१.जगदानन्द
झा ‘मनु’ गजल रुबाइ १-१२ २.पंकज चौधरी "नवलश्री"
(गजल १-४)
१
जगदानन्द
झा ‘मनु’
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
रुबाइ-१
कर्जा कए कऽ हम जीवन जीव रहल छी
फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी
सभ किछु गवा कए ‘मनु’अपन जीवनकेँ
निर्लज भए हम ताड़ी पीब रहल छी
*************************************
रुबाइ-२
नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै
नै माय बाप ई केहन तकदीर छै
धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै
नै सुनै कियो ई दुनियाँ बहीर छै
*************************************
रुबाइ -३
गोड़ी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल
नै एना मुँह खोल कते घायल परल
जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी
बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल
*****************************************
रुबाइ -४
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
बहए हवा शितल सिहरैए
हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
***************************************
रुबाइ-५
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि
नेता सभ तँ एकटा
जपाल बनल अछि
बड़का बड़का बागर सभ राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि
**************************************
रुबाइ-६
गामक अधिकारी भेला सैयाँ हमर
कोना क पकड़तै कियोक बैयाँ हमर
सभक पेटीक माल आब हमरे छैक
सैयाँ लएथिन सभटा बलैयाँ हमर
********************************
रुबाइ -७
मैथिली साहित्यक आँच सुनगैत अछि
सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि
कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि
विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि
*********************************
रुबाइ-८
बाबूजीक करेजमे सदिखन
रहलहुँ
नै अपन मोनमे हुनका हम रखलहुँ
छाहैर रौद पानिसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम बहाना रचलहुँ
************************************
रुबाइ-९
देह प्राण सबटा बाबूजी देलन्हि
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
अपने रहि भूखे हमर पेट भरलन्हि
सुधि अपन बिसरि हमरा मनुख बनेलन्हि
****************************************
रुबाइ-१०
जे जन्म देलन्हि ओ
कहलन्हि गदहा
जे पोसलन्हि ओ मानलन्हि
गदहा
गदहा जँका जीन्दगी अपन बितेलहुँ
जिनका बियाहलहुँ ओ बुझलन्हि गदहा
************************************
रुबाइ-११
घाट-घाट पर सूतल कतेक गोहि अछि
साउध लोककेँ सबतरि लेने मोहि अछि
धर्मक नाम पर खूजल कतेक दुकान
टाका लs कs छनमे सभटा पाप धोहि अछि
****************************************
रुबाइ-१२
कोन बिधि मरि कs हम रुपैया कमेलहुँ
सुख चेन निन्न रातिकेँ अपन हरेलहुँ
जन्मक अपन सभ सम्बन्ध तियागि
बिन कसुरे बाहर वनवास
बितेलहुँ
२
पंकज
चौधरी "नवलश्री" (गजल १-४)
गजल-१
मिथिलोमे रहल नै बास मैथिलीकें
