नन्द विलास राय (सखारी-पेटारी)
वाड़ीक पटुआ
डाक्टर प्रमोद
कलकत्ता मेडिकल कौलेजसँ एम.डी.क डिग्री लऽ गाम एला। गाममे पिताजी आ मित्र सभसँ
क्लीनिक खोलैक विचार करए लगला। मित्र सभ लहेरियासरायक विचार देलकनि। मुदा
पिताजी कहलकनि-
“लहेरियासरायमे तँ एक-पर-एक डाक्टर सभ
अछिए जे रोगीक इलाज करैए। किछु डाक्टर सेवा-भावनासँ इलाज
करै छथि तँ किछु सोलहैनी पेशा बनेने अछि। रंग-रंगक ढाढ़स करैत
कहत जे हम डाक्टर छी आकि अहाँ। जे कहै छी से करू नै तँ...। सोवहाविको छै
ओइ विभागक तरी-घटी, नीक-बेजाएक ज्ञान
आमकेँ छैइहो नै। तँए सोलहैनी सुतरबो करै छै। से नै तँ गामेमे क्लीनिक खोलह जे
सामाजोकेँ लाभ हेतै आ तोरो जिनगीक महत रहतह।”
डाक्टर
प्रोमदक पिता अनंत प्रसाद समाज सेवी बेकती। सबहक दुख-सुखमे संग रहए
बला। केतेको मरीज सभकेँ लहेरियासराय लऽ जा इलाज करा अनने छथिन। तँए हिनका सभ
गपक तजुरबा छन्हि। डाक्टरकेँ भगवान बुझै छथिन मुदा डाक्टरो तँ रंग-बिरंगक अछि।
सेहो फर्क करैत रहै छथिन। प्रमोदकेँ डाक्टरी पढ़ेबाक उदेस छेलनि जे गाम-देहातमे समैपर
इलाजक अभावसँ केते लोक काल-कलवित भऽ जाइए। तँए देहातोमे डाक्टर जरूरी छै। ओ केतोको
डाक्टरकेँ आग्रह सेहो केलखिन मुदा कियो तैयार नै भेलनि। मुदा डाक्टर प्रमोद
तँ अपन खून छियनि। हुनकापर अनंत प्रसादकेँ तँ पूरा अधिकार छन्हि। ओना डाक्टर
प्रमोदोमे पिताक गुण-बेवहार छन्हि। जखनि ओ मेडिकल कौलेजमे एम.डी.क पढ़ाइ कऽ रहल
छला तहू समैमे केतेको मरीज सभकेँ मदति केने रहथिन। अनंत प्रसादक कहब रहनि जे
बेरमेमे क्लीनिक खोलल जाए। मुदा बेरमामे तँ खून, लगही, पैखाना इत्यादिक
जाँचक तँ सुविधा नै अछि तँए सबहक विचार भेल जे प्रमोद िनर्मलीमे क्लीनिक
खोलता आ सप्ताहे-सप्ताह
बेरमामे समए देथिन। अनंत प्रसाद प्रमोदकेँ कहलखिन-
“बौआ, सेवाक भावनासँ
मरीजक इलाज करिहअ। भगवान अहीमे बड़्क्कति देथुन। एकर मतलब ईहो नै जे सोलहैनी
फोकटेमे इलाज करब। अपन उचित फीस लऽ रोगीक इलाज करिहअ। तहिना उचित दबाइओ आ
जाँचो करबिहक।”
डाक्टर प्रमोद
कहलकनि-
“सएह करब बाबूजी।”
िनर्मलीमे
क्लीनिक खोलला छह मास नै बितल हएत। परोपट्टामे हुनकर नओंक डंका बाजए लगल। रोगी
आ रोगीक संबन्धी सभ डाक्टर साहैबकेँ जश दिअए लगलनि। जगदगरसँ जगदगर िबमारी
डाक्टर साहैब ठीक केलखिन। सभसँ पैघ बात ई जे गरीब रोगीक इलाज बिनु फिसेक करै
छथिन। दबाइओ फाजील नै लिखै छथिन तँए रोगी सबहक भीड़ लगल रहलैए। रवि दिन छह
बजिया ट्रेन पकड़ि राेगी देखए बेरमा चलि जाइ छथिन। ओतौ बहुत रोगी सभ रहैत अछि।
सभ रोगीक इलाज कऽ रतुका ट्रेनसँ आपस िनर्मली चलि अबै छथिन। बेरमामे बेसी रोगी
रहलापर कखनो काल अँटकैओ पड़ै छन्हि।
डाक्टर
साहैबक पिताक मित्र छथिन मंगनू प्रसाद। ओहो बेरमेक बासी छथिन। अनंत प्रसादक
लंगोटिया संगी। डाक्टर साहैब मंगनू प्रसादकेँ बड़ इज्जति करै छथिन। प्राय: सभ रवि मंगनू
प्रसाद डाक्टर साहैबसँ भेँट करए क्लीनिकपर आबि जाइ छथिन। डाक्टर साहैब हुनका
चाहो-पान
करबै छथिन।
आइ रवि
छी। आब बजे धरि डाक्टर साहैब बेरमा क्लीनिकपर पहुँचता। ई गप सभकेँ बूझल छन्हि।
हम चौकपर चाह पीऐत रही। देखै छी जे मंगनू प्रसाद आ हुनकर पुतोहु आ पोता रिक्शापर
बैस तमुरिया दिस जा रहल छथि। हम लग जा पुछलियनि-
“मंगनू बाबू अपने लोकनि केतए जा रहल छिऐ?”
