सियाराम झा 'सरस'
करोट फेरैत गामक निदर्शक: केएनटी
नाम रहनि कृपानन्द ठाकुर। आशय लगबैत छी- किनकर कृपा? किनका ऊपर कृपा? आनन्द- तँ से कोन तरहक वा कोन बातक आनन्द? स्वयं आनन्दक अनुभूतिमे डूबैत आकि अनकहु ताहिमे डुबबैत? एहन-एहन बहुतो प्रश्नक कछमछीकेँ शान्त करबाक चेष्टा थिक ई व्यक्तिवाची निबन्ध!
परिसर ओ परिवेश: बात छठम-सातम दसक, गत सदीक थिक। बात आजुक मधुबनी जिलाक थिक जे ताहि दिनमे जिला नहि, अनुमण्डले छल आ रूप तकर, बाकलम मलंगिया- 'एकटा ठिठुरल शहर- मधुबनी' सैह छलैक। ठिठुरल किएक, तकर खीसा बड़कीटा छैक मुदा अति संक्षेपहिमे कही तँ एक साल बाढ़ि, तँ दोसरमे अकाल! फेर उगडुब-उगडुब, तँ फेर सुखाड़े-सुखाड़! तैठाम गाम-घर, लोकवेद, जीव-जन्तु-बनस्पतिकेँ जेहेन हेबाक चाही- गरमीमे नंग-धरंग तँ जाड़मे कठुआइत-सिमसिमाइत! देह झाँपए, तँ टाङ उघार आ टाङ झाँपए तँ आङ उघार!
ताही जिलाक मध्यवर्ती क्षेत्रान्तर्गत कमला-बलानक पछबारिए पारमे अवस्थित अछि- एकटा गाम। नाम तकर मेंहथ। की से, तँ मेँहमे कहियो हाथी जोतल जाइत छलै- तेँ मेंहथ! बात से फुसियो नहि थिक। १९५०-५५ क आसपासहु मे चारिटा हाथी रहैक, से आँखिक देखल साँच थिक।
परिसरक आरो ग्रामांचलक चर्च करी, तँ कमलाक पुबारि पारमे महरैल-कन्हौली-झंझारपुर बजार-टीशन प्रभृति, तँ पच्छिम दिस कोठिया-पट्टी-रैमा, भराम-विजइ, कोइलख आदि। उत्तर दिस गोपलखा-रामखेतारी-शंकरपुर तँ दच्छिनमे महिनाथपुर-नरुआर-हैंठीबाली, भैरब-थान, विदेश्वर-थान, लोहना-कथना आदि।
एहि दसकोसी प्रक्षेत्रक रहन-सहन साधारण-गृहस्थौ सैह! हँ, किछु सोति-योगक कारणें लोहना-रुपौली-कथना, भराम-ओ कोइलखक मान-मर्यादा कनेक झाँपल-तोपल; हमरा गाममे छौ-नौ, तऽ ओइ गामसबमे नौ-तेरह होइक। एमहर 'हौ-रौ-यौ' चलैक, तऽ ओमहर अगबे 'यौ-यौ-यौ'। एमहर रोटी माने-मडुआ-खेसारी-चाउर-बदाम-मकइ पर्यंते, तऽ ओमहर शुद्ध गोरकी सोहारी- खाहेँ से चाउरक हो किंवा गहूमक!
कहबाक आशय जे एतबहि दूरमे अकाश-पतालक अन्तर रहैक- रहन-सहन, खान-पीन आ सोच-विचारमे।
शिक्षा: मूलभूत सुविधाक अकाल: गाममे छल एकटा लोअर प्राइमरी इसकूल। इसकूलक बगलमे कनेकटा शिव-मन्दिर आ आगाँमे गामक जीवन-रेखा- बड़का पोखरि। ओना छल तऽ आरो बड़का-बड़का पोखरि- समिया-पोखरि, डकही पोखरि मुदा से सब गामसँ बाहर; बाबू-बबुआनक दफानल-काँट लऽ कऽ बेढ़ल जकाँ!
