घरक दुखसँ अपरिचित
रहबे करए। बैंकक लोन आ बाजारक वस्तुक सहयोग भेटबे केलै, नीक घर बनौलक।
घर बनबिते जीवनोपयोगी आरो-आरो वस्तु-जातसँ भरए लगल। भरबो केलक। जिनगीक क्रिया
दिनाे-दिन
बदलए लगलै। ने खाइक ठेकान आ ने पीबैक। ने रहैक ठेकान आ ने बजैक। सभ तरहक काज
बेठेकान हुअए लगलै। पढ़ल-लिखल रूक्मिणी पतिक सभ आकलन करैत। मकान, गाड़ी, बेटाक पढ़ैक इत्यादि
कर्जसँ दबल सुखदेव दिस नजरि उठबिते रूक्मिणीक मन कनए लगैत। नोकरीक दरमाहा
भलहिं कर्जक किस्त चुकबैमे जाइत होन्हि कमीशनक आमदनी आ उपहारसँ कर्जक महसूस नै
होइत होन्हि, मुदा
जिनगीयो तँ बेठेकाने अछि। कखन अछि आ कखन ढन दऽ चलि जाएत तेकर कोन ठीक छै। एहन
स्थितिमे कर्जक देनदार के बनत? की नोकरी अछि जे दरमाहासँ पुराएब।
सुखदेव आ रूक्मिणी
दुनूक विचारधारा सदति टकराइत। टकड़ेबो केना नै करैत। एक दिस किसानी संस्कार आ
संस्कृतिमे पलल मिथिलांगना, दोसर दिस हाल-सालमे बसल भदवरिया माछ सदृश जिनगी।
बिआहक चौदहम
बर्खक आक्रमण रूक्मिणीकेँ बरदास नै भेल, जेकर फल दुनू िदस भऽ गेल। आक्रमण भेल जे अखन धरि
सुकदेव विपरीत दिशामे एते आगू पहुँच गेल छल जतए मिथिलाक धरोहरकेँ खेलक गेन
जकाँ गुड़का लतिऔल जाइत। जे सुखदेव पहिने बैंक समैसँ जाइत-अबैत छल ओ मास-मास दिन डेरासँ
हराए लगल। असकरे रूक्मिणी गुमसरि गुमसरि घरक बीच गमबैत। मनमे सदति काल उठैत
जे ई कोन जिनगी भेल? बेटा
देहरादूनमे पढ़ैए, अपने (पति) भरि दिन निपत्ते, असकरे माटिक
मुरुत बनि ओगरबाहिक भाँजमे रहब, की यएह एक पढ़ल-लिखल नारीक कर्तव्य भेल? हजारो मील
दूरसँ आबि बसल छी, बोली-वाणीसँ लऽ कऽ
क्रिया-कलापमे
अन्तर अछि। एहना स्थितिमे केकरो-ऐठाम जाएब-आएब कते उचित हएत? अखन धरि घरसँ
नै निकललौं, तइठाम
लोककेँ लगले चीन्हि केना लेब? तहूमे लुटिहारा समै से आबि गेल अछि। धन-धर्म सबहक
लुट्टीस दिन-देखार
भऽ रहल अछि। बत्तीसम बर्खक अवस्थामे सुखदेव आ रूक्मिणीक सम्बन्ध विच्छेद
भऽ गेल। एकटा बेटा रहने (जे दूनमे पढ़ैए) तँइ भेल जे अपन िनर्णए बेटा स्वयं करत। वाकी सम्पतिमे
अपन नैहरक देल जे किछु छलैक से लऽ कऽ रूक्मिणी पतिक घरसँ निकलि गेल। मुदा
हाथक चुड़ी चुनचुनाइते छैक। अपन सासुरक अंतिम परावक लग रूक्मिणी गुमे-गुम पहुँच गेली, मैयाँकेँ विस्मित
चेहरा देख रूक्मिणी उत्तेजित अवाजमे बाजलि- “मैयाँ, पावनिक दिन छिऐ। तहूमे नर्क-निवारण
चतुर्दशी। औझुके उपास ने नर्कक बेड़ी काटक। आकि श्राद्ध-कर्मक भरोसे
रहत। की मने-मन सोचै
छथिन?”
मने-मन कि सोचैत छथिन, सुनि सरोजनी-मैयाँक अलसाइत
मन फुड़फुड़ा कऽ जागल। बजली- “रूक्मिणी, अखन अहाँ दुनियाँक
तीत-मीठ ओते
कहाँ बुझलौं हेन...।”
आगू बजैक बात सरोजनी-मैयाँक पेटेमे रहनि तइ बीच रूक्मिणी
चाँइ दऽ चनचना गेली- “से किअए
कहै छथिन, मैयाँ?”
बाल-बोध बूझि मैयाँकेँ मिसियो भरि लहड़ि नै उठलन्हि।
पोखरिक शान्त पानि जकाँ मन असथिरे रहलन्हि। बजली- “रूक्मिणी, मनमे उठि गेल
छल जे पेंइतीसे बर्खक अवस्थामे विधवा भेल रही आ अहँूकेँ देखै छी जे अही उमेरमे
पतिसँ सम्बन्ध विच्छेद भेल।”
मैयाँक बात सुनिते रूक्मिणी चमकि कऽ चमचमेली-
“मैयाँ, हिनकर अखन कते
उमेर छन्हि?”
“सत्तरिम
छी।”
“परिवारमे
के सभ छन्हि?”
“कियो
ने। असकरे।”
मैयाँक असकर सुनि रूक्मिणीक मनमे ठहकल अपनो जिनगी तँ
भरिसक तहिना अछि। बाजलि- “असकर
लेल लोक घर-दुआर
बना किअए रहत, ओ परिवार
केना भेल?”
