३.४. १.जगदीश
प्रसाद मण्डल २.मनोज कुमार मण्डल
३.६.अमित मिश्र-प्रमाण
जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
गजल
१
बिना बियाहे घरमे कनियां केहेन लगैए
कहू त काकी बदलल दुनियां केहेन लगैए
वर कनियां दूनूक हाथमे सेर-तराजू
दूनू पक्ष बनल अछि बनियां केहेन लगैए
तारि देलक दूनू कुलकें पीओ बनिकऽ
भौजी ई बेटी लछमिनियां केहेन लगैए
जाहि घरमे क्यो रूसल क्यो भूखल हो
ओतऽ झालि ढोलक हरमुनियां केहेन लगैए
अहां आब तं दौड़ि सकैछी यौ बौआ
आब अहांकें देब ठेहुनियां केहेन लगैए
उठू मन्थरासं मुक्तिक किछु युक्ति करू
शुभक घड़ीमे ई पेटकुनियां केहेन लगैए
अहां स्वयं सामर्थ्यवान छी हे राजन
ककरो आगू करब खेखनियां केहेन लगैए
२
आखर-आखर सुनिते रहलौं
हऽम अहां दिस तकिते रहलौं
आइ एतऽ छी काल्हि ओतऽ छी
सभदिन सभकें ठकिते रहलौं
हंसै-गबैछी हम अनका लग
एसगरमे हम कनिते रहलौं
सभकिछु अथवा किछु नै चाही
सभदिन अहिना रुसिते रहलौं
ओ चलबाले बाट बनौलनि
हऽम पथिक छी चलिते रहलौं
एतऽ अन्हरिया रहलै सभदिन
मोम जकां हम गलिते रहलौं
कलियुग आर कते दिन रहतै
सभदिन सभकें पुछिते रहलौं
सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर
भक्ति गजल
हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी
तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी
अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी
ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी
अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी
"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी
वर्ण-12
जगदानन्द झा ‘मनु’
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
गजल
माँ शारदे वरदान दिअ
हमरो हृदयमे ज्ञान दिअ
हरि ली सभक अन्हार हम
एहन इजोतक दान दिअ
सुनि दोख हम कखनो अपन
दुख नै हुए ओ कान दिअ
गाबी अहीँकेँ सगर गुण
सुर कन्ठ एहन तान दिअ
बुझि पुत्र ‘मनु’केँ माँ अपन
कनिको हृदयमे स्थान दिअ
(बहरे रजज, मात्रा
क्रम - २२१२-२२१२)
१.जगदीश
प्रसाद मण्डल २.मनोज कुमार मण्डल
१
जगदीश
प्रसाद मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डलक दूटा अनुपम गीत
भगवती गीत-
एना किअए बनेलौं हे मइये
एना किअए बनेलौं।
दुनियाँ रचै-बसैले
दुनियाँ अहाँ बनेलौं।
भूमा भोग भगा-भगा
माइयक कोर छोड़ेलौं।
हे मइये......।
सूखल रोटी अल्लू सनि सानि
दिन-राति किअए खुएलौं
बाँकी भगा-भगा कऽ
रोग-वियाधि पठेलौं
एना किअए......।
जामंतो फूल-गाछ सिरजि
जामंतो फूल-फल सजेलौं
चीन्ह-पहचीन्ह विस बिसरा
अगुआ थारी खिंचलौं हे मइये
एना किअए......।
बानि वहारि नयन दहाड़ि
बनवासी बना पठेलौं।
कलपि-तड़पि तैयो कहै छी
हीआ जोगि जोगेलौं हे मइये
एना किअए......।
आनक बोझ......
