ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १३१ म अंक ०१ जून २०१३ (वर्ष ६ मास ६६ अंक १३१)
७९म सगर राति दीप जरय- विहनि आ लघु
कथाक सगर राति पाठ-
दिनांक १५ जून
२०१३ क संध्यासँ १६ जून २०१३ क भोर धरि- स्थान- गाम औरहा (जिला मधुबनी) संयोजक- श्री उमेश
पासवान। बससँ एनिहार एन.एच. ५७ पर निर्मलीसँ ३ कि.मी. दूर भुतहा चौकपर उतरू आ ओतएसँ
वनगामा चौक होइत औरहा गाम ३ कि.मी. छै। ट्रेनसँ एनिहार निर्मली स्टेशनपर उतरू, ओतएसँ भुतहा चौक
आ वनगामा चौक होइत औरहा गाम उमेश पासवान जीक दरबज्जापर
संध्या ६ बजेसँ आयोजन छै। अहाँक उपस्थिति प्रार्थनीय। संपर्क श्री उमेश पासवान फोन
०९९३१२३५९४४
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संपादकीय
७९म सगर राति दीप जरय- विहनि आ लघु कथाक सगर राति पाठ- दिनांक १५ जून
२०१३ क संध्यासँ १६ जून २०१३ क भोर धरि- स्थान- गाम औरहा (जिला मधुबनी) संयोजक- श्री उमेश पासवान। बससँ एनिहार एन.एच. ५७ पर निर्मलीसँ ३ कि.मी. दूर भुतहा चौकपर उतरू आ ओतएसँ वनगामा चौक होइत औरहा गाम ३ कि.मी. छै। ट्रेनसँ एनिहार निर्मली
स्टेशनपर उतरू, ओतएसँ भुतहा चौक आ वनगामा चौक होइत औरहा गाम उमेश पासवान जीक दरबज्जापर संध्या ६ बजेसँ आयोजन छै। अहाँक उपस्थिति प्रार्थनीय। संपर्क श्री उमेश पासवान फोन ०९९३१२३५९४४
कामिनी
कामायनी
लघुकथा-
घुइर ताकू
छोटकी काकी काल्हि रातिए अपन पियरका नुआ के सोडर मे उसिनलन्हि। परात
भेने बुचीदाय स बजलीह ‘गे
खुरलुच्ची ,चलमे
गे बच्चा , पोखरि स ई पखारि आनु । जखन नामे
खुरलुच्ची पड़ल छल त बूच्ची दाय शांत कोना रहितथि ,सदी खन सब ठाम ज़ेबा लेल बेकल पाँच छौ बरखक उमरि। ‘चलू’ ,ओ फट दनी गोटरस खेलेनाय
छोड़ि जेबा लेल दुनु टांग पटकेत
उठल । एक हाथ मे पीटना आ दोसर मे अलमुनियम के कारी खटखट ,पिचकल पाचकलछोटकी डेकची मे उसिनल नूआ । भरि बाट उठैत बैसेत रहली , चलल ने होय छन नीक स , अहि
मध्य आह ,उह
करैत अपन जुगक खिस्सा,गप्प सप्प बांचैत जा रहल छली। ‘ओ जुग छल,बुझलही बुची,हमर सबहक किओ पैर ने देखने होयत ,चौखटि स बाहरि पएर राखि दी कक्कर मजाल ?सब दलान त बूढ़ा सब पकड़ने ,। बुढ़ पुरनिया के कतेक प्रतिष्ठा ,कतेक लेहाज़ । ओ आराम ओ सुख आब कतय,कलिजुगक पाप स आब त ने
तेहन धरतिए उपजे छै,माले जालक बरक्कति छै ,लोक सेहो तेहन खविस भ गेले ,खेती छोड़ि नौकरी करय लागल
अछि । लाजो धाक नै बचले ,दलान प कोनो बुढ़ नै बचलेथ , घरे घर चुलही
तर पुरुख सब घुसनाए सुरू करी देलके ।
तहिया कनिया बहुरिया दरवज्जा की ,खिड़किओ
धरि स बाहरि हुलकी
मारब स परहेज करैत छल ,,,,आब त , की पोखेर ,की इनार’कत्त नै पैठ ओकर सबहक ।
‘आ ओ जे मसूद पुर बाली छथि,हुनक ससुर बड़ गरीब ,एतेक गरीब जे पनि भरनी धरि नै राखि सकैत छलिह ,,मुदा कुलीन एतेक जे तेसरे पहरि राति उठी क पोखरी,इनार स पानि बाला काज फरिछा लैत छलिह।पुतौहों एहेने सुशील भेटलनहिं ,,मुदा आब हुनके
