ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह'१२८ म अंक १५ अप्रैल २०१३ (वर्ष ६ मास ६४ अंक १२८)
ऐ अंकमे अछि:-
३.४. १.जगदीश
प्रसाद मण्डल २.मनोज कुमार मण्डल
३.६.अमित मिश्र-प्रमाण
विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन
विदेह
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विदेह
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती
प्राचीन कालहिसँ महान
पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश
कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
अंकित अछि। मिथिलाक
भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़
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विदेह जालवृत्तक
डिसकसन फोरमपर
जाउ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक
सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
पर जाउ।
संपादकीय
१
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
शिवकुमार
झा ‘टिल्लू’ कला :: सबल
समाजक अर्न्तद्वन्द्वपर सकारात्मक प्रहार
साम्यवाद मात्र कोनो राजनैतिक चेतना नै अतिक्रमणवादी
बेवस्थाक विरूद्ध एकटा समाजवादी विचारधारा थिक। मैथिली साहित्यक संग ई बड़
पैघ विडम्वना रहल जे वचनसँ तँ बहुत रास रचनाकार अपनाकेँ साम्यवादी मानैत छथि
मुदा जखन कर्मक बेर अबैत छन्हि तँ कतौ कोनो सार्थकता नै। इतिहास साक्षी अछि
कोनो भाषा साहित्यक विकास ओकर विचारधाराक सम्यक सम्पोषणपर िनर्भर रहल अछि।
यूनानी साहित्यकार होमरक इलियड आ ओडेसी, कार्ल्स मार्क्सक दास कैपिटलसँ लऽ कऽ मैक्सिम
गोर्की मदर आ माओत्से तुंगक आनकन्ट्राडिक्सन सन सारगर्भित विदेशी पोथी समन्वयवादक
स्थापनाक लेल क्रांतिक द्योतक थिक। लियो टाल्सटाय आ लेनिन ऐ दर्शनमे सूरमाक
काज केलनि। आर्यावर्त्तक इतिहास सेहो ऐसँ अक्षोप नै। रामचरित मानसमे रामराज्यक
परिकल्पना आ सवरीक सिनेह समन्वयवादक द्योतक थिक। मात्र चौपाइक कारणे ई ग्रन्थ
जनप्रिय नै भेल। श्री मद्भागवत गीतामे कृष्णक उपदेश निश्चित रूपसँ शांतिक लेल
युद्धक प्रतीक मुदा ऐ क्रांतिमे सेहो समाजमे समन्वयवादक आश लगाओल गेल। “देसिल वयना सभ
जन मिट्ठा”क कतेको
गुणगान कएल जाए मुदा हमर साहित्यक इतिहास श्रंृगार आ यशोगानसँ आगू नै बढ़ि रहल
छल। ऐ उपक्रममे ललित आ धूमकेतु सन आधुनिक रचनाकार अवश्य समन्वयवादक आश लऽ कऽ
एलाह। ऐसँ पूर्वक साहित्य अपन समाजमे केतबो गुणगानक ध्वजकेँ जाज्वल्यमान करए
मुदा आन क्षेत्रक लेल मात्र मधुर भाषा बनि कऽ रहि गेल जाइमे पग-पग पोखरि माछ
मखानसँ बेसी आश राखब अनर्गल छल। कर्मवादिताक आधारपर जौं िनर्णए कएल जाए तँ साहित्यसँ
साम्यवादक घृतगंध मात्र किछुए साहित्यकारक लेखनीसँ झहरैत भेटत, जइमे प्रमुख छथि
जगदीश प्रसाद मण्डल,
बैद्यनाथ मिश्र यात्री,
चतुरानन िमश्र, ललित, धूमकेतु, गजेन्द्र ठाकुर, सुधांशु शेखर
चौधरी, कुमार
पवन आ श्रीमती कमला चौधरी। वास्तवमे मैथिली उपन्यास विधामे साम्यवादक संस्थापक
वैद्यनाथ मिश्र यात्री (कृति- पारो) आ चतुरानन मिश्र (कृति- कला) केँ मानल जा
सकैछ। ई मात्र संयोग मानल जाए जे दुनू साहित्यकारक कृति एकहि वर्ष सन 1947 ई.मे प्रकाशित
भेल। ओही कालमे यात्री परिपक्व रचनाकार भऽ गेल छलाह, मुदा चतुरानन
एकटा काँच क्रांतिवादी युवक रहथि। एकटा मजदूर आन्दोलनक नेतृत्व केनिहार 21 वर्षक नवयुवकक
लेखनीसँ निकसल ऐ उपन्यास नै समाजक लेल लिखल क्रांतिगीतकेँ पूर्ण वैचारिक मान्यता
किएक नै भेटल ई विचारनीय प्रश्न थिक। कलाक अतिरिक्त चतुरानन मिश्रीजी विकास, संझा माए, जागरण आदि लघु
उपन्यास लिखने छथि मुदा सामान्य पाठकक लेल साहित्यकार नै मानल जाइत छथि।
कलाक पहिलुक प्रकाशन 1948 ई.मे भेल। मैथिली अकादमी सन् 1948 ई.मे ऐ पोथीकेँ
फेरसँ प्रकाशन केलक। हिरमोहन झा आ यात्री सन चर्चित लोकनि एकर सारगर्भितासँ
हर्षित भेलाह, मुदा
पाग प्रधान मिथिलामे “कला”केँ कहए जे
वाहवाहीक मुरेठा सेहो नै भेटल। समालोचक लोकनि केतौ-केतौ मर्यादावश
उल्लेख तँ करैत छथि मुदा “क्रांतिवीर” कहबामे संकोच होइत छन्हि किएक तँ ई साम्यवादी
राजनीतिज्ञ कालसँ पूर्वहिं लिखब छोड़ि देलक।
आब प्रश्न उठैत अछि जे चतुराननकेँ साहित्यक महिमा मंडनक
पिरही नै देल जाए किएक तँ परिपक्व भेलाह वाद लिखनाइ छोड़ि देलक आ संग-संग दोहरी चरित्र
जे जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ सेहो महत्व नै देल जाए किएक तँ ओ परिपक्व भेलाक बाद
लिखलक आ लिख रहल अछि की ई उचित...?
