भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Saturday, June 29, 2013

‘विदेह' १३३ म अंक ०१ जुलाइ २०१३ (वर्ष ६ मास ६७ अंक १३३) Part I

विदेह' १३३ म अंक ०१ जुलाइ २०१३ (वर्ष ६ मास ६७ अंक १३३)  

 

अंकमे अछि:-

. संपादकीय संदेश


. गद्य



  



. पद्य








.. सत्य नारायण-लहकैत समाज

 

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. गद्य



  

कामिनी कामायनी   

लघुकथा-
   कोन डारि पर केकर खोता

यै बहिन ,कनी थमि जौथ ,तिलकौड क तरुवा तैर रहल छिएन्ह,तखन खइहथि। बहिन ओसारा प राखल पीढ़ी प बईस गेल छलिह,सोझा परसल थारी राखल छल, दिनक एगारह बाजि रहल छल,कदंबक गाछ के ऊपर स  सुरूज़ महाराज दुनिया भरिक गाम घरक हिसाब किताब लेबा लेल मुस्तैद भेल अपन ताप स चहु दिस के खड़ पात धरि झरका रहल छलथि।  ,आय बटेदार सब स खेत पथारक हाब डीब लईत लईत बड़ बेर भ चुकल छल ,क्षुधा तीव्र भ गेल छलेंह,बजली आब रहय दिऔ एखन ,राति क बना लेब ,एखन अहू आबि जाऊ खेबा लेल ,अहू के भूख लागल हैत। मुदा ताबेत त पहिनहि स  धधकल चूल्ही प चढ़ल लोहिया मे कडूक तेल  पड्पड़ाय लगलै त केराव क घाठि मे पात लटपटा क  हब्बर हब्बर लोहिया मे खसा चुकल छलिह।
हुनक ई तत्परता आ अनुराग देखि क ,ओ कनी काल लेल हाथ बारि नेने रहथि । कनी विलंब स दुनू गोटे सोझा सोझी बइस क मौन भ अपन भोजन ग्रहण करय लागल छलिह ।
     नबका ड़िजेंन के लोहा लक्कड़ सीमेंट स  बनल घर जे साबिकक खरिहान मे बनल छल,ओ त बहिनक छलेंह,कनिया के बख़रा मे त पुरना खपड़ैल घड़ाडी, मुदा आब कोन,दुहु घर त अपने सन  । ओत्ते टा चास बास मुदा रहनीहरि ,जेना बडका पोखरि मे दु टा पोठी माछ । अन्न पानि कोठी,तोठी मे रखनाय,उसीनिया कुटिया आब पूरने आँगन मे होय :एक्का दुग्गी जे सर कुटुम आबेन त हुनक रहब के बेबस्था नबका घर मे होय । ओहुना मन बहटारय लेल ओ दुनु कखनों अहि घर त कखनों ओई घर मे दिन व राति काटि लईथ । ओना त चोर चहारक हदस लोकके पहिनहु पईसल रहे ,मुदा आब कत्तेकों घर जिनक मुखिया बा कुलदीपक परदेस कमाई करय गेल छलेथ,ओत त बिसेख रुपे रतिजगा भ जाय ।  आ हिनको दुनु के परान सदिखन सिथुवा मे बन्न तड़पइत रहेंह । कहबों करथि धन संपत्ति लुटबा के डर नहिं, सुने छिये जे मौगी सब के हाथ पएर काटि क ,की बुढ़ ,की बच्चा ,सबहक इज्जतों सेहो लुईट लईतछैक। आ अहि डरे टोलक नबतुरिया धिया पुत्ता सब के  बाड़ी मे फड़ल लताम ,नेबों ,त कखनों केरा, आम ,कटहर ,लीची ,
बाटि क मोने मों न अपन फौज तैयार केने रहैथ जे बेर कुबेर गद्दह केला प आन कियो आबै वा नहिं आबे अहि मे स किछू नै किछू त अबस्से आयत । आ ओ सब कहबों करेन एक बेर हाक देबै त केहनों नींद मे रहबे ,दौगल चलि आयब
    ओ दुनु घरक बीचोबीच  कनि पछवाड़ी दिस घसकिक तेसर घर सेहो  टुकुर टुकुर ,माय टुग्गर सन ताकैत ठाढ़ छल,मुदा  तैयों ईर स भरल ओ घर हिनका सब के स्वीकार नहिं केल्केन्ह  ताही लेल उमहरक रस्ता टाट फट्टा लगा क बड़ पहिनहि बन्न करी देल गेल छल । ओहो घर अहि दुनु घर प अपन वक्र दृष्टि रखने छल फराके स ।
      जेठ बैसाख क  उसिनति गरमी , कतबों पंखा ,कूलर लागल रहै ,मोटका मोटका पर्दा खिड़की प रहै ,मुदा नबका घर त राकसक मुंह बनि आगि उगलै , ईट के भट्ठी बनल । तखन कनिया के माटिक ओसारा बाला दच्छिनबरिया घर ,आहाहा ,एकदम शीतल ,जेना स्वर्ग , बाड़ी झाड़ी स सीहकेत बसात । त बेसी काल गरमी मे बहिन ओहि ओसारा वाला घर मे नीचा  बिछाओल पटिया प ,भात तीमन जे बना बथि कनिया प्रेम स ,खा क , ओंघडायल रहैत छली । पहाड़ सन दिन काटय लेल लच्छा के लच्छा ओझराल गप्प के पेटार खोलल जाय । आ पुरखा ,सर् कुटुम ,बाध बोन ,अड़ोसीया  पड़ोसिया केकर कहाँ ,सबहक कर्म कुकर्मक कतेको बेर पुनर्मूल्यांकन केल जाए । अहि एतिहासिक गप्प गोष्टी  मे,दुपहरिया मे बेसी  काल टोलक स्त्रीगन सेहो सब जुटथि,आ गामक ज्ञात इतिहास के रूपक आ क्षेपक सहित  ओहि महान घड़ारीके सौजन्य स नवीन दृष्टि स जनैथ। भूपिंदर कका के पेलवार त बिलाइए गेलै नै । देखियौ ,केहेन उजाड़ लागै छेंह हुनकर डीह । पहिने जखन हम दुरागमन करि आयल रहिए,काकी के भागक चर्च घरे घर ,सात टा पूत ,दु टा छोटका भरिसक कुमार छलेंह,भरि घर पोता पोती ,काकीए के हुकुमति चलय छल घर मे । कनिया देखय त तीन चारिबेर आबैथ, कनी टा मुंह हमहु देखबै तीन बरखक पोथी के जिद ,आ म्या कोहबर मे आबि क हमर घोघ उघारि क देखा दईथ। चुहचुही स भरल ,बड़का नाम गाम बाला कुटुम सब के आवाजाही ,,देखिते देखिते आब केहेन उजाड़ भ गेलै । बदलि त सौसे गामे गेलै ,भइयारी मे बाट बख़रा होइत गेलै ,किओ बाड़ी त,कियो ,गोहाली ,त कियो खरिहान मे चास बास बना लेलके ,मुदा हुनक पेलबार त उपटिए गेलै जेना एतय स से की कहै छथिन्ह,महाबा के डीह देखथुन ,बड़का बड़का पाग बाला बेटा सब ,ओहेन सुंदर घड़ारी तोड़ि क नबका ड़िजेंन के घर त बनबा लेलथि , केहेन इल्टल बिल्टल सन लगे छैक आब,कियो इमहर स खिड़की  नोचलकेन्ह,किओ उमहर स दरवज्जा,बाड़ी के चहरदेवारी ढाहि पजेबा पर्यंत सब उघि  ल गेलय। लोक के लोक कहे छै जे बिन पूत के डीह बिलटि जाए छै ,हुनक त पूत रहिते उजाड़ भ गेलन। खेत पथार त अपन अपन बेचि लेलथि ,मुदा सझिया के मकान , ओहिना संझा बाती धरि लेल मुंह तकेत ,नॉर बहबेत ,के ताकय एलै घुईरक दसो बरख स ओत्ते टा के दुपहरिया ,बुढ़ पुरान , की जुवानों सब पुरखा के गप्प ,दुरखा के गप्प ,संपत्ति बटबारा के गप्प ,बुढ़  नब के रास लीला  के गप्प ,ढेर रास गप्प क सिडही प चढ़ैत उतरेत दिवस काटि रहल छली। ओना आब ओहु ठाम टीवी आबि गेल छले,मुदा बेसी काल बिजली कटले रहैक,आ रहबों करे तईओ एहेन गोष्ठी के आनंद बुढ़ पुरान  के लेल भगवती के बरदाने बुझु । पुरान दिन के पागुर करैत हुनका सब के आंखि मे दोसरे चमक उठि जाए । जोजो बाबू के खिस्सा प कनिया  हसेत हसेत बेहाल कोना हुनका लोक सब बकलेल कहेंह  ओ बताह नै घताह छलेथ,आबैथ अपन भाऊज स भेंट करय आ भरि टोल मे आंगने आँगन घुसि क जनी जाति स ठठा करैथ,किओ कहेंह ,कनी एक टा गीत सुनाऊ ,आ ओ ओहि ठाम धुस्स स बेसि जायथ,घेंट हिला हिला क ,आंगुर नचा नचा क नचारी,कजरी ,त झुम्मरी गीत सुरू करि देथ। सुन्नरों केहेन,पाँच हाथ के धूवा,दप दप गोर ,भाल प लाल सिंदूरक ठोप
  कालक प्रवाह के ग्रास बनल कतबों लोक गाम स उपटि क सहर दिस भागौ,गाम मे त लोकबेद रहबे करते न । आब कीछु सहरि क  भीड़ भाड़ स ,समस्या स ,बेरोजगारी स , गराकाट कंपीटीशन स , मशीनी जिनगी स उबि क गाम सेहो आबि रहल छथि । विवाहदान ,मुड़न उपनेंन ,एकादशी के जग ,पूजा हवन ,सब किछ त यथावत चलेत आबि रहल छल,नब लोक उत्साह स जीब रहल छल ,पुरना लोक सब हाफ़ैत,खीझैत,भोथरायल , भसियायाल बुद्धि ,कमजोर ,झलफल,झलफल दृष्टि स देखि रहल छल ,नब जुग के ,आ अपन मनोव्यथा के, कुंठा के ,अचटी ,कुचटी बाजि क निकालि लेत छल । कोनो एक खिस्सा प हुनका सब के हजार खिस्सा मोंन  पड़े । आ पचासों बरख पहिलुका  बटखरा स  आजुकसमाज के तराजू प तौलेत,केहन छुच्छ, केहन हीन,कतेक गर्हित लगेंह ,से हुनके सबहक आत्मा जनेक । देखियो बिरेन के बेटी के ,चतुरथी स पहिनहि बर संग  ,  पदुवा के रिकसा प सिनेमा देखय मधबन्नी जा रहल छल,त बापे बजलखिन रिकसा स जेमए त फिल्म छूटि जेतो ,चल, हम अपन मोटरसायकिल स छोड़ि दैत छिओ,हमरो कोर्ट ज़ेबा के अछिए। आ बाजि क  भरि पोख हसली मनोजक माय । ये बहिन ई कोन अजगुत गप्प कहलखिन , देखलखिन्ह नै चुनुलाल के बेटी के ,बापक विवाह कराओल बर के छोड़ि क अपन मन माफिक मनसा स दोसर विवाह करि लेलकै ,म्या ओकर सेहो आब सीना चाकर करि क बजेत छै “ह त कोन जुलुम केलकै ,पियक्कड़  छले, ओध बाध करि क मारे छले ,त ककरो दरेग ने उठले हमर बेटी लेल आ ओ जौ ओकरा स पिंड छोड़ा क पडायल त ,लोक् क करेज मे किएक धाह उठैत छैक । आब कहथुन
  कनिया के पुबरिया ओसारा दिस स आम रास्ता छल,त ओ सब ओहि ओसारा प नहिं बैस क ओहि स सटल कोठरी मे बैसारी करेत छली। कोठरी मे दू टा खिड़की ,एकटा पूब दिस ,एक टा दछिन दिस । दुनु प आधा आधा  पतरकी ,छाप बालानूआ के  परदा लागल,ओकरो मोड़ि क किम्हरों घुस्का दइथ,तखन ओहि बाट स जाए बला लोक सब प नजरि सेहो रखथि,ई मनसा कोन गामक छै ,किनको कुटुम त नहिं छैन,आ जौ कोनो टोलक एहेन लोग  नजरि पड़ि जाथिजिनका स आना माना रहेंह  ,त हुनक जतरा भंगटाबे लेल   कागद ,वा आचरिक खूंट के बाती सन बाटि क ,नाक मे घुसा क जबरदस्ती छीकल जाए ,कत्तेक बेर त अहि अपसकुन स लोक सब आपस घुईर जायथ,। आ अहि स स्त्र्रीगन सब के बड़ प्रसन्नता होय । हुनक सबहक निक जका मोन बहटि जाए ।
      भोरुका तारा के देखि क दुनू गोटे उठि जायथ अपनअपन ओछोन प स ,नहा धो क ,भगवती नीप क ,पूजा पाठ के काज स जाबेत निवृत होथि,ताबेत सुरुज् क चक्का एक बीत ऊपर क्षितिज मे टंगा   सब  ठाम हुलकी मारेत रहेत छल । नबका घरक उपरका मंजिल के ग्रील मे बैसि दुनु गोटे स्टील के गिलास मे चाह पीबैत काल टोल भरि के अवलोकन करैत छली। बहिन त अपन ऊमीर के बड़का हिस्सा सहरे मे काटने छलिह,आब न ग्राम वासिनी भेलिह,मुदा आदति सब दिन स काक बजबा स पहिनहि उठबा के रही गेल छल। तहिया त आध छिध पूजा करि क घिया पूता लेल जलखई ,पनपियाइ बनाब मे जुटि जायथ,ओसब खा पीबी क स्कूल जाय त कनिकाल मे घरबला के ऑफिस ज़ेबा के समय भ जाए ,हुनका गेला के बाद घरक झाड़ू पोछा,बाल्टी भरि कपड़ा धोबैत नीत दिन बारह एक बाजि जाय । कहिओ ओ एक टा नौकर वा काजबाली नहीं रखली ,देहो भगवती के कीरपा स तंदुरुस्त छल,आ हाथो के बड़ सक्कत,जखन दू पाय ककरो दैतथिन नहिं ,तखन कियो हुनका ओत अपन मुंह बांहि क त नहिं काज करितेंह। मुदा वएह बहिन जखन सासु के सोझा गाम आबैथ त अपन पुबरिया घरक पलंग प चित्त पडल रहेत छली ,काजबाली सब काम करबै करैक,हुनका जाँतय पिचय लेल एक नौड़ी फराक स राखल जाय ,जे हुनका नहाबए सोनाबय, नुआ फट्टा सेहो धोबय।
सहर ज़ेबा काल कनी कष्ट त मोंन मे अवस्से होएन ,मुदा ओहि सहरक नाम प त ई राजसी ठाठभेटल  छल ,ई सोचि अपन दियादिनी सब प उपेक्षा के दृष्टि फेरैत तांगा प बेसी क गाड़ी पकड़बा के लेल मधबन्नी जाय छलिह ।
         कातिकी  पूर्णिमा के  दिन दोसर गाम के देवी मंदिर प भागवत कथा के भव्य आयोजन छल।जगननाथजी स विद्वान  पंडित सब आयल छलेथ, कतेक दिन पहिनहि स प्रचार भ रहल  छल, लोक के उत्सुकता हिय मे हिलकोर मारय लागले  । कहिया स नियारति नियारति गामक ढेर रास स्त्रीगण,पुरुखक संग ओहो दुनु रिकसा प बैसि क  नहा सुना क भोरे भोर विदा भेल रहथि ।
