ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह' १३५ म अंक ०१ अगस्त २०१३ (वर्ष ६ मास ६८ अंक १३५)
ऐ अंकमे अछि:-
राम विलास
साहुक एगारहटा टनका
सुरेन्द्र 'शैल'
राजीव रंजन
मिश्र-गजल१-२
राजदेव मण्डल- डोलनी डाइन- (काव्य कथा)
मुन्नाजी-बाल हाइकू
कुन्दन कुमार
कर्ण-गजल
राजदेव मण्डल जीक पाँचटा कविता
राम विलास
साहुक कविता-के बँचेतौ तोहर जान
वसुंधरा-राजदेव मण्डल
रामदेव प्रसाद
मण्डल “झारूदार”-अभिनन्दन
इरा मल्लिक-गजल ( श्रृँगार.मल्हार )
राम विलास साहु-गीत-मोह-माया......
जगदीश प्रसाद
मण्डलक सबा दर्जन गीत
- दीप नारायण'विद्यार्थी'- गजल
बिन्देश्वर ठाकुर
अनिल मल्लिक-मैथिली गजल
बालानां कृते
इरा मल्लिक-बाल गजल
विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन
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विदेह
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ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती
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गौरी-शंकरक
पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
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राम विलास
साहुक
एगारहटा टनका
हँसैत फूल
देखि भौंरा कहए
नित्य रहब
दु:ख-सुखक संग
सूतब अहीं अंक
बात सुनिते
फूल भेल प्रसन्न
झूला झूलब
पवन संगे-संग
रहब उपवन
रहब वन
पीअब मकरन्द
मधुर रस
डुमल अंग-अंग
सुख-दु:खक संग
स्वर्ग मिथिला
जेहने माटि-पानि
तेहने गाम
खेत-खड़िहाँनमे
भरल धान-पान
अनपढ़केँ
दी अक्षरक वोध
पोथी पढ़ि कऽ
ज्ञानी बनि
ज्ञानकेँ
घर-घर बाँटतै
अज्ञानीकेँ दी
काज करैक ज्ञान
भूखलकेँ दी
दू रोटी भोर-साँझ
बनू नेक इंसान
आँखि मिला कऽ
सभ हाथ मिलबै
दिल मिलबै
नै कोइ, जौं मिलबै
दिलमे जग प्रेम
सभ जाितमे
छोट-छीन झगड़ा
अखनि धरि
जाति-सम्प्रदायमे
बँटल बौआइए
जन कल्याण
समाजक िनर्माण
शिक्षाक दान
देशक उत्थानमे
सभक जरूरी छै
धन लगाबी
समाज कल्याणमे
होइत रहै
आगूओ हित काज
बँटैत रहू ज्ञान
दहेज रूपी
दानव पहिने नै
आइ सबल
बेकार चक्करमे
बेचि कऽ लूटाइ छी
सुरेन्द्र 'शैल'
अभिसारिका
<><><><>
रवि रश्मि पावक दमकि कुंदन,
अंग गमकय सुरभि चंदन।
दृष्टि कज्जल चपल खंजन,
नटति रंभा इन्द्र
नन्दन।
चमकि हीरक जड़ित कंगन,
खचित मणि गर हार कंचन।
आभरण श्रुति पटल सज्जित
नासिका नग कनक शोभित।
मोहिनी पद चूड़ मोहय,
पीन कटि कुच शिखर सोहय
गहन कुंतल रंग श्यामल,
विटप चंदन भुजग लटकल।
दसन दाड़िम छिटकि दामिनि,
लचति कटि मुख मृदु
सुहासिनि।
लाल अम्बर वदन झलकय,
उदित रवि क्षिति रक्त
पसरय।
हास सखि मन आस जगवय,
पिय मिलन उर तार झनकय
धड़कि हिय फल-
विल्व डोलय,
निहुरि मुनि पुनि नयन
खोलय।
चलत नहुँ महि फूल विछवय,
वारि नीरद कलश छिलकय।
इन्दु कुमदिन मुख
निहारय,
अधर अम्बु धनु-शक्र भासय
मेनका-रति दर्प खंडित,
चूक तप विधि कयल दंडित।
व्योम खग उड़ि मुदित
कुंजन,
सुमन भम भुमि भमर
गुंजन।
नयन मुग्धित रूप निरखत,
'शैल' उर आनन्द बरसत।
सुरेन्द्र शैल,भदहर,दरभंगा।
सासुर
<><>
केकरो सासुर रसगर हेतै,
हमर तित्त कसाय।
जँ वियाह सँ पहिने जनितहुँ,
जैतहुँ कतहु पड़ाय-
वियाह एहि गाम ने
करितहुँ,
भले कुमारे रहितहुँ।
पहिलवेर जे सासुर
गेलहुँ,
सकरी मे नहिं टिकट
कटेलहुँ।
उगने मे टीटी छल ठाढ़,
करिया भुच्च लगै यमराज।
हम बुद्धू ओ छल बुधियार,
सोझे ठकलक एक हजार।
एखनो से जे मोन पड़ैयै,
भितरे-भीतर कूह उठैयै।
कहू एनामे सासुर जाई,
सासुर भेल बलाय॥वियाह॥
रहै सेहन्ता एहि फगुआ
मे,
सासुर मे जा रंग खेलाई।
सरहोजिक हाथक पूआमे,
भेटत रस-रंग भरल मलाई।
रंग-विरंगक सारि भरल छथि,
कियो 'सरही' कियो 'कलमी' आम।
कियो 'सिनुरिया' 'काँचभोग' छथि,
बम्बई-सिपिया-केरवी नाम।
किनको बोल ओल सन कब-कब,
कियो लौँगिया मिरचाई।
कियो कवछुआ लागथि भक-भक,
कियो छथि ऐंठिलाहि
॥वियाह॥
फगुआ दिनक कहू की हाल,
हमरा जी के भेल जंजाल।
भोरे उठि मड़वा पर ऐलहुँ,
नहिँ जनलहुँ जे केना
धरैलहुँ।
धमधुसरि सरहोजि पकड़लनि,
जेठकी-छोटकी चित्त खसौलनि।
मोबिल लेपलनि मझिला सार,
सारि देलनि गोबर के
ढार।
सासुर छाती पर बैसल छल,
नीचा हम कोकियाय
॥वियाह॥
रहै मोन जँ सासुर जैवनि,
दर्जन भरि पूआ हम
खैवनि।
माउअसक वेरि ने मूड़ी
उठैवनि,
दही सोझ मटकूड़ी खैवनि।
मधुर पचासे दैवनि उड़ाय,
दहिवाड़ा सभ देत पचाय।
मुदा कपाड़ ने एतहु
छोड़लक,
सभ आशा पर पाथर फोड़लक।
मोनक आस मोने रहि गेल,
सारक कैल उकठ लहि गेल।
जाय माय के फुकलनि कान,
संकट मे छथि पाहुन,जान।
भोरे उठि ओ भांग छनौलनि,
चिलम चारि दुपहरे
चढ़ौलनि।
तइपर पीलनि खूब शराब,
तैँ भय गैलनि पेट खराब।
सूनि सासु गेली पतियाय
॥वियाह॥
सारक फूसि सँ भय गेल
रोग,
प्रतिफल, व्यंजन भेल अभोग।
हुनका आगू सजल सचार,
मरसटका छल हमर कपार।
देखि आँखि सँ टघरल नोर,
मुँह दुसै छल केराक
झोर।
राति अहुछिया काटि
वितैलहुँ,
भिनसरवे मे गाम
पड़ैलहुँ।
मारी मूँह एहेन सासुर
केँ,
अमृत घंट भरल माहुर
केँ।
कहू कोन हम फूसि बजै छी,
अपना मोनक व्यथा कहै
छी।
करी कामना सभ युवजन केँ,
हमरे सासुर होनि वियाह।
ओल-कवछुआ-लौँगिया मन मे,
'शैल' सरित रस-रंग प्रवाह।
राजीव रंजन
मिश्र
गजल-१
भेटत नै किछु ठहरिकँ जिनगीक बाटमे
ताकब नै किछु लचरिकँ जिनगीक बाटमे
जीते बा हार हाथ खेलब जँ खेल ई
हासिल नै किछु खहरिकँ जिनगीक बाटमे
किछु चक्र थिक दैव केर जे डेग डेग पर
बाँचब टा नित रगऱिकँ जिनगीक बाटमे
कानब सदिखन दहो बहो नीक गप्प नै
हारब नै हिय हदरिकँ जिनगीक बाटमे
राखब "राजीव" सोझ मोनक विचार टा
चमकत चन्ना पसरिकँ जिनगीक बाटमे
2222 121 221 212
राजीव रंजन
मिश्र
गजल-२
भेटत नै किछु ठहरि क' जिनगीक बाटमे
ताकब नै किछु लचरि क' जिनगीक बाटमे
जीते बा हारि हाथ खेलब जँ खेल
ई
हासिल नै किछु खहरि क' जिनगीक बाटमे
किछु चक्र थिक दैव केर जे डेग डेग पर
बाँचब टा नित रगड़ी क' जिनगीक बाटमे
कानब सदिखन दहो बहो नीक गप्प नै
हारब नै हिय हदरि क'
जिनगीक बाटमे
राखब "राजीव" सोझ मोनक
विचार टा
चमकत चन्ना पसरि क' जिनगीक
बाटमे
2222
121 221 212
राजदेव मण्डल
डोलनी डाइन- १ (काव्य
कथा)
चारि-पाँचटा घसबाहिनी
छीटा भरने घास
छिल-छिल
फुस-फुसा कऽ गप करैत
नजरि मिलिते हँसै
खिल-खिल।
एक गोटे घास
राखि
बजल गाम दिस
ताकि-
“गै, जल्दी चल
ऐठामसँ
बात ले हमर मानि
आबि रहल छौ गाम
दिससँ
डोलैत डोलनी
डाइन
नचैत दुपहरिया
रौद
बाधमे नै छै
एकोटा लोक
एहने सुनहटमे
होइ छै
जंतर-मंतर जाप-जोग
एम्हरे आबै छौ
चट दऽ उठा ले
घास
निकल ऐठामसँ पट
दऽ
नै तँ चलि एतौ
पास।”
सबहक मुँहपर डर
लगल नाचए
डाइन-जोगिनक कथा मन
जेना बाचए।
एकटा घसबाहिन
उठल देह तानि
हाथमे हँसुआ
लेने, बजए लगल
फािन-फािन-
“केते देवे सेवे भेल छेलै एगो संतान
तेकरो छूटि
गेलै परसूखन परान
लहासकेँ गाड़ने
छै धारक कोरपर
हमरे बड़का कित्ताक
अन्तिम छोरपर
आइ उखारतौ ओही
लहासकेँ
तब भेटतौ एकरा
चैन
दुपहरियामे आबि
रहल छौ
तँइ झुलैत ई
डोलनी डाइन
सभ गोटे नुका
रहब धारक कातमे
डा नै हँसुआ
रखने रहब हाथमे
आइ भइखौकीकेँ
देखबै सभटा
कुकरम
दस लोकमे कहबै
तब हेतै एकरा
लाज-शरम
नै छोड़बै एना
करेबै पंचसँ जरिमाना।”
सबहक भऽ गेलै एक
विचार
तुरत्ते सभ भऽ
गेलै तैयार।
डोलनी डाइन- २ (काव्य
कथा)
घसबाहिनी सभ कऽ
देलकै अनघोल
सुनै सभ अचरज
भरल बोल।
“जेकरा नै छै बिसवास
उ कऽ लिअ जाँच
अपनेसँ देखि लिअ
ई गप छै साँच
डोलनी डाइन करै
छै नँगटे नाच
चढ़ि कऽ हाँकै जीते
गाछ
लहासक साथ धारक
कात।”
डर नाचै सबहक
माथपर
मुड़ी डोलाबै एक-दोसराक बातपर
गामक फरेबी और
उचक्का
करए लगल सभ घोल-फचक्का
औरतिया सबहक
अलगे ताल
