३. पद्य
...
ओही दुनू ’सिस्टर’केँ देखलहु लट फलकेनै
उत्फुल्ल मुँह विहुँसेनै
मटकल चलि आवैत
देहमे उपजल एकटा अजबे तरहक आवेश
मोनकेँ नहि देखने छलहु एना कहियो खिसियावैत
किछु कहबा हेतु जहिना मुँह चुनियेलीह
मुसकेलीह
तामससँ हमर भृकुटि तन्तु गेल तरारि
ओकरा देखलहु नखशिख आँखिगुड़ारि
कहलियन्हि अहाँलोकनि बुझाय तँ छी अभिजाति
मुदा ऐँये, संस्कार कियै भ’ गेल अपचालि
इहो छियैक एकतरहक व्यभिचार
अहाँलोकनि समाजकेँ जुनि करू एना खराप
कहु महिलाकेँ महिला संग सहवास
सिनेहक ई कोनरूप केलकै नवविकास?
...
पहिनेतँ ओ सकपकेलीह
हठदै लाजे कठुऐलीह
तखन मोन जँ भेलन्हि कनी स्थिर
हमरा बुझेलीह
अहाँ सुनने छियैक एंड्रीन रिचक विचार?
हुनक कहल "लेस्बियन कॉन्टिन्युअम" शब्दक सार?
जकर अर्थ भेलय- ’सखि-बहिनपा भावक परिविस्तार’
एहिमे बुझाओल गेल अछि दैहिक-संसर्गसँ बेशी आत्माक तालबंध
दूई आत्माक तादात्मीय मिलन संबंध
दूई देह जखन सुनैत छै परस्पर अंरतात्माक दु:ख-सुख
तखने होइत छै कोमल आत्मीयस्पर्श, स्पंदन, आत्मशांति
तत्पश्चात देहोजँ भ’ जाइत छै एक दोसरकेँ अर्पित
ओही संसर्गसँ भेटैत छै मोनक तृप्ति
एक देह तहन नै बुझैत छै दोसर देहक लिंगभेदी रूप
खाहे एकरा अपन मापदण्डमे प्रेम बुझियोक वा प्रेमक विरूप
एंड्रीन रिचक "लेस्बियन कॉन्टिन्युअम"क इयह बीजभाव
स्त्रीमोनमे देखल गेल अस्सल स्वभाव
...
दुनियाँक सभ नारी नहि अछि भागक बली
जकरा अपन नर संग मिलैत होइक अंतरमोनक नली
बेसी पुरूख बुझै छथि स्त्रीकेँ केलीक्रियाक निष्क्रिय-साझीदार
कोखि बढ़ावैक धारियित्री, गर्भ धारणक सुगढ़ औजार
बेसी पुरूख रहैत छथि हरदम उग्रसंसर्गक अगुतायल
नहि देखैत अछि ओकर दैहिकमित्र सहमति छथि वा डेरायल
स्त्रीगणक केलितंत्रिकाक ओ मानिते नै छथि स्वतंत्र अस्तित्व
कोनो नै प्रयास बुझैक जे की छी वस्तुतः स्त्रीत्व
जानैत छियै वा नहि हुअय एहि अनुभुतिसँ अहाँक संबंध
स्त्रीदेहक संगीत होइत छै शास्त्रीय रचनाबंध
पहिने ध्रुपद धमार आ आलाप तखन खयाल आओर तान तराना
मुदा जँ अहाँ छी पॉप संगीतक ररधुस धुम-धड़ाकक दिवाना
तँ एकर विद्रुपताकेँ देल जेतय सहजहि हरैरि
तोड़िमरोरि
ओही सँ कहियो नै उठतै तखन कोनो राग
भ’ जेतैक घोर विराग
मनक एकात्मकता साधने बिना देह पर भ’ जायब हावी
कहु एहि बातकेँ कोना बुझाबी
सत कही तँ ई छियैक एकटा भियावह अपराध
बलत्कारेक सदियह दायभाग
परस्पर सुक्ष्मतम दुःख-सुखसँ एकाकार भेनय बिना
एक-दोसरक मोनमे गहनतम सम्मान जगौने बिना
सीधे दैहिक स्पर्श पर भ’ जेबैक उतारू
तँ अहीँ बुझाबु-
नहि छियैक ई स्त्रीमोन संग क्रुरतम खेल
आइयो दुनियाँक बहुतो स्त्री एहने जीवन रहलै झेल
पुरूखक एहि क्रुरतम खेलक प्रतिक्रिया तीक्ष्ण
जनम लेलकै हेँ आजुक लेस्बियनिज्म
...