   संजोग देखियो जे  ओ सब उमहर गेलथि,आ इमहर बहिनक कुटुम आबि गेलखिन, दुनु घरक कुंडी मे लटकल ताला देखि क तेसर घरक दुरखा लग ठाढ़ कुटुम के हुलसि क सुआगत करबा लेल ओ  दरबज्जा स्वतह खुजि गेल रहे । भोजन भात करि क पाहून कनी काल विश्राम करय लगला त हुनक स्त्री घरक और भीतर पइस तेसरा घर स अनुराग बढ़बय लेलअकुलाय लगली । भाई भौज छलखींन ,इमहरे समधियौन मे आयल छलाह ,त बहिनो मोंन पड़ी गेल छलेनह । मुदा भौज के त नीक मौका हाथ लगले,ननदि के अतीतक उद्यान मे भ्रमण करबके । हुनको ओ कहिओ कनिओ मोजर नै देने छलखिन ,ततेक गुमान छलेंह। आ तेसरो घर के आय अपन पीर  उगिलबा के परसर भेटले ।
  आ खिस्सा के दोसरि छोर कुम्हारक चाक प गढ़ेबा लेल उन्मत्त भ  फर फर क बहरायत गेल ।
     तीनो फरीक मे ,बाँट बख़रा त कहिया कत्त नै भ चुकल छल,कहे लेल त आब दुइए फरिक बचला  बड़का आ छोटका,मुदा तेसर संसार स प्रस्थान करबा स पूर्व  अपन स्त्री संग एक टा कंटिरबी सेहो  छोड़ि गेल छलथि। ओहि गुडकुनिया दईत धिया के कपार देखि पित्ती अपना ओत्त ल गेलथि, अपन बेटी त नहिं देलथी भगवती,एकरे पालब पोसब, पढायब लिखायब, कन्यादान करब ,आब माय के कत्तबों मोंन छटपटेलन्हि,सौस सेहो खुट्टा जका ठाढ़ भ गेलथि ओ आहाँ के बेटी के  इंद्रासनक परी बनबय चाहेतछथी,आ आहाँ छुच्छ के विलाप कय रहल छी। तखन सबहक बिचारे माय धी दुनू सहर चलि गेल छलिह।बरस दिन प माय त आबि गेली ,खिस्सा के पेटार नेने मुदा बेटी के त स्कूल मे नाम लिखा देल गेल रहे ।
     माय के मोंन जखन  बड़ छटपटाय ,त पोस्ट ऑफिस स पोस्टकार्ड मंगबा क जोड़ी जाड़ि क लिखनाय सुरू करैथ त कनैत कनैत कतेक पहर बीत जाय ।
 अबल दुबल प सिथुया चोख ,त मोसिबत के मारल के ,अपन रक्षा करय लेल बेसि काल जिह्वा प दुर्वासा के बास
,कराबइए पडेत  छल । ढोढ़िया साप के रूप सेहो अख़्तियार करय लेल लोकवेद बाध्य करि दैक।
   पान सन जीबन पहाड़ सन दिन काटे लेल गाम घर मे लोक बेद के अकाल नै रहैत छैक।पहिनुका जुग मे त गप्प सप्प संग भांति भांति के काज धंधा सेहो चलेक,कुमारि बेटी के विवाहक लेल सिकी के मौनी बने ,गेरुआ के खोल प जोड़ा सुग्गा ,गुलाबक फूल काढ़ल जाए ,जनेऊ काटल जाए चरखा काटल जाय ,मुदा ताहिया बाजार घरे घर नहिं घुसल चल ,आ ने चीनक सुंदर सुंदर समान एना लोकके मोहने छल , एँ ,के आंखि फोड़त अप्पन, बाजार मे एक स एक निक चीज भेटे छैबाला प्रलयंकारी बाढि मे सब किछू भासियाएल जा रहल अछि । आब त विशुद्ध गप्प ,नबका शिक्षा के भूत ,गाम घरक लोक के कोढ़ि बना रहल अछि ,तखन अहिना कतेको खिस्सा के जन्म होईत छैक आ सोईरीए स पांखि लगा ,बंद खिड़की ,दरवज्जा के अछैत खुजल आकास मे उड़य  लागेत छल । ओहि खिस्सा सब मे कनिया के नॉर स सानल  जिनगी के कतेक रास दुख रहे ,से कतेको लोक ले करेज मे बरछी सन गड़ैत रहलै।
   उपजा बाड़ी त हुनकर ,जिनकर,समांग , खेत खरिहान छल ,हिनका  त मात्र घड़ाड़ि, आ ओहो साबिकक घर ,बड़का विशाल जे रहल होय ,मुदा भदबारि मे जानक आफत ,कखनों इमहर स चूबे,कखनों उमहर स देवाल खसै,आ एकर मरम्मति करबय लेल कनिया के कतेको मास बरस दिन धरि बहिन के चिट्ठी प चिट्ठी पठाबए पड़े तीन चारि बरख मे किओ सहरि स आबै,आ जाबेत ओकरा दुरुस्त करै,ताबेत कोनो और समस्या ठाढ़ भ जाए ।एक बेर त बहिन गाम आबि क सबहक सोझा मे हुनका बड़ फज्झति केलकिन अहा त अहिठाम आराम स बईसल खाय छी,आहाँ की बुझबै सहर मे पैलवार ल क रहे बला के कतेक फिरीशनी स दु चारि होमए पड़े छैक। अहाँ के बेटियो के जिम्मेबारी हमी सब उठेने छी ,तईओ अहाँ चैन स हमरा सब के नहि जीब देबय चहेत छी ।हिनकर ब्लडप्रेसर बढिगेल छन्हि। हम त हुनका कोनो काज कहिते नहिं छिएन्ह, गिरे पड़े छै घर त गिरय दियौ ,बारह टा कोठरी छै ,जखन सब खसि पड़ते ,तखन देखल जेतै  ओहि बेर स ओ कतबों कष्ट होयन्हि, हुनका चिट्ठी नैई लिखलखींह ,’ बुझल जे हमारा किओ नहिं अछि अहि संसार  मे। आ चारो कात स घर खसि क भुतहा हवेली सन लागै, सांझे लालटेम जराक दरवज्जा प राखि देथ,जे खसल पजेबा स बाट बटोहिया के ठेस ने लागि जाय ।
   खेबा पिबा लेल साल भरि के अन्न हुनके दिस स देल जाए ,आ बाड़ी झाड़ी मे तीमन तरकारी त उपजिए जाए । मुदा कनियो के अपनघरबाला स बेसि कोढ़ बापक देल गहना गुरिया फाड़े ,चंद्रहार ,नथिया ,टीका ,कर्ण फूल ,बाला,अनंत ,डढ़कस,पाजेब , सबटा त बहिन बैंक मे रखबाबय के नाम उतरबा नेने रहथि।बाद मे कखनों ओकर चर्च करैथ, त बहिन के कबौछ सन बोल स सम्पूर्ण देह मे आगि लेस दै आब गहना ल क की करब ,लग मे राखब त ओहो डकूबा लुइट क ल जायत,भने बैंक मे रखल छैक
अगहन मे वा माघ मे ,किंसयातओ कोनो जाड़े मास छल ,जखन बहिन सपैलवार सहरि स गाम बेटा सबहक उपनेन् करबा लेल गाम आयल छलिह। तहिया त गाम गामे छल आ टोल सेहो समस्त ऊर्जा स सम्पन्न ,जन धन स सब डीह भरल । एके दुग्गी लोक गाम स बहराएल छल ,मुदा गामक मजगुत डोर ओकरा खीचने रहै। मईया त बरख दिन पहिनहि स अहि शुभ दिन के ओरिओनमे  कोलहुक बरद सन राति दिन बिसरल लागल रहल छली। आँगन मे ओसारा सब प ओछाओल पटिया सब प पतियानी स राखल राहड़ि,ऊडेद केराव ,तीसी ,मड़ुआ ,मकई ,धान , सरिसब,आने की जतेक अन्न उपजा क बटेदार द जाईत छल,मईया ओकरा अपना हिसबे सइतने जा रहल छलिह,दालि दड़रबाक भूसा सहित छोड़ने छलिह ,आ ओकरा फटकबा झटकबा क पैघ छोट कोठी सब मे रखबय छलिह । तखन एक दिन कनिया के मोंन मे अयलंहि,  उपनेंन हेतैक,एतेक लोकवेद ,सर-कुटुम सब औताह,तखन ओ मड़बा प चढ़ि क बरुआ सब के की भीख देतीह,हुनकर हाथ त ठन ठन गोपाल । आ बड़ सोचि विचारि क मरतिया बाली पेटे दस सेर राहड़ी,दस सेर मकई ,पाँच सेर खेरही ,पाँच सेर केराव ,थोड़े गहूम ,थोड़े धान बेचि लेलथी । कीछु पाय हाथ मे आबी गेलन्ह त छौओ बरुआ लेल गामे के सोनरबा स सोनक औंठी गढ़बा लेलथि,ओहो मैना दीदी के नेहोरा पाती करी क ।
 ई सब कारोबार त  ततेक गुप्त भेल रहै, जे घरक कोनो चार प कोनो कार कौआ सेहो नहिं बैसल छल,नहिं कोनो कोन सानि मे नढिया,गीदड़ बा बिलड़िए नुकाएल
छल,मुदा तैयों ई गप्प जखन उजिएले,ओही घर मे  बड़का भुईकंप त आबिए गेल  छल ।
जखन बहिनक स्वामी बाध बोन दिस गेला अपन खेत पथार देखय सुनै,  कुसियारक चोरि के दाग स मुक्ति पाबय लेल बीसेसर हुनका कान मे हुनके आंगनक करनी फुइकी देलकेंह।
आंगन मे पाहुन पड़कक आगमन प्रारम्भ भ चुकल छले,कनिया अपन कोठरी के पट बन्न करि के कनेत रहली। हुनकर छुदरपन,हीनता, पापक पोथी नेने बहिनक घरबाला ज़ोर ज़ोर स आँगन मे बाचि रहल छलेथ अही घर मे आब की उत्थान होयत ,जखन घरे मे मूस लागल अछि।आ दुनु परानी हुनक हाथ के छूल पाईन धरि नहिं पिबाक सप्पथ खेलाह ,जखन कि तहिया सबटा खेत पथार सझिए रहेक।
  दसरथ के अंगनमा मे शुभे हो शुभे बड़ ज़ोर ज़ोर स होमय लागल,मुदा काकी शुभे कोना कहितथ ,
उपनेन् के दिन सब कुटुमक  उपहास पूर्ण नजरि स बचबा के लेल ओ अपन कोठरी स नहिं निकसल छलिह, तीन दिनक भुखल पीयासल, चारीम दिन झलफल साँझ मे ,छौओ बरुआ लेल बनाओल औठी अपन सौसक हाथ मे राखि पट फेर बन्न क लेने रहथी। हिनको जिनगी स मोह कौन बाचल रहैक,बेटी के पार घाट लगबय लेल भगवती छलिह । तखन सुतली राति मे छुच्छ के लाज लिहाज के तिलांजलि दइत निकलि गेली नबकी पोखरि मे भसियाबय लेल ।कनीए दूर प बुढ़बा कोतबाल उधो टोकि देलकेन्ह  कतय जाय छी मलकानि?’ ओ की चीन्हने हेतेक ओकर आंखि मे त रतौनी रहे ,मुदा उज्जर नुआ देखि भेलय कोनो दाय काकी हेतिह ,आ जौ  चुड़ैल हेते त तकरो काट छल ओकरा लग । तही लेल कनी उचगर स्वर मे ओ बाजल छल, आ ओहि स्वर प लगे के दालान प सुतल दिनेशक आंखि खुजि गेल छल ,माझ बाट प आबि ओहो ठाढ़ भ गेला ।किओ किछू ने बाजल आ ओ स्वेत वस्त्र धारिणी आगा पोखरि आ गाछी दिस बढ़ैत रहल छली। नब शोणित दिनेश पहिल बेर कोनो भूत वा चुड़ैल के पछोड़ धेलक ,संग मे उधो मन बढेलके । पोखरिक महाड़ प आबि ओ पलटि क ताकली,दोसर पहरि राति  मे आधा चान आकास मे चमेकि रहल छल ,ई त कमतौल बाली काकी छथीन ,दिनेश चौंकल,टोलक झंझट फसाद स पुरुखों सब परिचिते रहैत छलाह। छपाक के स्वर स ओकरा सब मे चेतना आएल,आ हुनक पीठे प दिनेश पानी मे छलांग लगा देने रहैक ।पोड़ीक हुनका बाहर आनल ,ओ त अचेत भेल । पहिल बेर गामक इतिहास मे एहेन खिसा भेल रहैजे निसाराति मे भगवति पानि मे डुबल प्राणी के बचा लेलथ। मुदा किओ इहों बाजल छलअक्खज ने मरै ,छुतहर नै फूटे। बहिन के डरो पहिनहि बेर भेलन। प्राण परबा जेका पुक पुक करय लागल छल ,आय जौं किछ अधलाह भ जयते ,टोलक लोक जिनगी भरि हुनके उपराग दितेन्ह। दालान प बैसल झक झक उज्जर कुरता,सांची धोती आ बंडी पहिरने रोआबी मालिक के एक टा अदृस्ट भय सेहो पईस गेल छल । तहन  निर्बलक पछ मे उठल लोक् क दया माया देखि दुनु बेकती कनिया के हाथ पएरजोड़ी क शांत केने छलथी 
   बेटी के विवाह मे त एक टा दमड़ी नै देबए पडलेन्ह,मुदा मुईला प आगि त जौते देतन्ही, कन्याक  विवाह कतबों आदर्स हॉक, घरबैयाके त बर ताक मे ,दौड़ बरहा करेइए पड़े छैक, जेना गीध के धियान मुइल जानबरक मौस  रहे छै तहिना  कोनो कोनो लाथे हुनक बख़रा के जमीन जथा ओ  अपन नाम प लिखबा लेने रहैथ, हुनका अहि सब झंझट स मुक्त करि देने छलेथ ।  
     कतेको बरख बीतले, बहिनक सबटा बेटा के विवाह दान भेलन्हि ,सब अपन पेलवार  बढाबेत आन आन सहरि मे जे गेला ,से आपस मुड़ि क बहिनक अहंकार के बरक्कैत नहिं होमय देलखिन, कोनो पुतौह हुनका अपन नरेटी प हाथ नैराखय देलकेन  ।घर वाला के रिटायर भेलोपरांत गाम मे अपन नब मकान बना क रहय लागल छलिह,मुदा तखनो हुनक दोसरे धाह छलेंह । कनिया के खसल घर के मरम्मति करबा देल गेल छल ,मुदा ओकर मालिकाना हक  बहिने सब के हाथ मे छल ।
 कतेको बरख बीमार पड़ी क मालिक जखन गोलोकवासी भेला ,बहिन नितांत एसगरुवा ।कनिया के बेटी  बरस दु बरस लेल माय के घुमाबए फिराबय ले ल जायन्ह,सबटा तीर्थ सेहो करबा देलकैन्ह। देखि देखि क हुनक कोढ़ फाड़ेन्ह,आय धरि त ओ दुनिए दारी मे रही गेल छलथी,आब त कोनो बेटो ने हुलकि मारे आबें ,ह कहिओ काल फोन फान करि लेई त सझिले मुदा ओहो आबे ने खाली बजबे तोही आबी जॉ ,जखन अपन कोखिक जनमल आन भ गेल त आन क जनमल के किए गारि सराप दइतथी, कहबीओ छै जे जहन बौह लगतौ कान तखन माय हेतों आन । पोसने त वेह ओहि बेटी के रहथी,मुदा कतेक सिनेह स से हुनक आत्मा जनैत रहेंह।
  जखन बहिन विह्वल भ क कनैथ,  हिम्मत जूटा क कनिया हुनका लग एनाय सुरू करी देलथी,आ नहुं नहुं बहिनक खेनाय पिनाय के भार हुनका बिन पूछने कनिया अपना माथ प राखि लेलथी । आब त  खूनक रिस्ता सेहो एहेन ने हेतै ,आध आध मिल क एक भ जाय छै ,नदी आ नाव ,आन्हर आ लाठी ,डॉल आ रस्सी ,तहिना बहिन आ कनिया,एक दोसरक जिबाक सहारा बनी गेल छलथी ।        