मंगनू प्रसाद
कहलनि-
“तमुरिया जा रहल छी। ट्रेन पकड़ि लहेरियासराय
जाएब। गोपालकेँ मन खराब छै।”
तैपर हम कहलियनि-
“आइ तँ रवि छी। डाक्टर प्रमोदो एबे
करता। हुनकासँ एक बेर देखा दैतिऐ। इलाज तँ ओहो नीक्के करै छथि आ बच्चे विभागक
छथिओ।”
मंगनू प्रसाद
कहलनि-
“छोड़ू, हमरा लहेरियेसराय
जाए दिअ। हम गाम-घरक
फेरमे नै रहए चाहै छी।”
ई कहि ओ रिक्शाबलाकेँ
इशारा दैत विदा भऽ गेला।
आठ बजे डाक्टर
प्रमोद क्लीनिकपर पहुँचला। हमरो ब्लड प्रेशर जँचेबाक रहए तँए हमहूँ ओतै रही।
हमरा मुँहसँ अनासुरती निकलि गेल-
“तमुरिया टीशनपर मंगनू भेटबो केला।”
डाक्टर साहैब
कहलनि-
“नै तँ, से की? केतए गेला हेन
मित्ता काका?”
हम कहलियनि-
“पोताकेँ डाक्टरसँ देखबैले लहेरियासराय
गेला हेन। हम कहबो केलियनि अहाँ दऽ जे एबे करता। मुदा कहलनि जे छोड़ू हमरा
लहेरियेसराय जाए दिअ।”
डाक्टर साहैब
बजला-
“जाए दियनु।”
लहेरियासरायमे
मंगनू प्रसाद अपना पोताकेँ डाक्टरसँ देखौलखिन। डाक्टर साहैब तीन सए फीस लेलकनि।
दू हजारक जाँच आ छह सएक अल्ट्रसाउण्ड लिखलकनि। जाँच-परतालक पछाति
दू हजारक दबाइ लिखलखिन। अदहा दबाइसँ बेसीए दबाइ चललोपर गोपालक पेटक दरद ठीक नै
भेल। तखनि हारि-थाकि
कऽ डाक्टर प्रमोद लग िनर्मली लऽ जा कहलखिन-
“हौ डाक्टर, लहेरियासरायमे
चारि हजारसँ बेसीए खर्च भऽ गेल मुदा गोपलाक दरद कनियोँ उन्नैस नै भेल। से कनी
देखहक।”
डाक्टर साहैब
गोपालक सभटा जाँचक पुर्जा देखलखिन। लहेरियासरायक डाक्टर सभटा पटनियाँ दबाइ लिखने
रहै। जाँचो अनाप-सनाप
करबौने छेलै। से सभ सभ देखि डाक्टर प्रमोद लहेरियासरायक सभटा दबाइ बन्न कऽ
मात्र दू सए टाकाक दबाइ लिखलखिन। तीने िदन दबाइ खेला पछाति गोपालक दरद ठीक भऽ
गेल।
अगिला
रवि मंगनू प्रसाद बेरमामे डाक्टर साहैबक क्लीनिकपर जा भेँट कऽ तारतम कहलकनि-
“हौ, हम तँ लहेरियासराय
जा ठका गेलौं। तोहर लिखलाहा दबाइ तीनिए दिन खेलापर गोपला पेटक दरद सोलहैनी ठीक
भऽ गेल।”
डाक्टर साहैब
मंगनू प्रसादकेँ कहलखिन-
“यौ काका, हम तँ वाड़ीक
पटुआ छी। जे तीत सभ दिनसँ होइत रहलै हेन।”
मंगनू बाबू किछु
नै बजला।
डाक्टर बेटा
रामकुमार चटिया
सभकेँ पढ़ा अँगना एला तँ पत्नीकेँ कनैत देखलनि। देखिते ओ अकबका गेला। पुछलखिन-
“की भेल?”
पत्नी कनिते
कहलकनि-
“छिटहीसँ बाबूजी फोन केने रहथिन, माएकेँ लकबा
मारि देलक। बजबो-भुकबो
ने करै छै।”
रामकुमार
पुछलकनि-
“कहिया लकबा मारलक?”
