भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, April 14, 2013

'विदेह' १२७ म अंक ०१ अप्रैल २०१३ (वर्ष ६ मास ६४ अंक १२७) PART II


. पद्य








..http://www.videha.co.in/munnikumarivarma.jpgमुन्नी कामत फगुआ/ आनहर कानुन
http://www.videha.co.in/JagdishChandraThakurAnil.jpgजगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल
गजल

अपन-अपन हम प्रणमे छी
महाभारतक रणमे छी

अहाँ अधर्मक संग ठाढ़ छी
बुझू अंतिम क्षणमे छी

धरतीमे छी अम्बरमे छी
हम सृष्टिक कण-कणमे छी

अपने लगमे ताकू हमरा
म अहाँक नयनमे छी

नीक लगैए चान-तरेगन
शब्दक नीलगगनमे छी

सुखमे छी हम दुखमे छी
जा मोहक बन्धनमे छी

हमर अज्ञान हरू हे माता
म अहींक शरणमे छी

 
बीतल दुख के बात करै छी
भोरे-भोरे पाप करै छी

संग अहाँ के किछु नै जाएत
हमर-हमर की जाप करै छी

शब्दक लागल तीर हृदयमे
किए एना आघात करै छी

अहाँ की बुझबै कष्ट अभावक
कोना साँझसँ प्रात करै छी

पहिने मैल केलौं उज्जरकेँ
आब मैलकेँ साफ करै छी

दुख आएल सुख आबि रहल अछि
किएक  बाप रे बाप  करै छी

भरिसक हमरे कर्मक फल थिक
जाउ अहाँकेँ माफ करै छी

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
http://www.videha.co.in/PradeepPushp.jpgप्रदीप पुष्प
गजल

दोसरक गीत उगबै अछि चान मीता 
हमर गजलो गबै भूखक गान मीता

आब रूदल ब'नब ने हम ग'छब कहियो
जरल पेटसँ उठै ने सुर तान मीता

भेल बटुआसँ तगमाकें नीक दोस्ती
बिन टका छी सभा मध्यें आन मीता

जैह देबै अहाँ हम रखबै हुलसिकेँ 
गाय बूढो खपै विप्र दान मीता

पाँतमे हम अछोपक छी भोज खाइत
'
पुष्प'कें नइ फिकर आ ने मान मीता
2122 1222 2122
सब पाँतिमे


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
http://www.videha.co.in/BindeshwarNepali.jpgबिन्देश्वर ठाकुर
हिसाब जिनगीक
मार्च महिनाक उत्तरार्द्धमे आइ हम मृत्युकेँ देखलौं
सुनने छलौं/ सोचने छलौं
मृत्यु अत्यन्त सुन्दर होइ छै
सरल होइ छै
मुदा यथार्थ बिल्कुल फरक
बिल्कुल अलग पैलौं।
भयानक आ बिकराल रुप देखि
हम डरसँ पानि-पानि भऽ गेलौं।
आब ऐठाम-
मृत्युक कटघेरामे हम अपन
भूत, वर्तमान आ भविष्य
स्पष्ट देख रहल छी ।
एखन धरि अनुमानित हम
५ लाखक दारु पीने हएब
२ लाख ५० हजार ७०० क माउस खेने हएब
कतौ अपने लुटैलौं/ कतौ दोसरकेँ लुटलौं
एनामे बर्बाद भेल हएत हमर जम्मा
३ लाख ७५ हजार।
आइ हम सोचैत छी-
ऐ रकममे सँ किछु पढ़ाइमे लगैने रहितौं तँ
आइ हमरा पास कोनो बिषयक डिग्री रहितए
किछु पैसा स्वास्थ्यमे खर्चने रहितौं
तँ हमर शरीर कोनो बीमारीक घर नै रहितए
अथवा
ओ रुपैया बचल रहितए तँ
अपन देशक कोनो नीक शहरमे
आलीशान महल बनल रहितए
मुदा दुर्भाग्यक गप्प, एहन किछु नै भेल
फलत: हम नर्कक चक्कर काटि रहल छी
आ एखनो राति-राति भरि
सादा पन्नापर
कलमक नोखसँ
जिनगीक हिसाब करैत छी
बस हिसाब करैत छी।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
http://www.videha.co.in/RAMAKANTJHA_SAURATH.jpgरमा कान्त झा, सौराठ
होलीक हुरदंग
थाक गे हमर मन
नाचए भौजीक बहीन
हमरा संग।
बजए पायल छमा छम
छोड़ाक मन पनियाइ छै रसगुल्ला सन!
पहिरने चश्मा ठोढ़ रंगने जमुनी
छौड़ा सभकेँ देखाबए दुनियाँ!
की कमाल केली हमर नवकी कनियाँ!!
थाक गे हमर मन
ओढ़नी लहरा कए ठोढ़ पटपटा कए!
मारैए कनखी मटकी
हाय रे केहेन कनियाँ लटकी।।
थाक गे हमर मन

