१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
३. पद्य
४. मिथिला कला-संगीत १.
ज्योति झा चौधरी २.
राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ३.
उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/
मिथिलाक जिनगी)
5.बालानां कृते-
अमित
मिश्र- हाथी गेलै भोज खाए
6. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली]
7.डॉ. अमर जी झा- भर्तृहरेः भाषाशास्त्राीय योगदानम् / VIDEHA
MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION (contd.)
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ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
संपादकीय
गजलकार स्वतंत्रता केर नामपर गजलमे हिन्दी भाषाक प्रयोग केने छथि। ऐठाम ई
धेआन देबाक गप्प थिक जे जँ अपन भाषामे कोनो शब्द नै हो तँ ओकरा लेल जा
सकैए।
२) भाषा देखलाक बाद व्याकरणपर आउ। व्याकरण मने रदीफ, काफिया आ बहर।
३) व्याकरण देखलाक बाद समान्य गजल दोष आ गजल विशेषताकेँ देखू।
४) गजल दोष आ गजल विशेषताकेँ देखला बाद भावनाकेँ देखू। ऐठाम हम ई मोन
पाड़ए चाहब जे काव्य मात्र कागजपर लीखल शब्द नै हेबाक चाही बल्कि अपन
जीवनक कर्मसँ अनुप्राणित हेबाक चाही। मने जँ केओ दलितकेँ सतबै छथि मुदा ओ
अपन गजलमे दलितकेँ पूजा करै छथि तँ हमरा हिसाबेँ ई दूषित भावना भेल।
५) जँ कथित रचनामे बहर काफिया रदीफ नै छै तँ ओ गजल नै भेल मुदा ओ रचना
पद्य तँ छै तँए ओ रचना पद्यमे रूपमे केहन छै तकरो विवेचना करू। ऐठाम हम ई
जरूर कहए चाहब जे जँ कोनो काव्यमे भावना नै छै खाली व्याकरण छै तँ ओकरा
शब्द विलास मानल जाए, कोनो दिक्कत नै मुदा जँ कोनो काव्यमे व्याकरण छै
मुदा दूषित भावना छै तँ ओकरा अपराध मानल जाए। संगे-संग हम ईहो कहए चाहब
जे जाहि काव्यमे ने व्याकरण छै आ भावना सेहो दूषित छै ओकरा महाअपराध मानल
जाए।
ऐ किछु समान्य निर्देशक संग अम अपन एकरा विराम दए रहल छी। अहाँ सभ लग जँ
कोनो आर गप्प हुअए तँ टिप्पणी रूपमे सूचित कएल जाए।
ऐ विशेषांककेँ पढ़ैत काल दूटा गप्प मोन राखू---
१) पहिल जे ऐ विशेषांकमे बहुत रास एहनो आलेख सभ अछि जे की विदेहक आन-आन अंक ओ अनचिन्हार आखरपर प्रकाशित भ' चुकल अछि। मुदा हम एकरा ऐठाँ मात्र ऐ उद्येश्यसँ देलहु जे पाठक लग एकै संगे एहन सूचना भेटै जे की गजलक समान्य गप्प बुझबा लेल आन ठाम नै बौआए पड़ै। जँ मात्र नवे आलेख हम दितिऐ तँ बहुत संभव जे बहुत रास जानकारी ऐ विशेषांक नै आबि सकैत। मुदा आब हमर ई विश्वास अछि जे गजलपरहँक प्रायः-प्रायः सभ जानकारी एक संगे पाठककेँ भेटतन्हि ऐ प्रयासमे हमरा लोकनि कते सफल छी से मात्र पाठक कहि सकै छथि।
२) ऐ विशेषांककेँ पढ़ैत काल बहुत बेर पाठककेँ ई लगतन्हि जे बहुत रास तथ्य
दोहराओल गेल छै। पाठककेँ ईहो लगतन्हि जे सभ आलोचक मात्र एकै पक्ष वा
तथ्यकेँ बारेमे घोंघाउज कए रहल छथि। ऐ संदर्भमे हमर अनुभव अछि जे ई मात्र
ऐ दुआरे भ' रहल छै कारण गजल विषयपर पहिल बेर एते मात्रामे आलोचना-समीक्षा-समालोचना एकै ठाम प्रस्तुत कएल गेल छै तँ ऐ तरहँक दोहराव संभव।
विदेहक ऐ "गजल आलोचना-समालोचना-समीक्षा" विशेषांकक बाटसँ टहलैत कालमे
