जगदीश
प्रसाद मण्डल
तीन टा लघुकथा-कियो ने/ मुइलो बिसेबनि
कियो ने
डेढ़ मासक शीतलहरि समैक रोहनिए उतारि देलक। पला-पला ओस
पाला बनि दिन-राति बर्फवारी करैए जइसँ मनुखकेँ के कहए जे मालो-जाल आ गाछो-बिरिछ
जिनगीसँ तंग-तंग भऽ काहि कटैसँ मरबे नीक बुझैए। चटपट मरब काहि काटबसँ नीक होइते
छै। जहिना माल-जालक रूइयाँ भरि दिन भुलकल ठाढ़ रहैए तहिना मनुखोक। मुदा
माल-जाल जकाँ सौंसे देहक नै। कारणो अछि जे मनुखकेँ रूइयाँ संग केशो होइ छै, माल-जालकेँ से नै होइ छै। गाछ-बिरिछक पात अपन रंगेटा नै बदलि, पीअर भऽ भऽ सुखौ लगल आ तुबि-तुबि खसौ लगल अछि। आने-आन जकाँ पचासी बर्खक
सुगियोकाकीकेँ मन कहए लगलनि जे छिआसीअम अगहन भरिसक नहियेँ देखब। जेहो
जारन-काठी आ अन्न-पानि घरमे छल सेहो सठि गेल, शीतलहरिक
कोनो ठेकान नै अछि, तखन जीब केना?
मनमे कोनो बाटे ने भेटनि। बाटो केना भेटितनि जौं माटिक रस्ता बाट होइ आ दिन-राति
बर्खा होइत रहै, तखन पक्की सड़कक सुख कल्पने हएत किने? मुदा मरितो दम लोक, जीबैक आशा थोड़े तोड़ैए जे
सुगियाकाकीक पचासी बर्खक पाकल फलक आँठी जकाँ सक्कत नै हेतनि। सकताएले आँठीमे ने
अॅकुड़ैक शक्ति सेहो अबै छै। सुगियाकाकीक नजरि गेलनि व्यास बाबापर। ओ जे कंठ
फाड़ि-फाड़ि कहै छथिन जे ‘लूटि लाउ, कुटि खाउ, भिनसर भने फेर जाउ।’ से समैक ठेकान किअए ने केलखिन जे जखनि घरसँ निकलैबला समए बनत तखने ने
लोक घरसँ निकलि किछु करत आ जखन घरसँ निकलैबला समैए ने हेतै, तखन केना दोसर दिन किछु करए निकलत? मुदा पेट से
थोड़े बूझत। देहक जे सुख छै से केना भेटतै? आकि व्यासबाबा
एयर कंडीशन मकान, भरल-पूरल अन्न-पानिक जिनगी बूझि बजै छथिन।
जेते सुगियाकाकी मनकेँ मथैत तेते ओझराएले जाइत रहथि। जीबैक बाट कि भेटतनि जे
आरो मन सोगाएले चलि गेलनि। असकर सिबा घरमे दोसराइतो तँ नहियेँ अछि जे दुनू
गोटेक बुधियो आ हाथो-पएर लड़ा-चला कऽ देखितिऐ जे जीब सकै छी कि नै। एहने समैमे
ने दोसराइतिक जरूरति होइ छै। आन समए हेबे किअए करतै?
असकरे लोक चाह पीब लइए, खेनाइ खा लइए, सुति-पड़ि
रहैए तखन दोसराइतक जरूरते कि। दिन-रातिमे ऐसँ बेसी चाहबे कि करी। चौबीसो घंटा
कटैक धार तँ बनले अछि किअए ने कटत। मुदा से नै उमेरो तँ किछु छी। बुढ़ाड़ी मृत्युक
कारण छी मुदा जुआनीकेँ केना से कहबै? होइ छै तेकरो हजारो
कारण, मुदा कारण कारण तँ भऽ सकै छै। अकारण-कारण केना भऽ सकै
छै। हिया कऽ दुनियाँ दिस सुगियाकाकी तकलनि तँ बूझि पड़लनि बेसौगरकेँ ठेंगो
एकटा टाँगक काज करै छै। तँए एकटा सहयोगीक जरूरति तँ अछिए। मुदा सहयोगी हएत के? बेटी सासुरे बसैए, नैहरो हटले अछि, तखन? मुदा जरूरत तँ अछि अौझुका? से तँ लगेक लोकसँ भऽ सकैए। मनमे प्रश्न अबिते काकीक मनमे उत्तर स्पष्ट
भऽ गेलनि जे रीतलालक ऐठाम जा अपन बात कहिऐ जे ओ कि कहैए। अनेरे बाबू जन लेबह हौ,
तँ पनरह बापूत अपने छी। तइसँ तँ काज नै चलत, काज
तँ अछि अपन बनि अपना जकाँ जिनगी पार लगबैक? मुदा तइसँ पहिने
विचारि लेब नीक हएत जे जौं भार उठा लेलक तँ बड़ बेस, जौं
नै उठौत तखनि? तखनि कि, तखनि यएह
ने जे रीतलाल सन-सन बाबन गाही गाममे पसरल अछि। सभ कि कोलि फटुए आकि रस फटुए भऽ
जाएत। जेकरा हम अपन बना अपनेबै से किअए ने अपनौत। जौं सेहो नै अपनौत तँ पहिने
बुझा कऽ कहबै पछाति बुझेबै। उमेद-नाउमेदक बीच सुगियाकाकी रीतलाल ऐठाम विदा भेली।
ठंढसँ जहिना देह सिरसिराइत तहिना देहक फाटल-पुरान वस्त्र सिमसिमाएल। सुगियाकाकीकेँ
देखते रीतलाल अचंभित भऽ गेल जे एहनो समैमे निकलि काकी दरबज्जापर एली। सुगियाकाकीकेँ
रीतलाल साक्षात् लक्ष्मी स्वरूप बुझैत। गुणसँ भरल, जेहने
कंठक स्वर, तेहने नजरिक गुण आ तेहने हाथक लूड़िसँ
भरल-पूरल सुगियाकाकी। जाड़सँ सिरसिराइत काकीकेँ देखिते रीतलाल अपन देह परहक
कम्मल सुगियाकाकीकेँ ओढ़बैत अगियासी जोड़लक। अगियासीक दुनू कात दुनू गोटेकेँ
बैसिते गप-सप्प उखड़ैक मनसून बनए लगल। मुदा दुनू अपन-अपन मुँह दबने। मनमे
अपन-अपन राग-दोख जे केना पुछबनि, काकी केम्हर एलौं। दरबज्जापर
एली तँ चाहक बेर चाह, जलखै बेर जलखै, कलौ
बेर कल्लौ आ सुतै बरे ओछाइनिक ओरियान कऽ देबनि।
तहिना सुगियाकाकीक मनमे उठैत जे घरवारी पहिने किछु
हँ-निहस बाजत तखन ने उतारामे अपनो दुखनामा कहबै। गुमा-गुम्मी पसरल। मुदा किछु
समए गुमा-गुमी भेला पछाति सुगियाकाकी गुमगुमबैत गुमगुमा जकाँ बजली-
“बौआ, एक तँ तूँ एक वंशक छह, दोसर अंश तोरामे अछि, जे सुतलो-सूतल कानसँ सुनैत
रहै छी, तँए...।”
‘तँए’ कहिते सुगियाकाकीक बोल ब्लॉटिंग
पेपरमे साेंखल रोसनाइ जकाँ बन्न भऽ गेलनि। मुदा किछु प्रश्न तँ उठिए गेल छल,
जे तूँ एकवंशक छिअह। तइ संग लूड़ि-बुधिक अंश सेहो अछिए। रीतलाल
बाजल-
“काकी, तेहेन दुरकाल भऽ गेल अछि जे चिड़ै-चुनमुनीक
कोन बात जे नम्हरको-नम्हरकोक जान बँचब कठिन भऽ गेल अछि। चीन-पहचीन सेहो मेटाएल
जा रहल छै, तखन तँ लोक ताबते धरि ने धीरज राखत जाबत धरि
आँखि तकैए। ओना तकितो आँखि देहक दुआरे अथबल भऽ जाइ छै मुदा तैयो तँ भूख लगने
टंगटुटा चुट्टी जकाँ नेङराइतो चलिते अछि। नेङराइत-नेङराइत जखन बेदम भऽ जाइए आ
पेटक आगिमे जरए लगैए तखने ने अपनाकेँ हवन चढ़बैए। मनुख तँ सहजे मनुख छी।”
रीतलालक बातकेँ सुगियाकाकी किछु बेसीए बुझलनि। बेसी
बुझैक कारण काकीक सोचक धार। होइतो तँ एहिना छै जे एक्के मुँहक बात कियो बेसी
बुझैए तँ कियो कम। मुदा तइ संग तेसरो बुझिनिहार तँ होइते अछि जे समगम बुझैए।
समगम माने जेते प्रश्नकर्ताक बात रहल तेतबे सुनिनिहार बुझलक। सुगियाकाकी तँ
सहजे सुग्गा बोल परखिनिहारि छथि। जहिना कोनो रंगक वस्त्रपर दोसर रंग चढ़बैक
विधि अलग-अलग अछि, अलग-अलग ई जे कियो बेधड़क दोसर रंग घोड़ि
वस्त्रकेँ डुमा देलक तँ कियो आस्ते-आस्ते रंग घोड़ि बेर-बेर डुमा-डुमा रंग
चढ़बैए...। तहिना काकी मोने-मन सोचए लगली जे बेधड़क अपन विचार रखैसँ पहिने,
आस्ते-आस्ते मनक उद्गार बेक्त करब बेसी नीक हएत। विचारिते छेली
आकि रीतलालक पत्नी-कबुतरी चाह नेने पहुँचली। काकीक हाथमे चाहक गिलास पकड़बैत
कबुतरी बाजलि-
“काकी, तेहेन टिकजरौना समए भऽ गेल जे एक
तँ दुनियाँ जाड़सँ जड़ा गेल अछि तैपर आगियो-छाइकेँ कि ओ तेजी छै जे
बैशाख-जेठमे रहै छै। ओइ समैमे जेत्तै जारनसँ रोटी-तरकारी बनैए तेतेसँ अखन चाह
बनैए।”
कबुतरीक
रस-रसाएल बोल सुनि कोइली बोलीमे सुगियाकाकी बाझक स्वरलहरी छिटकबैत बजली-
“कनियाँ, एहने-एहने समैमे पुरुखक
पुरुखपना परिवारमे देखल जाइ छै। सभ किछु सुरीत रहने भारीओ काज हल्लुके बूझि
पड़ै छै, मुदा सभ किछु विपरीत रहने जौं अपन-अपन परिवार,
समाज आ मातृभूमिक सेवा जे करैए, वएह ने
पुरुखपना भेल। बूढ़ भेलौं, कोनो कि भगवान तँ नहियेँ छी जे
जे कहब से भइए जाएत। मुदा एते तँ कहबे करबह जे भगवान हमरे सनक नम्हर जिनगी सभकेँ
देथुन जे हँसैत-खेलैत दुनियाँ देखैत चलत।”
एक
संग अनेको प्रश्न काकी बाजि गेली। किछु बात कबुतरी बुझबो केलक आ किछु नहियोँ।
रीतलालो काकीक सोल्हन्नी बात तँ नै बुझलक मुदा कबुतरीसँ तँ बेसी बुझबे केलक। दोसर
बात रीतलालक मनकेँ ईहो ठेललक जे परिवारक भीतरक जे प्रश्न अछि ओइमे परिवारक
सभकेँ विचार रखैक समान अधिकार छै मुदा समाजक बीच तँ एक-मतक जरूरति होइ छै। तइले
परिपक विचारक जरूरति होइते छै। कबुतरीओकेँ गर भेटल, मुँहमे
ताला-लगा पति दिस आँखि उठौलक।
कबुतरीक नजरि पड़िते रीतलाल बाजल-
“काकी, अखने देखियौ जे एक गिलास चाह
पीलौं। यएह चाह गरम समैमे मन भरि दैत, मुदा अदहोसँ कम शक्ति
रहि गेल छै, तहिना तँ मनुखोक शक्तिकेँ होइ छै।”
रीतलालक प्रश्न सुगियाकाकी ठाढ़ काने सुनललनि। प्रश्नक
एकभग्गु उत्तर नै दैत बजली-
“रीतलाल, तोंही दुनू परानी अखन ऐठाम छह।
परिवार तँ दुनू गोरेक छिअह। जे संतान छह ओहो सम्मिलिते छह। तँए परिवारमे ओहन
विचारक धार बहबैक छह जे जिनगीक संग हँसैत-खेलैत-बोहैत चलए। हँसी-खेल दुनियाँमे
कहाँ छै, ओ छै अपन काजमे। अपन परिवार छी आकि परिवार अपन,
एकरा नीक जकाँ बुझने लोक अपन परिचए बूझि पबैए।”
काकीक विचार सुनि रीतलाल, पत्नीकेँ कहलक-
“काकी कि केतौ पड़ाएल जाइ छथि जे गपे सुनैमे रहि जाएब। जाउ,
भानसक जोगार करू। खेला-पीला पछाति निचेनसँ गप-सप्प करब।”
पतिक सह पाबि कबुतरी बजलि-
“एहेन समैमे काकीओ कतए जेती। हम सभ जुआन-जहान छी से तँ एक मोटा
वस्त्र देहमे सटने छी, काकीक तँ सहजे सुखाएल हड्डी छन्हि, बेसीए जाड़ होइत हेतनि। पहिने चाइटा गोरहा आनि कऽ घूरमे दऽ दइ छिअनि
जे लगले टनगर भऽ जेती। अच्छा ई कहथु जे कि खाइक मन होइ छन्हि?”
