नन्द विलास राय (सखारी-पेटारी)
¦
गोबरबीछनी
सखुआ गामसँ
उत्तर विहुल नदी जे पच्छिमसँ पूब दिस बहैए। नदी बरसाती छी मुदा कोसी नहरिक
पानि नदीमे गिरौने अछि तँए प्राय: बारहो मास पानि बहैत रहैए। नदीक उत्तर कबरगाहबला
परती। परतीसँ सए मीटरक दूरीपर एन.एच.सड़क अछि। परतीसँ उत्तर-पूब एन.एच. सड़कक दुनू कात
नवटोली गाम आ उत्तर-पच्छिममे नरहियाक धनजैया टोल अछि। नदीमे पक्का अथवा
लोहाक पुल तँ नै अछि मुदा बाँसक चचरीक लचका अछि। जैपर दऽ मनुखसँ लऽ कऽ बकरी-छकरी, साइकिल-मोटरसाइकिल पार
होइत अछि। परतीक काते-काते लोक सभ अपन जजाति बँचबैक खातीर आरा देने अछि। आरापर
जिलेबी, आम, साहोर, कदम आ गुलरिक
गाछ सभ अछि। सालो भरि परतीपर लोक सभ महिंस, बरद, गाए आ बकरी
चरबैए। सखुआ दुनू टोलक नवटोली आ धनजैया टोलक माल-जालक अलाबे कखनो
काल साननो पट्टीक चरबाहा सभ महिंस परतीपर लऽ अनैए तइले कखनो काल सखुआक चरबाहा आ
अनगौआँ चरबाहामे रक्का-टोकी सेहो भऽ जाइत अछि। सखुआक चरबाहा सबहक कहब छै जे परती
हमरा गामक सीमामे अछि। तँए ऐपर हमहीं सभटा माल-जाल चराएब। मुदा
नवटोली आ धनजैआ टोलक चरबाहा सबहक कहब छै जे परती सरकारी छी तँए ऐपर सबहक अधिकार
अछि। सभ कियो माल चरौत।
पहिने
तँ परतीक रकबा बाइस बीघा छल मुदा अखनि दस-बारह बीघाक लगधग हएत। नदीक दक्षिन पाँच
बीघाक धतपत परती छल जे जोत भऽ गेल। उत्तरवरिओ परतीमे सँ लगधग पाँच बीघा सेहो जोत
भऽ गेल। बँचलाहा परती जोत भऽ जाइत मुदा कबरगाह भेने नै जोत भऽ सकल। केतेक बेर लोक
सभ जोतेक परियास केलक मुदा सफल नै भऽ सकल।
सखुआ
गाममे तँ मुसलमान नै अछि मुदा नरहियामे अछि। नरहैए गामक मुसलमान सभ ऐ परतीपर
कव्वर दइले अबैत रहै छथि। ऐ परतीपर खाली मालेटा नै चरौल जाइए बल्की गुड़ीगुडी, चिका-चिका आ गुल्ली-डंटा इत्यादि
खेलाएल जाइत अछि।
परतीपर
तीनटा गाछ अछि। दूटा गाछ बरक आ एकटा कदमक अछि। चरबाहा सभ अपन-अपन हेँड़ बना
ओइ गाछ तर बैसैए। कोनो गाछ तर तास-खेलाइत तँ कोनो गाछ तर लूडो आब तँ गाछ तर चरबाहा सभ
मोबाइलपर सिनेमाे देखैत रहैए। किछु चरबाहा आरा परहक गाछ तर सेहो बैसल रहैए।
एही
परतीपर गोबर बीछि कऽ दुखनी अपन गुजर करैत छेली। दुखनीक पति थोलाइ दू साल पहिने
मरि गेल। थोलाइ दिल्लीमे नोकरी करै छल। ओतै बोखार लगलै। डाक्टरसँ देखौलक तँ
डाक्टर कहलकनि जे कालाजार भऽ गेल अछि। मुदा पाइक तिरोटमे ठीकसँ इलाज नै भेल।
जखनि चलै-फिड़ैमे
दिक्कत हुअए लगलै तँ एकटा गाैआँ गाम नेने एलै थोलाइकेँ। गाममे दुखनी कर्जा लऽ
ग्रामीण डाक्टरसँ इलाज करौलक मुदा बिमारी ठीक नै भेलै। दिल्लीसँ एला महिने दिन
पछाति थोलाइ अपन पत्नी दुखनी आ तीन सालक एकटा बुच्चीकेँ छोड़ि दुनियाँसँ विदा
भऽ गेल। दुखनी ऊपर दुखक पहाड़ टूटि खसल। कनैत-कनैत दुखनीक
आँखि लाल भऽ फूलि गेलै। टोल-पड़ोसक लोकक अलाबे नहिरासँ भाए-बाप आबि हूबा
बन्हैले कहैत पाँच दिन तक रहि दुखकेँ बाँटि संगे नहिरा चलैले कहलकै। मुदा
दुखनी नै गेल। एक पनरहिया तँ शोकेमे डुमल रहली। बेटी बुचनीक मुँह देखि फेरसँ काज-राज करए लगली।
आब दुखनी परतीपर गोबर बीछि चिपड़ी पाथि िनर्मली बजारमे बेचि अपन गूजर-बसर करए लगली।
दुखनीकेँ
एकटा बेटीए टा। प्राय: तहू दुआरे दुखनीक माए-पिता दोसर
चुमौन करैले कहलक मुदा दुखनी तैयार नै भेल। दुखनीकेँ मात्र दू कट्ठा घराड़ीएटा अछि।
माल-जालक
नाओंपर एकटा बकरीएटा। घर फूसक ऊहो चुबिते। ओही घरमे भानसो-भात करैत, बकरीओ बन्हैत आ
दुनू माय-धी
सुतबो करैत। भोरे किछु खेनाइ बना खा-पीब घरमे फट्टक सटा बकरी आ बेटीकेँ लऽ दुखनी परतीपर
चलि जाइत छल। परतीपर बकरीओ चरबैए, बेटीओकेँ खेलबैए आ गोबरो बीछि-बीछि जमा करैए।
परतीएपर गोबरक चिपड़ी पाथि सुखैले छोड़ि दइए। सूखला पछाति गामपर आनि-आनि राखैए आ
तेसरा दिनपर िनर्मली जा बेचबौ करैए। ऐ खेप िनर्मली बजारमे स्कूल जाइत धिया-पुतापर नजरि
पड़लै। एक्के रंगक कपड़ा पहिरने बच्चाकेँ स्कूल जाइत देखि दुखनीओकेँ अपन
बुचनीपर धियान गेलै। सोचए लगल, हमरा बुते तँ बुचनीकेँ बेसी पढ़ौल नै हएत मुदा चिट्ठीओ-पुर्जी जोकर तँ
कहुना कऽ पढ़ेबे करब। हमरा जे दुखनीक बाप दिल्लीसँ चिट्ठी पठबए तँ चुनियाँसँ
पढ़ाबी आ चुनियेँसँ लिखेबो करी। अपना तँ पढ़ल छी नै। तँए मनक बात कहियो बुचनीक
बापकेँ नै लिखि सकलौं। जेमा चलिए गेल। ई पछिला बात सभ मन पड़ने दुखनीक आँखिसँ
फेर दहो-बहो नोर
जाए लगल।
एम्हर
आबि कऽ दुखनीक समए भारी भऽ गेल। किएक तँ आब ओकर चिपड़ी बिकनाइ कम भऽ गेल। कारण
लोको सभ आ होटलोबला गैसक उपयोग करए लगल। चाहोबला सभ गैसेपर चाह बना-बना बेचए लगल।
पहिने तँ कोइलापर भानस करै छल जइमे चिपड़ीक बेगरता रहबे करै छेलै मुदा से आब नै
रहल। दुखनीक गुजर-बसरमे
दिक्कत हुअए लगल।
दिनक
लगधग बारह बजैत। टहटहौआ रौदमे दुखनी आ बुचनी परती कातक आरापर गाछ तर बैसल छल।
बकरीओ लगेमे छेलै। तीन छिट्टा गोबर बीछि जामा केने छेली। बैसल-बैसल सोचै छेली, चिपड़ी बीकब तँ
कमि गेल हेन मुदा दोसर काजो तँ नै अछि। तखने बुचनी माएकेँ कहलक-
“माए गै, भूख लगल अछि।”
दुखनी बेटी दिस
देखए लगल सहजे-सहजे
आँखिसँ नोर बहए लगलै। चुप करैत गामपर विदा भेल। भरि रस्ता एतबे सोचै छेली जे
आइ तँ घरमे किछु नै अछि बेटीकेँ कथी खुआएब आ अपने केना रहब। रस्तेमे आँगनवाड़ीक
केन्द्र पड़ैत अछि। केन्द्रपर धिया-पुताकेँ थारी लेने पाँतिमे बैसल देखलक।
हाँइ-हाँइ
लफरल चलि घरपर जा छिपा धोइ बुचनीक हाथमे दऽ केन्द्रपर जाइले दुखनी कहलक। पाछू-पाछू अपनो आएल।
सहायिका जखनि खिचड़ी परसए लगली तँ बुचनीपर नजरि गेलनि तँ पुछलखिन-
“तूँ तँ पहिने नै आएल छेलेँ? तोरा ले तँ खिचड़ी
नै बनल अछि।”
सेविका सहायिकाक
बात सुनि बजली-
“अच्छा, की हेतै। ओकरो
थारीमे खिचड़ी दऽ दियौ।”
सेविकाक नजरि
दुखनीपर गेल तँ दुखनीकेँ लग बजा पुछली-
“अहूँ अपनो बेटीकेँ किअए ने केन्द्रपर
पठबै छी?”
दुखनी कहलकनि-
“की कहू दीदी। एकर बाप दू बरख पहिने मरि
गेल। तँए एको रती नीक नै लगैए। बेटी लगमे रहैए तँ संतोख होइए।”
बिच्चेमे सेविका
बजली-
“देखू जे मरि गेल ओ तँ दुनियाँसँ चलि
गेल। अहाँ अपना बेटीकेँ भविस किअए खराप करै छी। केन्द्रपर औत तँ किछु सिखबो
करत आ नीक संस्कारो हेतै। भिनसरमे जलखै आ दुपहरियामे खेनाइ सेहो खाएत। आब तँ
सरकार अढ़ाइ सए टाका बच्चाक कपड़ा लेल सेहो दइ छै।”
दुखनी बजली-
“दीदी, काल्हिसँ हमहूँ
अपना बुच्चीकेँ केनदरपर पठाएब।”
दुखनी अपन सभ
दुखरा सेविकाकेँ सुना देलक। बँचलाहा खिचड़ी दुखनीकेँ सेविका दऽ देलक। दुखनी सभ
बासन धोइ-माजि
सहायिकाकेँ दऽ अँगना आबि गेली।
आब
दुखनी अँगने-अँगने
वर्तन मािज गुजर करए लगली। दुखनी अछि तँ बड़ गरीब तहूमे मासोमात-बेसहारा मुदा
वेचारी अछि इमानदार आ स्वाभिमानी जे कोनो मनुखक सभसँ पैघ गुण होइए।
एक दिन
दुखनीकेँ बाटपर एकटा मोबाइल भेटल। मोबाइल लऽ दुखनी अँगना अबै छलि। तखने बाटपर
बुचकुन दुखनीक खाेंइछामे मोबाइल देखलक। देखिते पुछलकै-
“अहाँक खोंइछामे
मोबाइल देखै छी!
कहिया लेलौं?”
दुखनी बाजलि-
“ई मोबाइल बाटपर भेटल। जेकर हएत तेकरा दऽ
देब।”
बुचकुन कहलकै-
“देखौं केहेन मोबाइल अछि।”
दुखनी देखए
देलकै। मोबाइल नबे रहै। कमतीमे तीन हजारसँ ऊपरेक। बुचकुनकेँ लोभ आबि गेलै बाजल-
“पाँच सए टाका दइ छी हमरा दऽ दिअ।”
“नै यौ बौआ, हम मोबाइल नै
देब आ ने बेचब। जेकर हएत तेकरा दऽ देब।”
दुखनी बुचकुनक
हाथसँ मोबाइल लऽ घरपर विदा भेल। रहि-रहि कऽ मोबाइलमे गीत बजै छल। दुखनीकेँ तँ मोबाइलक
कोनो भाँजे ने बूझल रहै तँ ओ रिंग-टोन बाजि-बाजि बन्न भऽ जाए। अँगनामे बुचनी देखलक
तखने फेर गीत बाजल। बुचनी हरिअरका बटम दाबि बाजल-
“हेलाउ?”
ओम्हरसँ अवाज
आएल-
“के बजै छी?”
“हम बुचनी।”
“के बुचनी केकर बेटी?”
बुचनी बाजलि-
“माएक नाओं दुखनी छी। बाबू मरि गेल अछि।”
ओम्हरसँ फेर
पुछलक-
“तोहर बाबूक की नाओं?”
“सुअर्गीए थोलाइ?”
“ई मोबाइल तूँ केतएसँ अनलीही?”
बुचनी कहलकै-
“माए देलक।”
“तूँ अपना माएकेँ दही। गप करा।”
बुचनी माए
हाथकेँ मोबाइल दैत बाजलि-
“ले गप करही।”
दुखनी बेटीए
जकाँ मोबाइल कान लग सटा बाजलि-
“ई मोबाइल हमरा रस्तापर भेटल। जेकर हएत
तेकरा दऽ देब।”
ओम्हरसँ अवाज
आएल-
“मोबाइल हमर छी। हम अबै छी।” कहि मोबाइल
बन्न केलक।
कनीए
काल पछाति मोटर साइकिलसँ दू गोटे दुखनी घरपर पहुँचल। ओइमे एक गोटे मुखियाजी
रहथिन। मुखियाजी दुखनीकेँ बजा पुछलखिन-
“कहाँ अछि मोबाइल?”
दुखनी मोबाइल
घरसँ निकालि हाथमे दऽ देलकनि। मोबाइल लऽ मुखियाजी पाँच सए रूपैआ दुखनीकेँ दिअए
लगलखिन। मुदा दुखनी रूपैआ नै लेलक। आ बाजलि-
“हम रूपैआ कथीक लेब हमरा भेटल रहए अहाँक
छी लऽ जाउ।”
मुखियाजी
दुखनीक बेवहारपर खुश होइत पुछलखिन-
“अहाँकेँ सामाजिक सुरक्षा पेंसन भेटैए?”
दुखनी जवाब देलक-
“हमरा के देत पिलसिन उ तँ धनिकाहा सबहक
छी ने। हम तँ मसोमात छी।”
मुखियाजी फेर
पुछलखिन-
“अंत्योदय भेटैए आकि नै?”
दुखनी कहलकनि-
“लिखा-पढ़ही तँ कऽ कऽ
गेल मुदा अखनि तक कहाँ कुच्छो भेटल।”
मुखियाजी बजलखिन-
“अहाँ चारिटा फोटो घीचा कऽ राखब। हम परसू
आबि अहाँक नाओं सामाजिक सुरक्षाबला फार्म भरि पठा देब। अंत्योदयमे सेहो नाओं
जोड़ि देब। केते गोटेक मरलासँ जगह खालीए अछि।”
तेसर दिन
मुखियाजी आबि फार्म भरि दुखनीसँ फोटो आ निशान लऽ विदा होइत कहलखिन-
“अगिला माससँ सभ किछु भेटत।”
आइ
दुखनीक बेटी चाैथामे पढ़ैत अछि। ओकरा सामाजिक सुरक्षा पेंसन भेटैत अछि। इन्दिरा
अवास सेहो भेटल जइसँ घरो भऽ गेलै। हलाँकि छत नै ऊपरमे एसवेस्टसे छै।
¦
पोषाहारक गहुम
चनौरा प्राथमिक
विद्यालयक शिक्षा समितिक गठन भेल। रंजन जीक पत्नी रीता देवी सचिव आ अनीलजी
अध्यक्ष भेला। मोहनजी सेहो सदस्य चुनल गेला।
विद्यालयमे
छात्र सबहक पोषाहारक लेल सभ महिना सरकार गहुम दैत छल आ गरीब छात्र सभ लेल
पोषाहारक अलाबे एक रूपैआ प्रतिदिनक हिसाबसँ प्रोत्साहन भत्ता सेहो दइ छल। आब
तँ स्कूल सभमे मीनूक मुताविक छात्र सभकेँ खेनाइ भेटैए। कहियौ खिचड़ी, कहियौ करही-भात तँ कहियौ
अण्डा-भात। जइ
समैमे पोषाहारक रूपमे गहुम भेटै छल तइ समए प्रधानाध्यापक आ शिक्षा समितिक अध्यक्ष
ब्लौकसँ गहुम उठा अानि छात्र सबहक बीच बँटै छल। प्रोत्साहन भत्ता स्कूलक
प्रधानाध्यापक प्रखण्ड शिक्षा कार्यालयसँ अनै छल आ ओहो छात्र सबहक बीच बाँटि
दइ छल। मुदा प्रधानाध्यापक सभ छात्र सभकेँ कम गहुम दइ छल। प्राय: दू मासपर
पोषाहारक बँटवारा होइ छल। जइमे एक किलो कम गहुम छात्र सभकेँ भेटै छेलै। चनौरा
प्राथमिक विद्यालयक प्रधानाध्यापिका सेहो यएह काज करै छल। प्रोत्साहन राशिक
बँटवारामे पाँच टाकासँ दस टाका धरि कम कऽ छात्र सबहक बीच बँटैत रहथि।
ग्राम
पंचायतक चुनाव भेल। मोहनजी चनौरा पंचायतसँ पंचायत समितिक सदस्य चुनल गेला।
प्रमुख चुनावमे मोहन जीकेँ सक्रिय भूमिका रहलनि। आ हुनके खेमाक बेकती प्रमुख
भेला। आब मोहनजी बेसी काल प्रखण्डे मुख्यालयमे प्रमुख जीक संग रहए लगला। प्रखण्डमे
चलैबला सभ योजनाक जानकारी हुनका रसे-रसे हुअए लगलनि। प्राथमिक विद्यालय चनौरामे छात्र
सबहक बीच प्रोत्साहन भत्ता आ पोषाहार वितरणमे कटौटी होइते छल। गहुम आ टाका बँटला
पछाति जे बँचै छल ओ प्रधानाध्यापिका असगरे हजम कऽ लइ छेली। छअ मास भेल। विद्यालयक
शिक्षा समितिक अध्यक्ष देखैत रहला। आठम मासमे जखनि छात्र सभकेँ प्रोत्साहन
राशि देल जाइ छल तखनि शिक्षा समितिक अध्यक्ष अनीलजी, सचिवक पति
रंजनजी आ समिति सदस्य मोहनजी तीनू गोटे विद्यालयपर गेला। प्रधानाध्यापिकासँ
प्रोत्साहन भत्ताक राशिक वितरणक पंजी लऽ लेला। पंजीमे छात्र सबहक नामक आगू सभ
विद्यार्थीक हस्ताक्षर छल। मुदा राशि अंकित नै छल। शिक्षा समितिक सदस्य
सबहक विचार भेल जे काल्हि ई पंजी लऽ जा कऽ प्रमुख साहैबकेँ देखौल जाए। ओ जे सलाह
देथिन से कएल जाएत।
प्रधानाध्यापिका
विभा देवीक पति शोभाजी गामक दबंग बेकती। हुनका जखनि ई सभ बात पता लगलनि तखनि
ओ मोहन जीकेँ बजा धमकी देलकनि। मुदा मोहनजी पर ओइ धमकीक कोनो असरि नै भेल।
शोभाजी मोहन जीकेँ कहलकनि-
“अहाँ, वितरण पंजी
प्रधानाध्यापिकाकेँ आपस कऽ दियौ नै तँ हम अहाँपर केस करब।”
मोहनजी कहलखिन-
“पंजी तँ अध्यक्ष लग अछि। हम केतएसँ
देब। गौआँकेँ बैसाउ हुनका सबहक जे निर्णए हेतनि सएह कएल जाएत। अहाँ हमरा बेक्तीगत
रूपे किछु ने कहू। ओना अहाँकेँ जे मन फूड़ए से करू। हम डरेबला नै छी।”
जखनि
धमकीक कोनो असरि नै भेल तँ शोभाजी पंचायतक मुखिया जीकेँ बजेलखिन। पंचायतक मुखियाजी
सेवा निवृत शिक्षक छथि। ओहो अध्यक्ष आ मोहनजी सँ पंजी आपस करैले अाग्रह केलखिन।
मुदा पंजी आपस नै भेल। दोसर दिन भोरे स्कूलेपर समुच्चा गामक लोक बैसल। िनर्णए
भेल, एतेक दिन
प्रधानाध्यापिका जे केली से केली मुदा आब आगूसँ राशि वितरण अथवा गहुमक
बँटवारामे कटौती नै करथि। मुखियाजी कहलखिन-
“जखनि गहुम आकि प्रोत्साहनक राशिक वितरण
हुअए तखनि समितिक सभ सदस्य मौजूद रहथि। हुनके सबहक देख-रेखमे सभ किछु
वितरण हुअए।”
सभ गोटे मुखिया
जीक बातक थोपड़ी बजा समर्थन केलक।
मोहनजी
नामक लेल शिक्षा समितिक सदस्य रहि गेला। पंचायत समितिक सदस्य भेलाक कारण
हुनका ब्लौकेसँ फुरसति नै रहै छेलनि। हुनको दूटा बेटा ओही स्कूलमे पढ़ै छल। दू
मासक पछाति स्कूलमे गहुमक वितरण भेल। मोहनजी अपना पत्नीसँ पुछलखिन-
“एमकी बौआ सभ स्कूलसँ केते-केते गहुम अनलक?”
