दिन बेराग आ पतरा पूजा मिथिलाक दैनन्दिजनीमे अछि आ बड़–बड़ पावनि तिहार एहि लोकके संस्कार आ संस्कृतिमे रहल अछि । अन–धन लक्ष्मीक सङे अखण्ड सुखानन्द प्रदान करएबला सुखराति÷दियाबाती पावनिपर लोकक समर्पित आस्था आ अटूट निष्ठा अछि । एकर अपन खास विधि–विधान आ पूजा–पद्यति आ आस्था विश्वास अछि, मूल्य–मान्यता अछि । ई पुनित प्रकाश पावनि धार्मिक सांस्कृतिक रागरंगस’ महिमा मण्डित अछि आ लोकतत्व, लोकदर्शन आ लोक पूजा–पद्यति एकर केन्द्रमे विराजित अछि । मिथिलाक एहि सांस्कृतिक पर्वपर वैदिक आ तान्त्रिक पद्यतिक व्यापक प्रभाव सेहो सेहो अछि । अरिपन लोकचित्र सबहकसङे एहिमे प्रयुक्त हुक्कालोली आ सुपबजना लोकमन्त्रक अपन खास दर्शन आ मूल्यमान्यता अछि—
— हुकालोली दियावाती । दियावाती हुक्कालोली ।
— सुख सुखराति दियावाती । हुकालोली दियावाती ।
— घरक अलक्ष्मी÷दरिद्रा बाहर जाउ !
बाहरके लक्ष्मी घर आउ !
जहिना मिथिलाक संस्कृति सनातन अछि, महान अछि, लोक महिमा मण्डित अछि तहिना एकर पूजा–अर्चाक रीति–नीति, मूल्यमान्यता अपूर्व आ लोकायित अछि । पावनि–तिहार आ पूजा–उत्सव लोकक जीवनमे अभ्यन्तरि उर्जा आन्दक संङहि सांस्कृतिक रागरंग सेहो भरिपोक प्रदान करैछ । तएँ सब घर, सब लोकक जीवनके जगमगएने गमगम महमह हरख आनन्द प्रदान करबाक हिसाबस’ एकरा परम्परागत ढंगस’ अटूट क्रमक रुपमे मनबैत आएल अछि ।
लोक परम्परा आ पद्यति अदने–पदने, छाहीए–फुंहिए बात ला, ओहिना नै बनैछ, एकाधे दिनमे सेहो नै बनैछ । अपनासबके जीवन–धर्म आ लोक परम्परा जे अछि से परम तत्व, पुनित दर्शन, सम्पूज्य आस्था आ अटूट लोकविश्वासस’ सम्पोसित अछि । सब जनैछ जे अपनासबके सुखरातिमे बहुत उद्यम, अनेको जतन आ तप पूजनस’ लोक लक्ष्मीके जहिना घर करैए, तहिना अलक्ष्मी÷दरिद्राके बाहर करैए । एहि घर बाहरके कर्म–धर्ममे जतए लक्ष्मी घर आनल जाइछ आ अलक्ष्मी जे बहराएल जाइछ, सेहो देवी, धी–बेटी जकाँ । दुखाक’ नै सोहरदे मने, नेमे निष्ठे । लक्ष्मीपूजा दिन सकले सुमंगली बुढ़िया पुरैनिया अन्हरौखेमे, सुप बजाक’, मन्त्रौआ विदा गीत गाबिक’— घरके दरिद्रा÷अलक्ष्मी बाहर जाउ ! बाहरके लक्ष्मी घर आउ !! हे लक्ष्मीमाइ सुख–पुन लहदह करु ।हरख–आनन्दके बाढ़ि बरकैत दिअ’ । अहाँ उद्यमके, व्यपारके, सुकर्मके, सुधर्मके बोइन प्राप्तिके रुपमे बिराजू !
सुख–दुख, जीवन–मृत्यु, दुख–दारिद्र, नीक–बेजाय सब कर्म–धर्मक भोग–पारस अछि । संध्या, छाया, मृत्युदेव आदिदेव दिनकर दीनानाथक अपन घर–परिवारक छथिन । तैं सबटा बातके गहि अबधारि ई लोक दरिद्रोके दुरदुराए, गरिआए नै, नीके नाहित बेटी बहिन माफिक विदा करैत छथि, गोधन दिन । आ ई विदाइके मिथिला परम्परा आ पद्यति अलबत्ते अछि ।
गोधन, गोवरधन पूजा दिनमे, मालक घरमे, अलक्ष्मीके मुरुत गोबरस’ बनाओल जाइछ । ओकरा कुफुल चढ़ाआmे जाइछ । कुअन्नक पौती–पेटारी, सङ सांठके रुपमे बनाओल जाइछ । ओहो पौती पेटारी गोबरेके रहैछ । जेहने देवता तेहने पूजा । तेहने वर विदाइ । पूजा भाव अहू दुआरे जे के हिनका दुखाक’ अरारि मोल लिअए । ओना कहूँ घर घूरि आएल त’ सब सुख–शान्ति लाहेब !
गोधन, गोवद्र्घन बनब’, मनब’के पाछू एकटा आओर खिस्सा कहल सुनल जाइछ ।
धरतीए माइ जिका गौ सेहो मते छथिन । हिनकास’ ऐ लोकके, देवताके बड–बड उपकार । एहिना एक दिन लक्ष्मी महारानी गौमातास’ प्रसन्न भ’क’, उनटे निहोरे विनती कए कहलथिन्ह जे अहाँ अपना पवित्र तनमे हमारे बास दिअ’ ! सब देवताके अहाँमे भल बास अइ ।
ऐ बातस’ खुसी हुअके बदलामे गौमाता आतंक, भयस’ सिहरि गेलथि आ हरकले दगधले बजलीह— नै–नै, एहन किन्नौ नै भ’ सकैए । हम हरगिज नै ई बात मानि सकैछी । अहाँके पाब’ला लोक कोन–कोन पाप, छलछुधरम नै करैए ? हमरामे जखैनते अहाँक बास होएत त’ सब हमरा छिनाझपटी करत । हमर सबटा सुखचैन हरन भछन क’ देत । घात कुघातमे, नाहकमे हमरा काटि मारि देत, से हटले ।
एमहर लगारी लक्ष्मी लघोबलाए हठपिठ क’ देलखिन— हम नै मानब । जाबे अहाँ हमरा अपना तनमे बास नै देब, हम ठोस ठौर ठेकान नै पाएब, अहाँके कल नै पड़’ देब ।
ओमहर अदकल छिलमिलाए गौ तिलोभरि तलविचल नै ओथि आ नै हुनक र’ मानथि— ई भइए नै सकैए । अहाँके अनरगल उपरचौढ़ बात हम मानिए नै सकैछी । भने अहाँ अपन अन्नमे विराजै छी । नीके नाहित बोइनमे बरकैत बनू । द्रव्यमे साक्षात् रहू । धरि एना बयबन्ही नै करु । हमरा निछुन उगरासे रह’ दिअ’ ।
बड़ महजरो, धरम धकेलके बाद, गौए हारि मानि लेलनि— आब अहाँ जखैन एतेक धरखन करैछी त’ जाउ, अहाँ हमर गोबर गौंतमे बिराजुग’ !
सेहे भेलै । ओकरे चलते आइ चरणमृतमे, औषधिमे, खेतक खाद्यमे, पवित्र ठाँव आ निपिया–पोर्तयामे बड उपयोगी आ महत्वपूर्ण मानल जाइछ । गोधन पूजा अहू बाते, एकरो दुखारे ने !
