पाखलो (कोंकणी उपन्यास)- तुकाराम
रामा शेट- मैथिली
अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह
एक
आइ रबि छैक। हमर निन्न कने देरी सँ खुजल।
हम अपन कम्मल सुलूकेँ ओढ़ा देलिऐक। ओछाओन पर पड़ल-पड़ल हमर नजरि देवाल पर गेल।
गोविन्द अपना संगहि भगवानक दुनू फोटो ल’ गेल छल। चिक्कनि माटिसँ
ढौरल देवाल पर आब कोनो फोटो नहि रहैक। ओ एकदम सुन्न बुझाइक।
हम ओछाओने पर पड़ल-पड़ल सोचैत रही।
गोविन्द नोकरी करबाक लेल पणजी शहरमे छल। बाबूजीक मुइलाक पश्चात् ओ अपन मायकेँ अपना
संगहि पणजी ल’ गेल छल। हम दुनू गोटे एहि घरमे रहैत रही। हम आ हमर भगिनी।
हम
उठलहुँ, खिड़की खोललहुँ, आ दरबाजा
खोलहि वला रही कि एतबहिमे आलेसक आवाज सुन’ मे आएल।
“यौ
पाखलो! एखन धरि सुतले छी? पाखल्या... यौ
पाखल्या.....”
बिना किछु बजनहि हम दरबाजा खोलि देलहुँ।
हम दरबाजा बन्न केलहुँ आ एकटा बासन ल’ कए लगीचक होटल जएबाक लेल
ओकरा पाछू-पाछू चुपचाप चलि देलहुँ।
आलेस हमर नेनपनक मीत थिक। हमसभ
एखनहुँ नीक मीता छी। एक्कहि ठाम काज करैत छी। ओहो ड्राइवर आ हमहूँ। एक्कहि
कम्पनीमे नोकरी करैत छी आ एक्कहि रंगक ट्रक चलबैत छी।
हमरा गुमसुम चलैत देखि ओ बाजल—
“औ जी! कोन सोचमे डूबल छी?
“किछुओ तँ नहि? चेतना
अएलाक बाद हम कहलहुँ।
“किछु कोना नहि? ओहिना बाजि रहल छी की? कने सोचू, जँ अहाँक बियाह भ’ जाय तँ भगिनीकेँ देख’ वाली किओ तँ भ’ जेतीह?”
एहि बात पर हँसैत हम पूछि देलिऐक—
“के
देत हमरा अपन बेटी?” ई बात सुनितहि ओ जोर-जोरसँ हँसए लागल।
ओकर हँसी रोकबाक लेल आ किछु आर बाजबाक लेल हम ओकरा सँ पूछलहुँ—
“ऐं
यौ आलेस, अहाँक पासपोर्ट बनि गेल की?”
“हँ।”
“तखन दुबई कहिया जा रहल छी?” हम पुछलियनि।
“अगिला सप्ताह, कपेल (छोट गिरिजाघर)क
प्रार्थनोत्सव केर बाद।”
“कपेलक प्रार्थनोत्सव केर बाद?”
“हँ, बरु ओहि दिन।”
“ओहि दिन किऐक? उत्सवक बाद चलि जाएब…।”
“नहि,
असलमे ओहि दिन हमर मीत जा रहल अछि, एहि लेल हम
ओकरहि संगे जा चाहैत छी।”
“तखन तँ अहाँकेँ हमरा कम्पनीक नोकरी छोड़’ पड़त।”
“एहन भिखमंगा नोकरी करबो के करए? ओहुना भारतमे रहि कए
के नीक पाइ कमा सकैत अछि? ओतए मजूरीयो तँ बेसी छैक?”
“तखन अहाँक विदेश जायब एकदम पक्का ने?”
“हँ”, एतबा कहि ओ अपन पैन्टक बेल्ट आर कसय
लागल।
“विदेश जुनि जाउ।”, हम पछिला किछु दिनसँ
आलेससँ कहैत रहिऐक।
“हमरा
बाटमे अड़ँगा जुनि लगाउ।”, ओहि समय ओ हमरा कहलनि। हम चुपचाप
बाट चलैत रहलहुँ। जखन गोविन्द गाम छोड़ि पणजी शहर गेल छलाह, तखन
हमरा बड़ खराप लागल छल, मुदा आब तँ आलेस अपन गाम आ देश छोड़ि
परदेस जा रहल छल, आइ हमरा कनेको खराप नहि लागि रहल अछि।
हम दुनू गोटे
होटल पहुँचलहुँ। भीतर जयतहि सभ किओ हमरा घूरि-घूरि कए देखय लागल। हम मोनहि-मोन
सोचलहुँ, “बुझाइत अछि जे ओकरा सभक नजरि हमर कैल
टनटन केश आ कैल रोइयाँ पर चलि गेल छैक, हमर लहसुनियाँ आँखि,
उज्जर चाम आ गसगर देह…”
“पाखलो, अहाँक बासनमे दूध दी, आकि चाह?” होटलवला हमरासँ पूछलक। हम भरि बासन चाह ल’ लेलहुँ।
दू टा बड़का पाँवरोटी आ एकटा कांकण (वलयाकार पाँवरोटी) लेलहुँ। आलेस अपन
मीतक संग दुबई जाइवला बात करैत रहल। ओकर मीत ओतएसँ ओकरा लेल कोनो विदेशी समान लएबा
लेल कहैत रहैक। विदेश जयबासँ संबंधित बात करएवला आलेसकेँ छोड़ि हम अपना घरक बाट
लेलहुँ।
पड़ोसक
रुक्मिणी मौसी हमरा घर आयल छलीह। ओ सुलूकेँ उठा कए मुँह धोबाक लेल कहलथि आ ओकरा
छींटगर लाल फ्रॉक पहिरैलथि। हमहुँ अपन हाथ-मुँह धो लेलहुँ। दू टा गिलासमे चाह
ढ़ारलहुँ आ रुक्मिणी मौसीकेँ चाह पीबाक लेल पूछलियनि,
“अहाँकेँ चाह चाही की?”
“नहि
बाउ! हम एखनहि घरसँ चाह पीबि कए आएल छी, ओहुना हम होटलक चाह
नहि पीबैत छी।” रुक्मिणी मौसीक एहि जबाब पर हम चुप भ’ गेलहुँ। हम सुलूकेँ बजेलहुँ। ओ थपड़ी पाड़ैत हमरा लग आयलि आ पूछ’ लागलि, “मामा आइ रबि छियैक ने?
आइ तँ अहाँ काज पर नहि जाएब?”हम ‘हँ’ कहि अपन माथ डोलौलहुँ। “मौसी
आइ अहाँ हमरा अपना ओहिठाम नहि ल’ जाएब। आइ हम एतहि रहब…मामाक संगे।” ओ मौसीसँ बाजलि।
“ठीक छैक दाइ.....आइ हम अहाँकेँ नहि ल’ जाएब।” हम दुनू गोटा चाह पीबैते रही तावत रुक्मिणी
मौसी अपन डाँरक साड़ी सम्हारैत घरक बरतन-बासन धोबाक लेल चलि गेलीह।
सुलूक बाबूजी ओकरा सम्हारबाक लेल
तैयार नहि रहथि। ओहि समय ओ मात्र डेढ़ बरखक छलीह। नीक जकाँ बाजियो नहि होइक। केवल
दूई चारि शब्दहि बाजि सकैत छलीह। आब तँ ओ साढ़े तीन बरखक भ’ गेल अछि, मुदा देखबामे पाँच-साढ़े पाँच बरखक बुझाइत
छलीह। गोर-नार चेहरा! हम ओकरा माथ पर अपन हाथ फेरलहुँ।
मोम-सन नरम केश आ लहसुनियाँ आँखि! हम ओकरा आँखिमे देखलहुँ,
आ ओ हमरा आँखिमे देखलक। ओ अपन आँखि पैघ कए लेलक। ओकर लहसुनियाँ आँखिमे
एक्कहि संग कैकटा दृश्य उभरि गेल।
एहन
बुझाइत छल जेना ओ किछु पूछए चाहैत छलीह! हमरा कने आश्चर्य भेल।
“अहाँक लहसुनियाँ आँखिसँ हमर कोनो पुरान संबंध अछि!” हमर नजरि ओकर गुलाबी केश पर गेल। ने जानि किएक ओकर गोर-नार चाम, गुलाबी केश देखि हमरा एहन बुझाएल जेना पूरा आकाश मेघसँ आच्छादित भ’
गेल होअए, ठीक तहिना हमर मोन अतीतक स्मरणसँ
भरि गेल…। ताधरि रुक्मिणी मौसी घरक काज पूरा क’ कए अपन घर जाहि पर रहथि, कि हम सुलूकेँ हुनका संगहि
ल’ जयबाक लेल कहलियनि।
“हम नहि जायब।” सुलू अपन माथ डोला कए जबाब देलक।
“नहि,
हमरा काज पर जयबाक अछि, अहाँ मौसीक संग चलि
जाउ। दूपहरमे हम जल्दीए आबि अहाँकेँ ल’ आएब।” एतबा कहि हम सुलूकेँ समझएबाक प्रयास कएलहुँ।
सुलू
कानय लागलीह, मुदा पछाति जा कए ओ मौसीक संगे जयबाक लेल तैयार
भ’ गेलीह। रुक्मिणी मौसी सुलूकेँ ल’ कए
चलि गेलीह। हम दरबाजा बन्न क’ लेलहुँ। हमरा दिमागमे आयल सभटा
पुरान स्मृति एकटा गरज आ चमक केर संगहि बिखरि गेल! बुझू हम
अपना आपकेँ पूर्ण रुपेण ओकरहिंमे ताक’ लागलहुँ…. अपन पहिचानक खोज करय लागलहुँ…।
दू
गोविन्दक
दादी द्वारा कहल गेल खिस्सा एखन धरि पाखलो केँ स्मरण छलनि। शाली आ सोनू दुनू
भाय-बहिन रहथि। गामक सीमान पर हुनक घर छलनि आ अपन किछु खेती-बारी सेहो। ओ अपनहुँ
खेती-बारी करैत छल आ दोसरोक खेतमे काज करबाक लेल चलि जाइत छल। एकर अतिरिक्त ओ
गरमीमे मजूरीयोक काज करैत छल।
एकदिन शाली लकड़ी काटबाक लेल जंगल गेल छलीह।
कुमारि शालीक संग तीन टा आर स्त्री लोकनि छलीह। आन दिन
जकाँ ओ सभ लकड़ी काटि कए ओकर बोझ सेहो बना नेने रहथि; तखनहि हुनका सभकेँ सीटीक आवाज सुनबामे अयलनि। ओ चारू गोटे डरि गेलीह। ताहि
दिन पाखले (पुर्तगाली फिरंगी) जंगलमे शिकार करबाक लेल अबैत छलाह, ओ सभ एहन सुनने छलीह। फिरंगी सभक मनमानी आ स्त्रीगण पर कयल गेल अत्याचारसँ
ओ सभ परिचित छलीह। ओहि सीटीक आवाज सुनि कए ओकरा सभक तँ जेना होशे-हवास गुम भ’ गेल।
ओ सभ बहुत घबरा गेलीह। तावत हाथमे बंदूक नेने तीनटा पाखले ओतए पहुँचि गेल। बाघ केँ
सोझाँ आबि गेलाक पश्चात् जेना लोक लंक ल’ लैत अछि ठीक ओहिना
ओ सभ लकड़ीक बोझ छोड़ि भागल। तीनू पाखले ओकरा सभक पीछा करय लागल। अपन जान बचयबाक
लेल भाग’ वाली शाली गिरैत-पड़ैत बहुत थाकि गेल छलीह। आब आर
बेसी गतिएँ दौड़ब ओकरा बुता केर बात नहि रहि गेल छल। ओ पाछू ताकलक, तँ देखलक जे एकटा फिरंगी अपन कन्हा पर बंदूक आ छाती पर एकटा तमगा लगौने
मिलिट्री वेशभूषामे ओकरहि पाछू दौड़ल आबि रहल छल। ओहि पाखलोकेँ देखि शाली अपन जान
बचएबाक लेल अपन अंतिम शक्ति लगा कए दौड़लीह। ओ सभटा स्त्रीगणकेँ पाछू छोड़ैत आर
जी-जानसँ दौड़’ लागलीह। बहुत बेसी दौड़बाक कारणेँ आब ओ थाकि
कए चकनाचूर भ’ गेल छलीह। जोर-जोरसँ उपर नीचाँ करैत ओकर छाती
आब फाटि कए बाहर निकलि जेतैक, ओकरा एहने बुझाब’ लागलैक। ओकर दौड़बाक गति मंद होम’ लागलैक आ एतबहिमे
ओ पाखलो ओकरा लगीच पहुँचि गेल। लगीचक आन-आन स्त्रीगणकेँ छोड़ि ओ पाखलो शालिएक दिस
बढ़ल आ अंततः ओ शालीकेँ अपन बाँहिमे कसि लेलक।
एतबहिमे
पाछूसँ दू टा आर पाखले ओतए पहुँचि गेल। ओहो सभ शालीक दिस अपन हाथ बढ़ौलक, मुदा ओ पाखलो ओहि दुनू पाखलेकेँ पुर्तगाली भाषामे किछु कहलकैक। ई सुनि ओ
दुनू पाछू हटल आ आगू भागए वाली स्त्री सभक पीछा करए लागल।
पाखलोक बाँहिमे शालीक साँस फूल’ लागलैक आ ओकर वाक् सेहो बन्न भ’ गेलैक। ओहि फिरंगीक
देहमे शैतान आबि गेल छलैक!
शालीकेँ
होस आबि गेलैक। एखन धरि साँझ परि गेल रहैक। पूरा जंगलमे अन्हार व्याप्त भ’ गेल रहैक।
एहि
अन्हारकेँ देखि शालीकेँ बुझाइक जे जेना फेर ओकर दम निकलि जेतैक। ओकरा देह पर
कोनोटा नूआ नहि रहैक, मुदा ओकरा देह पर किछु फाटल-चिटल नूआ
राखि देल गेल रहैक।
ओकरा
माथक नीचाँ कोनो कड़गर चीज रहैक, मुदा की? से पता नहि चलि सकलैक। ओ जड़वत भ’ गेलीह। ओकर करेज
धक-धक करैत रहैक, देहक पोर-पोरमे दरद होइत रहैक। ओ जतय कतहुँ
अपन हाथ रखैक ओकरा सूखल खून हाथ लागैक। ओ बहुत डरि गेल छलीह, मुदा कानि नहि सकैत छलीह।
ओ
उठि कए बैसि गेलीह; तखने अकस्मात् टॉर्चक इजोत भेलैक। ओकर
इजोत ओकरा देह पर पड़लैक त’ ओकर आँखि चोन्हिया गेलैक। छन
भरिक लेल अपन आँखि बन्न क’ कए फेर खोललक त’ देखलक जे वैह पाखलो ओकरा लगीच आबि रहल छलैक। आन दूटा पाखलो जतए ठाढ़ रहैक
ओत्तहि रहल। पछाति जा कए ओ दुनू ओहि टॉर्चक इजोतमे आगू बढ़ि गेल।
शाली दिस आबि रहल पाखलो नांगटे देह छल। ओ
फेर डरसँ सिहरि गेलीह। ओ फटलका नूआ-फट्टा ल' कए अपना छातीकेँ झाँपैत
ठाढ़ हेबाक प्रयास करए लागलीह, मुदा टूटल गाछ जकाँ धरती पर
गिर गेलीह। ताधरि ओ पाखलो शालीकेँ झट दए अपन हाथेँ पकड़ि लेलक। ओ पाखलो शालीक देहक
नीचाँ ओछाओल गेल कपड़ा उठा लेलक। शालीक माथक नीचाँ राखल टोपी शालीक माथ पर राखि ओ
जोर-जोरसँ हँसय लागल। शालीक घबराहटि बढिते जा रहल छलैक। ओ डरेँ थरथर काँपय लागलीह।
ओकरा बुझेलैक जे एकटा बड़का अजगर खूब पैघ मुँह बौने ओकरा अपन ग्रास बना लेतैक। ओ
जोरसँ चिकरलीह, मुदा ओकर आवाज ओकरा मुँहसँ नहि निकलि सकल।
ओ
फेरसँ शालीकेँ चुम्मा-चाटी करब सुरह क’ देलकैक आ ओकरा अपन
बाँहिमे कसि लेलकैक।
ओहि
अन्हार घुप्प जंगलमे ओ अजगर सरिपहुँ ओकरा अपना काबूमे क’ लेलकैक।
झार-झंखार आ पात सभसँ अजीब तरहेँ आवाज आब’ लागलैक।
·
साँझ पड़तहि ई बात सौंसे
गाममे पसरि गेलैक। सीता कहैत छलीह, जे कोना ओ पाखलोक चंगुलसँ
बाँचि गेलीह। शाणूक घरनी बतबैत छलीह जे कोना पाखलो कुमारि शालीकेँ उठा कए भागि गेल
ओ ओकर इज्जति लूटि लेलक। शालीकेँ तँ पाखलो नोचि-चोथि नेने हेतैक, ई सभ सोचि-सोचि आन सभ लोक ओकरा प्रति अपन दया भाव देखबैत रहैक।
“पाखलो शालीक शीलभंग क’ देलकैक।” ई बात सौंसे गाममे आगिक भांति पसरि गेलैक।
ओकर भाय जे नोकरीसँ घर घुरैत रहैक ओकरहुँ ई बात बुझनामे आबि गेलैक। ओ गोस्सासँ लाल
भ’ गेलैक, संगहि डरि सेहो गेलैक। ओकरा
हाथमे कुड़हरि रहैक जकरा ओ अपन कन्हा पर राखि लेलक।
“एहि कुड़हरिसँ जँ हम ओहि
पाखलोकेँ जित्ते नहि काटि देलियनि तँ हमरहुँ नाम नहि।” ओ
बेर-बेर यैह शब्द दोहराबैत रहैक। शालीकेँ ताक’ जएबा लेल ओ
कतेको लोकसँ मिनती केलक मुदा किओ ओहि अन्हार जंगलमे जएबा लेल किएक तैयार होइतैक? ओ एकटा लालटेम जरौलक आ एसगरे चलि देलक। लोक सभ ओकरा पागल कहए लागलैक। “पाखलो अहाँकेँ गोली मारि देत।” ई कहि लोक-सभ ओकरा
डरएबाक प्रयास केलकैक मुदा ओ अपन जिद पर अड़ल रहल। ओ एसगरे चलि देलक, तखने दादी सेहो ओकरा संगे जएबाक लेल तैयार भ' गेलैक।
दादी कार्रेर (बस) क चालक
रहैक। शकल-सूरतमे ओ सोनूएँ-सन रहैक। दुनू युवा जएबाक लेल तैयार भ’ गेल। दादी शालीक कानमे किछु कहलकैक। ओ दुनू पातोलेक बाटे जंगल नहि जा कए
सीधे गामक पुलिस स्टेशन दिस चलि देलक। एहन देखि गामक किछु आर बूढ़ आ जुआन सभ ओकरा
संग भ’ गेलैक। सब किओ पुलिस-स्टेशन पहुँचि गेल। दादी
पुलिस-स्टेशनक कैब, (पुर्तगाली
पुलिस अधिकारी) देसाई साहेबकेँ शोर पारलकैक। ओ दरबज्जा नहि खोलि खिड़की
खोललक आ ओतहिसँ बाहरक दृश्य देखलक।
“पाखलो
भीतरमे छैक की?” दादी कान्स्टेबलसँ पुछलकैक।
“नहि।” साधारण भेषमे कान्स्टेबल कहलकैक।
“तखन गेलैक कत”? दादी फेर पुछलकैक।
“कार्मोक
प्रधान आ हुनक दूई टा संगी भोरे-भोर शिकार पर गेल छथि, एखन
धरि नहि आएल छथि। हुनका पणजी शहर सेहो जेबाक छनि, एहिलेल आब
ओ काल्हिए औताह।” कान्स्टेबल कहलकैक।
“साँचे?”
“हँ, साँचे”, देवकीकृष्ण
भगवानक किरिया। कान्स्टेबल देसाई कहलकैक।
नहि,
नहि ओ झूठ बाजि रहल अछि। हमरा सभकेँ पुलिस स्टेशनक भीतर जा कए
देखबाक चाही।
“पहिने
दरबज्जा खोलू, हमरा सभकेँ देखि कए पाखलो भीतरे गुबदी मारि
देने हैत।” सोनू जोरसँ चिकड़ि कए कहलक आ अपन कुड़हरि नचब’
लागल।
जाउ! जाउ! बन्न करू अपन ई नाटक। कान्स्टेबल गोस्सासँ कहलकैक।
“एखन
जँ अहाँक बहिनक इज्जति पाखलो लूटि नेने रहितए तँ अहाँ कि एहिना चुप बैसि रहितहुँ?”
सोनू गोस्सासँ बाजल।
“आब
अहाँ किछु बेसिए बाजए लागलहुँ अछि, एहिसँ बेसी जँ किछु
बाजलहुँ तँ हमरा बन्दूक निकालए पड़त।”
“अहाँ
एना किएक बाजि रहल छी कॉन्स्टेबल?” दादी बीचहिमे टोकलक। कारी शीशमक लकड़ी सन
देहवला दादी कोयला जकाँ गरम भ’ गेल।
“अहाँ
कि कोनो बाहरी लोक छी? फिरंगीक पेटपोस्सा, अपन आ आनक कोनहुँ गरैन नहि? एहन-एहन केँ तँ पाखलोएक
संग भगा देबाक चाही।”
“हाँ साँचे!” एतबा कहि सभ लोक हँ मे हँ
मिलेलकैक।
नहि,
नहि हमरा सभकेँ अहाँक बात पर भरोस नहि अछि। हमरा सभकेँ देखए दिअ,
पाखलो निश्चिते भीतर दुबकल अछि। एतबा कहि सोनू भीतर जएबाक जिद करए
लागल।
“नहि, नहि एहन बात नहि छैक। जँ एहन रहतैक तँ अहाँ सभ
एखन धरि पड़ा गेल रहितौं। पाखलो सँ अहाँ सभकेँ गोली खाए पड़ितए। अहाँ सभकेँ जँ
एखनहुँ विश्वास नहि होइत अछि तँ भीतर आबि जाउ मुदा जल्दीए बहरा जाएब।”
सभ
किओ पुलिस स्टेशनक भीतर ढुकि गेल। ओतए तीनटा पुलिसक अतिरिक्त किओ नहि रहैक। एक
कान्स्टेबल देसाई, दोसर नायक कासीम आ तेसर धोणू पुलिस।
सोनू आ दादी,
दुनू शालीकेँ ताकबाक लेल पातोलेक जंगल दिस चलि देलक। सोनू शालीक नाम ल’ ल’ कए चिकड़’ लागल, मुदा ओकरा कोनो जबाब नहि भेटलैक। जंगलमे भालू सभ कानैत रहैक। चारू दिस
कीड़ा-मकोड़ाक आबाज अन्हार आ सन्नाहटि पसरल रहैक। दुनूगोटे राति भरि जंगलक खाक
छानैत रहल मुदा ओकरा कानमे मात्र ओकरहि द्वारा लगाओल गेल आबाजक प्रतिध्वनि सुनाइत
रहलैक। सोनू छन भरिक लेल बहुत निराश भ’ गेल। गाम-घरमे ककरो
देहमे भा आबि गेलासँ जे स्थिति होइत छैक ओहिना सोनूक देह काँपए लागलैक। ओ अपन देह
पर नियंत्रण केलक आ अपन आँखि नमहर क’ कए गोस्सासँ बाजए लागल—
“हम सौंसे जंगलमे आगि लगा देबैक, आ जरा कए सुड्डाह क’
देबैक। यैह जंगल पाखलो केँ शरण देने छैक। सुड्डाह क’ देबैक एकरा, सुड्डाह क’ देबैक।
ओ बुदबुदाब’ लागल।”
एतबा
कहैत ओ काँपए लागल। ओ लालटेमक बतिहरि उकसा देलकैक। लालटेमक इजोत भभक’ लागलैक। ओहि बतिहरिसँ ओ सौंसे जंगलकेँ जरएबाक तैयारी करए लागल, मुदा दादी ओकरा रोकि लेलकैक।
“अहाँ ई कोन पगलपन क’ रहल छी?”