आँखि नचाबैत
बनल वाचाल।
“अनकर जा बच्चाकेँ
खाइत नै होइ छै
डर
अपना-अपना धिया-पुताकेँ
सबेरे घर कर।”
गामक पंच आब की
करतै
बढ़ि गेलै बात
तँ बजै पड़तै।
“हौ, देखबा-सुनबामे छेलै
बड़ नीक
तरे-तर की छै तेकर
कोन ठीक
एना छोड़ि
देलासँ
समाज भऽ जेतै
उदंड
एकरा भेटबाक
चाही
ओहने कठोर डंड
जइसँ टूटि जाइ
एकर घमंड
थर-थरा जाए सभ देखि
कऽ डंड।”
सौंसे गाम भऽ
गेलै बिढ़नी बान
खबरि पसरि
गेलै काने-कान
पंचैती बैसतै डिहबारक
थान
साँझेमे देखि
लिहक पंचक तान।
डोलनी डाइन- ३ (काव्य
कथा)
दू परानी मिलि
केते करतै काम
जखनि करमे भेलै
बाम
सासु-ससुरकेँ पहिने
लेलकै छीनि
तब भेलै भीन
दियाद बनि
गेलै दुसमन
झगड़ा लेल करै
फन-फन
छीनि-झपट शुरू केलक
की अपन की आन
समैक फेरी लगिते
सभ भऽ गेलै
बेइमान
ऊपरसँ पति भऽ
गेलै बेमार
के करतै घर-बाहरक कारबार
करैत-करैत डोलनी
परेशान
अदहा बँचल छै
माथा
अदहा तनमे जान
असगरोमे गप करै
सोर पाड़ने बने
अकान
लोक कहै- गुणघिच्चू
डाइनक
इएह सभ छी पहिचान।
डोलनी डाइन- ४ (काव्य
कथा)
नै छेलै
एक्कोरत्ती बिसवास
पाँच बरिसपर
पूरा भेलै आस
जनमलै एकटा पूत
लगै छेलै जेना
मुरुत
किन्तु बात
भेलै अजगुत
सुतलेमे छूटि
गेलै ओकर परान
डोलनी फेर भऽ
गेलै निसंतान
लोक कहै-
“हमर गप ले मानि
बेटा दऽ कऽ सिखलकै
डाइन।”
बपराहड़ि काटैत
डोलनीकेँ
बन्न केलक घरमे
पाँच गोटे लहास
उठौलक
कान्हपर
धड़फड़मे।
चिचिआइत बजल
डोलनी घरसँ
कलेजा फाटल जाइ
छेलै तरसँ-
“हौ बाप लेने जाइ छहक हमर घन
एक्कोबेर मुँह
देखब भरि मन
काजक पाछू रहलौं
बेहाल
तब ने भेल हमर
एहेन हाल
कहियो भरि नैन
देखियौ ने भेल।
आब तँ सुगना उड़ियो
गेल।”
कियो ने बुझलकै
दिलक दरद
गाड़ैले चलि
पड़ल सभटा मरद
फाड़ि कऽ देखल
जा सकैछ खीरा
मुदा के जानतै
परसौतीक पीड़ा
कियो नै केलक
ओकर कहल
टुटल खिड़कीसँ
ओ देखैत रहल
सभ मिलि लऽ
गेलै
लहासकेँ धारक
कातमे
ओकर पति
मनधत्ता
रहै संग साथमे।
डोलनी डाइन- ५ (काव्य
कथा)
उ साँझ केतेक
कारी बुझाइ छेलै
सबहक मन भारी
बुझाइ छेलै
बााध-बोनसँ लोक
सबेरे गेल छेलै
भागि
पंनचैतीमे बैस
गेल छल
दोग-दोगसँ आबि।
तखनि घटि गेलै
फेर एगो घटना
मरि गेलै फनकाक
बेटा
नाम रहै मटना
छौड़ा छेलै पहिनौंसँ
कसरि
दबाइओक नै पड़ै
छेलै असरि
नै छेलै बेमारी
गप छेलै आन
डागदर बुत्ते
कतएसँ बँचितै परान
आबिते फनका
फनकए लगल-
“हौ बाप हमहीं छी अभागल
मनधतो छै ओकरे
साथ
कहलौं ई बात
तामसे बजल भऽ कऽ
कात-
‘बात बाजी सोचि
नै तँ मुँह लेबौ
नोचि।’
डोलनी आबै छेलै
हरदम अँगना-घर
हमरा बेटाकेँ खा
गेलै बनि चरफर
कहि दियौ हमरा
बेटाक घुमा देतै परान
नै तँ लाठीसँ
पीट कऽ खैंचि लेबै जान
हमरो नाम छी
फनका नै छी कियो आन
जे कहब से कऽ
देबै स्थानमे दान
नै तँ संग दिअ
ओकरा मारि देबै
जीतै आगिमे
जारि देबै।”
दोसर-तेसरकेँ नीक लगल
चारिम फट्ट दऽ
बजल-
“एना अनचित केना होइ छै करल
सबहक अँगनामे छै
बेदरा भरल
केकर लेतै जान
तेकर कोन ठेकान।”
सुनि-सुनि सबहक
बातपर
तामस चढ़ि गेलै
पंचक माथपर
“कहाँ छौ मनधता ऐठाम बजा
आइ देबै ओकरा
कठोर सजा
किअए कुड़िएतै
जौं नै रहतै फोंसरी
नै रहतै बाँस नै
बजतै बौसरी।”
अन्हरिया भरल
चारूकात
सुनिते पंचक
बात
थर-थरा गेलै गात
पाछू ठाढ़ छेलै
मनधता
ओहीठामसँ भऽ
गेलै निपत्ता।
डोलनी डाइन- ६ (काव्य
कथा)
दौगते अँगना आएल
मनधता
थर-थर काँपैत पोर-पोर
लगमे सोर पाड़लक
डोलनीकेँ
मन छेलै भेल
अघोर।
“पहिने तँ सभ कहै छेलौ
तोहर बड़-बढ़िया छौ बानि
की केलही टोलक लोक
संग
जे सभ कहै छौ ई
छै डाइन
साँचे उखाड़ने
रही बेटाक लहास
नँगटे नचैत रही
ओकरा पास
ठीके डाइन सिखौलकौ
तँ देलही बेटाक जान
मटनाक तोहीं
खैंच लेलही परान?
नुकाएल छीही
घरमे मुइन कऽ कान
पंच सभ कऽ रहल
छौ घमासान
मटनाक बाप लऽ
लेतौ परान
आइ जिते झड़का
देतौ
गरम तेलमे कड़का
देतौ।”
गप सुनि डोलनी
भेल अधीर
बजए लगल, मन केलक थिर।
“हे, हमर बात सुनू धियानसँ
आइ तँ जेबै करबै
जानसँ
बात लिअ मानि
हम नै छी डाइन
घसबहिनी सभ
उड़ौलक अफवाह
बौआकेँ देखबाक
मनमे रहै चाह
बन्न घरमे कटैत
रहि गेलौं काह
कियो ने केलक
परवाह
छेलै ई बड़का सेहन्ता
साइत
पूरा नै करितौं
तँ घुन जकाँ खाइत
बित जाइत जिनगी
छूटि जाइत परान
आन तँ होइ छै आन
नै देखितौं
मुँह अप्पन सन्तान।
साड़ी खोलि कऽ
राखि देने रही कात
किछु लगि जाएत
तँ भऽ जाएत बेबात
उखाड़लौं बौआक
हलास
कियो ने रहए
आसपास
तेल-काजर लगा देखलौं
भरि नैन
भेटल मनमे पूरा
चैन
फेर मनकेँ साधि
गाड़ि देलौं
ओही खाधि
जखनि अहाँसँ
टुटत आस
हम भऽ जाएब जिनगीसँ
निरास
गै माए, आब जीबै कोन आस
अहूँकेँ नै
हमरापर बिसवास!”
बजल मनधता बहबैत
नोर-
“हमरो बात सुनि ले थोर
कहाँ छौ मोटरी-चोटरी
कहाँ छौ गहनाक
पोटरी
थम लाठी लिअ दे
पानियोँ एकघोंट
पिअ दे
गिरेतौ पाग
गै भाग-भाग
आबि रहल छौ
फोंफियाइत नाग।”
डोलनी बजल-
“हमरो होइए पूरा शक
दुआरि दिस
लगौने हएत टक
पछुआर दिस भागब
नीक
हमरा बुझाइए यएह
ठीक।”
दुनू परानी साथे-साथे
भागल जाइत अन्हरिया
माथे
दुखित भेल छै
मन
डरे थर-थरा रहल तन
बाटक नै कोनो
ठेकान
मुट्ठीमे लेने
छै जान
पाछूसँ अबैत
हिंसक लोक
भागि रहल अछि
दोगे-दोग।
डोलनी डाइन- ७ (काव्य
कथा)
टपैत बाध-बोन, ऊँच गहींर
गड़ल काँट-कुश होइ छै पीड़
भागले जाए रहल
बनल बहीर
पाछू नै ताकै मन
भेल अधीर
टाँग कटल आ
ठेहुन फूटल
अपन गाम घर सेहो
छूटल
बनि गेल अछि
अभागल
अन्हारे संग
जाए रहल भागल।
“के छी ठाढ़ रह ओहीठाम
आगू बढ़मए तँ कियो
ने देतौ काम।”
दुनू चमकि गेल
पएर ठमकि गेल।
“आब की करब
लड़ब वा मरब
ई केकर छी अवाज
केनएसँ आबि रहल
छै गाज
चोर-डाकू छै आगूसँ
घेरने
आबि रहल आगाँसँ
रेड़ने
आब नै कोनो
बँचलौं बाट
आगूमे लगि गेलौ
बड़का टाट
इज्जत, जान दुनू चलि
जेतौ
ऐठाम आब कियो
ने बँचेतौ
तोरे खातीर आइ
हमरो जेतौ परान
तोहर चलि जेतौ
इज्जत-मान।”
डोलनीक हाथक
हँसुआ चमकल
हँसुए जकाँ आँखिओ
दमकल
“अहाँक देहमे कियो भिर तँ लौ देखि
ओकर नै बँचए
देबै एक्कोरत्ती रेख।
यएह छी पुरुखक
समाज
केना कऽ बँचतै
स्त्रीक लाज
ऐ पंच-समाजसँ होइ छै
बड़को-समाज
एक दिन खुलि
जेतै सभटा राज।”
दुनू अछि पूरा
तैयार
मारि देबौ आकि
मार
नै तर्क वितर्क
दुनू भेल सतर्क
हवाकेँ गिन रहल
अछि
समैकेँ चीन्ह
रहल अछि
भारी भऽ गेल
संगी-साथ
लाठी कसि
पकड़लक हाथ।
देखलक मनधता
आइ चललै असली
पता
बाघिन गरजि
रहल अछि
नव कथा सिरजि
रहल अछि
खुगल आँखि आ
खुगल कान
दुनूक अलग-अलग पहचान
हरहरा रहल हवा
कान
ऊपर उगि रहल
अछि चान।
मुन्नाजी
बाल हाइकू
(हाइकूमे बाल रचनाक प्रायः पहिल प्रस्तुति)
१
पानिमे माछ
छप-छप करैए
हमरे जकाँ
२
छोड़ि खेलौना
बन्नुक पकड़लौं
ताकू भविष्य
३
निश्छल मोन
कँटएल जाइछ
बाँचत कोना
४
हथिनी रानी
शेरक शासनमे
कहू राजाकेँ
५
सोरहा भेलै
नेना छै होशगर
पैघे बताह
६
चोर सिपाही
खेल बिसराएल
विडियो गेम
७
राजा आ रानी
मोन बहटारए
ज्ञान नै दैए
८
चलैए रेल
छुक-छुक करैत
पटरीपर
९
फुलवाड़ीमे
दुखी राजकुमारी
राजा बैंसैए
१०
राग रागिनी
संस्कृत केर श्लोक
मोनमे राखू
११
शीतल पाटी
आब चैन नै दैए
नेना सभकेँ
१२
लाल चटनी
चाटि-चाटि कनैए
मोन बुझाउ
कुन्दन कुमार
कर्ण
गजल
२१२ ११२१२ १२२२
दर्द हियक अहांसँ कहब हम कोना
चोट नेहसँ भरल सहब हम
कोना
छोडि असगर जखन दूर रहबै
प्रिय
भावमें बिन मिलन बहब हम
कोना
ठोरपर चमकैत नव हँसिक
मोती
दूर रहिक अहांसँ गहब हम
कोना
संग जे नहि देबए अहाँ
हमरा
आगु जीवनमें बरहब हम
कोना
कहि रहल अछि गजलमें
हियसँ 'कुन्दन'
बिन अहाँ प्रिय आब रहब
हम कोना
© कुन्दन कुमार कर्ण
र्इ हम आठ बरिस
पहिने लिखने छलौं । विशेष कs कs जे केयो अपन देश छोडि विदेश गेल छथि हुनका सभहँक लेल परसि रहल छी...
