ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह' 'विदेह' १३६ म अंक १५ अगस्त २०१३ (वर्ष ६ मास ६८ अंक १३६)
ऐ अंकमे अछि:-
३.८.
भालचन्द्र झा-आजुक बेटी
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विदेह
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ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती
प्राचीन कालहिसँ महान
पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक
पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२००
वर्ष पूर्वक) अभिलेख
अंकित अछि। मिथिलाक
भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़
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1.
ज्योति- एक युग: टच वुड भाग ५ 2.
कामिनी कामायनी- लघुकथा-सोर
१
ज्योति
एक युग : टच वुड भाग – 5
अपन बेटाके जन्मदिन मनाकऽ सास-ससुर लौट गेला। हम फेर असगर रहि गेलहुँ। पतिदेव के बूझल
रहैन जे हमरा असगर नहिं नीक लागैत अछि से ओ ऑफिस सऽ जल्दी आबि जायत छलैथ।बीचमे
एकबेर ऑफिस के पिकनिक पर सेहो गेलहुँ। वैह हमर सबहक हनीमून छल।बाद मे ओ जगह
तीर्थस्थली बनि गेलै।हम तऽ ग्ुप में गेल रही। बहुत दिन बाद एहेन दम्पति भेटला जे
असगर ओतय गेल रहैथ आ हुन्का सबके आश्चर्य लागैत छलैन जे नवबियाहल कोना बेसी लोक मे
हनीमून मे जा सकैत छई।हमरा अहिबातक पर किछु बजनाई नहिं पसन्द छल।हम अपन पति के
सेहो चुप रहैके ईशारा केलियैन।
खाली समय में एम सी ए करैके जोश चढल तऽ पति देव के लऽ कऽ
इम्हर उम्हर भटकि रहल छलहुॅ।बाद मे सब कहलक एकटा पढ़ाई पर ध्यान दिय त एकाउण्टेंशी दिस
ध्यान लगेलहुँ। परीक्षा के समय आबि रहल छल।हम अपन मसियौत भाय बहिन के सहयोग सऽ
फॉर्म भरलहुँ।बरसाइत के बाद नइहर जाक परीक्षा देबाक मोन छल।घर सऽ जोर देल गेल जे
मौसी लोकल छथि हुन्का सऽ सम्बन्ध राखू।हम निर्णय केलहुँ ओतय जायके।एकटा बहुत
हास्यास्पद घटना भेल।हमरा मौसीके घर जायके छल आ ओ बड व्यवहारी छली। हुन्का भेलैन
जे ब्याहल बेटी असगर कोना आओत।हम कहलियैन हम आबि जायब त ओ कहली आधा रस्ता सऽ छोटका
भाय हमरा संग भ जेता।हम स्टेशन पर भायके इंतजार मे रही । अहि भायके दस साल बाद
भेंटितहुँ।एकटा लड़का के देखलियै जे हमरा दिस ताकि रहल छल मुदा लग नहिं आबि रहल
छल।हमहुँ ढ़िसमिसायल रही जे कहिं ई कियो आन हेतै।कनिक कालक प््रातीक्षाके बाद हम
असगर विदा भेलहुँ। जखन पहुँचलहुँ त मौसी संगे वैह लड़का ठाढ़। हम हुन्का दौड़ेलियैन
जोर सऽ जे हमरा पुछलहुँ कियैक ने तऽ ओ कहला जे अहॉंक बगल मे लड़की सबहक टोली रहै से
हमरा डर भेल जौं सब मिलिकऽ हल्ला करितै।तैयो हम ततेक खिसियैल रही जे जाबे हम
रहलहुँ ओ लौटि कऽ घर नहिं एला।मौसीके घर हमरो घर सऽ छोट रहैन लेकिन अतेक स्नेहमय
जे हम हमेशा भागी ओतय।हुन्कर हाथक खेनाईक स्वाद हमरा आर कतौ नहिं भेटल।बरसाइतक
एकदिन पहिने अरबा अरबाइन करैके परामर्श भेटल आ कहली जे बस अहॉं आबि जाऊ।हम लौटि क
अपन घर एलहुँ।पति के पसन्द सऽ साड़ी किनलहुँ।बामा हाथ में मेंहदी लगेलहुँ आ दहिना
हाथमे पति सऽ लगबेलियैन।ओ हाथक डिजाइन तेहेन एब्सट्रैक्ट रहैजे लोकल ट्रेनमे सब
हमर हाथ दिस ताकैत रहै।हम सॉंझमे मौसीलग पहुँचलहुँ आ सूतय लेल बहिनक घर गेलहुँ।
राति भरि बात करैत रहलहुँ। कखन नींद भेल से नहिं बुझलियै आ उठलहुँ एगारह बजे।जल्दी
जल्दी तैयार भऽ जखन पाबैन लै गेलहुँ तऽ देखलियै जे महिला सबहक टोली जमल छथि आ सब
मौसी पर तमसायल जे बड़ तऽ नहिंये एलखिन कनियो कत पड़ायल छथि।मौसी हमरा सब पर
तमसायल।मौसाजी बात सम्हारि देला आ हम पाबैन पर बैसि गेलहुँ।पूरा विख्यान सऽ पाबैन
भेल।बहिन सब तऽ फिल्मी शहरके बसनिहारि देखैमे हिरोइने जकॉं छली आ बहुत खुशी छल जे
गाम घर स दूर रहियो कऽ कतेक व्यवहारिक छलैथ।हम बरसाइते दिन सांझमे लौटि गेलहुँ आ
अगिला भोरहरबे मे पति संगे गोराई खाड़ीमे गौर भसाब गेलहुँ।हम तमसायल रही जे पहिल
बरसाइत हम असगर पुजलहुँ तऽ पति कहला जे मधुश्रावणीमे ओ एता।
हम नइहर गेलहुँ परीक्षा लेल।ओतय स्टेशन पर पिताश्री लेबय
एला आ भेटते देरी कहला जे अहॉंक सास ससुर अहॉं सऽ खुश नहिं छथि । हम भरि रस्ता
कानैत रहलहुँ। घर पर मॉं संगे पड़ोसक अण्टीजी सब रहैथ इंतजारमे । सब पुछलथि की
भेल।हमरा शर्मीन्दगी सऽ किछु बाजल नहिं भेल।तकर बाद पढ़ाइक बहाने हम घरमे नुकायल
रहैत छलहुँ। किछु लोक पुछबो केलैथ जे की भऽ गेल अहॉंके. मोन गड़बड़ायल अछि
की ? तहिपर हमर संगी बचिया जे ब्याह मे
रिपोर्टर रहै से सबके चुप करेलकैन ई कहिकऽ जे अखन हिन्का पढ़ाई करैके छैन. जखन समय एतै तऽ
बिमारो हेथिन. हॉस्पीटलो
जेथिन आ बच्चो अनथिन।धीरे धीरे हम ढीठ होयत गेलहुँ।तकर बाद जे भेटैथ हुन्का लग अपन
पति के चर्चा खूब करी।
फेर मौना पंचमी आयल पतिदेव नहिं छलैथ से सब टोकि रहल छल।हम
पन्द्रहो दिन फूल लोढ़ गेलहुँ आ पूजा केलहुँ।पति देव के पूरा सहानुभूति छलैन हमरा
सऽ। रोज राति कऽ फोन करैत छलैथ।दिनमे इण्टरनेट चैट पर सेहो गप्प होयत छल।फेर
सबकिछु बियाहे जकॉं भऽ रहल छल।मधुश्रावणीमे पतिदेव पहुँचले नहिं रहैथ।सासुरो सऽ
कोनो भार नहिं आयल छल।मॉं साड़ी किनने रहैथ तकरे पहिनकऽ पाबैन पर बैसलहुँ।अन्ततः
फिल्मी हीरो जकॉं पतिदेव अन्त समय पर पहुँचला। सास किछु भार आ साड़ी पठेने रहैथ।हमर
जानमे जान आयल।साड़ी बदलि हम फेर पाबैनमे बैसलहुँ। हम बहुत ऑह्लादित रही से सबके
बुझागेलैन। सब कहि रहल छलैथ जे यैह छै बेटीक जिन्गी।ब्याह निमाहै लेल सबके बिसर
पड़ैत छहि।हमर नानीजी रहैत से कहली केहैन निशोख छथिन सास जे एहेन फीका रंगके साड़ी
पठेलखिन।हम डेरायल रही कारण हमर पतिदेव श्रवण कुमार छलैथ।मुदा हमर मॉं कहलखिन ई
नौकर्रीचाकरी करतै ताहिमे काज एतै तैं एहेन पठेलखिन।हमरा राहत भेटल।
२
कामिनी कामायनी
लघुकथा-
॥ सोर॥
सबटा सतरंगी चादरि अपन अतृप्त काया पर लपेटि,इंद्रधनुष बनि सम्पूर्ण आसमान पर पसरि ज़ेबा के लालसा ओकर मन मे औचक नै प्रस्फुटित भेल रहै,ई त कतेक बरखक
मुईल मीझैल लुत्ती छल हेतै जे समय आ अनुकूल वसंती झोंका के कोमल ,शीतल स्पर्श
पाबि दावानल बनि धधकि उठल ,नै जंगलक लाज ,नै काल वा समयक
। आ एक बेर जे भयौन धाह उठलै,त स्वाभाविक छल ,अपना कात करौट के सम्पूर्ण जीव जन्तु संग ,विशाल ,दैत्य
सन बिकराल गाछ बिरीछ के सेहो भस्मीभूत करि देलके।ओहि झरकल खड़ पत्बार, कीट
फतिंगा ,पशु पाखी के
मध्य कारि स्याह भेल हरियरीके निहारि क आंखि स नॉर बहाबय बाला ,धरती आ
आकाश ,एकदम स्तब्ध ।अपन हृदय के
असीम पीड़ा नेने किछू पाखी चें चें करैत,अपन प्राण बचाबय लेल दोसर वन
प्रांत मे बौवा ढहना क शरणस्थली के आस मे निरास –निरास उडी चलल छल । कतेक चेंन स ओ सब अपन
पुरान बास स्थल मे ,चहकैत,महकैत,गबैत ,चुगैत दिन काटि
रहल छल ,मुदा हाय रे दावानल ,कोन आगि
जठराग्नि के टपैत,मानसिक
विचार के क्षत विक्षत करैत ,लक्षमनरेखा नांघय लेल बाध्य करि देल ,जे
अकस्मात ओकर सबहक खोंता उजड़ि गेलय,ओकर सबहक ओ डारि अनकर भ चुकल छल ।
स्याह राति मे खिड़की स हेरैत आकास संग, स्वाति
के मोन विचारक बाध बोन मे बुलैत बुलैत घृणा आ आत्मग्लानि स
भरि ओकरा भाव विह्वल करि देलके, रहि रहि क कुहेस फूटे,संसार त्यागक
विचार मों के आंदोलित करय लागै। कोन मुंह ल क केकरा
लग जेते ,सम्पूर्ण मुख मण्डल त खापड़िक
पेंदी बनि गेल आब ,केहन परिहासक
दृष्टि स छलनी छलनी
करय लेल,वाणी स
फुइसक सहानुभूति स, आत्महत्या धरि करबाक लेल प्रेरित करबा लेल बेकल समाज
ओकर प्रतीक्षा मे बाहरि ठाढ़ छैक ।ओछोन प राखल मोबाइल फेर बफारि तोड़य लागले मुदा ओ ओहिना
पथरालि सन ठाढ़। कनी कालक बाद फोन उठा
कॉल बौक्स प नजरि फेरलक उन्नीस टा मिस कॉल ,कतेक अपन लोक सब
।सुतल हाथ के कहुना घींच घांचि क टेबुल
लैंप जरा क पैथोलॉजी के मोटका पोथी खोललक ,काल्हि परीक्षा
छै,पेपर के
नाम स दिमाग जखन किछू रक्त संचार भेलै त ओत्तय किछू दोसरे प्रकारक खलबल्ली होमय
लगले।फेल करबाक हदस सेहो हृदय मे पइसय लागल छल,ओहि टौपर विद्यार्थी के ,जे फराके डिप्रेशनक विषय बनितेक।
कालेज स आबिते अपन फ्लैट क सोझा
सिडही प बैसल बड़ी माँ ,जिनक मंथरावादी दृष्टिकोण स के नहिं आहत भेल छल ,आ हुनक
पूत रिंकू के देखि ओकर हाथ पएर सुन्न आ होश हवास गुम होमय लागले, ‘ हे दैव
ई दोसरपूतना के किएक पठौलहू हमर बद्ध करबाक लेल कतेक हमर पाप अछि ओहि जनमक”। मन मौन क्रंदन कयने छल,मुदा गरा लगिक बुझि पडले कतेक बरख स ग्रीष्मक प्रचंड रौद मे भटकि
