बिसवासघात
बेचन ठाकुर
तेसर अंक
पहिल दृश्य
(लक्ष्मी, झामलाल, लक्ष्मण आ सियाराम बैस कऽ केसक सम्बन्धमे विचार-विमर्श कऽ रहल छथि।)
लक्ष्मण- की भागीन, बीरूपर केस करबै?
झामलाल- मामा, की कहू की नै, किछु नै फुराइए।
लक्ष्मण- की बहिन, तोहर की विचार?
लक्ष्मी- तूँहीं सभ विचार करहक।
झामलाल- मामा, जदी अपना सभ उनटे फँसि जाइ। तहन की हेतै? अपना लग तँ कोनो पकिया सबूत तँ नै अछि।
लक्ष्मण- से तँ ठीके। मुदा बीरूक गप-सप्पसँ लागल जे ओएह सभ करामात केलक। पाहुन, अपनो किछु विचार दियौ। चुप-चाप बैसने काज नै चलत। अहीं कहू, आइ सात दिन भऽ रहल छै। मुदा रामलाल भागीन घूमि कऽ नै आएल। बीरूए संगे गेल रहए।
सियाराम- बात तँ विचारणीय जरूर छै। एना भेलै तँ भेलै किए? हमर विचार इएह अछि जे अहाँ सभ केसक चक्करमे नै जाउ, फक्कर बना देत। ओना फक्कर छेबो करी। अपने बुजुर्ग छिऐ बुझिते हेबै जे थाना पुलिस मालबलाकेँ होइ छै। ओना अपनेकेँ जे मन होइए से अबस्स करू। हम के रोकनिहार?
झामलाल- मामा, काका ठीके कहै छथिन। हमर इएह विचार जे केस- फौदारीक चक्करमे नै पड़ी। जे भेलै तेकरा बिसरि जाइ। मुदा सतर्क रही।
लक्ष्मण- सतर्क तँ हरिदम रही। ई बड्ड नीक बात। मुदा छलबुद्धिक सतर्कताक आगू सुबुधिक सतर्कता फाइल रहै छै। एना जे बिसरबै भागीन, तँ कहियो अहूँ पार भऽ जाएब आ कहियो हमहूँ। एतबे नै, कहियो पूरा समाजो। कारण ओकरा हिम्मत बढ़ि जेतै आ उ हरिदम मनमाना करैक पूरा प्रयास करत।
झामलाल- मामा, ईहो बात काटैबला नै अछि। बड़ी दूरक बात कहलिऐ।
लक्ष्मी- (कानि कऽ) हमर बेटा गेल तँ गेल। मुदा दोसरोक बेटा नै जाए तेकर जोगार अबस्स हेबाक चाही। एकर बीड़ा तँ हमरे उठबऽ पड़तै। कारण हम भुक्तभोगी छी। समाजसँ सहयोग लेबै। हमरा पूरा भरोस अछि जे ऐ बीड़ामे समाज अबस्स सहयोग करता।
झामलाल- माए, तूँ कान नै। कमजोर छेँ। माए, तूँ नै बुझै छिहीन जे समाज जेम्हर खीर तेम्हर भीड़ लगबै छै।
लक्ष्मी- कखनो-कखनो सेहो होइ छै। मुदा हम जौं एना सोचबै तँ समाजक मौका हूसि जेतै। मौकाक फायदा उठेबाक चाही। (लक्ष्मी आँखिसँ नोर बहैए।)
लक्ष्मण- बहिन तूँ कान नै। धैर्य राख। संतोख कर। मुदा हम छोड़बै नै। केस करबेटा करबै। (अपनेआपकेँ) भारतमे विधायिका, न्यायपालिका आ कार्यपालिका तीनू भ्रष्ट छै। मुदा ओहीमे केतौ-नै-केतौ आ कनीओ-ने-कनीओ जान छै। तँए ने भारत चलि रहलए। भागीन, देखियौ तँ घरमे रामलालबला कोनो कागत-पत्तर छै कीने। जाउ, जल्दी आउ। थाना जाए पड़त। (झामलालक प्रस्थान)
सियाराम- सार, नै मानबै अहाँ। खाइर अपनेकेँ जे फुड़ाए से करू। हम जाइ छी। लखन भैयाक तबियत खराप छेलनि। (सियारामक प्रस्थान। रामलालबला किछु कागत-पत्तर लऽ कऽ झामलालक प्रवेश।)
झामलाल- मामा, इएह लिअ कागत-पत्तर। (लक्ष्मण कागत लऽ कऽ गौरसँ देखि रहल छथि।)
लक्ष्मण- बाह! बाह! रामलाल भागीन, काज तूँ बड्ड पकिया केने छेँ। झामलाल भागीन, देखियौ थाना, एस.डी.ओ. आ कलक्टरकेँ देल गेल दरखासक टूरू कॉपी। ई सभटा कागत बड्ड काज देत। सेरिया कऽ राखू आ चलू थाना। केस कऽ दइ छिऐ बीरूपर। (लक्ष्मण आ झामलाल थानापर जा रहल अछि। पर्दा खसि पड़ल। किछु दूर गेलापर राम किशुनक प्रवेश। पर्दा उठैए।)
राम किशुन- सार रूकू। (दुनू मामा- भागीन रूकि गेल।)
लक्ष्मण- की यौ? की बात?
राम किशुन- केतए जाइ छी, दुनू मामा- भागीने?
लक्ष्मण- जाइ छिऐ थाना। बीरूपर केस कऽ दइ छियनि। कहने जे रहू।
राम किशुन- हमर विचार अछि जे अहाँ सभ केसक चक्करमे नै पडू।
लक्ष्मण- तखनि की करू?
राम किशुन- समाजमे फरिया लिअ।
लक्ष्मण- समाजमे बेसी काल मुँह देखि मुंगबाबला फैसला होइ छै। पंच भगवान जेम्हर खीर तेम्हर भीड़ लगा दइ छथिन। ई फलना बाबू छथि। हिनकर गलतीकेँ गलती केना कहबै। हिनकर प्रतिष्ठा चलि जेतनि। एहेन तरहक पंचैती बेसी काल होइ छै। जौं केतौ-केतौ उचित पंचैती भऽ गेल तँ उचित वक्ताकेँ शांत नै रहऽ दैक प्रयास कएल जाइए।
राम किशुन- सार, हम छी कीने। उचिते हेतै।
लक्ष्मण- हमरा पूरा बिसवास समाजपर अछि। मुदा समाजक जन प्रतिनिधि स्वार्थमे अपन करतब बिसरि जाइ छथिन।
राम किशुन- अहाँकेँ कोनो तरहक दिक्कत नै हेतै। हम छी।
लक्ष्मण- (किछु सोंचि कऽ) अच्छा, एगो गप कहू तँ, जदी थानेमे केस कएल जाए तँ अहाँ केते मदति करब?
राम किशुन- हम किछु मदति नै करब। ऐमे हमरा बड्ड नोकशान अछि।
लक्ष्मण- अहाँकेँ ऐमे की नोकशान अछि?
राम किशुन- अहाँ जौं दृढ़ संकल्पित छी जे बीरूपर केस थनेमे करब तँ हमरा अपन नोकशान कहे पड़त।
लक्ष्मण- बाजू ने, दालिमे किछु कारी छै की?
राम किशुन- नहिए मानबै, नहिए मानबै।
लक्ष्मण- नै यौ, हम ओकरा नै छौड़बै। जे हेतै से देखल जेतै।
राम किशुन- तँ सुनि लिअ, जौं अहाँ बीरूपर केस करबै तँ हम फँसबै। केससँ वा कोनो जोगारसँ अहाँक भागीन घूमि कऽ नै आएत। ओना अहाँ केसो करब तँ अहाँ नै जीतब, ई गाइरेन्टी। पुलिस, एस.पी., डी.एस.पी., कलक्टर इत्यादि सभ हम्मर छी। बेकारमे अहाँ सभ लफड़ामे पड़ि जाइ जाएब। से अपन सोचि लिअ। बादमे हमरा किछु नै कहब। हम जाइ छी। (राम किशुनक प्रस्थान।)
लक्ष्मण- भागीन, चलू गामपर। पहिने समाजमे विचार कऽ लेबै। समाज की राय- विचार दइ छथिन। तइ हिसाबे अगिला कारबाइ करब।
झामलाल- चलू मामा, मामा यौ मामा, हम नै बुझै छेलिऐ जे राम किशुन काका एते बड़का स्वीट प्यॉयजन अछि स्वीट प्यॉयजन। बजता तँ लागत जे एते हिलसगर लोक दुनियाँमे कियो नै छथि। एकटा पूर्ण आदर्श बेक्तीकेँ जे हेबाक चाही तइसँ कनीओ कम नै बुझाइ छथि। मुदा तरे तर करतब देखियनु।
लक्ष्मण- भागीन, अपन कमीकेँ नुकबै लए कोनो कला चाही ने।
झामलाल- हँ मामा, तैमे परिपूर्ण छथि। मुदा एगो गप कहि दइ छी जे “मरता क्या नहीं करता” हम छोड़बनि नै, छोड़बनि नै।
पटाक्षेप।
दोसर दृश्य
(लक्ष्मी, झामलाल आ लक्ष्मण दूरापर चिन्तित मने बैसल छथि।)
लक्ष्मण- भागीन, ठीके कहलौं अहाँ। उ अस्सल स्वीट प्यॉयजन अछि। बजबै तँ कियो बिसवास नै करत।
लक्ष्मी- बौआ, केकरा दऽ कहै छिहीन?
लक्ष्मण- कहबौ बहिन तँ कनी- मनी नै बहुते आश्चर्य हेतौ।
लक्ष्मी- कहीन ने बौआ, केकरा दऽ कहै छिहीन?
लक्ष्मण- तोरे दियाद राम किशुन दऽ कहै छिऐ।
लक्ष्मी- की भेलै से?