--------------------------------------
अंगनामें कुचरल कौआ
जागि उठल हमर बौवा
हावासँ आयल कोनो सनेश यौ
पियाकें यादमें भेलौं
हम विभोर
रहि-रहि नैनसँ टपकै नोर
बितगेल होली दीवाली
मोन रहैत अछि सदिखन
खाली
एक पल सौ साल लगैछै
सूखि रहल अछि ठोरक लाली
किया छोडि चलिगेलौं
विदेश यौ
कहिया आयत खुशीक भोर
रहि-रहि नैनसँ टपकै नोर
साँझ भोर बाट तकैछी
भितरे-भितर हम मरैछी
दर्द नै बुझबै अहाँ हमर
महिनामें एकबेर फोन
करैछी
आयब कहिया अहां घूरि घर
यौ
थर-थर करैछै हमर ठोर
रहि-रहि नैनसँ टपकै नोर
© कुन्दन कुमार कर्ण
गजल @ कुन्दन कुमार कर्ण
जीनगी एक वरदान छी
र्इश्वरक देलहा दान छी
सोच राखू नम्हर मोनमें
जीनगी सुनर सम्मान छी
हटिक नै, डटिक जियबै जखन
जीनगी तखन गूमान छी
खेल बूझब जखन एकरा
जीनगी तखन आसान छी
कर्म पथपर चलू नित समय
कर्म मानवक पहिचान छी
बाट बाटपर बूझी चलू
जीनगी एकटा ज्ञान छी
कथन 'कुन्दन' कहैछै अपन
जीनगी दू दिनक चान छी
२१२-२१२-२१२
बहरे-मुतदारिक
राजदेव मण्डल
जीक पाँचटा कविता-
खसैत बून
खसैत बून-बून
गाबै गुन-गुन
चिड़ै चुन-चुन
झिंगुर झुन-झुन
बरसैत मगन घन
देखैत मन नयन
नाचैत सुमन मन
तृषित भीजैत तन
सूखल कण-कण
अमृतसँ मिलन।
चलैत रहत आखेट
नै टुटत जिनगीक
गेँठ
आबि गेल जेठ
दुख गेल मेट
सभ किछु समेटि
आब हएत भेँट।
मोँछक लड़ाइ
छोटका मोँछ
मोटका मोँछ
सोझका मोँछ
टेढ़का मोँछ
पकल मोँछ
अधपकल मोँछ
बघबा मोँछ
बिलरबा मोँछ
कारी-कारी ऐंठल मोँछ
तितली सन बैसल
मोँछ
झबरा मोँछ
लबरा मोँछ
पुरनका मोँछ
लबका मोँछ
भड़कल मोँछ
फड़कल मोँछ
मोँछक शान
गामक गुमान
तोड़ै तान
फाटै कान
जेतेक रंगक मोँछ
तेतेक रंगक
झगड़ा
झगड़ा ताकै
घूमि-घूमि रगड़ा
मोँछ गाबए
बेवहारक गान
अपने जिनगी
अपने जुबान
“हम नै लड़ब
लड़त के आन
हमरेपर अछि
गामक शान
हमहीं बँचाएब
सबहक जान
सबहक दोकान
सबहक माकन
सबहक आन
सबहक गियान
छूटत जखनि हमर
बान
कियो ने करत
कल्यान
हमरा सोझहा आनक
बड़ाइ
तँ चलिते रहत
मोँछक लड़ाइ।”
मोँछ-सँ-मोँछ लड़ए
कियो जीतै कियो
मरै
केते घर जरए
तब केते तरए।
“की यौ भाय
करिते रहबै
मोँछक लड़ाइ
सभ किछु भऽ गेल
नाश
किछु ने रहि
गेल पास
लटपटा गेलै सभ
लगे-पास
केकरो ने बढ़बाक
आस
ओझरा कऽ छी पड़ल
अदहा छी मरल
आब तँ मोँछो अछि
झड़ल
आगू बढ़बाक नै अछि
उपाए
की यौ भाय,
करिते रहब
मोँछक लड़ाइ
आबो ने करब कोनो
उपाए?”
दूटा धारा
अपनो ने पाबि
रहल छी पार
अंतरंग नदीमे
दूटा धार
बिनु एकाकार
केना करब पार
केना कऽ पकड़ब
असल आधार
केतेक पैघ अछि
अवरोध
किअए ने भऽ रहल
अछि बोध
केना कऽ धारा
हएत तेज
बाधाक ने बँचत
कोनो रेख
अपन दोख अनका
माथपर राखि
टकटक चारूभर रहल
छी ताकि
भेटि ने रहल
अछि कोनो उपाइ
जिनगीओ ने कहीं
अकारथ जाइ
झूठे धेने छी
अनकार आस
अनकर आस रही
उपास
अप्पन आस तब बिसवास
करए पड़त अपने
प्रयास।
चोरि
बेइमानीसँ नाता
जोड़ि
भरिगर अवरोधकेँ
तोड़ि
असली मनुखक
लक्षण छोड़ि
हमहूँ केलौं
एकबेर चोरि
देखलक हमरा लग
धन
सबहक बदलि गेल
मन
शुरू भेल मालक
कमाल
बदलि गेल सभटा
चाल
किछुक आँखिमे
देखै छी रिश
मनमे उठए लगैए
टीस
मूनि लइ छी
चटदनि कान
तोड़ए लगै छी
अपन तान
बढ़ि गेल आब
हमरो शान
लोक कहए लगल
महान
अंतरसँ जखनि
उठए अवाज
खुगए लगैए सभटा
राज
आँखिक भीज जाइत
अछि कोर
भीतर शोर चोर-चोर।
परिस्थिति
केतेक अबैत जाइत
लोक
सबहक मुँहपर
नचैत शोग
पिताक अंतिम
दर्शन लेल
चलि रहल समाजिक
खेल
केतेको मुँहपर
असली दु:ख
केतोकोकेँ छुच्छे
बजबाक भूख।
“लेधुरिया छै धिया-पुता
अपना देहमे नै
छै बुत्ता
पड़ल छेलै बेमार
खसौने रहै छै
घाड़
समए काटब भऽ
जेतै पहाड़
केना कऽ लगतै
पार
केहेन भऽ गेलै
अधला स्थिति
घेरि लेलकै
चारूभरसँ परिस्थिति।”
आ हम छी ठाढ़
परिस्थितिसँ भऽ कात
जेतए ने कोइ छूबि सकए
आ ने रहए साथ
नै छी एकोरती खिन्न
हम छी परिस्थितिसँ भिन्न
ने जागल छी आ ने सूतल छी
सपनामे छी लीन।
राम विलास
साहुक कविता-
के बँचेतौ तोहर
जान
चिल्का कनैए
दूध पीबैले
देखि दुखित
माए कनैत बाजलि-
“सुक्खल देह हड्डीए देखाए
लहूक कतरा दु:खे लेल अछि
स्तनसँ दूधक
फेनगीओ ने चलैए
जे तोरा चटा
जीएबो
लहू पीब पेट
भरतो तँ
पीब ले सभटा
हमरा देहसँ।”
चिल्का नोर
बहबैत
लगले सूरमे कनैत
रहल
अस्सी बर्खक
बुढ़िया दादी
ठेंगासँ ठेंगहति
लग आबि
पोतासँ बाजली-
“अपना ने तँ गाए-महिंसक दूध अछि
जे पानि फेंटि
पीआ दैतिओ
जीवितँए तँ
हमरो कमा खिऐबितँए
एक हाथ सेवा सभ
दिन करितँए
सबहक असिरवाद
पबितँए
भगवानो तँ बेमूख
बनल छौ
माए तोहर रोगही-टेटही छौ।”
मुदा,
चिल्का
फकसीहारि कटैत रहल
माए ममता
भावपूर्ण पुन: बाजलि-
“आन दूध बौआ नयनसँ नै देखलौं
ने जीसँ कहियो
सुआद लेलौं
के देतौ दूध जान
बँचबैले
नै बँचल छै धरतीपर
इंसान
कथी पीआ कऽ तोरा
जीएबो
से नइए कोनो
इंजाम
माए-बेटा आ बुढ़िया
दादी
छी तीनू तीन जान
तीनू मरि संगे
जाएब श्मशान
एहेन स्वार्थी
दुनियाँकेँ की देखब
जैठाम गरीव जीबै
छै कुकुर समान।”
उन्टा साँस
छोड़ैत चिल्का जेना
किछु बाजि रहल
अछि
भूखक आगिमे छूटि
रहल प्राण
नै कोइ अछि
दयावान ऐठाम
चहुदिश देखै छी
बदलल इंसान
रावण-कंशसँ पैघ
शैतान।
वसुंधरा
राजदेव मण्डल
अकाल
परसाल तँ बचलौं
बाल-बाल
ऐबेर धऽ लेलक
असुर अकाल
खाली पेट नै
फुटतै गाल
सबहक भेल अछि
हाल-बेहाल।
हर-हर पुरबा बहि
रहल अछि
कानि-कानि काका कहि
रहल अछि-
झर-झर आगि बरिस
रहल अछि
धानक बीआ झड़कि
रहल अछि।
पियाससँ धरती
फाटि रहल अछि
मवेशी दूबिकेँ
चाटि रहल अछि
कतेको माससँ नै
खसल एको बून पानि
की भेलै केना
भेलै से नै जानि
अपनहि उजारलहक
अपन सुख-चैन
गाछ कटौलहक फानि-फानि।
जलक महत बुझए
पड़त
नै तँ ई दुख सहए
पड़त
काल चढ़ए तँ बिगड़ए
बानि
घुन सँगे सतुआ
देलहक सानि
चारूभर पसरल
घुसखोरबा पापी
खसल पड़ल अछि
पूरा चापी
टक-टक तकैत अछि
अफारे खेत
पानि बिनु
उड़ैत अछि सूखल रेत
पछिला करजासँ
हाल-बेहाल
ऐबेर बिका जाएत
देहक खाल
नै रोपल जाएत एको
कट्ठा धान
केना कऽ बचत
सालभरि प्राण
ऊपर अछि धूरा
भरल आसमान
नीचा अछि परिवारक
मान-सम्मान
लोक कहैत अछि-
धीरज धरह सरकार
देतह
हम कहैत छी-
तेजगर लोक सभटा
खेतह
रहब छूच्छे केर
छूच्छे
आमजनकेँ कतौ ने
कियो पूछए
बाहर कतए जाएब
यौ भाय बेंगू
परदेशमे धऽ लेत डेंगू
ने खेबाक नीक आ
ने सुतबाक ठीक
जेबीसँ पाइ लेत
उचक्का झपटि-झींंक
कियो लेत बेचि
कियो लेत कीनि
ठामहि रहि
जाएत कपार परक ऋृण
कतए बेचब कतएसँ
आनब
पाइ नै रहत तँ
कथी लऽ कऽ फानब।
आब अछि आशा अगिला
जेठ
यौ अन्नदाता घटा
दियौ अन्नक रेट
सभ काटि रहल एक-दोसरकेँ घेंट
केना कऽ भरतै
सबहक पेट।
मनमे छल चाह
धियाकेँ करब बिअाह
धऽ लेलक अकालक
ग्राह
आब केना कऽ करब
निरवाह
केना कऽ पढ़तै
धिया-पुता
फाटल वस्त्र आ
टुटल जूत्ता
देहमे नै बचल आब
तागत-बुत्ता
दुआरिपर कनैत
अछि भूखल कुत्ता।
सभमे परिवर्त्तन
सभमे उत्थान
ठामहिपर अछि
हमर गहुम-धान
धन्य हे ज्ञान
धन्य विज्ञान
हमरो दिस दियौ
एकबेर धियान
वएह खेत-पथार, वएह खरिहान
घरो छै टुटले
कतए देखबै मकान
कतए बेचबै कतए
रखबै धान
नै छै बजार नै
छै गोदाम
वएह खाद-बीआ ओहिना पानिक
दाम
वएह हड़-बड़द ओहिना
बथान।
यौ सरकार करू
जलक प्रबन्ध
फेर उठतै धरासँ
धानक गन्ध
दमकल, नलकूपक करू उपाए
चन्द
धार-नदीपर करू तटबन्ध।
हम छी ऐ अंचलक
किसान