मिडिल इसकूलक पढ़ाइ करत क्यो, तऽ डेढ़ किलोमीटर दूर, गाम टपिकऽ कोठिया-इसकूल। ई बोर्ड मिडिल स्कूल छल (औखन तहिनाक तहिना अछि)। एतय चारू दिशक पाँच गामक छौँड़ा अबैत छल चौथा किलासमे, तै मेसँ मोटे ५०% सातमा पास कए बहराइत छल, बाँकी ५०% हरबाही-चरवाही, खेती-किसानीमे लागि जाइत छल आ से नै, तँ सोझे कलकत्ता!
हाइ इसकूल सातम दसकमे आबिकए दू-दूटा खूजल छल- भराम आ भैरब-थानमे। दुनू खाँटी टटघर, गाम-गामसँ बाँस-खढ़-खुट्टा-बड़ेरी मांगि-चांगिकए बनल। तकर तेहने शिक्षको-स्टाफो!
तेहनाठाम जकरा व्यवस्थित शिक्षा चाही, जे किछु खास करए-बनए चाहए- से जाथु झंझारपुर- केजरीवाल उच्चाङल विद्यालय अथवा सरिसब हाइ इसकूल अथवा टेँटमे दम होनि, तऽ देखथु मधुबनी-दड़िभंगा!
एतबा शिकस्ते आ संघर्षक अछैतो १९६० ईस्वीक आसपास अबैत-अबैत गाममे दू गोटे एम.ए. पी.च.डी. कलकत्तामे प्राध्यापक, गोट छबेक स्नातकोत्तर एवं पाँचे-छवटा स्नातक डिग्रीधारी भए गेल रहथि, जे सबके-सब गामसँ बाहरे प्रवासमे छलाह। दुर्गा-पूजा, दीया-बाती-छठि, फगुआ तथा गरमी-तातिलमे ई लोकनि अवकाश पाबि गाम अबैत छलाह, तेँ ताहि समयमे गामक प्रायः सबहु टोलमे छहर-महर जकाँ रहैत छल। तेँ दीया-बाती-छठि लगाति अथवा सरस्वती-पूजासँ फगुआक बीच 'युवा नाट्य-कला-परिषद' द्वारा दूटा नाटकक मंचन होइत छल।
से, जे कहैत रही शिक्षा-दीक्षाक मादे, से एकटा असाधारण समस्या छल ताहि दिनमे। ९५% धरि ब्राह्मणोक परिवार खेतिए-गृहस्थी आ माले-जाल पर निर्भर छल। शेष जातिमे थोड़े-थोड़े यादव, मलाह, धोबि, हजाम, पासमान, राम, मण्डल, कमार-सोनार आदिक हाल आर बेहाल रहैक! जकरा घर बुतातो पर आफद, तेँ घरक छओंरा-माड़र इसकूलक सपना की देखत, कोना देखत!
