१
“माँझ आंगनमे कतिआएल छी” मुन्नाजीक रुबाइ आ गजल संग्रहक नाम अछि। कतिआएल
आ सेहो माँझ आंगनमे! की कबीरक उलटबासीक प्रभाव अछि ई आकि गजलक स्वभाव अछि
ई? नहिये ई कबीरक उलटबासीक प्रभाव अछि नहिये ई गजलक स्वभाव अछि, ई एकटा
यथार्थ अछि। मुन्नाजी सन कतेको लोक कतिआएल छथि, प्रतिभा अछैत हेराएल छथि।
मुदा गजलकार सभटा दोख अपनेपर लऽ लै छथि।
आब तँ माँझ आँगनमे कतिआएल छी
अपने चालिसँ आब बेरा गेलहुँ हम
आ सएह कारण अछि जे ओ नोरक सुख भोगऽ लागै छथि।
नोर तँ खसैए मुदा मजा सन लगैए
केहन नीक प्रेमक दुख लेलहुँ हम
बड़का खाधिमे खसै छथि आ तहू लेल अपनेकेँ दोखी मानै छथि:
छोटको ठेससँ नै सबक लेलहुँ हम
तँए बड़का खाधिमे खसि गेलहुँ हम
तँ की गजलकार प्रेमक महत्व बिसरि गेल छथि, नै प्रेम तँ सभकेँ चाही।
सभ उमेर वर्गकेँ प्रेम चाही
मरितो धरि कुशल-छेम चाही
आ हिनका जँ कोस दू-कोस मात्र चलबाक रहितन्हि तखन ने, हिनका तँ बहुत आगाँ
बढ़बाक छन्हि तेँ प्रेम चाही।
डाहसँ पहुँचब कोस-दू कोस
आगू बढ़बा लेल तँ प्रेम चाही
आ से सभ ठाम। एकटा हमर संगी छल, एकटा परीक्षामे टॉप केलक तँ बाजल- नै
कम्पीट करै छी तँ नै करै छी, आ करै छी तँ टॉप करै छी। ओ गजलकार नै छल जँ
रहिते तँ अहिना लिखितए:
बदरी लादल रहै कोनो बात नै
जदि बरसी तँ बरिसात बनि कऽ
आ नजरि-नजरिक फेर आ हाफ ग्लास फुल ई दुनूटा अवधारणा ऐ रूपमे ओ राखै छथि:
नजरि उठा कऽ देखबै तँ खाली बुझाएत ई दुनियाँ
नजरि गरा कऽ देखबै तँ सभ देखाएत ई दुनियाँ
समालोचना आ विरोध दुनूकेँ गजलकार नीक मानै छथि।
पक्षधरसँ राखू अपनाकेँ बचा कऽ
विपक्षीक सभ बातकेँ नै तीत बुझू
महगाइसँ लोक बेकल अछि मुदा तकरा लेल झुमैत मचानक बिम्ब देखू:
महगाइसँ खूने नै हड्डियो सुखाइए
आब झुलैत मचान सन लगैए लोक
आ ई उलटबासी देखू, बिम्ब नव, भावना शाश्वत:
हम तँ घूर जड़ेलौ गर्मी मासमे
मिझाएल आगिसँ पसाही कहियो
ई कोन गोष्ठी छी जे अछि कोन पत्रिकाक प्रायोजित चिट्ठी छपबाक राजनीति सन,
ई रुबाइ देखू:
मोन भए उठल दुखित होहकारीसँ
उठि दर्शक भागल मारामरीसँ
प्रायोजक तँ पथने रहल कान अपन
कर्ता देखार भेला जतियारीसँ
मुदा बाढ़िक विषय जँ मैथिली गजलक अंग नै बनए तँ बुझू जे गजलकार समाजसँ
कतिआएल छथि। मुदा से नै अछि।
धार एखन धरि तँ उफानपर अछि
लोक ताका-ताकी करैत बान्हपर अछि
आब पड़ाइन घटल अछि, मिथिलासँ पड़ाइन। बाहरी लोक बिहारीकेँ मजदूर आ
श्रमिकक पर्यायवाची मानि लेने छथि। तहूपर गजलकारक कलम चलल अछि।
बिहारक सिरखारी बदलि गेल सन लगैए आब
श्रमिक घटलासँ कंपनी-मालिक लगै बिहारी जकाँ
मुन्नाजीक गजल आ रुबाइ स्वच्छन्द रूपसँ बमकोला जेकाँ बहल अछि। शेरक
स्वभाव होइ छै जे जँ ओकरा नेकासँ कहल जाए तँ आह-बाह लोक करिते अछि।
मैथिलीमे गजल-रुबाइ जइ तरहेँ प्रसारित भऽ रहल अछि से देखि कऽ यएह लागि
रहल अछि जे जतेक ई विधा अपनाकेँ पसारि रहल अछि तइसँ बेशी मैथिली
लाभान्वित भऽ पसरि रहल अछि।
--गजेन्द्र ठाकुर १९ मइ २०१२
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मैथिली गजल शास्त्र- भाग-१
गजलक उत्पत्ति अरबी साहित्यसँ मानल जा सकैत अछि मुदा ओतए ई अरकान माने
कोनो उत्तेजक घटनाक वर्णन विशेषक रूपमे छल। मुदा गजल जे एहि अरकान सभक
समुच्चय अछि से फारसीक छी। फेर ओतएसँ गजल उर्दू-हिन्दी आ आब मैथिलीमे आएल
अछि।
मायानन्द मिश्र मैथिली गजलकेँ गीतल कहलन्हि, मुदा हम एतए ओकरा गजले कहब आ
अरबी फारसीक छन्द-शास्त्रक किछु शब्दावलीक प्रयोग करब। से मैथिली गजल
शास्त्रक शब्दावली भेल अरूज ।
बहर: उन्नैस टा अरबी बहर होइत अछि। एतेक बहर मोन रखबाक आवश्यकता नहि।
किएक तँ बहर माने थाट, राग-रागिनी। एहि उन्नैसटा अरबी बहरक बदला मैथिली
लेल नीचाँमे भारतीय संगीत (स्रोत स्व. श्री रामाश्रय झा रामरंग) दऽ रहल
छी। आ किएक तँ देवनागरी आ मिथिलाक्षरमे जे बाजल जाइत अछि सएह लिखल जाइत
अछि (ह्रस्व इ सेहो मैथिलीमे अपवाद नहि अछि) से ह्रस्व आ दीर्घ स्वरकेँ
गनबाक विधि मैथिलीमे भिन्न अछि, सेहो एतए देल जाएत। जाहि बहरमे शेरमे आठ
(माने शेरक दुनू मिसरामे चारि-चारि) अरकान हुअए से भेल मसम्मन आ जाहि
बहरमे शेरमे छह (माने शेरक दुनू मिसरामे तीन-तीन) अरकान हुअए से भेल
मुसद्द्स । एतए मैथिलीमे विभक्ति सटा कऽ लिखबाक वैज्ञानिक आधार फेर सिद्ध
होइत अछि कारण गजलमे जे विभक्ति हटाइयो कऽ लिखब तैयो अरकान गनबा काल तेना
कऽ गानए पड़त जेना विभक्ति सटल हुअए, विभक्ति लेल अलगसँ गणना नहि भेटत।
जाहि बहरमे एक्केटा रुक्न हुअए से भेल मफरिद बहर आ जाहिमे एकटा सँ बेशी
रुक्न हुअए (रुक्नक बहुवचन अराकान) से भेल मुरक्कब बहर।
दूटा अराकान पुनः आबए तँ ओकरा बहरे-शिकस्ता कहल जाएत।
मिसरा आ शेर: मैथिली गजलमे दू पाँतीक दोहा जे कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष
वर्णन करैत अछि तकरा मिसरा वा शेर कहै छी। दुनू पाँती एकट्ठे भेल शेर आ
ओहि दुनू पाँतीकेँ असगरे मिसरा कहब। मतलाक दुनू मिसरामे एकरंग काफिया
माने तुकबन्दी होएत।
ऊला आ सानी: शेरक पहिल मिसरा ऊला आ दोसर मिसरा सानी भेल। दू मिसरासँ मतला
आ दू पाँतीसँ दोहा बनल।
अरकान (रुक्न) आ जिहाफ: आठ टा अरकान (एकवचन रुक्न) सँ उन्नैस टा बहर
बहराइत अछि। से अरकान मूल राग अछि आ बहर भेल वर्णनात्मक राग। अरकानक छारन
भेल जिहाफ । जेना वरेण्यम् सँ वरेणियम्।
तकतीअ: दू पाँतीक कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष वर्णन करैत दोहा जे मिसरा वा
शेर अछि आ कएक टा मिसरा वा शेर मिलि कऽ गजल बनैत अछि, तकर शल्य चिकित्सा
लेल तकतीअ अछि। से मिसरा कोन राग-रागिनीमे अछि तकर तकतीअसँ बहर ज्ञात
होइत अछि ।