लक्ष्मण- की हेतै? जे भेलै से वएह केलक।
लक्ष्मी- खोलि कऽ कही ने।
लक्ष्मण- की कहबौ खोलि कऽ? तोरा बुझैबला नै छै।
लक्ष्मी- कहीन ने बौआ, की बात छै? नै तँ मनमे दुगदुग्गी रहत।
झामलाल- माए तूँ बड्ड जिद्द करै छीहीन। एते नै करक चाही
लक्ष्मी- तोहर माए छी आ बौआक बहिन छी। कियो आन छी? गप-सप्प तेहने केलेँ तूँ सभ जे बुझैक जिज्ञासा बड्ड भेल। जदी तूँ सभ कहनाइ अनुचित बुझै छेँ तँ नै कह। आब की कहबौ?
लक्ष्मण- कहनाइ तँ अनुचित छैहे, मुदा बड्ड जिज्ञासा छौ तँए कहै छियौ। राम किशुनक किरपासँ रामलाल ऐ दुनियाँमे नै रहलौ। (ई बात सुनिते मातर बेहोश भऽ खसि पड़ली। लक्ष्मण लक्ष्मीकेँ सम्हारि कऽ कोरामे रखि मुँहपर गमछा हौंकै छथि। झामलालकेँ अक्क-बक्क नै फुराए रहल छन्हि। उ ठाढ़ अछि।) भागीन, ठाढ़ की छी बिअनि आ पानि नेने आउ। (झामलाल बिअनि आ पानि अन्दरसँ आनलक। लक्ष्मण पानिक छींट्टा लक्ष्मीक मुँहपर दइ छथिन। फेर मुँहो पोछै छथिन। दुनूक आँखिसँ नोर बहि रहल छन्हि।) भागीन, अहाँ खाली मुहेँपर बिअनि हौंकू। (झामलाल मुँहपर बिअनि हौंकि रहल अछि। किछुएकाल पछाति लक्ष्मीकेँ होश एलनि।)
लक्ष्मी- (उठि बैस कऽ) की कहने छेलहीन बौआ? एक बेर और कहीन तँ। बिसरि गेलिऐ।
लक्ष्मण- कहाँ किछु कहने छेलियौ।
लक्ष्मी- कथीदुन, कथीदुन, कथीदुन नै कहने छेलहीन। मने नै पड़ैए।
लक्ष्मण- समाजिक बैसार दऽ कहने हेबौ।
लक्ष्मी- हँ हँ सएह। सएह कहीन।
लक्ष्मण- समाजमे एहेन तरहक घटना घटि गेल। मुदा अपना सभ समाजकेँ नै कहलियनि। ओना ऐ समाजसँ हमर समाज अलग अछि। मुदा तोरा लऽ कऽ हमहूँ जूड़ल छी। हमर विचार अछि जे बैसार लेल सौंसे समाजमे ढोलहो दिआ दैतिऐ। समाज अबितथि तँ कहितियनि जे एना-एना घटना भेल। से अपने सभ की विचार दइ छिऐ। जे जेना कहै जेबै से करबै।
लक्ष्मी- विचार बड्ड नीक छौ।
लक्ष्मण- की भागीन, अहाँक विचार?
झामलाल- ऐ विचारकेँ के काटत?
लक्ष्मण- तहन जाउ चमरटोली। अपन डगर दइ बलाकेँ ढोल लऽ कऽ बजेने आउ।
झामलाल- बेस मामा, हम जाइ छी। (झामलालक प्रस्थान)
लक्ष्मी- बौआ, समाजकेँ सभ बात कहियहीन। बीरू दऽ कहियहीन पहिने। फेर पाहुन दऽ सेहो कहियहीन।
लक्ष्मण- हँ हँ, बैसार हुअ ने दहीन, सभटा बात खोलबै। मने मन गूँड़ -चाउर फँकलासँ काज नै ने चलतै। (झामलालकेँ हरिकेशरक संग प्रवेश)
हरिकेशर- (लक्ष्मणसँ) सार नहितन, बहुत दिनपर देखलियौ। कनियाँ नै छोड़ैत रहै छौ।
लक्ष्मण- सार, मजाक छोड़ अखनि। जरूरी काज छै।
हरिकेशर- सार, एते दिनपर भेटलेँ। केना छोड़ि देबौ। कही न, हम नै सकै छी तँए गामे-गामे बौआइ छी। लऽ चल हमरे तूँ अपन गाम। देखै छिऐ तोरा मौगीकेँ केते दम छै?
लक्ष्मण- ओतए जेबेँ गऽ आ एतए दुनू आदमी छीहे। लऽ चल तूँ अपने कनियाँ लग। तूँ ढोल बजबीहेँ आ हम दुनू उठा-पटक करब।
हरिकेशर- सार, बड्ड जुआएल छेँ रौ। अच्छा कह, की कहलेँ?
लक्ष्मण- कहलियौ जे सौंसे गाममे ढोलहो दऽ दहीन जे लखन ऐठाम बैसार छिऐ। से अबस्स सभ कियो पहुँचबै कष्टो कऽ के। कियो पुछता तँ कहबनि जे “हुनकर बेटा रामलाल हेराए गेलै, तही दऽ विचार-विमर्श हेतै।” बहिन दुआरे किछु कम्मे कहलौं। ई कमजोर दिलक अछि।
हरिकेशर- ठीक छैै। तँ हम जाइ छी। ढोलहो हम दऽ दइ छिऐ। (पर्दा खसैए। हरिकेशर ढोलहो दऽ रहल अछि) साँझमे सामुदायिक भवनपर बैसार लखनक कनियाँ करबैए। सौंसे गौआँकेँ हकार अछि। (बुधनक प्रवेश)
बुधन- की हौ हरिकेशर, कथीक ढोलहो छिऐ?
हरिकेशर- नै बुझलीहीन लखनक बेटा हेराए गेलै तही दऽ विचार-विमर्श हेतै। (बुधनक प्रस्थान। घूरनक प्रवेश)
घूरन- की हौ ढोलबला, कथीक ढोलहो दइ छहक?
हरिकेशर- जो, बुधनाकेँ पूछि लीहनि।
घूरन- आ तूँ कथी लए एलहक? कटहर पकड़ै लए?
हरिकेशर- (खिसिया कऽ) लखन भैयाक बेटा रामलाल हेराए गेलै, तही दऽ विचार-विमर्श हेतै समाजमे। ओकरे बैसार छिऐ सामुदायिक भवनपर।
घूरन- हँ, ई भेलह, मनुखताइ। आकि हरिदम टटाएले गप। (घूरनक प्रस्थान। किछुए काल पछाति ढोलहो दैत-दैत हरिकेशरोक प्रस्थान।)
पटाक्षेप।
तेसर दृश्य
(सामुदायिक भवनपर सियाराम, लक्ष्मण आ झामलाल
उपस्थित छथि। बुधन, घूरन, भूटन, पलटू आ चिनमाक प्रवेश।)
लक्ष्मण- गरीब लोकक बैसार छिऐ। साँझसँ राति हुअ जा रहल अछि। अखनि एतबे गौआँ सभ पहुचला। पंचैती हएत की नै। से नै कहि।
सियाराम- हमरा अबेर भऽ रहलए। हम चलि जाएब, सार।
लक्ष्मण- बैंह रूक। जै काज लए एलौं से करू। तहन जाएब। की करबै, अपन अख्तियारक गप तँ नै अछि। सौंसे गौआँ एता। सभकेँ सभ तरहक काज रहै छन्हि। सभ सम्हारिए कऽ ने एता। (हरिकेशरक प्रवेश) आ सार आ, बैस। सार, कनियाँ नै छोड़ै छेलौ।
हरिकेशर- सार, कनियाँ किए नै छोड़त। हमहीं नै छोड़ै छेलिऐ। (राम किशुन, रामसेवक, लखन, जगन्नाथ आ बीरूक प्रवेश)
लक्ष्मण- आउ, बैसै जाइ जाउ। (मंचपर उपस्थित सभ कियो बैस गेलथि। मुदा लक्ष्मण आ झामलाल ठाढ़ भऽ गौआँक प्रतीक्षामे छथि।) अखनि धरि सरपंच महोदय नै पहुँचा अछि। बिसरि तँ नै गेला ओ।
झामलाल- बिसरल तँ नै हेता। हुनको बड्ड केस रहै छन्हि कीने। (गंगाराम, मोहन आ पंचूक प्रवेश) आउ श्रीमान आउ, पधारल जाउ। (तीनू आदमी बैसलथि।)
गंगाराम- और कियो एता आकि पंचैती शुरू कएल जाए?
लक्ष्मण- हँ हँ, शुरू कएल जा सकैए। कारण बड्ड बिलंब भऽ गेल।
गंगाराम- बिलंबक कारण हम क्षमाप्रार्थी छी। की करबै हमहीं। बड्ड फाइल रहै छै। एते केतौ झगड़ा-झंझट हुअए। फरियबैत-फरियबैत अक्कछ रहै छी। तैयो केते ठाम ओझराएले रहैए।
लक्ष्मण- सरपंच साहैब, पंचैती शुरू कएल जाए। छूटल बढ़ल जे कियो एता, हुनका स्वागत हेतनि।
गंगाराम- की यौ लखन, अपने पंचैती किए बैसेलिऐ?
लखन- (अकचका कऽ) हम किए बैसेलिऐ। हमरा किए पुछै छी?
गंगाराम- तब किनका पुछबनि? ठोलहोमे अहींक नाओं कहै छेलए।
लखन- से कहौ, मुदा हमरा किछु नै बुझलए। नै मारी माछ, नै उपछी खत्ता।
गंगाराम- तहन बैसार करौनिहार के छथि? (लक्ष्मण आ झामलाल ठाढ़ भऽ जाइ छथि।)
लक्ष्मण- हम सभ छी, सरपंच साहैब।
गंगाराम- अहाँ के थिकौं? हमर गौआँ तँ नै लगै छी।
लक्ष्मण- जी, अपनेक गौआँ हम ठीके नै छी। हम लखनक सार छी। नाओं लक्ष्मण छी।
गंगाराम- अहाँकेँ ऐ पंचैतीसँ कोन माने-मतलब?