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सगर राति‍ दीप जरयक ७९ म आयोजन कथा कोसी’  उमेश पासवानक संयोजकत्‍वमे औरहामे  सम्पन्न/ ८० म सगर राति‍ दीप जरय  सुपौल जि‍लाक निर्मलीमे  उमेश मण्‍डलक संयोजकत्वमे रिपोर्ट पूनम मण्डल

सगर राति‍ दीप जरय79म आयोजन कथा कोसीनामक वैनरक नीचाँ दि‍नांक 15 जून संध्‍या 6.30 बजेसँ शुरू भऽ 16 जूनक भि‍नसर 6 बजे धरि‍ लौकही थाना अन्‍तर्गत औरहा गामक मध्‍य वि‍द्यालयक नव नि‍र्मित भवनमे श्री उमेश पासवानक संयोजकत्‍वमे गोष्‍ठी सुसम्‍पन्न भेल। अगि‍ला ८०म गोष्‍ठी सुपौल जि‍लाक निर्मलीमे हेबाक लेल उमेश मण्‍डल प्रस्‍ताव आएल जे सर्वसम्मति‍सँ मान्‍य भऽ घोषित भेल।
      श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल एवं श्री रामचन्‍द्र पासवान जीक संयुक्‍त  अध्‍यक्षतामे तथा श्री वीरेन्‍द्र कुमार यादव आ श्री दुर्गागान्‍द मण्‍डलक संयुक्‍त  संचालनमे ऐ कथा गोष्‍ठीक भरि‍ राति‍क यात्रा भेल। गोष्‍ठीक  शुभारम्‍भ श्री लक्ष्‍मी नारायण सिंह एवं श्री रामचन्‍द्र पासवानजी संयुक्‍त रूपे दीप प्रज्‍वलि‍त कऽ  उद्घाटन केलनि‍।
      वि‍देह-सदेह-5 वि‍देह मैथि‍ली वि‍हनि‍ कथा, वि‍देह सदेह-6 वि‍देह मैथि‍ली लघुकथा, वि‍देह-सदेह-7 वि‍देह मैथि‍ली पद्य, वि‍देह-सदेह-8 वि‍देह मैथि‍ली नाट्य उत्‍सव, वि‍देह-सदेह-9 वि‍देह मैथि‍ली शि‍शु उत्‍सव तथा वि‍देह-सदेह-10 वि‍देह मैथि‍ली प्रबन्‍ध-नि‍बन्‍ध-समालोचना नामक पोथीक लोकार्पण स्‍थानीय वि‍द्वतजन श्री संजय कुमार सिंह, श्री रामचन्‍द्र पासवान, श्री मि‍थि‍लेश सिंह, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री लक्ष्‍मी नारायण यादव तथा श्री वीरेन्‍द्र प्रसाद सिंह द्वारा भेल हाथे भेल।
      लोकार्पण सत्रक पछाति‍ दू-शब्‍दक एकटा महत्‍वपूर्ण सत्रक सेहो आयोजन भेल जइमे श्री रामचन्‍द्र पासवान, श्री बेचन ठाकुर, श्री कपि‍लेश्वर राउत, श्री कमलेश झा, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री राम वि‍लास साहु, श्री उमेश नारायण कर्ण, श्री रामानन्‍द झा रमण’, श्री शंभु सौरभ, श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल, डॉ शि‍वकुमार प्रसाद,हेम नारायण साहु, श्री अरूणाभ सौरभ तथा श्री उमेश मण्‍डल तथा संयोजक श्री उमेश पासवान द्वारा सगर राति‍ दीप जरयकथा गोष्‍ठीक दीर्घ यात्रा तथा उदेसपर सभागारमे उपस्‍थि‍त दूर-दूरसँ आएल कथाकार, समीक्षक-आलोचक एवं स्‍थानीय साहि‍त्‍य प्रेमीक मध्‍य मंचसँ अपन-अपन मनतव्‍य  रखलनि‍। जइमे सगर राति‍क 75म आयोजनक पश्चात 76म आयोजन जे श्री देवशंकर नवीन दि‍ल्‍लीमे करेबाक घोषना तँ केने रहथि‍ मुदा से नै करा साहि‍त्‍य  अकादेमी द्वारा आयोजि‍त कथा गोष्‍ठीकेँ गनि नेने रहथि‍ जहू गि‍नतीकेँ सोझरौल गेल आ तँए ऐ गोष्‍ठीकेँ श्री उमेश पासवान अपन इमानक परि‍चए दैत ७९ म गोष्‍ठीक आयोजन केलनि‍। ओ कहलनि‍ जे हम सभ अर्थात् वि‍देह मैथि‍ली साहि‍त्‍य  आन्‍दोलनसँ जूड़ल मैथि‍ली वि‍कास प्रेमी छी। हम सभ ७७म, ७८ म आयोजनक आयोजन कर्ताकेँ स्‍पष्‍ट रूपे कहैत एलि‍यनि‍ जे मुदा हमरा सबहक बात नहियेँ वि‍भारानी मानलनि‍ आ नहि‍येँ कमलेश झा मानलनि‍। मुदा से हमहूँ नै मानब आ सही-सही गि‍नती करब। आ तही दुआरे ऐ गोष्‍ठीक आयोजन ७९मे आयोजन तँइ भेल, आयोजि‍त भेल। हलाँकि‍ दरभंगासँ आएल कथाकार श्री हीरेन्‍द्र कुमार झाक उकसेला पर रहुआसँ आएल श्री वि‍नय मोहन झा जगदीश, श्री दुखमोचन झा आ दरभंगेसँ आएल श्री अशोक कुमार मेहता हीरेन्‍द्र  झाक संग गोष्‍ठीक आरम्‍भक घंटा भरि‍क पछाति‍ चलि‍ जाइ गेला।

