कामिनी कामायनी
संग दिअ
सदिखन अहिना
संग दिअ
सदिखन अहिना ॥
आहाँ कहैत छी जी
लेबै त /
बिसरि जायब
ओही गड़ैत क्षण के ।
अगिन ,पहाड़ ,खोह ,खधिया,/
बड़,पीपर ,ताड़ , आ पिच्छड़ी/
चढ़ल जतय स ,पिछड़ि गेलहू फेर
/
नित दिवसक अपमान
भेटल बस /
भरि पायल संसार
स मन त /
पड़ा रहल छल
स्वास अगाड़ी/
तड़फ़ैत खसल जल
बिन मच्छरी/
जरैत रौद /सुलगैत धरती /
खलिए पएर,होश से गुम छल/
करी ने सकल
विश्राम कनिकबो /
चलबा लेल उध्यत
सदिखन /
चलईत जिमहर नेने
मोसाफ़ीर /
कठपुतरी छल ,जानै कक्कर/
मूक, बधिर सन ,बढ़ैत चलै छल /
तजि रहल छल ,संग जे तन के /
बांधी रहल
ओकरा मन बलजोरी /
किन्तु एक क्षण
एहेनो आयल /
लागल डेग बढ़त नहि एको
/
चट्टान लग खसल
पड़ल त /
दूर ठाढ़ दरिया
मुसकायल /
गरा सुखि अवरुद्ध
पडल छल /
अयलहू अहा सनेस
नेने कीछु/
कहलहू अमृत रस
अछि पी लू /बिसरि
जाऊ पाछा के बाट सब /
आगा के क्षण हसी
का जीबू/
संग देब हम क्षण
क्षण अहा के /
तखन हमर हिम्मत
छल घूरल/
देव दूत संग सुख
सब पाओल /
अहिना चलै चलाबू
नैया/
गाबी हम झुमरि
जी भरि के ।।
दुखन प्रसाद यादव
छीनाझपटी
मारि-काटि
बढ़ि रहल दिन-दिन
छीनाझपटी जारी
बुढ़िया-जुअनकीकेँ
की कहूँ बुच्चीओक दिन छै भारी।
की कहियौ दाइ मन होइए नै जीबी मरि जाइ
कियो ने बँचतै आइ टोल-पड़ोसीया सभ भुताह छै आइ।
बरहम देवक कठघारा टुटल दबाइ-उबाइ भेल चाेरी
मोहम्मदोक कठघारा टुटल लूटल मशीन-तिजोरी।
मोटर साइकिल घरसँ उठै छै शिक्षक पिटाइ खाइए
बैंक-तिजोरी
माल-खजाना
थाना आइ लूटाइए।
सरकारोक हाल छै खसता केकरा के देखैए
ओसामा बीन लाखो-हजारो बन्दुक छतियबैए।
रक्षक-भक्षक
आइ लगैए केना कऽ जीबै दइया
अन्ना-केजरीवाल
की करता सभसँ पैघ रूपैआ।
नेता-मंत्री
सभ भ्रष्ट छै सभ भऽ गेलै चोरे
सुपर बौस तँ सुपर चोर अछि जेकर सभठाॅ सोरे।
चौदह-चौबीस
नौजवान सभ दिशाहीन भऽ गेल अछि
बकरी-पठरू खा
खा सभ कोइ साँढ़ भऽ ढेकरैत अछि।
शिक्षिकाक अपहरण होइत अछि रेप सरेआम भारी
बुच्चिया-बुचनी
लूटल जाइत अछि देखत के लचारी।
पुलिस-आॅफिसर
सभ देखैए छै विडम्बना भारी।
सभकेँ अपन लिअए पड़त अपन जिम्मेदारी
की कहियौ भाय चन्द्रशेखर लक्ष्मीवाइ बनही आइ।
अजादी सबहक जान छै
जन्मसिद्ध अधिकार हमर अजादी सबहक जान छै
लोकतंत्रक धरोहरि छै तिलकक पैगाम छै।
सोनाक चिड़ियाँ छल भारत विदेशोक नजरि गड़ल
फूटा-फूटा कऽ
हमरा लूटलक गुप्तक बगिया उजड़ल।
पाँच सए बरख यवनक शासनसँ सभठाम कोहराम मचल
दू सए बरख फिंरगी हमरा लूटि-लूटि बरबाद केलक।
सोना-चानी
कच्चा मालसँ भरल खजाना खाली छै
ओकरा पाटैमे अखनि धरि देखियौ तँ तंगहाली छै।
अठारह सए संतावनमे सिपाही विद्रोह भेलै