कृष्ण काव्यमे गोवद्र्घनक अलग महत्व आ वर्णसब छै, तेकर खेरहा एखन एत्त’ नै करी । कथिला त’— हरि अनन्त हरि कथा अनन्ताक चौपट चपेटमे एत’ नहि पड़बाक अछि ।
मैथिलीक भविष्यक प्रसंग
‘मिथिला आवाज’ दैनिक अखबार रंगीन आठ पृष्टमे दरभंगा सँ बहार होइत अछि । दरभंगा अथवा विहार आन मैथिल बहुल क्षेत्र किंवा ६ करोडक भाषा भाषी ओत्त ओकर की अबिगत होइत छैक पत्ता नहि , जनकपुरमे नियमित दू गोट ग्राहक छोडि आन केओ छुव नहि चाहैत अछि । करोडो टकाक लगानीमे सी एम झा दैनिक अखबार निकाललनि । एहि आशमे जे मिथिला राज्यक बढैत मांग आ मैथिली, मिथिलाक रट लगौनिहार बिच जँ एकटा ब्रोडसिटक अखबार देबैक त ओ चलत , निक ग्राहक पाओत , विज्ञापन पाओत । से सभ आशापर तुषारापात भऽ गेल छन्हि , ने अखबार चलि रहल छन्हि आ ने विज्ञापन भेटि रहल छन्हि ।
अवस्था ई छैक जेँ ‘तीन तिरहुतिया तेरह पाक’क कहबी चरितार्थ करैत एतबे दिनमे कतेको पुरान स्टाफ परिवर्तन भऽ गेल छैक आ लगैया अखबार कतौ, कोनो विचारधारा, गिरोह अथवा मैथिली भाषाक संग जे पूर्वो सँ जूडैत कारणक चलिते अस्तव्यस्त भऽ रहल अछि । अखबारक शुरुक सम्वाददाता लोकनि परिचय पत्र पावि नहि सकला अछि , पारिश्रमिक आ कदरक गप्पे करब बेकार । कहबाक जरुरति नहि ई अखबारक अवस्थाक कारणे भेल हएत आ एहिमे समस्त समस्त मैथिल दोषी छी । मिथिला राज्य तँ चाही छल मसदा एकटा रंगीन मैथिली अखबारक हेतु दैनिक दू टका खर्च नहि करब । बीसटा मिन मेष निकालि हिन्दी अखबार सँ सटब । एहि तरहक दूरीकेँ जा धरि नहि मेटाओल जाएत ता धरि मैथिली आ मिथिलाक भविष्यक प्रति संसय तऽ बनले रहत ।
एक दिश अंगिका (पूर्वी तराई दिस) , मगही, बज्जिका भाषाक मारि सुनियोजित ढंग सँ आगा बढि रहल अछि तँ दोसर दिश एहि भाषाकेँ मान्यता देल समूहक लोक जँ मैथिलीमे अछि, आबय चाहैत अछि तँ ओकरा प्रति दुर्भावना, अवमानना , गुटबन्दीद्वारा कात करबाक , उत्तेजित करबाक काज ओहने वर्ग सँ भऽ रहल अछि । जकरा चलिते एहि भाषा सभक उदय भेल अछि आ से जोड पकडने जा रहल अछि ।
मुठि भरि साहित्यिक संघ, संस्थासभस होइक आकि तेहन गनल चुनल साहित्य क्षेत्रमे लागल लोक, अनेरे ककरो विरुद्धमे आमील पिने बदहवास भेल गोल निर्माण किंवा दुरभिकेँ संरचना करैत अवन उर्जा खर्च करैत देखि पडैत अछि तँ भितर सँ दुःख होइत अछि , एहि दुआरे नहि जे ओ संरचना कोनो व्यक्ति विशेषकेँ कमजोर करबाक हेतु कएल जा रहल होइछ , एहि दुआरे जे व्यथृमे ओ अपन सामथ्र्य आ प्रतिभाकेँ अनका रोकबामे अनेरे खर्च कऽ रहल होइछ । काज तँ बढिते छैक , कहाँ कोनो प्रतिवाद किंवा अवरोध अबैत छैक । तखन ककरो निचां देखएबाक आत्मरतिमे लागल लोक दू टकाक ‘मिथिला आवाज’ बीस टकाक ‘मिथिला दर्शन’ , किंवा स्थानीय मैथिली अखबार सभ कीनि कऽ मैथिली क्षेत्रमे लाग सभक हौसला बुलन्द करितथि तँ कतेक नीक होइतैक । मैथिलीपर जाहि तरहे चौतर्फी हमला भऽ रहल छैक , एहिमे ककरो कात लगा कऽ नहि, जोडि कऽ आगा बढय पडत । टिटही जकाँ सौंस आकास अपने टांगपर उडौने रहबाक भ्रमके पोसब सर्वथा पीडादायी परिणती दिश लऽ जा सकैछ , मैथिली भाषा एतेक समृद्ध आ प्रभावी रहितो पछुअएबा सँ नहि रोक जा सकैछ ।
मैथिली साहित्यक बारेमे गलत सूचना प्रवाह भऽ रहलैक अछि , जकरा रोकबाक अभियान चाही । नेपाली भाषीकेँ कानमे मैथिली साहित्यक गलत चित्र उझलल जाइछ । काठमाण्डूक कएकटा कार्यक्रममे कितु नेपाली भाषी अथवा किछु धुर्त मैथिलीसभ सेहो इतिहास एवं यथार्थकेँ तोडि मडोरि कऽ प्रस्तुत करैत देखल गेलाह अछि । इन्टरनेटमे राखल एक अंग्रेजी लेखमे नेपालक कथापर टिप्पणी छपल अछि , जाहिमे दू तीनटा कथाकारक चर्च मात्र छैक , एक गोट पाण्डे थरक लोक छथि, ओहो एहने दुष्टतापूर्ण तथ्य लऽ कऽ बौआ रहल छथि । एहि सँ मैथिली लेखनमे लागल लोककेँ निराशा होइत छैक । क्षोभ होइत छैक । सतर्कता जरुरी छैक –हमसभ ओकरा सभकेँ तथ्य परक सूचना दिऐक । एखन विश्वविद्यालयमे निपाली विषयमे एमए, पीएचडी, करैत विद्यार्थी सभकेँ मैथिली साहित्यक विभिन्न विधापर काज करबाक अवसर देल जा रहल छैक , ओसभ सम्पर्कमे अबैत छथि , बुझि पडैए, कतेक गलत सूचना देल गेल छन्हि वा ओ प्राप्त कएने छथि ।
मैथिली विद्यापति , सलशेस ,दीनाभद्री हो अथवा नौका बनिजारा, दुलरा दयाल, कोनो साहित्यकेँ समृद्ध आ विकसित प्रमाणित करबाक हेतु प्रयाप्त अछि । मुदा तकरा लेल समन्वय, समर्पण आ उदारभावक जरुरति अछि । मात्र एक दोसराक काटक फिराकमे रहब तँ भविष्यमे ककरा कटैत रहब , अपने कटाइत चलि जाएब । खतरा साफ अछि –अंगिका, मगही , किछु मात्रामे बज्जिका सेहो । एखने सविचानी राखू । राज्यक परिकल्पना कएनिहारकेँ हृदय आ सोच दूनु पैघ हएबाक चाही । मैथिल तँ एकटा राज्यक हकदार अछिए ने !
३
दुर्गास्तुतिक लोकपरम्परा ः झिझिया
पृष्ठभूमि
एहि परिवर्तनशील दुनियाँमे. सभ किछु बदलि रहलैक अछि । लोक आनक सभ्यताक नकलकऽ अपनाकेँ धन्य बूझऽ लागल अछि । एहि विकट परिस्थितिमे एखनो गाम–घरक हमरा सभक अपन मौलिक संस्कृति ओहिना अविच्छिन्न रूपमे देखबामे अबैत अछि । विभिन्न लोककथा, लोकगाथा, लोकगीत सदृशे लोकनाट्य आ लोकनृत्य सेहो ग्रामीण ललनाक संरक्षणमे जीवित अछि– प्रस्फुटित अछि । एहि जीवित परम्परामे एकटा सशक्त अध्याय अछि लोकनृत्य– झिझियाक ।
झिझिया मिथिलाक अधिकांश क्षेत्रमे बड़ उल्लसक संग विजयादशमीक शुभ उपलक्ष्यमे कलश–स्थापनासँ लऽ दशमी धरि मनाओल जाइछ । झिझिया पाँचसँ लऽ बीस धरि युवती सभक (अधवयसुओ रहैछ !) एकटा टोली होइछ, जाहिमे कोनो दू वा बेसियो गोटेक माथपर कलश राखल रहैछ जाहिमे अलगनित भूर कयल गेल रहैत छै । कलशक मँुहपर राखल ढ़कनामे गोइठाक आगि रहैछ जाहिमे कनेक–कनेक कालक बाद मटिया तेल राखल जाइत छैक जकर प्रकाश बेस ऊँच धरि लहरा उठैछ । ओहि छौंड़ी सभमहक किछु गोटे माथपर कलश राखि गाओल जाइत गीतक तालपर अपन हाथसँ थपड़ी पाड़ि एकटा विशेष ढ़ंगसँ नाचल करैछ। एहि तरहेँ विभिन्न सम्पन्न लोक सभक दरबज्जापर नाचिकऽ झिझियाक पूर्णाहुतिक लेल अन्न–पाइ मांगल करैछ । एहि माङल पाइक अनुसार अन्तिम दिन अर्थात् दशमी दिन बड़ धुमधामक संग भोज–भात ओ प्रसाद वितरण होइछ । आ विभिन्न तरहक नाच–गानक संग झिझिआक विसर्जन होइछ ।
गाममे एहि तरहक कैक गोट टोली होइत छैक । सभ एक दोसरासँ नीक होयबाक लेल प्रयत्नशील रहल करैत अछि ।
झिझिआक कलशमे असंख्य भूर जे बनाओल रहैछ तकरा नाचऽवाली सदैव ड़ोलबैत रहैत छैक, जाहिसँ केओ ओहि भूरकेँ गनि ने लेअय । कहल जाइछ जे केओ ओकरा गनि लैत छैक तँ नचनिहारक मृत्यु भऽ जाइछ । तेँ जँ स्थिर रहबो करैत अछि तँ नचनिहार कलशाकेँ अनेरे घुमबैत रहैत छैक ।
भिझिया कहियासँ प्रारम्भ भेल तकर ठोस प्रमाण नहि भेटल अछि । ओना ई परम्परा तान्त्रिक विधिसँ पूर्ण होयबाक कारणेँ अन्दाज ई लगाओल जा सकैछ जे मिथिलामे जखन तन्त्र–मन्त्रक नीक प्रभाव छल होयतैक तखने ई प्रारम्भ कयल गेल हायतैक । एकर प्रारम्भ आठम् शताब्दीक पहिनेसँ भेल होइत से अनुमान कयल जा सकैछ ।
झिझियाक परम्परा
एकर प्राचीन रूप आ एखनुका रूपमे कोनो खास अन्तर नहि भेल बुझाइछ । पहिने तान्त्रिक विधिक ज्ञाता माली आ मालिन भेल करैछत छल तेँ देवी–देवताक पूजा–अर्चा एहि वर्गसँ सम्पन्न होइक । आइयो धरि देवी–देवताक लेल आवश्यक पूmलमाला तथा विभिन्न उपादान मालिएक द्वारा प्राप्त कयल जाइछ । तेँ झिझिया, जे पूर्ण रूपसँ देवीक आराधना थिक, माली द्वारा संरक्षण पौलक । मालिनी सभक द्वारा भगवती दुर्गाक अराधना स्वरूप प्रस्थापित झिझिआ नृत्य क्रमशः आइ समाजक अन्यान्य वर्गमे सेहो प्रचलित तथा संरक्षित होबऽ लागल अछि ।
