भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, June 29, 2013

'विदेह' १३१ म अंक ०१ जून २०१३ (वर्ष ६ मास ६६ अंक १३१) PART III





http://videha.co.in/JagdishChandraThakurAnil.jpgजगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल
४ टा गजल

            
                     चारिटा गजल
1
खिडकी, केबार किछु नै, महल कोना भेलै
ने रदीफ आ ने काफिया, गजल कोना भेलै ।

एसगर छलीह ओ आ छल दैत्य पांच टा
नै जानि तमसगीरकें  रहल कोना भेलै 

ठीक छै वृद्धाश्रमे, हम आएब मासे-मासे
ई बात अपन बाप कें  कहल कोना  भेलै ।

ओ खाइ छलि नून, मूर कि  गूड संगे रोटी
कहू तं तीस साल धरि सहल कोना भेलै ।

जल, थल, अंतरिक्ष सभ भेल अपवित्र
माफियाक सभठां एना दखल कोना भेलै ।
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-16
2.
सुरूज तरेगन चानक दुनिया
नीक हमर भगवानक दुनिया ।

सोचू त आइ करैए की-की
अयाचीक सन्तानक दुनिया ।

बीया थीक महाभारतके
निर्भयाक अपमानक दुनिया ।

जीवनकें उत्सव बनबैत छी
नव-नव अनुसन्धानक दुनिया ।

देखू दारूमे डूबल अछि
जप-तप-योग-धियानक दुनिया ।

रहए निरोग, विलक्षण आ पावन
अन्ना केर अभियानक दुनिया ।

मात्रा16 प्रत्येक पांतीमे
3
जुनि पूछू की करै छी हम
नित्य स्वयंसं लड़ै छी हम ।

काल्हि डरैत छलौं अहांसं
आइ स्वयंसं डरै छी हम ।

हम सत्य कें झूठ बुझै छी
झूठ कें सत्य बुझै छी हम ।

अहां जगै छी, हम सूतै छी
अहां सुतै छी, जगै छी हम ।

लोक कनैए, हम हंसै छी
लोक हंसैए, कनै छी हम ।

लोक बजैए, चुप्प रहै छी
एसगरेमे बजै छी हम ।

मोन होइछ त कानी-खीझी
मोन भेल त नचै छी हम ।

कन्यादान लगैए मुश्किल
वेद-पुराण जनै छी हम ।

शत्रु, मित्र, देवी आ देवता
भ स्वयंमे तकै छी हम ।
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-10
4.
किछु गाबि लिय’, किछु गबा लिय
जीवन थिक फगुआ, मना लिय

ई सड़क बनल छै चलबा ले
मोटर एहि ठाम सं  हटा लिय

अछि मोन हमर त मिथिलेमे
तनसं कतबो अहां खटा लिय

हम तमसायब मैथिलीएमे
अंगरेजी इ कतबो रटा लिय

हमरो सहोदरे बुझू यौ भाइ
हमरहु करेजसं  सटा  लिय

नहि चीन्हय अपनो लोक  आब
हे प्रभु अपने लग बजा लिय

लछमी, दुरगा,सरस्वती बुझू
हम लाज अहींक  छी,बचा लिय
सरल वार्णिक बहर,वर्ण-12

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://videha.co.in/BinitaJha.jpgबिनीता झा- वरदान/ तम्बाकू दिवस पर .http://videha.co.in/shanti.jpgशान्ति लक्ष्मी चौधरी- मतिभ्रम .http://videha.co.in/ShefalikaVarma.jpgशेफालिका वर्मा- अहाँक गाम कतऽ अछि?/ पाहन अप्पन प्राण भेल!
वरदान/ तम्बाकू दिवस पर
वरदान

भोर भेल हे सखी
उठू लोढी आनी फूल
आउ सजाबी माँ जानकीकँ
आउ करि हिनक श्रृंगार
आउ शीश झुका पूजा करी
आउ सब मिल मनाबी
जानकी जन्मदिवसक त्यौहार
आउ करी हम सब प्रार्थना
आउ नीक आचरणसँ
करियैन हुनक सम्मान
जाइत पाँइत कए दूर भावनासँ
उठए ऊँच अहि माटिक संतान
विद्याक होइक बास दिमाग मे
कलम पर होइक सबकँ दियमान
अनपूर्णा रहैथ भंडार मे
लक्ष्मी बसैत आंगन द्वार मे
बनल रहै खेत खलियान
सभक चित होइक ख़ुशी
नै क्यौ होइक उदास दुखी
करनी सभक हुए उत्कृष्ट
बोली मिठगर मिश्री सन
द्वेष कलेशक भावनासँ
उपर होइत हिनक सभ संतान
हे जानकी हम माँगए छी
अपना मिथिला लेल
अहाँसँ बस यैह वरदान