रूक्मिणीक प्रश्न सुनि ठहाका मारि मैयाँ हँसली। प्रश्न
उठबैत बजली- “परिवार किअए
ने भेल। परिवारेक समूह ने समाज छी। तइले ई कहाँ फुटाओल अछि जे एक गोटेक परिवार
परिवार नै भेल आ दस-बीस गोटे रहने परिवार भेल। एक गोटेक असकरूआ परिवार भेल।
मुदा जरूरतो तँ परिवारोक ओकरे हेतै किने।”
मैयाँक विचारकेँ
सुहकारैत रूक्मिणी बाजल- “मैयाँ, ईहो असकरे छथि
आ हमहूँ असकरे छी। तइ बीच ई पूर्ण जिनगी जीब लेलन्हि आ हम लसकि गेल छी। तँए
हमरो हाथ पकड़ि अपना दिस खींच लोथु जइसँ हिनके जकाँ टहलैत-बुलैत जिनगी
रहत।”
रूक्मिणीक आत्मा-रामकेँ अकानि मैयाँ बजली- “रूक्मिणी, अपन जिनगीक
लोक अपने मािलक छी। जेहेन बना जीबए चाहब तेहेन बना जीब सकै छी। मुदा समाजक बीच
परिवार आ परिवारक बीच व्यक्ति होइत अछि जइ दूरीकेँ टपि आगू बढ़ब असान नै
अछि। अपने बात कहै छी जे,
माता-पिता
बिआह करा घरसँ अलग कऽ देलन्हि, जइठाम केलन्हि ओ ठौर ढहि गेल। तइठाम अहीं कहू जे
दुनियाँमे के अपन रहल। कतए जैतौं कोनो कि हमहींटा एहेन छी आकि पुरुखो सभ छथि।
गोसाँइयो अस्त होइपर भेल,
दोसर दिन निचेनसँ आरो गप करब।”
(जारी…)
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
पठाउ।
बिन्देश्वर
ठाकुर, धनुषा, नेपाल। हाल-कतार।
भुखाएल जानवर सभ {लघुकथा}
कतेको दिन बाद आइ फेर सप्तरङ्गी आकाश देखऽ मे आएल । मौसम
पूरा साफ आ बुलन्द। ऊपरसँ टिप-टिप पानि पड़ि रहल, जेना बसन्तक
आगमन भेल हुअए। मुदा मन्टुटियाक आँखि नोरसँ भरल। पिजड़ामे कैद भेल सुगा जेहन छटपटा
रहल। सच मानू तँ
ऐठाम सँ भागि जएबाक प्रयासमे मुदा ई असम्भव।
मन्टुटिया एकटा नेपाली नारी अछि जे १ साल पहिने
कमएबाक लेल कतार आएल रहए। गामपर घरबला दोसर महिला संगे विवाह कऽ एकरा छोड़ि देलाक
बाद अपन एकटा बेटीकेँ माए-बाप लग राखि दर-दर ठोकर खाइत कतार पहुँचलीह। एतौ ओतेक नीक
काम नै मुदा एगोट शेख[माली]क घरमे कामकाज मिललै। दु:ख तँ बड छलै, तैयो अपन
बाध्यता आ विवशता देखि दिन काटऽ लागल।
मन्टुटिया देखऽमे पातरे-छितरे,
श्याम रङ्ग, ने बेसी
नम्हर, ने बेसी
छोट। लगभग २५ बर्षक कड़ा जवानी। छोट-छोट आँखि आ दहिना गालपर तिलबा ततेक ने शोभै जे लोक सभ पछाड़ी लागि
जाथि। ओना काम घरक करितो शरीरक सिटसाट
कम नै करै। कतेक दिन तँ ड्राइभर लोकनि सेहो रुपैयापर प्रस्ताव आगू बढौने रहै पर ओ
सभ सफल नै भेलाह, कारण इज्जत
बेचि खाएब मन्टुटियाकेँ पसन्द नै छनि।
कतारक राजधानी दोहासँ २ किलोमीटर पश्चिम नजमा जाएबला बाटमे होली डे बिल्ला
होटलक पछाड़ीमे मन्टुटिया मालिकक घर छै। अपने बुढबा २ टा शादी कएने छथि आ एखन ५५
सालक भऽ गेलाह। बुढबाकेँ १ बेटी आ ४ बेटा मिला कुल ५ गोट धियापुता छनि। जइमे जेठ
बेटीक विवाह भेल छै, सउदीये रहै छै
कहाँदन। बाँकी सभ कुमारे। खुल्ला साँढ़ जकाँ।
हिनकर बेटा सभ ततेक ने छिचोरा जे शुरुए दिनसँ मन्टुटियाक पछाड़ी हाथ धो कऽ पड़ल
छै। अतेक दिन तँ कोनो विधी बचि गेलाह। मुदा आजुक दिन मालिक दुनू मल्कानिक
संग हुमरा करबाक लेल सउदी गेल। एहने मौकाक इन्तजार छलै ओइ कौआ-चिल सभकेँ।
भरि दिन कतऽ रहै नै पता मुदा साँझ पड़िते धमधम चारु
भाइ आएल। प्रमुख गेट बन्द कएलक। अपन कोठामे जा खाना देबाक
लेल किलोल कएलक। मन्टुटिया खाना लऽ जखने आएल ओहो गेट बन्द भऽ गेल। निच्चामे पान-परागक पौच, मेग्डोनेल शराबक बोतल
तैयार, जेना
पूर्व योजना रहए। साथे टी.भी मे थ्री एक्स प्लेयर लगा काम उत्तेजनाक प्रयासमे। एकर
अतिरिक्त एकटा कोनो गोली रहै जे जूसमे धऽ कऽ मन्टुटियाकेँ पिया देलकै। मन्टुटियाक
माथापर कामदेब ताण्डव करए लागल। रङ्गमंच रन्कैत गेल। नाटक क्लाइमेक्स तरफ लम्कैत
गेल। धीरे-धीरे
सभपर जवानीक
भूत चढ़ैत गेल आ भुखाएल जानवर सभ मन्टुटियाकेँ लुटैत रहल। मन्टुटिया लुटाइत रहल, लुटाइत रहल...... बस लुटाइत रहल।
रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
अमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर
मिथिला ,बिहार
हारल विजेता
पात्र
1 . रोहित- 20 साल
2.मानू- 20 साल- रोहितक दोस्त
3.चिट्ठी चाचा- 45 साल- डाकिया
4.डाँक्टर बाबू -35 साल- डाक्टर
( रोहितक दलान परक दृश्य एक कोणमे
मौसमी फसलक किछु बोझ राखल अछि ।माँझमे टाटक घरपर हरियर तिलकोरक लत्ती लतरल अछि
।एकटा पुरान साइकिल टाटसँ सटा कऽ राखल अछि ।भऽ सकैए तँ एकटा नादि आ खुट्टा देल जा
सकैछ ।रोहित साधारण कपड़ामे घरक आगू ,सोचैक मुद्रामे एक कातसँ
दोसर कात टहलि रहल अछि ।रोहितसँ नीक परिधानमे मोनू पर्दाक पाछूसँ "रोहित-रोहित" चिकरैत मंचपर आबैत अछि ।आवाज सूनि रोहितक धियान टूटैत अछि आ फेर दुनू गला मिलैत अछि ।)
रोहित- मोनू ,ई क्रिचदार कपड़ा पहिर दुपहरियामे कतऽ जा रहल छें ।की कोनो खास गप छै की?