एकटा समन्वयवादपर आघात मानल जाए। ई दुनू केकरो यशोगान आ
केकरो तगेदासँ नै लिखलक। एकर एकर गंभीर परिणाम जे जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ “टैगोर साहित्य
सम्मान” सन सम्मान
भेटल मुदा मिथिलाक कोनो समाचार पत्रसँ ई प्रकाशित नै भेल। मैथिली भाषा मात्रमे
ऐ प्रकारक अर्न्तद्वन्द्व संभव छैक। समन्वयवादसँ हमरा सबहक ऑत किएक डोलि जाइत
अछि? एकर
अर्थ स्पष्ट जे भाषाक प्रचारक आ संरक्षक लोकनिमे पारदर्शिताक संग-संग प्रतिभा
सेहो नै छन्हि आ आत्मग्लानि (complexion) सँ ग्रसित छथि।
मात्र 54 पृष्ठक एकटा
छोट-छीन
जेकरा अतिवादी समालोचकक दृष्टिमे झुझुआन सेहो कहल जा सकैछ, औपन्यासिक कृति
“कला” मिथिलाक निरापद
समाजक नारी दोहनक वृत्ति चित्र थिक। मैथिलीमे रचनाक संख्या बल आगालक ताल
रचनाकारक स्तरक मूलाधार होइछ। “कला” पढ़लाक
बाद ई अक्षरश: प्रमाणित
भऽ गेल। जइ समाजमे अखनो विधवा बिआह अमान्य मानल जाइछ। ओइ समाजक एकटा नारीमे
चेतना आ सकारात्मक परिणामक संग उद्देश्य प्राप्तिक आश लगभग 66 वर्ष पूर्व राखब
एकटा क्रांतिवादी विचारधाराक कारण मानल जा सकैछ। महेश बाबू गरीब मुदा ऊँच-नीच बुझनिहार
व्यक्ति छथि। ओ अपन 10 वर्षक ज्येष्ठ कन्या “कला”क बिआह नै करए चाहैत छथि, मुदा पारिवारिक
स्थिति आ समाजक दशो-दिशा महेश बाबूक मुख बन्न कऽ देलकनि 50 बीघा जमीनक मालिक
बूढ़ वर मनेजर भाइसँ कलाक बिआह करए पड़लनि।
अपराधवोध नीक लोककेँ अवश्य होइछ। परिस्थितिवश आर्थिक
दृष्टिसँ नि:शक्त
महेन्द्र बाबू बेटीक बिआहसँ पूर्वहि अपन कनियाँक नाओंसँ समाजक आ परिस्थितिक
देल पीड़ाकेँ पतिया स्वरूप लिख निपत्ता भऽ गेलाह। एकटा बूढ़ वरक कनियाँ जे
क्षणहिं पर्व कॉच कन्या छलीह आब वयससँ नै मुदा जीवन शैलीमे परिवर्तनसँ व्यस्थित
आ बेसाहु भऽ गेलीह। एक वर्षक दाम्पत्य जीवन व्यतीत केलाक बाद अज्ञात यौवना बालिका
चित्राक “बूढ़ वर” कविताक नायिका
जकाँ विावा भऽ गेलीह। मुदा “जो रे राक्षस, जो रे पुरुष जाति। तोरे मारलि हमरा सभ मरि रहल छी...।” केर उद्घोष नै
केलीह। माए-बाप आ
समाजक देल अवांक्षित वैधव्यकेँ मूक स्वीकारोक्ति कलाक परिपक्वताक नै परिस्थितिक
िनष्कर्ष भऽ गेल। “कला” वैधव्यक कष्टसँ
कानलि तँ रहथि मुदा छोट वयसक कारणे जीवनमे एतेक भारी विपत्तिक आगमन केर पूर्ण
भान नै भेल छलनि। “अज्ञात
नव यौवना”
(कोनो राजकमलक कथानायिका नै मिथिलाक गुणगान करए बड़ा छद्म
ब्राह्मण जातिक कन्या) विधवा संकटा बनि गेली। क्षणिक चुहचुहीसँ भरल कलाकेँ देख
सासु कहलखिन-
“वौआसिन
केर विधवाक शोभा नै संकटे थिक तँए हमर विचार जे कहबा लितहुँ?”