बेरहम अंग्रेज कहूँ की कनेको ऐसँ झुकलै।
गाँधीबाबा आन्दोलन सत्याग्रह देशमे जब पजरल
शहर-गाम आ
चौराहा सभठाम सबहक भृकुटी तनल।
भीतर आन्दोलन बाहर नेता जीक फौजक तान छै
‘अंग्रेज
भारत छोड़ू’ नेहरूचाचाक
पैगाम छै।
चन्द्रशेखर, खुद्दीराम
बोस, पीर अली
शहीद भेलै
जालियाबाला बागमे शहीद खूनक नदी बहि गेलै।
मजरूल हक जय प्रकाश,
लोहिया जीक योगदान छै
राजेन्द्र बाबू, मोतीलाल, बाबा साहैबक
प्रतिदान छै।
पनरह अगस्त उन्नैस सए सैतालीस भारत अजाद भेलै
लालकिलासँ नेहरू चाचाक शांतिक संदेश भेलै।
जाति-पाति-मजहबसँ उठि कऽ
हमरा सभ एकजूट रही
फूट-टूटसँ
देश बँचा कऽ भारतकेँ मजगूत करी।
डाक्टर कलाम, जगदीश
चन्द्र, भाभाक
तँ बस काम छै
बढ़ू खूब आ देश बँचाबू महा शक्तिए हमर मुकाम छै।
बिहार अछि सिरमौर धरा केर
बिहार अछि सिरमौर धरा केर महिमा एकर महान छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
लोकतंत्रक जन्मभूमि लिच्छवीकेँ हम सभ मानै छी
जनप्रिय सिरमौर कवि विद्यापतिकेँ हम जानै छी।
नालन्दा केरि वर्णनमे यात्रीक फहियानक नाम छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
मण्डन मिश्र भारती जीकेँ देश-विदेशमे चर्चा छै
प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू कहू केकर नै अर्चा छै।
स्वतंत्रताक आन्दोलनमे बिहारक बड़ जोगदान छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
अंग्रेजक सिरदर्द वीर कुंमरक नै केतौ जोड़ा अछि
योगेन्द्र शुक्ल बटुकेश्वर दत्त माए भारतीक तोड़ा अछि।
खुद्दी राम बोस शदीह पीर अली वीर सपूतक गाम छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
राजकुमार लोकनायक जेपी लालू नितिशक गाम छै
अनुग्रक श्रीकृष्ण कर्पूरी बाबू जगजीवन राम छै।
अब्दूल बारी मजरूल हक विधान चन्द्रक पैगाम छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
सच्चिद्दा नन्द चन्दा झा ललित बाबूक बिहार अछि
बी.पी.मण्डल सूरज
बाबू भोगेन्द्र बाबू प्रयाग अछि।
यात्री दिनकर रेणुजीकेँ हम सभ दिनसँ जानै छी
हरिमोहन मणिपद्म जगदीश मण्डलकेँ पहचानै छी
प्रभाकार डी.पी.यादव जुगनु जकाँ
करैत प्रचार छै
गौतम वर्द्धमान महावीर विदेहक जे धाम छै।
दुखन प्रसाद यादव
सम्पर्क-
गाम-पोस्ट, धबही, भाया- नरहिया
थाना- लोकही, जिला- मधुबनी
पिन- ८४७१०८ (बिहार)
सुबोध कुमार ठाकुर, चाकरी- सी.ए., हैंठा-बाली (मधुबनी)
केकरा सँ कहबै
रससँ भरल मन,
पानिसँ भरल मेघ भेल कारी रंग,
बरसत कहिया,
हमरो मनक आस पुरत कहिया?
नै प्यासले रहल,
आ नै प्यासे मरल,
अर्द्ध-फुलाएल
रहल मनक बगिया,
हमर प्यास मिझाएत कहिया?