रहल छल, आय जेना औचक हिमालय स्वयम लग आबि क अपन स्नेह पाश स तिरपित
करी देल।
अपन जन्म स्थान
स अतेक दूर अहि नगर मे
धियापुत्ता सब के पढ़बे लेल ओ सब पहिनहि मकान किन नेने छलथी ,स्वाती
के पपा त हुनके देखसी केलन्ही, मुदा निष्ठुर विधाता के कलम स ओ दुनु भाई
बहिनी क भाग्य मे ग्रहण लागि गेले ,तखन मम्मी, आ पप्पा
के अरजल, लक्ष्मी ,जीवन के गाड़ी अहि
महानगर मे सेहो निधोक घींचैत रहल छल । स्कूल पास करि उच्च शिक्षा लेल दुनु
इंजीनियरिंग आ मेडीकल कालेज मे दाखिला ल चुकल छल । किन्स्यात इहों एक गोट कारण बनि
गेल होय , अहि बंधन स नीफिकिर भेला के ।
घोर
असगरुवा आ नैराश्य पूर्ण जीवन स त्राण पाबय लेल ईएह दुनु हुनका कम्प्युटर आ
इन्टरनेट के दुनिया स परिचय पाती करौलक त ओसब स्वप्नों मे अहि महाविनाश क गप्प
नहीं सोचल ।मुदा जीवनक सातो रंग जखन मस्तिष्क
क दरवाजा खोलि क बहरे लागले ,तखन जुग जुग के
दग्ध हिय प पावसक मधुर मधुर बुन काया के जुड्बेत सूखैल जड़ि मे खादि पानि देनाय
सुरू केलकै त ठूंठ सेहो अपन रंग देखबे लेल माथ उठौने हेतै । डारिक पोर पोर मे
नांहि नांहि टा आंखि लागले आ देखिते देखिते लौजा लौजा पात स भरल झमट्गर गाछ फेर स
बनबा मे कनिओ बिलंब नहिं भेल । ओहि
हरियायल ठूंठ प हेजक हेज पखेरूगन किल्लोल करबा लेल उताहुल भ गेल । आ ओकर खोहड़ि मे
इच्छाधारी नाग के बास हेबा मे सेहो मे कनिओ विलंब नहिं भेल छल। समान्य लोक बुझि नहिं पाओल की प्रचंड रौदी मे ई असमान्य हरियरी आब विषाक्त भ चुकल छैक। वा ई गाछ आब
देबे भरोसे जीवित रहे त रहै,परिजनक आंखि मे त भुतहा बनिए गेल छल । पहिनुका चिड़े चुनमुन
के सेहो पर्यावनक अहि खेल स मर्मांतक कष्ट भेल रहै ,सुखैले छल मुदा
डारि प ओकर अपन खोंता त छल, जतय राति दिन ,मौसमक मारि स
बचबा लेल तीनों अपन अपन पांखि पसारि क लोल मे लोल ध दाना चुगे छल ,ची चपड़
करैत छल, अपन अपन पांखि के बलगर बनेब् क नित दिन सपना देखैत छल ।
कखनों कखनों पैघ लोक क जिद सेहो धिया पुता के कोमल परिवेश
के,ओकर
दुनिया के , मटियामेट करिक राखि दैत छैक । आ ओहो एहेन
वीभत्स ,जे जन्म जन्मांतर धरि प्रेतक परछाही बनल ओकर पछौड़ धेने रहि जाए छै।
जखन ओ वृक्ष
भुतहा कहाबय लेल बाध्य भ गेल त ओकर फड़ आ फूल के तुलसी आ
बेलपत्र जका त नहिं पूजल जेतै ।
अत्यंत उचगर स्थान प ,निधोक भ, साँय साँय, उदण्ड बहैत बसात ;एहेन मे त विशाल झमटगर गाछ सेहो क्षण मात्र मे भूमिशाई भ जाय छैक,ओसब त मात्र
नान्ही टा के एक गोट कोमल तरुवर । तहन सब
विचार मुंह भरे खसय लागल छल। दूर दूर धरि बियाबान, चारहु कात घनघोर
तिमिर ,कोनो बाट कत्तहु नहि सुझै। चलबा के त छलैहे। जिंदगी त
आगा बढ़ब के नाम छै ।
छुच्छ बासन मे सेहो हवा भरल रहे छैक , कत्तों
कोनो वस्तु के प्रकृति खाली नहि रहय दईत छैक । तखन विचार शून्य मस्तिष्क कतेक दिन
निष्क्रिय सुतल रहितैक । बड़ी मम्मी कहिया धरि अपन घर
गिरहस्थी तजि ओकरा ओगरने पड़ल रहितथि। स्वाति के माथ प ओकर जीवनक बोझ राखि,ताला कुंजी सुनझा क ,बोल भरोस दइत ,फेर फेर
आबए के गप्प करैत अपन घर जाय लागली त ओकरा बुझा गेल रहे जे एके सहरि मे रहिओ क आब
हुनक बाट अहि घर स बड़ दूर चलि गेल छल। बाहर हुक्का लोली खेलाईत समय खिड़की दरवज्जा स ओहि घर मे हुलकी मारैत रहले , मुदा भीतर प्रवेश करबाक साहस नहि केलकै । काल्हिके स्वाति
आय एकदम बदलि क पकठोस भ चुकल छल ।कखनों बाढ़ेन
हाथ मे,त कखनों
चकला बेलना ,आब ओकरा घरक़ सबटा काज करनाय कनिओ नहि अखरे । ई एकांत
ओकरा लेल परम आवश्यक बनि गेल छल ।व्यर्थ मे कोनो काजवाली आबि क ओकरा और फिरिशन करे
से एखन ओ कदापि नहि चाहैत छल ।
लोकल
भेला के कारणे हॉस्टल लेल अपलाई नहि कैने छल पहिने ,मुदा आब ,बीच
सेशन मे त कोनो सवाल ए नहि छल भेटयके ,तखन अगिला बरिस
क बाट जोहू ।
उमहर हरियालि गाछ सेहो अपन पुरान मोह नहि
छोड़ि पाबि रहल छल ,ओकर बाजब सुनब ,हसब ,पढब ,लिखब
ओकरा असंख्य आंखि स सम्पूर्ण स्पर्श करबा लेल बेकल भ बेर बेर फोन करे त स्वाति के
मनक संताप आओर बढि जाय । घृणा स ओकर माथ पैन बिजली के पंखा सन घुमय लगे । सम्पूर्ण
आकास ,धरती ,पाताल क ,असहज
दारुणसोर ओकर मस्तिष्क के धारीदार आरी स चिरय लागल छल
।छाती पीटेत, विलाप करैत, बताहि समुद्री धारा सब आब एके स्वर स चिकरय लागल , एतेक तीव्र स्वर 'ईयह छै ओ' "ईएह छै ओ जेकर ,," चारहु दिस स
ओकरा प उठल आंगुर' ,ओह ,कोन
पताल मे नुकाय ,कोनअग्नि मे भस्म
भ जाए ,किछू फ़ुरै नै छल तखन अपन
आंखि संगे दुनु
कान सेहो घबड़ा क बन्न करी नेने छल ।
दू तीन सप्ताह स स्वाति चकोर दिस
नजरिओ उठा क नहि देख सकल छल। अपने मे गुमसुम ,आंखि क सोझा
कारी ,जेना कजरौटा के सब
टा काजर निकालि क किओ ओकर सुंदर आंखि के नीचा मलि देने
होय । एक दु बेर ओ ओकरा सोझा ठाढ़ होबाक प्रयास कयबो
कैल ,मुदा अपने मे ओझराएल स्वाति मेला मे हेड़ाएल नेना सन डराएल डराएल इमहार
उमहर तकेत चुप चाप चलल जाइत रहल छल । चकोर की सोचते ,इहों
संताप रहि रहि क ओकर मानसिक अवस्था के आओर व्यग्र करि दैक। काल्हि धरि जे ओकर
व्याख्यान सुनि आंखिक पपनी झपकेनाय बिसरी
जायत छल,जे महान
प्रचेता ,ऋषि ,मुनि के खिसा
सुनि,अपन
महती धरोहरि के कथा सुनि ,मिथिला दर्शन लेल उताहुल भ गेल छल ,आय ओकरा
कोना कहते जे ,मिथिला के वर्तमान मे सेहो आब माहुर घोरा गेल अछि ।
राति राति भर
गेरुआ के अपन करेज स सटौने,पलंग प
पेटकुनिया देने ,टुकुर टुकुर तकेत ओकर दृष्टि सोझा पड़ल टेबुलक पाया स
बहरा क कतेक कतेक जुगक पार स बौवा ढहनाक आपस आबय त लगे ,दरवाजा
के कुंडी किओ खटखटा रहल अछि ,किंसयात ओ आपस
आबि गेल होयथ,मुदा ओ
त निष्ठुर हवा निकलै छल ,जखनओ धडफड़ा क उठे ,खुजल केवाड़ स
दूर दूर धरि सड़क्क नियोन लाइट मे किओ कत्तों नै देखाय पडै। कखनों खिड़की के परदा
हिलै, मुदा ओ कत्त झांकि रहल छली,। आंखि बहे “गै सुगनी हमर
कत्थी लेल कनै छै’ ओकर माथ प हाथ
राखि बाजल ओ स्वर त वक्ता समेत आब बिला
गेल । “पापा यौ पापा ,एहेन पहाड़ किए भ
गेले हमर सबहक जीवन यओ पापा,विधाता किएक हमरे सब स बाम भ गेलखींन’। जखन ओकर कोढ़
फटे त जेना लगे कत्तों कोनो पहाड़ प बादल फाटल होय । सोफा प बई सल मुसकैत पापा अपन सुगवा ,सुगनी के करेज स
सटौने ओकरा दुनिया के सबस शक्तिशाली लोक बनबए के सपना देखेत ,देखेत स्वयम
स्वप्न भ गेला ,तखन माँ के आचरि,छतरी बनी दुनु के माथ झपने रहे ,आब ओ
आचरि सेहो पछिमक बड़का
आंधड़ि मे उधिया गेलै। आब ,, ।दिमाग मे उधम मचबईत अहि
भयानक सोर केबलजोरी शांत करैत
सोचल , शक्तिशाली त बनैए पड़तेआब ,पापा
कहैथ छलखिन,कमजोर गाछ के सब मोचाड़ि क राखि दैत छै ,बलगर तर
छाहरि लैल ,अप्पन त
अप्पन , दूर दूर स
अंचिन्हार सेहो हेंज क हेंज आबै छै
आ ओ गाछ सहर्ष ओकरा स्वीकार सेहो करैत छै”।
एतेक दिन के बाद स्वाति के अपन स्वाभाविक गति स ,अपना
दिस आबैत देखि चकोर जतय छल ओहि ठाम अजंता के मुरुत जका ठाढ़ भ गेल
।स्वाति ओकर हाथ घीचने केंटीन दिस बढि चुकल छल । आय ओकर मुख मण्डल प उदासी के कनिओ
कोनो चेंह नहि छले,। क्लास ,डिसेक्सन ,सेमिनार प्रोफेसर सब प
ओहिना यथावत हाथ हिला हिला क गप्प करैत काफी पिबेत, सेंडविच
खाइत,बाजैत
रहल छल ।
बेसी सनि रईब क घरक़
भोजन करबा लेल चकोर के जिद करी क स्वाति अपन घर आने छल ,। इमहर
चारि पाँच मास भ गेलै त चकोर स्वयम अपन मुंह
खोलइत बाजल छल “आब अहा घरक़ खेनाय लेल नहि बजबे छी,आंटी मना करैत
छथी की’। “आंटी’ ,कनी काल लेल ओकर
आंखि मे फेर स बिर्रो उठबा के कोसिस कयने छल ,मुदा
बलगर बनवा के विचार ओकर ठोर प चौकीदार जका ठाढ़ भ गेलै मन मे उठले “फेस द
फिअर ,फिअर विल डिसेपियर’ ।माथ
झुलबैत कहलक , “माँ त आब चलि
गेलखीं’। “कत्त ,गाम ,कहिया
औति’।ओ कनी
अवाक सन भेल । “ नै नै ,आस्ट्रेलिया , ओ आब दोसर विवाह करी लेलखींन”। ई एतेक
पैघ आ मर्मांतक कष्ट क गप्प ओ एना बाजि देलके
जेना ओ ककरो आन स संबन्धित होय । चकोर के माथ नहि जानि की सोचि क झुकि गेल छले,स्वाति ओकर मुह प खसल केस के अपन आंगुर स सइतेत ओकर हाथ मे हाथ धेने
केंटीन स निकसि क बाहर लौन मे आयल आ
बेफिकिर ,बिन हारल खिलाड़ी जका जेकर की
खेल खराप मौसमक कारणे अस्थगित भ गेल होय ,जय
पराजय स मुक्त दुनू मेक्डौनाल्ड मे खाय लेल सीपी चलि गेल छल
।
१.कुमार पृथु- नापल तौलल पसरल पथार (परमेश्वर कापड़िक पथार)२.
