बालानां कृते
जगदीश
प्रसाद मण्डल
नै धाड़ैए
बाल उपन्यासक आगाँक क्रम...
४
परीक्षाक मास दिन पहिने प्रोग्राम निकलल। ओना अखवारो
सभमे रहै मुदा असल विद्यालयमे जे आएल छल ओकरे बूझि राधामोहन विद्यालय विदा
भेल। सुनबामे ईहो एलै जे अंग्रेजीक तँ परीक्षा हएत मुदा पास-फेलक कोनो महत नै रहत।
एक तँ परीक्षाक जिज्ञासा दोसर अंग्रेजी उठावक खुशी मनमे रहबे करै। अंग्रेजी उठावक
दसो दुआरि भगवतीक आगमनसँ खुजि जाएत, अंग्रेजी सभसँ बेसी समए
विद्यार्थीक खा लैत अछि। जिनगीक दशो दुआरि खुजैक मैट्रिकक परीक्षा, जइमे दसो विषयक पढ़ाइयो होइत आ परीक्षो होइत। ओना जइ हिसाबसँ अंग्रेजी
विद्यार्थीक समए खाइए तइ हिसाबसँ वापसी नहियेँ होइ छै मुदा सोलहन्नी नै होइ छै
सेहो बात नै। अक्षत कम देवता बेसी रहने बटाइत-बटाइत वेचारी मैथिलीकेँ हिस्से कम
भऽ जाइ छन्हि। मुदा तँए कि वेचारी निराश छथि? नै। निराशाक
तँ प्रश्ने मनमे नै उठैत छन्हि। कारणो स्पष्टे अछि। एक तँ गनल कुटिया नापल
झोड़ जकाँ स्कूलो-कओलेज अछि तहूमे किछु-ने-किछु मैथिलीकेँ सेहो भेटिये जाइ
छन्हि, मुदा अधिकांश मैथिल तँ स्कूल-कओलेज देखबे ने
करैत अछि। आखिर, ओहो सन्तान तँ माँ मैथिलियेक छियनि।
अहुना, जे कुभेलो करै छन्हि तेकरो लेल मनमे कुभेला नहियेँ
छन्हि, अपन कर्तव्यसँ च्युत भऽ बेटा-कुबेटा बनि सकैए
मुदा अपन कर्तव्य पुरौनिहारि धरती सन धीरज रखैवाली माए केना कुमाए बनि सकै छथि।
ओना
हाइ-स्कूल अबैत-अबैत बच्चा ढेरबा भऽ जाइए, तइसँ पहिने विषय
रूपी गुरु अपन-अपन शिष्य चुनि लेने रहै छथि। मुदा जहिना जेठुआ बर्खाक गति
तहिना बाल-बोधक। मुदा हाइ-रे-हाइ, कुबेवस्थाक चलैत फिजिक्सक
एम.ए. रेल-बसक टिकट कटनिहार बनि जीवन-यापन करै छथि। ज्योतिष पढ़ि पुलिसक
लठवाहि करै छथि तइठाम जिनगीक बिसवासे कते। जखन जिनगीयेक बिसवास नै तखन जिनगी
जीनिहारेक बिसवास कते। खैर जे होउ...। प्रोग्रामक उमकी राधामोहनक मनमे उमकले रहए,
साढ़े दस बजे स्कूल खुजैए, पूर्वाह्नेक काज
नीक बूझि विदा भेल। अंतिम फागुनक समए, मास दिनसँ ऊपरेक
वसन्त भऽ गेल छल। फगुआक उमकीमे जहिना उमकैक विचार मनमे उठै छै तहिना राधामोहनक
मनमे सेहो दशो दुआरिक दीप जरबैक उमकी रहबे करै। मुदा घरसँ निकलि डेगे-डेग जते
आगू बढ़ैत ओते मन पाछू दिस ससरए लगलै। मनकेँ पछुआइत देखि उमकियो पाछूए दिस
मुड़ि गेलै। राधामोहनक मनमे उठलै जिनगी आ परीक्षा। आकि जिनगीक परीक्षा? शुद्ध पानि ने इनार-पोखरिमे असथिर रहैए मुदा जखन ओकरा चीनी वा नूनसँ
दुषित करबै, भलहिं ओ जीवनोपयोगिये किअए ने हुअए, मुदा दुषित तँ भेबे कएल? राधामोहनक विचारमे दू दल
अपन-अपन विचार लऽ कऽ ठाढ़ भऽ गेल। घंटो-लक्कर-झक्कर भेलो पछाति, नै फड़िआएल जे बुधियो ज्ञान छी आकि ज्ञान अानैक बाट। विचित्र स्थितिमे
राधामोहन ओझरा गेल। जिराएल आदमी जहिना पहिल झोंकमे बेसी दूर दौड़ लगा लइए मुदा
धीरे-धीरे उत्साहमे कमी हुअए लगै छै तहिना राधामोहनक सेहो भेल। उत्साह कमिते
देहमे थकथकीक आगमन भेलै जेना-जेना थकथकी बढ़ैत गेलै तेना-तेना थकाएल बूझि पड़ए
लगलै। आधा रास्ता तँ टपि चुकल छल मुदा आधा टपब भारी बूझि पड़लै। गाछीक छाहरि
टोहिया कोनैला बड़बड़िया गाछ लग पहुँच, बैस गेल।
एक
तँ ओहुना पुरान पत-झड़ि नव पत-धार बड़बड़िया गाछक सेखी रहबे करै। तइपर कनी सिहकी
िसहकिते रहै, फागून रहने मजर संग टुकलो रहै। रौद गरमेने
दोहरी बोझ राधामोहनक माथपर चढ़ि गेल रहै। मुदा गाछक छाहरि जेना राधामोहनक कोहि
फेड़लक। नजरि गाछी दिस बढ़लै। बड़बड़िया आमक गाछक सटले पतिआनीमे फैजली आमक
गाछ। बड़बड़िये गाछक जड़ि लगसँ देखए लगल। दुनू आमेक गाछ छी मुदा, एना किअए अछि जे एकटा किलो भरिक आ दोसर किलोमे पचास चढ़ैत। प्रश्नक
ठेहसँ राधामोहन ठेहियाए लगल। मन घूमि समए दिस ससरलै। चौबीस घंटाक भीतर दिन-रातिमे
कते अन्तर होइ छै। बारह बजे दिनमे लोक दुनियाँक कोण-कोण देख सकैए आ बारह बजे
राति ओछाइनसँ उठि पेशाबो करैले जाइकाल संगीक जरूरत पड़ैै अछि। मुदा फागुन मासमे
सूर्योदय आ सूर्यास्त केना एके रंग मनोरहम बनि जिनगीक बाट पकड़ैए। भलहिं एकटा
अन्हार दिस बढ़ैत दोसर इजोत िदस।
बड़बड़िया-फैजलीक बीच राधामोहन लटकि गेल। किछु फुड़बे ने करै जे गाछ-बिरीछ लोकक
देल छिऐ, ई तँ सुच्चा भगवानक देल छिअनि। लोक ओकर सेवा करैए आ गाएक
दूध जकाँ अमृत खाइए। मुदा ई तँ अद्भुत अछि जे दुनू आम रहितो एना अकास-पतालक अन्तर
किअए छै। भगवान तँ केकरो ने अधला करै छथिन आ ने अधला सोचै छथिन। सोचबो केना
करथिन अपने शक्तिसँ ने सोचैकेँ शक्ति दइ छथिन। तहिना हाथ-पएर थोड़े रखने
छथि जे कोनो काज करता। ई तँ जरूर लोकक करतुत छी। तइ बीच बड़बड़िया आ फैजलीक बीच
कहा-कही हुअए लगलै। फल देखि फैजली बाजल-
“रे बड़बड़िया, हमर किलो तोरा नानासँ
नम्हरे हएत।”
फैजलीक बात सुनि बड़बड़िया गरमाएल नै, अखन धरि अपनो मन मानैत छलै जे फैजलीक आगू हम छिहे नै। जहिना बनिया
दोकानक मंगनी बौस, तहिना छी। मुदा एकटा गुण तँ हमरोमे अछिये
जे अनको-आन गाछक आम लेलो पछाति झगड़ा नै हुअए दइ छिऐ। मुदा एकटा फैजली आम,
एक छर कुशियार, एक पुड़ा मखान कतेक कपार
फोड़ने अछि। मनमे खुशी रहने बड़बड़िया बाजल-
“धरमागती बाज जे जेहन सोझ-साझ हमर शीलो आ डारियो अछि तेहेन
तोहर छौ। केकरो संग कियो जाएत नै। बाज?”