रंग-बिरंगक
सपनासँ अछि सजल नैना,
केकरासँ कहबै एतेक बियाना,
के पढ़त हमर मनक सेहन्ता भरल पतिया,
केकरासँ कहबै एतेक बतिया
ओम प्रकाश
गजल
१
आइ किछु मोन
पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै
फेरसँ किए
टाल लागल लहासक
खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै
फेरसँ किए
आँखि खोलू, किए छी
आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै
फेरसँ किए
चान शोभा बनै छै
गगनक सदति
चान नीचा उतरलै
फेरसँ किए
"ओम" जिनगी अन्हारक
जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै
फेरसँ किए
- ओम
प्रकाश
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक
पाँतिमे
२
कहियो तँ हमर
घरमे चान एतै
नेनाक ठोर बिसरल
गान गेतै
निर्जीव भेल
बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक
जान लेतै
मानक गुमान धरले
रहत एतय
नोरक लपटिसँ
झरकिकऽ मान जेतै
सुर ताल मिलत
जखने सभक ऐठाँ
क्रान्तिक
बिगुलसँ गुंजित तान हेतै
हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ
छोडब किया, कियो की
दान देतै
- ओम
प्रकाश
(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)
(मुस्तफइलुन-मफाईलुन-फऊलुन)- प्रत्येक
पाँतिमे एक बेर
गंगेश गुंजन
नेता जी बकवास करै छथि
जीहे टा ओ पेटक पाछू
यथा जमीनो नाश करै छथि
कहता हरदम काज बहुत छनि
किछुओ टा ने खास करै छथि
जेहने नेता तेहने जनता
पाँच बर्ख अवकाश करै छथि
भोटजोगाडू राजनीति में
सब कर्मक अभ्यास करै छथि
अज्ञानी पब्लिक सुनि रहले
नेता जी बकवास करै छथि
लोक ठकयला जाही ठक सँ
तकरे फेर विश्वास करै छथि
झरकल जनजीवन अकाल मे
नेताजी मधुमास करै छथि
लोकक हृदयक हरियर धरती
सपना सँ आकाश करै छथि
नव गुलामीक बेधल गुंजन
मुक्तिक फेर प्रयास करै छथि
राजदेव मण्डल
स्वरमे
बास
एक दिन
आएल रही अपने काम
सुनने
रही अहाँक नाम
कल्पित
छल जे मनमे रूप
दरस भेल
छल अधिक अनूप
मनमे
उठैत रहल आह
परबशताक
बेड़ीमे कटैत काह
जाए
पड़ल दूर संग रहल छाह
पुन: एलौं, नै छेलौं
बेपरबाह
केतौ ने
चलि रहल पता
अहाँ
केतए भऽ गेलौं निपत्ता।
लोक
कहैत अछि-
अहाँ
उड़ि गेलौं आसमानमे
डूमि
गेलौं शून्यक महागाणमे
खोजि
रहल छी बेर-बेर आबि
बेचैन
छी दरस नै पाबि
ताकि
रहल छी मेघ बनि अकासमे
अहाँ निश्चय
हएब अहीठाम आस-पासमे
जे स्वर
हएत लग-पास
ओहीमे
हएत अहाँक बास
अहाँ नै
भेटब किन्तु भेटत अवाज
जे खोलि
देत अहाँ सभटा राज।
डायरीक
पन्ना-१
बनेलौं
एकटा महल
जइमे
छुच्छे पैसा गहल।
खन-खन पैसाक खनक
शान्ति
उड़ि गेल सुनिते झनक
परेम किअए
दुख सहत
ओ किएक
असगरे रहत
दुनू
भागि गेल
हमर
सुतल आँखि जागि गेल
मात्र
पैसा खन-खना रहल
अछि
हमरा
पाछू गनगना रहल अछि।
राति-दिन केने
परेशान
अकच्छ
भऽ गेल हमर कान
सुतलोमे
सुनैत छी वएह तान
जगलोमे
िनकलए जान
तँए हम
भागि रहल छी
किन्तु, कहाँ जागि रहल
छी?
