गजल समीक्षा (पेटारसँ)
प्रेमर्षि जीक ई आलेख विदेहक अंक २१मे छल तकरा बाद अनचिन्हार आखरपर सेहो
देल गेल। वर्तमान समयमे ई आलेख पढ़एसँ पहिने प्रेमर्षि जीक ई विचार देखू
जे अनचिन्हार आखरपर देबा लेल माँगल गेल सहमति केर बाद आएल छल—
कारणेँ। तेँ हम नइ राखू से तँ नइ कहब, मुदा कमसँ कम हमर ई स्वीकार्यता उल्लेख कऽकऽ राखि देबै तँ भऽ सकैछ जे छपलाक बादहु हम दोषक भागी कने कम बनी। धन्यवाद”
१
मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना
रूप-रङ्ग एवं चालि-प्रकृति देखलापर गीत आ गजल दुनू सहोदरे बुझाइत छैक।
मुदा मैथिलीमे गीत अति प्राचीन काव्यशैलीक रूपमे चलैत आएल अछि, जखन कि
गजल अपेक्षाकृत अत्यन्त नवीन रूपमे। एखन दुनूकेँ एकठाम देखलापर एना लगैत
छैक जेना गीत-गजल कोनो कुम्भक मेलामे एक-दोसरासँ बिछुड़ि गेल छल। मेलामे
भोतिआइत-भासैत गजल अरबदिस पहुँचि गेल। गजल ओम्हरे पलल-बढ़ल आ जखन बेस
जुआन भऽ गेल तँ अपन बिछुड़ल सहोदरकेँ तकैत गीतक गाम मिथिलाधरि सेहो
पहुँचि गेल। जखन दुनूक भेट भेलैक तँ किछु समय दुनूमे अपरिचयक अवस्था बनल
रहलैक। मिथिलाक माटिमे पोसाएल गीत एकरा अपन जगह कब्जा करऽ आएल
प्रतिद्वन्दीक रूपमे सेहो देखलक। मुदा जखन दुनू एक-दोसराकेँ लगसँ हियाकऽ
देखलक तखन बुझबामे अएलैक-आहि रे बा, हमरासभमे एना बैर किएक, हम दुनू तँ
सहोदरे छी! तकरा बाद मिथिलाक धरतीपर डेगसँ डेग मिला दुनू पूर्ण भ्रातृत्व
भावेँ निरन्तर आगाँ बढ़ैत रहल अछि।
गीत आ गजलक स्वरूप देखलापर दुनूक स्वभावमे अपन पोसुआ जगहक स्थानीयताक
असरि पूरापूर देखबामे अबैत अछि। गीत एना लगैत छैक जेना रङ्गबिरङ्गी
फूलकेँ सैँतिकऽ सजाओल सेजौट हो। मिथिलाक गीतमे काँटोसन बात जँ कहल जाइछ
तँ फूलेसन मोलायम भावमे। एकरा हम एहू तरहेँ कहि सकैत छी जे गीत फूलक
लतमारापर चलबैत लोककेँ भावक ऊँचाइधरि पहुँचबैत अछि। एहिमे मिथिलाक
लोकव्यवहार एवं मानवीय भाव प्रमुख भूमिका निर्वाह करैत आएल अछि। जाहि
भाषाक गारियोमे रिदम आ मधुरता होइत छैक, ओहि भूमिपर पोसाएल गीतक स्वरूप
कटाह-धराह भइए नहि सकैत अछि। कही जे गीतमे तँ लालीगुराँसक फूलजकाँ ओ ताकत
विद्यमान छैक जे माछ खाइत काल जँ गऽरमे काँट अटकि गेल तँ तकरो गलाकऽ
समाप्त कऽ दैत छैक।
गजलक बगय-बानि देखबामे भलहि गीतेजकाँ सुरेबगर लगैक, एहिमे गीतसन नरमाहटि
नहि होइत छैक। उसराह मरुभूमिमे पोसाएल भेलाक कारणे गजलक स्वभाव किछु
उस्सठ होइत छैक। ई कट्टर इस्लामीसभक सङ्गतिमे बेसी रहल अछि, तेँ एकर
स्वभावमे “जब कुछ न चलेगी तो ये तलवार चलेगा” सन तेज तेवरबेसी देखबामे
अबैत छैक। यद्यपि गजलकेँ प्रेमक अभिव्यक्तिक सशक्त माध्यम मानल जाइत छैक।
गजल कहितहिँदेरी लोकक मन-मस्तिष्कमे प्रेममय माहौल नाचि उठैत छैक, एहि
बातसँ हम कतहु असहमत नहि छी। मुदा गजलमे प्रेमक बात सेहो बेस धरगर
अन्दाजमे कहल जाइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे गजल तरुआरिजकाँ सीधे बेध दैत
छैक लक्ष्यकेँ। लाइलपटमे बेसी नहि रहैत छैक गजल। मिथिलाक सन्दर्भमे गीत आ
गजलक एक्कहि तरहेँ जँ अन्तर देखबऽ चाही तँ ई कहल जा सकैत अछि जे गजल फूलक
प्रक्षेपणपर्यन्त तरुआरिजकाँ करैत अछि, जखन कि गीत तरुआरि सेहो फूलजकाँ
भँजैत अछि।
मैथिलीमे संख्यात्मक रूपेँ गजल आनहि विधाजकाँ भलहि कम लिखल जाइत रहल हो,
मुदा गुणवत्ताक दृष्टिएँ ई हिन्दी वा नेपाली गजलसँ कतहु कनेको झूस नहि
देखबामे अबैत अछि। एकर कारण इहो भऽ सकैत छैक जे हिन्दी, नेपाली आ मैथिली
तीनू भाषामे गजलक प्रवेश एक्कहि मुहूर्त्तमे भेल छैक। गजलक श्रीगणेश
करौनिहार हिन्दीक भारतेन्दु, नेपालीक मोतीराम भट्ट आ मैथिलीक पं. जीवन झा
एक्कहि कालखण्डक स्रष्टासभ छथि।
मैथिलीयोमे गजल आब एतबा लिखल जा चुकल अछि जे एकर संरचनाक मादे किछु कहनाइ
दिनहिमे डिबिया बारबजकाँ लगैत अछि। एहनोमे यदाकदा गजलक नामपर किछु एहनो
पाँतिसभ पत्रपत्रिकामे अभरि जाइत अछि, जकरा देखलापर मोन किछु झुझुआन भइए
जाइत छैक। कतेकोगोटेक रचना देखलापर एहनो बुझाइत अछि, जेना ओलोकनि दू-दू
पाँतिवला तुकबन्दीक एकटा समूहकेँ गजल बूझैत छथि। हमरा जनैत ओलोकनि गजलकेँ
दूरेसँ देखिकऽ ओहिमे अपन पाण्डित्य छाँटब शुरू कऽ दैत छथि। जँ मैथिली
साहित्यक गुणधर्मकेँ आत्मसात कऽ चलैत कोनो व्यक्ति एकबेर दू-चारिटा गजल
ढङ्गसँ देखि लिअए, तँ हमरा जनैत ओकरामे गजलक संरचनाप्रति कोनो तरहक
द्विविधा नहि रहि जएतैक।
तेँ सामान्यतः गजलक सम्बन्धमे नव जिज्ञासुक लेल जँ किछु कहल जाए तँ विना
कोनो पारिभाषिक शब्दक प्रयोग कएने हम एहि तरहेँ अपन विचार राखऽ चाहैत छी-
गजलक पहिल दू पाँतिक अन्त्यानुप्रास मिलल रहैत छैक। अन्तिम एक, दू वा
अधिक शब्द सभ पाँतिमे सझिया रहलहुपर साझी शब्दसँ पहिनुक शब्दमेअनुप्रास
वा कही तुकबन्दी मिलल रहबाक चाही। अन्य दू-दू पाँतिमे पहिल पाँति
अनुप्रासक दृष्टिएँ स्वच्छन्द रहैत अछि। मुदा दोसर पाँति वा कही जे पछिला
पाँति स्थायीवला अनुप्रासकेँ पछुअबैत चलैत छैक।
ई तँ भेल गजलक मुह-कानक संरचनासम्बन्धी बात। मुदा खालि मुहे-कानपर ध्यान
देल जाए आ ओकर कथ्य जँ गोङिआइत वा बौआइत रहि जाए तँ देखबामे गजल लगितो
यथार्थमे ओ गीजल भऽ जाइत अछि। तेँ प्रस्तुतिकरणमे किछु रहस्य, किछु
रोमाञ्चक सङ्ग समधानल चोटजकाँ गजलक शब्दसभ ताल-मात्राक प्रवाहमय साँचमे
खचाखच बैसैत चलि जएबाक चाही। गजलक पाँतिकेँ अर्थवत्ताक हिसाबेँ जँ देखल
जाए तँ कहि सकैत छी जे हऽरक सिराउरजकाँ ई चलैत चलि जाइत छैक। हऽरक पहिल
सिराउर जाहि तरहेँ धरतीक छाती चीरिकऽ ओहिमे कोनो चीज जनमाओल जा सकबाक
आधार प्रदान करैत छैक, तहिना गजलक पहिल पाँति कल्पना वा विषयवस्तुक उठान
करैत अछि, दोसर पाँति हऽरक दोसर सिराउरक कार्यशैलीक अनुकरण करैत पहिलमे
खसाओल बीजकेँ आवश्यक मात्रमे तोपन दऽकऽ पुनः आगू बढ़बाक मार्ग प्रशस्त्र
करैत अछि। गजलक प्रत्येक दू-पाँति अपनहुमे स्वतन्त्र रहैत अछि आ
एक-दोसराक सङ्ग तादात्म्य स्थापित करैत समग्रमे सेहो एकटा विशिष्ट अर्थ
दैत अछि। एकरा दोसर तरहेँ एहुना कहल जा सकैत अछि जे गजलक पहिल पाँति
कनसारसँ निकालल लालोलाल लोह रहैत अछि, दोसर पाँति ओकरा निर्दिष्ट आकारदिस
बढ़एबाक लेल पड़ऽ वला घनक समधानल चोट भेल करैत अछि।
गीतक सृजनमे सिद्धहस्त मैथिलसभ थोड़े बगय-बानि बुझितहिँ आसानीसँ गजलक
सृजन करऽ लगैत छथि। सम्भवतः तेँ आरसीप्रसाद सिंह, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ
महेन्द्र, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. गङ्गेश गुञ्जन, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र
आदि मूलतः गीत क्षेत्रक व्यक्तित्व रहितहु गजलमे सेहो कलम चलौलनि। ओहन
सिद्धहस्त व्यक्तिसभक लेल हमर ई गजल लिखबाक तौर-तरिकाक मादे किछु कहब
हास्यास्पद भऽ सकैत अछि, मुदा नवसिखुआसभकेँ भरिसक ई किछु सहज बुझाइक।
मैथिलीमेकलम चलौनिहारसभमध्य प्रायः सभ एक-आध हाथ गजलोमे अजमबैत पाओल
गेलाह अछि। जनकवि वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” सेहो “भगवान हमर ई मिथिला”
शीर्षक कविता पूर्णतः गजलक संरचनामे लिखने छथि। मुदा सियाराम झा “सरस”,
स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ.राजेन्द्र विमल सन किछु साहित्यकार खाँटी गजलकारक
रूपमे चिन्हल जाइत छथि। ओना सोमदेव, डॉ.केदारनाथ लाभ, डॉ.तारानन्द
वियोगी, डॉ.रामचैतन्य धीरज, बाबा वैद्यनाथ, डॉ. विभूति आनन्द,
डा.धीरेन्द्र धीर, फजलुर्रहमान हाशमी, रमेश, बैकुण्ठ विदेह, डा.रामदेव
झा, रोशन जनकपुरी, पं. नित्यानन्द मिश्र, देवशङ्कर नवीन, श्यामसुन्दर
शशि, जनार्दन ललन, जियाउर्ररहमान जाफरी, अजितकुमार आजाद, अशोक दत्त
आदिसमेत कतेको स्रष्टाक गजल मैथिली गजल-संसारकेँ विस्तृति दैत आएल अछि।
गजलमे महिला हस्ताक्षर बहुत कम देखल जाइत अछि। मैथिली विकास मञ्चद्वारा
बहराइत पल्लवक पूर्णाङ्क १५, २०५१ चैतक अङ्क गजल अङ्कक रूपमे बहराएल अछि।
सम्भवतः ३४ गोट अलग-अलग गजलकारक एकठाम भेल समायोजनक ई पहिल वानगी हएत।
एहि अङ्कमे डा. शेफालिका वर्मा एक मात्र महिला हस्ताक्षरक रूपमे गजलक
सङ्ग प्रस्तुत भेलीह अछि। एही अङ्कक आधारपर नेपालीमे मैथिली गजल सम्बन्धी
दूगोट समालोचनात्मक आलेख सेहो लिखाएल अछि। पहिल मनु ब्राजाकीद्वारा
कान्तिपुर २०५२ जेठ २७ गतेक अङ्कमे आ दोसर डा. रामदयाल राकेशद्वारा
गोरखापत्र २०५२ फागुन २६ गतेक अङ्कमे। छिटफुट आनहु गजल सङ्कलन बहराएल
होएत, मुदा तकर जानकारी एहि लेखककेँ नहि छैक। हँ, सियाराम झा “सरस”क
सम्पादनमे बहराएल “लोकवेद आ लालकिला” मैथिली गजलक गन्तव्य आ स्वरूप दऽ
बहुत किछु फरिछाकऽ कहैत पाओल गेल अछि। एहिमे सरससहित तारानन्द वियोगी आ
देवशङ्कर नवीनद्वारा प्रस्तुत गजलसम्बन्धी आलेख सेहो मैथिली गजलक
तत्कालीन अवस्थाधरिक साङ्गोपाङ्ग चित्र प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि।
समग्रमे मैथिली गजलक विषयमे ई कहि सकैत छी जे मैथिली गीतक खेतसँ प्राप्त
हलगर माटिमे गुणवत्ताक दृष्टिएँ मैथिली गजल निरन्तर बढ़िरहल अछि,
बढ़िएरहल अछि।
२
गजल समीक्षा (पेटारसँ)
आशीष अनचिन्हार (१० टा आलेख )
पहरा-अधपहरा
आइ हम पढ़लहुँ बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " जे की 1989मे प्रकाशित
भेल आ ऐमे कुल मिला तीस टा गजल अछि। धेआन देबै विभक्ति शब्दमे सटल अछि आ
ई गजलकारे द्वारा कएल गेल अछि आ हमरा लोकनि सेहो ऐ परम्पराक अनुयायी छी।
तीसटा गजलकेँ छोड़ि ऐ संग्रहमे आरसी प्रसाद सिंह, गोपाल जी झा गोपेश,
सोमदेव, मार्कण्डेय प्रवासी, जीवकान्त, रमानंद झा रमण, छात्रानंद सिंह झा
ओ विभूति आनंद जीक संक्षिप्त टिप्पणी सेहो अछि। ई गजल संग्रह मात्र 32
पन्नाक अछि। आश्चर्य ऐ गप्पक जे 1989मे प्रकाशित भेलाक बाबजूदो ओहि समयक
आन गजलकार ( जे की एखनो जीवित आ रचनारत छथि ) ऐ गजल संग्रह कोनो चर्चा नै
केने छथि। जँ गौरसँ अहाँ 1989-2008 बला कालखण्ड देखब तँ बहुत कम्मे ठाम
हिनक वा हिनकर पोथीक चर्च भेटत आ ओहूमे अधिकांश चर्च अ-गजलकार ( मुदा
अपना विधामे प्रतिष्ठित ) रचनाकार द्वारा भेल अछि।
की कारण छै जे एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करए चाहैत अछि। खराप वा
नीक बादक विषय भेल मुदा चर्चा तँ हेबाक चाही। हमर गजल एहन, हमर गजल ओहन ऐ
तरहँक चर्चा बहुत भेटत मुदा एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करत। आखिर
किए ? वा एना कहू जे गजलकारक चर्चा के करत कथाकार की नाटककार आ की आन।
जँ ई सभ करबो करता तँ ओहन समयमे जखन की गजल पूर्णरूपेण विकसित भ' क'
देखार भ' जाएत तखन। मुदा प्रारम्भिक कालमे तँ स्वयं एक गजलकारकेँ दोसर
गजलकारक चर्चा कर' पड़तन्हि, आलोचना आ समीक्षा कर' पड़तन्हि तखने आनो
आलोचक सभ गजलपर लिखबाक प्रयास करता। जँ प्रारम्भिके कालमे अहाँ सोचि लेबै
मात्र हमरे गजल चर्चा योग्य दोसरक नै तखन अहाँ गजल लीखू की आन कोनो विधा
ओकर विकास नै हएत। मात्र पुरने गजलकार सभमे एहन बेमारी छै से नै नव
गजलकार सभ सेहो ऐ बेमारीकेँ पोसने छथि। नवमे देखी तँ चंदन झा, राजीव रंजन
मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदिमे
आलोचना-समालोचना-समीक्षा लिखबाक प्रतिभा छनि मुदा ओकरा उपयोग नै करै छथि।
आब हमरा लग ई प्रश्न अछि जे जँ ई सभ केकरो चर्च नै करथिन्ह तँ हिनका
लोकनिक चर्च के करत। आब ई सभ जरूर कहता जे हम सभ स्वानतः सुखाय रचना करै
छी तँए हमर समीक्षाक कोनो जरूरति नै मुदा हमरो बूझल अछि, हुनको बूझल
छन्हि आ सभकेँ बूझल छै जे साहित्यकार केखनो स्वानतः सुखाय रचना नै करै
छै। केकरो ने केकरो लेल ओ रचना जरूर रचै छै.................खास क' एहन
समयमे जखन की हरेक रचनाकार अपना आपकेँ प्रगतिशील आ जनवादी घोषित करै अछि।
हमरा बुझने कथित स्वानतः सुखाय बला रचना जनवादी आ प्रगतिशील भैए नै सकैए।
कारण प्रगतिशील आ जनवादी रचना जनता लेल लिखल जाइ छै स्वानतः सुखाय लेल
नै। हमरा बुझने आने विधाकार जकाँ प्रारम्भिक दौरमे गजलकारकेँ गजलक दिशा
बनाब' पडतै। हँ बादमे बहुत सम्भव जे आनो विधाकार सभ गजल आलोचनापर हाथ
चलाबथि मुदा शुरू तँ गजलकारेकेँ कर' पड़तै। सभ नव-पुरान गजलकारकेँ ऐ
दिशामे सोचबाक चाही। हरेक पोथीमे नीक वा खराप रहै छै मुदा जँ चर्चे नै
करबै तँ ओ सोंझा कोना आएत। हमरा जनैत एक गजलकार द्वारा दोसर गजलकारक
आलोचना नै करबाक परंपरा जे सियाराम झा सरस जी द्वारा शुरू कएल गेल तकरा
चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री, अमित मिश्र आदि नीक
जकाँ बढ़ा रहल छथि। आ अंततः ई भविष्य लेल खतरनाक साबित हएत। मुदा
ओमप्रकाश जी हमर कथनक अपवाद छथि। ओ जतबा मनोयोगसँ अपन गजल लीखै छथि ततबा
मनोयोगसँ ओ दोसरक गजल पढ़ि ओकर आलोचना समीक्षा करै छथि। हमरा जनैत
ओमप्रकाश जी मैथिली गजलक पहिल आलोचक-समालोचक-समीक्षक छथि ( बहरयुक्त
कालखण्ड बला )। चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद
झा मनु, अमित मिश्र आदि ओमप्रकाश जीसँ प्रेरणा ल' क' कमसँ कम बर्खमे एकटा
गजल पोथीक आलोचना लिखथि तँ मैथिली गजल नीक दिशामे आबि जाएत। नव गजलकारकेँ
बहुत बेसी दायित्व लेब' पड़तन्हि तखने गजलक दिशा सही हेतै। आ जँ गजलक
दिशा सही भेलै तँ बूझू जे गजलकारक दिशा सेहो सही भ' गेलै। ओना हम ई जरूर
कह' चाहब जे हरा लोकनि ऐ बहसमे समय नै बरबाद करी जे के आलोचना केलाह आ के
नै केला। जे भेलै से भेलै मुदा आबसँ शुरू भ' जेबाक चाही।
आब हमरा लोकनि आबी बाबा बैद्यनाथ जीक कृतिपर। कृति थिक गजल आ तँए हम एकरा
तीन भागमे बाँटब--
१) व्याकरण पक्ष २) भाषा पक्ष, आ ३) भाव पक्ष
तँ पहिले देखी व्याकरण पक्ष। ऐ संग्रहक कोनो गजलमे वर्णवृत नै अछि। मने
पूरा-पूरी ई संग्रह बेबहर गजल संग्रह थिक। किछु उदहारण देखू। पहिने ऐ
संग्रहक पहिल गजलक मतला आ तकर बाद ओकर दोसर शेर देखू----
एक बेर फेरु नजरि शरण हम आयल छी
२१२-१२२-१२-१२२२२२
वा २१२-१२-२२१२-१२२२२२
सौंसे संसारसँ हम सदति सताएल छी
२२२२२२-१२-१२२२
वा २२२२११-२२१-१२२२
ई छल मतला आ एकर दूनू तरहें होमए बला मात्रा क्रम अहाँ सभहँक सामनेमे
अछि। कहबाक मतलब जे मतलामे वर्णवृत नै अछि। आब कने एही गजलक दोसर शेर
देखी---
सभ दिन हम मोह निशामे सूतल रहलौं
२२२११-२२२२२२२
व्यर्थ-जंजालमे हम जन्म गमायल छी
२१२२-१२२२-११२२२
वा २१-२२१२२१२-१२२२
तँ हरा लोकनि ई देखि रहल छी जे गजलमे वर्णवृत नै अछि मने गजल बहर युक्त नै अछि।
आ ई हालति प्रायः तीसो गजलमे अछि। कोनो गजलक कोनो शेरक दुन्नू पाँतिमे तँ
वर्णवृत आबि जाइए मुदा ओकर आगू-पाछू बलामे नै। जेना एकटा उदाहरण देखू। ई
उनतीसम गजलक मतला थिक--
भोर भागल जेना दूपहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
गाम गामो ने रहलै शहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
तँ हमरा लोकनि ई देखलहुँ जे ऐ मतलामे तँ वर्णवृत अछि। मुदा एही गजलक आगूक
शेर देखू---
आयत गरमी जखन नहि पानियें पड़त
२२२२-१२२२-१२-१२
हेतै खेती ने छुच्छे नहर देखि कs
२२२२२२२-१२२-१२
आब अहाँ सभ अपने बूझि सकै छिऐ जे गड़बड़ी कत' छै। संग्रहक तीसो गजलमे ई
बेमारी छै। किछु लोक कहि सकै छथि जे भ' सकैए जे शाइर ओहि समयमे हिन्दी
गजलमे प्रचलित मात्रिक छन्दमे लिखने हेता। तँ हमर कहब जे मात्रिक छन्द
गजलक छन्द होइते नै छै आ दोसर गप्प जे ओ उदाहरणमे देल शेरक मात्राकेँ
जोड़ि ईहो देखि लेथु जे मात्रिक छै की नै।
व्याकरणमे मात्र बहरे ( वर्णवृते ) नै होइ छै काफिया आ रदीफ सेहो होइत
छै। ऐ संग्रहक रदीफ ठीक अछि ( कारण रदीफ अपरिवर्तित होइ छै तँए --) । ऐ
संग्रहक अधिकांश काफिया ठीक अछि मात्र किछुए काफिया गलत अछि। आ हमरा
बुझैत ओइ समय ( १९८९क ) केर हिसाबसँ ई बहुत बड़का उपल्बधि अछि। जखन की आइ
२०१३मे एहन स्थिति अछि जे गजलपर एतेक चर्चाक बादों महान गजलकार सभ काफिया
एहन सरल वस्तुमे गलती करै छथि। हमरा हिसाबें बाबा बैद्यनाथ जी ऐ लेल बधाइ
केर पात्र छथि। आब देखी किछु गलत काफियाक सूची जे ऐ संग्रहमे अछि---
दोसर गजलक मतला---
झगड़ा कियै बझल छै गामक सिमानपर
पहरा कोना लगयबै लोकक इमानपर
ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया भेल--- " इ " स्वरक संग
"मानपर"। मुदा एकर बाद आन-आन शेर सभमे क्रमशः " गुमानपर ", " जानपर",
"पुरानपर " ," दलानपर " , " कुरानपर ", " नादान पर", " तूफानपर" आ
"कृपाणपर" अछि। (जँ ऐ गजलमे पर विभक्ति नै रहतै तँ काफिया ऐ मतलामे
काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया होइतै--- " इ " स्वरक संग "मान"
संगे-संग जँ मतलामे "सिमानपर" केर बाद जँ " जानपर" आबि जइतै तखन ऐ गजलक
सभ काफिया एकदम्म सही भ' जइतै। आब हमरा विश्वास अछि जे गजलक जानकारक संग
पाठक सभ सेहो बुझि गेल हेता जे गड़बड़ी कत' छै )| ठीक इएह गड़बड़ी ऐ
संग्रहक गजल संख्या 16,13,19 आ 27मे सेहो अछि। तहिना गजल संख्या दसकेँ
देखू। ई गजल बिना रदीफक अछि ( बिना रदीफकेँ तँ गजल भ' सकैए मुदा बिना
काफियाक नै )---
पहिल शेर अछि--
क्यो एकरा दयौक नहि टोक
ई अछि बहिरा ओ अछि बौक
आन शेरक काफिया अछि--झोंक, थोक, नोक, आलोक आदि। काफिया शास्त्रक हिसाबें
टोक केर काफिया, थोक, नोक, आलोक , आदि। मुदा ऐ शेरमे टोक केर काफिया अछि
बौक जे की गलत अछि।
आब आबी कने ऐ संग्रहक भाषा पक्षपर। भाषा तँ ऐ संग्रहक मैथिली थिक मुदा
गजल संख्या ६मे काफिया बैसाब' के चक्करमे एहनो काफिया ल' लेलथि जे की
हिन्दीक क्रिया अछि आ मैथिलीमे मान्य नै अछि। गजल संख्या ६ केर मतला
देखू---
बन्धुवर कोन बाट दुनियाँ जा रहल छै
सत्य कानय झूठ कीर्तन गा रहल छै
ऐ गजलक आन शेरक काफिया सभ अछि-- पा, खा, छा, बा ( मूँह बा ), आ ....