      जीवि‍ते नर्क (उमेश मण्‍डल), शि‍क्षाक महत (राम वि‍लास साहु), बि‍आहक पहि‍ल गि‍रह (दुर्गानन्‍द मण्‍डल), बौका डाँड़ (लक्ष्‍मी दास), बंश (कपि‍लेश्वर राउत), टाटीक बाँस (राम देव प्रसाद मण्‍डल झारूदार’), सगतोरनी (शि‍वकुमार मि‍श्र), पाथर, पि‍यक्कर, जोगार आ अंग्रेज नैना (अमीत मि‍श्र), संत आकि‍ चंठ (बेचन ठाकुर), अछोपक छाप (शम्‍भु सौरभ), नमोनाइटिस (उमेश नारायण कर्ण), द्वादशा (सुभाष चन्‍द्र सि‍नेही’), राँड़ि‍न (रोशन कुमार मैथि‍ल’), पँचवेदी (अखि‍लेश कुमार मण्‍डल), मुइलो बि‍सेबनि (जगदीश प्रसाद मण्‍डल) इत्‍यादि‍ महत्‍वपूर्ण लघु कथा/वि‍हन‍ कथाक पाठ भेल आ सत्रे-सत्र मौखि‍क टि‍प्‍पणी आ समीक्षा भेल।
अछोपक छाप (शम्‍भु सौरभ) क समीक्षाक क्रममे श्री रमानन्द झा "रमण" कथावस्तुसँ अपन असहमति देखेलनि आ कहलनि- " नै आब ई गप नै अछि, एकटा गप एतै देखियौ, हम  रमानन्द झा "रमण" श्रोत्रिय उच्च कुलक, आ कतऽ आएल छी! उमेश पासवानक दरबज्जापर!" श्री बेचन ठाकुर  श्री रमानन्द झा "रमण"क नव-ब्राह्मणवादी सोचक  विरोध करैत कहलनि- " लोकक मगजमे अखनो जाति-पाति भरल छै, मैलोरंगक प्रकाश झा तेँ ने कहै छथि जे बेचन ठाकुर भरि दिन तँ केश काटैत रहैए, ई रंगमंच की करत!! श्रीधरमकेँ सेहो ई गप बुझल छन्हि। माने मैथिली साहित्यकार, समीक्षक आ रंगमंचसँ जुड़ल ब्राह्मणवादी आ नव-ब्राह्म्णवादी सोचक लोककेँ देखैत  ई कहल जा सकैए। २१म शताब्दीमे श्री रमानन्द झा "रमण"क बयान ई देखबैत अछि जे  कोना ओ उमेश पासवानक दरबज्जापर आबि उपकृत करबाक भावनासँ ग्रसित छथि।
ऐ अवसर पर २७ म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी  सेहो आयोजित भेल।
अगि‍ला ८०म गोष्‍ठी सुपौल जि‍लाक निर्मलीमे हेबाक लेल उमेश मण्‍डल प्रस्‍ताव आएल जे सर्वसम्मति‍सँ मान्‍य भऽ घोषित भेल। 
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बिन्देश्वर ठाकुर
विहनि कथा

न्याय

स्कूल जाइत काल एकटा लड़कीकेँ ओहे गामक मुखियाक बेटा अपना हबसक शिकार बना लेलक। ई घटना सुनलाक बाद स्कुलिया छौड़ा सभ ओकरा बड पिटलकै। ऐ घटनासँ हुनकर बाबूजीकेँ अपन पगरी खसबाक भान भेलै आ अपन बेटाक करतूतपर पर्दा देबाक लेल पञ्चायत नै करबाक घोषणा केलक। मुखियाक एहन पक्षपात देखि पूरा समाज मिलि कऽ एक निर्णय केलक जे न्याय आखिर न्याय होइ छै। आ सभक साथ उचित न्याय हएब आवश्यक छै, चाहे ओ राजा हुअए या प्रजा। तेँ पञ्चायत हेबाक चाही तथा दोषीकेँ कर्म अनुसार उचित सजाय भेटबाक चाही । समाजक आगू मुखियाक कोनो बस नै चललै। ओ पञ्चायत करबाक लेल विवश भऽ गेल। दोसर दिन भोरे पञ्चायत बैसल आ उचित न्याय भेल।

 
आत्मग्लानि 
काल्हि दिवाली पावनि। सभ गोटे दिवालीक तैयारीमे जुटल। हरीयाक हाथ कटा गेल छै तेँ हुनकर पत्नी आवश्यक समान लेल बजार दिस टहलल। पाछु-पाछु हुनकर बेटा सेहो। हरीयाक परिवार बड गरीब छै। दुकानमे पूजा, आरती आ प्रसादी लेबाक क्षमता नै छनि हुनका सभ लग। मुदा समाजमे नाक बचेबाक हेतु एकटा अगरबत्ती, अबीर, चन्दन आ पाभरि लड्डु खरिदलक मुश्किलसँ। तइपर सँ हुनकर बचबा हुकालोली आ फटका लेल बफाड़ि तोड़ऽ लागल। पैसा तँ नै रहए ओकरा लग से झट्ट द किन देतै। दुकनदारसँ विनती केलक तँ ओ कहलक -" पैछला लक्ष्मीपूजाक पैसा सभ बाकिए छौ आ फेर कतेक खाली उधारिए दैत रहियौ। "दुकनदारक बात सुनि कऽ छपराबाली तँ लजैनी जकाँ लाजसँ घोकैच गेल। ओम्हर दोसर लोक सभकेँ सामाग्री किननाइ आ बाल-बच्चा लेल फटका किननाइ देखि कऽ छपराबालीक आँखिसँ श्रवन नोर बहऽ लगलै आ अपन गरीबीपर बड आत्मग्लानी भेलै।

 

अभिशाप 
चौकिएपर सँ काकी कहै छथिन, "बौवा एम्हरे आउ।" 
काकीक पिड़ाएल स्वर सुनि रमलोचना चौकी दिस बढ़ल मुदा आङ्गन सुन्न। चारु दिस बस कन्नारोहट। ओ समझि नै पबलथि ऐ परिवेशकेँ। आ काकी सहजेसँ बताबऽ लेल राजी नै होएथिन।। तखन ओ कहलथिन- "काकी, की भेल सत्त-सत्त बताबू, अहाँकेँ हमर सपत भेल।"
काकी आँचरसँ अपन नोर पोछैत सम्वेदनशील भऽ बजलनि- "की कहू बौवा, अनर्थ भऽ गेलै। बुच्चीकेँ विवाहक ६ महिना नै भेल छलै मुदा नरपिशाच सभ उनका ऊपर अन्याय कऽ देलकै। दहेजक किछु टका बाँकी रहि गेल छलै, से तइसँ ओकरा मट्टी-तेल धऽ जिन्दे जरा देलकै ओकर सासुर सभ। कतेको बेर ऐ टका लेल तछाड़-मछाड़ भेल रहै मुदा हम सभ जल्दिए ब्यबस्था कऽ दऽ देब, से आश्वासन देलाक बाबजुदो ओ दानव सभ हमरा बेटीक साथ एहन कुकर्म केलक। बजरखसुवा पुलिसकेँ थानामे रिपोर्ट लिखाबऽ गेलौ तँ मचरुवा ओकरो सभकेँ शायद पैसेपर मिला लेलकै। एखन धरि किछु निराकरण नै भेलैए।" काकी बैजते-बैजते बेहोस भऽ गेलीह।
रमलोचना काकीकेँ सम्हारैत सोचै छै, समाजक एहन अभिशाप आ कुसंस्कारक बारेमे। जकरा चपेटामे कतेको धिया-बर्सेनी बलिदान होइ छै।

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जगदीश प्रसाद मण्‍डल
लघुकथा-
चुप्‍पा पाल