फैजलीकेँ चुप होइते बड़बड़िया रेबाड़ि कऽ फेर बाजल-
“सुनि ले, हमरे भाए-भातिज, तोरा डारिमे सटि अपन मुड़ी कटा हृदए देने छौ, जइपर
तूँ ठाढ़ छेँ।”
दुनूक झगड़ा देखि राधामोहन अपन काज -स्कूल जा प्रोग्राम लिखब-
बिसरि गेल। जिरेला पछाति गाछ तरसँ उठि विदा भेल। ख-खाएल मन रस्ते बिसरि
गेल जे कतए जाइ छलौं। थकथकाइत राधामोहन घरमुहेँ भेल। जहिना हराएल-ढेराएल गाए-महिंसक
बच्चा साँझू पहर डिरिआइत घर दिस अबैत तहिना राधामोहन जतेक घर दिसक बाट टपैत
ततेक जोर-जोरसँ मनमे हूँहकारि उठै।
गाछी
आ घरक अाधा बाट टपैत-टपैत राधामोहनक भक खुजल। जेना ओंघाएल, निशाएल,
भकुआएल इत्यादिक भक खुजैत तहिना रस्ताक भकमोड़ी लग आबि भक
खुजलै। मन पड़लै हाइ रे बा जाइ छलौं परीक्षाक प्रोग्राम लिखैले आ आबि कतए गेलौं।
ओना चारि बजे तक स्कूलक काज चलै छै मुदा ई बारह बजेक रौद अनेरे खाइले जाएब। नै
जाएब तँ परीक्षा केना देब? नै परीक्षा देब तँ पास केना करब? दोसर दिस मनमे उठै जे पासे कऽ कऽ की करब? जखन आगू
पढ़ैक आशे नै अछि तँ मैट्रिक पासकेँ मोजरे कते होइ छै जे बेसी फड़त। जेतबे मोजर
तेतबे ने फलो। एम.ए-बी.ए तँ ऑफिस-कारखानामे दरमानी करैए आ मैट्रिककेँ के पुछै
छै। तहूमे जते पढ़लौं तते तँ ज्ञान भाइये गेल अछि तखन अनेरे एकटा कागज (सर्टिफिकेट)
लेल हरान हएब। द्वन्द्वमे पड़ल राधामोहनक मनमे उठलै- काजक परीक्षा नै जिनगीक
परीक्षा असल परीक्षा छी। मुदा जिनगी की? जंगलमे जहिना
हजारो-लाखो रंगक गाछ-विरीछ रहै छै, जे हजारो रंगक फूल-फड़
दइ छै आ नहियोँ दइ छै। तहूमे किछु फूल एहेन होइ छै जे सुगन्धितो होइ छै,
सुन्नरो होइ छै मुदा फड़क कोनो दरसे ने होइ छै। तहिना किछु फड़ो
एहेन होइ छै जे बिना फूलेक फड़ि जाइ छै। किछु फड़ एहनो होइ छै जे फूलसँ पहिने
पड़िये जाइ छै। किछु फड़ एहनो होइ छै जे संगे-संग गाछमे निकलै छै। किछु
फूल-सँ-फड़ होइ छै तँ किछु एहनो होइ छै जे फूल केतौ फुलाइ छै आ फड़ि केतौ जाइए।
तहिना ने मनुक्खोक जिनगी अछि। जते मनुख तते रंगक फूल-फड़। जहिना बर्खाक
उपरान्तो आ होइतोखिन बून-बून मिलि धारा बनबैए। भलहिं एक-दोसरमे मिलैत गहींरगर
बाट बना गहींर दिस विदा होइए। जइसँ चरो-चाँचर, नीचरस खेतो
आ पोखरियो-झाँखरि भरबो करैत अछि आ नहियोँ भरैत अछि। भरबो तँ अजीबे अछि।
कतेसँ भरब कहब सेहो कठिन अछि। किएक तँ जौं सोढ़े तीन हाथक मनुखकेँ आधा किलो दिन-राति
भोजन मानि लेब तँ पँच-पँच सए रसगुल्ला केना पेटमे अँटैए। दस-दस किलो माछ आ दू-दू
तौला दही केना पचैए। राधामोहनक मनमे उठलै अनेरे बौआइ छी। काज छोड़ि जखने मन बौआएत
तखने बहपनी अाबए लगत। जखने बहपनी आओत तखने धार-सँ-धारा बनए लगत। मुदा धारोक तँ
ठेकान नै छै। एक तँ ओहुना धारक धारा जकाँ जिनगीक बहान नै अछि। किछु एहेन होइए
जे जुग-जुगसँ एके स्थानपर बोहति आएल अछि। तँ किछु एहनो अछि जे दोसरमे मिलि
अपन अस्तित्वे मेटा लेलक। ततबे नै, एहनो तँ कोसी-कमला
जकाँ अछिये जे सालमे तीन-तड़पान तड़पैए। जते राधामोहन पताल दिस वा अकास दिस
नजरि दौगबैत तते रंगक दुनियोँ आ पतालो मनमे अबैत जाइत। अकास दिस तकै तँ देखै जे
फनिगा धरतीसँ उठि कूदि-कूदि अकास दिस चढ़ए चहैत, घोरन-चुट्टी
मरैक पाँखि पहीरि उड़ए लगैत। तहिना पताल दिस तकैत तँ एक्के पोखरिमे सत-रंगा
माछक जीवन-यापन सुख-चैनसँ होइत देखैत। थालक गैंची गैचिया-गैचिया थालमे बिआह-दुरागमन
कऽ पत्नीक लगमे राखि जीवनो-यापन करैत आ कुल-खनदानक धुजा गाड़ि बालो-बच्चाक
उपार्जन करैत। तहिना पानियेँमे माटिसँ ऊपर रहु-नैन-भाैंकरी अपन-अपन सीमा रेखा
खींचि-खींचि अपन घरो-दुआरि बनबैत आ परिवार संग मिलि वंशोकेँ जीवित रखने अछि।
बाल
मन राधामोहनक जेम्हर नजरि गौगबैत तेम्हर डाभे-कुशमे ओझरा जाए। जहिना चाणक्य
छथि नै छलाह आ तहियाक नालंदा विश्वविद्यालय जे कुश उपटाएब शुरू केलनि ओ कुश
अखनो धरि गामे-गाम अछिये, वेचारे असकरे कते गामक उपटौताह।
तहूमे एहेन समाजमे जे सदति जमीनदारिये वा जागीरदारिये बनबै पाछू लागल रहैए।
एक्के रंगक जागीरदारीक बीच समाज थोड़े अछि।
साओन-भादोक वायुक गति भलहिं मंथर भऽ जाए मुदा चैती-फुहा, फुहराम हवा तँ केतौ-सँ-केतौ उड़िते अछि। राधामोहनक मन ओही फुहराम हवाक
संग उड़ि पुरुषोत्तम लग पहुँच गेल। मुदा अँटकल नै। दरवारमे बैसैसँ पहिने मनमे
उठि गेलै जे त्रेता-जुगक जुआन-जहान राम चारू भाँइ भेलाह मुदा समाजक
बूढ़-बुढ़ानुसक विचार पिताक विचारक आगू किअए ने मानलनि। समाजक जते
बूढ़-बुढ़ानुस छेलखिन ओ अपनामे विचार किअए ने केलनि जे राम सन परब्रह्म समाजक
अंग बनल रहए। नै कि बनलो बिगड़ि जाए। तइसँ नीक जे हुनके (रामेक) वृद्ध परपितामह
दिलीप छथि तिनके दरवार जा अपन उचिती-विनती किअए ने करी जे अपना राजमे बासो
देबे करता। जना कानमे काेनो दिशासँ कोनो तरहक अवाज अनायास प्रवेश कऽ मनकेँ जगा
दैत तहिना राधामोहनक मनमे जगल। अपन संकल्पक संग अपन जिनगी बना जीब। जौं से नै
तँ हारि कि भेल? जाधरि मनुष्य दोसराश्रित रहत (वैचारिक
छोड़ि) ताधरि पर्यावरणमे कमी हेबे करतै। जिनगीक पहिल विचार जखन मनमे उठल तँ
कि ओ अधला उठल। जौं नै अधला तँ किअए ने पालन-पोसन करब। जाबे धरि दूध पैदा करैक
शक्ति मनुष्यमे नै आओत ताबे धरि हंसक बास केना भऽ सकै छै। जतए दूध रहत ततए ने
हंसोक बास रहत। मुदा दूध-पानि बेरौनिहार हंस मनुखक देल पानि बेड़बैत अछि आकि
भगवानक देल जे गाए-महिंसक पेटेमे फेँटल रहैत अछि तेकरो बेड़बैत अछि?
बाल-बोध
बच्चा जहिना चलै जोगर टाँग होइते पछोर धऽ चलए चाहैत मुदा चालिक गति पछुआ दोसर
बाट सेहो धड़ा जाइत मुदा बाट तँ बाटे छी। राधामोहनक मन तहिना बाटक आशा बाट पकड़ि
बौआए लगल। मन पड़लै अपन पहिल बाट। गाएक पालन-पोसन। मनमे उठिते उठि गेलै परिवारमे
गाए नै धाड़ैए। तँ धाड़ैत कि अछि। धार-साज तखन बनै छै जखन ओइमे मन मधुरस आबि
मनकेँ पकड़ै छै। पशुपालनक अंग भेल गाए पोसब। पशुपालन कृर्षिक अंग रहल अछि। किसानक
देशक विकास बिना किसानी प्रक्रियासँ संभव छै? अपना लिये
अपन दुनियाँ बना-बना बैसि जीवन-यात्रा भरिसक सभसँ नीक होइ छै। जइ बीच निवास
करैत अपन तन-मन-धनक एकाग्र करैत अछि। राधामोहनक जिज्ञासा आरो बढ़ल। जिज्ञासा
बढ़िते मनमे उठलै लिखित-अलिखित विचार पकड़ब। केता दिन अखबारक पन्नामे
पशुपालनक लेख देखै छिऐ, मुदा ओकरा पढ़ै कहाँ छी? कियो पढ़ै छी जे भारत-अमेरिकासँ कते रणसँ जीतलक तँ दोसर कोनो पछुएलहा
देशसँ कते रणसँ हारल। तँ कियो पढ़ैत पूरा इलाकामे बैंकक कि कारोवार छै। तँ कियो
पढ़ैत चोरी-डकैती कते भेल। तँ कियो पढ़ैत रेलक भाड़ा बढ़ि गेल आब लोक गाड़ीमे
केना चलत। ई सभ सच्चाइ सामने अबिते राधामोहनक मन बौअाए लगलै। अफसोच करैत अखवारसँ
रेडियोपर आबि गेलै। जे भाषा बुझै छी तइमे सैकड़ो कार्यक्रम प्रतिदिन कृषिक
अछि। अखवार हुसल तँ हुसल आइयेसँ रेडियोक कार्यक्रम सुनब। मन आगू बढ़लै। कृषि
कओलेज पूसापर गेलै। ओइठाम किसान मेला लगैए जइमे कृषिक अधिक-सँ-अधिक जानकारी
भेटै छै। सतसंगे सँ ने संगति सुधरबो करै छै आ बिगड़बो करै छै। अनेरे मन बौआबै
छी। जखन विश्वविद्यालय अछिये तखन आरो कि चाहबे करी। मन ठमकलै। विश्वविद्यालय
लेल उन्नति खेतीक जरूरत अछि तइठाम जौं कओलेज कम रहै तहूमे सीमित पढ़ाइ होइ,
ओहू सीमितमे किताबीये शिक्षा धरि समटा जाए, तखन विकास केना हएत? जरूरति अछि कृषि शिक्षाकेँ
खुला विश्वविद्यालय बना सभ स्तरक किसान पैदा करब। जौं से नै तँ कि
मन-कर्म-वचन समतुल्य भऽ सकै छै? आकि पुरना लोक नवका कम्पनीक
अंगूरक रस पीब बेसी भँसिया कहलनि?