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
http://www.videha.co.in/ira.jpgइरा मल्लिक

कविता/ होलीक एक दूटा पाँति/ गजल

कविता
--------
लऽ चलू नदीक पार सखी,
ओइ पार हमर प्रियतम छथि।

हम केश सजेलौँ गजरासँ,
नयन लगेलौँ कजरा तँ,
लै अधरकली कऽ लाली सँ,
भेल लाजसँ गाल गुलाबी तँ,
अहाँ धरू एखन पतवार सखी,
लऽ चलू प्रियतमक गाम सखी।

सजि-धजि कऽ नयन बिछौने छलहुँ,
नयनन मे सपन सजौने छलहुँ,
तड़पैत अछि आकुल व्याकुल मन,
इहो पीर नै सहत हमर तन मन,
अहाँ करु किछु जतन उपाय सखी,
लऽ चलू प्रियतमक ठाम सखी।

प्रियतम जोहै छथि बाट हमर,
बैरिन भेल रैन, नदीक लहर,
तरिणी तट नौका बन्हल पड़ल,
नाविक सुतल निसभेर बनल।
अहाँ करु नै एको छन देर सखी,
नाविककेँ तुरत जगाउ सखी।
लऽ चलू नदीक पार सखी,
ओइ पार हमर प्रियतम छथि।

होलीक एक दूटा पाँति
----------------------
रंगक हुड़दंग मचल पिया बसंती
होरीमे,
सबहक मोनमे उमंग भरल पिया बसंती होरीमे।
छै भंगक तरंग मचल पिया बसंती होरीमे,
बुढ़बो दिअर लागै पिया बसंती
होरीमे!
राधा छथि जीवन आ मेहनति
छथि श्याम यौ,
सभ हाथकेँ काज दियौ हएत
जीवन आसान यौ।
हिंसा आ द्वेष दंभक होलिका
जरा दियौ,
कटुताकेँ छोड़ि रंग दोस्तीमे
रंगाउ यौ।
नारी नारायणी थिकी, हुनका
मान सम्मान दियौ,
जिनकासँ ई सृष्टि छै, हुनक
शक्ति जगाउ यौ।
गजल
-------
गमाउ नै गोरी ई छन बाते बेबातमे
हमर हृदयसँ फूल पराग झरैए।

देखू लाजसँ गालक गुलाब खिल गेल
लोगक नैनाक काँट बेहिसाब गरैए।

नैना चितवन अल्हड़पन देखैत छी
कोना मुस्की मिसरियापर जान जरैए।

अधर कोमलकली छै रस सँ भरल
मन भँवरा बौरायल से जानि पड़ैए।

मोन फागुनी बयार बनि मस्त मगन
सिनुर लाजसँ मुखरा गुलाल भरैए।

रूप चर्चा पसरि गेल गामहि गाममे
कोना चलतै लोग दिनेमे बाट हेरैए।
आखर-15


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://www.videha.co.in/Jagdish_Prasad_Mandal.JPGजगदीश प्रसाद मण्‍डलक गीत .http://www.videha.co.in/ManojKumarMandal.jpgमनोज कुमार मण्‍डल- ४ गोट कविता

http://www.videha.co.in/Jagdish_Prasad_Mandal.JPGजगदीश प्रसाद मण्‍डल
जगदीश प्रसाद मण्‍डलक
गीत-

समए केर......

समए केर भूचालिमे
जिनगी बोहिया गेल।
जी-वन वन जीवन बीच
बोहिआएल बाट बटिया गेल।
समए केर......

सजल-बसल मन मुनिक
विष-विसाइन बनैत गेल।
उजड़ि-उपटि झाड़-झंकार
सखुआ शंख रोपा गेल।
समए केर......

घुमि‍-ताकि जखन पाछू
मड़िआएल मेघ पकड़ा गेल।
हरल-मरल बाट-घाट
घटिया घाट घटा गेल।
समए केर......

पकड़ि पएर चारिम पहर
अस्ति-चल-अस्ति भेटैत गेल।
घेरि‍-घेरि‍ घेँट घेँघिया
दुखरा-दुख कहैत गेल।
समए केर......

http://www.videha.co.in/ManojKumarMandal.jpgमनोज कुमार मण्‍डल
चारि‍ गोट कवि‍ता-

रे मन!ले कनी विश्राम

रे मन! ले कनी विश्राम
चलए पड़तौ दूर छै अप्पन गाम
रुकमे तूँ जेते काल
दौड़ए पड़तौ तते काल
जन्मेसँ चलैत साँस बन्न
हएत तेकरो नै छै तय काल
रे मन! ले कनी विश्राम
चलए पड़तौ दूर छै अप्पन गाम।

चलैत चल आ रचैत चल
जेतौ कएक टा काज
मेघ लगल छै कखन बरसत
कमे भ जेतौ काज
चलए पड़तौ दूर छै अप्पन गाम।

अखन-तखनक फेड़ा छोड़
जखने अलसेमे रुकतौ काज
बाटेमे दिवस कटऔ
जेमे कखन गाम।
रे मन! ले कनी विश्राम
चलए पड़तौ दूर छै अप्पन गाम
जेमे कखन गाम...