तम्बाकू दिवस पर

जुनि खाउ गुटका यौ बाबू
धिया पुता की सीखत आगू

खैनीसं झटदनि मुँह फेरू
तम्बाकूक अहाँ सेवन छोरू

धुआँ संग जौँ नित कैल फूटानी
बिगरत अहाँक जिनगीक पिहानी

नेसा कौखन की देलक ककरो
किये भरम मे छी सभ सगरो

बनल किएक छी ओकर गुलाम
जे बिलटा देत बस ठामहि ठाम

 
http://videha.co.in/shanti.jpgशान्ति लक्ष्मी चौधरी
मतिभ्रम

की अपना मोन मे तोरा छौ ई मतिभ्रम
जे तोरा देह मे बसै छौ अस्सल मर्द?
सुन सत्य, तोहर गुणतर छौ नामर्दो सँ कम
रे पतीत! मतिभ्रमी नराधम
जँ तोरा अस्थि मध्य बहैत छौ शुक्राणु/स्पर्म
अपने सन संतति केँ जँ दसकैत छै तुँ जन्म
नहि हौऊ गर्व स एना उत्स
दुष्ट
पाँच बरिखक गौरी, ’गुड़ियाकेँ कबलत्कार
नहि बुझ अपनाकेँ असल मर्दक अवतार
स्त्रीगण आक् थूह कदेतौ खखार मुँह पर थुकि
तोहर एहि मतिभ्रम पर कुकुरो देतौ टाँग उठा मूति
पशुओ मे बचल होइत छै किछ अंतर्ज्ञान
नीक बेजायक ध्यान
तोहर कुकर्म सँ कियै हेतै कोनो मर्दक मूरीक अवनती
जुनि बुझ तू मिसीयो अपनाकेँ मर्द जातिक प्रतिनीधी
मर्दमेँ होइत छै मर्यादा, संयम आओर शील
चिन्हैत छथि ओ की छी विभत्स आ की अस्लील
नहिये भ सकैत छै तूँ कोनो रूपेँ नामर्द
जकरा छातीमे टहकै छै नीक-बेजायक दर्द
प्रकृति केनय होइन्ह कोनो अंगसँ भल्हु हुनका क्षीण
मुदा हुनकोमे रहैत उपस्थित पाप-निष्पापक चिन्ह
नहिये भसकैत छै तू मर्द-नामर्दक बीचक बिरूप
अपन कामाग्निक आगिमे जरल तू बनल एहेन कुरूप
तोरा लनारीदेह अछि बस यौन अंगक समुच्च
भोगवासनाक सरस बोस्तु छुछ्छ
कामेभोगक मतिभ्रम होइत रहै छौ तोरा सदिखन
निर्जीव बोस्तु, वनस्पती, प्राणी-जीवन
बील, पील, घुच्ची
मातृयोनी मे अवशेष छोड़ल खाली सीसी वा फुच्ची
भोगेक मतिभ्रम होइत छौ तोरा नेबो-आम-बेलक बाती
सर्वत्र तकैत रहैत छै तू स्त्रीयेक थाथी
गदही, घोड़ी, भैंस, बकरी, कुत्ती, बिलाय
सद्यह जन्म देय वाली अपन माय
तोरा लेँ ततुच्छ छियौ बहिन बेटीक संबंध
जेँ कामाग्निक आगिमे आँखि फुटि भगेलौ अन्ध
ओना कवियित्रीगण ईसभ बात कहैत एखनो छथि धखाइ
मुदा जँ कंठमे हाथ दय छै तँ सत्य गप्प सुनि ले आइ

http://videha.co.in/ShefalikaVarma.jpgशेफालिका वर्मा
अहाँक गाम कतऽ अछि?

अहाँक गाम कतऽ अछि
प्रश्न सुनिते अकचका गेलौं हम
कनिक काल सोचैत ---
हमर गाम ??
वएह ने जइ ठाम अपन घर होइ छै?
हँ हँ वएह घर ,वएह गाम !
हमरा तेँ दू टा गाम अछि ..
एकटा जतऽ सँ हम आएल छी
दोसर हम जतऽ एलौं अछि
मुदा, ऐमे हमर कोन अछि
हम नै बूझै छी जतऽ सँ हम एलौं
ओतऽ सँ सनेस-बारी दऽ हमरा विदा
कऽ देल गेल जाह अपन घर बेटी
जइ ठाम आएल छी ओइठाम सभ
सनेस-बारी बिल्हल गेल
कनियाक गामसँ आएल छै
हम की जानऽ गेलौं हमर गाम कोन थीक
हमरा नाम पर तँ कत्तौ किछु नै
भरल-पुरल घरमे हमर अस्तित्व किछु नै
बस फलना गामवालीबनि रहि गेलौं
जइ ठामसँ आएल छलौं
ओइ गामक ठप्पा बनल रहि गेलौं............