मोनू- खास गप की रहतै ।मोन भऽ गेलै ,पहिर
लेलौं।ओना रहित ,आगूक की प्लान छौ?
रोहित- (आश्चर्यसँ)प्लान।तोहर
गप नै बुझलियौ ,कने फरिछा कऽ कह ।
मोनू- अरे मूर्ख करियरकेँ प्लान ।
रोहित- अच्छे-अच्छे बूझि गेलियै ।
मोनू- इएह तँ तोहर प्रोबलेम छौ ,तूँ बुझिते बड देरसँ छेँ ।कने सोच ,इन्टर केला दू वर्ष भऽ गेलै आ एखन धरि बेरोजगारे बैसल छी ।कोना पार हेतै
जीवनक डगरिया रे भेया ।
रोहित- ठीके कहलें तूँ ।पिछला एक घण्टासँ हमहूँ इएह सोचै छलौं ।तोरा तँ बाबुओ जीक सहारा छौ मुदा हमर के? एकटा
बूढ़ माए जे खाटो परसँ नै उठै छै ।कतौसँ एक्को टाकाक आमदनी नै छै हमरा ।बटैया करै
छी ,दूध बेचै छी आ दवाइ-दारूक बाद जँ टाका बचै अछि तँ पोथी कीन पढ़ै छी
।तोरा की कहबौ ,हमर हालत तँ जानिते छें ।
मोनू- हँ हमरा बुझल अछि तेँ ने दुनू गोटाकेँ आब नोकरीक बारेमे सोचऽ पड़तै ।जँ नोकरी नै भेल तँ जीनाइ मोशकिल भऽ जेतै ।
रोहित- गप तँ सत्ते कहलें दोस ।दोस ,चरि चक्किया
ए.सी बला गाड़ी देख मोन होइत अछि जे एक बेर हमहूँ चढ़ितौँ ।बजारक गप सूनि बजारेमे अपन
छोट
परिवार संग रहबाक मोन होइत अछि ।मुखिया जीक हाथमे मोबाइल
देख कोनो नेना जकाँ मोन कानि जाइत अछि ।मुदा ई
सब एकटा मरनासन्न सपना जकाँ लागैत अछि ,दोस ।भागमे लिखल छै दिल्ली-बम्बइमे बोरा उठेनाइ तँ चरिचक्किया कतऽसँ भेटत ।
मोनू- गलत बात ,बिल्कुल गलत बात ।मनुखकेँ एते उदास नै हेबाक चाही ,जँ
जीलाकेँ तेसर टाँपर ,तोरा सन मनुख एते नकारात्मक सोच रखतै तँ
बूझें प्रलय आबि गेलै ।
रोहित- सोच नकारात्मक नै छै भाइ ,मुदा हालत एहन नै छै जे सकारात्मक सोचब
।ई घोर मँहगाइक युगमे जीनगी जीबाक लेल टाका चाही आ टाकाक लेल बोरा उठबैये पड़तै ।
मोनू- फेर वएह बात ।अरे हम कहै छीयौ ,तोरा बोरा नै उठबऽ पड़तौ ,तोरा एहन गुणीकेँ तँ नोकरी डिबिया लऽ कऽ ताकै छै ।
रोहित- एहनो कतौ भेलै यै ।आइ-काल्हि सरकारी नोकरी तँ ईदक चाने बनल छै ।
मोनू- आ प्राइवेट ।
रोहित- ओकरो लेल पहुँच चाही ।
मोनू- ( कर जोड़ैत) चूप रहू महराज ,चूप रहू ।एते भाषण जुनि
मारू ।नोकरी लेल फारम भरऽ पड़ै छै ,अहाँ कतौ भरलौँ की नै?
रोहित- हँ
,एकटा
परीक्षा देने छी ।अपन एक सालक बचाओल टाकाक हवण कऽ कऽ ।
मोनू- तँ फिकिर कथी के ?प्रतिक्षा करू ।एहि हवणक कुण्डसँ अमृतक
घैल जरूर बहरेतै ।हमरा विश्वास अछि अहाँ जरूर पास करब ।
रोहित- तोहर मुँहमे मिश्री ।(गम्भीर होइत)जँ अमृत नै बहरेलै तँ बूझ हमर जीवन बेकार भऽ जेतै ।
(मंचक पाछूसँ साइकिलक घण्टी
धिरेसँ बजनाइ शुरू होइत अछि आ धिरे-धिरे ध्वनी तीव्र होइत अछि
।रोहित आ मोनू उम्हरे देखऽ लगैत अछि ।पोस्टमैनक ड्रेसमे ।एक हाथमे किछु चिट्ठी आ कन्हपर एकटा बैग ,दोसर हाथसँ साइकिलक हेण्डिल पकड़ने ,मंचक एक कोणसँ चिट्ठी चाचाक प्रवेश होइत अछि ।)
रोहित ,मोनू- (एक साथ ,एक स्वरमे) प्रणाम चिट्ठी चाचा ।
चिट्ठी चाचा - खुश रहऽ बौआ ।
मोनू- कक्का ,आइ हम एकटा बात जानिये कऽ रहब ।
चिट्ठी चाचा- हँ हँ ,किएक नै जानबऽ ,जानि लए ।कोन बात जानबाक छऽ ।
मोनू- रोहित अहाँकेँ चिट्ठी चाचा किए कहै यै?