तान्त्रिक ‘कल्ट’ सँ प्रभावित ई झिझियाक बनावटि सेहो एकटा विशेष अर्थ रखैछ । कलशक ऊपर राखल ढ़कना आत्माक प्रतीक थिक आ ओतहिसँ निकलैत ज्वाला, आत्मासँ ज्योति निकलबाक बोध करबैछ । संगे ई झिझिया ड़ाइन, जोगिनकेँ प्रभावहीन बनयवा ले’ बनाओल गेलाक कारणेँ आत्मासँ निःसरित प्रकाशक इजोतमे ड़ाइन–जोगिन रूपी अन्हार किछु नहि बिगाड़ि सकत तकर ज्ञान सेहो करबैछ । ई काज पूर्ण रूपसँ हमरा सभक उपनिषद्सँ प्रभावित अछि– “तमसोमा ज्योतिर्गमय” अर्थात भगवतीसँ अराधना कऽ ई झिझिया टोली “अन्धकारसँ प्रकाशमे लऽ जाउ” क भावना व्यक्त करैत अछि । आ साँच कही त’ यैह एहि लोकनृत्यक मूल उद्देश्य थिक ।
झिझियाक संरक्षण मिथिला क्षेत्रमे मोरङ, सप्तरी, सिरहा, धनुषा, महोत्तरी, सर्लाही तथा बिहारक उत्तराखण्ड़क किछु भाग पद्या, बेनीपट्टी, मधुबनी आदि क्षेत्रमे देखल जाइत अछि । किछु साल बीचमे ई किछु गुम जकाँ भऽ गेल छल, मुदा फेर एम्हर आबि जोर शोरसँ प्रारम्भ भेल अछि ।
एकर प्रदर्शनसँ पूर्व स्वच्छ घैला आनि ओहिमे असंख्य छेद कऽ तैयार कयल जाइछ आ ओकरा धामीसँ बन्हा देल जाइछ । धामी अपन मन्त्रसँ झिझियाकेँ बन्हैक– “सभ्य गुरुक बन्दे पाँउ । बजर, बजर, बजर केबाड़ी बजर बान्हों दशो दुआरी । मटिआ बान्हो । मसान बान्हो, टोना बान्हो, टामर बान्हे...।” मंत्रयलाक बाद झिझिया टोली सभ ब्रह्मस्थान लग जा सर्वप्रथम अराधना करैछ । आ तखन ओहि ठामसँ विभिन्न गोटेक ओतऽ जाइछ । आब मंत्रयबाक क्रिया नहि कएल जाइछ ।
झिझियाक गीतमे सामाजिक चेतना
झिझिया टोलीसँ गाओल गीत मुख्य दू प्रकारक होइछ । एकटा’ भगवती सम्बन्धी आ दोसर ड़ाइन
सम्बन्धी । ओना झिझियाक मुख्य लक्ष्य ड़ाइनकेँ गारि देब होइछ तेँ बेसी ओही तरहक गीत गाओल जाइत अछि ।
झिझिआक गीत सभ विभिन्न ढ़ंगसँ गाओल जाइछ, मुदा लय आ छन्द वैह होइछ– शब्दमे मात्र फरक
रहैछ ।
देवीक अराधना क्रममे हुनक कामरूप (कामख्या–असाम) देश जयबाक वर्णन बड़ सजीव होइत अछि । प्रचलित गीत– “कोन बने बोले मैयागे, कारी कोइलियागे– ।” मे देवीक विदाइक बड़ रोचक वर्णन भेटैछ । ओ साड़ी पहिरैत छथि । जूड़ा बन्हबैत छथि । आँखिमे काजर लगबैत छथि... । आ अपन गन्तव्य दिस विदा होइबा ले’ तैयार भऽ जाइत छथि– “केकरा अगनमा मैयागे जुरबा बन्हौले गे, केकरा अगनमा मैयागे कजरा पेन्हलेगे– ।” जिज्ञासाक शान्ति गीतमे भेटैछ “बा” आ ‘भैया’ गामक प्रमुख देवता ब्रह्मा आ भैरवक लेल प्रयोग भेल अछि । अपन कन्या वा बहिनकेँ बिदा करब एकटा सांस्कृतिक परंपराक अनुरूप आइ भगवती विदा भऽ रहलीह अछि ‘कमरूआ (कामरूप–कामख्या) देशकए...। सभ तैयार । ड़ोली भव्य रूपसँ सजाओल छनि । लील ड़ोली छनि । लाल ओहार लागल अछि । विभिन्न कलात्मक ढ़ंगसँ सजाओल ड़ोलीकेँ बत्तीस गोट कहार उठबैछ– आ भगवतीकेँ अश्रुपुरित नेत्रसँ विदा करैत छथि ब्रह्मबाबा...।’ लील रंग ड़ोलिया, सबुजेरंग ओहरिया, मैयागे भीड़ि गेलाह बतिसो कहार, कमरूआ देश मैया कब जइहेँ गे ।
दोसर तरहक गीतमे डाइनकेँ गारि पढ़ल गेल छैक । एहिमे सभ गीतगाइनि सभ गाइनकेँ खूब जोशमे आबि गारि पढ़ल करैत छैक । एहिमे विभिन्न किसिमक गारि होइत छैक । जे आवश्यकतानुसार गीतगाइनि सभ द्वारा थपघट कयल जाइत रहैत छैक ।
देखल जाय तँ ई स्पष्ट भेल जे गारि सभमे ड़ाइनक व्यवहारक पूर्ण चित्रण ओहिमे कयल गेल रहैछ । एकटा आमधारण छैक जे ड़ाइनसभ दशमीक बीचमे गामसँ बाहर जा ओहिना नङटे नाचल करैछ । एहि नाचक क्रममे ओ अपने द्वारा मारल कोनो बच्चाकेँ जियाकऽ आगाँमे राखि लैछ–ईहो कथन छैक । एहि कथनक सजीव–चित्रण एहि गीतमे भेटैछ–
“बरहमेक पछुआरीये ड़ैनियाँ, मत करिहेँ सिंगार ।”
वामे लेल आरती, दहिने तरुआरि गे, नचैत–नचैत गेलै ड़ैनियाँ, सीमा ओइपारगे, संगे–संगे गेलै ड़ैनियाँ, राजकोतबाल गे, देख लेलकौ आगे गैनियाँ, नङटे–उघार गे ।”
एहिसँ अतिरिक्त गाबऽवाला विभिन्न तरहक गीतसभ ड़ाइनक कयल गेल क्रियाकलापक चित्र उपस्थित करैछ । एहिसँ ओकरा सभक कृत्य स्पष्ट भऽ जाइछ । “कोठाके उपरी ड़ैनियाँ खीड़की लगैने ना, खीड़की ओत्त ड़ैनियाँ गुणवा चलैले ना । आगे किछु होएतो ड़ैनियाँ, गदहापर चढ़ेबौ’ गदहा चढ़ाए ड़ैनियाँ नमुआँ हसैबौना–”
साधारणतया ड़ाइनक कृत्यसँ लोककेँ जानकारी होइत छलैक तँ ओकरा गदहापर बैसा गाम भरिमे घुमाओल जाइत छलैक सैह वस्तु ऊपरो कहल गेल अछि । से ओहि गीत सभमे एतुक्का सांस्कृतिक परम्पराक स्पष्ट चित्र देखबामे अबैछ जकर प्रतिपालन एखन धरि भऽ रहल अछि ।
ड़ाइन समाजमे कोना तिरस्कृत कयल जाइछ तकरो वर्णन गीत सभमे प्राप्त भऽ जाइत अछि ।
“ड़ैनियाँक बेटा मरल पड़ल है,
अन्हार घर झिझिड़ी (झिझिया), कोई नै बाँस कटबैया हे,
अन्हार राति झिझिड़ी–’ ।
एहि तरहेँ बहुत रास गीत अछि जाहिमे ड़ाइनकेँ समाजक शत्रु तथा विनाशक कहल गेल अछि आ तकर भत्र्सना कयल गेल अछि ।
झिझियाक विसर्जन समारोहक लेल किछु मङ्गबाक परंपरा छैक । एहि क्रममे विभिन्न गोटेक ओहि ठाम जा कटाक्षपूर्ण गीत गाओल जाइछ । उद्देश्य होइछ घर–धनीसँ किछु नगद वा अन्न प्राप्त करब ।
“जाबे भैया सुनलनि
झिझियाके अबैया,
ताबे भैया ठोकलनि केबार–’ ।
आ, लोक किछु ने किछु देबे करैत छैक ।
कलशक ऊपर राखल ढ़कनामे आगि प्रज्वलित करबा लेल मटिया तेल देबाक सेहो अनुरोध कयल जाइछ–सोहो गीतमे । जाहि ठाम जतेक तेल भेटैछ–जतेक देखरगर लहास चमकैछ–ओतय ओ सभ ओतेक मोनसँ गबैछ तथा नचैछ । तेल माँगक क्रममे–
“एक ड़िबिया तेल ला
झिझिया रुसल जाइ छै–’
दूमहिला के कोन सिंगार– ।”
एहिमे घरक बनौटपर निर्भर करैछ जे ओ ककर कोन सिंगार कहओ ।
संरक्षण आ सम्बद्र्धन जरुरी
एहि तरहे देखैत छी, परिपाटीक–रूपसँ झिझिया एखन धरि हमरा सभकेँ अपन अतीतक सांस्कृतिक उपलब्धि दिस मोड़ि अनैत अछि । एकरा आर बेसी नीक जकाँ परिमार्जित करबा ले’ पुरुष–वर्गक भूमिकाक आवश्यकता छै । मुदा, से भेटै नहि छै । तकर संरक्षण जरुरी...। सांस्कृतिक परम्परे तँ आब अपन रहि गेलैक अछि–खालिस अप्पन...।
एहन अवस्थामे समाजसं रसे–रसे विलुप्त होइत जाइत झिझियाकें संरक्षण–संबद्र्धन जरुरी अछि । पहिने जत्त प्रत्येक गाममे समाजक विभिन्न वर्गक महिलाद्वारा परम्परागत गीतद्वारा झिझियाक प्रदर्शन होइत छल से आब ई शहरमे आ हाट–बजारमे सिमित भेल जा रहल अछि । एकरा मनोरंजन संग आयक माध्यम बनाओल जा रहल छैक । ने झिझियामे मौलिकता आने ओ श्रद्धा आ विश्वास । वास्तवमे बालबच्चाकें ड़ाइन जोगिनसं बचएबाक लेल भगवती दुर्गाक अराधना आ तेहन ड़ाइन–जोगिनकें गरिपढ़ि सचेत करबाक परम्परागत लोक व्यवहारक रूपें समाजमे स्थापित झिझिया अपन स्वरूपसं मात्रे नहि विचार आ चिंतन सं सेहो विस्थापित भेल जा रहल अछि । एकरा फेरसं समाजमे लौटाब’ पड़त– मौलिक रूपमे । तकरा लेल प्रयास हएबाक चाही ।
नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान, संस्कृति विभाग गत वर्ष एकटा झिझिया महोत्सव कऽ एकर संरक्षण–संबद्र्धनक हेतु प्रयास सुरू कऽ चुकल अछि । मुदा ई त प्रारंभ छलै । एकरा आगां बढ़एबाक चाहीँ । उचित प्रोत्साहन दऽ एहि नृत्यकें पुनःस्थापित कऽ मिथिला क्षेत्रक विशिष्ट नृत्यक रूपमे राष्ट्रिय–अन्तर्राष्ट्रिय क्षेत्रमे देखाओल जा सकैछ ।
सदस्य, नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान
४
मिथिलांचल आ कोसी के एक करबाक हत्ववला सरायगढ़ निर्मली रेल परियोजना टाकाक अभाव मे बंद अछि। 324 करोड़ टाकाक वर्ष परियोजना समुचित टाकाक अभाव मे लअकि गेल अछि। एहि रेल महासेतुक निर्माण पूरा भऽ गेल अछि मुदा सेतूक दुनू किनारा पर छोट-छोट पुल-पुलिया, रेलक पटरी आ मिट्टीकरवाक काज रेलवे द्वारा आवश्यक टाका आवंटित नहि करबाक कारण ठप्प अछि। सरायगढ़-निर्मली रेल लाइनक काज बाध्ति भेला सॅ मिथिलांचलक जनताक उम्मीद पर ग्रहण लगि गेल अछि। मिथिलांचलक जनताक उम्मीद पर ग्रहण लगि गेल अछि। पड़ोसी देश नेपालक सीमा सॅ सटल रहबाक कारण एहि रेलखंडक विशेष महत्व अछि।