पत्नी कहलकनि-
“पहुलकोसँ किलाे भरि कम्मे अनलक। पहिने
दू मासमे पाँच किलो अनैत रहए। ऐ बेर चारिए किलो अनलक।”
मोहन जीक माथ
ठनकलनि। पता लगलनि जे चोर-चोर मौसेरा भाय। शिक्षा समितिक अध्यक्ष आ सचिवकेँ
आब कमीशन भेटए लगलनि। तँए एक किलो गहुम आरो कटौती भऽ गेल। मोहनजी अध्यक्ष लग जा
पुछलखिन-
“अनील बाबू, एमकी तँ एक किलाे
गहुम आरो कटौती भऽ गेल। अहीले एतेक नाटक भेल रहए कि?”
अनीलजी कहलखिन-
“छोड़ू मोहन भाय, अहूँ ब्लौकमे
कोनो योजना जाेतू गऽ। किछु कमाउ-धमाउ। अखनि मौका अछि। अगिला चुनावमे कि हएत कि
नै। देखै नै छिऐ,
पैघ-सँ-पैघ नेता सभ
केतेक नम्हर घोटाला करैए।”
मोहनजी अनील जीक
बात सुनि अवाक् रहि गेला। बजला किछु नै। किछु फुड़ेबे ने करनि। थोड़े काल
पछाति कहलखिन-
“ठीक छै, काल्हि हम विद्यालय
शिक्षा समितिसँ तियाग पत्र दऽ देब। अहाँ सभकेँ जे मन फूड़त सहए करब।”
अगिला
दिन मोहनजी शिक्षा समितिसँ तियाग पत्र दऽ देलखिन। मुदा गहुम वितरणपर नजरि
राखए लगलखिन। प्राय: दू मासपर गहुमक उठाउ कऽ छात्र-छात्रामे बाँटल
जाइ छल। दू मासक एक बेर भेटै छेलै। दिसम्बर आ जनवरीक गहुम तँ बँटा गेल छल। मुदा
फरवरी-मार्चक
गहुम अप्रीलोमे नै वितरण भेल। मई सेहो बितल। मुदा गहुमक कोनो पता नै। पाँच जूनकेँ
स्कूलक प्रधानाध्यापिका आ अध्यक्ष गहुम उठा कऽ आनि सात जूनसँ बँटवारा शुरू
केलनि।
मोहनजी
दरबज्जापर रहथि। तखने किछु लोक हुनका लग आबि कहलकनि-
“यौ समितिजी, जनवरी महिना धरिक
गहुम भेटल छल। फरवरी, मार्च, अप्रील आ मई ऐ चारू मासक गहुक बाँकीए छल। तइमे दुइए
मासक गहुम बाँटल जा रहल अछि। दू मासक गहुम केतए गेल?”
मोहनजी कहलखिन-
“अच्छा, हम पता लगबै छी।”
मोहनजी
प्रधानाध्यापिका लग जा पुछलखिन-
“दू मासक गहुम की भेल?”
प्रधानाध्यापिका
कहलकनि-
“फरवरी आ मार्चक गहुम लेप्स कऽ गेल।
आवंटने नै भेल। अखनि अप्रील-मई मासक गहुम बँटल जा रहल अछि।”
मोहन जीक मन नै
मानलकनि तँ ओ अध्यक्ष अनीलजी लग जा हुनकोसँ पुछलखिन। मुदा हुनको जवाब सएह। गहुम
लेप्स भऽ गेल।
मोहन जीक मनमे
भेलनि जे सभ कियो मीली भगत कऽ नेने अछि। एकरा सबहक बातपर बिसवास नै करी। विचार
केलनि, भरि दिन
तँ ब्लौकेमे रहै छी। किएक ने बीइओ आॅफिसमे जा पता लगाबी। अगिला दिन ब्लौक
गेला तँ बीइओ आॅफिसमे हाकिमे नै छल। ओइठाम मात्र एकटा शिक्षक छला जे लिखा-पढ़हीक काज सम्हारै
छला। पुछलापर ओहो गोले-मटोल जवाब देलकनि। मोहनजी सोचलनि जे अपना बुते नै पता
लगत। प्रमुख साहैबकेँ कहए पड़त। ओ तँ दसे मिनटमे पता लगा लेथिन। प्रमुख जीकेँ सभ
बात कहलखिन। प्रमुखजी कहलखिन-
“एतेक छोट काज लेल अहाँ फिरिसान छी।
पाँचे मिनटमे पता लगा दइ छी।” कहैत प्रमुखजी टेबुलपर राखल बेलक बटम टीपलनि। चपरासी आएल।
गोदाम मैनेजरक रजिस्टर लऽ बजौने अबैले चपरासीकेँ कलखिन। पाँचे मिनट पछाति
चपरासी संग मैनेजर रजिस्टर लऽ कऽ आएल। प्रमुख साहैब मैनेजरसँ चनौरा स्कूलक गहुम
उठाबक तारीख पुछलखिन। मैनेजर रजिस्टर देखि बतौलकनि। 31 मईकेँ फरवरी-मार्चक आ 01 जूनकेँ अप्रील-मई मासक गहुम
उठाब भेल अछि। उठाब रजिस्टरपर विद्यालय शिक्षा समितिक अध्यक्ष आ प्रधानाध्यापिकाक
हस्ताक्षर अछि। आब मोहन जीकेँ बुझैमे कनिको भांगठ नै रहल जे दू मासक गहुम
प्रधानाध्यापिका,
सचिव आ अध्यक्ष मिलि बेचि लइ गेला।
गामपर
आबि मोहनजी एक बेर फेर अध्यक्ष अनीलजी लग गेला। पता चललनि। अध्यक्षजी
प्रधानाध्यापक ओइठाम गेल अछि। तखनि ओहो प्रधानाध्यापिका ऐठाम एला।
ऐठाम
देखै छथि जे प्रधानाध्यापिकाक पति शोभाजी, अनीलजी आ रंजनजी
सभ गोटे एक्केठाम बैस चाह पीब रहल छथि। मोहन जीकेँ देखिते शोभाजी बजला-
“आबह आबह मोहन, कहअ की हाल-चाल छह?”
मोहनजी कहलकनि-
“ठीके अछि।”
बिच्चेमे
शोभाजी पत्नीकेँ हाक दैत कहलखिन-
“एक कप चाह ओरो नेने आउ।”
मोहनजी कहखिन-
“हम चाह नै पीब, अखने चौकपर चाह
पीलौं हेन।”
ताबे विभाजी एक
कप चाह आ एक गिलास पानि नेने आबि मोहनजी दिस बढ़ेली। मोहनजी कहलखिन-
“बेसी चाह पीलासँ गैस बनि जाइए।”
विभाजी कहलखिन-
“लीअ ने कथीले हमरा सभपर विगड़ल रहै छी।”
मोहनजी चाहक कप
पकड़ैत कहलकनि-
“अहाँ कोन हमर खेत जोति लेलौं जे हम
अहाँपर विगड़ल रहब।”
बिच्चेमे
रंजनजी पुछलखिन-
“आब कहू समितिजी, केम्हर-केम्हर आगमन
भेलैए?”
चाहक घोंट लैत
मोहनजी बजला-
“हम पुछैले एलौं हेन जे ठीके दू मासक
पोषाहार लेप्स भऽ गेलै?”
शोभाजी बिच्चेमे
टिपलखिन-
“तँ हम सभ फूसि बजै छी? तूँ तँ भरि दिन
ब्लौकेमे रहै छह। पता लगा लैह।”
अध्यक्ष अनीलजी
टोकलकनि-
“यौ समितिजी, छोड़ू ने बितलाहा
बात। अहूँ कथी-कथीमे
लगल रहै छी। किछु कमाएब-धमाएब से नै। यौ अखनि कमाइक मौका भेटल अछि। समैकेँ चिन्हयौ।
मौकाक फेदा उठाउ।”
बिच्चेमे
रंजनजी सेहो अपन बात रखलनि-
“देखियौ ने, डीलर सभ छअ-छअ मासपर अंत्योदय
योजनाक चाउर-गहुम
जनताकेँ दैत अछि। कहाँ कियो किछु बजैए। ओ सभ कमा कऽ बोच भऽ गेल।”
मोहनजी तंग होइत
बजला-
“दुनियाँ-दारीक बात छोड़ू
जे विषय लऽ कऽ हम एलौं तैपर चर्चा करू। परसू पंचायत समितिक बैसक छी। हमरा स्कूलक
पोषाहार किअए लेप्स भऽ गेल से ओइ बैसकमे अवाज उठाएब। ठीक छै हम जाइ छी।” कहि मोहनजी
उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेला।
ताबे शोभाजी
कहलखिन-
“बैसह ने, जलखै खा कऽ
जइहअ। किअए एते आगुताएल छह?”
मोहनजी कहलकनि-
“हमरा आरो काज सभ अछि। जाए दिअ।” कहि मोहनजी विदा
भऽ गेला।
शोभाजी
अनील जीकेँ इशारा केलखिन। अनीलजी ठाढ़ होइत बजला-
“रूकू समितिजी, हमहूँ चलब।”
“चलब तँ चलू।” मोहनजी कहलखिन।
दुनू गोटे संगे विदा भेला। रस्तामे अनीलजी मोहनजीकेँ कलखिन-
“यौ समितिजी, गहुम लेप्स नै
भेल। हम सभ दू मासक गहुम बेचि लेलौं। अहूँक हिस्सा रखल अछि।”
मोहनजी कहलखिन-
“हमरा हिस्सा-तिस्सा नै
चाही। हमर कोन हिस्सा? गहुम
बेचि लेलिऐ तँ रूपैआ तँ हेबे करत। ओइ रूपैआक फेर गहुम कीनि विद्यार्थी सभमे
बाँटि दियौ।”
अनीलजी कहलखिन-
“आब से नै हएत। शोभाबाबू आ रंजनजी से नै
करता।”
मोहनजी कहलखिन-
“तँ ठीक छै। हम गौआँकेँ सभ बात कहबै जे दू
मासक गहुम अध्यक्ष, सचिव आ प्रधानाध्यापिका मिलि कऽ बेचि लेलक।”
अनीलजी कहलकनि-
“ठीक छै अहाँ जाउ, हम चौक होइत भेल
अबै छी।”
मोहनजी बढ़ि
गेला।
अनीलजी
घूमि कऽ शोभा जीक दरबज्जापर एला। रंजनजी आ शोभाजी बैसले रहथि। शोभाजी पुछलकनि-
“की मोहना बात बुझलक आकि नै।”
“नै बुझलक। कहलक हम गौआँ सभकेँ कहबै।”
रंजनजी बजला-
“ठीक छै। कहए दिऔ। हम सभ देख लेब।”
शोभाजी बजला-
“मोहन पंचायत समितिमे की जीतल ओ केकराे
मोजरे ने करैए। अपनाकेँ बड़का नेता बुझैए। ओ की कोनाे योजनामे गरबड़ नै करैए।”
अनीलजी कहलखिन-
“जौं गौआँकेँ गहुम बेचब पता लगि जाएत तँ
बुझू जे आगि लगि जाएत। केकर-केकर मुँह बन्न करब। लोक अपना सभकेँ की-की कहत से नै
जानि। समाजमे बड़का बदनामी हएत।”
शोभाजी पुछलखिन-
“अहाँक की विचार अछि?”
अनीलजी कहलखिन-
“हम तँ कहब जे गहुम कीनि कऽ बँटबा दियौ।”
शोभाजी आ रंजन
एक्के संग बात कटैत बजला-
“नै से तँ नै हएत। आखिर हमरो सबहक किछु
इज्जत अछि। जे खा गेलिऐ से खा गेलिऐ। जौं गहुम कीनि कऽ बाँटब तँ मोहना कहत, खेलहा गहुम
बोकरा देलिऐ। अहाँ बेकार डराइ छिऐ। यौ मोहन असगरे अछि। अपना सभ तीन गोटे छी।”
अनील जीक मुँहसँ
निकललनि-
“अखनि ने असगरे अछि आ जखनि गौआँकेँ कहत
तँ भरि गामे ने भऽ जाएत।”
शोभाजी बजला-
“हएत तँ हएत। की कऽ लेत। यएह ने हएत जे किछु
टाका बीइओ साहैबकेँ देबए पड़त। हम सभ बूझि लेब। अहाँ चिन्ता जुनि करू।”
जखनि
गौआँकेँ पता लगल तँ समुच्चा गाममे आगि लगि गेल। चौक-चौराहासँ लऽ कऽ
दलान सभपर सेहो मात्र अही गपक चर्चा हुअए लगल। गौआँ सभ आवेदन लिखि सभ गोटे सही
छाप करै गेल। अगिला दिन ब्लौक जा एकटा आवेदन प्रमुखजीकेँ आ एकटा बीडीओ साहैबकेँ
देलक। आवेदन देखि बीडीओ साहैबक विचार भेलनि जे थानामे एफ.आइ.आर. दर्ज करौल जाए।
मुदा प्रमुखजी रोकैत कहलखिन-
“दू दिन थम्हू। जौं स्कूलक हेड मास्टर
गहुम बाँटि देत तँ ठीक नै तँ सहए करब।”
जखनि
शोभा जीकेँ पता चललनि जे बीडीओ साहैब एफ.आइ.आर. करैले तैयार भऽ
गेल अछि तँ माथ चकराए लगलनि। सोचए लगला, गहुमक पाइ तँ सचिवो आ अध्यक्षो खेलक।
मुदा फँसत तँ हेड मास्टर। जौं ओ सभ फँसबो करत तँ की हएत। हमर पत्नीकेँ तँ नोकरीए
चलि जाएत। अनीलजी आ रंजन जीकेँ बजा कहलखिन-
“बात बढ़ि गेल। एफ.आइ.आर. होइबला अछि।”
अनीलजी कहलकनि-
“हम तँ पहिने कहने रही जे मोहनक बात मानि
लिऔ।”
शोभाजी बिच्चेमे
बात कटैत बजला-
“पछिला बातकेँ छोड़ू आब की करए पड़त से
करू। जइसँ जान बँचत।”
रंजनजी बजलखिन-
“जिला परिषदक सदस्य लोकेशजी हमरा दोसक
सार छी। हुनका ब्लौकपर पकड़ छन्हि। हुनकासँ गप कऽ मामिलाक रफा-दफा करबैक आग्रह
करबनि। हम आ अनीलजी अखने जाइ छी।”
सएह केलक अनीलजी, रंजनजी दुनू
गोटे जिला परिषदक सदस्य लोकेश जीसँ भेँट कऽ सभ बात कहलकनि। लोकेश जीकेँ पहिनेसँ
सभ बात बूझल छेलनि। कहलखिन-
“अहाँ सभ बड़ जुलुम केलौं। धिया-पुताक गहुम बेचि
लेलौं। ऐसँ पैघ आरो कोनो गलती होइ छै?”