लक्ष्मण- हमर पाहुन लखन अपन घरसँ बगदल छथि। हुनकर जेठ बेटा रामलालक हत्या अही गामक आदमी करबौलनि। सोगाएल-पीड़ाएल हमर बहिन जीती की नै जीती, से नै कहि। मुदा हमर पाहुन पाथर बनि राम किशुन पाहुन ऐठाम पड़ल रहला, एक्कोबेर हुलकीओ नै देलथि।
लखन- सरपंच साहैब, पुछियनु तँ हमरा हत्या दइ के कहलक आ कहिया कहलक? (आँखिसँ नोर बहै छन्हि।) हँ हराइ दऽ लक्ष्मण अबस्स कहने रहथि। ओना हत्यो दऽ कहितथि तँ हम कोनो कान बात नै दैतिऐ। कारण ऊ छौड़ा हमरा चक्कू भोंकै छेलए।
गंगाराम- की यौ लक्ष्मण, ठीके बात छै?
लक्ष्मण- बात तँ ठीक छै। मुदा ऊ अपन माएकेँ बँचाबैले एना केने रहाए। जदी आज्ञा होइ तँ अपन बहिनकेँ एतए बजाबी।
गंगाराम- बजाउ। फेर जल्दीए चलि जेती।
लक्ष्मण- झामलाल, माएकेँ बजा आनहुन।
झामलाल- जी मामाजी। (झामलाल अन्दर जा कऽ लक्ष्मीकेँ बजा आनलक। लक्ष्मीक आँखिसँ दहो-बहो नोर जा रहल छन्हि।)
गंगाराम- (लक्ष्मीसँ) लखन जी घर किए छोड़ि देलथि?
लक्ष्मी- हमर एगो बेटा रामलाल तँ दुनियाँसँ चलि गेल। (कानए लगैए)
गंगाराम- कानू नै, धैर्य रखि बाजू।
लक्ष्मी- आब एगो बेटा झामलाल बाँचल आ एक्केटा भाए लक्ष्मण अछि। ओइ दुनूक सप्पत खा कऽ कहै छियनि जे रामलाल नै रहितए तँ ओही दिन हमरा ओ जान लऽ नेने रहतथि। परिवारक नीक-अधला दऽ विचार देलियनि तँ ओ अनधून मारए लगलथि।। ओकरा नै देखल गेलै तँ हुनका चक्कू देखा हमरा बँचौलक। हुनके चालिसँ हमर बेटा दुनियाँसँ चलि गेल। (कानए लगैए)
गंगाराम- ठीक छै अहाँ चलि जाउ। (लक्ष्मीक प्रस्थान)
बुधन- यौ सरपंच साहैब, अहाँ की सँए-बौहक झगड़ामे लागल छी। एगो कहबी छै- ‘सँए-बहुक झागड़ा, पंच भेल लबड़ा।’ हमरा जाइक आज्ञा दइ छिऐ?
गंगाराम- रूकू ने, जेबे करब। राति अपन छिऐ।
बुधन- हमर अहाँक ने राति छै आकि महिंसोकेँ? महिंसोकेँ मारिते डिरीआइत छोड़ि आएल रही। ओकरा लऽ कऽ भरि राति बौआए पड़त। परोकेँ कोनो ठेकान रहै छै।
गंगाराम- लक्ष्मण, आगू बाजू। और कोनो गप?
लक्ष्मण- अस्सल गप तँ उखड़बो नै कएल।
मेाहन- उखाड़बै तहन नै उखड़तै। मने मन गूड़-चाउर फँकलासँ समस्याक समाधान केना हएत? अपन समस्या बाजू।
लक्ष्मण- ओकील साहैब, बीरू संगे हमर जेठ भागीन करीब जीन महिना पहिने भोरे भोरे बहराएल आ फेर घूमि कऽ ओ नै आएल। हम शकपर बीरूपर केस करए थाना जाइत रही दुनू मामा भागीन कि राम किशुन रस्तेसँ ई कहि घूमा लेलनि जे ‘अहाँ सभ केसक चक्करमे नै पड़ू। समाजेमे फरिया लिअ। बीरूपर केस करबै तँ हम फँसबै। केससँ वा कोनो जोगारसँ अहाँक भागीन घूमि कऽ नै आएत। “हुनके आदर करैत हमरा लोकनि समाजक समक्ष छी। जेना आज्ञा होइ।
मोहन- की यौ बीरू, अपने ऐ सम्बन्धमे किछु कहबै?
बीरू- रामलाल हमरा संगे चाह पीऐ लए ठीके गेल। मुदा चाह पीब कऽ उ अपन घर दिस गेल आ हम अपन घर दिस एलौं।
मेाहन- उ अहाँकेँ संग केलक, की अहाँ ओकरा संग केलिऐ?
बीरू- हमहीं ओकरा संग कके लऽ गेलिऐ।
मोहन- कहियो और संग करै छेलिऐ ओकरा?
बीरू- नै कहियो।
मोहन- तँ ओइ दिन ओकरा संग किए केलिऐ?
बीरू- कोनो खास बात नै छेलै। एक आदमीसँ हमरा अपन पाइ ओसुलबाक छल। बहुत दिनसँ उ ठकै छेलए।
मेाहन- ओइ आदमीकेँ एतए अखनि हाजिर कऽ सकै छी?
बीरू- नैै।
मेाहन- किए?
बीरू- कारण ओइ आदमीक आवासक ठेकान अनिश्चित अछि।
मोहन- ओइ आदमीसँ अहाँक केहेन सम्बन्ध अछि?
बीरू- कोनो खास नै। साधारण लेन- देन होइए।
मोहन- सरपंच साहैब, नोट कएल जाए जे ओइ आदमीसँ लेन- देन होइए। मुदा ओकर आवासक ठेकान अनिश्चित अछि। उ आदमी एतए हाजिर नै भऽ सकैए। राम किशुन, बीरूक गप केतए धरि साँच अछि से किछु बताएल जाए।
राम किशुन- हमरा जनतबे बीरूक गप नब्बे प्रतिशत साँच अछि।
मोहन- दस प्रतिशत केतए कम अछि?
राम किशुन- उ आदमी जे एतए हाजिर नै भऽ सकैए, गुंडाराज अछि।
मोहन- अहाँ ओइ गुंडाराजकेँ केना जानै छिऐ?
राम किशुन- बीरू हमर परम अपेक्षित छथि। हिनका हुनकासँ परिचए छन्हि। ई हुनकासँ हमरो परिचए करबौलनि।
मोहन- अहाँक ओइ गुंडाराजसँ परिचए करबाक की प्रयोजन?
राम किशुन- माथपर बड्ड टेंशन रहाए। ओहीसँ मुक्ति पाबैक लेल ई रस्ता चुनलौं।
मोहन- बड्ड टेंशन की रहाए माथपर?
राम किशुन- एन.एच.बला पाइक टेंशन रहाए।
मोहन- की आब ओइ टेन्सनसँ मुक्त छी?
राम किशुन- हँ, आब पूर्ण मुक्त छी।
मोहन- केना बुझै छिऐ जे अहाँ पूर्ण मुक्त छी?
राम किशुन- कारण नै उ देवी छै आ नै उ कराह छै।
मोहन- माने ई जे रामलाल आ ओकर प्रयास अहाँपर आब नै रहल।
राम किशुन- कहैत तँ लाज होइए मुदा कहनाइ उचित बुझाइए- जी।
मोहन- सरपंच साहैब, नोट कएल जाए जे रामलाल आ ओकर प्रयास आब नै रहल।
जगन्नाथ- सरपंच साहैब, हमरा जनतबे सक्षम परिवार रहने दियाद- दियादमे इर्ष्या- द्वेषक भावनासँ राम किशुनकेँ फँसाएल जा रहल अछि। राम किशुनक उन्नति हिनका दियादकेँ नै देखल गेलनि। किछु माल टानैक षडयंत्र रचल बुझाइए।
गंगाराम- जगन्नाथ बाबू, अपने शांत रहियौ। मोहन बाबू, किछु और पुछबनि राम किशुनसँ।
मोहन- जी, एक्केगो और। राम किशुन, अपने निधोख सभ सवालक जवाब देलौं। एकरा छिपाइओ सकै छेलौं हेन। किए ने छिपेलौं?
राम किशुन- ई बैसार सामजिक अछि। सभ कियो अपने छथि। सभ कियो हमरा प्रतिष्ठित आदमी बुझै छथि। हम पैघो गलती कऽ लेबै तँ पंच हमरा गलतीकेँ छोट-छीन गलती बूझि माफ कऽ देथिन। कारण हम छल-बल-कलसँ परिपूर्ण छी। ई हम अपन दिलक गप अप्पन जानि कहि देलौं। सभठाँ थोरहे कहितिऐ।
घूरन- सरपंच साहैब, आब ऊ जमाना गेलै। जौं उचित फैसला नै हएत तँ हल्ला-फसाद उठत। ऐं यौ, मुँदुब्बराहक बौह सभकेँ भौजाइए होइत रहत सभ दिन। मालपर कमाल नै कऽ देबै नै तँ बबाल भऽ जाएत।
गंगाराम- औगताउ नै, शांत रहू। पहिने फैसला सुनू तहन किछु बाजब।
राम किशुन- सरपंच साहैब, घुरना एकदम ठीक बाजि रहल अछि। फैसला तँ एहेन होइ जे बुझाइ सुप्रीम कोर्ट समाजेमे अछि।
लक्ष्मण- सरपंच साहैब, ऐ बातक चर्च एक्को बेर नै भेल जे एन.एचमे केते पाइ उठलै आ केते राम किशुन हमरा पाहुनकेँ देलखिन तथा हमरा पाहुनकेँ ओ अपना ऐठाम किए रखने छथिन?
सरपंच- अहीं बाजू, की गप छै?
लक्ष्मण- झामलाल भागीन, अहीं कहियनु। माए जे कहने रहथि।
झामलाल- एन.एच.क नोटिस 80 हजारक छेलै। पाइ उठलै आठ लाख आ हमरा बाबूकेँ राम किशुन काका देलखिन पचास हजार मात्र। ई गप हमर भैया भू-अर्जन कार्यालयसँ पता लगेलखिन। विवादक जड़ि इएह छी। बड़कासँ छोटका घरमे कम की बेसी झगड़ादन होइते रहै छै। जदी खिसिया कऽ हमर बाबू हिनका ऐठाम चलिए गेलखिन तँ हिनका चाही जे समझा बुझा कऽ बाबूकेँ पठा दैतथि।
गंगाराम- की यौ राम किशुन, ऐ गपपर किछु कहबै अपने आकि आफिससँ पता लगाबए पड़तै?