फेर गंगा कातमे कलाक मूड़न भेल। ई मिथिलाक तादात्म्य, मैथिल
ब्राह्मणक शक्तिकेँ की मानल जाए? इहए कारण थिक जे सम्पूर्ण भारतमे धर्म सुधार आन्दोलन
भेल, मुदा मिथिलामे
नै। ओना ऐ तरहक प्रवृत्ति आन ठामक ब्राह्मणमे सेहो छन्हि, मुदा एतेक कट्टरता
नै। अवलाक शोणितसँ जाितवादी हथियारकेँ पिजा कऽ कहिया धरि अपनाकेँ “सवर्ण” कहैत रहत, ई तँ अवर्णोक
लेल ग्राह्य नै। जौं एतबे टामे “कला”क ललित
कलाक इतिश्री भऽ गेल रहितए तँ विश्ेष गप्प नै छल। अवला िनर्वला कलाकेँ हुनक
दिअर सुन्दर बाबू जे वयसमे कलाक पिताक समान छथि चरित्र हनन कऽ कुलक्षणा पतिता
आ कलंकिता माताक रूप दऽ देलखिन। कला गर्भवती भऽ गेलीह। भरि दिनक गारि आ शापसँ
कला असहज भऽ सासुकेँ जबाव देलखिन-
“अपन
कोखि केहन भेलनि जे एहन सुपुत्र जे जनमओलनि। शौख केहन भेलनि जे पचास वर्षक
बूढ़ बेटा ले नअो वर्षक कनियाँ तकैत छलीह...।”
सुन्दर बाबू जेे पहिने कलाक चरित्रहंता खलनायक छलाह आब
मर्यादा पुरुषेत्तम बनि माइक आदेशपर कलाकेँ मूर्छित कऽ देलनि।
जखन वियति
अबैछ तँ सगरो दिश अन्हार जेम्हरे जीव जेबाक प्रयत्न करैछ तेम्हरे संकट। कला
भाग कऽ बनारस चलि गेलीह। एकटा तथाकथित मैथिल भद्रमहिला सोमदाइ कलाकेँ
षडयंत्रसँ गयिका बना कऽ बेचए चाहैत छलीह। एकटा ब्राह्मणी सहायतासँ कला चरित्र
दोहणसँ बचि तँ गेलीह मुदा पीड़ा अग्राहण भऽ गेलनि। परिणाम भेल आत्महत्याक
प्रयास, मुदा
अभागलिकेँ मरनाइ सेहो कठिन होइछ। सात दिन अस्पतालमे रहलाक बाद जखन किछु सुधार
भेलनि तँ डॉ. कलानंदसँ
साक्षात्कार जीवनमे सुखद अनुभूति लऽ कऽ आएल। युवक डॉ. कलानंद आत्महत्याकेँ
उचित नै मानैत छथि। ओ सुधारवादी ब्राह्मण छथि। विधवाकेँ बिआह कऽ लेबाक चाही....। डॉ. कलानुदक तर्क कलाकेँ
असहज लगलनि। ऐ समाजमे विधवाक नारकीय स्थितिसँ उद्वेलित कला “सती प्रथा”केँ उचित मानैत
छथि। केहेन विकट परिस्थिति थिक जइठामक नारी अवला जीवनक अभिशापसँ बेसी चरित्र
हननक डरसँ सती हएब उचित बुझैत छथि। तथाकथित पुरुषप्रधान सबल वर्गक नारी दिन
भरि खटैत रहए सभ दैनन्दिनीमे परिवारक सहयोगी मुदा यात्राकालमे अशुभ। आश्चर्य
अछि समाजक अग्र आसनपर बैसल धर्म िनर्माता आ बेवस्थाक कथाकथित मनुवादी प्रवृति
ओ दर्शन। जौं मनुवादकेँ हृदैसँ मानैत छथि तैयो एहेन दृष्टिकोण हएब उचित नै।
मनु तँ एकर समर्थन कथमपि नै कएने हेता। जौं हुनको इहए दृष्टिकोण छलनि तँ एहेन
व्यक्तिक लिखल स्मृति समाजपर कलंक मानल जाए। ऐ क्रममे सभसँ नीक लागल चतुरानन
जीक समन्वयवादी विचारधाराक बेबाक विश्लेषण। डॉ. कलानन्द अन्तरजातीय
आ अन्तरप्रान्तीय िबआहक समर्थक छथि कलानंदक ऐ दृष्टिकोणकेँ साम्यवादी विचारधाराक
अनुशीलन हेतु चतुरानन जीक आत्म उद्वोधन मानल जाए।
उपन्यासक िनष्कर्ष
सकारात्मक अछि। डॉ. “कलानंद” कलानंदसँ “कलाकान्त” अर्थात् कला
दाइक पति भऽ गेलाह। दंतहीन मैनेजर भाइ जकाँ नै सुन्दबाबूसँ संस्कृत शिक्षा
ग्रहण करैवाली “कला”क सुयोग्य पति- डाॅ. कलानंद। कलाक जिज्ञासा
छलनि जे विधवा ट्रेनिंग कैम्प चलैत रहए। ओ पूर्ण भेलनि। डॉ. कलानंद आब
औषधालय खोलि राजनीतिमे कूदए चाहैत छथि। औषधालयसँ जे आमदनी हेतनि ओइसँ परिवारक