बाल मुकुन्द पाठक -लघु कथा - प्रेम : वरदान वा अभिशाप
१
कुमार पृथु
नापल तौलल पसरल पथार (परमेश्वर कापड़िक पथार)
सामाजिक सांस्कृतिक भावभूमिक निमन उजहल साहित्यिक उपजा थिक, ई पथार कथा–संग्रह । सुपुक लोकजीवन आ निस्सन सामाजिक
परम्पराक रग आ तहमे निछुन रुपस’ घड़ेर कएल लोकयथार्थ आ युगसत्यक सहज
संवेगीत स्पन्दनक गेंठ आ पुरौंतसनके ई बुझाइछ । सहज सुथर लोकभाषामे सामाजिक–सांस्कृतिक परम्पराक तत्व–दर्शन सङे लोक जीवनयथार्थ आ लौकिक युगसत्य
एहिमे एहन भ’ क’ ने सज्झर–मिज्झर अछि, जे बहुत अंशमे ई मैथिली ब्लतजचयउययिनथ क नीक स्वरुपक आह्लादक भाववोध करबैछ ।
चतरल पसरल मैथिली
कथासाहित्य मध्य ई एकटा निजगुत धस आ संवेगीत पहुँचक खुरपैरिया रहबट लगैछ । पथारक
कथाकारक रचनाधर्मी सहजता, सुक्ष्म अवलोकनक अलबेला क्षमता तथा
सृजनात्मक सिद्घि, बहुत उजहल आ सरि–सुत्थर लगैछ । कथाकारके जे रेहल–खेलल लेखकीय पकड़ आ परिकल पकठोस रचनाधर्मी
ऊर्जा क्षमता अछि, ओ मैथिलीक हक आ पक्षमे शुभ सगुनियाँ लगैछ
। पथार संग्रहस’ रचनाकारक परम ऐतिहासिक आयतन–आकारक नाप तौलक संगहि सम्मानित लेखकीय विस्तृतिक अगाध परिधि एवं उत्कृष्ट
पहुँचक वोध सेहो होइछ ।
पथारमे गुँड़–चाउर फँकैत आस–मोरथ अछि, हँथोरिया मारैत ककुलता बेगरता अछि, घै–कटैत ललसा आ मचकी झुलैत सपनासभ अमार लागल अछि । एहिमे ओङहरिया मारैत रोदना–घेओना अछि, त’ घुसकुनियाँ कटैत सीमा आ चिका–दरबर खेलैत अनन्त आकाश सेहो अछि । सबस
बढ़का बात जे एतए अछि, ओ अछि— अप्पन लोकक जीवन अनुभवक विस्तृत लेखा–जोखा से अपरुप आ अपार अछि । किएक त’ एहिमे हमरे–अहाँक घर–अङना, ओलती–धुरखुर, दुरा–दलान, खेत–खढिहान, कमाइ–खटाइक प्रतिविम्वन अछि । निछुन निमनस’ ईसब हमरे अहाँक अछि । से एहि दुआर,े जे एहिमे परम्परा आ जिनगी अछि, संघर्षस’ भरल आशा–विश्वासक अनन्त उपक्रम अछि । नीक–बेजाय सब तरहक चेहरा चित्रित करएबला
अनुभूति आ अभिव्यक्तिक जे वैशिष्ट अछि, कथ्य, शिल्प आ तकनीकी स्तरक जे वैविध्य अछि, ओ मनभावन अछि । एहिमे मानवीय संवेदनाक घनीभूत एवं सार्वभौमिक स्वर सेहो अछि, मुदा विष्फोटक, नव संरचनावादी आ परिवत्र्तनकारी अछि ।
भौतिक भोगवादी युगक समकालीन
सन्दर्भ आ वैश्वीकरणक उजहिया परिप्रेक्ष्यमे बिलटल अफसियांत जिनगी, उहापोह एवं दौडधूपस’ बिकठाह, एक–रसाह भ’ गेल अछि । जीवनक सबटा राग–रंग भटरंग भ’ क’ दुइर भेबा के भेबे कएल अछि, हास्य विनोद युक्त अपन अनुपम आनन्दक अनमोल
परम्परा सेहो अलोपित भ’ रहल अछि । चौल–मजाकक जे विशुद्घ, सरस परम्परा छल, सेहो हेरा–ढेराक’ बेबाइल भेल जा’ रहल अवस्थामे, चिकन चुनमुन लोक राग–भासमे व्यंग्य परम्पराके जे ई आगू
बढएलन्हि अछि, हमर प्रकाशकिय नजरिमे ओकर स्वीकृति आ
मूल्यांकन लोकप्रिय आ सोकाजक अछि ।
२
बाल मुकुन्द पाठक
ग्राम + पोस्ट- करियन
थाना - रोसड़ा ,जिला- समस्तीपूर
मो॰ 9934666988
लघु कथा - प्रेम : वरदान वा अभिशाप
गर्मीक दिन छल ,साँझक
समय ।ऐहन समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु
व्याकुल , किछु
उदास-सन , किछु कहैत मुदा
चुपे - चाप
सूरूज डूबि रहल छल ।साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक चित्रे
मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत अछि ।
॰ ॰ ॰ कि एका-
एक राजीव फोन देखैत अछि , ककरो फोन नै आएल रहैक । ओ अपन शर्टक जेबमे हाथ दैत अछि आ
सिगरेटक डिब्बा निकालि लैत अछि , डिब्बा खोलि ओहिमेसँ एकटा सिगरेट निकालि लैत अछि , सिगरेट सुलगा
डिब्बा पानिमे फेँक दैत अछि , शायद एक्केटा सिगरेट ओहिमे बचल रहैक । ओ सिगरेटक कश खीचैत
गंगाक धारमे हिलैत - डोलैत सिगरेटक डिब्बाक आगू जाएत देख रहल छैक आ ता धरि देखैत
रहल जा धरि उ डिब्बा विलुप्त नै भेलै , ओ किछु उदास भऽ गेल जेना ओकर किछु अपन छूटि दूर चलि
गेल होए ।
॰ ॰ आ कि जेना ओकरा किछु फुरायल होए ओ अपन मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल
रहैक । ओ अपन मुख पश्चिम दिस करैत अछि , सूरूज आधा डूबल छल आ आधा ऊपर । ओ सिगरेटक अंतिम कश
खीँचैत सूरूजके डूबैत देखैत रहल , आ फेरसँ एक बेर मोबाईल दिस देखैत अछि , कोनो फोन नै आएल रहैक ,ओकर मोन व्याकुल भऽ गेल आ ओ उठि डेरा दिस
चलि दैत अछि । डेरा गंगा कातसँ किछुए दूरी पर छल ।ओ बराबर साँझके गंगा कातमे स्थित
कृष्णा घाट पर आबि बैस जाएत छल , ओकर मोनके ऐहि ठाम किछु शांति भेटैत छल ।
॰ ॰ डेरा पहुँचि , गेट
खोलि ओ अंदर कमरामे गेल पहिले बल्ब फेर पंखाके चालू कऽ दैत अछि , आ एक बेर अपन
मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल रहैक । फेर ओ कपड़ा खोलि , डाँढ़मे गमछा
लपटि बाथरुम जाएत अछि , बाथरुमसँ
आबि फेरसँ मोबाईल देखैत अछि , फोन नै आएल रहैक ।बल्बके बंद कऽ ओझैन पर पसरि जाएत अछि ॰ ॰
किछु देर मोनमे अस्थिर कऽ सुतबाक प्रयास करैत अछि ॰ ॰ नीन्न आँखिसँ कोसो दूर ॰ ॰
मोबाईल देखैत अछि , फोनो नै
आएल रहैक । कियै , आखिर
कियै ॰ ॰ ॰ नीतू ओकरा फोन नै कऽ रहल छैक ॰ ॰ ॰ शायद ओकरा बिसरि गेलै , नै ई नै भऽ सकैत
अछि ओ ओकरा नै बिसरि सकैत अछि आ ओकरा दिमागमे सभटा पुरना बात सीडी प्लेयर जकाँ
घूमऽ लागलै ।जेना ई कोल्हके बात होए ओकरा मोबाईल पर एकटा नंबरसँ फोन एलै -
- हैलो ( कोनो
लड़कीक स्वर रहैक)
- हाँ , हैलो , के
-हम अंजलि , आ अहाँ
- राजीव , हम
राजीव छी ॰ ॰ अहाँ कतोऽ सँ बाजैत छी
- दरभंगा , आ अपने
-रौंग नंबर अछि ,ई पटना
छैक (आ राजीव
फोन काटि दैत छैक )
किछुए देर बाद फेरसँ फोन आबैत छैक राजीव जा धरि फोन उठेताह , फोन कटि जाएत
छैक ॰ ॰ ओ मिसकाँल रहैक । ईम्हरसँ फोन करैत अछि , फेरसँ ओहे लड़कीक स्वर - ! आ अहिना धीरे-धीरे फोनक
सिलसिला शुरु भऽ जाएत छैक आ बात होबऽ लागैत छैक ।बादमे ओ लड़की राजीवसँ कहैत छैक
ओकर नाम अंजलि नै नीतू छैक । किछुए दिनमे बात बेसी होबऽ लागल आ गप्पक अवधि बढ़ैत
गेल आ एक दोसरासँ प्रेम भऽ गेलैक ।
धीरे-धीरे
बात एते होबऽ लागल कि राजीवक काँलेज - कोचिंग ,पढ़ाइ - लिखाइ सभ छूटि गेलैक आ जौँ कहियो ओ काँलेज जेबाले
सेहो चाहै नीतू ओकरा मना करैत रहैक ।
बातक दरमियान दूनू भविष्यमे विवाह करब आ मिलबके प्रोगाम बनाबैत रहैक ।
आइ राजीव बहुत प्रसन्न छैक ओ नीतूसँ मिलऽ लेल दरभंगा जा रहल छैक । साँझके 7 बजे दरभंगा
पहुँचैत छैक आ भोजन कऽ होटलमे एकटा कमरा लऽ लैत छैक । भोरे नीतू दरभंगा जाइत छैक आ
हजमा चौराहा पर राजीवके मिलनक लेल बजबैत छैक । राजीव हजमा चौराहा जाइत छैक आ दूनूक
मिलन होएत छैक ।राजीव देखबामे ठीक ठाक रहैक नीतू सेहो सामान्ये छलीह । बाटमे चलिते
चलिते नीतू राजीवक हाथ पकड़ि लैत छैक , राजीवके एकटा विशेष प्रकारक अनुभूति होएत छैक ,आखिर पहिल बेर
कोनो युवती ओकर हाथ पकड़ने छैक ।दूनू होटलक कमरा धरि हाथ पकड़ि जाएत छैक , कमरामे जा गेट
अंदरसँ बंद कऽ लैत छैक ।नीतू राजीवक हाथ पकड़ि चूमि लैत छैक आ राजीव ओकर ठोर पर आ
दूनू एक दोसरामे ओझरा जाएत छैक ।
मिलनक उपरांत बातचीतमे कोनो प्रकारक अंतर नै भेलैक आ दोबारा मिलनक प्रोगाम
बनैत रहलै , संगे
संग विवाहक प्रोगाम सेहो बनैत रहलै । आ कि एक दिन नीतू , राजीवसँ अपन
विवाह कोनो आन ठाम तय होबाक समाद सुनाबैत छैक , राजीवक देहपर तऽ जेना बिजली खसि पड़ल होए । दुनु बहुत
कानैत खीजैत छैक आ नीतू पहिले चुप भऽ राजीवके बुझाबैत छैक -
"अहाँ नै कानू , हम्मर सप्पत । हम अहाँसँ बाते ने करैत छलौ ।हम विवाहक
बादो बात करब आ अहाँसँ मिलब । हयौ जान ॰ ॰ हमर देहे टा ने ओकरा लग रहतैक बाँकि
मोनमे अहीँ छी आ अहीँ रहब ।हम अहीँ टा सँ प्रेम करैत छी आ अहीँ टा सँ करैत रहब
।अहाँके हमर सप्पत चुप भऽ जाउ नै कानू । "
राजीव कहुना सप्पत मानि चुप भऽ जाएत छैक । लगभग दू मासक बाद नीतूक विवाह होएत
छैक , विवाह
दिन धरि बात ओहिना होएत रहल जेना होएत छल ।
विवाहत परात राजीव ,नीतूक
फोन करैत छैक मुदा फोन बंद छैक ,एक दिन ,दू दिन आ कि तेसर दिन ओकरा एकटा दोसर अनजान नंबंरसँ मिसकाँल
आबैत छैक ओ फोन करैत छैक ,
दोसर दिससँ नीतूक स्वर आबैत छैक ।बात होएत छैक , राजीव बहुत कानैत छैक ,नीतू चुप कराबैत
छैक , बुझाबैत
छैक ।फोन राखबाक कालमे नीतू कहैत छैक अहाँके जखन मिसकाँल करब तखने टा फोन करब
।किछु दिन तक अहिना चलैत छैक ।
राजीवके बहुते दिक्कत होएत छैक , ओकरा मोन नै लागि रहल छैक ।दिन तऽ कहुना कटियो जाएत
छैक राति काटब मुश्किल होएत छैक . . नीन्न सेहो नै होएत छैक ।नै भूख छैक , नै प्यास ।
चारि दिनसँ फोन आएल बंद भेल छैक , तखन एक दिन राजीव फोन करैत छैक , नीतू फोन नै
उठाबैत छैक । दोसर दिन राजीव फेरसँ फोन करैत छैक , नीतू उठबैत छैक आ कहैत छैक - हमरा कियै फोन
करैत छी , हमरा
फोन नै करु , हमर
जिनगी कियै बरबाद करऽ चाहैत छी , हमरा कियै घरसँ बाहर करऽ चाहैत छी , विनय (ओकर पति)हमरा छोड़ि देत , हम कतौऽ कऽ नै
रहब । जौँ अहाँके हमरासँ प्रेम अछि तऽ फोन करल छोड़ि दियौ ,अहाँके हम्मर
सप्पत फोन नै करु । ई बात सुनिते मानू जेना राजीवक देहमे आगि लागि गेल होए । जेना
ओकरा करेज पर कियौ पाथर मारि देने होए ।ओकर मोन टूटि जाएत छैक उ भोकारि पाड़ि कऽ
कानै छैक ।आ ओहि दिन ओ प्रण करैत छैक चाहे प्राण कियेक नै निकलि जाय लेकिन नीतूक
फोन नै करतै ।आ दर्दमे ओ डूबल रहऽ लागल , असगर कमरा बंद कऽ रहऽ लागल ।धीरे धीरे ओकरा शराब
सिगरेट गुटखाक हिस्सक सेहो पड़ि गेलै ।
किछु दिन उपरांत ओकरा पता चलैत छैक जे ओकर परीक्षा होबऽ बला छैक ओ काँलेज
पहुँचैत छैक ।तखन नोटिस बोर्ड पर परीक्षाक सूचना देखैत छैक ।फार्म भरबाक लेल
किरानी बाबू लग जाएत छैक ,
तखन किरानी बाबू एतेक दिनसँ अनुपस्थित रहबाक कारण पुछैत छैथ ,ओकर पिताक फोन
नंबंर लैत छैथ आ फार्म भरवाके अनुमति नै दैत छथि ।ओकरा किछु नै फुरायत अछि कि की
करी , आ की नै
? ओ बहुत प्रयास
करैत छैक मुदा फार्म नै भरि पाबैत छैक ।ओकर पराते ओकरा घरसँ फोन आबैत छैक , फोन पर ओकर पिता
छलखिन्ह आ बहुते क्रोधित सेहो छलखिन्ह ।ओकर पिता राजीवसँ कहलखिन्ह-
" हम दुनु प्राणी अपन पेट काटि तोरा पाइ भेजैत छलौँ आ तू नै
काँलेज जाएत छलैए आ नइ पढैत छलैए ।काल्हि तोहर काँलेजक किरानी बाबू फोन पर कहलाह
जे तू छ माहसँ काँलेज नै जाएत छलैए आ देरसँ जेबाक कारण बार्षिक परीक्षाक फार्म नै
भरि सकलेए , से आइसँ
तू अलग हम अलग ।आब हम तोरा एक नया पाइ नै देबौ " ।
एतेक सुनि राजीवक जेना पैर तोरसँ धरती खिसकि जाएत छैक , ओकर कंठ सूखऽ
लागैत छैक , देह
टूटि रहल छैक ।मोन कानि रहल छैक , आँखिमे नोर नै छैक , मुँह पीयर लागैत छैक ।उ मोबाईलमे समय देखैत छैक रातिक
तीन बाजि रहल छैक , एक आठ
बजे साँझसँ उ सुतबाक प्रयास कऽ रहल छैक मुदा नीन्न कोसो दूर छैक ।आ कि एक बेर
फेरसँ मोबाईल देखैत छैक ,
कोनो फोन नै आएल रहैँ । ओकरा विश्वास छैक नीतू फोन जरुर करतीह आ जा धरि ओकर
जिनगी छैक उ नीतूक फोनक बाट जोहैत रहत मुदा फोन आएल आइ मास भरिसँ बेसी भेल छैक ।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर
पठाउ।
डॉ०अरूण कुमार सिंह, जे० आर० पी०- मैथिली भारतीय
भाषाओँ का भाषावैज्ञानिक सांख्यिकी संकाय, भारतीय भाषा
संस्थान, मैसूर (कर्नाटक)
अभिकलनात्मक/संगनणात्मक
(Computational) मैथिली व्याकरण
प्राचीन कालहिसँ भाषाक सोद्देश्यता पर चिन्तकक नजरि रहल
अछि। आइ भाषा-अध्ययनक एहि परम्परापरक स्वरूपमे परिवर्त्तन आएल अछि। एकर अनुसारेँ
भाषामे सोद्देश्यता एवं प्रयोजनमूलकताक भाव पूर्वनियोजित रूपेँ पैदा कएल जाए रहल
अछि। भाषाक इएह बदलैत भूमिकाक कारणेँ व्याकरणक स्वरूप एवं उद्देश्यमे परिवर्त्तन
होएब स्वाभाविके अछि। किछु चुनल शब्द, प्रयोग आओर वाक्यकेँ
सूचीबद्ध करबासँ लए कए भाषाक साँगोपाँग गंभीर विवेचन धरि व्याकरणक विस्तार मानल
जाए सकैत अछि। कोनो भाषाक प्रयोग-क्षेत्र भनहि सीमीत रहल हुए परंच ओकर उपयोगिताकेँ
लए कए कहियो विवाद नहि रहल अछि। आब प्रश्न उठैत अछि जे व्याकरणक उपयोगिता का अछि ?