टूटल जा रहल छै आश मैथिलीकें
कहियो मैथिली नै हिचकि-हिचकि कानल
देखू पलटि सभ इतिहास मैथिलीकें
चन्दा अमर यात्री सदति सभ शरणमे
विद्यापति सनक छल दास मैथिलीकें
सभके ठाम देलौं भेल मान सभके
भेटल अछि किए वनवास मैथिलीकें
बाजब-पढ़ब
सदिखन मैथिली लिखब हम
जागत "नवल" पुनि विश्वास
मैथिलीकें
>मफऊलातु+मफऊलातु+फाइलातुन /
मात्रा क्रम : २२२१+२२२१+२१२२
गजल-२
जे बुड़िबक
छल अलबत यौ
तकरे भेटल बहुमत यौ
जनता फेर ठकेलै सभ
गेलै व्यर्थहि जनमत यौ
धन जनताक
लुटा रहलै
जनतो छै चुप सहमत यौ
शोषण पाँच बरख चलतै
जनता कानत कलपत यौ
धर्मक दैत दुहाई ओ
जे नहि
धर्मसँ अवगत यौ
नेता बनल कतेको कहि
दुर्दिन देशक बदलत यौ
लागै गप्प "नवल" एहन
टिटही टेकल पर्वत यौ
*मफऊलातु + मफाईलुन / मात्राक्रम-२२२१+१२२२
गजल-३
अनकर कहल मानब कते
खा-खा ठेस
कानब कते
बस किछु
दिनक जिनगी त' नै
दिन जिनगीक गानब कते
छोडू पुरनका राग सभ
ऐ सिट्ठीसँ
र'स छानब कते
बिनु साधनक की साधना
थूकसँ सातु सानब कते
चाही अपन अधिकार जे
माँगू "नवल' ठानब कते
गजल-४
माथसँ घोघ ससरल जाए
चन्ना लाजहि सकुचल जाए
कजरायल नैना मधुशाला
मातल मोन बह्सल जाए
रूपक जालमे ओझराएल
बाट बटोही बिसरल जाए
माथक टिकुली ठोढ़क लाली
देखि अयना चनकल जाए
हाथक चूड़ी कंगना खनकै
सौंस करेजा दरकल जाए
आंखिसँ पीलौं "नवल" नेह जे
सगरो देह पसरल जाए
>आखर-११
१.आशीष अनचिन्हार-गजल २.क्रान्ति कुमार
सुदर्शन-प्रेम
शब्द
१
आशीष अनचिन्हार
गजल
लिखबाक छल गरीबक लचारी गजल
देखू मुदा लिखल हम सुतारी गजल
हम आब बेचि लेलहुँ हँसी ओ खुशी
बाँचत कते समय धरि उधारी गजल
अन्हार आब भगबे करत घरसँ यौ
भगजोगनीक संगे दिबारी गजल
सभ चप उलारकेँ खेलमे मग्न अछि
जनताक टूटि रहलै दिहाड़ी गजल
फरि गेल छै कबइ कवि अपन देशमे
सौंसे सुना रहल बेभिचारी गजल
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ + ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ + ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ + ह्रस्व-दीर्घ
२
क्रान्ति कुमार
सुदर्शन
प्रेम शब्द
नोरक धार अछि गालपर
दिलक वार अछि हालपर
की हाल कहू हृदयात्म केर
दोलन करैत अछि ठामपर!
ठुठायल कपकप करैत हार
हड्डी गलने बिनु बजैल जाड़
की कहू आब विचार मोन केर
छिछिआइत छी बड्ड ओइ पार
फाटल बेमाय घिनाएल पएर
बनल जाइत छी काल्हि राड़
की आबो सुनब व्यथा स्नेह केर
छी पागल जाए बीयर आ बार
३
मनोज कुमार मण्डलक कविता-
हम छी पागल
हम छी पागल तँए घरसँ छी भागल
उदरक निमित्ते बनल छी अभागल।
मन अखनो रहैत अछि लागल
हुनको जी हेतनि हमरेपर लागल।
परधीन रहि सपना अछि लागल
गाम छोरबाक मोहर अछि लागल।
माइक ममता बर छन्हि जागल
बाबूक मन मिलबाक छन्हि लागल।
हम छी पागल तँए घरसँ छी भागल
उदरक निमित्ते बनल छी अभागल।
सम्पर्क-
बेरमा, तमुरिया, मधुबनी।
सम्प्रति- मुम्बई।
१.कामिनी
कामायनी- पुष्पांजलि
२.ज्योति
झा चौधरी-जननी
जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
१
कामिनी
कामायनी
पुष्पांजलि
पुष्पांजलि ।
आजुर मे भरने /
लाल /पीयर/हरियर /
नारंगी /बैंगनी /भांति भांति के /