पुतौह के देखही ,गई
म्या,घर बाला कत दन की दन करे छै,,कोट
पहिर क बुले छै मौगी”। ,एक बेर जखन ओ गप्प सुरू करी दईथ ,त लगबे ने करे की ,कोनो बच्चा बुतरु लग मे
छन्हि की कोनो चेतन । भाय भाय बड़ बड़ेने जाइथ। जौं किओ नहिओं होय सुनए बाला तइयो हुनकर वएह चालि ।
“ओह
गे बच्चा ,गै
हाथ पकड़ा गे,,,पएर मे बग्घा लागि गेले ,ओ हो हो ,अ ह ह ह ,,महादेव ई की केलहु ‘। हाथ त हुनक पकडबे पडले ,नूआ बाला बासन सेहो माथ प उठबय पडले “ह चलू आब , एतेक कष्ट होय अछि ,पुतौह ने पखारि देती” । पुतौह के नाम प हुनका एड़ि के गरमी मगज प पहुँच गेलन्ही “मार बाढ़नि छूतहड़िया के , हम्मर नूआ धोत की ओ अप्पन गजेड़ी भंगेड़ि बापक सारा निपत ,”।
पोखरिक
घाट प टांग पसारि काकी इतमीनान स बैसेत बजली “ला गे बच्चा ,बासन ला ‘। तसली स नुआ उनटि,ओहि मे पानि भरि लग मे
राखि लेलथि आ नुआ प चुरू स पानि ध ध क पीटना स पीटय लगलिह । “काकी बूढ़ मे ई पीयर नुआ ‘? “गे
चुप रह बेटी देलक ; देखै छै जे झुरकुट बूढ़ बसन पट्टी बाली ,केहेन छाप बाला नुआ पहिरति
अछि’।
“काकी , मुदा नूआ मे कनिको जान नहिं, जे दिन नै चरर बाजि जायत ,दोसर कीन लीअ’। “ह
गे तोरे बाप हमरा कमा क पठा देता’। ‘मर्र, हमर बाप किए पाए पठौता ,अपन जे कोसल रखने छी गाड़ि क’ से कोन दिन लेल’।
काकी भयंकर तमसा गेली “तोरे नाना देने अछि कोसल
गाड़ि क राखय लेल ‘।
बुच्चिदाय चुप भ गेलिह ।
ठेहुन
धरि वस्त्र उठा क ,घाटक
तेसर चारिम
सीढ़ी प ठाढ़ नुआ के एक छोर एक हाथ मे पकडली ,आ शेष के जुमा क पानि मे फेकलनि,नुआ
छत्ता जका फुलि गेले ,तहन
दुनु हाथ स नहु नहु
छोट करैत ,दुनु हाथे गारि क पानि बहरेलथि। “हरे राम ,हरे राम करैत पानि स बाहर
भेली । फेर नूआ बाला बासन आ पीटना बूची दाय के थमा देलथी।
आधे बाट
पहुंचल हेतीह कि लुखिया दौगल आबेत छल ‘यए दाय ,जल्दी चलियो बड़का गाम बाला पीसा अलखींनह ‘। काकी एक दमे चिहुक उठली ‘गैई म्या ,जुलुम भेल आब ?की करू की नहीं करू ,पाहून एला हें ,दलाने प बेसल हेताह , कोन बाटे जायब आँगन ,नूओ नीक नै पहिरने छी”। बुच्चीदाय हुनक
समस्या के समाधान करैत बजली “हमर बाड़ी दने चलि जायब ‘। आ काकी पछबड़िया बाट स ओकर बाड़ी के इंट देवार कहुना क पकड़ि पकडि अपन आँगन मे पइसल छलिह।
“की
काकी पाहून गेला ‘? “ह गे ,कखने गेलथि । ओ राज काज
बाला लोक ,हुनका
पलखति छनि सरोजक बर जका नीफिकिर
भ क ससुर क कप्पार प बेसबा के’ ओ त ककरो बरियातीमे
आयल छला त एक रत्ती
ससुर् क हेम क्षेम लेबय चलि आयल छला ,एक
लोटा पानि पिलथि ,चारी
टा दछीनी सुपारी आ, दु जोड़ जनेऊ बस ,आ जायत रहला” ।
ओ ओसारा प अपन
नूआ के सरियाबैत बैस रहली ‘की