पत्नी कहलकनि-
“परसू रातिमे। बाबूजी बजै छेलखिन जे बँचत
कि नै तेकर कोनो ठीक नै। अपना सभकेँ परसू रातिएसँ फोन लगबै छेलखिन मुदा फोने ने
लगलनि।”
रामकुमार बाजल-
“तखनि तँ आइए छिटही जाए पड़त। माएक उमेरो
तँ अस्सीसँ कम नै हेतनि। काेन ठीक कखनि चलि जेती। चलू दस बजिया बस पकड़ि ली।
ओना तँ गहुमक दौनी करब जरूरी अछि। रहि-रहि कऽ मेघ अबै छै। जँ बरखा भऽ जाएत तँ
बुझू गहुमक खिजानैत भऽ जाएत। थ्रेसरबला शम्भु कल्हुका नाओं कहने रहथि। मुदा अपना
नै रहने दौनी केना हएत। शंभुकेँ फोन लगा कहि दइ छियनि जे हम काल्हि नै रहब अन्तए
जा रहल छी। ओतएसँ एला पछाति दौन कराएब। अच्छा जे हएत से हएत। माएक जिज्ञासा करब
तँ जरूरीए अछि। हुनका सभकेँ के छन्हि। एकटा बेटो छन्हि जे पटनामे डाक्टरी
करै छथिन, परिवार
लऽ कऽ ओतइ रहै छथिन।”
छिटहीवाली बजली-
“एकटा काज करू, खेखनाकेँ बजा
गहुमक बोझ करिया दियौ आ ऊपरसँ तिरपाल ओझा झाँपि दिऔ। बरखो हएत तँ नोकसान नै
हएत। छिटहीसँ कहिया आएब तेकर कोन ठीक।”
रामकुमार कहलकनि-
“ठीके कहै छिऐ। तिरपाल तँ अछिए कनी
मेहनति करए पड़त। दसबजिया बस नै पकड़ि बरहबजिया पकड़ए पड़त। गहुम झाँपल रहने
चिन्ता नै रहत।”
सएह केलनि।
गहुमकेँ सेरिआ झाँपि देल गेल। गौरकेँ पड़ोसियाक जिम्मा लगा, घरमे ताला मारि
दुनू परानी बेटाकेँ लऽ छिटही विदा भेला।
रामकुमार
एकटा छोट किसान। मात्र दू बिघा खेतक मालिक। ओना तँ एम.ए. पास छथि। मुदा
बेरोजगार। कतेको बेर सरकारी नौकरी लेल परियासो केलनि मुदा ऐ जुगमे भगवान भेटब
असान अछि मुदा सरकारी नौकरी कठिन। की करता, खेतीक अलाबा चटिया
सभकेँ टिशन पढ़ा कोनो धरानी अपन गुजर करै छथि। परिवारमे मात्र तीनि गोटे। दू
परानी अपना आ एकटा दस बर्खक बेटा कन्हैया। मालो जालक नाआंेपर एकटा मात्र गौर।
पत्नीओ मध्यमा परीक्षा पास केने मुदा ऊहो बेरोजगारे। नौकरी हेबो केना करितनि।
जखनि बी.ए., एम.ए.बला सभ झख मारैए
तखनि मैट्रिक-मध्यमाक
कोन गप।
छिटहीवालीक
पिता रवि कान्त जमानाक मैट्रिक छथि। हुनका एकटा बेटा आ एकटा बेटी। बेटाक नाआें
फूल कुमार आ बेटीक सुमित्रा। रवि कान्त रजिष्ट्री आॅफिसमे मुनसीक काज करै
छला। पहिने तँ हुनका पाँच बिघा खेत छेलनि मुदा आब घराड़ीक अलाबे मात्र दस कट्ठा
बँचल छन्हि। बेटा फूल कुमार पटना मेडिकल कौलेजमे डाक्टर। नौकरीक अलाबे खानगीओ
क्लीनिक खोलने छथि। प्राय: पाँच हजारक आमदनी भरि दिनक छन्हि। मुदा एक नम्मरक
मक्खीचूस आ अबेवहारिक। बहिन-बहनोइसँ कोनो सरोकार नै। माए-बाबू फोन-पर-फोन करैत रहै
छन्हि मुदा हुनका लेल धैनसन। गाम एबो केना करता। कमतीमे चारि दिन तँ लगतै जे
बीस हजारक अामदनीपर पानि फेड़त, कहबीओ छै बाप बड़े ने मैया सभसँ पैघ रूपैआ।
झलअन्हारीमे
राम कुमार परिवारक संग सासुर पहुँचला। गामक बीचमे सुमित्राक पिताक घर। अँगनामे
पच्छिमसँ पूब मुहेँ एकटा ओ दोसर घर पूबसँ पच्छिम मुहेँ। इटाक देबाल आ ऊपरसँ
खपड़ा। अँगनाक उत्तर आ दछिनसँ देबाल दऽ घेरल। उत्तरवरिये कातसँ अँगना एबा-जेबाक रस्ता।