आशा पाबि सुगियाकाकी आस दैत आस मारलनि-
“कनियाँ, भने दुनू बेक्ती छह, एक तँ भगवान बेसी अज-गज नै देलनि, तैयो अपन काजे
ओहन रहल जे सभ दिन अजे-गजेमे बीतल। मुदा जे किछु अपन अछि सभ समैट लिअ। पाँच
कट्ठा खेत बढ़ने अहूँक उपजा बढ़ि जाएत आ हमरो दिन घुसकैत कटि जाएत।”
काकीक बात सुनि रीतलाल बाजल-
“काकी, हमरासँ लगो अहाँकेँ बहुत अज-गज अछि
पहिने ओ...?”
झपटि कऽ काकी बजली-
“पहिने पाछू किछु नै, चिड़ैकेँ जतए घोघ
भरै छै ततए रहै छै। जे कियो अपन छथि ओ एहेन दुरकाल समए नै देख रहल छथि।”
“देख किअए ने रहल छथि मुदा सबहक तँ अपने जान भौर भऽ गेल छन्हि, तखन अनकापर नजरि केना जेतनि?”
रीतलालक बात सुनि सुगियाकाकीकेँ कटु लगलनि। कटु लगिते
मन रब-रबेलनि। कबकबाइत बजली-
“बौआ रीतलाल, कहलअ तँ बड़-बढ़ियाँ मुदा,
मनुख तँ विवेकी होइ छै, ओकरा तँ विवेकसँ डेग
उठबए पड़ै छै। जौं से नै उठौत तँ मनुखता केना औतै। खाली दूटा हाथे-पएर रहने तँ नै
हेतै। दूटाकेँ के कहए जे चारियोटा पएर रहने पशु तँ पशुए भेल किने। जे हाथी पाँच
गोटेकेँ पीठपर लादि चलैए। मुदा ओकराे तँ अपना रहैक ठौर-ठेकान आ खाइ-पीबैक ओरियान
करैक लूड़ि नहियेँ होइ छै। ई दीगर बात जे बिनु दोसराइते बोन-झाड़मे रहि
जीवन-जापन कऽ लइए मुदा पालतू तँ तखने कहबैए जखन मनुखक संग जीबैए।”
सुगियाकाकीक बात रीतलाल नीक जकाँ नै
बूझि पौलक। प्रश्न उनटबैत बाजल-
“काकी, जखनि
मनुख मनुख छी तखनि दोसराइतकेँ बाँहि पकड़ि उठाबए आकि दोसराक बाँहिक आशा अपने
उठैमे करए?”
रीतलालक विचार सुनि सुगियाकाकी मुस्कियाइत बजली-
“बौआ, कालक्रमे मनुख धरतीपर आबि आगू
मुहेँ चलैत अछि। तहीले परिवार-समाजक जरूरत होइ छै। जखनि बच्चाक जन्म होइ छै
तखनि जौं ओकरा दोसर रच्छा नै करतै तँ कि ओ उठि ठाढ़ भऽ सकैए। नै भऽ सकैए। तहिना
बुढ़ाड़ीमे, जखनि शरीरक सभ अंग आस्ते-आस्ते काज करब छोड़ि
दइ छै तखनो तँ दोसराइतक जरूरत होइते छै। जौं एतबो बात लोक नै बूझत तँ कि ओ मनुख
कहबैक अधिकार रखैए।”
सुगियाकाकीक बात सुनि रीतलालक मनमे उठल
जे अनेरे काकी सन लोककेँ ओझरीमे ओझरबै छिअनि। अपनो नीक नहियेँ होइए। नीक तँ
तखनि हएत जखनि कामधेनु सन काकीसँ दूधक आशा राखब। तइले दुधारू भोजन आ रहैक ओरियान
करए पड़त। मुदा जइ पटरीपर गप-सप्प उतरि गेल अछि, तइसँ हटि दोसर
लीकपर जाइमे बाधा तँ बीचमे अछिए। अपनाकेँ ओझराएल देखि रीतलाल बाजल-
“काकी, अहाँ अपन
जिनगी आ अपन विचारक मालिक अपने छी। जे मन हुअए से करब। अखनि एतबे जे जेते दिन
अपन बूझि रहए चाहब, तइमे बाधा नै हएत। आगू अपन जानी।”
रीतलालक विचार सुनि सुगियाकाकीक मन
मानि गेलनि जे रहै जोगर स्थानपर पहुँच गेलौं।
सात भाए-बहिनिक बीच सुगियाकाकी अंतिम
तेसर बहिन। श्याम वर्ण, चाकर गोल मुँह, चौरस
देह, मझोल कदक सुगियाकाकी। गाममे बेछप जनाना। ओना समाजक
जनानाक बीच एकरूपता बेसी मुदा तइसँ भिन्न रहने सुगियाकाकी छेलीह। समाजक बहुलांश
जनाना खेती-बाड़ीसँ जुड़ल तँए दिन-राति ओइ चक्कीकेँ चलबै पाछू बेहाल। बेहालो
केना नै रहती? मनुख बनि जखनि ऐ धरतीपर खेल खेलैले एलौं,
भिनसरमे घर-द्वार बना लेब, दुपहरमे बिलमि
रौद-बसात जीड़ा लेब आ साँझमे सभकेँ उसारि अपने उसरि जाएब, यएह
ने भेल जिनगी। से तँ सबहक सोझेमे अछि। पतिआनी लगौने बाबा अपन बेटाकेँ बाबा बना
अपने उसरि-बिसरि जाइ छथि। अहिना ने दोसर दिससँ पोता-बेटा बनैत, बाबाक कुट्टी लग पहुँच अपन समाधि लइए। मुदा ऐ बीच जे कुत्सित बाधा बिचमाइन
करैत रहल ओकरा तँ देखए पड़त किने?