आब ई देखू जे एतेक हिन्दी क्रियामेसँ मात्र टूइएटा क्रिया मैथिलीमे मान्य
छै-- जा एवं खा। बाद बाँकी एखन धरि मान्य नै छै। हमरा हिसाबें अग्राह्य
हिन्दी क्रियाकेँ प्रयोग करब भाषाकेँ दूषित करबाक चेष्टा अछि। तथाकथित
प्रगतिशील गजलकार नरेन्द्र एही प्रकारक भाषाक प्रयोग करै छथि आ ऐ लेल हम
ने बाबा बैद्यनाथ जीक समर्थन करै छी आ ने नरेन्द्र जीक। हँ, एतबा कहबामे
हमरा कोनो संकोच नै जे नरेन्द्र जी अपन १००मेसँ ९५टा गजलमे एहन भाषा
प्रयोग करै छथि तँ बाबा बैद्यनाथ १००मेसँ १टामे। ओना ऐ ठाम ई जानब रोचक
हएत जे एहन काफियाक प्रयोग करब अनुचित नै छै बशर्ते की भाषा बदलि जेबाक
चाही। जँ नरेन्द्र जी वा बाबा बैद्यनाथ जी ऐ काफिया सभहँक प्रयोग अपन
गामक वा पड़ोसी गामक मैथिलीक जोलहा रूपमे गजल लीखि करथि तँ ई काफिया सभ
बिल्कुल सही होइत। हम बाबा बैद्यनाथ जीक उपरमे लेल गेल गजल संख्या ६क
मतलाकेँ ऐ रूपमे देखा रहल छी---
भाइ केन्ने दुनियाँ जा रहलइय'
साँच कानै झुट्ठा गा रहलइय'
( आन शेर पाठकक कल्पनापर छोड़ल जाइए)
आब अहाँ अपने अनुभव क' सकै छिऐ जे काफिया तँ वएह हिन्दीक छै मुदा फिट एवं
प्रवाहपूर्ण भ' गेल छै। शाइरकेँ मात्र बस एतबा देखबाक छै। नै तँ भाषाकेँ
दूषित होइत देरी नै लागत। जँ ऐ काफिया सभहँक प्रयोग मैथिली क जोलहा रूपमे
वा चंपारण, मुज्जफरपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, वैशाली एँ झारखंड बाल मिथिला
क्षेत्रक भाषाक संग करबै तँ गजलक कल्याण सेहो हेतै आ मैथिलीक सेहो। भाषाक
सम्बन्धमे एकटा आर गप्प ऐ संग्रहक अधिकांश गजलमे मैथिलीक चलंत रूप ( मने
गाम-घरमे बाज' बला रूप ) प्रयोग भेल अछि जे की मैथिली गजल लेल शुभ अछि।
हँ, एतेक अपेक्षा हम बाबा बैद्यनाथ जीसँ जरूर केने छलहुँ जे ओ पूर्णियाक
छथि तँ हुनक रचनामे पूर्णियामे बाजल जाइत मैथिलीक स्वरूप रहत । जँ ऐ
अधारपर देखी ई संग्रह कने हमरा निराश केलक ( ई हमर व्यतिगत आलोचना अछि,
गजलक व्याकरणसँ फराक देखल जाए एकरा )। जेना की उपरे इंगित क' चुकल छी जे
गजलकार स्वयं शब्दमे विभक्ति सटेबाक पक्षमे छथि आ हमरा हिसाबें ई मैथिलीक
लेल नीक। आ अन्तमे आउ ऐ संग्रहक भाव पक्षपर। मैथिली साहित्यमे " भाव "
सभसँ सस्ता छै। जकरा देखू से भाव केर नाङरि पकड़ि साहित्यिक वैतरणी पार
करै छथि। तँए ऐ संग्रहक सभ गजलक भाव पक्ष उन्नत अछि। आ ऐ पक्षपर हमर कोनो
कथन नै रहत। कारण जखन सभ पक्ष हमहीं कहि देब तखन तँ पाठकक रूचि खत्म भ'
जेबाक डर रहत तँए पाठक संग आन सभ गोटासँ अनुरोध जे बाबा बैद्यनाथ कृत "
पहरा इमानपर " नामक गजल संग्रह पठथि आ अपन-अपन विचार देथि। जिनका ई पोथी
कोनो कारणवश नै उपल्बध भ' रहल छनि से ऐ लिंकपर जा क' एकर पी.डी.एफ फाइल
डाउनलोड क' एकरा पठथि
https://dbb13891-a-96a2f0ab-s-sites.googlegroups.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Pahra_Iman_Par.pdf?attachauth=ANoY7cqrLAai8QAw-5s2DKPbDbL7tkHkNm21JzW7JHpvcnMWa4eUTBj1upJeipTdGs5Ktg9FNASU7n1e23fURUkX_RGJ71_vvSGXUY_jCYzAoJL4WNpIi5YRY-krxar5gRQH8bbqGR7PJznA3E4jjZ3p_n8mZob_0_evLolQsqCFMQFI0tK9CAQplBo3fiCIwMurjrvuSmUoaMS3fj98oxyqnZnnb65L3iOIQwe3rykiAnOw3nyPYQA%3D&attredirects=0
। ई डाउनलोड बिल्कुल फ्री अछि मने साहित्यमे प्रयोग होमए बला " भाव "सँ
बहुत बेसी सस्ता।
कने रुकू, जे गोटा भाव लेल तरसैत हेता तिनका लेल मात्र किछु शेर हम
देखाबए चाहब ( उनतीसम गजलक आठम शेर )
राति-दिन बउआ खाली कमेन्ट्री सुनए
कियैक पढ़तै क्रिकेटक लहर देखि कs
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ तखनुक संग एखुनका समयकेँ देखू। कोनो फर्क नै भेलैए।
पहिने रेडियोमे बैट्री नै देल जाइ छलै क्रिकेटक समयमे आब केबल लाइन कटबा
देल जाइ छै। पढ़ाइपर क्रिकेटक की असर छै से एकै शेरमे देखा गेल छथि शाइर।
पढ़ाइए किए ई क्रिकेट तँ आन छोट-छोट खेलकेँ सेहो नाश क' देलक। शाइर ऐ
शेरक माध्यमे सेहो धेआन दिअबैत छथि। एही प्रकारक ज्वलंत मुद्दा सभकेँ
बाबा बैद्यनाथ अपन गजलमे लेने छथि जे की आन शाइरक गजलमे दुलर्भ अछि। भाव
केर ऐ चर्चामे ११म गजलक अंतिम शेर कहने बिना पूरा नै हएत---
कहियो जँ मोन पड़य अप्पन अतीत जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनियें लजा लिय
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ एकर मतलब निकालू। झटहा फेकेलै कहीं आ लगलै कहीं। इएह
भेलै गजलत्व जकरा बारेमे कहल जाइ छै जे गजलक शेर सीधा करेजमे लगै छै। जँ
एकैसम गजलकेँ देखी तँ निश्चित रूपसँ ई बाल गजल अछि ( बाल गजल रहितों
व्यस्क लेल ओतेबे प्रासंगिक अछि ) आ ओजपूर्ण सेहो अछि-
छोड़ू अपन कपटकेँ आ उदार बनू भैया
गाँधी सुभाष नेहरुक अवतार बनू भैया
अइ संग्रहमे श्रृंगार रसक गजल सेहो अछि जे की पाठकक लेल छोड़ल जाइए। तँ
आसा अछि जे आब अहाँ सभ जरूर एकरा पढ़बै।
२
प्रिंट पत्रिकाक संपादक आ गजलकारसँ अपील
पहिने गजलकार सभसँ----
कोनो पत्रिकाकेँ अपन गजल पठएबासँ पहिने ई देखू जे अहाँक गजल कोन बहरमे
अछि। आ से देखि लेलापर तकर नाम लीखू आ संगे-संग ओहि बहरक मात्रा क्रम
लिखबे टा करु। कारण अलग-अलग पत्रिकाक अलग-अलग वर्तनी आ ओहि हिसाबें
प्रकाशित केने अहाँक गजलक बहर टूटि जाएत। एकरा हम एकटा उदाहरणसँ देखाएब।
मानू जे अहाँ कोनो बहरक हिसाबसँ " कए " शब्दक प्रयोग केलहुँ जकर मात्रा
क्रम छै UI "ह्रस्व-दीर्घ" मुदा कतेको पत्रिका एकरा " कय" बना देताह जकर
मात्रा क्रम छै UU "ह्रस्व-ह्रस्व" वा I "दीर्घ" ( दूटा लघु मिला एकटा
दीर्घ )। तँ कतेको पत्रिका एकरा खाली " क' " वा " क " लीखि देताह जकर
मात्रा क्रम छै U "ह्रस्व"। आब अहाँ अपने बुझि सकैत छी जे वर्तनी बदलने
मत्रा क्रम टूटि जाएत। मने बहर टूटि जाएत आ गजल बेबहर भए जाएत। ऐठाम हम
खाली एकटा शब्दक उदाहरण देलहुँ अछि मुदा अनेको शब्दपर ई लागू हएत। तँए
गजलक संगे-संग बहरक नाम आ ओकर मात्रा क्रम जरूर लीखी। संगहि-संग गजल वा
शेरो-शाइरीक अन्य विधा कोनो पत्रिकाकेँ पठबैत काल संपादक जीसँ ई आग्रह
करू जे जँ हुनका अपन वर्तनीक हिसाबें गजल नै बुझान्हि तँ गजल नै छापथि।
कारण जखन बहर टूटिए जेतै तँ ओ गजल बेकार।छपियो जाएत तँ कोनो कर्मक नै। जँ
गजल सरल वार्णिक बहरमे अछि तैओ ई समस्या आएत। उदाहरण लेल मानू जे अहाँ "
नहि " शब्दकेँ प्रयोग करैत एकटा गजल सरल वार्णिक बहरमे लीखि संपादक जीकेँ
देलिअन्हि मुदा ओ संपादक जी अपन वर्तनीक हिसाबें ओकरा " नै " लीखि
देलखिन्हि। मतलब जे सरल वार्णिक बहर सेहो टूटि गेल। तँए गजलकार सभसँ
विशेष आग्रह जे ओ प्रिंट पत्रिकाक संपादककेँ अनिवार्य रूपें लिखथि जे
जाहि स्वरूपमे गजल छै ताही स्वरुपमे गजल प्रकाशित हेबाक चाही नै तँ
प्रकाशित नै करु।
आब प्रिंट पत्रिकाक संपादक सभसँ-------
जँ संपादक महोदयमे कनियों बुझबाक शक्ति हेतन्हि तँ उपरका विवरणसँ हुनका
गजलक संबंधमे व्यवहारिक समस्या बुझा जेतन्हि। तँए संपादक जी लेल हम विशेष
नै लिखब।बस हमहूँ एतबे आग्रह करबन्हि जे अपन वर्तनीक पक्ष लए ओ गजलक संग
बलात्कार नै करथि। जँ हुनका अपन वर्तनीकेँ रखबाक छन्हि तँ ओ गजलकेँ नै
छापथि। या एकटा उपाय इहो भए सकैत छै जे ओ गजलकेँ छापथि आ संगे-संग ई नोट
दए देथि जे " ई वर्तनी गजलकार विशेषक वर्तनी थिक, पत्रिकाक नहि"। अंतिकाक
संपादक अनलकान्त जी अपन पत्रिकामे एहन नोट छापि लेखक विशेष आ अपन पत्रिका
दूनूक वर्तनीक रक्षा केने छथि।
एकटा आर गप्प कविता जकाँ पाँतिकेँ सटा कए छापब गजल परंपराक विरुद्ध अछि।
सङ्गे-सङ्ग एक पन्नाक दू भाग वा दू पन्नाक दू भागमे गजलकेँ छापब सेहो गजल
परंपराक विरुद्द अछि। एकटा गजल दए रहल छी राजीव रञ्जन मिश्र जीक जाहिसँ ई
पता लागत जे एकटा गजलक विभिन्न शेरक बीचमे कतेक जगह रहबाक चाही---------
गजल
कखनो किछु बात बुझल करू मोनक
धरकन दिन राति बनल करू मोनक
ई जे सिसकल त' लता पता सुनलक
आहाँ फरियाद सुनल करू मोनक
छोहक मारल त' घड़ी घड़ी तड़पल
मरहम बनि घाव भरल करू मोनक
कहबो ककरो जँ करब त' के बूझत
संगे बस मीत रहल करू मोनक
गाबी राजीव सदति गजल नेहक
ततबा धरि चाह सुफल करू मोनक
2222 112 1222
शीर्षक द' क' गजल छापब बेकार कारण गजलक शीर्षक नै होइ छै। चूँकि एकटा
गजलमे जतेक शेर होइ छै ओतेक विषय रहैत छै गजलमे तँए शीर्षक देबाक परंपरा
नै छै। हम अपन एकटा गजल दए रहल छी जाहिसँ ई स्पष्ट हएत जे ऐ तरीकासँ गजल
नै प्रकाशित हेबाक चाही-------
गजल
ओकर हाथसँ छूल अछि देह
सदिखन गम गम फूल अछि देह
प्रेमक उच्चासन मिलन छैक
दू टा घाटक पूल अछि देह
कोना चलि सकतै गुजर आब
देहक तँ प्रतिकूल अछि देह
गेन्दा सिंगरहार छै मोन
चम्पा ओ अड़हूल अछि देह
ऐठाँ अनचिन्हार चिन्हार
सभ देहक समतूल अछि देह
मात्रा क्रम-222-2212-21 हरेक पाँतिमे
ऐ तरीकासँ छापब गलत थिक। एहन रूपसँ गजल प्रकाशित करब परम्परा विरुद्ध
अछि।गजलमे सदिखन दूटा शेरक बीचमे जगह हेबाक चाही। ओना हिन्दीमे सेहो
कविता जकाँ पाँति सटा क' गजल प्रकाशित कएल जाइत छै मुदा एकर मतलब नै जे
दोसर इनारमे खसत तँ हमहूँ सभ खसि पड़ब।
3
अज्ञानी संपादकक फेरमे मरैत गजल
किछु मास पहिने हम प्रिंट पत्रिकाक संपादक आ गजलकार सभसँ एकटा अपील केने
रही। ई अपील मैथिलीक वर्तनी आ आ बहरक संबंधमे छल। ऐ अपीलक डिस्कशनमे
गुंजन श्री नामक व्यक्ति कहलाह जे ठीके कहै छी, एना कए क' बहुत संपादक
गजलक प्राण घीचि लै छथि। ताहि पर हम कहलिऐ जे " विदेह"क संपादककेँ छोड़ि
किनको बहरक ज्ञान नै छन्हि । ताहि पर कुंदनक कुमार मल्लिक नामक एकटा पाठक
कहलाह जे बुझायत अछि जे …”” .”....Ashish Anchinhar जी सभ मैथिली
पत्रिकाक सम्पादक लोकनिक ज्ञान केँ परीक्षा लय चुकल छथि. मैथिली गजल मे
अपनेक योगदान अतुलनीय आ मीलक पाथर जेकां अछि. जहिया कहियो वा जतय कतओ
मैथिली गजलक चर्चा हेतय ओतय अपनेक नाम निसंदेह सभ सँ पहिने आ आदरक संग
लेल जायत। मुदा एना निन्दा केनाय कतेक उचित? आलोचन करी संगे संग निन्दा
स' सेहो बची.मुदा फेर वैह गप कहब जे गजलक बारे मे हमरा ओतबे बुझल अछि
जतेक कोनो गजल के बुझल हेतैक. किछु बेसी कहा गेल हुयै त' एहि टिप्पणी केँ
मिटा देबैक” .” तकरा बाद हम कुंदन जीकेँ संबोधित करैत लिखलहुँ जे..." हमर
नाम लेल जाए की नै लेल जाए से विषय नै छै। बहस एहि बातकेँ छै जे गजलक आ
मैथिली वर्तनीक व्यवहारिक समस्याक फरिछौट। से उपर पढ़ि कए बुझा गेल हएत
अहाँकेँ। जहाँ धरि निन्दाकेँ गप्प छै। ओ आदमी उपर निर्भर छै। हम गजलक
निखरल आ स्थिर स्वरूप चाहै छी आ ओहि लेल हमरा जँ किनको प्रसंशा वा
खिद्दांसो करए पड़त तँ हम करबै।.” ... आ तकरा बाद कुंदन जी लिखला
जे...... " हमर टिप्पणी अहाँक आलेखक लेल नञि अपितु अपनेक टिप्पणीक संदर्भ
मे छल।" ताहि पर हम फेरो लिखलहुँ जे...." हमहूँ ओही संदर्भमे कहलहुँ अछि
आ फेर कहब जे...जहाँ धरि निन्दाकेँ गप्प छै। ओ आदमी उपर निर्भर छै। हम
गजलक निखरल आ स्थिर स्वरूप चाहै छी आ ओहि लेल हमरा जँ किनको प्रसंशा वा
खिद्दांसो करए पड़त तँ हम करबै।” .......आ फेर हम कुंदन जीकेँ संबोधित
करैत लिकलहुँ जे....--" आ जे सही गप्प छै तकरा कहबामे हर्जे की। जँ
अहाँकेँ कोनो एहन संपादकक नाम बुझल हो जे विदेहक नै होथि आ ओ बहर बुझैत
होथि तनिकर नाम प्रमाण सहित देल जाए।:” ताहि पर कुंदन जी लिखला
जे.........." एहि बात के निर्णय करय बला हम के जे कोन सम्पादक के कतेक
ज्ञान छन्हि जखन हम पहिने स्पष्ट कय देने छी जे एहि विषय मे हमरा कोनो
ज्ञान नञि. हमरा जे बुझायल से कहलहुँ।"...... आब कने आबी पात्र सभ पर।
गुंजन श्री कमलमोहन चुन्नू जीक बालक छथि आ एखन कमल मोहन चुन्नू... पटनासँ
प्रकाशित " घर-बाहर" नाम पत्रिकाक संपादक मंडलमे छथि आ पत्रिकाक लेल
सामग्री पर हिनके निर्णय मान्य होइत अछि। आ कुंदन जी पाठक मात्र छथि।
आब आबी कने " घर-बाहर"क नव अंक पर मने अप्रैल-जून 2012 बला अंक पर। ऐ
अंकमे जे संपादक महदोय अपन जे कृत्य देखला से वर्णन करबा योग्य नै। सभसँ
पहिने तँ देखू जे सुरेन्द्रनाथ आ अरविन्द ठाकुर जीक बिना बहर बला 6-6टा
गजल प्रकाशित केला। ई बारहो गजल ईर घाट-बीर घाट बला बानगी अछि। सुरेन्द्र
नाथ जीक गजलमे एखनो काफिया गड़बाड़ाएल अछि तँ अरविन्द जी बहरक नाम पर
कुहरि रहल छथि। एही अंकमे योगानंद हीरा जीक " गीत " शीर्षकसँ दूटा रचना
छपल अछि। ई आश्चर्य बला बात छै जे योगानंद हीरा जीक ई दूनू रचना गजल छै
मुदा संपादक ओकरा गीत कहि रहल छथिन्ह। ई कोन प्रकारक संपादकीय दायित्व
छै। हमरा बुझने घर-बाहरक संपादक अज्ञानी तँ छथिहे संगे-संग हीन भावनासँ
सेहो भरल छथि। कारण योगानंद हीरा जीक ई उपरोक्त गजल पूरा-पूरा अरबी बहरक