भरण-पोषण डॉ. साहेबक मूल
उद्देश्य छन्हि। रचनाकार राजनीतिज्ञक लेल प्रश्न ठाढ़ कऽ देलनि जे राजनीतिमे
रहैबला लोक समाज सेवाकेँ अपन उद्देश्य बनाबथु। राज्यक धनसँ परिवारक पोषण नै ई
तँ “ऑनरेरी
सर्विस” हेबाक
चाही। कला सोलह बर्खक बाद अपन नैहर एलीह मुदा सभ किछु नष्ट भऽ गेल छलनि। ऐ उपन्यासमे
महाजनवादी सूदिखोरी प्रथाक विरोध सेहो कएल गेल अछि।
निष्कर्षत: ई उपन्यास विन्याक
दृष्टिसँ किछु विशेष नै किएक तँ मैथिलीमे कथोपकथनसँ बेसी विन्यासक महत
होइत छैक। चोटगर आ रसगर गप्प ऐमे नै छैक तँए ई समालोचक लोकनिकेँ नै पचलनि। जौं
चतुरानन जीक ऐ तरहक दृष्टिकोण जे अखन धरि मात्र कल्पना थिक, समाज द्वारा
अर्न्तमनसँ स्वीकार कऽ लेल जाए तँ चतुरानन जीक लेखनीक सार्थकता परिलक्षित
होएत।
ऐ मौलिक कृतिक प्रासंगिकता समाजमे अखनो अछि। जे वर्ग स्वयंकेँ
मस्तिष्क कहैत छथि ओइमे अखन धरि सम्यक साम्यवादी तत्वक विकासमे लागल धून
अखन धरि व्याप्त अछि। ओना स्थिति बदलि रहलै आ बाल-बिआह लगभग मिथिलामे
न्यून भऽ गेलैक मुदा काटर प्रथा आ वैधव्य जीवनक दारूणिक बेथाकेँ अखनो सबल
समाजमे मान्यता छैक। ब्राह्मण शिक्षा स्पोतक मूलांकुर रहल छथि तँए राजतंत्रीय
बेवस्थामे पएर पुजेबाक हिनका अधिकार छलनि मुदा कि ऐ वर्गक विद्धत लोकनि ओइ
अधिकारक प्रयोग समाजमे समन्वयवादी बेवस्थाक स्थापनाक लेल कऽ सकलनि?
द्रविड़ समाजमे
तँ बहुत हद धरि जाति-पातिक
दृष्टिकोणमे कमी आएल मुदा आर्य समूह विशेष कऽ कऽ मिथिलामे अखन धरि आनक प्रतिमाकेँ
प्रोत्साहित करब वा सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकासमे भूमिका देबएमे सबल
वर्गकेँ अखनो कचोट होइत छन्हि। जाधरि ऐ मानसिकतासँ मुक्ति नै भेटत चतुराननजी
सन समन्वयवादी विचारधारा पुरान रहितो नूतन मानल जाएत। विश्वास अछि जे स्वयंकेँ
मूल्यांकन कएल जाए जे हम सभ कतए जा रहल छी इहए “कला”क कलात्मता ओ तादात्म्यक सार्थक श्रद्धांजलि हएत।
ज्योति चौधरी
एक युग : टच वुड (भाग –
४)
हुनका बुझेबे नै केलनि जे के हुनकर पत्नी
छलखिन। ओना ओ सर हमर बिआहमे सभसँ अमूल्य उपहार, काजक
अनुभवक प्रमाण-पत्र
देला जे अखन तक हमर संजीवनी अछि।
हमर बिआहमे
बरियाती देरसँ आएल छल। सभ हमरा
लग आबि कऽ बात करए लागै छल जे
लड़काक मुँह अखन तक कियो नै देखने छथि। हम इम्हरसँ उम्हर
पड़ाइत रही। अन्ततः साँझमे बरियाती आएल तँ सभ हमरा छोड़ि कऽ चलि गेल। बस तीनटा बचिया रहए जे आबि कऽ रिपोर्ट दऽ रहल छल। एकटा आबि कऽ कहलक जे वरक मुँह
देखाए नै रहल छनि। फेर कनिक कालमे एकटा बचिया समाद अनलक
जे वरक मुँह गोल छनि। हम चुपचाप सुनैत रही आ लागि रहल छल जे आब हम ऐ परिवारसँ अलग भऽ
रहल छी। ने हँसी आबि रहल छल ने कानि रहल छलौं। मुदा
फोटो खिंचवाबैक बड्ड शौक छल, से विडियो आ
कैमरामे बढ़िया मुद्रा दइ लेल पूरा प्रतिबद्ध छलौं। आखिर बिआह
दुबारा नहिये करैक छल। संगे ईहो लागै
छल जे बिआहक प्रयोजनमे बहुत लोकक शौख शामिल रहैत छै, तैं कतौ हम उच्छ्रंखल अथवा स्वार्थी ने प्रमाणित भऽ जाइ, तकर ध्यान रखने रही। पूरा परिवार संगे छल, से
बहुत सौभाग्य छल। सबहक बीच बाबाक आवाजक कमी खलि रहल छल। मुदा हमर दाइजी हमरे जकॉं