डायरीक
पन्ना-२
एकर की
होएत जाँच
ई तँ
पूरा-पूरी छै
साँच
तँए ने
भेल बेपरवाह
नै चाही
कोनो गवाह।
यौ सुनि
लिअ राज
ऐसँ नै
चलत काज
केहनो
अछि बात
अहाँक
चाही संग-साथ
लगा देत
कोनो लाथ
किन्तु, नै बनत बात
केतबो
होएत साँच
लगि
जाएत नाच
जनबाक लेल
करबे
करत जाँच
केतबो
चिचियाएब
निकलैत
रहत आह
साँचोक
लेल
दिअ
पड़त गवाह।
डायरीक
पन्ना-३
हमर इतिहास
अछि हमरे पास
जइमे
देखि सकै छी
हम अपन
धरती
आ अपन
अकास
अपन सिरजन
आ अपन नाश।
पूर्वजक
कएल काज
छीनल आ
छिनाएल ताज
राखब गिन-गिन
बरख, मास आ दिन
नीक
अधलाह जे केने छी काम
से नै
अछि दोसरठाम
सभटा
हमर भूत
बनि-बनि दूत
अछि
हमरे पास
हमर इतिहास।
डायरीक
पन्ना-४
केतेक
गोट केलक सुधारैक प्रयास
अन्तमे
टूटि गेल सबहक आस
केते
उपाए लगबैत रहल पल-पल
सभ भऽ
गेल अन्तमे असफल
हारि
कऽ हमरा छोड़ि देलक
ऐ काजसँ
मुँह मोड़ि लेलक
हुअए
लगल चारूभरसँ आघात
ठोकरसँ
भऽ गेलौं कात
बिलटि
गेल सभ राज-काज
हँसैत
अछि आब सकल समाज।
आबो जँ
नै करब सुधार
डूमि
जाएत घर-पलिबार
सोचैले
भेलौं नाचार
समए
कहैए आब करू विचार
सोचै छी
जँ ऐ दिस
लाजसँ
झूकि जाइत अछि शीश
नै छै
दोसर कोनो आधार
स्वयं
कऽ सकै छी अपन सुधार।
डायरीक
पन्ना-५
जेतए
केतौ गेलौं कोनो निमित्त
होइत
रहल हमरे जीत
केलौं
चढ़ाइ देर-सवेर
जीतते
रहलौं बेर-बेर
हमरा
सोझा सभ गेल हारि
संबन्धी
सभकेँ देलौं तारि
सबहक
गाड़ल खुट्टाकेँ देलिऐ उखाड़ि
हमर
धक्का के लेत सम्हारि
नामक
डंका बजए लगल
हमरे
बातपर सभ चलए लगल
ठमकि
गेलौं अपने लग आबि
कोनो
थाह नै रहल छी पाबि
हमरा
सामने सभ गले हारि
हम
गेलौं अपनेसँ हारि।
डायरीक
पन्ना-६
कुरसीक
पौआ पीठमे गड़ल
हम छी
बेकूफ जकाँ पड़ल
कहिया
ई पीठपर सँ हटत
कहिया
ई भार घटत
अपन दुख
केकरा कहब
आब केते
कष्ट सहब
जानवर
सन कुरसीक खुर
केने
जाइत अछि पीठमे भूर
हटा दिअ
निसाँस लेब
आबो नै
खड़ा हुअए देब
उठि आब
हम ठाढ़ हएब
समैकेँ
एना नै गमाएब
ठाढ़
होइते कुरसी टुटत
भऽ सकैए
माथो फूटत
भीतरसँ
उठि रहल रोष
हमरा नै
देब पाछू दोष
आब नै
हम सुतले रहब
नै एना
झुकल रहब।
डायरीक
पन्ना-७
केतेक
खोजलौं श्रेष्ट मीत
जे करत
हरपल हित
पुरान
छुटैत रहल
नव-नव भेटैत रहल नित।
सभ अपने
स्वार्थे परेशान
गबैत
रहैए अपने गान
अपनेमे
जँ एतेक डुमत
केतएसँ
रखते प्रीतक मान।
किन्तु, आइ भेटल हमर
श्रेष्ट मीत