अपन नै छै मलाल
रुकमे अतए सदि‍काल
जेतबा दौग सकै छेँ दौग
नै तँ नेहुँए-नेहुँए चल
रे मन! ले कनी विश्राम
चलए पड़तौ दूर छै अप्पन गाम
जेमे कखन गाम...




भाव भरल अछि मनमे

भाव भरल अछि मनमे
केवल एतबा अछि लाचारी
हाथ हमर अछि खाली
आंगनमे अछि बखारी
पर नीज अधिकारसँ छी न्यारी।

चंद हाथमे फँसल अछि सम्पति सारी
छाँह सदि‍खन जे रहै
तिनका चाही बड़का सबारी
समता ममतामे फँसल
लागल अछि दुनियाँ दारी।

प्रकृति सदासँ सम छै
तखनो बिसम हम छी
मेघक बून्न आ सूरुजक किरि‍ण
मिलैत सभके समान छै
तखन कि‍एक एहेन समाज छै?

उपजेलक जे किओ अन्न सभ ल
ओ अप्पने शोणित चूसि भूख मिटाबै छै
गौ सेवासँ संचित पुण्य
छिलैत घास बितबैत जीवन
दूध ल जी जरल छै।

के छथि धर्मात्मा

केहन सुन्दर केहेन निर्मल
दीन रहितो उपासनामे लागल
अपन सासक आसमे ओ
सबहक प्राणक अभय दान
रहल छथि खेतिहर किसान
कहू एहेन के छथि धर्मात्मा?

लाख जरुरति‍ रहितो ओ
मुँहपर मुस्की रखने छथि
अपन पीड़ा छोरि ओ
पर पीड़ा अपनौने छथि
धूप छाँहक कोन परवाह
मेघ बरसै आ माघक जाड़
सतत उपासनामे लागल किसान
कहू एहेन के छथि धर्मात्मा?

ओ कर्मवीर ओ धर्मवीर
जे करए सएह बनए धर्मक लीक
भलहिं ओ अपने रहैत फकीर
कर्म पथपर अपन जीवन
अपनेहिसँ होम क रहल छथि
समए-कु-समय नव-नव अन्न
सभकेँ भोग लगा रहल छथि
कहू एहेन के छथि धर्मात्मा ?

कतए भेटत एहेन ति‍याग
बिनु ति‍यागे प्रीति‍ कोन हएत
कवि ताकि रहल छथि
ई ति‍याग गली-गली
भेटलनि‍ भलहिं केतौ भली
बिनु कविक कविता बनल छै
जीवन हँसी गाबि रहल छै
कहू एहेन के छथि धर्मात्मा?

नै जीवनमे कोनो छंद
नै छथि कोनो महंत
बिनु झाइल मिरदंग
हार नीकलि‍ रहल छै
अभय ताल
जे सुनत से भ
जाएत मालोमाल
कहू एहेन के छथि धर्मात्मा?

बचपन

बचपन ओ सुखद पल
जतए नै कोनो दुखक दल
घत-घटमे भरल ओज बल
ने दुबिधा आ ने चिंता छल
खुगल हवामे स्वतंत्र जीवन
ओ सि‍नेह भरल स्वछंद पल
फँसल केना कतए दल-दल

बचपनक ओ साफ मन
उज्जर धप-धप क रहल छल
ने राग आ ने द्वेष जगल छल
ि‍सनेह पाबि‍ उमंग उमरै छल
अपन परार नै लगि रहल छल
बहति‍ पानि चलैत जीवन
सुन्दर मन फारीछ जीवन छल

खेल-खेल हरिदम खेल
खेल तँ जीवन बनल छल
बनाबी केतेको दिन कागजक नाव
जे पानिमे हेलैत छल
 बैस काठ ओ गाड़ी बनैत छल
बिनु बाटे सरपट दौगै छल
कोनोटा खतरा नै जानि‍ परै छल

नीक अधलाह किछु नै
सभके सभ एक्के रंग लगै छल
छल नै प्रपंच केतौ
चानी सन जीवन चमकै छल
ओ बचपनक सि‍नेहील पल
कि‍छु यादि‍ अछि कि‍छु भुला गेल
जानि‍ नै कतए बिला गेल।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://www.videha.co.in/RajdevMandal.jpgराजदेव मण्‍डल- रूचि‍गर/ बजैत एकान्‍त .http://www.videha.co.in/Ramvilas.jpgरामवि‍लास साहु- सुखल खेत आ भूखल पेट
    .http://www.videha.co.in/RajdevMandal.jpgराजदेव मण्‍डल
   दूटा कवि‍ता