अहाँ सुननै होए वा नहि "रैडिकल फेमिनिनिज्म"क नाम
ई छियैक पछमी नारीवादी आन्दोलनक विद्रोही शाखाक उपनाम
देलन्हि नारीजीवनक मारते रास उत्पीड़न-विषयगत वितर्क
ईलोकनि जे दैत छथि एकटा तर्क--
प्रोनोग्राफी, वेश्यावृति, बलत्कार, घरेलुहिंसा, दहेजादिक आधार छै नारीदेह
स्त्री हेतु तेँ आब महाक जरूरी जे ओ भ’ जाउथ विदेह
पुरूखगणक मोन तखने हेतै आब हेंठ आ स्त्रीकेँ भेटतैक मोल
जखन नारी तोड़ि देती परिणय, परिणयपुर्व-कौमार्य, पतिव्रताक अधिमोल
टेस्ट-ट्युबसँ बच्चा जनती आ कुमारीमाताकेँ जँ बनेती अपन जीवनढ़ंग
स्त्रीगणक जीवनधारामे तखने भरतन्हि शृंगाररस-सरसछंद
आदमीक महत्व ओहीदिन औरतक जीवनमे भ’ जेतय हे औंउठा-आँगूर
लेस्बियनिज्म जहिया स्त्रीगणक हितमे बनि जेतैक समाजिक कानून
सत गप कही जँ खराप नै मानी
स्त्रीगण अर्थगत, समाजिक, राजनीतिक आत्मनिर्भरताकेँ केलन्हि आइ प्राप्त
हिनकालोकनिकेँ दैहिको आत्मनिर्भरता भेटि जेतन्हि
लेस्बियनिज्म जीवनढ़ंग संग जहिया ईलोकनि क’ लेतीह आत्मसात
...
अपना सबहक ओहिठां रहै सखी-बहिनपा लगबैक रीत
औंढ़नी बदलि, ऐंठ पानसुपारी खुआ
वा कँगुरिया आँगुर थुकथुका...
कहु नेनपनमे कहियो जोड़ने छलहु एहन पीरीत
बान्हल जाइत छलैक सखी-बहिनपाक एहने बन्हन मजगूत
जे वियाहे बन्हन सनक होइत छलैक सुपवित्र अजगूत
कतैक कठिन छल एक-दोसरक गुप्तराजकेँ ताजीवन सहेजनाय
जीनगीक डेग डेग पर तनमनधनसँ सखीक काज एनाय
सखी-बहिनपाय ओकरेसँ जुड़य जकरासँ बढ़य आत्मीय मनबंध
की पहिने रीतरेवाजक सक्कत बनहन तखन हुअय सुपीरीत-संबंध?
लेस्बियनिज्म संबंधक परिविस्तारक इयह छियैक मर्म
आत्माविलय, सह जीवन-मरन, सह संरक्षक-संरक्षिताक सैद्धांतिक धर्म
रैडिकल फेमिनिनिस्टक नारा छैक "सिस्टरहूड इज पावरफूल"
मतलब ’बहिनपायमे छैक बहुत बलबूत’
आओर देलियेहेँ एकटा बात दिस ध्यान-
सखी-बहिनपायमे नहि लेल जाइछ एक-दोसरक असल नाम
कहै जाइत छथि एक दोसरकेँ लौंग, पान, सुपारी, जरदा
वा फूलक नामपर जुही, गुलाब, बेली, चंपा, गेंदा
कहि सकैत छी एकर पाछु की रहै मनोविज्ञान?