ओझराएल
बाट देख-देख राधामोहनक मन आरो ओझरा गेल। हृदए सुखए लगलै। मन तरसए लगलै। बकार बन्न
हुअए लगलै। मुदा कि हमहीं सभ ऐ देशक भविष्य छिऐ। जेकर अपने ठेकान नै छै। कहब
असान छै जे नवयुवककेँ भरमबैले कहल जाइ छै मुदा केहेन युवक पैदा भऽ रहल अछि? लगले उड़ि हंस बनि जाएब आ लगले मोड़नीक चालि धऽ लेब आ लगले गाछपर बैस
उल्लू जकाँ मुँह दुसए लगबै। जहिना बेर-वपत्ति पड़लापर संगी संग छोड़ि दइ छै
तहिना राधामोहनक मनक सभ संगी संग छोड़ए लगलै। मुदा ओहनेठाम सत संगियोँ भेटै छै।
जहिना नीन निपत्ता तहिना बुधियो बिला जाइ छै। जइसँ ने देहमे सक रहै छै आ ने
अक चलै चलै छै। जौं अके नै चलतै तँ बक केना चलतै। जौं बके नै चलतै तँ बतक जकाँ
माटि-पानि एके केना बुझतै। अधमड़ू अवस्थामे राधामोहन रेडियो खोललक। बिहारक
पहिल समाचार- “सातम दिन पूसा मेला आरम्भ हएत।” सुनिते राधामोहनक ठेहिआएल मन उबिआएल। सातम दिन कृषि मेला छी। जरूर
जाएब। दूरे कोन अछि। पहिलका जिले तँ छी। असकरो जा सकै छी नै जौं संगबे भेट गेल
तँ आरो नीक। ओना जे मनमे अछि- ‘गाए पोसब’ ओहन मन केकरो कहाँ देखै छिऐ। जखन मने नै तखन काजे की आ संगबे कतए। तँए
संगियोँक कोन आश। ओना चौक-चौराहापर चर्च कऽ देबै।
सवारीक
सुविधा भइये गेल अछि तहूमे डेढ़ बजे मेलाक उद्घाटन हएत, भिनसुरको
बस पकड़ने काज चलिये जाएत। तीन दिनक मेला छी तीनू दिन रहब। गरमी मास छिहे, खाइ-पीबैक दोकान-दौरी हेबे करतै। दृढ़ता अबिते संयोगकेँ नीक बुझलक।
संयोग कोनो कि अपने अबै छै आकि काज अनै छै। जौं काजे नै तँ संयोग कथीक।
जहिना
कोनो अबोध बच्चा आमक लालचमे निसभेर अन्हरियो रातिमे माए-बाप लगसँ उठि ठेकल
आमक गाछ लग पहुँच जाइत तहिना राधामोहन बस पकड़ि पूसा कृति मेला विदा भेल। मेला
तँ मेले छी। मुदा मेला की? आेहए ने जे विदेशी खेल-तमाशा,
ललिचगर वस्तु आनि अपन जे पुरना मेला छल ओकरा नष्ट कऽ रहल अछि।
सुधार जरूरी अछि मुदा अपनकेँ सोल्हनी दुसि अनकर अपना लेब कि नेनमति नै भेल? कोनो वस्तुक संग परिवार जुटल छै, ओकर जीविका छिऐ,
ओइ जीविकाकेँ तोड़ैसँ पहिने ओहन जीविका अनिवार्य होइत जे समैक
संग चलि सकए। बिनु हाथ-पएरक जोंक-ठेंगी जहिना दोसर गर पकड़ि आगू बढ़ैत अछि
तहिना जइठामक किसानी जिनगीक हाथ-पएर टुटल अछि तइठाम उपाए केहेन होइ?
उद्घाटनक
समए जहिना दिल्लीसँ गाम धरिक लोक तहिना रंग-रंगक रेडियो-अखवारबला दन-दन
करैत। मुदा सिपाही कम। तहूमे बेसी ओहने जे उद्घाटनक पछाति चलिये गेल।
क्षेत्रीयता जौं केतौ अधला होइ छै तँ कतौ नीको छै जरूरति अछि क्षेत्रीय कृषि
ज्ञानक। मिथिलांचलक अन्हरो-दिठरा बुझैत अछि जे छहटा ऋृतु होइ छै आ छबो रीतक
छह सीमा होइ छै आ सीमापर किछु दिन मेला लगै छै। ओइ मेलाकेँ ओहए सजा पाबैत जे ओइ
तेसीसँ चलैत। एके अन्न एके फल आ एके तरकारी किछु कमो दिनक होइत तँ किछु बेसियो
दिनक। हमर स्थिति कि अछि ओकरा पकड़ब अछि। जे आन-आन राज्यक स्थितिसँ भिन्न
अछि। किताबी दौड़मे देशकेँ जानव असान अछि मुदा भोगोलिक दौड़मे कठिन अछि।
भलहिं कठिन अछि मुदा जीवन-दाता तँ ओहए छी। छोड़ि केना जीब?
उद्घाटन
भाषण सुनि राधामोहनक मन शीशा जकाँ चमकि गेल। पाथर गीरल काच जकाँ चनचना कऽ चनकि
गेल। दुनियाँसँ लऽ कऽ बलुआहा माटि धरिक बात सुनलक। दोखरो बालु सोना पैदा करैत
अछि से तँ राधामोहन पहिल दिन सुनलक। ओना पहिनो सुनने रहैए जे बालुसँ तेल भले
निकलि जाउ मुदा बातसँ हटि नै सकै छी। मुदा ओकरा कहबिये बुझै छल।
नियमित
तौरपर ग्रुप-ग्रुपमे बँटि कार्यक्रम शुरू भेल। एक संग अनेको ग्रुप। केतौ अन्नक
खेतीक तँ केतौ तरकारीक, केतौ फूलक तँ कतौ फलक। केतौ पशुपालन
तँ केतौ मुर्गी पालन। जहिना मेलामे प्रेमिकाकेँ देख आरो मेलाक चुहचुही (रौनक)
बढि जाइत तहिना राधामोहनकेँ सेहो चुहचुही भरल मेला बुझि पड़ल। बीचक जे आधा घंटा
समए खाली अछि तइमे खा-पी लेब नीक रहत। चारि घंटाक गोष्ठी अछि।
पशुपालन
गोष्ठीमे राधामोहन बैसल। तीन शिक्षकक बीच गोष्ठी संचालित भेल। मुदा
राधामोहनकेँ बैसारक गप-सपसँ बूझि पड़ए लगलै जे भरिसक अपना इलाकाक असकरे छी। किएक
तँ मनुष्यक पहिल परिचय भषे कहबै छै। बेगूसराय आ बकसरिया बेसी बूझि पड़लै।
मुदा असकरेमे असकर नै बूझि पड़ै। कहनिहार शिक्षक छथिये,
सुननिहार जहिना सभ तहिना हमहूँ रहब।
तीनू
शिक्षक पशुपालनक लेल पशुक देखरेख, बीमारीक इलाज आ नस्लक
चर्च केलनि। चारि घंटाक गोष्ठीमे तीन-चौथाइ समए निकलि गेल। शेष समैमे ओ सभ
(तीनू शिक्षक) समस्या सुनैक समए देलखिन। एका-एकी समस्यापर चर्च हुअए लगल। मुदा
अनकर भोज सुननहि िक नअ सलिया अँचार छल। राधामोहनक मनमे सेहो प्रश्न उठए लगल।
गुलछिया जकाँ घौंदे-घौंदा। मुदा बाल मन राधामोहनक थकथका गेल। हिन्दीमे सवाल
जबाव चलैत छल। भाषाक गल्ती वस्तुक (विषयक) गल्ती बना दैत अछि। अष्टम सूचीमे
मैथिली रहितो मिथिलांचलक कोट-कचहरीसँ लऽ कऽ स्कूल-कओलेजमे हिन्दीये चलैए।
अपन धिया-पुताकेँ अंग्रेजिया बनाएब अगुआएल जिनगीक लक्षण बुझल जा रहल अछि।
जरूरति अछि जगत-जीव-ईश्वरकेँ जानब। राधामोहन अपन मनक बात मनेमे रखि लेलक। संयोग
भेल। तीनू शिक्षक अंतिम पाँच मिनटमे के कतएसँ आएल छी पुछलखिन। क्षेत्र सुनि
राधामोहनकेँ हूबा भेल। अपन देश अपन भेष अपन भाषा तँ संगी अछिये। ओ अपन परिचय
मधुबनी जिला नाओंसँ देलक। पड़ोसी गामक एकटा शिक्षक। ओ मैथिलीयेमे राधामोहनकेँ
पुछलखिन-
“अहाँक गाम?”
गामक नाओं सुनिते ओ कहलखिन-
“अहाँक पड़ोसी छी तँए तीनू दिन अपने डेरापर रहब।”
डेराक नाओं सुनि दोसर शिक्षक हुनका आँखि-पर-आँखि देलकनि।
आँखियेक इशारामे जबाव देलखिन-
“मिथिलाक धर्म।”
सांस्कृतिक
कार्यक्रम होइसँ पहिने धरिक ड्यूटीमे पी.एन. बाबू छलाह। ओना गोष्ठीक तीनू शिक्षकक
डेरा सटले-सटल सेहो छन्हिहेँ। तीनूक एकठाम डेरा रहने साँझ-भोर एकठाम बैस चाहो
पीबै छथि आ अपन-अपन देश-कोसक गपो करै छथि। बीचक एक घंटा समए बितबक क्रममे
पी.एन. बाबू राधामोहनकेँ कहलखिन-
“राधामोहन, अहूँ मेला देखए एलौं, घूमि-फिर देख लिऔ आ हमहूँ ड्यूटी समाप्त कऽ लेब।”
“बड़बढ़िया।” कहि राधामोहन मेला दिस
बढ़ल आ पी.एन बाबू ऑफिस दिस। ऑफिस पहुँचते अपना ग्रुपक चर्च उठल। गोष्ठीक नीक
कार्यक्रम भेल।
बैगकेँ
आॅफिसमे रखने राधामोहनक देहो हल्लुक भेल। आगू बढ़िते लोक दिस ठिकिया कऽ तकलक
तँ बूझि पड़लै जे ओहने लोक बेसी छथि जे बम्बैया कलाकार जकाँ जेहने जोकर तेहने
हीरो हीरो जकाँ छथि। नारद भगवान जकाँ जतए स्मरण करब ततए गामक वीणाक संग
पहुँचलाहाक बाहुल्य। किसान कम खा कऽ मेहनत करैबला। मुदा,
ऐठामक जे कृषिक प्रतिष्ठा बनल रहल ओ तँ रग-रग पकड़नहि अछि, जइसँ किसान परिवार आ किसानक ठेकाने अमेरिको-इंग्लैंडमे दैते छथि।
तँए समैक भूख अछि जे किसानक परिभाषा आधुनिक कएल जाए।
सांस्कृतिक
कार्यक्रम शुरू भेल। राधामोहनकेँ संग केने पी.एन. बाबू डेरा दिस बढ़ैक विचार
केलनि। ओना विश्वविद्यालये कैम्पसमे डेरा। डेराक संग पान-सात कट्ठाक बाड़ियो
झाड़ी।
पी.एन.