समाजमे सुगियाकाकी ऐ दुआरे बेछप छेली जे
जेहने हाथक लूड़ि बदलल छेलनि तेहने छातीक धड़कनक संग कंठक स्वर, जे मुँहक बोल होइत निकलै छेलनि। गीत-संगीत प्रेमी सुगियाकाकी। भित्ति-चित्र
वृत्तिवाली सुगियाकाकी। अदौरी, दनौरी, बिऔरी इत्यादिक संग आमक अँचार-मोरब्बासँ लऽ कऽ तिल-तिसी धरिक अँचार
बनौनिहारि। तइ संग सतरंग सागक संग सतरंग तरकारी-भुजिया-तड़ुआ बनौनिहारि सुगियाकाकी।
साठि बर्ख पूर्व सुगियाकाकी वसन्तपुर
एली। जइ परिवारमे एली ओ परिवार बहुत जत्था-जमीनबला नै। घराड़ी संग पाँच कट्ठा
चास। मुदा जेकरा संग बिआह भेलनि, ओ जेहने देखैमे भव्य तेहने कंठक
सुरील। भजन-कीर्तन, नाच-गानसँ सोमनाथकेँ बच्चेसँ सिनेह
छेलनि। जेना पाछूएसँ नेने आएल होथि तहिना। दसे-बारह बर्खसँ जे घर छोड़ि बौड़ाए
लगल ओ रंगमंचक धीर कलाकार बनि बौड़ाइते रहल। पुश्तैनी तीन पुश्त आगूसँ सुगियाकाकीक
नैहरक परिवार गीत-संगीतसँ जुड़ल। सोमनाथो घुमैत-घामैत सालक तीन-तीन-चरि-चरि मास
रहबो करैत आ सीखबो करैत।
किसान परिवार रहितो विश्वनाथक -सुगियाकाकीक
पिता- परिवार कृर्षि कार्य-खेती-बाड़ीसँ अलग छेलनि। ओना परिवारमे बीस बीघा चास
आ पाँच बीघा गाछी-कलमक संग नमगर-चौरगर बासो आ पोखरिओ-इनार छन्हिहेँ।
कला-मर्मज्ञ विश्वनाथक परिवार, सोमनाथक बिआह अपन परिवारमे करा
लेलनि। ने सोमनाथक घर-द्वार देखलनि आ ने धन-सम्पतिक हिसाब-किताब पढ़लनि।
वसन्तपुर अबिते सुगियाकाकी परिवारक
स्थिति देख मर्माहत भेली। मुदा उपाए की। पतिक कमाइ -अर्थ रूपमे- किछु ने, सालमे पाहुने-परक जकाँ आन-जान। पेटक आगि शान्त करै खातिर सासु-ससुर दिन-राति
एकबट्ट केने मुदा कट-मटी तँ रहबे करनि। नव कनियाँ बनि सुगियाकाकी घरमे एली,
केना सासु-ससुर कहतनि जे कनियाँ बोिन-बुत्ता करए संगे चलू। परिवारक
प्रतिष्ठा तँ प्रतिष्ठा छिऐ भलहिं जिनगी भरि नै निमहे। एको दिन आकि एको
क्षणक महत तँ जिनगीमे छइहे। अपन दिन-दुनियाँ देखैत सुगियाकाकी अपना दिस तकलनि
तँ भरल-पूरल खजाना देखलनि। परती देखि जहिना किसानीक जिज्ञासा जगैत, बजार देखि बेपारक जिज्ञासा जगैत तहिना सुगियाकाकीकेँ भेलनि। मुदा, सासु-ससुरक ऊपर आगू चढ़ि मँुह केना उठौती, ई तँ
प्रश्न रहबे करनि। जिनगी जीबैत-जीबैत लोको आ पशुओ-पक्षी अभ्यस्त भेने आनन्दित
जिनगीक सुख-भोग तँ करिते अछि। मुदा जँ बरिसल पानिकेँ खेतक आड़ि बान्हि-बान्हि
नै राखब तँ खेतमे पानि केना अड़त। जाबे खेतमे पानि नै अड़त ताबे धान केना रोपब।
जँ से नै रोपब तँ बोनिहारिन-बोनिहारक पुतोहुक कलंक केना धुआएत? आ जौं से नै धुआएत तँ जिनगीए केहेन भेल? रंग-बिरंगक
प्रश्न सुगियाकाकीक मन बरसैत पानिक बुलबुला जकाँ इन्द्रधनुषी रंग नेने बनैत आ
फुटैत। मनमे विचारलनि जे सभसँ पहिने अपन ढेकी-जत्ताक ओरियान करी। जखनि
ढेकी-जाॅत भऽ जाएत तखन समाजक कुटौन-पिसौन कऽ अपन स्वतंत्र कारोबार अपन घर-आंगनमे
करब। कि हमरा चूड़ा-चाउर कुटैक लूड़ि नइए। कि हमरा मेदा-चिक्कस पीसैक लूड़ि
नइए। तखन तँ भेल जे उक्खैर-समाठ, ढेकी-जाॅतक ओरियान करब।
केना सासु-ससुरकेँ कहबनि जे अहाँ कर्जा लऽ कऽ हमरा कीनि दिअ। मुदा अपना
माए-बापकेँ तँ कहि सकै छी। देह-हाथ मारि जे आंगनमे बैसल रहै छी तइसँ नीक जे अपन
घर-आंगनमे किअए ने अपन लूड़िक किताब लिखब शुरू करी।
आंगनक ओसारपर ओछाएल ओछाइनपर बैस सुगियाकाकी
अपन दिन-रातिक झख-झखैत मोने-मन सुमारक करए लगली जे केना पौतीमे राखल
खीड़ा-करैलाक बीआ समैपर माटिमे गाड़ल जाइ छै। समए पाबि जखनि माटि पकड़ि हाल
पबिते फुड़फुड़ा कऽ अॅकुर माटिक ऊपर आबि अपनाकेँ गाछ कहए लगै छै। बौधिक रूपे
अगुआएल सुगियाकाकीक उत्साह जगलनि। किअए ने फूल जकाँ गंध सिरजि हवाक संग
वायुमंडलमे पसरब? मुदा बीचमे बाधा तँ अछिए, ओ अछि जइ परिवारमे एलौं ओ परिवार अपन छी आकि नै। कहैले तँ सभ कियो
छथि मुदा हमरा विचारकेँ कते महत अछि से तँ थाहला पछाति बूझब। मुदा थाहो लेब तँ
कठिन अछि। एकरूपा सासुकेँ तँ सम्हारि बाजि सम्हारि लेब मुदा ससुर तँ पुरुख
छथि। पुरुखक करेज बेसी स्वार्थी होइए, अपन िवचारकेँ दउ-चप
बले रखए चाहैए। मन ठमकलनि। ठमैकते सुगियाकाकीक मनमे बिजलोका जकाँ छिटकलनि। मन
मानि गेलनि जे सासुकेँ संगी बनौल जा सकैए। जखने सासु समटेती तखने ससुर उसरता, उसरैत-उसरैत अपने उसरागा बनि सोझ भऽ जेता।
दोसर दिन साँझू पहर सुगियाकाकी चुल्हिक
ओरियान करिते छेली आकि सासु-ससुर अनका खेतसँ खटि कऽ कऽ एली। पुतोहुकेँ काजमे
लागल देखि रधिया पतिकेँ कहलखिन-
“बड़ काजुल कनियाँ घरमे पएर रखलनि अछि।”
पत्नीक बोलकेँ नकारब सोहनलाल उचित नै बुझलनि,
बुझलनि ई जे संगे-संग संगी बनि भरि दिन संगे काज केलौं तखनि जेहने विचार अपन
अछि तेहने ने हुनको हेतनि लोकक काजो तँ लोकक पहिचान छी। तहूमे भरि दिनक
थाकल-मारल अपनो घरमे अराम नै करब, से केहेन हएत? अष्टयाम कीर्तनमे जहिना अगुआ-पछुआ एक्के धूनमे जयकार करैए तहिना
सोहनलाल ताल मिलबैत बजला-
“हम सभ तँ हिनका सबहक -बेटा-पुतोहु- नौकरी करै छी। ओना उचितो
अछि। तेहेन भगवान जन्म देलनि जे सोझे हाथे-पएरटा देलनि। मुदा ओइमे बेमानी नै
केलनि। ओ चारू सुरेब अछि। जँ चारूमे सँ एकोटा अबाह रहैत तखन के केकरा पुछैत।
अहीं हमरा पुछितौं कि हमहीं अहाँकेँ पुछितौं। भीख छोड़ि दोसर कोनो रस्ता
जीबैक रहितए?”
नमगर-चौड़गर पतिक बात सुनि रधिया भाव-विह्वल भऽ गेली।
निशाँएल साहित्यकार जकाँ जे गुदरी-चेथरीक आगिसँ सोनाक लंका जरबै छथि,
तहिना सासु-ससुरक बोल सुगियाकाकीक कानमे पड़लनि। अनुकूल मनसून देखि सुिगयाकाकी
दाव सम्हारलनि। भरल बाल्टीन पानि आ लोटा नेने आगूमे पहुँच गेली। पुतोहुक आग्रह
देखि रधिया जहिना बरफ पानि-हवा बनि अकासमे उड़ि जाइए तहिना रधिया उड़ैत
बजली-
“कनियाँक सभटा सीख-लीक खनदानीए छन्हि।”
रधियाक संग सोहनलाल आरो उड़िया गेला। उड़िआइत बजला-
“जहिना दबो भोज्य-वस्तु, चमकैत थारीमे
परोसलापर अनेरो खेबैयाक मन भरक्षए लगै छै तहिना घरक चिष्टे-चार ने घरकेँ घर
बनबैए। ई घर कि कोनो हमरे छी आकि आब हिनके सबहक भेलनि। जेना सम्हारथि।”
ससुरक बोल सुनि सुगियाकाकीक मनमे भेलनि,
जेहने परिवारमे भगवान जन्म देलनि भरिसक सासुरो तेहने भेल। मोने-मन भगवानकेँ
गोड़ लागिते जगलनि जे ई दलिदता कते दिन छहटा हाथ पएरक आगू ठाढ़ रहत। मुदा
सासु-ससुरकेँ जे जिनगी भरिक बात पेटमे छन्हि से जाबे सुनि नै लेब ताबे बुढ़ी
थोड़े कहती अपन चौथारीक गप-सप्प। तइ सुनैले तँ किछु पूजी-समए लगबै पड़त। जहिना
बड़का करखन्ना बैसबैले बड़का घर बनबए पड़ै छै तहिना नम्हर गप-सप्प सुनैले बेसी
धैर्यक जरूरत पड़ै छै। जइ बनबैमे किछु बेसीओ समए लागि सकै छै।
खेला-पीला पछाति सुगियाकाकी मालीमे तेल
नेने सासु-ससुर लग पहुँचली। भरि दिनक थाकलक दबाइओ छी तेल। सोहनलाल रधियाकेँ
कहलखिन-
“काल्हि धनरोपनी समापत भऽ जाएत। गाममे
कते गिरहत तँ आठ दिन पहिने रोपनी उसारलनि। ई तँ गुण अछि जे अपना सभ केकरो
बान्हल जन नै छिऐ ने तँ अपनो सबहक काज आठ दिन पहिने समापत भऽ गेल रहितए।”
आगूक बात सोहनलालक पेटेमे रहनि आकि
सुगियाकाकीक हाथमे माली देखलनि। माली देखिते घरक माली -मालिक, बेटा-पर नजरि गेलनि। अपने फुड़ने बाजए लगला-
“भगवान तेहेन बेटा देलनि जेकरा ने अपन
खाइ-पीबैक ठेकान छै आ ने परिवारक ठेकान छै। ओहन मनुख बुते घर चलत। अखन अपने दुनू
बेक्ती थेहगर छी, कहुना कऽ घीच-तीड़ परिवारकेँ ससारने चलै
छी।”
बेटापर पिताक आक्षेप सुनिते रधियाक मनक महथीन बाजलि-
“बेटा धन छी आकि कोनो बेटी छी जे घर-अंगनाक टाटक अढ़मे नुकाएल