“ई पगलपन नहि छैक दादी। एहि जंगलमे आगि लगा कए हम ओहि पाखलोकेँ सुड्डाह क’
देबैक।” सोनू अपन दाँत आ ठोर पीसैत बाजल।
“नहि, नहि, एना ओ तँ नहि मरि
सकत, हँ जंगल अवस्से जरि कए सुड्डाह भ’ जेतैक। एतबा कहि दादी ओकरा रोकबाक प्रयास केलकैक। एहि बातकेँ ल’ कए दुनूमे घिच्चातानी भ’ गेलैक, आ एहि बीच सोनूक हाथसँ लालटेम गिर गेलैक आ बुता गेलैक। चारू दिस घुप्प
अन्हार भ’ गेलैक।
बहुत राति भीजला पर ओ दुनू गाम घुरल।
एखन मुर्गा
पहिले-पहिल बाँग देने हेतैक। खाम्हसँ ओंगठि कए बैसल सोनूकेँ निन्न आबए लागलैक, तखनहि दरबाजा पर खट-खट केर आबाज भेलैक। सोनू उठि कए दरबाजा लग गेल। ओकरा
दरबाजा लग पहुँच’ सँ पहिनहि दरबाजा धकेलि कए तीनटा पाखले
भीतर आबि गेलैक। सोनू ओहि दरबाजा लग खाम्हे जकाँ ठाढ़ रहल! घरमे
बरैत लालटेमक इजोतमे ओ पुलिस प्रधान कार्मो रेयस केँ चिन्ह गलैक । गोर-गहुमा चाम आ
ताहिपर गुलाबी मोंछ। पुलिस प्रधान अपन कन्हासँ शालीकेँ नीचाँ उतारि देलकैक। ओ
शालीकेँ कहुना बैसएबाक प्रयास केलक मुदा असफल रहल, हारि कए ओ
अपन अंगा खोलि ओछा देलकैक आ ओहि पर शालीकेँ सुता कए तीनू पाखले घूरि गेल। ओकरा सभक
जूत्ताक आबाज शनैः-शनैः कम भेल जा रहल छल।
शाली
धरतीए पर घोलटल छलीह। ओकर आँखि खुजले रहैक। सोनूकेँ तँ बुझू जे किओ ओकरा पएरमे
काँटी ठोकि देलकैक, ओ भावशून्य ठाढ़ भ'
सबकिछु देखैत रहल। ओकर नजरि कोनमे राखल कुड़हरि पर गेलैक। लालटेमक इजोतमे ओहि
कुड़हरिक चमकैत धार सोनूक असहायता पर हँसैत रहैक। ओ चमक सोनूक करेजकेँ चालनि केने
जा रहल छल।
सोनू जखन शाली
लग आएल, तँ शाली नहुँ-नहुँ अपन आँखि खोललक। दुनूक अवाके बन्न भ’
गेल रहैक। सोनू शालीकेँ शोर पारलकैक तँ ओ ‘आहि-आहि’
कहि कए जबाब देलकैक। सोनू ओकरा पानि पीबाक लेल देलकैक। एतबहिमे
सोनूक अंदरक भाव बाहर निकलि गेलैक।
·
शालीक
शीलभंग कएलाक पश्चात् पाखलो ओकरा सोनूक ओहिठाम छोड़ि देने छलैक एहिलेल गामक लोक सभ
सोनूकेँ समाज सँ बाड़ि देने छलैक। शालीकेँ गर्भ छनि ई बात सौंसे गाममे पसरि गेलैक।
सौंसे गाममे ने तँ किओ सोनूसँ बात करैक आ ने किओ ओकरा काज पर बजबैक। सोनूक रोजी
बन्न भ’ गेलैक।
ओहि
घटनाक दोसरहिं दिन शाली आत्महत्या करबाक प्रयास कएने छलीह, मुदा सोनूकेँ बीचहिं मे घर आबि जयबाक कारणेँ ओकर जिनगी बाँचि गेलैक।
गर्भवती हेबाक लाजक कारणेँ ओ कैक बेर घरसँ भागि गेल छलीह मुदा सब बेर सोनू ओकरा
घुरा लैक।
ओकर घर
गामक सीमान पर रहैक। एहि लेल गामक आन लोकसँ ओकरा विशेष संपर्क नहि रहैक। तकरा बादो
गामक मौगी सभ शालीकेँ देखि ओकरा नाम पर थूक फेकैक। ओकरा पर फब्ती कसैत रहैक। शाली
बेचारी सभ किछु सहन केने जा रहल छलीह। “चाहे जे किछु भ’ जाए मुदा अपन जान नहि देब शाली!” सोनू ओकरा कहलकैक।
ओ इहो कहलकैक—“बीया चाहे कथुक हो वा केहनो हो जँ एकबेर ओ
माटिमे पड़ि जाइत छैक तँ ओकर पालन-पोषण माटि कए करहि पड़ैत छैक। माटि बंजर नहि
हेबाक चाही।”
सोनूकेँ
काज भेटब मोसकिल भ’ गेलैक, आ ओ दुनू
प्रायः उपासे रहय लागल। उपरसँ लोक सभक ऊँच-नीच सुनैत-सुनैत ओ आजिज भ’ गेल छल। ओ बहुत परेशान रहय लागल। “जँ आर किछु दिन
गाममे रहलहुँ तँ भूखसँ मरि जाएब आ लोकक ऊँच-नीच तँ सुनहि पड़त।”, एहना सोचि कए ओ एकदिन गाम छोड़ि कए शेलपें चलि गेल। शाली घरमे एसगरे रहि
गेलीह। सोनू कहियो-काल गाम आबैक आ शालीकेँ अन्न-पानि द’ कए
आपस चलि जाइक।
भोरका
पहर रहैक। शाली दरबाजासँ झलकैत सरंग दिस निहारैत छलीह। तखने ओ दरबाजासँ भीतर अबैत
कार्मो प्रधानकेँ देखलकैक। ओकर तँ करेजा धक् द’ रहि गेलैक।
अपन कनहा आ छाती पर तमगा लगौने कार्मो प्रधान अपना हाथक बंदूक धरती पर राखैत ओत्तहि
बैसि गेल। शाली तँ डरक मारल काँपय लागलीह। कार्मो प्रधान ओकरा किछु कहय चाहैत छल
मुदा बाजि नहि सकल। ओकरा कोंकणी नहि अबैत रहैक साइत एहि लेल ओ चुप रहि गेल। पछाति
जा कए ओ जे किछु पुर्तगाली भाषामे कहलकैक ओकरा शाली नहि बुझि सकलीह। ओ शालीकेँ
अपना लगहि मे बैसबाक इशारा केलकैक। आ फेर किछु खिन्न भ’ कए
चुप रहि गेल। भ’ सकैछ जे ओकरा पश्चाताप भेल हो, “एहन शाली केँ लागलैक।” ओ उठल, अपन
बंदूक अपना कनहा पर राखलक आ चलि देलक। ओकरा जूताक आबाज शालीक करेजक धुकधुकीक पाछाँ
गुम्म भ’ गेलैक।
शाली
अपना घरमे पाखलो केँ सहारा देने छैक, किओ ई बात सौंसे गाममे
छिड़िया देलकैक। ई खबरि सौंसे गाममे लुत्ती जकाँ पसरि गेलैक। सोनूकेँ ई खबरि जखन
शेलपेंमे भेटलैक तँ ओ अपन हाथसँ कान दाबि लेलक। आब ओ कोन मुँहे गाम जाएत? ऐहन सोचि ओ अपन कान ऐंठ लेलक।
कार्मो रेयश
पुलिस स्टेशनक सभ पाखलोक प्रधान छल। ओकरा लिस्बनसँ भारत एनाइ छओ-सात बरखक लगधक भ’ गेल रहैक आ एहि गामक पुलिस-स्टेशनमे ओकर दोसर बरख रहैक। ओकर डील-डॉल- लाल,
गोर, गुलाबी केश आ मोछ वला रहैक। बाघ-सन ओकर
दुनू आँखिसँ लोककेँ डर भ’ जाइक। ओ जहियासँ एहि गाममे आयल
तहिये सँ एहि गामक लोक पर अपन हुकुम चलबए लागल छल। दू महीना धरि ओ लोक सभकेँ खूब
डरौलक-धमकौलक-सतौलक आ पीटलक। आब ओ लोककेँ सताएब तँ बन्न क’
देने छल मुदा गामक लोककेँ ओकरासँ बहुत डर लागैक।
दोसरहिं
दिन साँझकेँ जखन शाली अपन घरक दीप लेसैत छलीह, तखनहि दरबाजा
पर जूताक आबाज सुनलक। कार्मो प्रधान सीधे घरमे घूसि गेलैक, आ
बन्दूक कनहा परसँ नीचाँ राखि बैसि गेल। डरसँ शालीक हाथसँ दीप छूटि गलैक आ चारू दिस
अन्हार भ’ गेलैक। प्रधान अपना जेबीसँ सलाइ निकालि दीप लेसलक
आ हँसए लागल। ओकरा हँसबाक आबाजसँ पूरा घर गूँजायमान भ’ गेलैक।
ओ शालीकेँ अपना लग बैसा लेलक आ ओकर गाल, ठोर आर ठुड्डीकेँ
सहलाब’ लागलैक। ओ स्वयं हँसि रहल छल आ शालियो केँ हँसएबाक
प्रयास क’ रहल छल। मुदा शाली डरसँ काँपि रहल छलीह। जाहि समय
पाखलो शालीकेँ अपना बाँहिमे घीचैत छल ठीक ओहि समय ओकर नजरि ओकरा नोर पर गेलैक। ओ
ओकर गरम नोरकेँ पोछलक आ ओकरा समझएबा-बुझएबाक लेल ओकरा पीठ पर थपकी मारए लागल।
बादमे ओ शालीक ठुड्डीकेँ उठबैत ओकरा अपना दिस देखबाक लेल इशारा करए लागल। मुदा
शाली ओकरा दिस नहि देखि सकलीह। ओ अपन दुनू हाथेँ अपन आँखि झाँपि, काँपैत-काँपैत ओतएसँ जयबाक उपक्रम करए लागलीह। एतबहिमे पाखलो ओकरा अपन
दुनू हाथेँ अपना बाँहिमे कसि लेलकैक।
दोसर
दिनसँ भोरे-भोर गामक लोक सभ कार्मोकेँ शालीक घरसँ निकलैत देखलकैक। ओकरा देखतहि लोक
सभ शालीक नाम पर थूक फेकय लागल आ ओकरा संबंधमे भिन्न-भिन्न प्रकारक बात सभ करए
लागल।
“हे-बे देखिऔक! शालीक भड़ुआ।”
“ओ पाखलो केँ अपना घरमे राखि धंधा सुरह क’ देने छैक
वा अपन नव दुनियाँ बसा नेने अछि?”
“दुनियाँ केहन यौ? धंधा कहियौक, धंधा।”
“छी! छी! ओ लाज-शरम पीबि
गेल अछि।”
“औजी! लाज-शरम रहतैक कतए सँ! ओ तँ अपन जातिओ-धरम भ्रष्ट क’ नेने अछि।”
·
तीन
गामवलाक
नजरिमे हम पाखलोएक रूपमे एहि धरती पर जनम लेलहुँ। ठीक ओहि साल पुर्तगाली सरकार
गामसँ पुलिस-स्टेशन हटा लेलकैक। हमर बाप ओहि समय गाम छोड़ि पणजी शहर चलि गेलाह।
हुनकर रूप कहियो हमरा आँखिक समक्ष नहि आबि सकल। नेनपनमे हम हुनका कहियो देखने
रहियनि की नहि? सेहो हमरा स्मरण नहि अछि।
हमर माए शाली, वास्तवमे एकटा देवीक रूपमे एहि संसार मे आएल छलीह। हुनकर वर्ण तँ श्याम
छलनि मुदा सुन्नरि छलीह। एकदम सोटल देह। ओ प्रायः लाल आ कि हरियर रंगक साड़ी
पहिरैत छलीह आ माथ पर सिनूरक टीका लगबैत छलीह। एहि परिधानमे ओ एकदम सुन्नरि लागैत
छलीह। एकदम सांतेरी माए-सन। हमर जनम एकादशी दिन भेल छल, एहि
लेल माए हमर नाम ‘विठ्ठल’ राखने छलीह।
ओहि एकादशीक दिन सांतेरी मायक मंदिर मे त्योहार भ’ रहल छलैक।
एहि धरतीक पाथरसँ बनाओल गेल श्री विठ्ठल केर कारी प्रतिमा ओहि दिन ओहि मंदिरमे
स्थापित कएल गेल रहैक। ई बात हमर माए बतौने छलीह। ओ अपन मधुर आबाजसँ हमरा ‘विठू’ कहि बजबैत छलीह।
कार्मो
प्रधानकेँ पणजी शहर चलि गेलाक पश्चात् हमर मायक हालति आब सरिपहुँ बहुत खराप होमए
लागल छल। सौंसे गाम ओकरा मंदिरक दासीक सदृश देखैत रहैक जखन कि ओ एकटा पतिव्रता
नारी छलीह। गामहिमे एकटा ब्राह्मणक घरमे नौरीक काज क’ कए
ओहिसँ प्राप्त मजूरीसँ ओ हमर पालन-पोषण कएने छलीह।
दादी अपन बेटा
गोविन्दक संग हमरहुँ स्कूल भेजए लागल। ओहि दिनसँ हम आ गोविन्द दुनू गोटे खास मीत
बनि गेलहुँ। विद्यालयक प्रवेश-पंजीमे शिक्षक हमर नाम पाखलो लिख देलनि। अही नाम सँ
हम ओहि विद्यालयमे मराठी माध्यमसँ चारिम कक्षा धरि पढ़ाइ केलहुँ। हाजरी दैत काल
हमर एहि नाम पर हमरा कक्षाक आन-आन छात्र लोकनि हमर खूब मजाक उड़ाबए जे हमरा बहुत
खराप लागैत छल। प्रवेश-पंजीमे हमर नाम पाखलो लिख देल गेल रहए इहो लेल हमरा बहुत
खराप लागैत छल।
गोविन्द
हमरा सँ एक कक्षा आगू छल तकर पश्चातो हमरा ओकरासँ दोसती भ’गेल
छल। हम ओकरा संगहि माल-जाल ल’ क’ जंगल
धरि जाइत रही। जंगल जाइत काल हमरा काँट-कुशक कोनो डर नहि होइत छल। ओतए हम सभ कणेरा-काण्णां, चारां-चुन्नां (जंगली फल) खाइत छलहुँ। ‘घूस-गे
बाये घूस’ (गोवाक क्षेत्रमे खेलल जाएबला एकटा खेलमे प्रयुक्त शब्द
जाहिमे एहन मान्यता छैक जे ई शब्द बाजलासँ कोनो खास लोकक देहमे कोनो आत्माक प्रवेश
भ’ जेतैक।) शब्द बाजि कए एक
दोसरा पर भा आबए धरि कोयण्या-बाल, गड्ड्यांनी (गोवा क्षेत्रमे नेना सभक द्वारा
खेलल जाएबला एकटा खेल।) आदि खेलैत छलहुँ। आन-आन चरवाह सभक सँग
हमहुँ चरवाह बनि गेल छलहुँ।
गोवा केँ
स्वतंत्र हेबासँ पहिनुके बात थिक। तखन हमर उमिर नओ-दस बरखक रहल होएत। गामक बन्न
पड़ल पुलिस-स्टेशन एकबेर फेर चालू भ’ गेल रहैक। ओतए तेशेर
नामक एकटा नव पुलिस प्रधानक नियुक्ति भेल छलैक। ओ कहियो काल सैह पणजीसँ गामक पुलिस
स्टेशन अबैत-जाइत छल। ओ अपना लेल ओतए एकटा धौरबी राखि नेने छल। ओकरा ओ अपना संगहि
घोड़ा-गाड़ी पर घुमबैत रहैत छल।
गामक बगल वला
जमीनक लेल दत्ता जल्मी आ सदा ब्राह्मणक बीच बहुत दिनसँ विवाद छलैक। ओकरा सभक बीच
मोकदमा चलि रहल छलैक। दू-तीन साल बीत गेलाक पश्चातो एखन धरि ककरहुँ पक्षमे फैसला
नहि भेल छलैक। सदाकेँ एकटा युक्ति सुझलैक। एकबेर ओ नव पुलिस प्रधान (तेशेर)केँ
अपना घर बजाकए खूब मासु-दारू खुऔलक-पिऔलक। ओहि दिन ओकर नजरि ओकरा स्त्री पर गेलैक।
ओहि क्षण ओ ओकरा प्रति आसक्त भ’ गेल आ ओ जाहि कक्षमे रहथि ताहि दिस
देखतहि रहि गेल। सदा प्रधानसँ विनती केलक जे ओ मोकदमा ओकरहिं पक्षमे करा दैक। कने
काल चुप रहलाक पश्चात् प्रधान ओकरा हँ कहि देलकैक। शर्तक रूपमे ओ सदासँ ओकर स्त्री
माँगि लेलकैक। सदाकेँ जल्मीक जमीनक संगहि-संग गामक सभसँ पैघ जमीन केगदी भाट(क्षेत्र
विशेषक नाम) भेटए बला रहैक।
चारिए-पाँच
दिनक बाद पुर्तगालीक विरोधमे काज करबाक अभियोगमे दत्ता जल्मीकेँ भीतर क’ देल गेलैक। तकर बाद ओकर की भेलैक ताहि संबंधमे ककरहुँ कोनो पता नहि चलि
सकल। केओ कहैक जे दत्ता फेरार भ’ गेलैक तँ केओ कहैक जे
प्रधान ओकरा मारि देलकैक।
ओहि दिनक बाद सँ सदाक घर लग सभ दिन एकटा गाड़ी लागए लागलैक। सदाक
स्त्री सभ साँझकेँ नव-नव साड़ी पहिरए, नीक जकाँ अपन
केश-विन्यास करए, काजर, बिंदी, पौडर आदि लगा अपन श्रृंगार करए आ तेशेरक गाड़ी मे बैसि जाए। तेशेरक गाड़ी
सदाक बंगला पर धूरा उड़बैत फुर्र भ’ जाइक।
दोसर
भोर ओ गाड़ी हुनका एतए पहुँचा दैक। ओ गाड़ीक पछिला सीट पर लेटल रहैत छलीह। हुनकर
केश आ चोटी सभ उजरल-उभरल रहैक, आँखिक काजर नाक आ गाल पर लेभराएल
रहैत छलैक।
मोकदमाक फैसला
सदा जमींदारक पक्षमे भ’ गेल छलैक एहि लेल ओ सत्यनारायण भगवानक पूजा
करबाक लेल सोचलक। पूजामे अएबाक लेल ओ भरि गामक लोककेँ हकार देलकैक। सदा ओ ओकर
स्त्री पूजा पर बैसि चुकल छलीह। तखनहि प्रधान तेशेर अपन गाड़ी ल’ कए ओतए आबि गेल। ओ पूजा पर बैसलि सदाक स्त्रीकेँ उठा लेलक। पूजामे आएल सभ
लोककेँ एहि घटनासँ बड्ड आश्चर्य भेलैक। केगदी चास-बास केर कागद-पत्तर सदाकेँ
थम्हबैत ओ ओकरा स्त्रीकेँ ल’ कए आगू बढ़ल, तखनहि सदाक छोट भाय ओकरा रोकबाक प्रयास केलकैक। तेशेर ओकरा पर बन्दूकसँ
निसान साधि लेलकैक आ आब गोली दागहि वला रहैक की सदा ओकरा रोकि देलकैक। तेशेर अपन
बन्दूक नीचाँ क’ लेलक। तकरा पश्चात् ओ जनूकेँ एक दिस धकलैत
ओकरा स्त्रीक हाथ पकड़ि आगू बढ़ि गेल। एहि पर सदा अपना स्त्रीसँ कहलकैक—
“ओकरा
संग एना जा कए अहाँ हमर नाक कटाएब की?”
ई सुनि सदाक
स्त्री अपन मुँह चमकबैत बजलीह—
“अहाँकेँ नाको अछि की? जँ अहाँकेँ नाके
चाही तँ हे ई लिअ...”
एतबा
कहि ओ अपन नाकक नथिया निकालि सदाक पयर लग धरती पर फेकि देलकैक आ प्रधान तेशेरक संग
चलि देलक।
तेसरे दिन प्रधान ओकरा ल’ कए पुर्तगाल चलि
गेल।
प्रधान तेशेरकेँ
पुर्तगाल जेबासँ ठीक एकदिन पहिनुके गप्प थिक। रातिक लगभग दू वा तीन बजैत हेतैक।
केओ हमरा घरक केबाड़ खोलि हमरा घर घूसि गेल। हमर माय कम कएल लालटेमक इजोतकेँ कने
तेज केलक। देखलहुँ तँ एकटा अनभुआर लोक! ओ बाजल—
“बहिन हमरा कतहुँ नुका दिअ, हमरा पाछू फिरंगी पुलिस
लागल अछि। एकबेर जँ हम ओहि पुलिस प्रधान तेशेरक हाथ आबि गेलहुँ तँ ओ हमर जान ल’
लेत। हम जीवित नहि बाँचि सकब।”
एतबहिमे
दूरसँ अबैत जूता ध्वनिसँ बुझाइक जे किओ आबि रहल छैक। हमर माय ओकरा ओढ़बाक लेल अपन
साड़ी देलकैक आ ओ साड़ी ओढ़ाकए ओकरा हमरहिं लग सुता देलकैक। किछुए क्षण केर
पश्चात् घरमे इजोत देखि प्रधान तेशेर हमरा घरमे घुसि गेल। हमर माय बहुत डरि गेलीह।
तेशेर सौंसे घरक तलाशी ल’ लेलकैक आ ओतए के सूतल छैक? ओकरा संबंधमे पूछय लागल—हमर माय डरैत-डरैत बजलीह—
“ओ हमर ब-ब-बहिन
थिकीह.....साहेब।”
एतबा सुनि ओ लोकनि चलि गेल।
ओहि राति ओ
अनभुआर लोक हमरहि ओहिठाम ठहरल ओ भोर होइतहि चलि गेल। ओ अपन नाम रामनाथ कहने छल आ ओ
गोवाक स्वतंत्रता संग्राममे भाग नेने छल। ओ आ ओकर दूटा संगी, गामक पुलिस-स्टेशनकेँ उड़एबाक लेल आएल छल। ओकरा संगीकेँ तँ फिरंगी पकड़ि
नेने छलैक मुदा एकरा पकड़बाक लेल ओ सभ एकर पछोर क’ रहल छलैक।
ओ डाइनामाइट लगा कए पुलिस-स्टेशन उड़ा देलकैक। भोर होइतहि ई खबरि गाम आ आस-पासक
इलाकामे पसरि गेलैक।
ई ताहि
दिनक गप्प थिक जखन गोवाकेँ मुक्ति भेटल छलैक। ओहि दिन दूटा बड़का धमाका सूनल गेल
छलैक। ई धमाका बम केर छलैक, ई बात लोककेँ पछाति जा कए पता लागलैक।
उजगाँव आ बाणस्तारी गामक दुनू पुल उड़ा देल गेल रहैक। भारतीय सेनाकेँ गोवामे
प्रवेश करबासँ रोकबाक लेल ओ पुर्तगाली मिलिट्री द्वारा तोड़ल गेल छलैक। ओ के आ
किएक तोड़ने छल, पहिने एहि बातक पता ककरो नहि चलि सकलै।
दूपहरमे गामक आसमानमे एकटा हवाइजहाज उड़ैत रहैक। ओहि हवाइजहाजसँ परचा सभ गिराओल जा
रहल छलैक जे हवामे लहराबैत रहैक। ओहि परचा सभकेँ लूटबाकक लेल हम सभ बच्चा लोकनि
बहुत दूर धरि दौड़लहुँ। हमरो एकटा परचा भेटल, जकरा ल’ कए हम दादीक ओतए पहुँचलहुँ। परचा पुर्तगालीमे लिखल रहैक जकरा दादी हमरा
सभकेँ अपन भाषामे सुनबैत रहथि—“ई इंडियन मलेटरीक पत्रक छैक।
ओ कहने छथि— अहाँ सभ डरब नहि, अहाँ सभक
जिनगीकेँ कोनहुँ खतरा नहि अछि। अहाँ सभ पुर्तगाली राजसँ मुक्त भ’ गेल छी।”
ओहि दिन हमरा
विद्यालयमे छुट्टी छल। कांदोले गाममे उत्सवक माहौल रहैक। किछु लोक लौह अयस्कक
बार्ज (मालवाहक जहाज) सँ पणजी गेल छल। गोवाकेँ मुक्ति भेटलाक किछुए दिन बाद
गोविन्दक दादी हमरा घर आएल छलाह। “भारत सरकार बहुत रास
पाखले केँ पकड़ि ओकरा जहाजमे बैसा पुर्तगाल भेज देने अछि।”
हमरा मायकेँ ई खबरि वैह देलनि। बुझाएल जे एहि खबरिसँ ओ किछु हतप्रभ भेलीह, मुदा ओ चुप आ गुमसुम रहलीह। हमर बाबूजी कार्मो चीफ, जे पणजी शहरमे छलाह, हुनकहुँ ओहि जहाजसँ भेज देल गेल
छलनि, एहि लेल मायकेँ दुःख भेलनि की?
से हम बुझि नहि सकलहुँ। मुदा बादमे हुनका आँखिमे नोर आबि गेल छलनि।
·
हम
बारह-तेरह बर्खक रहल हएब, तखनहि हमर माय मरि गेलीह।
बरखाक
मौसम रहैक। कतेको दिनसँ दिन-राति लगातार बरखा भ’ रहल छलैक। नदीक
बाढ़िक पानि गाम धरि पहुँचि गेल रहैक। गामक केलबाय मंदिरक चारू दिस बाढ़िक पानि आबि
गेल रहैक। ओहि बाढ़िमे पाँचटा गर गिर गेल छलैक। माल-जाल आ गोहाल सभ बाढ़िमे भासि
गेल रहैक।
हमर घर
सीमानक बाहर पहाड़ीक कोनमे कनेक ऊँच स्थान पर छल। एखन धरि बाढ़िसँ घरकेँ कोनो छति
नहि भेल छलैक मुदा लगातार होइत बरखा आ हवाक कारणेँ हमरो घर ओहि दिन गिर गेल। घरक
एकटा चार कर्र-कर्र केर आबाजक सँग टूटि कए गिर गेल। हम जखन सूतल रही तखने ओ हमरा
पर गिरल। हम आ हमर माय दुनू गोटे मरि जइतौंक। हमर माय हमरा बचयबाक लेल दौड़ि कए
अएलीह जकरा कारणेँ हुनका माथमे बहुत चोट लागि गेलनि। पहिने तँ हुनका माथ पर कोरो
टूटि कए गिरल आ पछाति जा कए पूरा चारे हुनका माथ पर गिर गेलनि। ओ बेहोश भ’
गेलीह। हम हुनका मुँहपर पानिक छीट्टा देलियनि तखन हुनका चेत एलनि। हम बचि गेलहुँ आ
हमरा चोट नहि लागल, ई जानि ओ बहुत खुश भेलीह। बादमे हमरा अपन
गोदीमे ल’ कए खूब कानए लगलीह। जखन ओ हमरा गोदी नेने छलीह तखनहि
हमरा हाथमे हुनक चोटसँ निकलल खून लागल। देखलहुँ तँ हुनका माथ मे चोट लागल छलनि।
हुनक माथ काँच जकाँ फूटि गेल रहनि। हम जोरसँ चिकरलहुँ, मुदा
माय हमरा चुप रहबाक इशारा केलथि। हमर चिकरब सुनि कए एहि बरखाक रातिमे किओ आबय बला
नहि छल। हुनकर कहनानुसार हम हुनका लजौनीक पात पीसि कए हुनका माथ पर लगा देलियनि।
किछु कालक बाद हुनका माथसँ खून बहब बन्न भ’ गेलनि।
घरक बचलका
हिस्साकेँ हम सोंगर लगेलहुँ। हवा बहते रहैक आ रुकि-रुकि कए बरखा सेहो भ’
रहल छलैक। संगहि हवा घरक बचलका हिस्साकेँ नोचने जा रहल छल। छप्पड़क बीच दए पानि आबि
रहल छलैक। घरमे कनेको सूखल जगह नहि छलैक।
मायकेँ
बहुत चोट लागल छलनि तैँ ओ दरदसँ कराहैत छलीह आ बीच-बीचमे अपन टाँग हिला रहल छलीह।
दीया जरा हम हुनका सिरमा लग बैसि गेलहुँ। दीयाक बतिहर हवाक कारणेँ बीच-बीचमे बुता
जाइत छलैक जकरा हम फेरसँ जरबैत रही। अन्हर आ बरखा आओरो तेज भ’ गेल रहैक। हम
पानि गरम क’ कए मायकेँ पिऔलियनि। चोटक दरदक कारणेँ ओ भरि
राति कुहरैत रहलीह। राति भीजला पर हुनका बोखार आबि गेलनि आ से बढ़िते गेल। “भोर होइतहि हम डाकदरकेँ बजा अनबनि।” हम सोचलहुँ।
मुदा राति कटतहि नहि रहए।
दोसर दिन, भोरे-भोर गोविन्दक दादी डागदर केँ बजा अनलनि। डागदर हुनका सुइया-दवाई
देलथि, मुदा कोनो लाभ नहि भेल।
ओ बीच-बीचमे आँखि खोलैत छलीह।
हुनक सौंसे देह उज्जर भ’ गेल रहनि आ हुनक आँखि भीतर दिस घीचल जा रहल
छल। हुनक हाथ-पयर काँपि रहल छलनि। ओ हमरा अपना लग बैसबाक इशारा केलनि। ओ हमरा किछु
कहए चाहैत छलीह से तँ हम बुझि गेलहुँ मुदा ओ किछु बाजि नहि सकलीह।
ओहि
दिन हुनक बोखार बहुत बढ़ि गेल रहनि। हुनक आँखि बन्न होमए लागल रहए। बोखारसँ ओ
काँपि रहल छलीह। बादमे हुनका गरसँ घर्र-घर्र केर आबाज भेल ओ ओहि आबाजक संगहि ओ जतए
सुतल छलीह किछुए पलमे सभ किछु शांत भ’ गेल। ओ हमरा छोड़ि कए
चलि गेलीह! हमरा अनाथ क’ कए चलि गेलीह!
दादी
एसगरे आबि कए अंतिम संस्कारक तैयारी करए लगलाह। शेलपें मे रहएवला मामा धरिकेँ खबरि
देमए बला हमरा किओ नहि भेटल। बरखा बहुत जोरसँ सँ भ’ रहल
छलैक। गाममे आएल बाढ़िक पानि एखन धरि घटल नहि छलैक।
श्मशान
घाट पर दादी एसगरे चिता पर लकड़ी राखैत जा रहल छलाह आ हम हुनक संग द’
रहल छलिऐक। हमर मायक अंतिम यात्रामे दादीक अलावे आन किओ नहि आएल रहए। अनहार-मुनहार
भ’ गेला पर चिता बनि कए तैयार भेलैक। हम मायक लहाशकेँ चिता
पर चढ़ा कए अपना हाथेँ आगि देलिऐक। मुदा चिताकेँ आगिए नहि लागैक। एकतँ तीतल लकड़ी
आ ताहूपर बरखा से। दादी बहुत प्रयास केलनि, मुदा बरखा आ तेज
हवाक कारणेँ चिताकेँ धाह धरि नहि लागि सकलै। अधरतिया भ’ गेल
रहैक आ हम दुनू गोटा एखन धरि श्मशान घाटमे छलहुँ। चिताकेँ आगि लगएबाक प्रयासमे
दादी थाकि चुकल छलाह। जखन कोनहुँ उपाय नहि चललनि तँ चुपचाप काम करए वला दादी किछु
कालक ले ठाढ रहलाह आ बजलाह—
“बाउ! अहाँक हाथे
अहाँक मायक चिताकेँ आगि नहि लागि रहल अछि? आब की उपाय?”
