ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह'१४३ म अंक ०१ दिसम्बर २०१३ (वर्ष ६ मास ७२ अंक १४३)
ऐ अंकमे अछि:-
मोनक बात
(गजल, हजल, बाल गजल, रुबाइ आ कताक संग्रह)
चंदन कुमार झा
श्रुति प्रकाशन
अनुक्रम
अपन बात
गजल (१-६६)
हजल (१-२)
बाल गजल (१-१५)
रुबाइ (१-३३)
कता (१)
अपन बात
१
हम साहित्यक विद्यार्थी नहि छलौं।
तेँ साहित्यक बहुत रास बात,
व्याकरणसँ अपरिचित छी। तखन सभदिन साहित्यसँ लगाव रहल। साहित्यिक पोथी-पत्रिका पढ़ब
सदिखन रुचिगर लगैत रहल अछि।
कोनो सामान्य जनमानस जकाँ हमरो
मोनमे अपन आसपासक समाज, वातावरण, इत्यादिक प्रति
अनेकानेक भाव उत्पन्न होइत रहैत अछि। बहुत रास भाव बितैत समयक संग-संग उड़िया जाइत
अछि। तखन ओइमेसँ किछु अक्षरक रूपमे कागजपर अवतरित भऽ कखनो कविता तँ कखनो कथा, कखनो गजल तँ
कखनो रुबाइ आ साहित्यक
आन-आन
विधाक रूप धारण करैत अछि। हम बेसी किछु नहि कहय चाहब कारण जतेक कहब ततेक गलतीक
संभावना बढ़ि जाएत। बस एतबे कहब जे हमर "मोनक बात" आम जनक मोनक
बातसँ मेल खाएत आ सामाजिक सरोकारसँ जुड़ल हमर चिन्तन समाजकेँ आगू लऽ जएबामे सहायक
सिद्ध हएत से आशा रखैत छी।
जिनकर अनुकंपासँ कहियो उॠण नहि हएब- श्री विजयकांत
मिश्र (अध्यापक)-कन्हई, श्री शंभूनारायण
झा-सुसारी, श्री ताराकांत
झा (संपादक, मिथिला समाद), डा० धीरेन्द्र
नाथ मिश्र (मैथिली
विभागाध्यक्ष, सी.एम.कालेज) क संग-संग संपूर्ण
विदेह परिवारसँ भेटल स्नेहसँ अभिभूत छी। श्री गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हारक
लेल कोनो शब्द नहि भेटि रहल अछि जाहिसँ हुनकर धन्यवाद कही। श्रुति प्रकाशन, दिल्लीक जीवन
भरि आभारी रहब। अंतमे हम अपन समस्त परिजन-पुरजन, जिनकर बिना हमर अस्तित्वक कल्पनो नहि कएल
जा सकैत अछि, केर प्रति अपन
कृतज्ञता व्यक्त करैत सृष्टिकर्तासँ एतबे प्रार्थना करब जे सभक स्नेहक संग-संग हुनकर कृपा
एहिना भेटैत रहय।
२
मैथिली गजलः- हमरा दृष्टिमे..
गजलक प्रादुर्भाव अरबी भाषामे भेल, तदुपरांत एकरा उर्दू अपनौलक आ उर्दूक शाइर सभ गजलकेँ विश्व साहित्य-जगतमे बेस चिन्हार बनौलनि । प्रारंभमे गजल माने प्रेमालापे बूझल जाइत छल मुदा, बितैत समयक संग शाइर सभ एकरा सामाजिक सरोकारसँ जोड़ैत गेलाह आ आब प्रायः सभ विषयपर गजल कहल जाइत अछि। भारतमे गजलकेँ जे ख्याति भेटल अछि ताहिमे उर्दू गजलक योगदान अन्यतम अछि । आब तऽ उर्दू-हिन्दीक अलावे आन-आन भारतीय भाषामे सेहो गजल बेस लोकप्रिय भेल जा रहल अछि। मेहदी हसन, जगजीत सिंह, गुलाम अली, पंकज उदास, हरिहरण आदि गायक अपन गजल गायकी लेल जग-प्रसिद्धि पौलनि।
मैथिलीमे गजलक जन्मदाता पं. जीवन झाकेँ मानल जाइत छन्हि । सन १९०५ ईस्वीमे ओ सर्वप्रथम मैथिली गजल लिखलन्हि। एहि साल मैथिली साहित्य जगतमे एकटा आओर ऐतिहासिक काज भेल छल जे जयपुरसँ मैथिलीक प्रथम पत्रिका "मैथिल हित साधन" बहराएब प्रारंभ भेल छल। तेँ मैथिली पत्रकारिताक प्रारंभ वर्ष सेहो एहि सालकेँ मानल जाइत अछि। तखन फेर हम सभ मैथिली गजल दिस घुरि आबी। पं.जीवन झाक बाद मैथिली साहित्यमे अनेक गजलकार भेलाह। श्री गजेन्द्र ठाकुर मैथिली गजलक एहि युगकेँ "जीवन-युग" कहैत छथि (देखल जाए-"अनचिन्हार आखर"मे हुनक आलेख)। करीब १०७ बरखक इतिहासमे मैथिली गजल मैथिली साहित्य जगतमे अपन उपस्थिति बेर-बेर दर्ज करबैत रहल अछि। मुदा दुर्भाग्यवश ई कोनो ने कोनो कारणवश कतिआएले रहल अछि। मैथिली गजलकारक मध्य गजलक व्याकरणक मादेँ अनिश्चितता सेहो एकरा एकात हेबाक प्रमुख कारण रहल अछि ।
मैथिली साहित्य पर संस्कृतक प्रभाव ककरोसँ छपित नहि। अधिकांश मैथिलीक साहित्यकार लोकनि संस्कृतक पण्डित रहलाह अछि। एकदिस जहाँ एहिसँ साहित्यिक समृद्धि भेल ओत्तहि दोसर दिस एकटा बड़का नोकसान सेहो भेल जे मैथिल सर्वहारा वर्ग मैथिली साहित्यसँ कटैत चलि गेल। मैथिलीक
अलोकप्रियताक संभवतः इहो एकटा पैघ कारण रहल अछि ।
मैथिली गजलक विकास-यात्राक चर्चा-क्रमकेँ आगाँ बढ़बैत आब किछु एकर व्याकरणक विषयमे चर्चा करी। बीसम शताब्दीमे मैथिलीमे अनेक गजलकार भेलाह आ हुनकर गजल सभ विभिन्न पत्र-पत्रिका आ पोथीक रूपमे प्रकाशित-प्रसारित होइत रहल। मुदा एहिमे बेसी गजल सभ गजल-व्याकरणक मानकक अनुकरण नहि करैत अछि आ
कखनो काल कोनो-कोनो रचना तँ एहनो बुझना जाइत अछि जे ओकरा जबरदस्ती गजलक श्रेणीमे राखल-गानल गेल अछि । मैथिलीक एहि पुरान पीढ़ीक गजलकार सभमे बहुतोकेँ एखनो गजलक अरबी बहर आधारित व्याकरणक परिकल्पना आ ओकर अनुपालन कऽ गजल लिखबाक तर्क पचि नहि रहल छन्हि जे दुर्भाग्यपूर्ण अछि। अरबी-फारसीक गजल-विधानकेँ मैथिली