रूचि‍गर

केहेन चीज अहाँक लगत नीक
हमरा भेटत ओहीसँ सीख
दौगैत रहैत अछि‍ तन
अन्वेषण करैत मन
वि‍चरण करैत धरासँ गगन
पैघ पहाड़ आ कण-कण
कतेक बहैत अछि‍ नोर
राति‍-दि‍न आ साँझ-भोर
डुमैत रहै छी अपने भूख
तब देखबै छी अहाँक दुख
कल्पनामे देखैत छी भऽ कऽ मूक
परोसैत छी अहाँ लग सुख
तैयो भऽ जाइत अछि‍ चूक
कहाँ बदलैत अछि‍ अहाँक रूख
आब देखेबाक अछि‍ मृत्यु-चि‍त्र
ओ हएत केहेन वि‍चि‍त्र
ऐ देहकेँ छोड़ए पड़त यौ मि‍त्र
तब बना सकब ओ चि‍त्र
घेरने अछि‍ मोहक कड़ी
बि‍तल जाइत घड़ी-पर-घड़ी
अहीं छी असल प्रहरी
तोड़ू कड़ी तोड़ू कड़ी।




बजैत एकान्‍त

बजैत अछि‍ सुन-मसान
कि‍यो ने दैत अछि‍ कान
गबैत रहैत अछि‍ अनवरत गान
जुग-जुगसँ संचि‍त ज्ञान
चारू भर स्‍वरक घमासान
सुनहट ठाढ़ अपनहि‍ शान
हरक्षण दैत अनुपम दान
बि‍नु शब्‍दक बजैत ज्ञान
स्‍वर सुनैत छी कि‍न्‍तु अछि‍ चुप
केहेन हएत स्‍वरूप
वाणी अछि‍ एतेक मधुर
तँ रूप हेतै केहेन अनूप
बैसल छी एकान्‍तक कोड़मे
भऽ रहल सर्जना मनक पोर-पोरमे
यादि‍ अबैत अछि‍ करम
टूटि‍ रहल बहुतो भरम
सुनि‍ रहल अछि‍ हमर कान
शान्‍ति‍क गुन-गुन गान
बरि‍स रहल सुन-मसान
कऽ रहल छी पावन स्‍नान।
   .
    http://www.videha.co.in/Ramvilas.jpgरामवि‍लास साहु जीक
कवि‍ता
सुखल खेत आ भूखल पेट

सुखल खेत जरैत जजाति‍
खेतक दाररि‍ देख-देख
दरकि‍ करेजा जरैत रहलै
पानि‍ बि‍नु खेत बज्‍जर भेलै
कि‍सानक तकदीर जरलै
की खाए बचैते परान
महगीयो तेतबे छै
पंूजी पतीक हाथे
सरकार वि‍कल छै
छि‍यासठि‍ बर्ख अजादीक भेल
देशक कि‍सान कंगाले अछि‍
भरल नदी पानि‍ बहति‍ रहलै
नै बनलै बान्‍ह सुलीस गेट
केना जेतै खेतमे पानि‍
नै बनलै अखनि‍ धरि‍ नहर
केना उपजतै खेतमे धान
झुट्ठे वयान सरकार करै छै
नै भेलै खेत-वि‍कासक काम
देशक लेल सभ दि‍न दैत रहलै
कि‍सान अपन खून-परान
मुदा आइ धरि‍ नै
सरकार कहि‍यो देलकै धि‍यान
केना हेतै देशक कल्याण
सुखल खेत भूखल पेट
केना बँचतै गरीबक परान।

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http://www.videha.co.in/munnikumarivarma.jpgमुन्नी कामत फगुआ/ आनहर कानुन
फगुआ

सब मिलि‍ करैए हमजोली
कान्ह संग गोपिया
खेल रहल अछि होली।
निला पिला लाल हरा
अछि सभ रंग सुनेहरा
आइ बेरंग नै रहैए कोय
चाहे धोती होय या घाघड़ा।
दादी चाउरक पुआ बनेतै
माय दही आ खीर खियेतै
बाबू देतै आशिष
रंगा-रंग होय सबहक जिनगी
जिबैए सभ लाख बरिस।
ई अवसर नित अबैत रहैए
ई मेल-मिलाप बनल रहैए
नै हइय केकरोसँ झगड़ा
सभकेँ मुबारक ई दिन प्यारा।
आनहर कानुन

देश-देशसँ
एलै अवाज
तैयो नै बदलल
हमर समाज।
नै होइए
एकरा दरद कोनो
नै देखैए ई
कोनो पाप
किएक तँ बानहल अछि
एकरा आँखि‍पर
कारी साँप।
जे डसि‍ रहल अछि
हमर संस्कारकेँ
हमर अच्‍छाइकेँ
आ करा रहल अछि
हमरासँ नीत पाप।

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विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत

. http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी २.http://www.videha.co.in/RajnathMishra.jpgराजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) . http://www.videha.co.in/UmeshMandal2.jpgउमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)
.
http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी


http://www.videha.co.in/APARAJITA1.jpg

.
http://www.videha.co.in/RajnathMishra.jpgराजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )

.
http://www.videha.co.in/UmeshMandal2.jpgउमेश मण्डल

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी  (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )


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विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती  

. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)

मन्त्रद्रष्टा ऋष्यश्रृङ्ग- http://www.videha.co.in/HARISHANKAR_SRIVASTAVA_SHALABHA.jpgहरिशंकर श्रीवास्तवशलभ"- (हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद http://www.videha.co.in/Vinit_Utpal.jpgविनीत उत्पल)
ऐपर गुरु वशिष्ठ गंभीर भऽ कऽ बाजल, -हे राजन! पुत्रेष्ठि यज्ञ कोनो साधारण यज्ञ नै अछि। ई यज्ञ वएह करा सकैत अछि जे ब्रह्मचर्य अवस्थामे शास्त्रमे कहल गेल आठ तरहक मिथुनक दृढ़तासँ त्याग केने हएत। स्त्रीक स्मरण, स्त्रीकेँ लऽ कऽ गप, स्त्रीक संग क्रीड़ा करब, स्त्रीकेँ देखब, स्त्रीसँ नुका कऽ गप करब, स्त्रीसँ भेँट करबाक निश्चय आ संकल्प करब आ स्त्री प्रसंगक गप  करब।4 ऐ आठ तरहक अवगुणसँ जे पूर्णत: रहित हुअए, निष्ठावान ब्रह्मचारी हुअए, ओ अप्पन ब्रह्मचर्य कालमे कोनो गृहस्थक अन्न नै खेने हुअए, वएह ऐ पुत्रेष्ठि यज्ञ करबाबएमे सक्षम अछि। हम अहाँक वंशक राजाक कतेक तरहक अन्न खेने छी। तइसँ ऐ यज्ञक संपादन हम नै कऽ सकैत छी।
महर्षि वशिष्ठ ध्यान लगौलक, फेर आँखि खोललक आ बाजल, पुण्याश्रममे महर्षि कश्यपक पुत्र विभाण्डक ऋषि अछि आ हुनकर पुत्र ऋष्यश्रृंग अप्पन पिताक संग रहि रहल अछि। ओ सभ तरहेँ पुत्रेष्ठि यज्ञ करबाबएमे सक्षम अछि। ओ उक्त शास्त्रोक्त कठोर ब्रह्मचर्यक पालन केने छल। ओ ब्रह्मचर्य कालमे ई जानबे नै केलक जे स्त्री की होइत अछि।
ऐ यज्ञक संपादनार्थ अंग नरेश राजा रोमपादक जमाए ऋष्यश्रृंगकेँ सादर आमंत्रित करबाक निश्चय कएल गेल। रोमपाद राजा दशरथक अभिन्न मित्र छल। ओ नीक कालमे मंत्री आ रानीक संग अप्पन मित्र अंग नरेशक एतए प्रस्थान केलक, जतए ऋष्यश्रृंग अप्पन स्त्री शान्ताक संग निवास करैत छल। प्रज्ज्वलित अग्निक संग तेजस्वी ऋष्यश्रृंग राजा रोमपाद लग विराजमान छल।
गहींर मित्रताक कारण रोमपाद अप्पन मित्रक विधिवत सत्कार केलक आ शास्त्रोक्त विधिक अनुसार पूजन केलक। संगे-संग अप्पन विद्वान जमाएसँ अप्पन अभिन्न मित्रक परिचय करेलक। ऋष्यश्रृंग सेहो राजा दशरथक बड़ सम्मान देलक। राजा दशरथ अंग नरेशक एतए सात-आठ दिन धरि मित्र पाहुन तरहेँ रहि गेल। एकर बाद राजा दशरथ राजा रोमपादकेँ अश्वमेध अनुष्ठान केँ लऽ कऽ अप्पन मनक इच्छा बतौलखिन आ एकर निअमसँ संपादनार्थ ऋष्यश्रृंग आ शान्ताकेँ अयोध्या लऽ जाए लेल अनुमति मांगलक। रोमपाद दुनू गोटेकेँ सहर्ष अयोध्या जेबाक अनुमति दऽ देलक।
रामायणकारक अनुसार, रोमपादक अनुमति लऽ कऽ ऋष्यश्रृंग आ शान्ता महाराज दशरथक संग अयोध्याक लेल प्रस्थान केलक।5 राजा दशरथकेँ विदा करैत काल रोमपाद बड़ भावुक भऽ गेल। दुनू गोटे हाथ जोड़ि कऽ एक-दोसराकेँ छातीसँ लगा कऽ अभिनंदन केलक।