दछिनवरिया देबालपर एकचारी जइमे भानस-भात होइए। पछवरिया ओसारपर चौकी जइपर सुमित्राक माए
सूतल छेली। रवि कान्त बुढ़ीक पाँजरमे बैसल छला। ओसारिक कोरोमे लालटेन टाँगल छल।
राम
कुमार सुमित्रा आ कन्हैया अँगना पहुँचला। सभ गोटे रवि कान्तक पएर छूबि गोर
लगलकनि। सुमित्रा बेटी जमाए आ नातिकेँ देखि रवि कान्तक छाती सूप सनक भऽ गेल।
ओ कुरसी आनि जमाएकेँ बैसैले कहलकनि। सुमित्रा माएक पाँजरमे जा बैसली। रवि कान्त
चाह बनबैले चुल्हि पजारए लगला। राम कुमार कहलखिन-
“बाबूजी, अखनि चाह
बनेनाइ छोड़ि देथुन पहिने एतए आबथु।”
माएक पाँजरमे
बैसल सुमित्रा माएकेँ िहलबैत बजली-
“माए, माए। माए गै, माए।”
मुदा बुरहीक
शरीमे कोनो हरकति नै भेलनि। सुमित्राक आँखिसँ दहो-बहो नोर जाए
लगल। हुनकर बाबूजी कहलखिन-
“गै बताहि। आब माए थोड़े बजतौ। दू-चारि दिनक
मेहमान छियौ। परसू रातिमे जे खसलौ से खसलै छौ। कखनो-कखनो आँखि चारू
दिस तकै छौ। ठोरो पटपटबै छौ मुदा मुँहसँ अवाज नै निकनि पबै छै।”
पिताक बात सुनि
सुमित्रा बोम फाड़ि कानए लगली। राम कुमार ससुरसँ पुछलखिन-
“डाक्टर भैयाकेँ फोन नै केलखिन?”
रवि कान्त
जवाब देलकनि-
“परसूए जखनि अहाँ सासु गिरल तखने
फूलबाबूकेँ फोन केलौं तँ ओ कहलक, अखनि बड़ बिजी छी, घंटा भरि पछाति फोन करब।
अहाँ सभकेँ लगेलौं तँ सुइच आॅफ कहलक।”
रामकुमार कहलखिन-
“हँ परसू मोबाइलक बैटरी चार्ज नै रहए। की
कहबनि, हमरा
गाममे ने बिजलीए छै आ ने जेनरेटरे। नरहिया नै तँ िनर्मली जा मोबाइल चार्ज करबै
छी। काल्हि िनर्मली गेल रहिऐ तँ ओतइ चार्ज करौलिऐ। अच्छा तँ, रातिमे डाक्टर
साहैबसँ बात भेलनि?”
रवि कान्त
कहलखिन-
“रातिमे फोन लगौलिऐ तँ सुइच ऑफ कहलक।
भिनसर भेने जखनि फोन लगेलौं तँ कनियाँ उठबैत कहली जे अखनि एकटा रोगीमे लागल
छथि। बारह बजे करीब फोन करए कहली। बारह बजे फोन केलौं तँ फूलबाबूसँ गप भेल। कहलक, कोनो डाक्टर
बजा माएकेँ देखा दियनु आ डाक्टर जे कहता से हमरा फोनपर बताएब। जौं पाइ-कौड़ीक अभाव
हुअए तँ ताबए इंजाम कऽ काज करब पछाति हम पठा देब। चौकपर सोम आ शुक्र दिन एकटा
डाक्टर अबै छथिन। ओना तँ हुनकर क्लीनिक सिमराही बजारमे छन्हि मुदा हाटे-हाट रमण जीक
दबाइ दोकानपर रोगी सभकेँ देखै छथिन। काल्हि सोम रहने डाक्टर साहैब लग गेलौं तँ
देखलिऐ मारि भीड़। रोगी सभकेँ देखैत-देखैत साँझ पड़ि गेलनि। सिमराहीओ जेबाक रहनि।
मुदा रमणजीकेँ कहलियनि तँ डाक्टर साहैबकेँ कहलखिन जे हिनको बेटा डाक्टर छथिन
तखनि हमरा ऐठाम एला। आला लगा देखलखिन, ब्लडपेसर सेहो जँचलखिन आ कहला जे बढ़ल
छन्हि जइसँ लकबा मारि देलकनि। दबाइ सभ लिखि कहलखिन चलए दियौ। काल्हिसँ आइ
धरि दस बोतल पानि चढ़ि गेलनि मुदा कोनो सुधार नै भेलनि। खाली कखनो-कखनो आँखि तकैत
रहै छथिन जेना केकरो खोजैत हुअए।”
ई कहैत कहैत रवि
कान्तकेँ बुकौर लगि गेलनि। आँखिसँ टप-टप नोर झहरए लगलनि। पिताकेँ कनैत देखि
सुमित्रा सेहो कानए लगली। रामकुमार फोरो पुछलकनि-
“डाक्टर भैयाकेँ फेर फोन केलियनि आकि
नै?”