पालन करैत अछि। संगे संग संपादक अपन मूर्खताकेँ चलते दोसर गजलक मएकटा
पाँति गाएब क' देने छथिन्ह। आ हमरा बुझने संपादक ई काज जानि-बूझि क' केने
छथि। कारण हुनका ई बरदास्त नै छन्हि जे केओ बहर युक्त गजल लिखए। ई दूनू
गजलक स्कैन दए रहल छी आ देखू जे संपादक कोना बदमाशी केने छथि। पहिल गजलक
मतलाक पहिल पाँत अछि----
" किसलय पर घूमै अछि भमरा"
देखू जे ऐमे आठ टा दीर्घकेर प्रयोग अछि आ ई शेरक हरेक पाँतिमे निमाहल गेल छै।
आब जखन अहाँ दोसर गजल पार आएब तँ माथ घुमि जाएत। संपादक महोदय एहीठाम
बदमाशी केने छथिन्ह। कने गौरसँ स्कैन देखू----पता लागत जे " छी हुलसल"
रदीफ छै आ " मोर", भोर, "कोर" आदि काफिया छै। संपादक महोदय ऐ गजलक एकटा
पाँति छोड़ि देने छथिन्ह। जाहि कारण ई 11पाँतिक गजल बनि गेल अछि आ किछु
नै पता लागि रहल छै। जँ संपादक महोदयकेँ गजलक संबंधमे ज्ञान रहितन्हि तँ
एहन प्रकारक गलतीसँ बाँचल जा सकै छल। जँ अंतसँ ऐ गजलकेँ देखी तँ एकर बहर
एना छै-दीर्घ-हर्स्व-दीर्घ-दीर्घ+दीर्घ-हर्स्व-दीर्घ-दीर्घ+दीर्घ आ हरेक
पाँतिमे ई क्रम पालन कएल गेल छै। आ हमरा बुझने संपादक ऐ तरहँक अज्ञानतासँ
मैथिली गजलक भविष्य गर्तमे जा रहल छै। आखिर जिनका मेहनति नै करबाक छन्हि
से गजल लिखबाक लौल किएक करै छथि। साहित्य केर बहुत रास विधा छै मेहनति नै
करए बला सभ दोसरे विधामे हाथ अजमाबथि तँ नीक।
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मैथिली गजलमे लोथ गजलकारक भूमिका
तँ कने आब देखी व्याकरणहीन गजलक परम्पराकेँ। चूँकि मैथिली विश्वक एकमात्र
भाषा अछि जे की हिन्दीक नकल करैए। जँ हिन्दी मैथिली रचनाकार सभकेँ दिन
रहितो राति कहतै तँ मैथिली रचनाकार सेहो दिनक बदला राति केहतै कारण
मैथिलीक रचनाकार विशुद्ध रूपें मानसिक गुलाम छथि हिन्दीक। प. जीवन झा,
आनन्द झा न्यायाचार्य, कविवर सीताराम झा, मधुप जी जाहि मैथिली गजल के नीक
जकाँ विस्तृत केलथि तकरा मात्र हिन्दी नकलक कारणे ७०के दशकमे स्व.
मायानन्द मिश्र जी अप्रत्यक्ष रूपसँ कहि देला जे मैथिलीमे गजल लिखब सम्भव
नै। ठीक ओहिसँ एक-दू बर्ख पहिने हिन्दीमे नीरज द्वारा ई कथन देल गेल छल
जे हिन्दीमे गजल सम्भव नै अछि। नीरज जी हिन्दीमे गजलक नाम गीतिका
देलखिन्ह आ गीतिका केर तर्जपर मैथिलीमे गीतल नाम भेल। ऐठाम हम कह' चाहब
जे भ' सकैए हिन्दीमे नीरज जीसँ पहिने गजल नै छल हेतै तँए ओ एहन कथन
प्रस्तुत केने हेता मुदा मैथिलीमे तँ १९०५सँ गजल लिखल जाइ छल आ ओहो पूर्ण
रूपेण व्याकरण सम्मत। तखन मायानन्द जीक ऐ कथन केर मतलब की ? आर किछु
चर्च करबासँ पहिने मायानंद जीक पोथी " अवान्तर" भूमिकाक किछु अंश पढ़ू (ई
पोथी १९८८मे मैथिली चेतना परिषद्, सहरसा द्वारा प्रकाशित भेल)। पृष्ठ ६
पर मायानंदजी लिखै छथि --" अवान्तरक आरम्भ अछि गीतलसँ। 'गीतं लातीति
गीतलम्' अर्थात गीत केँ आन' बला भेल गीतल। किन्तु गीतल परम्परागत गीत नहि
थिक, एहिमे एकटा सुर गजल केर सेहो लगैत अछि। गीतल गजल केर सब बंधन ( सर्त
) केँ स्वीकार नहि करैत अछि। कइयो नहि सकैत अछि। भाषाक अपन-अपन विशेषता
होइत अछि जे ओकर संस्कृतिक अनुरूपें निर्मित होइत अछि। हमर उद्येश्य अछि
मिश्रणसँ एकटा नवीन प्रयोग। तैं गीतल ने गीते थिक, ने गजले थिक, गीतो थिक
आ गजलो थिक। किन्तु गीतितत्वक प्रधानता अभीष्ट, तैं गीतल।"
उपरका उद्घोषणामे अहाँ सभ देखि सकै छिऐ जे कतेक दोखाह स्थापना अछि।
प्रयोग हएब नीक गप्प मुदा अपन कमजोरीकेँ भाषाक कमजोरी बना देब कतहुँसँ
उचित नै आ हमरा जनैत मायानंद जीक ई बड़का अपराध छनि। जँ ओ अपन कमजोरीकेँ
आँकैत गीतल केर आरम्भ करतथि तँ कोनो बेजाए गप्प नै मुदा हुनका अपन कमजोरी
नै मैथिलीक कमजोरी सुझा गेलन्हि। एकरे कहै छै आँखि रहैत आन्हर। ई मोन
राखब बेसी जरूरी जे २०११मे प्रकाशित कथित गजल संग्रह " बहुरुपिया प्रदेश
मे " जे की अरविन्द ठाकुर द्वारा लिखित अछि ताहूमे ठीक इएह गप्पकेँ
दोहराओल गेलैए।
मायानंद जी अपन कमजोरीकेँ झाँपैत जै गीतल केर आरम्भ केला तै पाँछा हमरा
बुझने तीन टा कारण भ' सकैए---
१) स्व.मायानन्द मिश्र जी हिन्दीक अन्ध भक्त छलाह।
२) स्व. मायानन्द जी मैथिली गजलक सम्बन्धमे अज्ञानी छलाह।
३) स्व. मायानन्द चतुराइसँ अपना-आप के मैथिली गजलमे स्थापित करबाक योजना बनेलाह।
कह' बला कहै छै आ प्रभाव छोड़ै छै। कथनक विरोध भेनाइ शुरू भेल ऐ आ विरोधक
सङ्ग शुरू भेल बड़का मजाक। मजाक ई जे विरोध कर' बला सभ सेहो व्याकरणहीन
गजल लिखै छलाह वा एखनो लिखै छथि। ओहि समयक बिना व्याकरणमे गजल लिख' बला
सभ ( मुदा अपना-आपकेँ गजलकार मान' बला सभ ) दू भागमे बँटि गेल। गीतल
भागमे, मायानन्द, तारानन्द झा तरुण, विलट पासवान विहंगम, आदि एला वा छथि
(ऐ सूचीमे आर नाम सभ छथि मुदा अगुआ इएह सभ छलाह छथि) तँ कथित गजल बला
भागमे सियाराम झा सरस, रमेश, तारानन्द वियोगी, विभूति आनन्द, कलानन्द
भट्ट, डा. महेन्द्र, सोमदेव, राम भरोस कापड़ि भ्रमर, देवशंकर नवीन, राम
चैतन्य धीरज, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, राजेन्द्र विमल, धीरेन्द्र प्रेमर्षि,
अरविन्द टाकुर आदि-आदि सभ रहला वा छथि ।ऐ सूचीमे आर नाम सभ छथि मुदा अगुआ
इएह सभ छलाह छथि। मुदा ऐठाँ हम ई स्पष्ट कर' चाहब जे नाम भने जे होइ
मायानन्द जी बला गुट वा सरस जी बला गुट दूनू गुटमेसँ कोनो गोटा गजल नै
लिखै छलाह कारण ओ व्याकरण हीन छल। आ व्याकरण हीन कथित गजलकेँ गजल नै
गीतले टा कहल जा सकैए। सरस जी मायानन्द जीक सभसँ बेसी विरोध केलखिन्ह
हुनकर कथनक कारणे मुदा सरस जी स्वंय व्याकरणहीन गजल लिखला आ लिखै छथि तखन
मात्र कथनीपर केकरो विरोध करबाक की मतलब जखन की करनी दूनू गोटाक एकै
छन्हि।
सरस जीक सङ्ग बहुत कथित गजलकार सभ होहकारी दैत एलाह मुदा ओहो सभ
व्याकरणहीन गजल लिखला आ लिखैत छथि। आब हमर प्रश्न जे जखन व्याकरण छैहे नै
तखन गीतल आ ओइ कथित गजलमे अन्तर की ? हमरा बुझने कोनो अन्तर नै । हम
मायानन्द जी गीतल आ सरस जीक कथित गजल दूनूकेँ एकै समान मानै छी। ऐ ठाम ई
बेसी मोन राखब जरूरी जे सरस गुट केर महानायक धीरेन्द्र प्रेमर्षि जी गीत
आ गजलकेँ सहोदर भाए माननै छथि। तखन सरस जीक नजरिमे मायानंद जी अपराधी
भेला आ धीरेन्द्र प्रेमर्षि जी महानायक। हमरा जनैत ई सरस जीक पक्षपात थिक
आ ऐ पक्षपात केर विरोध हेबाक चाही।
सियाराम झा सरस जीक संपादनमे बर्ख 1990मे " लालकिला आ लोकवेद " नामक एकटा
साझी गजल संग्रह आएल। एहि संग्रहमे गजलसँ पहिने तीनटा भाष्यकारक आमुख
अछि। पहिल आमुख संपादक जीकेँ छन्हि आ ओ तकर शुरुआत एना करै छथि----"
समालोचना आ साहित्यिक इतिहास लेखनक क्षेत्रमे तकरे कलम भँजबाक चाही जकरा
ओहि साहित्यिक प्रत्येक सुक्ष्तम स्पंदनक अनुभूति होइ......."। अर्थात
सरसजीकेँ हिसाबें कोनो साहित्यिक विधाक आलोचना, समीक्षा, वा ओकर इतिहास
लेखन वएह कए सकैए जे की ओहि विधामे रचनारत छथि। जँ हम एकर व्याख्या करी
तँ ई नतीजा निकलैए जे गजल विधाक आलोचना वा समीक्षा वा ओकर इतिहास वएह
लीखि सकै छथि जे की गजलकार होथि। मुदा हमरा आश्चर्य लगैए जे ने 1990सँ
पहिले सरस जी ई काज केलाह आ ने 1990सँ 2008 धरि ई काज कए सकलाह। 2008केँ
एहि दुआरे हम मानक बर्ख लेलहुँ जे कारण 2008मे हिनकर मने सरस जीक एखन
धरिक अंतिम कथित गजल संग्रह "थोड़े आगि-थोड़े पानि" एलन्हि मुदा ओहूमे ओ
एहन काज नै कए सकलाह। आ बर्ख 2008मे गजल विधा पर केन्द्रित ब्लाग "
अनचिन्हार आखर " आएल जाहिमे गजलक व्याकरण आ आलोचना पर पर्याप्त काज भेल।
आ गजल विधाकेँ सरस आ हुनक टीमसँ छुटकारा प्राप्त भेल। आ जे काज 100 साल
मे नहि भेल से मात्र एक साल पाँच मासमे गजेन्द्र ठाकुर कए देखेलाह आ
मैथिली गजलकेँ पहिल गजल शास्त्र देलाह।ई हमरा हिसाबें कोनो गजलकारक सीमा
भए सकैत छलै मुदा सरस जीक दोहरा चरित्र ओही आमुख के तेसर आ चारिम पृष्ठमे
भए जाइत अछि जतए सरस जी लिखै छथि-------" मैथिली साहित्यमे तँ बंगला जकाँ
गीति-साहित्यिक एकटा सुदीर्घ परंपरा रहलैक अछि। गजल अही परंपराक नव्यतम
विकास थिक, कोनो प्रतिब्द्ध आलोचककेँ से बुझ' पड़तैक। हँ ई एकटा दीगर आ
महत्वपूर्ण बात भए सकैछ जे मैथिलीक समकालीन आलोचकक पास एहि नव्यतम विधाक
आलोचना हेतु कोनो मापदंडिके नहि छन्हि। नहि छन्हि तँ तकर जोगार
करथु.........."आब ई देखल जाए जे एकै आलेखमे कोना दोहरापन देखा रहल छथि।
आलेखक शुरुआतमे हुनक भावना छन्हि जे " जे आदमी गजल नै लीखै छथि से एकर
समीक्षा वा इतिहास लेखन लेल अयोग्य छथि मुदा फेर ओही आलेखमे ओहन आलोचकसँ
गजल लेल मापदंड चाहै छथि जे कहियो गजल नहि लिखला।भए सकैए जे सरस जी ई
आरोप सरस जी अपन पूर्ववर्ती विवादास्पद गजलकार मायानंद मिश्र पर लगबथि
होथि। जे की सरस जीक हरेक आलेखसँ स्पष्ट होइत अछि। मुदा ऐठाम हमरा सरस
जीसँ एकटा प्रश्न जे जँ कोनो कारणवश माया जी ओ काज नै कए सकलाह वा जँ
मायानंद जी ई कहिए देलखिन्ह मैथिलीमे गजल नै लिखल जा सकैए तँ ओकरा गलत
करबा लेल ओ अपने ( सरस जी ) की केलखिन्ह। 2008धरि मैथिलीमे १०-१२टा कथित
गजल संग्रह आबि चुकल छल। मुदा अपने सरस जी कहाँ एकौटा कथित गजल संग्रह
समीक्षा वा आलोचना केलखिन्ह। गजलक व्याकरण वा इतिहास लेखन तँ बहुत दूरक
बात भए गेल। ऐ आलेखसँ दोसर बात इहो स्पष्ट अछि जे सरस जी कोनो समकालीन
आलोचककेँ गजलक समीक्षा लेल मापदंड देबा लेल तैयार नै छथि। जँ कदाचित्
कनेकबो सरस जी आलोचक सभकेँ मापदंड दितथिन्ह तँ संभवतः २००८ धरि गजल
क्षेत्रमे एहन अकाल नै रहितै।
आब हम आबी विदेहक अंक 96 पर जाहिमे श्री मुन्ना जी द्वारा गजल पर
परिचर्चा करबाओल गेल छल। आन-आन प्रतिभागीक संग-संग प्रेमचंद पंकज नामक
एकटा प्रतिभागी सेहो छथि। पंकज जी अपन आलेखमे आन बात संग इहो लिखैत
छथि-----“ कतिपय व्यक्ति एकटा राग अलापि रहल छथि जे मैथिलीमे गजलक
सुदीर्घ परम्परा रहितहु एकरा मान्यता नै भेटि रहल छैक। एहन बात प्रायः
एहि कारणे उठैत अछि जे मैथिली गजलकेँ कोनो मान्य समीक्षक-समालोचक एखन धरि
अछूत मानिक' एम्हर ताकब सेहो अपन मर्यादाक प्रतिकूल बूझैत छथि। एहि
सम्बन्धमे हमर व्यतिगत विचार ई अछि, जे एकरा ओहने समालोचक-समीक्षक अछूत
बुझैत छथि जिनकामे गजलक सूक्ष्मताकेँ बुझबाक अवगतिक सर्वथा अभाव छनि।
गजलक संरचना, मिजाज आदिकेँ बुझबाक लेल हुनका लोकनिकेँ स्वयं प्रयास कर'
पड़तनि, कोनो गजलकार बैसि क' भट्ठा नहि धरओतनि। हँ, एतबा निश्चय जे गजल
धुड़झाड़ लिखल जा रहल अछि आ पसरि रहल अछि आ अपन सामर्थयक बल पर
समीक्षक-समालोचकलोकनिकेँ अपना दिस आकर्षित कइए क' छोड़त------ “ अर्थात
प्रेमचंद जी सरसे जी जकाँ भट्ठा नै धरेबाक पक्षमे छथि। सरस जी १९९०मे कहै
छथि मुदा पंकज जी २०११केर अंतमे मतलब २२साल बाद। मतलब बर्ख बदलैत गेलै
मुदा मानसिकता नै बदललै।ओना ऐठाम हम ई जरुर कहए चाहब जे भट्ठा धराबए लेल
जे ज्ञान आ इच्छा शक्ति होइ छै से बजारमे नै बिकाइत छै। मुदा आब ऐठाम हम
ई जरूर कहए चाहब जे मायानंद मिश्रजीक बयान आ अज्ञानतासँ मैथिली गजलकेँ
जतेक अहित भेलै ताहिसँ बेसी अहित सरस जी वा पंकज जी सन अभट्ठाकारी
लोकनिसँ भेलै।
लिखित रूपकेँ छोड़ि मैथिलीमे गयबाक लेल सेहो गायक सभ गजलक नामपर अत्याचार
केलाह। किछु लीखि देबै आ गलामे सुर रहत तँ ओकरा गाबि सकै छी तँए की ओकरा
गजल मानल जेतै ? गायनक ऐ धुऱखेलमे बहुत रास गायक छलाह वा छथि जेना
चंद्रमणि झा, रामसेवक ठाकुर, कुञ्ज बिहारी मिश्र आदि-आदि। जेना लिख' बला
सभ मैथिली गजलकेँ भट्ठा बैसेलक तेनाहिते गायक सभ सेहो। गायक सभ गजलमे
मात्रा क्रम सप्तक ( सा,रे,गा,मा,पा,धा,नि,सा ) केर हिसाबसँ बैसाबए लागै
छथि जे की अवैज्ञानिक तँ अछिए सङ्गे-सङ्ग अनर्थकारी सेहो अछि। काव्यमे
रागक हिसाबसँ छन्द नै बनै छै। तँए कोनो एकटा छन्दमे बनल रचनाकेँ बहुतों
गायक बहुतों रागमे गाबै छथि गाबि सकै छथि। राग-रागिनीक मात्राक्रम सङ्गीत
लेल छै साहित्य लेल नै। तेनाहिते छन्दक मात्राक्रम काव्य लेल छै सङ्गीत
लेल नै।
सुधांशु शेखर चौधरी आ बाबा बैद्यनाथ जी गजलमे किछु तत्व तँ अछि। खास क'
बाबा बैद्यनाथ जीक गजलमे सभ तत्व अछि मुदा वर्णवृत नै अछि। आ तँए हिनको
लोकनिकेँ हम कथित गजलकारक श्रणीमे रखैत छी मुदा हमरा ई कहबामे कोनो संकोच
नै जे ई दूनू बाद-बाँकी कथित गजलकार सभसँ बेसी बोधगर छथि।
आब हम पाठकक उपर छोड़ै छी जे ओ अपने निर्णय लेथु जे मैथिली गजलक ऐ
पोखरिमे के कते योगदान देला।
आब ऐठाम एकटा प्रश्न ठाढ़ होइत अछि जे एना अनधुन हिनका सभकेँ (माया गुट
एवं सरस गुट) खारिज किएक कएल जा रहल अछि ? जँ हिनकर सभहँक रचना गजल नै
अछि तँ की अछि? एना खारिज करब कतेक उचित? हिनका सभमे प्रतिभा छनि की नै ?