गोसाँइ लुक-झुका गेल। ओना छह बजि गेल मुदा सुरूज अपन दिनक यात्राक अंतिम पड़ावपर अँटिक तकिते छला। पतराएल काज रहने नीलकंठ काका सबेरे-सकाल निचेन भऽ गेल छला। जहिना परिवार मोटेलासँ काजो मोटाइ छै आ दुबरेलासँ काजो दुबराइ छै तहिना नीलकंठ कक्काकेँ सेहो भेलनि। ओना परिवारक संस्कार आगू बढ़लनि मुदा काज पूरने काजो पतराइए। होइतो तँ तहिना ने छै जे जनम होइते संस्कारोक जनम होइ छै आ अन्त होइत अन्तो होइ छै। नीलकंठ कक्काकेँ तेहने सन भेलनि। किअए ने हेतनि, सोझहे लग्गीसँ घास खुएलासँ नै ने होइ छै जे आगू ताकब दादा-परदादा देखब आ पाछू ताकब तँ नाति‍-छेड़नाति‍ देखब। बाल-बच्चाक बि‍आह-दान भेने माए-बापक जिनगीक प्रमुख कर्म-धर्मक पूर्ति होइ छै जइसँ बाल-बच्चाक अपन दायित्व पूर्ति करै छथि। बेटा बि‍आहक आइ पनरहम दिन छेलनि। पैघ यज्ञसँ दुनू परानी मुक्ति पाबि‍ जहिना साबुनसँ वस्त्रक मैल साफ कएल जाइए तहिना माए-बापसँ लऽ कऽ बेटा-बेटीक परिवार बना जिनगी मैलकेँ कमर्क साबुनसँ घोइ अपन मनक सफाइ लोक करै छाथि। नीलकंठ कक्काक मनमे उठलनि‍ जे बेटा-बि‍आहक अंतिम हिसाब जोड़ि किअए ने काजक विसर्जन कइए ली। आब कि कोनो ओ जुग-जमाना रहल जे तीन-तीन-चारि-चारि मास गरदनिमे उतरी झुलि‍ते रहल। जे काज महज चारि-पाँच घंटाक छी। मन गबाही देलकनि जे से नै तँ आइ अंतिम हिसाब -बि‍आहक लाभ-हानि‍क- कऽ काजक विसर्जन कइए लेब। जहिना बोनैया हरिणक बच्‍चा पकड़ाइते चारूकात चौकन्ना हुअए लगैत तहिना नीलकंठ कक्काकेँ भेलनि। काजसँ विश्राम होइते देखि सुचिता काकी हाँइ-हाँइ अपन काजक मुड़ी मोड़ि चाहक ओरियानक विचार मनमे अनलनि। किअए नै अनती, ओहन जमाना थोड़े छथि जे पतिक विकलांत देखि ओइसँ बेसी अपने विकलांतता देखबए लगती। केतली-लोटा नेने कल दिस बढ़ली, मनमे उठलनि पहिने अपने हाँइ-हाँइ पएर धोइ लोटा-केतली अखाड़ब आकि लोटे केटली अखाड़ि पानि भरि लेब। मन ततमत करए लगलनि, ओना ऐ उमेरक ई प्रश्न नै भेल, मुदा हर-काजक अपन गति-विधि छै। अपने जिनगीक काज ने दोसराकेँ बाट देखौत। समैसँ पहिने सुचिता काकी चाह बना दहिना हाथे गिलास नेने नीलकंठ काका लग पहुँचली। अखनि‍ धरि नीलकंठ काका मुड़ी निच्चे मुहेँ केने छला। मनमे बेटा बि‍आहक काज घुरि‍याइत रहनि‍। चाहक गिलास जखनि सुचिता काकी निच्चे दबा बढ़ौलकनि तखनि आँखि पड़िते काका नजरि उठौलनि। भकुआएल मुँहक सुरखी देखि नजरि-पर-नजरि गड़ौलनि। मुदा कक्काक मन अपन विचारपर रहनि‍। काकीकेँ बूझि पड़लनि जे भरिसक कोनो दब कएल काज मनकेँ पकड़ने छन्‍हि‍। मुदा जँ चाह पीबैसँ पहिने बाजि बात लाड़ब तँ भऽ सकैए जे चाह पीब छोड़ि अपने बेथासँ बेथित भऽ जाथि, तइसँ नीक जे चुपचाप हाथमे चाहक गिलास पकड़ा, अपनो चाह अंगनासँ आनि एतै पीबो करब आ पुछियो लेबनि। तइ बीच दू-चारि घोंट चाहो घोंटि‍ नेने रहता जइसँ मनोक जुआरि‍‍ कमतनि। ओना उदासो चेहराक केते कारणो अछि। केतौ रौद-बसातक उदासी तँ केतौ कोनो काज नै भेने, केतौ परि‍श्रमक नोकसानक उदासी, केतौ धीया-पुता मुइने उदासी तँ केतौ माए-बाप मुइने। मुदा तँए कि पतिक बेथा पत्नी नै सुनथि। पति-पत्नीक बीच हजारो रूप अछि हजारो रंग अछि तँए कि बजा-भुकी बन्न भऽ जाए। आंगन दिस सुचि‍ता काकी बढ़ली। एक घोंट चाह पीवि‍ते नीलकंठ कक्काक मुँह मुसिकिएलनि। मनमे उचरलनि, कहू जे एहेन काजकेँ कि कहबै काज छेलनि डेढ़ सए जोड़ धोती आ तेकर आरो संगी सभ माने पाँचो टूक कपड़ा संग विदाइ करब। ओना डेढ़ सए बहुत भेल मुदा से नै, अज-गज बला परिवार कक्काक। चारि भाँइक अपन भैयारी, तेकर नैहर-सासुर, नाति-नातिक, पोता-पोतीसँ लऽ कऽ अपन सासुरक सातो संबन्‍धीक, तइ संग बेटाक हाइस्‍कूल-कौलेजक संगीक संग नोकरीक संगी धरि‍। नीलकंठ काका हृदए खोलि काज केलनि। प्रश्न तँ मनमे उठलनि मुदा लगले जवाब भेटलनि जे जग-जापमे खर्च होइते छै। जँ से नै होए तँ धनक काजे कि‍ रहत। पेट तँ सागो आ एक लोटा पानियोँसँ मानियेँ जाइ छै। मन नचि‍ते रहनि आकि‍ सुचिता काकी मुँहमे चाहक गिलास भिरौने आगूमे बैसली। तही बीच नीलकंठ काका अपन हाथक गिलास चौकीपर राखि हाथक पाँचो ओंगरी घुमबैत बजला-
कह ते ई केहेन भेल?”
नीलकंठ कक्काक प्रश्न सुनि सुचिता काकी अकचकाइते रहली जे कि केहेन भेल। बाघ भेल कि साँप भेल से केना बुझबै। ओना दुनू परानीक -नीलकंठ काका आ सुचि‍ता काकी- मन बेटा बिआहसँ एते खुश रहनि‍ जे छोट-छीन केते बातो आ काजो मनसँ हटि गेल रहनि मुदा मनोक तँ अपन संसार छै। प्रसंगोक अपन स्थानो आ महत्तो छइहे। दुनू बेकतीक सझिया काज तँए आरो बेसी मन खुशी रहनि। खुशी हएब उचितो छल किएक तँ केतो एहनो होइ छै जे प्रेमरस पीब, मधुर गीत गाबि‍ संतान पैदा होइ छै आ किछुए दिन पछाति सभ किछु उनटि जाइ छै, ओइ बेटासँ तँ नीक काज भेले रहानि। ओना चारि भाए-बहिनक बीच एकेटा बेटा तीनटा बेटीए छेलनि। जे तीनू बेटा-बेटीसँ जेठे छेलनि जेकर बि‍आह-दुरागमन पहिने कऽ नेने छला। तीनू बेटी बि‍आहक दान-दहेज देखि दान-दहेजसँ मने उचटि‍ गेलनि, जइसँ बेटाक प्रति दान-दहेजक विचारे मनमे दबि गेलनि। दोसरो कारण भेलनि, एक-एक बेटीक बि‍आहमे जेते खर्च भेल तइसँ बेसी जँ बेटीबलाकेँ खर्च कराएब ई तँ सोझहा-सोझही अन्याय भेल। मुदा से कहाँ होइ छै, दहेजक दुआरे बेटी बि‍आहकेँ लोक अगर-मगर करैत टपि जाइए मुदा बेटा बेरमे बिनु पढ़लो-लिखलकेँ डाक्टर-इंजीनियर बना देल जाइए। जहिना बड़दहट्टामे फुसि-फासिक तेजी रहै छै तहिना ने बेटो-बेटीक बि‍आहमे...। यज्ञ सन पवित्र स्थलमे जँ फुसि-फासिक तेजी नै रहत तँ ओ यज्ञ शुद्धे केना भेल? खैर जे होइ। जेते तीनू बेटीक बि‍आहमे खर्च भेल ओते आमद एकटामे केना हएत। तइसँ नीक जे मुँहछोहनियेँ नै करब। हथउठाइ जे हेतइ सएह हेतै। पतिक बिपटा बानि -हाथक ओंगरी घुमा बजैत- देखि सुचिता काकीकेँ हँसी लगलनि मुदा हँसबो तँ हँसबे छी। केतौ गुदगुदबैए तँ केतौ भकभकेबो करैए। काज नफगर रहल घट्टो नफे बुझाए छै आ घटगर रहल तँ नफो घट्टे बुझाए छै। पथड़ाएल केराउक भुज्जा जकाँ सुचिता काकीक दाँत तर नीलकंठ कक्काक आक्रोश पड़लनि‍। मुदा आक्रोशो तँ आक्रोशे छी, कथीक आक्रोश। तँए जाबे उधारि-उधारि नै बजता ताबे बूझब केना? मुदा मुँहक हँसी पेटमे गुरकुनियाँ कटिते रहनि। बजली-
तेहेन झाँपि‍-तोपि बजै छी जे ऊपरे-घाँड़े रहि गेलौं तँए कनी बिक्‍छा कऽ बजिऔ। जखनि दुनू गोटेक सझिया जीवन अछि तखनि हम हँसी आ अहाँ कानी ई केहेन हएत?”
खिस्सकरकेँ जहिना एक्कोटा खिस्सा सुनिनिहार भेटला पछाति अपन सुधि-बुधि हरा जाए छै तहिना नीलकंठ कक्काकेँ सुचिताक बोल सुनि भेलनि बजला-
परिवारक महान यज्ञ बेटा-बेटीक बि‍आह छी, तेहेन यज्ञ जँ नीक जकाँ सम्पन भऽ जाए तँ खुशीक बात भेल। तइले देहोक धौजनि आ पाइयोक धौजनि तँ हेबे करत। मुदा तइमे उचित-अनुचितक तँ विचार करए पड़त किने?”
नीलकंठ कक्काक मनकेँ पकड़ैत चुट्टा सुचिता काकी भिड़ौलनि। हुँहकारी भरैत बजली-
ऐमे के नै करत?”
जहिना एक्के भगवान भिन्न-भिन्न स्वरूप भिन्न-भिन्न फूल-पत्ती पाबि खुशी होइछ तहिना नीलकंठ कक्काकेँ सेहो भेलनि। सुचिता काकी नजरि‍-पर-नजिर गड़़ा बजला-
उचित-अनुचित बेड़ाएब असान अछि। जिनगीक संगी रहने कि हएत? ई तँ विचारक संगी भेने ने काज चलत।
नीलकंठ कक्काक बात सुचिता काकीकेँ अकठाइन लगलनि। मनमे उठलनि जे कहू सभ दिन एकठाम रहि सभ किछु करै छी तखनि एना किअए बजै छथि। भरिसक कोनो एहेन उकड़ू सोग ने तँ मनकेँ पकड़ि नेने छन्‍हि‍। आन दिन केहेन बढ़ि‍याँ हबगब करै छेलौं आ आइ कि भऽ गेल छन्‍हि‍। बजली-
कनी नीक जकाँ अपन उदासीक कारण बजिऔ। हम ऊपरे-झापरे रहि गेल छी।
सुचिता काकी जिज्ञासा देखि नीलकंठ काका बजला-
उचित-अनुचित काजक दू छोर भेल। एक छोर उचित भेल आ दोसर अनुचित। मुदा तइसँ थोड़े काज चलत। सुत-सुत मिलि जहिना डोरी बनैए तहिना दुनू अछि। तेकरा बि‍हिया कऽ जँ नै सीमा देब तँ काजे भँसि‍या जाएत। बुझबे ने करबै जे कतए कि‍ भऽ गेलै। पछाति बाजब जे मनमे जे छेलै से भेबे ने कएल। अहीं कहू जे मनेक विचारकेँ ने काज रूप बना केलिऐ तखनि किअए ने भेल?”
नीलकंठ कक्काक विचार सुचितो काकीकेँ दमगर बूझि पड़लनि। माथ कुड़ियबैत बजली-
तखनि केना हएत?”
सुचिता काकीक पघिलल मन देखि नीलकंठ काका बजला-
बड़ भारी जाल छै। फुलवारीक फूलमे देखबै जे एके नामक अपराजित फूल उजरो होइए लालो होइए आ कारीओ होइए। सोझहे अपराजित आकि आने फूल जे रंग-रंगक होइए, कहलासँ थोड़े बूझि पेबे जे लाल-कारीमे कोन-नीक कोन-अधला भेल?”
नीलकंठ कक्काक छिड़ियाएल विचार सुनि सुचिता काकी समटैत बजली-