रंग /गंध /रूप /आकार /
स सज्जित /पुष्प दल /
स्वास मे भरने /मलयानिल मादक /
मद्धिम मद्धिम आंच प/
नहु नहु गर्माबईत हवा मे /
नब नब तरु पल्लव के अड़ स/
झाकैत धरा सुन्नरी /
करि रहल अछि /
उन्मादित प्रेमी सन /
भावविभोर भ’/ऋतु राज क/
आराधना मे/
अवरूद्ध गरा आ’ मूंद्ल
आंखि से /
पुष्पांजलि /
रूपसी के सौन्दर्य स चकित /
अनंग सेहो शंख नाद करि देल/
सजी रहल अछि रंगमंच /
प्रेमोत्सव के /मुट्ठी मे आबि गेले /
सभ हक /उड़बए लेल अबीर /गुलाल
उतरि गेला नर नारी मे/फेर स/नवल भेस मे /
खेलय लेल फागुन के /
कृष्ण आ’ राधा ।
२
ज्योति
झा चौधरी
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
पढ़ि-पढ़ि कऽ
भने पैघ भेल छी
आइ अपन रोजी रोटी लेल पलायित
दूर सँ देशक दुर्दशा पर लज्जित छी॥
अछि हाल धोबीक कुक्कुड़ जकॉं
देशमे महिलाक दुर्गतिसँ व्यथित
अतए कुनो सम्मान वा सुविधा लैत
अनकर जानि लागैत अछि अनुचित ॥
पार्वती-दुर्गा-लक्ष्मी-सरस्वती
सन अनेको देवी जतए पूजित
कोना एहेन पशुवत मानसिकता
रहि सकैत अछि जीवित॥
महिलाक सम्मान हएत ग्राह्य
माताक प्रति सम्मान जौं सिखाबी
ममता आ स्नेहसँ पूरित
पुत्रकेँ शिष्ट मनुष्य बनाबी ॥
१.राजदेव
मण्डलक दू गोट कविता २.जगदीश
प्रसाद मण्डलक सातटा गीत
१
राजदेव मण्डल जीक दूटा अनुपम कविता-
मनुखदेवा
सभ मनहि-मन पूजि रहल अछि
एक-दोसराक गप्प बूझि रहल अछि
मनक केना बूझत सभ बात
कहए चहैत अछि छूबि कऽ गात
पकड़लक पएर भऽ कऽ कात
हमरो दुख सुनि लिअ तात
जखैने देवक देहमे भिरल
ठामहि ओ ओंघरा कऽ गिरल
जेकरा कहै छलौं महान
से अपनहि अछि बेजान
आब के देत सुन्नर काया
सम्पति, यश,
सम्मान
खूजि गेल सभटा राज
तैयो भीतरसँ निकलए आवाज-
“छलै जे
पावन
बना देलिऐ अपावन
भऽ गेलै निष्प्राण
छुबलासँ घटि गेलै मान
पहिने बनल छल देवा
आब भेल मनुखदेवा
देह चढ़ि करत सेवा
भेट सभकेँ मनक मेवा
नै डेराउ सभ किछो देत
मानत नै पूजा अखनो लेत।”
अप्पन हारि
गाम-घरसँ मंत्री दरबार
कियो नै पाबि सकैत छल पार
के बजत सोझा फोड़ि देतिऐ कपार
डरे कनैत कते जार-बेजार
जीतने छलौं सकल समाज
उठिते आवाज गिरबै छलौं गाज
बड़का-बड़का केलौं काज
बजितो होइत अछि लाज
सभ दुसमनकेँ मारि देलौं
कतेकेँ माटि तर गाड़ि देलौं
घर-परिवारकेँ तारि देलौं
तैयो अपनासँ हारि गेलौं।
अपन उजाड़ि
काटए बपहारि
के बजैत अछि
अप्पन हारि?
२
जगदीश प्रसाद मण्डल जीक सात गोट गीत-
वेद-भेद......
वेद-भेद रंग रहस्य
पबिते रस रहस्य भरै छै।
भेद भेदिया भेदि-भेदि
तल-ऊपर चक्की गढ़ै छै।
वेद-भेद रंग रहस्य
पबिते रस रहस्य भरै छै।
भेदि भेद भेदिया भभा
हँसि-हँसि सूरतान भरै छै।
शून-सुिन कुभेद-भेद
मने-मन सिरजैत रहै छै।
वेद-भेद रंग रहस्य
पबिते रस रहस्य भरै छै।
मन-मन्वतर विचारि कुचाड़ि
भेदि भेद भेदैत रहै छै।
विचारि बीच कुचाड़ि-सुचाड़ि
शक्ति शिव सुरतानि कहै छै।
वेद-भेद रंग रहस्य
पबिते रस रहस्य भरै छै।
करम-धरम आकि धरम करम
वेद-भेद भेदिआए कहै छै।
तत्व हीन उकटि-पलटि
शूरधाम सूर-सुर चढ़ै छै।
वेद-भेद रंग रहस्य
पबिते रस रहस्य भरै छै।
भक-इजोतमे......