कहिएईन् बहिन ।ई सौराठ बाली निरासी , हमारा जिबय नहीं देत ,की पाहून ,की पड़क ,ई अठ्ठा बज़्जरि खसा दैत
अछि ,देखियो ,,आय फेर भानस बन्न करी
मुंह फुलौने अन्हारघर मे
पेटकुनिया देने पड़ल अछि, दुनिया भरि के
गरिओलक ,फज्जति फज्जति करी देलक । ओ त पैत रखलथि गोसाई जे ओझा खान
पीन नहि केलथि। हम त
हैया हाथ उठा क चिकरि चिकरि क उगलहा स कहैथ छिएईन्ह जे कुमार बेटा रहि जाए ,,ओहि गाम नै विवाह करी ,ई कोन जनमक पाप अछि हमरा कप्पार प ’। बूची के दाय अचार मे तेल ढारैत मौन भ हुनक गप्प सुनि
रहल छली। तखने बड़की काकी
सेहो आबि गेली “की
भेल ए कनिया ,किएक
एना बताहि भेल छी,’’? अहि आहे
माहे मे बुच्चिदाय के बड़ मोंन लगेंह । जों ओसारा प गप्प होय त आँगन मे फुसीओ कोनो काजक लाथे ठाढ़ भ जाए ,बड़ आज्ञाकारी बनि पान
सुपारी के तश्तरी सेहो ल
आबे । खास करि क दादी सबहक गप्प त खिस्सो पिहानी स रमनगर ,जे विशेख करि क पुतौहे ल क होइत छले , , आ रंग बिरंगक भाव भंगिमा । जे कनिया के ओ बड़
नीक ,बड़
सुनरि बुझे हुनको सबहक पोल खोलल जाए ,चीरहरण होय एहेन गोष्ठी मे ।
बड़की
काकी छोटकी काकी के
दुख सुनि तमेक पडलिह ‘ये
एतबा मे अगुता गेलोन्हु ,हमर
सतलखा बाली सन बज्र खसौनी स त लाख कच्छ नीक अछि ,ओकरा त भगवती रूपो देने
छथिंह,आ ई करिलुट्ठी। नहा सुना क भगबती के सीरा नीप ,धूप दीप देखा क कहलिए “कनिया ,काल्हिओ उपासे छल ,आईओ बड़ बेर भेले ,जे देब स द दिय खाय लेल ,बड़
भूख लागि गेल’ कि ननदि स लड़ी क
जरैत चुल्ही मे पानि ढारि बजेत अछि ‘अंगोरा खौथ’। चूड़ा फुला क खेलहू कहुना करि क। {हुनका चूड़ा दहि नहिं रुचय छलेंह}
कनी दिन लेल एले ह मालती ,ओकरा देखय नहीं चाहे छै।
भरि दिन हड़ हड़ खट खट ,कखनों क़हत हमरा नूआ नहिं
किन देत छथि, कतेक बेर अहिना
पड़ा क नैहर पहुँच जायत अछि ,महिंदर
त नहिं जाय छन कखनों बिदागरी करबा क आनय लेल ,अपने बाप भाय आनि क सासुर मे बैसा दैत छें न । एतेक ईर ,की कहू कनिया घुड़क मारि धोंकड़िए जनेत अछि , कखनों काल मों न करैत अछि जे बाध बोन मे
पड़ा जाइ ,घर
त्यागि दी ” ।
“काकी
ये ,सबहक
पुतौहे किएक खराप होईत छै? सौसे किए नीक रहैत छै”?बइसल बइसल बुचिया अपन
मौत् क फरमान जारी करि देलक । “गै , तू हमरा सब के अधलाह कहबे’ ये मठौली बाली ,देखू अपन ,कबौछ लगा क जनमेने रही की ? हे दाय ,जहि
नग्र तू जेबए ,अखने
स हक्कन नॉर कनैत हैत”। “तखन त ई हो नगर कानल
हेतैक”। आ पूरा बाजियो नहिं सकल की गाल प बड़ी जोर् क थापड़ पड़ले , ‘मरि गेले हे हे” पाछा मुडी क ताकलक,त
माँ छलिह घोघ तानने । “ऊँह
मोने मों न त खुसी ए भेल हेतेंन सौस सबहक निंदा सुनि देखबै लेल मारैत छथी’कनैत बजेत भागल ओ ओत्त स ।
“की
गे फुलेसरी ,आय
तोही फूल ल क एला हें ,कहिया
एलही सासुर स , ,सौस केहन छौ ,माने दाने छौ की ?”