अच्छा छोड़ू एते छान-पगहाकेँ। एक-एक काजकेँ उठा बेड़बैत चलू जे कि नीक-भेल आकि अधला भेल।
पत्नीक विचार सुनि नीलकंठ काका बजला-
हँ, बड़बढ़ि‍याँ विचार देलौं। मुदा पहिने ई कहि दिअ जे केते काज अढ़ेला पछाति करै छी आ केते अपने फुड़ने करै छी?”
पतिक बात सुनि सुचिता काकी अकबका गेली। मने-मने विचारे लगली जे ई कि भेल? एकरा कि काज करब नै कहबै। घर-परिवारक जखनि काज भइए गेल तखनि काज केना ने भेल। भरिसक बुधिये तँ नै घुसुकि गेलनि अछि, नै तँ एहेन बिनु हाथ-पएरक बोल किअए भेलनि? एक्केटा बातमे सेहो मानब उचित नै हएत। जँ मन घुसकल-फुसकल हेतनि तँ दोसरो-तेसरो बात एहेन बजता। ओना लोककेँ बेरो-विपति आ काजो-उदममे मन घुसुकि-फुसुकि जाइ छै। आंशिक रूपमे की ई झूठ जे किछु सरकारीओ कर्मचारी वा शिक्षकोकेँ बेटीक बि‍आह सेहो पतित बनौलकनि। परिस्थितियो रहल जे केते शिक्षक हाइ स्कूल वा कौलेजसँ सेवा-निवृत भऽ गेला मुदा हाथसँ कहियो वेतन नै उठौलनि। मुदा तँए कि‍ परिवारमे खर्च नै छेलनि, एक शिक्षक वा कर्मचारीक खर्च तँ छेलनि‍हेँ। मनकेँ थीर करैत सुचिता काकी विचारलनि जे से नै तँ जे बुझैमे नै आएल से पुछिए किअए ने ली बजली-
कि कहलिऐ अढ़ेलोत्तर आ अपने फुड़ने?
सुचिता काकीक प्रश्न सुनि नीलकंठ कक्काक मनमे उपकलनि, भरि दिनक हराएल जँ साँझो घड़ि घर पहुँच जाए तँ ओ हराएब नै भेल। दिन तँ होइते छै बौआइले तखनि बौआएब हराएब केना भेल। बजला-
जखनि कोनो काज अढ़ेला पछाति जे करैए ओ अपन उहिक नै भेल। जँ ओकरा अढ़ाएल नै जाए तखनि ओ करत कि? अहीं कहू?
नीलकंठ कक्काक विचार सुनि माथक मोटा पटकैत सुचिता काकी बजली-
अहाँ अपनाकेँ एतबे किअए बुझै छिए जे हमरा कोनो काज करैले नै कहब। जँ से नै कहब तँ केना बुझबै जे हमर बात फंल्ली मानैए आकि नै?
पाशा पलटैत नीलकंठ कक्काक बजला-
जड़िसँ छीप धरिक काजक हिसाब-किताब करैमे बड़ समए लगत। से नै तँ एक्केटा काजक हिसाब करू।
एकटा सुनि सुचिता काकीक मन हलचलेलनि। ई तँ सोलहन्नी एक तरफा भेल औगता कऽ बजली-
अहूँक बात रहल आ एकटा हमरो अछि।
से की?”
सवारी बरियातीक हिसाबसँ होइ छै तइमे एते गाड़ीक कोन प्रयोजन छेलै, जे लऽ गेलौं?
सुचिता काकीक प्रश्न सुनि नीलकंठ काका बजला-
अच्छा, अहीं विचार दिअ जे पहिने कि विचारब?
पतिक शीतल छाहरि पाबि काकी बजली-
पहिने गाड़ीए-सवारीक विचार करू। किअए पच्चीसटा गाड़ी लऽ गेलिऐ, जखनि कि डेरहे सए बरियाती गेलिऐ।
गाड़ीक नाओं सुनि समाजमे जीतक अनुभव नीलकंठ कक्काकेँ भेलनि। अखनि धरि‍ समाजमे कियो बीसटा गाड़ीसँ आगू नै बढ़ल छला तैठाम पाँच गाड़ी बढ़ैक प्रतिष्ठा केकरा भेटल। आह्लादित होइत बजला-
अपन मनोरथ छल जे आगू बढ़ि काज करी। किअए अहाँकेँ कोनो तेकर दुख अछि? प्रतिष्ठा कि फूटा कऽ भेल आकि सम्मि‍लि‍ते भेल।
एक तँ ओहिना सुचिता काकीक मन बेटा बि‍आहक खुशीसँ उधियाइत रहनि‍ तैपर पतिक मनोरथ सुनि आरो उधिया गेलनि। बजली-
अनकासँ तँ नीक काज जरूर भेल। देखै छिऐ जे अल्हुआक बोरा जकाँ मनुख गाड़ीमे ठसमठस बरियाती जाइ-अबैए आ गाड़ीएमे मुँह पेट सभ चलए लगै छै। तइसँ नीक भेल जे जे कियो गेला अरामसँ एला-गेला।
सुचिता काकीक बोल सुनि नीलकंठ कक्काक मुँहसँ हँसी फुटलनि। पतिक हँसी देखि काकीकेँ भेलनि जे भरिसक हमर निशान उचित जगहपर लगलनि‍। अपन बराइ सुनि खुशी हएब मनुखक जन्मजात संस्कार रहल अछि। अपन उचित जगहक निशानसँ पतिक मुँहकेँ लाबा जकाँ हँसाएब सफल पत्नीक प्रमुख लक्षण तँ भेबे कएल। मुदा नीलकंठ कक्काक हँसीक कारण सुचिता काकीक निशान नै बल्कि‍ समाजमे अरामदेह बेसी गाड़ीकेँ बेटाक बि‍आहक बरियातीमे लऽ जाएब छेलनि। जेकरा बेटाकेँ अधिक दान-दहेज बि‍आहमे भेटै छै, समाजमे ओकरे मान भेल कि ने? जँ मान बढ़ल तँ जरूर अंको बढ़ल हेबे करत। पेटक गुदगुदी असथिर होइते सुचिता काकी बजली-
आब, हाँ-हाँ हीं-हीं छोड़ू। भानसोक बेर भेल जाइए। अखनि पुतोहुकेँ चुल्हिक भार थोड़े देबै। जइ बेथे बेथाएल छी से बेथा निकालू। जाबे गुर घाउ जकाँ कोनो बेथाकेँ नीक जकाँ नै निकालि बहा लेब ताबे सड़नि-असाइक डर रहि‍ते छै। तँए आदो-पान्त बाजू?
जहि‍ना कियो संगीतज्ञ उच्च कोटीक मंचपर कलासँ श्रोताकेँ मुग्द कऽ सुता दइए तँ केतौ एकान्त बनमे असकरे कियो अपन गुणसँ निराकार रूप भगवानकेँ सुन भरत जकाँ नन्दी गाम बना राज-काज चलबैए तहि‍ना अपन बेथित वाणकेँ निकालैत नीलकंठ काका बजला-
बि‍आहक आन खरच आ काजपर मन केतौ नै अँटकल अछि, किअए तँ चाउर-दालि खर्च भेल तँ बदलामे लोको, मालो-जाल आ चिड़ैऔ खेलक। गाड़ी-सवारीमे खर्च भेल तँ ईहो उपराग नै भेटल जे किनको डाक्टर ऐठाम जाए पड़लनि। मुदा डेढ़ सए जोड़ धोती मिला पाँचो टूक विदाइमे जे खर्च भेल ओ टारनो मनसँ नै हटैए।
जहिना मरूभुमिमे बालु सिबा चमकैत किछु नै नजरि अबैत तहिना सुचिता काकीकेँ बेटा बि‍आहक सफलता मनमे छेलनिहेँ चमकि चड़चड़ेली-
राँड़ कानए अहिवाती कानए तइ लगल बड़कुम्मरि‍ कानए, सुहरदे मुहेँ किअए ने बजै छी जे आने बरक बाप जकाँ कननी बे‍मारी धेने अछि तँए कनै छी। अपने मने जे केतबो गुर-चाउर चिबबैत कानब तँ कि हमहीं संगी छी, बाँटि थोड़े लेब। खैर जे होउ, देह तँ रोगाएल अहींक अछि, तँए बेमारीक जड़ि तँ अपने बुझैत हेबै। बाजू, खोलि कऽ बाजू, कनि भानसमे देरीए हएत तँ कि हेतै। मनक घाउ जे मेटाएल रहत तँ खाइओ आ सुतैओमे रुचि औत।
सुचिता काकीक विचार सुनि नीलकंठ कक्काक मनमे भेलनि जे भरिसक लोक ठीके कहै छै राजाकेँ किदनि‍ चिन्ता आ रानीकेँ किदनि‍क। मुदा मनक बेथा नीक जकाँ वएह ने बूझि पाबि‍ सकैए जेकर हाथ-पएर नमहर हेतै। घटको सबहक अजीब गति छै। बर-कनियाँक घरदेखीमे लगले सर्टिफिकेट दऽ दइ छथि जे सीता-रामक जोड़ी अछि। विधातो जेना जोड़े लगा पठौलनि। मुदा नै सोलहन्नी तँ अठन्नीओ बेथा तँ भगबे करत। सोलहन्नी तँ तखनि भगै छै जखनि सुनिनिहार बेथा सुनि बेवसथित दंगसँ समाधान करै छथि, मुदा तँए कि अपन बेथा हृदैसँ निकाललोसँ तँ अदहा कमिते अछि। किएक ने कमत? लोक नै सुनत तँ नै सुनह मुदा उगलाहा तँ सुनबे करत। बजला-
विदाइमे केते खर्च भेल से बूझल अछि?”
ठोरेपर बरी पकबैत सूचिता काकी बजली-
विदाइ तँ विदाइ भेल, तइमे हमरा बुझैक कि प्रयोजन अछि। ई काज तँ पुरुख पात्रक छी। जे घरसँ निकलि‍ कुटुम-परिवार धरिक चीन-पहचीन रखै छाथि, सेहो अधला कि भेल। जखनि अधले नै भेल तखनि चिन्ते किअए हएत? जखनि चिन्ते नै हएत तखनि मने किअए बेथाएत? मन हल्लुक करू। अनेरे तरे-तरे गुमसड़ै छी।
नीलकंठ कक्काक मन मानि गेलनि जे मुँहछोहनि छोड़ि किछु ने भेटत। मुदा मनक बेथाक कथा जँ बाजियो नै लेब तँ ओकरा संग अन्याय हएत। बजला-
जे बात सुनैमे नै आबए ओ दोहरा कऽ पूछि लेब। मुदा जे बुझैमे नै आबए ओहन नै दोहराएब। शुरूहेसँ कहै छी।
अपन भरि‍याइत आसन देखि सुचिता काकी हाथ-पएर सोझ-साझ करैत बैसली। सोझ-साझक कारण रहनि‍ जे नजरि-नजरिक मिलानी नब्‍बे डिग्रीमे नै शत-प्रतिशत हुअए। बजली-
देखू हम बि‍सराह छी, जँ बीचमे कोनो बि‍सरि जाइ तँ ओकर मदी नै भेल। मुदा अहूँ, काज केतौ आ बात केतौसँ नै करब। जहिना-जहिना काज बढ़ैत गेल तहिना-तहिना बातो बढ़बैत चलब।
सुचिता काकीक विचार नीलकंठ कक्काकेँ दमगर बूझि पड़लनि। दमगरे विचार ने दमगर आशा जगबैए। बजला-
डेढ़ सए गोटेकेँ विदाइ केलियनि‍। ओना किनको ऐ दुआरे नै बेरेलियनि‍ जे एक काजक एके विदाइ उचित बुझलौं। मुदा तँए कि, किनको संग कम-बेसी नहियेँ केलियनि।
पतिक बात सुनि सुचिता काकी टपकली-
किअए, कियो किछु उपराग पठौलनि अछि‍?
उपराग किअए कियो पठेता। मुदा मन मानि नै रहल अछि। कहिये दइ छी। डेरहो सए विदाइ डेढ़ लाखक छल। एक-एक विदाइक वस्तुमे एक-एक हजार लगल छल। मुदा आब जखनि‍ पाछू उनटि तकै छी तँ बूझि पड़ैए जे दस-सँ-पनरह गोटे धोतीओ चदरियोक उपयोग करता बाँकी कियो घरनीपा बनौता तँ कियौ गाड़ी-पोछना!
पतिक बात सुनिते सुचिता काकी कुदैक बजली-
अपन महिंसकेँ कियो कुरहरि‍ए नाथत तइले अहाँकेँ चिन्ता किअए होइए।
सुचिता काकीक बात सुनिते नीलकंठ कक्काकेँ झड़क उठलनि बजला-
अहीं सन लोक बि‍आहमे काजसँ विधि भारी बनबैए। एकटा कहू जे अपन बि‍आह मन अछि।
मन किअए ने रहत?
केते खर्च बाप केने रहथि से बूझल अछि?
दहेलहा-भसेलहा खनदान बुझै छिऐ जे काजक हिसाब बाप-माएसँ लेब।
एना नै छि‍ड़ि‍आउ सबा लाख रूपैआमे दुनू गोटेक बि‍आह भेल रहए। जाउ कनी चसगरसँ भानस करब। अहिना बेजाए नीक होइत एलैए।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
जगदानन्द झा मनु’- विहनि कथा
ग्राम पोस्ट हरिपुर डीहटोल, मधुबनी 
   .   हारि