चिट्ठी चाचा- बड पुरान गप छै ।(रोहित दिश इशारा करैत) ई तीन-चारि वर्षक हेतै ।हम सब दिन चिट्ठी बाँटैक लेल
इएह बाटे जाइ छलियै आ एहिना जोरसँ घण्टी बजबैत छलियै ।हमर घण्टीक आबाज सूनि ई नाङटे गाँरि ,हँसैत -कूदैत सड़क धरि आबि जाइ ।
(रोहित लजा जाइत अछि)
मोनू- फेर की होइत छलै ।
चिट्ठी चाचा- पहिने ई सड़क कच्ची छलै ।पैघ-पैघ खाधि छलै सड़कपर ।साउन-भादो सौँसे सड़कपर थाल-कादोक शासन भऽ जाइ ।जखन ई कूदैत आबै तँ चुभ दऽ ओहि खाधिमे खसि पड़ै आ थाल-कादोमे सना कऽ भूत बनि जाइ छलै ।हा . .हा . .हा . . (सब हँसऽ लागैत अछि आ रोहित लाजे मूड़ि गोँति लैत अछि )
रोहित - छोरू ने चाचा ,अहूँ कोन गप उठा देलौँ ।
मोनू- नै नै ,हुअ दिऔ ।
चिट्ठी चाचा- तकरा बाद जखन कखनो इ कानै तँ एकर बाबी कहथिन जे चिट्ठी बाला
चाचा आबै छथुन ।ई बात सुनिते ई हँसऽ लागै आ वएह दिनसँ हमर नाम चिट्ठी चाचा पड़ि
गेलै ।की हौ रोहित ,इएह गप छै ने?
(रोहित स्वीकार करैत उपर-नीच्चा दू बेर मूड़ि डोलबैत अछि)
मोनू-चाचा ,तखन तँ अहाँक घण्टीमे बड पैघ जादू छै जे एकरा सनक उदास रहै बला मनुखकेँ
हँसा दै छलै ।
चिट्ठी चाचा- (आश्चर्यसँ ) उदास ।उदास किए रहै छै ।
मोनू- इएह नोकरी चाकरीक चिन्तामे ।
चिट्ठी चाचा- ले बलैया ।हम तँ गपक चक्करमे ओरिजने गप बिसरि गेलौँ ।नोकरीसँ
इयादि आएल ,तोरा दुनूक नामे चिट्ठी एलै यै ।(दू टा चिट्ठी निकालि ,रोहित दिश घूमि) ई तोहर (मोनूकेँ दैत) आ ई तोहर ।
(दुनू लिफाफा फाड़ि , चिट्ठी पढ़ऽ लागैत अछि ।धिरे-धिरे रोहितक मौलाइल मुँहपर
हर्षक रेखा आबऽ लागै छै ।एहने सन मोनूक मुँहपर सेहो )
मोनू- (खुशीसँ चिकरैत) मीता ,हमरा नोकरि लागि गेल ।
रोहित- (खुशीसँ) मीता ,हमहूँ परीक्षा पास कऽ गेलौँ
।इन्टरभ्यू परसू अछि ।
चिट्ठी चाचा- भगवानक घर देर छै ,अन्हेर नै ।तोरा दुनूकेँ नोकरी लगाइये
देलखुन मैया रानी ।
रोहित- चाचा ,एखन नोकरी नै लागल ।एकटा मौखिक
परीक्षा एखनो बाँकिए अछि ।
चिट्ठी चाचा- अरे जखन लिखित निकलि गेलै तँ मौखिको निकलिए जेतै ।चिन्ता जुनि
करऽ ।नीके नीके जा ,परीक्षा दऽ ,नोकरी
लऽ कऽ आबऽ ।मैया रानी भला करथुन ।अच्छेए ,हमरा और चिट्ठी
बँटबाक अछि हम जाइ छीअ ।
रोहित- ठीक छै चाचा ।
(घण्टी बजबैत चिट्ठी चाचा चलि
जाइत छथि )
रोहित- मीता ,तोरा कतऽसँ चिट्ठी एलौ ,कोन ठाम ,कोन कम्पनीमे ,केहन
नोकरी लागलौ?
मोनू- कने साँस लऽ कऽ बाज ।एना जँ एक्के बेर प्रश्नक बाढ़ि आनबें तखन
तँ हम भसिआइये जाएब ।
रोहित- बुझलियै ,बुझलियै ।नै एक फेर ,बेरा-बेरी तँ उत्तर दे ।
मोनू- दिल्लीसँ चिट्ठी आएल छलै ।जाहि कम्पनीमे बाबू काज करै छथिन ,ओहि कम्पनीमे सुपरवाइजरकेँ जरूरति छलै ,वएह पोस्ट
हमरा भेटल अछि ।
रोहित- मुदा कोना?
मोनू- ओकर ठिकेदार अपने इम्हरकेँ छलै ।बाबूजी ओकरा हमर पैरवी केलखिन
तँ ओ तैयार भऽ गेलै ।बाबू जी दिल्ली एबाक लेल चिट्ठी भेजने छथिन ।
रोहित- मीता ,जखन एगो दोस्त कामयाब होइ छै तखन
दोसर दोस्तक करेजक एक कोणमे खुशीक वर्षा होइ छै आ दोसर कोणमे दुखक ठनका खसै छै
।खैर ,तोहर कामयाबीसँ हम खुश छी ,बड
खुश छी ।हमर कामयाबी तँ एखनो माँझ सागरमे हेल रहल छै ,जानि
नै भेटतै कि नै भेटतै ।
मोनू- अपनेक बहुत-बहुत धन्यवाद खुश हेबाक लेल ।आब अहूँ इन्टरभ्यू
देबाक ओरियान करू ,हमहूँ जाइ छी दिल्लीक लेल रिजर्वेसन
कराबऽ ।
रोहित- ठीक छै ।फेर इन्टरभ्यूसँ एलाक बाद भेँट हेतै ।
मोनू- बेस्ट आफ लक ।
रोहित- रूक ।एकटा बात और हमरा आबै धरि तूँ गामेमे रहिहेँ ।
मोनू- से किएक ?