“आब कोनहुँ तरहेँ एहि लहाशकेँ माटिमे
गारए पड़त!” एतबा कहि ओ कोदारिसँ माटि खोदब सुरह क’ देलनि।
हुनकर
बात सुनिकए हम सोचए लागलहुँ— “हँ, हम ठहरलहुँ भागहीन पाखलो! पाखलेक वंशज छी, एहि लेल हमरा हाथेँ मायक चिताकेँ आगि नहि लागि रहल अछि। हमरा पाखलो नहि
हेबाक चाही। हमर ई पाखलेपन हमरा मोनकेँ चोट पहुँचा रहल छल। आइ एहि पाखलेपनक एहसास
हमरासँ सहन नहि भ’ रहल छल।”
एक आदमीक लम्बाईक बरोबरि एकटा खदहा खोदल
गेल।
“माटि देबासँ पहिने अपन मायकेँ प्रणाम
करिऔन।”
दादीक एतबा कहलाक उपरांत हम होशमे एलहुँ
आ दुनू हाथ जोड़ि मायकेँ प्रणाम केलहुँ।
·
किछुए
दिनमे हम पाखलोसँ खलासी बनि गेलहुँ। जाहि कार्रेर पर गोविन्दक दादी ड्राइवर छलाह
ओहि कार्रेर पर ओ हमरा खलासीक रूपमे राखि लेलनि। हमर काज छल यात्री सभक समान उपर
चढ़ाएब आ
उतारब। बाजारक दिन तँ कार्रेरमे बहुत भीड़-भाड़ रहैत छलैक। कार्रेर केर भीतर
यात्री लोकनि, तँ उपर केलाक घौर, कटहर,
अनानास सन बहुतो रास चीज होइत छल। कार्रेर बुझू हकमैत-हकमैत सड़क पर
चढैत-उतरैत छल। मुदा जाधरि हम खलासी रहलहुँ ताधरि कार्रेरकेँ किछु नहि बिगड़लैक आ
ने तँ हम एक्कहु टा ट्रिप चुकए देलिऐक।
बस
मालिकक भाय यात्री लोकनिसँ पाइ असूलैत छल। ओ बहुत ठसकमे घूमैत छल, मुदा राति होइतहि ओकर सभटा हेकड़ी खतम भ’ जाइत छल।
घर पहुँचलाक बाद ओ पावलूक ओहिठाम जा कए भरि दम शराब पीबि लैत छल। एकदिन ओ हमरा
शराब आनबाक लेल कहलनि। हम हुनका शराब तँ आनि देलियनि मुदा दादी हमरा देख लेलथि आ
बहुत डाँट-फटकार केलथि। “आब फेर कहियो शराब आनए नहि जाएब।” एतबा कहैत ओ हमरा गामक केलबाय देवीक किरिया देलथि। एकटा आर एहने सन
स्मरण......एकबेर गैरेजक मैकेनिक लाडू आ हम कार्रेर धोबाक लेल नाली पर गेलहुँ।
हमसभ गाड़ीक पीतरिया चदराकेँ इलायचीसँ रगड़ि-रगड़ि साफ केलहुँ। गाड़ी धुबैत काल
हमसभ पानिसँ भीज गेल छलहुँ। सौंसे देह जाड़सँ काँपए लागल छल, एहि लेल लाडू एकटा बीड़ी सुनगा कए अपना मुँहमे दबौलक आ गाड़ी धोबए लागल। ओ
एकटा बीड़ी हमरो देलक। हमहुँ बीड़ी सुनगेलौं आ पीब’ लागलहुँ।
एतबहिमे दादी ओतए पहुँचि गेलाह आ हमरा बीड़ी पीबैत देखि लेलथि। ओ हमरा पर बहुत
गोस्सा भेलाह आ संगहि ओहि गोस्सामे हमरा पर कैक थापड़ मारि बैसलथि। हम कानए
लागलहुँ। हम हुनकर पयर पकड़लियनि, माँफी माँगलियनि, मुदा एहि सभसँ दादीक गोस्सा कम नहि भेलनि। “आब जँ
फेर अहाँ कहियो बीड़ी पीलहुँ तँ अहाँकेँ अपन मायक किरिया!” ओ
हमरा किरिया देलथि।
हम
जहियासँ खलासी बनल छलहुँ तहियेसँ दादीक ओहिठाम रहैत छलहुँ। हम आ गोविन्द दुनू गोटे
भाइक सदृश भ’ गेल छलहुँ। गोविन्द हमरासँ बेसी बुधियार आ चलाक
छल, संगहि तत्वज्ञानी आ आस्तिक सेहो। हमर माय जहियासँ हमरा
छोड़ि के गेल रहथि तहियेसँ हम प्रायः कानैत रहैत छलहुँ। एहना स्थितिमे नेना
रहितहुँ गोविन्द हमरा समझाबैत-बुझाबैत रहैत छल। ओ कहैत छल, “अहाँकेँ पता अछि! जखन हमर तामू गाय बच्चा देने छलीह
तँ ओहो चारिए मासक भीतर मरि गेल छलीह, तखन हुनका बाछाकेँ के
देखने रहैक? ओहि समयक छोट बाछा आइ बड़का बरद बनि गेल छैक।
पाखल्या! …..यौ पाखल्या! कानू जुनि! अहाँकेँ देखि हमरहुँ कानब आबि जाइत अछि।” हमर आजी
सेहो पछिले साल भगवानक घर गेल छलीह। ओ कहैत छलीह, “सभटा जन्म लेबएबला प्राणीकेँ एकदिन मरहिं पड़ैत छैक, एकरा लेल लोककेँ दुख नहि करबाक चाही।” ई सभ सुनि कए
हमर कानब बन्न होइत छल। हम ओकर भाषण सुनैत जा रहल छलहुँ आ ओ कोनो तत्वज्ञानी जकाँ
बाजतहि जाइत छल......
“मनुक्ख
जन्मक संगहि मृत्यु सेहो अपना संगहि आनने अछि। जन्मकालमे ओ नेना रहैत अछि, नेनासँ ओ जवान भ’ जाइत अछि, जवानसँ
बूढ़ आ फेर जन्मक आखिरी आ अंतिम अवस्थामे मनुक्खकेँ मृत्यु भेटैत छैक। अवस्थाक एहि
चक्रसँ हरेक प्राणीकेँ गुजरहि पड़ैत छैक। जतए-जतए प्राणी छैक ओतए-ओतए मृत्यु पसरल
छैक। धरती हो, जल हो वा आकाश, सभठाम
मृत्यु निश्चित अछि।”
जखन
हम हुनकासँ पुछियनि, “अहाँ ई सभ कतए सीखलहुँ? ई सभ अहाँ किताबमे पढ़ने छी की?” तखन ओ जबाब दिअए, “हमरा ई सभ विणे आजी बतबैत छलीह।”
एकबेर
फेर मायक याद अबितहिँ हमरा आँखिमे नोर आबि गेल आ हमरा समक्षहि हमरा छोड़िकए गेल
हमर मायक मूर्ति हमरा सोझमे ठाढ़ भ’ गेल। रामायण, महाभारत आ आन-आन कथा-पिहानी सुनाब’ वाली.....,
हमरा मरगिल्ला खोआकेँ पैघ करएबाली....., हम
बचि गेलहुँ एहि खुशीमे हमरा अपन छातीसँ लगबएवाली हमर माय....., अपना आँखिक सोझमे देखल गेल हुनक मृत्यु, हुनक लहाश,
ई सभटा हमरा याद आबि गेल। आँखिमे आएल नोर पोछि हम हुनका प्रणाम
केलियनि।
·
चारि
गोविन्द जाहि बरख पणजीमे नोकरी पर लागल, पाखलो ओहि बरख लौह–अयस्क केर खदान पर ट्रक ड्राइवर
बनि गेल। ओकर काज देखि कए एक बरखक भीतरहि कम्पनी ओकर नोकरी पक्की क’ देलकैक। ओकरा चारि सौ पचास रुपैया दरमाहा भेटैत रहैक आ एकर अलावे ओवरटाइम
सेहो। ओकर खेनाय-पीनाय होटलमे होइत छलैक आ ओ कतहुँ सुति जाइत छल।
पाखलो आ आलेस दुनू अपन पयरक तरेँ दूभिकेँ
मसोड़ति लदानक गैरेज लग जा रहल छल। काल्हि आनल गेल लौह–अयस्क
केर चूर्णक ढेर देखिकए ओ बहुत अचरजमे पड़ि गेल। ओ दुनू गैरेज पहुँचल। ट्रक स्टार्ट
क’ कए धूराक मेघकेँ पाछू छोड़ैत ओ लोकनि ट्रक तेजीसँ बढ़ौलक।
साँझमे पाखलो आ आलेस अपन-अपन ट्रक आनि
गैरेज लग लगा देलक। ओ काल्हिक अपेक्षा आइ एक खेप बेसी लगौने छल। आइ दुनू बहुत बेसी
प्रसन्न देख’ मे आबि रहल छल। पाखलो अपना देह पर एक नजरि देलक। ओ धूरा सँ
सानल बुझाइत छल। ओकर कपड़ा पूर्ण रूपसँ धूरामे सानल रहैक। माथक केश, मोछ आ सौंसे देह धूरा सँ सानल रहैक। ओ हाथ-पयर धोबाक लेल आलेसक संग नल दिस
चलि देलक।
नल
पर जमा भेल सभटा मजुरनी पाखलोक मजाक उड़ाब’ लागलीह। एकटा
मजुरनी अपन एकटा छोट सन एना निकालि पाखलो केँ ओकर अपनहिं रूप देखबा लेल देलकैक। ओ
एना लेलक, ओहिमे अपन अजीब रूप देखि ओकरा हँसी लागि गेलैक।
ओकरा बुझेलैक जो ओ ललका मुँह बला बनरबा छैक।
“पाखल्या, बगल वला झीलमे जेना धूरा जमैत छैक तहिना तोरहुँ देह पर जमल छह।”
एकटा मजुरनी पाखलो केँ पयर सँ माथ धरि देखैत कहलकैक।
“ओ तँ धूरेक मिल पर नोकरी करैत छैक।”
एकटा दोसर मजुरनी ओकर मजाक केलकैक। ई
सुनि सभटा मजुरनी हँसय लगलीह। ओकरा संग पाखलो सेहो हँसए लागल।
“ओ धूरासँ भरल अछि एहिलेल
अहाँसभ ओकरा पर हँसि रहल छी?” आलेस मजुरनीसँ पूछलकैक….;
“नहएलाक
बाद ओकरा देखि लेबैक, ओ सेब सन लाल आ एकदम फिरंगी सन भ’
जाएत, जे देखि कोनो बाप ओकरा अपन बेटी देबा
लेल तैयार भ’ जेतैक।”
“आलेस, पाखलोक लेल अहाँ अपनहि जातिमे कोनो कन्या ताकि
दियौक”, पहिल मजुरनी कहलकैक।
“…….से किएक? ओकरा तँ कोनो पाखलिने चाही। पाखल्या!
अहाँ अपना लेल लिस्बन सँ एकटा पाखलिन ल’ कए
आबि जाएब।”
एहि बात पर सभ केओ हँसय लागल मुदा पाखलो केर भौंह तनि गेल।
“ओ.......हो...... एकर मामाक बेटी छैक ने?” बीचहिमे
स्मरण आबि गेलासँ दोसर मजुरनी पहिलसँ बाजलि।
“एकर मामा सोनू परसूए शेलपें सँ गाम आएल छैक। ओकर बेटी बियाह करबाक जोग भ’
गेल छैक।”
“शी..... ई तँ पाखलो छैक ने?”
“पाखलो सँ ओकर बियाह.....? शी.....” पहिल मजुरनीक अपन डाँड़ पर बान्हल तोलिया झारैत कहलक। ओकर ई कहब सुनिकए सभ
किओ चुप भ’ गेल। पाखलो केँ बहुत खराप लागलैक आ ओकर भौंह तनि
गेलैक।
नहा-धो
कए ओ लोकनि नीचाँ उतर’ लागल। उतरैत काल आलेस सीटी बजा रहल छल आ
पाखलो चुपचाप चलि रहल छल। ओहि मौनक स्थितिमे ओकरा अपन मामा, सोनूक
पछिला बात सभ स्मरण आबि गेलैक।
सोनूक
बियाहमे पाखलोक माय, ओकरा गोदीमे ल’ कए
गेल छलीह। बियाहसँ ठीक दू दिन पहिने, सोनू अपन बियाहक खबरि
अपन बहिनकेँ देने छलैक। ओ बियाहमे कोनो बिध-व्यवहार करबाक लेल तैयार नहि रहथि,
मुदा सोनूक जिद्दक कारणेँ ओकरा मानय पड़लैक।
सोनूक
दुनियाँ केवल दू बरख धरि चलि सकल। ओकरा एकटा बेटी भेलैक मुदा तेसरहि बरख ओकर घरनी
ओकरा सदाक लेल छोड़िकए चलि गेलीह।
पाखलो
एकटा पैघ साँस छोड़लक। ढलानसँ नीचाँ उतरैत ओकर पयर लड़खड़ा गेलैक।
आलेस आ
पाखलो नदीक कछेर वला होटल पहुँचि गेल। आन दिन जकाँ ओ सभ होटलक भीतर जयबाक लेल
अपन-अपन माथ नीचाँ झुकौलक। पाखलो चाह पीबि लेलक मुदा ओकरा दिमागसँ एखन धरि ओहि
बातक निसाँ नहि उतरल छलैक। आलेस ओतए जमा भेल मित्र सभसँ गप्प करए लागल।
पाखलो
होटलसँ बाहर निकलल आ खेत दिस खुलल पेड़ा बाटे चलय लागल। ओ बहुत दुखी अछि, एहन ओकरा चेहरासँ बुझाइत छलैक। मजुरनी सभ द्वारा कएल गेल गप्पक नह ओकर
करेजके नोचने-फारने जा रहल छलैक।
“शी..... ई तँ पाखलो छैक ने?”
“पाखलो सँ ओकर बियाह.....? शी.....”
·
ई आवाज
मंगुष्ठी झरनाक पानिक छल, ने कि कपड़ा-लत्ता धोबा आ पानि भरबाक लेल
आबए बाली कन्या आ स्त्रीगणक बाजबाक। आइ पाखलो कने देरीसँ आएल रहय। ओ किछु
अन्यमनस्क सन लागैत छल। ओ झरनासँ गाम दिस जाएबला लोकपेड़िया दिस देखलक। ओहि
लोकपेड़ियाक बाटेँ अन्हरिया गाममे पयर रखने छल।
ओ
अपन देह सँ कपड़ा उतारलक आ मंगुष्ठक गाछक जड़िमे राखि देलक। ओ झरनाक कछेरमे बैसि
गेल। बहैत पानिमे ओ अपन पयर खुलल छोड़ि देलक। ओकरा जाड़ लागलैक। ओ जाड़ ओकरा नसमे
समा गेलैक। ओ अपन आँखिक पिपनी बन्न क’ लेलक। दूपहरमे धूरा पर
चलैत जे पयर छक-छक पाकैत रहैक ओहि पयरकेँ एखन जाड़ लागि रहल छलैक। ई सोचि पाखलो
एकटा नमहर साँस छोड़लक आ आँखि बन्न क’ लेलक। ओ प्रायः आबिकए
पहिने अपन पयर ठंढा पानिमे डुबबैत रहय। जखन सभटा कन्या आ स्त्रीगण पानि भरि कए चलि
जाइक, तखनहि ओ नहबैत छल आ अपन कपड़ा-लत्ता धोबैत छल।
ओ
पानिमे डुबकी लगौलक। छपाक केर आवाज भेलैक एहिलेल ओ अपन माथ उठौलक तँ देखलक जे शामा
हँसि रहल छलीह। ओहो हँसल। शामा झरनाक उपरका धार पर अपन घैल भरए लगलीह। “आइ पानि भरबामे देरी किएक भेल?” पूछबनि, पाखलो सोचलक। मुदा ओ चुप रहल। शामा घैल अपना डाँर पर राखलक आ छोटकी घैल
अपना हाथमे राखि चलि देलीह। नजरिसँ दूर होइत धरि पाखलो ओकरा देखतहि रहि गेल।
ओ होशमे
आएल! की शामा पानिमे पाथर फेकने छलीह? ओ सोच’
लागल, ‘हँ’, ओकर एक मोन
कहैत छलैक जे “ओ आएल छलीह आ हमरा सचेत करबाक लेल ओ पाथर
फेकने छलीह। ओकर दोसर मोन कहैक– नहि, ओ
पाथर मार’ एहन काज नहि क’ सकैत अछि। भ’
सकैछ उपरका मंगुष्ठ नीचाँ गिरल होइक।”
ओ
ई सोचतहिं छल ताधरि एकटा मंगुष्ठ पानिमे गिरलैक। पाखलो ओ लाल मगुष्ठ उठौलक। ओकरा
फोड़लक। फोड़लाक बाद ओ ओहि खटमिट्ठी मंगुष्ठकेँ अपना मुँहमे लेलक। खाइत काल ओकरा
एकटा घटना याद एलैक। एहि घटनाक बहुतो बरख भ’ गेल रहैक।
जंगलमे काजू आ काण्ण खाइत-खाइत गोविन्द आ ओ एहि झरना पर आएल छल। मंगुष्ठी झरनाक
मंगुष्ठ बहुत पाकि गेल छलैक। पाखलो आ गोविन्द ओहि मंगुष्ठ पर पाथर मारए लागल। ओहि
समय शामा झरना पर आबि रहल छलीह, ई गोविन्द देखलक आ देखतहिं
अपना हाथसँ पाथर फेकि देलक आ पाखलो सँ कहलकैक – “पाखल्या,
हाथसँ पाथर फेकि दियौक, विन्या मामाक शामा आबि
रहल छथि।”
“किएक?” पाखलो पुछलकैक।
“यौ,
मंगुष्ठी झरनाक जगह ओकरे छैक ने, हमसभ जे
मंगुष्ठ झटाहि रहल छी ई बात जँ ओकरा बाबूकेँ पता लागि गेलनि तँ से नीक गप्प नहि
होयत। ओ गारिओ देताह आ मारबो करताह। गोविन्दक कहलाक पश्चातो पाखलो अपना हाथसँ पाथर
नहि फेकलक। ओ लगातार झटाहते रहल। गोविन्दक रोकलाक पश्चातहिं ओ रुकल। ताबत शामा ओतए
आबि गेलीह। ओ लाल रंगक पाकल मंगुष्ठकेँ देखलक। ओकरो मंगुष्ठ खएबाक मोन भेलैक। ओहो
पाथर मारि-मारि मंगुष्ठ झखारए लागलीह। ओकर दू-तीन पाथरसँ एकटा पातो नहि गिरलैक।
पाखलो आ गोविन्द दुनू हँसए लागल। ओ लजा गेलीह। ओकरहिं आनल पाथरसँ पाखलो मंगुष्ठ
झटाह’ लागल। जल्दीए ओ पाथर ओतहि फेकि मंगुष्ठक गाछ पर चढि
गेल आ मंगुष्ठक गाछक डारिकेँ हिलाब’ लागल। मंगुष्ठ सभ ढब-ढब
कए गिरए लागलैक। छिट्टा आनबाक लेल शामा घर चलि गेलीह। मुदा आपस अबैत काल ओकरा संगे
ओकर बाबूजी सेहो आबि गेलाह। धरती पर पसरल काँच मंगुष्ठ देखि कए ओ पाखलो केँ ओकरा
माए आ ओकर जाति लगा कए गारि देलकैक।
तकरा
बादसँ जखन कहियो शामा ओकरा बाटमे भेटैक ओ अपन माथ झुकाकए चलि जाइत छलीह।
जाहि
दिनसँ पाखलो ड्राइवर भेल छल ताहि दिनसँ ओ मंगुष्ठी झरना पर नहएबाक लेल अबैत छल।
पाखलो केँ देखि शामा कहिओ-कहिओ हँसि दैत छलीह। शामाक यौवनक भार देखि कए ओकरा मोनमे
उमंग आबि जाइत छलैक। एकदिन तँ शामा ओकर आ गोविन्दक हाल-समाचार सेहो पूछने छलीह।
ताहि दिन, ओ प्रायः पाखलो केँ देखि कए हँसैत छलीह आ पाखलोक
मोनमे ओकरा प्रति नब अंकुर पनकी द’ रहल छलैक।
पाखलो सँ ई खबरि सुनि, गोविन्द
पाखलोक खूब मजाक उड़ौलक।
“पाखल्या,
हुनकर स्वभाव बहुत नीक छनि। ओ कने कारी अवश्य छथि मुदा देख’मे नीक छथि। अहाँक जोड़ी खूब जँचत।” ई बात पाखलोक
मोनमे घूमैत रहैक आ ओ नहबैत काल अपना-आपमे ओ उफान महसूस करैत छल।
दोसर दिन रबि
रहैक। पाखलो घूमबाक लाथे बाहर निकलल। बाट चलैत-चलैत ओ मंगुष्ठ झरना लग पहुँचि गेल।
झरनाक शीतल पानिसँ ओ एक आँजुर पानि पीबि लेलक आ लगीचक आमक गाछ दिस चलि देलक। ओहि
आम गाछक नमहर जड़ि उपर धरि आबि गेल रहैक आ कोनो नेना जकाँ अपन कुल्हा उपर कए धरती
पर पसरि गेल रहैक। पाखलो एकटा जड़ि पर बैसि गेल आ प्रकृतिक सौंदर्य देख’ लागल।
आइ चैत मासक
पूर्णिमा छलैक। गामक लोक सभ सांतेरी मंदिर लग बसंत पूजा करए बला रहैक मुदा ताहिसँ
पहिने प्रकृति फूल आ फल सभक लटकनि लगा कए बसंत ऋतुक स्वागत क’ चुकल छलैक। आमक गाछक अजोह आम सभ गोटपंगरा पाकए लागल छलैक। काजूक गाछ पर
लाल आ पीयर काजू लागल रहैक। हरियर अजोह काजू सभ पाकबाक बाट जोहि रहल छल आ एखन धरि
डारि पर फुल्ली सभ डोलि रहल छलैक।
शनैः–शनैः बसात सिहकए लागलैक। पाखलो केँ लागलैक–
आब ई प्राणदायी बसात एहि प्रकृतिकेँ नब जान द’ देतैक। गाछ–बिरीछकेँ पागल बना देतैक। बसातक सिहकबक
संगहि पाखलोक मोनमे विचारक लहरि हिलकोर मार’ लागलैक। ई बसात
पच्छिम दिसक पहाड़केँ पार करैत, खेतक बीचोबीच धरतीकेँ चीरैत
नदीकेँ पार करैत पूबरिया पहाड़ दिस उछलैत बिना रूकनहि आगू बढि जाएत। ओ कतए सँ आएल
हेतैक? कोन ठामसँ आएल हेतैक? ई कहब
ओतेक सरल नहि अछि। ओ सभ ठाम भ्रमण करएबला प्रवासी अछि।
बसातकेँ अबितहिँ धरती ओहि बसातमे रंग उछालि ओकर स्वागत केलक। बसात धरतीक माथक
चुम्मा लेलकैक। गाछ सभक आलिंगन केलकैक। लत्तीसभकेँ बाँहिसँ पकड़ि कान्ह पर राखलकैक
आ फेर नीचाँ राखि देलकैक। फूल, फल आ पात सभक चुम्मा लेलकैक आ
पूरा बगैचामे सभकेँ हाथसँ इशारा करैत ओ आपस चलि गेल।
पाखलोकेँ मोनमे भेलैक, “जे
हमहुँ बसाते जकाँ एहि इलाकामे घूमि-फिरि रहल अछि। हम अपन जन्महि कालसँ एहि इलाकामे
रहि रहल छी। मुदा हम बसात जकाँ आबि कए चलि नहि जाइत छी अपितु एतुका निवासी भ’
गेल छी। एहि आम गाछक सदृश हमरहुँ जड़ि बहुत भीतर धरि गेल अछि। एहि
माटिक बल पर हम पैघ भेलहुँ, फरलहुँ-फुललहुँ। एहि माटिक संस्कारमे
पलल-बढ़ल पाखलो थिकहुँ हम।”
साँझ खतम भ’ कए गोधूलि भ’ रहल
छलैक। मंगुष्ठी झरना पर पानि भरि कए कन्या आ स्त्रीगण घर जा रहल छलीह। पाखलोक
ध्यान ओमहर नहि छलैक, अपितु आइ शामा पानि भरबाक लेल नहि आएल
छलीह, एहि लेल ओकरा जीवनकेँ फाँसी लागि गेल रहैक। हाड़-मांसुसँ
बनल पाखलो केँ एकटा कुमारि कन्यासँ सिनेह भ’ गेल रहैक आ ओ ओकरासँ बियाह करबाक लेल सोचि रहल छल। जकरा एक नजरि देखि
लेलासँ ओकरा नस-नसमे उमंग आबि जाइत छलैक वैह शामा आइ झरना पर नहि आयल छलीह,
तैँ ओ अपनाकेँ मंद महसूस करैत छल।
गोधूलि खतम हेबा पर रहैक आ अन्हार अपन पयर पसारि रहल छल। सांतेरी मंदिर लग
पाखलोकेँ पेट्रोमैक्सक जगमग करैत इजोत देखा पड़लैक। ओकरा आइ होमएबला बसंत पूजाक
स्मरण आबि गेलैक। बसंत पूजा दिन सांतेरी मायक पालकी बड़ धूमधामसँ बाहर निकलैत छैक।
ओ प्रकृतिमे आएल बसंत ऋतुसँ भेंट करैत छथि। ओहि राति ओ मंदिर आपस नहि जाइत छथि
अपितु बाहरे प्रकृतिक संग रहैत छथि। बसंत ऋतुक दिन गाम भरिक लोक भरि राति उत्सब
मनबैत अछि। पूजाक लेल तँ शामा अवस्से अओतीह, तखनहिँ हम
हुनकासँ भेंट क’ लेब। पाखलो सोचलक। शामासँ भेंट करबाक बहन्ने
ओकरा पूरा देहमे जोश आबि गेलैक, आ गामक दिस जयबाक लेल ओ
तीव्र गतिएँ चलए लागल।
मंगुष्ठी झरना पर सभ दिन जकाँ पाखलो आइयो अपन कपड़ा धोबैत छल। रबि लगाकए
आइ तीन दिन भ’ गेल रहैक। गोविन्द रबिकेँ किएक नहि अएलाह?
ओ यैह सोचि रहल छल। एतबहिमे दूरसँ – “पाखल्या!
यौ पाखल्या!” गोविन्द सन आवाज सुनबामे आएल। ओ
पाछू घूमिकए देखलक। गोविन्दकेँ देखतहि पाखलो तुरन्त उठल आ ओकरा दिस दौड़िकए गेल।
दुनू एक दोसरासँ हाथ मिलेलक। गोविन्दक कनहा अपन हाथसँ हिलबैत पाखलो पुछलकैक –
“अहाँ रबि दिन किएक नहि एलहुँ?”
“की कही, हमरा ऑफिसक मित्र लोकनि हमरा पिकनिक पर ल’ कए चलि
गेल छलाह। हम जाएवला नहि रही, मुदा की करितहुँ ओ सभ हमरा
जबरदस्ती ल’ गेलाह। हमर मोन करैत रहय जे आबि कए अहाँसँ भेंट
करी।” गोविन्द अपन मोन खोलि देलक।
“जाय दिअ, एखनहिं मिललहुँ यैह की कम अछि?
“चलू पहिने अहाँ नहा लिअ”
गोविन्दक कहला
पर पाखलो झरनामे नहाबए लागल। गोविन्दकेँ किछु कहबाक उत्सुकता रहनि। ओ अपना हाथसँ
पानि निकालि पाखलोक देह पर छिट्टा मारए लागल, पाखलो सेहो
हुनका पर पानि फेकलक। ओहिसँ गोविन्दक कपड़ा नीक जकाँ भीजि गेलैक। पाखलो केँ कने
खराप लागलैक। ओ गोविन्दसँ माफी माँगलक। गोविन्द एकरा सभकेँ मजाकमे उड़ा देलथि।
पाखलो
नहाकए अपन देह पोछलक। अपन कपड़ा सुखबाक लेल लारि देलकैक। बादमे दुनू गोटे आमक जड़ि
पर आबि बैसि गेल। पाखलो गोविन्दक आँखिमे देखलक। गोविन्द किछु कहए चाहैत छल,
ई हुनका आँखिसँ पाखलोकेँ पता लागि गेल।
“कोनो नब समाचार?” पाखलो पुछलकैक।
“समाचार? एकटा नब समाचार अछि।”
“कोन समाचार?”
“हमरा लेल एकटा संबंध आएल अछि।”
“अहाँक लेल संबंध? कतएसँ? केकर?” पाखलो एकक बाद एक प्रश्न केलक।
“ई सभ हम अहाँकेँ बादमे कहब।
पहिने बताउ, जे शामा आइ पानि भरबा लेल आयल छलीह?”