मतला (आरम्भ) आ मकता (अन्त): गजलमे पहिल शेर मतला आ आखिरी शेर मकता भेल।
मतलाक दुनू मिसरामे तुक एकरंग मुदा मकतामे कवि अपन नाम दै छथि। मकताक
कखनो काल लोप रहत, एकरा सन्दर्भसँ बुझब थिक मुदा मतलाक रहब अनिवार्य।
काफिया आ रदीफ: तुकान्त काफिया आ ओकर बाद वा कफियायुक्त शब्दक पहिनेक
शब्द/ शब्द समूहकेँ रदीफ कहैत छिऐ। काफिया युक्त शब्द बदलत मुदा रदीफ नञि
बदलत। काफिया वर्ण वा मात्राक होइ छै आ रदीफ शब्द वा शब्द समूहक।
दूटा काफियाबला शेर जू काफिया कहल जाइत अछि।
एक दीर्घक बदला दूटा ह्रस्व सेहो देल जा सकैए।
जेना काफिया वर्ण आ मात्राक संग शब्दकेँ सेहो प्रयुक्त करैत अछि तेहिना
रदीफ एकर विपरीत शब्द आ शब्दक समूहमे सन्निहित वर्ण आ मात्राकेँ सेहो
प्रयुक्त करिते अछि। ऐ तरहेँ पहिल पाँतीमे जँ शब्द समूह रदीफ अछि तँ तँ
दोसर पाँतीमे ओकर कोनो एक शब्द दोसर शब्दक अंग भऽ सकैए आ ओइ काफिया युक्त
शब्दमे रदीफक उपस्थिति रहि सकैए।
दूटा काफियाक बीचमे सेहो रदीफ रहि सकैए, रदीफ ऐ तरहेँ अनुपस्थितसँ लऽ कऽ
एक शब्द, शब्दक समूह वा वाक्य भऽ सकैत अछि जे अपरिवर्तित रहत। मुदा
काफिया युक्त शब्द गजलमे बदलैत रहत। मैथिली व्याकरणक दृष्टिसँ अपरिवर्तित
मात्रा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्दकेँ बिना रदीफक गजल कहि सकै छिऐ, कारण ई
काफियाक मूल विशेषता छिऐ (अपरिवर्तित मात्रा वा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्द)
..आ जँ शब्द वा शब्दक अपरिवर्तित समूह दृष्टिसँ देखी तँ एतए रदीफ
अनुपस्थित अछि ...ओना रदीफ अनुपस्थित सेहो रहि सकैए, शास्त्रीय दृष्टिसँ
कोनो दिक्कत नै अछि.. से प्रारम्भमे बिना रदीफक गजलक बदला "एक शब्द,
शब्दक समूह वा वाक्य" जे अपरिवर्तित रहए, सएह रदीफक रूपमे प्रयुक्त करू।
मैथिली गजल शास्त्र :
पहिने कमसँ कम ३७ ‘की’ बला कीबोर्ड लिअ।
एहिमे १२-१२ टाक तीन भाग करू। १३ आ २५ संख्या बला की सा,आ सां दुनूक बोध
करबैत अछि। सभमेँ पाँचटा कारी आ सातटा उज्जर ‘की’ अछि। प्रथम १२ मंद्र
सप्तक, बादक १२ मध्य सप्तक आ, सभसँ दहिन १२ तार सप्तक कहबैछ। १ सँ ३६ धरि
मार्करसँ लिखि लिय। १ आ तेरह सँ क्रमशः वाम आ दहिन हाथ चलत।
१२ गोट ‘की’ केर सेटमे ५ टा कारी आ सात टा उज्जर ‘की’ अछि।
प्रथम अभ्यासमे मात्र उजरा ‘की’ केर अभ्यास करू। पहिल सात टा उजरा ‘की’
सा, रे, ग, म, प, ध, नि, अछि आ आठम उजरा की तीव्र सं अछि जे अगूलका दोसर
सेटक स अछि।
वाम हाथक अनामिकासँ स, माध्यमिका सँ रे, इंडेक्स फिंगर सँ ग ,बुढ़बा
आँगुरसँ म , फेर बुढ़बा आँगुरक नीचाँसँ अनामिका आनू आ प, फेर माध्यमिकासँ
ध, इंडेक्स फिंगरसँ नि, आ बुढ़बा आँगुरसँ सां। दहिन हाथसँ १२ केरसेट पर
पहिल’की’ पर बुढ़बा आँगुरसँ स, इंडेक्स फिंगरसँ रे, माध्यमिकासँ ग,
अनामिकासँ म, फेर अनामिकाक नीचाँसँ बुढ़बा आँगुरकेँ आनू आ तख बुध्बा
आँगुरसँ प, इंडेक्स फिंगरसँ ध, माध्यमिकासँ नि आ अनामिकसँ सां। दुनू
हाथसँ सां दोसर १२ केर सेटक पहिल उज्जर ‘की’ अछि। आरोहमे पहिल सेटक सां
अछि तँ दोसर सेटक प्रथम की रहबाक कारण सा।
दोसर गप जे की बोर्डसँ जखन आवज निकलयतँ अपन कंठक आवाजसँ एकर मिलान करू।
कनियो नीच-ऊँच नहि होय। तेसर गप जे संगीतक वर्ण अछि सा,रे,ग,म,प,ध,नि,सां
एकरा देवनागरीक वर्ण बुझबाक गलती नहि करब। आरोह आ अवरोहमे कतेक नीच-ऊँच
होय तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेनाकि क केँ लिय आ, की
बोर्ड पर निकलल सा,रे...केर ध्वनिक अनुसार क ध्वनिक आरोह आ अवरोह करू।
ई जे सातो स्वरक वर्णन पिछला अंकमे देल गेल छल ओकरासँ आगू आऊ। एहि सातू
स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ होयबाक
गुंजाइस नहि छैक। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे
पाँचटा स्वर अछि से सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइस
अछि एहिमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछि। आ आब विकृति भ’ सकैत अछि दू
तरहेँ शुद्धसँ ऊपर स्वर जायत किंवा नीँचा। जदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा
तीव्र आ नीचाँ रहत तँ कोमल कहायत। म कँ छोड़ि कय सभ अचल स्वरक विकृति
होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, ग,ध, नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप
भेल कोमल आ शुद्ध। ’म’ केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ तीव्र। रे दैत
अछि उत्साह ग दैत अछि शांति म सँ होइत अछि भय ध सँ दुःख
आ नि सँ आदेश। शुद्ध स्वर तखन होइत अछि, जखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थान
पर रहैत अछि। एहि सातो पर कोनो चेन्ह नहि होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि, आ ई
चारिटा होइत अछि एहिमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछि, यथा- रे॒, ग॒,
ध॒, नि॒।
शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछि, तखन ई तीव्र स्वर
कहाइत अछि, एहिमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछि- म॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथा- सा,रे,ग, म, प, ध, नि, चारिटा शुद्ध यथा-
रे॒,ग॒,ध॒,नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कय १२ टा स्वर भेल।
एहिमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछि, शेष चल किंवा विकृत।
आब फेर कीबोर्ड पर आऊ। ३७ टा की बला कीबोर्ड हम एहि हेतु कहने
चालहुँ,किएक तँ १२, १२, १२ केर तीन सेट आ, अंतिम ३७म तीव्र सां केर हेतु।
सप्तक मे सातटा शुद्ध आ पाँचटा विकृत मिला कय १२ टा भेल!