पाहन अप्पन प्राण भेल !
झहरि रहल नोर नीरव
विधिक अमिट विधान भेल
कोन गीत गाबि गेलौं
पाहन अप्पन प्राण भेल !

खंड खंड जीवन जिबैत
क्षण क्षण तान भेल
पात पात हास हम्मर
पाहन अप्पन प्राण भेल

मलय पवन वेग सन
सिहरैत कंपैत चान भेल
चपल मुस्कानक तरीमे
पाहन अप्पन प्राण भेल

भग्नतारक सुर साजि
व्यथा विगलित गान भेल
स्नेह नोरसँ पाटल
पाहन अप्पन प्राण भेल

 

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
http://videha.co.in/Anil_Mallik.jpgअनिल मल्लिक

गजल
आब नहि छै केओ गुलाम से के ने कहै छै
मुदा जतै भेटै छै मौका गर्दैन के ने रेटै छै

मजदूर दिवसके अछि बधाई अपने लोकनिके
भूखक आगिमे जरैत नेनपनके के जे देखै छै

सभा भाषण सेमीनार आ सांझमे हेतै पार्टी
रस्ता घाट खटैत एहन बच्चाके के जे देखै छै

जाहि हाथ मे चाही कापी किताब आ कलम
ठेला ठेलैत परै छै हाथक ठेला के जे देखै छै

जोश भरल बातेटा लिअने हजार के हजार
दूनू सांझ नहि जरै छै चूल्हा के जे देखै छै...!

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://videha.co.in/BalMukundPathak.jpgबाल मुकुन्द पाठक- गजल .http://videha.co.in/SurendraShail.jpgसुरेन्द्र शैल- मुदा करबै की?/ बटोही/ नवका महेशवाणी/ चुहाड़


http://videha.co.in/BalMukundPathak.jpgबाल मुकुन्द पाठक
गजल

रौद आ बिहाड़िसँ जे लड़ल अछि एहि ठाम
ओतबे गाछ पैघ भऽ बचल अछि एहि ठाम

भूखल छैथ राति दिन जाहि लेल गरीब यौ
किनको खरिहानमे सड़ल अछि एहि ठाम

एहि टेक्निकल युगमे बी ए केने हाएत की
एम ए कऽ गाम गाम पड़ल अछि एहि ठाम

जे विपत्तिमे धैर्य राखि लागल अछि काजमे
ओ नभमे चान बनि सजल अछि एहि ठाम

भ्रष्टाचारी शासनमेँ बीकल सरकारी सीट
चुप्पी मारि लोक घरे सूतल अछि एहि ठाम

गेल युग श्रवणकेँ माँ बापक कोनो मोले नै
बूढ़ पूराण पूतसँ डरल अछि एहि ठाम

सरल वार्णिक बहर ,आखर 17

http://videha.co.in/SurendraShail.jpgसुरेन्द्र शैल,भदहर(दरभंगा)
मुदा करबै की?/ बटोही/ नवका महेशवाणी/ चुहाड़
मुदा करबै की?

चारू कात अन्हार
कोनो वाट नहिँ सूझय
नैहर-सासुर 
कियो हाल नहिँ पूछय
अपने पंजाब मे वैसल अछि 
हमरा घर मे दरिद्रा पैसल अछि
चेफरी साटल नूआ
ठाम-ठाम मस्कलआंगी
चूड़ीक नाम पर दू टा वन
सेहो चनकल
नैहरक पायल
सेहो वन्हकी लागल
तइपर जरलाहा
ई चतरल धूआ
घर सँ निकलितो
कोँढ कँपैत अछि
ओहिना कलरा ककाक
नरहेर बेटा
एम्हर- ओम्हर तकैत
भौजी-भौजी करैत
अंगना आवि जाइत अछि
सरधुआ ठेलने ने
ठेलाइत अछि
हम सभ बुझैत छी
मुदा करवैक की?
पैँच- उधार-बोनि मांगय
गिरहथक ओतय जाइत छी
हुनकर वेटा संटू बाबूक
नजरि पड़िते जेना लागय
कियो सौँसे देह मे
बबूरक काँट गड़ा रहल अछि
टहटहाइत गूड़क कातेकात
बिढ़नी अपन सूंघ गड़ा रहल अछि
पीज भरल घाव पर
पिलुआ सहसहा रहल अछि
माथ मे किछु हहाइत अछि
जी ओकिआय लगैत अछि
मुदा करवैक की?
आई तँ हद भय गेल
बोनि दैत काल 
संटू बाबूक हाथ
किछु आगू बढ़ि गेल
लागल जे विजलीक तार
कोनो अंग सटि गेल
भेल जे झारु सँ झाटि दी
ने तँ दविया सँ काटि दी
परिस्थितिक मारलि
ठाढ़ि ठकुआयल छी
मुदा करवैक की?