आनक बोझ उठाबै खातिर
अपनो बोझ भड़कि गेलै।
दबि-दबि, उनरि-उनरि
जुन्ने बीच ससड़ैत गेलइ।
मीत यौ, अपनो......।
पसरल पानि धार तरहत्थी
बीतल-अतल बनैत गेलै।
सिर ससरि-ससरि सर
अपनो पएर पिछड़ैत गेलै।
मीत यौ, अपनो......।
रहलै ने सुधि-बुधि मिसिओ
मोसिआनी बदलैत गेलै।
उज्जर कागज-कलम कहि-सुनि
आखर कारी अंकड़ैत गेलै।
मीत यौ, आखर......।
घूरि घूर घुड़लै जखन
मारि मेघ मारैत गेलै।
कटि कोदारि कोदरकट्टा भऽ भऽ
रूप
अमावस धड़ैत गेलै।
मीत यौ, जुन्ना बनि
ससरैत गेलै।
मीत यौ, आनक......।
२
मनोज कुमार मण्डल
पाँचटा बाल कविता-
कित -कित
तूँ कित-कित खेल
एक्के टांगपर रेंग-रेंग
चारू कात घूम
दोसर रोपने बनमे चोरनी
नै तँ रानी बन
बुच्ची तोरा टांग छौ दू
एक टांगसँ रानी बनै छै
दोसर रहने महरानी
एहने छै जिनगीक खेल
नीत चलत ओ
पहुँचत नै अबेर
रुकने-झुकतै माथ हरबेर।
सुन बाबू सुन
सुन सुन सुन
सुन बाबू सुन
सीख एहेन गुण
बाबाक पगरी आ
बाबूक माथ नै
करियनु कहिओ सुन्न
सुन सुन सुन
सुन दैया सुन
हीरा मोती की चमकतै
चमकै छै तँ गुण
गुणक गहना जे पहिरत
से बनत गिरथनि
सुन सुन सुन
धिया-पुता सुन
सगतर छिड़िआएल छै
गुणक मोती
बुधि लगा कऽ
जे भऽ सकौ से बीछ
सुन सुन सुन
मुन्ना आ मुन्नी सुन
मनक खेतमे
बुधिक बिआ बून
फड़तौ ओइमे
कएक-ने-कएकटा गुण।
लोभ
कुत्तिया दिदिक बिआहमे
घनेरो कुत्ता बरियाती आएल
दोस्त रहनि मूसाजी
तिनको ओ संगे नेने एलाह
सखी-बहिनपा देखैले एली
बिलाइ मौसी सेहो एली
मूसाजीकेँ देखते देरी
जीसँ खसलन्हि पानि
मूसाजी लग सहटि ओ बैसली
बजलि एहेन सुन्नर कतए
भेटत हमरा वर।
बक-बक
कर नै बक बक
बनिहेँ नै ठक
तूँ एहन महक
खुजि जाए
सबहक भक
हेतौ नै तोरापर
केकरो शक
तूँ बुधिसँ
अपनाकेँ ढक
बनबे आँखिक तारा सबहक
चलैत रह बेधरक।
इंजन
नम्हर-नम्हर लगि रहल छै
दुइये पटरीपर चलि रहल छै
एक्केटा इंजन केकटा डिब्बा
सभकेँ इंजन खींच रहल छै
रेलक ई अद्भुत खेल
सभकेँ सुन्नर लागि रहल छै
पगि भऽ बनि हम इंजन
अहिना खींची अप्पन जीवन
एहेन हमारा लागि रहल छै।
राजदेव
मण्डल
राजदेव मण्डल
दूटा पद्य
लटकल छी
दुनू हाथ अछि कड़ीसँ बान्हल
ओहीपर हम अँटकल छी
पएरक नीचाँ उधिअाइत समुंदर
आसमानमे लटकल छी
छड़पटेलासँ हाड़-पांजर दुखाइत अछि
बेसी चिचिएलासँ कंठ सुखाइत अछि
कहुना कऽ जीब रहल छी
जिनगीक जहर पीब रहल छी
नीचाँ गीरब तँ डूमि मरब
तँए की हम लटकले रहब
आब नै मानब
जेकरा नै देखने छी
तेकरो जानब
बन्हन तोड़ि नीचाँ फानब
नै डरबै कठिन कारासँ
लड़बै वेगयुक्त धारासँ
करबे करब पार
उधिआइत तेज धार
देख रहल छी समुद्रक कछेर
तोड़ए पड़त आब कड़ीक घेर
जेकरा करबाक चाही सवेर
तेकरे केलौं अबेर।
बटमारिक गीत
किएक कऽ रहल छी
एना ठेमम-ठेल यौ
हम नै छी बकलेल यौ।
जहूक लेल हम छी जोग
तहूसँ भेल छी अभोग
किअए ने भेट रहल अछि
जगह हमरो लेल यौ
हम नै......।
हमरो मन छल गबितौं गान
घटले जाइत अछि मान-समान
कष्टमे रहत जँ मन-प्राण
कतएसँ गाएब सुख केर गान
दुखसँ नाता अछि
आब हमर जुड़ि गेल यौ
हम नै......।
हमरा लेल जगह नै खाली
व्यंग्यसँ बजबैत अछि सभ ताली
असली-नकली करिते-करिते
हमहीं बनि गेलौं पूरा जाली
हमरा सँगे चलि रहल
ई कोन उनटा खेल यौ
हम नै......।
अहाँ कहै छी- “धरू आस
करू बारम्बार प्रयास
एक दिन करै पड़तै
अहूँसँ ओहिना मेल यौ
नै रहब अहाँ बकलेल यौ।”
हम नै......।
अमित मिश्र
प्रमाण
जेठक निर्मोही दुपहरियामे
टूटल-भाँगल एकपैरियापर
दुनियाँ भरिक विपतिक पहाड़
भरिगर बोझहामे बान्हि उठेने
घामसँ भीजल चिर्री-चिर्री भेल कपड़ासँ
भारतक गरीबीक प्रमाण दियाबैत
खाधिसँ बचैत, झटकैत जाइत
दस वर्षक लड़कीकेँ देखि कऽ
प्रमाणित भऽ जाइ छै एकटा कथन
जे सत्तमे महापापी छै मनुखक पेट
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