वाम कातसँ १२ टा उजरा आ कारी की मंद्र सप्तक, बीच बला १२ टा की मध्य
सप्तक आ, २५ सँ ३६ धरि की तार सप्तक कहल जाइत अछि।
आरोह- नीचाँ सँ ऊपर गेनाइ, जेना मंद्र सप्तकसँ मध्य सप्तक आ मध्य सप्तकसँ
तार सप्तक।
मंद्र सप्तकमे नीचाँ बिन्दु, मध्य सप्तक सामान्य आ तार सप्तकमे ऊपर
बिन्दु देल जाइत अछि, यथा-
स़, ऱ,ग़,म़,प़,ध़,ऩ सा,रे,ग,म,प,ध,नी सां,रें,गं,मं,पं,धं,निं
अवरोह- तारसँ मध्य आ मध्यसँ मंद्र केँ अवरोह कहल जाइत अछि।
वादी स्वर- जाहि स्वरक सभसँ बेशी प्रयोग रागमे होइत अछि। समवादी स्वर-
जकर प्रयोग वादीक बाद सभसँ बेशी होइत अछि। अनुवादी स्वर- वादी आ समवादी
स्वरक बाद शेष स्वर। वर्ज्य स्वर- जाहि स्वरक प्रयोग कोनो विशेष रागमे
नहि होइत अछि। पकड़- जाहि स्वरक समुदायसँ कोनो राग विशेषकेँ चिन्हैत छी।
गायन काल सेहो सभ राग-रागिनीक हेतु निश्चित रहैत अछि। १२ बजे दिनसँ १२
बजे राति धरि पूर्वांग आ १२ बजे रातिसँ १२ बजे दिन धरि उत्तरांग राग
गाओल-बजाओल जाइत अछि।
पूर्वांग रागक वादी स्वर मे कोनो एक टा (सा, रे, ग, म, प ) होइत अछि।
उत्तरांगक वादी स्वरमे (म,प,ध,नि,सा)मे सँ कोनो एक टा होइत अछि। सूर्योदय
आ सूर्यास्तक समयमे गाओल ज्आय बला रागकेँ संधि प्रकाश राग कहल जाइत अछि।
रागक जाति
रागक आरोह आ अवरोहमे प्रयुक्त्त स्वरक संख्याक आधार पर रागक जातिक
निर्धारण होइत अछि।
एकर प्रधान जाति तीन टा अछि। १. संपूर्ण (७) २.षाड़व(६) ३.औड़व(५) आ
एहिमे सामान्य स्वर संख्या क्रमशः ७,६,५ रहैत अछि।
आब एहि आधार पर तीनूकेँ फेँटू।
संपूर्ण-औरव की भेल? हँ पहिल रहत आरोही आ दोसर रहत अवरोही। कहू आब। (७,५)
एहिमे सात आरोही स्वर संख्या आ ५ अवरोही स्वर संख्या अछि। संपूर्णक
सामान्य स्वर संख्या ऊपर लिखल अछि(७) आ औड़वक (५) । तखन संपूर्ण-औड़व
भेल(७,५)। अहिना ९ तरहक राग जाति होयत। १.संपूर्ण-संपूर्ण(७,७)
२.संपूर्ण-षाड़व(७,६) ३.संपूर्ण-औड़व(७,५)
४. षाड़व-संपूर्ण- (६,७)
५. षाड़व- षाड़व - (६,६)
६. षाड़व -औड़व (६,५)
७.औड़व-संपूर्ण(५,७)
८.औड़व- षाड़व(५,६)
९. औड़व- औड़व(५,५)
थाट:
थाट- एकटा सप्तकमे सात शुद्ध, चारिटा कोमल आ एकटा तीव्र स्वर (१२ स्वर)
होइत अछि। एहिमे सात स्वरक ओ’ समुदाय, जेकरासँ कोनो रागक उत्पत्ति होइत
अछि, तकरा थाट वा मेल कहल जाइत अछि।
थाट रागक जनक अछि, थाटमे सात स्वर होइत छैक(संपूर्ण जाति)। थाटमे मात्र
आरोही स्वर होइत अछि। थाटमे एकहि स्वरक शुद्ध आ विकृत स्वर संग-संग नहि
रहैत अछि। विभिन्न रागक नाम पर थाट सभक नाम राखल गेल अछि। थाटक सातो टा
स्वर क्रमानुसार होइत अछि आ एहिमे गेयता नहि होइत छैक।
थाटक १० टा अछि।
१.आसावरी-सा रे ग॒ म प ध॒ नि॒
२.कल्याण-सा रे ग म॑ प ध नि
३.काफी-सा रे ग॒ म प ध नि॒
४.खमाज-सा रे ग म प ध नि॒
५.पूर्वी-सा रे॒ ग म॑ प ध॒ नि ६.बिलावल-सा रे ग म प ध नि ७.भैरव-सा रे॒ ग
म प ध॒ नि ८.भैरवी-सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ ९.मारवा-सा रे॒ ग म॑ प ध नि
१०.तोड़ी-सा रे॒ ग॒ म॑ प ध॒ नि
वर्ण:
वर्णसँ रागक रूप-भाव प्रगट कएल जाइत छैक। एकर चारिटा प्रकार छैक।
१.स्थायी-जखन एकटा स्वर बेर-बेर अबैत अछि।ओकर अवृत्ति होइत अछि।
२.अवरोही- ऊपरसँ नीचाँ होइत स्वर समूह, एकरा अवरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
३.आरोही- नीचाँसँ ऊपर होइत स्वर समूह, एकरा आरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
४.संचारी-जाहिमे ऊपरका तीनू रूप लयमे होय।
लक्षण गीत: रचना जाहिमे बादी, सम्बादी,जाति आ गायनक समय केर निर्देशक
रागक लक्षण स्पष्ट भ’ जाय।
स्थायी: कोनो गीतक पहिल भाग, जे सभ अन्तराक बाद दोहराओल जाइत अछि।
अन्तरा: जकरा एकहि बेर स्थायीक बाद गाओल जाइत अछि।
अलंकार/पलटा: स्वर समुदायक नियमबद्ध गायन/वादन भेल अलंकार।
आलाप: कोनो विशेष रागक अन्तर्गत प्रयुक्त्त भेल स्वर समुदायक
विस्तारपूर्ण गायन/वादन भेल आलाप।
तान: रागमे प्रयुक्त्त भेल स्वरक त्वरित गायन/वादन भेल तान।
तानक गति द्रुत होइत अछि आऽ ई दोबर गतिसँ गायन/वादन कएल जाइत अछि।
आब आउ ताल पर। संगीतक गतिक अनूरूपेँ ई झपताल- १० मात्रा, त्रिताल- १६
मात्रा, एक ताल- १२ मात्रा, कह्रवा- ८ मात्रा दादरा- ६ मात्रा होइत अछि।
गीत, वाद्य आऽ नृत्यक लेल आवश्यक समय भेल काल आऽ जाहि निश्चित गतिक ई
अनुसरण करैत अछि, से भेल लय।जखन लय त्वरित अछि तँ भेल द्रुत, जखन
आस्ते-आस्ते अछि, तँ भेल विलम्बित आऽ नञि आस्ते अछि आऽ नञि द्रुत तँ भेल
मध्य लय।
मात्रा ताल केर युनिट अछि आऽ एहिसँ लय केर नापल जाइत अछि।
तालमे मात्रा संयुक्त रूपसँ उपस्थित रहला उत्तर ओकरा विभाग कहल जाइत अछि-
जेना दादरामे तीन मात्रा संयुक्त्त रहला उत्तर २ विभाग।
तालक विभागक नियमबद्ध विन्यास अछि छन्द।आऽ तालक प्रथम विभागक प्रथम
मात्रा भेल सम आऽ एकर चेन्ह भेल + वा x आऽ जतय बिना तालीक तालकेँ बुझाओल
जाइत अछि से भेल खाली आऽ एकर चेन्ह अछि ०.
