स्मरण
आइ एकटा पुरान फोटोक एल्बम भेटल |जिज्ञासुबस उलटाकय देखय लगलौ \तीन
चारिटा फोटो एहन भेटल जेकरा देखि स्मृति पटल पर एखनो ओ दृश्य उपस्थित भ’
गेल |मोतीलाल नेहरु रीजिनल इंजिनियरिंग कओलेज ,इलाहाबाद मे पढ़ैत रही |हम
सभ मैथिल विद्यार्थी मिलिकय कओलेज मे मैथिली साहित्य परिषदक स्थापना केने
रही | मास मे दु बेर नियमितरूप सं बैसक होयत छलैक आ बैसकीक विवरण मिथिला
मिहिर मे छपबाक लेल पटना पठा देल जाइत छलैक आ मिथिला मिहिर मे सबटा
विवरण छपैत छलैक |हमरा लोकनि मिथिला मिहिर कओलेज मे मंगबैत छलौ |कओलेज मे
ओना चारिटा शिक्षक मैथिल छलाह मुदा नियमित बैसक मे भाग लैत छलाह तत्कालीन
इलेक्ट्रोनिक्सक प्रोफ़ेसर डा० बी० डी० चौधरी ,जे प्रायः ओहि कओलेजक एखन
वर्तमान डायरेक्टर छथि |चौधरी जी नियमित बैसक मे भाग लेथि आ हमरा सभ क’
मार्गदर्शन सेहो करथि \परिषदक हम अध्यक्ष रही | परिषद नीक जकाँ चलि रहल
छल |परिषद ततेक बढ़िया चलैत छल जे कतेक ननमैथिल बिहारी छात्र संस्था सं
जुरय लगलाह आ आयोजन सभ मे भाग लैत छलाह |मैथिली छोडि कोनो दोसर भाषाक
प्रयोग नहि कएल जाइत छलैक फलस्वरूप बहुत ननमैथिल सभ मैथिली छिट फुट बाजय
लगलाह |
मैथिली भाषाक रीढ़ प्रो० डा० श्री जयकांत मिश्र ओहि समय इलाहाबाद
विश्वविद्यालय मे अंग्रेजीक बरिष्ठ शिक्षक छलाह |मैथिली भाषाक कर्ता
धरता ,साहित्य अकादमीक मैथिली भाषाक प्रतिनिधि |डाक्टर मिश्रक मैथिली
प्रेम आ हुनक काज जग जाहिर छल |मैथिली भाषा कोना आगा बढ़त ताहि लेल ओ अपन
सभ शक्ति लगा देने छलाह |हम हुनकर ख्याति बहुत पहिने सं जनैत छलौ |डा०
मिश्र अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक अध्यक्ष छलाह |तै जखन इलाहाबाद
मे नाम लिखायल त’ मैथिली लेल एकटा ललक छल |इलाहाबाद डा० मिश्रक नगरी छनि
,तैं मैथिली मे बहुत किछु जनबाक ,सिखबाक सुअवसर प्राप्त होयत ?सत्य पुछी
त’ एहि नगरी मे मैथिलक एकटा खास प्रतिष्ठा छलैक |मैथिल क’ एहिठाम बहुत
इज्जत सं देखल जाइत छलैक |जखन ओहि नगर मे पहुचलौ त’ मैथिल त’ भेटथि मुदा
मैथिली नहि भेटय |कोनो खास एक्टिभिटी नहि देखियैक |आश्चर्य लागे ?अपना
मोन नहि माने जे एहि नगरी में मैथिलीक कोनो एक्टिभिटी नहि ?नव लोक एबं नव
छात्र रहने कतौ नीक सं संपर्क नहि होयत छल मुदा जहिना जहिना समय बितैत
गेलैक आ हमरा सबहक परिषद जहिना नीक जकाँ स्थापित भ; गेल ,धीरे धीरे
संपर्को बढ़य लागल, तहन एतबा बुझबा मे भांगट नहि रहल जे एहि ठाम मैथिली
साहित्यक काज त’ जरुर होयछ मुदा मैथिलक संगठन बहुत कमजोर छैक |एहिठाम
मैथिल संगठन मृत प्राय छैक | जखन हमरा ई बात मोन मे दृढ़ भ’ गेल त’ हम