मजबूत छलथि। शुभ कार्यमे
कननाइ हुनका नै मंजूर रहनि। आइ हुनका सहित आरो किछु
लोक परिवारमे नै रहि गेल छथि, से
बहुत दुखद अछि।
करीब एक महीना बाद पतिदेवसँ भेंट भेल छल मुदा पारम्परिक पहिराबामे। हम
हँसल जा रहल छलौं आ ओ अपन कुर्ता
झारैक नाटक करै छलथि, जेना
किछु लागि गेल होइन। चारि दिनक
अनूना, लोक सभसँ भेँट, सबहक आशीर्वाद, ऐ सभसँ होइत दस
दिन कोना बीतल से नै बुझलौं आ सासुर दिस
विदा हुअक समए आबि गेल। एक
नवतुरिया भाउजो अपन ननदिकेँ विदा
करै काल कानि रहल छली, जिनका लेल हम किछु नीक केलियनि से नै बूझल अछि। पढ़ाइये लिखाइमे समए बीत गेल छल।
बादमे हम खूब जाइ नैहर आ कहियनि जे अहॉं कानल रही तैं एलौं तँ ओ कहली जे हुनका अपन विदागरी मोन पड़ि गेल रहनि तैं कानल रहथि।
दुरागमनमे हम सासुरक द्वारपर कारमे बैसल रही, अपन
पतिक संगे। ताबे एकटा बच्ची अपन संगी सभ संगे
एली आ हमर मुँह देखेलखिन सभकेँ। हम खूब टेंशनमे रही तँ ओ बच्ची बजली, अहॉंकेँ सचिन टेण्डुलकर बड़ नीक लागै छलए ने। हम
परेशान। लागल जे सभकेँ बुझल भऽ गेलनि जे हम
अपन पतिकेँ देखै लेल
परेशान रही आकि हमर कोठलीमे सचिन तेण्डुलकरक फोटो लागल रहए। कोन बातसँ जुटल रहै ई बात, से नै बुझलिऐ। फेर परिछन प्रारंभ भेल।
पतिदेवकेँ हटा देल गेलनि। कनिये
देरमे लागल जे सचिन तेण्डुलकर मैथिली बाजि रहल छथि.. “ जल्दी
करू, कनिया थाकल हेथिन।”
हम फेर परेशान। सभ जे मुँहमे गुड़ दऽ रहल छलथि से चिबाबऽ लगलौं तँ सास कानमे कहली ..“ई गुुड़
लोक नै खाइ छै।”
बुझल तँ रहए हमरा।
परेशानीमे बिसरल रही, से मोन पड़ि गेल। घरमे प्रवेश केलौं। सभ काजकेँ पूरा जोशसँ फटाफट
केलौं, चाहे बामा हाथे कोठी खोलबाक रहए, अहिबऽफड़ बॉंटबाक रहए अथवा
एके बेरमे माँछ कटबाक। आब
मुँह देखाइ शुरू। कियो
सिखेनहे नै रहै जे ऑंखि
बन्द कऽ लेब। दोसर सभकेँ देखने रहिऐ, से
मुँह देखाइ बेरमे हम ऑंखि
बन्द केनाइ नै बिसरलौं।
फेर सभ निअम खतम भेल। सभ सुतलौं आ नींद खुजल, भोरे-भोर फेर सचिन तेण्डुलकरक मैथिली बजनाइसँ। हम फेर परेशान। ओना पार्टीबला दिन बुझि गेलिऐ जे ई सचिन तेण्डुलकर सनक आवाज किनकर छनि। समए बीतल आ सभ
सम्बन्धी सभ अपन-अपन
ठिकाना दिस विदा भेला। हमर पतिदेव सेहो अपन काजपर लौटि गेला।
आब समए छल हमर
रसोइ घरमे प्रवेशक। हमरापर दियादनीकेँ विश्वास नै रहनि, से कहलथि किछु
साइड बनाउ। हम कहलियनि- हम
गुलाबजामुन आ वेजिटेबल सूप बनाएब। सूपक
लेल लम्बा लिस्ट पकड़ेलियनि आ गुलाबजामुन
लेल रेडीमेड मिक्स आनऽ कहलियनि। सभ हँसय लगलथि जे एहेन मिठाइ बनाएब। ओना
हमर चाशनी बढ़िया बनल रहए से सास खूब खुश
छलथि। तकर बाद हमर टेस्ट भेल रोटी बनाबइक। कनिये कालमे छोट-छोट रोटीक ढेर लगा
कऽ राखि देलियनि। सभ कहलथि- अपने सनक रोटी बनेलौं। ओना हम सैण्डविच, रोटी, पराठा
आ पूरी बनाबइमे पहिनेहेसँ नीक रही। सूप लेल हमरा
ननदि कहली जे भैया खुश भऽ जेता ऐसँ। हमर चेहरा चमकि गेल मुदा तखन हमर दियादनी कहली जे
अहॉंक पतिकेँ मसालाबला झोर नीक लागैत छनि। फेर की छल, हम तन्मय भऽ कऽ
सीखए लगलौं। इम्हर दियादनी कहि कहि कऽ सिखाबइ छलथि जे ई अहॉंक पतिकेँ नीक लागै छनि आ उम्हर भैंसुर