बाबूक घर मधुबनी जिलाक भगवानपुर गाम, सुरेन्द्र बाबूक घर
धर्मपुर नवादा जिला आ दीनानाथ बाबूक बक्सर जिला। तीनूक तीन भषे क्षेत्र नै
भौगौलिक क्षेत्र सेहो। एग्रीकल्चरसँ जुड़ल तीनू गोटे तँए तीनू क्षेत्रक जानकारी
तीनू गोटेकेँ रहबे करनि। ओना भाषाक बीच कोनो विवाद नै रहनि, कारणो स्पष्टे अछि। गाम-गाम आ घर-घरक लीला अछि जे मैथिली भाषीकेँ
मगहिये आ भोजपुरियो क्षेत्रमे कथा-कुटुमैती होइत आबि रहल अछि। कोनो घरक पुरुष
मैथिल तँ भोजपुरनी घरवाली आ भोजपुरिया घरबलाक मगहिनी घरवाली। ओना शब्दक
कर्कशपन मगहीक अपेक्षा मैथिली-भोजपुरीमे कम अछि।
कम
जबावदेही रहने पी.एन. बाबू समैपर ऑफिससँ निकलि डेरा दिस बढ़ैक विचार केलनि।
मुदा सुरेन्द्र बाबू जबावदेहीमे आ दीनानाथ बाबू रिपोट दइमे पछुआएले रहि गेला।
दिनक एक गाड़ी विलम भेने दिन भरिक गाड़ी बिलमिते चलत। मुदा तैयो पी.एन. बाबू
दुनू गोटेकेँ कहि देलखिन-
“गौआँ आएल छथि। किछु हाल-चालक समाचार तँ आबिये गेल हएत।
लेटो-फेट एकठाम बैस चाह पीबे करब।”
आगू बढ़िते जेना पी.एन. बाबू राधामोहनक गौआँ भऽ गेलखिन।
पुछलखिन-
“राधामोहन, अहाँ गामक पजरेमे सुखेत अछि, ओत्तै हमर सासुर छी।”
परोसी गाम सासुर सुनि राधामोहनक मनमे घनिष्ठता जगल।
एकबद्ध (एकबद्धू) गाम, एक उपजा एक खान-पान। उगैत उगना जकाँ विभोर
होइत राधामोहन बाजल-
“श्रीमान्, अपने लोकनि तँ सभ तरहेँ पैघ
भेलिऐ, अपनहि लोकनिक ने बाँहि पकड़ि आगू बढ़बै।”
राधामोहनक बात समाप्तो ने भेल छल आकि बीचेमे पी.एन. बाबू
टपकला-
“जहिना अहाँ अखन नव-तुरिया छी तहिना जखन हमहूँ रही तही दिनसँ
जनै छी जे एक-दोसराक बाँहि पकड़ि गरा-जोड़ी कऽ जीवन-यात्रा करब नीक होइ छै। मुदा
से नै भऽ पबैत अछि। दिन-राति देखै छी जे ठक ठकि बाँहि पकड़ि धकेल-धकेल
गरगोटिया दइए, तइठाम केकरो बाँहि पकड़ि लेब छौड़ा-छौड़ीक
खेल नै ने छी।”
पी.एन. बाबूक विचारक गंभीरताकेँ राधामोहन नै परेखि सकल
मुदा मनमे तँ ओहन खुशी जागिये गेल रहै जे भरि पेट भोजन, राति-बीच रहैक जगह देलनि ओ जरूर नीक बोलो देबे करता।
साढ़े
सात बजे तीनू गोटे पी.एन. बाबू, सुरेन्द्र बाबू आ दीनानाथ
बाबू एकठाम भेला। डेराक छतेपर बैसार। एक दिस सांस्कृतिक कार्यक्रमक पीह-पाह तँ
दोसर दिस गाम-घरक कुशल-समाचार। चाह चलिते पी.एन. बाबूक पत्नी सुरेखा सेहो चाह
पीब बैसारमे शामिल भऽ गेली। ओना जइ दिन दीनानाथ बाबूक मुहेँ मिरचाइकेँ तीत सुनलनि
तइ दिनसँ जेना हिनका देखिते वएह मन पड़ि जाइ छन्हि जइसँ अनेरे हँसी निकलि
जाइ छन्हि।
चाह पीब दीनानाथ बाबू बजला- “सभसँ कम उपस्थिति मिथिलांचलेक रहल?”
स्वीकारैत पी.एन. बाबू बजला- “हँ, से तँ छल। अपन तीनू गोटेक क्षेत्र तीन रंगक अछि। माटिक (क्षेत्रक) असथिरता
जइ रूपे अहाँ दुनू गोटे क्षेत्रक अछि ओइसँ भिन्न मिथिलांचलक अछि। एक तँ माटि
नरम अछि तइ बीच तेज धारक कटावक संग जोरगर बर्खाक संग भुमकमो क्षेत्रकेँ नष्ट
करैत रहल अछि।”
पी.एन. बाबूक उत्तर पछाति, चुपा-चुपी भऽ
गेल। अका-अकी, वका-वकी सभ सबहक मुँह देखए लगला। खढ़िया बच्चा
जकाँ राधामोहन आँखि-कान-मुँह ठाढ़ केने, जे सीखैक समए भेटल
किछु सीखब। पी.एन. बाबू गुम जे अपन इलाकाक उखाही करब उचित नै तँए चुपे रहब नीक।
मुदा दीनानाथ बाबू जेहने काज करैमे चड़फड़ तेहने बजैयौमे फड़कोर। मनमे उठलनि जखन
पी.एन. बाबूक गौआँ एलनि, ओना हुनका अपनो गाम छोड़ना पच्चीस
बर्खसँ बेसिये भेल हेतनि, तखन वएह ने अपन बात उठौता। तइ
बीच हम सभ अपन क्षेत्रक गप करी ई बूड़िपाना हएत। बूड़िपाना ऐ लेल जे तीनू शिक्षकक
बीच एकटा दूधमुहाँ बच्चाक चाराक ओरियान नै कऽ अपने सभ सभ दिना गप जे ऐ स्कीममे
एते सुतरल। पूर्णिमा दिनक नौत दइ छी। नै तँ सासुरक अमराक अँचारक गप करब। नै तहूसँ
तँ मिरचाइकेँ तीत कहि गृहिणीसँ मुँह दुसा लेब। सभ किछु सम्हारैत दीनानाथ बाबू
बजला-
“भाय, गोष्ठीमे जे आँखिक इशारा केलौं से
अपन अनुभवक आधारपर, तँए एकरा अपना ढंगसँ नै लेबै।”
पी.एन. बाबू पुछलखिन-
“कि अपना ढंगसँ?”
दीनानाथ बाबू- “हमरो पत्नी ओम्हुरके छथि।
तते पूजा-पाठ आगत-भागत करै छथि जे घरक जुतिये सुमझा देलियनि। हाटे-बजार
दौड़-बरहा तते करैबतथि जे कमेलहो कि खा कऽ पचए दितथि। तइसँ नीक जते कमाइ छी
पॉकेट खर्च काटि कऽ दऽ दइ छियनि। तइ बीच कर्जा केलौं तँ अपन जानी, नइ जौं महाजनी केलौं सेहो अपने जानी।”
मुस्की दैत बीचेमे पी.एन. बाबू टिपलनि-
“तखन तँ सोलहो आना हिसाब घरसँ बेड़ा नेने छी?”
दीनानाथ बाबू- “नै ने बेड़ाएल होइए,
हुनका (पत्नी) लाटक जे कियो अबै छथि ओ तँ सासुरेक पट्टी भेला किने
किछु-ने-किछु बजा जाइते अछि। जइसँ घुमा-फिड़ा कऽ दोखी भइये जाइ छी। से सभ
छोड़ि कऽ”
पी.एन. बाबू गंभीरतासँ प्रश्न दोहरौलनि। प्रश्नक
गंभीरताकेँ देखैत दीनानाथ बाबू बजला-
“देखियौ भाय सहाएब, अपनो विचार ओहने
जेहने पत्नीक, तँए अभ्यागती परिवारमे बेसी बढ़ि गेल। मुदा
आइक समैमे जे बिगड़ाउ आबि गेल अछि ओ तँ सोझा-सोझी सामनेमे ठाढ़ भऽ गेल अछि। नव
पीढ़ीक बोलमे कते झूठ फेँटा गेल अछि जे सत बूझब कठिन भऽ गेल अछि। जेना-जेना अभ्यागती
बढ़ैत गेल तेना-तेना घरक वस्तु बिड़हाइत गेल। तँए इशारा केलौं।”
दीनानाथ
बाबू उत्तरक पछाति फेर सभ गुमा-गुमी भऽ गेला। सुरेन्द्र बाबू ऐ-ताकमे जे अपन
प्रवास लगसँ पी.एन. बाबू प्रश्न उठौता भलहिं राधामोहनक जनमसँ पहिने गाम छोड़ि
देने होथि, मुदा जएह सएह। पी.एन. बाबूक मनमे उठि गेलनि जे
सोझा-सोझी तीन क्षेत्रक तीनू गोटे छी तँए हुनका सभकेँ प्रश्न उठेबाक चाहियनि
जइमे हम बीचक कड़ीक काज करब। दीनानाथ बाबू गर लगबैत राधामोहनकेँ पुछि देलखिन-
“भरि मेला रहब किने?”
आग्रह देख राधामोहनक विचारक बान्ह टुटिते भुभुआ गेल-
“श्रीमानक, सासुर आ हमर गाम एक्केठाम अछि।
एकबधूए छी। हिनकर ससुर सबहक पूबरिया बाध हमरा गामक पछबड़िया बाध छी।”
ई गप सुनिते बगलमे बैसल सुरेखाक हृदैमे अपन नैहरक
दुर्गापूजा देखब मन पड़ि गेलनि। केना संगी सबहक हेँजमे चारिये बजे दिआरी लऽ कऽ
साँझ दइले जाइ छलौं से दोसरि-तेसरि साँझमे घुमि कऽ अबै छलौं। सतमी-सँ-दसमी धरि
तँ ठेकाने ने रहै छल जे कखन अंगनामे छी आ कखन दूर्गा-स्थानमे। मुदा अखन किछु जौं
बाजब तँ बाते अबला-दबला भऽ जाएत। से नै तँ निचेनमे जखन गर लगत तखन गप करब। कियो
कि आन छी नैहरक भाए-बोन छी। हमरा सबहक िक ओ युग-जमाना छल जे नैहरेसँ यार भँजियेने
सासुर अबै छलौं। समाजक कियो छी भाए-बोन छी। दीनानाथ बाबू प्रश्न दोहरबैत बजला-
“पूबरिया या पछबड़िया बाध कथी कहलिऐ।”
राधामोहन- “एक रंग खेत रहने माने
माटिक सतह एक रंग रहने एके रंगक उपजो-बाड़ी होइ छै आ रौदियो-दही। ओही बाधमे पनरह
कट्ठा खेत अपनो अछि। अपने खेतक बगलमे आन सभ घासोक खेती करै छथि, तँए विचार भेल जे पूसा मेला जाइ छी, जहाँ धरि जे
हएत बूझि-सूझि आगू करब।”
उत्तरक आशामे राधामोहन चुप भऽ गेल। मुदा तीनू गोटे -पी.एन.