परणीतोतँ अपन ससूर, भैंसूर, वरक नहि लैत छथि नाम?
...
सभ गप सुनि हम मोने मोन भ’ गेलहु अवाक
प्रत्योत्पन्नमतिमे सहजहि नहि फुरल की हेतै एकर बौद्धिक जवाव
पुरूख-स्त्रीक बदलैत संबंधक आगु राखल एहन भारी प्रश्न
विश्वक चन्द्रधवल संस्कृतिक गालपर लेभरल हमरा अखरल दागकृष्ण
श्रीमान आ श्रीमति मृदुला वर्मा सन
कतेक पितामह-पितामहीकेँ लागल हेतय खुदबुदी
विचारक ढ़ुलमुली
की मातृत्वक नयका सभ्यरूप इयह थिकै?
जे हुनकर बेटा-पुतौह अमेरीका मे जिबै
एकतँ नवयुगक डाक्टर आ पतिदेवकेँ समयक अभाव
परसौतीयोकेँ सेहो प्रसव-पीड़ा सहैक नइँ रहलै तेहन सुभाव
सब हरबरायले,
महाक जल्दी मे, कुत्ता नाहैत दलफैत हँफसियाले
बच्चाकेँ जनमय दैतय अपन सहज जनम
तखने नै भगवान लिखथिन हुनकर सुभाग्यलेख-करम
जँ अहाँ अपने रहबै धरफरायल
तखन तँ किछ लिखायत अंटबंट, किछ सुकरमो छुटायत
पंडित होय वा पाखण्डी, जोतखीसँ दिन तका राखू शल्यक समय
भाग्यतँ तखन अपना हिसाबेँ जोतखीये जी नै लिखताह
एहिमे बरह्माजीक की छन्हि दोख, हुनका की लेनाय-देनाय
दुई-चारि घंटाक प्रसवो-पीड़ा सुख जखन माताश्री नहिये बुझबय
मातृत्वक करेज कोनाकेँ हैत सहजहि सिरजित
छातिमे उतरत कतयसँ वात्सल्यमयी दुधक धार
पाउडरदुधेक खून निचौरि नै हैत संतानक हार-मौंस, मोन-मगज निरमित
पितामह पितामही बड़ सेहन्तासँ गेल छलीह विदेश
मोनमे सहेजनै मारैत रास उन्मेष
पुनरस्मरणक’ रटने बालगीत, फकरा, नजैर-गुजैरक यंत्र
छुप्पाछुप्पी अभ्यास कलन्हि पोता संग मखरै, गाबय, सुतेबाक तंत
दादाकेँ तँ रहि-रहि करेजमे उठैन्हि छुलनोंचनी
पोताकेँ कोर-कान्ह पाँज लेब, घुघुआ की घोघरी?