आ सास खखसनाइ नै बिसरइ छलथि।
फेर हम तिला-संक्रान्तिमे
नैहर गेलौं। ओतएसँ लौटि कऽ सासुर आ सासुरसँ सासु-ससुर
संगे मुम्बइ। पतिदेव स्टेशन
आएल छलाह लै लेल। घर पहुँचलौं तँ सास कहली, चलू ई अछि
अहॉंक घर। हम बहुत आह्लादित रही। घर बहुत नीक रहए मुदा छोट रहए आ हमरा लेल सभसँ
आश्चर्यजनक रहए जे फ्लैटमे
बालकोनी नै रहए। पतिदेव कहला, अतुक्का घर एहेने होइ छै। फेर घरकेँ अपन हिसाबसँ
व्यवस्थित केलौं। सासुमाताक
असिस्टेण्ट बनलौं आ
हुनकोसँ बहुत किछु सिखलौं। होलीमे पूआ पकवान सिखलौं। पतिदेव बहुत खुश
रहथि। भोरे भोर ऑफिस चलि जाइ छलथि आ हम
घरक काज कऽ अपन कोठलीमे
बन्द रहै छलौं। बीच-बीचमे सासु-ससुरकेँ लुडो-खेलक नोक-झोंक
सुनैत रहै छलौं। कतेक शान्तिमय
समए छल ओ, जे बीत
गेल।
अपन बेटाक जन्मदिन मनाकऽ सासु-ससुर लौट गेला। हम फेर असगर रहि गेलौं। पतिदेवकेँ बूझल रहनि जे हमरा असगर नै नीक लागैत अछि, से ओ
ऑफिससँ जल्दी आबि जाइत छलथि। बीचमे एक बेर
ऑफिसक पिकनिकपर सेहो गेलौं। वएह हमर सबहक हनीमून छल।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
पठाउ।
नवेंदु
कुमार झा
बाँटल गेल मैथिली: बरत
मिथिला
बिहार
मे न्यायक संग विकासक दावा करएबला नीतीश सरकारक टेढ़ नजरि मिथिला आ
मैथिलीपर लागि गेल अछि। विकासक पिटा रहल ढोलक संगहि प्रदेशमे विकासक बाट खूजल अछि, मुदा
विकासक सीमाकेँ बान्हि देल गेल
अछि। ओना तँ विकासक धार पूरा प्रदेशमे बहि रहल अछि मुदा विकासक
जे परिभाषा नालंदा जिला आ मगध क्षेत्रमे लागू भऽ रहल अछि ओइसँ शेष बिहार विशेष कऽ मिथिला
अवश्य वंचित अछि। कुशासनक मारि सहल बिहारमे सुशासनक जे बाट देखाओल गेल अछि ऐमे मिथिला आ मैथिलीक परिभाषा बदलि गेल। केन्द्रक
सरकार हुअए कि प्रदेशक
सरकार, दूनू मिथिला आ मैथिलीक उपेक्षा कऽ रहल
अछि। केन्द्रीय रेल बजटक संगहि बिहारक आम बजटमे मिथिलाकेँ तकैत रहि जाएब। ज्यों
केन्द्र उपेक्षा कऽ रहल अछि तँ ओकर
कारण सेहो वाजिब अछि। सत्ता प्राप्तिक लेल वोटक राजनीति होइत अछि। ओना संवैधानिक
रूपे देशमे लोक कल्याणकारी शासन व्यवस्था मुदा विशेष लाभ ओइ क्षेत्र अथवा सरकार समर्थक दलकेँ होइत
अछि जकर सहारासॅ सरकार बनैत अछि। ऐ
फार्मूलामे मिथिला असफल अछि। केन्द्रमे सतारूढ़ दलकेँ मिथिलांचलसँ खरड़ि कऽ बाहर कऽ देल गेल अछि। प्रदेशमे
सतारूढ़ गठबंधककेँ अपार समर्थन
देब सेहो मिथिलापर भारी पड़ि रहल अछि। निरंकुश भेल सरकार अब मिथिलाक आ मैथिलीक
पहचान भिरबऽ पर लागि गेल अछि। जगत जननी माता सीताक भाषा मैथिलीपर तलवार चलि गेल
अछि आ जगत जननीक मातृभूमि
मिथिलापर संकटक तलवार लटकि रहल अछि।
खएर, ई सभ तँ सत्ताक खेल
अछि। सत्ता अपन हिसाबसँ रणनीति बना
शासनक संचालन करैत अछि। बिहारक वर्तमान नीतीश सरकार जइ रणनीतिपर शासन चला रहल अछि तकर सोझ
नोकसान मैथिली केँ भेल अछि आ मिथिलाक नोकसानक बाट धऽ लेने अछि। मिथिलाक जनता अपन मांगक लेल संघर्ष कऽ रहल
अछि। ऐ क्रममे फराक प्रदेशक मांग सेहो उठैत
रहैत अछि। सरकारकेँ मिथिलाक आवाज नै सुनाइ पड़ि रहल अछि। मिथिलाक लड़ाइकेँ कमजोर करबाक लेल सरकार साजिश कऽ रहल अछि। ई साजिश आब
हमरा सभक सोझाँ अबि गेल अछि।