छोट-छोट नेना नान्हिटामे अपन घर-परिवारमे बाजए बला भाषा सीख लैत
अछि। जाबत धरि कोनो नेनाकेँ ओकर मातृभाषाक व्याकरणिक औपचारिक जानकारी देल जाएत अछि,
ताबत धरि ओ नेना ओहि भाषाक व्यवहारमे दक्ष भए चुकल रहैछ। एहना
स्थितिमे ई प्रश्न उठब स्वभाविके अछि जे व्याकरणक आवश्यकता की अछि ? एहि प्रश्नक प्रत्युत्तरमे महर्षि पतंजलि महाभाष्यमे व्याकरणक प्रयोजन
बतबैत कहैत छथि-
‘‘ कानि पुनः शबदानुशासनस्य प्रयोजनानि? रक्षोहागमलध्वसंदेहा:
प्रयोजनम् ’’ अर्थात् रक्षा, ऊह, आगम, लघु एवं असंदेह यैह
पाँचटा व्याकरणक प्रयोजन अछि।
रक्षासँ
तात्पर्य अछि- वेदक रक्षा, यथा –
‘‘रक्षार्थ वेदनां – मध्येय व्याकरणं।
लोपागमवर्णविकारज्ञो
हि सम्यग् वेदान् परिपालिष्यतीति।’’
अर्थात्
लोप, आगम, आदेशक व्याकरणिक प्रक्रियाक
जिनका ज्ञान रहैत छन्हि सैह वेदक शुद्ध रूपसँ रक्षा कए सकैत छथि।
संदर्भक
अनुसार समुचित शब्दक कल्पना करब एंव तद्नुरूप ओकर व्यवहार करब ऊहक कोटिमे राखल
गेल अछि।
आगमक अनुसारेँ मानल गेल अछि जे व्याकरण पद आ पदार्थक ज्ञानक
उपरान्त वाक्य आओर पदार्थक ज्ञान प्राप्त करएमे सहायक होइछ। नव-नव वाक्यक उत्पादन
एवं प्रयोग आगमक कारणेँ संभव होइत अछि।
लघुसँ
तात्पर्य अछि जे किछु सीमित नियमक सहयोगसँ सम्पूर्ण भाषाक ज्ञान प्राप्त कएल जा
सकैत अछि। किएकतँ कोनो भाषाक विपुल शब्द-भण्डारकेँ कंटस्थ नहि कएल जाय सकैत अछि।
एनामे ई भाषा शिक्षणमे उपयोगी होइछ।
असंदेहसँ
तात्पर्य अछि जे भाषाक संरचनागत संदिग्धताक स्थितिमे व्याकरणक ज्ञान ओकर निवारण
करैत अछि।
व्याकरणक
एहि प्रयोजनकेँ देखल जायतँ एहिमे व्याकरणकेँ एकटा साधनक रूपमे देखल गेल अछि। एकटा
तथ्य इहो स्वीकारब आवश्यक अछि जे महाभाष्यमे वर्णित स्थित सँ आजुक भाषिक परिवेश
बड्ड बेसी भिन्न भए गेल अछि। एकरे परिणाम अछि जे वर्त्तमान समयमे अभिकलानात्मक
व्याकरणक संकल्पना प्रासांगिक अछि।
जँ
भाषाकेँ एकगोट व्यवस्थाक रूपमे अभिहित कएल गेल अछि तँ निश्चित रूपसँ व्याकरणे ओहि
भाषिक व्यवस्थाक तार्किक आधार गढ़ैत अछि। कोनो भाषा अपन विकाश-क्रममे निरन्तर
परिवर्त्तनशील रहैत अछि। संभव अछि जे एहि परिवर्तनक गति कम हो, परंच भाषामे आएल आंशिक बदलाव स्वयं भाषाक सजीवता लेल अपरिहार्य होइछ।
भाषामे व्याप्त एहि विकासक गतिशीलताक स्वभावक बादो एक आदर्श व्याकरणसँ अपेक्षा कएल
जाइत अछि जे ओ ओहि भाषाकेँ समग्र रूपेँ विश्लेषित एवं निरूपित कए सकय।
अभिकलानात्मक व्याकरणक लेल मानवक भाषाई अनुप्रयोगक स्वरूप, भाषिक
समाजक विकासक गत्यात्मक रूप तथा भाषाक प्रायोगिक स्तरक मूल स्थिति पर नव रूपेँ
विचार करब प्रासांगिक भए जाइत अछि। आजुक सामाजिक परिवेश औद्योगिक-क्रांति एवं
सूचनाक्रांतिक बीचक स्थितिक साक्षी बनल अछि। एहि स्थितिक दबाबस्वरूप जे भाषा मानव
एवं मानवक बीच संवादक माध्यम अछि वैह भाषा आइ मानव एवं कम्प्यूटरक बीच संवाद
स्थापित करबाक लेल तत्पर अछि। दरअसल यैह ओ स्थिति अछि जाहिमे अभिकलनात्मक व्याकरणक
पृष्ठभूमि तैयार कए रहल अछि।
अभिकलानात्मक व्याकरणक आशय ओहि व्याकरणसँ
अछि जकरा माध्यमे प्राकृतिक भाषाकेँ कम्प्यूटरक माध्यमसँ बुझल जा सकैछ। एकरा संगहि
व्याकरण होएबाक कारणेँ एकरासँ इहो अपेक्षा कएल जाइत अछि जे ई एतबा वैज्ञानिक एवं
परिपूर्ण हो जे एकर नियमक द्वारा कम्प्यूटरक माध्यमसँ प्राकृतिक भाषाक नव-नव
वाक्यक सृजन कएल जाए सकय। फलस्वरूप ई व्याकरण मानव-मशीन अंतरापृष्ठक समय अपन
भूमिकाक निर्वहन कए सकय। भाषा-कम्प्यूटिंगक लेल ई आदर्श स्थिति होएत जे एहन
अभिकलानात्मक व्याकरणक विकास कएल जाए सकय जे प्राकृतिक भाषाक सभ संरचनाक तार्किक
विश्लेषण प्रस्तुत कए सकय। एकर तात्कालिक लाभ ई होएत जे भाषा-प्रौद्योगिकीक
विभिन्न अनुप्रयोग जेना- मशीनी अनुवाद, सूचना-प्रत्यानयन, सूचना- संचयन, व्याकरण जाँचक, पाठ-विश्लेषण आदिक विकासमे दीर्घकालिक समाधान उपलब्ध भए सकय। एहि
क्षेत्रमे भए रहल शोधक लक्ष्य सेहो यैह अछि ; मुदा वर्त्तमान
समयमे भाषाक छोट-छोट संरचने पर शोधार्थीसभक ध्यान केन्द्रित अछि। एहि कारणेँ
रूप-विश्लेषण (Morph Analysis), टैगिंग (Tagging), आ पदानिरूपण (Parsing)क
स्तरे धरि ध्यान केन्द्रित भए सकल अछि आओर एहिमे सफलता सेहो भेटल अछि। आवश्यकता
एहि बातक अछि जे प्राकृतिक भाषाकेँ आधार बना कए एहन नियम विकसित कएल जाय जे नहि तँ
मात्र कम्प्यूटरमे सहज स्वीकार्य हो, बल्कि प्राकृतिक भाषा
पर केन्द्रित भाषा-प्रौद्योगिकीय लक्ष्यकेँ सेहो प्राप्त कएल जा सकय।
ई
सर्वविदित तथ्य अछि जे कम्प्यूटरक प्रचालन-व्यवस्था मूलतः द्वयंक प्रणाली (Binary
System : 0 & 1) पर निर्भर अछि आ ठीक एकर
विपरीत मानवीय भाषामे असंख्य शब्द-संपदा एवं अनेक तरहक वाक्य संरचना अछि। आब प्रश्न
उठैछ जे मानव-कम्प्यूटरमे संवाद कोना संभव होएत? इएह
महत्वाकांक्षा मानवकेँ कृत्रिम मेधा (Artificial Intelligence)क क्षेत्रक अंतर्गत शोधक लेल प्रेरित करैत अछि। एहिमे मूल समस्या ई अछि जे
मानव-मशीन अंतरापृष्ठ (Interface)मे एक दिस मानव होइछ जे अपन
असीम शब्द-संपदा एवं भावना, चेतना सदृश अनेक मानवीय गुणसँ
भरल होइछ तँ ओहिठाम दोसर दिस मशीन होइछ जे एकटा स्थल उपकरण मात्र अछि। एहन
स्थितिमे मानवीय भाषासँ संवाद बैसा पायब कठिन बुझन’ जा रहल
अछि। तथापि वर्त्तमानमे भए रहल शोध भविष्यमे की रंग लायत एहि पर आशातीत दृष्टि
राखब सैह ठीक रहत। बरहाल यैह ओ स्थिति अछि, जकर कारण
अभिकलानात्मक व्याकरणक आवश्यकता महसूस कएल जाए रहल अछि।
अभिकलानात्मक
व्याकरणक संकल्पना नव अछि एवं अखन धरि कोनो सटीक अभिकलानात्मक व्याकरणक विकास नहि
कएल जाए सकल अछि। मुदा सामान्य व्याकरण एवं अभिकलानात्मक व्याकरणमे व्याप्त
अंतरकेँ संकल्पनात्मक रूपसँ एतय उद्घाटित कएल जाए रहल अछि। यथा- सामान्य व्याकरण मानवीय
व्यवहारक लेल होइत अछि। अभिकलानात्मक व्याकरण कम्प्यूटरक माध्यमसँ मानवीय व्यवहारक
लेल होइत अछि। सामान्य व्याकरण प्राकृतिक भाषा की अछि? कियैक
अछि? सदृश प्रश्नक पड़ताल करैत अछि। अभिकलानात्मक व्याकरण
प्राकृतिक भाषा कोना काज करैत अछि? सदृश प्रश्नक जाँच-पड़ताल
करैत अछि। सामान्य व्याकरण सहज एवं मौलिक होइत अछि। अभिकलानात्मक व्याकरण ‘सामान्य व्याकरण’ सँ उर्जा ग्रहण करैत नितांत
कृत्रिम होएत। सामान्य व्याकरण अपन स्वरूपमे व्यापक भए सकैछ। अभिकलानात्मक व्याकरण
स्पष्ट, एकनिष्ट एवं लक्ष्य केन्द्रित होएत। सामान्य व्याकरणक
उद्देश्य मूल रूपसँ मानवकेँ लाभ पहुँचाएब होइत अछि। अभिकलानात्मक व्याकरणक उद्देश्य
अपन विभिन्न उत्पादक माध्यमसँ मानवकेँ लाभ पहुँचाएब होइत अछि। सामान्य व्याकरण
प्रस्तुतीकरणमे ई सहज होइत अछि। अभिकलानात्मक व्याकरणक प्रस्तुतीकरणमे गणितीय होइत
अछि, जकरा कम्प्यूटर स्वीकार कए सकए।
चामस्की
व्याकरणकेँ ‘भाषाक तर्कशास्त्र’ कहलन्हि
अछि। व्याकरणक उद्देश्यकेँ स्पष्ट करैत चामस्की कहलनि अछि जे ‘व्याकरण ओएह होएबाक चाही जकरा द्वारा भाषाक सभ वाक्यक वर्णन आओर सृजन कएल
जाए सकय।’ आब एतय अभिकलानात्मक व्याकरणमे जे नव प्रसंग
जुड़ैत अछि ओ एकर कम्प्यूटरापेक्षी होएब अछि। अभिकलानात्मक व्याकरणक उद्देश्य
मूलतः ‘प्राकृतिक भाषासंसाधन’क
संकल्पनाकेँ सार्थक एवं सफल बनाएब अछि आओर एहिमे अभिकलानात्मक व्याकरण साधनक रूपमे
प्रयुक्त होइछ। जखनकि एकर साध्यतँ परोक्ष रूपसँ ‘प्राकृतिक
भाषा संसाधने’ अछि। एहने स्वरूपमे अभिकलानात्मक व्याकरणसँ
अपेक्षा कएल जाइत अछि जे ओ भाषाकेँ वैज्ञानिक ढ़ंगसँ विश्लेषित एवं सर्जित कए सकय,
जे कम्प्यूटरापेक्षी हो। आब विचारणीय ई अछि जे ‘प्राकृतिक भाषा संसाधन’क संकल्पना स्वयंमे एक व्यापक
संकल्पना अछि आओर दोसर जे एहिमे प्रयुक्त व्याकरण सेहो अपन स्वरूपमे व्यापके होएत।
कियैक तँ आइ कोष निर्माणसँ लए कए पाठ-निर्माण धरि सबमे प्राकृतिक भाषाक कोडीकरणक
आवश्यकता पड़ैत अछि। एहि सबकेँ कम्प्युटेशनल व्याकरण कहब सैह उचित होएत। एहि
स्थितिमे अभिकलानात्मक व्याकरणक मूल उद्देश्य तँ प्राकृतिक भाषाकेँ एहि तरहेँ
सूत्रबद्ध (Formulized) करबाक अछि जाहिसँ कम्प्यूटर एकरा
स्वीकार कए सकय। एकर परिणामस्वरूप ‘प्राकृतिक भाषा संसाधन’क क्षेत्रक विभिन्न लक्ष्य मशीनी अनुवाद ( Machine Translation), सूचना प्रत्यानयन (Information RetrievalInformationRetrie) वाक्-संश्लेषण (Speech Synthesis), शब्द-संसाधन (Word
Processing), दृश्य-संसाधन (Visual Processing) तथा ज्ञान-निरूपण (Knowledge Representation) आदि
मुख्य बिन्दु अध्ययनक लेल सोझमे आबि रहल अछि जकर मुख्य उद्देश्य कम्प्यूटरक
सापेक्ष भाषा-प्रजनन करब तथा मानव-मस्तिष्कक सापेक्ष भाषा-बोध कराएब अछि। एहि व्याकरणमे इहो
पायल गेल अछि जे भिन्न-भिन्न उपकरणसभमे एके तथ्यकेँ अलग-अलग ढंगसँ केन्द्रीकृत कएल
जाइत अछि। जेना- मशीनी अनुवाद प्रणालीमे लक्ष्य-भाषा पदनिरूपण (Parsing) तथा श्रोत-भाषाकेँ सर्जित(Generation) कएल जाइत अछि।
एहिमे एकेटा नियम- ‘वाक्य= संज्ञापदबंध+
क्रियापदबंध’क उद्देश्य लक्ष्य भाषाकेँ विश्लेषित
करब होइत अछि। जखनकि श्रोत भाषाक एकर समतुल्य निर्माण करब होइत अछि। एहि
सूचना-प्रत्यानयनमे पदनिरूपणक आधार ‘मूल पद’ होइत अछि। एकर आधार पर प्रणालीकेँ सूचीकृति सूचनाक सटीक मिलान करब होइत
अछि। एकर व्याकरणक स्वरूप मशीनी अनुवादमे पदनिरूपणक नियमसँ भिन्न होएत। एहि तरहेँ
अन्य उपकरण सभमे अलग-अलग प्रक्रियाक तहत एकर उद्देश्य भिन्न वा एकरा कोडीकृत
करबाक तरीका भिन्न भए सकैत अछि।
अभिकलानात्मक
व्याकरणक स्थिति एवं महत्त्वकेँ देखैत जँ गंभीरतासँ विचार कएल जाय तँ स्पष्ट होइत