राम किशुन- अहाँकेँ आफिससँ पता करबाक हुअए तँ हम मनाही नै कऽ सकै छी। ओना झामलाल पाइक सम्बन्धमे ठीके कहलक। ऑफिसक स्थिति अपने बुझिते छिऐ जे केते भ्रष्ट छै। जेतए धरि लखन भैयाक गप छै तँ हम हुनका बाप जकाँ मानै छेलिएे आ ऊहो बेटा जकाँ मानैत रहथि। ओ हमरा ऐठाम भागि कऽ एला। हम हुनका केना बैला दैतियनि? अहीं कहू?
भूटन- हौ हौ सरपंच साहैब, जल्दी फैसला दियनु। बड्ड राति भऽ गेल। घरपर कनियाँ केना हेती केना नै। जुग-जमाना केहेन भऽ गेलै से अपने बुिझते हेबै। गामपर रहै छी तहन छौंड़ा सभ हुलुक-बुलुक दैत रहैए आ नै छी तँ की करैत हएत। तहूमे बिआह केना सालो नै लागल। बालो-बच्चा नै भेल। जल्दी करियौ।
गंगाराम- की यौ पंच भगवान सभ, फैसला सुनाएल जाए?
बुधन- सुनेबै तँ सुनबियौ। नै तँ चलि जाएब और की।
गंगाराम- तँ सुनै जाइ जौ। राम किशुनकेँ जुर्माना नै मदति रूपे लक्ष्मीकेँ पाँच लाख टाका दिअ पड़तनि आ लखनकेँ बाइइज्जत अपन घर समझा बुझा कऽ पठाबए पड़तनि।
भूटन- अँए यौ सरपंच साहैब, राम किशुन लक्ष्मीकेँ मदति रूपेँ पाँच लाख टाका देथिन। कोन सपेत कऽ यौ? की उ बड़का दानी छथि? रामलालकेँ हत्या करबाकऽ उ बड़का दानी भऽ गेला। कहियौ ने पाँच लाख जुर्माना लगतनि। लगैए जे अहुँ बिका गेल छी।
गंगाराम- देखियौ बुजुर्ग आदमीकेँ हरमूठ जकाँ नै कहल जाइ छै, घूमा-फिरा कऽ कहल जाइ छै।
पलटू- उ बुजुर्ग आदमी छथि तँए समाजमे हत्या करबै छथिन। हँ यौ, बजैमे मुहसँ मौध चुऐत रहै छन्हि आ काज बीखबला करै छथि। हुनका सौसें समाजसँ माफी माँगए पड़तनि आ जुर्माना पाँच लाख टाका लगतनि।
गंगाराम- सएह हेतै की। की यौ श्रोता समाज, फैसला पसीन भेल?
सभ समाज- जी, पसीन भेल। (राम किशुन उदास भऽ गेल।)
गंगाराम- की यौ राम किशुन, हुनका पाइ कहिया देबनि? (राम किशुन अबाक भऽ जाइए) किए नै बाजै छी। जल्दी बाजू। बिलम भऽ गेलनि सभकेँ।
राम किशुन- जौं समाज हमर इज्जत नै केलनि आ अहूँ सभ नै केलौं तँ हम अपन मनक बात बाजि दइ छी।, मानलौं तैयो बढ़ियाँ नै मानलौं तैयो बढ़ियाँ। हम एक लाख टाका देबनि जुर्मने सही। ऐसँ बेसी हमरासँ संभव नै अछि।
सभ समाज- ई नै हएत। ई नै हएत।
चिनमा- तहन सभ समाज झामलालकेँ संग देबनि जइसँ हेतै तइसँ। उ अपन कोटेसँ फरिया लेतै।
राम किशुन- (खिसिया कऽ) ठीक छै, तहन इएह रहए दियौ। देखबै माए केते दूध पीएने छै आ के के पीठपर रहै छै?
गंगाराम- राम किशुन, अहाँ एहेन सुन्दर पंचैतीकेँ नै मानलौं, अबस्स पछताएब। अहाँ हमरो बेकूफ बनेलौं। आब हमहूँ झामलालक संग देब।
राम किशुन- (क्रोधित भऽ) जाउ, जे करबाक वा करेबाक हएत से करब। अहूँकेँ चिह्नलौं।
पटाक्षेप।
चारिम दृश्य
(झामलाल अपना ऐठाम एस.डी.ओ. लग आ कलक्टर लग धरना प्रदर्शनक योजना झामलाल आ लक्ष्मण दुनू मामा-भागीन बना रहल अछि झामललाल ऐठाम।)
लक्ष्मण- भागीन, जखनि सौंसे गौआँ अपना सबहक संग अछि तँ पहिने एस.डी.ओ. लग धरना प्रदर्शन करू। तहन कलक्टर लग सेहो करब।
झामलाल- अगुआ अहींकेँ रहए पड़त।
लक्ष्मण- तइले कोनो बात नै। हम तैयारे छी मुदा अहाँकेँ पीठपर रहे पड़त।
झामलाल- हमहूँ पूर्ण तैयार छी। कखनि चलब मामा?
लक्ष्मण- अखने चलब।
झामलाल- दुइए गोटेसाँ धरना प्रदर्शन हएत?
लक्ष्मण- दुइए गोटे सौंसे गाम नारा लगबैत पहिने घूमि जाएब। समर्थक अपने संग दऽ देता। हमरा आशा अछि जे अपना सभ भारी संख्यामे भऽ जाएब।
झामलाल- तहन चलू।
लक्ष्मण- चलू भागीन। अपना सभ नारा लगाउ। झंडो पकड़ू। राम किशुनकेँ फाँसी दिअ।
झामलाल- फाँसी दिअ, फाँसी दिअ। (पर्दा खसैए)
लक्ष्मण- बीरूकेँ फाँसी दिअ।
झामलाल- फाँसी दिअ फाँसी दिअ। (बुधन, घूरन, भूटन, पलटू आ चिनमाक प्रवेश)
लक्ष्मण- रामलालक हत्यारा। हाय! हाय!
सभ कियो- हाय! हाय!! हाय! हाय!!
लक्ष्मण- अधिकार छिननिहारक मूर्दावाद।
सभ कियो- मूर्दावाद, मूर्दावाद।
लक्ष्मण- एस.डी.ओ. मूर्दावाद। (पर्दा उठैए। एस.डी.ओ. रामभद्र आ चपरासी अपन कार्यालयमे व्यस्त छथि। कार्यालयक समक्ष सभ कियो धरना प्रदर्शन करैत नारा लगाए रहल छथि।)
रामभद्र- (प्रदर्शनकारी लग आबि) अपने सभकेँ की कष्ट? किए धरना परदर्शन करै छी। (सभ कियो शांत भऽ जाइए)
लक्ष्मण- साहैब, रामलालक हत्यारा राम किशुनकेँ फाँसी दिआएल जाए। रामलाल अपन अधिकार माँगलक तइले ओकर हत्या करबाएल गेल। उ लड़का अपने लग एगो पेटीशनो देने रहाए जेकर ट्रू कॉपी हमरा लग विद्यमान अछि। (सियाराम आ लक्ष्मीक प्रवेश। लक्ष्मी कानए लगैए।
रामभद्र- ई जनानी के छथि?
लक्ष्मण- ओही लड़काक माए छथि।
रामभद्र- अहाँ कानू-खीजू नै। देखै छिऐ, बुझै छिऐ की बात छिऐ। तहन ने कोनो बात?
लक्ष्मी- (चूप भऽ) हाकिम हमर बेटा मरैसँ पहिने अपने लग दरखास देनेए। अपने ओइपर कोनो धियान नै देलिऐ।
रामभद्र- अच्छा, आब धियान देबै।
लक्ष्मी- आब धियान देलासँ हमर बेटा घूमि कऽ आएत की?
रामभद्र- से तँ असंभव। से जे कही।
लक्ष्मी- से की कहबनि। मनमे संतोख लेल राम किशुनकेँ उचित सजा अबस्स भेटए।
रामभद्र- ठीक छै। अहाँ सभ जाउ। यौ नेताजी, ओइ दरखासक ट्रू कॉपी देने जाउ तँ।
लक्ष्मण- (बेगसँ निकालि) ई लेल जाए ट्रू कॉपी आ एगो और दरखास।
रामभद्र- अहाँ सभ असथीरसँ जाइ जाउ। काज हेतै। (कनी दूर असथीर भऽ कऽ सभ कियो गेल। पर्दा खसल। फेर सभ कियो नारा लगाबैए)
लक्ष्मण- राम किशुनेँ फाँसी दिअ।
सभ कियो- फाँसी दिअ, फाँसी दिअ। (पर्दा उठैए। कलक्टर बीजेन्द्र आ हुनक चपरासी मजलूम ऑफिसमे व्यस्त छथि।)
लक्ष्मण- बीरूकेँ फाँसी दिअ।
सभ कियो- फाँसी दिअ फाँसी दिअ।
लक्ष्मण- रामलालक हत्यारा,हाय! हाय!!
सभ कियो- हाय! हाय!! हाय! हाय!!
लक्ष्मण- अधिकार छिननिहार मूर्दावाद।
सभ कियो- मूर्दावाद, मूर्दावाद।
लक्ष्मण- कलक्टर मूर्दावाद।
सभ कियो- मूर्दावाद, मूर्दावाद।
लक्ष्मण- भ्रष्टाचार बन्न करू।
सभ कियो- बन्न करू, बन्न करू।
लक्ष्मण- अत्याचारपर काबू पाउ।
सभ कियो- काबू पाउ, काबू पाउ।
बीजेन्द्र- (प्रर्दर्शनकारीक समक्ष आबि) अहाँ सभ किए डिसटर्ब करै छी,? की दिक्कत अछि?