जगत जननीक मातृभाषा मैथिलीकेँ बॉटि
मैथिलीक हक लेल चलि रहल संघर्षकेँ कमजोर
कएल गेल अछि। प्राथमिक स्तरसँ मैथिली भाषामे
पढ़ाइ हुअए, ऐ लेल
कतेको वर्षसँ संघर्ष
चलि रहल अछि। कांग्रेसक शासन कालमे ऐ लेल
मैथिली भाषामे पोथी सेहो प्रकाशित कएल गेल
छल। मुदा ओ मात्र कागज धरि सीमित रहल,
ऐसँ मैथिलीकेँ कोनो लाभ नै भेल तँ नोकसान सेहो नै भेल।
नीतीश सरकार प्राथमिक स्तरसँ
मातृभाषामे पढ़ाइ प्रारंभ कएलक अछि। ऐमे
बिहारक क्षेत्रीय भाषा मैथिली आ भोजपुरीक संग अंगिका आ बज्जिकाकेँ जगह दऽ मैथिली भाषाक बँटवारा कऽ मैथिली भाषाक अस्तित्वपर प्रश्न चिन्ह ठाढ़ कऽ देलक
अछि। मैथिली, भोजपुरी भाषाक पोथीक संगहि अंगिका आ
बज्जिका भाषामे सेहो छपलक अछि। मातृभाषा बँटि गेल।
मातृभूमिमे बँटबाक साजिश भऽ
रहल अछि। मिथिला आ मैथिलीक नामपर राजनीति कऽ रहल राजनेता आ मैथिल विद्वान मौन धारण
कएने छथि। सत्तारूढ़ दलक अंग प्रदेशक एकटा
नेताक इशारापर मैथिलीक महत्वकेँ कम
करबाक लेल अंगिकाकेँ महत्व देल गेल
अछि। दोसर दिस अंगिकाकेँ सेहो आगाँ कएल गेल
अछि। ई जनतब अछि जे प्रति पाँच कोसपर
भाषाक स्वरूप बदलि जाइत अछि। अंगिका आ
बज्जिका मैथिली भाषाक बहिन अछि। क्षुद्र राजनीतिक लाभक लेल मैथिली प्रेमक नौटंकी
करएबला राजनेता मैथिली भाषाकेँ बाँटि चैनक
बासुरी बजा रहल छथि। हमरा सभ एतेक पैघ बेवकूफ
छी जे ओइ राजनेताकेँ माथपर बैसबैत छी जे भाषाक विरूद्ध साजिश करैत अछि। अंगिका आ बज्जिका फराक
भाषाक रूपमे कोनो एक दिन अस्तित्वमे नै आबि
गेल अछि। ऐमे सत्ताक शीर्ष
नेतृत्वक हाथ अवश्य रहल हएत। मिथिला आ
मैथिलीक पहरूआ कहएबला राजनेता सभकेँ एकर जनतब नै भेल हएत ई मानऽबला गप नै अछि। दरअसल मजगूत सत्ताक आगाँ मिथिलाक वर्तमान राजनेता असहज छथि। स्वतंत्राक ६४ वर्षक बादो मिथिला आ मैथिली पिछड़ल अछि। बावजूद
एकर मिथिलावासी अपन हिसाबे जीवनक गति आगाँ बढ़ा
रहल छथि। मिथिलाक भूमि शांतिक केन्द्र अछि, ऐठाम उग्रताक कोनो जगह नै अछि। देशमे भाषा आ प्रदेशक लेल कतेको उग्र आंदोलन भेल अछि
जइमे किछु सफल सेहो भेल। ई जनैत जे सरकार
उग्रताक भाषा बुझैत अछि मिथिलावासी अपन हिसाबे आंदोलन आ राजनीति करैत छथि। संगहि
राजनीतिक महत्व सेहो अछि। बिहारक बँटवारा
उग्र आंदोलनक परिणाम आ तात्कालिक सत्ताक कुर्सी बचैबाक लेल ओकर महत्वक परिणाम अछि।
आंदोलनक मिथिला प्रतीक्षा कऽ रहल अछि। क्षुद्र राजनीतिक लाभक लेल मैथिलीक
अस्तित्वपर जे प्रश्न ठाढ़ कएल गेल
अछि ओकर मुँह तोड़ उत्तर देबाक लेल हमरा सभकेँ सजग होमए पड़त।
मातृभाषाकेँ सरकार बाँटि देलक अछि तँ मातृभूमि मिथिलाक कपारपर संकट अछि। जिलामे पसरल
मिथिला अंग, बज्जिकांचल, सीमांचल आ
सुरजापुरीक रूपमे बाँटल जा रहल अछि। एक समए छल जखन मिथिला किछु वर्षक लेल प्राकृतिक कारणसँ दू क्षेत्रमे बँटि गेल छल। कोसीपर पुलक अभावमे मिथिला फराक भऽ गेेल छल। केन्द्रमे अटल बिहारी वाजपेयीक नेतृत्वबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार कोसीक महासेतुक जे उपहार देलक ओइसँ मिथिला
एक अवश्य भेल मुदा बिहारक राजग सरकार वाजपेयीक ऐ उपहारक हिसाब मैथिलीक आ मिथिलाकेँ बाँटि चुकता करबापर लागल अछि। मिथिलावासी