भक-इजोतमे पड़ल छी
भयार यौ, मीत यौ, भाय यौ
भक इजोतमे पड़ल छी।
खेती मुँहक सुख-सुहनगर
साड़ी अरिअर आस चढ़ै छै।
उक्खरि बीट समाठ सीस बनि
गर्भ संक्रान्ति भरै छै।
भक-इजोत......।
भुक-भुक भुकजोगनी टहलि
इजोत-अन्हार करै छै।
थाहि-थाहि थोपड़ी थपथपा
टाहि टहाका मारि कहै छै।
भक-इजोत......।
कातिक कंत देखैले
कलहंत कण्ठ कलपि कहै छै।
कोकिल कंठ तानि मधु
काग-कागा सिर चढै छै।
भक-इजोत......।
जेकरा लूरि छै घर बनबए
चाहे घास चाहे ठौहरी।
बोली-वाणी कुसि फुसिया
अपन वंश धड़ैत रहै छै।
भक-इजोत......।
जेठुआ गरे......
जेठुआ गरे गर लगिते
बनि अन्हर-बिहाड़ि धड़ै छै।
चैत-बैशाख जेहन तपस्या
हलचला धड़ती सिंचै छै।
सम-समए समेटि सिजति
हाले हल युग-धर्म कहै छै।
जेठुआ गरे......।
जन-जनक जेना जनक
मिथिला काम-धाम कहबै छै।
देश-देशान्तर रथी महा
सिख सिर सजबैत रहै छै।
जेठुआ गरे......।
बट-कट कटि बट वृक्ष
जिनगी बाट धड़ैत रहै छै।
राग-विराग तजि तियागि
हंस चोंच भरैत रहै छै।
जेठुआ गरे......।
सर-नर रस्ता पकड़ि
श्रृंग-श्रंृगी श्रृंगार करै छै।
रथी-महारथी रज्ञमे
पुत्र-यज्ञ श्रृंगी करबै छै।
जेठुआ गरे......।
िनर्जन वन......
िनर्जन वन िनर्जल पक्षी
गुड़-गृह गुरु गुहारि रहल छै।
सतरंगी सतसंगी कहि-सुनि
अप्पन पएर पखारि रहल छै।
िनर्जन वन......।
एक सूर्य धरतियो एक
अग्नि-वासु जल सिक्त करै छै।
तूर-तूर तोड़ि तुरिया तूर
तक-तक तकली काटि रहल छै।
तक-तक......।
जइसन जतए जल-थलिक गति
सिरजन सिर ततए तेहन चलै छै।
तन-मन-धन धरम ततए
हँसि-हँसि पक्षी हंस हँसै छै।
िनर्जन वन......।
हंसा बनि-हंस हँसि-हँसि
सत साखी मंगल रचै छै।
िनर्जन वन िनर्जल पक्षी
गुड़-गृह गुरु गुहारि रहल छै।
गुड़-गृह......।
छगुन्तामे पड़ल छी.....
छगुन्तामे पड़ल छी
भाय यौ, छगुन्तामे पड़ल छी।
छग-छगा, छक-छका-छक-छका
चालि कुबुधि सुबुधि देखै छै।
छक-छका मेरिचाइ जेना
ड़ब-ड़बा जीह-ठार लगै छै।
भाय यौ, ड़ब-ड़बा......।
सिख-सीखि सिखा-सिखा
सजि सिर सिरिस कहै छै।
कर्ता-धर्ता-भर्ता भजार
सीस चढ़ि दुरमतिया कहै छै।
देखि कलपि कलपै छी
छगुन्तामे पड़ल छी।
भरनी-तानी भरि ताना
दिन-राति मखड़ैत रहै छै।
सुता सुत तानि-तना
लट्टा-कट्टा सजैत रहै छै।
लट्टा-कट्टा......।
सूत फेकि सुतियार बनि
रंग-बिरंग जाल बुनैत रहै छै।
इचना-पोठी संग रहु-भाकुर
ग्राह-गोहि बनैत रहै छै।
ग्राह-गोहि......।
स्वागत गीत (सम्मान समारोह)
सुआगत की लए करब अहाँक
सुआगत की लए करब अहाँक।
नै अछि एको विधि बेवहार
धएल धर्मक चरचे की करब।
सर-समांग एको ने देखै छी
तइओ सुआगत करबे-करब।
असे नै बिसवास कहै छी
की लए सुआगत करब अहाँक
सुआगत की लए करब अहाँक।
हेरल-हेराएल भोथिआएल बोन
चीन-पहचीन उड़िया गेलै
कीच कमल कोशिया कुरबा
जोति जल जोतिया गेलै।
आसा-आस असिया अलिसा
जुड़ा-जुड़ा कहै छी
सुआगत की लए करब अहाँक।
इच्छा–आशा सखी-सहेली
सजि फुलडाली संग-सुसंग
आस मारि बेआस मरि-मरि
छी समर्पित अंग-प्रत्यंग।
भव-भार भरि-भरि भरै छी
सुआगत की लए करब अहाँक।
सुआगत की लए......।
गीत (नाट्य मंच, चनौरागंज)
सुआगत अपनेक करै छी
अभिगत अपने सुआगत करै छी।
गुरु-गरु बड़ सिर सिरजन बर
हारि-हीय हिहिया कहै छी
सुआगत अपनेक करै छी।
नैन-बैन संग, बैन-चैन संग
चैन-मैन संग, मानि सानि कहै छी
तथागत,
अपनेक सुआगत करै छी।