भरिगामक दस-बारहटा परिवार जे सुभ्यस्त (झाँपले-तोपले) कहबैत छल, तिनके लोकनिक बालक मिडिल ओ हाइ इसकूल देखैत छलनि! धी-बेटीक तऽ प्रश्ने उठाएब व्यर्थ छलै। चर्चितो दस-बारह परिवारक कन्यालोकनि, गाममे लोअर प्राइमरी इसकूलक अछैतो नीक जकाँ साक्षर नहि भऽ पबैत छलि। कहबी रहरहाँ छलै 'चिट्ठी-पुरजी लीखए आबि गेलै, तऽ बहुत भेलै!' मुदा ताहू विषम परिस्थिति मे १९६१-६२ ईस्वीक आसपास गामक दूटा बेटी- उर्मिला आ सोनदाइ- झंझारपुर-स्कूलसँ जेना-तेना प्रवेशिका परीक्षा पास कएने छलि (ई दुनू उपरोक्त कलकतिया प्राध्यापक लोकनिक सहोदरा छलीह, तेँ एतबा अदम्य साहसक परिचय दए सकल छलीह)।
एहेन अकादारुण समयमे, जँ ठकुरटोलीक एकटा सामान्य मध्य-वित्त परिवार (स्व. जयकलित तथा अनकलित ठाकुरक) मे सँ एक उच्च मेधा-प्रतिभाक धनीक बालक- कृपानन्द (जन्म १९३९ ई.) बहरेलाह आ केजरीवाल उच्च विद्यालय, झंझारपुरसँ प्रथम श्रेणीमे (१९५७) प्रवेशिका परीक्षा पास कएलनि, तँ से सहजहिं गामक लेल गौरवक एवं इलाकाक लेल अचम्भोक विषय छलैक। एतय उल्लेखनीय थिक जे उक्त विद्यालयक ट्रैक-रेकार्डे जिला स्तरपर ताहि तरहक नामी-गामी छलैक। लगातार कएक वर्ष पहिनेसँ लगातार कएक वर्ष बादहु धरि ई स्कूल वाट्सन उ.वि. मधुबनी; जिला स्कूल दरभंगा एवं एम.एल. एकेडमी (सरस्वती स्कूल) लहेरियासराय केँ टक्कर दैत रहल छलैक। तीनूमे क्रमशः ठाकुर प्रसाद सिंह, एम.ए. द्वय, डिप.एड. (झंझारपुर); चन्द्रनाथ मिश्र (पोखरौनी), एम.ए. द्वय, डिप.एड. (मधुबनी); झिंगुर कुँवर, एम.ए. द्वय, डिप.एड. (लहेरियासराय) राज्यभरिमे सुख्यात विद्वान शिक्षकेटा नहि, कठोर प्रशासक रूपेँ ततबे कुख्यातो बूझल जाइत छलाह। ततबे नहि, झंझारपुरक उक्त विद्यालयमे जहिना लत्तीबाबू सन कठोर अंग्रेजीक विद्वान, दुखहरणबाबू ओ पीताम्बर लाल दास सन-सन स्ट्रीक्ट विज्ञान-शिक्षक, श्यामबाबू-विष्णुदेव बाबू सन-सन हिन्दी आ सामाजिक विज्ञानक स्वर्ण-पदक प्राप्त शिक्षकादिक मार्गदर्शन उपलब्ध छलैक; तहिना वाट्सन (मधुबनी) क चर्च करी तँ डा. श्यामचन्द्र झा (भवानीपुर, पंडौलक) हिन्दी-अंग्रेजीक स्नातकोत्तर, डा. देवनारायण झा (शरहद-शाहपुरक) एम.कौम, स्वर्ण-पदक प्राप्त (वाणिज्य), विज्ञान-मैथ्स शिक्षक (घोंघरडीहा-वासी) तेहने भौतिकी-रसायन ओ गणितक धुरंधर, कुलाबाबू-मदनबाबू दुनू भाइ तेहने अंग्रेजीक टॉपर स्नातकोत्तर विद्वत् जनसँ सुसज्जित छलैक ओ विद्यालय। प्राचार्यक अनुशासन केहन, तँ दू-दू बेर अपन बालककेँ टेस्ट-परीक्षा (प्री-बोर्ड) मे सेन्ट-अप नहि होबए देने छलाह किएक तँ हुनका कलमसँ अंग्रेजी विषयमे ३० नम्बर नहि आनि सकल छलनि। तखन-तेहेन होइत छलैक राष्ट्रपति-सम्मानसँ सम्मानित शिक्षक ताहि दिन मे!