देशक बढ़ेबाक
अछि मान-सम्मान
बचेबाक अछि
सबहक प्राण
भूखसँ दिएबाक
अछि त्राण
हम करब संघर्ष
नै छी बेजान
फेरसँ गाएब कजरी
गान।
घरक आँखि-
रहै छलौं केतबो
व्यस्त
देखबाक अभ्यस्त
ठमकि जाइत छल
पएर
ठीक ओही स्थलपर
सम्हारि
एकबेर झाँकि
घरक आँखि
मध्य ओ मोहक
रूप
ठाढ़ भेल गुप-चुप
चित्र आँखिमे
चमकि उठैत छल
मनक कण-कण गमकि उठैत
छल
किछु दिनसँ
भेल िनपत्ता
बिनु देने अता-पत्ता
तैयो आदतिसँ
लचार भऽ
ठाढ़ भऽ गेलौं
शून्यमे ओहिना
जहिना पहिने
छल तहिना
ओ नै अछि
ई छी मनक खेल
ठमकि ठाढ़ भेल
तकै छी
ई हमरा की भेल
की हमरा आँखिमे
हुनक बास भऽ गेल
आकि हमर आँखि
ओ रूप मिलि
एकेटा अकास भऽ
गेल।
अभ्यास
नै ऐपार नै
ओइपार
खसल छी मँझधार
पानि अछि अगम-अथाह
मनमे निकलबाक
चाह
डुमैत भसिआइत
सम्हारि रहल छी
उनटा धाराकेँ
झमारि रहल छी
छूटि जाएत घर-पलिबार
टूटि रहल अछि
मोह केर तार
जरूरी छलै
धीरजसँ सीखब
बूझि समझि
मनमे लिखब
कछेरमे केने रहितौं
हेलबाक अभ्यास
एना नै टुटैत हमर
आस
पछताबासँ नीक
सेाचब आगू की
हएत ठीक।
महफा आ अरथी
कारी आ उज्जर
वस्त्र अछि पसरल
नापैत-जोखैत जा रहल छी
ससरल
पैघ भेल जा रहल
अछि दूरी
धेने कड़ी आ
गोंतने मुड़ी
ऊँच-गहींर आ समतल
नव-नव दृश्य बनए
पल-पल
काठ-कठोर बनल हरपल
छन मात्र होइत
अछि चंचल
टपैत देस-कोस
बनैत दुसमन-दोस
दुखमे होश
सुखमे बेहोश
काल जीत रहल अछि
उमेर बीत रहल
अछि
तैयो जोड़ैत घटी-बढ़ती
आगू शेष ऊसर-परती
कतबो नापब नै
होएत
नापल धरती
महफा शुरू केलक
अन्त करत अरथी।
काटैत बीआ
छुटैत निसाँस
जेना निकलए जान
ऊपर ताकए खाली
आसमान
नीचा डहि रहल
पोसल बीआ
देखि-देखि फाटै छै
हीया
हँसुआसँ काटि
रहल फसल केर सीना
देह भीजल अछि
घाम-पसीना
करए पड़त आगूक
आस
अपनहि काटैत
लगाओल चास
थरथराइत हाथ
जानैत अछि
बीआ रहि-रहि केना कानैत
अछि
हँसुआ कहै आ
सुनै कान
फुलकी फुला गेल
बहि गेल निशान
आब कि रोपबह हे
किसान
जेतबे बोझ बीआ
ततबे धान।
कानैत हँसी
घटि गेल बीचक
दूरी
गप्पसँ बेसी
डोलैत मुड़ी
किछु नै जानै
छी
तैयो अपन मानै
छी
एककेँ सुख
दोसराक सुख
दूनू मिलि भऽ
जाइत अछि दुख
एक गोटेक आँखिक
नोर
दोसरकेँ दुखक नै
ओर
भीज रहल अछि
अन्तरक पोरे-पोर
ई नै रूकत
कतबो लगाएब जोर
संचय कएल एक-एकटा कण
कतेक भरिगर भेल
छल तन
निकलि गेलासँ
आब
केहेन हल्लुक
लगैत अछि मन
माए एकदिन कहने
रहए
साइत सभटा सहने
रहए
बाटसँ भऽ कऽ कात
वएह भोगल बात
कहैत नीक अधला
फाटि कलेजा निकलै
दाह
दू बून सूखल
हँसी
नोर जल अथाह
कहलौं-सुनलौं भऽ गेल
गप्प
एहेनठाम की करिते
रहब तप
हे, रहै छी कतए कहाँ
गप्प कतौ नै
बजबै अहाँ
बिसरि थाल-कादोमे धँसल
कानैत-कानैत खिखिया
कऽ हँसल
लवका शक्ति
जागि गेल
हँसलासँ दुख
भागि गेल।
कनहेपर भाेलबा
हड़बिर्ड़ो मचल
अछि मेलामे
धिया-पुता हरा गेल
ठेमल-ठेलामे
दूनू पच्छ अछि
पूरा तगड़ा
शुरू भऽ गेलै
मेलेपर झगड़ा
कोइ एँठ-कुठपर खसल
चिचियाइत कोइ
भीड़मे फँसल
मँुहपर डर नाचि
रहल अछि
सभ अपने दुख
बाँचि रहल अछि
के कोनए भऽ गेल
निपत्ता
केकरो नै चलि
रहल पत्ता
“हे रौ सुन-ढोलबा
हरा गेल भोलबा
गाँजा पीबैत छन
छलै सँगे
की कहबो, छौड़ा छै अधनंगे
तकैत-तकैत करए लगल
दरद
कानि-कानि ओ करैत
हेतै गरद।”
गाँजाक चिलम
जेबीमे रखलक
आँखि उनटबैत
ढोलबा कहलक-
“छौड़ा छह पाछू कान्हपर चढ़ल
तूँ जाइ छह आगू
बढ़ल
निशाँमे अहिना
हरेबह काका चिनाय
कन्हेपर भोलबा आ
भोलबे नै।”
“बुधि हरा गेल हमर साइत
कन्हेपर भोलबा
ओकरे ले औनाइत
कन्हेपर छौड़ा
बैसल
बिसरि गेलौं
डर छल पैसल।”
बजल बुढ़बा- छौड़ाकेँ दैत
चमेटा-
“तूँ बेटा छेँ की टेटा
हमर मन भऽ गेल
अधीर
कान्हपर बैसल
छेँ भऽ कऽ बहीर।”
थप्पर लगिते
उपजल आनि
छौड़ा बजल कानि-कानि-
“आँखि रहितो किछु नै सुझै छह
अपनाकेँ बड़
काबिल बुझै छह।”
कुहेस
कतौ नै किछु
बचल अछि शेष
चारूभर पसरल
कुहेस
कठुआ गेल देह
भीजल अछि केश
अधभिज्जू सन
भेल सभटा भेष
घुरिया रहल छी
ठामहि-ठाम
कियो नै देत
अछि समैपर काम
टुटल जा रहल सभ
आस
ऊपरसँ लगि गेल
दिशाँस
कुहेस और भऽ गेल
सघन
इजोत लगैत अछि
टीका सन।
खेत-खरिहान, घर, जंगल-झार
सभटाकेँ गिंर
गेल अन्हार
उनटि गेल अछि
जेना माथ
छूटि गेल सभ
संग-साथ।
नै भेटैत अछि
बाट
नै अपन घाट
लगे-लग औनाइत
मन भेल उचाट
सभ गोटे धऽ लेने
छी खाट
देखा दिअ जाएब
कोन बाट।
कहिया फटत ई
कुहेस
भेटत अपन घर परिवेश
हे सुरूज किरिणकेँ
जगाउ
आबो तँ ऐ
कुहेसकेँ भगाउ।
जानवरक बोली
सुनहट बाट अन्हार
भरल
अछि किछो
गोंगिया रहल
देह थरथराइत मन
डरल
भूत जकाँ के अछि
अड़ल
सुनमसान अछि
चारूभर
ने लोग आ ने अछि
घर
जानवर ठाढ़ अछि
आरि ऊपर
बाजि रहल अछि
भऽ चरफर-
“हे यौ, जल्दी लग आउ
बोली सूनि नै
घबराउ
कहब आब रहस्यक
गप
बोलीक लेल बड्ड
केलौं तप
अहाँ देलौं अपन
बोली
हमर पूरा भेल
आसा
नै घबराउ हम देब
आब
अपन भेस-भाषा।”
जानवरक मुँहसँ
मनुक्खक बोली सूनि रहल छी
अचरजमे डुमल
अपने माथ घूनि रहल छी।
नै सुनब तँए कान
मुनि रहल छी
विकासक क्रमकेँ
गुनि रहल छी।
कविता-
उपयोग
हे यौ श्रीमान्, अहाँ छी अदभुत
लोग
अहीं सँगे पौलौं
हमहूँ सुख-भोग
भरल-पूरल रहल हमरो
घोघ
भागल रहल दुखिया
सोग
देखलौं एहेन-एहेन दोग
जे हमहूँ भऽ
गेलौं बड़का लोग
जतए तक पहुँचलौं
ठीके नै छलौं ओइ
जोग
किन्तु आइयो हम
वएह छी
कहाँ भेलौं निरोग
जे छल अपन तेकरो
लग
बनि गेलौं आब
कुलोग।
काज पड़ल तँ ला
ताकि कऽ
नुकाएल छौ कोन
दोग
भऽ गेल काज तँ
हटा तुरत
इहए छिऔ
संक्रामक रोग।
आइ जनलौं कारण
की छलै असली रोग
अहाँ करैत रहलौं
हरपल हमर उपयोग।
(ई कविता “उपयाेग” श्री गजेन्द्र
ठाकुरकेँ समर्पित,
राजदेव मण्डल...)
द्वन्द
अधरतिया भऽ गेल
छै साइत
अखने पहुँचलौं
बौआइत
सुनहट बाड़ीमे
कोयलीक तान
श्वेत शिलापर
बैसल अछि चान
आधा मुखपर केश-पाश
आधापर अछि नोर, निराश
तैयो आस-पास छिटकि रहल
प्रकाश
बिआहक बन्धन
तोड़ि-ताड़ि
घर-पलिवारकेँ
छोड़ि-छाड़ि
आएल अपने इच्छा
कऽ रहल हमर
प्रतीक्षा
चिर प्रतिक्षित
पियासल मन
कछ-मछा रहल तन छन-छन
केना कऽ राखब
मनकेँ सम्हारि
अन्तरमे उठल
आन्ही-बिहाड़ि।
बढ़ाएब हाथ अहाँ
दिस
लोककेँ उठतै रिश
खुशीसँ भरत हमर
मन
दुसमन सभ करत सन-सन
आपस घींच लेब
हाथ
तँ समाज रहत साथ
अपने मनसँ हएत
लड़ाइ
लोक करैत रहत
बड़ाइ।
बाँहि पसारि
बढ़ेलौं हाथ
तरेतर घुमि रहल
अछि माथ
विमूढ भऽ अड़ल
छी
द्वन्दमे पड़ल
छी।
छीपपर दीप
नमगर बाँसक छीप
पर नाचैत दीप
अपने देहकेँ
जारि-जारि
तैयो टेमीकेँ
सम्हारि
अन्हारकेँ
ललकारि
हवासँ करैत मारि
एक्के धूनमे चलि
रहल
समताक लेल गलि
रहल
जेतबे क्षमता छै
तेतबे
दोग-दागमे फैलि रहल
बटोहीकेँ देखबैत
बाट
हरा ने जाइ कहीं
कुबाट।
देत प्रकाश
सभकेँ
लड़ैत अन्हारसँ
भरि राति
किन्नौं नै
देखतै केकरो
रंग, रूप आ जाति।
इमानदारी
इमानदारी बिकैत
छै बेनाम
लाख, करोड़ आ टका-छेदाम
सभ रंग दाम सभ
रंग नाम
जेहने इमानदारी
तेहने दाम
देहाती दाम शहरी
नाम
जेहने टका तेहने
काम
इमान कहै सुनू
हमर बोल
हमर के लगा सकैत
अछि मोल
टूटि रहल अछि
पुरना खोल
सहजहिं फूटत
नवका बोल।
बेइमानी कठहँसी
हँसैत अछि
ऊँच आसनपर वएह
बसैत अछि
ओकरे भेटै आदर
सम्मान
इमानदारी पाबैत
अपमान
हमहँू नै बचल छी
पूरा
लगल अछि
बेमानीक धूरा
खोजलौं ऐ पार-सँ-ओइ पार
नै भेटल पूरा
इमानदार
बजलौं अहाँ
बारम्बार
कहू के अछि
इमानदार?