ओऽ सम्पूर्ण रचना जाहिसँ तालक बोल इंगित होइत अछि, जेना मात्रा,
विभाग,ताली, खाली ई सभटा भेल ठेका।
चेन्ह-
तालीक स्थान पर ताल चेन्ह आऽ संख्या।
सम + वा x
खाली ०
ऽ अवग्रह/बिकारी
- एक मात्राक दू टा बोल
- एक मात्राक चारिटा बोल
एक मात्राक दूटा बोलकेँ धागे आऽ चारि टा बोलकेँ धागेतिट सेहो कहल जाइत अछि।
तालक परिचय
ताल कहरबा
४ टा मात्रा, एकटा विभाग, आऽ पहिल मात्रा पर सम।
धागि
नाति
नक
धिन।
तीन ताल त्रिताल
१६ टा मात्रा, ४-४ मात्राक ४ टा विभाग। १,५ आऽ १३ पर ताली आऽ ९ म मात्रा
पर खाली रहैत अछि।
धा धिं धिं धिं
धा धिं धिं धा
धा तिं तिं ता
ता धिं धिं धा
झपताल
१० मात्रा। ४ विभाग, जे क्रमसँ २,३,२,३ मात्राक होइत अछि।
१ मात्रा पर सम, ६ पर खली, ३,८ पर ताली रहैत अछि।
धी ना
धी धी ना
ती ना
धी धी ना
ताल रूपक
७ मात्रा। ३,२,२ मात्राक विभाग।
पहिल विभाग खाली, बादक दू टा भरल होइत अछि।
पहिल मात्रा पर सम आऽ खाली, चारिम आऽ छठम पर ताली होइत अछि।
धी धा त्रक
धी धी
धा त्रक
ह्रस्व-दीर्घ गणना
छन्द दू प्रकारक अछि।मात्रिक आ वार्णिक। वेदमे वार्णिक छन्द अछि।
वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। एहिमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त
अक्षरकेँ नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक
गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत
अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नहि होइछ।मुख्यतः तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त्त अक्षर-० २. संयुक्त अक्षर-१ ३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू :-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+३+१=२० मात्रा
आब दोसर उदाहरण देखू ; पश्चात्=२ मात्रा ; आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२ मात्रा ; आब चारिम उदाहरण देखू स्क्रिप्ट=२ मात्रा
छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल एहन
रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा एहिसँ ई नहि बुझबाक चाही जे आजुक नव
कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार
नियमक कारण, सावित्री मंत्र गायत्री छंद, मे परिगणित होइत अछि तकर चरचा
नीचाँ जा कए होएत - जेना यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर
प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ
आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः।
आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका/ हैकूक लेल मैथिली भाषा आ भारतीय,
संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष
सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आ पूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपि
मे वैह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि, जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह
बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व “इ” एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत
अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि
अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण
लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा
अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि, मुदा की इंग्लिशमे
संधि नहि अछि ? तँ ई की अछि - आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत
अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर
संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत
छै, आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर
प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आ
बाजल जाइत अछि।
छन्द दू प्रकारक अछि।मात्रा छन्द आ वर्ण छन्द ।
वेदमे वर्णवृत्तक प्रयोग अछि मात्रिक छन्दक नहि ।
वार्णिक छन्दमे वर्ण/ अक्षरक गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ
नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत
अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि। एकसँ
बेशी मान कोनो वर्ण/ अक्षरक नहि होइछ। मोटा-मोटी तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त अक्षर-०
२. संयुक्त अक्षर-१
३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+१=१७
आब दोसर उदाहरण देखू
पश्चात्=२
आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२
आब चारिम उदाहरण देखू
स्क्रिप्ट=२
मुख्य वैदिक छन्द सात अछि-
गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पङ्क्ति, त्रिष्टुप् आ जगती। शेष
ओकर भेद अछि, अतिछन्द आ विच्छन्द। एतए छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि।
जे अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत
अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि।
जेना-
वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः
गुण आ वृद्धिकेँ अलग कए सेहो अक्षर पूर कए सकैत छी।
ए = अ + इ
ओ = अ + उ
ऐ = अ/आ + ए
औ = अ/आ + ओ
छन्दः शास्त्रमे प्रयुक्त ‘गुरु’ आ ‘लघु’ छंदक परिचय प्राप्त करू।
तेरह टा स्वर वर्णमे अ,इ,उ,ऋ,लृ ई पाँच ह्र्स्व आर आ,ई,ऊ,ऋ,ए.ऐ,ओ,औ, ई आठ
दीर्घ स्वर अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनो
व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा
अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि।
एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइत
अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ
गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
५. जेना वार्णिक छन्द/ वृत्त वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि तहिना
स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओहि युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई
विभक्त अछि:- १. उदात्त २. उदात्ततर ३. अनुदात्त ४. अनुदात्ततर ५. स्वरित
६. अनुदात्तानुरक्तस्वरित, ७. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो
चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओला पर
उत्पन्न होइत अछि)।
१. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि।
एकरा लेल कोनो चेन्ह नहि अछि। २. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ
बाजल जाइत अछि। ३. अनुदात्त- जे कण्ठादि स्थानमे अधोभागमे उच्चारित