“हँ….नहि......, एखन धरि
तँ नहि।” पाखलो सोचिकए जवाब देलक।
“नहि ने? तखन तँ हमर
अनुमान ठीके भेल। हम अहाँकेँ आर नहि उलझाएब। हमरा लेल विन्या आपाक दिससँ शामाक लेल
संबंध आएल अछि। हम ओकरा साफ मना क’ देलिऐक।”
पाखलोकेँ बतएबाक लेल आनल गेल रहस्य गोविन्द खोलि देलक।
“मुदा संबंधक लेल अहाँ मना किएक कहलहुँ?” पाखलो फेर प्रश्न केलक।
“एकर जवाब तँ बड्ड सरल छैक यौ।” गोविन्द बाजल—
“शामाक जोड़ीक
लेल अहाँक प्रयोजन अछि हमर नहि। अहाँकेँ स्मरण अछि, हम एकबेर
अहाँकेँ कहने रही – “शामा आ अहाँक जोड़ी केहन रहत?” किछु कालक लेल दुनू गोटे चुप भ’ गेल।
बादमे गोविन्द बाजए लगलाह—
“हम दुपहरकेँ घर गेल रही। खएलाक बाद
माय हमरा एहि संबंधक बारेमे बतौलनि। हम साफ मना क’ देलियनि,
मुदा किएक? से नहि बतौलियनि।”
“नहि गोविन्द, एहि संबंधकेँ नकारि अहाँ नीक नहि केलहुँ। अहाँ हमरा लेल त्याग क’ रहल छी। ई हमरा नीक नहि लागि रहल अछि।” पाखलो कहलक।
“एहन नहि छैक पाखलो, अहाँ बुझैत नहि छी। अहाँकेँ किओ नहि अछि। आ शामा अहाँकेँ पसिन्न सेहो अछि।
ओ अहाँकेँ भेटि जेतीह तँ हमरा खुशी होएत।”
“मुदा हमरा संग.....”
पाखलो किछु कह’ वला रहथि।
“ओ सभ बादमे देखल जेतैक।”
एतबा कहि गोविन्द चुप भ’ गेल। पाखलोक मोन विचलित भ’ गेलैक, मुदा शामाक सभ स्मरण एखनहुँ ओकरा मोनमे महकैत रहैक। शामा द्वारा गोविन्दक
लेल कएल गेल पूछारि....., ओकर मीठ-मीठ बोली....., फूल-सन ओकर हँसी.....सभटा।
ओकरा दुनूकेँ देखि शामा झरनासँ बिना पानि
भरनहिं आपस चलि जाइत छलीह।
तकर बाद ओ शामासँ भेंट केलक आ “हमरासँ बियाह करब?”
पूछलकैक। शामा ओकरा “हँ” कहतैक ओकरासँ यैह अपेक्षा छलैक पाखलोकेँ, मुदा ओ
बाजलि, “नहि अहाँ पाखलो थिकहुँ!
” पाखलो शामाकेँ किछु कहबाक लेल मुँह खोलनहि छल आकि ओ ओतएसँ चलि
देलीह। पाखलोक मोन तँ बुझु जे नागफनी सँ भरल रेगिस्तानक सदृश भ’ गेलैक।
·
पाँच
शंभुक
होटलमे रातिक भोजन कएलाक पश्चात् हम दीनाक घर दिस चलि देलहुँ। आइ बहुत काज केने
रही तहि लेल सौंसे देहमे दरद छल। भूइयाँ पर पड़ितहि हमरा निन्न आबि जाएत, एहन बुझाइत छल।
बान्ह पर पहुँचबाक देरी नहुँ-नहुँ बसात
सिहक’ लागल। अहा!........ केहन शीतल बसात छैक!
बसात लगितहिँ देहमे हरियरी आबि गेल। बान्हक एक दिस खेत-पथार आ दोसर
दिस मांडवी नदी बहैत छलैक। बगलक नारियरक गाछसँ आवाज आबि रहल छलैक। चारू दिस
अन्हारे-अन्हार छलैक! एहि अनहरियामे जान आबि गेल रहैक।
अन्हारमे उपर भगजोगनी भुकभुक करैत छलैक। नदीक कारी पानिमे माछ सभ उछलैत रहैक आ ओकर
लहरि भगजोगिनिएँ जकाँ दीप्यमान भ’ रहल छलैक।
बान्हक बीचहि मे मूलपुरुष (ग्रामदेवता)क मंदिर
नुकाएल रहैक। ओ मंदिर एकदम टूटि गेल रहैक। मंदिरक उपर चार नहि छलैक। मंदिरक चारू
कातक देवाल सभमेसँ आगूक देवाल तँ एकदम्मे टूटि गेल रहैक। बाँकी तीनू देबाल पर
सिम्मर, बर, अश्टी सन पैघ-पैघ गाछ सभ जनमि गेल
छलैक। गोविन्दक विचारसँ मूलपुरुषकेँ खुब पैघ खुलल मंदिर भेटल छनि। ओ कहैत छल – “एहि चारू गाछ पर आकासक छत छैक आ एहि मंदिरमे
मूलपुरुष रहैत छथि।”
चलैत–चलैत हम मूलपुरुषक मंदिर लग पहुँच
गेलहुँ। एहि मंदिरमे हम एकबेर साँप देखने रही, ओ स्मरण
अबितहिं हमर सौंसे देह सिहरि गेल।
नेनपनमे एकबेर हम आ गोविन्द माछ मारबाक
लेल नदी पर गेल छलहुँ। बहुत कालक बाद हमरा बंसीमे एकटा खर्चाणी (माछ) फंसल
छल। ओकरा हम एकटा नारियरक सिक्कीमे गूथि लेलहुँ। बाटमे मूलपुरुषक मंदिर भेटल। बंसी
नीचाँ राखि हम दुनू गोटे मूलपुरुषकेँ गोर लागबाक लेल गेलहुँ। मूलपुरुषक कारी
मूर्ति, मंदिरक टूटलका भागमे पाथरक ढेरीक बीचमे छलनि। हम अपन हाथक माछ
मंदिरक सीढी पर राखि देलहुँ। हम दुनू गोटे मूर्ति लग माथ टेकलहुँ। ने जानि कतएसँ
ओहि मूर्ति लगक पाथर पर एकटा साँप आबि अपन फन काढ़ि ठाढ़ भ’
गेलैक। हम दुनू गोटे बहुत डरि गेलहुँ आ पाछू हटि गेलहुँ। पछाति जा कए ओ साँप ससरि
कए ओहि पाथरक ढेरीमे ढूकि गेल। गोविन्द तँ डरक कारणेँ बुझू जे पाथरे बनि गेलाह। हम
सभ भगवानक सीढी पर माछ रखने छलहुँ, एहिलेल हुनका खराप लागलनि
की? हमरा मोनमे एहन भेल। हम आपस सीढी लग गेलहुँ आ ओतए राखल
माछ उठाकए नदीमे फेकि देलहुँ। हमसभ पुनः मूलपुरुषक पयर पर गिर कए हुनकासँ माफी
माँगलियनि।
हम गोविन्दसँ पूछलियनि,
“हम माछ राखने छलहुँ एहिलेल मूलपुरुषकेँ गोस्सा आबि गेलनि की?
मंदिर भ्रष्ट भ’ गलैक की?”
“नहि यौ, एहन
कतहुँ होइक? गामक लोकतँ हुनका माछो चढबैत छनि।” गोविन्द जवाब देलक।
“तखन साँप किएक देख’ मे आएल? हम माछ राखने रही, एहिलेल
मूलपुरुषक मंदिर भ्रष्ट भ’ गेलैक की?”
“अहाँक माछ रखलासँ मंदिर कोना भ्रष्ट भ’
जेतैक?”
“हम..............।”
“चुप रहू, पाखलो
भेलहुँ तँ की भेल? पछिला बेर तँ हम इमली आ आँवला रखने छलहुँ,
तखनहुँ मंदिर भ्रष्ट भेल छलैक की? नहि ने! अहाँ चुप रहू आ ककरो किछु नहि बतेबैक।”
हम मूलपुरुषक मंदिर लग पहुँचि गेलहुँ।
मंदिरक चारू दिस पहाड़ छलैक आ बीचमे मंदिर। रातुक अन्हारमे पहाड़ कारी देखाइत
रहैक। उपर तरेगणसँ सजल अकाश। जेना घरक धरेन आ छप्पड़, एहि दुनूक बीचसँ इजोत अबैत छैक ओहने इजोत अकाश आ पहाड़क बीच पसरि रहल
छलैक।
हम अपन जूता खोललहुँ आ मूलपुरुषकेँ गोर
लागलहुँ। रातिक अन्हारमे मूलपुरुषक मूर्ति नहि लखा दैत रहैक। हमरा भेल जे जेना
मूलपुरुष एतए अन्हारक एकटा बड़का टा रूप ल’ कए पूरा संसार पर पसरि
गेल छथि।
मूलपुरुषक मंदिर बहुत प्राचीन छैक।
मांडवी नदीक कछेर पर एहि गाम केँ बसौनिहार आदिपुरूष वैह छथि। पहिने ई गाम बाढ़िमे
डूबि जाइत छलैक मुदा मांडवी नदी पर बान्ह बान्हि ओ एहि गामक सृष्टि केने रहथि।
हुनका मरलाक उपरान्त एहि गामक लोक सभ हुनकर स्मरणमे ई मंदिर बनौने छल। एहि तरहेँ ई
मंदिर आ मूलपुरुष द्वारा बनाओल गेल ई बान्ह, दुनू बहुत पुरान अछि।
हम
मूलपुरुष द्वारा बनाओल गेल ओहि बान्ह दए चलि रहल छलहुँ। आ एहि बान्हक कारणेँ बसल
गाममे हम, माने पाखलो रहैत रही।
·
दीनाक बैसकी घरमे
सभ दिन जकाँ हम चटाय बिछा कए बैसि गेलहुँ। दिनाक बेटा एकटा चिट्ठी आनि हमरा हाथमे
थमा देलक। ओ चिट्ठी गोविन्देक छलैक। बहुत दिनक बाद ओ हमरा चिट्ठी लिखने रहय,
एहिलेल हमरा बड्ड प्रसन्नता भेल। गोविन्दक संग घूमब-फिरब, केगदी भाटक पोखरिमे नहाएब, हेलब, ई सभ सोचैत-सोचैत हम चटाय पर सूति गेलहुँ आ माथ धरि कम्मल ओढ़ि लेलहुँ।
बहुत राति बीति गेल, मुदा हमरा निन्न नहि आबि रहल छल। हमरा मोनमे केगदी भाटक पोखरिक चित्र
बेरि-बेरि आबि जाइत छल! लील रंगक आकाशक प्रतिबिंब पानिमे
चमकैत छलैक। आकाशक रंगीन मेघ पोखरिक लहरि पर हेलि रहल छल। आकाश अपन छवि पोखरिक पानिमे देखि मोनहि-मोन खूब प्रसन्न होइत छल आ “ई रूप नीक नहि अछि।” ई सोचि ओ अपन रूपकेँ नव रूपमे
रंगैत छल आ मेघक वस्त्र पहिरैत छल।
पोखरिक लग केगदी (केबड़ा) झाड़ ओ
केबड़ाक गाछ सभक बड़का टा जंगल रहैक, ओ पोखरिक महार केबड़ाक
झाड़ीसँ भरल रहैक। जखन केबड़ाक झाड़ पर फूल फूलाइत छैक ओहि समय हमसभ नहएबाक लेल
गेल छलहुँ। केबड़ा फूला गेल छलैक। पीयर-पीयर केबड़ा हरियर-हरियर पातसँ बाहर आबि,
अपन जी देखा-देखा कए कबदा रहल छलैक। पूरा वातावरण केबड़ाक सुगन्धसँ
भरल रहैक। हम आ गोविन्द पोखरिमे कूदि गेलहुँ। दुनूगोटे हेलैत-हेलैत केबड़ाक द्वीप
लग पहुँचलहुँ। द्वीप पर केबड़ाक बहुत घनगर जंगल रहैक। दुनू गोटे केबड़ाक झाड़क
अंदर घूसि केबड़ाक फूल तोड़ए लागलहुँ। फूल तोड़ि पोखरि पार केलहुँ। ओ सभटा पोखरिक
कछेर पर राखि देलिऐक। बादमे बेंग जकाँ हमसभ पोखरिमे डुबकी लगौलहुँ। भरि दम साँस
घीचि ओहिना पानिमे डूबि गेलहुँ, तँ ओहि साँसक संगे बाहर
भेलहुँ। सौंसे देह डूबल छल, मुदा माथक केश हेलैत नारियर सदृश
बुझाइत छल।
हमरा गाम क्षेत्रफल आन गामक अपेक्षा कने
पैघ छैक। गाममे खेतक मैदान, जंगल ओ पहाड़ हमरा सभकेँ घूमबाक लेल कम
पड़ि जाइत छल। नाह पर पतवारि चलाबैत हमसभ नदीमे झिझरी खेलैत रही। नदीमे नहएलाक
पश्चात् हेलिकए नदी पार करैत रही। अज्ञातवासक कालमे पांडव लोकनि द्वारा बनाओल गेल
पोखरिमे हमसभ नहएबाक लेल जाइत रही।
ओ पोखरि बहुत सुन्नर रहैक।
पैघ-पैघ पाथर पर पोखरिक चारू दिस नीक चित्रकारी कएल गेल रहैक। चारू दिससँ सीढी
होइत लोक पोखरिमे ढूकैक छल। पोखरिक चारू दिस पाथरक मेहराब
छलैक। हर एक मेहराबक भीतर दू-तीनटा कक्ष इजोतसँ भरल। एहि कक्ष सभक देबालक खाम्ह पर
लत्ती सभ आ आदिकालीन माल-जाल, चिड़ै-चुनमुनीक आकृति बनल रहैक। एहन
बुझाइत रहैक जेना एहि मनोहर आकृति वला कक्षमे भगवान अमृत-कलश राखि देने होथि,
ठीक ओहिना लेटेराइट पाथरसँ निर्मित एहि पोखरिमे कौआक आँखि-सन साफ
पानि देखिकए ककरहुँ मोन मुग्ध भ’ जाइत छलैक। एतेक स्वच्छ
पानिमे हमसभ नहाइत छलहुँ। नहएलाक बाद गोविन्द मेहराबक कक्षमे जा कए कोनो ऋषि-मुनि
जकाँ ध्यानस्थ भ’ बैसैत रहथि। तखन बुझाइक जे ओहि लेटेराइट
पाषाणसँ महाभारतक काल घुरि एलैक।
पछिला किछु सालक स्मृतिसँ हमर रोइयाँ
ठाढ़ भ’ गेल। ओह......हमर माय! हमरा एहने लागल,
जे हमर साँस केओ बन्न क’ देलक, हमरा गरमे फंदा बान्हि देलक। एकबेर हम आ गोविन्द जखन एहि पोखरिमे नहा रहल
छलहुँ तखनहिं भट बाबू ओहि बाटे जा रहल छलाह। हमरा पोखरिमे नहाइत देखि ओ, “पाखलो पोखरि भ्रष्ट केलक!
पाखलो पोखरि भ्रष्ट केलक!” चिकर’
लागलाह! हुनकर चिकरब सुनि ओतए पाँच–छओ
लोक जमा भ’ गेल। भट बाबू हुनका लोकनिकेँ आदेश देलथिन,
जे ओ सभ हमर कान घीचि कए बाहर आनथि। ओ लोकनि हमर कान घीचैत हमरा
बाहर आनलथि। बादमे भट बाबू अपन छड़ीसँ हमरा खूब मारलथि। ओ हमरा मारैत-मारैत
सांतेरी मंदिर धरि ल’ गेलाह। भरि गामक लोक हमरा देखबाक लेल
ओतए जमा भ’ गेल छल। ओ हमरा सांतेरी मंदिरक सीढ़ी पर नाक
रगड़बाक लेल बाध्य केलथि। हम अपन नाक रगड़लहुँ, माँफी
माँगलहुँ, मुदा ओ हमरा पोखरिक लग बला लोहाक स्तंभसँ बान्हि
देलनि।
काल्हिए हम एहि स्तंभ पर नारियर
फोड़ने छलहुँ। सभक संग ढोल आ ताशा बजाकए शिगमो (धार्मिक उत्सव) खेलने छलहुँ
आ आइ हम स्वयं गामबलाक लेल एकटा तमाशा बनल रही। भट बाबू हमरा उपर नारियरक खट्टा
ताड़ी उझलि देलथि। एतबे नहि किओ हमरा उपर घोरणक छत्ता झारि देलक। घोरण काटतहि हम
जोर-जोरसँ चिकरए लागलहुँ। मुदा हमर असहायता पर किनकहुँ कनेको क्षोभ नहि भेलनि।
हमर ई हालति देखि गोविन्द
कानैत-कानैत दौड़ल हमरा मायकेँ बजा आनलक। ओ “हमर बच्चा…”,“हमर बच्चा…” कहैत कानल-कानल, दौड़ल एलीह मुदा हमरा सोझ अबितहिं ओ एकदमसँ गिर गेलीह। ओ बेहोश भ’ गेलीह आ बहुत काल धरि उठि नहि सकलीह। हुनका उठएबाक लेल हम दौड़हि वला रही,
मुदा जतए बान्हल रही, ओत्तहि रहि गेलहुँ। हुनका
किओ नहि उठौलक, उनटे लोक सभ ई तमाशा देखैत रहल। कनेक कालक
बाद ओ अपन ठेघुन टेकैत उठलीह। हुनका नाकसँ शोणित बहैत रहनि। हाथ आ पयर मे घाव भ’ गेल रहनि। ओ उठि कए हमरा लग अएलीह आ “हमर बच्चा…” कहैत हमरा गर लगौलीह। हम दुनू गोटे कानए लागलहुँ। ओ हमर बन्हन खोलबाक
प्रयास करए लागलीह मुदा ओहि समय चारि-पाँच लोक हुनका पाछाँ घीचि लेलकनि। बादमे
हुनकहुँ घीचि कए मंदिर लग ल’ गेल। ओ हमरा छोड़एबाक लेल भट
बाबूक हाथ-पयर पकड़ैत रहलीह मुदा ओ हुनका ठोकर मारि धकेलि देलनि। एतबा देखतहि हमरा
गोस्साक पारावार नहि रहल। हमरा देहक गरम खून दौड़ए लागल। हम जतय बान्हल रही ओत्तहि
चिकरि-चिकरि कए रहि गेलहुँ। बादमे हमर खून ठंढा भ’ गेल आ ओ
शनैः शनैः हमरा शरीरसँ निकलि रहल अछि, बुझाबए लागल......,
हमरा बुझाएल जेना हमरा पूरा शरीरक सभटा खून बहि गेल हो!
हमर माय कानि रहल छलीह आ हुनका सभक पयर
पकड़ि रहल छलीह, मुदा हुनक गोहारि किओ नहि सुनि रहल छल। ओ
जहिना हमरा छोड़ाबए आगू आबथि, लोक हुनका रोकि लैक। बादमे जखन
ओ गोस्सासँ महाजनकेँ गारि पढ़ब सुरह क’ देलनि तँ लोक सभ
हुनकहुँ घसीट’ लागल आ जाहि स्तंभसँ हम बान्हल रही ओहि
स्तंभसँ हुनको बान्हि देलनि। आब हमर मुँह पूब दिस तँ हुनक मुँह पच्छिम दिस भ’ गेल। हम दुनू गोटे एकहि स्तंभ सँ बान्हल छलहुँ, मुदा
एक दोसराकेँ देखि नहि पबैत छलहुँ। ओ “हमर बच्चा…”,“हमर बच्चा…” कहि कए कानैत छलीह, तँ हम माय....., माय....., चिकरि
कए कानि रहल छलहुँ। किछु समयक पश्चात् ओ कोनहुँ तरहेँ अपन हाथ पाछू आनि हमरा
छूलनि। हम दुनू दिनभरि ओहि स्थिति मे रहलहुँ।
पोखरिक शुद्धिकरण करएबाक लेल ओ होम-जाप
करौलनि। चारिटा केराक थम्ह आनल गेल आ पुरहित लोकनि होम सुरह केलनि। ओ लोकनि होमाग्नि
जरौलनि। मंत्रोच्चारण करैत ओ लोकनि ओहिमे समिधा झोंकए लगलाह। हमरा बुझाएल जे ई सभ
हमरा आ हमरा माय, दुनूकेँ एहि आगिमे झोंकि देत। होम चलितहि
काल एकटा पुरहित ओहि होमसँ आगि आनि हमरा पयर पर राखि देलक। हमरा बुझाएल, जेना हम काल्हि होलिका जरौने छलहुँ तहिना ई सभ आगि लगा हमरा दुनू माय-पूत
केँ जरा देत। मुदा ओ एना नहि केलक। आगिक कारणेँ हमरा पयरमे फोका भ’ गेल छल जे दर्द करैत रहए। होम-हवन चलि रहल छल आ फाँसी पर चढ़’ वला अपराधी जकाँ हम जतए बान्हल रही, ओतहिसँ हुनका
सभकेँ देखि रहल छलहुँ। गामक लोक सभ एहि घटनाकेँ एकटा उत्सव जकाँ देखि रहल छलाह।
दादी ओहि दिन गामसँ बाहर गेल रहथि। साँझ
खन घुरितहि गोविन्द हुनका हमरा सभक खबरि देलक आ संगहि ल’
कए पोखरि पर आबि गेल। हमरा आ हमरा मायकेँ स्तंभ सँ बान्हल देखि कए दादी बहुत दुखी
भेलाह। जाहि दादीक आँखिमे हम आइधरि नोर नहि देखने रही; ओहि
दिन देखि लेलहुँ। ओ हमरा छोड़ा देलथि। ओहि काल ई देखबाक लेल ओहिठाम गामक किओ नहि
रहथि।
एहि घटनाक पश्चात् हमरा गामक लोक पर
कनेको गोस्सा नहि आएल, किएक तँ गाममे हमरा छोड़ाकए आनएवला आ
गोविन्द सन हितैशी आर किओ नहि रहथि। नारियरक फुटलका खोली जकाँ गरि जाइवला एहि
घटनाक स्मृति आब शेष रहि गेल अछि। एहि घटना सभमे सँ एक, स्तंभ
पर नारियर तोड़बाक अछि, ई बताबए वाली हमर माय....., हमरा प्रह्लादक होलिकाक आगिसँ बचाबए वाली हमर माय....., हमरा आँखिक सोझ ठाढ रहलीह आ हमरा आँखिसँ अनायासे नोर खसय लागल।
·
हम गोविन्दक मायकेँ शोर पारलहुँ। ओ हमरा घरक भीतरहिसँ आबाज देलथि। ओहि समय ओ चाउर बीछैत छलीह। ओ उठि कए
बाहर एलीह आ हमरा देखि कए बजलीह, “आउ
बाउ, बैसू!।” हम
घरक अंदर गेलहुँ। ओ हमर हालचाल पूछय लागलीह।
“एतेक दिन धरि कतए छलहुँ अहाँ?”
“नहि बाय...... ”
हम किछु कहए चाहैत छलहुँ
“.... आइ-काल्हि काजमे बेसी व्यस्त
रहैत छी ताहि लेल अएबाक अवसर नहि भेटैत अछि की?”
“...असलमे आइयहु तेहने काज छल, मुदा गोविन्दसँ भेंट करबाक रहए एहिलेल ओवरटाइम छोड़िकए आएल छी।”
ओ अदहनमे चाउर गिराब’ गेलीह आ हम ओहिठामक बेंच पर बैसि गेलहुँ। बेंचक एक कोनमे ट्रंक आ ओहिपर
गोविन्दक किताब राखल छलैक। हम एकटा उपरला किताब निकाललहुँ, ओ
अंग्रेजी मे छल, एहिलेल हम नहि पढ़ि सकलहुँ आ ओ आपस राखि
देलिऐक। बादमे सबसँ नीचा वला किताब निकालहुँ, मुदा ओ
पुर्तगाली मे छल एहिलेल ओहो राखि देलहुँ। ट्रंक लग कपड़ा टाँगबाक एकटा हैंगर रहैक
जाहिपर दादीक दू टा कमीज आ गोविन्दक एकटा पैन्ट टाँगल रहैक। एखन धरि तँ गोविन्दकेँ
पणजीसँ आपस आबि जएबाक चाही! एहिलेल हम खिड़कीसँ बाहर
देखलहुँ। मुदा रस्ता सून छल। मैदानसँ होइत ओ रस्ता अपन देह टेढ-मेढ़ केने सीधे गाम
धरि आबि रहल छल। आगू पैघ-पैघ गाछ-बिरीछक कारणेँ शहर गेल गोविन्दक छाँह धरि नहि
बुझाइत छलैक।
दादी बजारसँ आबि गेल छलाह। ओ हमर हालचाल
पूछलनि। हम कनी मोटगर-डटगर भ’ गेल रही एहि लेल ओ हमर प्रशंसा
केलनि।
ओहि दिन दूपहर धरि दादी, ओकर माय, आ हम, गोविन्दक
रस्ता-पेड़ा देखैत रहलहुँ। ओ नहि आएल, एहिलेल हमसभ कने निराश
छलहुँ। बहुत कालक बाद हमसभ भोजन केलहुँ। दादी सुतबाक लेल गेलाह आ हम ‘पुनः आएब’ ई कहि चलि देलहुँ।
रस्तामे आलेससँ भेंट भेल। ओकरा देखि हमरा
कने आश्चर्य भेल, किएततँ ओ कहियो अपन ओवरटाइम नहि छोड़ैत छल।
एतए धरि जे रबियोक दिन ओ भोरे-भोर उठि कपेल गेलाक बाद ओ काज पर जाइत छल। हम
पुछलियनि—
“आलेस! बीचहि मे
काज छोड़िकए आएल छी की?”
“आबए पड़ल!
नारियरक गाछसँ रस निकाल’ वला मजदूर पेद्रूक देहांत भ’ गेलैक।” आलेस बतौलनि।
“की भेल छलैक ओकरा?” हम पूछलहुँ।
“पता नहि, हमरा
निकलतहि ओ मरि गेल।” आलेस कहलनि। आलेसक संगहि हमहू ओकरा घर
धरि गेलहुँ।
दोसर दिन पेद्रूक अंतिम संस्कारमे हमरहु
जाय पड़ल। छोटका गिरिजाघरक लगीच वला श्मशान घाटमे ओकर अंतिम संस्कार भेलैक।
पेद्रू एकटा हिन्दू मौगी रखने रहए, किन्तु ओ ओकरासँ बियाह नहि केने रहय। ओ जा धरि छलीह ताधरि पेद्रूक संसार
नीक जकाँ चललै, मुदा जखन ओ मरि गेलीह तँ ओकरा श्मशानक बाहरे
गारल गेल छलैक। किएक तँ ओकर अंतिम संस्कार श्मशान घाटमे नहि करय देल गेल रहैक एहि
लेल पेद्रू कानि रहल छल।
ई घटना स्मरण अबितहि हम स्वयं उधेड़बुन
मे पड़ि गेलहुँ। एहि उधेड़बुन मे हमरा एकटा पछिला गप्प स्मरण आबि गेल। एहि छोटका
गिरिजाघरमे हमरा बपतिज्म (ईसाई धर्मदीक्षा) देल गेल छल। ताहि समय हम बहुत
छोट छलहुँ। तखन स्कूलो नहि जाइत छलहुँ। अपन मायकेँ बता कए हम आलेसक ओहिठाम गेल
रही। ओकरा घरमे ओकर पिताजी हमरासँ पूछलथि—
“अहाँ त’ पाखलो
छी ने?”
“हँ” हम जबाब
देलहुँ।
“किएक तँ अहाँ पाखलो छी एहिलेल ईसाई
भेलहुँ ने?”