जे संदर्भक अनुसार छोट-छोट नियमसँ काज निकालल जा रहल अछि। जाहिमे सर्वप्रथम रूपकेँ
चिन्हब आओर एकर विश्लेषण कएल जाइत अछि। एहि क्रममे पदक व्याकरणिक कोटिक निर्धारण
कएल जाइत अछि, जकरा टैगिंग (Tagging)
कहल जाइत अछि। एकरा लेल आवश्यक होइत अछि जे व्याकरणक कोटि एवं ओकर गुण (Attributes)क आधार पर एकटा पहिनहिसँ तैयार टैग-सेट (Tag-Set) हो।
मैथिलीक लेल एतय एकटा टैग-सेट (Tag-Set) देल जा रहल अछि जकर
स्रोत LDC-IL, CIIL, Mysoreमे हमरा द्वारा कएल जाए रहल काजक
अछि।
Sl. No
|
Category
|
Label
|
Examples
|
Remarks
|
|
Main Category
|
Sub Category
|
|
|
|
1
|
Noun
|
|
N
|
|
|
1.1
|
|
Common
|
NN
|
पोथी, कलम, पंडित, खवास
|
|
1.2
|
|
Proper
|
NNP
|
रंजन, दिनेश, अतुल
|
|
1.3
|
|
Nloc
|
NST
|
आगू, पीछू, ऊपर, नीचा
|
|
2
|
Pronoun
|
|
PR
|
|
|
2.1
|
|
Personal
|
PRP
|
तोँ, हम, ई, ओ
|
|
2.2
|
|
Reflexive
|
PRF
|
अपना, अपने, स्वयं
|
|
2.3
|
|
Relative
|
PRL
|
जे, जिनका, जिनकर, जकरा
|
|
2.4
|
|
Reciprocal
|
PRC
|
एक-दोसरकेँ, आपस, परस्पर
|
|
2.5
|
|
Wh-word
|
PRQ
|
के,की, कथी ककर
|
|
2.6
|
|
Indefinite
|
PRI
|
केओ, किछु/ किउछ
|
|
3
|
Demonstrative
|
|
DM
|
|
|
3.1
|
|
Deictic
|
DMD
|
ई,ओ,अहाँ,हम
|
|
3.2
|
|
Relative
|
DMR
|
जे, जाहि
|
|
3.3
|
|
Wh-word
|
DMQ
|
के,की,कोन
|
|
3.4
|
|
Indefinite
|
DMI
|
केओ, किछु/ किउछ, कोनो
|
|
4
|
Verb
|
|
VM
|
|
|
4.1
|
|
Main
|
VM
|
देख, पढ़, पी, गा, ले, उठ, खा
|
|
4.2
|
|
Auxiliary
|
VAUX
|
अछि,छी,छल,छथि,छलाह,रहत,होएब,थिक
|
|
4.3
|
|
Gerund
|
VGN
|
धोएब, पीटब, दौरब, नहाएब
|
|
4.4
|
|
Causative Verb
|
VCT
|
मरबाएब, छरबाएब, लदबाएब, लिखबाएब,
दुहबाएब
|
|
4.5
|
|
Compound Verb
|
CVP
|
मारब-पीटब, काट-छाँट, कानब-खीजब, धर-पकर
|
|
5
|
Adjective
|
|
Adj
|
नीक, मोटका, ललकी,
|
|
6
|
Adverb
|
|
Adv
|
भने, अनायास, क्रमश:, एकाएक,
एहन
|
|
7
|
Postposition
|
|
PSP
|
सँ, केँ, लेल
|
|
8
|
Conjunction
|
|
CC
|
|
|
8.1
|
|
Co-ordinator
|
CCD
|
आओर, परंच, मुदा, वा, आ
|
|
8.2
|
|
Subordinator
|
CCS
|
जँ, तँ, जे
|
|
9
|
Particles
|
|
RP
|
|
|
9.1
|
|
Default
|
RPD
|
भरि, यौ, हौ, रौ
|
|
9.2
|
|
Classifier
|
CL
|
टा, गोट, गो, ठो
|
|
9.3
|
|
Interjection
|
INJ
|
ओह-ओ, अहा, वाह, हा
|
|
9.4
|
|
Intensifier
|
INTF
|
बहुत, बेसी, सबसँ
|
|
9.5
|
|
Negation
|
NEG
|
नहि, ऊहुँ, न
|
|
10
|
Quantifiers
|
|
QT
|
|
|
10.1
|
|
General
|
QTF
|
कनेक, बहुत, किछु
|
|
10.2
|
|
Cardinals
|
QTC
|
एक, एकटा, दुई, बीसगोट, तीन, चारि
|
|
10.3
|
|
Ordinals
|
QTO
|
पहिल, दोसर, तेसर, चारिम
|
|
11
|
Residuals
|
|
RD
|
|
|
11.1
|
|
Foreign word
|
RDF
|
|
A word written in script other than the script of the
original text
|
11.2
|
|
Symbol
|
SYM
|
$, , *, (, )
|
For symbols such as $, & etc
|
11.3
|
|
Punctuation
|
PUNC
|
., : ;
|
Only for punctuations
|
11.4
|
|
Unknown
|
UNK
|
|
A word written in script other than the script of the
original text
|
11.5
|
|
Echo words
|
ECH
|
जलखे- (तलखे), मोंट-(सोंट)
|
|
This POS tag set for Maithili Prepared by: Dr. Arun Kumar
Singh,JRP,Maithili, LDC-IL,CIIL
अपन योजनाक अनुरूप टैग-सेटक निर्माण कएल जाइत अछि। टैग-सेटक
लेल प्राथमिकता होइत अछि जे ई वैज्ञानिक, विस्तृत, योजना-केन्द्रितक संग-संग अनुप्रयोग विशेषक तैयारीक अनुकूल सेहो हो। रूपक
आधार पर टैगिंग सर्वाधिक लोकप्रिय प्रक्रिया अछि, मुदा
योजनाक अनुरूप पदबंध एवं वाक्यक सेहो आब टैगिंग होइत अछि। एकरा संग-संग प्रोक्तिक
सेहो आब टैगिंग होमए लागल अछि।
अभिकलनात्मक व्याकरणक निर्माणक चरणमे पदनिरूपण(Parsing) एकगोट महत्वपूर्ण पड़ाव होइत अछि। एहिमे पदक अंतिम व्यवहार्यताक अनुसार
वाक्यक विश्लेषण होइत अछि। प्राय: एकर बादक विश्लेषणकेँ
वृक्षारेखक दृष्टिसँ निर्धारित कए देल जाइत अछि। एकरा नियमबद्ध करबाक लेल कोनो
रूपवादक आधार लेल जाइत अछि किएकतँ विश्लेषण चरणबद्ध एवं वैज्ञानिक भए सकए।
पदनिरूपण अनेक स्तर पर शुरु होइत अछि आ एकरे अनुरूप एकर वर्गीकरण कएल जाइत अछि। ई
कखनो बामसँ शुरू भए कए दहिन दिस तँ कखनो दहिनसँ बाम दिस जाइत अछि। एकरे समानान्तर
ई उपरसँ नीचा एवं नीचासँ उपर दिस काज करैत अछि। ई बहुत किछु भाषाक प्रकृति पर
निर्भर होइत अछि। मैथिली सदृश क्रिया केन्द्रित भाषामे पदनिरूपणक प्रक्रिया प्राय: क्रियेसँ शुरु होइत अछि। ई सुविधाजनक अछि किएकतँ क्रियापदमे अधिकतम
व्याकरणिक सूचना भेटि जाइत अछि, जकर आधार पर एक सक्षम
पदनिरुपण प्रणालीक विकास कएल जाए सकैत अछि।
अभिकलनात्मक व्याकरणमे पूर्वनिर्धारित टैगसँ पदकें चिह्नित
कएल जाइत अछि, तत्पश्चात ओकर भाषा-संरचनाक अनुरूप प्राय: वाक्य केन्द्रित विश्लेषण कएल जाइत अछि। एहि आधार पर प्रयास कएल जाइत अछि
जे एहन व्याकरणिक नियम तैयार कएल जाय जाहिसँ सम्पूर्ण संरचनाक विश्लेषण भए सकय।
व्यवहारमे पदनिरूपणक प्रक्रिया एक एहन चरणक रूपमे अबैत अछि जतए एहि नियमक परीक्षण
होइत जाइत अछि। जँ बनल नियमसँ वाक्यक पदनिरूपण सही भेल अछि तँ ई एहि बातक द्योतक
अछि जे एहि स्तर धरिक नियम तैयार भए गेल अछि। एही प्रकारें सम्पूर्ण भाषाक
विश्लेषण आओर ओकर अनुरुप नियमक गुच्छ बनैबाक प्रक्रिये अभिकलनात्मक व्याकरणमक
निर्माणक प्रक्रिया होएत।
***************
संदर्भिका
मैथिली
1. ग्रियर्सन,जी.ए.,भारतक भाषा सर्वेक्षण(मैथिली), मैथिली अकादमी, पटना,1978
2. मिश्र, डा. धीरेन्द्र नाथ, मैथिली भाषा शास्त्र, भवानी प्रकाशन, मुसल्लहपुर, पटना,1986
3. ग्रियर्सन,जी.ए., मैथिली व्याकरण, सम्पादक,
डा. रमानंद झा ‘रमण’, अनुवादक,
पं. गोविन्द झा, चेतना समिति, पटना, 2011
4. झा,
पं. गोविन्द, मैथिली परिशीलन, मैथिली अकादमी, पटना, 2007
5. झा, दीनबन्धु, मिथिला भाषा विद्योतन, मैथिली साहित्य परिषद, दरभंगा, 1946
6. मिश्र, नवोनाथ, मैथिली भाषा विज्ञान, मिथिला पुस्तक केन्द्र, दरभंगा, 1984
हिंदी
1. झा,
पं. गोविन्द, मैथिली भाषा का विकास, बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी, पटना,1974
2. कुमार, सुरेश, शब्द अध्ययन और समस्याएँ, केन्द्रिय हिंदी संस्थान, आगरा, 1990
3. गुप्ता, मनोरमा, भाषा अधिगम, केन्द्रिय
हिंदी संस्थान, आगरा, 1995
4. जैन, वृषभ प्रसाद, अनुवाद और मशीनी अनुवाद, सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, 1995
5. तिवारी, भोलानाथ, आधुनिक भाषा विज्ञान, लिपि प्रकाशन, नई दिल्ली, 1985
6. मलहोत्रा,विजय कुमार, कम्प्यूटर के भाषिक अनुप्रयोग, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2002
7. सिंह, सूरजभान, अमग्रेजी-हिंदी अनुवाद व्याकरण, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003
8. त्रिपाठी,
अरिमर्दन कुमार, भाषा के समकालीन संदर्भ,
साहित्य संगम, इलाहावाद,2012
अग्रेजी
1. Allen, James,
Natural Language Understandings, Second Edition, Pearson Education, Singapore,
2005
2. Atkins, B. T.
S. and A. Zampoli, Edited, Computational Approaches to the Lexicon, Oxford
University Press, New York, 1984
3. Meadow,
Charles T., Man-Machine Communication, John Wiley & Sons, New York, 1970
4. Rajpurohit, B.
B., Technology and Languages, Central Institute of Indian Languages, Mysore,
1994
5. Sampson,
Geoffrey, Natural Language as a Special Case of Programming Language, American
Journal of Computational Linguistics, Microfiche-25, 1975
6. Grierson,
George A. An Introduction to The Maithili
Language of North Bihar, Part 1,Grammar, Calcutta, Asiatic Society of Bengal,
1881
7. Jha, Subhadra,
A Survey of Maithili Literature, LuZac & Company, LTD,A6, Great Russel
Street, London W. C. I., 1958
8. Yadav,
Ramawatar, A Referece Grammar of Maithili, Munshiram Manoharlal Publisher Pvt.
Ltd., Post Box 571554 Rani Jhansi Road, New Delhi, 1997
*************************
१.
अनामिका राज- विहनि कथा- सीमा/ २.
आशीष अनचिन्हार- विहनि कथा- खाए बला पार्टी
१
अनामिका राज
विहनि कथा
सीमा
बहुतो दिनक जिज्ञासा शान्त नै भेल छल, तही क्रममे
सुनलौं- बेटीकेँ
हमर सम्पत्तिसँ की मतलब,
ओ तँ पराया धन अछि।
हमर माँ पापा हमरा सभ भाइ-बहिनकेँ एके रंग पढेलथि, जे ई सभ
भविष्यमे सुखसँ जिअए।
ओ दहेज विरोधी छथि। मुदा बिआहमे बहुतो चीज उपहारमे दऽ कऽ
अपन उदार हृदएक प्रिचय देलनि, भाइ सभ सेहो बड्ड पियार देलक।
अहीं सभ कहू एहेन भरल-पुरल संपत्ति आ बुइधबला परिवारमे सेहो बेटीक
सम्बन्धकेँ एगो सीमामे बान्हिकेँ देखल जाइ छै!
की बेटीक बिआहक बाद कोनो भविष्य नै होइ छै, की ओकर बाद ओकरा
जीवन जीबा लेल सम्पत्ति आ सहयोग नै चाही?
बिआहक बाद नैहरक सीमा बन्द भऽ जाइ छै।
२
आशीष अनचिन्हार
विहनि कथा
खाए बला पार्टी
आइ साँझमे बड्ड दिनक पछाति भोजन बनेबाक अवसर भेटल। पिता
श्री आ माँझिल भाएकेँ पुछलिअन्हि जे की खेबै ?
अरे भाइ तों जे आगूमे देबही से खा लेबै। हम सभ तँ खाए बला
पार्टी छी ...
आ ओही रातिमे हम सपना देखलहुँ जे हमर पिता श्री आ माँझिल
भाए नेता बनि क' मंचपर
छथि आ राजनीतिक पार्टी बनेबाक घोषणा क' रहल छथि।
जगदानन्द झा ‘मनु’-
५टा विहनि कथा
ग्राम पोस्ट – हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
१. उपहार
“अहाँ
हमरा सनेसमे की देब ?”