एकटा लेख लिखलौ |लेख क’ शीर्षक छलैक ‘मैथिलीक दुर्दशा आ प्रयाग “|लेखक
आशय यैह रहैक जे प्रयाग मे मैथिलक कोनो संगठन नहि छैक |एहिठामक मैथिली
मरणासन अवस्था मे छैक | लेख मिथिला मिहिर क’ भेज देलियैक |मिथिला मिहिर
में लेख अक्षरशः छपलैक |ओहि समय मे हमहू त’ छात्रे रही तै संगठन क’ विषय
मे ओतेक ज्ञान नहि छल ,तै ई बात नहि बुझि सकलियैक जे ई लेख सं किनका दुःख
हेतनि |
एकदिन क’ बात छैक |भोरे भोर लगभग ५बजे रूमक दरवाजा खटखटेबाकक अवाज सुनबा
मे आयल |नींद टूटि गेल |सोचल कोनो संगी होयत |इंजीनियरिंग कओलेज मे छात्र
लोकनि राति मे देर तक जगैत छथि कारण अगिला दिनक काज रातिये मे करय परैत
छैक |भोर मे ८.३० सं क्लास प्रारम्भ भ’ जाइत छलैक |तै बर अनमनस्कक संग
उठलौ आ दरवाजा खोलि देलियै | आश्चर्य सं आँखिक पुतली उपरे उठल रहि गेल
|एक महानुभाव धोती पहिरने ,पायर मे कपड़ाक जुत्ता आ मौजा आ उपर सं ओभरकोट
आ माथ मे मोफलर बन्हने |हमरा आश्चर्यचकित देखि ओ पुछलनि ,आप सत्य नारायण
झा हैं ?हम अपन मुड़ी सहमति मे डोला देलियैन |ओ महानुभाव मैथिली मे बजलाह
,हमर नाम थीक प्रो० डा० जयकांत मिश्र ,इलाहाबाद विश्वविद्यालय |किछु
क्षणक लेल हम विस्फारित नेत्र सं हुनका दिस तकैत रहलौ मुदा तुरत
प्रकृतस्थ होयत गोर लगलियनि आ कुर्सी दय बैसय लेल आग्रह केलियनि |वास्तव
मे हमरा खुशीक ठेकान नहि छल |एतबे मोन मे आबे, सामने जे बैसल छथि ओ
विश्वविद्यालयक वरिष्ठ प्रोफ़ेसर आ मैथिलीक योद्धा डा० श्री जयकांत मिश्र
छथि |हम अगल बगल सं कइएक संगी सभ क’ बजा लेलियैक |६-७ गोटा हमरा रूम मे
पहुँच गेलाह |
डा० मिश्र हमरा पुछलनि जे मिथिला मिहिर मे अहीं “मैथिलीक दुर्दशा आ
प्रयाग”नामक आलेख लिखल अछि| मिथिला मिहिर कोटक जेबी सं निकालि देखेलनि
|हम कहलियैन ,जी हमही लिखने छी |ओ सीधा प्रश्न पुछलनि ,”आहाँ मैथिली क’
बिषय मे की जनैत छियैक ,प्रयाग में किनका किनका जनैत छियैक ?हमरा बुझा
गेल जे मामला किछु टेढ़ छैक तै हम चूपे रहलौ |ओहुना मैथिलीक भीष्म पितामह
लग हमर औकाते की छल ?जे मैथिली भाषाक इतिहास पर डी०फ़िल० केने छलाह ,हुनका
लग हमरा सन तुच्छ लोक जेकरा वास्तव मे मैथिलीक इतिहासक कोनो अध्ययन नहि
छलै ,की बजितै ?ओहुना आइ काल्हिक युवक जकाँ हमर समय मुहफट नहि छल ,जे
हमही सभ सं बेसी काविल छी |ओहन उदभट विद्वान लग हम की जिरह करितौ ?ओ
कहलनि चुप रहने काज नहि चलत ?,आहाँ सं गलती भेल अछि |आहाँ माफीनामा लिखि
मिथिला मिहिर के भेजू |हम कहलियैन ,सर ,हम त’ मैथिली भाषा द’ नहि लिखल
अछि |हमर स्पस्ट लेख मैथिल संगठन सं सम्बंधित अछि ,जे वास्तव मे संगठित
नहि छैक \जखन संगठने नहि तखन भाषा ,समाज आ क्षेत्रक उत्थान कोना हेतैक ?