आदि...................................निश्चित रूपसँ हमरो नै नीक लागि
रहल अछि हिनका सभकेँ खारिज करैत मुदा हिनकर सभहँक शैलिए तेहन छनि जे
खारिज करहे पड़त। हमहीं मात्र गजलकार छी आ हमरे गजल मात्र गजल थिक ई शैली
हिनकर सभहँक पहिचान अछि जखन की लोक आब बुझि रहल अछि जे हिनकर सभहँक गजल
गजल नै छल आ ने अछि। ई लोकनि ने अपने गजलपर काज केलाह आ ने दोसरकेँ कर'
देलखिन्ह। आ जकर परिणाम गजल भोगि रहल अछि। खास क' अहाँ सरस जीक गजल पोथीक
भूमिका पढ़ू ने गजलपर चर्चा भेटत आ ने गजलक व्याकरणपर मुदा ओइमे ई चर्चा
जरूर भेटत जे सभकेँ साहित्य अकादेमी भेटि गेलै हमरा किएक नै भेटि रहल
अछि। सरस जीक गजले नै हरेक पोथीक भूमिका ओ लेखमे ई भेटत। तारानंद वियोगी,
देवशंकर नवीन, गंगेश गुंजन, रमेश, आ ओइ समयक कथित गजलकार सभ एना एला जेना
ओ गजलपर उपकार क' रहल होथिन्ह। आ ऐ हेंजमे योगानंद हीरा, विजयनाथ झा सभ
दबि क' रहि गेला। हिनका सभमे प्रतिभा छनि कारण बिना प्रतिभा रहने केओ
साहित्य दिस आबिए नै सकैए ( बादमे अध्ययनक जरूरति पड़ै छै ) तँए हम ई
मानि रहल छी जे ई सभ प्रतिभाशाली छलाह। हँ, इहो मानि रहल छी जे केओ
खुरपीक आगूसँ दूभि छीलैए आ ई कथित गजलकार सभ खुरपीक मूठसँ दूभि छिलबाक
प्रयास केला। एकर परिणाम ई भेल जे हिनका सभकेँ मेहनति तँ कर' पड़लनि,
पसेना सेहो बहलनि मुदा दूभि छीलि क' ई सभ गजल रूपी गाएकेँ भोजन नै द'
सकलाह। आब ऐ प्रश्नपर आबी जे हिनक सभहँक रचना गजल नै अछि तँ की अछि?
निश्चित रूपसँ हिनकर सभहँक रचनामे सरसता, पद-लालित्य ओ गेयता अछि मुदा
व्याकरण नै अछि। तँए हम हिनकर सभहँक कथित गजलकेँ हम पद्यक रूपमे मानै छी।
आब पद्यमे केहन पद्य से तँ आन आलोचक सभ फड़िछा क' कहता मुदा जहाँ धरि हमर
अपन विचार अछि तँ ई सभ नीक पद्य अछि आ आन पद्ये जकाँ साहित्यमे समादृत
अछि।
ऐ ठाम ई गप्प सार्वजनिक करब अनिवार्य अछि जे अनन्त बिहारी लाल दास "
इन्दु " जीक जे टूटा गजल संग्रह छनि ( सरसजी द्वारा देल गेल सूचना )
तैमेसँ हम एकौटा पोथी नै पढ़ि सकलहुँ अछि। तँए इन्दुजीक गजलपर हम कोनो
टिप्पणी नै करब। हँ एतेक हम जरूर कहब जे कर्णामृतक किछु अंकमे हमरा हुनक
गजल पढ़बाक अवसर भेटल मुदा तैमे बहरक अभाव अछि। बहुत रास गजलकार लेल ई
टिप्पणी हम सुरक्षित राखए चाहब। संगे-संग हम ईहो कह' चाहब जे ई एकेडमिक
शोध नै थिक तँए बहुत रास गजलकारक पोथी भेटबामे हमरा दिक्कत भेल तथापि
हमरा लग १००मेसँ ९९टा मैथिली गजल संग्रह वा मैथिली गजलपरहँक लेख सभ अछि।
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लघु-गुरू निर्णय ( दूनू भाग एक ठाम )
(हमर ऐ लेखमे मात्र पं. गोविन्द झा जीक चर्च अछि तकरा अन्यथा नै लेल जाए
से हमर आग्रह। पं. गोविन्द झा जीकेँ हम मैथिली व्याकरणक धूरी मानैत ई
लिखल अछि। निश्चित रुपें पं. जी अपन अग्रजसँ नियम ग्रहण केने छथि आ अपन
अनुज सभकेँ बेसी प्रभावित केने छथि तँए हम मात्र पं. जीक उपर ई लेख
केन्द्रित केलहुँ जाहिसँ हुनक अग्रज आ हुनक अनुज सभ ऐ लेखक माँझमे आबि
सकथि।)
तँ आउ कने चली मात्रा केना गानल जाइत छै ताहिपर। मात्रा गनबाक लेल मोन
राखू जाहि अक्षरमे "अ", "इ", "उ", "ऋ" एवं "लृ" नुकाएल हो तकरा लघु मानू
आ तकरा बाद सभकेँ दीर्घ। संगहि संग अनुस्वार तँ दीर्घ अछि मुदा
चन्द्रबिन्दु लघु। चन्द्रबिन्दु जँ लघु अक्षरपर रहतै तँ लघु मानल जेतै आ
जँ दीर्घ अक्षरपर रहतै तँ दीर्घ मानल जाएत। संगहि-संग जँ कोनो शब्दमे
संयुक्ताक्षर हुअए तँ ताहिसँ पहिलेक अक्षर दीर्घ भए जाइत छैक चाहे ओ लघु
किएक ने हुअए। उदाहरण लेल--प्रत्यक्ष शब्दमे दूटा संयुक्ताक्षर अछि पहिल
त्य एवं क्ष। आब एहिमे देखू "त्य" सँ पहिने "प्र" अछि तँए ई दीर्घ भेल आ
"क्ष" सँ पहिने "त्य" अछि तँए इहो दीर्घ भेल। ई नियम जँ दू टा अलग-अलग
शब्द हो तैयो लागू हएत जेना उदाहरण लेल--- हमर प्रेम छी अहाँ... ऐमे
"प्रे" संयुक्ताक्षर भेल आ ताहिसँ पहिने बला शब्द " र" दीर्घ भए जाएत।
मतलब जे "हमर" शब्दक अंतिम अक्षर "र" दीर्घ भए जाएत । सङ्गे-सङ्ग मोन
राखू "न्ह" आ "म्ह" संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला शब्दमे लघु दीर्घ सेहो हएत।
जेना की "कुम्हार" मे "म्ह" सँ पहिने "कु" दीर्घ भेल तेनाहिते "कन्हाइ"
शब्दमे सेहो "न्ह"सँ पहिने "क" वर्ण दीर्घ भेल। क्ष, त्र आ ज्ञ
संयुक्ताक्षर अछि। तेनाहिते.... प्र, र्व, आदि सेहो संयुक्ताक्षर अछि।
मुदा "मृत" शब्दमे "मृ" संयुक्ताक्षर नै अछि। विसर्ग युक्त लघु वर्ण सेहो
दीर्घ होइत अछि। हलन्तसँ पहिने बाल लघु दीर्घ होइत अछि आ हलन्तक मात्रा
सुन्ना होइत अछि।
गजलमे दूटा लघुकेँ एकटा दीर्घ सेहो मानल जाइत छै। बहुत गोटेंकेँ समस्या
होइत छन्हि जे इ लघु-दीर्घ कोना होइत छै। प्रस्तुत अछि किछु उदाहरण---
बिगड़ि-----------एहि शब्दकेँ ह्रस्व-दीर्घ मानू वा दीर्घ-ह्रस्व मानू।
बहरक जेहन जरूरति हो। अरबी बहरमे तीन टा लघु सँ कोनो बहर नै छै तँए
लघु-लघु-लघु मानबाक कोनो जरूरति नै।
हुनकर---------- एहि शब्दकेँ दीर्घ-दीर्घ मानू वा दीर्घ-लघु-लघु मानू वा
लघु-लघु-दीर्घ दीर्घ मानू जेहन जरूरति हो। अरबी बहरमे चारिटा लघु सँ कोनो
बहर नै छै तँए लघु-लघु-लघु-लघु मानबाक कोनो जरूरति नै।
घर------- एहि शब्दकेँ दीर्घ मानू वा लघु-लघु बहरक जेहन जरूरति हो।
चोर------ इ साफे तौर पर दीर्घ-लघु अछि।
जँ कोनो शेरमे एना पाँति छै--- बिगड़ि चलै ।
आब एहि दू शब्दकेँ बान्हू। या तँ अहाँ " बिग" मने एकटा दीर्घ मानू आ
"ड़ि" मने एकटा लघु फेर "च" एकटा लघू भेल आ "लै" एकटा दीर्घ। एकर मतलब जे
" बिगड़ि चलै" केर संभावित बहर भेल--दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ।
एहि शब्दकेँ एकटा आर रूप दए सकैत छी जेना की---- "बि" के लघु मानू
"गड़ि"केँ दीर्घ मानू आ फेर "च" एकटा लघू भेल आ "लै" एकटा दीर्घ। एकर
मतलब जे " बिगड़ि चलै" केर संभावित बहर भेल--- लघु-दीर्घ-लघु-दीर्घ।
आब एहि दू रूपकेँ अहाँ बहरक हिसाबें प्रयोग करू। कतेको आदमी " बिग" केँ
दीर्घ मानताह फेर "ड़ि" "च" केँ मिला दीर्घ मानताह आ "लै" भेल दीर्घ मने
दीर्घ-दीर्घ -दीर्घ मुदा इ रूप गलत भेल। मुदा ऐठाम एकटा गप्प मोन राखू जे
किछु शब्दमे धेआन सेहो राखए पड़त जेना एकटा शब्द " कमल " लिअ। आब जँ अहाँ
एकर उच्चारण क-मल ( मने लघु-दीर्घ) करबै ताहिसँ एकटा फूलक अर्थ निकलत
मुदा जखन अहाँ एही शब्दकेँ कम-ल ( मने दीर्घ-लघु) करबै तखन एकर अर्थ
घटनाइमे हेतै जेना - पानि कम'ल की नै इत्यादि। तँए हमर आग्रह जे पहिने
कोनो शब्दकेँ उच्चारणक हिसाबेँ अर्थ देखू जाहिसँ उच्चारण अनर्थ नै हुअए।
मैथिलीमे वर्तनीकेँ हिसाबेँ ई उदाहरण देखू----
लए---- ह्रस्व-दीर्घ
लs------ह्रस्व
ल'------ह्रस्व
लय--- ह्रस्व-ह्रस्व वा दीर्घ
इएह निअम कए, कs वा स', भए भs वा भ' लेल छै आन प्रारूप लेल एहने बात बूझल
जाए। ऐठाम ईहो कही जे लघु लेल ह्रस्व शब्दक प्रयोग सेहो कएल जाइत छै
तेनाहिते दीर्घ लेल गुरू शब्द छै। ऐठाम हम एकटा गप्प स्पष्ट कर' चाहब।
संस्कृतक वार्णिक गणमे टूटा लघुकेँ एकटा दीर्घ मानबाक परम्परा नै अछि।
संगे-संग वार्णिक छन्दमे जतेक गण छै ततेक अक्षर भेनाइ अनिवार्य। एकटा
उदाहरण लिअ--
मानू जे १२२-१२२-१२२-१२२ सँ बनल श्लोकक हरेक पाँतिमे मात्रा क्रम इएह
रहतै संगे-संग हरेक पाँतिमे १२टा अक्षर रहतै। कम वा बेसी अक्षर मान्य नै
छै। मुदा आधुनिक भारतीय भाषामे ई कठिन सन बुझाएल तँए दूटा लघुकेँ एकटा
दीर्घ मानबाक छूट भेटल।
ई तँ छल सूत्र रूपमे। कने एकरा फरिछा कए देखी------
1) पं. गोविन्द झा अपन पोथी " मैथिली छंद शास्त्र" ( मिथिला पुस्तक
केन्द्र दरभंगासँ प्रकाशित, द्वितीय संस्करण १९८७)मे पृष्ठ १३ मे लिखैत
छथि जे " सँ, जँ, तँ, हँ आदि गुरू अछि" मने चंद्रबिंदुकेँ पं. गोविन्द झा
जी दीर्घ मनने छथि (प. दीनबन्धु झा रचित मिथिला भाषा विद्योतनमे एहने
लिखल अछि।) मुदा फेर पं. गोविन्द झा जी शेखर प्रकाशनसँ २००६मे प्रकाशित
अपन पोथी " मैथिली परिचायिका" केर पृष्ठ २०पर लिखै छथि जे " अनुस्वार
भारी होइत अछि आ चंद्रबिंदु भारहीन" मने ऐ पोथीमे पं. जी चंद्रबिंदुकेँ
लघु मनने छथि आ एहने सन विचार ओ मैथिली अकादेमीसँ २००७मे प्रकाशित अपन
पोथी "मैथिली परिशीलन"क पृष्ट ३५पर देने छथि। आब हमरा एहन पाठक लेल ई
बड़का प्रश्न अछि जे चंद्रबिंदुकेँ लघु मानल जाए की दीर्घ, कारण एकै पं.