एहि मेगा रेल परियोजनाक शिलान्यास 6 जून 2003 के तत्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कयने छलाह। अटल सरकारक कार्यकाल पूरा भेलाक बाद एहि परियोजनाक काजक गति कम भऽ गेल छल। बाद मे वर्ष 2005 मे तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद वर्ष 2005 मे सरायगढ़ मे भूमि पूजनक काज प्रारंभ कयलनि आ एकरा जल्दीए पूरा होयबाक घोषणा कयलनि। मुदा टाकाक आभाव मे ई मात्र घोषणा साबित भेल। नव रेल बजट मे एहि परियोजनाक लेल फराक सॅ टाका आवंटित नहि भ्ेला सॅ स्थिति आओर चिंताजनक भऽ गेल अछि। एहि रेल परियोजनाक काज प्रारंभ भेला सॅ आशा जगल छल जे 79 वर्षक बाद कोसी क्षेत्रक शेष मिथिलांचल सॅ सीधा सम्पर्क भऽ जायत आ सुपौल, अररिया, सहरसा, मधेपुरा आ पूर्णिया आदि जिलाक लोकक दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर आ समस्तीपुर आदि जिला सॅ बेटी-रोटीक संबंध स्थापित भऽ सकत।
एहि परियोजनाक निर्माण मे लागल कुमार कंस्ट्रक्शन आ घनश्याम लाल प्राइवेट लिमिटेड रेलवे के कार्य स्थगन प्रस्ताव पठा देला सॅ स्थिति विकट भऽ गेल अछि ओतहि निर्माण कम्पनी जीटी इन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड के गोटेक 90 करोड़ टाकाक काज निविदिाक माध्यम सॅ भेटल छल मुदा टाकाक समुचित भुगतान नहि भेलाक कारण एहि कम्पनीक काज सेहो प्रायः बंद अछि। कम्पनी सूत्रक अनुसार कोसी रेल महासेतू बनिकऽ तैयार अछि। वर्तमान वार्षिक योजना मे एहि परियोजनाक लेल मात्र तीन करोड़ टाका आवंटित कमल गेल छल जे एहि वर्ष अप्रील मास मे समाप्त भऽ गेल। टाकाक आभाव मे काज बाधित अछि। रेलवेक अधिकारी सभक संग एहि विषय मे भेल बैसार मे सेहो कोनो परिणाम नहि निकलल अछि।
दोसर दिस, मिथिलांचलक एकटा आओर महत्वपूर्ण रेल लाइनक अमान परिवर्तनक गति मंद पड़ल अछि। रेल मंत्रालय द्वारा वर्ष 1996 मे सहरसा-फारबिसगंज छोटी रेल लाइन के बड़ी लाइन मे अमान परिवर्तनक स्वीकृति देने छल। मुदा एखनो एहि क्षेत्रक जनता अंग्रेजरक जमानाक छोटी रेल लाइन पर यात्रा करऽ पर विवश छथि। पछिला वर्ष 20 जनवरी 2012 के अमान परिवर्तनक लेल राघोपुर सॅ फारबिसगंजक मध्य मेगा ब्लॉक कयल गेल छल। एहि काजक लेल 356 करोड़ टाकाका आवंटित भेलाक बादो ई काज एखन धरि पूरा नहि भऽ सकल अछि एहि तरहें उŸार बिहार के राजधानी पटना सॅ जोड़बाक लेल गंगा नदी पर प्रस्तावित दीघा-परमानंदपुर रेल सह सड़क पूलक काज मंद गति से चलि रहल अछि। हालांकि रेलवे द्वारा एक बेर फेर वर्ष 2015 धरि एकरा पूरा करबाक घोषणा कयल गेल अछि। हालांकि एहि रेलखंड पर नव बनल पाटलिपुत्र स्टेशन सॅ रेलक आबाजाही प्रारंभ होयबाक घोषणाक कयल गेल अछि। 6 सितम्बर के एहि स्टेशन सॅ रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी पटना यशवंतपुर ट्रेन के हरियर झंडी देखा विदा कऽ एहि रेल खंड पर आंशिक रूप सॅ आवाजाही आरंभ करताह।
‘थोडे आगि थोडे पानि’2008 मे प्रकाशित प्रसिद्ध गीतकार भाइ सियाराम झा
‘सरस’क 80 टा गजल संकलन थीक।सरसजी गजलक पोथीक भूमिकामे कविता,कथा,निबन्ध
आदि विधामे आबि रहल रचना सभक स्तरपर सवाल उठौलनि अछि। लेखक,कवि,नाटककार
कें की की पढबाक चाही,से सलाह देल गेल अछि.लेखक लोकनिमे प्रतिबद्धताक
अभाव पर आक्रोश व्यक्त कएल गेल अछि।
अपन समाज,अपन भाषाक प्रति अपन लेखकीय प्रतिबद्धताक वर्णन सरसजी जाहि
तरहें केलनि अछि से बेर-बेर पढबाक आ मोनहि मोन हुनक चरण स्पर्श करबाक लेल
बाध्य क’ देत।
मुदा जँ अहाँ ताकब जे गजलकारकें की की पढबाक अथवा कथीक अभ्यास करबाक चाही
से एहिमे नहि भेटत। गजलकार स्वयं गजलक सम्बन्धमे की-की पढने छथि तकर
उल्लेख नहि कएल गेल अछि। गजलक व्याकरणक कतहु चर्च नहि अछि.गजलकारकें मोन
पडैत छनि दक्षिण अफ्रीकाक कवि मोलाइशक क्रान्तिगीत आ फिलीस्तीनी कविक
कविता,कोनो शायरक कोनो महत्वपूर्ण शेरक उल्लेख नहि केलनि अछि। एहिसँ गजल
लेखनक लेल आवश्यक प्रतिबद्धताक आभास नहि होइत अछि।
पोथीक 80 टा गजलमे 62 टा गजलमे रदीफ आ काफियाक प्रयोग कएल गेल अछि जाहिमे
5 टा गजलमे रदीफ अथवा काफिया अथवा दूनूक निर्वाह सभ शेरमे नहि भ’ सकल
अछि।16 टा गजलमे काफिया अछि, रदीफ नहि। 2टामे रदीफ अछि,काफिया नहि। अहूमे
एकटामे सभ शेरमे रदीफक निर्वाह नहि भ’ सकल अछि। कोनो गजल एहन नहि अछि जकर
सभ शेरमे वर्ण अथवा मात्राक एकरूपता हो।तें बहरमे त्रुटि साफ दृष्टिगोचर
होइत अछि। एहि दिस गजलकारक ध्यान किएक नहि गेलनि से नहि जानि। सरसजीसँ
लोककें बहुत अपेक्षा रहैत छैक, मुदा एहि सम्बन्धमे हुनक कोनहु स्पष्टीकरण
सेहो कतहु नहि अछि। आशा अछि गजलकारक अगिला गजल-संग्रहमे आवश्यक
औपचारिकताक निर्वाह होयत। ई पढि क’ नीक लगैत अछि जे ‘.....धीरू भाइ तं
एते धरि कहने रहथि जे खैयाम कें मैथिलीमे सुनबाक हो तं सरस कें सूनल जा
सकैछ...’ तें सरसजीसँ अपेक्षा आर बढि जाइत अछि।
सरसजी कहैत छथि,‘एहि संकलनक गजल सभ तं सहजहिं अपन
लोकवेदक,माटि-पानिक,भाशा-साहित्यक आ संस्कार-संस्कृतिक प्रतिबिम्ब तं
थिके,संगहि अनेक ठाम अनेक तरहें तकरा नब सं परिभाषित आ व्याख्यायित सेहो
करैछ । नब-नब संस्कारक स्थापना सेहो करैछ ।.......’ सरसजीक उक्तिकें तकैत
विभिन्न गजलक एहि शेर सभ पर विचार करू-
जै पाइने पैनछूआ कैरतै ने लोक, छीः छीः छीः
सेहो पाइन घटर-घटर घटघटा रहल,ई मैथिल छौ
जौं-जौं अहंक खसैए पिपनी,धप-धप तेना खसै छी हम
रसे-रसे उठबी तं सरिपहुं, होइए देव-उठान हमर
थप्पा समधिन देल समधि केर अंगा मे
उजरो मोंछ पिजाएल,फागुनक दिन आयल
अइ समुद्रक किन्हेरमे बड चक्रवातक जोर रहलै
बालु पर तैयो अपन हम नाम तकने जा रहल छी
बिज्झो कराओल बैसले रहि गेल नोथारी
गलियाक’ कियो खाइत आ उगलि रहल छलै
हम मरब,बेटा लडत,बेटा मरत-पोता लडत
कटब-काटब,जे बुझी-सदभावना-दुर्भावना
हवा-पानिक बिना एमहर भेलैए दूभि सब पीयर
ओम्हर बोडामे कसि-कसि,स्विस खातामे ढुकाबै छै
व्याकरण पक्षकें जँ उपेक्षित क’ देल जाए तँ कएटा गजलमे किछु शेर
महत्वपूर्ण अछि जे पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत अछि किछु शेर जे पढबामे नीक
नहि लगैत अछि, भ’ सकैए जे हुनका स्वरमे सुनबामे नीक लागय. मैथिली गजलक
भण्डारकें भरबामे सरसजीक योगदानकें महत्वपूर्ण मानैत हम गीतकार सरसजीक
प्रशंसक, मैथिलीक सुधी पाठक आ नव-पुरान गजलकार सभसँ अनुरोध करबनि जे
कम-सँ-कम तीन बेर अवश्य पढि जाथि सरसजीक ‘थोडे आगि थोडे पानि’। नीक
लगतनि।
२
अरविन्दजीक आजाद गजल
मैथिलीयोमे गजल पर खूब काज भेल अछि आ एखनो भ’ रहल अछि। गजेन्द्र ठाकुर
गजलक व्याकरण विस्तार सँ प्रस्तुत केलनि आ अपनो बहुत गजल लिखलनि. आशीष
अनचिन्हार मैथिली गजल ले’ स्वतंत्र साइट बनाक’ व्याकरण कें स्थापित
करबामे अपनो योगदान करैत अपनो बहुत गजल लिखलनि आ आओर बहुत गोटे सँ गजल
लिखबौलनि आ से काज एखनो क’ रहल छथि हिनका दूनू गोटेक अतिरिक्त आर बहुत
गोटे मैथिली गजलकें समृद्ध करबामे योगदान क’ रहल छथि।ई प्रसन्नताक बात
थिक। हमरा जनैत गजलकारक मुख्य तीनटा वर्ग अछि। एक वर्ग ओ अछि जाहिमे
रचनाकार पहिने गजलक व्याकरण पढलनि आ तकरा बाद ओही अनुसारे गजल लिख’
लगलाह. दोसर वर्गमे ओ गजलकार सभ छथि जे पहिने गजल लिख’ लगलाह , बादमे
गजलक व्याकरण दिस घ्यान गेलनि आ ओहि अनुसारे लिखबाक प्रयास कर’ लगलाह.
