३.८.
सत्य नारायण-लहकैत समाज
जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
४ टा गजल
1
एते बाझल किए रहै छी अपनामे अहां
अबै छी बडी-बडी
राति क’सपनामे
अहां ।
चलि जाउ दिल्लीए कि मुंबई कि बंगलोर
रहब एसगर कोना क’ पटनामे
अहां ।
होइए साल भरि पर भेंट दूनू गोटेकें
जखन कटनीमे छी हम, सतनामे
अहां ।
भेट जेता शकुनी, दुर्योधन
आ धृतराष्ट्र
मिला क’देखबै
आब कोनो घटनामे अहां ।
ओकरा किए मारै छिऐ मुक्कासं अहां भाइ
जेहने छी तेहने देखब अयनामे अहां ।
गरमीमे जल तं भइए जाइए अमृत
चाहे लोटामे राखि पीबू कि बधनामे अहां ।
विवाहकें विवाहक गरिमा करू प्रदान
किए फंसल छी कपडा आ गहनामे अहां ।
;सरल वार्णिक बहर, वर्ण-16
2
जंगल आओर पहाड देखलौं जीवनमे
गुजगुज राति अन्हार देखलौं जीवनमे ।
मोनक नीलगगनमे छिटकै बिजलोका
ममता आ स्नेह-
दुलार देखलौं जीवनमे ।
मन आंगनमे चारूधामक दर्शन भेल
मूल्यक हाट आ बजार देखलौं जीवनमे ।
नृत्य, गीत,संगीत,चौल और हंसी-ठहक्का
नोरक कतेक टघार देखलौं जीवनमे ।
मारि-पीट,दंगा आ फसाद, छीना आ झपटी
आदर आओर सत्कार देखलौं जीवनमे ।
देखलौं गंगा बहै छली अपने अन्तरमे
पोखरि आ धार-
इनार देखलौं जीवनमे ।
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-16
3
अपन कहैए, सुनैए
हमरा
किछुए लोक चिन्हैए हमरा ।
सूप जं हम त चालनि अछि ओ
तैयो मूंह दुसैए हमरा ।
जकरे खातिर चोरि केलौं
सेहो चोर कहैए हमरा ।
एसगरमे तं पएर छुबैए
लेाक ल’ग
गरियबैए हमरा ।
कांट छीटि क’ गेल बाट
पर
आब हाल पूछैए हमरा ।
चोर चिकडि क’ बाजय
जखने
तामस तखन उठैए हमरा ।
हम मूससं बाघ बनेलियै
उनटो करब अबैए हमरा ।
मात्रा-15 प्रत्येक
पांतीमे
4
थिक युद्धक मैदान ई जीवन,कोना बढू हम
अपने मित्रक मृत्युक कारण, कोना बनू हम
सोझांमे तं छथि दादा-दादी,कक्का-काकी,भैया-भैाजी
सभसं खेत-पथारक
खातिर कोना लडू हम
राज-पाट की
करब जखन लोके नहि रहतै
भीषण नर-संहारक
पर्वत कोना चढू हम ।
भीख मांगि बरू खाएब,लडब नहि
भैयारीमे
हे मधुसूदन गाण्डीव हाथमे कोना धरू हम
हे केशव, कृपया
हमरा दुविधासं मुक्त करू
हमर बुद्धि नै काज करय,
की कोना करू हम
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-18
१.
मुन्नी कामत-गीत:- जट-जटिन २.
शान्तिलक्ष्मी चौधरी-नेताजी
१
मुन्नी कामत
गीत:- जट-जटिन।
जटिन- छोड़ि मिथिला नगरिया
बांधि अपन ई पोटरिया
तूँ कतए जाइ छँह रे..........!
जटबा कतए जाइ छँह रे...........!
छोड़ि अपन सजनियाँ
तियाग कऽ सभ खुशियाँ
तूँ कतए जाइ छँह रे
जटबा कतए जाइ छँह रे...........!
जट-
जाइ छियौ गे
जटिन देश-गे-विदेश
जटिन देश-गे-विदेश
भऽ गेलैए गैर आब
अपन प्रदेश!
साड़ी अनबौ गे जटिन
गहना अनबौ गे..................
साड़ी अनबौ गे जटिन
गहना अनबौ गे
बौआ-बुच्ची
ले सेहो
नव अंगा अनबौ गे!