गोविन्द झा जी अपन भिन्न-भिन्न पोथीमे भिन्न विचार देने छथि आ ई प्रचारित
करबाक उपक्रम करै छथि जे जाहि पोथीमे हम जे लीखि देलहुँ से सही अछि। जँ
पं. गोविन्द झा जी बाद बला पोथीमे लीखि देने रहितथिन्ह जे " मैथिली छंद
शास्त्रमे चंद्रबिंदु केर सम्बन्धमे हम जे लिखने छी से गलत थिक आब आब हम
ऐ पोथीमे एकरा सुधारि रहल छी" तखन हमरा जनैत भ्रम नै पसरितै आ ऐसँ हुनक
महानता सेहो सिद्ध होइत। मुदा से नै भेल। कोनो भाषाक वैयाकरणक उपर ओहि
भाषाक हरेक लोककेँ विश्वास होइत छै। मैथिल सेहो पं. जीपर विश्वास करैत
छथि ( हमरा सहित) आ तँए बहुत मैथिल लोकनि चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि बैसल
छथि। एकर सभसँ बड़का उदाहरण श्री रमण झा सन अलंकार शास्त्री अपन पोथी "
भिन्न-अभिन्न"क पृष्ठ ६७-७३ मे देने छथि जतए श्री रमण जी पं. गोविन्द झा
जीक संदर्भ दैत चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। अस्तु ई गप्प फरिछाएल
अछि जे चंद्रबिंदु लघु होइत अछि आ अनुस्वार दीर्घ। एही क्रममे एकटा आर
गप्प भए सकैए जे पं. गोविन्द झा जी कविवर सीताराम झा जीक कविताकेँ देखि
चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने होथि तँ से गप्प फराक, कारण कविवर सीताराम
जी अपन अधिकांश कवितामे चंद्रबिंदु युक्त लघु शब्दकेँ दीर्घ जकाँ प्रयोग
केने छथि। मुदा ऐठाम ई मोन राखए पड़त जे छंदमे जरूरति पड़लापर ( मात्र
आवश्यक स्थितिमे) लघुकेँ दीर्घक बराबर वा तेनाहिते दीर्घकेँ लघु बराबर
उच्चारण कएल जाइत रहलै। तँए जँ कविवर सीता राम जी जँ आवश्यकता पड़लापर जँ
चंद्रबिंदु युक्त लघुकेँ दीर्घ जकाँ प्रयोग केने छथि ताहिसँ ओ नियम नै
बनि जेतै वस्तुतः नियम तँ इएह छै जे चंद्रबिंदु लघु अछि। एकटा गप्प आर
संस्कृतमे लघुकेँ दीर्घक बराबर वा तेनाहिते दीर्घकेँ लघु बराबर उच्चारण
मात्र पाँतिक अन्तमे मान्य छै। शब्दक अन्तमे दीर्घकेँ लघु मानबाक
मैथिलीमे परम्परा प्राकृत एवं अप्रभंश भाषासँ भेल अछि।
2) मैथिली छन्द शास्त्रक पृष्ठ १४पर पं. गोविन्द झा जी लिखै छथि जे
----" न्ह आ म्ह संयुक्ताक्षरसँ पूर्व लघु वर्ण गुरू नै होइत अछि,
कन्हाइ, कुम्हार, एहिठाम क ओ कु गुरू नहि थिक।" मुदा जँ अहाँ मैथिली
उच्चारणकेँ अकानब तँ साफ-साफ सुनबामे कन् + हाइ ध्वनि आएत तेनाहिते कुम्
+ हार ध्वनि सुनबामे आएत। मैथिलीमे क + न्हाइ वा कु + म्हार ध्वनि
कदाचिते भेटत आ जेना की गजल उच्चारणपर आधारित अछि तँए गजलमे कन्हाइ लेल
दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत आ कुम्हार सेहो दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। ओना
गजलेमे किएक हरेक छन्द, हरेक पद्य उच्चारणपर अछि तँए हरेक छंदमे कुम्हार
दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत। आब कने आर विस्तारसँ चली। उर्दू भाषामे न्ह,
म्ह आ ल्ह सँ पहिनुक अक्षर दीर्घ नै होइत छै मने जे जाहि सङ्गे ल्ह, म्ह
वा न्ह रहैत अछि तकरे उपर ओ प्रभाव दै छै जेना " तुम्हारा " ऐ शब्दक
उच्चारण उर्दूमे "तु + म्हारा" होइत छै तँए उर्दूमे " तुम्हारा लेल लघु +
दीर्घ + दीर्घ प्रयोग होइत छै। ओना ऐठाम ई कहब बेजाए नै जे उर्दूमे न्ह,
म्ह, ल्ह केर ध्वनि संस्कृतसँ आएल मुदा उर्दूक सचेष्ट विद्वान सभ उच्चारण
अपने हिसाबसँ रखलथि। उर्दूक ई उच्चारण हिन्दीमे आएल ( बजबा कालमे उर्दू आ
हिन्दी एक समान होइत अछि)। मुदा जँ मैथिली उच्चारणकेँ देखबै तँ साफे-साफ
अंतर बुझना जाएत। आ एही अन्तरक कारणें मैथिल हरेक आन राज्यमे जल्दिये
पहिचानमे आबि जाइत छथि। मैथिलीमे आने संयुक्ताक्षर जकाँ म्ह,न्ह आ ल्ह
केर प्रभाव होइत छै तँए कुम्हार आ कन्हाइ लेल दीर्घ + दीर्घ + लघु हएत।
संस्कृतमे सेहो “ म्ह, ल्ह आ न्ह “सँ पहिने केर लघु दीर्घ मानल जाइत छै।
आब देखू तुलसी दास जी द्वारा लिखल ई स्त्रोत-------------
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं
विभू व्यापकम् ब्रम्ह वेदः स्वरूपं
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि----
ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घदोसरो
पाँतिकेँ मात्रा क्रम
अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
| आब ऐ श्लोकक दोसर पाँतिक ब्रम्ह शब्दपर धेआन देबै सभ बुझबामे आबि जाएत।
3) पं. गोविन्द झा जी मैथिली छंद शास्त्रक पृष्ठ १३मे संयुक्ताक्षरसँ
पहिने बला अक्षर दीर्घ हएत की लघु तकर व्यवस्था देखेने छथि। हुनका मतें
जँ एकैटा शब्दमे संयुक्ताक्षर हो तखने टा संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर
दीर्घ हएत। सङ्गे-सङ्ग ईहो कहने छथि जे प्रचलित समासमे जँ अलगो-अलग अक्षर
छै तखन संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। सङ्गे-सङ्ग ओ एकर सभहँक
अपवाद सेहो देने छथि। लगभग इएह नियम मैथिलीक सभ लेखक अपनेने छथि। सङ्गे
हम ईहो कहि दी जे हिन्दीयोमे एहने सन नियम छै ( आन आधुनिक भारतीय भाषामे
की छै से हमरा नै पता) मुदा ई नियम लौकिक संस्कृतमे नै छै। संस्कृतमे
चाहे एकै शब्दमे संयुक्ताक्षर हो की अलग-अलग शब्दमे दूनू स्थितिमे
संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक अक्षर दीर्घ हएत। संस्कृत पद्यक किछु उदाहरण
देखू------पहिने आदि शंकराचार्यक ई निर्वाण षट्कम देखू-----------
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि----
ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
--------| दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम
अछि-----ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ---------
। जँ अहाँ नीकसँ पढ़बै तँ पता लागत जे संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर जे
अलग शब्दमे छै ओहो दीर्घ भए रहल छै। आब शंकराचार्योसँ पहिनुक रचना देखी।
तँ पढ़ू रावण रचित ई शिवतांडव स्त्रोतम्। एहूमे संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक
अक्षर दीर्घ भेल अछि चाहे ओ एक शब्दमे अछि वा अलग शब्दमे।
लघु-दीर्घक-लघु-दीर्घ-----ऐ रूपकेँ पालन 14 श्लोक धरि पालन कएल गेल अछि।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ 1 ॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ 3 ॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ 5 ॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥ 6 ॥
करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ 7 ॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबन्धुकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ 8 ॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
-विलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ 9 ॥
अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ 10 ॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ 11 ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ 12 ॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललाटफाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ 14 ॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ 15 ॥
ऐ के अलावे पूरा संस्कृत पद्ये एकर उदाहरण अछि। मुदा से देब ने हमरा
अभीष्ट अछि आ ने उचित।
मैथिलीमे ई नियम नै छै तकर कारण प्राकृत-अप्रभंश भाषाक प्रभाव छै। मैथिली
सहित आन-आन आधुनिक उत्तर भारतीय भाषामे ई सेहो ई नियम नै मानल जाइत छै
प्राकृत-अपभ्रंशक प्रभावें। आब ई देखू जे ई प्राकृत-अपभ्रंश कोन भाषा
थिक। प्राकृतक सम्बन्धमे नाट्य शास्त्रक प्रणेता भरत मुनि कहै छथि
जे------
एतदेव विपर्यस्तं संस्कार गुण वर्जितम्
विज्ञेयं प्राकृतं पाठ्यं नाना वस्थान्तरात्मकम्।
मने जे मूल शब्दक अक्षरकेँ आगू-पाछू कए वा सरलीकृत कए बाजब प्राकृत पाठ
कहाइए। ऐठाम मूल शब्द मने संस्कृतक शब्द भेल, मुदा मूल शब्द कोनो भाषाक
भए सकैए। तेनाहिते आचार्य भर्तृहरि जी प्राकृतक सम्बन्धमे कहै छथि जे
--------
दैवीवाक् व्यवकीर्णेयम शकतैरभि धातृभिः
मने जे दैवीवाक् ( संस्कृत ) अशक्त लोकक मूँहमे आबि भिन्न-भिन्न रूपमे
आबि जाइ छै। मुदा महाभाष्यकार पतञ्जलि प्राकृतकेँ अपशब्दक रूपमे देखैत
छथि आ हुनका मतें ऐ तरहक अपशब्दक प्रयोग चाहे ओ बाजल जाइ की सूनल जाइ
दूनू रूपमे अधर्म थिक।
प्रायः-प्रायः हरेक भाषाविज्ञानी प्राकृतक बाद बला रूपकेँ अपभ्रंशक नाम
देने छथिन्ह। लगभग नवम आ दशम शताब्दी धरि प्राकृतक प्रयोग खत्म भए गेल छल
आ अपभ्रंशक प्रयोग शुरू भए गेल छल। मुदा ऐ ठाम मोन राखू जे अधिकांश
भाषाविज्ञानी अप्रभंशकेँ प्राकृतसँ अलग मनने छथि मुदा दूनूक प्रकृति एक
समान हेबाक कारणें " प्राकृत-अपभ्रंश " नाम बेसी चलै छै। प्राकृतमे शब्दक
निर्माण मुख्यतः लोक रूचिपर निर्धारित छै ने की व्याकरणपर। एकटा उदाहरण
देखू-----चन्द्र शब्दसँ चन्दा प्राकृत शब्द भेल मुदा इन्द्र शब्दसँ इन्दा
शब्द नै बनल ब्लकि इन्दर शब्द बनल। तेनाहिते वधू शब्दसँ बहु बनि तँ गेल
मुदा साधु शब्दसँ साहु नै बनल। साहु अलग शब्द अछि। आ लगभग एहने हालति
अपभ्रंशक अछि। ई बात जननाइ महत्वपूर्ण अछि जे जेनाहिते प्राकृत लेल मूल
शब्द संस्कृत छै तेनाहिते अपभ्रंश लेल मूल शब्द प्राकृत छै। आ बादमे एही
अपभ्रंशसँ मैथिली आ आन आधुनिक भारतीय भाषा सभहँक जन्म भेल। ओना प्राकृतक
बहुत रूप छै। तेनाहिते अपभ्रंशक सेहो अनेको रूप छै। मैथिलीमे अपभ्रंशकेँ
अपभ्रष्ट वा अवहट्ट सेहो कहल जाइत छै। मुदा ई प्राकृत रूप हरेक समयमे
होइत रहलैए। वेदक नाराशंसी एकर उदाहरण अछि | आ ऋगवेदमे ओहि समयक
सामानान्तर भाषाक बहुत रास शब्द भेटत। तेनाहिते अशोक वाटिकामे हनुमान जीक
ई चिन्ता जे हम सीता जीसँ देवभाषामे गप्प करी की मानुषी भाषामे सेहो ऐ
गप्पक प्रमाण अछि जे ओहू समयमे संस्कृतक समानान्तर भाषा छलै आब ओकर नाम
मानुषी होइ की वा अन्य कोनो। महत्वपूर्ण तँ ई छै जे वेदसँ लए कए एखन धरि
संस्कृतक समानान्तर धारा बहैत रहल आब भले ही ओकर नाम जे रहल होइ।
संस्कृत शब्द जखन प्राकृत रूपमे आबए लगलै तखन संयुक्ताक्षर शब्दपर बहुत
बेसी प्रभाव पड़लै। जँ गौरसँ देखबै तँ पता लागत जे प्राकृत बाजए बला सभ
संयुक्ताक्षर शब्दकेँ अपन लक्ष्य बनेने छल ताहूमे एहन संयुक्ताक्षर बला
शब्द जे शब्दक शुरूआतमे छल। एकर कारण छलै जे संयुक्ताक्षर बला शब्दकेँ
बजबामे बहुत सावधानी आ शिक्षा चाही छल। संस्कृतक संयुक्ताक्षर बला शब्द
प्राकृतमे दू रूपमे तोड़ल गेल---
१) जै संस्कृतक शब्दक शुरुआत संयुक्ताक्षरसँ भेल छै तकरा प्राकृतमे
पूरा-पूरी लोप कए देल गेलै। केखनो-केखनो शुरूआतक संयुक्ताक्षरकेँ बादमे
आनि देल गेलै जेना-----
“ग्रह” संस्कृत छै मुदा एकर प्राकृत “गिरहो” छै। तेनाहिते स्कन्द लेल
खन्दो, क्षमा लेल खमा वा छमा, स्तम्भ लेल खम्भ, स्खलितं लेल खलिअं, क्लेश
लेल किलेसो इत्यादि।
२) जँ शब्दक शुरुआत छोड़ि कतौ संयुक्ताक्षर छै तँ केखनो ओकर लोप भए गेल
छै वा नव रूपमे संयुक्ताक्षर छै जेना ----
चतुर्थी लेल चउत्थी, चैत्र लेल चइत्ता, चन्द्रिमा लेल चन्दिमा, क्षेत्रम्
लेल छेतम् आदि-आदि। कुल मिला कए प्राकृत-अपभ्रंशमे एहन स्थिति बनल जे
दूनू भाषामे सँ कोनो भाषामे एहन शब्द नै छलै जकर शुरूआत संयुक्ताक्षर
शब्दसँ होइत हो।
एतेक विवेचनाक बाद हम अपन मूल उद्येश्य दिस चली। हमर मूल उद्येश्य छल जे
मैथिलीमे संस्कृते जकाँ अलग-अलग शब्द रहितों संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला
अक्षर दीर्घ किएक नै होइए। आब जँ गौरसँ उपरका विवरण पढ़ने हएब आ जँ आर
प्राकृत-अपभ्रंशक पोथी सभ पढ़ब तँ पता लागत जे प्राकृत-अप्रभंशमे तँ
संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत शब्द छैके नै। आ मैथिलीयो अपभ्रंशसँ निकलल अछि आ
प्रारंभिक मैथिलीमे संयुक्ताक्षरसँ शुरूआत होइत कोनो शब्द नै अछि। आ तँए
मैथिलीमे संस्कृतक ई नियम नै आएल। आ अहाँ अपने सोचियौ ने जे जै भाषामे
संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्द छैके नै से एहन तरहँक नियम किएक राखत।
मुदा जँ नवीन मैथिली भाषाक किछु प्रतिष्ठित लेखकक रचनाकेँ देखी तँ ओ
मात्र क्रियापदकेँ छोड़ि सभ संस्कृतक शब्द ( तत्सम शब्द )केँ प्रयोग केने
छथि। आन-आन कम प्रतिष्ठित लेखक अपन रचनामे तत्सम शब्दकेँ फिल्मी मसल्ला
मानि जोरगर प्रयोग करै छथि। एतबा नै पं. गोविन्द झा जी अपन पोथी "मैथिली
परिशीलन"क पृष्ठ २९-३० पर गौरव पूर्वक नवीन भारतीय भाषा ( जै मे मैथिली
सेहो अछि )केँ तत्सम निष्ठ हेबाक बहुत रास फायदा गनौने छथि। आब हमरा सन
जिज्ञासु लग ई प्रश्न अपने-आप आबि जाइए जे जँ संस्कृतक शब्द लेलासँ बहुत
रास फायदा भेलै ( वा भए सकैत छै ) तखन तँ संस्कृतक सम्बन्धित नियम लेलासँ
सेहो फायदा भेल रहितै ( वा भए सकैत छै )। ओनाहुतो मैथिलीमे वा अन्य कोनो
आधुनिक भारतीय भाषाक पद्यमे संस्कृत शब्दक प्रयोग होइ छै तखन ओ नियम
स्वतः पालन भए जाइत छै। अहाँ अपने मैथिली महँक एहन कोनो पद्य गाउ जाहिमे
संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत कोनो संस्कृत शब्द हो स्वतः अहाँकेँ बुझा जाएत
जे अलग शब्द रहितों संयुक्ताक्षरसँ पहिने बला अक्षर दीर्घ होमए लगैत छै।
ऐठाँ फेर मोन राखू जे प्राकृत-अपभ्रंश भाषामे एहन शब्द छलैहे नै जकर
शुरूआत संयुक्ताक्षरसँ होइ तँए ओहि भाषामे ई नियम नै पालित भेल। आब एतेक
विवेचनक बाद अहाँ सभकेँ मामिला बुझबामे आएल हएत। तँए हमर आग्रह जे जँ ऐ
नियमसँ बचबाक हो तँ संयुक्ताक्षरसँ शुरू होइत शब्दक तद्भव रूप प्रयोग करू
जेना " प्रकाश " लेल परकाश, " प्रयोग " लेल परियोग इत्यादि। हमर कहबाक
मतलब जे जेना पुरना कालमे प्राकृत संयुक्ताक्षरकेँ हटा देलकै वा आधुनिक
कालमे बंगला भाषामे संयुक्ताक्षर हटि गेलै तेनाहिते मैथिलीमेसँ
संयुक्ताक्षर सेहो हटा दिऔ। आ जँ अहाँ संस्कृते शब्द लेब तखन पूरा नियम
सहित लिअ। आब अहाँ जँ सकांक्ष पाठक हएब तँ हमरासँ पूछब जे जँ केओ संस्कृत
छोड़ि आन भाषाक शब्द लेत तखन की ओहि भाषाक नियमक पालन करत ? ऐ लेल हमर
उत्तर रहत जे नै। कारण संस्कृत हमर मूल भाषा थिक तँए ओकरा दिस ताकब हमर
मजबूरी नै बल्कि कर्तव्य सेहो अछि। मुदा ओकरा छोड़ि जँ आन भाषाक शब्द लै
छै तखन ओकरा मैथिलीक नियम हिसाबें प्रयोग करू। जेना की अरबी-फारसी-उर्दू
भाषामे " ग़ज़ल " लिखल जाइत छै मने ग आ ज केर निच्चा नुक्ता लगाएल जाइत
छै मुदा मैथिलीमे नुक्ता नै छै तँए मैथिलीमे " गजल " लीखू। नुक्ता लगा कए
लिखब बेकार । कोनो संस्कृतक शब्दकेँ वा अन्यदेशीय शब्दकेँ मैथिलीकरण कोना
करी आ कोना नव शब्द बनाबी तकर विवेचना आगू हएत।
ई छल हमर पहिल तर्क। आब कने दोसर तर्क दिस चली---
संस्कृत पद्यमे एकटा पाँतिकेँ इकाइ मानल जाइत छै। आ जँ हम शब्दकेँ
भिन्न-भिन्न करै छिऐ मने अलग-अलग शब्दक संयुक्ताक्षरसँ भेल दीर्घ नै मानै
