विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
भरि रस्ता कादो कीचड़ पसरल
बाहर कोन्ना जेबै हम
कन्हा चढ़ि इसकूल जायलेल बाबू के कोना मनेबै हम।
मुसलाधार बरसै छै बदरा
एक्कोपल लेल थमतै नै
इसकुल पहुँचै मेँ देरी हेतै निश्तुक्की छै मारि खेबै हम।
गल्ली कुच्ची अँगना डबरापोखैर
भरि गेलै खेतक आरि
पानिये चानी पीटल छै सबतरि
नाव कोना चलेबै हम।
लकड़ी काठी जारैन चुल्हा सब तीतलै बड्ड मोशकिल छै
सेहोदेखि माथठोकि कहैछै माँजी
भातो कोना पकेबै हम।
सँगी साथी सबघर मेँ घुसरल
कियो नहिँ बहराबै छै
इन्दरराजा ढोल बजाबै ढम्म सँ
के नचतै जे गेबै हम।
वर्ण- 22
अछि बड्ड जिद्दी बरसात
कहल नै मानै एको बात।
कहल-----
घटाटोप बादल आवारा
ठुमकि के नाचै चारु कात।
कहल-----
कखनोटिप-टिप कखनोझम-झम
भिजलै धरती गाछे पात।
कहल -----
भैया के भिजलै कापी बस्ता
जे नै कराबै मेघ बसात।
कहल-----
सब मौसम छै आनी जानी
बरसातक फरके बात।
कहल------
सँग कजरी झूला साजल
इन्द्रधनुष के रँगे सात।
कहल------
वर्ण-10
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