भाषानुरूप निरूपण आ तकर प्रयोगसँ मैथिली साहित्यकेँ विस्तार भेटतैक, से हमर मानब अछि । मैथिलीमे छंदोबद्ध रचनाक परंपरा रहल अछि । बिंब आ भावक बिना कोनो रचनाक अस्तित्व संभव नहि मुदा छंद, अलंकार आ व्याकरणक आन-आन मानक एकटा रचनाकेँ उत्कृष्ट बनबैत अछि ताहिमे कोनो दू मत नहि हेबाक चाही । ओना हम एकटा गप्प फरिछा दी जे हमहूँ छंदमुक्त पद्य लिखैत छी मुदा प्रयास हरदम रहैत अछि जे छन्दबद्ध लिखी । छन्दविधान
सिखबाक हेतु तेँ प्रयासरतो रहैत छी । गजल स्वाभाविक रुपसँ कहल जाइछ आ एहिमे गेयता सेहो हेबाक चाही तेँ बहरक (छन्दक) अनुपालन यदि एहिलेल अनिवार्य छै तँ ई नीक बात अछि ।
मैथिली गजलक हेतु एकटा मानक व्याकरण तैयार करबाक लेल श्री गजेन्द्र ठाकुर आ श्री आशीष अनचिन्हार जी द्वारा कएल जा रहल प्रयास स्तुत्य अछि। ई दुनू गोटे क्रमशः "विदेह-मैथिलीक प्रथम ई पाक्षिक" आ "अनचिन्हार आखर" व्लॉगक माध्यमसँ मैथिली गजल व्याकरणकेँ जन-जन तक पहुँचा रहल छथि । खास कऽ आशीषजी जाहि समर्पणसँ मैथिली गजलक विकास लेल लागल छथि आ नव-नव गजलकार केँ प्रोत्साहित करैत छथिन्ह से एकटा ऐतिहासिक प्रयास अछि। हुनकर "अनचिन्हार आखर” (गजल आ रुबाइ संग्रह) आ
http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/ ब्लॉगपर अरबी-फारसी गजल-व्याकरणकेँ जाहि
तरहेँ मैथिली भाषानुरूप सुबोध आ सुव्यवस्थित बना परसल गेल अछि ओ अनुकरणीय अछि । "अनचिन्हार आखर"क प्रकाशनक बाद मैथिल गजल-जगतमे एकटा नवयुग प्रारंभ भेल जकरा फेर श्री गजेन्द्र ठाकुर "अनचिन्हार युग" कहि संबोधित कएने छथि । मैथिली गजलक ई नवयुग अनेक नव गजलकारकेँ प्रोत्साहित कएलक । अनेक रचनाकारकेँ गजल आ सेहो व्याकरणक मापदण्ड पर सोंटल गजल, रुबाइ, कता इत्यादि लिखबाक लेल प्रेरित कएलक । एहि युगक किछु गजलकारमे श्री ओमप्रकाश झा, श्री अमित मिश्र, श्रीमति शांतिलक्ष्मी चौधरी, श्री मिहिर झा, श्री जगदानंद झा "मनु", श्रीमति रुबी झा, श्री राजीव रंजन मिश्र, श्री पंकज चौधरी "नवलश्री' सन अनेको नाम अछि जे अपन प्रतिभाक बलपर गजलकारक रूपमे मैथिली
साहित्य-जगतमे स्थापित भऽ चुकल छथि। हमहूँ पहिने अपन टुटल-फुटल भाषामे किछु कविता लिखैत रही मुदा विदेह परिवार आ अनचिन्हार-आखर परिवार हमरा गजलक माने बतौलक आ गजल लिखबाक लेल प्रेरित कएलक । एहि संग्रहक गजल सभ हिनके सभक सत्प्रयासक प्रतिफल अछि ।
आब हम अपने सभक सोझाँ, एखन धरि हम गजलक विषयमे जतबा ज्ञान "अनचिन्हार आखर" आ विदेह परिवारसँ ग्रहण कऽ सकलौं, ताहि आधार पर गजलमे प्रयुक्त होमएबला किछु प्रचलित शब्दावलीक संक्षिप्त परिचय राखए चाहबः-
१. शेर वा शाइरी - दू पाँतिमे पूर्ण भावक अभिव्यक्ति थिक शेर वा शाइरी।
२. मतलाक शेर वा मतला- कोनो गजलक पहिल शेरकेँ मतला कहल जाइत अछि । एकर दुनू पाँतिमे काफिया आ रदीफक रहब आवश्यक।
३. रदीफ- मतला बला शेरक अंतिम शब्द समूह जे ओइ शेरक दुनू पाँतिमे जस के तस रहैए। ओना बिनु रदीफक शेर एवं गजल सेहो होइत अछि ।
४. काफिया - मतलाक शेरमे रदीफसँ पहिने जे तुकान्त वा स्वर अथवा मात्राक साम्य रहैत छै तकरा काफिया कहल जाइत अछि । बिना काफियाकेँ शेर वा गजल नहि कहल जा सकैत अछि। मतलाक शेरक अलावे गजलक प्रत्येक शेरक दोसर पाँतिमे रदीफसँ पहिने काफिया होएब आवश्यक। काफिया संबंधी विस्तृत निअम "अनचिन्हार-आखर''मे
http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/ पर देखल जा सकैत अछि।
५. मकता - मकता गजलक अंतिम शेरकेँ कहल जाइत अछि जाहिमे गजलकार अपन नाम वा उपनामक उल्लेख सेहो करैत छथि।
६. बहर - सरल भाषा मे कही तँ गजलमे प्रयुक्त छंदकेँ बहर कहल जाइत अछि। बहरक बिना गजल कहल (लिखल) नहि जा सकैत अछि। कतौ-कतौ आजाद गजलक परिकल्पना सेहो कएल गेल मुदा, ताहूमे काफिया अनिवार्य। एहन गजलक प्रचलन सेहो बहुत कम्मे अछि। मैथिलीमे बहरकेँ मुख्यतः
तीन भागमे वर्गीकृत कएल गेल अछि-
(क) वार्णिक बहर
(ख) मात्रिक बहर
(ग) अरबी बहर
अरबी बहरकेँ तीन खण्डमे बाँटल गेल अछि- १. समान बहर २. अर्धसमान बहर आ ३. असमान बहर।
१. समान बहर - समान बहरक अंतर्गत सात टा बहरकेँ राखल गेल अछि जे अग्रलिखित अछिः- (क.) बहरे-हजज
(ख.) बहरे-रमल (ग.) बहरे-कामिल (घ)
बहरे-मुतकारिब (ड.)
बहरे-मुतदारिक (च.) बहरे-रजज
(छ.)