रोहित- जँ हम कामयाब भऽ जेबै तँ खुश हेबाक लेल ।
मोन- हम तँ सदिखन खुश रहै छी ।ओना तोरा आबै धरि हम दिल्ली नै जेबौ ।
रोहित- धन्यवाद ।
मोनू-(गाबैत अछि) हम होगेँ कामयाब ,हम होगेँ कामयाब ।
(दुनू पर्दाक पाछू चलि जाइत अछि )
*************** पट-परिवर्तन **********************
(मंचपर बाटक दृश्य अछि ।पर्दाक
एक कोणसँ रोहित मंचपर आबैत अछि ।पीठपर एकटा बैग लादल छै ,केश
छिड़ियाएल ।उदास ,कननमुँह केने ,मंद
चालसँ चलि रहल अछि ।तखने गीत गाबैत मोनूक मंचपर प्रवेश)
मोनू- आबि गेलें नोकरी लऽ कऽ ।
(रोहित बिनु किछु बाजने चलिते
रहैत अछि)
मोनू- अरे रोहित ,तोरे कहै छीयौ ।रूक . .रूक
ने ।
(रोहित फेर बिनु बाजने चलिते
रहैत अछि ।मोनू दौड़ कऽ रोहित लऽग पहुँचैत अछि आ रोहितक हाथ पकरि लैत अछि ।रोहित
रूकि जाइत अछि ।)
मोनू- कते देरसँ तोरा सोर करै छीयौ ।तूँ किछु सुनिते नै छें ।किछु तँ बाज ।कि भेलौ ।
(रोहित चूप अछि)
मोनू- धन्य छी महराज ।एक दिश बाजैत-बाजैत हमर मुँह दुखा गेल आ दोसर दिश अहाँ
फेविकाँलसँ अपन ठोर साटि लेने छी ।ठीके कहै छै परचारमे ,एक बार सट गया तो सौ साल धरि नै उखड़ेगा ।
(रोहित बिनु उत्तर देने चलबाक
कोशिश करैत अछि ।मुदा मोनू बाँहि पकड़ि रोकि लैत अछि ।)
मोनू- लगैत अछि बौआ नोकरी लऽ लेलनि । ई जीतक खुशीमे बौक भऽ गेलनि ।की
महराज ,जीतैये बला गप छै ने?
रोहित- (दुख भरल आवाजमे ,धिरेसँ) नै ,हम ई खेल हारि गेलौं मीता ,हम नाकामयाब भऽ गेलौँ ।
मोनू- झूठ
,सरासर
झूठ ।हम मानिये नै सकै छी ।तोरा सन मेधावी छात्र ई परीक्षामे फेल नै भऽ सकै छै ,किन्नौह नै ।
रोहित- हम सत्त कहै छी मीता। एहि रेसमे जीतलौँ तँ मुदा सबसँ पाछु रहि
कऽ ।
(मोनूक हँसैत मुँह उदास भऽ जाइत
अछि )
मोनू- मूदा ई भेलै कोना?
रोहित- टाका और पैरवीक चलते ।
मोनू- नै बुझलियौ ।कने फरिछा कऽ कह ।
रोहित- संगमे पाइ नै छल । दस किलोमीटर धरि पैदल चलऽ पड़ल ।
मोनू- की ओतऽ देरीसँ पहुँचलहीं ।
रोहित- नै ,पहुँचलियै तँ सबेरे मुदा अंग-अंग
थाकि गेल ।
मोनू - तखन की भेलै |
रोहित- सब छात्रकेँ बेरा-बेरी बजाओल जाइत छलै ।इन्टरभ्यू कक्षसँ किओ
मुस्कैत तँ किओ काननमुँह केने
निकलै छलै ।बेसी
कानिते निकलै ।थाकल तँ पहिनेसँ छलौं ओकरा सबकेँ देख हम बड डरि गेलौं ।
मोनू- अच्छए ,से बात ।आब बुझलौं ।महराज डरि कऽ भागि एलनि ।
रोहित- नै नै ,एहन गप नै छै ।
मोनू- तँ केहन छै से ने कह ।
रोहि- पहिने पूरा सुन तँ बीच्चेमे लोकि लै छेँ ।
मोनू- कह ।
रोहित- साँझ होइत-होइत सबहक इन्टरभ्यू भऽ गेलै ।सबसँ अंतीममे हमर
बारी एलै ।हमरा बजाओल गेल ।डेराइत-डेराइत हम अंदर गेलौं ।एकटा बड़का टाबूलक एक दिश तीन टा अफसर बैसल छलै ।दोसर दिश एकटा कुर्सी खाली छलै ।हमरा
बैसै लेल कहलकै तँ हम ओहि कुर्सीपर बैस गेलौं ,मुदा थाकल मोन एखनो डेराएले छल ।हम अपन
सबटा सार्टिफिकेट देलियै ।ओ तीनू अफसर सार्टिफिकेट देखऽ लागलै ।
मोनू-सार्टिफिकेट देख तँ प्रसन्न भऽ गेल
हेतै अफसर सब ।
रोहित- हँ ।ओकर बाद तीनू बेरा-बेरी प्रश्न पूछऽ लागल ।अलग-अलग
क्षेत्रसँ अलग-अलग
तरहकेँ प्रश्न ।पहिने तँ हम घबरा गेलौं मुदा बादमे हमहूँ सब
प्रश्नक उत्तर फटाक-फटाक देबऽ लगलियै ।जतबे जबाब दियै ततबे प्रश्न पूछै ।हमर जबाब सूनि तीनू अफसरक
ठोरपर
मुश्कान नाचऽ लागलै ।दस-पनरह मीनट धरि प्रश्न पुछिते गेलै आ हम जबाब
दैत गेलियै ।अन्तमे ओ सब चुप भऽ गेल आ अपनामे तीनू कानाफूसी
करऽ लागल ।ओहिमेसँ एकटा एजगर अफसर उठि कऽ हमरा लग आबि गेल ।हमहूँ ठाढ़ भऽ गेलौं ।ओ
हमर पीठ ठोकि देलक आ बाहर जाइ लेल कहलक ।हम अपन सार्टिफिकेट सब समटि बाहर आबऽ
लागलौं ।
मोनू- जखन एते नीक इन्टरभ्यू गेलौ ।अफसर तोहर पीठ ठोकि देलकौ तखन
नौकरी किएक नै भेटलौ ?तूँ फेल कोना कऽ गेलेँ ?शाइद तूँ मजाक करै छें ।झूठ बाजै छेँ ।
रोहित- नै नै ।ने हम मजाक करै छी आ ने झूठ बाजै छी ।हम बिल्कुल सत्त
बाजि रहल छी ।
मोनू- तखन असलमे भेलै की?