होइछ।नीचाँमे तीर्यक चेन्ह खचित कएल जाइछ। ४. अनुदातात्ततर- कण्ठादिसँ
अत्यंत नीचाँ बाजल जाइत अछि। ५. स्वरित- जाहिमे अनुदात्त रहैत अछि किछु
भाग, आ किछु रहैत अछि उदात्त। ऊपरमे ठाढ़ रेखा खेंचल जाइत अछि, एहिमे। ६.
अनुदाक्तानुरक्तस्वरित- जाहिमे उदात्त, स्वरित किंवा दुनू बादमे होइछ, ई
तीन प्रकारक होइछ। ७. प्रचय-स्वरितक बादक अनुदात्त रहलासँ अनाहत नाद
प्रचयक,तानक उत्पत्ति होइत अछि।
१. पूर्वार्चिकमे क्रमसँ अग्नि, इन्द्र आ सोम पयमानकेँ संबोधित गीत
अछि।तदुपरान्त आरण्यक काण्ड आ महानाम्नी आर्चिक अछि।आग्नेय, ऐन्द्र आ
पायमान पर्वकेँ ग्रामगेयण आ पूर्वार्चिकक शेष भागकेँ आरण्यकगण सेहो कहल
जाइछ। सम्मिलित रूपेँ एक प्रकृतिगण कहैत छी। २.उत्तरार्चिक: विकृति आ
उत्तरगण सेहो कहैत छी। ग्रामगेयगण आ आरण्यकगणसँ मंत्र चुनि कय क्रमशः
उहगण आ ऊह्यगण कहबैछ- तदन्तर प्रत्येक गण दशरात्र, संवत्सर, एकह, अहिन,
प्रायश्चित आ क्षुद्र पर्वमे बाँटल जाइछ। पूर्वार्चिक मंत्रक लयकेँ स्मरण
क’ उत्तरार्चिक केर द्विक, त्रिक, आ चतुष्टक आदि (२,३, आ ४ मंत्रक समूह)
मे एहि लय सभक प्रयोग होइछ। अधिकांश त्रिक आदि प्रथम मंत्र पूर्वार्चिक
होइत अछि, जकर लय पर पूरा सूक्त (त्रिक आदि) गाओल जाइछ।
उत्तरार्चिक उहागण आ उह्यगण प्रत्येक लयकेँ तीन बेर तीन प्रकारेँ पढ़ैछ।
वैदिक कर्मकाण्डमे प्रस्ताव, प्रस्तोतर द्वारा, उद्गीत उदगातर द्वारा,
प्रतिघार प्रतिहातर द्वारा, उपद्रव पुनः उदगातृ द्वारा आ निधान तीनू
द्वारा मिलि कय गाओल जाइछ। प्रस्तावक पहिने हिंकार (हिं,हुं,हं) तीनू
द्वारा आ ॐ उदगातृ द्वारा उदगीतक पहिने गाओल जाइछ। ई पाँच भक्त्ति भेल।
हाथक मुद्रा- हाथक मुद्रा १.१.औँठा(प्रथम आँगुर)-एक यव दूरी पर २.२. औँठा
प्रथम आँगुरकेँ छुबैत ३.३. औँठा बीच आँगुरकेँ छुबैत ४.४. औँठा चारिम
आँगुरकेँ छुबैत ५.५. औँठा पाँचम आँगुरकेँ छुबैत ६.११. छठम क्रुष्ट औँठा
प्रथम आँगुरसँ दू यव दूरी पर ७.६. सातम अतिश्वर सामवेद ८.७. अभिगीत
ऋग्वेद
ग्रामगेयगान- ग्राम आ सार्वजनिक स्थल पर गाओल जाइत छल। आरण्यक गेयगान- वन
आ पवित्र स्थानमे गाओल जाइत छल।
ऊहगान- सोमयाग एवं विशेष धार्मिक अवसर पर। पूर्वार्चिकसँ संबंधित
ग्रामगेयगान एहि विधिसँ। ऊह्यगान आकि रहस्यगान- वन आ पवित्र स्थान पर
गाओल जाइत अछि। पूर्वार्चिकक आरण्यक गानसँ संबंध। नारदीय शिक्षामे
सामगानक संबंधमे निर्देश:- १.स्वर-७ ग्राम-३ मूर्छना-२१ तान-४९
सात टा स्वर सा,रे,ग,म,प,ध,नि, आ तीन टा ग्राम-मध्य,मन्द,तीव्र। ७*३=२१
मूर्छना। सात स्वरक परस्पर मिश्रण ७*७=४९ तान।
ऋगवेदक प्रत्येक मंत्र गौतमक २ सामगान (पर्कक) आ काश्यपक १ सामगान
(पर्कक) कारण तीन मंत्रक बराबर भऽ जाइत अछि। मैकडॉवेल इन्द्राग्नि,
मित्रावरुणौ, इन्द्राविष्णु, अग्निषोमौ एहि सभकेँ युगलदेवता मानलन्हि
अछि। मुदा युगलदेव अछि –विशेषण-विपर्यय।
वेदपाठ-
१. संहिता पाठ अछि शुद्ध रूपमे पाठ।
अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहि॑त य॒घ्यस्य॑दे॒वम्त्विज॑म।होतार॑रत्न॒ धातमम्।
२. पद पाठ- एहिमे प्रत्येक पदकें पृथक कए पढ़ल जाइत अछि।
३. क्रमपाठ- एतय एकक बाद दोसर, फेर दोसर तखन तेसर, फेर तेसर तखन चतुर्थ।
एना कए पाठ कएल जाइत अछि।
४. जटापाठ- एहिमे ज्योँ तीन टा पद क, ख, आ ग अछि तखन पढ़बाक क्रम एहि
रूपमे होएत। कख, खक, कख, खग, गख, खग। ५. घनपाठ-एहि मे ऊपरका उदाहरणक
अनुसार निम्न रूप होयत- कख,खक,कखग,गखक,कखग। ६. माला, ७. शिखा, ८. रेखा,
९. ध्वज, १०. दण्ड, ११. रथ। अंतिम आठकेँ अष्टविकृति कहल जाइत अछि।
साम विकार सेहो ६ टा अछि, जे गानकेँ ध्यानमे रखैत घटाओल, बढ़ाओल जा सकैत
अछि। १. विकार-अग्नेकेँ ओग्नाय। २. विश्लेषण- शब्द/पदकेँ तोड़नाइ ३.
विकर्षण-स्वरकेँ खिंचनाई/अधिक मात्राक बड़ाबर बजेनाइ। ४. अभ्यास- बेर-बेर
बजनाइ।५. विराम- शब्दकेँ तोड़ि कय पदक मध्यमे ‘यति’। ६. स्तोभ-आलाप योग्य
पदकेँ जोड़ि लेब। कौथुमीय शाखा ‘हाउ’ ‘राइ’ जोड़ैत छथि। राणानीय शाखा
‘हावु’, ‘रायि’ जोड़ैत छथि।
मात्रिक छन्दक प्रयोग वेदमे नहि अछि वरन् वर्णवृत्तक प्रयोग अछि आ गणना
पाद वा चरणक अनुसार होइत रहए। मुख्य छन्द गायत्री, एकर प्रयोग वेदमे सभसँ
बेशी अछि। तकर बाद त्रिष्टुप आ जगतीक प्रयोग अछि।
१. गायत्री- ८-८ केर तीन पाद। दोसर पादक बाद विराम। वा एक पदमे छह टा अक्षर।
२. त्रिष्टुप- ११-११ केर ४ पाद।
३. जगती- १२-१२ केर ४ पाद।
४. उष्णिक- ८-८ केर दू तकर बाद १२ वर्ण-संख्याक पाद।
५. अनुष्टुप- ८-८ केर चारि पाद। एकर प्रयोग वेदक अपेक्षा संस्कृत
साहित्यमे बेशी अछि।
६. बृहती- ८-८ केर दू आ तकरा बाद १२ आ ८ मात्राक दू पाद।
७. पंक्त्ति- ८-८ केर पाँच। प्रथम दू पदक बाद विराम अबैछ।
यदि अक्षर पूरा नहि होइत अछि, तँ एक वा दू अक्षर निम्न प्रकारेँ घटा-बढ़ा
लेल जाइत अछि।
(अ) वरेण्यम् केँ वरेणियम् स्वः केँ सुवः।
(आ) गुण आ वृद्धि सन्धिकेँ अलग कए लेल जाइत अछि।
ए= अ + इ
ओ= अ + उ
ऐ= अ/आ + ए
औ= अ/आ + ओ
अहू प्रकारेँ नहि पुरलापर अन्य विराडादि नामसँ एकर नामकरण होइत अछि।
यथा- गायत्री (२४)- विराट् (२२), निचृत् (२३), शुद्धा (२४), भुरिक् (२५),
स्वराट्(२६)।
ॐ भूर्भुवस्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।
वैदिक ऋषि स्वयंकेँ आ देवताकेँ सेहो कवि कहैत छथि। सम्पूर्ण वैदिक
साहित्य एहि कवि चेतनाक वाङ्मय मूर्त्ति अछि। ओतए आध्यात्म चेतना,
अधिदैवत्वमे उत्तीर्ण भेल अछि, एवम् ओकरा आधिभौतिक भाषामे रूप देल गेल
अछि।
देवनागरीक अतिरिक्त्त समस्त उत्तरभारतीय भाषा नेपाल आ दक्षिणमे (तमिलकेँ
छोड़ि) सभ भाषा वर्णमालाक रूपमे स्वर आ कचटतप आ य, र ल व, श, स, ह केर
वर्णमालाक उपयोग करैत अछि। ग्वाङ केर हेतु संस्कृतमे दोसर वर्ण छैक
(छान्दोग्य परम्परामे एकर उच्चारण नहि होइत अछि छथि मुदा वाजसनेयी
परम्परामे खूब होइत अछि- जेना छान्दोग्य उच्हारण सभूमि तँ वाजसनेयी
उच्चारण सभूमीग्वंङ), ई ह्रस्व दीर्घ दुनू होइत अछि। सिद्धिरस्तु लेल
सेहो कमसँ कम छह प्रकारक वर्ण मिथिलाक्षरमे प्रयुक्त होइत अछि। वैदिक
संस्कृतमे उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित (क्रमशः क॑ क॒ क॓) उपयोग तँ मराठीमे
ळ आ अर्द्ध ऱ् केर सेहो प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे ऽ (बिकारी वा अवग्रह)
केर प्रयोग संस्कृत जकाँ होइत अछि आ आइ काल्हि एकर बदलामे टाइपक
सुविधानुसारे द’ (दऽ केर बदलामे) एहन प्रयोग सेहो होइत अछि मुदा ई प्रयोग
ओहि फॉंटमे एकटा तकनीकी न्यूनताक परिचायक अछि। मुदा आकार केर बाद बिकारीक