बहरे-वाफिर।
२. अर्धसमान बहर - अर्धसमान बहरक अंतर्गत सेहो सात टा बहरकेँ राखल गेल अछि जे एना अछि- (क.) बहरे-तवील (ख.) बहरे-मदीद (ग.) बहरे-बसीत (घ.) बहरे-मुजास (ड.) बहरे मुन्सरह (च.) बहरे-मजरिअ (छ.) बहरे-मुक्तजिब।
३. असमान बहर - असमान बहरक अंतर्गत कुल तेरह गोट बहरकेँ राखल गेल अछि जकर विवरण एना अछि- (क.) बहरे-खफीफ (ख.) बहरे-जदीद (ग.) बहरे-सरीअ (घ.) बहरे-करीब (ड.) बहरे-मुशाकिल (च.) बहरे-कलीब (छ.) बहरे-असम (ज.) बहरे-कबीर (झ.) बहरे-सगीर (ञ.) बहरे-सरीम (ट.) बहरे-सलीम (ठ.) बहरे-हमीद (ड) बहरे-हमीम।
आशीषजी कहैत छथि जे उपरोक्त बहरक अलावे आरो बहुत रास बहर अछि मुदा ओ सभ अरबी-उर्दूमे बहुत बेसी प्रचलित नहि अछि, लेकिन हमर ई विश्वास अछि जे आशीषजी जल्दिए ओइ बहर सभकेँ सेहो मैथिली भाषानुरुप समायोजित कऽ हमरा सभकेँ परसताह। एहिठाम एकटा बात आओर कहय चाहब जे गजलक सम्बन्धमे एतए हम जे किछु जानकारी देलौं ओइ सम्बन्धमे विस्तृत जानकारीक लेल "अनचिन्हार आखर" पढ़ी एवं
http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/ पर जाइ।
एहि संग्रहमे संग्रहित हमर किछु गजल आ रुबाइ एहनो भेटत जे गजलक व्याकरणक शत-प्रतिशत अनुपालन नहि करैत हएत। तखन चुँकि ई हमर पहिल गजल-संग्रह अछि आ एहिमे सम्मिलित गजल सभ हमर प्रारंभिक रचना अछि तेँ एहि रचनासभक प्रति कने भावुक छी। संगहि आशान्वित छी जे अगिला संस्करण अबैत-अबैत हम एहि गजल सभमे उचित सुधार करबामे सफल भऽ जाएब अन्यथा सम्मिलित नहि करब। अंतमे एहि पोथीमे जे किछु अपने सभकेँ सार्थक लगए तकर श्रेयक भागी "विदेह" आ' "अनचिन्हार आखर" परिवार अछि आ जत’ कतौ कोनो त्रुटि बुझायत से हमरा माथ पर आओत। अपने सबहक सुझाव आ उत्साही प्रतिक्रियाक आशाक संग हम अपन ई रचना सभ अहाँ सभक बीच परसि रहल छी ।
-चंदन कुमार झा
१८-०८-२०१२ (कोलकाता)
गजल
1
लोक कहैए वाह-वाह की खूब लिखै छी
केना कही जे कलमेसँ गुदरी सीबै छी
शब्दजाल बुनै छी आ ओकरे
ओझराबी
सोझरबैमे ओकरे खाली दिन कटै छी
रास-रंगक लोभ
देखाकऽ मोन बुझाबी
देह जरैए
खाली खूनक सेप घोंटै छी
कतऽ गेल ओ रीत पुरना से नहि जानि
"चंदन" गबै छी गीत मधुघट पीबै छी
वर्ण-१५
2
हाथमे खुरपी माथे पथिया
चलू करी कुकुरक बधिया
आञ्गि-नूआ तऽ चेथरी-चेथरी
नाकमे झूलैए तैयो नथिया
पूत-कपूतो कहबैछ बौआ
बुच्चीक किंतु होनि सरधिया
बहु-बेटीकेँ जारि रहल छै
सभकेँ चढ़लै की दुर्मतिया ?
नारी जननी होइछै "चंदन"
सृष्टि केर ई प्रेम-मुरतिया
वर्ण-११
3.
साँझ बारल जखन बाती पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
राति आयल जखन कारी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
फूलेलै जखन रात-रानी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
कोइली जखन बजै बाड़ी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
पहिरी जखन लाल साड़ी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
साटी जखन माथ टिकुली पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
विरहानल जरैछ छाती पिया यौ अहाँ मोन पडलौं
दहेलै काजर केर धारी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
सजौले सेज जखन ताकी पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
पढ़ै छी "चंदन" केर पाँती पिया यौ अहाँ मोन पड़लौं
वर्ण-२०
4
प्रेम केलौं कि केलौं कुकर्मे सएह नहि जानि रहल छी
अश्रुधार भसिआयल सभटा सपना छानि रहल छी
सात जन्म धरि संग रहत से सप्पत खएलक झूट्ठे
फुसि छलै पिरीतक बतिआ मन-अनुमानि रहल छी
धन-बैभव ऐश्वर्यक आगाँ के पुछतैक निरधनकेँ ?
सत्य-नेह केर मोल ने किछुओ सभटा जानि रहल छी
बीत गेलइ से बात गेलइ नहि मोन पारिकऽ कानब
फेरो नहि भसियेबै "चंदन" से निश्चय ठानि रहल छी
वर्ण-२१
5
हरहोर भेलै बड़ शोर भेलै
सजलै बरात मटकोर भेलै
मरबा सजलै पिपही बजलै
नटुआ केर नाच बेजोर भेलै
जे भोग छलैक भरि पोख रहै
तीमन तरुआ तिलकोर भेलै
हम बैसल छी अन्हरियामे
जे चान छलैक से चकोर भेलै
"चंदन" हिय हर्ष उफनै छैक
जँ कूदल आँखिसँ तऽ नोर भेलै
वर्ण-१२
6
जगरनेमे राति बीतल,
छलै नोरे राति शीतल
चनो कनलै ओस झहरल,
लगै छै तेँ भोर तीतल
कछमछाइत मोन-प्राणो
क’रे फेरी राति बीतल
बुझय चाही, नियति से रण,
रहल छी हाइर कि जीतल
पुछय सभ, की भेल "चंदन"
कही केना अपन बीतल
बहरे-मजरिअ (1222-2122)
7
एखन राति कटै छी हम कनिते-कनिते
एखन दिन बीतै पहर गनिते-गनिते
लगै अछि ई जीवन अकारथ अचानक
बिसरायल गामो शहर तकिते-तकिते
पहुँचलौं नहि जानि केना एहि चौबटिया
बिसरलौं ठेकाना कखन चलिते-चलिते
कहाँ कऽ सकलियै एकचारीयो एक ठाढ़
बिकायल घरारी महल बन्हिते-बन्हिते
कहब कोन कथा और सुनायब की पाँति
शब्दहि हेरायल गजल गढ़िते-गढ़िते
नियति केर फेरामे ओझरायल ''चंदन"
छिड़ियेलै सपना पलक मुनिते-मुनिते
वर्ण-१६
8
करेजक घर तँ खोलू कने
सिनेहक ताग जोरू कने
अहिँक हिय-बीच चाही बसय
जगह बसबाक छोड़ू कने
बनल बेरस हमर जीवने
अहि मे नेहरस घोरू कने
करय फरियाद "चंदन" सुनू
सजल सम्बन्ध जोड़ू कने
1222-122-12
9
आन्हर बनल सरकार लाचार भेल जनता
व्यापार पोषित नीतिसँ कहू की एतइ समता ?
गाम भूखल-पेट देशक खेत उसर भेल छै
बाढ़ि-रौदीक बीच उपजल छै मात्र दरिद्रता
कल-करखाना शहरमे चलैछ दिन-राति, जे
प्रगतिक अछि मापदण्ड एकात भेल जनता
गाम जा बसि रहल शहर जीविकाक जोहमे
महाजनक ब्याज-तर फुला रहलै निर्धनता
ग्राम-वासिनी भारती किए गेली बसय नगर
कनैत छथि आइ तेँ ई कैलनि केहन मूर्खता
"चंदन" करू आह्वान स्वराजक एकबेर फेर
हँसती एहीसँ देश खुशहाल बनत जनता
वर्ण-१८
10
नेहक सूत बान्हि रखलियै करेजक कोन ओकरा
बिसरल नहि भेल जकरा से बिसरि गेल हमरा
जिनगीक बाट जकरे आञ्गुर ध' चलब सिखेलियै
बिचहि बाटमें से छोड़ि पड़ायल खसितहि हमरा
कहाँ बचल छै कतहुँ मोल आब अनमोल-नेहक
सौंसे छै खाली टाकाक पूछ आब लोकक पूछ ककरा ?