लक्ष्मण- सभ कियो शांत भऽ जाइ जाउ। साहैबसँ गप करै छी। (सभ कियो शांत भऽ गेल) साहैब, एन.एच.मे पड़ल जमीनक पाइक खातिर हमर भागीन रामलालक हत्या राम किशुन द्वारा करबा देल गेल।
बीजेन्द्र- (मन पाड़ैत) अच्छा ओइ लड़काक हत्या करबा देल गेल। उ तँ एगो दरखासो देने रहाए हमरा। हमरा भेल जे समाजेमे फरिछा गेल हेतै। अच्छाऽ ऽ ऽ ऽ।
लक्ष्मण- साहैब, हमरा लग ओइ दरखासक फोटो स्टेट अछि।
बीजेन्द्र- लाउ तँ। (लक्ष्मण बेगसँ फोटो स्टेट निकालि बीजेन्द्रकेँ देलथि।) और कोनो कागत अछि?
लक्ष्मण- एगो दरखासो छै।
बीजेन्द्र- लाउ तँ जे अछि से। (लक्ष्मण दरखासो निकालि कऽ देलथि।) ठीक छै, ओइ महादलालकेँ बापसँ भेँट कराबै छी। पहिने हमरा इन्क्वाइरी करए दिअ। चोटा सभ गरीबेकेँ चुसैए।
लक्ष्मण- गरीबक मसीहा, जिन्दावाद।
सभ कियो- जिन्दावाद! जिन्दावाद!
लक्ष्मण- कलक्टर साहैब जिन्दावाद।
सभ कियो- जिन्दावाद! जिन्दावाद!
बीजेन्द्र- अहाँ सभ शांत भऽ कऽ जाइ जाउ। ऐ केसकेँ गंभीर रूपें देखै छिऐ। (सभ कियो लक्ष्मणक संग प्रस्थान।)
पटाक्षेप।
पाँचम दृश्य
(थानापर ओम प्रकाश, पवन, बिलट आ नदीम भ्रष्टाचारक सम्बन्धमे गप-सप्प करै छथि।)
ओम प्रकाश- छोटा बाबू, जहाँ-तहाँ भ्रष्टाचारक हल्ला हइ। की ऊ मेटाइबला हइ की ना हइ? अपनेके स्टडी बड़ी तागड़ा बा।
पवन- बड़ा बाबू, भ्रष्टाचार बड़ी भारी समस्या बा। ऐ समस्याके समाधन तुरंत असंभव बा। धीरे-धीरे होइ। ऐ बास्ते हमनीकेँ इमानदारीके महत समझैके पड़ी और अपन नेत सुधार करैके पड़ी जे बड़ी कठिन काम बा। संगे संग मनमे संतोख आननाइ जरूरी बा। (अन्दरसँ बीजेन्द्र, ओम प्रकाशकेँ फोन केलनि।)
ओम प्रकाश- हेल्लो साहैब प्रणाम। जी जी जी जी जी। तीन दिनक समए देल जाए। जी जी जी जी जी। अच्छा, हम अपन समैपर राम किशुनकेँ बा बीरूकेँ बा दुनूकेँ गिरफ्तार कऽ अपने लग हाजिर कऽ देब। जी जी जी जी जी। हो छोटा बाबू, कलक्टर साहैबकेँ ऑर्डर बा।
पवन- का ऑर्डर बा?
ओम प्रकाश- राम किशुनकेँ बा बीरूकेँ बा दुनूकेँ तीन दिनकेँ अन्दर साहैब लग हाजिर करै के आॅर्डर बा। अभीए चलऽ, देखऽ तनी। (ओम प्रकाश, पवन, बिलट आ नदीमक प्रस्थान। पर्दा खसैए। चारू गोटे राम किशुन ऐठाम जा रहल अछि। राम किशुन ऐठाम सभ कियो पहुँचलथि। पर्दा उठैए।)
राम किशुन- (मुस्कीआइत) प्रणाम बड़ा बाबू। प्रणाम छोटा बाबू।
ओम प्रकाश- का हो राम किशुन बाबू, रामलालकेँ मर्डर तूँ ही करबेलऽ? आज तू ना बची। कलक्टर साहैबकेँ ऑर्डर बा, तीन दिनके अन्दर हाजिर करै के। तोहर दोस बीरू कहाँ बा? ओकरो पकड़ै के ऑर्डर बा।
राम किशुन- (गंभीर मने) बड़ा बाबू, दोसके सम्बन्धमे हमरा किछु नै बुझलए।
ओम प्रकाश- चलऽ राम किशुन।
राम किशुन- अपनेक ऑडर हेतै आ हम नै जेबै; से भऽ सकै छै कहियो। (मुस्कीआइत) चाह- ताह पीब लिअ तहन जाएब।
बिलट- हौ हौ, जे करब से जल्दी करू। हिनकर चाह नै छोड़बाक चाही।
राम किशुन- राम सेवक,राम सेवक।
राम सेवक- (अंदरसँ) जी पापा।
राम किशुन- चारि-पाँचटा चाह नेने आउ। बड़ा बाबू एला।
राम सेवक- तुरन्त एलौं पापा। (राम सेवक ट्रेमे चाह लऽ कऽ आएल। पाँचू गोटेकेँ चाह देलक। सभ चाह पी रहल छथि।)
पवन- का हौ हबलदार, आज के चाय कैसन बा? आज चुपचाप पीने जा रहल बा।
बिलट- छोटा बाबू, आइ तँ होइए जे कपोकेँ चाह संगे पीबी जाइ। जे चाह बनेनिहारि एते सुन्दर आ सुआदिष्ट चाह बनाबैए ओकर और सभ कला ततबे सराहनीय हएत। छोटा बाबू, सच्चे कहै छी ऐ बेर घरपर जाएब जरूर एहने कामधेनु कनियाँ कत्तै करब। समदाहीपर लोक हँसबे करत तँ हँसौ हम मुँहपर ताला लगा सकै छिएे। कियो दाता अपना कनियाँ लग एक्को राति बिताबए देत। (सभ कियो चाह पीब कप रखि दैत छथि।)
ओम प्रकाश- आब चलऽ राम किशुन।
राम किशुन- चलू बड़ा बाबू। राम सेवक, कप सभ लऽ जाउ। हम अबै छी, कलक्टर साहैब लगसँ। एगो गप कहू बड़ा बाबू।
ओम प्रकाश- बाजऽ ने की गप हइ?
राम किशुन- हमरा छोड़ि दैतौं। जे कहितिऐ से सेवा भऽ जैतै।
ओम प्रकाश- केतना देबऽ?
राम किशुन- मुँहमंगा।
ओम प्रकाश- अब ऐसन प्रयास छोड़ दऽ। फेदा ना होई चलऽ बीरूके हीयाँ।
राम किशुन- चलू,उ हएत की नै हएत घरपर। तैयो चलू देखै छिऐ। (सभ कियो जा रहल छथि बीरू ऐठाम। पर्दा खसैए। सभ बीरू ऐठाम पहुँचलथि। पर्दा उठैए।)
ओम प्रकाश- राम किशुन, बीरूकेँ अपनेसे बजाबऽ तँ।
राम किशुन- दोस, दोस। बीरू भाय, बीरू भाय।
बीरू- (अन्दरसँ) अबै छी भाय। अबै छी। (बीरूक प्रवेश) प्रणाम बड़ा बाबू। (मुस्कीआइत)
ओम प्रकाश- प्रणाम प्रणाम। आज हमरा संगे जाइके पड़ी। कलक्टर साहैबक ऑर्डर बा।
बीरू- राम किशुन भायक जेहेन विचार? हमर मालिक तँ इएह छथि। जेना के राखथि हमरा।
ओम प्रकाश- ठीक हइ, तँ चलऽ। लेट भऽ रहल बा।
पवन- बड़ा बाबू, जल्दी करऽ। साहैब बिगड़ जाइ।
ओम प्रकाश- हँ हँ जल्दी चलऽ। (सभ कियो कलक्टर साहैब लग जा रहल छथि। पर्दा खसैए। कलक्टर साहैबक ऑफिस लग गेल। पर्दा उठल।) प्रणाम साहैब।
बीजेन्द्र- प्रणाम प्रणाम। एलौं ओम प्रकाश। इएह दुनू छथि।
ओम प्रकाश- जी, ई बीरू छथि आ उ राम किशुन छथि।
बीजेन्द्र- ओम प्रकाश, अखनि हमरा सामनेमे दुनूकेँ पहिने देह तोरू। तहन कोनो गप। (ओम प्रकाश दुनूकेँ हन्टरसँ निर्दय भऽ कऽ पीट रहल अछि। दुनू ओंघराइए आ बाप रौ माए गै चिचिआइए। आब छोड़ि दए हौ बाप, आब छोड़ि दए हौ बाप, चिचिआइए। मुदा बड़ा बाबू मारनाइ नै छोड़ै छथि। दुनू पानि पानि चिचिआइए। आम मरि जाएब, आम मरि जाएब, पानि-पानि चिचिआइए। तैयो ओम प्रकाश पीटनाइ नै छोड़ैए।) ओम प्रकाश, रूकू। (ओम प्रकाश मारनाइ बन्न केलनि।) मजलूम, दुनू बुजुर्गकेँ पानि दियनु बड्ड पियासल एला।
मजलूम- जे आज्ञा सर। बुजुर्ग लोकनि बड्ड मेहनतिओ केलथि। (मजलूम दुनूकेँ पानि पीएला।)
बीजेन्द्र- की राम किशुन, आब मन असथीर भेल। अच्छा कहू तँ- ई के छथि अहाँकेँ?
राम किशुन- (हकमैत) हमर दोस छथि।
बीजेन्द्र- लखन अहीं ऐठाम छथि की?
राम किशुन- जी हमरे ऐठाम छथि।
बीजेन्द्र- लखनकेँ आठ लाखक पेमेन्टमे मात्र पचास हजार देलिऐ?
राम किशुन- जी, आइमे हमरा बड्ड खरचो भेल।
बीजेन्द्र- एन.एच.क नोटिस अस्सी हजारक छल लखनक नामे। उ आठ लाख केना उठल? साँच-साँच बाजब।
राम किशुन- एन.एच.क इंजीनियर आ भू-अर्जन कार्यालयक पदाधिकारीक किरपासँ।
बीजेन्द्र- रामलाल हत्या अहीं करबौलिऐ?
राम किशुन- नै, हमरा किछु नै बूझल अछि।
बीजेन्द्र- तहन के? उ करबौलनि की?