रवि कान्त
कहलखिन-
“रातिएमे फोनपर सभ बात बतौलिऐ। तैपर
फूलबाबू कहलक, काल्हि
दू बजै सिमराही जा डाक्टर साहैबकेँ सभ बात कहिहक। मुदा अपनासँ फूलबाबू फोन कऽ
माएक हालति नै पुछलक। जेते बेर फोन केलौं हमहीं केलौं।”
बिच्चेमे सुमित्रा
पिताकेँ पुछलखिन-
“भौजीओ ने फोन केलक?”
रवि कान्त
बजला-
“गै बताहि, जौं अपन जनमल नै
पुछलक तँ आनक कोन बात। तोरा तँ सभ गप बुझले छौ जे केते कठिनसँ ओकरा पढ़ैलौं।”
सुमित्रा बजली-
“से कोनो हमरा नै देखल अछि। अहाँक कमाइसँ
पूरा नै भेल तँ माएक सभटा गहना-जेबर बेचि कऽ दऽ देलियनि। तहूसँ नै भेल तँ जमीनो
बेचि दऽ देलियनि। हँ तँ सिमराहीवला डाक्टर लग गेलिऐ तँ ओ की कहलनि?”
रवि कान्त
बजला-
“कहलनि जे लकबा मारने छन्हि। उमेरो अस्सीसँ
ऊपरे छन्हि से आब उठब मोसकिल छन्हि। अपना जानि जे सेवा कऽ सकबनि से करियनु।”
रातिमे
खानपुरवाली सबहक खेनाइ बनौलक। खेनाइ खा रामकुमार आ रवि कान्त सुतैले चलि गेला।
सुमित्रा माएक पाँजरमे बैसल छेली। रातिम एगारह बजे बुढ़ीक शरीरमे हरकति भेल।
आँखि ताकि बजली-
“बौआ नै आएल? डाकडर बौआ हौ
डाकडर बौआ?”
सुमित्रा
टोकलकनि-
“माए हम छियौ, सुमित्रा गोर
लगै छियौ।”
“के, बुच्ची? कखनि एलँह? पाहुनो एलखुन
हेन?”
“हँ ऊहो आएल छथिन आ कन्हैयौ आएल अछि।”
तखने रवि कान्त
एलखिन आ राम कुमार सेहो।
“गोर लगै छियनि माए।” रामकुमार
बुढ़ीक पएर छुबैत कहलखिन।
“नीक्के रहथु। जुग-जुग जीबथु।
डाकडर बौआ नै आएल। आब ओकर मुँह नै देखबै। पोताक देखैक सिहन्ता नेनहि मरि जाएब।”
रामकुमार कहलखिन-
“हिनका किछु नै हेतनि। हम भिनसरे डाक्टर
भैयाकेँ फोन कऽ गाम बजाएब।”
बुढ़ी कहलखिन-
“अच्छा!”
अच्छा कहिते
बुढ़ीकेँ हिचकी उठलनि आ गरदनि सिरमापरसँ गिर पड़ल। सुमित्रा माए-माए कहैत कानए
लगली। रामकुमार बुढ़ीक नारी देखैत बजलखिन-
“माए चलि गेली!”