बटोही

सुधि विसरि वटोही निन्न पड़ल,
ठहियाय, थाकि अछि भूमि पड़ल।
नहिँ जानि कतेको कोस चलल,
वैसल तरुतर झट नैन मुनल।
रौदा सँ झामर देह मगर,
उन्नत ललाट मुख तेज प्रखर।
अछि रूप एकर कन्दर्प सनक,
लटकल कुन्तल सखि सर्प सनक।
अछि नलिन नयन मुख चान सनक,
ऋतुराज मुखक मुस्कान सनक।
वनराजक ग्रीव, भरल छाती, 
कटि पुष्ट, जाँघ दुलकल हाथी।
चाकर कन्हा,भुज युग्म सवल,
चुम्बक सन खीँचय नेह नवल।
छवि वसल वटोही नैन हमर,
हरि लेलक वटोही चैन हमर।
मन मे हहाय विररो उदंड,
तन मे धधाय पावक प्रचंड।
धकधक करेज तन काँपि रहल,
लाजो नयनक पल झाँपि रहल।
उठ जाग वटोही तेज अलस,
उमड़ल अषाढ़ घटि गेल उमस।
सभ गीत आई मल्हार बनत।
वरिसत सिनेह रसधार वहत।

 
नवका महेशवाणी

भोला भुच्च पहाड़ी यौ।
नवका युग मे भोला छोड़ू,
ई पुरना ढाठी॥भोला॥
बाघम्बर के भोला छोड़ू,
जीन्स-पैन्ट पहिरू।
सगर वस्त्र भोला स्प्रे करु,
हे डमरूधारी॥भोला॥
सहसह सर्प सघन वन छोड़ू,
भस्म-रुद्र त्यागू।
सोनक चेन गरा मे पहिरू,
हे गंगाधारी॥भोला॥
बूढ़ बरद कैलाशहिँ छोड़ू,
"
क्वालिस" असवारी।
जटा कटा जेन्टलमैन बनियौ,
टाई -सूटधारी॥भोला॥
भांगक गोला भोला छोड़ू,
ह्विस्की हाथ धरू।
सुरा माति त्रिशूल के छोड़ू,
हे पिस्टलधारी॥भोला॥
एहिले धन के चिन्ता छोड़ू,
तिलकक मांग करू।
गौरी बाप-दशा जुनि देखू,
हे शिव त्रिपुरारी॥भोला॥
भैरव-भूत-गणादि के छोड़ू,
हे शिव भयहारी।
छौड़ा सभ नंगटे नाचै अछि,
अतेकरे संग धरू॥भोला॥
डीजे पर डामरु के फोड़ू,
चक्कर-फुलझारी।
विना बैँड गौरी ने वियाहव,
हे शिव शशिधारी॥भोला॥
तांडव नृत्य मसान मे छोअड़ू,
डिस्को-डांस करू।
शैल कुमति मिथिला मति मोड़ू,
हे विपदाहारी॥भोला॥
चुहाड़

अछि कोनटा मे ठाढ़ चुहाड़,
काटि सेन्ह लुटि लेत भराड़।
कय वेरि लुटि पुनि गेल पड़ाय,
घुरि-घुरि आवय विनु सकुचाय।
जखन सिकन्दर वनि के आयल,
राजा पुरु के रणहिँ हरायल।
गोरी वनि धाओल गुजरात,
लूटल कच्छ,भरुच,भुज सात।
सोमनाथ मंदिर घुसि गेल,
तोड़ि महादेव सभ लुटि लेल।
पृथ्वीराजक फोड़लक नैन,
नहिँ भेटल एकरा मन चैन।
बाबर बनि के आवि समायल,
हति हेमू सत्ता हथियायल।
पुनि धेलक वनिया केर भेष,
टूटल निन्न ने चौँकल देश।
मायक पयर मे जकरल वेरि,
जे गिरहथनी से भेलि चेरि।
गोरका मालिक, देश गुलाम,
पुरखा चाकर ,देथि सलाम।
घुरि आयल वनि निगम घराना,
लूटि रहल अछि हमर खजाना।
ई बहुरुपिया अछि लुटिहारा,
परम चंठ बड़का फँसियारा।
धन लूटत धर्महुँ सभ लूटत,
इज्जति संग धरोहरि लूटत।
पान,मखान,मधुर सभ लूटत,
अपना धारक भाकुर लूटत।
जे जन गावय एकर गीत,
से परचट्टा परम पतीत।
उठू यौ बौआ उठू यौ भैया,
फेर घुरि आयल कंस कसैया।
एकरा मुँह मे ऊक लगाउ,
कूर खेत चुगला झड़काउ।

 


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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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