ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह'१३० म अंक १५ मई २०१३ (वर्ष ६ मास ६५ अंक १३०)
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विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन
विदेह
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गौरी-शंकरक
पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
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जगदानन्द झा ‘मनु’- विहनि कथा
ग्राम पोस्ट – हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
गारेन्टी
सुजीतजी मोटर साइकिल ड्राइव करैत पाँछा प्रशांत जीकेँ
बैसोने | मिशर
जीक दलानपर रुक्ला | आँगा-आँगा सुजीतजी
हुनक पाछू प्रशांतजी, मिशरजी
लग जा सुमितजी, “नमस्कार
मिशरजी, हम कहने
रही ने आयुर्वेदसँ समंधित,
माँजीक गठियाक दवाइ |
हिनकासँ मिलु ई प्रशांतजी,
हमर सीनियर छथि | अपनेक
सभ गप्पक उचीत उत्तर देता |
”मिशरजी, “नमस्कार- नमस्कार (कुर्सी दिस
इशारा कए) बैसल
जाउ |”
तीनु गोटा कुर्सी ग्रहण कएला, तदुपरांत मिशरजी, “हाँ कहियौ |”
प्रशांतजी, “हम एकगोट आयुर्वेदिक कम्पनीसँ जुड़ल छी आ हमरा सभ लग किछु
असाध्य रोग जेना मधुमेह,
गठिया, बी०पी०, हार्ड प्रोब्लेम
आदिक सफल उपचार अछि | सुजीत
भाइसँ ज्ञात भेल अपनेक माए गठिया---“
मिशरजी,
प्रशांत जीक गप्प बिच्चेमे रोकैत, “हाँ,
से सभ ठीके पहिले कहु गारेन्टी छैक |”
प्रशांतजी, “गारेन्टी ! गारेन्टी कोना कहु मुदा ठीक होबाक सए टका विस्वास छैक |”
मिशरजी, “हाँ इहे,
जखन गारेन्टीए नहि तखन हम अपनेक गप्प कोना मानव |”
प्रशांतजी, “सुनू-सुनू,
हमर सभक पद्धति सुनला वाद अहाँ अपनो बुझबै आ मानबै जे गठियाक उपचार संभव छैक |”
मिशरजी, “कोना मानू, अपने गारेन्टी देबै तहन ने मानब | आइ बिस बरखसँ
कोनो डॉक्टर कोनो अस्पतालसँ ठीक नहि भेलै, अहुँ गारेन्टी नहि लए रहल छी आ अहीँ की दुनियाँक कोनो
डॉक्टर गारेन्टी नहि लएत तखन कोना मानू |”
प्रशांतजी, “देखू ई गप्प ठीके अछि जे दुनियाँक कोनो डॉक्टर गारेन्टी नहि
लेत किएक तँ दुनियाँक कोनो डॉक्टर लग एकर इलाह नहि छैक | गठिया की भेलै ?.... अपन
ठेहुनक दुनू हड्डीकेँ जोड़क बीचमे एकटा माँसुक टुकड़ा होएय छैक जेकरा कार्टिलेज कहल
जाइ छैक आ ओहि कार्टिलेजकेँ ठीक आ तन्दुरुस्त राखैक लेल, हम जे भोजन खाए
छी ओहि भोजनसँ एकटा ग्रीस जकाँ चिपचिपा पदार्थ निकलै छैक जेकरा साइनोवियस फ्लूड
कहल जाइ छैक | भोजनमे
पोष्टिक तत्वक कमी, प्रदुषण, बएसकेँ बेसी
भेलासँ, आन आन
कतेको कारणे अपन देहमे साइनोवियस फ्लूड बननाइ बन भए जाइ छै | जखने साइनोवियस
फ्लूड अर्थात चिपचिपा पदार्थ ग्रीस खत्म भेल तखने दुनू हड्डीक बिचमे दबा पिचा कए
मासुक टुकड़ा अर्थात कार्टिलेज कइट जाइ छैक | दुनू हड्डीक बिचमे गएप भए जाइ छैक आ दुनू हड्डीमे हड्डी
घसेलासँ असहाय दर्द होइत छैक |
कतेक गोटेकेँ तँ चलला उत्तर हड्डीमे हड्डी घसेलासँ आवाज सेहो होइत छै | आब देखियौ