हम चुप रहलहुँ।
“अहाँ काल्हि आलेसक संग आएब, काल्हि उत्सव छैक।”
दोसर दिन हम आलेसक संग गेलहुँ। ओहि समय
हमरा ओतुका पादरी बपतिज्म देलनि। एहि बातक खबरि हम ककरो नहि लागए देलिऐक।
घर अएलाक बाद, आलेसक ओहिठाम जे हमरा बिस्कुट खएबा लेल देल गेल छल, ओकरा
हमर माय बाहर फेकि देलथि। ओ हमरा धमकी देलथि—“विठू! एना जँ अहाँ ककरो-कहाँसँ किछुओ खएबाक चीज ल’ लेब तँ
हम अहाँक जान ल’ लेब।”
हमरा गाममे एहिसँ पहिने ईसाई आ
हिन्दूक बीच कहियो झगड़ा-फसाद नहि भेल छल, मुदा ‘ओपिनियन पोल’क समय गामक बजारक वार्डमे ईसाई आ हिन्दू,
दुनू समुदायक लोकक बीचमे झगड़ा भ’ गेल। ओहि
दिन किओ एक दोसराकेँ ओकर धर्म लगा केँ गारि देलकै, आकि झगड़ा
बाझि गेल। ओहि राति एक दोसराक घरक आगूक तुलसी चौरा आ क्रॉस तोड़ि देल गेल।
घर-दरबज्जाक आगू तोड़ल गेल तुलसी चौरा आ क्रॉसक माटिक ढेर लागि गेल। दोसर दिन
झगड़ा आर भयानक रूप ल’ लेलकै। लोक सभ डंडा, तलवार आ ढाल ल’ कए एक दोसराकेँ मारि देबाक लेल तैयार
छलैक। किछुकेँ मारियो देल गेलैक। हम एहि दुनू समुदायक बीच घूमि रहल छलहुँ, आ की भ’ रहल छैक देखि रहल छलहुँ। हमरा मारबाक
लेल किओ नहि अबैत छल। “हम नहि तँ ईसाई रही, आ ने हिन्दू, एहिलेल हमरा छोड़ि देल गेल की? हमर संबंध दुनूसँ अछि, एहिलेल हमरा ओ लोकनि नहि
मारलनि की?” हमरा मोन मे एहि तरहक प्रश्न उठय लागल। दुनू
समुदायमे हमर मीत लोकनि छलाह आ हम हुनका सभसँ मिलैत छलहुँ।
जँ झगड़ा आर बढ़ि जेतैक तँ खूनक नाली बहि
जेतैक, एहिलेल दुनू समुदायक लोक डरि गेलाह। बादमे हम दुनू समुदायक
लोकसँ मिलिकए हुनका सभकेँ समझौलहुँ-बुझौलहुँ, हुनका बीच
समझौता करबौलहुँ। ओहि समय हम हुनका सभकेँ एकजुट करएवला आ एक दोसराक समाद ल’ जाएवला दूत बनि गेल छलहुँ।
एहि गाममे हमर परिचय फकत एतबा अछि जे हमर
नाम पाखलो थिक, हमर जाति पाखलो थिक, आ हमर धर्म सेहो
पाखलो थिक।
·
छओ
केगदी भाटक पैंतीस-चालीस रैयत, मूलपुरुषक मंदिर लग जमा भ’ गेल छल। सुभलो आ सोनूक
बीच बैसल दादी सभसँ नीक लगैत छलाह। रैयत, किसान, कुणवी (गोवा राज्यक आदिनिवासी) सहित गामक सभ लोक ओतए जमा छल।
रैयत सभ अपन-अपन माँग ओतए राखलक। जमींदार
ककरो घर तोड़ि देने रहैक तँ ककरो घर नहि बनाब’ दैत रहैक। किछु रैयतकेँ
जमींदार बेदखल क’ देने रहैक तँ किछुकेँ हफ्ताक नारियर नहि
देने रहैक। एहि तरहक बहुत रास माँग रहैक। सभक चेहरासँ गोस्सा आ नाराजगी झलकैत
रहैक।
प्रस्तुत कएल गेल सभ माँग पर जखन चर्चा
होमए लागल तँ किछु हल्ला-गुल्ला होमए लागलै। सुभलो गाँवकर लोक सभकेँ चुप करबाक
प्रयास केलनि, मुदा हल्ला आर बढ़िते गेल। तखनहि दादी उठि कए अपन दमगर आबाजमे
बाजए लागल—
“हम सभ एहि कांदोले गामक गाँवकर सदा
जमींदारक केगदी भाट रैयत थिकहुँ। ओना हमरहिमे सँ किछु ओकरा खेतक हिस्सेदार सेहो
छी। हम सभ ओकरा खेत-भाटमे काज करैत छी, मुदा हमरा जतबाक
आवश्यकता अछि ततबो हमरा पेटकेँ नहि भेटैत अछि, अपितु ओ सभ
जमींदारक गोदाममे चलि जाइत अछि। केगदी भाटमे हरएक नारियर तोड़बाक दिन लाखो नारियरक
ढेरी लागि जाइत अछि, मुदा सदा
जमींदारक मर्जीक बिना हमरा सभकेँ एकोटा नारियर खएबा लेल नहि भेटैत अछि। एहि भाटमे
नारियरक गाछ लगाबी हमसभ, ओकरा पानि पटा कए नमहर करी हमसभ,
भाटमे खाद छीटी हमसभ, ओकर ओगरबाहि करी हमसभ,
ओकर हत्ता बनाबी हमसभ, सुरक्षा करी हमसभ आ दू
टा नारियर खएबा लेल हमरा सभकेँ जमींदारक मुँह देख’ पड़ैत
अछि। एहि माटिक पूतकेँ एहि भाटमे घर-मकान नहि बनाब’ देल जाइत
छैक। ताहू पर जबरदस्ती ओकरा सभक घर तोड़ि देल जाइत छैक। आब हमरा सभकेँ हमर न्याय
भेटबाक चाही। हमरा सभ पर जे अत्याचार भेल अछि से दूर हेबाक चाही, माने दूर हेबाक चाही।”
“हँ, हँ”,
जमा भेल भीड़सँ एहि तरहक नारा सुन’ मे आएल।
बादमे दादी आर जोरसँ बाजए लागल। ओकर आवाज लोकक कानमे गूँजए लागलैक।
पाखलोक पूरा देहमे बिजलौका चमकि गेलैक। ओ
अपन गरम भेल कान पर गोविन्दकेँ हाथ रखबाक लेक कहलकैक।
भगवान पर अक्षत छीटलाक पश्चात् हुनकर
गोहारि केलासँ जे लोकक शरीर पर भा आबि जाइत छैक, तहिना दादीक
भाषण सुनि कए लोक सभ पर भा आबि गेलैक, एहने
बुझाइक! दादीक बाजब जारी रहैक—
अपन मौगीक परतापें ओकरा ई केगदी भाट भेटल
छैक। यैह सदा, दत्ता जल्मीकेँ जित्ते मारि कए ओकर खाजन भाट (क्षेत्र
विशेषक खेत) फिरंगीक सहायतासँ अपना नामे करवा नेने अछि। ओकरा कनेको लाज-शरम
नहि छैक। ओहू पर ओ गाममे राजा जकाँ घूमि रहल अछि। ई गाम सदा जमींदारक नहि थिकै।
गामक खेत-भाट हमरा सभक थिक। एहि खेत मे काज करएवलाक खेत-भाट थिकै। कागत पर लिखा
नेने ई ओकर नहि भ’ जेतैक। जँ एहन हेतैक तँ ओ एहि देशकेँ सेहो
कागत पर लिखवाकेँ राखि लेत आ ओ एहि देशहुँकेँ कागत पर लिखि ककरो हाथेँ बेचि लेत।
आब हमसभ जमींदारकेँ देखा देबैक जे ई खेत-भाट हमरे सभक थिक। खेत-भाटमे काज करएवलाक
थिक। हमरा सभक असहयोगेक कारणेँ केगदी भाटमे नारियर तोड़ब एखन धरि बाँकी रहि गेल
अछि। ओहि समय जमींदारकेँ एहसास भ’ जेबाक चाही रहए।
मुदा ओ तँ अकिले केर आन्हर अछि। सुनलहुँ
अछि जे भाटमे नारियर तोड़बाक लेल ओ गामसँ बाहरक पाडेकर (पेशेवर नारियर तोड़’
वला) केँ लाबए बला अछि। ओकरा अएबासँ पहिनहि हम सभ सभटा नारियर
तोड़ि कए देखा देबैक जे ओ भाट हमरा सभक थिक। चलै चलू, आइए, एखने ओहि भाटक सभटा नारियर तोड़ि देबैक,
चलै चलू, ढाल आ गड़ाँस ल’ कए अबैत जाउ!
सभ किओ ओहि जोशक संग उठल आ ढाल-गराँस ल’
कए केगदी भाटक दिस चलि देलक। भाटमे हर एक नारियरक
गाछमे गुच्चाक गुच्छा नारियर लागल रहैक।
एतेक पैघ केगदी भाट, जकर नारियर तोड़बाक लेल महीनाक महीना लागि जाइत छलैक, एकहि दिनमे एक चौथाई सँ बेसी नारियर तोड़ि देल गेलैक। गुच्छाक गुच्छा
नारियर गिर रहल छल। भाटमे नारियरक बड़का-बड़का ढेर लागि गेल छलैक। साँझ पड़ि गेल रहैक मुदा एखन धरि सभ किओ नारियर तोड़बामे व्यस्त रहए।
एतबहि मे, “पाखलो गिर गेलैक, पाखलो गिर गेलैक”, एहन हल्ला मचि गेल। नारियर तोड़ब
छोड़ि सभ किओ पाखलो लग जमा भ’ गेल।
पयरक छान छूटि गेलाक कारणेँ पाखलो
नारियरक गाछसँ नीचा गिर गेल छल। नारियरक गाछसँ ओकर पेट, जाँघ, हाथ-पयर आ छाबा घसीटा गेल छलैक जकरा कारणेँ
ओकर चाम निकलि गेल छलैक। ललाटक घावसँ खून बहि रहल छलैक। दादी आ सोनू ओकरा सहारा दए
उठाकए बैसैलक आ पानि पियौलक। होशमे एलाक पश्चात्, की भेल छल? ई जानि पाखलो हँसय लागल।
बैसल पाखलोकेँ गोविन्द हाथक सहारा दए
उठौलक। चलू, घर चलैत छी! गोविन्द पाखलोसँ कहलक। सोनू
बाजल, “नहि, पाखलोकेँ
हम अपन घर ल’ जाएब, ई बहुत जख्मी भ’ गेल छैक आ एकरा बहुत चोट लागल छैक। एकरा हम घर ल’
जा कए जे किछु दवाई-बिरो करबाक हेतैक से करबा देबैक।”
ओहि दिनक नारियर तोड़ब बन्न भेल। पाखलो
अपन मामाक घरक रस्ता पर चलि रहल छल।
·
दोसर दिन फेर नारियर तोड़ब सुरह भेल।
पाखलो अपना माथ पर रुमाल बान्हि ठाढ भ’ गेल। दोसरा जकाँ ओहो
नारियर तोड़बा लेल सोचि रहल छल, मुदा ओकर मामा ओकरा गाछ पर
चढबासँ मना क’ दलकैक। एकर बाबजूदो ओ नारियर तोड़ि लितए,
मुदा सौंसे देहमे भ’ रहल दरदक कारणेँ ओ एहन
नहि क’ सकल। रजनी जीरा पीसि कए ओकरा पीठ आ कन्हा पर लगौने
छलीह। घावसँ जीरा नहि निकलि जाय एहिलेल ओ नारियरक गाछ पर नहि चढ़ल।
काल्हि रजनी पाखलोक शरीर पर भेल घावकेँ
धो-पोछि कए दवाइ लगौने छलीह। ललाट पर जे घाव भेल रहैक,
ओहि पर दवाई लगा कए पट्टी बान्हने छलीह। कुल्हा आ पीठ पर जीरा पीसि
कए लगौने छलीह। रजनीक ई रूप देखि कए पाखलोकेँ अपन मायक स्वरूप याद आबि रहल छलैक।
रजनी केलबायक मूर्ति-सन सुन्नरि लागि रहल छलीह।
रजनी ओकर मामा एकलौती बेटी छलीह। ओ बहुत
शांत आ विनम्र स्वभावक छलीह। रजनी जखन दूध आनि कए पाखलोकेँ पीबाक लेल देने छलीह, ओ पीबैत काल पाखलोकेँ रजनीक वात्सल्य भावक एहसास भेल छलैक। क्षण भरिक लेल
ओकरा मोनमे भेलैक जे एहि ममतामयी देवीक चरण छूबि ली। काल्हिसँ पाखलो एकटा अलगे
दुनिया मे विचरण क’ रहल छल। ओकरा मोनमे कतहुँ कोनो मंदिरक
रचना भ’ रहल छलैक।
जखन जीपक हार्न सुन’
मे एलैक तखन पाखलो होशमे आएल। देखलक तँ केगदी भाटमे पुलिसक एकटा गाड़ी आएल छल,
जकरा संगे सदा जमींदार सेहो छल।
पुलिस जहिना केगदी भाटमे आएल तहिना हवामे
दू-तीन फायरिंग केलक। सभ किओ डरि गेल आ नारियर तोड़ब बन्न क’
देलक। दादीकेँ बहुत गोस्सा एलै आ ओ गोस्सेमे सभसँ कहलक—
“अहाँ सभ ककरो सँ डरब नहि। नारियर
तोड़ब जारी राखू।”
इन्स्पेक्टर अपन रूल हाथमे नेने आगू आएल।
ओ दादीकेँ अपना हाथेँ पकड़लक आ ओकरा जीपमे बैसैबाक लेल घीच’
लागल। पाखलो ओकरा रोकलकै। सभ किओ पुलिसक चारू दिस जमा भ’
गेल। दू-तीन गोटे जीपमे बैसल जमींदारकेँ नीचा उतारि देलक। इन्स्पेक्टर चिकड़ल,
आ गोस्सासँ बाजल—
“अहूँ सभ जँ बेसी बकबक केलहुँ तँ अहूँ
सभकेँ मारि लागत।”
“जाउ, जाउ,
चुप रहू! जँ अहाँ एतए बेसी रंगबाजी केलहुँ तँ
एतए जमा भेल सभ गोटए अहाँ सहित अहाँक पुलिसो केँ पीटत। हमसभ पुर्तगाली पुलिसक हाथ
तँ ढेर एलहुँ तँ अहाँ सभक हाथ कतएसँ आएब।” दादी चिकरल। ताधरि
पुलिस पर किओ दू-तीन चपत धरा देलकै।
ओ संभवतः पाखलो छलैक। इन्स्पेक्टर पाखलो
केँ पकड़ि लेलक, मुदा दादी ओकरा छोड़ा लेलकै। इन्स्पेक्टर
दादीक दिस ‘चिबा जाइ आकि गिर जाइ’ वला
नजरिसँ देखलक।
“अहाँ सभ एतए लोकक रक्षा करए आएल छी वा
गोलीसँ उड़ाब’?” दादी इन्स्पेक्टरसँ पुछलकै।
“अहाँ केँ तँ सबसँ पहिने ओहि लोककेँ
अंदर करबाक चाही छल, जे अहाँकेँ एतए आनने अछि। वैह असली चोर
थिक, लुटेरा थिक, आ दोसराक दम पर अपन
पेट भरएवला थिक, आ ओकरहि कहला पर अहाँ हमरा सभकेँ चलान करए
आएल छी?” दादी उच्च स्वरेँ इन्स्पेक्टरसँ पूछि रहल छल आ
जमींदार गोस्सासँ दादीक दिस देखि रहल छल।
“अहाँ हमरा थाना ल’ जएबाक लेल आएल छी ने! त हमरा सभकेँ ल’ चलू। सब किओ जीपक अंदर आबि जाउ।” एतबा कहैत पाखलो
जीपमे बैसि गेल। ओकरा संगहि आर पन्द्रह-सोलह लोक जीपमे बैसि गेल। बाँकी लोकक लेल
जीपमे बैसबाक जगह नहि छलैक। इन्स्पेक्टर आठ-नओ लोककेँ जीपसँ नीचा उतारि देलकैक आ
बाँचल सात गोटा कए ल’ कए चलि देलक। बाँकी लोकनि ओहिना मुँह
ताकैत रहि गेल। सातो लोककेँ ओहिदिन पुलिस-स्टेशनहिमे रहय पड़लैक। दोसर दिन सोनू आ
सुभल्या गाँवकरक संग पाँच लोककेँ छोड़ि देल गेलैक मुदा दादी आ पाखलोकेँ नहि
छौड़लकैक। जेना श्राद्धक घरमे छूतकाह रहैत छैक तहिना केगदी भाटमे नारियर यत्र-तत्र
पड़ल रहैक मुदा किओ ओकरा हाथ नहि लगाबैक।
गाममे एकटा आर पैघ घटना भ’
गेलैक। दादी सहित गामक आनो-आन लोक पर जमींदार मोकदमा क’
देलकैक। गामवला सभ सेहो मोकदमा लड़ल। मोकदमा बहुत प्रसिद्ध भ’ गेलैक मुदा फैसला जमींदारक पक्षमे भ’ गेलैक आ दादी
आ पाखलोकेँ एक मासक कैद भ’ गेलैक। ओहि दिन गामवासीकेँ बहुत
दुख भेल रहैक। दोसरहिं दिन जमींदारकेँ सेहो कैद भ’ गेलैक,
किएक तँ ओ सरकार लग जमीनक नकली कागजात पेशी केने रहैक। दोसर दिस
मजदूर आ रैयत लोकनिकेँ सेहो ओ बिना कारणेँ फँसौने छलैक, एहि
गुनाहक खातिर जमींदारकेँ सजा भेटल छलैक। ‘जकर जोत तकर जमीन’, एहि नियमक तहत कार्यापाट आ उबरेदांडो गाम रैयत सभकेँ भेटलैक आ केगदी भाट, खाजन भाट मजदूर लोकनिकेँ। एहि गामवला सभकेँ बुझाइत छलैक जे आब ओ वास्तवमे
स्वतंत्र भ’ गेल अछि।
पूरा एक महीना धरि जेहलक सजा काटलाक
पश्चात् दादी आ पाखलो छूटि कए आएल। भाटसँ नारियर चोरि करबा आ लोक सभकेँ भड़कएबाक
जुर्ममे पाखलो आ दादीकेँ एक महीनाक सजा भेल छलैक। ओ दुनू गोटे बड़ स्वाभिमानक संग
एलाह। गामक हितमे लड़एवला एकटा सम्माननीय गामवासीक नजरि सँ गामक लोक सभ हुनका
लोकनिकेँ फूलक माला पहिरा कए स्वागत कएल। लोक सभ दादीकेँ सम्मान दए गाम
मे स्वतंत्रतताक उत्सवक मनौलनि। एहिसँ पहिने एतेक रास खुशी गामक लोक कहियो नहि
महसूस केने रहए।
दादीक घर मिलबाक लेल गाम ओ बाहरो सँ लोक
सभ आबि रहल छल। एहि समय पाखलो दादीएक ओहिठाम बैसल रहए, मुदा पाखलो केँ किओ पुछलकै धरि नहि, एहिलेल ओकरा कने
खराप लागलैक। “लोकक नजरि मे हुनका हमर पाखलेपन नजरि एलनि।
हुनका सभक बीच हम एकटा पाखलो थिकहुँ” ओकरा लागलैक। ओ तखनहि
ओतएसँ निकलि गेल। घरसँ बाहर एलाक बाद ओ सोनू मामाक घरक रस्ता पकड़ि लेलक।
ओकरा मोनमे विचार आबि रहल छलैक—“रजनी हमरा देखि कए बहुत प्रसन्न हेतीह। ओ हमरासँ पूछतीह तँ हम हुनका कैदक
सभटा खिस्सा सुनेबनि। हमरा पीठ पर जे रूलसँ मारल गेल अछि तकर दाग देखेबनि, ई देखि ओ अपन दुख प्रकट करतीह, आ फेर तेल गरम कए
हमरा पीठ पर लगौतीह......।”
सोचैत-सोचैत पाखलो सोनू मामाक घर पहुँचि
गेल। रजनी ओकरा दूरहिसँ अबैत देखि लेलक। ओकरा चिन्हतहि ओ ‘विठू’ कहि दौड़ैत ओकरा सोझाँ आबि गेलीह।
·
सात
कैदसँ
छूटलाक पन्द्रहे दिनक अंदर दादीक देहान्त भ’ गेलैक। हमरा
रस्ता दखौनिहार चलि गेलाह। खाली हमरे किएक? अपितु सौंसे गामे
केँ सम्हार’ मे ओकर पूरा हाथ छलैक। सौंसे गामे कानि रहल छल।
ओहि
दिन केगदी भाटमे नारियर तोड़ैत काल दादी आ हमरा सभकेँ पुलिस पकड़ि कए ल’ गेल छल आ हमरा सभकेँ खूब मारल-पीटल गेल छल। पुलिसक मारिसँ दादीक एकटा
पयरमे घाव भ’ गेल रहैक जे अन्त धरि ठीक नहि भ’ सकल रहैक। कैदसँ छूटलाक पश्चात् ओ घाव आर विस्तार भ’ गेलैक आ जतए घाव रहैक ओकर चारु भाग लोहा सदृश कड़ा भ’ गेल रहैक। घावसँ खून बहैत रहैक। गमैया डागडर आ बैद्य लोकनिसँ बहुतो
दवाई-बिरो कएल गेल मुदा तकर कोनो असर नहि भेलैक।
ओहि
राति हम, गोविन्द, गोविन्दक माय,
सुभलो गाँवकर आ गामक किछु लोग दादीक लग बैसल रही। दादीकेँ बोखार
रहनि आ हुनक आँखि बन्न भेल जा रहल छलनि। अधरतियामे दादीक गलामे एकटा हिचुकी भेलनि
आ ओहि हिचुकीक संगहि दादी अपन अंतिम साँस लेलनि। बुझाएल जेना ब्राह्माण्डसँ गरम
श्वासक तंतु टुटि गेल हो। बिना हिलल-डोलल हुनक शरीर
शांत भ’ गेलनि।
ओहि
दिन हमरा लागल जे हमरा पर बड़का बिपति आबि गेल। सौंसे
गाम दादीक अंतिम संस्कारमे आएल रहैक। गामक हितमे अपन
जीवनमे कष्ट उठौनिहार दादीक ई आत्मबलिदान दिवस रहैक। अपन पिताजीकेँ मुखाग्नि दैत
गोविन्द पर की बीतल हेतनि? ई अनुमान करब ओतेक सहज नहि अछि।
हमरा मुँहसँ शब्द नहि निकलि रहल छल। एहि तरहक दुखक मापन कोनो मापक यंत्रसँ संभव
छैक की?
चिता
धधकैत रहैक। गोविन्दक आँखिसँ बरखाक बूँद जकाँ अश्रुप्रवाह भ’
रहल छल। हमरा आँखिक तँ बुझू जे नोरे सूखि गेल हो। ई दृश्य हम अपन आँखिक सोझामे
देखि रहल छलहुँ।
गोविन्द
ओहि दिनसँ गुमसुम रहय लागल। ओना तँ पहिनहुँ ओ बहुत किछु सोचैत आ गम्भीर रहैत छल,
मुदा आब तँ ओ आओरो गंभीर रहय लागल। हम ओकरा समझेलहुँ-बुझेलहुँ,
आ ओ बुझिओ गेल, मुदा ओ अपना आपकेँ बदलि नहि
रहल छल। नोकरी पर जयबाक लेल ओकरा पन्द्रह दिन पहिनहि चिट्ठी आबि गेल रहैक, किन्तु ओ घरहि पर बैसल रहल।
चिट्ठी
एलाक एक मासक बादहि ओ नोकरी पर जा सकल। ओकर माय एतए घर पर एसगरे रहि जेतीह,
एहि बातक दुःश्चिन्ता ओकर खेने जा रहल छलैक।
ओ अपन
माइयोकेँ अपना संगहि पणजी ल’ जयबाक लेल सोचलक। गोविन्दक माय
अपन बेटाक संग पणजी जा रहल छलीह, एहिलेल हुनका बिदा करबाक लेल
आस-पड़ोसक कैकटा स्त्रीगण आएल छलीह। गोविन्द अपन सभटा समान बान्हि नेने छल। अंत मे
ओ देवाल पर लटकल दादीक फोटो आ महादेवक फोटो उतारि पणजी ल’
जाएवला समानक बीच राखि लेलक।
भगवान
जानथि एहि बातक खबरि गामक बुजुर्ग सुभलो गाँवकरकेँ कोना लागि गेलनि? ओ गोविन्देक घर दिस आबि रहल छलाह। हाथमे एकटा बाँसक लाठी नेने ओकरा जमीन
पर टिकबैत ओ आगू बढि रहल छलाह। ओ तौलिया आ कमीज पहिरने छलाह। “ओ आबि रहल छथि”, ई गप्प हमही सोनूकेँ कहने रही। ओ घर
धरि पहुँचि गेलाह। गोविन्द हुनका बजाकए बैसैलथि।
“बेटा
गोविन्द! अहाँ अपना माइयोकेँ पणजी ल’
जा रहल छी की?” सुभलो गाँवकर पूछलनि।
“हँ” गोविन्द नहुएँ बाजल।
“तखन हम जखन कखनहुँ एहि बाट दए जाएब तँ हमरा
के बजाओत?”
एहि प्रश्नक जबाब गोविन्द लग नहि रहैक। ओ
चुप रहल।
“ई गप्प हम बुझि
सकैत छी जे नोकरिएक चलते अहाँकेँ पणजी जाए पड़ि रहल अछि, आ
हमसभ अहाँकेँ बिदा करए आएल छी, ई कने नीक नहि लागि रहल अछि।”
“आखिर हम की करी?
नोकरीक कारणेँ जाए पड़ि रहल अछि।” गोविन्द बाजल।
“आब गामक सीमान बाँचबो कहाँ
केलैक? लोकबेद अपन सीमानकेँ लाँघि सौंसे दुनिया दिस अपन रुख
क’ रहल अछि।” जाहि सोच-विचारसँ गोविन्द
शहर जएबाक निर्णय केने रहए, ओ ओहि विषयमे कहि रहल
छलाह। कनेक काल धरि सभ किओ चुप रहल।
“खैर! अहाँ
जतए कतहुँ जाउ नीके रहू!” अपन ई इच्छा व्यक्त करैत सुभलो
गाँवकर बाहर निकलि गेलाह।
पणजी ल’ जाएवला सभटा समान
ओ बान्हि नेने रहए। हम कहलियनि—
“गोविन्द,
गाड़ी छूट’ मे आब कम्मे समय अछि।”
हमर कहब ओ संभवतः नहि सुनलनि। हुनकर आँखि
भरि एलनि आ हुनका आँखिसँ टप-टप नोर खसय लागलनि।
समान सभकेँ
कन्हा पर लादि हम गाड़ी लग गेलहुँ ओकरा उपर चढ़ा देलिऐक। गाड़ी छूटबाक समय भ’
गेल रहैक। गोविन्द अपना मायक संगे ओहिपर बैसि गेल। हम पुछलियनि—
“आब कहिया
आएब?”
“देखा पर
चाही।”
“एहि पन्द्रह दिनक
बाद खामिणी आ सांतेरी देवीक मेला छैक, आएब की नहि?
आ अगिला तीन मासमे गामक केलबाईक शिगमो सेहो छैक। आएब की नहि?”
हम जल्दीसँ पूछलिऐक।
“केलबाईक शिगमोमे आएब।”
“आ खामिणी सांतेरी?” हम पूछलियनि।
“नहि।”
“हम एसगरे कोना आबि सकैत छी?” गाड़ी चलि पड़ल। हम आर जे किछु पुछलहुँ से सभटा ओहि गाड़ीक आबाजमे दबि
गेल। गोविन्द अपन हाथ हिलाकए हमरासँ बिदा लेलनि। गाड़ी आगू बढि गेल आ अगिला मोड़क
बाद ओ आँखिसँ ओझल भ’ गेल।
·
गोविन्दक
पणजी चलि गेलाक पश्चात् हम अपना आपकेँ एसगरुआ बुझए लागलहुँ। हम दिनभरि पीपरक गाछक
नीचा चबूतरा पर बैसि गोविन्देक संबंधमे सौचैत रही। ओहि समय सोनू मामा ओहि रस्ता दए
जा रहल छलाह। ओ अपना डाँड़मे तोलिया लपेटने रहथि आ उपर उज्जर कमीज पहिरने रहथि।
हमरा सोझ अबितहि ओ पूछलनि— “अहाँ एतए
बैसि की सोचि रहल छी?”
“किछुओ त’ नहि।” हम कहलियनि।
“किछु कोना नहि, अहाँक मीत पणजी चलि गेलाह, अही लेल अहाँ उदास छी ने?”