दशरथ अप्पन द्रुतगामी दूतकेँ अप्पन नगरवासी सभकेँ समाद भेजि कऽ सूचित केलक जे विभाण्डक तनय ऋष्यश्रृंग अयोध्या आबि रहल अछि। नगरमे तोरण द्वार बनाओल जाए, एकरा सजाओल जाए। सभ ठाम अगरू धूमक सुवास हेबाक चाही। नगरक सभटा बाट बहारल जाए आ ओकरापर पाइन छींटल जाए, जइसँ ओकरापर कनियोटा गरदा नै रहै। पूरा नगरकेँ ध्वज पताकासँ अलंकृत कऽ देल जाए। राजाक आदेशक पालन भेल। नगरमे शंख, दुन्दुभि आ दोसर वाद्ययंत्र बाजए लागल। बाटक सभटा कठिनाइ केँ बिसुरि कऽ राजा स-दलबल प्रफुल्लित छल। राजा ऋष्यश्रृंगकेँ आगू कऽ नगरमे आएल। ऐ द्विजकुमारक दर्शन कऽ नगरक लोग, कृतार्थ भऽ उठल। सभ कियो पराक्रमी महाराज दशरथक संग ऋष्यश्रृंगकेँ अयोध्यामे आबैत पुष्पवृष्टिसँ स्वागत केलक। राजा अप्पन महान पाहुनकेँ अंत:पुरमे आनि कऽ शास्त्रोक्त विधिसँ पूजा-अर्चना केलक। ओतुक्का स्त्री सभ देवी शान्ताकेँ अप्पन बीच पाबि बड़ खुश छल।6
वाल्मीकीय रामायणक बालकांडक द्वादश सर्गक अनुसार, अंत:पुरमे ऋष्यश्रृंग सपत्नीक रहए लागल। बड़ काल बीत गेल। वसंत ऋतुक आगमन भेल। दशरथ एहन कालमे यज्ञ प्रारंभ करबाक लेल विचार केलक। एकर बाद देवता सन सुकान्ति बला ऋष्यश्रृंगकेँ आगू कर जोड़ि कऽ दशरथ प्रणाम केलक आ अप्पन विमल वंशक परंपराक रक्षाक लेल पुत्र पाबैक निमित्त यज्ञ करबाक लेल हुनका वरण केलक। ऋष्यश्रृंग तथास्तु कहि हुनकर प्रार्थना स्वीकार केलक। ऋषिक आदेशक मुताबिक, यज्ञ सामग्री जमा हुअए लागल, भूमंडलमे भ्रमण करबाक लेल महाराज दशरथक अश्वकेँ छोड़बाक व्यवस्था हुअए लागल, पारंगत आ ब्रह्मवादी ऋषि आ पंडितकेँ बजैलक। सुयज्ञ, वामदेव, जावलि, काश्यप आ वशिष्ठ संग दोसर पंडित सेहो आएल। दशरथ सभ लोकक विधिवत पूजन केलक। पुत्र प्राप्तिक लेल अश्वमेघ यज्ञक अनुष्ठानक गप दोहराएल गेल आ विश्वास व्यक्त कएल गेल जे ऋष्यश्रृंगक प्रभावसँ हुनकर सभटा कामना पूर्ण हएत।
ऋषि सभ राजाक ऐ महान संकल्पक लेल साधुवाद देलक। ऋष्यश्रृंग आ दोसर ब्राह्मण  भविष्यवाणी केलक जे ऐ यज्ञसँ चारिटा पराक्रमी पुत्र प्राप्त हएत। राजा प्रसन्न भेल। मंत्रीकेँ आदेश भेटल जे गुरुजनक आदेशानुसार यज्ञक सामग्री जुटाओल  जाए आ शक्तिशाली वीरक संरक्षणमे यज्ञक अश्वकेँ छोड़ल जाए। अश्वक संग प्रधान ऋत्विज सेहो रहता। सरयूक उत्तर दिसक तटपर यज्ञशालाक निर्माण भेल आ शास्त्रोक्त विधिक अनुसार क्रमश: शांतिकर्म पुण्याह वाचन आदिक विस्तारपूर्वक अनुष्ठान कएल जाए, जइसँ विघ्नक निवारण हुअए। अहाँ सभ कियो एहन साधन प्रस्तुत करू जइसँ ई यज्ञ निर्विघ्न विधिपूर्वक संपन्न भऽ जाए।
मंत्री सभ राजाक आदेशक पालन केलक आ ओइ मुताबिक व्यवस्था सेहो केलक। ऐ तरहेँ एक वर्ष बीत गेल। दोसर वर्ष वसन्तागमन भेल। अयोध्याक आमक गाछी कोइलीक कूँक सँ गूँजि उठल। राजा अश्वमेधक दीक्षा लै लेल गुरु वशिष्ठ कतए पहुँचल। ओ न्यायत: गुरुक अर्चना केलक आ अनुरोध केलक जे शास्त्रविधिसँ ओ ऐ यज्ञकेँ संपन्न कराबथि आ एहन व्यवस्था करथि जे कोनो ब्रह्म राक्षस ऐ मे विघ्न नै उत्पन्न कऽ सकए। दशरथ कहलखिन, -अहाँक बड़ स्नेह हमरापर अछि, अहाँ हमर सुहृदए, हितैषी, गुरु आ परम महान छी। ऐ महान यज्ञक भार अहीं वहन करू। पुलकित भऽ कऽ गुरु वशिष्ठ अप्पन स्वीकृति देलखिन आ कहलखिन, -हे नरोत्तम! हम वएह सभ काज करब जइ लेल अहाँ प्रार्थना केने छी।