रंजनजी कहलखिन-
“आब तँ जे भऽ गेल से भऽ गेल। ई मामिला
आगू नै बढ़ए से जोगार कऽ दिऔ।”
लोकेशजी-
“बात तँ बड़ आगू बढ़ि गेल अछि। ओना हम
प्रमुख साहैब, मोहन आ
बीडीओ साहैबसँ गप करै छी। अहाँ सभ रूकू।”
लोकेशजी प्रमुख
जीक कक्षमे गेला। ओतै मोहनोजी बैसल रहथि। लोकेशजी प्रमुख साहैबकेँ कहलखिन-
“सर, प्राथमिक विद्यालय
चनौराबला मामिलाकेँ आगू नै बढ़ए दिऔ। अहाँ जे कहबै सएह हएत। मोहनो जीक प्रतिष्ठा
रहि जेतनि।”
प्रमुखजी कहलखिन-
“ठीक छै, मोहनजी सँ गप
करू।”
लोकेशजी मोहनकेँ
पुछलखिन-
“की यौ मोहनजी, अहाँक की विचार?”
मोहनजी कहलखिन-
“यौ पार्षदजी, धिया-पुताक पोषाहार ई
सभ बेचि लेलक। गहुम बेचलासँ जे रूपैआ भेल से तँ हेबे करत। ओही रूपैआक गहुम कीनि
बाँटि देथुन, हमरा
तरफसँ सभ गप खतम।”
प्रमुखजी कहलखिन-
“मोहनजी ठीके कहै छथि। अहाँ स्कूलपर जा
गहुम बँटबा दियौ। हम अगिला कोनो कार्रवाइ नै हुअए देबै।”
लोकेशजी-
“जी सर, हम मोहनजीक विचारसँ
सहमत छी। हम सभ पंचायत प्रतिनिधि छी। मोहनजीक प्रतिष्ठा हमरो प्रतिष्ठा छी।”
अगिला
दिन आठ बजे भिनसरमे चनौरा स्कूलपर समुच्चा गौआँक बैसार भेल। शिक्षा समितिक
सदस्य, अध्यक्ष, सचिव आ समितिक
सदस्य मोहनजी तथा जिला पार्षद लोकेशजी सेहो छला। बैसारक अध्यक्षता लोकेशेजी
केलनि। बड़ घमर्थन भेल। अंतमे अध्यक्ष िनर्णए देलखिन-
“चारि मासमे दू मासक गहुम छात्र सभकेँ
पहिने भेटल अछि। बँकियौता दू मासक गहुम सात दिनक भीतर प्रधानाध्यापिका विद्यार्थी
सबहक बीच बँटती।”
प्रधानाध्यापिका
विभा देवी ठाढ़ भऽ बजली-
“जे भऽ गेल ओकरा अहाँ सभ बिसरि जाउ। अगिला
रवि दिन हम बँकियौता दू मासक गहुम सभ विद्यार्थीक बीच बाँटब।”
¦
सभसँ पैघ पूजा
रेलबेमे भेकेन्सी
निकलल छल। मूल आवेदन पत्रक संगे सभ प्रमाण पत्रकेँ राजपत्रित पदाधिकारी दुआरा
अभिप्रमाणित छाया प्रति संलग्ण करनाइ अनिवार्य छल। नै तँ आवेदने रद्द भऽ
जाएत। हमरा देरीसँ पता लागल। एक सप्ताहक समए अवासीय एवं जाति प्रमाण पत्र बनबैमे
लगि गेल।
आइ
आवेदनक अंतिम दिन छल। मुदा हमर प्रमाणक छाया प्रति अभिप्रमाणित नै भेल छल। हम
बड़ चिन्तित छेलौं। भिनसरे आठ बजे घोघरडीहा विदा भेलौं सोचलौं, ओतए तँ केतेको
राजपत्रित पदाधिकारी सभ छथि, किनकोसँ करा लेब। आ घोघरडीहे डाकघरसँ स्पीड पोस्ट
कऽ देबै। ओहीठाम एकटा डाक्टर छथि नाओं छियनि डाक्टर ओम नारायण कर्ण। सभ गोटे
हुनका डाक्टर नारायण बाबू कहै छन्हि। हुनकासँ नीक परिचए अछि। केतेको रोगी
सभकेँ हुनकासँ इलाज करौने छी। जइसँ डाक्टर साहैबकेँ नीक आमदनी भेल छन्हि। नै तँ
कमतीमे दू हजार टाकासँ बेसी हमरा दुआरा डाक्टर साहैबकेँ आमद भेल हेतनि। हमरा
पूरा बिसवास छल जे डाक्टर नारायण बाबू हमर प्रमाण पत्रक छाया प्रतिकेँ अभिप्रमाणित
कऽ देता। हम हुनका डेरापर पहुँचलौं ओ टी.वी देखै छेला। हमरा देखिते हुनकर पत्नी
हुनका कहलकनि-
“रायजी एला हेन।”
बरबरि जे रोगी
लऽ कऽ हुनका डेरापर जाइत रही तँए डाक्टर साहैबक पत्नीओ हमरा चिन्है छेली। हुनकर
क्लिनिक डेरापर छन्हि। डाक्टर साहैब टी.बी देखनाइ छोड़ि
हमरा लग आबि बजला-
“बहुत दिनपर एलौं हेन। कोनो राेगी अछि
की?”
हम कहलियनि-
“नै सर। आइ रोगी नै अछि। आइ तँ हम अपन
प्रमाण पत्रक छाया प्रतिकेँ अभिप्रमाणित करबए एलौं। आइ आवेदनक अंतिम तारीख छी।”
डाक्टर साहैब
बजला-
“हमरा लग तँ मोहर अछि नै। उ तँ अस्पतालेमे
रहैए। बिनु मोहरक केना हएत।”
हम कहलियनि-
“सर, अपने अभिप्रमाणित
कऽ देल जाउ। हम अस्पताल जा मोहर लगाबा लेब।”
डाक्टर साहैब
कहलनि-
“अखनि तँ हमरा बोहनियो ने भेल अछि। बिनु
बोहनिक काज केने अझुका दिन फोंके चलि जाएत।”
हमरा
डाक्टर साहैबक ऐ बेवहारपर दुख भेल। मुदा बजलौं किछु नै। ओतएसँ विदा भऽ सड़कपर
एलौं। सोचलौं आबि की करी। केतए जाइ। मन पड़ल। प्रखण्डक साहायक अभियंतो ई काज कऽ
सकै छथि। हुनकोसँ तँ जान-पहचान अछिए। प्रधानमंत्री सड़क जे बनैत रहए तँ
इंजीनियर साहैबकेँ हम चाह-जलपान करौने रहियनि। हुनकर मोटर साइकिल खराप भऽ
गेल रहनि। तँ हमहीं गुड़का कऽ अपना दरबज्जापर लऽ गेल रही। ऐसँ इंजीनियर साहैब
बड़ खुशी भेल रहथि। कहने छला कहियो कोनो काज हएत तँ हमरा लग आएब। शर्मा जीक
मकानमे डेरा अछि। शर्मा जीक मकान तँ देखले अछि। कारण पहिने जे दुर्गा बाबू
बीडीओ साहैब रहथिन हुनको डेरा तँ शर्मो जीक मकानमे रहनि। एक-आध बेर बीडीओ
साहैबक डेरापर गेले छी।
शर्मा
जीक मकान दिस विदा भेलौं। इंजीनियर साहैब बाहरेमे बैसल रहथि। टेबुलपर चाह रखल
रहनि। अपने पेपर पढ़ैत रहथि। लगमे जा कहलियनि-
“परनाम सर।”
पेपरपरसँ नजरि
हटा हमरा दिस देखैत बजला-
“बाजू कोन काज अछि।”
हम कहलियन-
“अभिप्रमाणित करेबाक अछि।”
ओ बजला-
“अखनि हमरा लग समए नै अछि। देखै नै छिऐ
दाढ़ीओ नै कटेलौं हेन। तखनि स्नान-पूजा करब। जलखै कऽ तुरन्त मधुबनी जाएब। जिलामे
एगारह बजैसँ मिटिंग अछि। नअ बाजि रहल अछि।”
हम पुन: निवेदन करैत
कहलियनि-
“सर, आवेदनक तँ आइ
अंतिम दिन छिऐ। बड़ कृपा हएत जे ई काज अपने कऽ दैतिऐ।”
कहलनि-
“बोले न समय नहीं है। दुसरे जगह चले जाइए।
अस्पताल है ब्लौक है मबेशी अस्पताल है। कहीं भी अभिप्रमाणित हो सकता है।”
हम निराश
भऽ ओतएसँ विदा भेलौं। हमरा भेल जे आब हमर आवेदन पत्र रखले रहि जाएत। सोची, आब केतए जाइ।
अही गुनधुनमे आगू बढ़लौं तँ एकटा मकानक गेँटपर लिखल आलोक कुमार, प्रखण्ड
पशुपालन पदाधिकारी, देखलिऐ। केबाड़ भीतरसँ बन्न रहै। हम केबाड़ ढकढकेलिऐ।
एक्के मिनट पछाति एकटा युवक निकलला। हुनकर पूरा शरीर भीजल रहनि। गमछा पहिरने
रहथि। पुछलियनि-
“साइत अपने...?”
बिच्चेमे हमर
बात लपकि बजला-
“हँ, हम आलोक कुमार।
प्रखण्ड पशुपालन पदाधिकारी, घोघरडीहा छी। बाजू?”
कहलियनि-
“अभिप्रमाणित करबैक छल सर। मुदा अखनि
अपने स्नानामे लगल छी फेर पूजा करब तेकर बाद ने हमर काज।”
ओसारपर राखल
चौकीपर बैसैले कहलनि। हम जा कऽ ओइपर बैसलौं। ओ अपने भीतर गेला। कहलनि जे एतए बैसू
अबै छी। पाँच-सात मिनट
पछाति आबि पुछलनि-
“आब कहू कोन प्रमाण पत्रपर अभिप्रमाणित
करेबाक अछि।”
हम अपन प्रमाण
पत्र सबहक छाया प्रतिक संग मूल प्रति सेहो हुनका आगूमे टेबुलपर रखि देलयनि।
देख-सुनि
सभ प्रमाण पत्रक छाया प्रतिपर अभिप्रमाणित करैत कहलनि-
“अहाँ पूजाक बात करै छेलौं...?”
हम चुप्पे
रहलौं आकि ओ पुन:
बजला-
“हम जे अपनेक काज कऽ देलौं हमरा लेल सभसँ
पैघ पूजा यएह भेल। हम सेवाकेँ पूजा बुझै छी।”
हम डाक्टर
साहैबक ई बात सुनि किछु सोचए लगलौं। ताबए सभ कागत पोलिथिन झोरामे लऽ नेने रही।
हुनक ई बात हमरा िदमागमे ऐ तरहेँ जगह बना छेकि नेने छल जे किछु बाजि नै पबैत
रही। अंतो-अंत बिनु
किछु बजने हाथक इशारासँ प्रणाम करैत ओइठामसँ निकलि डाकघर दिस िवदा भऽ गेलौं।
¦
भोँट
पंचायत चुनावक
समए रहए। प्रचार-प्रसार
पूरा जोर पकड़ने रहए। सभ उम्मीदवारक आदमी साइकिलपर हौरन बान्हि मैकसँ टोले-टोल प्रचार करै
छल। चौक-चौराहापर
लॉडस्पीकरक तेतेक ने अवाज होइ जे कान देनाइ मुस्कील। हम तँ बुझू चौकपर गेनाइए
छोड़ि देने रही। जखैनकि उम्मीदवार सभ तरफसँ भोटरकेँ चाह-जलखैक अलाबे
दारूओ भेटै छेलै। मंगनीमे चाह-जलखै करैबला सभ सबेरेसँ चौक पकड़ि लइ छल। केते गोटे
तँ एहनो अछि जे दू-दू तीन-तीन उम्मीवारक चाह-जलखै करै छल।
ताड़ीओ आ पोलिथिनो पीबैबला सभ अखनि अंग्रेजी दारू पीबैए।
मरद कि
जे जनानीओ सभ हेँज बान्हि-बान्हि अँगने-अँगने अपना उम्मीदवारक
पक्षमे घूमि-घूमि
भोँट मंगैए। उम्मीदवारकेँ तँ अखनि बुझू नीने गाइब। एकटा उम्मीदवार उठै छल तँ
दोसर उम्मीदवार आबि दरबज्जापर बैस जाइ छल। सभकेँ चाह-पान तँ करबैए
पड़ै छल। पत्नी तँ चाह बनबैत-बनबैत फिरीसान छथि। की करब जँ कियो दरबज्जापर एता
तँ कम-सँ-कम एक कप चाहोक
आग्रह तँ करबे करबनि।
एक दिनक
गप छी। दरबज्जापर बैसल रही। लगमे सरपंचक उम्मीदवार झमेली दास सेहो रहथि। दुनू
गोटे चाह पीबैत रही। तखने हमर हरवाहा रबिया आएल आ कहलक-
“गिरहत, कनी खैनी दियौ।”
हम कहलिऐ जे जा
पहिने अँगना जा आ गिरहतनीसँ चाह मांगि पीने आबह तखनि तमाकुल खइहअ। दसे मिनट
पछाति दरबज्जापर आएल रबिया। झमेली दास ताबए चलि गेल छला। रबिया देखैमे तँ
बुड़बके जकाँ लगैए मुदा अछि बड़ चंगला। हम ओकरा चुनौटी दैत कहलिऐ-
“लगाबह, हमहूँ खाएब। अच्छा
एकटा कहअ जे भोँट केकरा-केकरा देबहक? उम्मीदवार सभ तँ अखनि खूब दारू पीयबैत अछि। तोरा
कहियो परि लगलह कि नै?”
रबिया बाजल-
“यौ गिरहत, अखने तँ समए अछि।
ई सभ जखनि जीत जाएत तखनि फेर केकरोसँ गपो करत। तँए जएह हाथ सएह साथ। भोँट तँ
जेकरा मन हएत तेकरे देब। मुदा खाएब-पीअब सबहक।”
हम कहलिऐ-
“ई नीक काज नै छी। अपन इमान अपने बँचबए
पड़ै छै। नीक लोककेँ चुनिहअ।”
रबिया-
“ई की कहै छिऐ गिरहत। नीक केकरा कहै छिऐ।
पछिला बेर गोपाल बाबूकेँ सभ मिलि मुखयामे जीतौलिऐ। मुदा आइ देखियौ
गोपालबाबूकेँ की-सँ-की भऽ गेला। पहिने
तँ एकटा कटहीओ साइकिल नै रहनि। आब किदनि तँ कहै छै हँ बलरो गाड़ी। ओहीपर हरदम
चढ़ि-चढ़ि
गामसँ हरिदम बाहरे रहैए। मकानो गाममे नै दरिभंगामे जा कऽ बनेलथि हेन।”
हम कहलिऐ-
“हौ अहिना होइ छै। सभ कियो कमाइए। देखै
नै छहक एमेले-एमपीकेँ
पाँचे सालमे करोड़पति-अरबपति भऽ जाइत अछि।”
रबिया बाजल-
“होइते हएत। जखनि मुखिया सभ एते कमाइए
जेकरा एक्को पाइ दरमाहा नै छै आ ओकरा सभकेँ तँ दरमहो आ सुनै छिऐ जरकीनो भत्ता
भेटै छै।”
हम कहलिऐ-
“अच्छा, छोड़ह ई गप-सप्प ई कहअ जे
वाडपंचमे केकरा भोँट देबहक। ओइमे तँ तोहर दियादे बुधन ठाढ़ छह। आन उम्मीदवारसँ
आदमीओ ठीक अछि।”
हमर बात कटैत बिच्चेमे
रबिया बाजल-
“की कहलिऐ गिरहत, नीक आदमी। यौ उ
तँ गाममे सभसँ गिरहकट अादमी अछि।”
पुछलिऐ-
“से केना?”