“हम दऐ
की सकै छी ? हमरा लग
अछिए की ? मात्र
सिनेह अछि, प्रेम
अछि अहाँक लेल शुभकामना अछि। पाइ तँ नहि अछि मुदा पिआर दए सकै छी सम्मान दए सकै
छी।”
“वस ! वस ! हमरा अओर किछु
नहि चाही। अहाँक ई पिआर अहाँक सिनेह अहाँक शुभकामना एकर कोनो मोल नहि अछि ई तँ
अनमोल अछि। अहाँ भेट गेलहुँ हमरा दुनियाँक सभ खुशी भेट गेल।”
२. नीक
“अहाँसँ
भेट कए कऽ हमरा एतेक नीक किएक लगैए।”
“किएक तँ
अहाँसँ भेट कए कऽ हमरो बड्ड नीक लगैए।”
३. पिआर
“जे
हमरासँ पिआर करत ओ हमर मोन मे दर्पण जकाँ देख सकैत अछि आ हम ओकर आँखिमे हरा कए
अपनाकेँ बिसैर सकैत छी।”
४. कनियाँ
दाइ
अपन दियादनीमे सभसँ छोट रहला कारणे कनियाँ आ एखन सभक दाइ
तेँ दुनू मिल कए कनियाँ दाइ। अपन अवस्थाकेँ अपनासँ पाछू छोरैत एखन साठि बर्खक
अवस्थोमे चंचलता आ हाजिर जवाबीमे कोनो अंतर नहि। केशवक पाँचो भाइक उपनैन। आगू आगू
पाँचो बरुआ पाछू ढोल पिपही बजैत रमनगर दृश्य। कनियाँ दाइ एहि अबसरपर कतौ अपन
व्यस्तताकेँ कारणे देरी भए गेली।
हरबराइत दौरैत अँगना पहुँचक चेष्टामे डौढ़ीपर बरुआ केशवसँ आमने सामने टकरा गेली।
अपनाकेँ सम्हारैत झटसँ,
“बुढ़ीयासँ टकरा कए की भेटतौ कोनो छौंड़ीसँ टकराअ तँ किछु भेटबो करतौ।”
हुनक गप्प सुनि सभक मुँहसँ हँसीक ठहाका छुटि गेल।
५. मौसी
पहिल सखी, “गे दैया
! ई तँ
बाँस जकाँ पातर छथि।”
दोसर सखी, “यौ ओझाजी ई केहन देह बनोने छी।”
तेसर सखी, “लगैए माए दूध नहि पीएलकनि।”
चारीम सखी, “हाँ यौ ओझाजी, माए बिशुकि गेल
रहथि की।”
पाञ्चम सखी, “नै गै हिनकर माए
दूध बेचै छलखिन।”
सभ एक्के संगे, “हा हा हा ......”
नबका ओझाजी, रातिमे व्याह भेलन्हि आ आइ बेरुपहर कनियाँक सखीसभ
चारू कातसँ घेर कए हँसी ठिठोली करति। ओझाजी बौक जकाँ सबटा सुनैत।
एकटा सखी फेरसँ, “लगैए हिनकर माए बजहो नहि सिखेलखिन।”
ओझाजी कनीक मुँह उठा कए, “आब एतेक रास मौसी लग कोना बाजू।”
सभ सखी एक्के संगे, “मौसी ! मौसी कोना।”
ओझाजी, “अहाँ सभकेँ हमर माएक सभ गप्प बुझल अछि
अर्थात हमर माएक संगी सभ छी तेँ एहि हिसाबे अपने सभ भेलहुँ ने हमर मौसी।”
------------------
१.
रवि भूषण पाठक- तीन टा विहनि कथा २.
मो. असरफ- बिहनि कथा-शहरीया घरवाली
१
रवि भूषण पाठक
तीन टा विहनि कथा
1 ओइ साल
ओइ साल जे भेलै से कमाले-कमाल ।मार्च-अप्रील मे एते आलू उपजलै ,जे पूरा खेत-खरिहान आ घर सब
महक' लागलै
।घर मे चौकी क' नीच्चा ,कोठी लग ,भनसा घर ,सौंसे बूझू जे
आलूए-आलू
।एतबे नइ भानसक मेंजने बदलल ।भूजिये आ रसदारे नइ पापड़ ,तिलौरी सेहो
आलूए क' आ एक
दिन व्रत केलौं त' आलू मे
दूध गूडि़ के भेटल ,रातियो
मे आलू आ दहीक मिलल-जुलल
भोजन ।
बाप रौ बाप गरमी पड़लै ,गजबे
गरमी ।आदमी गाछ त'र ,दुरूखा आ पोखरि-गाछी जाए बूझू
जे गंजी-अंगा
घामे सँ भीजि जाए ।ईनार-कल सेहो
पस्त आ पोखरि-नद्दी
तक सुक्खल ,बगलक
गाम मे एकटा ईनार रहै आ मनबोधन बाबू क' दिलदारी कि एक-एक डोल पानि सबकें दैत रहलखिन ।
आ बस महीना दिन बाद ओमहर बागमती आ ईमहर करेह तोडि़
देलकै ।हमर पीढ़ी त' बाढि़ देखबे नइ केने छलै ,से बड्ड व्याकुल भ' के पानि के स्वागत करबाक लेल शिवाजीनगर दिस विदा भ' गेल ।आ पानि रसे-रसे खत्ता,नाला सब कें भरैत रहै ,आवाजो मद्धिम ।एमहर गामक बूढ़-पुराण सब सड़सठ ईसवीक बाढि़क निशान ढ़ुरहैत रहथिन ,केओ कहथिन जे पानि एत' तक आयत ,त'केओ कहथिन जे पानि एत' तक ।केओ ई कहथिन जे पानि दस दिन त' केओ पनरह दिन तक रहबाक बात करथिन ।किछु गोटा त' घरे मे माछ मारबाक सपना देख' लागला ।मुदा पानि जखन एलै त' अपन गति अपन मात्रा संग आ पूरा गाम डूबि गेलै ,गाम मे एकेटा दूमहला आ डाक्टर साहेब अपन ईज्जत दूमहलाक छत
पर बैसि बचेला ।रानीपरती ,सबहा ,बनडीहा आ जोगिया सन कतेको छोट टोल डीहटोलक पुरनका धीमका पर
शरण लेलक ।आ पानि रहि गेलै दू महीना ।ई पानि नीक जमाए नइ छलै कि ससुरक जेबी आ
चिनुआरक रंग पर रंग धरै ,ई रहै लंठ जमाए जे बेईज्जत करबै पर आतुर रहै ।पुरनका आ
नबका सब स्टॉक विदा भ' गेलै ,गाम मे पैंच उधार बंद ।ने हरियरका तरकारी ने बजार वला कोनेा
समान ।एत' तक कि
नूनक अभाव सेहो भ' गेलै ।कि आदमी आ कि माल-जाल सबहक अहार अकाश मे ।जे सस्ता रहै ओ बस दूध किएक त' सब माल-जाल कनिकबे टा के ओइ डीह पर रहै आ दूध बाहर जेबाक कोनो रस्ता
नइ ।
आ ओहिए साल हाकिम बाबूक पोती भागि गेलै ।भागबो केलै त' दोसर जातिक
छौड़ा क' संग ।आ
भागियो क' कुकरी
जल्दिए सासुर आबि गेलै ,ई ने जे
भागि के दिल्ली-पंजाब
पड़ा जाए आ आबि गेलै आ अप्पन जाति आ गामक नाम हँसाब' लागै आ लागलै जे
ओक्करे हँसीक संग आलू आ बागमतीक हँसी एक भ' गेलै ।ओ पहिल छौड़ी रहै जे अप्पन जाति के तियागि केकरो संग
भागलै छल ,एकरा
बाद त' बूझू
लाईन लागि गेलै ,बोहिनी
नीक भेल छलै ।
2 घर
अजीबे घर रहै ,खाए त' सब खाइते रहै ,आ हकडक्कल जँका
करै त' लाईन
लगा के सब हकडक्कले जँका करै ।बेरा-बेरी नइ एके संग ।
प्रसन्न रहै त' सब
प्रसन्ने रहै ,नइ कुनो
बात तैयो प्रसन्न ।बिना मतलबे के बरसा-बुन्नी ,रौद-अकाश ,पानि-बिहाडि़ किछो ल' के प्रसन्न
।अहां घरक बतीसी अलगे सँ देखि सकैत छियै ।प्रसन्न रहैक मून होए त' पड़ोसीक घरक
चोरी ,बगल
वलाक बेटी भागनै ,पंडीजीक
बेटा के कैंसर भेनए ,राम
अवतारक मैट्रिक परीक्षा मे फेल भेनए ,ई सब खुशिएक कारण रहै ।
लड़ाई करबाक मून होए त'
टी0वी0 क' रिमोटे लेल
झगड़ा भ' जाए
।बापक अलग चैनल ,माएक
अलग रहै आ तीनू बच्चो के अलग रहै ।कुनो समझौता त' भेल नइ रहै ,तें जेकरा जखन
मून होए ,टी0वी0 खोलि दए ,जेकरा जखन मून
होए ,चैनल
बदल' लागए ।
आ आमदनी त' सीमिते
रहै ,कमाए
वला मात्र बापे ।मुदा खरचाक मद केओ निर्धारित क' सकै छलै ।आ वरीयता क्रमक लेल डेली झगड़ा-फसाद ।बाप कहए ई
जरूरी ,बेटा
कहै ई आ माए कहै पहिले ई किएक नइ ।
आ घर मे सबके दुख रहै ।फलनमा के चिलनमा से आ चिलनमा के फलनमा से ।सब केर
उपेक्षा छलै आ सबक प्लान रहै घर छोड़़बा लेल ।सब ताकैत रहै एकटा नीक दिन ।साईतक
खोज डेली चलैत रहै ,मुदा
केकरो लेल एखन बेहतरक खोज संपन्न नइ भेल छलै ।
घर मे कपड़ा-लत्ता
रहै ,रमायन-महाभारत रहै ,देवी-देवताक फोटो रहै
,संगहि-संग बहुत रास
उपदेश आ कर्तव्यक शिक्षा रहै ।गृहवासी एक-दोसर कें बेरा-बेरी सँ दैत
छलखिन आ सब गोटे समै साल पर सुनै के आ नइ सुनबाक बहन्ना ताकैत छला ।
ईहो घरे छलै आ एकर एकटा नंबर छलै जे सरकारक कार्ड आ वोटक रजिस्टर मे दर्ज छलै
।पता नइ घर मे कुन प्रकारक एकता छलै जे घर घर रहै ,आ सिमेंटक ,कर्तव्यक आ बाढि़ मे रक्षाक सरकारी
विज्ञापन फराक-फराक
बैनर मे फराक-फराक
जग्गह पर विराजमान रहै ।
3 बाबूक
चट्टी
ऐ बेर गाम मे एकटा आयोजन छल ,आ आयोजने बीच केओ चप्पल चोरा लेलक ।संभव छैक केकरो सँ बदला
गेल होए ,मुदा
एकाध घंटाक प्रयासोक बीच भेटल नइ ।गाम पर आबिते झोरा तैयार छल आ शहर जेबाक जल्दी ,तें बिना कुनो
ना-नुकुरि
केने माए द्वारा देल बाबूक पुरनका चप्पल पहिर बाहर आबि गेलौं ।चप्पल मे कतेको
जगह सीयल जेबाक निशान रहै ,तैयो
चप्पल मजगूत रहै ,आ गाम
सँ चारि सौ किलोमीटर तक कुनो प्रकारक दिक्कत नइ भेल ।
ऐठाम एलाक बाद कनियां कनि जे मुंह -नाक बनेलथि ,चप्पल ऐठामक
चप्पल सब मे मिलि गेलै ।ने चप्पल देखै सुनै मे खराप रहै ने तुरत्ते कुनो टुटबाक
डर ,तें हम
मौका-बेमौका
पहिरैत रहलौं ,हां
कहियो-काल
कनियां के कहला पर जरूर बदलि दैत रहियै ।आ चप्पलो बिना कोना दाना पानि के हमरा
दुआरि पर रह' लागल
।बस कनियां ओकरा स्थान बदलैत काल ,या बाढ़नि लगबै काल कने जोर सँ धक्का दैत छलखिन आ फेर ई
बात कि 'बाप रे
बाप ई चप्पल पहिरै वला छैक '
।
एकदिन भोर मे घूमैत काल चप्पल टूटि गेल ।कुनो पुराने जोड़ पर टूटल रहै ,आ हम नंगराबैत-नंगराबैत कहुना
गामपर पहुंचलौ ।हमरा नंगराबैत देखि कनियां कुनो अज्ञात संभावना सँ चिकडि़ उठली ।हम
आश्वस्त केलिएन ,जे एहन
कुनो बात नइ ,हम स्वस्थ
छी ,बस चप्पल
कनि डिस्टर्ब क' देलक ।आ
हमरा बिनु पूछने ओ चप्पल उठा सामने वला मैदान मे फेकि देलखिन ।हम रोकबाक प्रयास
केलियइ ,मुदा ओ
किछु नइ सुनलखिन ।चप्पल फेका गेल छलै ,मुदा बेसी दूर नइ रहै ।ऐ ठाम सँ ओकर फीता ,डंटी आ पूरा देह
देखाइत रहै ।अगिला दिन आर लोक सब मैदान मे कूड़ा फेक' लागलखिन आ चप्पल
कनेक एकात मे भ' गेलै ,मुदा एखनो तक ओ
ओहिना देखाइत रहै ।एक बेर मून भेल जे कनियां सँ चोरा के ओकरा घर ल' आनी ।कनियां
सूतल रहथिन ,मुदा
जें कि उठलौं ओ फेर उठि गेली आ पूछ' लागलखिन 'चाय त' नइ पीयब '।
भोरका समै छलै आ कनियां नहेलाक बाद पूजाक तैयारी मे रहथिन ,हम एकाएक उठलियै
आ मैदान दिसि विदा भ' गेलियै
।औखन केओ जागल नइ रहै ,बस एगो-दूगो कुकुर सब
एमहर-ओमहर
ताकैत रहै ।हमरा मैदान मे घूसिते बगल वला गोला कुकुर हमरा दिसि ताक' लागल ।एकबेर त' डर भेल ,फेर साहस क' के दूनू चप्पल
उठा लेलौं ।चप्पल पर बहुत रास पन्नी आ पाकल आमक सड़लका छिल्का रहै ।जल्दी सँ
ओकरा झटकैत सांस के बारने रोड पर वापस एलौं ।आब आबि के फेर एकबेर जोर सँ सांस
लेलौं आ कूड़ाक ढ़ेर दिसि फेर सँ धियान गेल ।ऐ चप्पल के की कएल जाए ।
ऐ चप्पल के घर मे राखनै ठीक नइ ।कनियां त' जे बखेरा करती ओ करबे करती ।ई चप्पल एकटा
बीतल युगक कैलिडोस्कोप नेने घर मे घूसि गेल रहै ,मुदा एकर ऑरिजनल जग्घ' त' कतै आर छलै ।ई
चप्पल हमर पिताक प्रमुख अस्त्र छल ।जखन जखन ओ क्रोध मे आबै छलखिन ,थापड़ आ मुक्काक
प्रहार नइ करै छलखिन ,बस
निकालि के चप्पल हमरा आ हमरा सब भाई-बहिन के्............. ।तें ई बीतल
युगक एकटा अस्त्र छलै ,जेकरा
लेल जगहक गुंजाइश ऐ घर मे नइ रहै ।ई चप्पल आब बस सम्हारि के देखै-देखबै लेल जोगा
के राखै क चीज रहै ।अफसोस हमरा पास एत्ते जगह नइ कि हम संग्रहालय बनाबी .........