रोहित- जखन हम बाहर आबै छलियै तखने एकटा अफसरक मोबाइल बाजलै ।ओ फोन
उठा कऽ बतियाए लागलै ।ओकर बार्तालापसँ बुझना गेल जे कोनो बड़का नेताक फोन छै
।ओम्हरसँ किछु कहलकै तँ ओ अफसर कहलकै जे "सर
,आपका
कनडिडेट इस लड़का से बहुत ज्यादा कमजोर है ।एक हीं सीट बचा है इसलिए नौकरी इसी लड़के
को मिलेगा ।"उम्हरसँ और किछु किछु कहल गेलै मुदा अफसर ना-नुकुर करैत रहल ।अन्तमे अफसर कहलकै"अब
सर आप नहीँ मानियेगा तो आपका काम करना हीँ पड़ेगा लेकिन दाम
दस लाख लगेगा ।" ई कहि ओ फोन काटि देलकै
।तखन धरि हम बाहर आबि गेल छलौं ।
मोनू- लागै छै पैरवीकेँ दानव पहुँच गेल छलै ।
रोहित- शाइद ।एकर बाद जखन पास भेल छत्रक लिस्ट साटल गेलै तँ ओहिमे हमर
नाम नै छलै ।
मोनू- आब सब गप हम साफ-साफ
बूझि गेलियै ।जा धरि टाका आ पैरवी बला रहतै ,जा धरि घूस लै बला
लोभी अफसर रहतै ,ता धरि कोनो गरीबक कल्याण नै भऽ सकै छै ।
रोहित- हम तँ पहिने कहने छलियौ , हमर कर्ममे
सरकारी नोकरी नै ,बोरा उठेनाइ लिखल छै ।
मोनू- चिन्ता जुनि कर ।मेहनत आ इन्तजारक फल मीठ होइ छै ।आइ नै तँ
काल्हि तूँ सफल हेबे करबेँ ।
रोहित- मोनू ।आब नै टाका अछि आ नै साहस बचल अछि ।आब कतौ कोनो परीक्षा
देबाक इच्छा नै बचल अछि ।एतबेमे हमर जिनगी तहस-नहस
भऽ गेल ।
मोनू- एना जुनि फाज ।सदिखन अपन सोच पोजीटीभ बना कऽ राख ।
रोहित- पोजीटीभ नै बनि पाबै छै यार ।माएक दबाइ खतम छै ।हाथमे एक्को
टाका नै छै ।पहिनेसँ कर्जाक बोझ तऽर दबल छी ।आब तँ किओ कर्जो-पैंचो नै दै छै ।की करब ,कोना जीयब ,किछु नै
फुराइत अछि ।एहनमे तूँ कहै छें पोजीटीभ सोचैक लेल ।एतऽ जीवन नीगेटीभ भेल अछि ,पोजीटीभ सोच कोन कुम्हारक चाकपर गढ़ब ।
मोनू- मीता टाकाक चिन्ता जुनि कर ।काल्हि हम दिल्ली जा रहल छी ।हम
अपन दरमाहा भेज देल करबौ ।तूँ खाली मेहनत कर ।मोन लगा कऽ पढ़ आ सरकारी नोकरी ले ।
रोहित -- तूँ भेजबेँ वा किओ और देत ,हएत तँ
कर्जे ने?
मोनू- हमर मदतिकेँ कर्जा नै मान ।एते दिन पढ़ैमे तूँ हमर मदति अपन
ज्ञानसँ केलें ,हमर टास्क बना कऽ केलें ,आइ हम तोहर मदति
पाइसँ करबौ ।हिसाब बराबर ।
रोहित- तैयो
।
मोनू- तैयो ,तैयो की? तैयो-बैयो किछु नै ।मोन बेसी छोट नै कर ।सफरसँ थाकल
हेबेँ ।जो स्नान -धियान कऽ
,पेट
पूजा कर ।कने कालमे हमहूँ आबै छीयौ ।
रोहित- की
करबै पेट पूजा ।चाउरो-दालि तँ नै छै घरमे ।जीनगी गाराक घेघ भऽ गेल अछि ।कखनो कऽ होइत अछि एहन जीनगीसँ
मरनाइ
नीक ।
मोनू- बेसी बात नै बना ।खुशी खुशी जो ।आराम कर ।थाकल देह छौ तेँ अल-बल
सोचाइ छौ ।जो . . .जो . . . ।
(दुनू पर्दाक पाछू चलि जाइत अछि)
********************** पट -परिवर्तन ********************
(रोहितक दलानक दृश्य ।रोहित
धरतीपर बेहोश पड़ल अछि ।वायाँ हाथक कलाइसँ खून बहि रहल अछि ।दायाँ हाथक लऽग एकटा
चक्कू राखल अछि ।पर्दाक पाछूसँ रमेशकेँ सोर पाड़ैत मोनूक प्रवेश)
मोनू- देखू
।यात्रासँ एतेक थाकि गेलै जे बीच्चे दलानपर सूति रहलै ।(रोहितक
लऽग आबि ।घबराएल) ।अरे बाप रे बाप ।ई की
भेलै? एकरा हाथसँ तँ खून बहै छै । (झूकि कऽ चक्कू उठा लैत अछि) अशांत मोनमे शाइद
आत्महत्या करबाक प्रयास केलक ।अपनेसँ हाथक नस काटि लेलक ।अरे बाप रे बाप ।आब की
करियै हम . . .डाँक्टर . . .डाँक्टर . . .किओ डाँक्टर के बजा . . .के . . .के . . .के जे . . .हमरे जाए पड़तै ।(चिकरैत) डाँक्टर बाबू ,यौ डाँक्टर बाबू ,दौरू यौ डाँक्टर बाबू . . .अनर्थ भऽ गेलै ,अनर्थ ।
(डाँक्टर बाबूकेँ सोर करैत मोनू
मंचक एक कोणसँ पर्दाक पाछू जाइत अछि आ दोसर कोणसँ डाँक्टर बाबूक संग मंचपर आबैत
अछि ।)
डाँक्टर बाबू- की भेलै? मरीज कतऽ छै?