कहलक-
“परुकाँ साल हमर बकरी ओकर दसटा कोबीक गाछ
खा नेने रहए। तइले ओकर मौगी हमरा बिखनि-बिखनि गारि देने रहए। हमरो ओकर गारिक
बड़ चोट लगल अछि। हम अप्पन भोँट ओकरा किन्नहु नै देब।”
¦
सोइरी छछारब
मिथिलांचलमे
एकटा बजार अछि झंझारपुर जे अनुमण्डल सेहो छी। झंझारपुरमे एकटा मध्यम किसान
छला। नाओं रहनि टुनटुन। हुनका तीनटा बेटा आ दूटा बेटी। तीनू बेटाक बिआह भऽ गेल
छन्हि आ दुनू बेटीओक बिआह भऽ गेल छन्हि। ओना दुरागमन पछाइतो दुनू बेटी बेसी
काल नहिरेमे रहै छन्हि। दूटा बेटा पंचायत शिक्षक आ एकटा बेटा रोजगार सेवक छथिन।
जेठका जमाए पंचायत सचिव छथिन। पहिने तँ ओ दलपति छला। सरकार दलपति सभकेँ
पंचायत सेवक बना देलकनि तहीमे ओ पंचायत सेवक भऽ गेला। एम्हर पंचायत सेवककेँ
सरकार पंचायत सचिव बना देलक। बुझू जे ओ सभ तँ आब पंचायतक हाकिम भऽ गेला। हुनका
सभकेँ नीक आमदनी छन्हि। किएक तँ हुनका सभकेँ इंदिरा अवास आ आनो-आन योजना सभमे
कमीशन भेटै छन्हि। जन्म आ मृत्यु प्रमाण पत्र बनबैमे सेहो रूपैआ लइ छथिन।
टुनटुन
जीक जेठका जमाएकेँ सासुरमे नीक मानदान होइ छन्हि। किएक ने हेतनि। सासुर जखनि
अबै छथिन तँ खरच-बरचपर
तूलल रहै छथिन। सासु-सरहोजि लेल फूटा-फूटा मिठाइ, कपड़ा आ धिया-पुता लेल सेहो
कपड़ा-लत्ताक
संग बिस्कुट, मिठाइ, चकलेट इत्यादि
अलग-अलग।
टुनटुन जीक छोटका जमाए राकेश जीकेँ पढ़ैमे चन्सगर रहितो अखनि धरि कोनो नोकरी
नै भेटल रहनि। ओ मैट्रिकसँ लऽ कऽ एम.ए. धरि प्रथम श्रेणीसँ पास करैत रहला। साले भरि पहिने
हुनकर कनियाँ दुरागमन भऽ सासुर आएल रहनि। मुदा कनियाँकेँ बेसी समए नहिरेमे रहए
दइ छथिन। नोकरी नै भेने राकेशजी दरभंगाक एकटा निजि विद्यालयमे कार्यरत् छथि।
मुदा तैयो सरकारी नोकरी लेल अखनो प्रतियोगिता परीक्षा सभमे बैसैत रहै छथिन।
टुनटुन
जीकेँ एक्केटा बहिन ओहो मसोमाते। हुनका दूटा बेटा आ दूटा बेटी छन्हि। दुनू बेटा
दिल्लीमे नोकरी करै छथिन। जेठकी बेटी रीना मामा-मामी लग रहि
पढ़ैए। छोटकी बेटी वीणा माइए संग रहैए।
टुनटुन
जीक जेठकी बेटी मालतीकेँ कल्याणक जाेगता रहनि। जन्माशौचक समए लगिचाएल रहनि।
ओकर भौजाइ सभ सोचए,
मलतीकेँ जँ भगवान बेटा दऽ दइतथिन तँ हमरा सभकेँ पहुनासँ सोइरी छछारला पछाति
नीक आमदनी होइतए। ओना तँ पहिल बेर छिऐ बेटीओ भेने तँ नीक आमदनी हेबे करत। जेठकी
भौजाइ सोचैत, हम जेठ
भौजाइ छी तँए सोइरी हम छछारब आ पहुनासँ नीक गहना लेब। छोटकी सोचैत, हम तँ सभसँ छोट
छी तँए सोइरी हम नीपब। पाहुन नीक कमाइ छथिन। नीक दान-दछिना भेटबै
करत। मझिली भौजाइ सोचैत, हमहीं मालती बुच्चीक बेसी खियाल रखैत एलौं। पाहुनो अबै
छथिन तँ ननदि-ननदोसिकेँ
सुतैले हमहीं अपन घर छोड़ि दइ छी आ अपने ओसारिपर सासु लग सुतै छी। बौआक बाबूजी
दलानपर जा सुतै छथि। तँए मालती हमरे सोइरी छछारैले कहत। जौं दोसर कियो छछारत तँ
कहियो अपन घर सुतैले नै देबनि।
मालतीकेँ
जन्माशौच भेल। बेटी भेलनि। मझिली भौजाइ मालतीक दुल्हाकेँ मोबाइलसँ खबरि देलकनि।
छठिहारसँ दू दिन पहिने मालतीक दुल्हा विनोदजी एला।
आइ भिनसरे
विनोदजी दू हजार टाका जेठका सारक हाथमे दऽ नीकसँ भोज-भातक ओरियान
करैले कहलकनि। जलखै खा छोटका सारकेँ संग बजार गेला। बजारसँ मालती संग बेटी, तीनू सरहोजि आ
सासु लेल कपड़ा कीनि कऽ लऽ अनला। आइ छठिहार छी। भिनसरेसँ भौजाइ सभ अँगना-घर नीपब शुरू
केलनि। आब चर्चा भेल सोइरी के छछारत। जेठकी भौजाइ बजली-
“सभसँ जेठ हम छी। पहिल अधिकार हमर अछि।
मालतीक पहिल बच्चा छिऐ तँए सोइरी हम छछारब?”
छोटकी बजली-
“सभसँ छोट हम छी। तँए सोइरी हम छछारब।”
तैपर जेठकी
भौजाइ फरकि कऽ बजली-
“अहाँ सभसँ छोट छी तँ छोटकी ननदि ललिताक
सोइरी छछारब। ओकरो पएर तँ भारीए अछि। पाँचे मास पछाति तँ बच्चा जनमत।”
छोटकी भौजाइ बिच्चेमे
टिपलक-
“अहीं ललिता बुच्चीक सोइरी छछारब।”
मझिली भौजाइ सभ
गप सुनै छेली। हुनको रहल नै गेलनि बजली-
“जखनि पहुना अबै छथिन। तँ हुनका सभकेँ
सुतैले हम अपन घर दइ छियनि। आ अखनि सोइरी छछारैले घंघौज भऽ रहल अछि।”
तैपर जेठकी बजली-
“अहाँ सुतैले अपन घर दइ छियनि ने तँ
अहीं सोइरी छछारू। अहीं दान-दछिना लिअ गऽ।”
तैपर छोटकी बजली-
“हम जे मालती बुच्चीक कपड़ा खिचै छी आ
पहुनाकेँ नीक-निकुत
खेनाइ बना खुआबै छी। तेकर कोनो मानि नै?”
मालती
माए सभ गप सुनै छेलखिन। ओ सोइरी घरक मोख लग जा बेटीकेँ कहलखिन-
“सोइरी छछारैक तीनू दियादनीक बीच घंघौज
भऽ रहल अछि। केकरा कहबीहीन?”
मालती असमंजसमे
पड़ि गेली। सोचए लगली, तीनटा भौाजइ अछि। एक गोटेकेँ कहब तँ दू गोटे रूसत। मुदा
छछारत तँ कियो एक्के गोटे। बेटीकेँ चुप देखि माए फेरो बजली-
“बाज ने, केकरासँ
छछरबेवहीन?”
मालती माएकेँ
पुछलखिन-
“तोहर की विचार छौ?”
माएकेँ छोटकी
पुतोहु बेसी मानै छथिन। राइते-राति जँतबो करै छथिन। ई सभ मन पड़लनि। माए बजली-
“छोटकीकेँ कहीन सोइरी छछारैले।”
तैपर मालती बजली-
“मझिली भौजी हमरा सभसँ बेसी मानैए। जखनि
सेवकजी अबै छथिन तँ अपन घर हमरा सभ लेल छोड़ि अपने दुनू परानी अनतए सुतै छथिन।”
माए कहलखिन-
“तोरा जेकरासँ मन हाेउ तेकरासँ सोइरी
नीपा। हमरा लेल तँ तीनू पुतोहु एक्के रंग।”
मालती अपना
दुल्हा सेवक जीसँ सेहो विचार लेब जरूरी बुझलनि। ऊहो मझिलीए सरहोजिसँ निपबैले
कहलखिन।
मझिली
भौजाइ सोइरी छछारलक। तइले छोटकी आ जेठकी भौजाइकेँ बड़ दुख भेलनि। मुदा दुनूमे सँ
कियो किछु बजली नै।
पाँचे
मास पछाति टुनटुन जीक छोटकी बेटी ललिताकेँ बेटा जनमल। आइ छठिहार छी। हुनकर
दुल्हो नै एलखिन आ ने कियो आने सासुरसँ एलनि। ललिताक माए तीनू पुतोहुसँ बेरा-बेरी पुछलखिन
जे सोइरी के नीपब। जेठकी पुतोहु कहलकनि-
“मालती बुच्चीकेँ बेटी भेल तँ मझिली
सोइरी निपलक। दान-दछिना
लेलक। ललिताक दुल्हा तँ पाइबला नै छथिन। ओकरो साेइरी मझिलीए किअए ने छछारत।”
मझिली
पुतोहुकेँ कहल गेल तँ ओ बजली-
“हम तँ मालती बुच्चीक सोइरी छछारनहियेँ
रही। आब छोटकी नै तँ जेठकी छछारती। हुनके सबहक पार छियनि।”
जखनि छोटकी
पुतोहुसँ कहल गेल तँ खौझाइत जवाब देलखिन-
“हम किएक छछारौं। जेठका पाहुन अबै छथिन
तँ नीक-निकुत
बना-बना हम
खुअबियनि, कपड़ा-लत्ता हम खींचौं
आ आमदनी बेर आएल तँ साेइरी निपलक मझिली। ओकरे कहथुन वएह नीपत।”
तीनू दियादनी
एक्के बात सोचए। छोटका पाहुन तँ पाइबला छथिन ने। कहुना कऽ दरिभंगामे खानगी स्कूलमे
पढ़ा सरकारी नोकरी लेल प्रयास कऽ रहल छथिन। जहिया-कहियो सासुर
अबै छथिन तँ दू-चारि
डिब्बा साधारनी बिस्कूट लऽ कऽ। मिठाइ तँ कहियो नाओं लेल नै अनने हेता। सासु
आ हमरा सभकेँ के देत कपड़ा। ललितो बुच्चीकेँ तँ आफदे रहै छन्हि। तेलो-साबुन ले लल्ला-छुच्छी। साेइरी
जे छछारब से कोनो गहना-जेबर देत।
ललिताक
माए फेर मझिली पुतोहु लग जा कऽ कहलखिन-
“जेठकी आ छोटकी दुनू
गोरे अहीं नाओं कहैए। मालतीक दुल्हा पाइबला अछि तँए ओकर सोइरी अहाँ नीपलिऐ आ ललिताक
के नीपत? मालती
दुल्हासँ गहना-जेबर
अहाँ लेलिऐ तइले ओहो दुनू दियादनीकेँ पछताबा होइ छै जे हम छछारितौं तँ हमरा
होइतए। ललिताक तँ सहजे सभ बुझै छै जे ओ किछु दइबला नै अछि। उ दुनू दियादनी तँ
खुलिए कऽ कहि देलक जे जाथुन ओकरे कहिहथिन।”
मझिली कहलकनि-
“से जे ई कहै छथिन, सेवकजी हमरा
गहना देलखिन से ई देखने रहथिन? गहना दइत तँ पहिरतौं आकि नुका कऽ रखने रहितौं। अखनि
हमर मोनो भारी लगैए। मथो दुखाइए। भितरे-भीतर बोखार रहैए। सर्दी-कफ भऽ गेल अछि।
सुनै नै छथिन उकासीओ होइत रहैए। साेइरी छछारने तँ नहाए पड़त जइसँ आरो बेसी मोन
खराप भऽ जाएत। तखनि हमरा धिया-पुताकेँ के करत। हम नै छछारबनि।”
सासु कहलखिन-
“जेठका पाहुन जौं गहना नै देने हेता तँ
रूपैआ-पौसा तँ
देनैहीए हेता। कोनो कि हमरा सभकेँ देखा-सुना कऽ देलनि। किछु नै देने हेता से
नै मानब। हम सभ गप बुझै छी। अहाँ सभ सोचै छिऐ जे ललिताक दुल्हा तँ सोइरी नीपाइ
किछु देत नै तँए अहाँ सभ एना छिरहारा खेलाइ छी। अहाँ सभले कि ललिता सोइरीएमे
बैसल रहत आकि निकलबो करत। अहाँ सभ नै नीपै जाएब तँ हम अपनेसँ नीपि देबै। हमर तँ
बेटी छी हम थोड़े छोड़ि देबै। जाउ अहाँ सभ सुतू गऽ।”
ई कहि माए ललिता
लग गेली। माएकेँ देखिते ललिता पुछलकनि-
“के निपतौ?”
“कियो नै तैयार होइ छौ। तोहर दुल्हा कोनो
पाइबला छथुन जे सोइरी नीपाइ गहना-जेबर देबहीन। बुझहै नै छीही छुच्छाकेँ के पुच्छा।
हम अपनेसँ नीपब। तूँ चिन्ता नै कर।”
ललिता बजली-
“माए, तोहर नीपनाइ नीक
हेतौ। तीन-तीनटा
भौजाइ रहितौ माए सोइरी निपलकै। लोक की कहत?”
“एकटा काज कर। दीदीक बेटी रीना अछि ने
ओकरे कहीन वएह नीप देत। जौं भगवान हमरो दिन नीक केलक तँ रीनाकेँ कोनो गहना दऽ
देब। अखनि तँ हमरे दिन भारी अछि जे नैहर ओगरने छी।”
माए बेटीकेँ
संतोष दैत कहलखिन-
“अच्छा चिन्ता जुनि कर। भगवान जरूर
दुख बुझथुहुन। हँ गै हँसलै घर बसै छै।”
रीना
ललिताक सोइरी नीपलक। भोज-भातक कोनो आरियान नै रहए। भगवानक घरमे देर छै अन्धेर
नै छै। ललिताक दुल्हा राकेश जीकेँ केनरा बैंकमे नौकरी भेलनि। आब तँ ऊहो पाइबला
लोक भऽ गेला। सासुरमे हुनको मान-दान बढ़ि गेलनि।
पहुलका
बच्चाक जन्मक तीन बर्ख पछाति ललिताकेँ दोसर बच्चा भेल। एमकी बेटी रहए। बेटी
रहितौ तीनू भौजाइ सोइरी छछारैले उपरौंज करै छेलखिन। जेठकी भौजाइ सोचैत, सोइरी हम छछारब।
मझिली तँ जेठकी ननदि मालतीक सोइरी छछारि दान-दछिना पाबिए
नेने अछि। छोटकी भौजाइ सौचैत ललिता हमर छोटकी ननदि छी आ हम ओकर छोटकी भौजाइ तँए
हमर छछारब उचित। मझिली भौजाइ किछु आर सौचैत, हुनकर सोच ई जे
जेठकी आ छोटकीमे सोइरी छछारैले रक्का-टोकी हेबे करत, किएक तँ ओकरा दुनू गोटेमे भैंसा-भैंसीक कनारि
अछि। जखने दुनू गोटेमे बात-बताबलि हएत तँ कहब। से नै तँ अहाँ दुनू गोटे अस्थिर
रहू हम छछारबै। छोटका पाहुन तँ बैंकमे हाकिम भऽ गेला। जेठका पाहुनसँ बेसी दान-दछिना देबे
करता।
आइ छठिहार
छी। राकेशजी अपने तँ नै एला मुदा हुनकर पिताजी एलखिन। जेठका सारक नाउँए पाँच
हजार टाका पठा देने छथिन। नीकसँ भोज-भात करैले कहने छथिन आ ललिता जन्मलही बेटी, बेटा, सासु आ तीनू
सरहोजि लेल कपड़ा सेहो कीनि कऽ दइले कहने रहथिन। माए ललितासँ पुछलखिन-
“सोइरी छछारैले केकरा कहबीहीन। ऐ बेर तँ
तीनू भौजाइ मुँह बौने छौ।”
ललिताकेँ पछिला
सभ गप मने रहनि। कहलखिन-
“सोइरी रीना छछारत। ओकर पछिलो दान-दछिना बाँकीए
छै। दुनू सोइरीक दान-दछिना अही बेर देबै।”
माए कहलखिन-
“बड़ नीक विचार। भगवान तोरा सभकेँ नीक
करथुन।”
¦
ननदि-भौजाइ
लौकही बजारसँ
उत्तर-पूबक
कोणमे एकटा गाम छै पातो। ने बड़ पैघ आ ने बड़ छोट। पातो सप्तरी जिलाक नेपाल
अधिराज्यमे पड़ैए। भारत आ नेपालक सीमासँ लगधग तीन किलो मिटर उत्तर। पातो गामक
पच्छिम एकटा सड़क अछि जे फत्तेपुर चौकसँ नेपालक मुख्य सड़क राजमार्गमे कठौना लग
मिलैत अछि।
पातो
गाममे एकटा बड़ पैघ समाजवादी लोक भेल छला। हुनकर नाओं हीरा लाल छेलनि। हुनका सभ
गोटे नेताजी कहि आदर करै छेलनि। ओना ओ राजनीति सेहो करै छला। हुनका दूटा बेटा आ
दूटा बेटी रहनि। जेठका बेटाक नाओं अमित आ छोटकाक नाओं सुमीत। जेठकी बेटीक नाओं
लालति आ छोटकीक नाओं आरती रहनि। सभसँ जेठ बेटीए छेली जे ससुरवास छेली। ओइसँ छोट
दुनू बेटा आ सभसँ छोट आरती। अमितक बिआह भऽ गेल रहनि। हुनको कनियाँ बसै छेली।
एकटा बेटी आ दूटा बेटा छेलनि। जेठ बेटीए रहनि करीब दस बर्खक। आरती भतिजा-भतिजीकेँ बड़
मानै छेली। पढ़ैले जाइत तँ चौकपर सँ बिस्कुट-चकलेट नेने अबैत
आ भतिजा-भतिजीकेँ
दैत। अमित इण्टर पास कऽ गामेक स्कूलमे शिक्षक छला जखैनकि सुमीत भोपालमे
इंजीनियरिंगक पढ़ाइ पढ़ि रहल छला।
हीरा
लाल समाजवादी विचार धाराक बेकती छला से तँ पहिनहिओ कहने छी। हुनकर कहब छेलनि जे ‘बेटा आ बेटी
बरबरि।’ से नै
तँ दुनूकेँ बरबरि अधिकार भेटक चाही। मुदा बेटा सबहक विचार ओइसँ भिन्न, खास कऽ अमितक।
हुनकर कहब जे बेटीक बिआह भेला पछाति नैहरमे किछु नै। ओ मेहमान जकाँ नैहर आबए आ
दस-बीस दिन
रहि आपस सासुर चलि जाथि। नैहराक कोनो
बात-बेवहारमे
कोनो तरहेँ हस्तक्षेप नै करथि। छोट भाए सुमीत सेहो भैयाक बातकेँ समर्थन करैत।
मुदा अखनि ओ पढ़ाइ कऽ रहल अछि। तँए घर-परिवारसँ बेसी सरोकार नै रखैत। हुनका
समैपर रूपैआ भेट जान्हि मात्र एतबेसँ मतलब। अमितक पत्नी अमीतोसँ एक डेग आगू
हुनका ननदि सभ कनेको नै सोहाइ छेलनि। जखनि जेठकी ननदि लालति नैहरा अबै छेली तँ
अमितक पत्नी सिरहावाली कनकन करए लगै छेली। सार-सरहोजिक
बेवहारसँ लालतिक दुल्हा सासुर एनाइ-गेनाइ छोड़ि देने छेला। हीरा लालक छोटकी बेटी नमामे
पढ़ै छेली। आरती अपन पढ़ाइ करैत भौजाइक भानस-भातमे सेहो मदति
करै छेली। भतीजा-भतिजीकेँ
स्नान करौनाइ कपड़ा पहिरौनाइ, तेल-कुर देनाइ ई सभ काज आरतीए करै छेली। मुदा भौजाइ लेल
धनि सन।
आरती आ
सिरहावालीक बीच जखनि-तखनि रक्का-टोकी भऽ जाइ छल। आरतीक माए बेटीक पक्ष लइ छेली।
जखैनकि अमित पत्नीक पक्ष लइ छल। आरतीक माए पति हीरा लालसँ शिकाइत केली-
“सिरहावाली आरतीकेँ देखए नै चाहैए। जखनि-तखनि ओकरासँ कहा-सुनी कऽ लैत अछि।”
हीरा लाल
बेटाकेँ बजा कहलखिन-
“कनियाँकेँ समझा दियौ जे आरतीकेँ तंग नै
करए। ओकरा किछु कहए नै।”
तैपर अमित बाजल-
“सभ दोख आरतीक अछि। ओ ऐ सम्पतिकेँ अपन
बुझैए। भौजाइकेँ कोनो मोजरे ने दैत अछि। अहाँ आरतीकेँ बुझा दियौ जे ओ ऐठाम किछु
दिनक मेहमान मात्र छी। भौजाइसँ मुँह नै लगबए।”
अमितक बातसँ
हीरालालकेँ बड़ कष्ट भेलनि मुदा ओ बजला किछु नै। हिनकामे एकटा गुण छन्हि जे ओ
अपन बातसँ किनको संतुष्ट कऽ दइ छथिन। मुदा कमजोरी ई जे हुनकर दुनू बेटा हुनकासँ
सन्टुष्ट नै होइत रहनि।
सोम दिनक
घटना छी। अमित स्कूलक कातमे चाहक दोकानपर बैस चाह पीब रहल छल। तखने ओकर बेटी
गुड़िया आएल आ कहलक-
“पापा, मम्मी कनैए।”
अमित पुछलक-
“किअए?”