असि आस िनरास संग
बास बसि बिसवास कहै छी।
हम-अहाँ, अहाँ हम
गोप-गोपाल गोपी कहै छी।
सुआगत अपनेक करै छी
अभिमत,
सुआगत अपनेक करै छी
सुआगत......।
ओम
प्रकाश
गजल
१
तीतल हमर मोन हुनकर सिनेहसँ
भेलौं हम सदेह देखू विदेहसँ
के छै अपन, आन के, बूझलौं नै
लडिते रहल मोन मोनक उछेहसँ
नाचै छी सदिखन आनक इशारे
करतै आर की बडद बन्हिकऽ मेहसँ
छोडत संग एक दिन हमर काया
तखनो प्रेम बड्ड अछि अपन देहसँ
काजक बेर मोन सबकेँ पडै छी
"ओम"क भरल घर सभक
एहि नेहसँ
मफऊलातु-फाइलातुन-फऊलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)
२
अहाँ हमरासँ एना नै रूसल करू
कनी प्रेमक सनेसाकेँ बूझल करू
हमर जिनगीक बाटक छी संगी अहीं
करेजक बाट कखनो नै छोडल करू
बहन्ना फुरसतिक करिते रहलौं अहाँ
अहाँ कखनो तँ हमरो लग बैसल करू
बहुत मारूक अछि नैनक भाषा प्रिये
अपन नैनक कटारी नै भोंकल करू
करेजा हमर फुलवारी प्रेमक बनल
सिनेहक फूल ई सदिखन लोढल करू
अहीं जिनगी, अहीं साँसक डोरी हमर
करेजक आस नै "ओम"क तोडल करू
(मफाईलुन-मफाईलुन-मुस्तफइलुन)- प्रत्येक
पाँतिमे एक बेर
बिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"
धनुषा नेपाल , हाल:कतार
खूनक ढेला संग नव पुस्तक पतन
सुन सुन हौ भैया सभ
आगिक चिन्गारीसँ पसाही लागि
देश भरि तबाही मचि गेलौ।
जन्मदाता सभ पृथ्वीपर अवतरण
कराबऽ सँ पहिनहि
अपन-अपन कोखिकेँ सुडाह
करऽ लगलौ।
भविष्यक कर्णधार छै बच्चा
काल्हि धरि उपमा देनिहार सभ
दाम्पत्यक सुखमे लिप्त भऽ
अधर्मी, राक्षस
आ नरपिशाच भऽ गेलौ।
सृष्टिक फूल बनि सुन्दर जिनगी लऽ
अनुपम ब्रह्माण्डक अवलोकन करब,
एहन पुनीत आ परम उद्देश्य
खूनक ढेला संग
बेकार भऽ गेलौ।
के दोषी, ककर अछि
दोष
ककरा अछि होस, के अछि
बेहोस
लोभी, लालची, महत्वाकांक्षी सन
मात-पितासँ मनो घबराए लगलौ।
दोसर दिस रोगी लेल भगवान कहेनिहार
समाजसेवी नामसँ प्रख्यात भेनिहार
आ स्वार्थक विषपान केनिहार
आला-सिरिन्जबला सभ
भौतिकवादक चपेटामे पड़ि
पथभ्रष्ट भऽ गेलौ।
मच्छर आ खन्चुवा जकाँ रस चुसऽ लगलौ।
पता नै ई रावणराज कहिया धरि चलत
लैङ्गिक असमानतामे गर्भ कहिया धरि उजड़त
भगवान सबुद्धि दैथि ऐ दुरात्मा सभकेँ
कारण पिताक आगू माइयो लाचार भऽ गेलौ
माने खूनक ढेला संग जिनगी
बेकार भऽ गेलौ।
बालानां कृते
१.पंकज चौधरी "नवलश्री"- बाल गजल
१-२ २.जगदानन्द
झा 'मनु'- होएत जँ
१
पंकज चौधरी "नवलश्री"
बाल गजल-१
दीदी जँ चढ़ि गेल कनहा-गाछी चट द' रूसल कोरा लए
चुल्लरि भेटिते दोसर बहन्ना कानल आब कटोरा लए
झिल्ली-कचरी घिरनी-फुकना बाबू गेलनि हाटसँ आनए
साइकिलक घंटी बजिते दौगल दलान पर झोड़ा लए
बैसल सभ झोड़ा घेरने अपन-अपन अनमाना लेल
जे अनूप से बाँटि क' खेलक बँझि गेल मारि अंगोरा लए
आँगन नीपल अरिपन पाड़ल आइ फेर छै पूजामानी
आसन परमे त' पंडितजी बैसल ओ औनेलै बोरा लए
घड़िघंटा आ शंख बाजि गेल चौरठ आ परसादी भेटतै
"नवल" नञि लेतै एकटा
लड्डू मुँह फुलेलक जोड़ा लए
*आखर-२२
बाल गजल-२
दू टा बस सोहारी चाही
माँ कम्मे तरकारी चाही
पुरना छिपलीमे नै खेबौ
हमरो नवका थारी चाही
हमहूँ जेबै इसकुल बाबू
पूरा सभ तैयारी चाही
हाटसँ आनू पोथी-बस्ता
मौजा-जूता कारी चाही
इसकूलक जलखैमे हलुआ
पूरी आ तरकारी चाही
छीटब बीया गाछो रोपब
आँगन लग फुलवारी चाही
"नवल"सँ नै हम लट्टू
माँगब