२
मो. असरफ, धनुषा /नेपाल, हाल : कतार
बिहनि कथा
शहरीया घरवाली
मोहना जवान भ गेल । ओकरा मनमे उत्साह जागल कि आब हमहु सादी विवाह क क अपन घर
बसाबी । मुदा
मोहनाके मनमे सबदिनस रहे कि शहरीया घरअबाली करी । इ बात मोहना अपना माएके कहलक कि हम
गाउके लडकी नै बल्की शहरीया लडकीस सादी कर चाहैत छी आ हम तोरालेल शहरीया पुतौह लाब चाहैत
छी । तोहर कि बिचार छौ ?
मोहनाके माए बजलिह -तोरा जे पसन्द छौ हम ओहिमे राजी छी । इ बात सुनिक मोहनाके
मुहमे लड्डु फुट लागल । ओ आब लडकी खोजबाक प्रयास क र लागल । किछु दिनक बाद जनकपुरक
थापाचौकके जोगीबाबुक बेटी बन्दना भेटलीह । ओकरा टि-सर्ट आ जिन्स
लगौने देखि मोहनाके पसन्द आबिगेल । आ ओ सादी करबाक लेल त्यार भ गेल । गाउघरक
२/४
भलादमीके बजा अपन सादिक दिन पक्का कयलक । विवाहो बड धुमधामस भेल । किछु दिनक बाद
बन्दना घरमे ककरो नै टेर लागल । नित्य दिन आठ बजे पलङ्गे छोडे । सबदिन चाह
मोहनेस मङ्गबाबे । बन्दना रोज खाना खाइत आ बेग लटकबैत बजारदिस चैल दैत । सबदिन नव नव
सखिके सँग रङ्गरलिय मनबथि । गाउमे ककरोस माथो नै झापथि । मोहना कतेक दिन कहबो कयलक
कि अहा गामक पुतौह छी सरम लेहाज करु । एना जिन्स लगा उदन्ड भ चलब त लोक कि कहत ? तखन नाक
खुम्चबैत कन्या बाजल - अहाके पता नै अछि जे हम शहरीया लडकी छी ? अहा कहैत छी
हमरा मुह झापै लेल मुदा हमर त दम फुलैत अछि । हम अहाक ईशारापर नै नाचब । शहरीया
छि त एहने सबदिन रहब । आब एहन चरित्र देखि मोहना सोचमे पडि गेल कि करु कि नै ? तखन माथ पिटैत अपन
साथीसभके सल्लाह देलक कि गाउके लुल्हे नाङ्गरस सादी करी मुदा शहरीया
घरबाली नै करी ....
1.
शिवकुमार झा ‘टिल्लू’-बड़का साहेव : परम्परागत संस्कार केर पराभवक वृति चित्र 2.
नवेन्दु कुमार झा- ललितक बहन्ने मैथिलीक कथाक दशा-दिशा पर
भेल चर्चा संपन्न भेल, मलेसं क छठम अधिवेशन/ उनसठम वर्ष मे
प्रवेश कयलक चेतना समिति नीक गप आ योजनाक पर भेल चर्चा।
1
शिवकुमार झा ‘टिल्लू’
बड़का साहेव : परम्परागत संस्कार केर पराभवक वृति चित्र ::
मैथिली नाट्य साहित्यिमे लल्लन प्रसाद ठाकुरक प्रवेश
आधुनिक मैथिली नाटकक लेल क्रांतिकाल मानल जा सकैत अछि। लौंगिया मिरचाइ आ मि. नीलो काका सन
चर्चित नाटकक कृतिकार लल्ललन जीक नाटक “बड़का साहेव” सन् 1985 ई.मे प्रकाशित भेल। प्रकाशनसँ पूर्वे 20 नवम्वआर सन् 1983 ई.मे एकर पहिल
मंचन रवीन्द्रा भवन जमशेदपुरमे लोकप्रियताक नूतन आयाम स्थापित केलक।
लल्ल नजी टाटा स्टी लमे अधिकारी संवर्गमे नियुक्ते छला।
बेस्तय दैनन्दिथनीमे रहितो अपन अभिनय आ साहित्यम प्रेममे लिपित ऐ मैथिली
भक्त केँ साहित्यि क मानस पटलपर ओ नाओं आ ठाओं नै भेटल जेकर ई अधिकारी छल। मैथिली
नाटककेँ “मंच निर्देश” आ परम्पआरावादी
संस्काभरकेँ आधुनिकतासँ तारतम्यि स्थामपित कऽ अपन मौलिकताकेँ बचा कऽ राखब हिनक
रचनाक वास्तकविक उदेस मानल जाए। ऐ क्रममे महान कलाकार कथाकथित भलमानुष समाजक
स्वीथकृतिक परवाहि नै कऽ कऽ मात्र अपन उदेसक दिस धियान दैत एकटा सरल आ सौम्य भाषामे
45 पृष्ठंक नाटकक
लिखि मैथिली समाजक आगाँ 30 वर्ष पूर्वे एहेन प्रश्नचिन्हक ठाढ़ कऽ देलक जेकर निदान
अखन धरि नै भेटल। कलाकारक अभियानक मौलिक उदेस होइत अछि जनप्रियताकेँ धियानमे
राखि मंचन करबाक चेष्टा । नाटककार स्व यं िनर्देशक छला। ऐ उदेससँ बाहर निकसि
कऽ पूर्ण साहित्यिेक रूप देब हिनको लेल असंभव छल। मुदा एकरा साहित्यिमक
भाषामे सरल विषयकर “मौलिक
संस्कादर पराभव” चयन आ
ओकरा बहुत हद धरि सफल प्रतिबिम्बिमे समाहित करब निश्चित समालोचककेँ स्तब्ध कऽ देलक। इहए
कारण थिक जे सुधांशु शेखर सन चर्चित साहित्यककार सेहो ऐ पोथीक आमुख लिखबाक क्रममे
कहुना कऽ पिण्डा छोड़ा लेलनि।
विषय बिम्बरमे ऐ नाटकक कोनो विशेष योगदान नै, मुदा आकर्षक अछि
तँ उदेसक दूरदर्शिता पूर्ण विवेचन। तेकर परिणाम भेल जे “बड़का साहेव” अर्न्तआराष्ट्री
य मैथिली नाटक प्रतियोगितामे पहिल स्थाकन प्राप्तत केलक। “मिथिलाक्षर” नाट्य संस्था“ जमशेदपुरक
प्रणेता लल्ल नजी मैथिली नाट्य मंचनक पहिलुक सम्पू्र्ण हस्तााक्षर छथि जे
प्रकासमे ओ लोकप्रियता प्राप्तथ केलनि। जे देसिल परिधिमे रहनिहार नाटकार
लोकनिकेँ ताधरि तँ प्रात्रत निश्चित नै भेल छल। महिला पात्रक अभिनय महिलेसँ
करौल गेल।
ऐ नाटकक पहिलुक पात्र छथि छेदी झा जे वृद्ध ग्रामीण मैथिलक
भूमिकामे छथि। छेदी झाक भागनि चूड़ामणि झा गामसँ शिक्षा ग्रहण कऽ कऽ नौकरी
लेल प्रवेश परीक्षा देबाक उदेससँ अपन माम संग जमशेदपुर अबै छथि। ग्रामीण जीवनमे
सहज अर्थ पीड़ाक दंशसँ मर्माहित प्रतिभाक उद्वेलन एकर पहिल दृश्याक मूल उद्बोधन
मानल जाए। माम आ भागिन दुनू साधन विहिन तँए जमशेदपुरमे आबि क्षणिक प्रवासक
छाँह तकैत बी.सी. झा सन अभियन्ता्क
ओइठाम आबि गेल छथि। बी.सी. झा कहियो छेदी कक्काक “बालो” छला। समए आ कालक
प्रभावसँ आब ऑफिसर बनि अपन मौलिक संस्काारकेँ बिसरि जेबाक नाटक कऽ रहल छथि।
ऐ नाटकक मूल कारण थिक अपन गरीब समाजसँ स्वतयंकेँ दूर रखि पाश्चात्यआ शैलीक जीवन
जीबाक चेष्टाय द्वारा अपनाकेँ भलमानुष देखेबाक प्रयास। गामक लोक बंगलापर आबि खूब
खएत आ गाममे जा कऽ बेर्थ गोलौसी करत। वालचन्दे झाक स्त्री आब “एडभान्से” पलायनवादी नटकियाक
अर्द्धांगिनी तँ छथि मुदा अपन मौलिकताकेँ छोड़ए नै चाहै छथि। ऐमे हिनको
स्वामर्थे छन्हि। जौं अपन घर आएल गमैया मैथिलकेँ अपमानित कएल जाएत तँ लोक
गाममे खिस्सा करतनि जे बी.सी. झा जिनका -अंग्रेजी नै जनबाक कारणें छेदी कक्का
बेसी झा बूझि गेलखनि।-क स्त्री नीक विचारक नै छथिन। ऐ स्वााथिक संग-संग बेवहारिकता
नाटकक दोसर कारण छन्हिं। मीना जीक अपन तनया मिक्कीक लेल चूड़ामणिमे संभावना
देखब। छेदी कक्काक अनुसारे चूड़ामणिक पिता बी.सी.झामे कहियो “समाधि” बनबाक
विचार पनकल छल। चूड़ामणिक पिता आब नै छथि। चूड़ा स्व।यं मसुआ गेल छथि। बी.सी.झा आ हुनक
पुत्री मीनाक दृष्टिममे हिनक स्थाोन “टीकधारी” पुरोहितसँ बेसी नै जमशेदपुर सन छोट-छीन बम्बडईमे
टाटा स्टीुलक माटि-पानिसँ पोरगर भेलि मीना तँ कन्वेोन्टरक छात्रा छथि।
चूड़ामणिक सन “टीकमोहन” केना ऐ शहरी
रम्भाोकेँ रमतनि? ओ तँ
अपन मैथिलीकेँ बिसरि जेबाक टाटकमे लागल छथि। बापक रचनात्मिक सहयोग मैथिल
संस्कृकतिक दोहन मात्र मानल जाए।
नाटककार उद्विग्नी छथि।
जारी...