बदमसवा तँ मल-मुत्र त्यागि हँसत मुँहमे ल’ अँगुरी
दादी तेँ समेटि लेलनि नव-पुरान एत्तेकटा नूआक मोटरी
मुदा हाय रे भगवान, एहन अनहेर
छौंड़ाकेँ ’क्रेच’मे छोड़ि दुनु बेकैत पहुँचल अगुवानीमे मुँह बिचकेनै अनेर
दादाक करेज फाटलन्हितँ भादवक बिजलत्ता-मेघ सन उठलन्हि ढ़न्कार
मुदा दादी साहोर साहोर साहोर क’ बातकेँ कयलन्हि कहुना सम्हार
बुढ़ाक तखने हवाई-अड्डेसँ हरेलन्हि जे मुँहसँ बकार
फेर नहि अयलन्हि एक्को मिसिया मुसकी टुटलाहा दाँतद’ ठोरपर बहार
घर पहुँचि हिनका सभकेँ देल गेलन्हि विश्राम लेल कक्ष
सुभिता तँ सभ किछुक, मुदा हे लोकवेदक अभावे सभ तुच्छ
मुन्हारि साँझधरि गपशप करिते रहैथ कि ता
दोसर घरसँ आओल बच्चा कानयक बेकल राग
दादी हरखियाल मोनय धरफरायले चललि पछोर धेनय अबाज
ता पुतहु पाछुसँ टोकलकैन मम्मी बौआक सुत’ के भ’ गेलय समय
तेँ छोड़ि देथुन औखन ओकरा, देथुन अपन मोन सँ जी भरि कानय
कानैत कानैत थाकि जखन जेतन्हि सुति तखन लिहैथ देखि पोताक मुँह
दादी मोने मोन बड़बड़ेलीह- हाय गे निशोख चिल्कौरमौगी बनरमुँह
मुदा ठमकि गेलन्हि पारि, हरखियायल मोन भ’ गेलन्हि क्षणेमे हेंठ
नवतूरसँ मुँह की लगायब, बढ़ियाँ बौआसँ सुतलेमे क’ लेब भेंट
चारि शयनकक्षक घरमे एकटामे रहन्हि बेटा-पुतौहुक दामपत्य-बास
कोनमे राखल चानिक पलंग, सुशिल्प ठोकल पत्तरसँ घेरल चारूकात
उपरसँ रहय खुजल मुदा लागय जेना होय बच्चा पोसयक सद्यह पिंजरा
डेढ़ बरखक एहि छौंड़ाक तँ गप छोड़िये दिओ
एकरा की कुदि सकैत छलै पाँचो सालक नमहर बेदरा!
नहायल नील नीलकंठक पाँखिसन चमकैत बिछान तैपर तकिया मलमल
छौड़ाक नोर खरकट्टल आँखि, छल पेटकुनिया दनय निबिकार पड़ल
दादीकेँ इयादि पड़ि गेलनि अपन छाति सटल बेटाक नेनपन
राति रातिभरि जागि कोना करैत छलीह नोरपन
बदलैत रहैत छली गुंह-मूतसँ सानल पैजामा केथरी
भरि दिन तहन कोना सुखाबैत छलीह गेन्हरा भोथरी
एक्के चिचियाएब पर जागि जाइत छलै भरि अंगनाक लोक
कियो चुचकारैत, कियो पुचकारैत, कियो पलथी सुतेने क’ देत छलै भोर
कोना सासु, दियादिन, ननद, जयधी, घरक पुरूखोक रहैत छलै सहयोग
तखन नै बच्चाक करेजमे जनमय अपन दीदी, दादी, काकी, दादा, चाचाक अवबोध
ता दिन बजरूआ लखेरा सभ पसारनै छलै बड़का घटंग
पाउडरक दुध बेचि पैसा हसोथय केर गढ़नै सिटियारी-ढ़ंग
प्रचार क’ देलकै जे धीयापुताकेँ दुध पियेनै मायक सुनरताय भ’ जाइत छै क्षीण
हाय रे विज्ञापनक ओ दिन
डकटरबो सभ मोफतक पैसा खाय मिल गेल लखेरबेक संग
कहु बच्चा सबहक शरीर आ मनक विकृतिये बेचय की पढ़लक रहै अबंड
पाउडर-दुधक लिखय लागल मारिते रास प्रशंसाक पुल
सभटा बुझु जे फुसिये, उले-जूलूल