बाबू, सुरेन्द्र बाबू आ दीनानाथ बाबू-क बीच प्रश्नक गड़ उनटा-सुनटा
पकड़ा गेल। एक दिस देशक स्थितिक चर्च उठल तँ दोसर दिस गामक। तेसर दिस एक-एक
किसान परिवारक। प्रश्ने-प्रश्न उत्तरे-उत्तर गँड़ि-मुड़िया हुअए लगल। गपे-सपक
क्रममे एहेन गँड़ि-मुड़िया भऽ गेल जे तीनू गोटे अपने उबानि हुअए लगला। मुँहसँ
बोल निकलिते जहाँ नजरि उठबथि आकि अपने हीआ हारि दन्हि जे ओ गड़बड़ भऽ गेल।
एकाएकी तीनू गोटेक मुँह बिधुआ गेलनि। बैसारक रसे समाप्त भऽ गेल। दोहरा कऽ चाहो
पीब उचित नै, हमरे सबहक दुआरे भरिसक घरवारिनी भानसो करए
नै जाइ छथि तहूमे भरि दिनक ठाढ़ ड्यूटी केनिहार सेहो छथिन। तइसँ नीक जे
बैसारे तोड़ि देल जाए। मुदा तीनूक बीच कटाऔझ तँ राधामोहनो सुनलक। ओइ वेचाराक मनमे
कि उठतै। मुदा बाढ़िक टुटल बाट होइ आकि टाट लगाओल रस्ता,
टपब तँ कठिन अछिये। सुरेन्द्र बाबू आ पी.एन. बाबूक अपेक्षा दीनानाथ बाबूक
चपचपी कम रहनि। मन गवाही दन्हि जे कहुना भेला तँ दुनू गोरे सुरेन्द्रो बाबू आ
पी.एनो. बाबू सीनियरे भेला किने। गल्ती तँ सभसँ होइ छै। हमरोसँ भेल हएत जे अपने
प्रश्नक जबावमे अपने ओझरा गेलौं। मुदा किछु बाजवो तँ घापर नुने छीटब हएत किने। एक
तँ ओहिना दुनू गोटेक मन रब-रबाइत हेतनि तइपर किछु बाजि आरो भक-भका दिअनि से
नीक नै। मुदा बगलमे बैसल मिथिलांगिनी-सुरेखा तीनू गोटेक दशा देख बीचमे गंगाजल
छीटब उचित बूझि, दिअोरक लेहाजसँ गरगोटियबैत दीनानाथकेँ
कहलखिन-
“मेहनति कऽ कऽ पढ़ने छी आकि रूपैआ-पैसा दऽ कऽ?”
दिओर-भौजक गप-सपक क्रममे दीनानाथ बजला-
“पाइ-कौड़ी तँ खर्चा नै केने छी मुदा दहेजक बदला ससुरसँ नीक रिजल्ट
आ नोकरी जरूर लेने छी।”
दीनानाथक उत्तर सुनि सुरेखा बजली-
“अखन बैसार तोड़ू भरि दिन खटलौंहेँ। फेर काल्हि सेहो अझुके
जकाँ खटए पड़त तँए सबेर-सकाल ओछाइनपर चलि जाएब नीक रहत।”
‘एक तँ राकश दोसर नोतल’ हरे-हरे कऽ तीनू
गोटे मानि गेला।
सुरेखा भानस करए बढ़ली। राधामोहन आ
पी.एन. बाबू छतपर सँ निच्चाँ उतरि कोठरीमे बैस गप-सप करए लगला। राधामोहन-
“श्रीमान्, कते दिनसँ ऐठाम छिऐ?”
राधामोहनक प्रश्न सुनि पी.एन. बाबू विष्मित हुअए लगला।
मन पड़लनि नोकरीक पहिल दिन, कओलेजक पढ़ाइ, हाइ-स्कूलक
पढ़ाइ, पालन-पोसन इत्यादि। सिनेमाक रील जकाँ जिनगी पाछू
मुहेँ ससरलनि। ओही जिनगीक फल ने अखन धरि भोगि रहल छी। मुदा...? जे गाम-समाज हमरा सन मनुख बना ठाढ़ केलक ओकरा ले हम कि केलिऐ? प्रतिष्ठित किसान परिवारक बेटा रहितो कि ओइ प्रतिष्ठाक हकदार
बनि पौलिऐ। भक खुजलनि। मनमे एलनि समस्या तँ एहिना सभठाम ओझराएल अछि मुदा
गामसँ आएल नवतुरिया बच्चाकेँ जौं आबो संगतुरिया नै बनाएब तँ सेवा-निवृत्तिक
पछाति कतए जाएब। मनमे अबिते पी.एन. बाबूक मुँहमे मुस्की एलनि। जेना अनवरत चलैत
साँसक जगह जोरसँ साँस लेला पछाति नाभि तक गतिमान भऽ जाइत तहिना पी.एन. बाबूकेँ
सेहो भेलनि। बजला-
“राधामोहन, सालक पछाति सेवा-निवृत्त भऽ
रहल छी, गामेमे रहब। अखनो गाममे एते खेत-पथार अछि जे जौं
ओकरा सरिया कऽ करी तँ नोकरीसँ बेसी हएत। मुदा कि करितौं?
गाम-समाजक कटू-चालि बोल सुनि पढ़ल-लिखल नौजवानकेँ गाम छोड़ैक अनेको कारणमे एकटा
कारण ईहो अछि जे जौं कियो एग्रीकल्चर ग्रेजुएट खेतक गोला फोड़ि तरकारी खेती
करथि तँ समाजक लोक किचाड़ि कऽ समाजसँ भगा देतनि। कियो कोइर तॅँ कियो कुजरा
कहए लगतनि। भलहिं ओ बेरोजगारीक सूचीमे नाआें लिखा दिल्लीमे कुल्ली-कवाड़ीक
काज किअए ने करथि।”
पी.एन. बाबूक विचार सुनि राधामोहन मुड़ी डोलबैत किछु
मानबो करैत आ किछु नहियोँ मानैत। मुदा मुँह बन्न केने रहने पी.एन. बाबू नै परेखि
पाैलनि जे मनसँ कते मानलक। तइ बीच पत्नी सुरेखा आबि कहलकनि-
“अपने सभ ने रातिकेँ रोटी खाइ छी मुदा पर-पाहुनकेँ खुआएब नीक
हएत? मन असकताइए तँए अपनो दुनू गोटे भाते खा लेब।”
भातक नाओं सुनि पी.एन. बाबूक मनमे खौंझ उठलनि जे एक तँ
भरि दिन एम्हर-ओम्हर करैमे देह-हाथ बथा गेल तइपर भात खुआ भरि राति उठ-बैस
करौतीह। मुदा तेसर लग बाजबो केहेन हएत। पाशा बदलैत बजला-
“अहाँ जे एहेन छी, से सबेरे किअए ने
कहलौं जे चाहे माछे लऽ अनितौं कि अण्डे।”
बीचमे राधामोहन बाजल-
“खाइले अनेरे रक्का-टोकी करै छी, जे सभ दिन
परिवारमे चलैए सएह हमहूँ खाएब। अखन जुआन-जहान छी अखन नै सभ चीज पचाएब तँ कहिया
पचाएब।”
सह पाबि अपन गोटी घुसकबैत सुरेखा आगू बढ़ली।
गैस-चुल्हिक भानस, गप-सप थोराएलो नै छल कि तैयार भऽ गेल। खेनाइ तैयार होइते कोठरीमे लगल गोल
मेजपर सभ वस्तु राखि पतिकेँ सुरेखा कहलखिन-
“चलू, पहिने
भोजन कऽ लिअ।”
एके टेबुलपर तीनू गोरे बैस तीनू गोटे
खेनाइ खाए लगला। राधामोहनकेँ नव बेवहार बूझि पड़ल। किछु बाजब उचित नै बूझि
चुप्पे रहल मुदा ओंघराइत मनमे उपकलै जे आरो जे होउ मुदा सोझामे खेने तँ लूँगी मिरचाइ
आ अँचारक उपद्रव तँ कमिते अछि। तइ संग ईहो तँ होइते अछि जे सोझा-सोझी सबहक खाएब
नपाइते अछि। वएह नाप ने काजो नापत। आकि खाइले दालि-भात आ...?
प्रात भने आठ बजिते पी.एन. बाबूकेँ
कार्यक्रमक तैयारीक लेल विदा होइसँ पहिने मनमे उठलनि जे अखन अनेरे राधामोहनकेँ
किअए संग नेने जाएब। बारह बजेसँ कार्यक्रम शुरू हएत। डेरासँ निकलैत राधामोहनकेँ
कहलखिन-
“राधामोहन, अखन
अहाँ नै जाउ। बारह बजेसँ गोष्ठी चलत, तइमे शामिल हएब।”
परिवारक भीतर ने खाढ़ी हिसाबसँ भाए-बहिन, बाप-पित्ती, दादा-दादी, नाना-नानी
बँटल अछि मुदा समाज थोड़े परिवारक विचारकेँ ऊपर मानत ओ तँ वहए मानत जे समाजक
कल्याणार्थ होइ। ओ तँ उमेरे हिसाबसँ ने मानत। केश-दाढ़ी पाकल दादा-बाबाक
श्रेणीमे एलौं समरथ-सकरथ रहने बाप-पित्तीक श्रेणीमे एलौं, एक
उमरिया रहने भाए-बहिन, संगी, बहिना,
मीत-यार, भजार इत्यादिक श्रेणी अबैत तइसँ निच्चाँ
बौआ-दैया अबैत। पचास-पचपन बर्खक सुरेखा आ पनरह-सोलह बर्खक राधामोहन। तहूमे
राधामोहनसँ दोवर उमेरक बाल-बच्चा सेहो छन्हिहेँ। ओना राधामोहनकेँ अपने संग जलखै
करा पी.एन. बाबू संतुष्ट भऽ गेल छलाह जे नहियोँ रहने पाहुन भूखल नहियेँ रहत।
अराम करैक बेवस्था छइहेँ जे नीक लगतै से करत।
सुरेखाक बात सुनि राधामोहन बाजल-
“खेत-पथार केकरो जिम्मामे नै देने छिऐ?”
“देने किअए ने रहब। मुदा एतबो तँ ओही वेचाराकेँ कहिऐ जे कहयो
काल जे अबैए तँ गोटे किलो महिंसक घीए नेने आएल, गोटे मटकूर
दहिये।”
सुरेखाकेँ भँसिआइत देखि राधामेाहन बाजल-
“अहाँ गामसँ हमर गाम बहुत पछुआ गेल अछि।”
“की पछुआ गेल अछि?”