गुड़िया बाजल-
“आरती दीदी मारलकै हेन।”
ई बात सुनि अमितकेँ
तामसे टीक ठाढ़ भऽ गेल। चाह पीनाइ छोड़ि गाम दिस विदा भेल। गामपर आबि गोहालीमे
खोंसल हरबाही पेना लऽ अँगना गेल। आरती घर बहारै छेली। तखने ओही पेनासँ अनधुन मारए
लगल। ओंघरा-ओंघरा
कऽ मारलक। पीठ आ जाँघ दू दालि कऽ फूटि गेलै। आरतीक माए बदाम ओगरैले बाध गेल
छेली। कियो कहलकनि तँ दौगल अँगना एली। बेटीक हालति देखि कानए लगली। आरतीक
कपड़ामे लहू लगल रहए। माएकेँ देखिते आरती आरो जोर-जोरसँ कानए
लगली। आरतीक दशा देखि माए भरि पाँजमे पकड़ि बेटाकेँ अन्ट–सन्ट कहए लगली।
आरतीक कक्का देवनजी डाक्टर बजा इलाज करौलखिन। रातिमे आरती आ ओकर माए किछु नै
खेलक। कियो पुछैओले नै एलनि। भिनसरे आरतीक माए फूट्टे खेनाइ बनौलक। केते कहला
पछाति आरती दू-चारि
कौर खेलक आरतीक माए अपन बेटी संग भीने भानस करए लगली। जे देखि अमित बजए-
“ई छौड़ी, हमरा परिवारमे
भिनौज करा देलक। कहिया ई छौड़ी ऐ घरसँ जाएत से नै जानि।”
आरतीक माए किछु
नै बजए। दुनू माए-बेटीकेँ
सिरहावालीसँ बजा-भुक्की
बन्न भऽ गेल। हीरा लाल गाममे नै छला। पाटीक मीटिंगमे भाग लइले काठमाण्डू गेल छला।
ऐ घटनाक
पाँचम दिन भिनसरे हीरा लाल गाम एला। जखनि ओ अपना कोठरीमे झोरा रखि कपड़ा बदलैत
रहथि तखने आरतीक माए कानए लगली। माएकेँ कनैत देखि आरतीओ कानए लगली। पत्नी आ बेटीक
कानब सुनि हीरा लाल अकचका गेला। हुनका किछु फुड़ेबे ने करनि। भेलनि जे जेठकी
बेटी नै तँ छोटका बेटाकेँ नै तँ किछु भऽ गेल। साइत तँए दुनू माय-धी एना कनैए।
अमितकेँ हाक देलखिन। अमित अपना काठरीमे किछु लिखैत रहए। पिताक हाक सुनि अमित
ओतैसँ बाजल-
“की कहै छिऐ।”
हीरा लाल कहलकनि-
“एम्हर आउ तँ।”
अमित पिता लग
आबि ठाढ़ भेल। देखिते पिता पुछलखिन-
“दुनू गोटे एना किअए कनैए। की भेलै?”
अमित रूखाएल
बाजल-
“एकरे सभसँ पुछियौ ने, कि भेलैए।”
तैपर माए लग आबि
बजली-
“हमरा बेटीकेँ मारि कऽ सुताए देने रहए।
ओंघरा-आेंघरा
मारलक। जाँघ आ पीठ दू दालि कऽ फोरि देलक आ अखनि बजैए एकरे सभकेँ पुछियौ।”
ई कहि माए
आरतीक पीठ उघारि देखौलकनि। आ पुछलकनि-
“जाँघो देखाबी?”
हीरा लाल मुँहसँ
निकललनि-
“नै, हम सभ बूझि
गेलिऐ।”
लगले सुरे अमितसँ
पुछलखिन-
“किअए मारलिऐ आरतीकेँ? की केने रहए?”
बिच्चेमे
आरतीक माए बजली-
“हमरा बेटीकेँ अघमौगति कऽ मारलक। हम बदाम
ओगरैत रही। सुगिया हमरा कहए गेल। तँ हम दौगल एलौं। अँगनामे बेटीकेँ ओंघराएल
देखलौं। ओकर सलवार आ समीज लहूसँ भिजल रहए। देवन बौआ लाल डाक्टरकेँ बजा हमरा
बेटीकेँ दबाइ-बिरो
करौलक।”
तैपर अमित बाजल-
“एकर बेटी हमरा बहुकेँ मारलक से बड़ नीक।
छोट ननदि भऽ जेठ भौजाइपर हाथ उठौत। जेना हम हिजरा रहिऐ।”
बाजि अमित
ओतएसँ चलि गेल।
हीरा लालकेँ
बेटाक बेवहारसँ बड़ पीड़ा भेलनि। मुदा बलजा किछु नै। आरतीसँ पुछलखिन-
“की केने रही। किअए अमित मारलकौ?”
आरती-
“बाबू यौ, हमरा स्कूलमे
ओइ दिन सबेरे छुट्टी भऽ गेल रहए। गामपर एलौं तँ माए अँगनामे नै छल। हमरा बड़ भुख
लगल रहए। भनसा घर गेलिऐ तँ छुच्छे भात रहए। तीमन-तरकारी किछु ने
रहए। भौजी आ गुड़िया ओसारपर बैस खाइत रहए। हम भौजीसँ पुछलिऐ जे तीनम-तरकारी नै छै हम
कथी सेने खेबे। तैपर भौजी कहलक, नून-तेल सेने खा लिअ। हम कहलिऐ नून-तेल सेने नै
खाएब। तैपर भौजी कहलक, तहन घी-मलीदा केतएसँ एतै। हम कहलिऐ कनी दूध लऽ लइ छी आ ओही
सेने खा लेब। तैपर भौजी बाजलि कनीयेँ दूध छै चाहले रहए दियौ। फेर सोचलौं जे
कनीयेँ लऽ लेब। ओरिका लऽ कऽ अदहे ओरिका लिअ लगलौं आकि भौजी अँइठे हाथे आबि
ओरिका छीनए लगल। तैपर हम भौजीक हाथ झमारि देलिऐ। ओरिका महक सभटा दूध हरा गेल।
भौजी हाथ धोइ कऽ ओछाइनपर जा कानए लगल। हम खेबो ने केलौं। बरतन-बासन माजि-धोइ कऽ रखि
जखनि भनसा घर बहारै छेलौं आकि भैया आबि ठेंगा लऽ हमरा मारए लगल।”
आरतीक बात सभटा
सुनि हीरा लाल किछु नै बजला। ओना नहिए जलखै आ नहिए कलौ खेलनि। चुप-चाप अपन
दिनचर्यामे लगल रहला।
रातिमे
हीरा लाल अमितकेँ बजा कहलखिन-
“हमरा सभ बात मालूम भेल। ऐ समस्याक निदान
केना हएत?”
अमित-
“आरतीक बिआह भऽ जेतै ओ सासुर चलि जाएत
तखनि समस्याक निदान अपने भऽ जाएत। जाबे धरि ई छौड़ी एतए रहत, झंझट रहबे करत।”
हीरा लाल-
“अखनि आरती एस.एल.सी.ओ ने केलक हेन। उमेरो
अखनि सोल्हे बरख भेलै हेन। बिआहो केना करब। जखनि इण्टर पास कऽ जाएत आ उमेरो अठारह
बरख पूगि जेतै तखनि बिआह कऽ देबै।”
अमित बाजल-
“जानी अहाँ। हमरा कोन मतलब।”
हीरा लालकेँ
तामस उठि गेलनि बजला-
“जेठ भाय छिऐ अहाँ। एहेन बात बजैत कनिको
लाज नै होइए?”
बापक डाँट सुनि
अमित तैसमे आबि बाजल-
“अँइ, ई छौड़ी हमरा
बहुसँ सौतिनियाँ डाह रक्खत। जेठ भौजाइकेँ कनिको मोजर नै देत। एकरा चलते परिवारमे
दू ठाम भानस हुअए लगल। अहाँ उल्टे हमरा कहै छी। आरतीकेँ समझा दियौ राजवाली राज
लेती दाइ जेती छुच्छे।”
हीरा लाल कहलखिन-
“ठीक छै। जाबे धरि आरती पातोमे रहत हम सभ
भिन्ने भनसा बनाएब।”
अमित कहलकनि-
“ठीक छै। जे मन फुड़ए से करू।”
हीरा
लालक परिवारमे दू जगह भानस बनए लगल। सुमीत गरमी छुट्टीमे गाम आएल। कहियो माएक
बनौल खेनाइ खा लइ छल तँ कहियो भौजीक बनौल। सुमीत कहब रहै जे अखनि परिवारक विवादसँ
हम दूरे रहब। हमरा ऐ सभसँ कोनो लेनी-देनी नै।
अमितक
सार ललनजी काठमाण्डूमे इंजीनियर छथिन। ओ अपन परिवारक संग काठमाण्डूएमे रहै छथि।
दसमीमे गाम एलखिन तँ अमितोकेँ सपरिवार सिरहा अबैले मोबाइलपर कहलकनि। किएक तँ
बलि-भोग छल।
पंचमीकेँ
अमित अपन पत्नी आ धिया-पुताक संग सासुर पहूँचल। ओतए देखलक जे इंजीनियर साहैब अपन
माए-बाबू, दुनू छोट भाए आ
छोट बहिन लेल काठमाण्डूसँ कपड़ा नेने आएल रहथिन। अमित, अमितक पत्नी आ
धिया-पुताकेँ
सिरहा बजार लऽ जा कऽ मन-पसन कपड़ा कीनि देलखिन। सार-सरहोजि अमितकेँ
बहुत मानै छेलनि। इंजीनियर साहैब अपन छोट भाए-बहिनक बड़
खियाल रखै छेलखिन। अमित सोचए, इंजीनियर साहैब भाए-बहिनकेँ केते
मानै छथिन। हम तँ अपना भाएकेँ आइ धरि एक्को पाइ नै देने हएब आ बहिनकेँ तँ...।
फेर सोचए, हमरे बेवहारसँ
जेठका पाहुन पातो एनाइ-गेनाइ छोड़ि देलनि।
इंजीनियर साहैब
अमितकेँ कहलखिन-
“यौ पाहुन, दुनियाँमे किछु
ने छै। सभ गोटे आपसमे मिलि-जूलि कऽ प्रेमसँ रहू यएह पैघ बात भेल। की लऽ कऽ दुनियाँमे
एलौं आ की लऽ कऽ जाएब। जेतेक दिन जीबी हँसी-खुशीसँ जीबी।”
अमितपर सारक
बातक असरि भेल। अमितक पत्नी भौजाइक सुन्नर बात-बेवहार देखि
छगुन्तामे पड़ि गेली। किएक ने पड़िती। भौजाइ हुनका भोरे चाह बना पीबैत रहथिन।
जाबे धरि ओ नै खाइ छल ताबे भौजाइओ ने खाइ छेलनि। सिरहावाली सोचए, ईहो तँ हमर
भौजाइए छी। केतेक मान-दान करैए। मुदा हम तँ ननदि सभकेँ...।
एक दिनक
गप छी। चुल्हिपर लोहियामे दूध रहए। दूधमे तरहत्थी सन छालही पड़ल रहए। सिरहावाली
छालही देखि भौजाइसँ पुछलक-
“भौजी, कनी छालही ली?”
तैपर भौजी
मारड़िवाली बजली-
“अँइ यै दैया, की ई हिनकर घर
नै छियनि जे हमरासँ पुछै छथिन। ई सभ तँ घरक मेहमान छथिन। हिनका सभकेँ केतए
देखबनि। ई सभ जेतबे खेतहीन-पीतहीन ओतबे ने, कोनो घर नेने
पातो जेतहीन। सभ धन-बीत तँ हमरे सभले छोड़ने जेतहीन। जे मन होइ छन्हि से
खाथु।”
ई कहि मारड़िवाली
एकटा कटोरीमे सभटा छालही निकालि ननदिक हाथमे दऽ पुछलखिन-
“चिन्नीओ लेब।”
सिरहावाली-
“कनी दऽ दिअ।”
सिरहावालीकेँ
सासुरक सभटा बात मन पड़ि गेल। जे कनी दूध ननदि लिअए लगल। तँ ओरिका छिनए
लगलौं। तइले ननदि हमर हाथ झमारि देलनि। हम कानए लगलौं हमरा कानैत देखि गुड़ियाक
पापा आरतीकेँ अधमौगति कऽ मारलक। जेकर कारण आइ परिवारमे दू जगह भानस होइए। छि छि
केहेन छी हम। आरतीओ तँ किछुए दिनक मेहमान छी। इण्टरक परीक्षा मार्चमे हएत आ
अप्रीलमे बिआह भऽ जाएत। सासुर चलि जाएत। फेर ओकरा केतए देखब। ओ तँ जेतबे खाएत-पीअत ओढ़त-पहिरत ओतबे ने।
सभ धन-सम्पति
तँ हमरे सभले रहि जाएत। केते उच्छन्नरि दइ छिऐ ननदि सभकेँ। जेठकी ननदि-ननदोसि तँ
सासुरे एनाइ छोड़ि देलक। हम पापी छी...।
सिरहावालीक
आँखिसँ टप-टप नोर
खसए लगल। मारड़िवाली चिन्नी लऽ कऽ एली तँ ननदिक आँखिमे नोर देखलनि तँ पुछलखिन-
“की भेल दैया, किअए कनै छी।
हमरासँ कोनो घटी भऽ गेल की?”