तकर बाद, गुरु वशिष्ठ यज्ञ काजमे निपुण आ यज्ञ विषयक शिल्प काजमे कुशल, परम धर्मात्मा, वृद्ध ब्राह्मण, यज्ञ काज खत्म हुअए धरि ओइमे सेवा करए बला सेवक, शिल्पकार, कमार, खधाइ खोदएबला, ज्योतिषी, कारीगर, नट, नचनियाँ, विशुद्ध शास्त्र वेत्ता आ बहुश्रुत पुरुख सभकेँ बजा कऽ हुनका सभसँ कहलक, -अहाँ सभ महाराजाक आज्ञासँ यज्ञकाजक लेल आवश्यक प्रबन्ध करु। जल्दीसँ हजार ईंटा मंगाबियौ। बजाओल गेल राजाक रहैक लेल, हुनका भोजन योग्य आ पीबए आदिक उपकरण युक्त कतेक रास महल बनाओल जाए। ब्राह्मणक लेल आन्हर-पाइनक निवारणमे समर्थ सैकड़ो आवास बनाओल जाए। ऐ तरहेँ पुरवासीक लेल घर आ दूर ठामसँ आएल भूपालक लेल सभ सुविधासँ युक्त महल तैयार कएल जाए। हाथीक लेल हथसाल आ घोड़ा लेल घुड़साल, सामान्य लोकक विश्राम करबाक लेल रैन बसेरा आ दोसर देशक सैनिक लेल छावनी बनाओल जाए। बड़ रास मेहनत करए बला सेवक आ शिल्पी केँ धन आ अन्न दऽ कऽ सम्मानित कएल जाए। सभ अप्पन-अप्पन काजमे लागि गेल। तकर बाद वशिष्ठ मंत्री सुमंतकेँ आदेश देलक जे ऐ धरतीक सभटा धार्मिक राजा आ चारू वर्णक सभटा लोककेँ ऐ यज्ञमे भाग लेबाक लेल आमंत्रित कएल जाए। मिथिलाक नरेश शूरवीर सत्यवादी जनक, देवता सन सुकांतिबला काशी नरेश, महाराज दशरथक ससुर वृद्ध केकेय नरेश, अंग देशक महाधनुर्धर राजा रोमपादक पुत्र सहित कौशल राज भानुमान, मगध राज प्राप्तिज्ञ आदि केँ अपनेसँ जा कऽ सादर सत्कारपूर्वक बजओने आएल। महाराजक आदेश लऽ कऽ पूब देशक नरेश, सिंधु सौवीर आ सुराष्ट्र देश व दक्षिणक नरेशक विशेष दूतसँ निमंत्रण भेजल जाए। निर्धारित दिन विभिन्न राज्यक नरेश महाराज दशरथक लेल बहुमूल्य रत्न भेंट लऽ कऽ अयोध्या जाए लागल। वांछनीय वस्तुक संग सरयूक उत्तरबरिया कातपर यज्ञशालाक तुरंत निर्माण भऽ गेल। लागल एना जे मनक संकल्पसँ ई बनि गेल।
मुनिवर वशिष्ठ आ ऋष्यश्रृंगक आदेशसँ शुभ नक्षत्र बला दिन राजा दशरथ यज्ञक लेल राजम वनसँ निकलल। एकर बाद वशिष्ठ जेहन श्रेष्ठ द्विजवर ऋष्यश्रृंगक नेतृत्वमे यज्ञकार्य शुरू केलक आ तखने राजा दशरथ अप्पन स्त्रीक संग ऋष्यश्रृंगसँ यज्ञक दीक्षा लेलक।7
इम्हर वर्ष पूर्ण होइक संग अश्व भूमंडलक परिक्रमा कऽ वापस घुरि आएल। अश्वमेध यज्ञ शुरू भेल। ऋष्यश्रृंग आदि महर्षि अप्पन अभ्यास कालमे सीखल अक्षर संयुक्त स्वर अ वर्ण सँ संपन्न मंत्रसँ इंद्र आदि श्रेेष्ठ देवता सबहक आह्वान केलक। सभ हुनकर योग्य हविष्यक भाग समर्पित केलक। यज्ञशालामे तीन सए पशु बान्हल गेल छल आ दशरथक ओइ अश्वरत्न केँ सेहो ओतए बान्हल गेल छल। रानी कौशल्या ओइ अश्वक संस्कार कऽ ओकरा तलवारसँ तीन बेर स्पर्श केलक आ धर्म पालन करबाक इच्छासँ ओइ अश्व लग एक राति निवास केलक। सभटा वर्ण द्वारा अश्वक स्पर्शक पश्चात चतुर जितेंद्रिय ऋत्विक विधिसँ अश्वकंदक गूदा निकालि शास्त्रोक्त विधिसँ पकौलक। ओइ गूदाक आहुति सेहो देल गेल। राजा दशरथ अप्पन पापकेँ दूर करबाक लेल ओकर धुआँ सूंघलक। अश्वमेध यज्ञक अंगभूत जे हवनीय पदार्थ छल, ओइ सभक संग सोलह ऋत्विक अग्निमे विधिवत आहुति दिअए लागल।