बीरू- आइ सम्बन्धमे हमरा किछु बूझल अछि। हम गामोपर नै रही।
बीजेन्द्र- ओम प्रकाश, हिनका सभकेँ एक बेर और चिक्कन सेवा कऽ दियनु तँ। सुच्चा झूठ बाजैए। (ओम प्रकाश दुनूकेँ हंटरसँ पीटि रहल छथि। ओ सभ पहुलके जकाँ चिचिआइए।) और झूठ बाजब, और झूठ बाजब।
राम किशुन- कहि दइ छी। छोड़ए दिअ।
बीजेन्द्र- ओम प्रकाश, रूकू। (ओम प्रकाश मारनाइ छोड़लथि।) आब बाजू, रामलालक हत्या अहीं दुनू आदमी करबौलिऐ।
दुनू- जी सर।
बीजेन्द्र- और के के रहथि? फेर झूठ नै बाजब। नै तँ बूझि लिअ।
बीरू- एगो राजा छेलै आ ओकर चारिटा आदमी छेलै।
बीजेन्द्र- राम किशुन अहाँ बड़ा बाबू संगे चलि जाउ घर आ लखनकेँ ओकरा अपन घर पहुँचा कऽ फेर हुनके संगे आपस आउ। की?
राम किशुन- जी। (ओम प्रकास अपन टीमक संग राम किशुनकेँ ओकरा घर लऽ गेला। तैबीच बीजेन्द्र आ बीरू गप-सप्प करै छथि।)
बीजेन्द्र- बीरू, अहाँक दोस केहेन पार्टी अछि?
बीरू- पहिने ओतेक नीक नै रहाए। मुदा अखनि बहुत बढ़ियाँ अछि। हमरा गाममे एकर जोड़ा नै अछि।
बीजेन्द्र- एकाएक परिवर्तन भेलै की?
बीरू- जी। एन.एच.क दलालीने बड्ड पाइ कमाएल। जेतए-तेतए बढ़ियाँ-बढ़ियाँ जमीन कीनलक आ पोखरापाटन मकान सेहो बान्हलक। (ओम प्रकाश अपन टीमक संग राम किशुनकेँ घर लऽ जा लखनकेँ अपन घर पहुँचा बीजेन्द्र लग फेर आपस एला।)
बीजेन्द्र- ओम प्रकाश, दुनूकेँ अन्दर करू आ अपने सभ जाउ।
ओम प्रकाश- जे आज्ञा सर। (ओम प्रकाशक टीम राम किशुन आ बीरूकेँ अन्दर लऽ गेल आ ओम्हरैसँ ओम्हरै ओ सभ अपन थानापर चलि एला।)
बीजेन्द्र- मजलूम, देखियौ दुनियाँ केतए पहुँच गेल अछि। अनकर गरदनि काटि प्रतिष्ठित कहबैए लोक। दलाल सभ एन.एच.केँ कंगाल बना देलक आ अपने महराजाबला जिनगी जीबैए। भ्रष्टाचार मेटए, भ्रष्टाचार मेटए, सगरो हल्ला छै। मुदा लोकक रग-रगमे घोंसिआएल छै ई भ्रष्टाचार। ई केना मेटाएत? ई एक आदमीक प्रयाससँ मेटा सकैए! असंभव, महा असेभव। मुदा सभ जनै छी जे बूने-बूने तलाब भरैए। ओकरा देखि अमल करियौ जे पहिने तँ कियो वीर बनि भ्रष्टाचार निरोधक बीड़ा उठाएत जइमे हुनका बहुत कष्ट सहए पड़तनि। एक जूट भऽ निःस्वार्थ भावसँ अधिकसँ अधिक लोक हुनका संग देतनि तँ निश्चित भ्रष्टाचार मेटा जाएत। सभसँ पहिने मन चाही मन। तहन ओइ अनुसार करतबो चाही। ऐ विधिसँ केहनो असंभव काज संभव हेबे करत।
पटाक्षेप।
छअम दृश्य
(समाहरणालयमे बीजेन्द्र आ मजलूम अपन कार्यालयमे छथि। बीजेन्द्र किछु फाइल उनटा रहल छथि।)
बीजेन्द्र- मजलूम, अन्दरसँ राम किशुन आ बीरूकेँ बजेने आउ।
मजलूम- जे आज्ञा सर। (मजलूम अन्दर जा कऽ रामकिशुन आ बीरूकेँ बजा आनलक। दुनू गोटे बीजेन्द्रक सामने ठाढ़ अछि आ मजलूम गेटपर ठाढ़ अछि।)
बीजेन्द्र- राम किशुन आ बीरू, अहाँ सबहक सम्बन्ध राजासँ अछि। उ राजा के छथि आ केतए रहै छथि?
राम किशुुन- हमरा किछु नै बूझल अछि।
बीरू- सर, हमरो नै किछु बूझल अछि।
बीजेन्द्र- की अपने सभ ओइ दिनुका शारीरिक सेवा बिसरि गेलौं आकि हमरो करए पड़त? झूठ बाजि रहल छी। जदी आबो साँचपर नै आएब तँ बूझि लिअ। हमरो पीटए अबैए। बाजै जाइ जाउ राजाक अता-पता।
राम किशुन- सर, बूझल रहितए तँ कहितौं नै।
बीरू- फुसि बाजि कऽ हमरा की भेटत? से तँ हमहूँ बुझै छी। मुदा जँए बूझल नै अछि तँए कहैसँ हिचकि रहल छी।
बीजेन्द्र- लगि रहल अछि जे अहाँ सभ हमरा पढ़ा रहल छी। प्रेमसँ कहै छी- राजाक अता-पता कहै जाइ जाउ। नै तँ कियो बँचाएत नै। की, कहै जेबै?
दुनू- बूझल रहत तहन ने?
बीजेन्द्र- (आँखि लाल-पीअर कऽ) मजलूम, एगो मजगूत सटका आ डोरी नेने आउ। छठी रातिक दूध बोकरा दइ छिऐ दुनूकेँ।
मजलूम- जी सर, नेने अबै छी। (मजलूम अन्दर जा कऽ एगो मजगूत सटका आनि बीजेन्द्रकेँ देलक।)
बीजेन्द्र- (बहुत बेसी खिसिया कऽ)- आब अहाँ सभकेँ बँचनाइ मोसकिल अछि। नै तँ जल्दी बाजू।
दुनू- हमरा सभकेँ नै बूझल अछि।
बीजेन्द्र- मजलूम, दुनूक हाथ पएर बान्हू। (मजलूम दुनूक हाथ-पएर बान्हलथि।) (बीजेन्द्र राम किशुन आ बीरू दुनूकेँ पीटनाइ शुरू केलनि। दुनू ओंघराइए आ माए गै-बाप राै चिचिआइए। मुदा बीजेन्द्र सटका बरसेनाइ नै छौड़ै छथि।)
बीरू- (हकमैत-हकमैत)- सर, आब छोड़ि दिअ; कहि दइ छी।
बीजेन्द्र- आब हमरा नै बुझबाक अछि। अहाँ सभ ऐ दुनियाँक काल छी। आइ काज तमाम कके छोड़ब। (ओ दुनूकेँ और पीटए लगलथि।)
राम किशुन- सर, मरि जाएब आब। छोड़ि दिअ; कहि दइ छी।
बीजेन्द्र- दुनू थूक राखू आ चाटू। तखने छोड़ब।
(दुनू अफसिआँत भऽ थूक रखि चटैए। बीजेन्द्र तत्खनात पीटनाइ छोड़ि देने छथि।)
अहाँ सभ प्रतिष्ठित लोक छी। पाइ आ पैरबीबला लोक छी। बाजू की अता -पता छै राजाक?
बीरू- जोगिया गामक दक्षिण-पच्छिम भागमे एगो बड़का गाछी छै। ओही गाछीक पुबरिया कोनपर एगो खोपरी छै। ओही खोपरीक नीच्चाँ एगो सुरंग बनल छै। ओही सुरंगमे दूगो बढ़ियाँ कोठरी बनौने छै। ओहीमे राजा, मोस्तकीम, मनोज, बौधु आ सलीम रहैए। गेटपर सलीम आ बौधु पेस्तौल तनने रहै छै।
बीजेन्द्र- कोनो जनानीओ रहै छै?
बीरू- हँ, एगो चमेली नामक जनानी मनोरंजन लए सेहो रहै छै।
बीजेन्द्र- अपने केते नीक लोक छी जे एते सुन्दरसँ अता-पता बतेलौं। जदी ई पहिने बतबितौं तँ ई दशा नै होइतए।
राम किशुन- सर, उ सभ कहने छेलए जे अता-पता केकरो नै बतेबिहनि नै तँ जान नै बाँचतौ। ओही डरे नै कहै छेलौं।
बीजेन्द्र- अच्छा, आब ओकरा सभकेँ बापक बिआह आ पितीयाक सगाइ देखबै छिऐ। मजलूम, अहाँ दुनू आदमीकेँ डोरी खोलि अंदर लऽ जाउ।
मजलूम- जे आज्ञा सर। (मजलूम, राम किशुन आ बीरूकेँ डोरी खोलि अंदर लऽ गेल। तैबीच बीजेन्द्र तीनटा पत्र लिखलनि- एगो एस.पी. साहैबक नाओंसँ, देसर भू-अर्जन कार्यालयक पदाधिकारीक नाओंसँ आ तेसर एन.एच.क इंजीनियरक नाओंसँ। मलजूमक प्रवेश।)
बीजेन्द्र- एलौं मजलूम। बेस, अहाँ ई तीनू पत्र लऽ लिअ आ तीनू पदाधिकारीकेँ दऽ आबियनु।
मजलूम- जे आज्ञा सर। (तीनू पत्र लऽ कऽ मजलूमक प्रस्थान।)
बीजेन्द्र- हम कोनो परमोशनबला कलक्टर छी, कमपेटीशनसँ आएल छी। हमर मुख्य उदेस अछि- गुणगर भारतक निर्माण। तइले प्रत्येक बेक्तीकेँ गुणगर भेनाइ अनिवार्य छै जे असथीरे-असथीरे-असथीरे हएत आ सबहक प्रयाससँ हएत। (मजलूमक प्रवेश)
मजलूम- जी सर, तीनू पत्र तीनू पदाधिकारीकेँ दऽ एलियनि।
बीजेन्द्र- बड्ड नीक केलौं। अहाँ सन आज्ञाकारी लोक केतए पएब।
पटाक्षेप।
सातम दृश्य
(बीजेन्द्र अपने कार्यालयमे मजलूमक संग बैसल छथि।)
बीजेन्द्र- (प्रसन्न मने) मजलूम, अहूँ जेबै।
मजलूम- केतए सर?