आवश्यकता नहि अछि।
जेना फारसीमे अलिफ बे से आ रोमनमे ए बी सी होइत अछि तहिना मोटा-मोटी सभ
भारतीय भाषामे लिपिक भिन्नताक अछैत वर्णमालाक स्वरूप एके रङ अछि।
वर्णमालामे दू प्रकारक वर्ण अछि- स्वर आ व्यंजन। वर्णक संख्या अछि ६४
जाहिमे २२ टा स्वर आ ४२ टा व्यञ्जन अछि।
पहिने स्वरक वर्णन दैत छी- जाहि वर्णक उच्चारणमे दोसर वर्णक उच्चारणक
अपेक्षा नहि रहैत अछि, से भेल स्वर।
स्वरक तीन टा भेद अछि- ह्रस्व, दीर्घ आ प्लुत। जाहिमे बाजयमे एक मात्राक
समय लागय से भेल ह्रस्व, जाहिमे दू मात्रा समय लागल से भेल दीर्घ आ
जाहिमे तीन मात्राक समय लागल से भेल प्लुत।
मूलभूत स्वर अछि- अ इ उ ऋ लृ
पाणिनिसँ पूर्वक आचार्य एकरा समानाक्षर कहैत छलाह।
दीर्घ मिश्र स्वर अछि- ए ऐ ओ औ
पाणिनिसँ पूर्वक आचार्य एकरा सन्ध्यक्षर कहैत छलाह।
लृ दीर्घ नहि होइत अछि आ सन्ध्यक्षर ह्रस्व नहि होइत अछि।
अ इ उ ऋ एहि सभक ह्रस्व, दीर्घ (आ ई ऊ ॠ) आ प्लुत (आ३ ई३ ऊ३ ॠ३) सभ मिला
कए १२ वर्ण भेल। लृ केर ह्रस्व आ प्लुत दू भेद अछि (लॄ३) तँ २ टा ई भेल।
ए ऐ ओ औ ई चारू दीर्घ मिश्रित स्वर अछि आ एहि चारूक प्लुत रूप सेहो (ए३
ऐ३ ओ३ औ३) होइत अछि, तँ ८ टा ई सेहो भेल। भऽ गेल सभटा मिला कए २२ टा
स्वर।
एहि सभटा २२ स्वरक वैदिक रूप तीन तरहक होइत अछि, उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित।
ऊँच भाग जेना तालुसँ उत्पन्न अकारादि वर्ण उदात्त गुणक होइत अछि आ तेँ
उदात्त कहल जाइत अछि।
नीचाँ भागसँ उत्पन्न स्वर अनुदात्त आ जाहि अकारादि स्वरक प्रथम भागक
उच्चारण उदात्त आ दोसर भागक उच्चारण अनुदात्त रूपेँ होइत अछि से भेल
स्वरित।
स्वरक दू प्रकार आर अछि, सानुनासिक जेना अँ आ निरनुनासिक जेना अ।
दत्तेन निर्वृत्तः कूपो दात्तः। दत्त नाम्ना पुरुष द्वारा विपाट्- ब्यास
धारक उतरबरिया तट पर बनबाओल, एतए इनार भेल दात्त। अञ प्रत्यान्त भेलासँ
’दात्त’ आद्युदात्त भेल, अण् प्रत्यायान्त होइत तँ प्रत्यय स्वरसँ
अन्तोदात्त होइत। रूपमे भेद नहि भेलो पर स्वरमे भेद अछि। एहिसँ सिद्ध भेल
जे सामान्य कृषक वर्ग सेहो शब्दक सस्वर उच्चारण करैत छलाह।
स्वरितकेँ दोसरो रूपमे बुझि सकैत छी- जेना एहिमे अन्तिम स्वरक
तीव्रस्वरमे पुनरुच्चारण होइत अछि।
आब व्यञ्जन पर आऊ।
व्यञ्जन ४२ टा अछि।
क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् ढ् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य् र् ल् व्
श् ष् स्
ह्
य् व् ल् सानुनासिक सेहो होइत अछि, यँ वँ लँ आ निरुनासिक सेहो।
एकर अतिरिक्त्त दू टा आर व्यञ्जन अछि- अनुस्वार आ विसर्जनीय वा विसर्ग।
ई दुनूटा स्वरक अनन्तर प्रयुक्त्त होइत अछि।
विसर्जनीय मूल वर्ण नहि अछि, वरन् स् वा र् केर विकार थीक। विसर्जनीय
किछु ध्वनि भेद आ किछु रूपभेदसँ दू प्रकारक अछि- जिह्वामूलीय आ
उपध्मानीय। जिह्वामूलीय मात्र क आ ख सँ पूर्व प्रयुक्त्त होइत अछि, दोसर
मात्र प आ फ सँ पूर्व।
अनुस्वार, विसर्जनीय, जिह्वामूलीय आ उपध्मानीयकेँ अयोगवाह कहल जाइत अछि।
उपरोक्त्त वर्ण सभकेँ छोड़ि ४ टा आर वर्ण अछि, जकरा यम कहल गेल अछि।
कुँ खुँ गुँ घुँ (यथा- पलिक् क्नी, चख ख्न्नुतः, अग् ग्निः, घ् घ्नन्ति)
पञ्चम वर्ण आगाँ रहला पर पूर्व वर्ण सदृश जे वर्ण बीचमे उच्चारित होइत
अछि से यम भेल।
यम सेहो अयोगवाह होइत अछि।
अ आ कवर्ग ह (असंयुक्त्त) आ विसर्जनीय केर उच्चारण कण्ठमे होइत अछि।
इ ई चवर्ग य श केर उच्चारण तालुमे होइत अछि।
ऋ ॠ टवर्ग र ष केर उच्चारण मूर्धामे होइत अछि।
लृ तवर्ग ल स केर उच्चारण दाँतसँ होइत अछि।
उ ऊ पवर्ग आ उपध्मानीय केर उच्चारण ओष्ठसँ होइत अछि।
व केर उच्चारण उपरका दाँतसँ अधर ओष्ठ केर सहायतासँ होइत अछि।
ए ऐ केर उच्चारण कण्ठ आ तालुसँ होइत अछि।
ओ औ केर उच्चारण कण्ठ आ ओष्ठसँ होइत अछि।
य र ल व अन्य व्यञ्जन जेकाँ उच्चारणमे जिह्वाक अग्रादि भाग ताल्वादि
स्थानकेँ पूर्णतया स्पर्श नहि करैत अछि। श् ष् स् ह् जकाँ एहिमे तालु आदि
स्थानसँ घर्षण सेहो नहि होइत अछि।
क सँ म धरि स्पर्श (वा स्फोटक कारण जिह्वाक अग्र द्वारा वायु प्रवाह रोकि
कए छोड़ल जाइत अछि) वर्ण र सँ व अन्तःस्थ आ ष सँ ह घर्षक वर्ण भेल।
सभ वर्गक पाँचम वर्ण अनुनासिक कहबैत अछि कारण आन स्थान समान रहितो एकर
सभक नासिकामे सेहो उच्चारण होइत अछि- उच्चारणमे वायु नासिका आ मुँह बाटे
बहार होइत अछि।
अनुस्वार आ यम केर उच्चारण मात्र नासिकामे होइत अछि- आ ई सभ नासिक्य
कहबैत अछि- कारण एहि सभमे मुखद्वार बन्द रहैत अछि आ नासिकासँ वायु बहार
होइत अछि। अनुस्वारक स्थान पर न् वा म् केर उच्चारण नहि होयबाक चाही।
जखन हमरा सभकेँ गप करबाक इच्छा होइत अछि, तखन संकल्पसँ जठराग्नि प्रेरित
होइत अछि। नाभि लगक वायु वेगसँ उठैत मूर्धा धरि पहुँचि, जिह्वाक अग्रादि
भाग द्वारा निरोध भेलाक अनन्तर मुखक तालु आदि भागसँ घर्षित होइत अछि आ
तखन वर्णक उत्पत्ति होइत अछि। कम्पन भेलासँ वायु नादवान आ यैह गूँजित
होइत पहुँचैत अछि मुँहमे आ ओकरा कहल जाइत अछि घोषवान, नादरहित भए पहुँचैत
अछि श्वासमे आ ओकरा कहल जाइत अछि अघोषवान्।
श्वास प्रकृतिक वर्ण भेल “अघोष” , आ नाद प्रकृतिक भेल “घोषवान्”। जाहि
वर्णक उत्पत्तिमे प्राणवायुक अल्पता होइत अछि से अछि “अल्पप्राण” आ जकर
उत्पत्तिमे प्राणवायुक बहुलता होइत अछि, से भेल “महाप्राण”।
कचटतप केर पहिल, तेसर आ पाँचम वर्ण भेल अल्पप्राण आ दोसर आ चारिम वर्ण
भेल महाप्राण। संगहि कचटतप केर पहिल आ दोसर भेल अघोष आ तेसर, चारिम आ
पाँचम भेल घोषवान्। य र ल व भेल अल्पप्राण घोष। श ष स भेल महाप्राण अघोष
आ ह भेल महाप्राण घोष।स्वर होइछ अल्पप्राण, उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित।
तँ आब लीखू मैथिली गजल। कविता, अकविता, गद्य-कविता, पद्य सभ लेल तर्क
उपलब्ध अछि। से मैथिली गजल सेहो अनिवार्य रूपमे बहर(छन्द)मे सरल-वार्णिक,
वार्णिक आ मात्रिक छन्दमे कहल जएबाक चाही। जेना सोरठा, चौपाइ छै तहिना
गजल छै..उर्दूमे ऐ तरहक प्रयास भेलै..आजाद गजलक नामसँ..), कहबाक आवश्यकता
नै जे ओ पूर्ण रूपेँ फ्लॉप भऽ गेलै..५३९ ई.सँ अरबीमे बहर युक्त गजल आइ
धरि लिखल जा रहल छै, फारसी आ उर्दूमे सेहो बिना बहरक गजल नै होइ
छै..गजलमे भगवान धरिक मजाक उड़ाओल जाइत छै, ओइ अर्थमे ओ उदार छै मुदा
बहरक मामिलामे ओ बड्ड कट्टर छै, आ ई कट्टरता ने अरबीमे गजलकेँखम केलकै आ
ने उर्दूफारसीमे, मात्रा मिलान आ सहज प्रवाह गजलमे एकटा रीतियेँ होइ छै,
आ से ओकर विशेषता छिऐ, नै तँ फेर ई नज्म भऽ जेतै..