जे हमरे
भीतर गबै छल गीत।
डायरीक
पन्ना-८
रहै छल
जे संग-साथ
करै
छेलौं ओकरासँ बात।
“चोटाह छै ई राह
ई गाछी
छै बड़ भुताह।”
पूरा
डरा गेल छल लोक
बाट
चढ़िते धऽ लइ छेलै शोग
हम
छेलौं पूरा निडर
लोककेँ
भऽ गेल छेलै डर
अन्हार
होइते काँपै थर-थर
सबेरे
भागि जाइत छल घर।
भऽ गेल
छै आइ अबेर
अन्हरिया
लेने छै रस्ता घेर
भरल
मेनमे विकार
बनि नव-नव अकार
आगू शब्द
गन-गन
राति
भेल सन-सन
लोककेँ
डरबैत छेलौं
आइ
हमहूँ डरा गेलौं
बीच
बाटमे भुतही गाछी
आइ
हमहूँ घेरा गेलौं।
डायरीक
पन्ना-९
हिल-मिल फेर
फुलवाड़ी
लगा दियौ
यौ
रंग-रंग बिरंगक
पुष्प सजा दियौ यौ
एक-एक गाछक अपन इतिहास
छै
एक-एक फूलक अपन
सुवास छै
सुगंधसँ
चारूभर गमका दियौ यौ
हिल-मिल......।
सभमे एक
जान छै
एक तान
छै
सभमे एक
मान छै
सभमे एक
गान छै
सूखलकेँ
जलसँ पटा दियौ यौ
हिल-मिल......।
सभमे एक
उल्लास छै
सभमे रस
छै आ रसाभास छै
मौलाइलकेँ
फेरसँ हरिआ दियौ यौ
पवन
संगे पुष्पकेँ नचा दियौ यौ
हिल-मिल......।
केतए छी
हम
सैकड़ा
नहि हजारक हजार
भरल छै
भूतसँ बजार
कीनैत-बेचैत मनुखक
मासु-हाड़
किछु
चिचिआइत किछु खसौने घाड़
किछु
अछि शान्त किछु करए तकरार
किछु
हँसैत आ किछु कनैत जार-जार
दाँत-मुँह चमकाबैत
तुरंते
भऽ जाइत अछि पार।
हम
नुकाएल छी ओहीठाम
जेतए सभ
किछुक लगि रहल दाम
नोंचि
नेने अछि ओ सभ
हमरा
देहक मासु-हाड़
अंग-अंग छोड़ा कऽ
कऽ देने
अछि तार-तार
नेने
हाथमे हाड़
हँसैत
अछि बेसम्हार
हम देखै
सभ किच्छो
कानै छी
जार-जार।
अजगर
ससरैत
अछि सर-सर
हमरे दिस
ई अजगर
नेने
हमरे देहक नाप
मुँह
बौने अजगर साँप
भुखाएल
छै तन
कामनासँ
भरल मन
एकरा के
रोकि सकत
के
बीचमे टोकि सकत
तीव्र
छै गति
चढ़ल छै
कुमति
बँचैले
चलए पड़त चाल
नै तँ
निश्चय धऽ लेत ई काल
करए पड़त
कोनो उपचार
नै तँ
हमरा घोंटि मारत ढेकार
मुँहसँ
नै फुटए बकार
बढ़ा
लेलौं अपन देहक अकार
गिरत
हमरा तँ फटतै पेट
मुइल
बापसँ हेतै भेँट।
अकासमे
ठाढ़ पंछी
अकासमे
उड़ैत पंछी अँटकि गेल अछि
जेना
मतिभ्रम भेलासँ ओ भटकि गेल अछि
चला रहल
अछि पाँखि
एकटक
तकैत आँखि
जोर
लगौने बढ़बाक लेल
मंजिलपर
चढ़बाक लेल
ने आगू
बढ़ैत अछि ने पाछू
भऽ गेल
अछि थीर
बन्हा
गेल सभ शक्ति
लगि गेल
केहेन पीर
कहि रहल
ओकर मति
जे हम
बढ़ि रहल छी अपने गति।
एकटक
तकैत आँखि आ मन
आकि
हमहूँ बनि गेलौं ओकरे सन?