राधामोहन- “हमर गौआँ तँ तेहेन
रगड़ाउ-झगड़ाउ भऽ गेल अछि जे सदिखन झगड़े-झाँटी करैत रहल आ उपजाक कोन गप जे
खेतो-पथार बेच कोट-कचहरीकेँ दैत रहल। मुदा एकटा धरि भेल अछि जे जइ जहलकेँ आन
समाजक लोक पाप बुझैए ओइ व्याकरणकेँ उनटा, धरम बना देलक। जे
एको बेर जहल नै गेल ओ अधरमी ऐ दुआरे बूझल जाइत जे धर्म प्राप्त करैक एको सीढ़ी
ऊपर नै उठल अछि।”
राधामोहनक बात सुनि सुरेखाक नजरि राधामोहनकेँ संगतुरिया
जकाँ नजरए लगलनि। सतरह बर्खक अवस्थामे बिआह भेल रहए, तइसँ पहिने तँ राधामोहने जकाँ ने बाप-माइक बीच हमहूँ छलौं। उमेरोक तँ किछु
गुण-धर्म छै। जौं से नै छै तँ किअए मेलामे एक उमेरिये लोक बेसी रहैए। विष्मित
होइत बजली-
“बौआ, एक दिनक घटना ओहिना मन अछि।”
घटना सुनि राधामोहनक जिज्ञासा जगल। मुँह बाबि बाजल-
“से की, से की?”
सुरेखा- “तोरा गाममे दुर्गापूजा तहियो होइ
छेलह, अखनो होइते छह। झगड़ाउ तोहर गौआँ सभ दिनेक।
दुर्गापूजाक मेला एतए हुअए कि ओतए हुअए, अहीले झगड़ा भऽ
गेल। कोनो गाममे एकोठाम पूजा नै होइ छै मगर तोरा गाममे दूठाम शुरूहेसँ पूजा होइ छै।
एकबधू हमर गाम, जहिना पंचायतक गाम सबहक दूरी होइ छै तइसँ
लगे हमर गाम अछि। एक्कोमिसिया ने बूझि पड़ए जे दू गाम दोसर छी अपन गाम दोसर।
खेतो-पथारमे ऐ गामक लोक ओइ गाम ओइ गामक लोक ऐ गाम काज करिते अछि। जबार, सौजनियाँ, मैनजनी, इत्यादिक
भोजो-भातक होइते अछि।”
सुरेखाकेँ भँसिआइत देख राधामोहन बाजल-
“किदैन घटना कहए लगलिऐ?”
जहिना धक दनि आगि फुटैए, हवा-विहाड़ि
उठै छै तहिना सुरेखाक मनमे उठल। बजली-
“बौआ, भरिसक निशा पूजाक दिन रहै।
नाच-तमाशा शुरू होइते रहै आकि धुक दऽ पछिमसँ विहाड़ि उठलै। पानि-पाथर सेहो
संगे एलै। मेलामे हूड़ भऽ गेल। जह-पटार लोक जेम्हर-तेम्हर पड़ाएल। अपना गामक तीन
गोरे रही। गामे दिस पड़ेलौं, मुदा दसो डेग आगू नै बढ़लौं
आकि पाथर तड़-तड़ा गेल। भेल जे जान नै बाँचत। कपार फूटि जाएत, तेहेन-तेहेन पाथर रहए। रस्ते कातक एक गोरेक मालक घर चलि गेलौं। हवा
तेहेन तेज रहै जे घरक चार उधिया दइतए। मुदा तीनू गोरे चारक बत्ती पकड़ि लटकि
गेलौं। कहुना जान बँचल। किदैन बाजल छेलह जे अहाँक गाम नीक अछि?”
सुरेखाक
प्रश्न सुनि राधामोहन ओहिना अक-बका गेल, जहिना कियो बजिते-बजिते
बिसरि जाइत। ओना दुनू गोटेक गप-सप जुगो पाछू घुसुकि चलि गेल छल जे एकक भोगल
दोसराक खिस्सा बनि चलि रहल छल मुदा प्रश्न-उत्तर ओकरा ससारि अनलक। पाछू उनटिते
राधामोहनक मनमे सुरेखाक प्रश्न धब दऽ खसल। बाजल-
“हँ, हँ, कहै छलौं
जे अहाँक गामक किसानी हमरा गामसँ अगुआ गेल अछि।”
अगुआ-पछुआ सुनि सुरेखा दोहरबैत पुछलखिन-
“एकठाम दुनू गोटेक गाम अछि। एकबधू खेत अछि, एक रंग उबजा-बाड़ी तखन किअए एना भेल?”
सुरेखाक प्रश्न सुनि राधामोहन अपनाकेँ टटोलए लगल तँ बूझि
पड़लै जे प्रश्नक उत्तर ढंगसँ नै दऽ पएब, मुदा आत्माराम कहलकै
जे नै पान तँ पानक डंटियो आकि गाछोक डंटीसँ काज चलिते अछि। तखन जौं उत्तरक
लगलो-भीड़ल जबाव भऽ सकत तैयो तँ किछु-ने-किछु तात्विक बात आबियो जाएत। पहिने
तत्व तखन ने एकत्व आकि समत्व। बाजल-
“दीदी, अगुआएल-पछुआएल तँ खेनाइ-पीनाइ,
ओढ़नाइ-पहीरिनाइ आकि घरे-दुआर देखने ने बुझै छी।”
सुरेखो अपन मनकेँ, गोधूलि बेला जकाँ
बहटारि राधामोहनक विचार लग ठाढ़ केलनि। जहिना गुरु-शिष्य बीच एक-दोसराकेँ
उकटा-पैंची होइत तहिना सुरेखा पुछलखिन-
“जखन दुनू गामक लोक खेतिये करै छथि, तखन
किअए भगवान दू रंग बना देलखिन?”
सुरेखाक प्रश्न राधामोहनकेँ ओहिना भरिआएल बूझि पड़ल जहिना
युनिवर्सिटी वा बोर्ड परीक्षामे प्रथम स्थान पबैबला छात्र सेहो किछु प्रश्नसँ
निरुत्तर देख अपनाकेँ अलग कऽ लइए, तँए कि ओकरा भुसकौल
कहबै सेहो तँ उचित नहियेँ हएत। हलसि कऽ ही खोलि राधामोहन बाजल-
“दीदी, आन चीज तँ नजरिपर नै चढ़ैए मुदा
एकटा चढ़ैए।”
नजरिपर चढ़ैबला बात सुनि सुरेखाक मन बाजल नजरिपर चढ़ैबला
बातकेँ जौं नजरि चढ़ा नै चढ़ाएब तँ ओ ढलानपर छिछैलिये जाएत। तँए एकत्व भऽ सुनए
पड़त। बजलीह-
“बौआ, हमरा-तोरा बीच कोन लजेबा-धकेबा अछि।
हम जेठ बहिन माइये-दाखिल भेलिअ, तूँ भाए-बोन बाप-दाखिल
सीमा परक सिपाहिये जकाँ जिनगीक भेलह। तखन किअए धक-मकाइ छह।”
सुरेखाक भाव देख राधामोहन भवलोक पहुँच गेल मुदा अथाह भवसागर
देख बाजल-
“दीदी, अहाँ गामक बेसी किसान एकाजू छथि।
खेती करै छथि, गाए-महिंस पोसै छथि इत्यादि-इत्यादि मुदा
हमरा गामक बेसी जोतदार दू-दिसिया काज करै छथि। अन्नो-पानिक खेती करै छथि आ
सामाजिक बंधनक बीच सेहो करै छथिन। बंधने ने समाजकेँ बान्हि बेकतोकेँ बन्हैत
अछि। अपना काजक समए समाजक काजमे लगबै छथि तइसँ खेतीक उचित देख-भाल नै कऽ पबैत
छथि। जइसँ कम आमदनीक जिनगी बनि गेल छन्हि। मुदा अहाँ गामक किसानी बाट मजगूत
बनि गेल अछि।”
राधामोहनक बात सुनि सुरेखाकेँ मामा मन पड़लनि। मामा मन
पड़िते मन पड़लनि बाड़ी-झाड़ी आ माइयक संग मामाकेँ भाए-बहिनक ओ रूप जे दुनू मिलि
जिनगीक लेल ठाढ़ छथि। कि मामा पाहुन नै जे माइयक बाड़ी-तामि-कोड़ि
तीमन-तरकारीसँ फल-फलहरी धरिक गाछ-विरीछ लगा दैत। राधामोहन कियो आन छी, जौं करजानमे केराक घौर पाकल हएत तँ चारि छीमी खुआइयो देबै आ दू हत्था
गामो नेने जाइले कहबै। दू परानी कते खाएब, पच्चीस-पच्चीस-तीस-ती
हत्थाक केरा घौर। जे तीनियेँ दिनमे दुरियो भऽ जाइए। बाजलि-
“बौआ, चलह। गाम जकाँ तँ बीघा-बीघे
बाड़ी-झाड़ी आकि गाछी-बिरछी नहियेँ अछि मुदा जतबे अछि से चलि कऽ देखहक जे
अपना जोकर दुनियाँ बनौने छी की नै।”
बाड़ी-झाड़ीक नाओं सुनि राधामोहनक मन आरो चमकल। खोलियापर राखल हँसुआ हाथमे नेने
सुरेखा आ पाछू-पाछू राधामोहन डेरासँ निकलि बाड़ी पहुँचल। जहिना मक्कड़मे
हर्ड़ी-बिदेसरक मेला पहुँच यात्री फरिक्केसँ हिया कऽ देखैए जे कतए कोन तरहक रूप
छै तहिना बाड़ीक टाट खुजिते राधामोहन हिया कऽ देखलक तँ अजीव दुनियाँ बूझि
पड़लै।
पानिक
नालीक बगलमे पाँच बीट केरा पाँच रंगक देखलक। गाछेमे एकटा पकलो। बीटक ऊपर जाल लगल।
चिड़ैक कोनो डरे नै जे चोरा कऽ खएत। सूखल डपोर कटैत सुरेखा बजलीह-
“बौआ, कहुना भेलह तँ तूँ पुरुखे पात्र
भेलह किने ओरिया कऽ ओइ घौरकेँ काटह।”
पाकल केरा घौर कटैक नाओं सुनिते राधामोहन चपचपा गेल, कहुना तँ पहुनाइमे छीहे ने। उचित-उपकार दुनू। बाजल-
“दीदी, हँसुआ दिअ, आ
अहाँ हटि जाउ, केराक पानि बड़ खराब होइ छै, कपड़ामे एहेन दाग लगा दइ छै जे कपड़ा फटि जाएत मुदा छूटत नै।”
राधामोहनक रक-छक विचार सुनि सुरेखा बजली-
“तखन फेर लोक ओइ दागकेँ छोड़बै केना छै?”