"चंदन" टाका तऽ छियै हाथक मैल सत्-सम्बन्धक आगाँ
नहि बुझैछ जे बात बनैछ तकरे जिनगी फकरा
वर्ण-२०
11
घोघ हुनकर उतरि गेलइ
जोत सगरो पसरि गेलइ
बहल पुरबा जखन शीतल
हुनक आँचर ससरि गेलइ
देखि हुनकर ठोढ़-लाली
आगि छाती पजरि गेलइ
नैन लाजे हुनक झूकल
अटकि हमरो नजरि गेलइ
रूप यौवन निरखि "चंदन"
मोन मधुकर मलरि गेलइ
2122-2122
12
जिनगी केर बाटपर काँट सौँसे गाड़ल छै
नियति केर टाट बेढ़ सगरो दफानल छै
माय-बाप भाइ-बन्धु छै झूठहि सम्बन्ध सभ
मोह-जाल ओझरायल जिनगी गतानल छै
कनियो जँ ढीठ बनि सुनलक कियो मोनक
छूतहर घैल बनल
समाजेसँ बारल छै
लुटि-कुटि जीवन भरि आनल से बाँटि देल
खाली हाथ आब देखि परिजन खौंझायल छै
बूढ़ भेल दुरि गेल फकरा बनि बैसल छै
"चंदन" गुनैछ केहन दुनिया अभागल छै ?
वर्ण-१७
13
मूरख बड़ा महान ओ जे अपनाकेँ काबिल बुझै छै
अपन माथक टेटर ठिक्के ककरहु नहि सुझै छै
आनक नीको अधलाह ताकब कबिलताइ कहाबै
अप्पन अधलाहोकेँ जगमे सभसँ नीमन बुझै छै
छओ-पाँच नहि बुझै किछुओ नहि मोने कलछप्पन
ऊँच-नीचक भेद ने जानै मूढ़ सभकेँ एक बुझै छै
छल-प्रपंच आ राग-द्वेष तऽ काबिलक गहना थिक
बाट चलैत तेँ ओकरहि सभकेँ भिखमंगो लुझै छै
पर-उपकारे लीन रहैछ जे से अछि अस्सल ज्ञानी
"चंदन" असली ज्ञानी जगमे ओ जे नहि खूब बुझै छै
वर्ण-२०
14
शब्द संग खेलाएब हमरा नीक लगैत अछि
शब्दहि ओझराएब हमरा नीक लगैत अछि
मोनक चिनबार पर छी रान्हैत जे मीठ-तीत
से भावहि झोराएब हमरा नीक लगैत अछि
सुखक-गीत दुखक-टीस जिनगीक कथा-ब्यथा
जगभरि सुनाएब हमरा नीक लगैत अछि
सुरूजक किरीण चढ़ी स्वर्ग केर विहार करी
धरतीयो लोटाएब हमरा नीक लगैत अछि
विहग-गीत गाबय छी कि विरहिन सुनाबै छी
"चंदन" ई बौराएब हमरा नीक लगैत अछि
वर्ण-१८
15
कौआ कूचरल भोरे अँगना साँझ परैत औथिन्ह सजना
छम-छम-छम-छम पायल बाजै खनकि उठल कंगना
सासुक बोली लगैछ पियरगर ननदि
बनलि बहिना
गम-गम-गमकय तुलसीक चौरा चानन सन अँगना
रचि-रचि साजल रूप मनोहर बेरि-बेरि देखल ऐना
टिकुली-काजर जुट्टी-खोपा नूआ-नवका चमकैत गहना
पहिलहि साँझ बारल दीप-बाती जगमग घर-अँगना
उगल चान असमान हृदयमे उठल विरह
वेदना
सेज सजौने बाट तकैत छी घर एताह कखन सजना
"चंदन" सजनी गुनधुन बैसलि की मांगब मुँह बजना
वर्ण-२२
16
हमरा आब इजोतेसँ लगैत अछि डर
चुप भेल तेँ बैसल रहै छी अन्हार घर
नहि मोन अछि हमरा नाम आ परिचय
अपरिचित छी जगमे तेँ घुमै छी निडर
ताकि लैछ लोक नाममे पहिचान लोकक
गुण-शीलक ऐ समाजमे छै कहाँ मोजर
सम्बन्ध नहि जकरासँ बनल से समांग
तोड़लक भरोस ओ भरोसे छलौं जकर
"चंदन" जगक रीति ओझराउ नै जिनगी
सुनू खबरदार ! बनल रहू बेखबर !!
वर्ण-१६
17
पुनिमक रातिक चान सन चमकैत छी अहाँ
अँगनाक तुलसी चौरा सन गमकैत छी अहाँ
कखनो माइक ममता बनि झहरैत छी अहाँ
कखनो आगिक धधरा सन धधकैत छी अहाँ
कखनो संगी-बहिनपा बनि हँसबैत छी अहाँ
कखनो जीवन संगिनी बनि बुझबैत छी अहाँ
कखनो अबलाक रूप धरी फकरैत छी अहाँ
कखनो कालीक स्वरूप धरी डरबैत छी अहाँ
कखनो प्रेमक मुरति बनि सिखबैत छी अहाँ
"चंदन" नारीक रूप अनेक देखबैत छी अहाँ
वर्ण-१८
18
नहि फुरैए हमरा आब प्रेम गीत
अंतर नहि किछुओ हारि हो वा जीत
टकटकी लगौने रहै छी रातिभरि
सपनो नहि अबैछ कियो मनमीत
श्मशान बनल अछि हमर करेज
पैसत के ऐमे सभ कियो भयभीत
जीवैत छी मुदा बैसल छी मुर्दाघर
मुर्दा संग जीवन करैत छी ब्यतीत
"चंदन" जीवनेसँ लगैछ आब डर
मृत्युसँ हमरा अछि भऽ गेल पिरीत
वर्ण-१४
19
चलू एकबेर फेर रंगमंच सजाबी
बहुरूपिया-रूप धरी आ नाच देखाबी
दुनिया बरू बूझत बकलेले हमरा
हमरा अछि स’ख जे दुनियाकेँ हँसाबी
सुन्दर अभिनेता तऽ जगभरि भेटैछ
हमर मोन जे पाठ लेबरा’क खेलाबी
दुनियाक रंगमंच जे भऽ गेल निरस
आउ एकरा जीवन-रस बोर डुमाबी
"चंदन" ई गुमसुम बैसल जे जीवन
चलू अपने पर हँसि एकरा हँसाबी
वर्ण-१५
20
कमला-कोशीक धारमे दहायल जिनगी
थाल-कादो सनायल मटिआयल जिनगी
निशाँ ताड़ी केर मातल बौरायल जिनगी
माटि चाँगुरसँ कोरैछ भुखायल जिनगी
रौद जेठ केर जारल फुलायल जिनगी
एसी घर देखू बैसल घमायल जिनगी
टुअर-टापर नञ्गटे टौआयल जिनगी
देखू साजि-सम्हारल ओरिआयल जिनगी