ओ कहलनि संगठन लेल काज करब ?हम कहलियैन ,निश्चय काज करब |कहलनि माफी नामा
नहि लिखब ?हम कहलियैन ,हम अपनेक विश्वविद्यालयक छात्र छी ,हमरा सं जौं
भूल भ’ गेल होय त’ माफ कएल जाय |कहलनि ,अच्छा ,ठीक छैक |मुदा आहाँ अपना
टीमक संग अगिला रवि दिन गंगा नाथ झा रिसर्च संस्थान मे ४बजे साझ मे भेट
करू |चलू ,आब आहाँ सबहक संग प्रयाग मे एकटा सशक्त संगठन तैयार करी |ओ चलि
गेलाह |
हमरा सभहक देह मे एकटा नव संचार जन्म लेलक |अगिला रबि क’ हम ५-६संगीक संग
रिसर्च संस्थान पहुचलउ |ओ ओतहि रहथि |ओहिठाम आओर लोक सभ रहथि मुदा मुख्य
छलाह डा० किशोर नाथ झा |ओहिठाम संगठन पर चर्चा भेलैक आ संगहि एकटा कमिटीक
गठन कएल गेलैक |आब हम सभ पुरा शहर हरेक रबि क’ घुमय लगलौ |हम ओहुना
हुनका आबास पर जाय लगलौ |हमरा बहुत अंतरंगता भ’ गेल |मैथिलीक इतिहास
भूगोल सभ हुनका मुहें सुनी |कहियो कहियो मैथिलीक पुस्तक सेहो हुनका सं ली
आ पढ़ी |एहि तरहे संगठन सं लोक सभ जुरय लागल |बहुत दिनक बाद एकटा बैठक मे
निर्णय भेल जे विद्यापति पर्व समारोह मनायल जाय ,जाहि सं दुटा बात होयत
|पहिल मैथिल सभ क’ एक सूत्र मे जोड़ल जायत आ दोसर संगठन कतेक मजबूत भेल
तेकरो आकलन भ’ सकतैक | विद्यापति पर्व सफल हुए ताहि मे हम सभ जी जानि सं
जुटि गेलौ |एहि काज लेल पुरा शहर क’ भ्रमण पुनः कएल गेलैक |डा० मिश्र
अपनहु बेसी काल हमरा सबहक संग घुमैत छलाह |एक एक लोक सं संपर्क कएल गेलैक
|इंजिनियरिंग कओलेज ,एग्री कलचर कओलेज ,कुलभास्कर आश्रम कओलेज ,मेडिकल
कओलेज ,युनिभर्सिटी ,केनटोमेंट एरिया ,वमरौली एयर फ़ोर्स तथा रेलबेक संग
नगर क’ कइएक मुहल्लाक हम सभ कतेको बेर घुमलौ |नीक संख्या मे लोक उपस्थित
होयबाक सम्भावनाक अनुमान लगायल गेल |सभ दिन घूमी आ साँझ मे डाक्टर साहेब
क’ रिपोर्ट दैत छलियैन |ओ कतेक खुशी होयथि तेकर वर्णन नहि क’ सकैत छी
|एक मैथिल क’ दोसर सं खुब संपर्क भ’ गेलैक |आब विद्यापति समारोहक रूप
रेखा तैयार होमय लगलैक |निर्णय भेलैक जे उदघाटन कर्ता हास्य सम्राट श्री
हरिमोहन झा जी ,मुख्य अतिथि कवि वर श्री राम कुमार वर्मा केर निमंत्रण
पठायल जाय |स्वागताध्यक्ष डा० श्री एस० एन० सिन्हा ,एच० ओ० डी०
,इंजिनियरिंग कओलेज क’ बनायल गेल |महासचिव हमरा बनायल गेल ,सचिव श्री
सुरेश चन्द्र झा ,हमर प्रिय संगी, संगहि कार्यकारणीक सदस्य सभ बहुत
गोटे रहथि |ओहि समय क’ तमाम कलाकार ,कवि सभ क’ निमंत्रण पठायल गेल |ओहि
समय क’ मिथिलाक लोक प्रिय जोड़ी रविन्द्र –महिंद्र क’ आमंत्रित कएल गेल आ
ई लोकनि आयलो रहथि |निमंत्रित सबहक रहबाक ब्यबस्था इंजिनियरिंग कओलेज मे
कएल गेल रहैक |सांस्कृतिक कार्यक्रम मे गीतनादक अलाबा एकांकी नाटक सेहो
राखल गेल रहैक |नाटक रहैक “ उपनयनाक भोज” जे विशुद्ध हास्य नाटक छलैक
|नाटक मे हम ब्राह्मण बनल रही ,जमींदार बनल रहथि हमर प्रिय सहपाठी
पुरुषोत्तम झा जी ,टूनटूनमा ,जमीन्दारक नौकर बनल रहथि श्री हीरा कान्त
झा ,अन्य कलाकार युनिभर्सिटी क’ रहथि |
निर्धारित दिन क’ विद्यापति पर्वक कार्यक्रम प्रारम्भ भेलैक |अपूर्व
सफलता भेटलैक |अथाह जन समूह उपस्थित छल |नाटक सभ कार्यक्रम सं बेसी सफल
भेलैक |नाटकक कथानक पूर्ण रूपे हास्य छलैक |’बहुरी झाक बेटा क’ उपनयन