कलजुगक कुमाता बच्चाकेँ दुध पियाबैसँ लागलीह कतराय
सबकेँ रहन्हि अपन देहेक चमतकारि, मातृत्वक भाव गेलाह बकदै सुखाय
बच्चा सभमे बढ़य लागलै डायरिया, निमोनिया, प्रतिरोधक्षमता-क्षीणक रोग
देस-विदेसक शिशु मृत्युदरक देखलक आँकड़ा तँ सरकारोकेँ भ’ गेलय क्षोभ
विश्वक चिकित्सक, विशेषज्ञक हुअय लागल तखन सभा सेमिनार
अन्तर्राष्ट्रीय शिशु खाद्य संघिता फलमे भ’ गेलय तैयार
आब तँ गाम-गाम आंगनबाड़ियो केन्द्र पर टांगल देखबै मायक दुधक लाभ
बोतलदुधक हानि
मुदा एखनो कतेक मौगी अपन धीयापुताकेँ नहिये पियाबैक लेनय छथि ठानि
एहन चमतकारि मौगी छथि माय कि पिशैंच
अपने जनमल अंशकेँ काँचे चिबाबय बाली बुढ़ियादादीक खिस्साक डायन
ओकर हाथसँ छूल अछि देह
मकइ जिंदाबाद
मकइक गाछक सभसँ ऊपर नाम-नाम फूल
जेना सिपाहीक कनटोप
आ देहपर पसरल हाथ भरिक पात
जेना सिपाहीक डाँरपर राखल अस्त्र
आ बीति-डेढ़-बीतक बाइल
जेना गस्सल-गस्सल कारतूस
खेतमे सजल लाइनमे गाछ
जेना युद्धसँ पहिलेक सिपाही
आ हे मिथिले
ई सिपाही मिथिलाक दारिद्रय दुख क लेलिऐ के मानत
आ यादि करू पूसा
यादि राखू मसीना
ई थिक मिथिलाक नया खजाना
जतए जनमि रहल मिथिलाक नवपूत-सपूत
जतए बागु भऽ रहल
पलटनक पलटन
सेना
जे एकदम कटिबद्ध
दुर्भिक्ष सबहक विरूद्ध
आब देखिऐ ने केते जान कोसीमे
रौदी, दाही झौंसीमे
जय मिथिला, जय मसीना, जय मकइ
आ मेंहिक्का चाउरकेँ मुर्दाबाद नै कहितौं
जिंदाबाद केना कहिऐ
जखनि कि ई हरदम जीएने रहलै
बस एक आना मिथिलाकेँ।
2 खेसारी नहितन
खेसारीक खेती बस सरकारे रोकलकए
गाम-समाजमे अखनो बागु-रोपनी
खेत-पथारमे अखनो कमौनी
आ अखनो छीम्मीमे अहिना दाना भरौनी
तहिना कटनी आ तहिना दौनी
ई निखिद्ध ओहिना थारीमे
ओहिना हमर देह आ खूनमे
हमर भाषामे
‘बूरि खेसारी नहितन'
आ जे असलमे खेसारी रहै
सएह दोसरकेँ खेसारी कहए
आ असली खेसारी
राहड़िक छिलका पहिरि
बनल रहए तीमनराज
आ करैत संक्रमण
पसारैत रोगक प्रोटीन।
3 भगवान मरूआ आ मिथिला
आ भगवानोकेँ पता रहनि
जे ऐ देशकेँ मरूए बचा सकत
एहेन फसिल जे रौदी आ बरखाकेँ किछु नै गुदानै
एहेन जे भेलिऐ बरखा तैयो नीक
आ नै भेलिऐ तैयो तहिना
एहेन सक्कत कि गिरियो कऽ तहिना
एहेन चिक्कन कि जत्तोकेँ पकड़िमे नै आबै
ने लाल ने कारी
आ मरूओ विदा भऽ गेलै मिथिलासँ
जेना कि बहुतो चीज निपत्ता भऽ गेलै
जेकर नाम रेड डाटा बुकोमे नै।
4 अल्हुआ कऽ सप्पत
अल्हुओ खेने रहै सप्पत
जा तक बरहब नै
बाहर नै निकलब
जमीनक बाहर पसारने लाल-हरिअर लत्ती
लोककेँ भरमाबैत रहै
आ निच्चाँमे जमा करैत
खूब रास कार्बोहाइड्रेट
एत्ते मिठास कि
कुसियारोकेँ ईर्ष्या होए
कखनो-कखनो कीड़ा-मकोड़ा सेहो