देखू हँसैत कनैत आ खौँझायल जिनगी
"चंदन" रूप अनेकहुँ देखायल जिनगी
वर्ण-१६
21
सपना नोरक धार बहाओल
जागि-जागि केर राति बिताओल
साज-सिंगार सोहाइ नै किछुओ
विरहा-आगि करेज जराओल
नभमे चमकल जखने चन्ना
हियामे प्रेमक ज्वारि उठाओल
कोइली सौतिन मुँह दुसै अछि
कू-कू-कुहुकि
कऽ होश उड़ाओल
अचके बालम ऐलाह अँगना
"चंदन" सजनी मोन जुड़ाओल
वर्ण-१२
22
लगै अछि लाल अहाँ केर गाल जहिना सिनुरिया आम
अहाँ केर चान सन मुखरा देखि चानो बनल गुलाम
केश कारी घटा घनघोर अमावस राति सन लागय
नैन काजर सजल चमकल बिजुरीक छूटल घाम
जएह बोली अहाँक ठोर केर चुमि कए बहराइछ
महुआ गाछ पर कोइली सएह गाबि बनल सूनाम
डेग राखल जतऽ धरती माटि बनिगेल ओतऽ चानन
रुनझुन पजेब-झंकारसँ अँगना बनल सुरधाम
कसमस जुआनी देखिकऽ सुधिबुधि हमर हरायल
पीबै लेल नेहरस ब्याकुल भमरा भऽगेल बदनाम
"चंदन"पथिक प्यासल प्रेम केर बाट पर बौआइछ
दियौ ने नेहरस एकरा पिआ बैसा अहाँ करेजा-धाम
वर्ण-२१
23
बेचि खेलक इमानो बजारमे
लाज-धाखो सजेलक सचारमे
भाइ-बापोसँ देखू लड़ैत छै
प्रेम देखू फुसिक छै भजारमे
आब मातो’क ममता बिकाइ छै
नेह-नाता भसेलक इनारमे
जे कहाबै लफंगा समाजमे
से तऽ नामी बनल छै जबारमे
देखि"चंदन" पड़ल छै विचारमे
साधु-संतो रमल बेभिचारमे
212-212-212-12
24
हमतऽ कनिते रही
आँखिक नोरे सूखा गेलइ
अपने कानब पर
देखू हमरा हँसा गेलइ
लोक पुछलक जखन
कहल ने भेल किछुओ
असगरे आइ सभ बात
अनेरे बजा गेलइ
साओन-बदरी जे आगि उनटे धधकि उठलै
आइ से आगि
एकबूँद पसेनासँ पझा गेलइ
बैसि अँगना भरि
राति गनैत छलौं तरेगन
आइ से तरेगन
केयो आँचरमे सजा गेलइ
कतेको सालसँ
पटबैत छलौं जे गाछ "चंदन"
अँगनामे रोपल से
गाछ आखिर फुला गेलइ
वर्ण-१८
25
नैनक बाण चलाकऽ
हम्मर अपटी खेतमे प्राण लेलौं
झूठहि छल जे
प्रेम-पिहानी से सभटा हम जानि गेलौं
सप्पत खएने रही
अहाँ जे आयब हम्मर सपनामे
सपना देखब सपने
रहलै निन्नो अहाँ दफानि लेलौं
छल मोन जे प्रेम-रससँ भीजा गढ़ब नूतन जिनगी
हम एहिमे सौरभ
मिझरेलौं अहाँ नोरसँ सानि देलौं
मोन छल जे मूक्त
गगनमे उड़ब अहाँ आ हम संगे
उड़िलौं कतऽ
अहाँ जानि नहि हमरा एहिठाँ छानि गेलौं
हमरा बिनु जँ
जीबि सकी तऽ जीबू अहाँ सुखक जिनगी
तकिते बाट अहीँक
"चंदन" काटब जिनगी ठानि लेलौं
वर्ण-२१
26
उजरल गाछी जकाँ
लगैछै गाम हमर
चुप्पी सधने
किएक कनैछै गाम हमर
नवकी कनिञा जकाँ
छलैजे गाम हमर
विधवा नारी बनल
कनैछै गाम हमर
भरले-पुरले हँसै छलैजे गाम हमर
टूअर-टापर भेल फिरैछै गाम हमर
प्रीतक पाँती गबैत
छलैजे गाम हमर
उकटा-पैंची किएक करैछै गाम हमर
निर्मल-निश्छल बास छलैजे गाम हमर
"चंदन" किए डेरौन लगैछै गाम
हमर
वर्ण-१६
27
करेजकेँ पाथर
बना लिअ
पिरीतकेँ आखर
मिटा दिअ
सपन जनम भरिकेर
देखल
कहूतऽ की नोरहि
भसा दिअ
जड़ैत छै जे आगि
विरहक
कहैत छी तकरा
मिझा दिअ
जनमक संगी बनक
बदला
कहैत छी नाता
कटा लिअ
रकटल "चंदन" मोन बेकल
कियोतऽ सजनीकेँ
बुझा दिअ
12-1222-122
28
मिथिला राजक
खातिर मैथिल लड़बे करतै
खूनसँ भिजलै
धरती मिथिला बनबे करतै
निज मातृभूमि
उत्थानक हेतु लड़िते रहतै
माइक लाजक खातिर
संतति मरबे करतै
मिथिला-मैथिल-मैथिलीक स्वाभिमानक रक्षार्थ
निज प्राणहुक
उत्सर्ग मैथिल करबे करतै
कमला-गंगा-कोशी-गंडक’क सप्पत खा मैथिल
अलगहि राजक सपना
पूरा करबे करतै
होयत नहि ब्यर्थ
बलिदान कोनो बलिदानीक
"चंदन" ठोस प्रतिकार मैथिल
करबे करतै
वर्ण-१८
29
कहियेसँ कतिआयल
कनै छथि जानकी
कहियेसँ भसिआयल
फिरै छथि जानकी
मिथिलासँ
बिधुआयल लगै छथि जानकी
मैथिलसँ खिसिआयल
लगै छथि जानकी
घर-घरसँ बौआयल फिरै छथि जानकी
घर-घरतऽ छिछिआयल फिरै छथि जानकी
रामहिसँ डेरायल
लगै छथि जानकी
जिनगीसँ अकछायल
लगै छथि जानकी
अपराध की कयलनि
पुछै छथि जानकी
चुप्पहि जनक "चंदन" कनै छथि जानकी
2212-2212-2212
30
किछु बात एहन जे
कना गेल हमरा
जिनगीक नव माने
सिखा गेल हमरा
सपनाक दुनिया
छलहुँ झूलैत झूला
तखनहि उठल
बिर्ड़ो जगा गेल हमरा
पालन अपन
पेटक करैए कुकूरो
आनोक हित जीबू
बुझा गेल हमरा
अप्पन हरख हरखित
रहैछै सभ क्यो
अनको दुखसँ कानब
बता गेल हमरा
"चंदन"मनुज जीवन बनय नहि
अकारथ
जिनगीक सभ मकसदि