बीआ
बीआ नै अछि
खाली बीआ
माटि, पानि, हवा प्रकाश
सँ मिलतै आस
छूबि देत अकास
आँखि देख रहल
अछि साँच
बीआ मध्य
आँकुरक नाच
कालकेँ कऽ रहल
जाँच
अन्तरमे बैसल
गाछ
एक-सँ-अनेक पसरल
छेकने जाइत आगाँ
ससरल
दैत अछि प्राण
वायु
बढ़ैत अछि सबहक
आयु।
किछु अछि बेसी
किछु अछि कम
अहीमे मिलल अछि
सत-रज-तम।
एकरा अन्तरमे
शक्ति अपार
जाएत एक दिन
धरतीक पार
बीजक प्रस्फोटन
अछि सार
हरक्षण बनैत नव
अाकार।
बलात्
घटना भेलै राति
अखने हेतै साइत
चौबटियापर
पंचायत
दोषीपर खसतै
जूता-लाति
ऊपसँ हेतै
जुरमाना
लोक मारबे करतै
ताना
बात बढ़तै तँ
जेतै थाना
केहेन भऽ गेलै
जमाना
असगर केना कऽ निकलत
लोक
राक्षस बैसल
दोगे-दोग
जेकरा संगे भेलै
बलात्
कानि रहल अछि
भऽ कऽ कात-
“एकबेर असगरमे नोचलक गात-गात
सबहक सोझा कहए
पड़तै वएह बात
केना की सभ भेलै
हमरा साथ
लाज भरल बात
केहेन अघात
फेर वएह पीड़ा
सहए पड़तै
खोलि-खोलि कहए पड़तै
आँखि ने देखै
भरल नोर
यौ आब कहिया
हेतै भोर?”
झूठक गियान
हमहीं देने रही
झूठक गियान
बालपनमे धऽ लेलक
कान
हमरे देल अछि ई
सीख
कखनो झूठ होइ छै
ठीक
झूठ बाजि बचा
लिअ जान
बढ़ा लिअ मान-सम्मान
घटि गेलै सत्यक
मान
झूठकेँ धऽ लेलक
कान
करए लगलै झूठक
बेपार
बदलि गेलै काज
बेवहार
धऽ लेलकै ओही दिन
लीख
आब केना कहबे ई
नै नीक
झूठक गबैत
यशोगान
भऽ गेलै आब ओ
जुआन
हाथमे लेने तीर
कमान
खींच लेत आब
हमरे जान
ओ नै छी कियो
आन
सोझा ठाढ़ अपने
संतान।
जेहने अहाँ
तेहने हम
संगे-संग घुमलौं देश-कोस
कतेक विचारि
लगेलौं दोस
दुनू गोटेमे भरल
परेमक जोश
खुशी रहत पल छल
पूरा भरोस
सभ किछु छल
एक्के समान
दूटा देह एकेटा
जान
दोस बनबैत कात
एतेक विचार
दुसमन बनबैत बखत
भेलौं लचार
नै सोचने छलौं
अपना मन
जे बनए पड़त आब
दुसमन सन
विचार कऽ बनाबितौं
दुसमन
नै जरैत आइ तन-मन
दुसमनसँ कहाँ
रहलौं कम
जेहने ओ तेहने
हम
केकरोसँ कहाँ कियो
कम।
चिर प्रतीक्षा
नीपलौं-पोतलौं घर-दुआर
कतेक बेर केलौं
झार-बहार
अपनो केलौं
सोलहो िसंगार
कऽ रहल छी
इंतजार
उताहुल भेल मन
पिआसल अछि तन
बितल जाइत क्षण
कखन हएत मिलन
मनमे फुलाइत
सुमन
नमरले जाइत
प्रतीक्षाक क्षण
असोथकित भऽ गेल
नयन
शंिकत छी बिफल
हएत जतन
निन्नसँ बन्न
भेल आँखिक कोर
दुखाइत देहक
पोरे-पोर
मन घेराएल सपनाक
शोर
अहाँक झलक
बुझाएल थोड़बे-थोड़
चौंकि उठलौं निन्न
छल घोर
नै भेल छल भिनसर-भोर
पएरक चेन्हसँ
हम मानि रहल छी
अहाँ अाएल छलौं
से जानि रहल छी
पुन: एकबेर देहकेँ तानि
रहल छी
बाधाक निन्नकेँ
तोड़ि-ताड़ि
बौआइत सपनाकेँ
डाहि-जारि
खोलि अपन सभ घर-दुआरि
चिर-प्रतीक्षा तन-मन सम्हारि।
हाथ-
हाथ िसर्फ नै
अछि हाथ
अन्हारमे जनमि
गेल एेमे
नाक, कान, आँखि, दाँत
इजोतेटा मे नै
अन्हारोमे रहैत
अछि साथ
सूँघैत अछि सभ
कात
जानैत टेब-टेब सभ बात
हाथकेँ नै देखैत
हाथ
देखैत अछि हाथक
करामात
कतए सँ कते धरि
पहुँचल हाथ
हाथसँ मिलैत
हाथ
सिरजनक साथ
भऽ जाइत अछि विध्वंसक
बात
हाथ तँ अछि
हमरे साथ
फेर किएक हेतै
अधला बात।
ठक
हम छी ठक
नै कोनो शक
झूठ गप भख
साँचक नै परख
शुरूमे ठकलौं घर-परिवार
आगाँ ठकैत दुनियाँ-संसार
टका-पैसा हजारक-हजार
लगा देलौं सम्पतिक
अमार
ठकैक आदतिसँ
नचार
कतेको कनैत जार-बेजार
आइ छूटल पूरा भक
जखनि हमर लगल
ठक
एहेन जीत पार भऽ
गेल
जिनगी बूझू
बेमार भऽ गेल
सभकेँ एहिना
उठैत हेतै दरद
आइ हमहूँ करैत
छी गरद
साँच कतए सँ आब
हम पाएब
ठकबे करब वा ठका
जाएब
सोचब कोनो एहेन
उपाए
ऐ जालसँ केना
बचल जाए।
शिशुक स्वर
बन्न परसौति घर
चिचिआइत शिशुक
स्वर
निकलैत सुगन्ध
मन्द–मन्द
शान्तिमे स्पन्द
मधुर आवाज
सजौने साज
कनैत बारम्बार
खोलत अनन्त
संभावनाक दुआर
बनत नित-नूतन सिरजनहार
ऐ हेतु होए एहेन
आधार
बढ़ै बुधि, विवेक, विचार
तत्काल चाही
सुरक्षाक ढाल
देखू पाछू नचै
छै काल
लेने छै वएह
पुरना जाल
क्रन्दन स्वर
पुछै सवाल
“की हरण कऽ सकब अहाँ हमर दुख
देख रहल छी
घातीक रूख
ताकि सकब अहाँ
चिन्हल मुख
हएत कोनो मनुखे
सन मनुख?”
बोलती बन्न
अभिभावककेँ सीख
कानकेँ सुनाइत
हवामे चारू-भर गुनगुनाइत
“सम्हारि कऽ चलिहेँ अपन चाल
नै तँ बाटेमे धऽ
लेतौ काल।”
देश-दुनियाँ आगू
बढ़ल
हम रहब ओझरा कऽ
पड़ल
तैयो पैसल रहैत
छल डर
काँपैत रहैत
छलौं थर-थर
सुरक्षाक एतेक
अछि समान
तँए ने देलिऐ
गपपर धियान
आइ जाएत बे-वजह जान
राह भेल अछि
सुन्न-मसान
आगू ठाढ़ भेल
जमदूत समान
कर्कश स्वर
सुनि ठाढ़ भेल कान
“मुँहसँ जे निकलतौ अावाज
कियो ने देतौ
अखन काज।”
हमर की गलती किअए
भेल नाराज
“आइ गिरत हमरेपर गाज
नजरि उठा
देखलौं जी उड़ल सन्न
हमर भऽ गेल
बोलती बन्न।”
दिलक आवाज
अन्तरमे रहैत
अछि अमृत
बाहर बीख भरल
अनघोल
प्रेमक नै कोनो
मोल
भीतर शान्तिक
खजाना अनमोल
दिलक बोलकेँ
जारि-मारि
बजै छी हम दोसर
बोल
शब्द दैत अछि
दिलकेँ धोखा
खोजैत अछि
बारम्बार मौका
कखनो शब्द दिलपर
होइत अछि नाराज
कखनो दिलक बात
कहैत शब्दकेँ होइत लाज
शब्द होइत जे
दिलक आवाज
सभठाम होइत सत्यक
राज
अन्तरमे बहुत
सजबए पड़त साज
तखैन बनत शब्द
दिलक आवाज।
नेंगरा मजदूर
किएक फटकारै छी
यौ दरबान
हम नै छी कियो
आन
नै करू एना
परेशान
नै छी भिखमंगा, चाेर, बेइमान
बरख भरि पहिले
हमरो रहै अहीं सन शान
हमहीं बनौने रही
ई सतमहला मकान
कतेक लगा कऽ लगन
काज केने रही भऽ
कऽ मगन
अपन दुख किछु
कहल ने जाइ
ऊपरसँ खसल रही
दुनू भाँइ
टाँग कटा कऽ हमर
बचल जान
सहोदराकेँ उड़ि
गेल प्राण
नै छी दुखित
केलौं िनरमान
एहेन काजमे
होइतै छै बलिदान
हमर तँ कर्तव्य
अछि काजसँ लड़ब
किछु भऽ जेतै
काज तैयो करब
देखबाक लीलसा छल
एकबेर
आँखि जुरा जाएत
रहब कनेक देर।
“भागि जो ऐठामसँ रे बकलेल
ई जगह अछि विशिष्ट
लोकक लेल
मालिक एतौ तँ
देख लेबही खेल
तुरन्तेमे चलि
जेबही जेल।”
आँखि लगै छै
केहेन क्रूर
जेना देहमे कऽ
देतै भूर
चोटहिं घूमि
गेल नेंगरा मजदूर
अछि चुप्पे
आवाज निकलै दूर-दूर।
मनक दुआर
अन्हार घरमे
बैसल लोग
कऽ रहल अछि
जेना कोनो
नै देखि रहल एक
देासराक मुख
कतए सँ भेटत
दरशनक सुख
औना रहल सभ
ठामहिं-ठाम
बिनु मकसद जिनगी
बेकाम
अन्हार करै अन्हारसँ
बात
अन्हारेसँ
झँपने रहू सबहक गात
अनठेकानी हथोड़िया
मारैत हाथ
नै जानि के
करतै केकरापर आघात
शंकामे डूमल सभ
काते-कात
डर नाचि रहल
अछि माथे-माथ
कतबो करब छूच्छे
जाप
अन्हार घरमे
साँपे-साँप
खोलए पड़त िखड़की-दुआर
अन्तर मनक सभ
केबाड़
अन्हार भऽ जाएत
तार-तार
पहुँचत प्रकाश
आर-पार
एक देासरसँ जान-पहचान
बढ़त आपसी मान-सम्माण।
छाँहक रूप
हम छी अभागल
जा रहल छी भागल
निन्नमे डूमल
या जागल
हरपल पाछाँ लागल
केहेन ई छाँह बिनु
परबाह
लगैत अछि अथाह
अशोथकित भऽ
गेलौं भगैत-भागैत
घूमि-घूमि पाछू तकैत-तकैत
मुँहसँ निकलैत अछि
आह
केहेन अछि जिदियाह
जखैन तक अछि ई
काया
सँगे लगल रहत ई
छाया
बेसी भागब तँ
थकित हएत तन
ओझराएल रहत
हरक्षण मन
अड़ि कऽ परखब
हम ओकर रूप
चाहे चढ़ि ऊपर
चाहे खसि कूप
रूप हो कुरूप वा
हो अनूप
ओकरे सँगे देखब
हम अपन सरूप।
बाबा केर लाठी
ठरल हवामे टौआ रहल
छी
टोले-टोले बौआ रहल छी
बाबाक देल घण्टी
गलामे टाँगने छी
गामक मुँहपुरखी
हम नै कोनो माँगने छी
घण्टी टनटनाइते
भूकए कुकुर
लुच्चा छौड़ा
सभ तकए भुकुर-भुकुर
हुनके देल छलै
तेल पिआओल लाठी
दूध-भात खेबाक लेल
फूलही बाटी
छुच्छे बाटी
भटकि रहल अछि
सूखले भात अटँकि
रहल अछि
लाठी हाथमे
देखते लोक करए सन-सन
इशारा करैत बजैत
अछि मने-मन
“देखियौ देह हाथ सूत सन
लगै छै हाथमे
बन्दूक सन।”
मित्र कहैत अछि-
“नै करू फर-फर
तामसे किअए
कँपै छी थर-थर
छै सभकेँ
समानताक अधिकार
लड़बै तँ उजरि
जाएत घर-दुआर
नै चलत आब पुरना
लाट
ओ भऽ गेल कुबाट
एकर अछि एकटा
काट
चलए पड़त आब
नवका बाट।”
गीतक पूर्व
संगीत
नै भेल दरस
तँ केना हएत परस
कहाँ जनलौं
अहाँक प्रीत
पूर्वमे नै
सुनलौं पद ध्वनि संगीत
हे यौ मीत
दूरसँ सुनलौं
गीत
बुझलौं गीतक
पूर्व बजै छै संगीत
अहिना होइत
हेतै नित
आब तँ अवधि गेल
बित
कहाँ भेल हमर
जीत
पहिने जँ जानितौं
एना नै कानितौं
आदरसँ अरिआइत
अानितौं
छतीसो व्यंजन
छानितौं
कतए चलि गेलौं
भऽ कऽ अनेर
नै पाबि रहल छी
अहाँक टेर
जेना टूटि गेल
पुरना घेर
फेर जनम भेल
एकबेर।
दगध सुर