रहत। भगवान हमरो सबहक औरुदा ओकरे दौ जे आरो बोनाएल रहए।”
ससुरक बात सुनि जहिना सुगियाकाकीक मन
बिस-बिसेलनि तहिना सासुक बात सुनि मन तन-तनेबो केलनि। मुदा सासु-ससुरक बीचक
बातमे नव कनियाँकेँ पड़क चाही आकि नै? मन ओझरा गेलनि। मुदा
नीककेँ नीक आ अधलाकेँ अधला जौं नै कहल जाए तँ के पटकाएत तेकर कोनो ठीक छै। हँसीओ
होइ छै हहासो होइ छै। गंभीरो हँसब होइ छै आ फुलहो हँसब होइ छै, मुदा से बूझत के? हँसी तँ हँसी छिऐ। मुँह खोलि
बत्तीसी जोरसँ छिड़िया देलिऐ, बड़का हँसब भेल! तारतम्य करैत सुगियाकाकी सासुक विचारपर, सासु दिस
घूमि, डिबियाक रोशनीमे मन्हुआएल चोकटल फूल जकाँ नै,
खिलैत कली जकाँ आँखि-भौ-नाकक संग मुस्किएली। पुतोहुक मधुर मुस्कान
देखि रधियाकेँ, जहिना गोबर खत्तोक पानि धाराक संग पाबि
गंगामे पहुँच गंगाजल बनि जाइए तहिना भेलनि। सौझुका बेला-बेली जहिना अपन चौंसैठो
कलासँ नाचए-गाबए लगैए तहिना रधिया पतिकेँ देखबैत बजली-
“सोमनाथ अपन गुणक हिसाबसँ दुनियाँक
गुणा-भाग जोड़ैए। जोड़ह, आरो जोड़ह। हम सभ माए-बाप भेलिऐ, जीता-जिनगी ई नै कानमे आबए जे माए-बाप बेटा-पुतोहुकेँ बान्हि कऽ रखने
अछि।”
रधियाक बात सुनि सुगियाकाकीकेँ जहिना अपन शक्ति मुँह
जगौलकनि तहिना रधियाकेँ सेहो दमपति शक्ति जगौलकनि। मंदिरक आगू दुनू हाथ
जोड़ि भक्त जहिना अपन अराधना करैत तहिना अखन धरि सुगियोकाकी हाथमे माली रखने
आराधना करैत रहली। माली देखि रधिया सुगियाकाकीकेँ कहलखिन-
“कनियाँ, अहाँ बैसू जे सेवा सासुरक छी ओ
तँ सासुरेमे ने सीखब। हम अपने अहाँ ससुरकेँ देह-हाथ ससारि दइ छियनि। ओना ससुरोक
सेवा पुतोहुक कर्तव्य छी मुदा स्थान-विशेषक अनुकूल। पिताक सेवा आ ससुरक सेवा
एक रहितो दू प्रक्रियासँ चलै छै। तहिना जन्मदात्ती माए आ पोसिनिहारि
सासु-माएक सेवामे सेहो भेद होइ छै। अहाँक ससुर सन भगवान केकरा ससुर देलखिन। भगवान
एहने सभकेँ देथुन।”
परिवारक -तीनू गोटेक- बीच अपन प्रतिष्ठा
पबैत सोहनलालक मन सोहनगर होइत-होइत सोन्हाएल दूधक डाबाक मक्खनक सुगंध निकालि
बाजल-
“कनियाँ, ऐठाम
तीनिए गोरे छी। अहीं तीनू गोरेक ने ई घर छी। ऐ घरक भार तँ तीनिए गोरेक ऊपर अछि
किने। अहूँ खनदानी घरक बेटी छी। दुनू गोरे -सासु-पुतोहु- विचारि जे कहब से
मानैत चलब। सएह ने...।”
ससुरक विचार सुनि सुगियाकाकी शुभ
प्रभातकेँ प्रणाम केलनि।
दोसर दिन सबेरे सासु-ससुर बोनि करए
घरसँ निकलली। भानस करैसँ पहिने चाह-ताह पीला पछाति,
सोलह बर्खक नव कनियाँ सुगियाकाकी घरक चौकठि लग बैस अपन शक्तिकेँ खोजए लगली।
हमरा सन परिवारमे जौं देह धूनि श्रम नै कएल जाएत तँ परिवारक नीवमे मजगुती नै
औत। शक्तिक क्षय श्रम आ भोग दुनूमे होइ छै। यएह छी अकास-पतालक दूरी। जतए जे होउ,
आइसँ दिन-चर्या बना चलब। भोरहरबामे पाँचटा प्रभाती गाएब आ पहिल-दोसर
साँझमे पाँचटा मंगल सेहो गाएब, अपना घरमे गाएब, अपन सासु-ससुरकेँ सुनेबनि। सभ अपन घर देवताकें पूजा करैए, हमहूँ करब। तइसँ पहिने अखने चिक्कनि माटि घोरि सभ घर-ओसारकेँ ढोरब
शुरू कऽ ली। सुखैओमे दू-तीन दिन लगबे करत। कहियाले आ केकराले भित्ती-चित्रक
लूड़ि राखब। जिनगीक ठेकान नै अछि। बिनु बँटने जे संगे जरि जाएत तँ अधरम हएत।
सभ घर-ओसारमे रंग-रंगक रूप-चित्र बना लेब। कोहवर, भानस,
पढ़ैक, सुतैक रूप बना नै राखब तँ लूड़ियो-बुधि
तँ हराइते छै, हराइते जाएत। मुदा ई सभ तँ भेल घर सजबैक। मूल
तँ अछि पेट। जखन अपना खेत नै अछि तखन खेती केना करब। ओना नैहरमे जँ खेत छेबे
करनि तैयो तँ खेती अपने नहियेँ करै छथि। ई तँ निश्चित अछि जे जखने घर-ओसारमे
चित्र बनबैक लूड़ि अछि तँ काजो-रोजगार अछिए। मुदा जैठाम छी तैठाम कि रेडियो-अखबार
छै जे लोक बूझत। लोक तँ बूझत देखिए-परेख कऽ, गाम-समाज बनत
बजार। शुभ-अवसरक संग नव-नव घर बनत, नव-नव चित्रसँ घर सजौल
जाएत। से नै तँ सभसँ पहिने पेटक मुँह मारैक ओरियान कऽ ली, तखन
बूझल जेतै। ने दुनियाँ पड़ाएल जाइ छै आ ने अपने पड़ाएल जाइ छी। रहैओक अछिए आ रहब
तँ संगो चलै पड़त।
परिवारमे
सुगियाकाकीक सासुरक जिनगीक पहिल जीत यएह भेलनि जे सबहक -परिवारक- विचारसँ घर
चलत। सभ मिलि काजो-राज सिरजन करब आ सभ मिलि बाँटि करबो करब। अपन तीनू
श्रमकेँ एकठाम होइते शक्तिक रूप बनल। वएह शक्ति पूजी बनि ठाढ़ भेलनि। परिवारक
दिन-दशा सुधरए लगलनि। जेना-जेना अर्थक स्तर सुधरैत गेल तेना-तेना श्रमक रूप
बदलैत परिवार चलए लगल। कमो अपन पूजी-श्रम-अर्थ जौं अपना मननुकूल उपयोग कएल जाएत
तँ कर्कशतामे कमी अबै छै। कर्कशता ओत्तै विकृत रूप पकड़ैत जतए मनकेँ प्रतिकूल
श्रम करए पड़ै छै।
समए
बीतैत गेल। सासु-ससुर सुगियाकाकीक सहयोगी बनि एकधारामे परिवारकेँ ठाढ़ केलनि।
ओना दस बर्ख बीतैत-बीतैत सुगियाकाकीक नओं-जश चरिकोसीमे पसरि गेल छेलनि मुदा
एते-सघन काजक समाजमे, गाम छोड़ि अनतए जेबाक समैए ने भेटनि।
एक बोनिहार परिवार समाजक ओइ मानचित्रपर पहुँच गेल जे सुतिहार परिवार कहल जाइ
छै।
बीस
बर्ख पुरैत-पुरैत सुगियाकाकीकेँ पाँचटा सन्तान भेलनि। तीन बेटी दू बेटा।
सासु-ससुरकेँ रहने सुगियाकाकीक काजमे ओते बाधा नै पड़लनि जेते असगरूआ परिवारक
चिलकौरकेँ होइ छै। मनुख पैदा करब आ मनुख बना ठाढ़ करब, धिया-पुताक
खेल नै छी। ऐ बातपर सुगियाकाकी सदति काल धियान रखै छेली। मुदा धियान रखलो
पछाति दुनू बेटा मरि गेलनि। मात्र तीनू बेटी बँचलनि। समाजक लोक सुगियाकाकीकेँ
जेहने गीत गौनिहारि, तेहने चित्रकार आ तेहने पाक पकौनिहारि
एक स्वरसँ मानै छन्हि।
समए
बीतैत गेल। सुगियाकाकीक पति-सोमनाथ उड़ि कऽ बम्बई चलि गेल। ओत्तै दोहरा कऽ बिआहो
कऽ लेलक। साउसो-ससुर मरि गेलनि। तीनू बेटीक संग सुगियाकाकी वसन्तपुरमे बँचि
गेली। अपना जनैत सुगियाकाकी तीनू बेटीक बिआह नीके घर जानि केलनि मुदा समैक
विर्ड़ोमे उधिया तीनू जमाएओ आ बेटीओ मद्रासे-कर्नाटकमे बसि गेलनि।
अखनि
पचासी बर्खसँ पहिने धरि सुगियाकाकी समाजक समुद्र रूपी पेटमे हराएल रहली,
मुदा सालक शीतलहरि सुगियाकाकीकेँ असहनीय बना देलकनि।
मुइलो बिसेबनि
काल्हि भाेरेसँ केत्ताबेर लुटनी भौजी धीरू भैयाकेँ खोज करए
एली मुदा भेँट नै भेलखिन। ओना लुटनीओ भौजी अपने मनक लोक, खोज करए तँ अबै छेली मुदा परिवारक कोनो सदस्यकेँ सोझे पूछि दइ छेलखिन-
“धीरू बौआ आंगनमे छथि?”
तँ उत्तर भेटै छेलनि-
“नै।”
‘नै’ सुनिते घूमि कऽ चलि जाइ छेली।
दोहरा-तेहरा खड़ियारि कऽ ऐ दुआरे नै पुछै छेलखिन जे अपना घरक बात सभ लग बाजब
नीक नै। ओना किछु मानेमे निको छेलनि। नीक ऐ मानेमे जे झगड़ा-दनक बात जखन लोक बजए
लगैए तँ कते रंगक बात बजा जाइ छै तइसँ समैओक बेरबादी आ दोसर झगड़ा सेहो टरल रहैए।
मुदा सातम बेर एलहा लुटनी भौजीकेँ सुतरलनि। धीरू भैया गंगा नहा कऽ आएले छला कि
लुटनी भौजी आबि गेलखिन। गाड़ी-सवारीक झमारल धीरू भैया तँए आन गप करैक मन नै होइ
छेलनि। किएक तँ अपनो घरक तीन दिनक समाचार पछुआएले रहनि। आनठामसँ एला पछाति कियो
पहिने अपन परिवारक हाल-चाल ने बुझए चाहैए जे कोन काज अगुआएल, कोन पछुआएल आ कोन ठमकले रहि गेल। मुदा जखन लुटनी भौजी अपन दुखनामा कहए
एलखिन तखन नहियोँ सुनब उचित नै। अपन परिवारसँ बेसी महत जौं आन परिवारकेँ नै
देब तँ सुआरथीएक काज भेल। मुदा अपन काज छोड़ि जौं दोसरेक काज करए लगब तँ कि दोखी
नै हएब? केना नै दोखी हएब। सभकेँ अपने अधिकारो आ कर्तव्यो
छै जौं तेकरे छोड़ि देब तँ करब की? खैर जे होउ...।
एक तँ धीरू भैया रस्ताक झमारल तैपरसँ दोसर झमार दैत लुटनी
भौजी कहलकनि-
“पहिने सभ काज छोड़ि हमर पनचैती कऽ दिअ, तखनि आन काज करब?”