सिरहावाली
कहलकनि-
“नै यै भौजी, अहाँसँ गलती नै
भेल। हमरेसँ गलती भऽ गेल अछि। वएह सभ मन पड़ल तँ आँखिमे नोर आबि गेल। आइ हमर
आँखि खूजि गेल।”
मारड़िवाली
बजली-
“देखियौ दैया, जेहने अपन माए-बाबू तेहने सासु-ससुर। जेहने अपन
भाए-बहिन
तेहने दिअर-ननदि।
अपन बेवहारसँ सभकेँ खुश राखी ऐसँ नीक बात और किछु नै। अहाँ अनकासँ नीक बेवहार करब
तँ लोक अहूँसँ नीक बेवहार करत।”
अमितपर
सार-सरहोजिक
बेवहारक असरि पड़ल। तेनाहिए सिरहोवालीपर भाए-भौजाइक बात-बेवहारसँ बड़
प्रभावित भेली। दुनू परानी विचार कऽ निश्चए केलनि।
दसमीक
विहान भने अमित अपन परिवारक संग साँझमे पातो पहूँचल। अमित माएकेँ पएर छूबि
गोर लगलक। सिरहोवाली सासुकेँ गोर लगलक। सिरहावाली अपन सभ समान घरमे रखि कपड़ा
बदलि भनसा घर गेली। आरती आ ओकर माए भनसाक ओरियानमे लगल छेली। माए तरकारी कटै
छेली आ आरती मसल्ला पीसै छेली। सिरहावाली आरतीक हाथ पकड़ि उठबैत कहलखिन-
“अहाँ मसल्ला पीसब छोड़ि पढ़ू गऽ, परीक्षा लगिचाएल
अछि। आइसँ सबहक भानस हमहीं करब। आब दू जगह खेनाइ नै बनत। गतली हमरे छल। अहाँ तँ
किछु दिनक मेहमान छी। बिआह पछाति अहाँकेँ केतए देखब।”
सिरहावालीक
आँखिसँ टप-टप नोर
गिरए लगल। भौजाइकेँ कनैत देखि आरतीओ कानए लगली। आरतीक माए दुनू गोटेक आँखिक नोर
पोछैत कहलखिन-
“पहुलका बातकेँ दुनू गोटे बिसरि जाउ।”
तैपर अमित
माएकेँ कहलकनि-
“माए, हमरासँ बड़का
गलती भऽ गेल छल। हमरा माफ कऽ दे।”
अमितो कानए
लगल। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर जाए लगलै। आरती भैयाकेँ कनैत देखि पएर पकड़ि कानए
लगल-
“नै भैया, हमरासँ गलती भेल
छल। हमरा माफ कऽ दिअ।”
बेटा-बेटी आ
पुतोहुकेँ कनैत देखि माएओ कानए लगली।
कनीकाल
पछाति हीरा लाल एलखिन। दुरेपरसँ आरतीकेँ हाक देलखिन। सिरहावाली पुछलखिन-
“की कहै छिऐ बाबूजी। आरती बुच्ची पढ़ै
छथिन।”
हीरा लाल आरतीक
माए लग जा बजल-
“ई मासु िलअ नीकसँ तीमन करू।”
आरतीक माए कहलखिन-
“गुड़िया माएकेँ दियौ। वएह सबहक भानस
करथिन।”
तैपर सिरहावाली
कहलखिन-
“हँ बाबूजी, आइसँ हमहीं सबहक
भानस-भात
करब। परिवारमे दूठाम भानस नै हएत।”
गप-सप्प सुनि अमितो
आबि बजल-
“हँ बाबूजी, आब सभ गोटे
अपसमे मिलि-जूलि
प्रेमसँ रहब। आरतीक परीक्षा लगिचाएल अछि। ओ अपन परीक्षाक तैयारी करत।”
“अच्छा, ठीक छै।” बजैत हीरा
लालकेँ मनमे भेलनि आइसँ भरि पेट खाएब।
¦
बाबाधाम
“बोल-बम बोल-बम। बोलबम-बोलबम” ई आवाज कमलीक
कानमे पड़ल तँ ओ घास काटब छोड़ि सड़क दिस तकलक। एकटा बसमे पीयर-लाल कपड़ा पहिरिने
लोक सभकेँ देखलक। बसक भीतर आ छतपर लोक सभ बैस कऽ बोलबम-बोलबमक नारा
लगवैत छल। बस तेजीसँ सड़कपर दौग रहल छल।
कमलीक खेत सड़कक कातेमे छल। ओ
खेतक आरिपर घास काटि रहल छलि। कमली सोचए लगली- कतेक लोक बाबा
धाम जाइत अछि मुदा हमर तँ भागे खराप अछि। कतेक दिनसँ विकलाक बापकेँ कहैत छी
मुदा ओ अछि जे धियाने ने दैत अछि।
कमली आ लखन दू
परानी। एकटा बेटा िवकला। विकला सातमे पढ़ैत। लखनक माए-बापक सत्तर अस्सी
बर्खक बूढ़। लखनकेँ पाँच बिघा खेत। एक जोड़ा बड़द आ एकटा महीसो। लखनकेँ कतौ जाइले
सोचए पड़ए। किएक तँ सत्तर बर्खक बूढ़ माए आ अस्सी बर्खक अथबल बापकेँ छोड़ि कतए
जाएत। तइपर सँ एक जोड़ा बरद आ महीसोकेँ देख-रेख। पाँच बिघा खेतमे लागल फसलक
ओगरवाही। असगरे कमलीसँ केना पार लागत। तैं कमलीक बाबाधामबला बातपर लखन धियान नै
दैत छल। लखन सोचए कमलीकेँ गामक लाेक संगे बाबा धाम भेज देव तँ भानस के करत? धास के
आनत। असगरे हम की सभ करब। बेटा विकला पढ़ते अछि। ओकरा स्कूलसँ छुट्टी होइत अछि
तँ ओ टीशन पढ़ै लए चलि जाइत अछि। बिना टीशन पढ़ने केना परीक्षा पास करत। सरकारी
स्कूलमे की आब पढ़ाइ होइत अछि। मास्टर सभ बैस कऽ गप लड़बैत रहैत अछि। चटिया
सभ कोठरीमे बैस कऽ गप करैए अथवा लड़ाइ-झगड़ा। मास्टर सबहक लेल धनि सन। लखन अपन खेती गृहस्थीक
संगे माए-बापकेँ
सेवा नीकसँ करैत अछि। माए तँ थोड़े थेहगरो छथिन मुदा बापकेँ उठबो-बैसबोमे दिक्कते
छन्हि। हुनका पैखाना-पैशाव लखनेकेँ कराबए पड़ैत अछि। पौरुकाँसाल फागुनमे लखनक
पिताजीकेँ लकबा मारि देलकनि। मिश्रा पॉली क्लिनीक दरभंगामे इलाज करेलासँ जान
तँ बचि गेलनि मुदा
अथबल भऽ गेला। भगवान लखन जकाॅँ बेटा सभकेँ देथुन। ओ तन मन आ धनसँ माए-बापकेँ सेवा
करैत अछि।
लखनक एकटा संगी
अछि। नाम छी सुकन। सुकन लखनसँ बेसी धनीक अछि। दूटा बेटा अछि सुकनकेँ। दुनू बेटा
सतमा तक पढ़ि दिल्लीमे नौकरी करैत अछि। मासे-मासे बेटा सबहक
भेजलाहा रूपैआ सुकनकेँ भेट जाइत अछि। सुकनोक माए-बाबू जीबिते छथिन।
सुकनक माए कम देखैत छथिन। हुनका रातिकेँ सुझबे नै करैत छन्हि। एक दिन सुकनक
माए रातिकेँ ओसारपर सँ गिर गेलखिन हुनका पएरमे मोच पड़ि गेलन्हि। लखनकेँ पता
चलल तँ ओ सुकनक माएक जिज्ञासा करैले गेल। सुकनक माए लखनकेँ अपने बेटा जकाँ मानै
छेलखिन।
लखन सुकनक माएसँ पुछलक-
“माए केना कऽ ओसारपर सँ गिर
गेले।”
सुकनक माए बाजलि-
“बौआ, आब हमरा सुझै
नै अछि। राति कऽ तँ साफे नै देखैत छी। बेचू बाबूक छोटका कनटीरबा दरभंगामे डाकडरी
पढ़ैत अछि ओ फगुआमे गाम आएल छल हुनका कहलिऐ तँ ओ हमर दुनू आँखि देखलक आ कहलक जे
दुनू आँखिमे मोतियाविन भऽ गेलौहेँ। कहलक जे ऑपरेशन करेलासँ ठीक भऽ जाएत आ नीक
जहाति सुझए लगत।”
हम सुकनकेँ कहलिऐ तँ ओ कहलक जे
अखनि रूपैआ नै अछि। रूपैआ हएत तँ लहान लऽ जा कऽ ऑपरेशन करा अनबै। मुदा फागुनसँ
भादो आबि गेल, ऑपरेशन
नै करा आनलक। सुनै छिऐ चौड़चनक परात दुनू परानी बाबाधाम जएत।
सुकनक बाबूजी सत्तरि बर्खक छथिन।
ओ नामी गिरहत छला। तरकारी उपजा कऽ बेचै छला। तरकारी बेचि कऽ पाँच बिगहा खेत
कीनला। आब उमेर बेसी भेलासँ काज करै जोकर नै रहला। हुनका चाह पीबाक आदति भऽ गेल छन्हि।
भोर आ साँझ चाह हेबाके ताकी। एकटा आदति ओरो छन्हि, खैनी खाइक। सुकन
अपनाबाबू जीकेँ चाह आ खैनी नै जुमाबैत अछि। केहैत छन्हि- कैंसर भऽ जेतह।
मुदा अपना पान-पराग, सिगरेट, दारू सबहक सेवन
करैत अछि।
एक दिन लखन
सुकनक दलानक पाछाँसँ जाइत छल तँ सुकनक जोर-जोरसँ बाजब सुनि कऽ ठाढ़ भऽ गेल। सुकनक
दलानक पाछाँसँ सड़क गुरजै छै। सड़केपर सँ लखन सुनए लगल। सुकन बजै छल-
“हरदम चाह-चाह रटैत रहैत छहक। किछु बुझबो करै छहक। चीनी चालीस
टके किलो भऽ गेल। चाहपत्ती जे बारह टाकामे भेटै छेलै आब बीस टाकामे भेटै छै। पानिबला
दुध पन्द्रह रूपैये गिलास। के जुमत चाहमे। आ तोरा भोर-साँझ चाह हेबाके
चाही। हम नै सकब-तोरा
चाह जुमबैमे।”
बूढ़ा किछु नै बजैत रहथि।
लखनकेँ कोनो जरूरी काज रहै तँए ओ आगाँ बढ़ि गेल।
सुकन अपना
पड़ोसिया ओइठाम माए-बाबूक भोजनक जोगार लगा कऽ चौड़चनक विहाने दुनू परानी
बाबाधाम विदा भऽ गेल। सुलतानगंजमे गंगाजल भरि कामौर लऽ बाबाधाम पहुँचल। एकादशी
दिन बाबाकेँ जल चढ़ा वासकीनाथ, तारापीठ होइत ओतएसँ कलकत्ता चलि गेल। एमहर एे बीच
सुकनक बाबूजी बेमार पड़ि गेलखिन। हुनका बोखार लगि गेलनि। लखनकेँ समाद भेटल जे
सुकनक बाबूजी दुखित छथिन। लखन ओइठाम जा डाक्टरकेँ बजा कऽ अपना दिससँ खर्च कऽ
बूढ़ाक इलाज करौलक। जाबे धरि सुकन दुनू परानी बाबाधमसँ आपस नै आएल ताबे धरि लखन
दिनमे एकबेर सुकनक माए-बाबूक भेँट करबाक लेल निश्चित जाए। दुनू गोटे लेल अपना दिससँ
चाह आ खैनीओक जोगार लखन कऽ देने छल।
सुकन जितिया
पावनिसँ तीन दिन पहिने गाम आएल। सुकनकेँ बाबाधाम आ कलकत्तासँ आपस अएलाक दोसर दिन
भिनसरे चौकपर चाहक दोकानपर लखनक भेँट सुकनसँ भऽ गेल। सुकन चाहक दोकानपर बैस
कलकत्ताक वर्णन करैत छल। लखन सुकनसँ रास्ता-पेराक समाचार
पुछलक। तँ सुकन कहलक-
“रौ दोस, बाबाक कृपासँ सभ किछु नीके रहलौ। दुनू परानी कलकत्तो
घुमिये लेलियो। तोँ खाली बैंकमे रूपैआ राख ने। तोँ की बुझबेँ धरम-करम। तोरा जँ
रूपैआक आमदनी हेतौ तँ तोँ खेत भरना लेमे नै तँ बैंकमे रखमे। हम दुनू परानी दस
बर्खसँ कामोर लऽ कऽ बाबाधाम जाइत छी।”
सुकनक बात लखनकेँ नै सोहाएल। ओ
सोचलक जे अखनि एकरा जवाब देनाइ ठीक नै हएत। बाजल-
“रौ दोस, से तँ ठीके कहै छी। हम धरम-करम की बूझब।
मुदा हम अपन माए-बापक
सेवा तन-मन-धनसँ करै छी।
हमरा लेल तँ बाबाधाम हमर माइए-बाबू छथि। हमरा लेल तँ हमर बाबूजी साक्षात् महादेव आ
माए पार्वती छथि। हुनके दुनू गोटेकेँ सेवा करब बाबाधाम कामोर लऽ कऽ जाएबसँ बेसी
नीक बुझै छी। केकरो अधलाहो नै सोचैत छी आ ने करै छी। तोँ कह जे माइक मोतियाविन्दक
ऑपरेशनक लेल तोरा रूपैआ नै छौ। बाबूजीक चाह पियाबैक लेल तोरा रूपैआ नै छौ। मुदा
बाबाधाम जेबाक लेल रूपैआ छौ। कलकत्ता घुमैक लेल रूपैआ छौ। दारू पीबैले रूपैआ छौ।
माएकेँ सुझै नै छौ। रातिमे ओसारापर सँ खसलखिन तँ पएरमे मोच पड़ि गेलनि। जँ तोँ
अपन माइक मोितयाविन्दक ऑपरेशन करा आनने रहितेँ तँ ओ ओसारापर सँ नै खसितथिन।
अपने दुनू परानी बाबाधाम गेलेँ मुदा माए-बाबूक भोजनक जोगार पड़ाेसिया ओतए लगा कऽ
गेलेँ। तोहर बाबूजी बेमार पड़ि गेलखुन तँ डाक्टर बजा हम इलाज करौलियनि। तोँ
बूढ़ माए-बाबूकेँ
एकोटा टाका नै देने गेल रहेँ। अपना दुनू परानी बापक अरजलहा सम्पत्ति आ बेटा सभक
कमाइसँ एश-मौज करै
छेँ। मुदा माए-बाप एक
कप चाहक लेल काहि कटै छौ। धूर बूड़ि तोँ की बजमेँ।”
लखनक बात सुनि
सुकन गुम्म पड़ि गेल। ओकरा कोनो जवाबे नै फुड़ाएल। ओकरा भेल जेना बीच बाजारमे कियो
नंगट कऽ देलक।
¦
चौड़चनक दही
आइसँ चौड़चन पावनि चारि दिन
अछि। चारिम दिन तँ पावनि हेबे करत। तँए ओइ दिन दही नै पाैड़ल जाएत। सोमनी जन्मअष्टमीसँ
पहिनहि गुरकी हटिया बनगामासँ तीनटा छाँछी आ दूटा मटकुरी किन कऽ अनने छलि।
सोचलक जे पहिने कीनलासँ बासन सस्ता हएत मुदा से नै भेल। पाँचटा माटिक बासन पच्चीस
टाकामे भेल। अपना तँ ने महिंसे छल आ ने गाइए। सोमनी सोचलक अपना गाए-महिंस नै अछि
तँ की हेतै सौंसे गाममे तँ गाइए-महिंस अछि। की हमरा दस गिलास दूध नै हएत। जौं दूओ-दू गिलास कऽ कए
पाँच गोटे दूध दऽ देलक तैयो पाँचटा बासनमे दही भऽ जाएत। मरड़ लेल खीर रान्हैले
भजैत आेइठामसँ एक्को गिलास दूध लऽ आनव केनाहिओ कऽ पावनि कऽ लेब।
सोमनी आ मंगल दू
परानी। मंगल दिल्लीमे दालि मिलमे नौकरी करैत। सोमनी गाममे खेती-वाड़ीक काज करति।
सोमनी-मंगलक
परिवारमे पाँच गोटे छल। सोमनी, मंगल, बेटा राधे आ बेटी फूलिया, गुलबिया। पाँचो परानीक नाओंपर सोमनी
पाँचटा बासनमे दही पाैड़ चौठी चाँद महराजकेँ हाथ उठबैत छलि। सोमनीकेँ एक बीघा खेत
छल। एकटा बरद रखने छल। गामेमे बितबासँ हरक भाँज लगौने रहए। नूनू बाबूक दस कट्ठा
खेतो बटाइ करैत छलि। अपन खेतीक बाद हर बेचिओ लैत छलि। जइसँ किछु रूपैआ सेहो भऽ
जाइत छेलै। मंगल तँ दिल्लीएमे कमाइत छल तँए बितबा सोमनीओक खेतमे हर जोति दैत
छल। बितबाकेँ अपन डेढ़ बीघा खेत छल आ एक बीघा बटाइ करैत छल। तँइ बितबा सेामनीओक
खेत जोति दैत छल। बितबाकेँ हर जोतैक बदलामे सोमनी बितबाकेँ खेत रौपि दैत छलि।
दुनू गोटेमे मिलानी खुब रहए।
काल्हि चौड़चन
छी मुदा आइ साँझ धरि सोमनीकेँ कियो एक्को गिलास दूध नै देलक। जे ओ कोनो बासनमे
दैत। ओकर मन घोर-घोर भऽ
गेल। ओ बड़ खौझा गेलि। अपना आंगनमे खौंझाइत बजलि-
“हमर बेगरता लोककेँ नै हेतै। जँ
गाममे रहब तँ आइ ने काल्हि हमरो बेगरता लोककेँ पड़बे करतै। तहिया मन पाड़ि
दैबनि।” माएकेँ
खौंझाइत देखि बेटा राधे बाजल-
“माए गै, चुनचुन बाबा जे मरल रहथिन तँ हुनकर भोजमे देखलिऐ
पोडरक दही पाैड़ने। चौकोपर दैखै छीऐ जइ चाहबलाकेँ दूध सधि जाइए तँ पाउडरेकेँ
घोड़ि कऽ चाह बनबैत अछि। कह ने तँ चौकपर सँ आधा किलो पोडर आनि दइ छिओ। ओकरा
खूब कऽ औंट लिहेँ आ बासन सभमे दही पाैड़ लिहेँ।”
बेटाक बात सुनि
सोमनी बाजलि-
“पोडरबला दूधक दहीसँ पावनि केना हएत।”
राधे बाजल-
“जँ गाए, महिंसक दूध नै भेटलौ तँ की करबीही। पोडर तँ गाइए
महिंसिक दूधकेँ बनैत अछि।”
सोमनी गुन-धुन करैत बजली-
“ठीक छै। जँ चौठी चाँद महराज अपना गाए-महिंस नै देने
छथिन तँ पोडरेक दूधसँ पावनि करब। जो भुटकुनक दोकानसँ आसेर नीमनका पाेडर नेने आ।
आ हे दू टाकाक जोरनले दहीओ लए लिहेँ।”
राधे चौकपर विदा भेल। ओतएसँ
पोडरबला दूध नेने आएल। ओइ दूधकेँ औट दही पौड़लक।
आइ चौड़चन छी।
भोरे सोमनी राधेकेँ लोटा दऽ कऽ बितबा आेइठाम दूध आनेले पठौलक। बितबा आइ बैसले अछि
किएक तँ पावनि छीऐ। राधेकेँ देखिते बाजल-
“लोटा रखि दही दूध खीर रन्हैले हम तोरा माएकेँ गछने
छेलिओ मुदा अखनि नै हेतौ। साँझमे लऽ जइहेँ।”
साँझखन जखनि राधे दूध अनैले गेल। बितबा
चाहबला गिलाससँ एक गिलास दूध देलक। दूध देखि सोमनी दुखी भऽ गेलि। सोचलक जे
एतबे दूधसँ खीर केना रान्हल जाएत। मुदा कोनो उपाए नै। तँए ओही दूधमे पानि मिला
खीर रान्हलक।
सोमनी चौठी चाँद महराजकेँ हाथ
उठबैत कहलक-
“हे चौठी चाँद महराज जँ हमरा दरबज्जापर एकटा नीक
लगहरि गाए भऽ जाएत तँ अगिला साल एक छाँछी दही आओर देब।”
राति नअ बजे दिल्लीसँ
मंगलक फोन आएल। घरेक बगलमे एक गोटे मोबाइल रखने अछि। ओकरे मोबाइलपर सोमनीकेँ फोन
अाएल। सोमनी फोनपर मंगलसँ गप केलक। कुशल-समाचारक बाद मंगल कहलक-
“आइ चौड़चन पावनि छी, अहाँसब भरि मोन
खीर, पुरी, दही खेने हएब।”
सोमनी उदास होइत बजली-
“की भरि मन खएब, दही पौड़ैले कियो
एक्को फुच्ची दूध नै देलक। पोडरक दही लए कऽ पावनि केलौं गऽ मरड़क खीर रान्हैले
भजैत एक्के फुच्ची दूध देलक। एक फुच्ची दूधसँ केहेन खीर हएत।”
मंगल कहलक-
“अहाँ मोन जुनि छोट करू, हम फगुआमे गाम
अबै छी तँ एकटा नीक लगहरि गाए कीनि कऽ आनि देव। दूध खेबो करब आ बेचबो करब। दूटा
पाइ हएत तँ नूनो-तेल
चलत। बेटी सभ घास काटि-काटि आनि देत।”
सोमनीक मन खुश भऽ गेल।
फगुआमे मंगल गाम
आएल तँ सोमनीकेँ गाए कीनि देलक। गाए अध किलौआ बार्ली डिब्बासँ छह डिब्बा भोर
आ चारि डिब्बा दुपहर लगैत छल। जाबे धरि मंगल गाममे रहल ताबे ओ अपने गाए दुहैत। जखनि मंगल दिल्ली
चलि गेल तँ सोमनीए गाए दुहए लगली। भोरका दूध बेचि लइ छेली आ दुपहरका दूध परिवारेमे
खाइत। बेटी फुलिया आ गुलबिया घास आनि-आनि कऽ खुअबै। एक दिन फुलिया
लगमावालीक खेतक आरिपर कनी घास काटि लेलक। तइले लगमावाली फुलिया आ ओकर माए
सोमनीकेँ बिखनि-बिखनि
कऽ गरियौलक। सोमनी फुलियाकेँ मारबो केलक आ लगमावालीसँ गलतीओ मानलक।
समए बितैत देरी नै लगैत छै। आइ
कुसी अमवसिया छी। पाँचम दिन चौड़चन पावनि हएत। काल्हिसँ दही पाैड़ल जाएत।
सोमनीक दरबज्जापर एमकी लगहरि गाए चौठीचान महराज देने छथिन। सोमनी सोचलक जे एम्की
सभ बासनमे नीक जहाँति दही पाैड़ब। ओकरा पाैरुकाँ सालक सभ गप्प मन रहए जे कियो
एक्को िगलास दूध नै देलक तँ पोडरक दही
लए कऽ पावनि केलौं। मने-मन विचारलक जे हमहूँ केकरो दूध नै देबै।
आइसँ चौड़चनक
दही पाैड़ल जाएत। भोरे मुसबा लोटा नेने सोमनी ऐठाम दूध लइ लए आएल। राधे कहलक-
“माए गै, पौरुकाँ साल
अपना कियो एक्को गिलास दूध नै देने रहौ तँइ केकरो दूध नै दे।”
सोमनी सोचलक जँ सिंग्हेसर बाबा
लगहरि गाए देने छथि। तँ पावनि नाओंपर सभकेँ किछु ने किछु दूध देबे करब। जत्ते
गोटे सोमनी ऐठाम दूध ले
आएल सोमनी सभकेँ दूध दऽ विदा केलक। ओकर अपन छओटा बासन लए मात्र दू गिलास दूध
बँचल। ओहो काल्हि पावनि छिऐ तँ आइ दुपहरक। सोमनी ओही दू गिलास दूधकेँ छओ
वासनमे दही पाैड़लक।
आइ
चौड़चन छी भोरेसँ लोक सभ लोटा लए लए सोमनी ऐठाम दूध ले पहुँचल। लगमावालीक बेटी दुखनी सेहो अएल। फूलिया
सोमनीकेँ कहलक-
“माए गै, दुखनीकेँ दूध नै
दहीन। ओकर माए कनिए घासले गिरिऔने रहौ।”
सोमनी बाजलि-
“पावनिले सभकेँ दूध देबै। गारि
देलक तँ की भेल एकठाम रहलासँ तँ आहिना लड़ाइ-झगर होइत छै तँ
कि ओइ बातकेँ जिनगी भरि मन रखने रहब ओइसँ की हएत। अनेरे टेंसन रहत।”
सेामनी भोरका सभटा दूध लोककेँ दऽ
देलक। ओइ दूधक केकरोसँ पाइओ नै लेलक। दुपहरका दूध दूहि कऽ एक गिलास दूध भजैत वितबाकेँ
आ एक गिलास मालिक नूनू बाबू आेइठाम पठौलक। एक गिलास अपने रखलक। साँझमे जखनि
मरड़ लए सोमनी खीर रान्हैले बैसली तखने बेरमावाली आबि गेलि। ओ कहऽ लगली-
“यै दाइ, हमरा तँ खीर
रान्हैले दूधे ने भेल। जितबा अखुन्का नाओं कहने रहए। मुदा जखनि बेटाकेँ दूधले
पठौलिऐ तँ नै देलक। आब कथी लऽ कऽ मरड़क खीर रान्हब?”