2
नवेन्दु कुमार झा- ललितक बहन्ने मैथिलीक कथाक दशा-दिशा पर
भेल चर्चा संपन्न भेल, मलेसं क छठम अधिवेशन/ उनसठम वर्ष मे
प्रवेश कयलक चेतना समिति नीक गप आ योजनाक पर भेल चर्चा।
ललितक बहन्ने मैथिलीक कथाक दशा-दिशा पर भेल
चर्चा संपन्न
भेल, मलेसं क
छठम अधिवेशन।
मैथिली लेखक संघक छठम वार्षिक सम्मेलन पटना मे संपन्न भेला एहि सम्मेलन क अवसर
पर मैथिली
भाषाक साहित्यकार आ विद्धान सभ वरिष्ठ आ चर्चित कथाकार ललितेश मिश्र ललित के याद क मैथिली
भाषा साहित्य पर चर्चा कयलनि। ई सम्मेलन विशेष रूपे ललित पर केन्द्रित छल। एहि बहन्ने
विद्वान लोकनि मेेेेैथिली कथा साहित्यक एक सय वर्षक मात्रा पर सेहो सार्थक बहस
कयलनि। वक्ता लोकनि आम जन सरोकार सॅं जुड़ल कथा आ उपन्यास लिखबा पर जोर देलनि। सम्मेलन
क अध्यक्षता संधक अध्यक्ष नरेन्द्र झा आ संचालन अजीत आजाद कयलनि। एहि अवसर पर डाक्टर
किरण कुमारी लिखित पोथी ‘‘मैथिली
साहित्यक विकास मे मैथिली अकादमीक योगदान‘‘ क लोकार्पण आ डाक्टर इन्द्रकांत झाक अध्यक्षता मे कवि
सम्मेलन सेहो सम्पन्न
भेल।
एहि अवसर पर अपन विचार व्यक्त करैत वरिष्ठ साहित्यकार आ पत्रकार अरविन्द ठाकुर आक्रोश व्यक्त
करैत कहलनि जे मैथिली साहित्यक वर्तमान दुदर्शाक लेल हम सब साहित्यकार
जिम्मेवार छी। नीक विचारक आदान प्रदान तऽ होइत अछि मुदा जमीन पर कोनो ठोस परिणाम सोझा
नहि आयल अछि। ललितक योगदानक चर्चा करैत ओ कहलनि जे मैथिली साहित्यक क्षेत्र मे
ललितक योगदान महत्वपूर्ण अछि आ जतय सॅ ललितक प्रवेश होइत अछि ओतहि सॅ मैथिलजी
साहित्यक मुख्यधारा प्रारंभ होइत अछि। ओ कहलनि जे मैथिली भाषाक साहित्यकार अर्थाभाव झेलि
कऽ पोथी प्रकाशित करबैत छथि आ बाद मे ओकरा मंगनि करैत छथि। ज्यो इ लेखक आ
साहित्यकार पर गंभीर संकट अथवा जीवन-मृत्युक प्रश्न अबैत अछि तऽ मैथिली भाषाक नाम पर
दोकानदारी करवला सभ के हुनक सुधि लेबाक फुर्सत नहि रहैत अछि। श्री ठाकुर नव
साहित्यकार सभ के एहि पर ध्यान देब आ एहि सॅ बचबाक सलाह देलनि। ललितक उपलब्धि पर
रोशनी दैत कथाकार अशोक हुनक अमर कृतिख् रमजानी, कंचनिया आ पृथ्वीपुत्र आदिक चर्चा
कहलनि जे ओ मैथिली कथा के पारंपरिक सांचा सॅ बाहर निकाललनि। वरिष्ठ साहित्यकार
पन्ना झा कहलनि जे ललितक कथा साहित्य उच्च स्तरक छल मुदा। एहि सॅ पहिलुका साहित्यकार के
कम नहि मानबाक चाही। ओ कहलनि जे हुनक कथा रमजानी मैथिली कथाक मात्राक लेल टर्निंग
प्वाइंट कहल जा सकैत अछि।
सम्मेलनक मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार सुकांत सोम ललितक साहित्यिक अवदानक चर्चा
करैत कहलनि
जे हुनक साहित्य मे गरीबी आ पाखंड सॅ मुक्ति भेटैत अछि। हुनक उपन्यास आ कथा मुक्तिक अछि। ओ
कहलनि जे वर्तमान दौर मे आम जन सरोकार सॅ जुड़ल कथा आ उपन्यास लिखबाक आवश्यकता अछि।
संगहि मैथिली कथा के अपन पारम्परिक लीक सॅ हटि वर्तमान दशा दिशा पर विषय के
केन्द्रित करबाक आवश्यकता अछि। ओ कहलनि जे ओना तऽ मैथिलीक कथा साहित्य पहिनहु मजगूत छल
मुदा ओ अपन पारम्परिक लीक पर चलैत अपन स्थित मजगूत कएने छल। मैथिली साहित्य ललितक
आगमन सॅ विषय वस्तुक स्तर पर सेहो मैथिली कथा मजगूत भेल। ओ कहलनि जे ललितक सम्पूर्ण
रचना के समग्र रूपे प्रकाशित करबाक आवश्यकता अछि जाहि सॅ हुनक नीक तरहे
पुनर्मूल्यांकन कयल जा सकय। सम्मेलनक अध्यक्षता करैत वरिष्ठ साहित्यकार नरेन्द्र झा
कहलनि जे मैथिली मे ललितक योगदान के बिसरल नहि जा सकैत अछि। ओ आबऽ वला पीढ़ीक लेल
मार्गदर्शक छथि। ओ मैथिली साहित्य के देश आ विश्व साहित्यक समकक्ष अनबाक लेल सदैव छट
पटाइत छलाह।
एहि सॅ पहिने मैथिली लेखक संघक महासचिव विनोद कुमार झा प्रबुद्ध जनक स्वागत
करैत संघक
गतिविधि पर रोशनी देलनि आ संघक योजना सभक सोझा रखलनि। सम्मेलनक दोसर सत्र मे कवि सम्मेलन
सम्पन्न भेल जकर अध्यक्षता डॉक्टर इन्द्रकांत झा कयलनि। कवि सम्मेलन मे कमलकांत झा, कमल मोहन चुन्नू, अजीत आजाद, सुरेन्द्र नाथ, अरविंद ठाकुर, जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’ गंगानाथ गंगेश, विजय नाथ झा
कविता पाठ कयलनि। एहि अवसर पर डॉक्टर वीणा कर्ण, विवेकानंद ठाकुर, प्रमीला झा, अग्निपुष्प, अरूणा चौधरी, डॉ0 रमण कुमार झा मैथिली भाषाक आन कतेको साहित्यकार उपस्थित
छलाह।
उनसठम वर्ष मे प्रवेश कयलक चेतना समिति नीक गप आ योजनाक
पर भेल चर्चा।
मिथिलाक प्रतिनिधि संस्था चेतना समिति पटनाक उनसठम स्थापना दिवस मिथिला भवन मे समारोहक संग
मनाओल गेल। एकर अध्यक्षता चेतना समितिक नव निर्वाचित अध्यक्ष विजय कुमार मिश्रक
कयलनि योजना विभागक प्रधान सचिव विजय प्रकाश मुख्य अतिथि छलाह। एहि अवसर पर
सांस्कृतिक कार्यक्रम सेहो सम्पन्न भेल। कार्यक्रमक प्रारंभ प्रणव प्रवीण झाक गोसाउनकि
गीत सॅ भेल। समारोह मे उपस्थित लोक सभक स्वागत करैत नव निर्वाचित सदस्य बासुकीनाथ
झा समितिक काजक चर्चा करैत नवतुरिया सभ के अपन भाषा आ संस्कृतिक संरक्षणक लेल
आगा आबय लेल कहलनि। आ भने मंचस्थ भऽ नवतुरियाक आह्वान करैत छलाह मुदा कार्यक्रमक
दरमियान कतहु सॅ कोनो नवतुरियाक अवसर नहि देल गेेल आ समितिक जे नव कार्यकारिणी बनल
अछि ओहि मे नव किछु अछिए नहि तऽ नवतुरिया कऽ सॅ आओत।
एहि अवसर पर विजय प्रकाश मैथिली भाषाक आ संस्कृतिक संरक्षणक बदला संवर्द्धन पर
जोर दैत
कहलनि जे एकरा बचा कऽ रखबाक लेल अपनहि घर स ॅप्रयास करबाक चाही। ओ कहलनि जे मात्रा नीक गप आ
भाषण सॅ मिथिला आ मैथिलीक विकास नहि होयत एहि लेल हमरा सभ के जमीनक स्तर पर प्रयास
करबाक चाही। हमरा सभ के भाषा के संवैधानिक अधिकार भेटल अछि मुदा एकर लाभ मैथिली भाषी
के नहि भेटि रहल अछि। एहि लेल प्रबुद्ध मैथिल जन जिम्मेवार छथि। आम मैथिली भाषी के
अपन भाषाक महत्व आ अधिकारक जनतब देबाक लेल अभियान चलैबाक आवश्यकता अछि। ओ कहलनि जे
सभ के अपन मातृभाषा मे शिक्षा देबाक चाही। मातृभाषा मे शिक्षा देला सॅ नेना सभ मे
भाषाक ज्ञानक संगहि तकनीकि शब्दक ज्ञान मे बढ़ोतरि होइत अछि। वरिष्ठ मैथिल रंगकर्मी
प्रेमलता मिश्र प्रेम कहलनि जे ई चिन्ताक विषय अछि जे पबुद्ध मैथिल समाज आइ अपन
भाषा मे बजबाक प्रति उदासीन अछि। ओकरा मैथिली भाषा मे गप करब अपना के पिछड़ल बुझि पड़ैत
अछि। जखनकि आन भाषा भाषी के आपस मे अपन भाषा मे गप करबा मे गर्व होइत छनि। ओ
मैथिल समाज सॅ अपन भाषाक प्रति सम्मान रखबाक आह्वान करैत कहलनि जे ओ कतेको पैघ पद पर
होथि अपन घरक भाषा मैथिली राखथि। ज्यों अपना घर मे अपन भाषा आ संस्कृति के
सम्मान नहि भेटत कऽ आन ठाम सॅ सम्मान भेटबाक आश लगाएब बेकार अछि।
एहि अवसर पर अपन विचार व्यक्त करैत मैथिल समाज सेविका आ शिक्षाविद् मृदुला
प्रकाश मैथिली
भाषी सभ सॅ अपन भाषाक प्रति स्नेह बढ़ैबाक पर जोर देलनि। ओ कहलनि जे समृद्ध मिथिला संस्कृति
आ मैथिली भाषाक संकट पर हम सभ चर्च करब एकर शायद कल्पना हमरा सभक पूर्वज नहि कयने
हेताह। इ स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण अछि। अविकसित भाषा आ संस्कृति विकसित भऽ रहल
अछि आ हमरा सभ दिन पर दिन पछुआ रहल अछि। हमरा अवसर भेटि रहल अछि एकर लाभ उठैबाक अवसर
हमरा सभ के नहि अछि। अपन भाषा सार्वजनिक रूपे बजबा मे हिन भावना ग्रसित कऽ रहल
अछि जे नीक स्थिति नहि अछि।
कार्यक्रमक अध्यक्षता करैत समितिक अध्यक्ष विजय कुमार मिश्र मिथिलांचल मे
प्राथमिक स्तर सॅ
नेना सभ के मैथिली भाषा मे शिक्षा देयैबाक लेल सरकार सॅ मांग कयल जायत। संविधानक अष्टम्
अनुसूची मे मैथिली के सम्मिलित कयलाक बाद सरकार ई दायित्व अछि जे ओ स्वयं एहि दिस
पहल करय जे प्रदेश मे जतय केओ एहि भाषा मे पढ़ए चाहैत अछि। ओकर व्यवस्था करय।
कार्यक्रमक संचालन समितिक संयुक्त सचिव उमेश मिश्र कयलनि। एहि अवसर पर विधायक
विनोद नारायण
झा उपाध्यक्ष गणेश शंकर स्वर्गा, योगेन्द्र नारायण मल्लिक, घर, बाहर पत्रिकाक सहायक संपादक कमल मोहन चुन्नू, अजीत आजाद, रघुवीर मोची, प्रो0 निरंजन झा, प्रेमकांत झा, डॉ0 इन्द्रकांत झा, डॉ0 अरूणा चौधरी आन
कतेको गणमान्य लोक उपस्थित छलाह।
सन्दीप कुमार साफी
विचार-बिन्दु
राजा अओर परजा
एगो समए छेलै जहिया लोक लोकपर विश्वास करै छल, अपन समाजमे कोनो
तरहक बातचीत होइत छल तँ गाममे जे राजा रहै छल तिनका ऐठाम सभ निपटारा भऽ जाइ छल, अओर ओही ठाम
न्याय अओर अन्यायक फैसला होइ छल, किएक तँ सभ लोक राजाकेँ सम्मान अओर आदर सदाचारसँ नाम लैत छल
किएक तँ राज्यमे कोनो तरहक सुखार या आपदा-बिपत्ति होइत छल तँ राजा परजाक संग दैत छल, ओइ परजाक मदत
सहायता करैत छल मुदा अखन एहन समए आबि गेल जे राजा अओर परजामे कोनो अंतरे नै रहि
गेल, किएक तँ
आब ने ओते अन्न उपजै छै आ ने राजा परजाक मदति सहायता करै अछि।
पहिने लोक सभ राजासँ अप्पन बेटीक बियाहक बातचीत लऽ कऽ जखन
राजदरबारमे जाइ छल तखन ओही व्यक्तिकेँ महराज आश्वासन दैत छल जे तूँ या तोहर बेटीक
खर्चाक व्यवस्था भऽ जेतऽ तखन परजो अप्पन राजामे लीन रहै छल। मुदा ने ओ सस्ता जमाना
रहलै अओर ने ओ राजा रहलै,
किएक तँ पहिनुकहा लोक सबहक कहब छेलै जे ओ लोक सभ जे छेलै, एगो लोहाबला
व्यक्ति मानल जाइ छेलै, ओ सभ जे
बाजै छेलै से करै छेलै, अप्पन
नाम हँसाए नै दै छेलै, कोइ
दोसर गामबला यदि नाम सुनै तँ कहै जे फलाँ गामक राजा अप्पन परजाक सुख-दुख देखै छै, कतेक नीक छै ओ
गाम, चल ओही
गाममे, घर
बनाएब , ओही
राजाक राज्यमे रहब।
देखही जे दुआरिपर कतेक-कतेकटा ढक छै, कतेक अन्न छै, कएगो हाथी बान्हल छै, कतेकटा हुनकर दरबज्जा छै, चल ओही राजमे
रहब, कोनो
चीजक दिक्कत नै हएत। सभ प्राणी ओही ठाम जीवन बिताएब।
ई सभ परजा राजाक नव परजा बनैत छल।
आब तँ देखल जाए तँ राजा परजाकेँ सुपै बोइले नै दइ पर तैयार
होइत अछि। पहिने एक सेर मरुआ नै तँ एक सेर जऽ दैत छल। भरि दिन हर जोइत कऽ आबै छल
तँ ओ मालिक अप्पन जऽनकेँ मरुआ अओर जऽ बोइन दैत छेलै।
मुदा देखैत महगाइ कऽ चलैत राजाक मनमे अविकार आबि गेल जे
एतेक अन्न जे ओकरा देबै से ओही अन्न बेच कऽ हमरा अओर दु कट्ठा खेत भऽ जाएत अओर अपन
बढ़ैत परिवार देख कऽ सोचऽ लागल जे ई संसार अहिना रहत मुदा अप्पन सान गुमान सभ राजा
बिसरि गेल, के
देखैए परजाकेँ अओर के देखैए अप्पन सान सौकत।
बदलैत दुनियाँ देख परजा सभ गामसँ शहरमे काज करैक लेल
प्रस्थान केलक जे आब गाममे राजा अप्पन घर-परिवारकेँ देखत आकि हमरा सभक मदति करता।
सभ परजा अपन गाम छोड़ि शहरमे कमाए लागल, अओर जे राजाक
हरोड़ीमे काज करैत छल से ओ जमीन जजाति सभ राजासँ लिखबा कऽ परजा अपन नाम कऽ लेलक।
आबने राजा ओइठाम कियो परजा हरोऊरी खटैत अछि। किएक तँ
दोकानमे एक टका सलाइ दै छै आ राजा ओइठाम भरि दिन धान-दाउन करलापर
पाँच किलो धान बोइन दै छै,
से नै तँ आब गाम छोड़ि शहरेमे काज करब, बड़ बढ़ियाँ मन भेल तँ काज केलक, नै भेल तँ अप्पन
चारि दिन बैठल छी, दोसर
किछु करै अछि, ई सभ
सोचि राजा अओर परजामे कोनो महत्व कनीक-कनीक सभ हटल जाइत अछि, लोकक मनमे आलस्यक प्रवेश भऽ गेल, केकरो नै केकरो
से मतल रहि गेल।
मिथिलांचलक राजा छल राजा जनक जे अप्पन राज्यमे खेतसँ खलिहान
तक परजाकेँ कखनो दुखी नै देख सकै छल। जे कोनो मनमे कल्पना करैत छल परजा तँ ओकरा
सबहक राजा जनक पूरा करैत छल, केकरो कोनो तरहक असुविधा नै होइ, तेकर लेल तत्पर
रहै छल।
एक बेर राज्यमे भीषण सुखार भऽ गेल जे दू की पाँच साल तक
बर्खा नै भेल, धरती
फाटि-फाटि गेल
तँ महराज जनक यज्ञ कऽ कए अपन परजाक हितक लेल भगवान इन्द्रदेवसँ प्रार्थना केलनि जे
हमरा बचाउ, हमरा
परजापर दया करू, हमर
परजा मरि रहल अछि, आइ कतेक
मास भऽ गेल हमर परजा सभकें अन्न खेला, हे भगवान, हमरा अओर हमर परजापर दया करू।
अओर एतेक सभ बात सुनै छेलै, भगवान अओर भक्तमे यएह व्यवहार होइक चाही
अओर यएह सत्यता अपनेबाक चाही, ओहीसँ प्रकृति सेहो गवाही दैत अछि जे मनुषमे भगवानसँ केहन
भेदभाव हेबाक चाही। सभ गदगद तँ भगवान अओर संसार सुखदमय रहत मुदा अखन सभ अपन तँ सभ
अपन पेट भरि गेल तँ दोसरक पेट भरलै कि नै तेकर चिन्ता के करैत अछि। पहिने ने एतेक
बी.पी.एल. छेलै, अओर ने एतेक ए.पी.एल. सबहक गुजर समान
होइ छेलै, सभ जऽ
अओर जनेरक खिचरी खाइत छेलै,
भऽ गेल कहियो तँ केकरो एहने नीक घर रहैत छल जे भातक मुँह देखैत छल, अखन देखू जे
गरीब अमीर एक समान खाइ-पिबैत
अछि। दालि भात अओर तरकारी प्रेमसँ खाइत अछि।
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