हम चुप रहलहुँ।
“चलू,
हमरा घर चलू।”
हम हुनका संग चलि देलहुँ। पछिला किछु
दिनसँ हम सोनू मामाक ओहिठाम आन-जान करैत छलहुँ।
दुपहरिक रौदमे चलैत-चलैत हमसभ घर
पहुँचलहुँ। घरक भीतर गेलाक बाद कने ठंढा महसूस भेल। लाल आ कारी रंगक फ्रॉक पहिरने
रजनी दू लोटा पानि भरि बरंडाक बैसकमे राखि घर चलि गेलीह। हम दुनूगोटे हाथ-पयर धोबि
तोलियासँ हाथ पोछलहुँ। भोजनक लेल पीढ़ी रखबाक आबाज अंदरसँ आएल। ताबत रजनी बाहर
एलीह आ हमरा सभकेँ भोजन पर बजा कए ल’ गेलीह। हमरहु बहुत जोरसँ
भूख लागल रहए।
भोजन कएलाक पश्चात् हम बरंडाक सोपो (कुर्सीनुमा
बैसकी) पर बैसि गेलहुँ। कोनो आन काजसँ हम घरसँ बाहर निकलहि वला रही तावत हमरा
किओ आबाज देलक।
“विठू।”
हम उनटि कए देखलहुँ।
ई रजनीए छलीह जे हमरा आबाज द’
रहल छलीह।
“हँ।” हम
ओकरा कहलिऐक।
ओ हमरा माय सन मधुर आबाजमे बजा
रहल छलीह। ओहि समय हमरा लागल जेना हम अतीतमे पहुँचि गेल छी। हमरा संबंधमे हमर सभटा
खिस्सा सोनू मामा ओकरा बता देने रहथि संगहि हमर माय द्वारा राखल हमर नाम सेहो।
रजनी हमरा किछु कहए चाहि रहल छलीह, मुदा बहुत देर धरि हुनका मुँहसँ कोनो शब्दे नहि निकललनि। ओ ओतहि ठाढ
रहलीह।
“विठू,
अहाँ एतहि रहल करू। अहाँ अपन सभटा कपड़ा-लत्ता एतहि ल’ आउ।”
ई सुनतहि हम ओकरा दिस आश्चर्यसँ देखलहुँ।
बादमे हम अपन माथ झुका अपन पयर दिस देखए लागलहुँ।
ओ हमरासँ बेर-बेर आग्रह केने जा रहल छलीह
आ हम अपन पयर निहारने जा रहल छलहुँ।
“किछु नहि सोचू, अहाँ एतहि रहू।”
“ओ बेर-बेर हमरासँ आग्रह केने
जा रहल छलीह। हुनकर आग्रह तोड़बाक हिम्मत हमरामे नहि रहए।”
हम ‘हँ’ कहि देलिऐक।
सात-आठ मास धरि
रजनी हमर सहोदर बहिन सदृश सेवा करैत रहलीह। हमरा कपड़ा-लत्ता, ओछाओन सभटा वैह साफ करैत रहलीह। नहएबाक पानि गरम करएसँ ल’ कए सभटा काज वैह करैत छलीह, एहिलेल हम कहियो काल
गोस्सा क’ कए ओकरा डाँटियो दिऐक, मुदा
ओ चुप रहैत छलीह।
एकदिन हम हुनका कहलियनि, “हम की अहाँक सहोदर भाय थिकहुँ जे अहाँ हमर एतेक ध्यान राखै छी?” एतबा सुनतहि हुनका आँखिमे नोर आबि गेल छल। ओ
अपन बाँहिसँ तकरो पोछलथि।
“सहोदर नहि छी ताहिसँ की? से जे हो, छी तँ अहाँ हमर भाइए ने? आ हम तँ अहाँकेँ अपन सहोदरे भाय मानैत छी।” एतबा
कहैत ओ कपसि-कपसि कए कानए लगलीह। हम हुनकासँ माँफी माँगलियनि। हमरो आँखिमे जखन नोर
आबि गेल तखनहि ओ चुप भ’ सकलीह। हम जहिना हँसलहुँ, ओहो हँसय लागलीह आ कपड़ा धोबए इनार पर चलि गेलीह।
हम चिन्तामे डूबि गेलहुँ। पाखलोक जनमल
कतहुँ रजनीक भाय बनि सकैत अछि? खूनक संबंध नहिओ रहने ओ हमर बहिने
सदृश हमर सेवा करैत रहलीह, तेँ की ओ हमर बहिन
नहि भेलीह? एहि तरह एकक बाद एक प्रश्नमे हम उलझैत गेलहुँ।
फेर हम गोविन्दक प्रश्नक तंतु केँ सोझराबए लागलहुँ।
ओहि दिन बेर-बेर याद आबि रहल छल। नारियरक
गाछसँ गिरलाक बाद रजनीक दवाई लगेलासँ जे जलन भ’ रहल छल तकरा कम करबाक
लेल ओ घाव पर नहुँ-नहुँ फूक मारि रहल छलीह। तखन हमर संबंध ओकरासँ की छल? हमरा ओ ओकरा बीच कोनो संबंध नहि रहलाक बाबजूदो ओ हमरा दबाई लगौलक। हम
कष्टमे रही आ ओ हमरा घाव पर दबाई लगाब’ वाली ममतामयी छलीह।
सभटा घावक संग-संग भौं आ पिपनीक घाव ठीक
भ’ गेल रहए, मुदा ओतए करिया दाग रहि जएबाक कारणेँ
रजनीकेँ बहुत खराप लागैक। ओ हमरा बेर-बेर कहैत छलीह—
“भौं पर कारी दाग नहि रहबाक चाही। एतेक
सुन्दर गोर-नार देह पर आमक कोलपति जकाँ बुझाइत अछि। आब ओकर की करब?” भौंहेक कारणेँ लहसुनियाँ आँखि बाँचि गेल। “हम
चुपचाप ओकर गप्प सुनने जा रहल छलहुँ। कारी दाग रहि गेल छल, एकर
हमरा एकोरत्ती दुख नहि छल। हमरा बुझाइत छल जे हमर लहसुनियाँ आँखि बाँचि जेबासँ नीक
होइतए, ओकरा फूटि जेबाक चाहि रहए आ संगहि दागसँ सौंसे देह
कारी भ’ जएबाक चाही रहए। हमरासँ हमर गोराइ सहन नहि भ’ रहल छल। मुदा भगवान हमरा गोर बनेने रहथि, एकरा लेल
रजनी भगवानक उपकार मानैत छलीह।” “हमरा
भगवाने भाय भेजने छथि, हमरा ओकरा ठीक करबाक अछि।” रजनी बेर-बेर बजने जा रहल छलीह आ हमरो भगवाने सदृश बनएबाक लेल हमर सेवा क’ रहल छलीह। तखन हम हुनका कहियनि, “हमरो भगवान देवी सदृश बहिन भेजने छथि।” एतबा कहितहि
हमरा कानमे मंदिरमे बाजएवला घंटाक सदृश आभास होमए लागल।
·
आठ
रजनीक बियाह भेल एक मास भ’
गेल रहैक। ओ दुरागमनमे अपन नैहर आबए वला रहथि, तैँ सोनू मामा
खेतक काज जल्दीए निबटा कए आबि गेल छलाह। रजनीकेँ नीक खेती-बारी वला घर-बर मिलल
रहैक तैँ सोनू मामा बहुत खुश छलाह। मुदा दोसर दिस हुनका एहि बातक दुखो रहनि जे
बहुत कम्मे उमिरमे ओ रजनीक बियाह क’ देने रहथि। ओकरा
नेनपनहिमे ओकरा माथ पर सांसारिक बोझ आबि गेल रहैक। ओकरा एहन बुझाइक। ओ पाखलो पर
बेकारक शंका करैत रहथि, एहि बातक हुनका ग्लानि भ’ रहल छलनि।
पाखलो आ रजनी, एक दोसराकेँ नीक जकाँ बूझैत रहथि, एहिलेल सोनू
मामाकेँ एहिमे किछु खराप नहि बुझा रहल छल। मुदा जँ यैह संबंध कहियो कोनो दोसर मोड़
ल’ लिअए तखन? तखन तँ गाममे जगहँसाइये भ’ जाएत। ई गामे ओकरा छोड़’ पड़ि जाइतैक। एहिलेल ओकर
मोन सशंकित रहैत छल। एहि खातिर जतेक जल्दी भ’ सकए, रजनीक बियाह भ’ जएबाक चाही,
यैह नीक रहत। सोनू मामा सोचने रहथि।
रजनीक बियाह करपें गामक भास्करक संग बड़
उधव-बाधवसँ भेल रहैक। बियाहक तैयारीमे पाखलो पन्द्रह-बीस दिन धरि बहुत कष्ट उठौने
रहए। बियाहोक दिन ओ खूब मेहनति केने रहए।
बियाहक दोसरे दिनक गप्प रहैक। रजनीकेँ
घरमे नहि रहलाक कारणेँ पाखलो कनमूँह सन रहए। ओ एहिना घरसँ बहराइत छल, तखनहि दरबज्जा पर ओकरा सोनू मामासँ भेंट भेलैक। ओ पाखलोसँ पूछलनि—“की भेल?” “किछु नहि।”, कहैत पाखलो घरसँ निकलि गेल।
ओहि दिनक बादसँ पाखलोक पहिनहि जकाँ
होटलमे खेनाइ-पीनाइ आ कतहुँ सुति गेनाय आरंभ भ’ गेल। ओकरा बुझाइत छलैक
जेना ओ एहि गाममे एकटा अजनबी सदृश छैक आ ओकरासँ सिनेह राखएवला एतए किओ नहि छैक। ओ
बहुत उदास रहैत छल। ओकरा माथ पर किछु रेखाक अलावे किछु नहि देखाइक। बीच-बीचमे ओ
खेनाइयो-पीनाइ छोड़ि दैक। ओ पूर्ण रूपेँ कमजोर हाथी सन भ’
गेल रहए। ओकर हाड़ सभ झलकए लागल रहैक, गाल पिचकि गेल रहैक आ
आँखि धसि गेल रहैक।
पाखलो काज पर नहि गेल छल। ओ दूपहरकेँ
पीपरक गाछक चबूतरा पर बैसल रहए। आलेस आ ओकर मीत सभ काज पर सँ आपस आबि गेल रहथि। “पाखलो
आइ काज पर नहि गेल आ भरि दिन चबूतरे पर बैसल रहल” ई कहि ओ सभ
पाखलोकेँ किचकिचब’ लागल। “पाखलो! आइ अहाँ काज पर किएक नहि एलहुँ?”
“ओहिना।”
“ओहिना किओ अपन काज छौड़ैत छैक
की? किएक यौ! अहाँ पाखलोक जनमल छी
एहिलेल अहाँ मामा अपन बेटी नहि देलनि की?” आलेसक एतबा
कहब सुनि पाखलोकेँ बहुत गोस्सा आबि गेलैक। ओ गोस्से सँ आलेसक दिस देखलक।
“अहाँ ओहिना हमरा पर नाराज नहि होउ।
मामाक बेटीक बियाह भेलाक बादसँ अहाँ किछु बदलि सन गेल छी। अहाँक पागलपनक हालति
देखिकए........।”
“चुप रहू आलेस! हमरा
बेकारक गोस्सा नहि दिआउ।” एतबा कहि पाखलो ओतएसँ चलि देलक।
ओकरा आइ आलेस पर बहुत गोस्सा एलैक, मुदा करबो की करितए? यैह बात भरि गामक लोक-बेद बाजि रहल छल। तखन हुनका सभक मुँह पर के ताला
लगाबए? हिनका सभक सोचे एहन छनि तखन कैल की जाय? पाखलो एहन सोचलक।
ओकरा माथमे बहुत दरद भ’ रहल छलैक। “जँ हम एहिना सोचैत रहलहुँ तँ एक दिन
निश्चिते हम पागल भ’ जाएब। हमरा मोनकेँ चिन्ता करबाक आदति सन
भ’ गेल अछि, हम एकरा सँ नहि निकलि सकब।”
सोचैत-सोचैत ओ रस्ता पर चलि रहल छल।
जुवांव ओकरा आबाज देलकैक।
जखन कि जुवांव केँ देखतहि ओकरा गोस्सा
आबि जाइत छलैक, मुदा आइ ने जानि की भ’ गेलैक? पाखलो ओकरा जबाब देलकैक आ दारूखानामे पैसि गेल। जुवांव हँसल आ ओकरा
बैसबाक लेल एकटा मछिया देलकैक। पाखलो बैसल नहि। ओ एकटा पँचटकही निकाललक आ ओकरा दिस
बढेलक। जुवांव नारियरक फेनी (शराब) ओकरा गिलासमे ढारि देलकैक। क्षण भरिक
लेल ओकरा मोनमे भेलैक जे एहि गिलाससँ जुवांवक माथ फोड़ि दी। जुवांव गिलास उठाकए
पाखलोक हाथमे थमा देलकैक। नव गैंहकीक खुशीमे ओ हँसि रहल छल। पाखलो एकबेर गिलासकेँ
मुँहसँ लगौलक आ क्षणहिमे हँटा लेलक। ओकरा गरामे जलन भ’ रहल
छलैक तैयहुँ ओ गिलासकेँ मुँहसँ लगौलक आ गटागट पीबि गेल। ओकर गरा छिला गेलैक। खाली
गिलास जुवांव फेरसँ भरि देलकैक। दोसर गिलास पाखलोक गरामे एकटा हिचुकीक संग अटकि
गेलैक। गरा आ नाक जरय लागलैक। ओकरा लागलैक जे ओकर नियंत्रण बिगड़ि रहल छैक,
ओ ओतहि बैसि रहल।
रजनी घर आएल छलीह, एहन ओकरा किओ बतेने छलैक। एतबा सुनतहि ओ सोनू मामाक घर दिस अपन पयर बढौलक।
घरमे सोनू मामा खेत जएबाक हड़बड़ी मे
रहथि। हुनका कान्ह पर हर छलनि। पाखलो पूछलक— “रजनी आएल छलीह की?”
“आएल छलीह। दू दिन रहि कए चलि गेलीह।”
रजनी आएल छलीह, सोनू मामा हमरा किएक नहि बतौलनि? ओ सोनू मामसँ
पूछबाक लेल सोचि रहल छल, मुदा चुप्पे रहल।
बाहर जेबाक हड़बड़ीमे सोनू मामा अपन घरक
केवाड़ बन्न केलनि आ पाखलो ओतएसँ मुँह लटका कए आपस भ’
गेल।
·
एक दिन आलेस पाखलोकेँ गोविन्दक संबंधमे
खबरि देलक। गोविन्द अपन ऑफिसमे काज करएवाली एकटा ईसाई युवतीसँ बियाह क’
नेने छल। ई गप्प सुनि पाखलोकेँ बहुत आश्चर्य भेल रहैक।
गोविन्दकेँ गाम एला एकटा अरसा बीति गेल
रहैक। ओ मेला आ शिगमोमे सेहो नहि आएल छल। गोविन्दक संबंधमे ई खबरि सुनि ओ ओकरासँ
भेंट करबा सोचलक।
पणजी शहरक एकटा बड़का भवनमे गोविन्दक ऑफिस
छलैक। “हम ओहि ऑफिस कोना जाउ?” पाखलो यैह सोचि
रहल छल। फेर ओ हिम्मत केलक। पणजी शहरक ‘जुन्ता हाउस’क सीढी
चढैत ओ ओकरा ऑफिस पहुँचल। ऑफिसक सभटा कर्मचारी ओ स्त्रीगण ओकरा देख’ लागल। ई कोन नव प्राणी आबि गेल? सभ किओ आश्चर्यक दृष्टिसँ पाखलोकेँ देखए लागल। किछु स्त्री आ युवती सभ
ओकरा देखिकए हँसय लगलीह। पाखलोकेँ अपना-आपमे कोनादन लागलनि। एतबहिमे अपन बॉसक
केबिन गेल गोविन्द बहरायल। ओ पाखलोक लग आएल। गोविन्दसँ मिललाक बाद, ऑफिसक मायावी संसारमे आएल पाखलोकेँ कने राहत भेटलनि।
“यौ गोविन्द!”
पाखलो शोर पारलक। गोविन्द हुनका जबाब नहि द’ कए हुनकर हाथ
थामि कैंटीन दिस ल’ गेल। दुनू एक दोसराक हाल-समाचार पूछलक।
बहुतो दिनसँ गोविन्द गाम नहि गेल छल एहिलेल पाखलो ओकरा उलहन देलकैक। दुनू गोटे चाह
पीबए लागल। “हम यैह एलहुँ।” एतबा कहैत
गोविन्द बीचहिमे चाह पीब छोड़ि बहरा गेल आ जल्दिए एकटा युवतीक संगे घुरि आएल। ओ
साड़ी पहिरने छलीह। हुनका माथ पर एकटा टिकुली सेहो रहनि आ ओ बहुत धनिक घरक बुझाइत
छलीह।
“ई हमर मिता थिक, हमसभ एकरा पाखलो कहैत छियैक।”
गोविन्द ओकरा पाखलोक माने बुझेलकै। पाखलो
ओकरा दिस देखलक। ओ हँसलीह। किछु काल पहिने यैह युवती पाखलोकेँ देखि कए हँसैत छलीह।
गोविन्द पाखलो सँ आगू कहलकैक, “भविष्यमे यैह
हमर घरनी हेतीह। हिनक नाम मारिया थिकनि।” पाखलो जखन
आश्चर्यसँ गोविन्दक दिस देखलक तँ गोविन्द अपन माथ नीचा दिस झुका लेलक। “जँ गोविन्द एकटा ईसाई युवतीसँ बियाह क’ लेत तँ गामक लोक एकरा संबंधमे की सोचत? ओ सभ की चुप
बैसतैक?” पाखलोकेँ एहन बुझेलैक। मुदा ओ चुप रहल। बादमे ओ अपन
एहि बेमतलबक विचारकेँ एकदिस राखि हँसए लागल।
पाकलोकेँ हँसैत देखि बुझू जे गोविन्दक
माथक भार कम भ’ गेलैक। “आब जाति-पाति आ धरम कतए रहि गेल
छैक? दक्खिनी आ उत्तरी ध्रुव आब सटि गेल छैक।” गोवन्द एहने सन किछु बात करताह। पाखलोकेँ लागलैक। मुदा गोविन्द चुप रहल।
पाखलोकेँ गोविन्दसँ बहुत रास गप्प करबाक छलैक, मुदा गोविन्द
लग ओतेक समय नहि रहैक। बादमे पाखलो दुनूकेँ “अच्छा, फेर भेंट हेतैक!”, कहलक आ बहरा गेल।
पाखलो लिफ्टमे चढ़ल। ओहि काल ओकरा एकटा
बातक स्मरण भ’ गेलैक— “आलेस दुबई
जाइवला छथि एहिलेल ओ पासपोर्ट बनएबाक जोगाड़मे रहथि। किछुए दिनमे ओहो विदेश चलि
जेताह आ एहि तरहेँ गाममे हमर एकोटा मीत नहि रहि जाएत। हम एकदम एसगर भ’ जाएब।” ई गप्पतँ गोविन्दकेँ कहब बिसरिए गेलहुँ। आब
तँ गोविन्दो कहियो गाम एताह, एहनो संभावना नहिएक बरोबरि छल।
बुझाइत अछि जे गोविन्दो आब गामबलाक लेल बाहरिए लोक भ’ गेलाह।
पाखलो लिफ्टसँ नीचा उतरए लागल तँ ओकर माथ
घूमए लागलैक। ओकरा बुझेलैक, जेना-जेना लिफ्ट नीचा दिस जा रहल अछि
तेना-तेना ओहो नीचा गिरल जा रहल अछि। लिफ्ट रुकलाक बाद ओ एसगर भ’ गेल, ओकरा एहने बुझेलैक। ओ लिफ्टसँ बाहर निकलल।
पणजीसँ गाम अएबा काल बसमे ओकरा रुक्मिणी
मौंसीसँ भेंट भेलैक। “रजनीकेँ बेटी भेल छैक।” ई समाचार पाखलो केँ वैह देने छलीह। ई सुनि पाखलोक खुशीक कोनो ठेकान नहि
रहलैक। बससँ उतरि पाखलो एकपेड़िया हैत हाली-हाली गाम जाए लागल। साँझ पड़ि गेल
रहैक। पूर्णिमाक चाँद आसमानमे साफ झलकैत रहैक। पाखलोक मोनमे रजनीक बेटीक छवि आबि
रहल छलैक। ओ देख’ मे केहन हेतीह? ओ अपन
माय-सन हेतीह आकि ककरो आन सन? एहि तरहक कैकटा प्रश्न ओकरा
मोनमे उठए लागलैक। रजनीकेँ गोर रंग पसिन्न छैक। ओकरा चन्द्रमाक एहि ज्योत्सना-सन
बेटी होमक चाही। काजर लगएलाक बाद कारी आँखि वाली ओकरहि सन सुन्नरि बेटी होमक चाही।
पूर्णिमाक ज्योत्सना चारुदिस पसरल रहैक आ जेना नहरक पानि बहैत छैक तहिना ओकरा
रस्तामे चन्द्रमा अपन ज्योत्सना पसारने छलैक।
·
रजनी पाँच महीनाक अपन बेटीकेँ संग लए
कांदोले गाम अपन बाबूजीक घर आएल छलीह। पन्द्रह-बीस दिन बीति गेल छलैक, मुदा एखन धरि ओ अपन पतिक घर नहि गेल छलीह। ओ अपन बेटीक नाम सुलू राखने
छलीह। ओ देख’ मे बहुत गोर आ सुन्नरि छलीह। ओकर केश गुलाबी
छलैक आ आँखि लहसुनियाँ। ओ कोनो फिरंगीक बेटी सन बुझाइत छलीह।
रजनीकेँ ओकर घरवला घरसँ निकालि देने छथि, ई अफवाह सौंसे गाममे पसरि गेल रहैक, आ साँचो रहैक।
ओकर घरवला ओकरा मारि-पीटि कए सुलूक संग ओकरा बापक ओतए पठा देने रहैक। “रजनीकेँ पाखलोए सँ ई बेटी भेल छैक।” ई आरोप ओकर
घरवला ओकरा पर लगौने रहैक, आ सरिपहुँ देख’ मे फिरंगी सन लागएवाली सुलूकेँ देखि लोको सभ एकरा साँच मानि नेने रहैक।
रजनी अचानक अपना बेटीकेँ ल’
कए घर आबि गेल छथि। ओहि दिन ई सुनि सोनूकेँ बहुत धक्का लागल रहैक। ओ एना किएक एलीह? सोनूक मोनमे एहन प्रश्न उठए लागलैक। अपना बापकेँ देखि रजनीक सब्रक बान्ह
टूटि गेलैक आ ओ कानए लगलीह। आखिर भेलैक की? ओ बुझिए नहि पाबि
रहल छल। बादमे रजनीक देह पर दाग सभ देखि कए ओकरा सभकुछ समझमे आबि गेलैक। ओ रजनीकेँ
सांत्वना देलकैक। बहुत देर धरि तँ ओ चुप रहलीह मुदा पछाति जा कए सभटा घटना हुनका
बता देलीह। सुलूएकेँ ल’ कए ओकर घरवला ओकरा पर शंका करैत
रहैक। ओकर ई आरोप रहैक जे, “पाखलोए
सँ रजनीकेँ ई बेटी भेल छैक।” ई आरोप साँचो भ’ सकैत अछि। सोनूओकेँ एहिना बुझेलैक आ ओकरा बहुत गोस्सा आबि गेलैक। ओकर
आँखि लाल भ’ गेलैक आ ओ गोस्सासँ पाकलोकेँ गरियाब’ लागलैक। “पहिनहि हमर बहिन पाखलोक जातिमे हमर नाक
कटा चुकल अछि। आ आब ओकरहि बीया हमरा बेटीक भविष्य खराप करबा पर तुलल अछि” सोनू बाजए लागल। बादमे ओकर गोस्सा आर बढिते गेलैक आ एहिसँ आगू ओ किछु
बाजि नहि सकल।
“एहिमे पाखलोक कोनो दोष नहि छनि। हमर
घरेवला हमरा पर झूठ आरोप लगा रहल छथि।” रजनी सोनूकेँ कहलकैक।
मुदा ओ ई सभ सुनबाक लेल तैयारे नहि छलैक। बहुत कालक बाद ओ सभ किछु सुनलक आ कहलक—
“हमर तँ भागे फूटल अछि।” दोसर दिन ओ रजनीक
घरवलासँ भेंट कए सभ किछु समझाकए कहलकैक— “सुलू सन बच्चा
बहुतो लोककेँ भ’ जाइत छैक, ई सभ तँ
भगवानक हाथमे छनि।” ओ बहुत समझएबाक प्रयास कएलक, मुदा रजनीक घरवला किछुओ नहि मानलकैक।
सुलूक पालना आब नानाक घरमे झूलय लागलैक आ
रजनी अपन बेटीक संग अपन समय बिताबए लगलीह।
पाखलो एहि बीच प्रायः भोरे-भोर काज पर
निकलि जाइत छल आ रातिएक पहर काजसँ घुरैत रहए। रजनीकेँ ओकर घरवला घरसँ निकालि देने
छैक आ आब ओ अपन बापेक संग रहि रहल छलीह, ई गप्प ओकरा पता नहि
रहैक। सभ किओ पाखलोकेँ एकटा अलगे दृष्टिसँ देखए लागल छल, मुदा
लोक सभक ई दृष्टि पाखलोकेँ आने समय जकाँ बुझा रहल छलैक।
पाखलो दूपहरकेँ होटल जाइत छल। होटलमे आर
पाँच-छओ लोक बैसल रहैक आ गप्प क’ रहल छलैक। फेर ओकरा सभक हँसबाक आबाज
एलैक। पाखलोकेँ भीतर घुसतहि आबाज बन्न भ’ गेलैक। बादमे ओ सभ
पाखलोकेँ देखि फुसफुसा कए बाजब सुरह केलक। “हमरामे कोनो
परिवर्तन भेल अछि की?” एहन प्रश्न पाखलोक दिमागमे एलैक। ओ
अपन सौंसे देहकेँ निहारलक। ओहिमे कोनहुँ परिवर्तन नहि भेल छलैक। पैट-सर्ट जतए छलैक
ओतहि तँ रहैक! आ दाढ़ी तँ ओ काल्हिए नौआसँ कटौने छल। एहना
स्थितिमे हम हिनका सभकेँ कौआ कोना नजरि आबि रहल छी। पाखलोक मोन मे ई उधेड़बुन होमए
लागलैक।
रजनी गाम आएल छलीह, ई गप्प पाखलोकेँ बीस दिनक बाद पता लागि सकलैक। ओ दोसरहिं दिन भोरे-भोर
उठिकए सोनू मामाक घर दिस चलि देलक। बियाहक बाद ओ रजनीसँ भेंट नहि केने छल। बीचमे ओ
रजनीसँ भेंट करबाक लेल दू-तीन बेर सोनू मामाक घर गेलो रहैक, मुदा
रजनीसँ भेंट नहि भ’ सकलैक। मुदा आइ ओकरा रजनीसँ
निश्चिते भेंट हेतैक, ई जानि ओ जल्दी-जल्दी मामाक ओहिठाम
पहुँचि गेल। दरबाजासँ भीतर जाइकाल ओकर माथ चौखटिसँ टकरा गेलैक, जकर आबाज सुनि रजनी बहरएलीह। देखलनि तँ पाखलो आएल छलाह। पाखलोकेँ देखि
रजनी बहुत खुश भेलीह।
“अहाँक माथमे चोट लागि गेल अछि ने!” रजनी पाखलो सँ पूछलक।
“हँ! मुदा
भेल किछु नहि।”
“किछु नहि भेल! चलू देखए दिअ।” रजनी देखलनि, हुनका
माथ पर एकटा टेटर भ’ गेल छलनि। रजनी ओकरा दबाबए लागलीह।
“ओह! हमरा
किछु नहि भेल अछि, आ ने दरदे क’ रहल
अछि।” एतबा कहैत पाखलो अपन माथसँ ओकर हाथ हटा देलकैक। रजनी
सुलूकेँ बाहर ल’ अएलीह का बजलीह, “देखू दाय! मामा आएल छथि।”
पाखलोकेँ देखि सुलू हँसि पड़लीह। सुन्नरि सुलूकेँ देखि पाखलो रजनीसँ कहलकैक, “रजनी, सुलूकेँ कारी
काजर लगा देल करिऔक, नहि तँ एकरा ककरो नजरि लागि जाएत।” एतबा कहि पाखलो हँसय लागल। ताबत घरसँ निकलल सोनू मामा सेहो आबि गेलाह।
सोफो (कुर्सीनुमा बैसकी) पर बैसल पाखलोकेँ देखि ओ ठाढ़े रहलाह आ दरबज्जा
दिस आँगुरक इशारा करैत बजलाह, “निकल जाउ एतएसँ। आजुक बाद फेर
कहियो हमरा ओतए नहि आएब।” पाखलोकेँ किछुओ बुझ’ मे नहि एलैक। ओ अवाक भ’ ओतहि ठाढ रहल आ सोनू मामाक
दिस ताकतहि रहि गेल। सोनू मामा पुनः गोस्सासँ बाजए लगलाह, “अहीँक कारणेँ ई सभ भेल छैक। जँ अहाँ एतए नहि रहितहुँ तँ एतेक सभकिछु नहि
होइतैक। अहींक कारणेँ रजनीक घरवला ओकरा घरसँ निकालि देने छैक। अहाँ एतए कहिओ नहि
आबि सकैत छी।”
पाखलो अवाक भए देखतहि रहि गेल।
“रजनीक घरवला रजनी पर आरोप लगौने छैक
जे एकर बेटी अहींक जनमल छी। अहीँक कारणेँ ई सभ भेल छैक, ई
खबरि अहाँ नहि सुनने छी की? एतए अएबामे अहाँकेँ कनेको शर्म
नहि भेल? दोसरक बेइज्जती कराब’ एतए आएल
छी?”