गना गेल हमरा
2212-2212-2122
31
नैनक नीर भीजल
चीर जमुना तीरमे
करेजा क्षीर
सींचल वीर जमुना तीरमे
बैसल नीड़ कूक
अधीर जमुना तीरमे
लागल भीड़ मूक
बहीर जमुना तीरमे
आसक सीर शुष्क, नै नीर जमुना तीरमे
चासक सीर गरै छै
सीर जमुना तीरमे
देशक वीर भेल
फकीर जमुना तीरमे
नेताक भीड़
गिरैछै खीर जमुना तीरमे
सनले खून
द्रौपदी चीर जमुना तीरमे
लागल घून काया
प्रवीर जमुना तीरमे
वर्ण-१६
32
मन वीणा तार
झंकार भरल
मैथिलजन’क हुंकार प्रबल
बहुत आँखि केर
नोर बहल
बहुत जगक
दुत्कार सहल
आब उचित
प्रतिकार करब
शत्रुक प्रहार
जँ खून बहल
निज अधिकारक
हेतु लड़ब
सौभाग्य जँ
प्राण तियागै पड़ल
मिथिला-राजक तऽ माँग अटल
"चंदन" मैथिल लड़िते डटल
वर्ण-१२
33
मोन एहन जे
मानबे नहि करैए
आगि विरहा तेँ
साउनोमे जरैए
नोर झहरै छै
आँखि से,
कंठ सुखले
बुन्न भरि नेहक
लेल तैयो मरैए
जेठके रौदहु जकर
छाहरि जुरेलौं
बिनु बसाते से
पात आसक झरैए
डारि पर नेहक फरल सम्बन्ध छल जे
पाथरे चोटायल सड़ल फर झरैए
बाट 'चंदन'
टकटक अहीँके तकैए
मोन बहसल नै आस किन्नहु धरैए
2122-2212-2122
34
राति तरेगण
गनिते कटै छी
आगि विरह के
जड़िते रहै छी
बाट अहीँ के
तकिते रहै छी
रूप अहीँले
सजिते रहै छी
बनल बताहे हँसिते
रहै छी
कोनहि बैसल
कनिते रहै छी
गीत विरह के
गबिते रहै छी
तामस मोनक
पिबिते रहै छी
मोनहि अपने
लड़िते रहै छी
"चंदन"लागय जिविते मरै छी
2-1-1-2-2-1-1-2-1-2-2
वर्ण-१२
35
मलयानिल केर
मदिर गंधसँ श्वास रोग उपचार करब
दुषित वायु
अवरूद्ध साँस जे तकर आब प्रतिकार करब
जड़वत बनल जे
जीवन जगमे तकरा पुनः बना चेतन
मधु-परागसँ नहाकऽ ओहिमे नवल उर्जाक संचार करब
निज अवलंबन हेतु
जगायब बिसरल सभ श्रम-शक्तिके
कर्मेक बलपर
विजय प्राप्ति हित कर्मयुद्ध हुंकार करब
रहत आब नहि हारल-थाकल घर-बैसल मानव एक्कहु
चलू आब कर्मक प्रकाशसँ
करिखल घर उजियार करब
एकप्रण एकनिष्ठ
श्रद्धासँ निश्छल भावहि गाँथब श्रममाल
श्रमक फल भेटब
छै निश्चित "चंदन" जगत प्रचार करब
वर्ण-२४
36
आँखि खूनसँ भरल
जेना
काँट हिरदय गरल
जेना
पानि खौलय अनल
जेना
आगि लगए ठरल
जेना
नोर पोखरि भरल
जेना
धार खूनसँ भरल
जेना
गाछ छलए फड़ल
जेना
आब लगए झरल जेना
गाम छलए सजल
जेना
आब "चंदन" मरल जेना
2122-2122
वर्ण-१०
37
जकरे पाइ छलौं
तर-उपर
सैह पूत कमौआ
धेलकै घर
मरचर बनलै अंगना
घर
ठाठ उछेहल देह
नहि पर
ढनढन कोठी ओ
बखारी-ढक
उनटल बासन
भनसाघर
रकटै नेना सटकल
उदर
बेदम उकासी दबाइ
बेगर
चंदन' केनाकऽ जिनगी कटत
ॠण-पैचसँ की चलत गुजर ?
वर्ण-१२
38
मोन केर बात
सदति लिखिते रहब
चौबटिया ठाढ़
गजल कहिते रहब
जिनगीक बाटमे
गड़तै जँ काँट-कूश
हँसिते गुलाब सन
गमकिते रहब
समाजो घिसिआओत
कादोमे हमरा जँ
कदबे कमल बनि
फुलाइते रहब
कतबो झाँट-बिहाड़ि आबि जाउ रस्तामे
मुदा तैयो दीप
आस’क लेसिते रहब
'चंदन' पाथर-समाज’क छातीए पिजा
कलमक धारसँ
शत्रू हनिते रहब
वर्ण-१५
39
आब सूतल लोक
जागि रहलैए
तेँ तऽ चोर
बेछोहे भागि रहलैए
देखू लागल भीड़
चौबटिया पर
बेटा माँ-बापकेँ बेलागि रहलैए
बजारक भीड़मे
तकैत एकांत
सूतय लेल लोक
जागि रहलैए
चैतक पछबा
सुड्डाह भेल घर
भादबमे धधकि आगि
रहलैए
तबधल धरती दहेतै
फेरोसँ
सुगरकोना मेघ
लागि रहलैए
जरलै घर दहेलै डीह "चंदन"
डटले लोक क्यो नै
भागि रहलैए
वर्ण-१३
40
गुप्फ अन्हार नहि हाथो-हाथ सुझैए
आनक बात कोन परिजनो हुथैए
जकरा ले सर्वस्व
कएलहुँ अर्पण
सैह हमरा मतलबी
लोक बुझैए
खून पसेना बहाबी मुदा छी दरिद्र
भिखमंगा बौसैए धनिकहा लुझैए
कत्तौ करोट फेरै
लोक सड़क पर
कतहु कुक्कुरो
पलंग पर सुतैए
केओ भूखे पेट रकटल प्राण, कानै
"चंदन" पाचकक चूर्णो खाए कुथैए
वर्ण-१४
41
राति सपनमे
प्रियतम एलाह
कर-कौशलसँ हमरा जगेलाह
काँच निन्न टुटल
मन कछमछ
उड़ी-बिड़ी लगा अपने नुकेलाह
देहक पानि बनि
बहल पसेना
अधरतिये मोन
प्यास लगेलाह
कसमस आञ्गि नख
लागि फाटल
चेन्ह सगर देह न’ह गड़ेलाह
हमरा संग कत खेल
खेलेलाह
"चंदन" तखन जा मोन जुड़ेलाह
वर्ण-१३
42
दू लबनी केर
खेला देखू
लागल रेलम रेला
देखू
फुसिए ठेलम ठेला
देखू
बलजोड़िक झमेला
देखू
मत्त गुरू संग
चेला देखू
नाच करै अलबेला
देखू