ओना गंगा स्नान केला पछाति धीरू भैयामे
किछु संकल्पो आ किछु काज करैक नव उहियो आबि गेलनि आ किछु छोड़बो तथा बदलबो
केलनि। लुटनी भौजीक बात सुनि मनमे उठलनि जे अखन दूर-दराजसँ आएल छी, लगले पनचैती करए बैसब, तहूमे मनो थाकले आ गरमाएलो
अछि। समैक हिसाबसँ नीक केना हएत? कोनो पोखरिसँ अछींजल भरब
तखन ने उचित होइ छै जखन जल असथिर रहल, जइसँ ने चहल-पहल रहत
आ ने गादि-गंधक संभावना रहत। मुदा लुटनी भैजीकेँ टारबो असान नै।
एक कालखंड धीरू भैया आ लुटनी भौजी गामक
नेतागिरी कऽ चुकल छला। ओना लुटनी भौजी बिनु पेनक लोटे जकाँ छेली मुदा जासुसी लेल
तँ ओहने फूटल-फाटल, पचकल-पुचकलक ने जरूरति होइ छै। तइमे लुटनी
भौजी सोल्हन्नी उपयुक्त छेलखिन। ओना, सभ बुझै छला जे लुटनी
भौजीक बात आ उनटा गाड़ीक चालि, दुनू बरबरि मुदा तैयो गाममे
ओहएटा मरदक बेटी छथि जे थनो-पुलिसक आगूमे ठाढ़ होइ छथि। जेहने रकार-तकार पुलिसक
बोल तेहने तँ लुटनीओ भौजीक रेकार-तेकार छन्हिहेँ। गामक लोक जे बुझनि मुदा
सरकारी जासूससँ तँ नीक चरित्रक छथिए। केना नै छथि,
गाम-घरक जासूरी मुखौती चलै छै मुदा सरकारीक तँ लिखौती चलैए। मलकारे ने महिंसिक
घीकेँ गाएक घी आ गाएक घीकेँ महिंसिक घी मुखौतीओ बना लइए। आकि कीनिनिहार बनौत? कीनिनिहारकेँ जे जरूरति रहलै ओ मांग करैए। मलकारकेँ जेते जल्दी घी बिकाएत
ओते पहिने ने काजसँ छुटकारा भेटत। जखन सभ अपने लाभक रोजगार करैए तखन मलकारेकेँ किछु
कहब उचित हएत। लिखौतीए जासूसीमे ने कोनो कारखानासँ लाखक माल सैकड़ा बनैए आ
सैकड़ा-लााख बनैए। भलहिं बीचमे इन्कम-टैक्सक जे करामात होउ। एहेन जासूसी लुटनी
भौजी कहियो ने केलनि आ ने अखनो करै छथि। ओना केतबो माहिर लुटनी भौजी किएक ने
बूझल जाथि मुदा सभ घरक जासूसी करैमे खिलैच जाइ छथि। जे पुरुख कोट-कचहरीक गप
अपन जनानाकेँ कहि दइ छथिन। ओइ बुझैमे लुटनी भौजीकेँ बेसी भाङठ नै होइ छन्हि
मुदा जइ घरक जनानाकेँ अपन घरक बात कतए बाजी, कते बाजी,
कतए नै बाजी इत्यादिक ज्ञान छन्हि, ओइ घरक
भाँज बुझैमे भौजी हारि जाइ छथि। जराएल मन भौजीक रहबे करनि। कंठ फाड़ि दोहरी
अबाजमे प्रश्न दोहरबैत बजली-
“हमरा बातपर कान किअए ने दइ छी जे
मने-मन गुड़-चाउर फँकै छी।”
जहिना आमक डारिकेँ दोहरी दोम पघिलल, घुलल आ कठगर तीनूकेँ झखबए लगैए तहिना धीरू भैयाकेँ लुटनी भौजीक बात सुनि
भेलनि। मुदा मन तँ पहिने गंगा संकल्पकेँ जपैत रहनि जे सासु-पुतोहुक झगड़ाक फरिछोटमे
नै पड़ब। ई कि कोनो झगड़ा छी। सोल्हन्नी रगड़ा छी। ने तँ वएह बेटी हँसी-खुशीसँ
माएक घर लक्ष्मी बनि बीस बर्ख बितबै छथि आ सासुर अबिते सासु चुड़ैल बनबए लगै
छन्हि। एकरा रग्गड़ नै कहब तँ की कहब। सोझ बात अछि, परिवारक
कोनो काज करैसँ पहिने सासु पुतोहुसँ पूछि लेथुन जे कनियाँ ई काज अहाँ नैहरमे
केना करै छेलौं। दुइए रंगक जवाब भेटत, या तँ नै कएल अछि वा
केलहा ढंग कहि देब। कारणो अछि जे एक्के मिथिलांचलक बीच क्षेत्र-क्षेत्रक विन्यासो
बनबैक आ बाजबोक आ पावनियोँ-तिहारक संग गीतो-नादक रूप लगल-अलग अछि। तइले जे
सासु भागलपुरक चलनिकेँ अधला आ मधुबनीकेँ नीक कहथि, कते उचित
हएत। गाम-गामक बीच ढेरो रंगक खाधि बनल अछि। जे खान-पीन, ओढ़ब-पहिरब,
बाजब-भूकबसँ लऽ कऽ गीत-नाद, विधि-बेवहार धरिमे
पसरल अछि, तैठाम...।
एक
तँ ओहिना धीरू भैयाक मन रस्ताक चालिसँ असोथकित रहनि,
तैपर लुटनी भौजी आरो नम्हर-नम्हर चेका काटि-काटि लादैत रहनि। धीरू भैयाक मन
गवाही दैत कहलकनि जे नीक हएत लुटनीए भौजी किअए ने हमर बेथा बुझथि। सभकेँ
अपन-अपन बेक्तिगतो आ समाजिको किछु समस्या होइ छै। मुदा से लुटनी भौजी मानथि
तखन ने, ओ तँ अपने ताले बेताल छथि। बेतालो किअए ने रहती।
मनमे ओहिना छोटकी पुतोहुक बात नचैत रहनि जे ‘आब हिनकर
भानस नै करबनि। अपन कइए कऽ खथु वा नै खथु हमरा कोनो मतलब नै।’ मुदा से मन मानैले तैयारे ने होन्हि। सासु-पुतोहु दू पक्ष भेलौं जौं
दुनू पक्षक बीच सोझहा-सोझही किछु टक्कर हएत तखन आगूक रस्ता किम्हर बनत। या तँ
एक गोटे पटका खसि पड़ए, या तँ दुनू दिससँ तेहेन देवाल ठाढ़
भऽ जाएत जे रस्ते रोका जाएत। तूफानी धाराकेँ सेहो रोकल जा सकैए, ओना धार बनब, पहाड़ ढाहब धिया-पुताक खेल नै जे
साधन छै ओ बिनु अपनौने थोड़े हएत। केतौ बान्ह बन्हैक जरूरत होइ छै तँ केतौ
छोट-छोट नासी-नहर बना पानिक वेगकेँ कम करैत रोकल जा सकै छै। तँए नीक हएत जे एक दिस
भौजीकेँ चाहो-पानक आग्रह करियनि आ दोसर दिस पहिलुका पुतोहुक चर्च ठाढ़ केने मन
ससरबे करतनि तइसँ तम-तमी कमतनि तखने जान बँचत। झगड़ो-झगड़ा सन रहए तखन ने। ओहन
झगड़ा जेकरा हजारो ठाम गीरह-गाँठ पड़ल छै तैठाम तँ न्यायालय लेल बेसी उचित यएह
ने हएत जे दुनू पक्ष अपनेमे मुँहमिलानी कऽ न्यायमूर्तिसँ हस्ताक्षर करबा लिअए।
जेठकी बेटीकेँ धीरू भैया कहलखिन-
“बुच्ची, कनी भौजीओकेँ चाह पीआ दहुन आ
हमरो पियाबह। बड़ीकालसँ चाह पीअक मन होइए।”
धीरू भैयाक जाल सुतरलनि। ओना घुमौआ जाल नहियेँ रहनि,
मुदा तैयो चाह हाथमे लइते लुटनी भौजीक मुँह टुसकिएलनि। मुँहक टुसकी देख धीरू
भैया टिपलनि-
“पहिलुका पुतोहुक घरदेखी ओहिना मन अछि भौजी। अहाँ बिसरि
गेलिऐ?”
सह पाबि लुटनी भौजीक मन तेसर पुतोहुकेँ छोड़ि पहिलुकाकेँ
झोंट लपकलक। बजली-
“अपन केलहा काज लोक वएह ने बिसरैए आकि बिसरए चाहैए जे अधला
रहै छै, मुदा नीक केना बिसरि जाएत। अहाँ तँ ओइ काजमे अगुए
रही, कहू जे कोन धरानी पुतोहुकेँ घर अनने रही।”
लुटनी भौजीक दोहरी पंच बनिते धीरू भैया कहलखिन-
“ओना मुँहपर केकरो बड़ाइ आकि छोटाइ चटुकारी भेल मुदा नीक कि
अधला बजलो नै जाए सेहो तँ नीक नहियेँ हएत। केतौ अधलाकेँ नीक दबतै तँ केतौ नीककेँ
अधला दबतै। एहने बात अखन उठि गेल अछि। जे समाङ वा कुटुम घर छोड़ि परदेश जा घर
बना लेलनि, पैघ बनि गेला। जौं कोनो काज-पीहानीमे भाग लइले
नोत-हकार देबनि तखन जौं अबै-जाइक गाड़ी-बस, जहाजक भाड़ा-किराया
नै देबनि तँ कि हुनका मान-मर्जापर नै पड़तनि। मुदा तइ संग ईहो प्रश्न तँ जोड़ले
अछि जे जइ पेटक खातिर गामसँ हजारो कोस दूर भगलौं ओइ धरती धारण केनिहारकेँ नै
परेखि पाबी। खैर जे होउ...।”
मुस्की दैत धीरू भैया पुन: बजला-
“मुदा ओ बात हम कहियो ने अहाँक बिसरब।”
‘बिसरब’ सुनि लुटनी भौजी अन्हरोखमे
फुलाइबला फूल जकाँ हलसि कऽ खिलैत पुछलखिन-
“कोन बात कहलिऐ बौआ?”
“वएह-वएह! अहाँ बिसरि गेलिऐ?”