रजनी बीचहिमे टोकलक,
“एहिमे हिनकर कोनो दोष नहि छनि, अहाँ
अनेर हिनका पर शंका क’ रहल छी।”
रजनीक ई कहब सोनू मामा नहि सुनलथि। ओ
बाजतहि जा रहल छलाह....
“अहीँक कारणेँ रजनीक भाग फूटि
गेलैक। जँ अहाँ एतए आएब तँ लोकबेद एहि आरोपकेँ साँच मानि लेत, एहिलेल अहाँ एतए कहियो नहि आएल करु। पाखलोएक जाति हमर नाक कटौने अछि,
ओकरे खून थिकहुँ अहाँ। पाखलोक वंशज छी अहाँ। अहीँ हमर बर्बादीक कारण
थिकहुँ।”
पाखलोक पयर थरथरबए लागलैक। ओकरा किछुओ
समझमे नहि आबि रहल छलैक, मुदा धीरे-धीरे सभ किछु समझमे आबि गेलैक। ओकर
बेटी फिरंगी-सन लागैत छलीह एहिलेल ओकर घरवला ओकरा पर ई आरोप लगौने छल। पाखलो एहि संबंधमे किछु बाजए वला रहथि मुदा सोनू मामा ओकरा
निकलि जएबाक लेल कहने रहथि एहिलेल ओ बाहर आबि गेल रहए। ओकरा माथमे चक्कर भ’
रहल छलैक आ बुझाइत रहैक जेना ओ फाटि जेतैक। ओकरा दिमागमे सोनू मामा शब्द कोनो
मड़िया जकाँ चोट क’ रहल छलैक। “.....रजनीक
घरवला घरसँ बाहर क’ देलकैक.....रजनीकेँ अहीँसँ बेटी भेल
छैक...... पाखलोएक जाति हमर नाक कटौने अछि..... पाखलोक वंशज छी अहाँ......अहाँ
एतएसँ चलि जाउ।”
·
“बारह चौबीस ट्रकक दुर्घटना भ’ गेलैक!”
“केकर?
ट्रक ड्राइवर के छलैक?”
“पाखलो!”
एकटा खलासी नीचा आबि लोक सभकेँ ई खबरि
देलकैक। सभ किओ उपर दिस दौड़ल। किछु गोटए ट्रकसँ गेल तँ किछु ओहिना दौड़ि पड़ल।
रस्ता नदीक कछेर होइत एकटा घाटीक बीचसँ जाइत रहैक। रस्ताक एक दिस घाटी रहैक आ दोसर
दिस खदहा!
उपरका रस्तासँ जाइवला एकटा ट्रक नीचा
खदहामे गिर गेल छलैक। ट्रकक परखच्ची उड़ि गेल रहैक जाहिमे पाखलो मारल गेल। एहन
सभकेँ बुझाइत छलैक। किछु लोक नीचा गेल। देखलनि तँ क्षतिग्रस्त ट्रकक बगलमे पाखलो
पड़ल छल। ओकरा देहक कपड़ा फाटि गेल रहैक आ सौंसे देह नोचा गेल रहैक।
पाखलो अपन क्षतिग्रस्त ट्रककेँ देखलक।
ट्रकक अगिला शीशा टूटि गेल रहैक। लोहाक चदरा पूर्ण रूपसँ ट्रकसँ पिचकि गेल रहैक।
ओकरा देखि पाखलोक आँखिमे नोर आबि गेलैक। पाखलो उठल। ट्रकक सामने गेल आ ओहि पर अपन
हाथ फेरलक। आब ओहि ट्रक पर भगवानक कोनहुँ फोटो नहि रहैक, मुदा ट्रकमे लगाओल गेल चाननक माला एखनहुँ धरि रहैक जे कि पाखलो लगौने
रहैक।
पाखलो जखन ठाढ भ’
रहल छल तखन ओकरा कानमे बहुत रास प्रश्न सभ उठए लागलैक। दुर्घटना कोना भेलैक? हम बाँचि कोना गेलहुँ? एहि तरहक कतेको प्रश्नमे ओ
उलझि-सन गेल।
पाखलो नीचेसँ रस्ताक एक दिस झाड़ी दिस
आँगुर देखौलक। ओकरा कमीजक एकटा बड़का टा टुकड़ी ओहि झाड़ीक बीच लटकल रहैक।
दुर्घटनाक समय ट्रकक दरबज्जा अचानक खुजलैक आ ओ बाहर गिर गेल छल। ओतएसँ ओ सीधा
झाड़ी पर गिर अटकि गेल, जाहिसँ ओकर कमीज फाटि गेलैक आ देह नोचा
गेलैक। ओतएसँ ओ धीरे-धीरे नीचा गिरल, जखन कि ओकर साथी ट्रक
गँहीरगर खदहामे गिर गेलैक।
एतेक पैघ ट्रक आटाक लोइया बनि गेल रहैक आ
एकटा हाड़-मांसक लोक बचि गेलैक। “पाखलोक भाग नीक रहैत तैँ ओ बचि गेल।” लोक सभ एहने कहैत रहैक। कारण ताकला उत्तर जखन लोककेँ जबाब नहि भेटैत छैक
तँ ओ ओकरा अपन भाग पर छोड़ि दैत छैक।
पाखलो केँ डागदरक ओहिठामसँ एलाक बाद
कम्पनीक प्रबन्धक दुर्घटनाक जाँच करब सुरह केलक। प्रबन्धक ओकरासँ बहुत रास प्रश्न
केलकैक, मुदा ओ एकोटा प्रश्नक जबाब नहि देलकैक। ओकरा दिमागमे
दुर्घटनाक विषयमे किछुओ नहि रहैक। आइ भोरे जे किछु भेल छलैक, ओकरा दिमागमे बेर-बेर वैह प्रश्न आबि रहल छलैक। असलमे वैह प्रसंग
दुर्घटनाक कारण छलैक। ओ भोरे सोनू मामाक ओहिठामसँ आएल आ ओहि तनावमे ट्रक पर चढि
गेल। ट्रक चलबैत काल वैह घटना ओकरा दिमागमे चलि रहल छलैक। रजनीक संग भाय-बहिनक
संबंध रहितो ओकरा पर ई आरोप लागल छलैक। सोनू मामा ओकरा कहने रहथि, “एतएसँ निकलि जाउ, आ कहिओ नहि
आएब!” “चलि जाउ” ई कहि ओकरा निकालि देल गेल छलैक। तखन सोनू मामाक रिश्तामे ओ किओ नै रहैक? पाखलो सोचि रहल छल। वैह विचार ओकरा दिमागमे टीस मारि रहल छलैक आ ओ अचेतन
अवस्थामे चलि गेल छलैक। ठीक ओहि काल अगिला मोड़ पर ट्रकक दुर्घटना भ’ गेल रहैक। एखन धरि वैह विचार, वैह प्रश्न ओकरा
दिमागकेँ झकझोरि रहल छलैक।
कम्पनीक प्रबंधक द्वारा पूछल गेल सवालक
जबाब हम नहि द’ रहल छलिऐक एहिलेल ओ गोस्सा भ’ गेल आ ओहि
गोस्सा मे ओ हमरा गाल पर फटाफट दू-तीन थापड़ मारि बैसल।
पाखलोक गाल पर थापड़क निशान भ’
गेलैक। ओ अपन गालकेँ हँसोतए लागल। तथापि ओकरा सौंसे देहमे भ’
रहल दर्द ओकरा ओतेक कष्ट नहि द’ रहल छलैक, मुदा भोरक घटनासँ जे ओकरा करेजमे घाव भेल रहैक ओ एखन धरि हरियर रहैक।
·
सात-आठ महीनासँ पाखलोक व्यवहार देखि
लोककेँ बुझाइक जे पाखलो पागल भ’ गेल छैक। ओकर केश, दाढ़ी आ मोंछ बढि गेल छलैक आ ओहि दाढीमे ओकर मुँह नुका गेल रहैक। ओकर माथ
तँ झलकैते नहि रहैक। गाल पिचकि गेल रहैक आ आँखि धँसि गेल रहैक। देख’मे ओ बहुत विचित्र लागि रहल छलैक। जँ कोनो अनजान लोक ओकरा देखि लैक तँ डरि
जाइक।
जाहि दिन ट्रकक दुर्घटना भेल छलैक ओहि
दिन पाखलो जंगल चलि गेल रहैक। ओ ओत्तहि चारि-पाँच दिन बितौलक आ बादमे गाम घुरल।
ओहि दिनसँ ओ गाममे अजीबोगरीब तरहेँ बाजए लागल आ संगहि अपन हाथ सेहो हिलबैत रहैत
छल। बीच-बीच मे अपन आँखिकेँ सेहो विचित्र रूपसँ छोट-पैघ करैत रहैत छल। ओ दिनभरि
घूमतहि रहैत छल। जंगल, भाट, मळार, दोउड़े आदि ठाम घूमतहि रहैत छल आ कतहुँ बैसि जाइत छल। नारियर, कटहर, आमक गाछ सब पर चढैत रहैत छल आ कतहुँ दूर अपन
नजरि गड़ौने रहैत छल। लोक सभक कहब रहैक जे, “ओ बहुत डरि गेल छैक।” ओकरा कार्या केर देवचार (एकटा
आत्मा) गड़ैस नेने छैक।
लगातार काजसँ अनुपस्थित रहबाक कारणेँ
कम्पनी ओकरा नोकरीसँ निकालि देने रहैक। यद्यपि ओकर जतेको हिसाब निकलैत रहैक से
कम्पनी ओकरा द’ देने रहैक। ओ पाइ पाखलो ओहि दिन गामक बूढ़-बुजुर्ग आ नेना
लोकनिमे बाँटि देने छल। दोसर दिन धरि ओकरा लग खएबा धरिक पाइ नहि रहलैक। ओ अपन
पैन्टक जेबी उनटौलक आ ओहि स्थितिमे गाममे घूमए लागल। ओ मात्र घूमतहि रहैत छल।
घूमैत काल ओकरा दिन-रातिक कोनो परवाहि नहि रहैत छलैक। एतेक धरि जे ओ रौद आ बरखामे
सेहो घूमिते रहैत छल। ओकरा घूमबाक कोनहुँ सीमा नहि रहैक।
ओकर किछु मीत लोकनि ओकरा कहियो काल चाह-पानि
द’ दैत रहैक। कहियो काल खोआ-पीआ सेहो दैत रहैक, नहि तँ
ओ भूखले रहैत छल। एहि सभक बाबजूद ओकर घूमब-फिरब बन्न नहि भेल रहैक। ओ कखनो केगदी
भाटमे देखाइक तँ कखनहुँ खेतक बान्ह पर।
ओ कहिओ ककरो भाटसँ नारियरकेँ हाथ धरि नहि लगौलक। ककरो
कोनहुँ कष्ट नहि देलक, एकरा सभक बाबजूद लोक ओकरासँ डरए लागल छल।
एतए धरि जे छोट-छोट नेनासभकेँ ओकर माय, पाखलोक नाम ल’ कए डराब’ लागल छलैक।
ओहि
दिन बरखा भ’ रहल छलैक। पाखलो सोनू मामाक घर लगक पीपरक गाछक
नीचा ठाढ़ छल। ओकरा देखि रजनी दौड़कए ओकरा लगीच गेलीह ओकरा अपना घर बजा अनलीह।
“सुलू
दाई! एतए आउ, देखू अहाँक मामा आएल छथि।”
रजनीक
एतबा कहितहि सुलू घरसँ दौड़लि अएलीह, मुदा पाखलोकेँ देखतहिँ
डरि गेलीह।
“ई अहाँक मामा छथि! हुनका लग जाउ!” रजनी सुलूकेँ कहलथि। तखन पाखलोक
बजएला पर सुलू ओकरा लग गेलीह। पाखलो ओकरा गोदी मे उठौलक आ फेर नीचा राखि देलकैक।
सुलू हँसलीह। पाखलो सेहो हँसए लागल। दुनूक हँसी देखि रजनीकेँ नीक लागललैक। पाखलो
अपन फटलका पैन्टक जेबीमे किछु ताकबाक प्रयास केलक मुदा ओकरा किछुओ नहि भेटलैक। तखन
ओ अपन दोसर पैन्टक जेबीमे हाथ देलक आ ओहिसँ दू टा आमला निकालि सुलूक हाथ पर राखि
देलक। बादमे ओ सुलूक माथ पर अपन हाथ फेरलक, ओकरा गाल पर
चुम्मा लेलक आ दुलार-मलार करए लागल।
“विठू! अहाँ एहि तरहक पगलपन नहि करल करू, एहि तरहेँ पगलपन कए अहाँ अपन की हालति बना नेने छी से कहिओ देखने छी? अहाँक गाल पिचकि गेल अछि आ आँखि धँसि गेल अछि।”
एतबा कहैत रजनीक आँखिमे नोर आबि गेलैक। ई देखि पाखलोक मोन सेहो पसीज गेलैक आ ओ
बाजल—
“अहाँ कानि किएक रहल छी?”
“नहि तँ! हम कानि कहाँ
रहल छी? ओहो! एखन धरि अहाँ ठाढे छी? आउ बेंच पर बैसू, हम भीतर जा रहल छी, पहिने अहाँकेँ किछु खुआएब तखन हमसभ गप्प-सप्प करब।”
रजनी
भोजन परसय भीतर चलि गेलीह। पाखलो सुलूकेँ दुलार करए लागल। रजनी पाखलोक लेल भोजन
परसि बाहर आबि कहलीह, “चलू भोजन लागि
गेल अछि।” एतबा कहि ओ ओकर हाथ धुआब’
लगलीह।
एतबहिमे
दरबज्जा पर किनको छाँही देखा पड़लैक। दरबज्जाक बाहर सोनू मामा अपन पयरक जूता
निकालि रहल छलाह। सोनू मामाकेँ देखि पाखलो घरसँ भागल आ बहुत दूर धरि भागितहिँ रहल!
सोनू
मामा, रजनी आ सुलू ओकरा देखितहि रहि गेल।
·
पाखलो आब गाममे छोट-पैघक लेल हँसीक पात्र
बनि गेल छल। नेना सभक संग आब पैघ लोक सभ सेहो पाखलोक मजाक उड़ाबए लागल छल। नेना
सभतँ ओकरा पाछूए लागि जाइत छलैक। ओकरा पर पाथर फेकैक, ओकरा ‘पागल पाखलो’ कहि
कुढाबैक। जखन पाखलोकेँ बहुत गोस्सा आबि जाइक तँ ओ नेना सभ दिस आँखि तरेर कए देखैक
जाहिसँ नेना सभ डरि कए भागि जाइक।
पाखलो कलमाक चबूतरा पर बैसल छल। तखनहि
नेना सभक एकटा दल आबि धमकलै। सभटा नेना ओकरा लग जमा भ’
गेल आ ‘पागल पाखलो’, ‘पागल पाखलो’ कहि ओकरा कबदाब’
लागल। एतबहिमे ओ अपन माथ नोचब सुरह क’ देलक आ फेर जोर-जोरसँ
हँसैत बाजए लागल—
“हम पागल पाखलो!
हा, हा, हा, हा........
हम पाखलो नहि छी! हम पागल छी! पागल! हा, हा, हा, हा........।”
“अहाँ पागलो छी ओ पाखलो सेहो छी।” नेना सभ बाजए लागल। एकटा नेनातँ ओकरा पर पाथर फेकि देलकैक आ पछाति जा कए
सभटा नेना सभ हल्ला-गुल्ला करए लागल।
“अहाँ पागल पाखलो, पाखलो, पाखलो।” पाखलो ओकरा सभक
दिस आँखि तरेर कए देखलक आ “हम पाखलो नहि, हम पाखलो नहि” कहैत अपन माथ ओहिठाम चबूतरा पर पटकए
लागल किछुए क्षणक बाद ओ बेहोश भए ओतए गिल पड़ल। तकर बाद ओतए जमा भेल नेना सभकेँ
किओ भगा देलकैक।
दोसर दिनसँ पाखलो रस्ता पर रौदे मे रहए
लागल। अपन गोर देह, गुलाबी केशमे कारिख पोतए लागल। अपन कारी
देहकेँ देखि ओ हँसए लागल आ रस्तासँ आबए-जाएबलाकेँ कहए लागल—“देखू! हमहूँ अहीँ सन बनि गेलहुँ ने?”
अपना आपकेँ कारी करबाक लेल भरि-भरि दिन
रौदमे ठाढ़ रहए लागल। कारिख लगा कए कारी कएल गेल ओकर देह किछुए दिनमे बेरंग भ’
गेलैक ओ फेर पहिने-सन देखाबए लागल। ओ अपन सभटा गुलाबी केश काटि लेलक आ पूरा टकला भ’ गेल। मोंछ आ दाढीक संग ओ अपन आँखिक पिपनी सेहो काटि लेलक। ओकर जतेको
गुलाबी केश छलैक ओ सभटा काटि लेलक जकरा कारणेँ ओ आओरो बदरंग लागए लागल। ओहि दिन
साँझकेँ ओ एकटा आमक गाछक नीचा जतेको सूखलका पात छलैक से सभटा जमा केलक आ ओहिमे आगि
लगा देलक। “हमर गोर चाम जरि जेबाक चाही आ हमरा कारी भ’ जेबाक चाही।” एतबा सोचि ओ अपन फाटल कपड़ा सहित
आगिमे ठाढ भ’ गेल। ओकरा कपड़ामे आगि लागि गेलैक। ओहि समय किओ
आबि ओकरा आगिसँ बाहर धकेल देलकैक आ आगि मिझा देलकैक। ओहि आगिमे पाखलोक देहक किछु
रोइयाँ झुलसि गेलैक। हाथ-पएर आ मूँहक चाम जरि गेलैक। देहमे फोका निकलि गेलैक आ
सौंसे देह लाल भ’ गेलैक।
अस्पतालमे जतए ओकरा राखल गेल रहैक, ओतए ओ दू दिन बितौलक। जहिना ओकर मोन कने नीक भेलैक ओहिना ओ दोसरहिं दिन
अस्पतालक ड्रेसमे भागि गेल आ गाम आबि गेल। गामक लोककेँ अस्पतालक ड्रेसमे पाखलोक
पागलपनक एकटा नव रूप देखबामे एलैक। ओ पहिनहि जकाँ गाममे एमहर-ओमहर घूमए लागल।
पातोले जंगलमे किछु स्त्रीगण आ किछु
युवती सभ लकड़ी बीछैत छलीह। ओकरा सभकेँ देखि पाखलो ओतए गेल। ओहिमे शामा सेहो छलीह।
ओकरा देखि ओ शोर पारलक आ ओकरा लग गेल। शामा डरि गेलीह आ पाछू हटए लगलीह। पाखलो
ओकरा रूकबाक लेल कहलकैक मुदा ओ रूकलीह नहि भागए लगलीह। “ठहरू, ठहरू!” कहैत पाखलो ओकरा पाछू दौड़ए लागल।
दौड़ैत-दौड़ैत ओ रूकल। जोरसँ चिकरैत शामा
गामक दिस भागलीह।
“पागल पाखलो युवती सभक पाछू पड़ल छैक।” ई गप्प सौंसे शहरमे पसरि गेल।
·
नओ
तेसर दिन धरि हम ओहि घटनाक संबंधमे सोचि
रहल छलहुँ। हम की केलहुँ? किएक केलहुँ? हमरा
किछुओ नहि बुझ’ मे आबि रहल छल। हम शामकेँ देखि ओकरा लग गेल
छलहुँ। ओकरा आबाज लगेलहुँ। ठहरू! एहिमे हमरा किछु बेसी खराप
नहि देखा रहल छल, मुदा आब यैह गप्प हमरा सालि रहल छल। हम
किएक ओकरा रूकए कहलिऐक आ ओकरा पाछू किएक दौड़लिऐक? एहि तरहक
प्रश्न हमरा दिमागमे बेरि-बेरि घूमि रहल छल।
मुदा हँ...ओहि दिन खूब मोन लागल रहए। ओहि
दिन शामाक ओतए जाएब व्यर्थ भ’ गेल रहनि। ओ हमरासँ बियाह करबाक लेल
तैयार नहि छलीह आ हमरा पाखलो कहैत छलीह, ओहि मुँहेँ हम हुनका
चिकरबाक लेल बाध्य केलहुँ! हमरा पागल कहैत छलीह ने! शी! शी! ई सब ठीक नहि। ओहि
दिन ओकरा पयरमे काँट गरि गेल हेतैक! हम ई नीक नहि केलहुँ।
रजनीक घरवला रजनीकेँ फेर अपना घर ल’
गेल छलाह। ऐहन लोक सभ बजैत छलाह। हमहूँ एहने किछु सुनने रही। ई गप्प साँच छैक की? यैह जानबाक लेल आ रजनीक संबंधमे पूछबाक लेल हम शामाकेँ रूकबाक लेल कहने
रहिऐक। शामा हमर जान-पहिचानक छलीह, मुदा हमरा द्वारा ठहरू!
ठहरू! कहबाक माने ओ किछु आर निकालि लेलथि की?
आकि हम ओहिना हुनका रूकए कहलियनि? हमरा कोना
जवाब नहि भेटि रहल छल।
गोवा जखन स्वतंत्र भेल रहैक ओहि समय
पाखलो लोकनि जंगलमे यत्र-तत्र नुका गेल रहए। भूखक कारणेँ ओ सभ जहर वला फल खा-खा कए
मरि गेल छल। हमहूँ ओहिना मरब की? ई सोचि हम डरि गेलहुँ। हम द्वन्द्वमे
पड़ि गेलहुँ आ हमरा मोनमे डर समा गेल।
गाम जएबासँ हम डरि रहल छलहुँ। गाम जएबामे
हमरा लाज लागि रहल छल। पाखलो युवती सभक पाछू भागि रहल छलैक। ओहो बापे जकाँ भ’
गेलैक। लोक सभ एहने कहैत रहैक। ओ सभ हमरा मारि देताह, हमरा
मारताह आ जित्ते गारि देताह। हमरा छोड़ाकए आनएबला आब ओहि गाममे किओ रहबो नहि
केलैक। दादीतँ नहिए रहलाह आ गोविन्द तँ गामे नहि अबैत छलाह। ओ तँ गामक लेल बाहरी
लोक भ’ कए रहि गेलाह अछि, आ हम,
एकटा एसगर पाखलो।
गाम गेलहुँ तँ गामक नेना सभ हमरा पाखलो, पाखलो, पागल पाखलो कहि कए कढ़ौताह। सभ किओ हमरा
पाखलोएक नजरिसँ देखैत रहए। हम ओकरा सभ जकाँ देखबाक लेल की नहि केलहुँ। कारी हेबाक
लेल रौदमे ठाढ रहलहुँ आ गुलाबी दाढ़ी-मोंछ काटि लेलहुँ। अंतमे फोका हेबा धरि,
घाव हेबा धरि हम अपन देह जरबैत रहलहुँ। देहक चाम जरि गेल आ घावसँ
खून बहि गेल। वासनाक कारणेँ जनम लेबएवला पाखलेपन तँ आब हमरा देहसँ चलिओ गेल हैत।
कंकाल पर ठाढ भेल एहि देहकेँ ई धरती सम्हारि नेने अछि।
हमर पहिलुक रूप बदलि गेल अछि। सौंसे देह
कारी भ’ गेल अछि। लोकक रुप रंग आ हमर रूप रंगमे आब कोनो फरक नहि रहि
गेल अछि। हम एत्तहि जनमलहुँ, पैघ भेलहुँ आ हिनके सभक बीच
रहलहुँ। हम एतुके लोक सभमे सँ एक छी। एहि माटिक संस्कारमे पललहुँ, बढ़लहुँ, तखन हम पाखलो कोना?
हमर माय हमर नाम ‘विठू’ रखने छलीह! ओ हमरा विठूए कहि बजबैत छलीह। हमर नाम
विठू थिक। एहि नामसँ किनकहुँ तँ बजएबाक चाही ने? आ जँ हमरा
किओ विठू कहि नहि बजबैत अछि तँ की हम विठू नहि भेलहुँ? हम
विठू छी! हम विठूए छी!
रजनीक शोर पारब हम एखन सुनि रहल छलहुँ।
हमर कान, मोन आ हमर सौंसे संवेदनाकें हम विठू छी, ई बूझ’ मे आबि रहल छल।
जंगलक रस्ता पार करैत हम पहाड़ी पर चढ़ि
गेलहुँ। ओहि पहाड़ीसँ नीचाँ रजनीक सासुर देखाइत रहैक।
हम जखन पहाड़ीसँ नीचाँ उतरि रहल छलहुँ
तखने हमरा स्मरण आएल। रजनीक घरवला ओकरा पर आरोप लगा ओकरा घरसँ बाहर निकालि देने
रहैक आ एक बरखक बाद घर ल’ गेल रहैक। एखन जँ हम रजनीसँ भेंट केलहुँ तँ
ओकर घरवला फेर ओकरा घरसँ निकालि देतैक। हमरा एहन लागल आ संगहि एकटा झटका सेहो। हम
ओतहि ठाढ़ रहलहुँ।
हमर एक मोन कहैत छल, जे हम ओतए गेलहुँ तँ नीक नहि हैत, आ दोसर मोन हमरा
आगू दिस घीचि रहल छल। रजनीक घरवला ओकरा घर ल’ जा कए नीक केने
रहए। हमरा ऊपर लगाओल गेल दोषारोपण आब नहि रहल। लोकक नजरिमे आब हम पाक-साफ छलहुँ।
ओहो! नीके भेलैक। हमरा दिमागसँ द्वन्द्व हटि गेल। तनाव चलि
गेल। आब हमरा आजादी महसूस भ’ रहल छल। आब हम रजनी आ सुलूसँ
भेंट करब। रजनी हमरा भाय मानैत छथि आ हम ओकरा बहिन। ई गप्प हम ओकरा घरवलासँ कहबैक।
बादमे हम निर्णय लेलहुँ आ पहाड़ी दए नीचाँ उतरए लागलहुँ।
हम पहाड़ीसँ उतरि हाली-हाली जा रहल
छलहुँ। ओतए कुळवाड्याक चरवाह नेना सभ हमरा देखलक। “यैह देखू पाखलो! यैह देखू पाखलो! पाखल्या!”