छिऐ तँ एकर मतलब जे हम पाँतिकेँ नै बल्कि शब्दकेँ इकाइ मानि रहल छिऐ आ
हमरा जनैत पद्यमे शब्दकेँ इकाइ मानब उचित नै। पद्यमे इकाइ सदिखन पाँति
होइ छै। एकटा विडंबना देखू जे मैथिलीक सभ व्याकरण शास्त्री आ कवि लोकनि
शब्दकेँ इकाइ तँ मानै छथि मुदा जखन जगण-मगण केर गिनती करै छथि तखन
पाँतिकेँ इकाइ मानि लै छथि। एकटा उदाहरण लिअ जे की वसन्त तिलका छन्दक
अछि। ऐ छन्दक व्यवस्था एना अछि----
तगण+ मगण+जगण +जगण + गा + गा
मने की ----दीर्घ-दर्घ-लघु +दीर्घ-लघु-लघु +लघु-दीर्घ-लघु +लघु-दीर्घ-लघु
+दीर्घ+ दीर्घ
आब एकर पद्य उदाहरण देखू----
" ई ने अहाँक सन वीरक काज थीकs"
( कविवर सीताराम झा, मैथिली छन्द शास्त्र, पृष्ठ-४५)। ऐ एकटा पाँतिमे
देखू जे " ई " आ "ने " दूटा अलग-अलग शब्द अछि सङ्गे-सङ्ग तेसर शब्द "
अहाँक" केर पहिल अक्षर " अ " लए कए मात्र एकटा " तगण "बनल अछि। आब हमर
कहब अछि जे जँ अहाँ पद्यमे शब्देकेँ इकाइ मानै छिऐ तखन दू-तीनटा अलग-अलग
शब्दकेँ सानि एकटा जगण-मगण किएक बनबै छी। जँ केओ शब्देकेँ इकाइ मानै छथि
तकर मतलब ई भेल जे ओ अपन पद्यमे एहन शब्दकेँ प्रयोग करथि जे हरेक जगण-मगण
मने कोनो दशाक्षरी खण्ड लेल समान रूपसँ रहए। तँए हमर मानब जे संस्कृतक
पद्ये जकाँ जँ अलग-अलग शब्द होइ तैयो संयुक्ताक्षरसँ पहिनुक बला अक्षर
दीर्घ हएत। ऐठाँ ई मोन राखू जे एकटा पाँति खत्म भेलै तँ ओ इकाइ खत्म
भेलै। आब जँ दोसर पाँतिक शुरूआत संयुक्ताक्षरसँ भए रहल छै तकर प्रभाव
पहिल पाँतिक अन्तिम शब्दक अन्तिम अक्षरपर नै पड़त।
पं. गोविन्द झा जी अपन पोथी " मैथिली छन्द शास्त्र "क पृष्ठ १४पर लिखै
छथि जे ---- ए,ऐ,ओ,औ कतहु लघु होइत अछि आ कतहु दीर्घ आ तकर बाद ओ समान्य
नियम देखेने छथि। मुदा उदाहरणमे देल गेल जे-जे शब्द सभ लेने छथि से
प्रयाः-प्रायः आइसँ १५० बर्ख पहिनुक अछि सेहो सोति नामक ब्राम्हणमे बाजल
जाइत छल ओहो मात्र पुरूष वर्गमे। हमर कहबाक मतलब जे स्त्री ( चाहे कोनो
जातिक किएक ने हो ) एवं गैर-ब्राम्हण ओहि शब्दावलीक अभ्यस्त नै छल आ ने
अछि। तँए हम ओइ नियम सभहँक विवेचन नै करब सोंझ स्वरे कहब जे ए,ऐ,ओ,औ जतए
रहए ततए दीर्घ रहत। हँ, दूटा गप्प धेआन राखू पहिल जे बहुत काल ए,ऐ,ओ,औ
आदिक उच्चारण कोमल भ' जाइत छै मुदा कोमल उच्चारणक कारणें ओ लघु नै मानल
जाएत। आ दोसर गप्प जे प्राकृत-कालमे संस्कृतक विरोध स्वरूप लोक सभ अपना
सुविधाक हिसाबसँ ए,ऐ,ओ,औ आदिकेँ कतौ लघु आ कतौ दीर्घ मानि लेला। शुरुआती
प्राकृत कालमे उच्चारण मुख-सुखपर आधारित अछि मने एहन उच्चारण जकरा बाजएमे
बेसी कठनाइ नै हो। मुदा जखन इएह प्राकृत संस्कारयुक्त बनि गेल तखन
संस्कृते जकाँ एकरो विरोध भेलै आ अप्रभंश भाषा आएल। मुदा आइकेँ जुगमे
जखन की मैथिली संस्कारयु्क्त बनि गेल अछि तखन प्राकृत-अप्रभंश नियमक कोन
काज ( आब अहाँ सभ ई डर नै देखाएब जे संस्कारयुक्त भेलासँ मैथिली मरि
जाएत। जँ एतबे डर अछि तखन मैथिलीकेँ १००० बर्ख पाछू ल' जाउ आ तखन
प्राकृत-अप्रभंश नियम लिअ। वस्तुतः भाषाकेँ मरब आ जन्मब प्रकिया मनुक्खे
जकाँ छै जे की रोकल नै जा सकैए। हँ, किछु स्थान राखल जा सकैए जैसँ मूल
भाषाक विशेषता नव भाषामे रहि जाए ) तँए हमर ई स्पष्ट रूपें मानब अछि जे
ए,ऐ,ओ, औ आदि जतए रहै ओकरा दीर्घ मानू ( ओना छन्दमे केखनो काल अपवाद
स्वरूप काज चलेबा लेल ए,ऐ,ओ, औ आदिकेँ लघु मानल जाएत रहलैए मुदा ई छूट
जकाँ भेल नियम जकाँ नै ) |
पं. जी एही पोथीक पन्ना १४हेपर एकटा नियम देलाह जे --- तद्भव शब्दमे
अन्तसँ तेसर ओ चारिम स्थानपर पड़निहार ए,ऐ,ओ,औ सभ लघु थिक जेना ---
तेल ( २१)------- तेलाह ( १२१)
फैल ( २१)----फैलगर ( ११११)
मुदा पं. जी ई नै स्पष्ट केलाह जे अन्तसँ तेसर ओ चारिम स्थानपर पड़निहार
ए,ऐ,ओ,औ सभ लघु किएक होइत अछि।
आब आउ चली प. गोविन्द झा जी द्वारा लिखित आ १९८७मे प्रकाशित पोथी "
मैथिली उद्गम ओ विकास " ( पहिल संस्करण १९६८मे मैथिली प्रकाशन समीतिसँ आ
दोसर परिवर्धित संस्करण मैथिली अकादेमीसँ)क १९एम पन्नापर----
" ११ (१) वैदिक कालहिसँ ई नियम चल अबैत अछि जे एके पदमे एके स्वर उदात
रहए, आन सभ अनुदात भए जाए। ई नियम शेष निघात कहबैत अछि। एहि प्राचीन
नियमक परिणामस्वरूप मैथिलीमे एक बड़े महत्वपूर्ण नियम ई अछि जे अन्तसँ
प्रथम ओ द्वितीय स्थानकेँ छोड़ि शेष जतेक ध्वनि अछि से लघु भए जाइत अछि।
एहि नियमकेँ पण्डित ग्रिअर्सन साहेब Rule of short antepenultimate कहल
अछि।मैथिलीमे एहि नियमक अनुसारें एक शब्दमे अधिकसँ अधिक दुइ गुरू रहि
सकैत अछि, आ सेहो अन्तसँ प्रथम वा द्वितीय स्थानमे ,ताहिसँ पूर्व सकल
स्वर नियमतः लघु रहत, तथा प्रत्यादि जोड़लासँ जखनहि कोनो गुरू ध्वनि
तृतीय वा ताहिसँ पूर्व पड़ि जाएत तखनहि ओ लघु भए जाएत। एकर उदाहरण
ग्रंथमे वारंवार भेटत, एतए दुइ-चारि उदाहरण देखबैत छी---
पानि,पनिगर,काँट,कटाँह, बात, बताह, बतहा, बतहबा।
टि० एहि नियमकेँ कने आर परिष्कृत करब आवश्यक। ग्रिअर्सन साहेबक कथानुसार
यदि तृतीय वर्ण नियमतः लघु होइत अछि तँ " पाओल ", " आबए " इत्यादिमे "आ
"लघु किएक नहि भेल? एकर समाधान ग्रिअर्सन साहेब ई देल अछि जे अन्तिम लघु
स्वर वा लघुत्तम स्वरक लेखा नहि होइत अछि। परन्तु छन्दमे शतशः उदाहरणसँ आ
उच्चारण-पर्यवेक्षणसँ ई स्पष्ट अछि जे अन्तिम लघुत्तम स्वरो एक वर्ण एक
syliable गनल जाइत छल। तें उक्त नियमक स्वरूपएहन राखब समुचितः मैथिलीमे
गुरू ध्वनि अन्तसँ चारि मात्राक भित्तरे रहि सकैत अछि, ताहिसँ पूर्व नहि।
फलतः मैथिली शब्दक अवसान २२,११२,२११,१२१ एही चारि प्रकारक भए सकैत अछि ओ
ताहिसँ पूर्व सकल ध्वनि बिनु अपवादेँ लघु रहत यथा-स० आकाश, मै० अकास
इत्यादि।“
फेर पं. जी १९९२मे प्रकाशित पोथी " उच्चतर मैथिली व्याकरण " द्वितीय
संस्करणक पृष्ठ १९पर, २००६मे प्रकाशित पोथी " मैथिली परिचायिका " केर
पृष्ठ ११पर आ २००७मे प्रकाशित पोथी " मैथिली परिशीलन " केर पृष्ठ ५६-५७पर
इएह गप्प एकसामान रूपसँ कहने-लिखने छथि।
तँ पं. जीक करीब पाँचटा पोथीमे ऐ विषय-वस्तुकेँ पढ़लाक पछाति हम अपन किछु
विचार राखए चाहब---
वैदिक कालमे छन्द निर्माण लेल लघु-गुरू प्रकिया नै छल। मात्र अक्षरकेँ
गानि क' छन्द बनै छल जकरा गेबा लेल उदात, अनुदात एवं स्वरित रूपक सहायता
लेल जाइत छलै। उदात मने कोनो अक्षरक स्वरकेँ उठा क' गाएब, अनुदात मने
कोनो अक्षरक स्वरकेँ निच्चा खसा क' गाएब तथा स्वरित मने कोनो अक्षरक
स्वरकेँ तुरंत उपर उठा क' तुरंत निच्चा खसा क' गाएब। वैदिक साहित्यमे जे
अक्षर लघु अछि तकर उच्चारण उदात भ' सकैए तेनाहिते जे अक्षर दीर्घ अछि तकर
उच्चारण अनुदात भ' सकै छल। सोंझ रूपसँ कही तँ उदात,अनुदात-स्वरित कोनो
अक्षरक मात्रापर निर्भर नै छल।
२) वैदिक साहित्य केर बाद लौकिक संस्कृतसँ ल' क' प्राकृत-अप्रभंश भाषा
रूपमे मैथिली साहित्यमे वैदिक छन्द नै रहल मने या तँ लौकिक संस्कृतक
वर्णवृत रहल या मात्रिक छन्द।
३) पं. जी लघु-गुरू नियम आ उदात-अनुदात-स्वरित प्रकियाकेँ एकै मानि लेने छथि।
४) पं. जीक हिसाबें ग्रिअर्सन साहेब द्वारा देल गेल Rule of short
antepenultimate बेसी ठीक नै अछि तँए पं. जी ओहिमे संशोधन केलाह। आब हमर
प्रश्न ई अछि जे जँ उपरका नियम मैथिली लेल अनिवार्य अछि तखन ओहिमे संशोधन
किएक ? संशोधित होमए बला नियम अनिवार्य भैए ने सकैए।
५) पं. जीक पोथी सभ पढ़ि हमरा बहुत बेर ई अनुभव होइए जे पं. जी व्याकरण
शास्त्र, छन्द शास्त्र आ ध्वनि विज्ञान तीनूक नियम एकैमे सानि देने
छथिन्ह। हरेक भाषामे लघुतर आ अति-लघुतर ध्वनि होइ छै मुदा ओकर विवेचन
व्याकरण आ छन्द शास्त्रमे नै भ' ध्वनि शास्त्रमे होइत छै। जँ लेखककेँ एकै
पोथीमे ध्वनि विज्ञान देबाक रहै छै तँ ओकर खण्ड अलग क' देल जाइत छै। ऐ ल'
क' पं. जीक पोथीमे बहुत ठाम संदेहात्मक स्थिति बनि जाइत छै।
हम उपरमे जे विचार रखलहुँ ताहि अधारपर अपन निष्कर्श द' रहल छी----
ई नियम अनिवार्य नियम नै अछि कारण पं. जी स्वयं ऐ नियमक बहुत रास अपवाद
देखेने छथि। कोनो अनिवार्य नियममे जँ एतेक अपवाद हो तँ निश्चित रूपसँ ओकर
अनिवार्यतापर प्रश्नचिन्ह लागै छै।
ई नियम व्याकरणक ओ छन्दशास्त्रक नै ब्लकि शब्दकोषीय अछि। मने ऐ नियमक
सहायतासँ अहाँ संस्कृत वा अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण क' सकै छी। मोन
पाड़ू प्राकृत भाषा संस्कृतक शब्द सभकेँ (मने शब्दक शुरूसँ पहिल,दोसर वा
तेसर दीर्घक उच्चारण गाएब क' देलक। आब आगू ऐ गाएब कएल दीर्घ लेल हम मात्र
कोमल शब्दक प्रयोग करब) कोमलीकृत केलक जेना--आकाश केर बदला अकास, आत्मा
केर बदला अत्मा आदि। बादमे एही नियमक अधारपर अंग्रेजी शब्दक इएह हाल भेलै
जेना ड्राइवर केर बदला डरेबर, स्टेशन केर बदला टीसन, आदि-आदि। मुदा ई
नियम ओहने शब्दमे लागल जै शब्दमे विराम लेबाक सुविधा नै छलै। "परिशीलन" ई
एकटा शब्द अछि मुदा एकर उच्चारण -- "परि-शी-लन" होइत अछि मने एकै शब्दमे
दू ठाम विराम अछि तँए ऐ शब्दकेँ कोमल करबाक जरूरति नै भेल। अरबी-फारसीक
हजारों शब्द मूल रूपसँ मैथिलीमे चलि रहल अछि ( मने बिना कोमल केने ) कारण
ओ शब्द सभमे विराम छै वा रहल हेतै। जँ अहाँ " मैथिली " शब्दक उच्चारण
करबै तँ " मै-थिली " उच्चारित हएत। मुदा विरामक ई सुविधा आकाश, आत्मा,
ड्राइवर आदि शब्दमे नै छलै तँए ओकरा कोमल बना प्रयोगमे लेल गेलै। स्वयं
पं. जी अपवाद स्वरूप जै शब्दक उदाहरण देने छथि तकरा देखू---बासन--केर
उच्चारण बा-सन भेल। मानल--केर उच्चारण मा-नल भेल। अनलहुँ--केर उच्चारण
अन-लहुँ भेल। मने एहू शब्द सभमे विराम छै तँए एहू शब्द सभकेँ कोमल करबाक
जरूरति नै बुझाएल। जँ ऐ नियमक अधारपर देखी तँ आधुनिक मैथिली भाषाक कतेको
शब्दकेँ ठीक करबाक जरूरति बुझाएत। हालेमे दरभंगासँ प्रकाशित मैथिली दैनिक
" मिथिला आवाज " ऐ नियमक अधारपर गलत अछि। सही नाम हेतै " मिथिला अवाज "
मुदा मैथिलीक जे राहु-शनि-केतु सभ छथि से ऐ नियमक पालन नै क' क' मैथिली
भाषाक निजताकेँ तोड़बापर लागल छथि। तँ आब अहाँ सभ बूझि सकै छिऐ जे पं. जी
जै नियमकेँ अनिवार्य मानै छथि से मात्र अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण
करबाक औजार थिक। उच्चारणक आग्रहसँ औजारक जरूरति भैयो सकैत छै आ नहियो भ'
सकै छै। ई शब्दकोषीय नियम आजुक कालमे ओतबे महत्वपूर्ण अछि जतेक की पहिने
छल। लेखक सभसँ आग्रह जे ऐ नियमसँ अन्य भाषाक शब्दकेँ मैथिलीकरण करथि आ
मैथिलीक निजताकेँ सुरक्षित राखथि।ऐ के विपरीत केखनो काल भाषाक निजता
रखबाक लेल शब्दकेँ दीर्घ सेहो कएल जाइत छै जेना उर्दूमे उस्ताद मुदा
मैथिलीमे ओस्ताद। वकील केर बदलामे ओकील आदि-आदि।
तँ एतेक धरि एलाक पछाति हम कहि सकै छी जे ए,ऐ,ओ,औ आदि जै ठाम रहत दीर्घे
रूपमे रहत। अकारण रूपसँ वा अपना मोने लघु मानि लेबासँ नीक जे मैथिली
भाषामेसँ लघु-गुरू हटा वैदिक छन्दक फेरसँ प्रचलन कएल जाए। ऐसँ अनावश्यक
रूपसँ खर्च होइत उर्जा बच'त आ भाषाक विकास सुनिश्चित हएत।
6
मैथिलीमे बाल गजल
की थिक बाल गजलः
किछु लोक "बाल गजल"क नामसँ तेनाहिते चौंकि उठल छथि जेना केओ हुनका
अनचोकेमे हुड़पेटि देने हो। जँ एहन बात मात्र मैथिलिए टामे रहितै तँ कोनो
बात नै, मुदा ई चौंकब हिन्दी आ उर्दूमे सेहो भए रहल छै। कारण ई अवधारणा
मात्र मैथिलिए टामे छै आर कोनो भारतीय भाषामे नै। जँ हम कोनो
हिन्दी-उर्दू भाषी गजलकार मित्रसँ"बाल गजल"क चर्च करैत छी तँ चोट्टे कहैत
छथि जे उर्दूक बहुत गजलकार सभ बहुत शेरमे बाल मनोविज्ञानक वर्णन केने छथि
खास कए ओ सुदर्शन फाकिर द्वारा कहल आ जगजीत सिंह द्वारा गाओल गजल-----
"ये कागज की कश्ती वो बारिस का पानी" बला संदर्भ दै छथि आ ई बात ओना सत्य
छै मुदा " बाल गजल"केँ फुटका कए ओकरा लेल अलग स्थान मात्र मैथिलिए टामे
देल गेलैए। आ ई मैथिलीक सौभाग्य थिक जे ओ "बाल गजल"क अगुआ बनि गेल अछि
भारतीय भाषा मध्य।
जहाँ धरि बाल गजलक विषय चयन केर बात थिक तँ नामेसँ बुझा जाइत अछि ऐ गजलमे
बाल मनोविज्ञान केर वर्णन रहैत छै। तथापि एकटा परिभाषा हमरा दिससँ ----"
एकटा एहन गजल जाहि महँक हरेक शेर बाल मनोविज्ञानसँ बनल हो आ गजलक हरेक
नियमकेँ पूर्ववत् पालन करैत हो ओ बाल गजल कहेबाक अधिकारी अछि"। जँ एकरा
दोसर शब्दमे कही तँ ई कहि सकैत छी जे बाल गजल लेल नियम सभ वएह रहतै जे
गजल लेल होइत छै बस खाली विषय बदलि जेतै।
आब आबी बाल गजलक अस्तित्व पर। किछु लोक कहता जे गजल दार्शानिकतासँ भरल
रहै छै तँए बाल गजल भैए ने सकैए। मुदा ओहन-ओहन लोक विदेहक अंक-111जे बाल
गजल विशेषांक अछि तकर हरेक बाल गजल पढ़थि हुनका उत्तर भेटि जेतन्हि। ओना
दोसर बात ई जे कविता-कथा आदि सभ सेहो पहिने गंभीर होइत छल मुदा जखन ओहिमे
बाल साहित्य भए सकैए तँ बाल गजल किएक नै ? ओनाहुतो मैथिलीमे गजल विधाकेँ
बहुत दिन धरि सायास ( खास कए गजलकारे सभ द्वारा ) अवडेरि देल गेल छलै तँए
बहुत लोककेँ बाल गजलसँ कष्ट भेनाइ स्वाभाविक छै।
की बाल गजल लेल नियम बदलि जेतैः
जेना की उपरमे कहल गेल अछि जे बाल गजल लेल सभ नियम गजले बला रहतै बस खाली
एकटा नियमसँ समझौता करए पड़त। माने जे बहर-काफिया-रदीफ आ आर-आर नियम सभ
तँ गजले जकाँ रहतै मुदा गजलमे जेना हरेक शेर अलग-अलग भावकेँ रहैत अछि
तेना बाल गजलमे कठिन बुझाइए। तँए हमरा हिसाबेँ ऐठाम ई नियम टूटत मुदा तैओ
कोनो दिक्कत नै कारण मुस्लसल गजल तँ होइते छै। अर्थात बाल गजल एक तरहेँ
"मुस्लसल गजल " भेल।
बाल गजलक पूर्व भूमिकाः
तारीखक हिसाबें 24/3/2012केँ बाल गजलक उत्पति मानल जाएत ( एहि पाँतिक
लेखक द्वारा 24/3/2012केँ दिल्लीमे साहित्य अकादेमी आ मैलोरंग द्वारा
आयोजित कथा गोष्ठीमे ऐ बाल गजल नामक विधाक प्रयोग कएल गेल ) मुदा ओकर
स्वरूप मैथिलीमे पहिनेहें फड़िच्छ भए चुकल छल। 09 Dec. 2011केँ अनचिन्हार
आखर http://anchinharakharkolkata.blogspot.com पर प्रकाशित श्रीमती
शांति लक्ष्मी चौधरी जीक ई गजल देखल जाए ( बादमे ई गजल मिथिला दर्शनक अंक
मइ-जून २०१२मे सेहो प्रकाशित भेलै) आ सोचल जाए जे बिना कोनो घोषणाकेँ
एतेक नीक बाल गजल कोना लिखल गेलै------------
शिशु सिया उपमा उपमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
मैत्रेयी गार्गीक कोमल प्राण छियै हमर आयुष्मति बेटी
टिमकैत कमलनयन, धव-धव माखन सन कपोल
पुर्णमासीक चमकैत चान छियै हमर आयुष्मति बेटी
बिहुसैत ठोर मे अमृतधारा बिलखैत ठोर सोमरस
शिशु स्वरुपक श्रीभगवान छियै हमर आयुष्मति बेटी
नौनिहाल किहकारी सरस मिश्रीघोरल मनोहर पोथी
दा-दा-ना-ना-माँ सारेगामा गान छियै हमर आयुष्मति बेटी
सकल पलिवारक अलखतारा जन्मपत्रीक सरस्वती
अपन मैया-पिताश्रीक जान छियै हमर आयुष्मति बेटी
ज्ञानपीठक बेटी छियै सुभविष्णु मिथिलाक दीप्त नक्षत्र
मातृ पितृ कुलक अरमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
"शांतिलक्ष्मी" विदेहक घर-घर देखय इयह शिशुलक्ष्मी
बेटीजातिक भविष्णु गुमान छियै हमर आयुष्मति बेटी
..................वर्ण 22................