साँझु पहर फोनक घंटी बाजल । ट्रिन न न ट्रिन न न न ट्रिन न न न न...
बिना अप्पन नाम बतोने रिसीवर उठेलहुँ । कोनो जवाब नहि । दोसर कातसँ शांत ।
मुश्किलसँ पन्द्रह मिनट बाद फेर फोनक घंटी बाजल । दोसर दिससँ फेरो कोनो
आवाज नहि । शाइद हमर स्वर पशंद नहि हेतै अथवा कएकरो आओरसँ गप्प करैक हेतै

रातिक एगारह बजे फेर फोन आएल, फोन उठेलहुँ, “हेलो ।
कनिक कालक चूप्पीकेँ बाद उम्हरसँ, “हम मालकी बजै छी, बहुत दिनक बाद फोन
कए रहल छी, ठीक तँ छी ने ? साँझेसँ ट्राइ कए रहल छलहुँ मुदा हिम्मत नहि
भए रहल छल । ई कहै लेल एतेक राति कए फोन केलहुँ जे हमर ब्याह भए गेल ।
हमरा बुझल अछि ।
कोना ।
दुबईसँ एला बाद हम अहाँक गाम गेल रही ओहिठाम कएकरोसँ बुझलहुँ जे दू
महिना पाहिले अहाँक ब्याह दुरागमन दुनू संगे भऽ गेल मुदा ई की महर इंतजार
नहि कए पएलहुँ ।
हम बेबस रही..... अहाँक बच्चाकेँ पाँच महिनासँ अपना पेटमे रखने-रखने,
आगू दुनियाँक नजरिसँ बचेनाइ असम्भब छल ।
हम कहि कए तँ गेल रहि जे छह महिनासँ पहिले पहिले आबि जाएब कि हमरापर
बिश्वास नहि रहल ।
एहन गप्प नहि छै, हमर तन एहिठाम अछि मुदा मोन एखनो अहीँ लग अछि परञ्च ई
समाज, गाम आ परिवारक सामने हम हारि गेलहुँ ।
की अहाँक पतिकेँ ई गप्प सभ बुझल छनि ।
हाँ ! अहाँक दऽ नहि मुदा बच्चा दऽ बुझल छनि । ओ देवतुल्य लोक छथि, होइ
बला हमर बच्चाकेँ सेहो अप्पन नाम दै लेल तैयार छथि ... (कनिकाल दुनू
कातसँ चुप्पीकेँ बाद)  हम एखन एहि द्वारे फोन कएलहुँ जे हमरा आब ताकैक वा
फोन करैक चेष्टा नहि करब ओहि सभकेँ बितल गप्प जानि बिसरि जाएब...हुँऽऽ
हुँऽऽऽ !कानेक स्वर संगे रिसीवर राखैक खटखटाहट, फोन बंद ।



           
. डिबिया

गे दाइ अहाँक सभक धिया-पुता कतेक गोर होइए ? राति कए डिबिया बाइर कए
सुतै जाइ छीयै की ? हमर मरदाबा तँ डिबिया बुता दै छै ।



           
.    पिआस

की यौ ललनजी एना टुकुर टुकुर की तकै छी ?”
अप्पन गामक मुँहलागल भाउजक मुँहसँ ई सुनि ललन एकदमसँ सकपका गेला, जिनका
कि बहुत कालसँ घुरि रहल छल ।
नहि किछु नहि ।
धूर जाऊ ! इनार लग पिआसल जाइ छै की पिआसल लग इनार । अहाँ एहन पहिल मरद
छी जकरा लग इनार चलि कए एलैए आ एना टुकुर टुकुर तकने कोनो पिआस मिझाइ छैक
की ? पिआस मिझाबैक लेल इनारमे कूदए परैक छै ।


           
. प्रेम दीवानी
अरे ! अरे ! रुक ई की भऽ रहल छै ! तूँ सभ एक संगे एतेक रास सामूहिक आत्मदाह !
हम सभ प्रेम दीवानी, प्रेमकेँ अंतिम छोर पावै लेल जा रहल छी मुदा अहाँ
अपस्वार्थी मनुख एहि प्रेमकेँ नहि बुझब अहाँ सभ तँ प्रेमोमे नफा नुकशान
तकै छी ।
डिबियाक लोऽपर भन्नाइत फतिन्गाक झुण्डमे सँ एकटा धीरेसँ हमर कानमे भनभना
कए कहि डिबियाक आँचपर जा जरि गेल ।



             
.  खापरि धिपा कए

यै छोटकी कनियाँ, सुनै छीयै ललिताक वर एलखीन्हेँ जाउ हुनकासँ कनीक नीक
मुँहें हँसि बाजि लियौन, खुश भए जेता तँ टिकुली सेनुर लेल किछु दएओ कए
जेता ।
एहन हँसै बजै बला आ खुश होएबला मरदाबाकेँ हम खापरि धिपा कए चेन नहि फोरि
देबैन, अप्पन जमएक बड़ चिंता छनि तँ अपने जा कए किएक नहि खुश कऽ लै छथि ।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
अखिलेश कुमार मण्‍डल
बेरमा, मधुबनी।
वि‍हनि‍ कथा-

पँचवेदी

जेकरा लेल चोरि‍ करै सएह कहै चोरा, भोरेसँ मनमे बेर-बेर उठए लगल। केतबो ठेल कऽ बहटाबए चाही से बहटबे ने करए। तखनि‍ मन भेल जे जहिना केकरो दुखनामा सुनने दुख कमे छै तहिना जँ समाजोक बातकेँ सुनि आ अपनो बात कहिऐ। उठिे कऽ लालकाका लग गेलौं। देखते पुछलनि‍-बौआ मन बड़ झूकल देखै छिअह?”
कहलियनि- काका, तेहने रगड़ा मनकेँ रगड़ि‍ रहल अछि जे कि‍ कहौं। तँए झुकौने छी।
लालकाका पुछलनि- से कि?”
कहलियनि- काका, ओना ऐ बातकेँ समाजक पँचवेदीमे उठाएब, मुदा अहाँ घरक गारजन छी तँए पहिने अहीं बुझा दिअ।
अपन बढ़ैत मान देखि‍ लालकाका बजला- बेस बात मनमे एलह। तेहेन जुग-जमाना भऽ गेल अछि जे लोक झुठो बातकेँ तेना बढ़ा-चढ़ा कऽ बजैए जे जेना ओकरे राज होइ।
असथिरसँ बुझा कऽ कहअ
कहलियनि- काका, अहीं कहू जे ई उचित होइ, जइ समाजक पाग अकासमे टेकने छी तइ समाजक लोककेँ कियो खाधुर तँ कियो भोजनभट्ट कहै?”
नीक जकाँ लालकाका नै बुझला। दोहरौलनि- कनी फरि‍छा कऽ बाजह ने?
काकाक आशा पाबि‍ अपनो आशा जगल। कहलियनि- काका अखूनका जे बि‍आहक बरियाती भऽ गेल अछि तेकरा गामक सभ दुि‍र कऽ देलक हेन, ओकरे देखा-देखी हमहूँ दुि‍र कऽ दिऐ से नीक हएत?”
बिनु बात बुझने टोकारा दैत लालकाका कहलनि‍-से तँ नहियेँ हएत। मुदा बात कि भेलह से ने बाजह?”
कहलियनि- काका, देखते छिऐ जे अखुनका बरियातीमे बेसी गोटे ओहने रहैए जे चूड़ा भूजा तड़ल माछ आ दूटा बोतल घरवारी दिसि‍सँ पबिते छाती उघारि कऽ जश दऽ दइ छै, किछु गोरे सए-दु-सए रसगुल्ला खा पुरा जश दऽ दइ छै, मुदा हम तँ तइसँ भिन्न छी। भोजनक मुख्य अंग गोरस छी। एक तँ ओहुना घरवारी पाँच किलोसँ बेसी दहीक ओरियान नहियेँ करै छथि, तेकरा जँ छुच्‍छ कऽ दइ दि‍ऐ तँ हम खाधुर भेलौं कि समाजक इज्जति‍ रखै छिऐ। तइले लोक एना किअए बजैए।


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प्राज्ञ कापड़ि केशवलाल बाखं शिरपा सम्मानसँ सम्मानित रिपोर्ट पूनम मण्डल

प्राज्ञ कापड़ि केशवलाल बाखं शिरपा सम्मानसँ सम्मानित
नेपाल भाषा परिषद मैथिली भाषाक चर्चित साहित्यकार एवं प्राज्ञ राम भरोस कापडि भ्रमरकेँ केशवलाल बाखं शिरपा सम्मान(पुरस्कार)सँ सम्मानित कएलक अछि ।
राष्टिूय भाषामेसँ एक मैथिली भाषामे उत्कृष्ट साहित्यिक रचनासभ कऽ मैथिली भाषा साहित्यक श्रीवृद्धिकेँ लेल कएने योगदानक कदर करैत परिषद प्रसिद्ध कथाकार केशवलाल कर्माचार्यक नाममे स्थापित ( केशवलाल बाखं शिरपा ) सम्मानसँ हुनका सम्मानित कएने अछि । ओहि अवसर पर प्राज्ञ कापडिकेँ दश हजार नगद एवं सम्मानपत्र प्रदान कएल गेल छल ।
कविकेशरी चित्तधर हृदयक १ सय ७म जन्म जयन्तिक अवसरपर नेपाल भाषा परिषदक अध्यक्ष फनिन्द्र रत्न ब्रजाचार्यक सभापतित्वमे मंगल दिन सम्पन्न समारोहमे प्राज्ञ भ्रमर उक्त सम्मानसँ सम्मानित भेल छथि । सम्मान ग्रहण करैत प्राज्ञ भ्रमर मैथिली आ नेपाल भाषाक सम्बन्ध मध्यकालेसँ निरन्तर रहल आ मैथिली भाषा साहित्यक अनेको प्राचिन अभिलेखसभ नेवारी लिपीक विभिन्न संग्रहमे संग्रहित रहल बतौलनि ।
राज्य पक्षसँ अन्यायमे परल अन्य भाषा संगहि ई दुनू भाषासभ अपन अस्तित्वक रक्षाकेँ लेल निरन्तर संघर्षरत रहल सेहो बतौलनि । विक्रम सम्बत २००७ सालमे स्थापित नेवारी भाषा साहित्यक अग्रणी संस्था नेपाल भाषा परिषदसँ मैथिली भाषाक साहित्यकारकेँ प्रदान कएल गेल ई सम्मान पहिल बेर अछि ।