सोमनी अपनाले जे दूध रखने रहए आेइमेसँ
अधा दूध बेरमावालीकेँ देलक। साँझमे सोमनी चौठीचाँद महराजकेँ हाथ उठबैत कहली-
“हे चौठीचाँद
महराज, हमरा
दरबज्जापर अहिना लगहरि गाए देने रहू तँ हम सभकेँ पावनि लए दूध दैत रहब।” ¦
जाति-पाति
“यौ नूनू भाय, धानक खेतमे तँ
नम्हर-नम्हर
दरारि फाटि गेल। रोप सभ पिअर भऽ भऽ गेल। जँ छ-सात दिन आरो
बरखा नै भेल तँ बुझू जे सभटा कएल-धएल पानिमे चलि जाएत।” चंचल कहलखिन।
“जएत नै चलि गेल। आब जे बरखा हेबे करत
तैयो कि सोलह आना धान थोड़े हएत। जँ दस दिन बरखा नै भेल तँ बुझू गेल भैंस पानिमे...। हाथो तरक आ
लातो तरक समापत।” नूनूजी
चंचलकेँ कहलखिन।
गप-सप्पकमे चंचल
बजला-
“हे भाय, कोनो तरहेँ बिहुल
नदीकेँ बान्हू नै तँ सभटा रोप जरि जाएत। भयंकर रौदीक लक्षण बुझहा रहल अछि। यौ
आइ-काल्हि
आेस केते गिरै छै?”
तैपर नूनूजी
कहलखिन-
“यौ भाय, बिहुलकेँ बान्हब
आब असान नै रहि गेल। दू लाखसँ बेसीए खर्च हएत। तखनि बान्ह बान्हल जा सकत। एतबे नै, पनिछेकि बेरमे
कम-सँ-कम दू सएक
हँसेरी चाही जे चेका आ बालुसँ भरल सिमेंटक बोरा उगहत। दू चारि गोटेकेँ लौकही पठा
नहरिक पानिकेँ फाटक गिरा बन्न कराबए पड़त तखने हएत।”
चंचलजी बजला-
“यौ भाय, अपने जँ मनमे
ठानि लेबै तँ बान्ह हेबे करत। परुकौं साल अहींक जोरपर बान्ह भेल। जइसँ धानक
रोपनि भेल।”
नूनूजी अपन
बड़ाइ सुनि उत्तर देलखिन-
“से तँ हम पाँच बेर ऐ नदीकेँ बन्हने छी।
ठीक छै, परसू
सखुआ परतीपर भिनसरे आठ बजे लोक सबहक बैसार करै छी। जँ सबहक विचार भऽ जाएत तँ
परसूए हाथ लगा देब।”
रबि दिन
आठ बजे भिनसरे सखुआ परतीपर बैसक भेल। पाँच गामक किसान सभ बैसल। सबहक विचार भेल, आइए बान्हमे
हाथ लगा देल जाए। जेते देरी करब ओते रोपकेँ नोकसान हएत। मुदा रूपैआ तसलैमे तँ समए
लगत। टेकटर आ जेसीबीबला तँ बिनु अगुरवार पाइए लेने औत नै। सभ गोटे नूनूजी सँ एक
लाख टाका अपना दिससँ दऽ बान्हमे हाथ लगा दइले आग्रह करैत कहलकनि-
“जखनि रूपैआ तसील भऽ औत तँ अहाँकेँ आपस
कऽ देल जाएत।”
सएह भेल नूनूजी
अपन पाइ लगा काज शुरू करैले तैयार भऽ गेलखिन। काज शुरू भेल। बान्ह बान्हल गेल।
सबहक खेतमे पानि गेल। पिअर भेलहा रोप सभ पानि पबिते हरिआ गेल। सभ गोटे
नूनूजीकेँ जश देलकनि। आपसमे रूपैआ तसील नूनूजीकेँ आपस कऽ दइ गेल।
गामक
मालिक दूर्गा जीक बेटा नूनूजी। लगधग पचास बीघा खेतक मालिक। जमानाक ग्रेजुएट।
परोपट्टामे लोकप्रिय लोक। केकरो बेटीक बिआहमे नूनूजी बिनु बजौलो पहूँच एते अबस्स
पुछै छथिन जे कोनो दिक्कतदारी तँ ने अछि। जँ कियो बिमार पड़ैए तहूमे नूनूजी
सलाह दइ छथिन जे नीकसँ इलाज होइक चाही। जँ पाइ-कौड़ीक अभाव रहल
तँ मदति सेहो करै छथिन।
तेसर
सालक गप छी। बिन्दे साहक बेटीक बिआह मदना गामक तेजी साहक बेटासँ ठीक भेल रहए।
दू लाख टाका, एकटा
पल्सर मोटर साइकिल आ दू भरि सोनपर बात पक्का भेल छल। लड़िका पंचायत शिक्षक
छथिन। नौकरी केनिहार लड़िका सबहक भौउ तँ अनेरे बढ़ल रहैए। जखैनकि लड़िका
भैयारीमे असगरे आ पाँच बीघा खेतो। तेजी साह एक नम्मरक लोभी। बिन्दे साह साधारण
किसान। एकदम भोला-भला
बेकती। हुनकर एकटा बेटा कलकत्तामे टेकसी ड्राइभर, दोसर लड़का दिल्लीमे
बिस्कुट फैक्ट्रीमे काज करैत। लड़िकाबलासँ गप भेल छेलै जे मोटर साइकिल आ एक भरि
सोन दुरागमनमे देब। बिन्दे साह बिआहक सभ ओरियान कऽ नेने रहए। सर-कुटुम सभकेँ नौत-पिहानी पठा
देने रहए। लड़िकाबलाकेँ दू लाख टाका सेहो गनि आएल रहए। बिआहक पाँच दिन पहिने
भिनसर भने मदनासँ फोन आएल जे गाड़ी आ दू भरि सोनक दाम हमरा काल्हि पठा देब तँ
बिआह हएत नै तँ नै हएत। फोनपर कहल गेल, दोसर गामबला हमरा पाँच लाख दइले तैयार
अछि। ऐ बातपर बिन्दे साह झमान भऽ गेला। केतेक जोगारसँ तँ दू लाख टाका मदना
पठौने रहथि। आइ भरिए दिनमे केतएसँ औत। बिन्दे साहक जाति बनवाली साहु लगानी-भिरानीक काज
करैए। हुनके लग जा बिन्दे साह अपन सभ गप कहैत कहलखिन जे एक लाख टाका ताबे सम्हारि
दिअ।
बनवाली साहु
कहलकनि-
“टाका तँ जेते लेब हम तेते देब। मुदा बिनु
जेबर लेने आकि जमीन लिखेने नै देब। एक लाख देब तँ दू लाखक जेबर रखब। जमीनो लिखाएब
तँ दू लाखक आ लिखाइमे जे खरच हएत से अहींकेँ दिअए पड़त।”
बिन्दे साहक
घरमे जेबर नै छेलनि। जमीन लिखाइमे पचीस हजारसँ ऊपरेक खर्च। गुनधुन करैत घर आपस आबि
गेला। मनमे भेलनि जे एक बेर नूनूजी सँ भेँट कऽ सभ बात कहियनि।
सएह भेल, नूनूजी ऐठाम जा
बिन्दे साह नूनूजीकेँ सभ बात कहलकनि। नूनूजी कहलखिन-
“हौ लड़िकाबला तँ नम्हर चुतिया बुझहा
रहल छह। हमरा विचारे तँ ओकरा ओइठाम कुटुमैती नै करह। मुदा बिआहक सभ ओरियान भऽ
गेल छह। काडो बाँटि देने छहक। कहअ केतेक टाकाक बेगरता छह।”
बिन्दे साह
बजला-
“एक लाख टाका ब्यौंत कऽ दियौ।”
नूनूजी मुड़ी
डोलबैत बजला-
“ओते तँ घरमे नै अछि, बैंकसँ निकालए
पड़त। एना करह, टाका लऽ
कऽ जेकरा मदना पठेबहक तेकरा हमरा संग लगा दैह। हम फुलपरास इलाहावाद बैंकसँ टाका निकालि
ओकरा दऽ देबै।”
बिन्दे साह
खुशीसँ बजला-
“बड़ सुन्नर गप कहलिऐ। आइए मदनाबलाक पाइ
चलि जाएत।”
सएह भेल। बिन्दे
साहक बेटा नूनूजी सँ पाइ लऽ मदनाबलाकेँ दऽ आएल। बड़ धूम-धामसँ बिआह
भेल। नूनूजी अपनेसँ मुस्ताइज भऽ बरियाती सभकेँ भोजन करौलनि।
दू महिना
पछाति बिन्दे साह जमीन बेचि नूनूजीक रूपैआ आपस केलनि। पाँच रूपैए सैंकर सूदि
जोड़ि नूनूजीकेँ दिअए लगला तँ कहलकनि-
“ई की दइ छहक। हम तोरा सूदि कहि तँ नै
देने रहिअ। हमर टाका बैंकमे पड़ल छल। तोरा बेटीक बिअाहमे काज आएल। हमरा लेल ऐसँ
पैघ आैर कि हएत।”
तैपर बिन्दे
साह निहोरा करैत कहलकनि-
“कम-सँ-कम बैंकोक सूदि
तँ लऽ लिअ।”
नूनूजी-
“तोहर बेटी हमर बेटी नै छी की?”
बिन्दे साह-
“अहाँक उपकार जिनगी भरि नै बिसरब।”
परुकाँ
बैसाखमे रूपा मण्डलक बेटाकेँ साँप काटि लेलक। पूरा गाम हल्ला भऽ गेल। नूनूजी
रूपाक घरपर गेलखिन तँ देखलनि जे झार-फूक कऽ चलि रहल छेलै। नूनूजी ई खेला-बेला देखिते
रूपाकेँ कहलखिन-
“ऐ सभ अन्धबिसवासमे नै पड़ह। जल्दी
डाक्टर रामानन्द बाबूक लग िनर्मली लऽ जा।”
रूपा मण्डल
कहलकनि-
“मािलक हाथपर एक्कोटा छुद्दी नै अछि।”
तैपर नूनूजी
कहलखिन-
“केकरा मोटर साइकिलसँ ओतए पहुँचह हम
पाछूसँ पाइ नेने अबै छिअ।”
रूपा सुनीलक
मोटर साइकिलपर बेटाकेँ लऽ रामानन्द बाबू लग पहुँचल। रोगीकेँ देखि डाक्टर कहलकनि-
“अबैमे तँ बड़ देरी भऽ गेलह। जल्दी दस
हजार जमा करह। इलाज शुरू करब।”
रूपा कहलकनि-
“डाक्टर साहैब, अहाँ दबाइ चालू
कऽ दियौ। नूनूजी पाइ लऽ कऽ जैघड़ी ने पहुँचला।”
नूनूजी
नाओं सुनि डाक्टर साहैब इलाज चालू कऽ देलखिन। नूनूजी सँ नीक जान-पहिचान छन्हि।
दसे मिनट पछाति नूनूजी अपना मोटर साइकिलसँ पहुँचला। बारह घंटा धरि इलाज चलला
पछाति रोगी ठीक भेल। डाक्टर साहैब कहलखिन-
“आब ठीक छह रोगी। लऽ जा सकै छह।”
रूपा दुनू बापूत
नूनू जीक पएर पकड़ि कानए लगल। नूनूजी डाक्टर साहैबकेँ पुछलखिन-
“अपनेक केते चार्ज भेल?”