जीवन’क संध्यावेला देखू
कानै अनाथ
कोरैला देखू
विषले लागल मेला
देखू
अमृत भेल करैला
देखू
वर्ण-१०
43
फूल नै बनलौं तऽ
की काँट बनि गड़ैत तऽ छी
प्रेम नै केलौं
तऽ की संग हमर सहैत तऽ छी
सोँझा नै हँसलौं
तऽ की परोछमे कनैत तऽ छी
अन्हार छै घर तऽ
की दीप बनि जड़ैत तऽ छी
अपना नै सकलौं
तऽ की संगमे रहैत तऽ छी
भऽ नै जाइ आनक
संगी से सोचि मरैत तऽ छी
सुख नै देलौं तऽ
की संगे दुख कटैत तऽ छी
मीत नै भेलौ तऽ
की रूसलमे बौँसैत तऽ छी
बुझि कऽ बकलेले
हमरा अहाँ हँसैत तऽ छी
छी अकछायल तऽ की बात तैयो सुनैत तऽ छी
वर्ण-१७
44
आखर आखर सजा
लिखै छी गीत अहाँले सजनी
चाँचर पाँतर हम
तकै छी प्रीत अहाँले सजनी
अपन कोंढ़क कोरि
माटि सौरभ पुनि मिझरेलौ
नेहक रसमे भीजा
गढ़ै छी भीत अहाँले सजनी
अहाँक रूपक आगाँ
हम हारि गेलहु अपनाकेँ
अप्पन हारि
बिसारि लिखै छी जीत अहाँले सजनी
मधुर मिलनक बेला
कहियो तऽ मधुघट पीबै
सोचि-सोचि घट-घट पीबै छी तीत अहाँले सजनी
अँगना, घर,
दलान सजा बाट तकैत छी बैसल
"चंदन"नेहक बुन्न तकै छी शीत
अहाँले सजनी
वर्ण-१९
45
रोटी महग महगे नून भेल छै
बोटी सुलभ सस्ता
खून भेल छै
सौँसे शहर सहसह
लोक गजगज
गामक दलानो-घर सून भेल छै
प्रगतिक पथ
भ्रष्टाचार अड़ल छै
नेता समाजक जनु
घून भेल छै
खेती करय जे से
दीन भेल छै
बइमान बेपारी
दून भेल छै
करनी अपन नहि
देखैत लोक छै
"चंदन"फुसिक खातिर खून भेल छै
2212-2221-212
46
मोनक बात
मोनहिमे रखैत छी
चुप्पी लाधि हम
जिनगी कटैत छी
चकमक जगत लागल चौन्ह लोककेँ
घर अन्हार चैनक
निन सुतैत छी
झूठक लेल आमिल
लोक छै पिने
हम सत्तो जनेबा-ले कुथैत छी
बेचल खेत डाबर-डीह गुजर-ले
तैयो केस कित्ता
दस लडैत छी
जुन्ना जरल ऐंठन
एखनो बचल
"चंदन" बोल तै ऐंठल बजैत छी
2221-2221-212
47
ककरो तऽ जुन्ना
आँत भेल छै
केयो खा-खा अप्सयाँत भेल छै
पिसा रहलै देशक
जनता
कानूने-व्यवस्था जाँत भेल छै
बुड़िबके लोक
नेता बनलै
विकास नेनाक
खाँत भेल छै
समाज बुड़लै बरु
खत्तामे
संसद भोजक पाँत
भेल छै
वर्ण-११
48
द्वेषक धाहसँ
बेसी स्नेहक छाह छै शीतल
नैनक नोरसँ बेसी
देहक घाम छै तीतल
देहक खूनसँ बेसी
लोकक मोन छै धीपल
अप्पन सोचसँ
बेसी आनक सोच छै रीतल
ककरो हाथसँ बेसी
ककरो गात छै भीजल
खूनक छापसँ देखू
सगरो बाट छै तीतल
ककरो खापसँ बेसी
कत्तहु आम छै बेढ़ल
ककरो सगर जिनगी बान्ह-कात छै बीतल
ककरो बोल
समदाउनक भास छै भरले
गाबय "चंदन" उदासी जग बुझै छै गीतल
वर्ण-१७
49
हम रूकल छी लेखनी ठमकल अछि
सभ कल्पना ठामे-ठाम दरकल अछि
प्रगतिक पहिया
आइ बिच्चे बाट पर
भ्रष्टाचारक ओठ
लागि अरकल अछि
भोगी भूपति सभ
धएने बाना योगी’क
रोटी प्रजाक खाइ
देखू सरकल अछि
ज्ञान-शील तप-त्याग संकुचित भेल छै
मुदा संकीर्ण
सोच सौंसे फलकल अछि
"चंदन" लोककेँ निश्चय प्रतिकार
चाही
कि फेर अनेरुए
मेघ ढनकल अछि ?
वर्ण-१५
50
दानवी चोटसँ
मानवता थकुचल जाइए
चाँगुरक नोकसँ
मनुक्ख बकुटल जाइए
भजारि-भजारि बिचार लोक भजार तकैछ
तैयो डेग-डेगपर भजार ठकल जाइए
नञ्गटे नचैत लोककेँ
धेयान कहाँ छैक जे
नाच बढ़ल जाइए आ तेल सधल जाइए
जड़ा छातीकेँ
निकलैछ जे धूँआ असमानमे
ओहीसँ तप्त
पृथ्वी हिमालयो घमल जाइए
"चंदन" रोगायल छाती कुंठित मोन
लोकक
बस पाथरक मकान
एतऽ बढ़ल जाइए
वर्ण-१७
51
नैनक काजर पर
मोहित छै सगरो जगत
जड़ैत डिबिया
केर मोनक मरम के बूझत ?
मदान्धकेँ
सरोकार नहि होइत छै ककरोसँ
फेर सरकारकेँ
केना दीनक लचारी सूझत ?
गोर गाल कारी काजर देखि अन्हरेलै युवक
तखन कनैत माइक
आँखिक नोर के पोछत ?
काँख तर नुकौने
रहैछै लोक पानिक बोतल
तखन फेर चौड़ीमे
के इनार पोखरि खुनत ?
गाम भऽगेलै
सुन्न मुदा करै चकमक शहर
"चंदन" ई बढ़ैत बिषमताकेँ सम
के करत?
वर्ण-१८
52
मानवताक डेन
पकड़ि मनुक्ख बनैत भगवान हेतै
मुदा, पतितकेँ पशु कहब जँ पशुओ’क अपमान हेतै
मूरख भूपति बनि
बैसलै लुधकी लागल चाटुकार छै
तखन जगतमे अहीँ
कहू की विद्या केर सनमान हेतै?
रामक मर्यादा
तोड़िताड़ि गौतमक विचारकेँ छोड़िछाड़ि
गाँधीक देखाओल
पथकेँ त्यागि की मानवक कल्याण हेतै ?
अंगना बीच देबाल
बनल छै टुटि गेलै दलान पुरना
बेढ़ल फरकी-टाट छै सगरो फेर कतऽ खरिहान हेतै ?