अश्वमेध यज्ञ पूर्ण भेल। ऋत्विककेँ जे धन दक्षिणामे भेटल, ओ सभटा ओ मुनिवर वशिष्ठ आ ऋष्यश्रृंगकेँ सौंपि देलक। ई दूनू महर्षि न्यायपूर्वक बँटवारा कऽ सभ ब्राह्मणकेँ संतुष्ट केलक। एम्हर दशरथ ऐ उत्तम यज्ञक पुण्यफल प्राप्त कऽ मने मन प्रसन्न भेल। ओ ऋष्यश्रृंगसँ बाजल, -उत्तम व्रतक पालन करएबला मुनीश्वर! आब जे कर्म हमर कुलक परंपराकेँ बढ़बै बला हुअए, ओकर संपादन कएल जाए। ऋष्यश्रृंग राजाक चारिटा यशस्वी पुत्र हेबाक भविष्यवाणी केलक। राजा प्रसन्न भेल आ ऋष्यश्रृंगसँ एकरा लेल पुत्रेष्ठि यज्ञ प्रारंभ करबाक लेल अनुरोध केलक।8 ओ कनी कालक लेल ध्यान लगा अप्पन भावी कर्तव्यक निश्चय केलक। फेर ध्यान भंग भेलापर दशरथसँ बाजल, -राजन! हम अहाँकेँ पुत्र प्राप्तिक लेल अर्थवेदक मंत्रसँ पुत्रेष्ठि यज्ञ करब। वेदोक्ति विधिक अनुसार, अनुष्ठान केलापर ई यज्ञ अवश्य सफल हएत।
ऋष्यश्रृंग अप्पन जुगक महान चिकित्साशास्त्री छल आ शरीर विज्ञानमे हुनकर गहींर पइठ छल। ओ दीर्घकाल धरि आयुर्वेदक सेहो अध्ययन केने छल आ ओइमे अर्हत्व प्राप्त केने छल। ओ राजा दशरथ आ हुनकर तीनू रानीक चिकित्सा शास्त्रीय परीक्षण केलक। ओ ओकरे मुताबिक जड़ी-बूटी आ आयुर्वेदिक गुण संयुक्त समिधा सेहो इकट्ठा केलक।10 परम तेजस्वी ऋष्यश्रृंग पुत्र भेटबाक उद्देश्यसँ पुत्रेष्ठि यज्ञ प्रारंभ केलक। ओ श्रौत विधिक अनुसार, चिकित्सीय गुण युक्त समिधा सभक आहुति अग्निमे देब शुरू केलक। ऐ महान यज्ञमे देवता, सिद्ध, गंधर्व आ महर्षिगण अप्पन अप्पन भाग लै लेल पहुँचल। पापी सभक विनाश आ संतक कल्याणक लेल सभटा देवता यज्ञस्थल पर उपस्थित भेल आ अप्पन भाग प्राप्त कऽ यथेष्ट आशीर्वाद देलक। यज्ञकुंडक आैषधि तैयार भऽ गेल। ई खीरक रूपमे तैयार कएल गेल। प्रज्ज्वलित अग्निक समान ई दिव्यौषधि दैदीप्यमान भऽ रहल छल। ई जम्बूनद नामक सुवर्णसँ बनल बड़ पैघ रास परातमे चांदीक ढक्कनसँ झाँपल छल। आैषषि तैयार हेबाक संग एकर सुगंध सभ दिशामे पसरि गेल। ऋष्यश्रृंग अप्पन सफलतासँ प्रफुल्लित छल। ओ यज्ञाग्निसँ ओइ अमोघ आैषधिसँ भरल पात्रकेँ निकालि महाराज दशरथकेँ देलक आ कहलक, -राजन! अहाँ एकरा ग्रहण करू। राजाक अंत:पुरक स्त्री सभमे हर्षोल्लास भरि गेल, जेना निर्धनकेँ कुबेरक खजाना भेट गेल। राजा ओइ खीरक आधा हिस्सा महारानी कौशल्याकेँ देलक। फेर बचल आध हिस्सा रानी सुमित्राकेँ। फेर दुनूकेँ देलाक बाद जतेक खीर बचल छल ओकर आध हिस्सा रानी कैकेयीकेँ आ हुनका देलाक बाद जे खीरक अवशिष्ट भाग बचल, से चतुर नरेश किछु सोचि-समझ कऽ फेर सुमित्राकेँ दऽ देलक। रानी श्रद्धा आ विश्वासपूर्वक ऐ आैषधि युक्त खीरक सेवन केलक। जल्दीये ओ अलग-अलग गर्भधारण केलक। (देखू परिशिष्ट क)


(क्रमश:)
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