3
मैथिली गजलशास्त्र-१३
"हमरा मानसपटलपर मैथिलीक सम्मानित आलोचक श्री रमानन्द झा “रमणक” ओ वाक्य
औखन ओहिना अंकित अछि जाहिमे ओ मैथिलीक वर्तमान गीत-गजलकेँ मंचीय यश एवं
अर्थलाभक औजार कहिकऽ एकर महत्वकेँ एकदम्मे नकारि देने रहथि (सन्दर्भ-
मिथिला मिहिर, फरबरी-१९८३); ...कोनो आलोचककेँ एहेन गैर जिम्मेदारीवला
वक्तव्य देबाक की अधिकार? भारतीय संविधानमे भाषणक स्वतंत्रता एकटा मौलिक
अधिकार छैक तेँ?” (सियाराम झा “सरस”, दीपोत्सव, १८/१०/९०; आमुख, लोकवेद आ
लालकिला)
वियोगी लोकवेद आ लालकिलाक एकटा दोसर आमुखमे लिखै छथि- “छन्दशास्त्रक
नियमपर आधारित होयबाक उपरान्तो एहिमे गजलकारकेँ गणना-नियमक स्वातन्त्र्यक
अधिकार रहैत छैक।” (!)
गजल कतेको ढंगसँ कतेको बहरमे कतेको छन्दमे लिखल जा सकैए, ई सत्य अछि,
मुदा गणना नियमक स्वातन्त्र्यक अधिकार ने मात्रिक गणनामे छैक आ ने
वार्णिक गणनामे।
देवशंकर नवीन लिखै छथि –“...पुनः डॉ. रामदेव झाक आलेख आएल। एहि निबन्धमे
दूटा अनर्गल बात ई भेल, जे गजलक पंक्ति लेल, छन्द जकाँ मात्रा निर्धारण
करए लगलाह..”।
लोकवेद आ लालकिलामे गजल शुरू हेबासँ पहिने कएकटा आलेख अछि, मैथिली गजलपर
कोनो सकारात्मक टिप्पणी तँ नै अछि ऐ सभमे, हँ मुदा समीक्षककेँ लाठी हाथे
“ई सभ मैथिली गजल थिक, गजले टा थिक” कहबापर विवश करैत प्रहार सभ अवश्य
अछि।
हाइकूमे सिलेबल आ वर्णक मिलानी अंग्रेजी हाइकूक आरम्भिक लेखनमे नै भऽ
सकल, देखल गेल जे ५/७/५ सिलेबलमे बहुतरास अल्फाबेट आबि गेल, जापानीमे
ओतेक अल्फाबेट ५/७/५ सिलेबलमे नै छल। मैथिलीक आरम्भिक हाइकूमे सेहो ५/७/५
सिलेबलक अनुकरण करैत ज्योति चौधरी अपन कविता संग्रह “अर्चिस्” मे बेसी
वर्णक प्रयोग केलन्हि। तेँ हम सलाह देलहुँ जे मैथिली हाइकू सरल वार्णिक
छन्दक आधारपर लिखल जाए जइमे ह्रस्व-दीर्घक विचार नै हुअए। संस्कृतमे १७
सिलेबलबला वार्णिक छन्दमे नोकमे नोक मिला कऽ १७ टा वर्ण होइ छै- जेना
शिखरिणी, वंशपत्र पतितम्, मन्दाक्रान्ता, हरिणी, हारिणी, नरदत्तकम्,
कोकिलकम् आ भाराक्रान्ता। से ५/७/५ मे १७ सिलेबल लेल १७ टा वर्ण हाइकू
लेल गेल, से आब ज्योतिजी सेहो लऽ रहल छथि, हम सेहो लऽ रहल छी आ मिहिर झा,
इरा मल्लिक, उमेश मंडल, रामविलास साहु, सुनील कुमार झा सेहो लऽ रहल छथि।
रुबाइमे हमर सलाह छल जे एतए सरल वार्णिक छन्दक प्रयोग सम्भव नै अछि, कारण
एकर प्रारम्भ दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ वा दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व सँ होइत अछि से
चाहे तँ ह्रस्व-दीर्घक मिलानी खाइत वर्णिक छन्दक प्रयोग करू वा मात्रिक
छ्न्दक। रुबाइक चतुष्पदीमे पहिल दोसर आ चारिम पाँती काफिया युक्त होइत
अछि; आ मात्रा (वा वार्णिकमे वर्ण)२० वा २१ हेबाक चाही। कारण चारू पाँती
चारि तरहक बहर (छन्द) मे लिखल जा सकैए से निअमकेँ आगाँ नमरेबाक आवश्यकता
नै छै, हँ ई निर्णय करैए पड़त जे चारू पाँतीमे वार्णिक वा मात्रिक गणना
पद्धति जे ली, से एक्के हेबाक चाही।
गजलमे मुदा अहाँ वार्णिक, सरल वार्णिक वा मात्रिक छन्दक प्रयोग कऽ सकै
छी, मुदा एक गजलमे दूटा बौस्तु मिज्झर नै करू। बिन छन्द वा बहरक गजल अहाँ
कहि सकै छी, समीक्षककेँ लुलुआ कऽ आ लाठी हाथे; मुदा ओ गजल नै हएत, उर्दू/
फारसीमे तँ मुशायरामे अहाँकेँ ढुकैये नै देत। आ आब जखन रोशन झा, प्रवीण
चौधरी प्रतीक, आशीष अनचिन्हार, सुनील कुमार झा सन युवा गजलकार
अन्तर्जालपर एकटा टिप्पणीक बाद सरल वार्णिक छन्दमे गजलकेँ संशोधित कऽ सकै
छथि तँ लालकिलावादी गजलकार लोकनि किए नै कऽ सकै छी? मायानन्द मिश्र
“गीतल” कहि आ गंगेश गुंजन “गजल सन किछु मैथिलीमे” कहि जे गलत परम्पराकेँ
जारी रखबाक निर्णय लेने छथि तकरा बाद मुन्ना जी आ आशीष अनचिन्हार जँ बिना
छन्द/ बहरक गजल लिखै छथि तँ एकरा हम मायानन्द मिश्र, गंगेश गुंजन आ
लालकिलावादी अ-गजलकार लोकनिक दुष्प्रभावे बुझै छी।
लोकवेद आ लालकिला:
आत्ममुग्ध आमुख सभक बाद ऐ संग्रह मे कलानन्द भट्ट, तारानन्द वियोगी, डॉ.