द्वेष-देयादि मोनमे जकरा जे नै बनल समांग ककरो
"चंदन" तकरा कहत दरिद्रे उँच
भलेहिँ मकान हेतै
वर्ण-२२
53
नयनक काजर नोर
घोरिकऽ मोसि बनेलौं
भाव करेजक आखर-आखर लिखि पठेलौं
बुझलहुँ अहाँ
विदेशमे जाकऽ खूब कमेलौं
मुदा कहू की
गामहि सन नेह ओत्तहु पेलौं
छै सुविधा कने
कम्म गाममे शहर अपेक्षा
मुदा,की कहियो सूच्चा भोजन शहरमे खेलौं
हम बेकारे देखि-देखि सपना रैन गमेलौं
अपन जुआनी अहीँ
आसमे बेरथ गमेलौं
आन बुझैत छी
हमरा अहाँ कोनो बात नहि
"चंदन" मुदा केनाक’ माय-बाबूकेँ बिसरेलौं
वर्ण-१७
54
जकरे देह केर घाम चानन सन गमकै छै
तकरे टुटली मरैया स्वर्गक सुख बरसै छै
अनकर माथ पर बज्जर जे कियो खसबै छै
अपने बोलीक लुत्ती से अपने घर जरबै छै
नवतुरिया छै बुड़िबक बुढ़-पुरान कहै छै
ओहो छलै कहियो नौसिखुए सेनै मोन रहै छै
चूबय ककरो चार केयो भासल भीत सटै छै
खिड़की बुन्न निहारे कियो आनक आड़ि छँटै छै
कंठी-माला चानन-टीका धोती-कुर्ता खूब सजै छै
लेकिन नाञ्गट-भूखलकेँ देखिते नाक मुनै छै
कन्यागत छै कानि रहल वरागत बिहुँसै छै
कियो खून बेचिकऽ देलकै कियो सऽख पुरबै छै
ई की भेलै जे सगरो खाली बहुरुपिया घुमै छै
"चंदन"एलै कलिकाल जे खाली खूनेटा पीबै छै
वर्ण-१८
55
ओ जे बताह बैसल छै सड़कक कातमे
एकोरती नहि लाज छैक ओकरा गातमे
पेटकुनिया लधने जे सूतल एकातमे
दुइयो दाना भातक नहि ओकरा पातमे
दू लबनी पीबि बनै छैक जे नृप साँझमे
तकरा भेटै ने उसनल अल्हुआ प्रातमे
अपनो घरमे कनियो मोजर नै जकरा
दिल्ली केर सरकार छैक तकरा लातमे
जकराले सेहन्ता नवान्नो अपन खेतक
"चंदन" देबै नै पएर तकरा जिरातमे
वर्ण-१६
56
आखर-आखर गानि-गानि की लिखबै हम
मात्रा-बहरे फानि-फानि की लिखबै हम
माइक भाषा पूज्य जानि की लिखबै हम
अप्पन छाती तानि-तानि की लिखबै हम
कविकोकिलकेँ
मान राखि की लिखबै हम
मिथिला-मैथिल युद्ध ठानि की लिखबै हम
फगुआ-चैती गाबि-गाबि की लिखबै हम
रौदी-दाही कानि-कानि की लिखबै हम
भासल सपना छानि-छानि की लिखबै हम
"चंदन" भावहि सानि-सानि की लिखबै हम
222-2212-1222-2
57
बात की भेल एकबेर बढ़िते चलि गेलै
नेहक तागसँ सम्बन्ध सजिते चलि गेलै
रही सचेत त' मुदा बुझलौ नहि मरम
अनचिन्हार मनमीत बनिते चलि गेलै
छल नहि ज्ञात हमरा कोनो रीति-प्रीतक
फेर कहिया ई पिरीत बढ़िते चलि गेलै
जे भेलैक जेना भेलैक बात छोड़ "चंदन"
जिनगी जनु संगीत त' सजिते चलि गेलै
वर्ण-१६
58
कहू, की अहाँ अप्पन संग देबै
जीवनमेँ नवल उमंग देबै ?
हम भटकल बाट-बटोही छी
पथ हेरब हमरा संग देबै ?
राति जागय ई टुकुर-टुकुर
ऐ आँखि सपन सतरंग देबै ?
"चंदन" जीवन जँ काठ बनत
सौरभ मिझरा अंग-अंग देबै ?
वर्ण-१२
59
जगभरिमे सब बस दोसरकेँ आँकयमे छै लागल
भुजि जनताकेँ नेता भुज्जा फाँकयमे छै लागल
अपना घरकेँ अठबज्जर से बचि भेलै नै जकरा
से अनकर देबालक भुरकी झाँकयमे लागल छै
जकरा अंगा-टोपी जुड़लै नांगट बनि नचइत छै
नांगट छै से झँपबा खातिर टाँकयमे छै लागल
भरले-पुरले छै से माँझे ठामहि बिष्ठा फीरय
निरधन बेबस लचरल छै से ढाँकयमे छै लागल
एन्नी ओन्नी दहिना बामाँ घुमबय छै जे जनता
"चंदन" सगरो भरले गप्पी हाँकयमे छै लागल
१४टा दीर्घ सभ पाँति मे
60
हम भाइ अहाँ छी बहिन हमर
दुनू मिलि जितबै जगत सगर
गाम-नगर घर डगर-सगर
हमरे अहाँसँ छै छहर-महर
परपंच कियो कतबो रचतैक
हमरा नहिए परबाह तकर
आशीष अहाँक जँ रहत बनल
पुनि छेकि सकत के बाट हमर
राखीक सपथ कर्तव्यक पहर
"चंदन" नै ताकत बकर-बकर
वर्ण-१३
61
करेजक टीस कहबै ककरा
कहबै जकरे बुझतै फकरा
मकरजालमे फाँसल जिनगी
जगत भरि छै भरले मकरा
कबुला केलकै स'ख पुरेलकै
मारल गेलै ‘बलिक बकरा’
बाँटि रहल छै बखरा-बखरा
भेटल छै जैह जत्तहि जकरा
"चंदन" सत्ता पर जे छै बैसल
किछु नहि आब मोन छै तकरा
वर्ण-१२
62
चुप्प रहलासँ दुनिया नीक मानै छै
लेकिन चुप्पाके दुनिया नै गुदानै छै
हँसै छलै बाजै छलै बेटी नैहरमे
सासुर बसिते देरी किएक कानै छै
बेघर सूतल रहै छै बाट-घाटमे
संपतिशाली जकरा पीचब जानै छै
शोषित नारी मरि गेल लगा'क फाँसी
शोषक, समाज ओकरे वेश्या मानै छै
अजगुत लोक अद्भुत समाज छैक
रहि-रहि "चंदन" एतबे ठेकानै छै
वर्ण-१४
63
हर उठौलहु, पालो टंगलहु, लदहा लाधि रहल छी
गोला आ सिलेबिया बड़दक जोड़ा हाँकि रहल छी
चासि-समारल, फेर तेखारल, आब चौमासि रहल छी
लाल सतरिया करिया कामोर बीआ छाँटि रहल छी
भुटकुनमा-माय बड़ा प्रेमसँ पनपिआइ ल आयलि
बैसि पीपर तर दुहू परानी फुटहा फाँकि रहल छी
जगरनाथ छै अपन हाथ गंगाजल छैक पसेना
एहिसँ सिंचल हम जजाति तेँ जून्ना बाँटि रहल छी
64
बीतल फगुआ, चलू आब रब्बी काटय लेल
बूट खेसारी सरिसब ओ तीसी
झाड़य लेल
भरल दुपहरिया केहन बहैछै पछबा हन-हन
चलू कर’ लेल दओन गहुम राहडि़ झाँटय लेल
बडकी काकी भास लगा, गाबथि चैतावर
बैसलि माँझे आँगन तिसियओरि खोँटय लेल
केहन सोहनगर लागय नवका बूटक सतुआ
चलू चौबटिया बाट-बटोहीकें बाँटय लेल
साँझ पड़ल पुनि पुरबा पलटल कोइली कुहके
बोनिहारक श्रम-पुलकित मन कुदै नाचय लेल
65
कयल कोन पाप नहि जानि ई की भेलइ
लगेलौं नेह जकरेसँ ककरो मीत बनि गेलइ
करय छी प्रेम कतबा हम ओ जानि नहि सकल
आ'कि जानि-बूझिक अनचिन्ह बनि गेलइ
सिनेहक ताग कतय गेल सम्बन्ध की भेलइ
जीनगीक राग-रभस सभटा टीस बनि गेलइ
जग छैक सत्ते "झूठ" बात बूझ ने "चंदन"
टुटै छै स्वप्न सहस्त्रो एकटा फेर टुटि गेलइ
66
हम बैसले छी अन्हारे
छी हेलि रहल मझधारे
तेजलक मीता-भजारो
छोड़लक संग परिवारे
जाधरि छल धनक अम्बारे
खूब भेटइत छल पियारे
आइ एसगरे पड़ल छी
एहि भरले बिच-बजारे
नहि बचल कोनो अधारे
"चंदन" कर्मक मारि खिहारे
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।