लालकाकी मलिनिया स गप्प करय लगलिह ,आ ओ नोरे झोरे कनैत ,सौसक देलहा दुखक बखान करय लागल ,ओहि दुख स पड़ा क त नैहर
आबि गेल अछि। “बज़्जर
खसो ,’लाल काकी ओकर सौस प बज्र खसब लागली । बूची दाय फेर उपस्थित “यै लालकाकी ,आब अहि जुग मे लोक बज्जर
ने बम खसबे छै। अहु ओकर सौस प
बम खसबीओ ,एके
बम मे सुरलोक चलि जेते’। लाल काकी हसय लागली “ई छौडी त जुग मे भूर करैत
अछि ,एखन
की बुझबहक दाय’।
कत्तय
कोन गाम मे , सत्संग वा भागवत चलि रहल छै ,बड़की काकी के सब खबरि
रहैत छलनहि । अपने सब बुढ़िया विदा होइते छलिह,आ हाथ हाथ भरि घोघ तनौने कनिया बहुरिया सब के सेहो संग नेने जायथ।
“ये
काकी {हलाकी
ओ सब दादी छलिह ,मुदा
धिओ पुत्ता सब हुनका सब के काकिए कहेंह } आहाँ सब त बुढ़ पुरानछी,पुतौह सब त
आजुकाल्हिक छथिन्ह ,सिनेमा देखा दियौ ,मेला घूमा दियो ,,ई की अपना संग हिनको सब
के बैतरणी पार करय लेल नेने जाय छी ?’ बूची के गप्प सुनि छोटकी काकी अपना सब मे
हाथ मुंह चमकबैत नहुं नहुं बजली “ई
बुचिया ,बड़
बदियल,की कहियन्हि, काल्हि कहलिए जे हमरा संग कनि पोखरि चलबे ,चलि त गेल मुदा भरि बाट से दिक केलक से बुझु नै, गाडल धन ,कोसल ,निकालु ,नबका नुआ किनु ‘’। बूची के कान मे ई गप्प
पडी गेले ,ओकरो
शोणित खौल गेले ,मन
मे उठले ‘माथ
प उठा क हिनकर मईल बासन ,हाथ
पकड़ि हिनक हम पोखरि ल गेलहू आ ई हमर निंदा करेत छथी’। ओकरा
खबरि छले ,कत्तों
ज़ेबा काल हुनका किओ घुईर ताकू कहि दैक त ओ एकरा बड़ पैघ अप शकुन माने छलिह ।हुनक देह स धधरा उठय लागे छल,आ
मुंह स लाबा फुटय लगे ।,आ
नतीजा ,बजनीहार
के बड़का बड़का गारि आ सराप । जतरा सेहो स्थगित करि दैत छलिह ।
बस बुची दाय चिकरली पाछा स “यै छोटकी काकी ,यै घुईर ताकू ,घुईर ताकू ‘। आब की , बिरनी के छत्ता उजड़िचुकल छल। ,छोटकी काकी ओहि माझ बाट प ठाढ़ भ सम्पूर्ण टोलक स्त्रीगनक सोझा बुचिया के दादीए के गरियाबे लागल छलिह जे एहेन उकट्ठी पोती हिनका कोन पाप क
कारने भेलन्हि।आ अपन माय के हाथे तूर जका धुनाई सोचि क , बुचिया ओत’ स लंक लगा क पड़ायल छल ॥
बिन्देश्वर
ठाकुर
विहनि कथा: टेनामेनी/ दुर्भाग्य/ घुसखोर/ छुआछुत
१
टेनामेनी
- मोदिर हम आइ कामपर नै जाएब ,कारण ३ महिनाक तलब बाकिए अछि ।
- रौ छौड़ा तोँ बेसी बुझै छिही। अतेक आदमी हमरा बातक जबाबे नै देलक आ तो हमरा
संगे दिलग्गी करबे?