प्रोफेसर बेटा
गाम नाओं मौआहा।
जिला सप्तरी। नेपाल अधिराज्य। बेस झमटगर गाम। बारहो वर्णक लोकक बसोबास करैबला
गाम। ओइ गाममे एक गोटेक नाआंे रौदी राउत। हुनकर उमेर लगधग अस्सी बरख। पाँच हाथक
लम्गर मरद। श्याम वर्ण। मेहनती आ स्वाभिमानी बेकती।
हम अपना
मामा लेल भोँट मागए मौआहा गेल छेलौं। मामा नेपालक संविधान सभाक सदस्यक लेल ठाढ़
भेल छला। ओही क्रममे हमरा राउतजीसँ भेँट भेल छल। जखनि हम आ हमर दूगो संगी रामबाबू
आ गिरिस सभ कोइ राउत जीक दरबज्जापर पहुँचलौं तँ ओ ओतै छला। हमरा सभकेँ बड़खातिर
बात केलनि। अपना पोताकेँ बजा जाह पिऔलनि। हम हुनका अपन मामक लेल भोँट मंगलियनि
तँ ओ कहला-
“जे नीक लोक हएत तिनका हम जरूर भोँ देब।”
रातिमे हमरा
सभकेँ रूकबाक लेल आग्रह केलनि। हमहूँ सभ सोचलौं, एतएसँ बरिसानि
बारह किलो मीटर अछि। ओतए जाइसँ नीक हएत रातिमे एतै रूकि आरो भोँटर सभसँ सम्पर्क
करी। हम राउत जीकेँ कहलियनि-
“हम सभ अहीं ऐठाम रातिमे रूकब, भोजनो करब आ
अरामो करब। ताबे हम सभ भोँटरसँ सम्पर्क करैले गाम घुमै छी।”
राउतजी कहलनि-
“सबेरे आबि जाएब।”
हम सभ आठ बजे
रातिमे हुनका ओइठाम पहुँचलौं। ओ हमरे सबहक बाट ताकि रहल छला। हमरा सभकेँ पहुँिचते
पोताकेँ हाक दऽ पानि अनैले कहलखिन। हम सभ हाथ मुँह धोलौं। राउतजी अपना पोताकेँ
कहलखिन-
“हिनका सभकेँ जल्दी भोजन करा दहुन। भूख
लगल हेतनि।”
किछुए काल
पछाति हमरा सभकेँ आँगन लऽ गेला।
भीतक
देबाल आ ऊपर खपड़ासँ छाड़ल घर छल। अँगना आ ओसारा बड़ चिक्कन-चुनमुन छल।
पछवरिया ओसारिपर हमरा सबहक भोजन लेल कम्बलक आसन लगौल छल। हम सभ भोजन केलौं।
जाबे धरि हम सभ भोजन केलौं ताबे धरि राउतजी अपने बैसल रहला आ पोताकेँ कहि हमरा
सभकेँ परसन-पर-परसन दिया
खुअबैत रहला। हम एक बेर हुनकाेसँ भोजनक आग्रह केलियनि तँ कहला जे हम पछाति करब।
भोजन पछाति हम सभ दरबज्जापर आबि गेलौं। किछुए काल पछाति राउतोजी भोजन कऽ हमरा
सभ लग आबि कऽ बैसला। हम हुनकासँ परिवारक विषयमे चर्चा कलियनि। ओ जे अपना परिवारक
विषयमे कहलनि ओइसँ हुनक वेदना बुझहलियनि। ओ कहला-
“बौआ, हमर बाबूजी हमरा
मात्र दू बीघा खेत दऽ गेल छला। हम दूध बेचि आ तरकारी खेती कऽ आइ दस बीघा जमीन
बनेलौं। हमरा तीनटा बेटा आ एकटा बेटी अछि। बेटीक बिअाह भऽ गेल अछि। जमाए मास्टर
छथि। एकटा बेटा गिरहस्त आ एकटा प्रोफेसर अछि। छोटका बेटा बी.ए.पास कऽ गामे
धनकुट्टा मील चलबैए। प्रोफेसर राजविराजमे मकान बनेने अछि। लोको वेद ओतै रहै छै।
एकटा प्रेस सेहो चलबैए। रूपैआक नीक आमदनी छै।”
तैपर हम पुछलियनि-
“बाबा, प्रोफेसर साहैब
तँ भैयारी सभकेँ मदति करिते हेथिन।”
तैपर राउतजी
कहला-
“बौआ, से जुनि पूछू।
दुनियाँमे कोइ केकरो नै छिऐ। लोक केते दुख काटि बाल-बच्चाकेँ
पढ़बैए। मुदा जखनि बेटा कमाए लगै छै तँ सभटा बिसरि जाइ छै। लोकवेदक अलाबे किछु
नजरिएपर ने चढ़ै छै।”
पुछलियनि-
“से किअए कहै छिऐ, अहाँ?”
राउतजी कहला-
“जखनि हमर मझिला बेटा दरभंगामे पढ़ैत
रहए तखनि जेठका भाय हर जोति ओकरा देलक। जखनि पाइ घटि गेलै तँ एम.ए.क फारम भरै काल
जेठकी कनियाँ अपन हौंसली बन्हक लगा पाइ पठेलक। जखनि राजविराजमे प्रोफेसरी भेलै
तँ ओ सभ सभटा बिसरि गेल। पछाति एकटा प्रेस खोललक तँ कहलिऐ छोटका भाएकेँ रखि
लहक तँ हमर बात नै मानि अपना सारकेँ रखलक। किछु दिनक बाद हमरा जेठकी पुतोहुकेँ
पेटमे दरद उठलै। राजविराजमे डाक्टर लग लऽ गेलिऐ। डाक्टर कहलक जे हिनका पेटमे
पाथर भऽ गेलनि। जल्दीसँ ऑपरेशन करए पड़त। दरभंगा लऽ जा करा दियौ। बीस हजारक
खर्चक अनुमान डाक्टरो कहलनि। हम चाउर-गहुम बेचि कऽ पनरह हजारक इंजाम केलौं आ
पाँच हजार टाका प्रोफेसरसँ मंगलिऐ तँ कहलक, हमरा लग एकोटा टाका नै अछि। परिवारमे
बड़ खर्च होइए। तैपर हम कहलिऐ, हौ, बड़की कनियाँ तोरा पढ़ाइमे बड़ मदति केने छथुन।
अखनि ओ बेराम अछि तँ तूँ कहै छह पाइए नै अछि। केते दुख हेतनि बड़की कनियाँकेँ।
मुदा ओ एको रूपैआ नै देलक। अंतमे हमर पत्नी अपन कौटबी बेचि दरभंगा देलक। दरभंगा
संगे जाइले प्रोफेसरकेँ कहलिऐ तँ सेहो तैयार नै भेल कहलक, मारि काज अछि।
एको मिनटक छुट्टी नै अछि। तखनि हम हमर जेठका बेटा आ पत्नी सभ कोइ दरभंगा जा
बड़की कनियाँक ऑपरेशन करेलौं।”
तैपर हम पुछलियनि-
“अँए यौ, प्रोफेसर साहैब
किछु ने मदति केलथि?”