तेसर वर्गमे ओ लोकनि छथि जे गजल सूनि क’, पढि क’ लीख’ लगलाह आ लीखैत चल
गेलाह, पाछां उनटि क’ नहि तकलनि.ओ मात्रा अथवा वर्ण गनि क’ षेर
लिखबाक-कहबाक चक्करमे नहि पडि अपन बातकें केंन्द्रमे राखि धडाधड लिखैत चल
गेलाह आ लिखैत जा रहल छथि।
‘बहुरूपिया प्रदेशमे’ मात्र 24 दिनमे लीखल गेल 66टा गजलक संग्रह थीक
जाहिमे गजलकार अरविन्द ठाकुरजीक कथन पर ध्यान देल जाए: ‘हम जे कहय चाहैत
छी से महत्वपूर्ण छैक,ताहि लेल व्याकरण टूटय कि विधा विशेषक मापदंड,तकर
हमरा परवाहि नहि अछि। ओकरा भल चाही त’हमर सहायक हुअए,बाधा ठाढ नहि करए ।’
गजलकारक एहि कथनकें ध्यानमे राखि जँ हिनक गजल पढब त नीक लागत। 66 टा
गजलमे 10टा गजल एहेन अछि जाहिमे रदीफ अछि,काफिया नहि. 16 टा एहेन अछि
जाहिमे काफिया अछि,रदीफ नहि. 40 टा गजलमे रदीफ आ काफिया दूनू अछि. किछुए
गजल एहेन हएत जाहिमे बहरसँ सम्बन्धित दोष नहि हो.मुदा,बहुत रास शेर सभमे
जे बात कहल गेल अछि से व्याकरणक त्रुटिकें झांपन देबामे बहुत समर्थ लगैत
अछि.सभ गजलक अंतिम शेरमे गजलकारक नामक प्रयोगक प्राचीन परंपराक निर्वाह
नीक जकाँ कएल गेल अछि जे बहुत गजलकार नहि क’ पबैत छथि. गजलकारक समक्ष
सामाजिक,राजनीतिक आ सांस्कृतिक चेतनाक अवमूल्यनक विषाल क्षेत्रक अनुभवक
संपदा छनि जे जहां-तहां विभिन्न गजलक विभिन्न शेर सभमे प्रगट भेल छनि।एकर
बानगीक रूपमे प्रस्तुत अछि निम्नलिखित किछु शेर:
दूध लेल नेना आ रोगी हाकरोस करत
नै जखन गाममे मालक बथान रहत
एहि समाजक रूढि भेल अछि घोडनक ओछाओन सन
प्रेममे भीजल बतहबा ताहिपर ओंघरा रहल अछि
गाममे डिबिया जरल अछि रातिसं लडबाक लेल
मेट्रोपॉलिटन टाउनमे अछि राति दुपहरिया बनल
पात बिछैबाक बेर लोकक करमान छल
यार सभ अलोपित भेल ऐंठ उठेबाक बेर
रातिक जे एकबाल बढल
दुर्लभ सगर इजोरिया भेल
संसद केर फोटोमे किछुओ नहि हेर-फेर
सांपनाथ, नागनाथ,इएह दुनू बेर-बेर
कार खोजै छै एम्हर फूटपाथ पर सूतल षिकार
यम अबै छथि एहि नगर विभिन्न वाहन पर सवार
संसदमे घुसिआयल जे
सात जनम लेल केलक जोगार
गजलकारक भयंकर आत्मविष्वास एहि षेर सभमे देखू:
धन्य ‘अरबिन’तों एलह गजलक जगतमे
फेर केओ ‘खुसरो’की तोहर बाद हेताह
नै पाठक के चिन्ता अरबिन
नीक गजल के पढबे करतै
एहने आर बहुत रास नीक-नीक शेर वला गजल पढबाक लेल देखू श्री अरविन्द
ठाकुरक रचल आ ‘नवारंभ’ द्वारा 2011 मे प्रकाशित आ बहुत सुंदर कागतपर
‘प्रोग्रेसिव प्रिंटर्स’, नई दिल्ली द्वारा बहुत सुंदर मुद्रित गजल
संग्रह ‘बहुरूपिया प्रदेशमे’। अन्तमे हम गजलकारक उक्तिक उल्लेख कर’ चाहब:
‘.......हाथक जेना सभ बान्ह टूटि गेल । एहन धारा-प्रवाह जे गजलक
मिसरा,शेर,रदीफ,काफिया,बहर,गिरह सभकें सम्हारब कठिन....’ भरिसक, इएह कारण
थीक जे गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा हिनक गजल सभकें आजाद गजल कहल गेल अछि। हम
एहि विचारसँ सहमत छी।
1
बहुरूपिया रचनामे
गजलमे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ
गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिलीमे बहुत कम गजल संग्रह अछि
सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थितिमे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः
प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेशमे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम
एहि पोथीकेँ आद्योपान्त पढलहुँ।
सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजीकेँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई
दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै
ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि।
पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध
मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार
कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत
अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क
स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि
बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर
सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि
सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि
सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ
आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै
बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो
टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल
वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ
लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह
थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक
शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी
गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल
जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित
नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै
आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित
भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना
मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा
की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ
नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक
आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक
आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे
नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल'
कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल
कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ
रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।
पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत
छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे
करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ
भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार
होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल
जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक
क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए।
जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब
उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु,
इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छन्हि।
गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधारपर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक
चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो
शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि।
बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू
पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर
आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे
काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ
पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे
काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर
मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त
अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि
मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि
मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक
नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम
काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख
कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै
छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी
की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै
भऽ सकैत अछि।
भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल
लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ
भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत
बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद
मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि
ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार
आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित
मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे
प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि
संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं
स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक
पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक
अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग
स्थान राखत।
२
घोघ उठबैत गजल
मैथिली गजलक पहिलुक प्रकाशित पोथी "उठा रहल घोघ तिमिर" पढबाक सौभाग्य
भेंटल। ऐ गजल संग्रहक गजलकार श्री विभूति आनन्द छथि। एहि पोथी मे कुल
चौंतीस गोट गजल अछि। पूरा पोथी केँ एकहि बैसार मे पढि गेलहुँ आ बेर-बेर
पढलहुँ। सबसे पहिने हम श्री विभूति आनन्दजी केँ मैथिली गजलक पहिलुक
संग्रह प्रकाशित करबा लेल धन्यवाद दैत छियैन्हि।
एहि पोथीक भूमिका मे गजलकार कहै छथि जे "मैथिलीक गजल सोझे-सोझ हिन्दी सँ
प्रभावित अछि मुदा हिन्दी जकाँ जमल नञि अछि एखनो धरि।" आगू हुनकर कहनाई
छैन्हि- "पारम्परिक व्याकरण सम्बन्धित अगणित त्रुटि सभ ठाम लक्षित होएत।
ओना हम दुस्साहसपूर्वक साहस करैत रहलहुँ अछि जे कथ्य-सामंजस्य लए व्याकरण
दिस सँ यदि मूँहो घूमा लेल जाए तँ कोनो हर्ज नञि। किए तँ हम मानैत छी जे
ई पाठ्यक्रमक वस्तु नञि अछि। विद्यार्थी मूर्ख नञि बनत। तैं की
------------------------ व्याकरण सँ भयभीत भऽ नञि लिखल जाए।" गजलकारक
पहिलुक कथनक सम्बन्ध मे हमर निवेदन अछि जे गजलक परम्परा अरबी-फारसी सँ
शुरू भेल अछि आ ओतहि सँ आन भारतीय भाषा मे पसरल अछि। हिन्दी-उर्दू मे गजल
कहबाक परम्परा मैथिली सँ पहिने शुरू भेल, तैं बहुसंख्य लोक दिग्भ्रमित भऽ
जाइत छथि जे मैथिलीक गजल हिन्दी गजलक नकल छी वा ओइ सँ प्रभावित भेल अछि।
गजलकार सेहो एहि मिथ्या धारणा सँ प्रभावित छथि। आब गजलक व्याकरण थोड-बहुत
समन्जनक संग सब भाषा मे तँ एक्के रहत। ऐ स्थिति केँ हमरा हिसाबेँ
"प्रभावित भेनाई" कहबाक कोनो औचित्य नै अछि। गजलकारक दोसर कथन देखि हम
निराश भेल छी। पता नै किया एखन धरि जे दुनू गजल संग्रह (सबसँ पहिलुक आ
सबसँ अंतिम प्रकाशित) पढलहुँ, एहि दुनू मे गजलकार कथ्य-सामंजस्यक आगू
व्याकरण केँ कोनो मोजर नै देबऽ चाहैत छथि। एकटा गप मोन रखबाक चाही जे
साहित्यक निर्माण वैयाकरणिक अनुशासनक बादे सफल भेल अछि। इ फराक गप अछि जे
समय-काल आ स्थानक हिसाबेँ सर्वमान्य परिवर्तन व्याकरण मे होइत रहल छैक।
बिना वैयाकरणिक अनुशासनक भाषा पढबा, लिखबा आ बाजबा जोग रहत? जिनका मे
साहित्य निर्माणक माद्दा छैन्हि, हुनका मे व्याकरण केँ पालनक साहस अबस्स
हेबाक चाही।
आब हम एहि संग्रहक गजलक सम्बन्ध मे किछु गप कहऽ चाहब। इ गजल संग्रह ओहि
समय मे लिखल गेल अछि जखन मैथिली गजलक व्याकरण आ बहरक सम्बन्ध मे बहुत
बेसी जनतब सार्वजनिक नै छल। हम एकरा एना कहऽ चाहब जे इ गजल संग्रह
"अनचिन्हार आखर" जुग सँ पूर्वक गजल अछि जखन बहर, रदीफ आ काफियाक नियमक
पालनक विषय मे बहुत रास गप सर्वजन सुलभ नै छल। एहि हिसाबेँ जँ ऐ संग्रहक
गजल सभ मे बहरक दोख छैक तँ इ स्वभाविक बुझाईत अछि। एहि संग्रहक कोनो टा
गजल कोनो बहर मे नै अछि। तैं ऐ संग्रहक वैध गजल (जाहि मे काफियाक नियमक
पालन भेल हुए) सभ केँ "आजाद-गजल"क श्रेणी मे राखल जा सकैए। आब गजलक
काफिया आ रदीफक सम्बन्ध मे किछु गप। एहि संग्रहक बहुत रास गजल मे काफिया
आ रदीफक नियमक पालन भेल अछि। मुदा कएक गजल मे रदीफ आ काफियाक गलती अछि।
जेना पृष्ठ चौदह पर मतला देखला पर बुझाईत अछि जे "इ मौसम" रदीफ अछि आ
"लागैए" आओर "उलाबैए" काफियायुक्त शब्द अछि। मुदा दोसर शेर आ आगूक आन शेर
मे एकर पालन नै भेल अछि आओर शेर सभ बिना रदीफक "अ" काफियायुक्त अछि।
पृष्ठ पन्द्रह पर सेहो यैह दोख अछि, जाहि मे मतला मे रदीफ "कहाँ रहल"क
प्रयोग अछि आ आन शेर सभ बिना रदीफक "अल" काफियायुक्त अछि। एहने दोख पृष्ठ
सोलह मे देखल जा सकैत अछि, जतय मतला मे "करै छह" रदीफ मानल जयबाक चाही।
ओना ऐ गजलक आन शेर सभ मे दू टा काफियाक सुन्नर प्रयोग अछि, जे नीक लागैए।
हमरा हिसाबेँ काफियाक दोख पृष्ठ बीस, बाईस, चौबीस, पचीस, अट्ठाईस,
उनतीस(संयुक्ताक्षर काफियाक नियमक दोख), बत्तीस आ सैंतीस मे सेहो अछि।
एकर सबहक विस्तृत वर्णन देब हम अपेक्षित नै बूझि रहल छी, कियाक तँ इ हमर
उद्देश्य कथमपि नै अछि। गजल संग्रहक सब गजलक विषय-वस्तु नीक अछि आ गजलकार
अपन भावना नीक जकाँ प्रकट केने छथि।
किछु गजलक काफिया आ रदीफक दोख जँ कात कऽ कऽ देखी, तँ इ गजल-संग्रह एकटा
नीक गजल-संग्रह अछि। गजलकारक गजल कहबाक क्षमता सेहो नीक बुझाईत अछि। हमरा
ई अचरज लागि रहल अछि जे ऐ संग्रहक बाद गजलकारक दोसर गजल-संग्रह किया नै
आएल अछि। एकर कारण तँ गजलकारे केँ पता हेतैन्हि, मुदा अपन अनुभवक आधार पर
हम कहऽ चाहै छी जे श्री विभूति आनन्द नीक गजल लिख सकैत छथि। जँ बहरक
विचार नै करी, तँ २०१२ मे आएल श्री अरविन्द ठाकुरजीक गजल-संग्रह सँ करीब
एकतीस बर्ख पहिने १९८१ मे लिखल गेल एहि संग्रहक गजल सब उम्दा कहल जा सकैत
अछि। एकर कारण इ जे एहि संग्रहक गजल सब मे काफियाक नियम-पालनक प्रतिशत
वर्तमान समयक संग्रह सब सँ बेसी अछि। कथ्यक मजबूती सेहो नीक कोटिक अछि।
खाली कुहरल तुकमिलानी केने गजल नै कहल जा सकैत अछि, इ गप एहि संग्रह केँ
पढलाक बाद एखुनका गजलकार सभ केँ सेहो बुझेतन्हि, इ आशा अछि। इहो एकटा
अचरजक विषय अछि जे जखन मैथिली मे नीक गजल एतेक साल पहिनो कहल गेल छल, तखन
एकर बाद गजलक विकास-यात्रा पचीस-तीस बर्ख धरि कतऽ आ किया ठमकि गेल। बीचक
अवधि मे मैथिली गजलक विकासक धार मे बान्ह किया बनि गेल छल, इ विचारणीय गप
अछि। ओना आब इ बान्ह टूटि रहल अछि आ आशाक नब जोति मे मैथिली गजलक घोघ उठि
रहल अछि।
३
समीक्षा
विदेह ई-पत्रिकाक १ अप्रैल २०१२ केर नब अंक मे प्रकाशित श्री प्रेमचन्द्र
पंकजजीक दू टा गजल पढलौं। एहि दूनू गजल केँ हम गजलक व्याकरणक आधार पर
देखबाक प्रयास कएलौं। हम दूनू गजल पर आ प्रत्येक पाँति पर अपन विचार राखि
रहल छी।
गजल १
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब
चाङुर अपन पसारि रहल अछि माथापर सम्बन्धक बाज
कोन विधि बाँचत प्रीत कहब, नहि गजल कहब
कतबो माँटि सुँघाएब तैओ नहि मानब हम अप्पन हारि
चारु नाल पछाड़ि अपन हम जीत करब नहि गजल कहब
गगनक मुँहकेँ चूमए कतबो ठाढ़ अहाँ केर शीसमहल
बस कखनहुँ बालुक भीत करब नहि गजल कहब
हाथ पसारब रहत पसरले, मुँहे टेढ़ करब तँ की
कनि दूसि मुँह विपरीत चलब, नहि गजल कहब
पहिल गजलक मतला पढला पर बुझाइए जे रदीफ "कहब, नहि गजल कहब" अछि आ काफिया
मे "ईत" प्रयोग भेल अछि। दोसर शेर मे यैह रदीफ आ काफिया लेल गेल अछि।
मुदा तेसर आ चारिम शेर मे आबि कऽ रदीफक "कहब"क बदला मे "करब" उपयोग कएल
गेल अछि। पाँचम शेर मे एकरा बदलि कऽ "चलब" कऽ देल गेल अछि। ऐ सँ इ बुझा