छलनि |समूचा गाम क’ नोत रहैक मुदा धोखा सं ब्राह्मण क’ नोत छुटि गेलनि
|समूचा गाम खुब कच्ररमकुट क’ भोज खयलक मुदा ब्राह्मण भुखले रहि गेलाह
|आब ब्राह्मण सोचलनि जे एहन तिकरम लगाबी जे हुनको नोत भेटनि |ओ बहुरी झाक
एकटा कुटुम्बक घोड़ा चोरा क’ कतौ जंगल मे नुका देलखिन्ह |घोड़ा ताकल गेल
मुदा नहि भेटलैक |ब्राह्मण अपन पत्नी द्वारा प्रचार करबा देलखिन जे
ब्राह्मण बहुत पैघ गुनी छथि ,ओ नह पर काजर लगा चोर क’ पकरि लैत छथिन
|अपने चोरायल घोड़ा क’ तंत्र बल सं कोना क’ ताकि दैत छथिन आ कोना फेर सं
नोत परैत छनि ,यैह नाटकक मुख्य कथानक छलैक |
हमरा सब जखन जखन नाटक क’ अभ्यास करी ,डा० साहेब ओतहि रहैत छलखिन आ जहाँ
त्रुटि भेल तुरत सुधार करथीन |नाटक बढ़िया होबक चाही , ताहि लेल नीक दिशा
निर्देश देथिन |साज श्रृगार करय लेल एकटा बंगाली रंग कर्मी क’ मंगायल गेल
रहैक |ओहि मोशायक नाम माया दास रहनि मुदा हम हुनका मेकप सं संतुष्ट नहि
रही तै हम अपन मेकप अपने केलौ |हमरा याद अछि हम जहिना स्टेज पर गेलौ
,हमरा देखिये क’ दर्शक भभा क’ हंसय लागल |नाटक अत्यंत सफल भेलैक |लोक
हँसैत हँसैत लोट पोट भ’ गेलैक | नाटक ततेक सफल भेलैक जे हर साल नाटकक
मंचन होमय लगलैक |दोसर साल “हथ टुट्टा कुर्सी “आ हिचकीक टोटमा “क’ मंचन
भेलैक |बहुत दिन तक डा० जयकांत मिश्रजी सं सम्बन्ध रहल मुदा राउरकेला
स्टील प्लांट मे नौकरी करबाक बाद धीरे धीरे संपर्क कम होयत गेल आ बाद मे
लगभग संपर्क खतम भ’ गेल |
एखनो इलाहाबादक स्मरण भ’ जाइत अछि |इलाहाबाद हमरा लेल सभ सं पैघ गुरु
घराना अछि |आइ १९७२ ई० मे मनायल गेल विद्यापति पर्व समारोहक किछु फोटो
एल्बम मे देखबाक सुअवसर भेटल आ स्मृतिपटल पर सभटा चल चित्र जकाँ उभरि आयल
|कतेक सुखद दिन छल ओ |
“एखन ओ कतए अछि, कोना अछि, की करैत अछि, हमरा किछु पता नै, बस एतबेए बुझल अछि जे आइ ओकर जन्म दिन छैक |”
पचपन बर्खक, उज्जर सारीमे लपटल बूढ़ बिधबा माएक दिमागक ई गप्प | एककेँ बाद एक खोल हुनक इआदक केथरीसँ निकैल-निकैल कए इन्द्रधनुषी आकाशमे हिलकोर मारि रहल छल | बैसल, हुनक सामने माटिक एकचूल्हीयापर चढ़ल भातक हाँड़ीसँ बरकैकेँ खड़-खड़-खड़केँ अबाज आबि रहल छल | भात जड़ि कए कोयला भऽ गेल रहति जँ चेराक आँच अपने जड़ैत-जड़ैत चूल्हासँ निकैल कए बाहर नहि जड़ए लगितै |
“पन्द्रह बर्ख पहिने कहि गेल दिल्ली जाइ छी, खूब पाइ कमाएब | नीक घर बनाएब | तोरा नीक नीक सारी कीन कऽ आनि देबौ | बाबूक लेल सुन्नर साईकिल कीनब | मुदा ! सभ बिसैर गेल | शुरू-शुरूमे दू-तिन मासपर चिठ्ठीयो आबेए, छह महिना बरखपर किछु पाइयो आबेए मुदा बादमे सभ बन्द | कोनो खोज खबरे नै | ओकर गेलाक छह बरखक बाद बलचनमा मुँहे सुनलहुँ जे ओ दिल्ली बाली मेमसँ बियाह कए लेलक | आर कोनो समाद नाहि | बापोकेँ मुइला आइ पाँच बरख भऽ गेलन्हि, ओइहोमे नहि आएल | ओकरा तँ बापक दिया बुझलो हेतै की नै---- | आइ ओकर जन्म दिन छैक, लऽगमे रहैत तँ बड्ड रास आशीर्वाद दैतियैक मुदा दुरे बड्ड अछि | जतए अछि खुश रहेए.... जुग-जुग जीवेए... हमर लाल |”
२.समय चक्र