आ एम.एल. एकेडमी (दरभंगा) मे ताहू सबसँ 'वज्रादपि कठोराणि' प्रशासक-सुयोग्य प्राचार्य (राष्ट्रपति-पुरस्कृत) छलाह- गंगापट्टी (लहेरियासराय) बासी झिंगुर कुँवरजी। पं श्री चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' (संस्कृत-हिन्दी शिक्षक) सहित सभ विषयक शिक्षक मात्र तहिना एकसँ बढ़ि एक उद्भट्ट विद्वान! तेँ, तत्कालीन अविभाजित बिहारक बोर्ड परीक्षामे क्रमांक एकसँ १० धरिक मेधा-सूचीमे पाँच-पाँच, छव-छवटा जगह यैह स्कूल सब छेकि लैत छलैक। एतबा खुशफैलसँ ई विवरण दए रहल छी, किएक तँ हम स्वयं केजरीवाल स्कूल, झंझारपुर एवं वाट्सन स्कूल, मधुबनीक छात्र रहि, हायर सेकेण्ड्री कयलहुँ तथा झिंगुर कुँवरजी मेंहथक समधिए छलाह। कृपाबाबूक प्रायः सङतुरिये रहल हेथिन- एक आर ओहने तेजस्वी छात्र- रामबहादुरजी जिनकर हाथ पकड़ि लए गेल रहथि अपन जमाए बनएबा लेल (किन्तु से विद्यार्थीक इच्छाक विरुद्ध)! फलतः विवाहक दुइए-चारिए दिनक भीतर ओ असामान्य रूपेँ कालक गालमे समा गेल छलाह। एहि घटना अथवा दुर्घटनासँ सम्पूर्ण बस्ती दिन नै, मास नै, कएक वर्ष धरि शोकाकुल रहल छल तथा तकरे प्रतिफलेँ तीन-चारि बरखक अभ्यंतरे परोपट्टाक नामी वा अपना सन एकमात्रे लाइब्रेरी- 'श्री रामबहादुर सार्वजनिक पुस्तकालय'क स्थापना सम्भव भेल छल। ओहि होनहार युवककेँ भावांजलि अर्पित करैत एहि अवन्तर कथाकेँ ठामहिं विराम दैत छी। से, कहैत जे रही- १९५७ ई मे मैट्रिक आ १९५९ मे आर. के. कॉलेजसँ आइ.एस.सी. उच्चांक सहित करैत कृपानन्द जी एम.आइ.टी., मुजफ्फरपुर सिविल अभियांत्रिकीमे (१९५९-६३) रॉल नम्बर १ सहित नामांकन लेलन्हि आ अभियन्ता बनि गेल छलाह। हमरा मोन पड़ैछ, हिनका माथपरसँ पिताक छत्र-छाया अकालहि उठि गेल छलनि मुदा अग्रज श्री नित्यानन्दजी पर ताहि अन्हर-बिहाड़िक कोनोटा प्रभाव नै पड़ल छलनि। ओ अडिग अभिभावकत्वक निर्वहन कएने छलाह।
हिलकोर जे लहरि बनि गेल: ढोलिया-बजनियाँ बजबाकए पूजा-प्रसाद जे भरो गाम बँटायल छल- कृपानन्दजीक सफलता ओ बिहार सरकारक सहायक अभियन्ता रूपेँ योगदान (१९६३) देलापर, तकर हिलकोर गौएँ-समाज धरि सीमित नहि रहल छल। प्रायः गोटेक सालक आगाँ-पाछाँ नरुआरसँ स्व. बिकल झा (मेंहथक भागिन) केर जेठ बालक श्री हरेकान्त झा (बोर्ड-टॉपर, ओही केजरीवाल विद्यालयसँ) सेहो, कोठिया तथा महरैल गामसँ दू-दू अभियन्ता (कोठियाक श्री