कलीकेँ स्वर
सुनि
पिक भेल पागल
अन्तरमे किछु
जागल
लेलक कान मुनि
मनमे गप्पकेँ
गुनि
कली बजैत अछि
अपनहि धुनि-
“मधुमासक आगमन भेल
अहाँ फँसि
गेलौं कोन खेल
हृदय केना बिसरि
गेल
के बनौलक एहेन
जेल
जतए चलैत अछि
फरेबी खेल
हमरा बना देलौं
बकलेल
आकि अहाँ बनि
गेलौं सन्त
वियोगक दाहसँ
दग्ध छी कन्त
साँचे अनन्त
अछि वसन्त
किन्तु हमर नै
देखब अन्त।”
इजोतक वस्त्र
घर-दुआरिकेँ नीप
हाथमे लेने जरैत
दीप
अन्हारसँ
लड़बाक इच्छा
कऽ रहल समैक
प्रतीक्षा
हवाक झाेंका कऽ
रहल खेल
दीया अपनाकेँ
बचेबाक लेल
आँचर तर ढुकि
गेल
जेना इजोत वस्त्र
बनि गेल
आँखिकेँ असंख्य
दीप सुझाएल
जे छल मुझाएल
बाट अछि असीम, अपार
अड़ल चारूभर अन्हार
एक दीप अछि ज्वलित
तँ करत अनेकोकेँ
प्रज्वलित
नेसि रहल धेने
इहए आस
ठामहि-ठाम खेलत उजास।
मनुखदेवा
सभ मनहि-मन पूजि रहल
अछि
एक-दोसराक गप्प
बूझि रहल अछि
मनक केना बूझत
सभ बात
कहए चहैत अछि
छूबि कऽ गात
पकड़लक पएर भऽ
कऽ कात
हमरो दुख सुनि
लिअ तात
जखैने देवक
देहमे भिरल
ठामहि ओ ओंघरा
कऽ गिरल
जेकरा कहै छलौं
महान
से अपनहि अछि
बेजान
आब के देत
सुन्नर काया
सम्पति, यश, सम्मान
खूजि गेल सभटा
राज
तैयो भीतरसँ निकलए
आवाज-
“छलै जे पावन
बना देलिऐ
अपावन
भऽ गेलै निष्प्राण
छुबलासँ घटि
गेलै मान
पहिने बनल छल
देवा
आब भेल मनुखदेवा
देह चढ़ि करत
सेवा
भेट सभकेँ मनक
मेवा
नै डेराउ सभ किछो
देत
मानत नै पूजा
अखनो लेत।”
अप्पन हारि
गाम-घरसँ मंत्री
दरबार
कियो नै पाबि
सकैत छल पार
के बजत सोझा
फोड़ि देतिऐ कपार
डरे कनैत कते
जार-बेजार
जीतने छलौं सकल
समाज
उठिते आवाज गिरबै
छलौं गाज
बड़का-बड़का केलौं काज
बजितो होइत अछि
लाज
सभ दुसमनकेँ
मारि देलौं
कतेकेँ माटि तर
गाड़ि देलौं
घर-परिवारकेँ तारि
देलौं
तैयो अपनासँ
हारि गेलौं।
अपन उजाड़ि
काटए बपहारि
के बजैत अछि
अप्पन हारि?
स्वरक चेन्ह
स्वर आबि रहल
आकाशक कोनो छोरसँ
दरद उठि रहल
देहक पोरे-पोरसँ
अहाँक सोर पाड़ब
हम सुनि रहल छी
असंख्यमे सँ
अहाँक स्वर चुनि रहल छी
टपब खेत-खरिहान देश-कोस
मनमे अछि मिलन
केर जोश
बियावान झाड़-पहाड़
नदी-नालाकेँ करैत
पार
पहुँचब एक दिन
अहाँक पास
लगौने छी मनमे
आस
स्वरक चेन्ह
अछि ठामे-ठाम
नै बिसरब आब
अहाँक गाम
किएक भऽ रहल छी
अधीर
मनमे उठैए रहि-रहि पीर
हएत शुभ मिलन
रहू थीर
बरसत एक दिन
शान्तिक नीर।
सुखक भाय
तोड़ि रहल छी
फूल
गड़ि गेल हाथमे
शूल
भऽ रहल केहेन स्पर्शक
सुख
हाथमे गड़ल
काँटक दुख
नै छोड़ि सकैत
छी
आ ने तोड़ि
सकैत छी
चलैत जिनगीकेँ
नै मोड़ि सकैत छी
विचारक क्रमकेँ
जोड़ि सकैत छी
फड़तै अलग-अलग फल
किन्तु एकेटा
उद्गम स्थल
सुख आ दुख दुनू
छी भाय
रहत सँगे नै छै
उपाय।
हएत अगारी
सभ खेलै छलै अपन-अपन खेल
नै छलै केकरो
आपसी मेल
सभ चलैत छल अपन-अपन चाल
अपने समांगपर
फूटै छलै गाल
लोकक सिखऔलपर
तोड़ैत छल गाल
सबहक भेल छलै
हाल-बेहाल
कतेक प्रयास
कतेक नोकसान
तब देलक हमरा
गप्पपर धियान
बनल एकता कतेक
छान-बान्ह
बालुक बान्ह
कोन ठेकान
खुश भऽ सभ ठोकए
लगल ताल
चुप्प नेता भऽ
गेल वाचाल
ओझरा कऽ फँसल ओ
लोभक जाल
ठाढ़ भऽ गेल कठिन
सवाल
फेर बनलौं एकबेर
बकलेल
जखैन नेते स्वार्थी
भऽ गेल
पुन: ताकबै खेल रहतै
जारी
जे नै भेलै से
हेतै अगारी।
रूचिगर
केहेन चीज अहाँक
लगत नीक
हमरा भेटत ओहीसँ
सीख
दौगैत रहैत अछि
तन
अन्वेषण करैत मन
विचरण करैत
धरासँ गगन
पैघ पहाड़ आ कण-कण
कतेक बहैत अछि
नोर
राति-दिन आ साँझ-भोर
डुमैत रहै छी
अपने भूख
तब देखबै छी
अहाँक दुख
कल्पनामे देखैत
छी भऽ कऽ मूक
परोसैत छी अहाँ
लग सुख
तैयो भऽ जाइत
अछि चूक
कहाँ बदलैत अछि
अहाँक रूख
आब देखेबाक अछि
मृत्यु-चित्र
ओ हएत केहेन विचित्र
ऐ देहकेँ छोड़ए
पड़त यौ मित्र
तब बना सकब ओ चित्र
घेरने अछि मोहक
कड़ी
बितल जाइत घड़ी-पर-घड़ी
अहीं छी असल
प्रहरी
तोड़ू कड़ी
तोड़ू कड़ी।
बजैत एकान्त
बजैत अछि सुन-मसान
कियो ने दैत
अछि कान
गबैत रहैत अछि
अनवरत गान
जुग-जुगसँ संचित
ज्ञान
चारू भर स्वरक
घमासान
सुनहट ठाढ़
अपनहि शान
हरक्षण दैत
अनुपम दान
बिनु शब्दक
बजैत ज्ञान
स्वर सुनैत छी
किन्तु अछि चुप
केहेन हएत स्वरूप
वाणी अछि एतेक
मधुर
तँ रूप हेतै
केहेन अनूप
बैसल छी एकान्तक
कोड़मे
भऽ रहल सर्जना मनक पोर-पोरमे
यादि अबैत अछि करम
टूटि रहल बहुतो भरम
सुनि रहल अछि हमर कान
शान्तिक गुन-गुन गान
बरिस रहल सुन-मसान
कऽ रहल छी पावन स्नान।
लटकल छी
दुनू हाथ अछि
कड़ीसँ बान्हल
ओहीपर हम अँटकल
छी
पएरक नीचाँ उधिअाइत
समुंदर
आसमानमे लटकल छी
छड़पटेलासँ हाड़-पांजर दुखाइत
अछि
बेसी चिचिएलासँ
कंठ सुखाइत अछि
कहुना कऽ जीब
रहल छी
जिनगीक जहर पीब
रहल छी
नीचाँ गीरब तँ
डूमि मरब
तँए की हम लटकले
रहब
आब नै मानब
जेकरा नै देखने
छी
तेकरो जानब
बन्हन तोड़ि
नीचाँ फानब
नै डरबै कठिन
कारासँ
लड़बै वेगयुक्त
धारासँ
करबे करब पार
उधिआइत तेज धार
देख रहल छी
समुद्रक कछेर
तोड़ए पड़त आब
कड़ीक घेर
जेकरा करबाक
चाही सवेर
तेकरे केलौं
अबेर।
बटमारिक गीत
किएक कऽ रहल छी
एना ठेमम-ठेल यौ
हम नै छी बकलेल
यौ।
जहूक लेल हम छी
जोग
तहूसँ भेल छी
अभोग
किअए ने भेट
रहल अछि
जगह हमरो लेल यौ
हम नै......।
हमरो मन छल गबितौं
गान
घटले जाइत अछि
मान-समान
कष्टमे रहत जँ
मन-प्राण
कतएसँ गाएब सुख
केर गान
दुखसँ नाता अछि
आब हमर जुड़ि
गेल यौ
हम नै......।
हमरा लेल जगह नै
खाली
व्यंग्यसँ
बजबैत अछि सभ ताली
असली-नकली करिते-करिते
हमहीं बनि
गेलौं पूरा जाली
हमरा सँगे चलि
रहल
ई कोन उनटा खेल
यौ
हम नै......।
अहाँ कहै छी- “धरू आस
करू बारम्बार
प्रयास
एक दिन करै
पड़तै
अहूँसँ ओहिना
मेल यौ
नै रहब अहाँ
बकलेल यौ।”
हम नै......।
गन्तव्यक भरम
मन भऽ गेल पुलकित
गाबए लगलौं गीत
मिलि गेल मंजिल
भऽ गेल हमर जीत
जेकरा बुझलौं
मंजिल
ओ कहलक-
“अहाँकेँ नै अछि अकिल
लटकल छी अधरममे
फँसल छी भरममे
जेकरा ताकैले
एते प्रयास
से धेने अछि
अहींक आस
किएक बखतकेँ
करै छी नाश
ओ तँ अछि अहींक
पास।”
दरदक भोर
अखन तँ भेलै
दर्दक भोर
साँझमे देखबै
अन्तिम छोर
चिचिआइत मन
करै शोर
कानब तँ सुखि
जाएत नोर
तानब तँ छूटि
जाएत जोड़
डरे धेने छी
केकर गोड़
थाह नै भेटए
थोड़बो-थोड़
ताकब दरदक अन्तिम
कोर
छोड़ि देत ओ
हमर पछोड़।
केहेन मांग
असली मांग
बजल अर्द्धांग
“जिनगी भरि बनले रहब बताह
काटिते रहब हम
कठ आ काह
पलिवारक नै अछि
परबाह
डूमि जाएत आब
घरक नाह
जरि गेल सभ मनक
चाह
केना कऽ चलब
काँट भरल राह।”
करै छी जौं गप्पपर
विचार
मन बहैत अछि
तेज धार
तँए, पटियापर पटुआ
गेलौं
लाजे कठुआ गेलौं
केना करब एकरा
सम्हार
पाबि नै रहल
कोनो पार
रखबाक छै सबहक
मान
करए पड़त एकर निदान।
पसरैत प्रशाखा
जर्जर बूढ़ अनचिन्हारक
गाछ
हवा नचा रहल छै
नाच
लटकल असंख्य
डारि-पात
चारूभर आ काते-कात
सहने हएत कतेक
अधात
केतेक छूटल
केतेक साथ
करैत एक दोसरसँ
बात
परेमसँ भेल स्नात।
हमर चलैत अन्तिम
साँस
स्वजन-परिजन आस-पास
एकेटासँ बढ़ि
केतेक रास
सँगे चलैत सिरजन
विनाश
झूठ-साँच मध्य नचैत
नाच
हम बनल छी अनचिन्हक
गाछ।
खसैत बुन्द
खसैत बून-बून
गाबै गुन-गुन
चिड़ै चुन-चुन
झिंगुर झुन-झुन
बरसैत मगन घन
देखैत मन नयन
नाचैत सुमन मन
तृषित भीजैत तन
सूखल कण-कण
अमृतसँ मिलन।
चलैत रहत आखेट
नै टुटत जिनगीक
गेँठ
आबि गेल जेठ
दुख गेल मेट
सभ किछु समेटि
आब हएत भेँट।
उलहन
“सभ तँ रहै छै अहींक लग-पास
हम तँ अबै छी
चासे-मास
पड़ि गेल विपति
भेलौं निराश
अकालक कारणे डहि
गेल चास
दिन अदहा पेट
राति उपास
मनमे छेलए जे
पूरा हएत आस
भौजीक ताना सुनि
आँखि भरल नोर
बेथासँ भरल मनक
पोर-पोर
एक मुट्ठी
देलासँ की भऽ जाएत थोर
आँखिसँ बहि
रहल अछि दहो-बहो नोर
हमर नोर नै बनि
जाए अँगोर
यौ भैया, एकदिन हमरो
हेतै भोर
चुप्पी साधने
खसौने छी धाड़
ऐ सम्पतिपर छै
हमरो अधिकार
आगूमे ठाढ़
बालपनक पियार
नाता तोड़ि
केना करब तकरार
कनैत जा रहल छी
जार-जार
माए रहैत तँ
करैत दुलार
अपने चास-बासपर करए पड़त
आस
बाबाक बखारी आ
धीयाक उपास।”
आपसी
“जिनगी भरि दैत रहलौं फूल
आपस भेटि रहल
अछि शूल
मन भऽ गेल बियाकुल
किअए भेटल ई
डण्ड
कहाँ केलौं कोनो
भूल
देहलो चीज नै
देब
हम देने रही फूल
काँ केना लेब?”