सटि कऽ चाटनाइ शुरू करए
आ धरतीपर आबिते
रूपआमे पसेरी
भूक्खल, अधभूक्खल, जोगाड़ी
व्रती साधु, सन्यासी
कांच, उसनल, पकाएल
दूध, दही, तीमन संग
अल्हुआ तिरपित करए लगै
बिना पुछने गाम टोल जाति
आ फल्लाँ गामवाली फेर घूमि रहल छथिन
नेने दौरी-चंगेरा
नेने उधारक आस
रूपआमे पसेरी अल्हुआ निराश नै करतै।
5 महिक्का धान
महिक्का धान घेरि लए भरि बिगहा
आ दाना दए मोन भरि
तँ एकर सुगंध लऽ कऽ की की करी
केत्ते बान्ही आ केत्ते जोगा कऽ राखी
आ ई उपजए हमरा खेतमे
चलि जाए बाबू भैयाक कोठीमे
तँ एहेन बुलनहारकेँ केना मनाबी
आ हरिदम पैंचक फेरा अलग
वौकाक माए वौकाक भौजी
आबथिन लऽ लऽ कऽ अप्पन गिलास
आ कहथिन जे हमरो उपजत तँ घुमा देब
आ केना कऽ बिसबास दियाबी के हमरा घरमे एक्को कनमा महिक्का चाउर नै
ई महिक्का धान देलक बदनामी
सुआदोसँ आ समाजोसँ।
6 कविता आ धान
हम बेरि-बेरि चाहलिऐ
जे ई महिक्का धान हमर कवितामे आबि कऽ गमकए
मुदा हम रोपिऐ तुलसीफूल
आ दाना बनै खोरा केर
हम चाहिऐ जे तुलसीएफूल जकाँ
बस एके-दू कविता लिखी हम
मुदा लिखए लागिऐ
तँ कुम्भी अप्पन जाल फैलाबए लागै
हम सोचिऐ जे एक-दू पाँतिकेँ डेली जोड़ी
मुदा कागत-कलम लिऐ तँ ढैचा जकाँ किच्छो सम्हारेमे नै रहए
हम अखनो आश्वस्त छी
जे एकदिन हमरो खेतमे तुलसीफूल उपजत।
7 कनियाँ आ कविता
जँए कि मकइ आ खेसारीपर लिखल देखलखिन
हुनका पक्का बिसवास भऽ गेलनि जे हम धान आ मरूओपर जरूरे लिखब
तँए चेतावनी दैत कहलखिन जे पगलाउ जुनि
जे ई आलतू-फालतू अगर-मगर सभ लिखै छी
जखनि देखी कागत-कलम नेने मुसकिया रहल छी
ई पगलपनी केत्ते दिन
भोजन बनबी हम
कपड़ा-लत्ता साफ करी हम
आ अहाँ बस बैसल बौराइत रहब
हे देखू हम बिगड़ि कऽ नै कहै छी
एक-ने-एक दिन अहाँक दिमाग ब्रष्ट कए कऽ रहत
जेना कि हम कविते नै सुनलिऐ
आ ओ सुनबए लगलखिन दिनकरजी आ आरसी बाबूक कविता
जेना कि हम किछु बुझिते नै छी
हे यौ हम बैसबै तँ आहूँसँ नीक लिखब
आ ई नै बूझियौ जे नीक लोक सभ अहाँक प्रशंसा करैत अछि
आ यदि आहीं सन पागल हेतै ऐ धरतीपर
तँ आर की कए सकै छै।
हम हाल की कहौँ आब बेहाल अछि
बड्ड कठिनसँ बीतल ई साल अछि
जानि नै मृत्यु हाएत केहन हमर
जीबैत जिनगी बनल जंजाल अछि
भ्रष्ट्राचारक गप्प जुनि करु भाइ यौ
नेता अफसर घूसलऽ नेहाल अछि
खूब मजा करु जा धरि अछि जिनगी
काल्हि लऽ जेबाले बैसल उ काल अछि
साँच बाजनिहार नै अछि कोनो ठाम
यौ फूसिक व्यापारमे बड्ड माल अछि
कलपै कानै भीतरे भीतर 'मुकुन्द'
प्रेममे सभक होएत ई हाल अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 14
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।