लगैए जे रदीफ "नहि गजल कहब" अछि आ दू टा काफिया "ईत" युक्त शब्द आ "अब"
युक्त शब्द अछि। जँ गजलकार यैह रदीफ आ काफिया मानि कऽ चलल छथि तँ हुनका
प्रत्येक शेर मे एकरे प्रयोग करबाक चाही। तखन रदीफ आ काफियाक दोख नै
रहितै। रदीफक नियमक मोताबिक प्रत्येक गजलक एकेटा रदीफ होइत अछि आ एकर
पालन ओहि गजलक प्रत्येक शेर मे होयबाक चाही। तहिना काफियाक नियमक मोताबिक
प्रत्येक शेर मे काफिया एके हेबाक चाही। आब कनी बहर पर चर्च करी। ई गजल
सरल वार्णिक बहर वा वार्णिक बहर पर नै लिखल गेल अछि। अरबी बहर मे अछि की
नै ई जनबा लेल हम सब एक एक टा पाँतिक विश्लेषण करी। जँ ह्रस्व केँ १ आ
दीर्घ केँ २ मानी तँ पहिल शेर मे देखल जाओः-
हम बात अहीं केर मीत कहब, नहि गजल कहब
११ २१ १२ २१ २१ १११ ११ १११ १११
आब दोसर पाँति
बरु कहब मीठ नहि, तीत कहब, नहि गजल कहब
१२ १११ २१ ११ २१ १११ ११ १११ १११
ऊपर दूनू पाँति मे देखि सकै छी जे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा
दीर्घ नै आएल अछि आ तैं इ शेर कोनो बहर मे नै अछि। जखन मतले कोन बहर मे
नै अछि, तखन आन शेर सब पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। निष्कर्ष यैह
जे गजल कोनो बहर मे नै अछि। आन शेरक विश्लेषण पाठक अपने ऐ आधार पर कऽ
सकैत छथि।
आब दोसर गजल देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब
साँढ़ छैक छुट्टा आ पाड़ा मरखाह कतैक
बाँचल फसिलकेर सुरजाक रखबारि लिखब
थानामे नाङट भेलि रमियाक हाकरोस-
सुननिहार केओ नहि तकरे पुछारि लिखब
बारल खेलौनासँ, पोथीसँ दूर कएल
जिनगीक बोझ उघैत नेनाक भोकारि लिखब
नाचि रहल लोक आइ असली नचनिञा सभ
नचा रहल परदासँ केओ परतारि लिखब
फाटल अकास छै सीअत के-कते कोना
लिखब जे “पंकज” बेर-बेर विचारि लिखब
एहि गजल मे काफिया "आरि" युक्त अछि आ रदीफ "लिखब" अछि। ऐ हिसाबेँ रदीफ आ
काफिया ठीक अछि। सरल वार्णिक बाहर वा वार्णिक बहर वा अरबी बहर मे इहो गजल
नै अछि। ह्रस्व केँ १ आ दीर्घ केँ २ मानि कऽ मतला केँ देखल जाओः-
गजलक बहन्ने हम आंगन- घर- दुआरि लिखब
११११ १२२ ११ २११ ११ १२१ १११
बाध-बन- कलमबाग-बेख –बसबारि लिखब
२१ ११ १११२१ २१ ११२१ १११
इहो गजलक मतला मे ह्रस्वक नीचा ह्रस्व आ दीर्घक नीचा दीर्घ नै आएल अछि आ
इ कोनो बहर मे नै अछि। इहो गजल मे जखन मतले बहर मे नै अछि तखन आन शेर सब
पर विचार करबाक कोनो प्रयोजन नै अछि। एहि आधार पर इ निष्कर्ष निकलैए जे
इहो गजल कोनो बहर मे नै अछि। एहि तरहेँ देखल जा सकैए जे दूनू गजलक बहर
दुरूस्त नै छै। ऐठाँ ई बता दी की संयुक्ताक्षर सँ पूर्वक वर्ण दीर्घ मानल
जाइए आ अनुस्वार बला वर्ण सेहो दीर्घ मानल जाइए।
गजलक विषयवस्तु नीक अछि। दोसर गजल "आजाद गजलक"क श्रेणी मे अछि आ पहिलुक
गजल काफिया दोखक कारण गजल नै अछि। सादर।
४
मैथिली बाल गजलक अवधारणा
जेना कि नाम सँ स्पष्ट अछि, बाल गजल माने भेल नेना-भुटकाक लेल गजल। बाल
गजलक अवधारणा मैथिली मे एकदम नब अछि आ पहिल बेर २४ मार्च २०१२ केँ श्री
आशीष अनचिन्हार ऐ अवधारणा केँ सामने आनलथि। बहुत अल्प समय मे बाल गजल
बहुत प्रसिद्धि पओलक आ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभक एकटा विशाल पाँति ठाढ
भऽ गेल। ऐ मे सर्वश्री गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार जकाँ स्थापित
गजलकार तँ छथि, एकर अलावे नब गजलकार सब सेहो बाल गजल कहबा मे विशेष
अभिरूचि देखौलन्हि। बाल गजल कहनिहार नब गजलकार सभ मे सर्वश्री मिहिर झा,
मुन्ना जी, इरा मल्लिक, अमित मिश्रा, चन्दन झा, पंकज चौधरी 'नवलश्री',
राजीव रंजन झा, जगदानंद झा 'मनु', रूबी झा, प्रशांत मैथिल आदि अनेको
गजलकार छथि। "अनचिन्हार आखर", जे मैथिली गजलक एकमात्र ब्लाग अछि, देखला
पर पता लागैत अछि जे बाल गजलक अवधारणा अयलाक बाद सँ एखन धरि(ई आलेख लिखबा
तक) ७३(तिहत्तरि) टा बाल गजल ऐ ब्लाग पर पोस्ट भऽ चुकल अछि, जे अपने आप
मे एकटा कीर्तिमान अछि। खास कऽ एतेक कम समय मे एतेक पोस्ट आएब बाल गजलक
लोकप्रियताक खिस्सा कहि रहल अछि। बाल गजलक विधा एकटा स्वतन्त्र विधा
बनबाक बाट मे अग्रसर अछि, जे एतेक कम समय मे एतेक संख्या मे बाल गजल
कहनिहार गजलकार आ बाल गजलक संख्या सँ स्पष्ट अछि। संगहि किछु लोक केँ
मिरचाई सेहो लागब शुरू अछि आ ओ लोकनि बाल गजलक सम्पूर्ण अवधारणा केँ
नकारबाक कुत्सित असफल प्रयास मे जत्र कुत्र अंट शंट पोस्ट देबऽ लागलाह। ई
गप आर स्पष्ट करैत अछि जे बाल गजलक विधा मजबूती सँ स्थापित भऽ रहल अछि।
कियाक तँ सफल व्यक्ति आ विधा सभक आकर्षणक केन्द्र बनैत अछि आ बाल गजल
सेहो सभक आकर्षणक केन्द्र बनि चुकल अछि, चाहे ओ गजलकार होईथि, पाठक
होईथि, आलोचक होईथि वा जरनिहार लोक सभ होईथि। जखन मैथिली गजलक चर्च भऽ
रहल अछि, तखन श्री आशीष अनचिन्हारक चर्चा स्वभाविक अछि। मैथिली गजलक
विकास मे हुनकर योगदान हुनकर धुर विरोधी लोकनि सेहो मानैत छथिन्ह। मैथिली
बाल गजलक अवधारणा लेल श्री आशीष अनचिन्हार मैथिली साहित्य मे अपन अनुपम
स्थान बना चुकल छथि। बाल गजलक अवधारणा सेहो हुनके छैन्हि, जे बहुत सफल
भेल अछि।
आब किछु गप करी मैथिली बाल गजलक रचना सभक संबंध मे। हमरा विचार सँ बाल
गजल नेना भुटकाक लेल रूचिगर तँ हेबाके चाही, संगहि ऐ मे कोनो स्पष्ट
सामाजिक सनेस होइ तँ ई सोन मे सोहाग जकाँ हएत। ओना तँ सभ बाल गजल कहनिहार
गजलकार सभ ऐ मे सक्षम छथि आ नीक सँ नीक बाल गजल लिख रहल छथि, मुदा ऐ
सन्दर्भ मे हम श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक बाल गजलक उल्लेख करब उचित बूझि रहल
छी। हुनकर एकटा बाल गजलक मतला अछिः-
कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी
ऐ गजल केँ पूरा पढि कऽ कने देखियौ। ई गजल कनिया पुतराक उल्लेख करैत
नेना-भुटकाक मनोरंजन तँ करिते अछि, संगहि अजुका बाजारवादक बलिवेदी पर
कुर्बान भेल मनुक्खक मार्मिक विवेचना सेहो करैत अछि। एहन आरो कतेको बाल
गजल सभ "अनचिन्हार आखर" पर भेंटैत अछि, जकरा ऐ ब्लाग पर पढल जा सकैत अछि।
ई गजलकार सभक सामाजिक संवेदना केँ प्रकट करैत अछि आ हम ऐ लेल सभ गजलकार
केँ साधुवाद दैत छियैन्हि। हम एहने बाल गजलक आस गजलकार सभ सँ लगओने छी।
कियाक तँ गजलकारक सामाजिक दायित्व सेहो छै, जे पूरा हेबाक चाही। आधुनिक
मैथिली गजलकार सब मे ई क्षमता अछि आ ओ दिन दूर नै अछि जखन एक सँ एक
सुन्नर आ बालोपयोगीक संगे सामाजिक समस्या पर बाल गजलक भरमार हएत।
व्याकरणक हिसाबेँ मैथिली बाल गजल नीक बाट धएने अछि। अनचिन्हार आखरक टीमक
परिश्रमक कारणेँ मैथिली मे बहरयुक्त गजलक काल शुरू भऽ चुकल अछि आ सरल
वार्णिक बहर(जकर अवधारणा श्री गजेन्द्र ठाकुरजी देलखिन्ह) केर अलावे आब
अरबी बहर मे गजल कहनिहार गजलकारक कमी नै छै। बाल गजल अपन शुरूआते सँ
बहरयुक्त अछि, जे बाल गजलक लेल शुभ संकेत अछि। शुरूआतिए समय मे जे आ जतबा
बाल गजल लिखल गेल अछि, ओ सभ बहर मे अछि, चाहे सरल वार्णिक बहर होइ वा
अरबी बहर। बहरक अलावे रदीफ आ काफियाक नियमक पालन सेहो पूरा पूरा भऽ रहल
अछि। व्याकरण पालनक ई प्रतिबद्धता निश्चित रूपे बाल गजलक सफलताक गाथा
लिखबा मे सहायक हएत।
मैथिली गजलक बढैत डेग संग आब मैथिली बाल गजलक डेग सेहो उठि गेल अछि।
मैथिली बाल गजल जाहि द्रुत गति सँ अपन डेग उठओलक अछि, ऐ सँ तँ यैह लागैत
अछि जे अगिला साल आबैत आबैत मैथिली बाल गजलक पोथी प्रकाशित भऽ सकैत अछि।
संगहि इसकूलक पाठ्यक्रम मे बाल गजल सम्मिलित हेबाक संभावना सेहो साकार
रूप लऽ सकत। पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हेबाक बाद मैथिली बाल गजल सभ