“हमरा लग वएह अछि तँ दोसर की देब
जबरदस्तीओ करब
तँ आरो की लेब।”
“खुगि रहल अछि मनक राज
सुआरथसँ भरल छल
हमर काज।”
रामदेव प्रसाद
मण्डल “झारूदार”
अभिनन्दन
ऐ आवाज सुननिहार
सभ गोटा
सुभ सिनेह, प्यार आ नमस्कार।
प्रफुल्लित छी
हम बरियारती
समा रहल नै हृदए
फूल।
चीर स्मरणीय स्वागत
पाबि कऽ
रहल याद नै राहक
शूल।
जगमग करैत
जनकपुर नगरी
श्रद्धामय नर-नारी कूल।
की वर्णी ऐठामक
शोभा
बुझा रहल सभ
मंगलक मूल।
मंगलमय ऐ शुभ
धड़ीमे
वर-वधु केलनि कबुल
सुख-दु:ख दुनू बाँटि
बरबरि
रोपब नव बगिया
केर मूल।
चीर जीवी होउ
दुल्हा-दुल्हीन
रहत आवाद नव
श्रृजित भवन।
दऽ रहलौं आशिष
हम जगवासी
गम नै देत कोनो
झोंका पवन।
इरा मल्लिक
गजल ( श्रृँगार.मल्हार )
----------000----------
बरखा बरसै छै दिन राति अहाँके
इयाद सताबै
ओहिपर कारि अन्हरिया
राति
अहाँ बिन चैन न आबै।
अहाँ----
घिरलै कारी घटा घनघोर
वन मेँ
नाचै मोरनी मोर
एसगर सून्न भवन छै मोर
बिजुरिया देखि डराबै।
अहाँ----
बरसैत कजरा के धार हमरा
इहो
दैत उपराग
प्रीतम द्वारजोहै छी
बाट अहाँके
मोरा हिय हहराबै। अहाँ -----
पिया अहाँ बसु दूरदेश
मेघ सँ भेजू अपन सँदेश
करोट फेरैत कटै छै मोरा
रतिया
नैना नीर बहाबै। अहाँ-----
बून्ने मोती सजल सब पात
देखि
सिहरै छै मोरा गात
भिजै कजरा गजरा बिंदिया
कोयलियो के बोली सताबै।
अहाँ----
विलमनै करियौमहाराज
अबियौ
छोड़ि काम आ काज
हमर कँगना पायल के
झँकार
रहि-रहि अहीँके बजाबै। अहाँ---
वर्ण -21
राम विलास साहु
गीत
मोह-माया......
सगरो माया पसरल-ए
मायाक बजार सजल-ए
ठगिनियाँ माया-जाल पसारि
सभकेँ बान्हि
फँसा रहल-ए
ठामे-ठाम ठगिनियाँ
बैसि
सभकेँ ठकि-ठकि खाए रहल-ए
सभकेँ......।
सभ सज्जन दुर्जन
ने कोइ
साधु-संत महंथ कहबैए
सज्जन साधु-संत महंथ
लोभ फँसि घुरिआए
रहल-ए
ठामे-ठाम ठगिनियाँ
बैसि
सभकेँ ठकि-ठकि खाए रहल-ए
सभकेँ......।
लोभी सभ निरलोभी
नै कोइ
इमान बेचि
इंसान कहबैए
कुकर्मकेँ धरम-करम बुझैए
मोह-मायामे सभ
घेराएल-ए
ठामे-ठाम ठगिनियाँ
बैसि
सभकेँ ठकि-ठकि खाए रहल-ए
सभकेँ......।
ई जगत केना कऽ
चलतै
के नेकी इंसान
कहेतै
केना सभकेँ
भेटतै त्राण
माया देखि कवि
बहबैए नोर
ठामे-ठाम ठगिनियाँ
बैस
सभकेँ ठकि-ठकि खाए रहल-ए
सभकेँ......।
जगदीश प्रसाद
मण्डलक सबा दर्जन गीत-
केकरो फूल......
केकरो फूल मोँछ
बनै छै
तँ केकरो फूलहरि
जाइ छै।
फुलैक फूल
फुलिया-फलिया
हस-हँसि दुनू
दिस बढ़ै छै।
हस-हँसि दुनू
दिस बढ़ै छै।
केकरो......।
फड़ैक सरूप
पकैड़-पकैड़
मोँछ फूल सजबैत
कहै छै।
सीख-लीख सिरखार
गढ़ि-गढ़ि
फल-फलाफल सरूप
धड़ै छै।
फल-फलाफल सरूप
धड़ै छै।
केकरो......।
तेतबे नइ यौ भाय
साहैब,
केकरो फूल
अलोपित भऽ भऽ
सत-सत हाथी ताकि
थकै छै।
फूल गजनती गज-गज
गजुआ
बाट-बटोही हारि
थकै छै।
बाट-बटोही हारि
थकै छै।
केकरो......।
जेकर दूध छाल
छलही बनि
आनि जम जजमान
गढ़ै छै।
बाल-बोध मुँह
अमृत बनि
अरोग जीत जिनगी
पबै छै।
अरोग जीत जिनगी
पबै छै।
केकरो......।
काज पसरि......
काज पसरि अबिते
अंगना
लप-लप लछमी आबए
लगै छै।
लछ-लछ लछमी
कुदैक-कुदैक
शर सिर कमल सजबए
लगै छै।
शर सिर कमल सजबए
लगै छै।
लप-लप......।
सजि-सजि सजिते
सिर श्रृंगार
बाणी वीणा आबए
लगै छै।
बाणी तनि
भरैन-पुरैन
काशी कमल खिलबए
लगै छै।
काशी कमल खिलबए
लगै छै।
लप-लप......।
कूदि-कूदि काज
कर करिआ
वृक्ष सरूप सजबए
लगै छै।
अशोभ शोभ
अलिसाइत अलि
प्रसून रस रसबए
लगै छै।
प्रसून रस रसबए
लगै छै।
लप-लप......।
सरसिज कमल सरि-सेरिआ
सागर कमल गढ़ए
लगै छै।
सगर पहाड़ पार
पे-पेबि
गर गल जोड़ि
मिलए लगै छै।
गर गल जोड़ि
मिलए लगै छै।
लप-लप......।
धार बीच......
बलधकेल
धकिया-धकिया
धार बीच
उगै-डुमै छै।
सुभर जिनगीक
कश्य कथे की
पतरखेप खेपैत
खपै छै।
पतरखेप खपैत खपै
छै।
धार बीच......।
करिते उग-डूम
धार मध
पगे-पग पएर
पिछड़ै छै।
पात-निपात
पतड़-पतड़ा
पतरखेब खेबैत
रहै छै।
पतरखेब खेबैत
रहै छै।
धार बीच......।
पगेपन पन-पन
पंतिया
पंतिया पतिया पन
चढ़ै छै।
बलपन खेलपन कुदि
कुदैक
पतरखेल खेलैत
कहै छै।
पतरखेल खेलैत
कहै छै।
जएह जिनगी सएह
किरदानी
सभ दिन सभ बाजि
कहै छै।
धरम-अधरम कुधरम
बूध-रम
पतरहाँसि
हँस-हँसैत कहै छै।
पतरहँसि हँस-हँसैत कहै छै।
धार बीच......।
फेरो हम......
मरि-मरि कऽ मरै
छी
फेरो हम फड़-फड़
जीबै छी।
फेरो हम फड़-फड़
जीबै छी।
झूठ-फुस एक्कोटा
नै
मुँह
फोड़ि-फोड़ि कहै छी
कखनो ठोर बर-बरी
बना
दालि सिर
चढ़ि-चढ़ि कहै छी
दालि सिर
चाढ़ि-चाढ़ि कहै छी।
फेरो हम......।
कखनो रम रमनाक
बीच
महाभारत रचि-रचि
कहै छै।
दुनूक
श्रृगी-श्रृंग चढ़-चढ़ि
दोहरा-दोहरा कहै
छी
फेरो हम जीबै छी
मरि-मरि कऽ मरै
छी
फेरो हम......।
रस-रसा रसाएल
जेना
रब-रब रभसि कहै
छी।
रभसी रभसि
रम-रमा
मरा राम मरा कहै
छै।
फेरो हम जीबै छी
फेरो हम......।
रंग जिनगी......
रंगिते काजक
रंगसँ
रंग जिनगी बदलए
लगै छै।
धड़-धरती
छोड़़िते जेना
नवरंग जिनगी
धड़ए लगै छै।
नवरंग जिनगी
धड़ए लगै छै।
रंग
जिनगी......।
रूप अरूप सरूप
गढ़ि-गढ़ि
रंग रंगि रभसए
लगै छै।
मुँह-कान
जेहेन-जेहेन
नाओं अपन सिरजए
लगै छै।
नाओ अपन......।
अपना-अपनी
गमक-महक
संग रूप सिरजए
लगै छै।
गमक गंन्हि
महक-महकि
धरती-अकास पसरए
लगै छै।
धरती-अकास पसरए
लगै छै।
रंग
जिनगी......।
पता-पती
पसरि-पसरि
जिनगीक राग भरमए
लगै छै।
अपन-अपन जिनगीक
किरदानी
शूर गलगल गबए
लगै छै।
शूर गलगल गबए
लगै छै।
रंग जिनगी......।
चोरकट
चालि......
चोरकट चालि
पकड़ि-पकड़ि
चोरकट चालि चलैत
रहै छी
बाल देखि बोली
बिलहि
चोरकट समाज
गढ़ैत रहै छी।
चोरकट समाज
गढ़ैत रहै छी।
चोरकट
चालि......।
एकी-दूकी
गंजक-गंज
चिरक समाज बनबैत
रहै छी।
साज सजि सजनी
सन्हिया
चढ़ि-चढ़ि सिर
सजैत रहै छी
चढ़ि-चढ़ि सिर
सजैत रहै छी
चोरकट
चालि......।
अड़कि-मड़कि
धड़कि जन-जन
सरकि-हरकि धरैत
रहै छी
मुसर मूस
मुसिया-मुसिया
कट-कट, कटि-कटि कहैत
रहै छी।
कट-कट, कटि-कटि कहैत
रहै छी।
चोरकट......।
कटनी काटि कात
कतिया
आँटी-अगो बनैत
कहै छी
आँटी-बोझक आँट
जेना
सीली-आगू
हँसि-हँसि कहै छी।
सीली-आगू
हँसि-हँसि कहै छी।
चोरकट......।
तखनि पार......