मोनू- (रोहित दिश इशारा करैत अछि) इएह छै मरीज डाँक्टर
बाबू ।
डाँक्टर बाबू- की
भेलै एकरा?
मोनू- हाथक
नस काटि लेलकै ।बड खून बहि रहल छै ।जल्दी करू नै तँ मरि जेतै ।
डाँक्टर बाबू- हम एकर इलाज नै कऽ सकै छी ।ई पुलिस केस अछि ,हम फँसि जाएब ।
(डाँक्टर बाबू बैग उठा जाए लागै
छथि ,मोनू लपकि कऽ हुनक गट्टा पकड़ि लैत अछि )
मोनू- (कानैत) अहाँ एहि धरती परक
भगवान छी ।अहाँ एना जुनि बाजू ।एकर इलाज कऽ दिऔ । कर प्राण बचा लिऔ ।(डाँक्टर बाबूक पएर पकड़ैत) हम अहाँक पएर पकड़ै छी ,हमर मीतकेँ जीया दिअ ।अहाँकेँ हमर सप्पत ।इलाज शुरू करू ।
डाँक्टर बाबू- पएर छोड़ हमर ।हम एकर इलाज कोनो कीमतपर नै करबै ।एकर इलाज कऽ
कोनो संकट मोल नै लेब ।पहिने पुलिसकेँ बजा ।ओकरा एलाक बादे किछु हेतै ।
(डाँक्टर बाबू पएर छोड़बैक लेल
जोरसँ झटका दैत अछि ।मोनू कने दूर गुरकि जाइ छै ।डाँक्टर बाबू जाए लागै छथि ।मोनू
फेर हुनक बैग पकड़ि लैत अछि ।)
मोनू- जखन धरि पुलिस एतै तखन धरि हमर मीता मरि जेतै ।
डाँक्टर बाबू- मरि
जेतै तँ हम की करी?अपन प्राण दऽ दी ।मरि जेतै तँ मरऽ दहीं ई
हमर टेन्सन नै छै ।
मोनू- (जोरसँ बाजैत) धिक्कार अछि एहन
डाँक्टरीपर ।एतऽ लोक मरि रहल छै आ अहाँ प्रवचण दऽ रहल छी ,कानून पढ़ा रहल छी ।की इएह सिखाओल गेल छल डाँक्टरी कालेजमे
।धिक्कार अछि एहन डिग्रीपर ।धिक्कार अछि मनुखतापर ।जाहि मनुखकेँ करेजमे मसियो दरेग
नै हेतै ।जकरामे मनुखताकेँ सड़लो-गलल
अंश नै बचल हेतै ,हमरा हिसाबसँ ओ एक माए-बापक जनमल भैये नै सकै छै ।
डाँक्टर बाबू- (पिनकैत) रे छौड़ा ,तूँ हमरा गारि पढ़लें ।थम्ह तोरा देखबै
छीयौं ।
मोनू- (उपहास करैत) गारि ककरो उमरि देख नै पढ़ल जाइ छै ।किओ अपन नीक कर्मक प्रतापे इज्जत पाबै छै
तँ किओ अपन खराप कर्मक प्रतापसँ गारि सुनै छै ।मुदा अफसोस अहाँ दुनूमे सँ एक्को
टामे नै छी ।मनुखते नै तँ कर्म कतऽसँ ।
(तखने साइकिलक घण्टी बजबैत
चिट्टी चाचाक प्रवेश)
चिट्ठी चाचा - की
भेलै ।एते हल्ला किए करै छऽ ।
मोनू- हित
आत्महत्या करबाक प्रयास केलक ।ओ वेहोश अछि ,आ ई (डाँक्टर बाबू दिश इशारा करैत) डाँक्टर इलाज करैसँ मना करै छथिन ।
चिट्ठी चाचा- हौ डाँक्टर ।तोरा लऽग लूरि छऽ तखन तँ लोक पूछारि करै छऽ ।समाजक
प्राणी भऽ समाजसँ एते कतिआएल रहनाइ नीक नै छै ।(हाथ जोड़ैत) हम तोरा आगू हाथ जोड़ै छीअ ।तोरासँ जेठ भऽ विनती करै छीअ ।एकरा जीया दहक ।एकरा
गरीबक कल्याण कऽ दहक ।
डाँक्टर बाबू- नै कक्का ।हमरा माँफ करू ।कोर्ट कचहरीक चक्करमे हम नै पड़ब ।
(डाँक्टर चलनाइ शुरू करैत अछि
।मोनू पाछूसँ डाँक्टरक गर्दनपर चक्कू राखि दैत अछि ।)
मोनू- (चिकरैत) डाँक्टर बाबू ।आइ जँ एतऽसँ हमर मीताक लहाश उठतै तँ हम अहूँक राम नाम सत्य कऽ
देब ।
डाँक्टर बाबू- (घबराइत) हे ,हे ,चक्कू हटा ,चक्कू
हटा ।ई गलत कऽ रहल छें ।
मोनू- आब सही -गलत फरिछेबाक शक्ति नै अछि हमरामे ।हम बस एतबे जानै छी ।आइ जँ एकर इलाज नै हेतै तँ हम एखने तोहर इलाज कऽ देबौ ।
(डाँक्टर घूरि कऽ रोहित लऽग आबैत
अछि ।बैगसँ रूइ निकालि खून साफ करैत अछि ।मरहम पट्टी करैत अछि ।)
चिट्ठी चाचा- केहन युग आबि गेलै ।युवा वर्गमे आब लड़ैक साहस बचबे नै केलै
।छोट-छोट सन दुख भेलापर आत्महत्या ।लागैछ एहि यांत्रिक युगमे लोको सब रोबोट बनि गेलै ,जकरामे कोनो संवेदना नै होइ छै ।नीक- बेजाए सोचबाक शक्ति नै होइ छै ।प्रतिस्पर्धाक दौड़मे जानि नै कते युवा मृत्युक माला पहिर लै छै ।छोट-छोट
विपतिसँ डारा कऽ प्राण तियागि दै छै ।जानि नै कतऽ जा रहल छै
ई देश ।जानि नै कहिया जागतै युवामे चेतना ।
(रोहितकेँ होश आबै छै ।ओ उठि कऽ
ठाढ़ हुअ लागै छै ।मोनू सहारा दऽ कऽ उठबै छै ।)
रोहित- (चारू कात घूमि) की
हम स्वर्गमे छी ? की हमरा संग पूरा समाज मरि गेलै ?