हरिबल्लभ झा, डीडीए दिल्ली सँ विख्यात); फेर १९६५-६६ मे, हमरे बैचक बोर्ड-मेरिट-लिस्टक नारायण झा (नरुआर) अभियन्ता एवं ओही अवधिमे पुनः हमर मित्र-द्वय श्री नरेश झा (आब स्व.) एवं श्री दुर्गानन्द झा लोकनिक इंजीनियरिंग डिप्लोमा प्राप्त करब- महत्त्वपूर्ण परिवर्तनक दौर छल, से कहि सकैत छी। ओही बीचें, कथनासँ सेहो एक जे.ई. (नाम प्रायः वेदानन्द मिश्र छलनि, आब स्व.) भेल छलाह। हमर एक सहपाठी- मेंहथ- लक्ष्मणजी सेहो अभियन्ता बनल छलाह।
शिक्षाक आन-आन क्षेत्र वा विद्यामे सेहो एकटा द्रुत बदलाओ ओहि अवधिमे आयल छल, तकरो अकानल जा सकैछ; यथा गोटेक सालक आगाँ-पाछाँ इन्द्रकान्तजी एम.ए. राजनीतिशास्त्र, सचीन्द्र कुमार झा (फूलबाबू) एम.ए., रामनारायण झा, बी.कॉम/ एम.कॉम, पीताम्बर झा (भुटकुन) क आइ.एस.सी. करैत नेभी ब्वाइजमे भरती, तृप्तिनारायणजीक ओ जयनारायणजीक स्नातकीय डिग्री एवं सत्यनारायण ठाकुरक बी.एस.सी. प्रतिष्ठा तथा भराम उच्चविद्यालयमे विज्ञान शिक्षकक नोकरी-प्राप्ति प्रभृति किछु एहेन-एहेन दृष्टांत थिक जे तत्कालीन शैक्षिक संक्रमण-कालक जागृतिकेँ रेखांकित करैत अछि; जे 'लठिधर-महिंसबार आ पहलमान' मेंहथकेँ पढ़ैत-लिखैत, आगू बढ़ैत तथा सुशिक्षित होइत मेंहथक रूपेँ चिन्हारए देने छल। एही नेओँपर परवर्ती पीढ़ीमे हम, कृष्ण कुमार झा, केन्द्रीय उत्पाद आयुक्त, दिल्ली; मोहन झा डॉक्टर (एम.बी.बी.एस.) आ विजय कुमार ठाकुर (मुख्य अभियन्ता, कोल इण्डिया, कृपाबाबुएक कृपा-उत्पाद) एवं आजुक ई-पत्रिका- विदेह सहित अनेक प्रकारक ई-क्रान्तिक मैथिली-साहित्यमे प्रथम सूत्रपातकर्त्ता श्री गजेन्द्र ठाकुरोक नामोल्लेख जरूरी बुझैत छी। अ थ च सातम दशकमे उठल ओ हिलकोर आइयो लहरि बनि-बनि आयुष्मती प्रीति ठाकुर धरिक तटकेँ स्पर्श करैत देखल-अकानल जा सकैछ।
गौँआ-घरुआक बीच के.एन.टी.: कृपानन्दजी जखन अपन एवं अपना परिवारक उत्थान केर सोपानपर पैर टिका रहल छलाह, ठीक ताही अवधि (सातम दशकक आरम्भिक काल) मे यथा-पूर्वोक्त रामबहादुरजीवला शोक-प्रसंग सेहो गौआँकेँ व्यथित आ मथित कएने रहैक। ई कहब कठिन अछि जे हमर अड़ोस-पड़ोसक गाम-समाज एहेन दुर्घट प्रसंगपर कोन रूपक प्रतिक्रिया दितए, किन्तु हमर गौआँ समाज कोना रिऐक्ट कएलक, से तँ हमरा आँखिक सोझाँ झलकैत अछि मुदा से प्रसंग कनेक थम्हिकऽ।