तेनाहिते एकटा हमर बिना छंद बहरक गजल अनचिन्हार आखर
http://anchinharakharkolkata.blogspot.com आ विदेहक फेसबुक वर्सन
http://www.facebook.com/groups/videha/पर 6/6/2011केँ आएल छल से
देखू--------------
होइत छैक बरखा आ रे बौआ
कागतक नाह बना रे बौआ
देखिहें घुसौ ने चोरबा घर मे
हाथमे ठेंगा उठा रे बौआ
तोरे पर सभटा मान-गुमान
माएक मान बढ़ा रे बौआ
छैक गड़ल काँट घृणाक करेजमे
प्रेमसँ ओकरा हटा रे बौआ
नहि झुकौ माथ तोहर दुशमन लग
देशक लेल माथ कटा रे बौआ
तेनाहिते 4 अक्टूबर 2010केँ अनचिन्हार आखर
http://anchinharakharkolkata.blogspot.com पर प्रकाशित गजेन्द्र ठाकुर
जीक ऐ गजलकेँ देखल जाए----- जे शब्दावलीक आधार पर बाल गजल अछि मुदा अर्थ
विस्तारक कारणें बाल आ बूढ़ दूनू लेल अछि-----
बानर पट लैले अछि तैयार
बिरनल सभ करू ने उद्धार
गाएक अर्र-बों सुनि अनठेने
दुहै समऐँ जनताक कपार
पुल बनेबाक समचा छैक नै
अर्थशास्त्र-पोथीक छलै भण्डार
कोरो बाती उबही देबाक लेल
आउ बजाउ बुढ़ानुस - भजार
डरक घाट नहाएल छी हम
से सहब दहोदिश अत्याचार
ऐरावत अछि देखा - देखा कए
सभटा देखैत अछि ओ व्यापार
कविवर सीताराम झा जीक करीब १९४०मे लिखल बाल गजल सेहो छनि।
ऐ तीनटा गजलक आधार पर ई कहब बेसी उचित जे बाल गजलक भूमिका बहुत पहिने बनि
गेल छल मुदा विस्फोट 24/3/2012केँ भेलै। आ ऐ विस्फोटमे जतेक हमर भूमिका
अछि ततबए हिनका सभकेँ सेहो छन्हि। ऐठाम ई कहब कनो बेजाए नै जे विदेहक अंक
बाल गजलक पहिल विशेषांक अछि। विदेहक अंक-111 जे की बाल गजल विशेषांक अछि
जाहिमे कुल 16 टा गजलकारक कुल 93टा बाल गजल आएल। संक्षिप्त विवरण एना
अछि--------------------
रूबी झा जीक 13टा बाल गजल, इरा मल्लिक जीक 2टा, मुन्ना जीक 3टा, प्रशांत
मैथिल जीक 1टा, पंकज चौधरी ( नवल श्री) जीक 8टा, जवाहर लाल काश्यप जीक
1टा, क्रांति कुमार सुदर्शन जीक 1टा, जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक 1टा,
अमित मिश्रा जीक 30टा, ओमप्रकाश जीक 1टा, शिव कुमार यादव जीक 1टा, चंदन
झा जीक 14टा, जगदानंद झा मनु जीक 6टा, राजीव रंजन मिश्रा जीक 4टा, मिहिर
झा जीक 4टा, गजेन्द्र ठाकुर जीक 1टा आ ताहि संगे आशीष अनचिन्हारक 2टा बाल
गजल आएल।
बाल गजलक आलावे 7टा बाल गजल पर आलेख आएल। आलेख कार सँ छथि---- मुन्ना जी,
ओमप्रकाश, चंदन झा, जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आ आशीष अनचिन्हार आ मिहिर
झा। आ तारीख 15 अक्टूबर 2012 धरि अनचिन्हार आखरपर कुल 133 टा बाल गजल आ
35टा बाल रुबाइ आबि चुकल अछि संगे संग करीब 10टा बाल गजलपर आलेख उपल्बध
अछि। एखन धरिक मुख्य बाल-गजलकारमे श्रीमती शांतिलक्ष्मी चौधरी, जगदानंद
झा मनु, अमित मिश्रा, चंदन झा, पंकज चौधरी ( नवल श्री) , शिव कुमार यादव,
श्रीमती इरा मल्लिक, ओमप्रकाश, मिहिर झा, राजीव रंजन मिश्रा, क्रांति
कुमार सुदर्शन, जवाहर लाल कश्यप, श्री मती रूबी झा ( ई सभ गोटें
अनचिन्हार आखरक http://anchinharakharkolkata.blogspot.comखोज छथि गजलक
मामलेमे ),प्रशांत मैथिल, श्री जगदीश चंद्र ठाकुर " अनिल ", विनीत
उत्पल, मुन्ना जी, गजेन्द्र ठाकुर आ हम स्वंय। आब हमरा ई पूर्ण विश्वास
अछि जे बाल गजल मैथिलीमे पसरत आ नेना- भुटका केर जीहपर चढ़त।
7
भक्ति गजल
जखन विदेह द्वारा बाल गजल विशेषांक निकलल रहए तखन केओ नै सोचने रहए जे
एतेक जल्दिए गजलक नव प्रारूप " भक्ति गजल " विकिसित भए जाएत। मुदा से भेल
आ ताहि लेल सभसँ बेसी धन्यवादक पात्र छथि ओ लोक सभ जे की गजलक निंदा करैत
छथि। कारण जँ ओ सभ नै रहितथि तँ आइ गजले नै रहितै.. बाल आ भक्ति गजलक तँ
बाते छोड़ू।
की थिक भक्ति गजल--
जहाँ धरि भक्ति गजलक विषय चयन केर बात थिक तँ नामेसँ बुझा जाइत अछि ऐ
गजलमे भक्ति केर वर्णन रहैत छै। तथापि एकटा परिभाषा हमरा दिससँ ----"
एकटा एहन गजल जाहि महँक हरेक शेर भक्ति मनोविज्ञानसँ बनल हो आ गजलक हरेक
नियमकेँ पूर्ववत् पालन करैत हो ओ भक्ति गजल कहेबाक अधिकारी अछि"। जँ
एकरा दोसर शब्दमे कही तँ ई कहि सकैत छी जे भक्ति गजल लेल नियम सभ वएह
रहतै जे गजल लेल होइत छै बस खाली विषय बदलि जेतै। मे भक्ति गजल बाल गजले
जकाँ छै।
की भक्ति गजल लेल नियम बदलि जेतैः
जेना की उपरमे कहल गेल अछि जे भक्ति गजल लेल सभ नियम गजले बला रहतै बस
खाली एकटा नियमसँ समझौता करए पड़त। माने जे बहर-काफिया-रदीफ आ आर-आर नियम
सभ तँ गजले जकाँ रहतै मुदा गजलमे जेना हरेक शेर अलग-अलग भावकेँ रहैत अछि
तेना भक्ति गजलमे कठिन बुझाइए। तँए हमरा हिसाबेँ ऐठाम ई नियम टूटत मुदा
तैओ कोनो दिक्कत नै कारण मुस्लसल गजल तँ होइते छै। अर्थात भक्ति गजल एक
तरहेँ " मुस्लसल गजल " भेल।
किछु लोक आपत्ति कए सकै छथि जे गजल तँ दार्शनिक रहिते छै तखन ई भक्ति गजल
किएक ? उचित प्रश्न मुदा हम कहब जे दर्शन आ भक्ति दूनूमे बहुत अंतर छै
जकर चर्चा विद्वान सभ करिते रहै छथि तँए ई भक्ति गजल दर्शन बलासँ अलग
भेल।
तारीखक हिसाबें भक्ति गजलक उत्पति केँ मानल जाएत जनवरी 2012केँ मानल जाएत
जाहिमे जगदानंद झा मनु जीक भक्ति गजल आएल। मुदा ओहूसँ पहिने मिहिर झा
द्वारा एकटा आएल जे ताहि समयकेँ हिसाबसँ ठीक छल मुदा बढ़ैत ज्ञानक सङ्ग
ओहिमे काफिया आदिक दोष बुझना गेल। मुदा भक्ति गजल स्वरूप मैथिलीमे
पहिनेहें फड़िच्छ भए चुकल छल। मैथिलीक प्रारंभिके दौरमे भक्ति गजल
शुरुआत भए चुल छल कविवर सीताराम झा आ मधुप जीक गजलसँ सेहो शुद्ध अरबी
बहरमे। मने 1928 धरि भक्ति गजल पूर्ण रूपेण स्थापित भए गेल छल मैथिलीमे।
तँ एतेक देखलाक पछाति आउ देखी कविवर सीता राम झा आ ओहि समयक किछु भक्ति
गजल---तँ आउ देखी 1928मे प्रकाशित कविवर सीताराम झा जीक " सूक्ति सुधा (
प्रथम बिंदु )मे संग्रहीत एकटा गजलकेँ जे की वस्तुतः " भक्ति गजल "
अछि---
जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल छी
न कैलों धर्म सेवा वा न देवाराधने कौखन
कुटेबा में छलौं लागल तकर फल पाबि बैसल छी
दया स्वातीक घनमाला जकाँ अपनेक भूतल में
लगौने आस हम चातक जकां मुँह बाबि बैसल छी
कहू की अम्ब अपने सँ फुरैये बात ने किछुओ
अपन अपराध सँ चुपकी लगा जी दाबि बैसल छी
करै यदि दोष बालक तँ न हो मन रोख माता कैं
अहीं विश्वास कैँ केवल हृदय में लाबि बैसल छी
एकर बहर अछि-1222-1222-1222-122 मने बहरे हजज
नोट--१) कविक मूल वर्तनीकेँ राखल गेल गेल अछि। विभक्ति सभ अलग-अलग अछि जे
की गलत अछि।
२) कवि द्वारा चंद्र बिंदु युक्त सेहो दीर्घ मानल गेल अछि जे की गलत अछि।
प्रसंग वश ईहो कहब बेजाए नै जे कविवर अपन गजल समेत सभ कवितामे
चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। शायद तँए पं गोविन्द झा जी सेहो
चंद्र बिंदुकेँ दीर्घ मानै छलाह आ जकर खंडन भए चुकल अछि।
ऐकेँ अलावे मधुप जीक भक्ति गजल अछि। विजय नाथ झा जीक भक्ति गजल अछि।
कहबाक मतलब जे अनचिन्हार आखरक आगमनसँ पहिनेहे भक्ति गजल छल मुदा ओकर
नामाकरण ( पहिल रूपमे जगदानंद झा मनु ) अनचिन्हार आखरक पछाति भेल।
वर्तमान समयमे हमरा छोड़ि लगभग सभ गजलकार भक्ति गजल लीखि रहल छथि जेना ,
जगदानंद झा मनु, चंदन झा, अमित मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री, बिंदेश्वर
नेपाली, सुमित मिश्र, श्रीमती शांति लक्ष्मी चौधरी, श्रीमती इरा मल्लिक,
ओम प्रकाश, बाल मुकुन्द पाठक, जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल, मिहिर झा, प्रदीप
पुष्प, अनिल मल्लिक, राजीव रंजन मिश्र इत्यादि-इत्यादि।
ऐ विषयमे आर अनुसंधानक जरूरति अछि ऐ छोट आलेख आ हमर छोट बुद्धिमे भक्ति
गजल एहन विस्तृत वस्तु ओतेक नै आएल जतेक एबाक चाही। ओना हम फेर विदेहकेँ
ऐ विशेषांक लेल धन्यवाद नै देबै कारण हमहूँ विदेह छी आ लोक अपना आपकेँ
धन्यवाद कोना देत।
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गजलक साक्ष्य
हमरा आगूमे पसरल अछि “अपन युद्धक साक्ष्य” तारानंद वियोगीक गजल संग्रह।
चालीस गोट गजलकेँ समेटने। लोककेँ छगुन्ता लागि सकैत छैक जे मैथिलीमे गजलक
आलोचना कहिआसँ शुरू भए गेलैक। ऐ छगुन्ताक कारण मुख्यत: हम दू रूपेँ देखैत
छी पहिल तँ ई जे गजल कहिओ मैथिली साहित्यक मुख्यधारामे नै आएल
दोसर-मैथिल-जन एखनो गजलक समान्य निअम आ ओकर बनोत्तरीसँ परिचित नै छथि।
समान्ये किएक अपने-आपकेँ गजल बुझनिहारक सेहो हाल एहने छन्हि। बेसी दूर नै
जाए पड़त। “घर-बाहर” जुलाइ-सितम्बर 2008ई.मे प्रकाशित अजित आजादक लेल
“कलानंद भट्टक बहन्ने मैथिली गजलपर चर्च” पढ़ि लिअ मामिला बुझबामे आबि
जाएत।
जँ विष्यान्तर नै बुझाए तँ थोड़ेक देरले तारानंद वियोगीक पोथीसँ हटि अजाद
जीक लेखक चर्च करी। ऐ लेखक पहिले पाँति थिक- मैथिलीमे गजल लिखबाक सुदीर्घ
परम्परा रहल अछि.....। मुदा कतेक सुदीर्घ तकर कोनो ठेकाना अजादजी नै देने
छथिन्ह। फेर एही लेखक दोसर पैरामे अजित जी दूमरजामे फँसल छथि। ओ मैथिल
द्वारा समान्य गप-सप्पमे गजलक पाँति नै जोड़बाक प्रथम कारण मानैत छथि। जे
मैथिलीमे शेर एकदम्मे नै लिखल गेल। आब पाठकगण कने धेआन देल जाए। लेखक
पहिल पाँति तँ अपनेकेँ धेआन हेबोटा करत जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ....।”
सभसँ पहिल गप्प जे गजल किछु शेरक संग्रह होइत छैक आ दोसर गप्प ई जे जँ
अजाद जीक मोताबिक शेर लिखले नै गेलैक तँ फेर कोन प्रकारक सुदीर्घ
परंपराकेँ मोन पाड़ि रहल छथि अजादजी। ऐठाम गलती अजाद जीक नै मैथिलीक ओहि
गजलकार सभक छन्हि जे गजल तँ लिखैत छथि मुदा पाठककेँ ओकर परिचए, गठन, निअम
आदि देबासँ परहेज करैत छथि। ओना प्रसंगवश ई कहबामे कोनो संकोच नै जे गजल
कखनो लिखल नै जाइत छैक। मुदा मैथिलीक धुरंधर सभ गजल लिखैत छथि। मूल रूपसँ
अरबी-फारसी-उर्दूमे गजल कहल जाइत छैक लिखल नै। पाठकगण गजलक ई निअम भेल।
आब फेरो अजित जीक लेखकेँ आगू पठू आ अपन कपार पीट अपनाकेँ खुने-खूनामे कए
लिअ। अजित जी अपन संपूर्ण लेखमे जै शेर सभ मक्ता कहलखिन्ह अछि वस्तुत: ओ
मक्ता छैके नै। पाठकगण मोन राखू, मक्ता गजलक ओहि अंतिम शेरकेँ कहल जाइत
छैक जैमे गजलकार (एकरा बाद हम शाइर शब्द प्रयुक्त करब, अहूठाम मोन राखू
शायर गलत उच्चारण थिक।) अपन नाम वा उपनामक प्रयोग करैत छथि। (अहूठाम मोन
राखू हरेक गजलमे नाम वा उपनामक समान प्रयोग होएबाक चाही ई नै जे एकरा
गजलक मक्ता तारानंदसँ होअए आ दोसर गजलक मक्ता वियोगीक नामसँ नामसँ।) मुदा
आश्चर्य रूपेण अजादजी जै शेर सभकेँ मक्ता कहलखिन्ह अछि ओइमे कोनो शाइरक
नाम- उपनाम नै भेटत। ओना अजितजी हिन्दीक सुप्रसिद्ध शाइर छथि तकर प्रमाण
ओ लेखक प्रारंभेमे दए देने छथि।
हँ तँ ऐ लेखक संक्षिप्त अवलोकनक पछाति फेरसँ वियोगी जीक गजल संग्रहपर
चली। तँ शुरूआत करी स्पष्टीकरणसँ, हमर नै वियोगी जीक। सभसँ पहिने ई जे
अन्य मैथिली शाइर जकाँ वियोगीओ जी मानैत छथि जे गजल लिखल जाइत छैक। दोसर
गप्प जे वियोगीजी द्वारा देल अपन भाषा संबंधी विचारसँ लगैत अछि जे भनहि
वियोगीजी उर्दू सीख उर्दूक पोथी पढ़ैत हेताह मुदा गजल तँ किन्नहुँ नै
लिखैत हेताह,कारण, पाठकगण धेआन देल जाए। अरबी-फारसी-उर्दू तीनू भाषाक छंद
शास्त्र एकमतसँ कहैए जे दोसर भाषाकेँ तँ छोड़ू अपनो भाषाक कठिन शब्दक
प्रयोग गजलमे नै हेबाक चाही। ठीक उपरोक्त भाषाक निअम जकाँ मैथिलीओ मे
निअम छैक। तँए महाकवि विद्यापति अपन कोनहुँ गीतमे कृष्ण, विष्णु आदिक
प्रयोग नै केने छथि। मुदा वियोगी जी अपन पोथीक नाम रखने छथि “अपन युद्धक
साक्ष्य”। जनसमान्य युद्ध तँ कहुना बुझि जेतैक मुदा साक्ष्य....। ऐठाम
प्रसंगवश ई कहब बेजाए नै जे वियोगीजी अपनाकेँ अनअभिजात शब्दक प्रयोग
मानैत छथि।
आब हमरा लोकनि ऐ पोथीमे प्रस्तुत चालीसो गजलक चर्च करी। पहिले भाषाकेँ
देखी। ओना वियोगीजी भाषा संबंधी गलती जानि बूझि कए लौल-वश ततेक ने कएल
गेल छैक जकरा अनठा कए आँगा बढ़ब संभब नै। एकर किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि-
दोसर गजलक मतलाक दोसर पाँतिमे दुखक बदला यातना। अही गजलक दोसर शेरक पहिल
पाँतिमे नाराक बदला जुमला। तेसर गजलक दोसर गजलक दोसर शेरक दोसर पाँति
धधराक बदला ज्वलन। अही गजलक अंतिम शेरमे प्रयुक्त तन्वंग, आब एकर अर्थ
जनताकेँ बुझबिऔ। फेर आगू गजलक दोसर शेरमे नजरि केर बदला दृष्टि, दसम गजलक
दोसर शेरमे उन्यक जगह विपरीत। एगारहम गजलक मतलामे दुबिधाक जगह द्धैध।
तेरहम गजलक तेसर शेरमे नेकदिली आ बदीक प्रयोग। तइसम गजलक अंतिम शेरमे
भटरंगक बदला बदरंग। पचीसम गजलक तेसर शेरमे इजोरिआक बदला ज्योतसना। चौतीसम
गजलक मतलामे दुख केर बदलामे पीड़-इत्यादि। ओना ऐ उदाहरणक अतिरिक्त हरेक
गजलमे हिन्दी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाक तत्सम बहुल शब्दक ततेक ने प्रयोग
भेल छैक जे गजलक मूल स्वर, भाव-भंगिमा, रसकेँ भरिगर बना देने छैक। तैपर
वियोगीजी गर्व पूर्वक घोषणा केने छथि जे ओ ओइ परिवारक नै छथि जिनका
संस्कारमे अभिजात शब्द भेटल हो। बिडंबना छोड़ि एकरा किछु नै कहल जा सकैए।
जँ चालीसो गजलक भाषाकेँ धेआनसँ देखल जाए तँ हमरा हिसाबें वियोगीजी ऐ गजल
सबहक मैथिली अनुवाद कए देथिन्ह तँ बेसी नीक हेतैक।
भाषासँ उतरि आब गजलक विचारपर आएल जाए। बेसी दूर नै जाए पड़त-तेसर गजलक
अंतिम शेरसँ मामिला बुझबामे आबि जाएत। सोझे-सोझ ई शेर कहैए जे- लोककेँ
अपन जयघोष करबामे देरी नै करबाक चाही आ काज केहनो करी चान-सुरूजक पाँतिमे
अएबाक जोगाड़ बैसाबी। ओना हम एतए अवश्य कहब जे ई कोनो राजनीतिक विचार नै
छैक जकर स्पष्टीकरण दए-वियोगीजी अपन पतिआ छोड़ा लेताह। ई विशुद्ध रूपे
समाजिक विचार छैक आ ऐ विचारसँ समाजपर की नकारात्मक प्रभाव पड़लैक वा
पड़तैक तकर अध्ययन अवश्य कएल जेबाक चाही। मुदा एहन नकारत्मक विचार ऐ
संग्रहमे कम्मे अछि। संग्रहक किछु सकारात्मक विचार प्रस्तुत अछि। दसम गजल
केर अवलोकन कएल जाउ। निश्चित रूपसँ वियाेगीजी एकरा परिर्वतनीय विचार
रखलाह अछि ई कहि जे-
देस हमर जागत अच्रक एना चलि ने सकत
हारि लिखब झण्डा के आदमीक जीत लिखब।
पाठकगण आजुक समएमे झण्डाक विपरीत गेनाइ सहज गप्प नै। तहिना चारिम गजलक
तेसर शेरक पहिल पाँति- राम राज्यक स्थापना लेल भरत-लक्ष्मण झगड़ि रहला।
कतेक सटीक व्यंग अछि से सभ गोटे बुझैत हेबैक। ओतै आजुक भ्रमोत्पादक
सरकारपर तै दिनमे लिखल अड़तीसम गजलक मतलाक पहिल पाँति देखू-
राजनीति भटकल तँ डूबल मझधार जकाँ।
विचार संबंधी प्रस्तुत उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे सकारात्मक विचार बेसी अछि।
मुदा कहबी तँ सुननहि हेबैक अपने जे एकैटा सड़ल माछ.....।
अस्तु आब ऐ गजल संग्रहक व्याकरण पक्षकेँ देखल जाए। ऐठाम ई स्पष्ट करब
आवश्यक जे मैथिली गजल अखनो फरिच्छ भए कए नै आएल अछि जैसँ हम बहर (छंद)
आदिपर विचार करब। तँए ऐठाम हम मात्र रदीफ आ काफियाक प्रयोगपर विचार करब।
पाठकगण गजलमे रदीफ ओइ शब्द अथवा शब्द समूहकेँ कहल जाइ छैक जे गजलक मतलाक
(गजलक पहिल शेरकेँ मतला कहल जाइत छैक।) दुनू पाँतिमे समान रूपसँ आबए आ
तकरा बाद हरेक शेरक अंतिम पाँतिमे सेहो समान यपे रहए। तहिना काफिया ओइ
वर्ण अथवा मात्राकेँ कहल जाइत जे रदीफसँ तुरंत पहिने आबैत हो जेना एकटा
उदाहरण देखू- दूटा शब्द लिअ, पहिल भेल अनचिन्हार ओ दोसरमे अन्हार। आब
मानि लिअ जे ई दुनू शब्द कोनो गजलक मतलामे रदीफक तुरंत बादमे अछि। आब जँ
गौरसँ देखबै तँ भेटत जे दुनू शब्दक तुकान्त “र” छैक। तँ एकर मतलब जे “र”
भेल काफिया (काफिया मतलब तुकान्त बूझू) तेनाहिते मात्राक काफिया सेहो
होइतैक जेनाकि- राधा आ बाधा दुनू शब्द आ'क मात्रासँ खत्म होइत अछि तँए
ऐमे आ'क मात्रा काफिया अछि। “एहि” आ “रहि” दुनूमे इ'क मात्राक काफिया
अछि। अन्य मात्राक हाल एहने सन बूझू। तँ फेर चली ऐ संग्रहक व्याकरण
पक्षपर- ऐ संग्रहक किछु गजलमे काफियाक गलत प्रयोग भेल छैक- उदाहरण लेल
सातम गजलकेँ देखू। मतलाक शेरमे काफिया अछि “न” (भगवान आ सन्तान)। मुदा
वियोगीजी आगू देासर शेरमे काफिया “म” (गुमनाम) केँ लेलखिन्ह अछि जे
सर्वथा अनुचित। तेनाहिते सताइसम गजलक उपरोक्त “म” काफिया बदलामे “न”
काफियाक प्रयोग।
कुल मिला कए ई गजल संग्रह ओतेक प्रभावी नै अछि जतेक की शाइर कहैत छथि। हँ
एतेक स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नै जे ई गजल संग्रह ओइ समएमे आएल जै
समएमे गजलक मात्रा कम्मे छल। आ शाइर आ गजल संग्रह सेहो कम्मे जकाँ छल।
9
सूर्योदयसँ पहिने सूर्यास्त
"सूर्यास्तसँ पहिने" ई नाम छन्हि राजेन्द्र विमल जीक गजल संग्रहक। ऐ
संग्रहक भूमिका केर अंतिम भागमे विमल जी लिखै छथि जे ई मैथिलीक पहिल
संग्रह अछि जाहिमे 100 ( एक सए ) गजल प्रस्तुत कएल गेल अछि। मुदा हमरा
जनैत 1985मे प्रकाशित गजल संग्रह " लेखनी एक रंग अनेक " जे की रवीन्द्र
नाथ ठाकुरकेँ छन्हि ताहिमे कुल 109टा गजल देल गेल छै आ संगे-संग कता सेहो
छै। तखन विमल जीक ऐ पहिल सन घोषणाकेँ की मतलब ?