किशुनक विशाल ड्राइंग रूम । तीन बीएचके फ्लेटमे आलीशान २५० वर्गफूटक हॉल नूमा ड्राइंग रूम ओहिमे ४८ इंचक सोनीक एलसीडी टीवी लागल । डीस टीवी, म्यूजिक प्लेयर, फर्सपर जड़ीदार लाल रंगक विदेशी क़ालीन । दवाल सभपर मनभावन मधुबनी पेंटिंग घरक सोभामे चारि चान लगाबैत । मोट- मोट गद्दाक बनल मखमली सोफा सेट, ओहिपर किशुनक मामा-मामी ओकर वेसबरीसँ बाट जोहैत, जे कखन ओ आएत आ ओकरासँ दूटा गप्प कए अपन समस्याक समाधन करी । हुनक दुनू प्राणीक दू घंटाक प्रतीक्षा बाद किशुन, बोगला सन उज्जर चमचमाइत बरका कारसँ आएल । घरक डोरवेल बजेलक घर खुजल । भीतर प्रवेश कएलक । भीतर पएर धरैत देरी ओकर नजैर अपन मामा- मामीपर परलैक । तुरन्त आगू बढ़ि हुनकर दुनू पएर छुबि आशीर्वाद लेलक । हाल समाचार पुछैत अपनो एकटा सोफापर बैसैत - "कएखन एलीऐ" ।
मामी - "इहे करीब दू घंटा भएले" ।
किशुन अप्पन कनियाँकेँ आवाज़ दैत - "यै, सुनैछीयै ! किछु चाह पानि नास्ता देलियैन्हेकी" ।
मामा - "ओसभ भए गेलै, बस अहाँसँ किछु जरूरी गप्प करैक छल" ।
किशुन - "हाँ हाँ कहु ने, हमर सोभाग्य जे अपनेक किछु सेबाक मोंका भेटत" ।
मामा कनखीसँ इसारा कए मामीक दिस देखलाह, आ ओकर बाद मामी - " बौआ ! अहाँ तँ सभटा बुझिते छियै जे मामाक नोकरीक आइ- काल्हि की दशा छनि । कएखनो छनि तँ कएखनो नहि । रहलो उत्तर ई सात- आठ हजार रुपैया महिनाक नोकरीसँ की है छैक ...... (कनी काल चूप, आगू सोचैत ) अहाँकेँ तँ बुझले अछि, बरुण आइ आइ टीक प्रवेश परीक्षा पास कए लेलक । आब ओकर एडमिशनकेँ आ किताब आदी लेल दू लाख रुपैया चाहीऐ । हिनका अपना लग तँ एको रुपैया नहि छनि, आ अहाँ तँ बुझिते छियै दियाद बाद कएकराकेँ दै छैक । बहुत आशा लए कए अहाँ लग एलहुँहेँ , अहाँ किछु रुपैयाक व्यवस्था कए देबै तँ छौड़ाक जिनगी बनि जेतै" ।
सभ चूप्प । पिन ड्राप सैलेन्श । किशुन अपन आँखिसँ चश्मा निकालि दुनू आँखिक कोन कए सभसँ नूका कए पोछ्लक । कियो ओकर आँखिक कोनसँ खसैत नोरकेँ नहि देखने हेतै मुदा ओकर दुनू आँखिक कोनसँ नोरक दू दू टा मोती सरैक कए ओकर रुमालमे हड़ा गेलै । पुनः अपन चश्मा पहिरलक आ अपन आँखिक नोरक पाँछाँ करैत बीस बर्ख पाछू चलि गेल ।
जखन किशुनक माए बाबू आ मामा मामी एके झोपड़पट्टीक एके गलीमे रहैत छला । एक दिन ! महिनाक अन्त तक ओकर बाबूक हाथ खाली भए जेबाक कारण घरमे अन्नक अभाबे ओ अपन माएकेँ कहलापर एहि मामीसँ जा कहने रहनि दू सेर चौर देबएक लेल । मामी चौर तँ देलखिन मुदा ओहिसँ पहिने ठोर चिब्बैत कहने रहथिन - " की बाप पाइ नहि दए क गेलाह, एहिठाम कोन बखाड़ी लागल छैक " ।
ओ गप्प किशन आइ तक नहि बिसरल । आ ओकर आँखिक नोरक कारण इहे गप्प छल । ओहि गप्पक कारणे आइ ओ झोपरपट्टीसँ निकैल एकटा नव दुनियाँमे पएर रखलक । पुनः अपनाकेँ वर्तमानमे आनैत किशन चट्टे अपन कोटक जेबीसँ चैक बुक निकालि, ओहिपर दू लाख रुपैया भरि मामाक दिस बढ़ेलक ।
मामा चैक लैत - "बौआ अहाँक ई उपकार हम कहियो नहि बिसरब, एखन तँ नहि चारि वर्खक बाद वरुणक नोकरी लगलापर सभसँ पहिने अहींक पाइ वापस करत" ।
किशन - "की मामा अहुँ लज्जित करै छी ई सभ कएकर छैक, की वरुण हमर भाइ नहि अछि । ई हमरा दिससँ एकटा छोट भेंट अछि । एकर चिंता अहाँ नहि करब ।
*****
३. पद्य
३.८.१.बिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"-प्रेमक फल/ पिया अहाँक यादमे २. किशन कारीगर- मनुक्ख बनब कोना?