विद्यार्थीक सहायता: १९६१ ई. मे हमर नामांकन भराम आ कोठिया हाइ स्कूल (जे सम्प्रति भैरबथानमे अवस्थित अछि) के अबडेरैत, झंझारपुर-केजरीवाल स्कूलक आठम वर्गमे, हमर इच्छाक तथा जिद्दक मान रखैत पिताजी करबओने छलाह। जड़िमे तकर कारण यैह कृपानन्देजी छलाह। से बात साल-दू-सालक बाद तखन बुझबामे आयल जखन एकबेर गरमीक तातिलमे 'एवरी-डे-साइन्स'क पोथी लए कृपानन्दजी लग पढ़बा लेल पहुँचल रही। पोखरिक दछनबरिया भीर पर पच्छिम दिस घर-आंगन आ पूब दिसक पूबे मुहक बड़का दलान छलनि। ओहि समय धरि पितियौत लोकनि- सीताराम बाबू (खादी बोर्ड मधुबनीक प्रधान सहायक) एवं पं बच्चा ठाकुर, कुलदीप बाबू- सभक बैसाड़ संगहि छलनि। तेँ दलान सदिखन भरले-पूरल रहैत छलनि। कय-कय जोड़ी तास चलैत रहैत छलैक। दू-तीनटा चौकी पर सैह खेलबाड़ीसभ छेकने रहनि मुदा उत्तर-पूबक कोन पर एक कात लगाकऽ पटियापर एकटा सतरंजी देल आ तैपर चुपचाप बैसल, कोनो मोटगर-गतगर अंग्रेजी किताबमे डूबल कृपा बाबू। कृपाबाबू एहि समय धरि अपन संगी सभक बीच के.एन.टी. क नामे ख्यात भऽ गेल छला। हमरा देखिकऽ सभ खेलाड़ीकेँ जेना अचम्भा किं वा अनसोहाँत लागल सन बुझना गेल छल। कदाचित ई जे आन टोलाक ई कोना...? ई किएक...? मुदा ओ नै अकचकाएल रहथि, किएक तऽ हम एक दिन पहिनहि पोखरिमे नहाइत काल निवेदन कएने रहियनि जे मदति चाही आ ओ सहर्ष तकरा स्वीकारैत 'आबि जाउ' कहने छलाह। ओना, ई एकटा दीगर बात छल जे हमरा गीतहारक रूपेँ किं वा सज्जन-साँहठुल छात्रक रूपेँ सगरो गामक सभ वर्णक लोक चीन्हैत अथवा नहभरि आदरो दैत छल।
-हँ विद्यार्थी। की पढ़बाक अछि?
-एवरी-डे-साइन्स मे 'प्रयोगशालामे ऑक्सीजन गैसक निर्माण'।
ओ हमर पुस्तक देखलनि उनटा-पुनटा कय आ एकहि सूरे तीनटा अध्याय पढ़ा देलनि आ काल्हि अहीबेरमे तीनू चैप्टरक प्रश्नोत्तर लीखि अनबाले कहलनि। बीच-बीचमे बारम्बार 'विद्यार्थी' कहि सम्बोधित कएने रहथि। अगिला दिन हमर होमवर्क देखि प्रसन्नता व्यक्त कएलनि आ लगातार दू घण्टा समय दए लगभग पूरे किताबक शंका-समाधान कए देलनि। हम धन्य-धन्य भए गेल रही! आ तखन फेर इसकूलक चर्चा, एक-एक शिक्षकक हाल-चाल सहित, हमरा पढ़ाइक एवं प्रत्येक विषयक लिखित तैयारीक मंत्र देने रहथि; अंग्रेजी भाषा तथा समाज अध्ययनक गम्भीरतासँ, रटिकए नहि, अपन भाषामे अभिव्यक्त करबाक बोध देने छलाह। यद्यपि हम सम्बन्धित विषयक कॉपी-किताब लए-लए डा. परशुरामजी (अंग्रेजी विषय), देवनारायण