- ई सभ तँ
मुर्ख छै । किछु लोग अहाँसँ डरैत अछि जे सुपत कहलापर नोकरीसँ हाथ धोबऽ पड़तै। मुदा
अधिकारक लेल डरब नीक नै।
- ठिके छै, कनिक
तोँ ने जो, तब देख
लिहें एकर दुर्दशा ।
- हम मेहेनती आ इमन्दारे नै, जमानक सेहो पक्का छी। अपन हक लेने बिना हरगिज नै जाएब।
-काल्हि भोरे-भोर
कम्पनीसँ वार्निंग लेटर एलै। १ दिनक अनुपस्थितिमे ३ दिनक पगार सेहो काटि लेलकै।
साथे-साथ
महनथाक सभ समान लाधि कऽ लऽ गेलै दोसर ठाम, कम्पनिएक गाड़ीसँ। महन्था आँखिसँ नोर ढारैत रहला मुदा
कियो हुनकर पुकार नै सुनलकै आ नै कियो अबाजे उठेलकै।
२
दुर्भाग्य
आइ भोरेसँ घरमे रमझम छै । सब केउ निक निक कपड़ा लगौने छै। चारुदिस एन्डकोके गीत
गुन्जयमान भऽ रहल छै महेशराक घरमे। रहौक किए नै, हुनकर छोटकी बहिनक विवाह जे छनि। मुदा
महेशराक कन्याकेँ एकटा कोनमे बैसि कनैत देख कऽ हुनक सास बजलनि- "कन्या ई
की, एखन तँ
बरातियो नै आएल, बुच्ची
बिदाहो नै भेल आ अहाँ एखनेसँ नेप ढारऽ लगलौं।" मुदा के बुझतै
सोनापारीवालीक मन भरल बेदना? एतऽ सभक पति लगे छै आ ओ सभ अपन पतिक साथ
प्रसन्न छथि, मुदा
हुनकर पति एहन शुभ अवसरपर हुनकासँ अलग कतौ दूर देशमे कोइला कटैत होताह।
३
घुसखोर
-सर नमस्ते
हमरो पास्पोर्ट बनएबाक अछि । हेतै कि नै ?
-हइ, बैस
ओम्हर, एखन हम
व्यस्त छी, देखै नै
छिही? ताबे जो, बजैबौ तँ
अबिहे।
-हेतै।
शेनियासँ पाछू आएलि दु गोटेकेँ पैसा लऽ कऽ तुरन्त पासपोर्ट दैत देखि जखन सी.डी.ओ. केँ कहलक तँ ओ
बाजल- "रे बुरि, ई लोक तँ नीक छै
आ बुधियार सेहो। तोरो अहिना हाथक हाथ पास्पोर्ट चाही तँ चाह पान खियाबै पड़तौ, नै तँ तारिख
ढोइत रह सरकारी वकील जकाँ।
४
छुआछुत
-धनमन्ती बौआ
गे, जल्दी-जल्दी पानि भरै
ने, हमरो
भरऽ के अछि। ओतऽ बाबा प्रतीक्षामे हेतौ पानि पिबाक लेल।
-हँ हँ दाइ, बस, भऽ गेलै। ले भ’र।
बुढ़ियाक पानि भरिते काल मोसाफिरक छोटका बेटा आबि गेलै। बुढ़िया भरल घैलाक पानि
फेकैत, "रै छौड़ा, तोरा आँखिमे
मराछाउर देने हौ ? देखै नै
छिही जे हम पानि भरै छी ?
मचरुवा कहि कऽ पानियो छुआ देलक हमर। ओम्हर जो, ताबे बादमे अबिहें।"
छौड़ा बकुवा कऽ ठाढ़ बस बुढ़ियाक मुँह तकैत रहि गेल।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
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आशीष
अनचिन्हार
विहनि कथा
भविष्य
वाह... ई बच्चे सभ तँ भविष्य होइत अछि।
वाह.......................
अच्छा ई कहू जे अहाँके ए.बी.सी अबैए..?
हँ....
वाह उत्तम।
अपन देशक चौहद्दी अबैए ?
हँ......
वाह.. खूब नीक.
बाबा-परबाबाके नाम मोन अछि ?
हँ...
वाह---वाह की संस्कार अछि।
अच्छा ई कहू जे अहाँके की नै अबैए ?
जी हमरा बस लाज नै अबैए ----
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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