जहिना परीक्षा भवनमे पहिलुक प्रश्नकेँ हल्लुक बुझिते
अगिलो बिसरि हाँइ-हाँइ परीक्षार्थी लिखए लगैत तहिना राधामोहन बाजल-
“दीदी, दुनियाँमे एहेन कोन दुख अछि जेकर
दवाइ नै छै, तखन तँ...।”
डोलैत घरमे जहिना घरवारी सोंगर लगा-लगा ठाढ़ रखए चाहैत तहिना
सुरेखा अपन जिनगी संग राधामोहनकेँ खुट्टा नै सोंगरे बनए चाहली। मुदा राधामोहनक
चटपटाइत मुँह देख बजली-
“हँ तँ किदैन कहै छेलह?”
ठेंगीकेँ ठेंठिये कोदारि भार थम्है छै। बड़का मुरूछि
जाइ छै। तहिना ने केरो दागक दवाइ अछि। बाजल-
“दीदी, केहनो दाग किअए ने होय, मुदा दवाइयो संगे छै।”
संगे दवाइ सुनि सुरेखा बजली-
“से की?”
“आन जीवित गाछमे ने दूध आकि लस्सा होइ छै, मुदा केरा तँ छी गाछक झड़। तँए एकरा एकरे सूखल डपोर जे छै, ओकरा आगिमे जरा कऽ ओही छाउरसँ रगड़लापर दाग छुटै छै।”
केराक
घौर काटि थम्हकेँ सेहो काटि-खोंटि कात कऽ देलक। हँसुआमे लागल पानि माटिपर
रगड़ि साफ केलक। आगू बढ़िते कट्ठा भरिक फलक गाछो आ झाड़ियो देखलक। गमैआ
आम-जामुनक गाछ जकाँ तँ एकोटा फलक गाछ नै मुदा कामधेनु जकाँ सालो भरि फल दइबला सभ।
आब कहू जे फड़ैक भार जेकरा नहियोँ छै तहू गाछ सभमे फड़ लटकल छै। अनेरे मन घुरिआएल
अछि। मुदा नै गाछोमे अनरनेवा पंडित अछिये। फूल भलहिं होउ, फड़ब पाप बुझिते अछि। मुदा तँए कि धात्रीम सन सावित्री थोड़े अछि जे
बिनु सत्यवाने फड़बे ने करत। हँ से तँ अछिये भलहिं टाट-फड़क, आड़ि-धूर, घाट-बाट दुआरे माटिक बाट किअए ने बन
होउ, मुदा अकासक बाट तँ खुजल छइहे तँए ने कहै छै जे हे प्रियतम
देह भलहिं तीन कोस हटले किअए ने होय मुदा मन तँ दुनू गोटेक संग मिलि रचिते-बसिते
अछि।
समुचित
भोजनक लेल जहिना आन-आन वस्तुक महत अछि तहिना ने फलोक अछि। मुदा फलक दुर्दशा
जिनगीकेँ सुदशा दिस बढ़ए देत। जे मिथिलांचल कुकाठ-सुकाठक संग चानन सन वृक्ष
पैदा करैक उर्वर शक्ति संयोगने अछि कि ओइ शक्तिकेँ पूजा केने बिना कल्याणक
असीरवाद भेट जाएत। जौं मुखौटे होइतै तँ काँच माटिक एकटा दिआरी लेसि, हाथ-जोड़ि निहोरा केलासँ भेटितै तँ अदौसँ होइत आएल आ मिथिलांचल नीचे
मुहेँ किएक धसैत गेल। सालो भरि चलैबला फल जइठाम छै, तइठाम...? खींरा लत्ती देख राधामोहन बाजल-
“दीदी, खीड़ो लत्ती बीचमे देखै छी?”
राधामोहनक जिज्ञासाकेँ सुरेखा परेखि गेली। जहिना छोट-बच्चाकेँ
माए-बाप, भाए-बहिन ओंगरीक इशारासँ कौआ-मेना देखा ओकर नाओं सिखबैत तहिना
सुरेखा राधामोहनकेँ सिखबैत बजली-
“बौआ, खीड़ो फले छी। फलेक गुण ओकरोमे छै,
मुदा अपन पारिवारिक जिनगी तेहेन बना नेने अछि जे
तीमन-तरकारी-सँ-फलाहार धरि पुड़बैत अछि।”
सुरेखाक बाट राधामोहनकेँ छुछुन बूझि पड़लै। छुछुन ई जे
माटिपर पसरल लत्ती आ लत्तीक फड़, केना फलाहार हेतै। हँ एते तँ देखै छिऐ
जे करेला-झुमनी-सजमनि जकाँ फड़ैए, सजमनिसँ भलहिं होट हुअए
मुदा करैला-झुमनीक तँ संग-तुरिया अछिये। तरकारी मानल जा सकैए। तरकारीकेँ केना फल
मानि लेब फड़ तँ तरकारियो फड़ैए मुदा लगले मन पलटि महकारी लग पहुँच गेलै। ओकर
तरक बीआ जते तीत होइए ओते तँ करैलोक ने होइ छै। कहाँ राजा भोज कहाँ भजुआ तेली।
करैलाक गुद्दा-रस भलहिं तीत होउ मुदा ओइसँ पालल-पोसल बीआ कहाँ तीत होइ छै। दुनूमे
अकास-पतालक अन्तर होइ छै। गोल-गोल, हरिअर-हरिअर, लाल-लाल फड़क बीच महकारीक बीआ खेबा-काल खेलहोकेँ बोकरा दइए, से केना करैलाक पड़तर करत। ऊँट जकाँ भलहिं देह उबर-खाबर होउ, रसो आ गुद्दो तितौंस किअए ने होउ, गलि-पचि अपने
किअए ने सड़ि जाए मुदा ओहन बीआ तँ दैते अछि जे संगी-साथी जकाँ मनुष्यक भोज्य
बनि चलैत आबि रहल अछि आ आगूओ चलैत रहत।
खेलौना
दोकानपर, रंग-रंगक खेलौना देख जौं बच्चा गुमकी लाधि दिअए
तँ किछु कारणक आशंका होइते छै। स्वर्ग सदृश बाड़ी-झाड़ी रहितो राधामोहनकेँ अपन
विचारक दुनियाँमे विचड़ैत देख सुरेखाक मनमे भेलनि जे भरिसक रोड़ा-रोड़ीक ठेंस
ने लगि गेलै। बाजली-
“बौआ, कि करब, जेतबे
छुट्टी रहत तेतबे टा ने दुनियोँ बसाएब। इच्छा केकरा ने होइ छै जे इन्द्रासनक
आसनपर बैसी, मुदा इच्छे भेने थोड़े होइ छै। अही सुखक लोभमे
ने एकटा बौना आबि हरिश्चन्द्रकेँ राज-पाट ठकि लेलकनि। अखुनका वियतनाम राज
थोड़े छी जे सालक-साल, दशकक-दशक रगड़ैत रहत। कहू जे जइ
राजाकेँ एतबो दया नै जे आमजनक राजकेँ अपना स्वार्थमे केना लगा देबै।”
ओना सुरेखा राधामोहनक मन बहटारए चाहली मुदा जिद्दीयाह
गाए-बड़द जकाँ गाछक मुड़ीयेपर राधामोनक नजरि अँटकल। राधामोहन बाजल-
“दीदी, अहाँ तँ खीड़ाकेँ फल कहै छिऐ,
एते तक माेनेमे शंका नै अछि जे फड़ नै होइ छै, मुदा फड़-तँ-फड़ भेल आ आमोक गाछक फड़े भेल भलहिं कोशा धरिकेँ फड़े कहिऐ।
जिनगीक नीक फल सभ चाहैए आकि नीक फड़ कदीमोसँ नहमर चाहैए?”
जहिना बाल मन वा जुही फूल, परोड़ इत्यादि
कोनो नव गाछक सरारि सदृश सर-सरा कऽ आगू धरि बढ़ि जाइत तहिना राधामोहनक प्रश्न
आगू बढ़ल मुदा ओरिया कऽ मुड़ीकेँ मोड़ि सुरेखा बजली-
“बौआ, खीड़ाक तरमे तीन फाँक होइ छै,
मुदा होइ छै तीनू बराबर। ऊपरका जे आवरण होइ छै ओ ओहन होइ छै जे दिठा-दृश्य
देखए नै दैत छै। ओकरा हटौला पछातिये देख पड़ै छै। मुदा जौं ओकरा कत्तासँ गोल-गोल
काटल जाइ छै तँ कहाँ तीनूमे सँ कियो कहैत जे कम छी।”
कहि सुरेखा सोचए लगली जे भरिसक राधामोहनक मन उचटि गेल
अछि। जाबे तक दोसर दिस नै तकाएब, ताबे नजरि नै घुमतै।
तँए दोसर दिस तकाएब नीक हएत। दोहरबैत बजली-
“बौआ, मेलो जाइक समए लगिचा गेलह।
नहाइत-खाइत समए भैये जाएत। हमहूँ जाएब किने?”
दोसर
दिनक साँझ। शिक्षण प्रक्रियाक समाप्ति। काल्हि िवसर्जन छी। भोज-भात आ सांस्कृतिक
कार्यक्रम रहत। राधामोहन आ पी.एन. बाबू गाएक घरक थैड़ देखैत रहथि। मच्छरक
धनधनेनाइसँ बूझि पड़लनि जे घूरक जरूरत अछि। दुनू गोटे गाइये घरमे रहथि तखने
सुरेन्द्रो बाबू आ दीनानाथो बाबू संगे पहुँच बजला-
“गाएक घरमे अखन किअए छी?”
ई गप सुनि पी.एन. बाबूकेँ संकोच नै भेलनि। ओना तीनू गोटेक
डेरो एकठाम आ बाड़ियो-झाड़ी एकरंगाहे, तँए प्रश्न बेवहारिके
छल। पी.एन. बाबू बजला-
“तीन-चारि दिनसँ एते व्यस्तता बढ़ि गेल जे अपन जिनगीये छिड़िया-वितिया
गेल। बूझि पड़ैए जे तीनियेँ-चारि दिनक बीच तते मच्छर बढ़ि गेल जे अवधात करत।
मुदा आइयो तँ आब करैक समए नहियेँ अछि। काल्हि बूझल जेतै।”
दीनानाथ बाबू- “काल्हियो कि भरि दिन
छुट्टी हएत, भोज-भात आकि नाच-तमाशा देखिनिहार-खेनिहार ले
ने, मुदा विदाइ-समारोह सेहो छी किने?”