जटिन- नै लेबो रे जटबा
विदेशक सनेस
नै लेबो रे जटबा
विदेशक सनेस
हमरा तँ चाही जटबा
तोेहर संग आ सिनेह!
जाट-
नै रोक गे जटिन
हमर तँू डेग
कमेबै नै तँ केना
भरब सबहक पेट!
बौआ कनतौ गे जटिन
बुच्ची ललेतौ गे
बौआ कनतौ गे जटिन
बुच्च्ी ललेतौ गे
जरतौ जे पेट जटिन
कोइ नै सोहेतौ गे।
जटिन- घुर-घुर रे जटा
सुन-सुन रे जटा
जिद्य छोड़ रे जटा
कोइ नै ललेतौ रे जटा
हरे जटबाऽऽऽऽऽऽऽ
रे मेहनति करि नुन रोटी खेबै
मुदा संगे मिथिलेमे रहबै रे जटा..............!
चल-चल रे जटा
अपन देश रे जटा
अपन खेत रे जटा
मरूआ रोटी रे जटा
नुन रोटी रे जटा
हे रे जटबाऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
तूँ धान रोपीहेँ हम जलखै
लऽ कऽ एबौ रे जटा.................!
जटा-
सुन-सुन गे
जटिन
हमर सजनी तूँ जटिन
घरक लक्ष्मी तूँ जटिन
हमर जिनगीक गाड़ी तूँ जटिन
हमर ज्ञानक खान तूँ जटिन
हे गे जटनी ई ई ई...।
तूँ जीतलँह हम हारलौं गे जटिन
छोड़ि अपन देश
नै केतौ जाएब गे जटिन
रहतै मिथिलेमे
सदैव अपन बास गे जटिन
हे गे जटनी ई ई ई...।
गै दुनू गोरा मिलि
मेहनति करबै तँ जिनगी स्वर्ग हेतैय गे जटिन।
जटिन-
हमर साजन तूँ जटा
तोहर सजनी हम जटा
हे रे जटबाऽऽऽ...।
दुनू गोरा हँसैत
अहिना जिनगी काटब रे जटा....................।
२
शान्तिलक्ष्मी चौधरी
नेताजी
बाप रे बाप!...
करैत छै कोना फड़फड़
उड़ैत फतींगा जकाँ
फोड़ि देतय कखन ककर आँखि
खोखरि लेतय कखन ककर मुँह
काटि लेतय कखन ककर ससरी
मारि देतय तरछेब्बा लटकल तरकुल्ला
गाछ चढ़ल पसीबा जकाँ
रहो वा भाँड़मे जाओक कुलतूर बंशतरू
अपन लबनी भरैक चाही बरू
बाजय के छेबता कटाह
बपुतगर लाठीक जोर तेँ मोन छन्हि टर्रबताह
पंचायत खेलकै, बिलौक खेलकै, बैंको खेलकै
थानो संग गिटपिटक तँ छैक सैह हाल
जतय धौइधेक जुआइल व्यवस्था
फँचैंइरे नै बजेतै फच-फच गाल!
ओह, ललकारामे ओज की?...
जेना स्वयं होइथ लाल-बाल-पाल, सुभाषचन्द्र बोस
कतय की बाजथि तकर छैक कोन होस
धनिकायमे शोभय नेहरू सन शुभ्रवस्त्र
ठोढ़य पर साजल फुसि-फास संविधान, विधेयक, अध्यादेश,
योजना, परियोजना, पंचायतीराज, लोकतंत्र आदिक
अस्त्र
गिरगिट तँ धरतै शाखेक नै रंग
कखनो सुनटा, कखनो उनटे बहै
गंग
जेहने समय-परिस्थिती तेहने दर्शन
खन लोहिया, मार्क्स, लेलीनवादी
खनेमे स्वधर्म, संस्कृति, राष्ट्रवादी,
दरैप गेलय मोन तँ लिअ कतैक लेब गाँधियेक
मंडन
कुमारबार बेटाकेँ परिवार द’ गरीबीरेखामे
नौवेक स्कोरिंग
अपन खेत आ बाड़ी पटबै सातटा बिलौकिया
पंपिंगसेट-बोरिंग
इंदिरा-आवास, वृधापेंसन, फसल-क्षतिपुर्तिक बँटवारामे