एहिठाम डॉक्टर कहैत अछि जे साइनोवियस फ्लूड अर्थात चिपचिपा पधार्थ ग्रीस बननाइ बंद
तँ बंद एकर कोनो इलाज नहि,
बेसीसँ बेसी जीवन भरि दर्द निवारक गोटी खाए कए दर्दसँ बँचि सकै छी | बेसी दर्द
निवारक दवाई खेलासँ हार्ड आ किडनीपर से खराबअसर | आब देखियौ, हमरा सभ लग अछि समुद्री जड़ी बूटीसँ
निर्मित -------, आ जिनक शरीरमे
एक्को आना साइनोवियस फ्लूड बचल अछि एकर नियमित सेवन कएला बाद हुनक शरीरमे ई
साइनोवियस फ्लूड बनेनाइ शुरू करत आ जखने साइनोवियस फ्लूड बननाइ शुरू होएत, मासुक टुकड़ा
अर्थात कार्टिलेज पुनः मरम्मत भेनाइ आरम्भ भए जाएत | शरीरमे वर्तमान साइनोवियस फ्लूडकेँ
उपस्थित मात्राक हिसाबे ६ महिनासँ एक सबा बरखक अधिकतम सेवन कएला बाद कोनो व्यक्ति
अपन पएरपर चलएटा नहि दौड़ए लगता |”
एतेक बड़का गठियापर व्याख्यान सुनि मिशरजी चुप्प, चुप्पी तोरैत, “हूँ ! सभ ठीक मुदा
गारेन्टी....”
प्रशांतजी, “अच्छा लिअ हम अहाँक माए केर ठीक होबैक गारेन्टी लै छी, अहाँक माए हमर
माए | अहाँ एक
सबा बरख हमर दवाइ दियौन,
ठीक नहि भेली तँ पाइ वापिस |”
आब तँ मिशरजीक बोल बन, जेबीसँ मोबाईल निकाइल बामे हाथे कएकटा न० लगेला बाद, “यौ सभ ठीक, आब तँ अहाँ
गारेन्टीयो लए लेलहुँ मुदा एखन हमर छोटका भाइ फोन नहि उठा रहल अछि बादमे ओकरासँ
गप्प कएला बाद हम कहब किएक तँ गप्प एक दू महिनाक नहि छै एक सबा बरखक छै |”
एतवामे दलानक कोन्टासँ मिशरजीकेँ कनियाँक चूड़ीकेँ खनखनाइक
आवाज एलन्हि | मिशरजी
घुमि कए देखला उत्तर प्रशांतजीसँ, “ कनीक अबै छी |” कहैत उठि कनियाँ दिस चलि गेला |
मिशर जीसँ हुनक कनियाँ, “हम सभटा सुनलहुँ, ई तँ ठीके अचूक
इलाज छै आ अहाँ बुझिते छीऐ जे हमरो माए गठियासँ परेसान छै | अहाँ अपन माए
लेल ली की नै हमरा नै बुझल मुदा काइल्ह चिन्टू गाम जा रहल छै, ६ महिनाक दवाइ
लए कऽ चिन्टू दिया हमरा माए लेल पठा दियौ बांकी ६ महिना बाद फेरो कियो गाम जेबे
करतै तखन |”
कनियाँक गप्प सुनि मिशरजी वापस आबि कुर्सीपर बैसैत, “ठीक सर, आब अपने एतेक
कहैत छी तँ ६ महिनाक दवाइ हमरा दए दिअ |”
प्रशांतजी, “ठीक छैक परशु सुजीतजी अहाँकेँ दए देता |”
मिशरजी, “परशु नहि हमरा काइल्ह भोरे चाही किएक तँ ई हमर माए लेल नहि
हमर सासु लेल छन्हि आ काइल्ह भोरे १० बजे हमर सार चिन्टू गाम जा रहल छथि | तेँ तँ एक्के
बेर ६ महीनाक दवाइ मंगा रहल छी |”
प्रशांतजी, “कोनो बात नै काइल्ह भोरे ९ बजे तक मिल जाएत | सुजीत जीकेँ पाइ
दए दियौन्ह मुदा हाँ गएरेन्टी नहि
भेटत |”
मिशरजी, “किएक |”
प्रशांतजी, “ई गारेन्टी अहाँक माए लेल छल, किएक तँ अहाँक माए हमर माए दोसर ओ हमर
आँखिक सोझाँ छथि हुनका हम देखो सकै छीएन्हि, ठीक भेली की नहि मुदा अहाँक सासु... “
मिशर जी, जेबीसँ
पाइ निकालि कए दैत, “यौ
प्रशांतजी अहुँ की गप्प करै छी अहाँ देलहुँ हमरा बिस्वाश भऽ गेल ई पाइ राखू मुदा