बीजेन्द्र- जेतए हम कहब तेतए।
मजलूम- तहूने कहैक काज। ई देह अपनेक सेवामे समरपित अछि। (एस.पी. जीतेन्द्रक प्रवेश)
जीतेन्द्र- प्रणाम सर।
बीजेन्द्र- प्रणाम प्रणाम। जरूरीए तेहने अछि जे पत्र पठाबए पड़ल।
जीतेन्द्र- की जरूरी छै सर?
बीजेन्द्र- एगो राजा नामक गुंडाराज छै। ओकरा ग्रुपमे पाँच-सात आदमी छै। अपना भरि बड्ड सुरक्षित ढंगसँ रहि रहल अछि। आदमीकेँ खून करैक बड़का ठीकेदार अछि। ओकरे पकिया बेवस्था लगेबाक अछि। से केना हेतै?
जीतेन्द्र- तइले हम असगरे काफी छी। अपने निफीकीर भऽ जैयौ सर। खाली ऑडर दऽ दियौ।
बीजेन्द्र- हम अपनेकेँ ऑडर नै देब, संग देब। ओना तँ हमहूँ
असगरे काफी छी।
जीतेन्द्र- तहन अखने चलू आ दुइए आदमी चलू।
बीजेन्द्र- चलू। मजलूम, हम सभ आबि रहल छी। (बीजेन्द्र आ जीतेन्द्र जा रहल छथि। पर्दा खसैए। दुनू आदमी अंदर चलि गेला। पर्दा उठैए। राजा अपन ग्रुपमे दारू पीबैत चमेलीक संग मस्ती लूटि रहल अछि। तैबीच बीजेन्द्र आ जीतेन्द्रकेँ दुनू कातसँ प्रवेश। गोली चलेनाइ दुनू पक्षसँ शुरू भऽ गेल। एकाएकी राजा ग्रूपक सभ कियो मरि जाइए। मुदा बीजेन्द्र दुआरा राजा अन्तमे मरैए।)
जीतेन्द्र- सर, आब ई एरिया शांत रहत। बड़ी जुआएल ग्रूप छल। आब चलल जाए सर।
बीजेन्द्र- चलू। (दुनू आदमी अपन ऑफिस आबि रहल छथि। पर्दा खसैए। मजलूम अपन ऑफिसमे तैनात रहैए। पर्दा उठैए। बीजेन्द्र अपन ऑफिस गेला। जीतेन्द्र प्रणाम कऽ अन्दर गेला। बीजेन्द्र ओम प्रकाशकेँ फोन करै छथि।) हेल्लो ओम प्रकाश।
ओम प्रकाश- (अंदरसँ) हेल्लो सर, प्रणाम। जी, जी, जी, जी, जी सर। जे आज्ञा सर।
बीजेन्द्र- कालि जनता दरबारक दिन छिऐ। लखन आ राम किशुनक समस्याक समाधान जनते दरबारमे हेतै जे हम अपना सोझहामे करब। तँए अपने लखन, लक्ष्मण आ झामलालकेँ जनता दरबारमे पठा देब। बिसरबै नै।
ओम प्रकाश- निश्चित पठा देब सर। निश्चित पठा देब।
पटाक्षेप।
आठम दृश्य
(लखन ऐठाम लक्ष्मण पेपर पढ़ि रहल छथि। लखन चुपचाप बैसल छथि।)
लक्ष्मण- पाहुन, ऐ परोपट्टाक लेल एगो बड्ड पैघ खुशखबरी पेपरमे निकललैए।
लखन- की यौ? कनी हमरो कहू।
लक्ष्मण- अपन बौआकेँ जे गुण्डा सभ मारि देने रहाए ओकरो मौत कलक्टर आ एस.पी. हाथे भऽ गेल। पूरा ग्रुप ऐ दुनियाँसँ चलि बसल। भागीन, भागीन।
झामलाल- (अन्दरसँ) जी मामा, आबै छी।
लक्ष्मण- पेपरमे एगो खुशखबरी निकलल हेन। (झामलालक प्रवेश)
झामलाल- जी मामा, कहाँ?
लक्ष्मण- हे ऽ ऽ ऽ हैया देखियौ। (झामलाल पेपर देखि प्रसन्न भेल।)
झामलाल- मामाश्री, दुनियाँक काल मरल। ऐ दुनियाँक लेल ऐसँ खुशी और की भऽ सकैए। ओइ कलक्टर आ एस.पी.केँ बहुत-बहुत धन्यवाद। (ओम प्रकाशक प्रवेश) बड़ा बाबू प्रणाम (उठि कऽ) पधारियौ पधारियौ। (ओम प्रकाश कुरसीपर बैसला)
लक्ष्मण- प्रणाम बड़ा बाबू।
ओम प्रकाश- प्रणाम प्रणाम। का हाल-चाल हऽ?
लक्ष्मण- सर, अपनेक किरपासँ ठीक अछि। आइ केम्हर सुरूज उगलै? आइ तँ गरीबक कुटिया तरि गेल।
ओम प्रकाश- तोरे काज करए आएल बा। आज कलक्टर साहैब लग जनता दरबार हऽ। ओइमे कलक्टर साहैब लखन, तोरा आ झामलालकेँ बोलेल कऽ हऽ। अभीए चल जा। देरी ना करए। (ओम प्रकाशक प्रस्थान।)
लक्ष्मण- भागीन जल्दी चलू। देरी भऽ रहल अछि। फेर ओत्ते दूर जाइओक छै कीने। पाहून अहँू चलबै।
झामलाल- तहन चलिए दियौ। (लखन, लक्ष्मण आ झामलाल कलक्टरक जनता दरबारमे जा रहल छथि। पर्दा खसैए। अन्दरमे कलक्टरक जनता दरबार लागि रहलए।) मामाश्री, कलक्टर हुअए तँ एहेन जे सर्वगुणसम्पन्न छथि। (पर्दा उठैए। बीजेन्द्र अपन जनता दरबारमे उपस्थित छथि। तीनू आदमी जनता दरबार पहुँचलथि।)
लक्ष्मण- साहैब प्रणाम।
बीजेन्द्र- बैसू। (लक्ष्मण बैसलथि।)
झामलाल- कलक्टर साहैब प्रणाम।
बीजेन्द्र- अहूँ बैसू। सभ कियो बैसू। (जनता दरबारमे उमा शंकर, सुशील, राम किशुन, बीरू, लक्ष्मण, झामलाल आ लखन उपस्थित छथि।) आजूक जनता दरबार राम किशुन आ लखनक समस्याक समाधान हेतु आयोजित अछि। संजोग छै जे आइ एक्केटा इएह मामला छै। ओना ई पंचाइत भवन नै छी। मुदा जरूरी पड़लापर ई पंचाइत भवन भऽ जाइए जेना अखनि अछि। प्राप्त दरखासक अनुसार लखनक जेठ बेटा रामलालक मृत्युक कारण उमा शंकर, सुशील, राम किशुन आ बीरू छथि। सभ कियो अपन-अपन कमी अपनामे ताकियौ। हमरा जनतबे सभ कियो भ्रष्टाचारक शिकार छी।
उमा शंकर- सर, हमर गलती केतए छै?
बीजेन्द्र- जेतए एकके दस केने रहिऐ। गुप्त रूपसँ पता लगि गेल। (उमा शंकरक मुड़ी नीच्चाँ भऽ गेलनि।) सुशील राम किशुनसँ घूस लऽ कऽ बिल पास केलथि। (सुशीलक मुड़ी सेहो झूकि जाइए।) तथा राम किशुनमे ऊ कला छै जे अपन काज लए केहनो आदमीकेँ पटा लेत। हजारमे एगो छूटि जाएत से बेसी बुझहू। (राम किशुनक मुड़ी झूकि जाइ छन्हि।) बीरू राम किशुनक मुँहलगुआ छिऐ, लठैत छिऐ। (बीरूक मुड़ी सेहो झूकि जाइए।) लखन मूर्ख छथि। हिनक मूर्खताक फायदा पढ़ल- लिखल राम किशुन उठौलक जइमे हुनकर जेठ बेटा मुइलै। उमा शंकर, सुशील, राम किशुन आ बीरू सभ दोषी छी। जदी ई मामला कोटमे चलि जाएत तँ लड़ैत-लड़ैत नाकोदम भऽ जाइ जाएब। उऋण नै भऽ सकै छी। मुदा हम अपन निर्णए दैत अहाँ चारू गोटेकेँ सुधरैक मौका दइ छी। की, हम अपन निर्णए सुनाबी।
उमा शंकर- जी, सुनाएल जाए।
बीजेन्द्र- किनको कोनो आपति?
चारू गोटे- कोनो आपति नै सर।
बीजेन्द्र- तहन हमर निर्णए सुनू राम किशुन लखनकेँ पाँच लाख टाका देथिन। बीरू लखनकेँ एक लाख टाका देथिन। उमा शंकर लखनकेँ दू लाख टाका देथिन। सुशील लखनकेँ दू लाख टाका देथिन। आ सुनि लइ जाइ जाउ, फेर एहेन गलती कहियो नै दोहराए। नै तँ हम बदलल नै गेलौं हेन। की, निर्णए अपने सभकेँ पसीन अछि?
चारू गोटे- जी, पसीन अछि।
उमा शंकर- अपनेक विचारकेँ हम सहृदै आदर करै छी।
बीजेन्द्र- लखनकेँ अहाँ सभ कखनि जुर्माना दइ छियनि?