बीआ केर
पता
सोचैत-सोचैत फाटए हीया
केतए
भेटत ऐ गाछक बीआ।
ई अनचिन्ह
गाछ
हमरा
सोझहा करए नाच
देखि कऽ
मन करए जाँच
नै भेटत
बीआ
तँ नस्ल
भऽ जाएत नास
टूटि
जाएत मनक आस
तकैत-तकैत भेल छी निराश
बितल
जाइत बरख आ मास
ओकरे भऽ
सकैत अछि पता
जेकरासँ
छै असली नाता
वएह कहि
सकैत अछि
असली
अता-पता।
कटैत
गाछ
हड़हड़ाइत
कटि कऽ गिरैत गाछ
चिचियाइत
बजल जे छल साँच।
“हम तँ करैत
रहलौं सुकरम
कहियो
नै केलौं कुकरम
करैत
रहलौं उपकार
जइसँ
अहाँक सपना हुअए सकार
अहाँ
करैत रहलौं उपभोग
हम करैत
रहलौं
फल-फूल आदिसँ
सहयोग
हम
केलौं न्याय
अहाँ
केलौं अन्याय
हम
केलौं पोषण
अहाँ
केलौं शोषण
टुटैत
कटैत सहैत अतियाचार
चुपचाप
अहींक लेल तैयार
सतत
कर्मरत रहलौं हम
कहियो
नै केलौं घमण्ड
तैयो
अहाँ सभ मिलजुलि कऽ
देलौं
हमरा प्राणदण्ड
हम
केहेन छी उदण्ड
दोखी नै
छी तैयो दण्ड।”
नमन
हे
बसुन्धरे शत् शत् नमन
अहाँक आँगन
उपजै
सुमन
जइसँ
उड़ैत सुगन्ध
भऽ िनर्बन्ध
गमकि
रहल दिग-दिगन्त
हे
बसुन्धरे शत् शत् नमन।
अहींक
चमनक छी हम कण
अहींक
कृपासँ बनल अछि तन
धीरज, शक्ति दिअ
हमरा मन
अहींक
समरपित अछि ई तन
हे
बसुन्धरे शत् शत् नमन।
सन्दीप कुमार साफी
कविता
१
बैशाखमे दलानपर
आउ यौ यार, खेलाइ छी तास
बैस कऽ अखन करब की
चलू करै छी टेम पास
बेर झुकतै तँ
जाएब करैले घास
चण्डाल सन रौद लगैए
चारि बाजऽ जा रहल अछि
लगैए अखन एक बाजल अछि
महींस खोलब ओइ बेरमे
पोखरि लऽ जाएब नहाबैले
सुतलोमे गरमसँ नीक नै लागए
खाटोमे उड़ीस करैए
कछर-मछरसँ नीन्द नै अबैए
पुरबा हवा सेहो पेट फुलाबए
घामसँ देखू गंजी भीज गेल
कौआ डाढ़िपर लोल बबैए
मेना जामुनपर झगड़ा करैए
बगड़ा दलानपर ची-चू-ची-चू
गीत सुनाबए
एहन गरम नै देखलौं कहियो
रातिकेँ मच्छड़
दिनकेँ माँछी तंग करैए
आउ यौ यार खेलाइ छी तास
२
सेवा
मन होइए करितौं
बेटाक बियाह
पुतहु लेल हिक गरल अछि
काज करैत काल आब देह थाकि गेल
भानस करैक
शक्ति नै अछि
बेटी भेली, अप्पन सासुर गेली
असगर अंगनामे नीक नै लगैए
होइत पुतहु तँ
एक हाथ सेवा करितए
मुदा एगो बातक डर लगैए
पुतहुक चर्चा देख टोलमे
अही सेवासँ चित्त हराइए
पढ़ल-लिखल कनियाँ सभ गेल
आदर सत्कार सभ बिसरि गेल
आठ बजेमे, सुति कऽ उठए
चुल्हा अंगना सभ, अहिना पड़ल-ए
के करए ससुर-भैंसुरक परदा
रीत-रेवाजक उड़ाबए गरदा
एकर देखसी करए, सभ कनियाँ
ई नै लागए ननदि, साउसकेँ बढ़ियाँ
ऐ पढ़ल लिखलसँ घास-छिलनी नीक
मन होइए करितौं बेटाक बिआह
पुतहु लेल हिक गरल अछि।
३
वर बिकाय लगनमे
वरक रेट नै पुछू यौ बाबू
मारा माँछक जेना दाम बढ़ैए
कनीको पढ़ल-लिखल रहल तँ
बेटाबला अप्पन मोँछ सीटैए
लड़कीबलाक खेत बिकाइए
देखू जमाना ताल ठोकैए
दुल्हाक डिमाण्ड अछि,
पाइ सन करीजमा
लिखल-पढ़लमे सभसँ तेज
पँचमामे पाँच बेर
अठमामे आठ बेर
दसमामे दस बेर लड़का फेल
एहनो लड़का लगनमे बिक गेल
वरक रेट नै पुछू यौ बाबू
मारा माँछ जेना दाम बढ़ैए।
भालचन्द्र झा
आजुक बेटी
कराटेक किलासमे ओ
एखने-एखने किछु नब गुर सिखलक अछि साइत।
अकास दिस पएर उठा कऽ जखन ओ किक् मारैत छैक,
तँ करेज मुँहमे आबि जाइत अछि।
जे कहीं अकासमे भूर ने भऽ जाइ।
परम्पराकेँ गोदड़ी बना कऽ
सनातन धर्मक रक्षा करएबला ई अकास,
आब जर्जर भऽ गेल छैक।
नब जमानाक कराटेसँ-
मजगूत बनल पएरक छोटछिनो अगातसँ,
कऽ सकैत अछि ओकर नोकसान।
भने जर्जरे…
मुदा आइयो ओ तनल अछि कतेको लोकनिक छप्पर बनि कऽ।
ऐ आश्रित सभक क्रोधसँ-
आबि सकैत छैक बुइकम्प।
मौला सकैत अछि हुनका लोकनिक क्रोधसँ,
नव अंकुरक डिम्भी।
सेकल जा सकैत अछि कतेको राजनैतिक रोटी-