अहाँक नजरि बहुत रास दुर्गंधयुक्त वस्तुक खुलल पोल देखबामे भेटत। कतौ गुंटबंदीक पोल खुजैत भेटत तँ कतौ इतिहासमे पहिल बनबाक सौखकेँ देखार करैत लेख भेटत। ऐ प्रश्नक उत्तर भेटत जे किएक गजलक परिदृष्यसँ बाबा बैद्यनाथ गाएब रहला। किएक बिना व्याकरणक गजल रहितों ऐ क्षेत्रमे लोक कम्मे आएल। जखन की जै विधाक नियम टूटल हो तैमे बेसी लोक अबै छै ( जेना कविता ) मुदा ई गजलक संग किएक नै भेल... एहूपर विचार भेटत।
२. गद्य
हमर पति देव हमर हाथ देखि रहल छलैथ ट्रेनमे। हमर मेंहदी के रंग उतरि गेल छल।ओ कहला अहॉंके अति शीघ्र एकटा पुत्री के प््रााप्ति होयत।हमर मुंह बनि गेल त ओ कहला अहॉं ठीके खरबूजा सनक लागैत हेबै बच्चा मे।फेर कहला नौकरी के योग अछि।हम तुरन्त आह्लादित भऽ गेलहुँ। हमरा ट्रेनमे भूख बहुत लागैत अछि से हम रस्ता भरि किर्छु किछु खाइत पिबैत गेलहुँ मुदा हमर पति के त मानू निर्जला व्रत छलैन। 22 घण्टा के ट्रेनक सफर फेर 2 घण्टा लागल टैक्सी स घर पहुँचय मे तखन पति कहला आब खाना पकाऊ। हम बुझबे नहिं केलियै जे हम हँसु की कानू। नइहरमे मॉं भौजी आ बहिन के प््राशंसा सुर्निसुनि परेशान छलहुँ। आब हमरा महत्व भेटो रहल छलय त हम बहुत थाकल रही।तैयो पतिदेव के आज्ञा सऽ भोजन बनेलहुँ आ करीब 3 बाजि गेल सुतय जायमे। अगिला दू दिन सुटकेश खाली करई मे गेल।
फेर जल्दिये अपन बायोडाटा बनाक नौकरी के ताक मे लागि गेलहुँ। इंटरव्यू देबैलेल पतिके संर्गेसंगे दू चारि ठाम भटकलहुँ तखन नौकरी लागल। आनदिन हम पतिदेवके बेडटी दई छलियैन जाहिलेल सास बड खिसिया गेल छली एकदिन जे खाली पेटे चाय नहिं दियौन तखन हम पानि संगे देबऽ लगलियैन।मुदा हमर नौकरी के पहिल दिन पतिदेव हमरा सऽ पहिने उठिगेला आ कहला जे उठु आई सऽ अहॉंके मुम्बई के जिनगी शुरू भऽ गेल। हम कूदि कऽ भगलहुँ ओछाउन सऽ चाय बनाबैलेल। फेर तैयार भऽ विदा भेलहुँ आफिस दिस।मुम्बई मे सफर करैके स्वर्णिम दिन छल ओ हमर जखन हमसब भार्गिभागि कऽ तैयार होयत छलहुँ। बहुत सहायक छल जे ओतबे टा घरमे बाथरूम आ टॉयलेट अलर्गअलग छल। कारण हमर पतिदेव के कम सऽ कम आधा घण्टा लागैत छलैन टॉयलेटमे। हुन्का नास्ता कराबैमे बहुत पॉंछा लागल रह पड़ै छल। आ कहियो अन्ठा दियौ तऽ घर सऽ फोन आबि जायत छल। अहिमे के नइहर के सासुर कहनाइ मुश्किल ।बड्ड दुखी करै वला व्यवहार छल ई। हम अपन लेल टिफिन सेहो पैक क ल जायत छलहुँ ।सॉंझमे लौटैकाल के नास्ता सेहो पैक रहैत छल।आ पतिदेव सऽ पुछै छलियैन तऽ कहैत छलैथ आहि ऑफिस मे पिज्जा पार्टी अछि तऽ आहि किछु आर। हुन्कर अहि बात सबहक असर छल जे हमरा बाहर के खेनाई के जिद्द लागि गेल छल ।सप्ताहान्त मे हुन्का संगे कुनो भोजनालय मे जरूर जाय छलहुँ आ बेसीतर हमर पसन्दीदा होयत छल पाव भाजी। कोजगरा मे पतिदेव असगर गेला घर आ हम नौकरी मे व्यस्त।अपन पहिल दरमाहा सऽ हम पतिके दिवाली के कपड़ा कीन कऽ देलियैन । अहिना किछु किछु लागल रहल।कोनो सप्ताहान्त में पर्दा बदलल गेल कोनो मे टीवी के कवर। फेर बुझबो नहिं केलियै जे कोना समय बीत गेल आ हमर सबहक पहिल वर्षगांठ आबि गेल।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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