राउत जी कहलनि-
“एकटा दोसर गप बतबै छी। हमर किछु जमीन
नहरिमे चलि गेल रहए। सरकार जमीनक मुआबजा भुगतान केलक। राजविराजेमे रूपैआ भेटल।
रातिमे हम रूपैआ प्रोफेसरकेँ रखैले देलिऐ। भिनसर भने गाम अबै काल रूपैआ मंगलिऐ
तँ ओ कहलक, हमरा
रूपैआ बेगरता अछि। अहाँ लग तँ रखले रहत दू मास पछाति आपस करब। जखनि तीन मास
पछाति छोटका बेटाले धनकुट्टा मील आ आटा चक्की बैसबैले रूपैआ मंगलौं तँ कहलक, सभ खेत-पथार तँ ओही भाय
सभ लेल छोड़ि देने छिऐ। हम तँ मात्र खरचे जोकर चाउर-गहुम-दालि-लल्लू-पिआजु अनै छी
बाँकी सभ किछु तँ ओकरे सभ लेल रहि जाइत अछि। पाँच हजार रूपैए रखि लेलौं तँ कोन
बड़का अन्हैर भऽ गेल। बेटीक जे बिआह केलाैं ओहूमे एकोटा छिद्दी नै देलक। ई
प्रोफेसर तँ ओहू दुनू भाँइक सम्पति हरपैले चाहैए। एतेक दिनसँ प्रोफेसर अछि।
प्रेस से चलबैत अछि जइसँ रूपैआक नीक आमदनी छै। मुदा आइ धरि हमरा आकि माएकेँ
एक्को टाका नै देने हएत। बौआ, जे विद्वान से बेइमान।”
हमरा राउत जीक
बात सुनैत-सुनैत
निन्न आबए लगल। कहलियनि-
“बाबा, हम सुतै छी।
अहूँ सुति रहू।”
सोच
“बाबूजी आइ.आइ.टी. प्रतियोगिता
परीक्षाक तैयारी लेल कोचिंग करब। राजस्थानक कोटामे नाओं लिखाएब। ओतए नीक तैयारी
करौल जाइ छै। तइले एक लाख टाका चाही।” अजीत दरभंगासँ अबित पिताकेँ कहलकनि।
बेटाक बात सुनि
शीतल राय बिगरैत कहलखिन-
“हरिदम टाका केतएसँ औत, पाँचमे दिन तँ
तोरा पाँच हजार टाका देने रहियौ। ऐतए कि रूपैआक गाछ अछि। जखनि मन भेल झखा लिअ।
देखै नै छिही दादाक इलाजमे केते खरच भऽ रहल छौ। ओ किछुए दिनक मेहमान छथिन।
अखनि धरि दबाइए बले जीबैत रहला अछि। मुदा आब बेसी दिन नै खेपता।”
अजीत बाजल-
“सुजीत भाय, कोटामे नाओं लिखौलनि।
ओ हमरा कोटेसँ फोन केने छला। कहलनि जे सत्तरि हजार एडमिशनमे लगत आ रहै-खाइक अलगसँ।
सुजीत तँ अपना सभसँ गरीबे छथिन। हुनकर पिताकेँ तँ चारिए बीघा खेत छन्हि। धिया-पुताकेँ ट्यूशन
पढ़ा काज चलबै छथिन। अपना तँ दस बीघासँ बेसीए खेत हएत। रूपैआ नै अछि तँ पाँच
कट्ठा खेते बेचि लिअ।”
शीतल राय जोरसँ
बजला-
“देख, बेसी हमर दिमाग
नै चाट। हम खेत नै बेचब। लोक की कहत। कहत ने जे शीतलो खेत बेचि-बेचि खाए लगल।
परुकाँ साल गीताक बिआहमे बीघा भरि खेत बिकले रहए। हरिदम जँ खेत बेचब तँ गाम-समाजमे कोन इज्जति
रहत।”
बाबू जीकेँ अपन
गप नै मानैत देखि अजीत माए लग पैरवी लगौलक। माए सभ बात बूझि पति लग जा बड़
खुशामद केलखिन मुदा शीतल राय साफ तैयार नै भेला।
शीतल
रायकेँ दस बीघा खेत। एकटा बेटा आ एकटा बेटी जेकर बिआह-दुरागमन सभटा भऽ
गेल छन्हि। ओ अपना दुल्हा संग राँचीमे रहै छथिन। शीतल रायक पिता तँ जीविते
छथिम मुदा माए मरि गेल छथिन। पिता दम्माक पुरान रोगी छथिन। बेटा अजीत पढ़ैमे
होशगर छन्हि। मैट्रिको आ आइ.एस.सी.मे नीक नम्मर अनने अछि। मुदा शीतल राय पढ़ाइकेँ
बेसी महत नै दइ छथिन। हुनकर सोच छन्हि एकटा बेटा अछि, दस बीघा जमीन
अछि। कोन जरूरी छै बेसी पढ़बाक। आब पढ़ाइ छोड़ि खेती-गिरहस्तीक काज
देखह। अजीतकेँ रूपैआ नै देलखिन तँए ओ खेनाइ-पीनाइ छोड़ि
देलक। तीनिए दिन पछाति शीतल रायक पिता मरि गेलनि। आब भोज-भातक चर्च हुअए
लगल।
शीतल
रायक पिता जोखन मरड़ गामेमे मात्र नै परोपट्टामे नामी बेकतीमे एक छला। जातिक
मैनजन सेहो छला। शीतल राय सोचए, बाबूजी मैनजन छला। तँए हुनकर श्राधक भोज खुब नीक आ
नम्हर हेबाक चाही। रसगुल्ला-लालमोहनक भोज करब। भोज आ क्रिया-कर्ममे दू लाख
टाकासँ बेसी खर्च हएत। मुदा हाथपर तँ नै अछि। से नै तँ दस कट्ठा खेते बेचि लेब।