३
करियन ,समस्तीपुर
मिथिला ,बिहार
जीवन एहिना चलैत रहै छै
कखनो घटाउ आ कखनो जोड़ै छै
कखनो गुणा कखनो भाग करै छै
कखनो आगू कखनो पाछू घुसकै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै
कखनो दुखक भूकंप सुनामी आबै छै
कखनो सुखक गमगम फूल बरसै छै
कखनो भीड़मे कखनो एकान्त जीबै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै
कखनो पिछरै कखनो दौड़ै छै
कर्मक पथपर काँट-रोड़ो भेटै छै
नदी नाला सब बाधा लाँघै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै
किछुए दिनकेँ साँस भेटै छै
जे किओ एक्को पल नै रुकै छै
घड़ीक सुइया संग जे किओ बढ़ै छै
वएह मानव एतऽ अमर रहै छै
जे बैसल समय व्यर्थ करै छै
वएह मनुख सब दिन कानै छै
एहन लोक लेल किओ नै रूकै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै
२
कान्हपर धेने झोरा-झपटा
सौँसे माँथ चानन-ठोप्पा
हाथ कमण्डल आरो चुट्टा
दाढ़ी लटकल कोशो जट्टा
नङ-धरङ रगरने भभूत
नेने भागै बूझि कऽ भूत
टाका-अन्न माँगैथ लऽ रामक नाम
पैदल जाथि घर घर सब गाम
एहिमे किछु छथि सत्ते भक्त
आ किछु छथि ढोंगी ससक्त
गलत काज आ अंधविश्वास
हुनक खूनमे केने छै वास
सब रोगक उपचारक दावा
एह भेषमे ई सब छथि गामक बाबा
ए .सी घर आ फूलक ओछेनपर
धुमन आगरबत्तीक महक आठो पहर
शिष्य मण्डलीमे नर कम बेसी नारी
सरकारी वा नीजी लागल पहरेदारी
ई छथि सब शहरक बाबा
हिनको छै बड पैघ पैघ दाबा
सब समस्याक हिनका लग उपचार
लाखक-लाख टाका देलापर भेटत साक्षात्कार
किओ फेकबेलनि घरसँ बाहर मूर्ति
किओ अपनेकेँ बतबै छथि अवतरित देवी
अंधविश्वासक हिनको लग हल्ला
पढ़ल जनताकेँ मूर्ख बनाबथि खुल्लम खुल्ला
जागू जागू एखनो यौ भाइ
बादमे की हएत पछताइ
दऽ दिऔ भूखलकेँ दूध-मेवा
बाँटि दिऔ गरीबमे सब टाका
नाङटकेँ पहिरा दिऔ कपड़ा
एकरे दुआसँ शान्त हएत ग्रह-नछतरा
तखने करताह भगवानो भलाइ
जागू जागू एखनो यौ भाइ
३.
किछु पुरना मित्र जेकर
बस इयादे टा छल बचल
बाधक गीत इस्कूलक खेल
क्षणमे झगड़ा क्षणमे मेल
किछु नीक किछु बेजाए गपशप
बाल दिनक खून करै रपरप
जेकरे संगे होइ छल साँझ-भोर
ओ चन्ना आ हम चकोर
मुदा समयक संग सब किछु बदलल
सबपर आब टाकाक रंग पोतल
सबहक मोन एना बदलि देलक
आब देखिते ओ मित्र मुँह फेर लेलक ।
४.
नै शेष बचल कोनो उमंग
ठमकल सन जिनगीक तरंग
कोना कऽ उड़तै मोनक पतंग
आशक डोर बीच्चेमे भेल भंग
सब ठाम राजनीतिक बड़का जंग
अपनौती भैयारी भेल अपंग
सालक साल एक्के ठाम सब प्रसंग
टूटल छै देशक समाजक विकासक अंग
मुदा सदिखन बदलै छै जीवनक रंग
बैसल रहलासँ नै जीतब कोनो जंग
छोरू सबहक चिन्ता बनबू अपन एक ढंग
अपन विकासक लेल करू अपनेकेँ तंग
रूकू नै बढ़ैत रहू सदिखन समयक संग
५.