ओहि अवसर पर नेपाल सम्बत ११३२क भाषाथुवा पुरस्कार प्रा. प्रेम शान्ति तुलाधर, २५ हजार राशीक चित्तधर सिरपा पुरस्कार गायक भृगुराम श्रेष्ठ, १५ हजार राशीक ठाकुर लाल सिरपा पुरस्कार निवन्धकार सुरेन्द्रमान श्रेष्ठ आ मोतीलाल सिरपा पुरस्कारसँ अन्तराष्ट्रिय भिक्षु संघकेँ सेहो सम्मान कएल गेल छल । ओहि समारोहमे परिषदक उपाध्यक्ष प्रा. शुवर्ण शाक्य, महासचिव नवीन्द्रराज जोशी, परिषदका सदस्य नरेशविर शाक्य सहितक वक्तासभ मातृभाषाक साहित्यमे योगदान देनिहार संघ संस्थाकेँ राज्य वेवास्ता करबाक क्रम गणतन्त्र अएलाकबादो नहि रुकल प्रति चिन्ता व्यक्त कएने छलथि ।
 


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उमेश मण्‍डल, ि‍नर्मली, सुपौल।
लघुकथा
जीवि‍ते नर्क

सोन-रूप जहिना आगिक ताउ पाबि गलए लगैए तहिना आत्म ग्लानिसँ गलैत राधामोहन ब्रहमस्थान पहुँचल। तेसरि‍ साँझक समए रहै। पहिल साँझसँ जे गामक माए-बहि‍न सभ आबि-आबि काँच माटिक दिआरी नेसि‍ साँझ दैत आएल छेली ओ दोसरि‍ साँझ टपैत-टपैत पतरा गेल छेली। यएह सोचि राधामोहन तेसर साँझकमे पहुँचल छल जइसँ कियो देखए नै। किछु मानेमे मुहूर्तो नीक छलै। एक तँ एकान्त, दोसर अन्हार आ तेसरि‍ देखिनिहारो-सुनिनिहार नै। ब्रहमस्थानक मुहथरि लग आबि राधामोहन अँटकि गेल। अँटकि कि गेल जे पएर ठमकि गेलै। चारूकात आँखि उठा तकलक तँ अन्हारमे ने बेसी दूर देखलक आ ने अन्हार छोड़ि किछु आन देखेलै। मन मानि गेलै जे ने कियो देखिनिहार अछि आ ने सुनिनिहार। बाहर अन्हारमे स्थानक चारूकात कुकुर सभ अपन-अपन सीमानक चौकसी‍ नीनभेर भऽ करैत रहए। नीनो केना नै अबि‍ते, भिनसुरका दुधक ढार तँ वएह सभ ने पीबो करैए आ पटका-पटकी करैत नेहबो-थकबो करैए। खेतिहर जहिना नीक उपजैत खेतक आड़ियो धकिया खेते बनबए चाहैए आ अधला उपजा भेने नीको खेतकेँ परता-परता परतीए बना दइए जइसँ बाट-बटोही बीचे खेत देने रस्तो बना बीचे-बीच चलए लगैए तहिना राधामोहन अपन कएल काजक ग्लानिसँ धकियाइत-धकि‍याइत देवालय पहुँच गेल। हीयकेँ हारैत आगुमे ठाढ़ केलक। जेना-जेना भीतर प्रवेश करैत गेल तेना-तेना मनो पसि‍झैत गेलै। अंतमे एहेन भेलै जे धुँआ बनि अकास उड़त आकि पाथर बनि पानिक पहाड़ बनत तइ गुनधुनमे पड़िगेल। दुनू हाथ जोड़ि बाजल-
हे बरहमबाबा, अपने यमराजकेँ कहियनु जे जीवि‍ते नरक पठा दथि। जहिना अपन मित्र संग तहिना संकल्पोक हत्यारा छी; हत्यारा छी।
कहि राधामोहन महादेव जकाँ ताण्डव नाच-नाचए लगल।
राधामोहन आ वि‍समोहन बच्चेसँ लंगोटिया संगी। एक्केठाम दुनूक घरो छै। बाध-बोनसँ लऽ कऽ घर-आंगन धरि संगे रहै छल। महाविद्यालयक अभावमे दुनू गोरे मैट्रीक पास कऽ रहि गेल। आन-आन विषए जे जहिना पढलक से तहिना ससरि‍ गेलै मुदा समाज अध्ययनक टिकाउ विषय, टिकल रहलै। जइसँ दुनू मिलि‍ अपन पहि‍चान आ संक्लपकेँ मजगूत बनबैमे गारि‍-गरौबलिसँ लऽ कऽ मारि मरौबलि धरि करबो केलक आ कएक बेर जहलो गेल आएल अछि‍।
जहिना लड़ाइ लड़ि जहल गेनिहार जेल जेनाइकेँ अराम करब बुझैए, सएह अखैन धरि ईहो दुनू गोरे बुझैत आएल छल। एक्के जातिक राधामोहनो आ विसमोहनो मुदा दुनूक बीच दू दि‍यादी। ओना दुनू दियादीक बीच पुस्तैनी झगड़ा चलि अबै छलै मुदा दुनूक दोस्ती तेकरा मेटा जकाँ‍ देने छलै। जे पछाति‍ आबि‍ कऽ खेनाइ-पीनाइ, बर-बरियाती सभ चलए लगलै। ओना, नवका तूरकेँ पछि‍ला बात ने कियो कहनिहार आ ने कियो बुझबो करैत। मुदा जहिना गहींरगर खादिकेँ ऊपरका खर-पात छि‍ल-छालि‍ कऽ भरलापर ऊपरसँ भरल बुझाइए‍, मुदा हाथीकेँ के कहए जे धि‍यो-पुताक पएर चपि‍ जाइ छै तहिना राधामोहन-वि‍समोहनक दियादीक बीचक खादि ऊपरसँ तँ चिक्कन बनि गेल छेलै मुदा भीतरसँ भि‍‍तराएले छल।
विसमोहनक पितियौत भाए मनमोहन मुम्‍बइमे बीस बरखसँ नोकरी करैत आएल अछि‍। एक परिवार रहने घराड़ीक बँटवारा भागे भाग भेल छलै, जइमे दुनूक घरो आ बाड़़ीओ-झाड़ी छेलै। ओना दुनू परिवारक घराड़ी रोड पकड़ैए मुदा विसमोहनक घराड़ीक बगलमे तीन-बटिया, जैपर दसटा दोकान-दौरी बैसि चौक जकाँ बनि‍ गेल। चौक भेने बजारक मुँह खुगल। एक्के खेत रहितो एक भाग मुहथरि बनि गेल आ दोसर गोरथारी। जइसँ दुनूक महतमे घटी-बढ़ी भऽ गेलै। मुम्‍बइमे रहने मनमोहनक विचारमे सेहो बदलाउ एलै। जइसँ नोकरी करैसँ नीक अपन धंधा मनमे एलै। स्वाभाविको छेलै, औद्योगि‍क शहर मुम्‍बइ आ तेतए मनमोहन बीस बरख बि‍तेने अछि‍। मुदा अपन जिनगी तँ तेना ओझरा गेल छै जे साठि बरखसँ पहिने छोड़त तँ पेन्शनकेँ के कहए जे आनो-आनो जमा-जुमी डूमि‍ जेतै। तँए मनमोहन अपन विचारकेँ बेटा ऊपर केन्‍द्रि‍त केलक। निर्णए कऽ लेलक जे बेटाकेँ औद्योगि‍क शिक्षा दियाएब। ओना उद्योग तँ रंग-बि‍रंगक दुनियाँमे पसरल अछि मुदा अपन मनोनुकूल उद्योग बेसी नीक हौइ छै। सएह केलक।
बेटाक पढ़ाइ छोड़लापर मनमोहन सभतूर गाम-आएल। जइबेर गेल रहए तइबेर एक्कोटा दोकान नै बनल छेलै। अखन प्रधानमंत्री योजनाक सड़क, तीनटा तीनू कोनपर चापाकल आ एक-आध घंटा बैसैक जोगार सेहो बनि गेल जेकरा देखि‍ मुम्‍बइक चौराहा मनमोहनक मनमे नाचि उठलै। मनमे उठि‍ते अनैतिक बाट ताकए लगल। मनमे एक्केटा  मंशा जे विसमोहन हमरा दिस चलि जाए आ हम चौक साइड चलि आबी। तीन कट्ठा चौकक जमीन। लाखकेँ के कहए जे करोड़ोक हएत। करोड़क कारोबार लेल दु-चारि लाख छिटैए पड़ै छै। जाबे से नै हेतै, ताबे चिड़ै-चुनमुनी पछौर केना केना लगल।
गाम तँ अखनो वएह गाम छी जे चुड़ा-दहीक संग चीनी मिला तीत-मीठ गिरैत आएल अछि। फील्डपर दस गोटेकेँ कोनो भाँजे अपना दि‍स केनाइ, यएह अखुनका पनचैती छी। ई बात मनमे अबि‍ते मनमोहन गामक खौकार पंचकेँ पटिया घराड़ी उनटबैक योजना मनमोहन बनेलक। सँझुका नढ़ि‍या जहि‍ना‍ पू सुनिते सभ पुपुआए लगैए तहि‍ना एक स्वरमे सभ पंचैति‍या ग्राउण्‍ड बना लेलक जे जखनि‍ कानूनी बँटवारा नै छि‍ऐ तखनि‍ ओ बँटबरे ने भेल। मौखिक बँटबाराक कोनो मानि‍ नै! भलहिं वेद-शास्‍त्रक अधार-बात किअए ने हुअए।
पाँच परिवारक दियादी विसमोहनक। असगरे दुनू बापूत विसमोहन गाममे रहैए आ बाँकी सभ दि‍याद मुम्‍बइएमे। ओना दुनू बापूत मनमोहन बुफगरो।
राधामोहन सेहो पनचैतीमे आएल। नढ़िया जेरमे अपनो नढ़ि‍या बनि वि‍समोहनक संकल्‍पि‍त मि‍त्र राधामोहन चुपे रहल। अपन स्थिति कमजोर हाेइत देखि वि‍‍समोहनक मन राधामोहनकेँ ओइ नजरीए देखलक जेहेन बलिदान होइत समए छागरक होइ छै। मुदा संकल्पित जिनगी। अपन हँसैत अंत देखैक जिज्ञासा करैत वि‍समोहन राधामोहनकेँ पुछलकै-
आन जे हुअए। मुदा तूँ तँ संकल्पित जिनगीक संगी छि‍अँह, मुँह किअए बन्न रखलँह?”
वि‍‍समोहनक मनक बात बुझितो राधामोहन दियादी आड़ि‍ ठाढ़ कऽ ओही आड़ि‍मे अरिया गेल। भगैत-पड़ाइत संकल्पित संगीकेँ देखि‍ वि‍समोहनक मन संकल्पकेँ अगुअबैत धधकि गेल, बाजल-
जइ धरतीपर झूठ-फूसमे लोक अपन बलि चढा रहल अछि तैठाम अपनो जुल्‍म अपने नै रोकि पाबी! ई तँ जिनगीकेँ धाेखा देनाइ भेल। ई बात सत् जे बलिदान कतए होइ...
बमकि कऽ फेरि बाजल-
हम पनचैती नै मानब। ई धरती हमर बलि मंगैए।
चढ़ा-उतरी बजनिहारक बोन गाम। तेना ललकारा भरलक जे दुनू बापूत मनमोहन, दुनू बापूत विसमोहनकेँ मारि लठि‍यौलक। जे आठम दि‍न जाइत-जाइत विसमोहन खतम भऽ गेल।


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