“एँह, कि कहब काजक तेहेन ओझराैठ होइ छै
जे कोन बात लोक मोन राखत आ कोन बात नै मन राखत। काजो करैत-करैत कखनो काल मन हरा
जाइ छै किने।”
सिमसिमाएल लुटनी भौजीक मन देख धीरू भैयाक मन सेहो थीर
भेलनि। बजला-
“पहिल बेटाक घरदेखीमे जे अहाँ सभकेँ बर-बरी खुऔने रहियनि, तही दिन ने बेटीबला सभसँ कहबा नेने रहियनि ने ‘एते
रंगक बर-बरी हम नै खुआ पाएब।”
जहिना हौहैठ कलकैल कुरियबै काल सुआस पड़ै छै तहिना धीरू
भैयाक बात सुनि लुटनी भौजीकेँ पड़ए लगलनि बजली-
“कोन परगनाक बेटी हमरासँ लूड़िगर अछि,
सात-परगनाक बर-बरी बनबैक लूड़ि ऐ देहमे गहना जकाँ सजा कऽ रखने छी।”
बजैत-बजैत लुटनी भौजी झोंक दैत झोंकली-
“अखुनका लोक कहत जे हम बड़ लूड़िगर छी, चलह
ते अखनो हमरा सेने भानसमे!”
चुटकी लैत धीरू भैया कहलखिन-
“यएह बात भरिसक छोटकीओ पुतोहु बूझि गेली, तँए भानस करब छोड़ि देलनि।”
जहिना
लुटनी भौजीक सनक आगू ससरल रहनि धीरू भैयाक बात सुनि तहिना ढील भऽ गेलनि। पुन:
पहुलके पुतोहुक चर्च उठबैत बजली-
“ओहो पुतोहु कि कोनो अधला छथि, मुदा ई
दोख तँ छन्हिहेँ ने जे जइ घरमे थेहगर सासु रहती ओइ घरक जुइत पुतोहुक हाथमे केना
जाएत। बेटा बेटी परिवारमे होइ छै। आनक बेटी आनक बेटीक संग केहेन बेवहार राखत,
ई बात तँ माइए-बाप ने बूझि सकैए आकि कनियाँ-मनियाँ।”
बजैत-बजैत लुटनी भौजीक मन चढ़लनि। धीरू भैया कहलखिन-
“देखू, ओइ पनचैतीमे बेसी दोख अहींक रहए।
पुतोहु जकाँ कहियो जेठकी पुतोहुकेँ नै बुझलिऐ।”
मन पाड़ैत लुटनी भौजी बजली-
“देखिऔ बौआ, जेते दोखी अहाँ बनबै छी तेते
नै छी। कनी-मनी दोख केतौ भऽ गेल होइ से भऽ सकैए मुदा जेते बुझै छी तेते नै छी।”
“केना नै रहिऐ। देखै छेलौं जे चिचिया-चिचिया पुतोहुकेँ
सरापै छेलिऐ आ कहै छी जे केना केलिऐ।”
“ऐमे हम की दोखी भेलौं?”
“ऐमे अहाँ ई दोखी भेलिऐ जे एक तँ ओहुना बेटी नैहरक मुँह पौतीमे
बन्न कऽ लइए, तैपर जे सासु साँढ़-पारा जकाँ ढेकरि-ढेकरि
टोकारा देथिन तँ कि ओ पशु-मुँह कते दिन बरदास करत। अहींक जे पुतोहु छथि, किअए ने बेटी जकाँ चुचकारि कऽ गप करै छेलौं। जे अनठिया माल-जाल जकाँ
ढूसि लइ छेलिऐ।”
अपन तर्क कमजोर देखि लुटनी भैजी छछलैत बजली-
“बौआ, ऐमे दोसर भाँज रहै जे हमहूँ नै
बजलौं।”
चुम्मक जकाँ जेते धीरू भैया लुटनी भौजीकेँ पकड़ए चाहथि
तेते लुटनी भौजी, जहिना लोहामे आन-आन द्रव्य मिलौलासँ
चुम्मकीय शक्ति कमजोर होइ छै तहिना आन-आन बात जोड़ए लगली। धीरू भैयाक मन गबाही
देलकनि। बजला-
“कथी दोसर भाँज रहए बाजू। अखने कि भेल, आबो
तँ बूझब ने?”
धीरू भैयाक प्रश्न सुनि लुटनी भौजीक मन धकमकेलनि। मनक एक
पक्षक कहब रहनि जे घरक कोनो बात छिपा कऽ किअए राखब। जखनि समाजक एकटा खुट्टा
हमहूँ छिऐ तखनि गराड़केँ किअए चोरा कऽ राखब! मुदा दोसर पक्षक कहब
रहनि जे पसीना चुबौल काज लोक लग बजैमे हर्ज नै। पसीनाक धार आनोक-आन देखैए। मुदा
बिनु पसीना चुबौल काजक आमदनी बजलासँ केहेन हएत? किन्तु
डारिक चुकल बानर जहिना अपनाकेँ मरले बुझैए तहिना मनमे अबिते फरकि कऽ लुटनी
भौजी बजली-
“अहाँ सभ जे पंचैतीमे जाइ छिऐ तँ झगड़ाकेँ उनटा-पुनटा कऽ नै
देखै छिऐ। जखन उनटा-पुनटा कऽ देखबै तखने ने सुपत बात बाजल हएत।”
जइ
आवेशमे लुटनी भौजी बजली ओइ आवेशकेँ धीरू भैया सूखल पछिया हवा जकाँ विर्ड़ो
बुझलनि। दस-बीस मिनटक खेल, भलहिं घर-दुआरक कोन बात जे
मोटगर-मोटगर गाछो किअए ने उखाड़ि दिअए...। अपनाकेँ समटैत धीरू भैया बजला-
“आबो कि भेल, बाजू। अखनि तँ दुइए गोरे
छी, कोनो बात झाँपि-तोपि नै राखू। जौं पनचैतीमे इशारोसँ
आएल हएत आ ओइपर पंचक धियान नै गेल हेतनि, तैठाम पंच दोखी।
मुदा जैठाम काजक कोनो गपे ने उठै, तैठाम तँ घरबैए दोखी।
छातीपर हाथ राखि बाजू।”
धीरू
भैयाक जिज्ञासा पाबि लुटनी भौजी सहमि गेली। सहमैक कारण भेलनि परिवारक अर्थविन्दु
केना दोसर लग बाजब। अखनि धरि तँ आबिए रहल अछि जे अपन मेन्टेन करैले भुखलो पेट
बाबरी उनटा मुँहमे पान फुलबैत चलिते अछि। जहिना बिनु गुनाक रिंच धीरू भैया लगा
खोलए चाहै छथि तहिना लुटनी भौजी दालि तँ बाजथि मुदा राहड़ि, कि खेसारी, से छिपबैमे माहिर। बजली-
“मन अछि किने जे अहूँ रस्तेपरसँ सुनैत रहिऐ।”
“नै मन अछि। कनी मन पाड़ि दिअ।”
सह पाबि लुटनी भौजी छड़पि बजली-
“अहीं सन-सन बिसराह पंच न्यायालयमे अपन गवाही बदलि दइ छै।”
छिड़िआएल लुटनी भौजीकेँ देख धीरू भैया कहलखिन-
“सुनू, जे गप करै छी तेकरा पहिने मुड़नसँ
सराध धरि विचार कऽ लिअ तखन दोसर बात चालब। अच्छा, ओइ दिनका
मन पाड़ि दिअ जइ दिनक नाआें कहै छी।”
जाल सुतरैत देख लुटनी भौजी टुसिआइत बजली-
“सुनने रहिऐ ने जेठकी पुतोहु बाजल रहए। ई केहेन भेल जे एक शीशी
लोहासव भाए दऽ गेलै तेकर उपराग दिअए, से एहेन होइ। कहै कि
नै जे नैहरसँ दबाइ-दारू नै अबितए तँ कहिया ने मरि गेल रहिताैं।”
“नै मन पड़ैए। कनी सरिआ कऽ मन पाड़ि दिअ।”
जहिना
खिस्सकरकेँ सुनिनिहार भेटिते मन खुशी भऽ जाइ छै तहिना पुतोहुक पितमरी ओढ़ि
लुटनी भौजी बजली-
“अहींकेँ पुछै छी जे एकटा लोहासवक शीशीकेँ केते दाम हेतै। बड़े
हेतै तँ एक सए रूपैआ। एक दिनक एक गोरेक खेनाइ केते होइ छै। से जोड़ि लिअ। तखन
मिला कऽ देखिऔ जे तीस दिनक खर्चा जोड़लक तेकर कोनो मोजरे ने आ एक शीशी लोहासव
जोड़िनिहारक ढोल पीटए, से अहींकेँ बरदास हएत?”
धीरू भैया-
“बरदास हुअए आकि नै हुअए, मुदा जे परिवार
तीस दिनक खर्च जोड़ैए तइ परिवारमे एक शीशी दबाइए किअए बाहरसँ औत। मुदा नैहरक
देल वस्तुकेँ बेसी आ सासुरकेँ कम कहब केहेन हएत। होइ किअए अछि, होइए ऐ दुआरे जे नैहरक सम्पतिक नाओंपर परिवारमे चोरि पनपैए। तँए किअए
ने सम्मिलित परिवारक बीच बाहरक सभ वस्तु, सहबक आँखिक
सोझहा आबि जाउ। जखन परिवार सबहक छिऐ तँ परिवारक वस्तुओ ने सबहक भेल?”