"नारीक रूप"
सब दिन देखैत छी
सब अखबारक पहिल पन्नापर
आइ एतऽ तँ काल्हि ओतऽ
छीन लेल गेल नारिक इज्जत
डाहि देल गेल कोमल कायाकेँ
वा चापि देल गेल घेँट कोनो निसबद रातिमे
हाट बजार सब ठाम देखैत छी
छेड़छाड़ होइत कोनो नवयौवना संग
आ ओहि नवयौवनाक राँगल चामपर
आबै छै कने लाजक वा क्रोधक लाली
सुरमासँ कारी भेल आँखि आ रंगीन पिपनीपर
खीँच जाइ छै गोस्साक चेन्ह
संगहि राँगल ठोरसँ निकलैछ मीठ तरंग
"की तोरा घरमे बहिन नै छौ?"
कहबाक मने रहै छै एक्के टा जे
हमर सम्मान कर
भऽ सकै यै ,हमरा बहिन नइ होइ
भऽ सकै यै ,हम कहियो पति बनबे नै करी
तखन नारिक ई दुनू रुपकेँ हम सम्मान नै करब
तँ की हम नारिक अपमान करब?
नै ।हम एखनो नारिक एकटा रूपकेँ मानै छी
जे रुप हमरा जीवन देलक
ओ रूप जेकर कोरामे खेलल छी
ओ रूप थिक माएक रूप
तेँ हम नारिक इज्जत कोनो पत्नी-बहिन रूपमे नै
बल्कि अपन जननीक रूपमे करब
हँसी ई तँ घाएल हमरा करैए
मधुर बाजि खन-खन पएरक पजनियाँ
हमर मोन रहि रहि कए डोलबैए
छ्लकए हबामे अहाँकेँ खुजल लट
कतेको तँ दाँतेसँ आङुर कटैए
ससरि जे जए जखन आँचर अहाँकेँ
१
कथिक उसार छै
लोकक बैसार छै
जिनगी हमरे छै
बोनक उजार छै
लोकक करनी छै
तेकरे अचार छै
घरक उठान छै
लोकक बिचार छै
धधरा उठल छै
आगिक पजार छै
हमरे जड़ान छै
राखक पसार छै
"शिकुया" मरल छै
तेकरे हेंजार छै
२
भइया मोने हम बड नीक
भौजीक मोने हम बड तीत
भइया सोझाँ हमहीं काबिल
भौजीक मोने हम बड बीख
भइया हमर बात मानए
भौजीक मोने हम बड हीठ
भइया सँ अछि सबकेँ रीत
भौजीकेँ नै सोहाइ बड प्रीत
एक दिन घर सँ भागि गेलौँ
भौजीकेँ लगलनि बड नीक
३
सब अछि बनल हीत अहाँके
छी हम एकेटा तीत अहाँके
हमरा सँ ऐना किएक बजै छी
छी नए हम की मीत अहाँके
पजरामे रहए छी हम तैयो
छी नइ घरक भीत अहाँके
किएक कचोटै छी मोन हमर
नीक नइ छी ई पीत अहाँके
सर-समाज सँ कात भेलौँ हम
तैयो नइ अछि प्रीत अहाँके
एना किएक भसियाइ छी अहाँ
भइया हमर छथि बड कहबैका यौ
गामक सभ केओक काज करबैका यौ
गाम-गमाइत खूब नाम चलैत अछि
गजल
१
प्रेमक पवन बहै दर्द हेबे करत
शीतक समीर तँ सर्द हेबे करत
बाटक दिक नै भुतिया गेलौं संसारमे
कि श्वप्नक खजाना गर्द हेबे करत
जखन भाग्यक ठोकर लागत मनुख केँ
कर्तव्य-कर्मक पथ फर्द हेबे करत
जँ बीच बजार लुटतै केकरो इज्जत
आगू बढ़ि जनानियों मर्द हेबे करत
तोड़ि देलौँ करेजक नस एक झूठ सँ
आब अपनो समांग बेदर्द हेबे करत
गामक लोक बसि रहल शहर जाकऽ
निज संबंध सुमित फर्द हेबे करत
२
चंचल चलै बसंत बहि आयल
हर्षित मोन चिहुँक कहि जागल
हुनकर रूप देख मोन व्याकुल
जेना चिड़ैयाँ वाण सहि कऽ घायल
दुख केर देख मनुख किए कानै
मयूर घटा कारियो देखि नाचल
अनकर पीड़ देखि खुश होइ छी
निज दुख मे मनुख किए कानल
चाँदनी कें संग चान बहरायल
"सुमित" प्रेमक छटा देखि पागल
वर्ण-13
३
बीतल समय नै घुरि कऽ आबै छै
सबटा लोक बैस एतबे गाबै छै
समय सँ बड़का नै कोनो खजाना
जिनगी मे जीतल जीत हराबै छै
मोल एकर जे बूझि नै सकलनि
तँ किए नहुँ-नहुँ नोर बहाबै छै
कपट द्वेष सँ मोन आन्हर अछि