ठाकुरजी (वाणिज्य- बुक कीपिंग) आ राजेन्द्र झा जी लग अर्थशास्त्र विषयक यदा-कदा मदति लैत रहलहुँ- बादहुमे, स्नातको स्तर धरि मुदा प्रथम 'पथ-प्रदर्शक तारा' तँ वैह कृपानन्देजी छलाह! हँ, एहि सभ सीनियर्स केर मदति लेल हमर पिताजी पहिने आरि-पाठि बान्हि अबैत छलाह। हुनकर उठब-बैसब चारू टोलमे छलनि आ हुनकर खिसक्करयनक खूब आदर रहनि (अपन दियादक घराइन छोड़िकए बाँकी भरो गाममे)।
पुस्तकालय-प्रसंग: आब सर्वाधिक महत्वक बात समाजक दृष्टिकोणें! वैह १९६०-६२ केर समय छलै जखन स्व. रामबहादुरजीक नाम पर सार्वजनिक पुस्तकालय फोलबाक निर्णयक बात ऊठल छल। उपर्युक्त प्रत्येक सीनियर लोकनिक पुनः नामोल्लेख जरूरी नहि बुझैत, संक्षेपमे कहब जे चारू टोलक न्यूनतम दू-दू वा तीनियों-चारियो गोटेकेँ मिलाए एकटा अस्थायी कार्यसमिति जकाँ बनल छल, सर्वप्रथम प्रायः दीयाबाती-छठिक अवकाशमे। एहिमे ठकुरटोलीक प्रतिनिधि कृपेबाबू छलाह। नीक बात ई जे ओ जखन नहियों रहथि, कोनो अवकाशमे नहियों आबि पाबथि, तैयो नित्यानन्द ठाकुरजी भार टेकि लेथिन आ काज बिधुत नहि होइक।
सभसँ पहिने तय भेलैक जे एहि प्रस्ताव पर रामबहादुरजीक परिजनक स्वीकृति लेल जाए। हुनक गारजन- कमलूबाबू, गौरीबाबू (मास्टर साहेब) आ राधाकान्त बाबू शोकाकुल होइतो, सहर्ष स्वीकृति देलखिन! तत्पश्चात् गारजनक स्वीकृतिसँ चारि-पाँच कनीय सदस्य लोकनि आंगन जाए आदरणीयाँ भौजीक सहमति एवं प्रथम चन्दा/ सहयोग-राशि प्राप्त करैत गेलाह। ताहि नवतूरमे एहि पाँतीक लेखक सेहो रहथि। एहि योजनाकेँ कार्य-रूप देवामे कृपानन्देजीक प्रभावशाली व्यक्तित्व सटीक कुन्जीक काज कएने छल किएक तँ ई निकटस्थ पड़ोसियेटा नै, सङतुरियो रहथिन।
तखन, दोसर प्राथमिकता छलैक स्थान-चयनक। कैकटा जगह केर प्रस्ताव आयल छलै विमर्शक क्रममे- दछिनबारि टोलमे लालबच्चाक पोखरिक उतरबारि भीर पर, तत्कालीन प्राइमरी स्कूल लग, कृष्णदेवजी (बच्चनजी, मुखिया)क मिसरटोली लगक कलममे, वर्तमान समयक दुर्गास्थान लग आदि...आदि।
लालबच्चा लग मुह छानल जाए, से फूलबाबूक सहमतिक अछैतो गामक बेसी युवककेँ नहि अरघलैक, किएक तँ बल्ली-पोखरि लगक फुटबॉल-मैदान पर जबरदस्ती टेक्टर चलबाकए दखल-दिहानी वा कब्जा कए लेब सौँसे गामकेँ असाधारण पीड़ा देने छलैक; से एतेक जल्दी बिसरबाले क्यो तैयार नै छल। सर्वानुमति प्राथमिक विद्यालये लगक स्थानपर छलैक। ओतए प्रायः ७ कट्ठा जमीन इसकूलक नामे कहियोक दान-पत्रमे दर्ज रहैक। बाँकी ताहिसँ दच्छिन शिव-मन्दिरकेँ बाड़ैत, बड़का-पोखरिक मोहारे रहैक। ताहिपर पूरा सरिसबे-खांगुर (आठ आनाक मालिक गाम परहक पटीदार आ आठ आना कचहरी टोल) लोकनिक स्वामित्व छल।