डूमा-डुमी खेल
खेलि
धड़ा-धाम केना
टपबै।
अन्हार घर
साँपे-साँप
तखनि पार केना
करबै?
तखनि
पार......।
अन्हार डूमि-डूमि
डुबैक
हँथोरि हाथ
केना पेबै?
के केमहर दहलि भँसिया
बीच अन्हार
केना देखबै?
बीच अन्हार
केना देखबै?
सघन-समीर अकास
ठेिक
नाद-शंख केना
चढ़बै?
अकान कान कानि-कूहि
नाग-फाँस केना
कटबै।
नाग-फाँस केना
कटबै।
डँसिते छाती
सू-सुरसुरा
मौगति हथिया
धड़बै।
लूल हाथ
लुलुआ-लुलुआ
हर-हर, हारि-हारि
सुनेबै।
हर-हर, हारि-हारि
सुनेबै।
तखनि
पार......।
छाती चढ़ि......
छाती चढ़ि मुकिया-मुकिया
कान पकड़ि पुछै
छै।
संठी बोझ
बना-बना
झील-झिलहोरि
खेलै छै।
मीत यौ, झील-झिलहोरि......।
अपने ताले ताल
पीटि
घैल-छाँछ भरैत
कहै छै।
नीरा-पानि निरा-निरा
छछिया-छाँछ
धड़धड़बै छै।
मीत यौ, छछिया-छाँछ......।
छह-छहा छहलि-छहलि
छाँछ-साँच बजैत
कहै छै।
छाँछी छाँछ
सुरकि-सुरकि
पक-पकौल माटि
कहै छै।
मीत यौ,
पक-पकौल......।
कुम्हारक किरदानी
केहेन
कचिया-पकिया
मिला गढ़ै छै।
कचिया घोड़ा
रमि रेमंत
आउ, टिक, आउ-टिकटिकबै
छै।
मीत यौ, आउ, टिक......।
ससुरामे......
ससुरामे जा कऽ
धीया
रहिहेँ चीत-चेत
कऽ।
सूखि-दूखि बीच
विचड़ि
चलिहेँ देखि-सूनि
कऽ।
चलिहेँ देखि-सूनि
कऽ।
रहिहेँ
चीत-चेत......।
सून सुन्न पेब
पकड़ि
चिन्तन चीत
चेत कऽ
सुरता सुरत पेब
पकड़ि
मरनी-मरम जानि
कऽ
मरनी-मरम जानि
कऽ
रहिहेँ
चीत-चेत......।
माए-बाप
सर-समाजक
लत-लत्ती लतड़ि
कऽ
नव घर नव घरनी
धड़रि
मन-मन बपहर पेब
कऽ
मन-मन बपहर पेब
कऽ
रहिहेँ
चीत-चेत......।
जिनगीक
ताक......
जिनगीक ताक
ताकैमे
भरि जिनगी लगा
देलिऐ।
तैयो सबेर
पाबैमे
गम-गम जान गमा
देलिऐ।
गम-गम जान गमा
देलिऐ।
रेहे-रेह राह
ताकैमे
राहे-राह राहजनी
देलिऐ।
तैयो बात-घाट
घटि-घटि
घटिया घाट घटैत
गेलिऐ।
घटिया घाट घटैत
गेलिऐ।
घटी-कुघटी सिर
सजि-सजि
नचार-विचार
सुनैत गेलिऐ।
समरथकेँ दुख नाइ
गोसाँइ
रतिया राति
गबैत गेलिऐ।
रतिया राति
गबैत गेलिऐ।
गोर मुँह.....
गोर मुँह मणि मन
मुसुका
बूध जानि बुधजन
कहैत एला
बाट-बटोही बटिया
पकड़ि
बटगमनी स्वर
भरैत एला।
बटगमनी
स्वर......।
देखि देखि, सून-सूना
खीस खीसिया खसैत
एला
सुखा डाहि सुखौत
सुख
दुख दुखिया
देखबैत गेला।
दुख दुखिया......।
रूप पकड़ि सरूप
गढ़ि-गढ़ि
सरूप रूप संगैत
गेला
पतिया पात
पतिया-पतिया
गोंति-गोंति
मुँह गोंतैत गेला।
गोंति-गोंति......।
झोंका-झोंका
झुका-झुका
झुकिया-झुकिया
झुलैत गेला
मुँह गोरि मन
मणि मुसुका
बूध जानि बुधजन
कहैत एला।
बूध जानि......।
अंशी-अंश......
कतरा आम की आम
नै?
तँए कि ओ आम नै
भेलै।
रूप-रंग गुण
सु-सुआद
अंश आम की नै
भेलै?
अंश आम......।
पेब गुण जेना आम
गुन-गुना
रसिया रस रसाइत
गेलै।
तहिना अंशी अंश
बनि-बनि
रसिक जन जगजगाइत
गेलै।
रसिक जन......।
अंश एक कटि बिरिछ
जन
संग दोसर धड़ैत
गेलै।
अंश-अंशी संगोर
छोड़ि
जीव-जगत कहबैत
गेलै।
जीव-जगत......।
अंशी अंश जग जन
जगा
खेल संसार रचैत
गेलै।
कियो खेलाड़ी
खेल पकड़ि
अंशी-अंश मिलैत
गेलै।
अंशी-अंश......।
सूखल पोखरिक......
सूखल पोखरिक
जाठि जेना
जन-जिनगी सुखाइत
गेलै।
एलै-गेलै ससैर
ससरि
माने मन भोथाइत गेलै।
माने-मन......।
बरखा, रौदी बहि बाढ़ि
बले-बल बलुआइत
गेलै।
जलधर धार धेने
कहिया
जान मारि
मटियाइत गेलै।
जान मारि......।
दशानन जहिना
कहियो
धारे-धार
धड़धड़ाइत गेलै।
धारे-धार जाने
जान
संग मीलि
जल-जलाइत गेलै।
संग मीलि......।
गमे-गम कमि कैम
कमिया
कामे कम कमियाइत
गेलै।
पेट-पेट
पटिया-पटिया
बाते-बात बलुआइत
गेलै।
मीत यौ,
बाते-बात बलुआइत
गेलै।
माने मन भोथाइत
गेलै।
माने मन......।
श्रोता कहि......
श्रोता कहि-कहि
सुत-सुता
सुरता सुरत रूप
बनौलक।
नैन नीन निनिया-निनिया
वाण चालिक बैन
धड़ौलक।
वाण चालिक......।
जेहेन बन चलियो
तेहेन
वाणि चालि जिनगी
पकड़ौलक।
पकड़ि चालि चल
चलिया
आंकर पाथर संग
सजौलक।
आंकर
पाथर......।
आंकर अँकुर पथ
पथला
भूमि निरभूमि
भँजियौलक।
रौदिया रौद
पानि पनिया
जड़िया जड़ि-जड़ि
जाड़ जड़ौलक।
जड़िया जड़ि......।
काँच माटि कुंभ
जहिना
चक चकिया चाक
चरहौलक।
तरे-ऊपरे मूठ
मुठिया
पत पता पात पतियौलक।
पत पता
पात......।
जड़ि
जंजालक......
जड़ि जंजालक
फेड़मे
टूटि विचार
बदलाइत गेल
सुखा-सुखा, अलिसा-अलिसा
माड़ मारि मरियाइत
गेल।
माड़ मारि......।
मारिते माड़ी
नैन-बैन
सुरता सरुप
झँपाइत गेल।
नीक, कि नीक,
अध कि अधला
फेड़-कनफेड़
फेड़ाइत गेल।
फेड़-कनफेड़......।
फड़िते कनफेड़
मन बदलि
मँुगबा मारि
मड़ाइत गेल।
मने-मने मनुआँ
पकड़ि
लेऊँच होइत
लुटाइत गेल।
लेऊँच
होइत......।
फेड़-फेड़
कनफेड़ पेब
मरमराइत मन
मराइत गेल।
नैन विचार
कन-कनक मन
फीड़ा-फीड़ा
फीड़ाइत गेल।
फीड़ा-फीड़ा......।
गजल - दीप नारायण'विद्यार्थी'
आब कथी राखल अछि पिआर मे
लोक फुसिए बौआइए बोखार मे
हमरा तँ खरबो मे नहि
भेटल
आहाँक मुदा भेटगेल हजार
मे
'फुसियांहू साय लेल निन्न कामय
कतेक मुर्ख छथि लोक
संसार मे
साँच कहब तँ ओल जका
लागत
तैं किया किछु कहब
बेकार मे
एहि दुनियाँ सँ कुन आश'दीपक'
चलु चलै छी माय के
दरबार मे
वर्ण~~१३
बिन्देश्वर ठाकुर
धनुषा/
नेपाल
पुन: चमक्तै मिथिला राज [कविता]
जय मैथिल जय मिथिला
बासी
करु सब मिलिक जयकार
बन्द हेतै कुशासन सबके
पुन:
चमक्तै मिथिला राज ।।
सब ढेलफोरबा नेता तेहने
लैय टिकट,कुर्सी, भत्ता
पार्टी अते जे नाम याद
नै
जन्मल जेना गोबरछता ।।
के रावण के अछि
कुम्भकरण
ककरा बुझी न्यायक भगवान
झोरा भरब रणनीति सबके
बस रामलीलामे बने राम
।।
हाथीसन दुमुहा दात छै
एक देखाबे दोसरस खाए
पीठ पछाडी छुरा मारत
मुहपर बाजत भाए यौ भाए
।।
आइ पद छै घुमिलेब दि
बढका बढका गाडीमे
छिनब जखने छुछुनर बनतै
छिछ्यैतै बारी-झारीमे ।।
माङ्गल भीख नै भेटतै
ककरो
सभ जनता ज मिलबै आब
बन्द हेतै कुशासन सबके
पुन:
चमक्तै मिथिला राज ।।
आबु किय नै मिलि बाटिक
एहि दानवसभके स्राद्ध
करी
हक छिनब ज पाप थिक त
किय ने एक अपराध करी ।।
गरीबो दुखिया चैनस जियत
हेतै गाउ समाज उद्धार
बन्द हेतै कुशासन सबके
पुन:
चमक्तै मिथिला राज ।।
बिन्देश्वर ठाकुर
धनुषा/
नेपाल
हाल:
गजल
अही छी हमर भवानी मैया हम अहाके मानै छी
करब सबदिन पूजा पाठ मनस हम इ ठानै छी
उजडल घर बसाबु मा एना
किय फटकारै छी
रातिभरि निन्द नै आबे
सद्खन अहा ल कानै छी
क्षमा करु या सजा दिअ
हम त अहिक सन्तान छी
अज्ञानी हम पुत्र अहाके
बिधान नै किछु जानै छी
चिनी लैताह दूध लैताह
कही न माइ गे बाबुके
लड्डु आ पेडा हमहु
बनेबै तै त चिकस सानै छी
अही जननी दु:ख हरणी करु हमर उद्धार
हे
शक्तिस्वरुपा जगदम्बे
हम अहाके पहचानै छी
सरल बार्णिक बहर
मात्रा =
१९
बिन्देश्वर ठाकुर
धनुषा नेपाल
हाल :
कतार
अनिल मल्लिक
मैथिली गजल
जिनगी भरि'क साथ बीचेमे किए छोड़ि
देलियै
हमर ओ सपना सतरँगी किए तोड़ि देलियै
कहियै केकरासँ सुनतै के
सिकाइतो हमर
दोख कहाँ कहलौं नया
रस्ता किए खोजि लेलियै
रहि रहि आब भीजैत रहै
छै जे आँखि हमर
ई सागर छै नोरक अहिमे
किए बोरि देलियै
पहिल भेंटक फूल सुखि
गेल तैयो रखने छी
मोनक फूलबारी कहू अहाँ
किए नोंचि लेलियै
सहलो ने जाइया केहन जरै
छै मोन हमर
बिरहक आगि मे जे हमरा
किए झोंकि देलियै….!
(आखर-१८)
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