हमरो कठही गाड़ी चाही
>मात्रा क्रम : आठ टा दीर्घ सभ
पांतिमे
२
जगदानन्द
झा 'मनु'
हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
बाल कविता
होएत जँ
हाथक मुरली हमर खुरपी बनल
गोबरधन बनल अछि ढाकी,
प्रजा हमर सभ हराए गेल
माए बनल अछि बूढ़ीया काकी |
गाए एखनो हम चरबै छी
प्रिय नहि लम्पट कहबै छी,
इस्कूलक फीस दए नहि सकलहुँ
तैँ हम चरवाहा कहबै छी |
हमर गीतक स्वर
महीसे बुझैत अछि,
वा खेतक हरियर मज्जर
सुनि झुमैत अछि |
हमर बालिंग नै कियो देखने अछि
गाछीक एक एक आमक मुँहपर लिखल अछि,
चौक्का छक्काक नाम नहि सुनलहुँ
हमर पुल्लीसँ गाम भरिक बासन टूटल अछि |
के लऽ गेल यमुनाकेँ एतेक दूर
जँ कनिको नाम हुनक जनितहुँ हम,
हाथ जोड़ि दुनू विनती करितहुँ
यमुनाकेँ हुनकासँ माँगितहुँ हम |
हमरो गाममे जँ यमुना बहैत
विषधर कलियाकेँ नथितहुँ हम,
मुरली बजा कए गैया चरबितहुँ
यमुना कातमे नचितहुँ हम |
होएत जँ हमरो माए यशोदा
सभक प्रिय बनितहुँ हम,
होएत जँ दाऊ भाइ हमर
कतेक बलशाली रहितहुँ हम |
बच्चा
लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही,
आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते
लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो
ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो
ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे
ब्रह्मा, दीपक
मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति!
अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं
हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन
सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने
चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु
कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी
धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत्
भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना
स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन
अहल्या, द्रौपदी,
सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा,
बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम-
ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा
लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये
सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे
वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र
२२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः।
स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि,
आ’
शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन
करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा
त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे
ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’
नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक
उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद
ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण
करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा
देथि, फल देय
बला गाछ पाकए, हम सभ
संपत्ति अर्जित/संरक्षित
करी।
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