पढनिहार-पढौनिहारक संज्ञान मे नीक जकाँ आओत आ सामाजिक विकासक संरचना मे
अपन महत्वपूर्ण योगदान, जे अपेक्षित अछि, सेहो दऽ सकत।
५
भोथ हथियार
श्री सुरेन्द्र नाथक कहल मैथिली गजलक संग्रह अछि "गजल हमर हथियार थिक"। ऐ
पोथी मे हुनकर अडसठि टा गजल प्रकाशित भेल अछि। ई संग्रह २००८ मे आएल अछि
जकर आमुख श्री अजीत आजाद जी लिखने छथि। ऐ पोथी केँ आदि सँ अन्त धरि पढबाक
बाद हमर यैह अभिमत अछि जे गजलक व्याकरणक दृष्टिसँ ऐ संग्रह मे अनेको कमी
अछि, जाहि सँ बचल जा सकैत छल।
पृष्ठ संख्या १३, ६७ आ ७० परहक गजल मे चारिये टा शेर छै, जखन की कोनो गजल
मे कम सँ कम पाँच टा शेर हेबाक चाही। संग्रहक कोनो गजल बहर मे नै अछि।
हमर ई स्पष्ट मनतब अछि जे गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे बहरक उल्लेख करबाक
चाही आ जँ आजाद गजल कहने छथि तँ इहो स्पष्ट रूपेँ लिखबाक चाही।
ऐ पोथी मे काफियाक गलती भरमार अछि। कतौ कतौ तँ ई बूझना जाइ छै जे गजलकार
बिना काफिया आ रदीफक मतलब बूझने गजल कहबा लेल बैस गेल छथि। एकर उदाहरण
पृष्ठ १५ परहक गजल पढबा पर भेंट जाइ छै। ई तँ हम एकटा उदाहरण कहि रहल छी।
आरो गजल ऐ दोख सँ प्रभावित छै, जतय काफियाक नियमक धज्जी उडा देल गेल अछि।
जेना पृष्ठ १८, १९, २०, २१, २७, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३९, ४०, ४१, ४३, ४४,
४५, ४६, ४७, ५२, ५३, ५६, ५७, ५८, ६६, ६७, ६८,७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७७, ७९
आदिमे काफिया तकलासँ नै भेंटैत अछि आ ऐ खोजमे मोन अकच्छ भऽ जाइत छै। ओना
आनो पृष्ठ काफिया दोखसँ ग्रसित अछि, मुदा ई उदाहरण हम ओइ पृष्ठ सभक देने
छी, जतय काफियाक झलकियो तक नै भेंटै छै। मैथिली गजल आइ जाहि सोपान पर चढि
चुकल अछि, ओइ हिसाबेँ ऐ तरहक रचना गजलक नामसँ स्वीकृत होइ बला नै अछि।
कियाक तँ बिना दुरूस्त काफियाक गजल नै भऽ सकैत अछि। ई संग्रह "अनचिन्हार
आखर" युगक शुरूआत भेलाक बाद लिखल गेल अछि, तैँ हमरा ई आस छल जे गजलकार
कमसँ कम काफिया आ रदीफक नियमक पालन ठीकसँ केने हेताह, कियाक तँ
"अनचिन्हार आखर" जुग मे आब गजलक व्याकरणक सभ नियम चिन्हार भऽ चुकल अछि।
मुदा गजलकार काफिया आ रदीफक नियम पालन करबामे पूरा असफल रहलथि। ओना ऐ
संग्रहक काफिया दोखकेँ पोथीक आमुख लेखक श्री अजीत आजाद पोथीक आमुखमे दाबल
आवाजमे स्वीकार करैत कहै छथि जे कतेको ठाम काफिया "गडबडायल सन" बुझना
जाइत अछि। ओना ई अलग गप थिक जे काफिया "गडबडायल सन" नै अपितु पूरा पूरी
गडबडायल अछि। फेर श्री आजाद ऐ गलतीकेँ झाँपबा लेल इहो कहैत छथि जे
"रचनाकारकेँ अपन सीमासँ बाहर आबि शब्द-व्यापार करबाक चाही"। मुदा गजलक
अपन व्याकरण छै, जकर पालन केने बिना रचना गजल नै भऽ कऽ पद्य मात्र रहि
जाइत छै। गजल आ कविताक बीचक अंतर जे अंतर छै, से ऐ तरहक तर्कसँ समाप्त नै
भऽ जाइ छै। काफिया, रदीफ आ गजलक व्याकरणक अनुपालन नै हेबाक कारणेँ श्री
सुरेन्द्र नाथक ई संग्रह गजल संग्रह नै भऽ कऽ एकटा पद्यक संग्रह भऽ कऽ
रहि गेल अछि।
संवेदनाक स्तर पर किछु रचना नीक अछि आ जँ गजलकार गजलक व्याकरण पर धेआन
देने रहतथिन्ह, तँ नीक गजल लिखि सकैत छलाह। गजलकारक ई पहिलुक मैथिली गजल
संग्रह बहुत आस तँ नै जगबैत अछि, मुदा हुनकर संवेदनात्मक प्रतिभा देखैत
हम ई आस जरूर करै छी जे ओ गजलक व्याकरणक पालन करैत आगू नीक गजल कहताह आ
"गजल हमर हथियार थिक" केँ चरितार्थ करताह। गजल तँ हथियार होइते अछि, मुदा
बिनु काफिया, रदीफ आ बहरक नियमक पालन केने रचना गजल नै होइत अछि आ भोथ
हथियार भऽ जाइत अछि। पद्यक हथियार पर काफिया आ बहरक सान चढल हुनकर नब
गजल-हथियारक प्रतीक्षा रहत।
६
गजलक लेल
श्री विजय नाथ झाजीक गीत-गजल संग्रहक पोथीक नाम अछि "अहींक लेल"। ऐ
पोथीमे गीत आ गजलक फराक-फराक दूटा प्रभाग छै। हम ऐ पोथीक गजल प्रभागक
संबंधमे ऐठाँ किछु चर्चा करऽ चाहब। ऐ पोथीमे गजलकार श्री विजय नाथ झाजीक
अठहतरिटा गजल प्रकाशित भेल अछि। पोथीक गजल पढलासँ ई पता चलैत अछि जे किछु
गजल केँ छोडिकऽ बेसी ठाँ काफिया आ रदीफक निअमक पालन कएल गेल अछि। पृष्ठ
संख्या ४७, ५०, ५४, ५५, ५६, ६७, ७१, ७४, ७५, ८२, ९४, १०१, ११०, ११४ पर
छपल गजलमे काफिया गडबडाएल अछि। ऐठाँ ई धेआनमे राखबाक चाही जे बिना
दुरुस्त काफियाक रचना गजल नै भऽ सकैए। तखनो अधिकांश गजलक काफिया दुरुस्त
अछि, जे गजलक विकास यात्राक हिसाबेँ एकटा नीक लक्षण अछि। काफिया, रदीफ आ
गजलक व्याकरणक निअम पालन करबाक हिसाबेँ गजलकार ओहि गजलकार सभसँ फराक
श्रेणीमे छथि जे गजलक व्याकरणकेँ नै मानबाक सप्पत खएने छथि।
ऐ गजल संग्रहक गजल सब कोन बहरमे लीखल गेल अछि, ऐ पर गजलकार मौन छथि। गजलक
नीचाँमे बहरक नाम जरूर लीखल जएबाक चाही। बहरक ज्ञान नब पीढीक गजलकार सभमे
बढेबामे ई महत्वपूर्ण डेग हएत। ओना तँ गजलकार कोनो गजलक नीचाँमे बहरक नाम
नै लीखने छथि, मुदा गजल सभकेँ पढलासँ ई पता चलैत छै जे ऐ संग्रहक ढेरी
गजल एहन अछि जाहिमे अरबी बहरक निअमक पालन करबाक नीक प्रयास कएल गेल अछि।
ई स्वागत योग्य गप अछि। ऐसँ इहो पता चलैत अछि जे गजलकार अरबी बहरसँ नीक
जकाँ परिचित छथि आ जँ ई बात अछि तँ हुनका बहरक नाम गजलक नीचाँमे फरिछाकेँ
लीखबाक चाही। ऐ संदर्भमे हम पोथीक सबसँ पहिलुक गजलक (पृष्ठ संख्या ४५)
मतलाकेँ उद्धृत करऽ चाहै छी-
हमर पूजा, हमर परिचय, हमर शृंगार छी अपने
सकल सौभाग्य, मन, काया, रुधिर-संचार छी अपने
आब एकर मात्रा संरचना पर धेआन दिऔ, तँ पता चलै छै जे ऐमे मूल ध्वनि
मफाईलुन माने "ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ" सब पाँतिमे चारि बेर प्रयोग कएल
गेल अछि। माने ई शेर बहरे-हजजमे कहल गेल छै। ऐ गजलक आनो शेरमे मोटामोटी
किछु गलतीकेँ छोडि बहरे-हजजक प्रयोग अछि आ किछुठाँ वर्ण दुरुस्त कऽ देला
पर ई गजल अरबी बहर बहरे-हजजमे अछि। ई एकटा उदाहरण अछि, एहन आरो गजल ऐ
संग्रहमे छै जे वर्ण आ मात्रामे किछु परिवर्तन भेला पर अरबी बहरमे कहल
मानल जाएत। हमरा ई आस अछि जे गजलकार अपन अगिला गजल संग्रहमे ऐ बातक धेआन
राखताह आ अरबी बहर युक्त गजल कहिकऽ मैथिली गजलकेँ समृद्ध करताह। शेरक
पाँतिक अंतमे पूर्ण विराम वा कोनो विराम चिन्ह नै लगेबाक निअम अछि, मुदा
पोथीक गजलक शेर सभक पाँतिक अंतमे पूर्ण विराम लगाओल गेल अछि, जे
निअमानुकूल नै अछि आ एकर धेआन राखल जएबाक चाही छल।
संवेदनाक स्तरपर ई गजल संग्रह बड्ड नीक अछि आ गजलकारक विद्वताकेँ प्रकट
करैत अछि। मुदा कएकठाँ भारी भरकम तत्सम आ संस्कृतक शब्दक प्रयोग गजलकेँ
बूझबामे भारी बनबैत छै, जाहिसँ बचल जा सकैत छल। गजलमे क्लासिकल भाषाक
प्रयोग नहिए हेबाक चाही, अपितु आम प्रयोगक भाषाक प्रयोग गजलक लेल बेसी
नीक होइत छै। शेरमे एहन शब्दक प्रयोग जे आम बेबहारमे नै छै, गजलकारक शब्द
सामर्थ्यकेँ तँ जरूर देखाबैत छै, मुदा शेरकेँ आम जनसँ दूर सेहो करैत छै।
तैं शेर कहबाक काल हमरा हिसाबेँ बेसी क्लिष्ट भाषाक प्रयोगसँ बचबाक चाही।
अंतमे ई कहल जा सकैए जे "अहींक लेल" पोथीक गजल प्रभाग मैथिली गजलक विकसित
होइत रूपकेँ अस्पष्टे रूपेँ, मुदा देखबैत जरूर अछि। ई पोथी गजलक व्याकरणक
हिसाबेँ किछु गलतीकेँ छोडिकऽ नीक प्रयास अछि। ऐ संग्रहक कएकटा शेरमे अरबी
बहरक पालनक प्रयास महत्वपूर्ण आ नोटिस करबाक जोग अछि। कएकठाँ क्लिष्ट आ
संस्कृतनिष्ठ शब्दक प्रयोगकेँ जँ कात कए कऽ देखल जाइ तँ संवेदनात्मक
स्तरपर सेहो ई संग्रह नीक अछि। मैथिली गजलक विकास यात्रामे ई पोथी गजलक
भविष्यक लेल नीक डेग अछि।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।