“हँ से तँ छी। मुदा ओ तँ भोज-भातक पछातिये ने हएत तइ बीच तँ
समए बँचिते अछि।”
कलपर हएत-पएर धोइ राधामोहनो आ पी.एनो. बाबू लग पहुँचबे केला
आकि ओम्हरसँ सुरेखा चाहो नेने एली। ठाढ़े सभ कियो चाह पीबए लगला। दीनानाथ बाबू
राधामोहनकेँ कहलखिन-
“कौल्हुका नोत-हकार दइ छी। खेबो करब आ देखबो करब।”
दीनानाथ
बाबू गप तँ चालि देलनि, मुदा भोजैत तँ नै छला। भोजैत
सुरेन्द्र बाबू मुदा जहिना घाटपर चेल्हबाक चालिमे भुन्नो फँसि जाइए, तहिना वगलमे बैसल सुरेन्द्र बाबूकेँ भेलनि। दीनानाथ बाबू तँ पठौल नै
छेलखिन जे मद्दी हेतनि। अपनो मुँह खोलए पड़तनि, भलहिं
राधामोहन नै बूझि पबैत मुदा दुनू परानी पी.एन. बाबू तँ छथिये। पुलिसक आगू अनेरे
पड़ाएब नीक नै होइ छै, खेहारि कऽ पकड़ि खढ़िया मोर मारि
पकड़िये लेत आ जौं पकड़ि लेत तँ सभ ठेही झाड़ि देत। राज-भोज छिऐ, जते खाएत तइसँ बेसी छिड़िआएत। बजला-
“राधामोहन सझिया नतहारी हेता।”
जहिना
भोज-काजमे पहिले योजना बनैत पछाति हिसाब-बाड़ी होइत। मुदा बैसार दुनू दिन
चलैत। एक तँ बैसारमे नतक बँटवारा तखन नतहारीक चर्च नै। मुदा दोसराक पाहुनकेँ ईहो
पूछब उचित नै जे केम्हर एलौं। मुदा जहिना परिवारक छोट भाएकेँ अनको कोहवरक रस्ता
खुजले रहै छै तहिना दीनानाथ बाबू। जेठ लग जेहने गल्ती तेहने सही। जौं सही अछि
तँ मुड़ी झुलौता जौं गल्ती अछि तँ सुधारि देता। बजला-
“राधामोहन, अहाँ पढ़बो करै छी।”
दीनानाथ बाबूक प्रश्नसँ राधामोहन ठमकि गेल। केना कहबनि जे
परीक्षाकेँ अखन छोड़ि आगू बढ़ा देलिऐ, आ अखन घरक पाछू। मुदा
उत्सुक मन बाजल-
“पढ़ितो छी, आ परिवारक जे दशा अछि ओकरा
जौं नै रोकब तँ कते दूर ढरैक कऽ चलि जाएब तेकर कोनो ठीक नै। तँए किछु करैक विचार
सेहो अछि।”
राधामोहनक सह पाबि दोहरबैत दीनानाथ बाबू पुछलखिन-
“परिवार कतेटा अछि?”
“ओना कहैले तीन गोरे छी मुदा...।”
“मुदा की?”
“पिता अंतिम अवस्थामे छथि, अब-तब करै
छथि, कखन छथि कखन नै तेकर कोनो ठीक नै।”
“कते उमेर हेतनि?”
“सेहो नीक जकाँ नै बुझै छी। झूड़-झूड़ शरीर भेल छन्हि। तइसँ
तँ अस्सीसँ ऊपरेक कहबनि, मुदा माइयक जे गतिशीलता देखै छी
तइसँ बूझि पड़ैए जे घरक चीनवारेक खूँटा टुटि गेल। आइ करी कि काल्हि, करए तँ हमरे पड़त। सएह सभ मन हौंड़-हाँड़ि देने अछि। तँए गाए पोसैक विचार
करै छी।”
आँखिक
इशारा सुरेन्द्र बाबूक देखिते दीनानाथ बाबू चुप भऽ गेला। सुरेन्द्र बाबू पुछलखिन-
“राधामोहन, विचार तँ नीक अछि, मुदा किछु प्रश्नक उत्तर बूझब जरूरी अछि। भने मेलेमे एलौं। भोज-भात
खेनिहार सभकेँ खाए-दिऔ। मुदा, कहब जे जाधरि अपन मन काज
करैले ने मानि जाए, ताधरि रहू। जौं जीवनमे एकोटा काजक लोक
भेट जाए तँ जरूर ओइ जिनगीकेँ सार्थक मानल जेतै।”
सुरेन्द्र
बाबूक मुँह खुजल देख सुरेखो अपन बातकेँ राखब उचित बूझि बाजली-
“दीना बाबू, जखन राधामोहनसँ गप भेल तँ
कहलक जे हमरा गामसँ अहाँक गाम नीक अछि। पच्चीस बर्खसँ नैहर गेबो ने केलौंहेँ,
अठारह बर्खक अवस्थामे छोड़ने रही तँए जाएब तँ तर पड़ि गेल अछि।
तँए सेहो कनी कखनो दुनू भाए-बहिनक बीच कहि देब।”
सुरेखाक
प्रश्नसँ सुरेन्द्र बाबू घबड़ेला नै मुदा दिन भरिक देहक थकान, तइ बीच काल्हि विदाइ समारोह सेहो छी एहेन ने हुअए जे धड़फड़मे प्रोफेसर
साहेबक जैकेट प्रिंसिपल सहाएबक डालीमे चलि जान्हि आ प्रिसिपल साहेबक
प्रोफेसर सहाएबमे, तँए मन बोझिल, जे
केना एहेन सुराग भेट जाएत जे जे जेतै कऽ अछि से से तत्तै चलि जाए। मुदा परिवारो
तँ परिवारे छी। परिवारकेँ चैन रखने बिना एको छन चैन भेटब कठिन होइ छै। दीना
बाबूकेँ सम्बोधित करैत सुरेन्द्र बाबू बजला-
“दीना बाबू, एन करू जे एकेटा उत्तरमे दुनू
प्रश्न आबि जाए।”
हँूहकारी भरैत दीनानाथ बाबू बजला-
“हँ-हँ बढ़ियाँ-बढ़ियाँ, हनुमानजी जकाँ
पहाड़े चलि आओत अपन-अपन सभ ताकि लेब। मुदा भाय-सहाएब एकटा बात पूछब हमरो रहि
गेल अछि?”
सुरेन्द्र बाबू- “कथी ओहो राखिये दिऔ?”
दीनानाथ बाबू- “राधामोहन, एकटा बात कहू जे परिवारमे बाहरक लोटा दूध अबैए आकि घरक लाेटा बाहर
जाइए।”
दीनानाथ
बाबूक प्रश्न सुनि पी.एन. बाबूकेँ नै रहल गेलनि बजला-
“दीनू बाबू कि कहब, बिसरि गेलौं रमझिमनी-रामझुमनी।
भिंडीक माला जपि-जपि भाषाक जान बँचबै छी। मुदा क्षेत्रो तँ किछु छी।”
एक
संग अनेको प्रश्न उठैत देख सुरेन्द्र बाबू विचारलनि जे नीक हएत सभ प्रश्नकेँ
बहटारि काल्हि लेल राखि ली आ किछु मनोविनोद संग बैसार उसार कऽ ली। चौअन्नियाँ
मुस्की दैत दीनानाथ बाबूकेँ पुछलखिन-
“अँए हौ दीनू, उद्घाटन बेर किअए हँसऽ लगल
रहह?”
टटके
बात, बिसरैयौक तँ नहियेँ कहल जा सकैए। मुदा एकटा जबावदेहक
प्रश्न छी। कि कहबनि। हम सभ कहुना भेलौं तँ घरवारिये भेलौं किने, किअए ने खोलि कऽ सभ गप करब। मुस्कीक जबावमे ठहाका दैत दीनानाथ बाबू
बजला-
“भाय, लाबा जकाँ छिड़िआएल नै, मुदा छिड़िआइबला बात तँ रहबे करै ने।”
दुनू गोटेक बीचक बातमे सुरेखा लाड़नि लाड़लनि-
“उद्घाटने जखन हँसा गेल, तखन बाँकिये कथी
रहल?”
सुरेखाक प्रश्नसँ सुरेन्द्र बाबू थकमकेला। थकमकाइत देख
पी.एन. बाबू सम्हारैत बजला-
“बात भेल किछु ने आ अनोन-विसनोन हुअए लगल।”
अपन भाँज बूझि दीनानाथ बाबू बजला-
“भेल ई रहै जे चारि गोटेकेँ चरिमुखी दीप लेसि उद्घाटन करक
रहै। एकटा मोमवत्ती नै ने जे तीन गोटे डाॅट पकड़ू आ एक गोटे सलाइ लेसि लगाउ।
चरिमुखी दीपमे तँ बाॅटल चारू गोटेक। सभकेँ दीप जराएब छन्हि। पहिल गोटे जखन सलाइ
खरड़ि एकटा दीप लेसि देलखिन तखन दोसर-तेसरकेँ सलाइ खरड़ैक कोन प्रयोजन। सलाइ
काठीकेँ तँ दीपेमे लेसब असान होइतै। से नै केलनि, केलनि ई
जे तेसर गोटे जे रहथि ओ राशिमे राशि नै काटि सलाइ खरड़ए लगला आकि मसल्ला
उड़ि कऽ कुर्तापर पड़ि गेलनि तेहेन कुर्ता जे ओतबेमे दगा गेलनि। सएह हँसी लागल
रहए। अहूँ तँ मंचेपर रहिऐ। अहाँ नै देखिलिऐ।”
दीनानाथ बाबूक बातसँ सुरेन्द्र बाबूकेँ दुख नै भेलनि।
बजला-
“तूँ छुट्टा छह, हम बान्हल छी, तँए किछु...।”
“अच्छा जे होउ, कौल्हका-उगरल वस्तु-जात
हएत ओ भोजो हएत आ राधामेाहनकेँ मेलाक दर्शन सेहो करा देबनि। अखन जाए दिअ,
दू घंटा दुनू कातक चेकिंग बेवस्था करैमे लागत। तहूमे तीन-तीन चेकिंगमे
चोरकट रस्ता रहिये जाइ छै।”
बच्चा
लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही,
आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते
लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो
ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो
ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे
ब्रह्मा, दीपक
मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति!
अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं
हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन
सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने
चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु
कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत्
भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना
स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन
अहल्या, द्रौपदी,
सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा,
बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम-
ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा
लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये
सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे
वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र
२२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः।
स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः
सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो
जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे
नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां
बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि,
आ’
शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन
करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा
त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे
ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’
नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक
उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद
ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण
करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा
देथि, फल देय
बला गाछ पाकए, हम सभ
संपत्ति अर्जित/संरक्षित
करी।
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