बोहियाइत धीरू भैयाकेँ देख बीचेमे लुटनी भौजी टोकलकनि-
“एना नै हएत। जखन अहूँ सुनए चाहै छी आ हमहूँ कहैए लेल एलौं तखनि
शुकचेनसँ सुनिए लिऔ।”
कहि लुटनी भौजी चौकीपर पल्था जमा बैसली।
भौजीक निश्चिन्ती देख धीरू भैया बूझि गेला जे पेटमरूक
घरमे दुपहरिया सिदहा रहने भिनसुरका उखड़ाहामे निश्चिन्ती आबिए जाइ छै। तहिना
भरिसक भेलनि अछि। मुदा हमहूँ तँ आब अपनाकेँ पहिलुका जकाँ नहियेँ बुझै छी।
सबहक झगड़ा हमरे छी से बुझै छेलौं, मुदा गंगा डूम देला
पछाति एते तँ भेल जे सभ झगड़ा बूझब अपन छी। झगड़ा तँ झगड़ौआक छिऐ। जखन भौजी आशा
लगा कहए एली तँ पनचैती करए नै जाएब, मुदा चलैक रास्तामे जतए
जे गीरह-गेठी छै तेकरा ताकि नै बेराएब सेहो तँ नीक नहियेँ भेल। जहिना माघक सिताएल
कुत्ताकेँ छाउरक ढेरीपर बैसल देख उकट्ठी छाउरबला, लोटो भरि
पानि ऊपर उझैल दइ छै तहिना धीरू भैया भौजीपर उझलैत बेटीकेँ कहलखिन-
“बुच्ची, बहू दिन भऽ गेल लुटनी भौजीक
संग बैस खेना, तँए पहिने जलखै लाबह। पछाति कलौऔ खुअबिहअ।”
धीरू भैयाक आग्रह सुनिते लुटनी भौजीकेँ पछिला एकटा घटना
मन पड़लनि। घटना मन पड़िते कनबात बिसरि लुटनी भौजीकेँ धीरू भैयाक बात अनसून
हुअए लगलनि। जेकर फल भेलनि जे विचारमे जबरदास धक्का लगलनि। जे पाछू बुझलखिन।
मन पड़लनि ओ घटना जइमे लुटनी भौजी पार्टीक पंच बनि पनचैतीमे गेली। जैठाम बूझि
नै पेली जे ई जगह केहेन छै। गाम-गामक चालि-ढालि भिन्न-भिन्न छै। जइसँ गाम-गामक
जगहो चोटाह भऽ गेल छै। कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे किताब रहै छै तँ कोनो गामक बेसी
लोकक हाथमे चुटपुटियासँ नमहरका हथियार रहै छै। कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे खेलक
सामग्री रहै छै तँ कोनो गाममे हँसुआ-खुरपी-कोदारि, कोनो गामक बेसी
लोकक हाथमे रिंच-हथौरी, पेंचकश रहै छै तँ कोनो गाममे
एजेंसीक फार्म-जिल्द।
गपक हलहलीमे लुटनी भौजीकेँ शर्बतमे बीख
मिला देने रहनि। संयोग नीक रहलनि जे लोकक बीच रहथि,
उठा-पुठा कऽ डॉक्टर लग जा जान बचौलकनि। तही दिन लुटनी भौजी कान धऽ लेलनि जे
जगह देख किछु करक चाही। मुदा लुटनी भौजीक भक्क तखनि खुजलनि जखनि धीरू भैया
दोहरा कऽ आग्रह केलकनि-
“पहिने किछु खाइए लेब तखन गप-सप्प
हेतै।”
‘खेनाइ’ सुनि
लुटनी भौजी चमैक बजली-
“खाइ-पीबैक अरसट्ठा छोड़ू। गपेमे कनी
तेजी आनि लिअ। अखनि खाइ बेरो ने भेल अछि। अहुना काज-उदममे कनी-मनी अबेर-सबेर
भइए जाइ छै।”
अपन जाल सुतरल देखि धीरू भैयाक मन असथिर भेलनि जे जहिना
गोनू झाक बिलाइ दूध देखि भागै तहिना खेनाइक नाओंपर लुटनी भौजीकेँ भगा सकै छी।
मन थीर होइते धीरू भैया कहलखिन-
“अहीं तेजीओक बात कहै छी आ अनठेबो करै छी?”
“नै-नै, अनठबै कहाँ छी। एकटा ओझड़ी रहए
तखनि ने, तहूमे तेहेन-तेहेन भत्ता सभ धेने अछि जे केकर
मुँह केम्हर छै आ केकर नाङरि केम्हर छै जे बतिया जकाँ निहारि-निहारि ने
देखए पड़ैए। ई तँ नै जे घेरा-झुमनीक बीआ जकाँ रोपैकाल केकरो मुड़ी अकास दिस आ
केकरो पताल दिसकेँ दऽ दिअौ आ जनमै काल जे पछुआए ओकरा भोरेसँ गरिआबी।”
जहिना
कथाकार लोकनिकेँ सालक किछु मास विषैए खेजैमे राजगीर चलि जाइ छन्हि तहिना
लुटनी भौजीक कथा हराइत देख धीरू भैयाक हजार नम्बर बिजली बौल जकाँ भुक्क दऽ मनमे
उठलनि, जहिना शिकारी जालक एकटा सूत पकड़ि सौंसे जाल खोलि
लइए, तहिना तँ गपे-गपमे झगड़ोक रग्गड़ पकड़ि खोलल जा सकै
छै। बजला-
“जएह सोझहामे पड़ै तेकरे अन्है जकाँ किम्हरोसँ मुट्ठीएने आउ।
अपने ने देखबै जे अगिला जनममे कोन साँप हएत।”
धीरू भैयाक सह पाबि लुटनी भौजी समधि-समधिन दिस छड़पैत
बजली-
“कहू तँ एहेन बात अहींकेँ बरदास हएत?”
बिनु मुड़ीक बात सुनि धीरू भैया अकचकेला। कालीए ने अन्हरिया
राति छी। जिनकर जिह्वा लपकि-लपकि दुष्ट नाश करै छन्हि। मुस्की दैत
भौजीकेँ टुसकियबैत कहलखिन-
“एना झाँपि-तोपि बजने काज नै चलत। उघारि-उघारि बाजू।”
सह पाबि सहटैत लुटनी भौजी आँखि-कान, मुँह-नाक आ दहिना हाथक पाँचो ओंगरी छिड़ियबैत बजली-
“घरक बात छी आनठाम बजैमे लाज होइए मुदा अहाँ तँ जिनगी भरिक
संगी छी, बारह-बजे दिन आकि बारह बजे राति संगे लोकक बीच
रहलौं, दुनू गोरेक तीत-मीठ दुनू गोरे जनै छी। तँए कहै छी।
कहू जे ई केहेन बात सदिखन जेठकी कहै छेलए जे हमरा माएक पएर धोनो जकाँ हिनकर छीछा-बीछा
नै छन्हि।”
लुटनी भौजीक बात सुनि धीरू भैया पुछलखिन-
“ऐमे अहाँक कोन लखराज-बह्मोत्तर चलि गेल। जे बात पुतोहुकेँ
माए-बापक सिखौल मन नै रहलनि। जौं मन रहितनि तँ विचारि कऽ ने बजितथि जे जखन
दुनू समधीनक बीच हम बेटी-पुतोहु दुनू भेलौं, तखन हमरा लिऐ
दुनू ने एक्के रंग। एक जिनगीक पूर्ब पक्ष आ दोसर उत्तर पक्ष। तइले एते अहीं किअए
आमील पीने छी?”
मीठगर बात रहितो लुटनी भौजीकेँ अमताइन लगलनि। मन गबाही
दइले तैयार भेलनि जे कोनो बौस रसगुणसँ खट्टा होइए मुदा जे रसगुणसँ खट्टा नहियोँ
होइए ओहो बाइस-तेबाइस भेने तँ खटाइए जाइए। जौं से नै होइए तँ दहीक सुआद खट्टा तँ
नै छिऐ मुदा चीनीक काज किअए पड़ै छै। पेरासुट जकाँ मजगूती लुटनी भौजीक मुँहकेँ
धकेल खोललकनि-
“अच्छा अहीं कहू तँ एके विद्यार्थी कौलेजमे प्रोफेसरसँ पढ़ैए,
हाइ स्कूलमे उच्च शिक्षकसँ तइसँ कम मिड्ल स्कूल आ सभसँ पहिने
अपना परिवारक भाए-बापक संग अगुआएल भाए-बहिनसँ सेहो पढ़ैए, तइमे
के कम श्रेष्ठ के श्रेष्ठ आ के बेसी श्रेष्ट भेल, से पहिने
बुझा दिअ।”
लुटनी भौजीक प्रश्न सुनि धीरू भैया टेढ़ रस्तापर जहिना
साइकिलक मुँह घुमौल जाइ छै तहिना भौजीक मुँह घुमाएब बुझलनि। तेहेन नेतागिरीबला
सबाल पटकए चाहै छथि जे अनेरे दिनक-दिन मासक-मास खाइबला अछि। मुदा आँखि-मुँहक
चढ़ती देख अपनाकेँ चढ़बैत बजला-
“देखू, अखनि धरि नै कहने छेलौं मुदा जखन
गप-पर-गप उठैए तखनि कहिए दइ छी।”
हराएल
बौस भेटैक संभावना देख जहिना जिज्ञासा जगैत तहिना जिज्ञासु लुटनी भौजी बजली-
“मनक बात जे चोरा कऽ रखैए ओ चोरे भेल। अखनि धरि अहूँ सएह
भेलौं।”
लुटनी भौजीक तीनकमियाँ बंशी धीरू भैयाकेँ लगलनि जरूर मुदा
जीहमे नै कातक गलफरमे झिट्टा मारने रहनि। जे कनीमनी धाउ भेने तँ छुट्टियो जाइ
छै। मुदा अमती काँट निकालैले बगूर आकि बेलक काँटक जरूरति पड़िते अछि। पुछलखिन-
“कते दिन अहाँक जेठकी पुतोहु कहलनि जे सासु-सासु जकाँ हुअए
तखन ने, बुढ़िया तेहेन लुपकाहि छथि जे भेल भानसपर चुल्हि
गरमे रहै छन्हि, केम्हरोसँ एकटा करैला, तँ केम्हरोसँ एकटा झुमनी नेने औती आ हाँइ-हाँइ कि दू-तीनटा टुकड़ी तड़ि
लेती। तड़ै छथि तइले दुख नै होइए मुदा तेहन अपसोगारथी छथि जे आगूमे बैसल मुँह
तकैत रहब, मुदा एक टुकड़ी देती नै।”
कोठीक
मुँहसँ जहिना धान-चाउर भुभुआ खसैए तहिना लुटनी भौजी भुभुएली-
“बौआ, पेटक बात बजै छी। हमरा एक खढ़ इच्छा
नै हुअए जे जेठकी साँझी रहै। तीनिटा बेटा अछि तीनिटा पुतोहु हएत। अहीं कहू जे
तीन-तीन गोटे जइ घरक भनसिये भऽ जाएत तइ घरमे भानसक जोगार के करत। कनियेँ उच्छन्नर
देने भीन भेल, अपन परिवारक भार उठौलक।”
“सम्मिलित परिवारक माने ई नै ने जे किछु गोटे कमेलौं बाँकी
सभ बैस खेलौं। सम्मिलित परिवारक माने सम्मिलित जिनगी होइ छै। तँए...।”
धीरू भैयाक बात सुनि लुटनी भौजी बजली-
“अखनि जाए दिअ।”
‘अखनि जाए दिअ’ बजिते लुटनी भौजीकेँ
धुक दऽ मन पड़लनि छोटकी पुतोहु। ओकरे कारनामा कहैले धीरू भैया ऐठाम आएल छी।
तखने धीरू भैया चड़ियबैत पुछलकनि-
“देखू, बेर-बेर एक्के घरक पनचैती केने घर
हेहरू भऽ जाइ छै। तँए जेते झगड़ा अछि से सभटा आइए सुनि लेब। बाजू, दोसर पुतोहु किअए परदेश चलि गेल?”