डाक्टर साहैब
बारह हजार कहलखिन। एक हजार छोड़बैत एगाहर हजार देलखिन आ कहलखिन-
“रूपा मण्डल बड़ गरीब अछि। एक हजार
छोड़ि दियौ।”
डाक्टर साहैब
मानि गेलखिन। ओतएसँ सभ विदा भेला।
छह मास पछाति
रूपा मण्डल नूनूजीक रूपैआ आपस केलकनि। नूनूजी हुनकोसँ एक्को पाइ सूदि नै लेलखिन।
एमकी
माघमे गोलबाक सूगर चनेसर कामतक अल्लू कोड़ि देने रहए। तइले चनेसर गोलबाकेँ दस-पनरह लाठी
मारलक। गोलबाकेँ कपार फूटि गेल। गामक किछु लोक गोलबाकेँ सिखा-पढ़ा चनेसरपर
मोकदमा करा देलक। चनेसरपर हरिजन एक्ट लगि गेल। आब तँ चनेसरकेँ प्रलय भऽ गेल।
पुलीस पकड़ैले रेड करए लगलै। एक राति चनेसर नूनूजी लग आबि कानैत कहलकनि-
“सरकार, अहाँक गप गोलबा
मानि जाएत। किएक तँ अहीं जमीनमे ओ सभ बसल अछि। हमरा गोलबासँ सोलह करा दिअ।
अपने जे कहब से मानब।”
नूनूजी कहलखिन-
“अच्छा, ठीक छै। हम
गोलबाकेँ बजा गप करै छी। तूँ चिन्ता नै करह।”
भिनसरे नूनूजी
गोलबाकेँ बजा सभ बात बुझहा कऽ कहलखिन-
“केस-फौदारीसँ किछु
नै भेटतह। तोरा हम चनेसरसँ दबाइक दाम आ केसक खर्च दिया दइ छिअह। दुनू गोटे सोलह
कऽ लैह।”
गोलबा बाजल-
“मालिक, हम सभ अहीं
जमीनमे बसल छी। अहाँ जे कहब हम सभ सहए करबै।”
नूनूजी चनेसरकेँ
बजा दुनू गोटेमे मिलानी करा देलखिन। कोर्ट जा दुनू गोटे सोलह लगा लेलक। केस खारिज
भऽ गेल।
ग्राम
पंचाय चुनावक घोषणा भेल। पंचायत सभमे भिन्न-भिन्न पदक
चर्चा-परिचर्चा
हुअए लगल। हमरो पंचायत छजनामे मुखिया पदक लेल बेसी चर्चा भेल। हम सभ विचार केलौं
जे मुखिया पदक लेल नूनूजी सभसँ योग्य उमीदवार छथि। से नै तँ हम सभ हुनके ठाढ़
करब। आमदीओ पढ़ल-लिखल आ
समाजसेवी छथि।
हम सभ
नूनूजी लग ऐ विषयपर चर्चा केलौं। कहलनि-
“देखू, ऐ पंचायतमे हमर
जाति दसे घर अछि। अखुनका राजनीति जाति-पाति लऽ कऽ होइए। तहूमे पंचायत चुनावमे
तँ आरो बेसी चलै छै जाति-पाति। हमरा माफ करू अहीं सभमे सँ कियो ठाढ़ होउ। हम
हर तरहेँ मदति करब।”
तैपर हम कहलियनि-
“अहाँक आगूमे सभ जाति-पाति फेल भऽ
जाएत। हम सभ नै मानब। अहाँकेँ मुखियामे ठाढ़ काइए कऽ रहब।”
बड़ उत्साहसँ
सभ नूनूजी केँ मुखिया पद लेल नोमिनेशन करौलकनि। नूनू जीक नोमिनेशन पछाति सोभित
साह, मोहित
कामत आ सुखदेव मण्डल सेहो मुखिया पद लेल नोमिनेशन करौलनि।
छजना
पंचायतमे मुख रूपसँ तीन जातिक बोलबाला अछि। जइमे तेली, धानुक आ कियौट
सभ छथि। शुरू-शुरूमे
तँ नूनू जीक पक्षमे नीक हवा रहल। मुदा जौं-जौं समए बितैत गेल तौं-तौं जाति-पातिक हवा बहए
लगल। किछु उम्मीदवार सभ वोटरकेँ चाह-जलखैक अलाबे दारूओ पिअबए लगल। ई सभ देखि नूनू बाबू
बजला-
“अहाँ सभ मिलि
कऽ हमरा उम्मीदवार बनेलौं। हम भोटक नाओंपर एक्को पाइ खर्च नै करब। चाहे हम जीती
अथवा हारी। हमरा ने जीतक खुशी हएत आ ने हारिक गम।”
भोटक दिन अबैत-अबैत जाति-पातिक हवा आरो
जोर पकड़ि लेलक। भोटे गिरै दिन लोक सभ बूझि गेल जे नूनूजी चुनाव हारि जेता। किएक
तँ खुलेआम भोटर सभ अपना-अपना जातिकेँ भोट दऽ रहल छल। सहए भेल, सोभित साहु एक
नम्मरपर, सुखदेव
मण्डल दोसर नम्मरपर, मोहित कामत तेसर आ चारिम नम्मरपर नूनूजी रहला।
¦
विवेकक विवेक
“बौआ, विवेक कखनि िनर्मली
पहुँचत?”
ई बात हमर
बाबूजी हमरासँ पुछलनि। हम कहलियनि-
“दस बजे।”
बाबूजी फेर
पुछलनि-
“की विवेक फोन केने रहए?”
हम कहलियनि-
“हँ बाबूजी, दस मिनट पहिने
सकरीसँ फोन केने रहए। ओ िनर्मलीवाली ट्रेनमे बैस गेल रहए। कहलक, दस बजे धरि
ट्रेन िनर्मली पहुँचत।”
बाबूजी फेर
कहलनि-
“ठीक छै, जलखै कऽ लैह आ
गाड़ी लऽ कऽ िनर्मली चलि जाह।”
“सएह करब।” हम कहलियनि।
विवेक
हमर पिसियौत भाए। आइ ओ मुम्बईसँ हमरा गाम आबि रहल अछि। कम्प्यूटर इंजीनियर
छथि। नौकरी ज्वाइन केला छह मास पछाति पहिल बेर विवेक गाम आबि रहल छथि, ओहो मामा गाम। ओ
बजल रहथि जे नौकरी भेटला पछाति पहिल छुट्टीमे पहिने मामा गाम आबि मामा-मामी, भैया-भौजीसँ असिरवाद
लेब तखनि अपन गाम जा काका-काकी आ गौआँसँ असिरवाद लेब।
हम जल्दी-जल्दी जलखै कऽ
मोटर साइकिलसँ िनर्मली टीशन विदा भेलौं। नअए बजे टीशनपर पहुँच गेलौं। टेन अबैमे
घंटा भरि देरी छल। टीशनसँ बाहरे मोटर साइकिल हेण्डील लाॅक कऽ मोसाफिरखानाक ब्रिन्चपर
बैस गेलौं। हमरा पछिला बात सभ मन पड़ि गेल।
पढ़ि कऽ
अँगना एलौं तँ दादी आ माएकेँ कनैत देखिलिऐ। समुच्चा गामक स्त्रीगण सभ आ पुरुखो
अँगनासँ लऽ कऽ दरबज्जा तक भरल छल। हम किछु बुझबे ने करी। माएसँ पुछलिऐ-
“किअए कनै छी।
की भेलौं हेन?”
माए बजली-
“तोहर मदना बला पीसा आ दीदी बस दुरघटनामे
मरि गेलखुन।”
हम पुछलिऐ-
“केतए?”
माए कनैत कहने
बजली-
“ओ सभ बससँ बाबाधाम जाइत रहथिन। ने जानि
केना सुलतान गंजसँ पहिने बस एकटा खदहामे खसि पड़ल। दस गोटे ओत्तै मरि गेल जइमे
तोरो पीसा-दीदी
रहथुन।”
हम पुछलिऐ-
“के कहलकौ?”
माए जवाब देलक-
“मदनासँ मोबाइलपर फोन आएल छेलै। तोहर बाबू
साइकिलसँ मदना गेलखुन हेन।”
दादी कनैत बजली-
“भगवान किअए हमरा एहेन दुख देलखिन। हम
जीविते छी आ हमर बेटी-जमाए दुनियाँसँ उठि गेला। आब के ओकरा धिया-पुताकेँ पालत-पोसत, लिखौत-पढ़ौत, सादी-बिआह करौत। ऐसँ
तँ भगवान हमरा बजा लैत ऊपर।”
दादीकेँ संतोख
बन्हैत तिलाठवाली कहलखिन-
“सभ भगवाने पूरा करथिन। जे भगवान एते
बड़का दुख देलक वएह पार लगौतहिन।”
दादीकेँ कनैत-कनैत दाँती लगि
गेल छल। जनिजाति सभ दादीक दाँती छोड़ा पानि पिऔलक।
हमर
मदनावाली दीदीकेँ एकटा बेटा आ एकटा बेटी। बेटी दसमामे पढ़ैत आ बेटा अठमामे। बेटीक
नाओं मीना आ बेटाक विवेक। विवेक हमरासँ पनरहे दिनक छोट। दुनू भाए-बहिन पढ़ैमे
बड़ चन्सगर। दुनू अपना-अपना किलासमे फस्ट करैत। गामसँ एक किलो मीटरमे मदनेसर
हाइ स्कूल। ओहीमे दुनू भाए-बहिन पढ़ैत। मदनाबला पीसा दू भाँइ। गेना लाल आ नेना
लाल। हमर पीसा गेना लाल जेठ आ नेना लाल छोट। दुनू भाँइ सामिले। जेठ भाय गेना लाल
खेतीक काज देखैत जखैनकि नेना लाल गामेमे किराना दाेकान करैत। दुनू भाँइमे पाँच
बीघाक धतपत खेत।
बाबूजी
चारिम दिन मदनासँ आपस एला। बाबूजीकेँ देखिते दादी पछाड़ खा खसि पड़ली। टोल-पड़ोसक लोक सभ
जमा भऽ गेल। सभ घटनाक बाबत बाबूजीसँ पुछए लगल। स्त्रीगण सभ दादीकेँ समझाबए लगली।
दादी कनैत बाबूकेॅ कहलकनि-
“जीतू, हमर नाित-नातिन आब केना
रहत। के ओकरा सभकेँ पढ़ौत-लिखौत। के ओकर सबहक बिआह-दुरागमन करौत।”
बाबूजी कलखिन-
“माए तूँ चिन्ता जुनि कर। जेहेन हमर
बेटा राधे तेहने हमर भागिन विवेक आ जेहने हमर बेटी सीमा तेहने भगिनी मीना। हम
चारू भाए-बहिनकेँ
पढ़ा-लिखा
बिआह-दुरागमन
कराएब। ओना नेना लालो पाहुन नीके लोक छथिन। ओहो आन तरहेँ भतिजा-भतिजीकेँ नै
करथिन।”
छठम दिन
बाबूजी फोरो मदना विदा भेला। तँ दादी कहलखिन-
“जीतू हमरा नैत-नातिनकेँ सखुआ
नेने अबिहअ।”
पीसा-दीदीक क्रिया-क्रम पछाति
बाबूजी विवेक आ मीनाकेँ नेने एलखिन। संगमे पीसाक भाए नेना लाल सेहो रहथिन। विवेक
मीना आ नेना लालकेँ देखिते दादी फेरो कानए लगली। नेना लाल मीना आ विवेक सेहो
कानए लगल। बाबूजी सभकेँ चुप केलखिन। तेसर दिन नेना लाल पीसा मदना विदा भेला
हुनकर कहब रहनि जे हम अपने रखि भतिजा-भतिजीकेँ पढ़ाएब-लिखाएब। जखैनकि
दादीक जिद्द रहनि जाबे धरि हम जीब नैत-नातीनकेँ अपना लग राखब आ पढ़ाएब-लिखाएब। नेना
लाल पीसा बजल छला-
“हमरा गौआँ-समाज की कहत। ओ
सभ रंग-रंगक
कुटीचाैल करत।”
अंतमे िनर्णए
भेल जे मीना मदनामे रहत आ विवेक मात्रिकमे रहि पढ़त-लिखत। जखनि
नेना लाल पीसा साइकिलपर मीना बहिनकेँ बैसा मदना विदा भेला तँ ओ बौम फाड़ि कऽ
कानए लगला। हुनका कनैत देिख अँगनामे सभ कानए लगल। मुदा बाबूजी अपनाकेँ सम्हारैत
सभकेँ चुप केलनि। नेना लाल पीसा विदा होइ काल दादीकेँ गोड़ लागि कहने रहथिन-
“माए, जेहने जीतू
अहाँक बेटा तेहेन हमहूँ अहाँक बेटा छी। हमरा असिरवाद दिअ। जे हमरासँ हमरा भतिजा-भतिजीकेँ कोनो
आन तरहेँ नै होइ।”
विवेक हमरे
ऐठाम रहि पढ़ए लगल। हम दुनू गोटे एक्के किलस अठमामे रही। दुनू गोटे संगे-संग नरहिया हाइ
स्कूलमे पढ़ैले जाए लगलौं ओ हमरा भाइजी कहैए आ हम ओकरा विवेक बौआ कहै छिऐ। विवेक
पढ़ैमे चन्सगर तँ रहबे करए जे मेहनतियो रहए। मैट्रीक परीक्षामे विवेक अस्सी
प्रतिशत नम्मर अनने रहए। हमहूँ सकेण्ड डिविजनसँ पास केलौं।
विवेक
सीएम साइन्स कौलेजमे नाओं लिखौलक आ हम िनर्मलीए कौलेजमे पढ़ए लगलौं। विवेककेँ
मैरिट स्कॉलरसीप भेटए लगल। नेना लाल पीसा विवेकक पढ़ाइमे कोनो कोताही नै केलखिन।
विवेक हमरा बरबरि चिट्ठी लिखए। ऐ बीच मीना बहिन पार्वती महिला कौलेजसँ आइए
फस्ट डिविजनसँ केलक। बाबू आ नेना लाल पीसा मीना दीदीक बिआह एकटा पंचायत शिक्षकसँ
तँइ केलनि। लड़कीक प्रतिभा देखि लड़िकाबला बेसी रूपैआक मांग-चांग नै केलनि
तथापि नेना लाल पीसा बड़ धूम-धामसँ भतिजीक बिआह संम्पन्न केलनि। हम आ विवेक
मीना बहिनक बिआहमे लोकनियाँ गेल रही। मीना दीदीक ननदि हमरा दुनू भाँइकेँ बड़
तंग केने रहए। खेनाइए बेर हमरा सभकेँ ऊपरेसँ रंग दऽ देने रहए।
इण्टरक
परीक्षामे विवेक बिरासी प्रतिशत अंक
अनलक। हमरो इण्टरमे फस्ट डिविजन भेल। बाबूजी आ नेना लाल पीसाक विचार भेलनि
जे विवेककेँ इंजीनियरिंगक कम्पीटिशनक तैयारी लेल पटनामे राखल जाए। सएह भेल। विवेक
पटनामे रहए लगल। इण्टर केलाक अगिला साल ओ आइ.आइ.टी.क प्रतियोगिता
परीक्षामे पास भेल। पछाति रुड़कीमे नाआंे लिखौलक। इंजीनिरिंग कौलेजमे विवेककेँ
फेरो मैरिट स्कॉलरसिप भेटल। जइसँ नेना लाल पीसाकेँ भार कमल।
ऐ बीच
शिक्षक िनयोजन लेल बिहार सरकार विज्ञापन निकालल। हम आ मीना बहिन दुनू गोटे
पंचायत शिक्षकक पदपर चयनित भऽ नौकरी करए लगलौं।
समए बितैत
देरी नै लगै छै। विवेक इंजीनियरिंगक फाइनल परीक्षामे पचासी प्रतिशत अंक अनलक।
ओकर केम्स सलेक्शन भेल। मुम्बइक एकटा पैघ कम्पनीमे नौकरी भेटलै। नेना लाल पीसा
मिठाइ लऽ कऽ सखुआ एला। बाबूजी समुच्चा गाममे मिठाइ बँटने रहथिन।
गाड़ी
सीटीक अवाज सुनिते हमर धियान टुटल। गाड़ी टीशनपर पहुँच गेल छल। हम हरबड़ा कऽ
उठलौं आ टेनक डिब्बा दिस बढ़लौं। यात्री सभ डिब्बासँ उतरए लगल। हम बौगी सभमे
विवेककेँ ताकए लगलौं। तखने एकटा खिड़कीसँ अवाज आएल-
“यौ भायजी, यौ नन्द भायजी।”
हमरा हुअए लगल ई
तँ विवेकक अवाज छी। हम झटकि कऽ ओइ खिड़की लग गेलौं तँ विवेककेँ वर्थपरसँ समान
उतारैत देखलौं। हमरा देखिते विवेक बाजल-
“भायजी, गोड़ लगै छी।”
हम कहलिऐ-
“नीके रहह।”
सभ यात्रीक
उतरला पछाति हम टेनमे चढ़लौं। विवेक हमर पएर छूबि गोड़ लगलक। हम ओकरा भरि पाँज
पकड़ि छातीसँ लगा लेलौं। विवेक पुछलक-
“मामा-मामी सभ कुशल
छथिन ने?”
हम कहलिऐ-
“हँ, सभ ठीक छथिन।”
विवेककेँ एकटा
बड़का शुटकेश, एकटा
बैग आ एकटा काटून छल। हम बड़का शुटकेश उठेलौं। ओ बाजल-
“भायजी, अहाँ छोड़ि दियौ।
हम बेगो आ शुटकेशो लऽ लइ छी।”
हम कहलिऐ-
“शुटकेश तँ भारी बुझाइ छह। ई हमरा लाबह।
तूँ बेग लऽ लैह।”
ओ कहलक-
“नै भायजी, अहाँ हमरासँ पैघ
छी। तँए अहाँकेँ हम अपन समान केना उगहए देब। ई छोटका काटून अहाँ हाथमे लऽ लिअ।”
हम केतबो परियास
केलौं मुदा तैयो ओ बैग आ शुटकेश हमरा नै लिअए देलक। अपनेसँ दुनू समान लऽ मोटर
साइकिल तक अनलक। मोटर साइकिलपर समान सभ बान्हि हम दुनू भैयारी किशन होटल आबि
जलखै केलौं केताबे चाहलिऐ मुदा जलखैक पाइ हमरा नै दिअए देलक। जलखै पछाति फल आ
मिठाइ कीनि हम सभ गामपर एलौं। अपन मामा-मामीकेँ गोड़ लागि विवेक नानीक सारा लग
गेल। हाथ-पएर धोइ
नानीक सारापर माथ टेकि प्रणाम कऽ अँगना आबि मामाकेँ कहलक-
“मामा यौ, अखने खेनाइ खा
हम भाय जीक संगे मदना जाएब। ओतए काका-काकीकेँ प्रणाम कऽ माए-बाबूक सारापर
माथ टेकि मीना दीदी ओतए मैलाम चलि जाएब। रातिमे मैलामे रहि जाएब। काल्हि भोरे
मदना आएब आ फेर साँझ धरि सखुआ। दू दिन सखुआमे रहि फेर आपस मदना चलि जाएब।”
मामा कहलखिन-
“बड़ नीक विचार छह।”
विवेक सभ कोइले
कपड़ा नेने आएल अछि। शुटकेश खोलि सभकेँ कपड़ा देलक। हम दुनू भाँइ खेनाइ खा मदना
गेलौं। मदनामे विवेक सभकेँ प्रमाण-पाती कऽ माए-बाबूक सारापर माथ टेकि झहरैत आँखिए
अँगना आएल। नेना लाल पीसा विवेककेँ भरि पाँजमे पकड़ि छातीसँ लगौलखिन। हुनको
आँखिसँ दहो-बहो
नाेर जाइत रहनि। विवेक काका-काकी, भाए-बहिन सभ कोइले कपड़ा अनने रहए। सभकेँ कपड़ा देलक। दू
लाखक ड्राप काका नामे मुम्बईसँ अनने छल। नेना लाल पीसाकेँ दैत कहलक-
“एकरा बैंकमे जमा कऽ लेब। सप्ताह भरिमे
खातामे पाइ चलि औत। जे खेत सभ भरना लगल अछि से सभटा छोड़ा लेब। आब जौं अपने
हुकुम करी तँ हम सभ मीना दीदीकेँ भेँट केने आबी।”
नेना लाल पीसा
कहलखिन-
“अबस्से जाह। मुदा रातिमे आब ओत्तै रहि
जइहअ। मैलाम दूर अछि ओतएसँ रातिमे एनाइ ठीक नै हेतह।”
हम सोचए लगलौं, केतेक नीक अछि।
विवेकक विवेक...।
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