मोनू- (चिट्टी चाचा दिश घूमि ।) चाचा होश आबि गेलै
।देखियौ ,देखियौ ,हमर मीत बचि
गेलै ।जी गेलै ।
(डाँक्टर बाबू आ चिट्ठी चाचा
रोहित लऽग आबि जाइ छथि ।)
रोहित- हम
मरऽ चाहै छी । हमरा किए जीएलें ।हमरा मरऽ दे ।
डाँक्टर बाबू- भगवान जीवन देलखिन जीबाक लेल ,मरबाक लेल
नै ।जँ मरनाइ नीक बात रहितै तँ आइ दुनियाँमे एक्को टा मनुख नै रहितै ।सब
स्वर्गवासी भऽ गेल रहितै ।जीवनमे सदिखन खुश रहबाक चाही ,मरबाक
नै ।देखै छऽ ,तोहर केस तँ हमर आँखि खोलि देलक ,तोरा सन युवाक आँखि आब कहिया खुलतै ?जानि नै ।
रोहित- खुश ,कोना रहब खुश ।जीनगीमे जखन हारक
सामना होइ छै तँ हँसी-खुशी ओहि हारक संग हेरा जाइ छै ,तखन मरनाइये नीक लागै छै ।
चिट्ठी चाचा- एक बेर हारि जेबाक मतलब ई तँ नै छै जे जीवन भरि लेल हारि
गेलियै ।एकटा घोंघा बेर-बेर देवालपर चढ़ैत अछि ,बेर-बेर
खसैत अछि ,मुदा हारि नै मानैत अछि ।लगातार प्रयास
करैत अछि आ एक दिन ओ देबालपर चढ़िये जाइत अछि ।हारि कऽ जीतैमे जे मजा छै से और
किछुमे नै ।
डाँक्टर बाबू- जे सब दिन जीतै छै ओ अपना-आपकेँ बलगर समझि लै छै ।ओकरा घमण्ड भऽ जाइ छै आ
फेर ओ कहियो मेहनत नै करै छै ।मुदा जे सब दिन हारै छै ,ओ सब दिन मेहनत करै छै आ ओ जखन जीतै छै
तँ विश्वविजेता बनै छै ।बुझलऽ ।
मोनू - अरे ,एकटा परीक्षामे फेल भेलासँ कोनो
प्रलय नै आबि जेतै ।जीवनमे एखन कतेको परीक्षा बाँकिए छै । मनुखक जिनगीत दोसर नाम
थिक परीक्षा ।मनुख कते परीक्षासँ भागत ।डेग-डेगपर एकटा नव चुनौती भेटै छै ।तेँ हिम्मर राख आ
सब किला फतह कर ।
चिट्ठी चाचा- दू सए साल धरि प्रत्येक दिन ,प्रत्येक
क्षण अंग्रेजसँ हम सब हारैत एलौं ।मुदा एक ने एक दिन जीत भेटबे केलै ।मनुखक जीवनमे
हार जीत तँ चलिते रहै छै ।एहिमे आश्चर्यक कोन गप ? घबराइकेँ
कोन गप ?
डाँक्टर बाबू- मनुखकेँ अपन सब हारसँ सीख लेबाक चाही ।अपन कमजोरी दूर करबाक
चाही ,नै अनुतिर्ण भेलापर परेशान भऽ आत्महत्या सन खराप डेग
उठेबाक चाही । अजुक युवाकेँ ई सोच दिमागसँ निकालऽ पड़तै जे कोनो काजमे फेल भेलाक
बाद एकर समाधान मात्र आत्महत्या छै ।
चिट्ठी चाचा- रोहित । ई हार तोहर हार नै छलौ ।ई हार तँ ओ पैरवी बलाकेँ हार
छलै जे तोहर ज्ञानक आगू हारि गेलै ।तूँ आब नव उर्जा संग ठाढ़ हो ,नव शक्तिक संग चोट कर ।तोहर विजय जरूर है ।कहाबत तँ सुनने हेबेँ , सए सोनारकेँ तँ एक लोहारकेँ ।एक ने एक दिन जिनगीक सब बाधा ,सब परीक्षा तूँ उतिर्ण हेबेँ ।
मोनू- हँ मीता ,तूँ एखनो जीतल छेँ ।सब दिन जीतल
रहबेँ ।
रोहित- क्षमा करू ।माँफ करू ।हमर आत्मबल डोलि गेल छल ।हम भटकि गेल
छलौं ।मुदा आब हम देबर मेहनत करब ।तखन धरि मेहनत करब जखन धरि ओ जीतल टाका आ पैरवी
बलाक गालपर ई हारल विजेताक जीतक थप्पर नै पड़ि जाइ ।हम हमरा सन सब युवासँ कहऽ चाहब
जे हमरा जकाँ आत्महत्या सन डेग किओ नै उठबू ।फेल भेलापर और बेसी जोशक संग जीतक
मार्गपर आगू बढ़ैत चलू ।जीत भेटबे करत ।जाइ छी हमहूँ आब बेसी मेहनत कऽ अपन लक्ष्य
धरि पहुँचब । हँ ,ई कहाबत सदिखन मोन राखब ,सए दिन सोनारकेँ तँ एक दिन लोहारकेँ ।
मंचपर सब हँसऽ लागैत अछि आ धिरे-धिरे पर्दा खसऽ लगैत अछि। समाप्त
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