ई काज दोहरा कऽ फेर थोड़े हएत। अपनो नाआंे कऽ लेब। अजीत सभ गप सुनैत रहए मुदा बाजए
किछु नै। ओकरा दिमागमे कोटाक अलाबे किछु एबे ने करैत।
भोज-भातक इंजामक लेल
शीतल राय अपन सार बेचनजी केँ बजौला। बेचनजी हाइ स्कूलमे शिक्षक छथिन। ओ अबिते
बहनोइसँ कहलखिन-
“जेतबे सकर्ता हुअए तेतबे भोज करू। जमीन
बेचि भोज केलासँ कोन लाभ।”
तैपर शीतल राय
बजला-
“यौ मास्टर साहैब, बाबूजी जातिक
मैनजन छला। परोपट्टामे हुनकर नाम छन्हि। नीकसँ भोज नै भेने लोक की कहत?”
जखनि ई गप-सप्प दुनू सार-बहनोइमे होइ छल
तखनि अजीतो ओतै रहए। पिताक बात सुनि अजीत बाजल-
“मामा यौ, बाबूजी हमरा
कोचिंग करैले एक लाख टाका नै देता मुदा दादाक भोज खेत बेचि कऽ दू लाख टाका खर्च
करथिन?”
तैपर शीतल राय
टोकलखिन-
“पहिने हमरा भोज करए दे। तेकर पछाति आर
किछु सोचब।”
बहनोइक बात सुनि
बेचनजी बजला-
“अँइ यौ पाहुन, अहाँ कोन मनुख
छी। बेटाक इंजीनियरिंगक प्रतियोगिता परीक्षा तैयारी लेल टाका नै देबै आ भोज-भात खुब ऐल-फइलसँ करब? धूर जी! केहेन अहाँक सोच
अछि। छोड़ू भोज-भात।
पहिने अजीतकेँ रूपैआक इंजाम कऽ दियौ। तेकर पछाति भोज-भातक गप सोचब। बेटा
जे इंजीनियर भऽ जाएत तँ बड़ पैघ बात हएत।”
शीतल राय सोचए
लगला, बेचन
बाबू नीके कहै छथि।
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली
अनुवाद डॉ. शम्भु
कुमार सिंह द्वारा
पाखलो
बालानां कृते
बच्चा
लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही,
आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते
लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो
ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो
ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे
ब्रह्मा, दीपक
मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति!
अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं
हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन
सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने
चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु
कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत्
भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना
स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन
अहल्या, द्रौपदी,
सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा,
बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम-
ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा
लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये
सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे
वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र
२२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः।
स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि,
आ’
शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन
करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा
त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे
ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’
नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक
उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद
ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण
करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पडला पर वर्षा
देथि, फल देय
बला गाछ पाकए, हम सभ
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