ओकरा सभक ई शोर सुनि हम डरि गेलहुँ आ काँपए लागलहुँ ओ पहाड़ीक ढलानसँ दौड़ए
लागलहुँ। पाखलो, पाखलो, एहि तरह आबाज
पाछूसँ आबि रहल छल। हम दौड़ैत-दौड़ैत पहाड़क सुनसान घाटीमे पहुँचि गेलहुँ।
साँझुक पहर ओहि घाटीक समूचा क्षेत्र बड्ड
मनोरम बुझाइत रहैक। मुदा हम ओहि दिस बेसी ध्यान नहि देलहुँ। घाटी पार कए हम कारपें
गामक सीमान पर पहुँचलहुँ। सीमानक लग एकटा बड़का टा झील रहैक आ ओहि झील लग एकटा
पोखरि सेहो रहैक। रस्ता चलैत काल ओहि पोखरिमे किछु गिरबाक आबाज एलैक। हम पोखरिक लग
गेलहुँ। एक ठाम पानिमे घुरमी होइत रहैक आ पानिक बुलबुला आबि रहल छलैक। चरवाह आकि
आन किओ ओहि पोखरिमे किछु फेंकने हेतैक यैह मानि हम आगू-पाछू देखए लागलहुँ, मुदा ओतए किओ नहि छल। हम पोखरि कातसँ कुसरीक फूलक एकटा कोंढी तोड़लहुँ आ
रजनीक घर दिस ओकरासँ भेंट करबाक लेल हाली-हाली चलए लागलहुँ।
मुनहारि साँझकेँ हम रजनीक गाममे पयर
राखलहुँ। ओतुका लोक सभ घरसँ बाहर आबि हमरा देखए लागल। हम रजनीक घर लग पहुँचि
गेलहुँ। ओतए देहरीएसँ आबाज देलिऐक मुदा घरसँ कोनो उत्तर नहि आएल। हम ओतएसँ
बहरएलहुँ, देखलहुँ घरसँ बाहर सुलू कानि रहल छलीह। हम ओकरा आबाज लगेलिऐक
आ गोदीमे उठा लेलिऐक। ओ हिचुकी-हिचुकी कानि रहल छलीह। हम ओकरा चुप करबाक प्रयास
केलहुँ। अपन हाथक कसरीक फूलक कोंढ़ी ओकरा हाथमे द’ देलिऐक।
हम ओकरासँ पूछलिऐक—“माए कतए गेल छथि?”
“हम नहि जनैत छी।”
“हुनका
बहुत मारने छथि।”
“के, कखन?”
“बाबा।”
सुलूक कहब सुनि हमरा कने अजगुत-सन लागल।
राति भ’ गेल रहैक। पड़ोसक दू-तीन गोटे हमरा लग अएलाह। पहिने तँ ओ
लोकनि हमरासँ पूछताछ केलनि आ फेर रजनीक खबरि देलनि। “जाहि
दिनसँ रजनीक घरवला ओकरा बापक ओहिठामसँ आनने छल, ओहि दिनसँ
शराब पीबि-पीबि कए ओकरा मारए-पीटए लागल छल। तकरा बाद तँ नित राति ओकर घरवला रजनीसँ
झगड़ा करैक आ मारैक। दू दिन पहिनहि ओ ओकरा घरसँ निकालि देने रहैक आ ताहि दिनसँ ओ
घरक बाहरे देहरी पर रहि रहल छलीह।”
सुलू हमरा गोदिएमे सूति गेल छलीह। बहुत
राति भ’ गेल रहैक आ रजनी एखन धरि आपस नहि आएल छलीह।
·
रजनी पोखरिमे कूदि अपन जान द’
देने छथि, ई गप्प जँ हमरा रस्तासँ अबैत काल पता लागि जएतै तँ
हम निश्चये हुनका बचा लेतिऐक। किओ पोखरिमे पाथर फेकने हेतैक एहिलेल पानिमे बुलबुला
आबि रहल छलैक, हम यैह बुझने छलहुँ। ओहि समय ओहि पोखरिमे एहन
हृदयविदारक मृत्यु नुकाएल रहैक, ई हमरा पता नहि छल।
रजनीक घरवला ओकरा कांदोळे गामसँ आपस अनने
रहैक, मुदा किछुए दिनक पश्चात् ओ फेर ओकरा पर वैह आरोप लगौने रहैक।
रजनीकेँ मारए-पीटए लागल छलैक आ एकदिन ओकरा दागि देने रहैक। ओ ओकरा जीबैतै मारि देब’ चाहैत रहैक। ओहिदिन, “पाखलो
युवती सभक पाछू लागल छैक।” हमरा संबंधमे ओकरा ई खबरि भेटल
रहैक। ओहि दिनसँ ओ रजनीकेँ देहरीक बाहरे राखए लागल रहैक।
रजनी तंग आबि गेल छलीह आ ओहि समय ओ
सोहावतीक श्रृंगार केलक आ आत्महत्या करए चलि गेलीह।
ओहि पोखरिसँ हम जे कुसरीक फूल निकालने
छलहुँ से वास्तवमे ओ कुसरीक फूलक कोढ़ी नहि अपितु रजनीक खोपामे लगाओल गेल घरक
बगैचा में फूलल मोगराक कली रहैक! यादक लेल सफेद, सुगन्धित!
दस
रजनीक याद में हमरा आँखिमे नोर आबि गेल
छल आ हम ओहि समय वैह पोछि रहल छलहुँ, एहि सभ यादसँ हमरा मोनमे
ओ सभ चित्र उभरि कए आबि रहल छल। हम पाखलो, एहि माटिक
संस्कारमे पलल-बढ़ल विठू छलहुँ। एहि माटिक सबूत छलहुँ।
बहुत कालसँ आकाशमे कारी-कारी मेघ घुमड़ि रहल रहैक। बिजलौकाक
संग गरज भ’ रहल छलैक आ बरखा सेहो भेल रहैक, जकरा
कारणेँ लाल माटिक सुगंध चारू दिस पसरि रहल रहैक।
मिरगिसरा
शुरू हेबामे एखन पन्द्रह दिन बाँकी रहैक। मिरगिसराक बरखा शुरू भेलाक पश्चात् गाममे
खेती-बारीक काज आरंभ भ’ जाइत रहैक। एहि साल सोनू मामाक खेत
परती रहि जेतैक, हमरा एहि बातक डर रहए। दू महीना पहिने सोनू
मामाकेँ लकबा मारि देने रहैक। ओकर दहिना हाथ बेकाम भ’ गेल
रहैक, जाहिसँ हाथ नहि हिला सकैत छलाह। अपन नातिनसँ मिलबाक
लेल आ ओकरा देखबाक लेल ओ ओहू स्थितिमे गोविन्दक घर आएल छलाह। हुनक माथक केश उज्जर
भ’ गेल रहनि आ देह बहुत कमजोर। एतए आबि ओ सुलूसँ भेंट केलनि।
सुलूसँ गप्प केलनि, मुदा हमरासँ बिना गप्प केने ओ आपस चलि
गेलाह। जँ ओ बरखामे भीजि के काज करताह तँ निश्चिते हुनक रोग आर बढि जेतनि आ ओहुना
आब हुनकासँ कोनो काज कहाँ होइत छलनि। ओकरा एहन बुझेलैक। आ तखन ओ खेतमे हाथ बँटेबाक
लेल रुक्मिणी मौंसीक माध्यमे खबरि भेजौलक। हमरा बुझाएल जे सोनू मामाक खेत परती रहि
जेतैक, मुदा जाधरि हमरा देहमे जान अछि ताधरि कोनो डर नहि।
भोरसँ
दूपहर भ’ गेल रहैक। हम घरमे जतए बैसल रही ओतहि एकक बाद एक
याद दोहरा रहल छलहुँ। आब सभटा याद खतम भ’ गेल, हमरा एहन लागल आ ओहि सून देवाल जाहिपर चिक्कनि माटिसँ ढौरल गेल रहैक ओकरा
एकटक देखैत रही। हम घरक चारू दिस नजरि दौड़ेलहुँ, तखने हमरा
रुक्मिणी मौंसीक ओहिठाम गेल सुलूक याद आबि गेल। आँखिक समक्ष ओकर निष्पाप, अनजान आ बहुत सुन्नर मूर्ति ठाढ भ’ गेल। ओकर
लहसुनियाँ आँखिसँ सुखद भाव प्रकट भ’ रहल छलैक। तखन ओकर एतए
नहि हेबाक बाबजूदो हमरा ओकरा माथ पर हाथ फेरबाक आ ओकर चुम्मा लेबाक इच्छा भेल।
एतबहिमे दरबाजा खुजबाक आबाज भेल। देखलहुँ तँ सुलू घर आबि गेल छलीह। हमरा देखि ओकर
खुशी दूगूणा भ’ गेलैक। ओ दौड़िकए एलीह आ जाधरि हम ओकरा गोदी
लेतिऐक ताधरि ओ “मामा” कहि कए हमरा शोर
पारलक आ हमरा पयरसँ लिपटि गेलीह।
·
हर एक लोक आ माटिक कथा
‘पाखलो’
उपन्यासकेँ दुइए तीन बरखमे ख्याति भेटि गेल रहैक। ‘राष्ट्रमत’ द्वारा एकरा औपन्यासिक प्रतिस्पर्धामे पुरस्कार भेटलैक। कला अकादमीक
पुरस्कार सेहो भेटलैक। ‘पाखलो’ उपन्यास
पणजी आकाशवाणीसँ मराठी भाषामे नवोनाट्य स्वरूपमे प्रसारित भेल। एहि तरहेँ मराठी
साहित्यमे सेहो पाखलो अपन उपस्थिति दर्ज करौलक।
कोंकणी
साहित्यमे ‘पाखलो’ अपन विशिष्ट शैलीक
कारणेँ ठाढ रहल। तुकाराम शेटक ‘पाखलो’
क जड़ि आमक गाछ सदृश गोवाक माटिक गहराई धरि पहुँचि गेल। एहि माटिक सुगंध ‘पाखलो’क सौंसे जीवनमे सुरभित भ’ रहल अछि। मुदा ‘पाखलो’ सँ
शालीकेँ जनमल एहि बच्चाकेँ अपनासँ दूर रखैत अछि। ओ अपना-आपसँ सेहो साक्षात्कार नहि
क’ सकैत अछि। यैह तनाव, यैह व्यथा
पाखलोक हृदयमे घर बना रहल अछि आ एहि व्यथासँ ‘पाखलो’ उपन्यासक जन्म भेल।
कोंकणी
साहित्यमे ‘पाखलो’क कथा एकटा नव आ
ज्वलन्त विषय ल’ के आएल अछि। एहि उपन्यास विषय जतेक नव अछि
ततबे मौलिक। पाखलोक बीजसँ गोवाक एक सामान्य स्त्रीक गर्भसँ पलिकए गोवाक माटिक
संस्कारकेँ अपनएबाक लेल तड़पि रहल अछि। पाखलोक रूप, गुलाबी
केश, लहसुनियाँ आँखि, लाली गोराय अछि,
मुदा ओकरा पर जे संस्कार पड़ल छल ओ गोवाक माटिक, हिन्दूक, शालीक, विठूक छल।
बाँकी
गोवावासी जकाँ इहो पाखलो माटिएक विठू थिक, मुदा समाज एकरा
पाखलोक नजरिसँ देखैत अछि। ओ शालीक विठू थिक। ओ विठूए थिक,
ओकरा एहन बुझाइत छैक। मुदा समाज ओकरा विठू नहि बनए दैत छैक। लेखक श्री तुकारामक
नजरिमे ई विरोधाभास देखबामे आएल। पाखलोक जीवनकेँ एक विरोध बना कए एकपक्षीय आधारक
रचना कएल अछि। पाखलोक कथा घुलि-मिलि रंगीन भ’ गेल अछि। पाखलो बनि कए, विठू बनि कए......
ओहो
एहि माटिक सपूत बनि जाए, एहि इच्छाकेँ पालि पाखलो पाठकक
मोनमे एकटा विशिष्ट छाप छोड़ि दैत अछि। पाखलो उपन्यास पढ़ैत काल पाठक सेहो स्वयं
पाखलो बनि जाइत अछि। यैह एहि उपन्यासक विशेषता थिक।
उपन्यासक
निवेदन दूई प्रकारसँ कएल गेल अछि—अध्याय 1,3,5,7,9
आ 10 मे पाखलो स्वयं निवेदनि करैत अछि आ 2,4.6,8मे लेखक स्वयं निवेदन करैत छथि। निवेदनक ई शैली केश जकाँ गूथल अछि,
यैह एकर सौंदर्य अछि। मात्र लेखकक निवेदनक कारणेँ एहि उपन्यासक
सौंदर्य नहि बढि जाइत अछि। एहि तरहक शैली आत्मनिवेदनात्मक उपन्यासक दोष, बन्हन मिटएबाक कारण बनि गेल अछि। विषयकेँ नीक जकाँ रँगि देबाक निवेदन
शैलीक बहुत नीक जकाँ चित्रण भेल अछि। ई दुनू निवेदन शैली एक दोसराक पूरक थिक।
तुकाराम शेट उपन्यासक सभटा प्रसंगकेँ बड़
सावधानीक संग रंगने छथि। कतहु अतिरेकक कारणेँ उपन्यासमे बाधा नहि आएल अछि। उदाहरण
स्वरूप जखन शीलीक बलात्कार होइत छैक तखन यै प्रसंग लए ओ एहि तरहेँ लिखैत छथि।
“ओहि अन्हार घुप्प जंगलमे ओ अजगर सरिपहुँ
ओकरा अपना काबूमे क’ लेलकैक। झार-झंखार आ पात सभसँ अजीब
तरहेँ आवाज आब’ लागलैक।”
शालीक मृत्युक प्रसंग सेहो किछु एहिना
अछि। पाखलो चिताकेँ आगि लगएबाक प्रयास करैत अछि मुदा जखन चिताकेँ आगि नहि लगैत अछि
तँ दादी कहैत अछि— “बाउ! अहाँक हाथे अहाँक मायक चिताकेँ आगि नहि लागि रहल अछि? आब की उपाय?”
पाखलोक दुर्दैव किछु शब्दमे लेखक एतए
देखौने छथि। एकबेर पाखलो पोखरिमे नहबैत अछि, ई देखि बाबू भट “पाखलो पोखरि भ्रष्ट केलक! पाखलो पोखरि भ्रष्ट केलक!” चिकरए लागैत अछि। पाखलोकेँ घीचि कए ओकरा स्तंभसँ बान्हि ओकर हाल-बेहाल क’ दैत अछि। जखन शाली ओकरा छोड़ाब’ जाइत छथि, ओ ओकरो बान्हि कए राखैत अछि। ओकरा देखि पाखलोकेँ लगैत छैक—
“हमरा देहक गरम खून दौड़ए
लागल.... बादमे हमर खून ठंढा भ’ गेल आ
ओ शनैः शनैः हमरा शरीरसँ निकलि रहल अछि, बुझाबए लागल......,
हमरा बुझाएल जेना हमरा पूरा शरीरक सभटा खून बहि गेल हो!”
पाखलोक असहायता संयमसँ खुजैत अछि। एहि
सभटा प्रसंगकेँ जीवित रखबाक हेतु भाषाशैली सेहो ओतबे प्रभावी अछि। प्रसंगक लेल
उपयुक्त अछि। जेना नालीसँ शांत पानि बहैत अछि तखन बहुत कोमल आबाज अबैत अछि, ओहिना एकर भाषा अछि। सुन्नरि युवतीक पयरक पैंजनीक आबाजमे हेरा जाएब-सन,
जाहि तरहेँ आँखि बन्न क’ कए मात्र आबाज सुनि
लैत छी ओहिना ओहि भाषाक मन्द आबाज ताकब, आ लय-तालकेँ ओ पाठक
पर विजय प्राप्त करैत अछि। हृदयमे घर बना लैत अछि।
एहि तरहक वाक्यमे भाषाशैली बहुत सुन्दर भ’
गेल अछि। लेखकक ई भाषा शैली प्रसंगक अनुसारेँ मोड़ लेबाक कारणेँ प्रसंगक सौंदर्य
बढ़ि गेल अछि।
पाखलो
एहि उपन्यासक नायक अछि। एहि व्यक्तित्वक चारू दिस अन्य पात्र सभ अछि, सोनू, दादी, शाली, रजनी, आलेस, गोविन्द, सुलू ई सभटा द्वितीयक पात्र छथि। उपन्यासमे नायकक चरित्र-चित्रण बहुत नीक
ढंगे कएल गेल अछि। अपन हृदयसँ निकलल व्यथा, वेदनाक सहारे ओ
जीबि रहल अछि। ओकरा मेटएबाल लेल ओ संघर्ष करैत अछि। यैह पाखलोक जीवन थिक। जँ अपन
व्यथामे नायक जड़ैतो रहल अछि तथापि ओ ओहि परिधिमे नहि रहैत अछि। केगदी भाटमे
नारियर तोड़बाक लेल वैह आगू बढैत अछि। हिन्दू आ ईसाईक बीच भेल झगड़ाकेँ वैह
सुलझबैत अछि, मुदा ओ अपन दर्द नहि बिसरि सकल। ओकरा बुझाइत
छैक— “हम नहि तँ ईसाई रही, आ ने हिन्दू, एहिलेल हमरा छोड़ि देल गेल की? हमर संबंध दुनूसँ अछि, एहिलेल हमरा ओ लोकनि नहि
मारलनि की?” अपन अस्तित्व ताक’वला
ई पाखलो सोनू मामाक बेटीकेँ अपन बहिन बुझि सिनेह करैत अछि, मुदा
ओहि सिनेहकेँ रजनीक अलावा किओ नहि बुझि सकल अछि। जाहिसँ ओकर व्यथा आओरो तीव्र भ’ जाइत अछि। पाखलोक मनोदशा देखएबाक लेल पाखलोक सही भावना व्यक्त करबाक लेल
एतए लेखककेँ खूब अवसर भेटल छनि।
दादी
एतए समाजक एकटा विशिष्ट व्यक्ति छथि। पाखलोकेँ ई गाम नहि अपनौलक, एकरा बाबजूद दादी ओकरा अपन बेटा गोविन्दक सदृश सिनेह देलक। ओकरा नोकरी पर
लगौलक। रैयत लोकनि पर भेल अत्याचारकेँ मेटएबाक लेल ओ महीना भरिक कैद काटलक।
सोनू
मामा सेहो पाखलोसँ सिनेह करैत छथि मुदा अपन बेटीक खातिर ओ पाखलोकेँ भगा दैत छथि।
आन लोक जकाँ आ रजनीक पति जकाँ ओहो पाखलो पर आरोप लगबैत अछि। सोनू मामाक चित्रण
उपन्यासमे अएलाक बाद ओकर व्यक्तित्व स्पष्ट नहि भ’ सकलैक।
ओहिना शालीक व्यक्तित्व चित्रण जाहि ढंगे हेबाक चाही से नहि भ’ सकल। ओकरा तुलनामे रजनीक व्यक्तित्व नीक जकाँ उभरि कए आएल अछि। गोविन्द
बुद्धिमान, होशियार, आ तत्वज्ञानी अछि,
जे पाखलो स्वयं कहैत अछि—“मनुक्ख
जन्मक संगहि मृत्यु सेहो अपना संगहि आनने अछि..... धरती हो, जल
हो वा आकाश, सभठाम मृत्यु निश्चित अछि।” एहन तत्वज्ञानक शब्द कहएवला गोविन्द पाठकेँ नहि
पचैत अछि। हमरा ई तत्वज्ञान हमर आजी देने रहथि, एहन
स्पष्टीकरण जँ गोविन्दक मुँहसँ भेलो अछि तथापि नेनपनमे गोविन्द एतेक तत्वज्ञानक
गप्प क’ सकैत अछि से कने अजगुत लगैत अछि, आ गोविन्द एकटा बुजुर्ग सन बुझाइत अछि। ओ तत्वज्ञानी आ बुद्धिमान होइतहुँ
एकटा ईसाई युवतीसँ बियाह क’ लैत अछि, आ
अपन गाम छोड़ि दैत अछि। भारतमे रहिकए पाइ नहि कमा सकैत अछि एहिलेल आलेस दुबई चलि
जाइत अछि, मुदा पाखलो एहिगामक संस्कृति, माटिसँ चिपकल रहैत अछि। उपन्यासक एकटा गाम एहि उपन्यासक व्यक्तित्व भ’ गेल अछि। गोवाक माटिक विशेषता एहि गाममे देखाइत अछि। प्रकृति सौंदर्यक
चित्रण बहुत नीक जकाँ दर्शाओल गेल अछि।
रजनीकेँ ‘पाखलो’सन लड़की होइत छैक। गुलाबी केश,
लहसुनियाँ आँखि, गोर चाम। वास्तवमे तँ ई लड़की
रजनीकेँ ओकरा अपन पतिसँ होइत छैक तथापि ओ लड़की देख’ मे
पाखलो-सन बुझाइत अछि एहिलेल ई पाखलोक पैदाइश छैक, ई आरोप ओकर
पति ओकरा पर लगबैत छैक। रजनीकेँ पाखलोसँ लड़की हेबाक कारण ओकरा मोनमे पाखलोक प्रति
शाश्वत प्रेम भ’ सकैत अछि। एहि मनोदशाक कारणेँ रजनीकेँ पाखलो
सन लड़की हेबाक संभावना देख’ मे आबि रहल अछि।
पाखलो
गोवाक माटिक अछि। मुदा एकरा पढि मोनमे एहन शंका होइत अछि जे ‘पाखलो’क संबंध कतहु मराठी साहित्यमे चि.त्र्यं. खानोलकरक ‘चानी’ उपन्याससँ तँ नहि अछि? मुदा ‘पाखलो’क विशिष्टता ‘चानी’ मे नहि
अछि।
भूतकाल
आ वर्तमान कालक स्पर्श एहि उपन्यासमे अछि। कथानकक परिधि पूरा करबामे दुनूक भूमिका
अछि। एकटा रविक दिन सभटा पुरान स्मरण एकटा गरज आ चमकक संग खतम भ’
जाइत अछि। ओहिमे पाखलो अपन पहिचान ताक’ लगैत अछि। फेर पाखलो
अपन जनमसँ लए आइधरिक कथा अपना मोनमे स्मरण करैत अछि। दूपहर भ’ जाइत अछि। सुलू पाखलोकेँ ‘मामा’ कहि ओकर पयर पकड़ि लैत अछि। कथानक केर परिधि पूरा भ’ जाइत अछि। वर्तमान कालसँ भूतकालमे जा कए ‘पाखलो’ फेर वर्तमानमे आबि जाइत अछि। उपन्यासक प्रारूप प्रशंशाक योग्य अछि।
उपन्यासक हरेक अध्यायक अपन महत्व छैक। हरेक अध्यायक शुरूआत आ विशेष रूपेँ अंत
कलात्मक अछि। नीचाँक उदाहरण देखू—
“नहि अहाँ पाखलो थिकहुँ! पाखलो शामाकेँ किछु कहबाक लेल मुँह खोलनहि छल आकि ओ ओतएसँ चलि देलीह।
पाखलोक मोन तँ बुझु जे नागफनी सँ भरल रेगिस्तानक सदृश भ’ गेलैक।”
अध्याय चारि
“एहि गाममे हमर परिचय फकत
एतबा अछि जे हमर नाम पाखलो थिक, हमर जाति पाखलो थिक, आ हमर धर्म सेहो पाखलो थिक।”
अध्याय
पाँच
“रजनीकेँ गोर रंग पसिन्न
छैक। ओकरा चन्द्रमाक एहि ज्योत्सना-सन बेटी होमक चाही…. काजर
लगएलाक बाद कारी आँखि वाली ओकरहि सन सुन्नरि बेटी होमक चाही। पूर्णिमाक ज्योत्सना
चारुदिस पसरल रहैक आ जेना नहरक पानि बहैत छैक तहिना ओकरा रस्तामे चन्द्रमा अपन
ज्योत्सना पसारने छलैक।”
अध्याय आठ
“पाखलोक गाल पर थापड़क
निशान भ’ गेलैक। ओ अपन गालकेँ हँसोतए लागल। तथापि ओकरा सौंसे
देहमे भ’ रहल दर्द ओकरा ओतेक कष्ट नहि द’ रहल छलैक, मुदा भोरक घटनासँ जे ओकरा करेजमे घाव भेल
रहैक ओ एखन धरि हरियर रहैक।”
अध्याय
आठ
“ओहि पोखरिसँ हम जे कुसरीक फूल निकालने छलहुँ
से वास्तवमे ओ कुसरीक फूलक कोढ़ी नहि अपितु रजनीक खोपामे लगाओल गेल घरक बगैचा में
फूलल मोगराक कली रहैक! यादक लेल सफेद, सुगन्धित!”
अध्याय नओ
“ओ दौड़िकए एलीह आ जाधरि
हम ओकरा गोदी लेतिऐक ताधरि ओ “मामा”
कहि कए हमरा शोर पारलक आ हमरा पयरसँ लिपटि गेलीह।”
अध्याय दस
हरेक अध्यायक एहि तरहक कलात्मक अंत छैक।
हरेक अध्यायक अंतमे उपन्यासक अंत भ’ सकैत अछि। ई उपन्यास
एतेक कलात्मक अछि। गोवाक संवतंत्रताक पार्श्वसँ ई कथा रंग आनैत अछि। स्वतंत्रता
भेट’सँ पूर्वहि शुरू भेल ई कथा स्वतंत्रताक पश्चातो चलैत
रहैत अछि। मुदा उपन्यासमे स्वतंत्रताक विषय जतेक एबाक चाही, से
नहि आबि सकल अछि। मुदा एहि कारणेँ एहि उपन्यासमे बाधा आबि गेल छैक, से नहि छैक। ओहि समयक तीव्र स्वतंत्रता आन्दोलनक पदचिह्न जँ उपन्यासमे
अबितैक तँ एकर पृष्ठभूमि आँखिकेँ जँचतैक।
कार्मो चीफ जंगलमे शालीक बलात्कार करैत
अछि, बादमे बहुत दिनक बाद, पाखलोक जन्मक बादो
ओ शालीसँ भेंट करैत अछि। बिना बतौने ओकरो मोनमे शालीक प्रति सिनेह जागि जाइत छैक आ
बलात्कारक तीव्रता कम भ’ जाइत छैक। कार्मो चीफक ई प्रकृति
पाठककेँ उधेड़बुनमे डालि दैत छैक।......कार्मो चीफकेँ बेर-बेर शालीक ओतए देखि
लोकसभ, “शालीक भड़ुआ।” कहैत छैक आ शालीक संबंधमे—“ओ पाखलो केँ
अपना घरमे राखि धंधा सुरह क’ देने छैक वा अपन नव दुनियाँ बसा
नेने अछि?” कहैत छैक। बलात्कारक
तीव्रता कम कए लेखक पाठककेँ की कहए चाहैत छथि? ई बुझ’मे नहि अबैत अछि। पाखलोक ‘विठू’ एकबेर कहैत छैक—“ ओ एकटा पतिव्रता नारी
छलीह” मुदा एकरो कोनो माने नहि निकलैत अछि।
एहि
तरहक किछु दोष एहि उपन्यासमे अछि, मुदा ई सूक्ष्म दृष्टिएँ
देख’ बिना नजरिमे नहि अबैत अछि।
पाखलो
उपन्यास मात्र पाखलोक कथा नहि थिक। एकटा माटिक कथा थिक। हरेक लोकक,
हरेक माटिक कथा थिक। एहन कथा इतिहास बतबैत अछि। हरेक लोककेँ इन्सानक रूपमे जीवन
बितएबाक काल ओकरा अपन घर, अपन लोक, अपन
समाजक आवश्यकता होइत छैक। अपन संस्कृतियोक आवश्यकता होइत छैक। जँ इ सभ ओकरा नहि
भेटैत छैक आकि ओकरा एहि सभसँ दूर राखि देल जाइत छैक तखन ‘पाखलो’क उदय भ’ जाइत छैक।
मोनक
ई भावना, वेदना आ व्यथा मात्र गोवाक संस्कृतिमे उपजल एकटा
पाखलो लोकक नहि थिक, अपितु सभ लोकक कथा थिक। केवल वातावरण ओ
संदर्भ बदलि जाइत छैक। मूल भावना रहैत छैक ‘विठू’ बनि कए जीबाक। स्थान, काल आ मर्यादा एहि उपन्यासमे
नहि अछि। एहिमे व्यक्त कएल गेल भावना, हरेक लोकक ज्वलंत कथा
थिक, वेदना थिक। लोक सभमे सँ हरेक ‘पाखलो’ ‘विठू’ बनिकए जीबाक लेल
संघर्ष करैत अछि।
(कोंकण
टाइम्स, दिवाली अंक, 1981 मे प्रकाशित आलेखक अंश,
अशोक मनभुटकर)
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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