पहिलुका
पुतोहुक खेरहा ओराइते लुटनी भौजी खड़हीसँ निकलि परतीपर डण्ड-बैसकी करैत नढ़िया
जकाँ बजली-
“देखियौ बौआ, मझिली सोहरदे मने गेल। कहियो
झगड़ा-झाँटी नै भेल। ओना झगड़ा-झाँटी करए चाहितौं तँ दुनू साँझ होइतए मुदा अपने
परहेज करैत रहलौं।”
‘अपन परहेज’ सुनि धीरू भैया दोहरौलकनि-
“कि परहेज केलौं?”
“कि पुछै छी जेते करूतेल सात दिनमे खर्चा होइ छेलए तेते एक्के
दिनमे करै छेली। मुदा घरक बात बूझि केकरा कहितिऐ। लोक कहैत जे पुतोहुकेँ खाइओ
ले ने दइ छै।”
“अच्छा छोड़ू, भरि दिन अहाँ पुतोहुकेँ
नीक-निकुत खुअबिते रहलौं। परदेश किअए जाए देलिऐ। बेटा कमाइले गेल आकि घर-दुआर
बनबैले?”
धीरू भैयाक प्रश्न लुटनी भौजीक मनकेँ हौंर देलकनि। जहिना
छाँछीमे दूध, मक्खन आ पानि रेहीक बले संगे नचैत तहिना लुटनी भौजीक मन
नचलनि। बजली-
“बौआ, ओकर बापो शहरे-बजारमे परिवार राखि
बेटीकेँ पढ़ेबो केलक आ ट्रेंनिङो करा देलकै। ओतए ओ दुनू परानी नोकरी करत, कमाएत। ऐठाम कोन काज करैत, तँए विचारेसँ जाए देलिऐ।”
“जहिना दुनू जेठकी-छोटकी बेटा-पुतोहु घर छोड़ि चलि गेल तहिना
जौं तेसरो चलि जाए तखन कि करबै?”
धीरू
भैयाक प्रश्न लुटनी भौजीकेँ मरोड़ि देलकनि। चारू दिस नजरि दौगए लगलनि। मुदा,
जवाबक कोनो बाट नै देख पाशा पलटैत बजली-
“देखियौ बौआ, गण्डा हुअए आकि गाही,
दर्जन हुअए आकि सोरे, असल बेटा तँ दुइएटा ने
होइ छै। औरो -बीचलका- संग तँ कटा-कटी भइए गेल छै।”
‘कटा-कटी’ सुनि धीरू भैया प्रश्न उठौलनि-
“कि कटा-कटी भेल छै?”
धीरू
भैयाक प्रश्न सुनिते लुटनी भौजी मचियापर बैसल मचिबाह जकाँ मचमचबैत बजली-
“जेना कोइ बिलेँतसँ आबि कहै छै जे गामक किछु ने बूझल अछि
तहिना अनठा कऽ बजने नै हएत।”
लुटनी भौजीकेँ धकियबैत देख धीरू भैया बामा ठेहुनकेँ अरकबैत
झमाड़ि बजला-
“अच्छा बाजू, कि कटा-कटी भेल छै?”
धीरू भैयाक आग्रह सुनि लुटनी भौजी अगुआ जकाँ अगराइत बजली-
“अहाँकेँ नै बूझल अछि जे जेकरा चारि या पाँचटा बेटा रहै छै,
ओइमे बीचला बिनु किछु केनौं पाक-साफ रहैए, मुदा
से जेठका छोटकाकेँ समाज बनए देत?”
लुटनी भोजीक प्रश्न सुनि धीरू भैया बौलकेँ आगु बढ़बैत गोलकीमे
सरिआ कऽ फेकलनि-
“अहाँ मने बीचला जेते बेटा भेल ओ बेटा भेने ने कएल?”
दुनू हाथसँ गोली-बौलकेँ पकड़ि जहिना गोल होइसँ बँचा लइए
तहिना लुटनी भौजी बजली-
“बेटा भेबो कएल नहियोँ भेल। रीति-रेबाजकेँ मानबै तँ नै भेल,
अपन बेटत्व बुझबै तँ जहिना एकटासँ छोट अछि तँ दोसरसँ नम्हरो तँ
अछिए किने।”
लुटनी भौजीक बात सुनि दोसर दिस मुड़ैत धीरू भैया बजला-
“एहनो बेटा -बीचला- तँ होइते छै जे जेठका-छोटकाक सीमा तोड़ि
माए-बापक सेवा करैत अपनाकेँ जेठका, मझिला, सझिला, छोटकाक पतियानीक बीच ठाढ़ भऽ जाइए।”
धीरू भैयाक प्रश्नक उत्तर नै पाबि लुटनी भौजी करोटिया
मारलनि-
“देखियौ, जेठका-छोटका नै कोनो बात भेल।
जौं से होइत तँ हजारक-हजार बेटाबला सगरकेँ कियो काज नै देलकनि। खाइओ बेर भेल
जाइए मुदा बात पछुआएले रहि गेल अछि।”
“अहाँ तँ अपने खापड़िक मकइ जकाँ कुदि-कुदि छिड़ियेबो करै छी
आ तीसी जकाँ चनचनेबो करै छी। बाजब कि फेर बौएबे करब।”
टिकासनपर बैसल घरछाड़ा जकाँ मठौठक खढ़-बत्ती अजमबैत अजमौनिहार
जकाँ लुटनी भौजी बजली-
“अहीं कहू जे ई केहेन भेल जे ठेँसगरि जकाँ बाजलि रहए।”
‘ठेँसगरि’ सुनि धीरू भैया टिपलनि-
“खाली टीकमे ककही चलौने बाबरी नै होइ छै। सरिआ कऽ बाजू जे
झगड़ाक जड़ि कि अछि?”
“झगड़ाक जड़ि कि रहत? अहाँ नै देखै छिऐ
जे घरसँ बलजोरी घिच-घिच स्त्रीगणक संग कि होइ छै, तैठाम
कहैए जे कमरा लऽ कऽ बिआह-मुड़नमे फोटो ग्राफी करब। तेकरा हम रोकबै नै। लुच्चा-लम्पटक
बरिआती भऽ गेल अछि आकि नीक लोकक अछि। ताड़ी-दारू पीब छौड़ा सभ नाच करैए तैठाम
इज्जत-आवरू लोक अपने नै बचाएत तँ आन गोरे लेतै कि बचौतै।”
लुटनी भौजीक बात सुनि धीरू भैया ठमकला। अपनाकेँ निरूत्तर
पाबि पुछलखिन-
“बीचमे तँ बेटो अछि तेकरा पहिने कि कहलिऐ?”
बेटाक नाओं सुनिते लुटनी भौजी चौकीपर सँ कूदि नीचा आबि
बजली-
“ओ तँ हिजरा छी हिजरा। ने मौगीए ने पुरूखे। बलिगोबिना। ओकरे
सहसँ तँ पुतोहुओ दूरि भेल अछि। ओइ िनर्लज्जाकेँ कथी कहबै?”
“तखन मुँह किअए तकैत रहै छी, दुनू हाथे
झोंटा पकड़ब से नै?”
“मन अपनो होइए मुदा फेर सोचै छी कहीं हाथा-वाँही भेल तँ ऐ
बुढ़ाड़ीमे मारि खाएब, नै जे झोंटा-झोंठौअलि भेल तँ ओकर
तड़गर केश छै गोटे-आधे उखड़तै मुदा अपन तँ पकलाहा गोट-गोट कऽ बीछा जाएत, तेकरो डर होइए किने? एकबेरक जौं पकलाहा केश रहैत तँ
ओते दुख नहियेँ होइतए मुदा समरथाइएसँ जे गोटि-पङरा शुरू भेल ओ आब सोलहन्नी भेल।”
‘डर’ सुनि धीरू भैया बजला-
“बेटा-पुतोहु दुनूकेँ कहि दिऔ, तुकपर
खाइले दिअए। ऐसँ बेसी आब कथीक जरूरति अछि। इन्दिरा अवासक घर भइए गेल, तेहेन-तेहेन स्वीटर, कम्मल, साड़ी
पुतोहुओ पठा दइए आ बड़ो-विदाइ तेते होइए जे लत्ता-कपड़ाक जरूरते ने अछि। तखन कि
चाही? ओना करैए वा नै करैए ई ओकर धर्म काज भेलै। जौं नहियोँ
करत तँ अहाँकेँ छोड़ि भगती से काज चलतनि।”
धीरू भैयाक बात सुनि लुटनी भौजीकेँ किछु हराएल बौस जेना
भेटलनि। पुछलखिन-
“नै बुझलौं जे कि कहलिऐ, नै बनतनि।”
गदगदाइत लुटनी भौजीक चैहरा देख धीरू भैया कहलखिन-
“जीता जीनगी अहिना होइ छै हेबै करतै। कहुना अहाँ माए भेलिऐ।
जीबैसँ मरै धरिक भार ओकरा छै। से जाबे नै पुरौत ताबे परतवाएक भागी रहत। तँए अहाँ
मुइलोपर बिसेबनि।”
मुइलिक
असरा देख लुटनी भौजीकेँ अपन ओछाइनिक जिनगी मनमे उठलनि। दबाइओ-दारू तँ करैए
पड़तै...।
धीरू भैया लुटनी भौजीक झगड़ा समापन केनौं ने रहथि आकि
लुटनी भौजीक छोटका बेटा-सोमना आबि रूआब झाड़ैत बाजल-
“काका, ऐ बुढ़ियाकेँ पुछियौ जे एहेन गप्पकरि
किअए अछि जे अपनो भूखे टटाइत हएत आ हमरो सभकेँ टटबैए।”
सोमनाकेँ सम्हारैत धीरू भैया बजला-
“पुरना गप-सप्प मन पड़ि गेल छेलै तँए देरी भऽ गेल।”
आँखिक इशारा लुटनी भौजीकेँ दैत सोमनाकेँ कहलखिन-
“माएकेँ अण्डा-तण्डा खुअबै छहक किने?”
सोमना- “की खुएबै, बुढ़िया
अपने हथकट्टू अछि।”
अागू-आगू
लुटनी भौजी आ पाछू-पाछू सोमना घरमुहाँ भेल। मुदा अमती काँटमे लुटनी भौजीक मन
ओझराइते रहनि, होन्हि जे अखन मुहेँ कान-तोपि दिऐ मुदा
फेर सोचथि, एक तँ अबेरक सगुन छी जौं तेकरा भङठाइए लेब तँ
अझुका दिने ओहिना रीब-रीबेमे चलि जाएत। तँए चुपे रहब नीक।
तहिना सोमनाक मनमे अपन तँ कम्मो-सम्म मुदा घरवालीक बात
कहैले आन गोटे लग किअए गेल, से तामस रहै। होइ जे लोक जौं नीक कहितए
तँ अखने चारिए थापरमे मुँह घूमा घर दिस कऽ दैतिऐ। मुदा एक तँ ओहिना समाजमे
अबाह छी तैपर जँ एहेन काज करब तँ आरो दोखी हएब। तँए चुपे रहब नीक।
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