देवशंकर नवीन, नरेन्द्र, डॉ. महेन्द्र, रमेश, रामचैतन्य “धीरज”, रामभरोस
कापड़ि “भ्रमर”, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, सियाराम झा “सरस” आ
सोमदेवक गजल देल गेल अछि।
कलानन्द भट्ट
भोर आनब हम दोसर उगायब सुरुज
करब नूतन निर्माण हम बनायब सुरुज
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१७ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण; जखन
सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति
बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२१ मात्रा, दोसर पाँती- २१ मात्रा,
मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। पहिल पाँती
दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व
(एतए दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे
देखब)। दोसर पाँती-
ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व-
ह्रस्व-हस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व। मुदा एतए गाढ़ कएल
अक्षरक बाद क्रमटूटि गेल।
तारानन्द वियोगी
दर्द जँ हद केँ टपल जाए तँ आगि जनमै अछि
बर्फ अंगार बनल जाए तँ आगि जनमै अछि
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१९ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण; जखन
सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति
बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२५ मात्रा, दोसर पाँती- २५ मात्रा,
मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। दीर्घ (संयुक्ताक्षरकेँ
पहिने)-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्र्अस्व-ह्रस्व।(एतए
दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)।
दोसर पाँती- दीर्घ (संयुक्ताक्षरकेँ पहिने)-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ एतए
क्रमभंग भऽ गेल।
देवशंकर नवीन
अँटा लेब समय-चक्र, सहजहि एहि आँखि बीच
नबका प्रभात लेल, क्रान्ति कोनो ठानि लेब
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१९ वर्ण दोसर पाँती- १६ वर्ण; जखन
सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति
बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२५ मात्रा, दोसर पाँती- २५ मात्रा,
मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली।
ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व
(एतए दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे
देखब)। दोसर पाँती- ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- मुदा एतए गाढ़ कएल अक्षरक बाद
क्रमटूटि गेल।
नरेन्द्र
निकलू तँ सजिकऽ सजाकेँ
बासन ली ठोकि बजाकेँ
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१० वर्ण दोसर पाँती- ९ वर्ण; जखन
सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति
बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-१३ मात्रा, दोसर पाँती-१४, मात्रा
गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
डॉ महेन्द्र
चलैछ आदमी सदिखन चलैत रहबा लए
जीबैछ आदमी सदिखन कलेस सहबा लए
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१८ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण।
मुदा तेसर शेरमे दोसर पाँतीमे १६ वर्ण आबि गेल अछि। मात्रिकमे सेहो उपरका
दुनू पाँतीमे क्रमसँ २४ आ २५ वर्ण अछि।
रमेश
जखन-जखन साओनक ओहास पड़ैए
हमर छाती मे गजलक लहास बरैए
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१६ वर्ण दोसर पाँती- १६ वर्ण।
मुदा दोसर शेरक पहिल पाँतीमे १५ वर्ण। मात्रिक मे सेहो उपरका दुनू
पाँतीमे २२ वर्ण अछि। मुदा ह्रस्व-दीर्घ गणनामे दोसरे शब्दमे ई मारि खा
जाइए।
ई दोष शेष गजलकारमे सेहो देखबामे अबैए।
एकर अतिरिक्त सुरेन्द्रनाथक “गजल हमर हथियार थिक” , सियाराम झा “सरस”क
“थोड़े आगि थोड़े पानि”, रमेशक “नागफेनी” आ तारानन्द वियोगीक “अपन युद्धक
साक्ष्य”मेसँ किछु किताब लाठी हाथे मैथिली साहित्यमे गजल संग्रहक रूपमे
साहित्य अकादेमीक सर्वे ऑफ मैथिली लिटेरेचरक उत्तर जयकान्त मिश्र
संस्करणमे आबि गेल अछि, किछु ऐ सहित्यक इतिहासक अगिला संस्करणमे आबि
जाएत! अरविन्द ठाकुरक गजल सेहो पत्र-पत्रिकामे गजल कहि छपि रहल अछि जे
अही परम्पराकेँ आगाँ बढ़बैत अछि।
जँ ई सभ गजल नै छी तँ पद्य तँ छी आ तइ रूपमे एकर विवेचन तँ हेबाके चाही।
ऐ क्रममे रवीन्द्रनाथ ठाकुरक “लेखनी एक रंग अनेक” देखू। मैथिली गजल
संग्रहक रूपमे ई पोथी आइसँ २५ बर्ख पूर्व आएल। सोमदेव आ भ्रमरक संग हिनको
गजल लालकिलावादक परिभाषामे नै अबैत अछि। गजल नै मुदा पद्यक रूपमे एकर
स्थान मैथिली साहित्यमे सुरक्षित छै, मुदा ई आन वर्णित गजलक तथाकथित
संकलनक विषयमे नै कहल जा सकैए।
एक छन्द, एक बाँसुरी, एक धुन सुनयबालेऽ
लियौ ई एक गजल, आई गुनगुनयबालेऽ
(रवीन्द्रनाथ ठाकुर “लेखनी एक रंग अनेक”)
गजल समीक्षा (पेटारसँ)
१
बाल गजलः पुरान देहक नव चेहरा
घड़ीक पेण्डुलम सन झुलैत जिनगीमे स्थिरता भागल फिरैए। ने देह स्थिर आ ने
चित्त। केखनो क' तँ अपनो ठर-ठेकान हेराएल सन लगैए लोककेँ। जँ चिन्तनशील
भ' ताकब तँ ठकाएल सन अनुभव हएत। एहन स्थितिमे कोनो नव सोच वा नव
अवधारणाकेँ घीचा-तीरीमे फँसि जेबाक आशंका घेरि लैए। मुदा रक्षात्मको भ'
वएह नव अवधारणा, नव प्रयोग, नव रचना साहित्यकेँ जिया क' रखबाक क्षमता
देखबैए।
पद्य विधाक एकटा रूप गजल अपन आ समाजक सौन्दर्यबोध करबैए। हासिक, रसिक भ'
प्रेममे ओझरा उब-डुब करैत अपन बाट पर ससरल जाइत देखाइए। गजलक बढ़ैत
लोकप्रियता आब अपन विस्तार तकैए। आब गजल सभ भावमे चतरल-पसरल जा रहल अछि।
ऐ बीच चर्चित युवा गजलकार आशीष अनचिन्हार जी गजलक क्षेत्रमे एकटा नव
अवधारणा रखलन्हि। साहित्य अकादेमी आ मैलोरंगक संयुक्त तत्वावधानमे भेल
कथा गोष्ठी २४ मार्च २०१२केँ अनचिन्हार जी बाल गजलक अवधारणाकेँ स्पष्ट
करैत कहलन्हि " जेना गद्य विधा वा अन्य विधामे बाल साहित्य लिखल जाइत अछि
तहिना गजलमे सेहो बाल मनोविज्ञान पर आधारित बाल गजल लिखल जाए"।२४ मार्च
२०१२ के प्रस्तुत कएल गेल बाल गजलक परिकल्पनाक विधिवत् घोषणा अनचिन्हार
आखर आ विदेहक फेसबुक वर्सन पर २७ मार्च २०१२केँ होइते बहुत रास परिपक्व
बाल गजल सभ सोंझा आएल। घोषणा होइते ऐ विधाक पहिल रचनाकार भेलाह आशुतोष
मिश्रा जे की नेपालसँ छथि मुदा यदा-कदा लिखैत छथि। दोसर स्थान पर भेलाह
जगदानंद झा मनु आ तकरा बाद तँ अमित मिश्रा, रुबी झा, नवल श्री पंकज, चंदन
झा, मिहिर झा, मुन्ना जी आ आन गजलकार सभहँक बाल गजलक प्रकाशनक क्रम बनि
गेल। आ ऐँ तरहेँ ऐ अवधारणाक प्रथमे चरण ठोस भ' सोंझा आएल , जाहिसँ एकर
मजगूत भविष्यक आकलन कएल जा सकैए। संगे एकर पूर्ण संभावना सेहो जागल
देखाइए।
अनचिन्हार आखर द्वारा बाल गजलक महत्वकेँ देखैत " गजल
कमला-कोसी-बागमती-महानंदा सम्मान" अलगसँ देबाक घोषणा सेहो कएल गेल। आ ई
मार्च माससँ प्रभावी मानल गेल। आ श्रीमती प्रिती ठाकुर जीकेँ
मुख्यचयनकर्ती बनाएल गेल। एखन धरि जून मास धरिक प्रारंभिक चरणक चयन भेल
अछि जे एना अछि-----------------
१) मार्च लेल श्री मती रूबी झा जीकेँ चूनल गेल।
२) अप्रैल लेल नवलश्री पंकज जीकेँ चूनल गेल।
३) मइ लेल अमित मिश्रा जीकेँ चूनल गेल।
४) जून लेल चंदन झा जीकेँ चूनल गेल।
संप्रति विदेह द्वारा प्रस्तुत बाल गजल विशेषांक एकर आधारकेँ मजगूत करबाक
दिशामे एकटा सशक्त प्रयास अछि जाहिसँ एकर विकासक संभावना अक्षुण्ण रहए।
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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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