ई भए सकैए जे विमल जी एकरा नेपालीय मैथिलीकेँ संदर्भमे लिखने होथि मुदा
तखन तँ आर गड़बड़ ............ कारण विमल जीक ऐ संग्रहमे कुल 4 ( चारि)
टा गजल एहन अछि जे की दोहराएक गेल छै। मतलब जे जँ शुद्ध रूपसँ देखी तँ ऐ
संग्रहमे कुल ९६टा गजल अछि। हमरा विमल जी एहन लोकसँ ई उम्मेद नै छल जे ओ
" पहिल "केँ फेरमे पड़ि एहन काज करताह। इतिहासकेँ अपना फायदा लेल गलत
करताह। आब नेपालक सुधि समीक्षक सभ कहताह जे की बात छै। हमर ई टिप्पणी
मात्र इतिहास शुद्धता लेल छै। गजल संख्या 19 आ 20 एकै गजल अछि। 29 आ 30
एकै गजल अछि। 31 आ 33 एकै गजल अछि। तेनाहिते 56 आ 61 एकै गजल अछि।...
जँ गंभीरता पूर्वक पढ़ल जाए तँ राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रह "
सूर्यास्तसँ पहिने " मे बहुत रास एहन रचना भेटत जे की मात्र गीत अछि गजल
नै। पता नहि चलि रहल अछि जे गीतकेँ गजल संग्रहमे कोन काज
छै।.......................
राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रहमे बहुत रास गीत सभ सेहो अछि। तँ देखल
जाए कोन-कोन गीत अछि---पृष्ठ संख्या--1,2,3,14,19,20,23,27,34,42,आ 47क
दोसर कथित गजल गीत अछि। तेनाहिते पृष्ठ
संख्या--4,7,8,9,10,11,16,18,29,31,32,36,39 पर कथित रचना बिना बहरक गजल
भए सकैत छल मुदा लेखक ओकरा कविता बला ढ़ाँचामे देने छथि। आन कथित गजल सभ
गजलक ढ़ाँचामे अछि तँए हम ई मानबा लेल बाध्य भए जाइत छी जे कविताक ढ़ाँचा
बला सभ कविता अछि। कारण विमल जीकेँ कविताक ढ़ाँचा आ गजलक ढ़ाँचामे नीक
जकाँ अंतर बूझल छन्हि। आ एकर प्रमाण ओ अपन कथित संग्रहमे सेहो देने छथि।
चूँकि ऐ आलोचनाक प्रारम्भिक भाग २०१२क मध्यमे फेसबुकपर देने रही आ तइ
क्रममे एहमर एही आलोचनापर किछु टिप्पणी आएल। ऐ टिप्पणीमे प्रेमर्षि जी
एकरा प्रेसक गड़बड़ी कहलन्हि। चलू ओतए धरि ई बात मानल जा सकै
छै......................मुदा गीत आ कविताकेँ गजल कहि पाठककेँ बेकूफ
बनेबाक आ रेकार्ड बनेबाक सेहन्ता किनका रहल हेतन्हि। आचार्य राजेन्द्र
विमल जीकेँ वा प्रेस बलाकेँ..........................................
तँए जँ कदाचित संख्या बला गड़बड़ी प्रेससँ भेल छै तैयो गीत आ कविता बला
गड़बड़ी तँ विमले जीक छन्हि। दोसर गप्प जे मानि लिअ ई प्रेसक गड़बड़ी छै
आ ऐ संग्रहक सभ रचना गजल अछि तैयो संदेहक घेरामे विमल जी छथि मात्र विमल
जी नै मैथिली गजल ( कथिते बला ) संबंधी ज्ञान सेहो संदेहक घेरामे अछि
कारण जखन १९८५एमे १०९ बला गजल संग्रह प्रकाशित भेलै... तखन विमल जीक
घोषणा मात्र पहिल बला बेमारीक लक्षण अछि। तँ आब चलू कने फेसबुक परहँक ओइ
बहस दिस जे की ऐ आलोचनापर जे की हमरा आ धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक भेल
छल---( हलाँकि ई बहस ऐ ठाम हम ऐ द्वारे दए रहल छी जैसँ पाठक ई बुझथि जे
मैथिलीमे आलोचना नै सहबाक जड़ि कते गँहीरमे गेल अछि)------------
o
Dhirendra Premarshi
अइ बातपर एम्हर बहस भऽ चुकल छै। प्रकाशकक गलतीक कारणे किछु गजलक
पुनरावृत्ति भेल छै। मैथिलीमे ई बड भारी समस्या छै जे लेखनमे जतेक ध्यान
देल जाइ छै तते प्रकाशनक क्रममे होबऽ वला काजमे नइ। जहाँतक इतिहासक जे
बात अछि ताहि सन्दर्भमे शायद अहाँ जनैत हएब जे रवीन्द्रनाथ ठाकुरजीक
पोथीमे गजल कत आ शायरी सेहो सम्मिलित छनि। नेपालक सन्दर्भमे पहिल
सम्पूर्ण मैथिली गजल सङ्ग्रह अवश्य कहल जा सकैए। ओना मिश्रित संग्रहक
रूपमे रामभरोस कापडि आ राजविराजक एक कोनो माझी सेहो गजलक पोथी बाहर कऽ
चुकल छथि।
about an hour ago • Unlike • 1
o
Ashish Anchinhar कता आ शायरी छोड़ि कुल 109टा गजल देने छथिन्ह
रवीन्द्रनाथ ठाकुर। प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका तँ विमले जीक
छन्हि।...
about an hour ago • Like
o
Ashish Anchinhar शायद अहाँ ईहो जनैत हएबै जे कता, रुबाइ आ अन्य शायरी
विधा ( खाली नज्म छोड़ि) गजलक अंतर्गत अबै छै।...
about an hour ago • Like
o
Dhirendra Premarshi
आशिषजी, अहाँ ओइ माध्यमसँ काज कऽ रहल छी जकर सम्पूर्ण नाथ, पगहा अहाँक
हाथमे रहैए। मुदा छापा माध्यम एहन होइ छै जइमे अहाँक सभ कएल धएल पानि भऽ
सकैत अछि जँ प्रेसमे काज कएनिहार किछु गडबड कऽ देलक तँ। भूमिका बाँकी सभ
चीज छपि गेलाक बाद नइ भऽ सामान्यतया आरम्भेमे लिखल जाइ छै। विमल सर सएटा
गजल आ तदनुरूप भूमिका लीखिकऽ छापऽ लेल देने रहखिन। प्रकाशनमे संलग्न
व्यक्तिसभ मेहीँ आँखिएँ नहि देखि सकल हेथिन आ किछु गजलक पुनरावृत्ति भऽ
गेल हेतै। अहाँक जानकारीक लेल कहि दी जे ई गलती सभसँ पहिने हमरा विमले सर
देखौलनि। आब अहाँक कहब ई जे जखन अइ तरहेँ गलती भऽकऽ आबि गेलै तँ की विमल
सर सभ किताबके जरा दितथिन? क्यो व्यक्ति जँ तकनिकी आ शारीरिक रूपेँ सभ
कार्य स्वयं करबामे सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब ई नइ होइ छै जे ओकर कोनो
एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा लुलुआ देल जाए। अहाँक जानकारीक लेल इहो कहि दी जे
विमल सरक दू सयसँ बेसी गजल जहिँतहिँ छिडिआएल पडल हेतनि। हँ, जँ अहाँके
किछु कहबाके छल तँ ओइ पोथीक भूमिकाक सन्दर्भमे कहि सकैत छलियैक जे बहुत
विद्वतापूर्णसन देखल जाइतहुँ पोथीमहक गजलसभसँ तादात्म्य स्थापित नहि कऽ
पबैत अछि।
51 minutes ago • Unlike • 1
o
Ashish Anchinhar अहाँ एकरा गलत संदर्भमे लए रहल छिऐ। ई मात्र इतिहास
शुद्धता लेल छै। व्यतिगत रूपसँ ऐमे हम किछु नै कहि सकैत छी।..
41 minutes ago • Like • 1
o
Dhirendra Premarshi अहाँके पल्लवक गजल अंक भेटल?
37 minutes ago • Unlike • 1
o
Dhirendra Premarshi जखन अहाँ 'प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका
तँ विमले जीक छन्हि।' लिखबै तँ ओकर आशय गलते लगै छै। अभियानीसभकेँ बहुतो
बातक अन्तर्वस्तुकेँ सेहो बूझैत इतिहासक शुद्धिकरण करैत चलबाक चाही।
37 minutes ago • Unlike • 1
ऐ वार्तालापसँ एकटा गप्प ईहो निकलैए जे प्रेमर्षिजीकेँ गजल परम्पराक कोनो
जानकारी नै छन्हि। अरबी-फारसी-उर्दूमे " दीवान " शब्दक प्रयोग कएल जाइत
छै जैमे गजल, कता, रुबाइ, नज्म आदि सभ रहै छै। जेना दिवाने गालिब ( मने
गालिब केर एहन संग्रह जैमे गजल, कता, रुबाइ, नज्म आदि संग्रहीत छै,
तेनाहिते दीवाने मीर, दीवाने नासिख, आदि भेल। हँ, आधुनिक युगमे किछु
उर्दूक गजलकार सभहँक एहनो दीवान अछि जैमे खाली गजल छै। मुदा तँए अहाँ ई
कहि देबै जे नै खाली पोथीमे गजले रहबाक चाही तँ से कतौसँ उचित
नै.......... एकटा गप्प आर प्रेमर्षिजी विमलजीक समर्थनमे एते धरि कहै छथि
जे.." क्यो व्यक्ति जँ तकनिकी आ शारीरिक रूपेँ सभ कार्य स्वयं करबामे
सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब ई नइ होइ छै जे ओकर कोनो एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा
लुलुआ देल जाए। " आब ई देखू जे जँ ऐ अधारपर हम विमलजीकेँ जँ लुलुआ
(आलोचनाकेँ हम लुलुएनाइ नै बूझै छी ई प्रेमर्षिजीक विचार छन्हि) नै सकै
छी तँ फेर मात्र एकटा अधारपर प्रेमर्षिजी रवीन्द्रनाथ ठाकुरकेँ इतिहाससँ
बाहर किएक क' देलखिन्ह? ऐ प्रश्नक उत्तर हम मात्र भविष्यसँ चाहै छी।
ऐ वार्तालापकेँ कात करैत हमरा लोकनि फेर चली विमल जी पोथीपर।
विमलजी अपन पोथीमे गजलक परिभाषा, तत्व, बहर आदिक वर्णन केने छथि (मुदा
अपूर्ण रूपसँ खास क' बहरक लेल)। ओना ई विवरण अनचिन्हार आखरपर २००९सँ
प्रकाशित छै आ विमल जीक ई पोथी २०११मे आएल छन्हि। विमलजी स्वयं इंटरनेट ओ
फेसबुकपर छथि। मुदा विमलजी द्वारा देल गेल विवरण पढ़लापर ई प्रश्न अबैत
अछि जे पोथीक भित्तर देल गेल गजल सभमे ई बहर, तत्व आदि किएक नै अछि ? एकर
बहुत रास कारण भ' सकैए मुदा हमरा बुझने सभसँ प्रमुख कारण छै जे मात्र
विद्वता देखब' लेल ई विवरण कतौसँ सायास लेल गेल छै ( मने ईंटा किनको,
सीमेन्ट किनको आ घर बनल विधायक जीक)। तँए भूमिकामे देल गेल विवरण आ
भित्तरक गजल सभमे दूर-दूर धरि ताल-मेल नै बैसैए।
ऐ पाँति धरि अबैत-अबैत अहाँ सभ बूझि गेल हेबै जे ऐ गजल संग्रहमे बहुत
झोल-झाल छै। मात्र व्याकरणक दृष्टिएँ नै नैतिक दृष्टिकोणसँ सेहो। ओना जँ
भावना आ व्याकरण ठीक रहैत तँ ऐ संग्रहक किछु गजल नीक बनि पड़ैत जेना की
५३म गजल, ८३म गजल आदि। किछु गजल नीक जकाँ नेपालक राजनीतिकेँ घेरने अछि तँ
किछु गजल पूरा मैथिली समाजकेँ । भाव आ बिंब तँ प्रायः मैथिलीक हरेक लेखकक
नीक रहैत छनि तँ हिनकर किए खराप हेतन्हि। हिनको भाव पक्ष नीक छन्हि।
10
मैथिली गजलक वर्तमान
अनचिन्हार आखरक जन्मसँ पहिने (इंटरनेट पर) किछु गजलकार, समालोचक सभपर
आरोप लगबैत छथि जे ओ गजलकेँ बुझि नै सकलाह। मुदा हमरा बुझने आलोचक सही
छथि आ गजलकार गलत। कारण मैथिलीक किछु तथाकथित गजलकार सभ अपने गजलकेँ नै
बूझि सकलाह। जकर परिणति अबूझ शेर सबहक रूपमे भेल। आ स्वाभाविक छै जे
एहन-एहन गजलकेँ आलोचक नकारबे करतथि।
वर्तमान गजल-- अ.आ. (अनचिन्हार आखर) क बाद गजल अबूझ नै रहल। से हम किछु
शेरक उदाहरणसँ देब।
1)
कोनो राजनीतिक पार्टी हो सभहँक स्थितिकेँ परखैत मिहिर झा कहैत छथि---
छोड़ि दिऔ हाथ देखिऔ केम्हर जाइ छै
जेतै तँ ओ उम्हरे सब जेम्हर खाइ छै
कुन्दन कुमार कर्णजी कहै छथि--
नेताक भेषमें सभ कामचोर छैक
तामससँ लोक देशक तेँ अघोर छैक
मुदा एकर परिणाम की भेलै सेहो कहै छथि कुन्दन जी--
चुल्हा गरीबके दिन राति छैक बन्द
जे छैक भ्रष्ट घर ओकर इजोर छैक
ककरा करत भरोसा आम लोक आब
निच्चा अकान उप्पर घूसखोर छैक
आ जखन सभ मसिऔते छै तइकेँ कुन्दन जी एना कहै छथि--
आलोचना करत 'कुन्दन' कतेक आर
जे चोर ओकरे मुँह एत जोर छैक
ओमप्रकाश जी राजनीतिकेँ एना देखै छथि--
टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए
बहुत मेहीं रूपसँ ओमप्रकाश जी आजुक राजनीति केर वास्तिविकता आ परिणामकेँ
एकै शेरमे देखा गेल छथि। खेल भ' रहल छै मुदा सभ अकान बनल अछि आ ओमप्रकाश
जी टाहि द' रहल छथि---
निर्जीव भेल बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक जान लेतै
आ टाहिए देब असल गजलकारक धर्म थिक। मुदा जँ टाहिए देबए बला चोर हो त?
त एहन परिस्थिति बेसी दिन बरदास्त नै कएल जा सकैए आ तँए ओम प्रकाश जी कहैत छथि---
मान-अपमान दुनू भेटै छै, ई मायाक थीक लीला,
अन्याय केँ सदिखन दी मोचाड़ि, यैह थीक जिनगी।
श्रीमती इरा मल्लिक जी अइ स्थितिकेँ एना क' देखै छथि--
बाट जाम होय कि मगज विकास रुकबे करत
बेइमान हो नेता ते, देश के नैया डूबबे करत
एही स्थितिपर स्वाती लाल जीक विचार देखू--
समाज केना सहि रहल छै तालिबानी पाएर पसारैत देखलौं
निर्दोष सब के खून स ओकरा अपन पियास बुझाबैत देखलौं
आन'क घर के "भगत" शहीद होय देश राग हम गाबैत देखलौं
शहीद सब के लास पर चढि क’ ओकरा कुर्सी पाबैत देखलौं
फेर स्वाती जी ऐ स्वरकेँ अकानै छथि--
सीता के गुण गान करै छि केलहुँ हुनके कात किनार
चिर हरण देखैत रहलौं बैसल रहलौं भs लाचार
बाट चौबटिया जत्तै देखू आदर्श के छि प्रतिरुप अहां
स्त्री जाती सँ धर्म अपेक्षित कर्म करै त होय प्रहार
2)
विस्थापित भ' क' जीब कठिन। विस्थापित लोकक दुख जगदानंद झा मनु जीक स्थायी दुख छनि—
सोन सनक घर-आँगन, स्वर्ग सन हमर परिवार
छोड़ि एलहुँ देस अपन दू-चारि टकाक बेपार पर
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
कोना अहाँकेँ घुरि कहब आबै लेल
बड़ दूर गेलहुँ टाका कमाबै लेल
3) एही समाजक एकटा आर पहलू पर उमेश मंडल कहैत छथि---
कियो ककरो नहि देखैए ऐ समाजमे
मोने मन झगड़ाइए चलू घुरि चली
4) आधुनिक मीडिआपर क्रूरतम प्रहार करैत मैथिलीक दोसर मुदा सक्षम महिला
गजलकार श्रीमती शांतिलक्ष्मी चौधरी कहैत छथि---
पापक पराकाष्ठामे जन्मै श्रीकृष्ण
मीडिआ छथि जागल कंसक भेषमे
आ एतबहि पर नै रुकैत छथि। आ फेरो कहैत छथि---
सोसल साइट पर करैत छै सेंसर के दाबी रे भाय
अभिव्यक्तिक स्वच्छंद साँढ़ मुँह बन्हबै की जाबी रे भाय
5) प्रेम आ प्रेम जनित वेदना गजलक प्रमुख अंग थिक। बिना एकरा गजल झुझुआन
लागत। वर्तमान गजलमे इहो भेटत। राजीव रंजन मिश्रजी कहै छथि—
चान राति सन सजल मुस्कान हुनक मारुक
जान प्राण हति रहल मुस्कान हुनक मारुक
आ इएह प्रेम जँ परिपक्व भऽ जाए तखन त्रिपुरारी कुमार शर्मा जीक शेर जन्मैए---
आँखि मिला कऽ हमरा सँ राह पकड़ लेलि अहाँS
कोना कटै अछि दिन आब रचना गवाह अछि
हमर मिहिर झा जीकेँ बूझल छन्हि जे ई वेदना किएक छै तँए ओ कहैत छथि--
हमरा अहाँ तोड़लहुँ सपना बुझि कऽ
हमरा अहाँ छोडलहुँ अपना बुझि कऽ
मुदा एतबो भेलाक बादो मैथिली ओ भाषा थिक जाहिमे विद्यापति सन कवि भेलाह।
विद्यापति आशावादक सभसँ बड़का कवि छथि। आ हमर ओम प्रकाश जी एही आशाकेँ
पकड़ि कहैत छथि---
झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।
अमित मिश्रा जी कहै छथि--
तरेगण लाख छै तैयौ नगर अन्हार रहिते छै
बरू छै भीड़ दुनियाँमे मनुख एसगर चलिते छै
आशा आ संघर्ष एक दोसराक पूरक छै--- तँए कुन्दन कुमार कर्ण कहै छथि--
बुझि संघर्ष जियबै जखन
जिनगी शान अभिमान छी
दार्शनिकता गजल स्थायी भाव छै--- हम ऐ पक्षकेँ राजीव रंजन मिश्र जीक शेरसँ देखाएब--
ऐ उदास मोनक हाल के बुझत
ओलि सभकँ सभ सभतरि सधा रहल
चंदन झा बिल्कुल नव भावमे ऐ दार्शनिकताकेँ अकानै छथि--
नैनक काजर पर मोहित छै सगरो जगत
जड़ैत डिबियाकेर मोनक मरम के बुझत ?
जँ अहाँ मैथिल छी ताहूमे साहित्यकार आ जँ बाढ़िक दर्द नै भेल तँ अहाँक
मोजर सुन्ना। मुदा गजल ऐ दर्द के नीक जकाव देखर केलक आ राजीव रंजन
मिश्रजीक अवाजमे बाजि उठल---
पूजल देवी सरिस मानि लोक धरि कपार
कहियो कोशी त' कहियो बलान मारि गेल
साम्प्रदायिकता लेल राजीव रंजन मिश्र जीक बयान छनि--
नै राम रहीमक झोक रहय
नै वेद कुरानक टोक चलय
जँ गप्प मिथिला आंदोलन हुअए तँ गजल ओहूमे पाछू नै हटल। आगू बढ़ि पंकज
चौधरी नवल श्री कहै छथि--
मैथिली भाषा अपन अछि
मैथिलक बड़ पैघ तागत
एकता मैथिल जँ राखब
सुतल मिथिला फेर जागत
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पकडू रेल चलू दिल्ली
भरबै जेल चलू दिल्ली
धरना देब करब अनशन
मिथिला लेल चलू दिल्ली
क्रांतिक धार "नवल" बहलै
लड़बा लेल चलू दिल्ली
कुल मिला मैथिली गजल पूरा-पूरी विकसित भ' गेल अछि आ ई कोनो भावकेँ व्यक्त
करबामे समर्थ अछि (ऐ लेखमे मात्र हम गजलक उदाहरण देलहुँ अछि। बाल गजल आ
भक्ति गजल बाँकिए अछि।)। जकर बानगी उपरक उदाहरण सभमे देखल जा सकैए।
मैथिली गजलक भविष्य पर हमर कोनो टिप्पणी नै रहत कारण हम कोनो ज्योतिषी नै छी।
आ अतीतो पर नै कहब कारण ई सभकेँ बूझल छैक। ओना मंजर सुलेमानक आलेखक बाद
मैथिली गजल निश्चित रूपे पाछाँ गेल (जीवन झासँ पाछाँ) जे स्वागत योग्य
अछि।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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