हाँ भोरे ९ बजे धरि दबाइ भेट जेबा चाही नहि तँ अपने बुझिते छियै कनियाँ सार सासु |”
प्रशांतजी, “हाँ अवस्य, (उठैत) अच्छा आब आज्ञा दिअ |”
दुनू गोटे बिदा भेला | मोटर साईकिलपर बैसला बाद बैसले- बैसल सुजीतजी, “प्रशांत भाइ
देखलियैन्ह, माए लेल
गारेन्टी चाही भाइ सभक सहमति चाही आ सासु नामे चट्टे ६ महिनाक पाइ निकैल गेलन्हि |”
*****
जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
४ टा गजल
1
हम छी सीता आ राम अहां छी
हमरे ले’ बदलाम अहां छी ।
मन्दिर-मन्दिर कथी ले’ दौडू
हमर त चारू धाम अहां छी ।
ड’र कथी के होयत हमरा
स्ंाग-संग आठो याम अहां छी ।
आब दौडि नै
चलू बाट पर
गाछक पाकल आम अहां छी ।
ताकथि रामक बाट अहिल्या
कोसीक कातक गाम अहां छी ।
ककरो गरदनि के माला छी
ककरो लेल खराम
अहां छी ।
आइ अहांकें देखल जी भरि
मानल पूर्ण विराम अहां छी ।
सरल वार्णिक बहर,वर्ण-11
2
माछ दही केरा केर भार थिक गजल
ककरो ले’महफा कहार थिक गजल ।
ककरो ले’ पोखरि इनार आ कि मन्दिर
ककरो ले’ हाट आ बजार थिक गजल ।
जिनगीमे कांट-कूस कांटहिमे जिनगी
जिनगीमे जंगल, पहाड थिक गजल ।
जिनगीमे साओन आ साओनमे बादरि
बादरिके रिमझिम फुहार छी गजल
।
ककरो ले’
रातिक चकमक इजोरिया
ककरो ले’ गुजगुज अन्हार छी गजल ।
दीयाबाती छठि जूडशीतल आ फगुआ
जिनगीमे पावनि-तिहार थिक गजल ।
ककरो शुभकामना, करूणा आ ममता
ककरो सिनेह आ दुलार थिक गजल ।
ककरो ले’ वरदान हंसी आ ठहक्काक
ककरो ले’ नोरक टघार थिक गजल ।
ककरो ले’ सपना और ककरो ले’ नारा
हमरा ले’ मुक्तिक विचार थिक गजल ।
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-15
3
चान रहल चलिते अहिना
बीतल युग तकिते अहिना ।
सुन्दर गीत अहां बनि गेलौं
रहलौं हम गबिते अहिना ।
वैह करू जे
हृदय कहैए
लोक रहत बजिते अहिना ।
भोर अबैए चुप्पे सभदिन
सांझ रहल ढरिते अहिना ।
भीजि गेल पन्ना अखवारक
नोर रहल चुबिते अहिना ।
अपनहि सोझां ठाढ भेल छी
हारि गेलहुं लड़िते अहिना ।
फूलक गाछ निहारै छी हम
लाज होइछ छुबिते अहिना ।
एहि डारि सं ओहि डारि पर
लोक रहल उडिते अहिना ।
सरल वार्णिक बहर,वर्ण-11
4
लोक जतेक छथि दुनियामे ।
स’भ मगन छथि अपनामे ।
दारू पीबि अबै छथि अपने
गलती तकै छथि कनियामे ।
हम अहां त कटलौं जिनगी
भोज, भजन और करजामे ।
सीता बेटी,
जमाए राम छथि
कथीक कमी अछि मिथिलामे ।
गौआं- घरूआ परेशान अछि
व’र और कनियां महफामे ।
बूढी के दिन-राति बितै छनि
उलहन आ किछु फकरामे ।
सोचू की अन्तर अछि बांचल
विश्वविद्यालय आ बनियांमे ।
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-11
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली
अनुवाद डॉ. शम्भु
कुमार सिंह द्वारा
पाखलो
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
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3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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