अपन अधिकारक प्रति सजग भऽ जाथि ऐसँ पहिनहि
नीतीश सरकार ओकर धरती पकड़ैबाक लेल तैयार अछि। कोनो संस्कृतिकेँ नष्ट करबाक लेल आवश्यक अछि जे पहिने ओकर भाषाकेँ नष्ट कऽ देल जाए। ज्यों भाषा मरि जाएत तँ ओकर भू-भाग मेटाय मे कोनो समय नै लागत, से नीतीश सरकार
पूरा मनोयोगसँ कऽ रहल अछि।
भारतीय संस्कृतिक रक्षा करबाक दाबा करएबला
राजनीतिक दल आ संगठन सेहो नीतीश सरकारक ऐमे डेगसँ डेग मिला कऽ चलि रहल अछि। श्री रामक जन्म भूमिक लेल
पूरा देशकेँ अपना माथपर
उठबऽ बला दल आ संगठन जगत जननी सीताक मातृभूमि बँटैत देखि रहल छथि। वोटक राजनीतिक भेट चढ़ि गेल अछि जगत
जननीक मातृभूमि आ मातृभाषा। आ राष्ट्रवादी सांस्कृतिवादी सभ आँखि पर पट्टी बान्हि निश्चिंत छथि।
मैथिली
प्रदेशक एकमात्र भाषा अछि जकरा
संविधानक अष्टम् अनुसूचीमे स्थान भेटल अछि। ई भाषा सरकारक संरक्षकक अधिकारी अछि।
आन प्रदेशमे कामकाजमे क्षेत्रीय भाषाक महत्व अछि। संविधानक अनुसूचिमे स्थान
प्राप्त ऐ भाषाकेँ सरकार संरक्षण दऽ देबऽ मे असफल रहल आ एकर महलकेँ कम करबामे कोनो कसरि नै छोड़लक अछि। सरकारक लाभसँ ई भाषा वंचित अछि। कोनो मैथिली पत्र-पत्रिका सरकारक विज्ञापनक लाभ नै उठा सकैत अछि। कि एक तँ सरकारक विज्ञापन नीितमे मैथिली भाषाक कोनो स्थान नै, ज्यों सरकार
भाषाकेँ संरक्षण नै दऽ सकैत अछि तँ ओकरा खंडित करबाक सेहो ओकरा कोनो
अधिकार नै छै।
हमरा
जनैत एखनो बहुसंख्यक मैथिली भाषाीकेँ ऐ तथ्यक जनतब नै अछि जे
हमर भाषाकेँ बॉटि देल गेल
अछि। ऐमे दोष हमर सभक सेहो अछि। हमरा सभ अपन
मातृभूमिक संगहि मातृभाषासँ दूर भऽ
रहल छी। उच्चस्थल भेलाक बाद मैथिली भाषामे गप नै करब हमरा सभक पिछड़ल हेबाक हीन भावना
प्रदर्शित करैत अछि। ज्यों स्वयं सजग नै रहब तँ एकर लाभ दोसर अवश्य उठाओत। दोसर मैथिलीक राजनीति कएनिहारक जे अछि ऐसँ ऐ भाषापर एक खास वर्गक भाषा हेबाक
मोहर लागि रहल अछि। हमरा सभमे अपन
भाषाक प्रति समर्पणक भावनाक अभाव आबि
गेल अछि आ भाषाक माध्यमसँ मात्र
सरकारी लाभ आ पुरस्कार लेबऽ मे अपन सभटा विद्वता खर्च
कऽ रहल छी। एकर लाभ दिग्भ्रमित क्षेत्रीय विद्यान उठा,
राजनेताक लेल राजनीतिक अवसर उपलब्ध करा रहल छथि। मिथिला बरि रहल अछि,
मैथिली बँटि गेल,
हमरा सभ मौन छी। मिथिला नाम जाप कऽ राजनीति कएनिहार राजनेता, भाषाक विद्वान होएब आ ऐ भाषाक सहारा लऽ
जीवन यापन कऽ रहल विद्वत समूहक कानपर ढील धरि नै चलि रहल अछि। स्वार्थक राजनीतिमे जगत
जननीक मातृभूमि आ मातृभाषा बिहारक नीतीश सरकारक बलि चढ़ि गेल अछि। शांत पड़ल
मिथिलामे अन्हरक कोनो संकेत नै भेटि
रहल अछि। सरकारक गौण एजेंडा आब सभक सोझाँ आबि
गेल अछि। भाषा बटल, क्षेत्र बटल, गाम बटल, घर बटल। की ऐ बँटवाराकेँ अपन नियति मानि हमरा
सभ चुप्प रहब, समए अछि जागू हे मिथिला पुत्र। अहाँक प्रतीक्षा अहाँक मातृभूमि आ मातृभाषा कऽ रहल अछि। ज्यों
से नै भेल तँ देश आ प्रदेशक मानचित्रपर हमरा सभ दूरबीन लगा तकैत रहब मिथिला आ मैथिली।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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