पिछुवारक घाम टघरि जाइन्हि एंड़ी
जेना चिल्हौरे-गिद्धक सुभागे
खसल हो मरी
नेताजी छथि ओखन भाजपाक महामंत्री
दसे दिन पहिने रहथि जनु लोकजनशक्तिक
अधिसंतरी
कियो कहैत छलाह एम्हर भेलन्हि भितरिया जद-यूसँ साँठगाँठ
ओहिदिन लोलियाबैत काँग्रेसिया-पेनियाँकेँ करैत
छलाह बाँस
राजद केर मित्रभाई संग छैन्हि सेहो उठक-बैठकी
राजनीतिक जोकरलोकनिक संगहि फाटय पानपराग-चुटकी
पार्टीधर्म, सिद्धांत, ककरो सरकारसँ
कथीक सरोकार
ओतहि जयकारा जतय बिलहैय एक्कोठोप पंचमकार
मुँह परिछ बाजताह तँ बुझेता, अहा! कतेक ज्ञानीलोक
टोकि दिओ मध्यकाल, तँ लागि जाइन्हि
क्षणहिमे टोक
की करबै, आइकाल्हि रहलै कतेक गोटेक बातेक ठर-ठीक
मुदा विसबास दियाबए रहि-रहि छुवत माथक
टीक
भेटत एहने ठोपधारी हिनू जे फुसि बाजत
गटगट
मियाँ नमाजी हजारबेर दाढ़ी छुबि खाइत
सप्पत
नेताजीतँ कहैत छथि अपनाकेँ राजनीतिक चाणक
मुदा भरिगामक लोक कहन्हि हिनका लाइत खाइत बानर
जगदानन्द झा ‘मनु’
ग्राम पोस्ट - हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
के पतियाएत
के पतियाएत
ई कएकरा कहु
सभक आँखिमे
पसि कए कोना रहु
सदिखन आँगुर
हमरेपर उठल
कतेक परीक्षा
आबो सहु
जतए ततए हमहीँ
लूटल गेलहुँ
घर बाहर सभतरि
हमहीँ ठकेलहुँ
हम नारी नहि
नरकेँ भोग्या
सबदिन हमहीँ
जितल गेलहुँ
झूठ्ठे घर-घर
पूजल जाइ छी
मुड़ी मचौरि हम
भोगल जाइ छी
आबू रावण
बनि भाइ हमर
रामसँ पाछू
छुटल जाइ छी |
*****
मनोज कुमार मण्डल
देशी कौआ
मन परि रहल अछि ओ दिन
जहिया माएक हम छोट नेना रही
माएक आँचर तर खेलैत-धुपैत रही
माएक बोल हमर धियान एक रहै छेलए
जखने बजै अँगनामे कौआ
बुढ़िया दादी बाजि उठै छेली
पाहुन एता एना लगि रहल अछि
सुनिते मन गद-गद भऽ जाइ छेलए
आब तड़ुआ-तरकारी के पुछैए
दही-चीनी
सेहो भेटत
दिन भरिमे कएक बेर पुछिऐ
माए आइ कखनि पाहुन औता
आब ओइ दिनक यादेटा रहि गेल
देशी कौआ मरि-मरि गेल
कारकौआ गिरीहबासु भऽ गेल
आइक कौआ बाजब ई भऽ गेल
अमंगलक सनेस दऽ गेल
कौआ बजिते
कनियाँ कहै छथि
ढेप लऽ एकरा भगाउ
हम पुछलियनि कि कहै छी
बिनु भगौने देशी कौआ भागि गेल
की कारो कौआकेँ बिदाहे कऽ देब
कौआ देखब सपना कऽ देब।
गजल
-------------------------------------
नजरिमे नजरि तऽ मिलाक देखू
दीप नेहके तऽ जराक देखू
दिल अखन कली अछि प्रिय
अहाँकें
ओ कली अहाँ तऽ खिलाक
देखू
चेहरा अहाँक चमैक जेतै
आँखिमें अहाँ तऽ बसाक
देखू
दोहराक भेटत नहि जवानी
मोनमें उमंग जगाक देखू
बरसि पडत सावन जीनगीमें
हमर लेल रूप सजाक देखू
२१२-१२११२-१२२
जगदीश प्रसाद मण्डल
सुफल काज......