उमा शंकर- हम काल्हि दऽ देबनि।
सुशील- हम परसु देबनि।
राम किशुन- हम पाँचम दिन देबनि।
बीरू- हम एक सप्ताहमे देबनि।
बीजेन्द्र- ठीक छै। अगिला रबिकेँ अहाँ चारू गोटे लखन ऐठाम जा कऽ अपन-अपन जुर्माना दऽ एबनि। हमहूँ रहबे करब। एगारह बजे दिनक समए रहतै।
चारू गोटे- ठीक छै सर।
बीजेन्द्र- अहाँ सभ कियो जाइ जाउ। जनता दरबार एत्तै खत्म होइए। (बीजेन्द्र आ मजलूमकेँ छोड़ि सभ कियो अपन-अपन घर गेला।) मजलूम अगिला रबिकेँ अपना सभ चलब ओइ गरीब ऐठाम। देखबै चारू दलाल सभ कोनो धोखाधरी तँ नै करै छै।
मजलूम- बड्ड नीक गप सर। जरूर चलब।
पटाक्षेप।
नअम दृश्य
(लखनक दलानपर लखन, लक्ष्मण आ झामलाल जुर्मानाबला पाइक बेवहारक सम्बन्धमे गप-सप्प करै छथि। दसटा कुरसी लागल छै।)
लक्ष्मण- पाहुन, उ सभ जे जुर्मानाबला पाइ देत तेकरा की करबै?
लखन- रामलाल बेटा तँ ऐ दुनियाँसँ चलि गेल। आब सोचै छी तँ पछताइ छी। मुदा पछताइए कऽ की हएत? बेटा रहैत तँ एक हाथ सेवो होइतए। मुदा पाइमे तँ उ सुख नै हएत।
लक्ष्मण- से तँ अपने ने केलिऐ।
लखन- एना हेतै से हम कहाँ बुझै छेलिऐ। दुनियाँ सुआरथमे एते लीन अछि से आब बुझलौं। बाप रे बा, के केकरापर बिसवास करत।
लक्ष्मण- पाहुन, जे बीति गेलै ओइपर पछतेनाइ बेकार। वर्तमानपर विचार करू। आब अहाँकेँ एगो बेटा रहल। हमर विचार अछि जे दस लाख टाकामे दू लाख बास-डीहमे, दू लाख मकानमे, दू लाख बाधक जमीनमे आ शेष भागीनक पढ़ाइ-लिखाइमे लगाए दैतिऐ। भागीनक जीवन तँ बनि जइतै। की भागीन, अहाँक की विचार?
झामलाल- अपने सबहक विचारकेँ हम केना काटि सकै छी।
लखन- लक्ष्मण हमर एगो विचार सुनब।
लक्ष्मण- अबस्स सुनब।
लखन- दसो लाख बौआकेँ पढ़ाइमे लगाए दैतिऐ। ई मनुख तँ बनि जइतए। कियो ठकतै तँ नै।
लक्ष्मण- आ रहबै केतए?
लखन- केतौ रहि जाएब। बाधेमे झोपड़ी बनाकऽ रहि लेब।
लक्ष्मण- ई बढ़ियाँ नै हएत। मनुख सामाजिक प्राणि छी। ओकरा लेल समाजे बढ़ियाँ छै। कए तरहक आफद आसमानीक समाधान जेते समाजमे हेतै, ओत्ते ओतए कहियो संभव नै छै। तँए अहाँ अपन डीह समाजसँ सटल कीनि लिअ आ ओइपर कामचलाव घर बनए लिअ। ओइमे सभ परानी गुजर करू। बाधक जमीन नै हएत, तइले कोनो अमला ओछ नै हएत। मुदा भागीनक पढ़ाइपर पूरा धियान दियौ। पाहुन, दुनियाँमे पढ़ाइसँ पैघ कोनो धन नै छै।
लखन- तहन सएह करब। लक्ष्मण, उ सभ ऐला कहाँ यौ?
लक्ष्मण- अबिते हेता। नै एने बनतनि। बुझै छिऐ, कलक्टरक फैसला छिऐ। जिलाक मालिक होइ छथि। (बीजेन्द्र आ मजलूमक प्रवेश। तीनू गोटे उठि गेला।) प्रणाम सर। पधारल जाए।
झामलाल- प्रणाम सर।
लखन- प्रणाम हाकिम।
बीजेन्द्र- प्रणाम प्रणाम। अखनि धरि कियो नै एला।
लखन- हाकिम, बैसियौ ने गरीबो कुटियापर। (बीजेन्द्र आ मजलूमक कुरसीपर बैसलथि।)
बीजेन्द्र- (घड़ी देखि कऽ) एगारहमे दू मिनट कम छै। हम समैसँ पहिने छी। मुदा लगोक कियो नै ऐला। खाइर आबिते हेता। समैओ भऽ रहल छै। (बुधन, घूरन, भूटन, पलटू आ चिनमाक प्रवेश। सभ कियो प्रणाम हाकिम, प्रणाम हाकिम कऽ बैसलथि।) एगारहसँ बेसी भऽ रहलए। किछु समाज लोकनि एलखिन हेन। अस्सल लोक सभ एबे नै केलखिन। की करता की नै। ओना गड़बड़ेबाक नै चाही। भऽ सकै छै पाइक ओरीयान करैत हेता। (राम किशुन आ बीरूक प्रवेश। दुनू आदमी प्रणाम सर, प्रणाम सर, कऽ ठाढ़ छथि।) बैसै जाइ जाउ। (दुनू कुरसीपर बैसलथि।) राम किशुन, देरी किए भेल?
राम किशुन- सर, बीरूक संग करैमे देरी भेल।
बीजेन्द्र- अहाँकेँ किए देरी भेल?
बीरू- पाइक ओरीयानमे देरी भऽ गेल।
बीजेन्द्र- ई ठीक बात नै। समैनिष्ठता जीवनमे बड्ड महतपूर्ण अछि। (उमा शंकर आ सुशीलक प्रवेश। दुनू आदमी प्रणाम सर, प्रणाम सर, कहि ठाढ़ छथि।) बैसल जाए इंजीनियर साहैब। सुशील अहूँ बैसू। (दुनू बैसलथि।) आब अपना सभ अपन काज शुरू करी। की यौ लक्ष्मण, की यौ लखन?
लक्ष्मण- अपनेक जे विचार। (गंगाराम मोहन आ पंचूक प्रवेश। प्रणाम सर, प्रणाम सर, कहि ठाढ़ छथि।)
बीजेन्द्र- अपने सभ स्थान ग्रहण करियौ। (तीनू गोटे कुरसीपर बैसलथि।)
लक्ष्मण- सर, हिनका चिन्हलियनि।
बीजेन्द्र- नै, हम नै चिन्हलियनि। के छथि?
लक्ष्मण- ऐ पंचाइतक सरपंच छथि। गंगाराम हिनकर नाओं छियनि। (गंगाराम हाथ जोड़ि लइ छथि। बीजेन्द्र सेहो हाथ जोड़ि लइ छथि।)
बीजेन्द्र- आब हम बेसी काल समए नै दऽ सकब। हमरो बड्ड फाइल छै। बेचारा लखनक बेटा उचितक लड़ाइमे मारल गेल। ओहीक सांतवना लेल हम आएल छी। कारण गरीबकेँ कियो देख नै चाहैए। मुदा हमरा नजरिमे गरीबे दुनियाँक पेटक आगि मुझबै छै। तँए ओकरा आदर पहिने हेबाक चाही। आब अपना सभ अपन काज दिस धियान दी। अहाँ सभ कियो अपन- अपन जुर्माना राशि लक्ष्मणकेँ दियनु। (पहिने राम किशुन, तहन बीरू, तहन सुशील आ सभसँ अन्तमे उमा शंकर लक्ष्मणकेँ जुर्माना राशि देलखिन। लक्ष्मण गिन- गिन कऽ पाइ रखलनि।)
लक्ष्मण- जी सर, ठीके छै।
बीजेन्द्र- चारू जुर्माना देनिहार ई हरिदम यादि राखु जे ईमानदारीमे बड़क्कैत होइ छै, आत्मबल भेटै छै, सभ ठाम प्रतिष्ठा भेटै छै। गरीब आदमी डरे गलती नै करै छै। जौ मजबूरीमे करबो करै छै तँ बहुत छोट-छीन। धनिक जकाँ गलती करैक हिम्मत ओकरा नै छै। तँए ओकर गलतीक समाधान प्रेमसँ करी। गरीब जीअत तहने हम सभ जीअब।
लक्ष्मण- कलक्टर साहैब जिन्दावाद।
सभ कियो- जिन्दावाद जिन्दावाद।
लक्ष्मण- भ्रष्टाचारक दुश्मन जिन्दावाद।
सभ कियो- जिन्दावाद जिन्दावाद। (लक्ष्मण बीजेन्द्रकेँ फूलमाला पहिरौलनि। बीजेन्द्र हाथ जोड़ि सभकेँ प्रणाम केलनि।)
बीजेन्द्र- राम किशुनक अत्याचारक विरूद्ध लक्ष्मण आ झामलाल जे कदम उठौलनि से सचमूच बड्ड सराहनीय अछि। लखनजीक उदासी देखि हमरा कहए पडैए जे रामलालक भोग ऐठाम एतबे दिनक छल तँए ओ ऐ दुनियाँसँ चलि गेल। भगवान हुनक आत्माकेँ शान्ति दैथ। (बीजेन्द्र आ मजलूमक प्रस्थान)
लखन- हमरा पाइ बड्ड भेटल। मुदा ओइ पाइसँ हमर बेटा घूमि आएत की? कथमपि नै। मुदा आब सोचै छी तँ बुझाइए जे हम की केलौं आ राम किशुन हमरा संगे की केलक काबिल भऽ कऽ मुर्ख भैया संगे बिसवासघात केलक, बिसवासघात केलक, बिसवासघात केलक। (कानए लगैए) हमरा जुर्माना दऽ देलक, से काफी नै भेल। बल्कि काफी ई भऽ सकैए जे ओ समाजसँ माफी माँगथु आ फेर एहेन बिसवासघात किनको संग नै करबाक सप्पत खाथु। (राम किशुनक मुड़ी निच्चाँ भऽ जाइए।)
राम किशुन- (हाथ जोड़ि) हमरासँ बड्ड गलती भेल। हम माँ भगवतीक सप्पत खाइ छी जे आब कोनो गलती नै करब। क्षमा कएल जाए, क्षमा कएल जाए।
पटाक्षेप।
इति शुभम्
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