आँखि मुनि भाग्य ठोकर पाबै छै
झुलसि दुपहरिया बाट चलै छै
थम्हि कऽ मीठगर राग सुनाबै छै
समय संगहि सब दौड़ लगाबै
"सुमित"कर्मक फल फरियाबै छै
वर्ण-13
गजल
आँखि सूतल छै मोन जागल कियै छै
गाछ सूखल छै पात लागल कियै छै
भटकि रहलौँ हम नौकरी लेल जुग मेँ
भाग भूटल छै आस लागल कियै छै
प्रेम मेँ हुनकर टूटि गेलै करेजा
शांत मन तैयोँ आगि लागल कियै छै
गाम रहि रहि केँ याद आबैत रहतै
मोन विचलित छै फेर भागल कियै छै
अपन पीड़ा बेसी बुझाएत तैयोँ
शीश काटल छै देह लागल कियै छै
राति दिन ई सोचैत बाजै मुकुन्दा
नाम ई ओकर आब पागल कियै छै
बहरे - खफीफ ,मात्रा क्रम २१२२-२२१२-२१२२
(2)
गजल
साहीक कांट घटैत गेलै रुप सोहागक बरहैत गेलै
तेल आ बाती सठैत गेलै भूख प्रकाशक बरहैत गेलै
लूट काट दंगा फसादसँ समाज एतोँऽ बनल कुलषित
लोक जतै कटैत गेलै समाज सुधारक बरहैत गेलै
धर्मक व्यापार करै लोक एतोँऽ ठगै निज भेष बदलि कऽ
लोकक आस्था घटैत गेलै काज पंडितक बरहैत गेलै
छैन मातृभूमिक नै कोनो चिँता धन लेल ई नेता बनथि
आ मुद्रास्थिति खसैत गेलै गरीबी देशक बरहैत गेलै
लोक एतोँऽ अछि बनल हत्यारा बेटी जानि भूर्ण हत्या करै
स्त्रीक संख्या घटैत गेलै आ राशि दहेजक बरहैत गेलै
देखि सिनेमा बढ़ल फैसन देखूँ मिथिला यूरोप बनल
संस्कार कियै घटैत गेलै नग्नता देहक बरहैत गेलै
सरल वार्णिक बहर ,वर्ण 22
(3)
गजल
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
(4)
गजल
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
(5)
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
१.बिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"-प्रेमक फल/
पिया अहाँक यादमे २. किशन कारीगर- मनुक्ख बनब कोना?
१
बिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"
धनुषा नेपाल , हाल:कतार
शीसा फुटल दिल टुटल
सकनाचुर भऽ छिड़िया गेल
डोलीमे ओ गेली पिया घर
हाथमे दारु थमा गेल।
दारुए हमर साथी-संगी
बिनु ओकर सहारा नै
कखनो ठर्रा कखनो प्याक
बिनु ओकर गुजारा नै।
जिनगी अपन नरक बनेलौं
ओइ लजबिज्जीक प्यारमे
मरणासनमे सास अछि लटकल
ओ मजा करए ससुरालमे।
प्यार करब पैघ बात नै
निभाएब बड़का बात छै
प्रेमसँ ककरो जीवन सबरल
ककरो जीवनमे घात छै ।
२
पिया अहाँक यादमे
मेघसन कारी केशपर
गोर गोर गाल यौ
आमक रस सन लाल ओठपर
पिया अहाँके नाम यौ।।
हम दु जोड़ी संग-संग जियब
गायब प्रेमक गुणगान यौ
मरऽ सँ पहिने आ मरलाक बाद
बस रहब अहाँक गुलाम यौ।।
हे प्राणेश्वर लौटब कहिया
करब कखन आराम यौ
घाइल दिलके मल्हम अहाँ
दिल अछि अहाँक मकाम यौ।।
राति-राति भरि निन्द नै आबए
बड जोर झकझोरए याद यौ
बिन अहाँके जिनगी बीतल
अहाँ दिल्ली, अरब, असाम यौ।।
नोर बहैए नयनसँ हमर
राह देखैत सौ बार यौ
अपने भेलहुँ परदेशी बाबु
हम छी एतऽ बेकार यौ।।
बिनु पानिक मछली बुझु
फुटल अल्मुनियम थाली यौ
बिनु रोहितके जिन्दा लाश
भेल यऽ अहाँक रुपाली यौ।।
२
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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