सुफल काज जेते जिनगीमे
सफल-सुफल कहबए लगै छै।
फले-फल वन-वन बनैत
बगिया बाग बनए लगै छै।
बगिया बाग बनै लगै छै।
सुफल काज......।
पूस पूसौंट कहि-कहि
मसिया फल पेबए लगै छै।
अधिया हस्त अधिया अदरि
पख मसिया पेबए लगे छै।
पख मसिया पेबए लगे छै।
सुफल काज......।
पखिया पख पखड़ि-पखड़ि
सतिया सात सतिना लगै छै।
अठिया आठिक आड़ि बनि
हपता-सपता बनए लगै छै।
हपता-सपता बनए लगै छै।
सुफल काज......।
काम-धाम कि धाम-काम
मन मंदिर मनबए लगै छै।
अगलि-बगलि लतरि फड़ि
अमरलत्ती कहबए लगै छै।
अमरलत्ती कहबए लगै छै।
छुच्छ हाथ मुँहमे जहिना
किछ ने दऽ पाबि पबै छै।
वेद भेदन भेद ने बूझि
कर्मक फल पबैत रहै छै।
कर्मक फल पबैत रहै छै।
सुफल काज......।
राजदेव मण्डल
दू टा कविता-
राजदेव मण्डल
उलहन
“सभ तँ
रहै छै अहींक लग-पास
हम तँ अबै छी चासे-मास
पड़ि गेल विपति भेलौं निराश
अकालक कारणे डहि गेल चास
दिन अदहा पेट राति उपास
मनमे छेलए जे पूरा हएत आस
भौजीक ताना सुनि आँखि भरल नोर
बेथासँ भरल मनक पोर-पोर
एक मुट्ठी देलासँ की भऽ जाएत थोर
आँखिसँ बहि रहल अछि दहो-बहो नोर
हमर नोर नै बनि जाए अँगोर
यौ भैया, एकदिन हमरो हेतै भोर
चुप्पी साधने खसौने छी धाड़
ऐ सम्पतिपर छै हमरो अधिकार
आगूमे ठाढ़ बालपनक पियार
नाता तोड़ि केना करब तकरार
कनैत जा रहल छी जार-जार
माए रहैत तँ करैत दुलार
अपने चास-बासपर करए पड़त आस
बाबाक बखारी आ धीयाक उपास।”
आपसी
“जिनगी
भरि दैत रहलौं फूल
आपस भेटि रहल अछि शूल
मन भऽ गेल बियाकुल
किअए भेटल ई डण्ड
कहाँ केलौं कोनो भूल
देहलो चीज नै देब
हम देने रही फूल
काँ केना लेब?”
“हमरा लग
वएह अछि तँ दोसर की देब
जबरदस्तीओ करब तँ आरो की लेब।”
“खुगि
रहल अछि मनक राज
सुआरथसँ भरल छल हमर काज।”
सत्य नारायण
लहकैत समाज --------
केखनो क’ मोन भटकि जाइए
केखनो मोन अटकि जाइए
आ केखनो मोन भरकि जाइए
मुदा की करू ,किछु ने सोहाइत
अछि
लोकक विद्रुप चेहरा
ओहिना देखाइत अछि
कियो ने भेटैत अछि ,ककरा कहबैक
के सुनत केकरा पलखैत
छैक
समाज वदरूप ओझरायल छै
लूटेरा लुटैत छै ,समाज देखैत छै
के बाजत केकर मजाल छै
सभ त’ लुटय मे अपने बेहाल छै
जे टुकुर टुकुर देखैत
छै ,ओ त’ लाचार छै
ओ की बजतै ओ त’ बेदम छै
साँस लैत छै बोल
निष्पंद छै
कतौ अकाल छै , कतौ दुर्भिक्ष छै
कतौ ठनका ठनकैत छै ,कतौ वज्र खसैत छै
मुदा जे निष्ठुर छै ,शैतान छै
ओकरा ल’ वज्रो आसान छै
ओहन लोक कहियो नहि
सुधरत
बैमानी ,शैतानी कहियो नहि बिसरत
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली
अनुवाद डॉ. शम्भु
कुमार सिंह द्वारा
पाखलो
बालानां कृते
बच्चा
लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही,
आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते
लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो
ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो
ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे
ब्रह्मा, दीपक
मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति!
अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं
हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन
सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने
चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु
कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत्
भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना
स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन
अहल्या, द्रौपदी,
सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा,
बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम-
ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा
लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये
सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे
वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र
२२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः।
स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी
उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश
कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन
करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा
त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे
ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’
नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक
उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद
ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण
करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पडला पर वर्षा
देथि, फल देय
बला गाछ पाकए, हम सभ
संपत्ति अर्जित/संरक्षित
करी।
विदेह
नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ
आगू
बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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