महिला सशक्तिकरणक नामपर।
बेटा-बेटीक सनातनवाद-
हिला सकैत अछि तथाकथित समाजिक अवधारणाकेँ।
तैओ-
ओकर ऐ तरहक आबेसकेँ देखि कऽ
आश्वस्त होइत छी हम, मोनक कुनू कोन्हमे।
जे आब ऐ नपुंसक फुफकारसँ,
छोटकारा पाबक गुर सीखि लेलक अछि ओ।
कराटेक किलासमे…
(भालचन्द्र झा, २००८)
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.
ज्योति झा चौधरी २.
राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ३.
उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)
१.
ज्योति झा चौधरी
२.
राजनाथ मिश्र
३.
उमेश मण्डल
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली
अनुवाद डॉ. शम्भु
कुमार सिंह द्वारा
पाखलो
बालानां
कृते
अमित मिश्र
हाथी गेलै भोज खाए
एक जंगलमे पण्डीत हाथी
खाली सदिखन पेटक भाथी
एक बेर बकरी केलकै व्रत
भोजनमे एलै हाथी मस्त
भोजनमे आलूक परौठा
खा रहलै चाटि-चाटि औंठा
आँटा खतम आलू निंघटल
पेट एखन आधो नै भरल
घामे-पसीने बकरी कानै
खाली पेट तँ भोजन जानै
अन्तमे बकरी केलक प्रणाम
धन्य प्रभु !आब दियौ विराम
हाथी बाजल "हम नै मानबौ"
और खेबौ, घरो लऽ जेबौ
कानै बकरी, हाथी बजा कऽ
खाइ छै हाथी सूँढ़ नचा कऽ
बच्चा
लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही,
आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते
लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो
ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो
ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे
ब्रह्मा, दीपक
मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति!
अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं
हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन
सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने
चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु
कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी
धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत्
भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना
स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन
अहल्या, द्रौपदी,
सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा,
बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम-
ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा
लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये
सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे
वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद
अध्याय २२, मंत्र
२२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः।
स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे
रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि,
आ’
शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन
करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा
त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे
ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’
नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक
उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद
ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण
करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पडला पर वर्षा
देथि, फल देय
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