तखन फेर कचहरी टोलक गोपेशजी (बिहार हिन्दी राष्ट्रभाषा परिषद, पटना) एवं गणपतिजी (कलकत्ता) लोकनिक पत्रानुमति लैत गाम परहक पट्टीमे राजेन्द्रजी, इन्द्र (पछाति मुखिया) इत्यादिक सहमतिएँ यैह स्थान फाइनल भेल छलैक। तखन शुरू भेल बाँस-काठ, खढ़ आ ईंटाक लेल बैठकी। चारू टोलक लोक बढ़ियाँ मदति कएने छल- आन- टाका, बाँस-काठ-खढ़ सब लएकऽ। तेँ, प्रारम्भिक योजनाक टटघरकेर बदलामे पजेबेक देबाल पर बंगला छबा गेल छलै- तीन दिस बरंडा सहित।
जतए धरि मोन पड़ैछ, १९६२ ई. मे एहि पुस्तकालयक पंजियन तथा ओही वर्षसँ सरकारी अनुदान (पुस्तक क्रयार्थ) तथा १९६३ मे केन्द्र सरकारसँ रेडियो-सेट-स्पीकर आदि प्राप्त भए गेल छलैक। पक्का रसीद छपल रहैक आ तैपर कलकत्ता-पटना पर्यतों सँ चन्दा-नगदी अबैत छलैक, ताहिसँ बिजली कनेक्सन, पटिया-सतरंजी आ दूटा कठही अलमारी प्रभृतिक व्यवस्था भेल छलैक। सारांशमे कही तँ एहि सकल अभियानक साफल्य सर्वश्री इन्द्रकान्तजी, सत्यनारायण ठाकुरजी, कृपानन्दजी, मधुबनजी, कृष्णदेवजी (बचनी मुखिया), तृप्तिनारायणजी ओ कृष्णदेवजी (मास्टर साहैब) तथा इन्द्र (मुखिया) केर अनवरत प्रयत्ने भेटल छलैक मेंहथकेँ। तेँ, पहिल पुस्तकालयाध्यक्ष इन्द्रकान्तेजी केँ चूनल गेल छलनि। हुनक सहयोगमे (१९६३ सँ १९७० धरि) लगातार यैह सरसजी (जे १९६९-७० मे सी.एम. कॉलेजक छात्र रहैत 'सरस' पदवी सुमन-किरण-मधुप जी लोकनिक मुहसँ पओने छलाह) रहिकए संचालन-भार सम्हारने छलाह।
नाट्य-परिषद प्रसंग: गत सदीक छठम दसकमे मेंहथ-महिनाथपुर (दुनू गामक एकहि पंचायत) केर किछु उत्साही युवक- प्रौढ़ कलाकार लोकनि मीलिकए नौटंकी-पाटी लगभग ८-९ सालधरि चलौने छलाह। दछिनबारि टोलक रमाकान्तजी (४० वर्ष पूर्वहि स्व.) मुहगर-कनगर आ किछु पढ़लो-लिखल छलाह। बहिंगा सन-सन मोंछ आ किछु-किछु धौनी टाइपक झोँटो राखथि। वैह छलाह दलपति आ सुलताना डाकूक भूमिकामे ओ असाधारण अभिनय करथि। गामक आओर किछु चूनल-बीछल कलाकारमे ओही टोलक विशेस्वर उर्फ बिसाइ झा नामी जोकर आ विलक्षण ढोलक-नगाड़ा-वादक छलाह। तहिना छलाह मिसरटोलीक रघुवंशजी जिनका मौगियाही छवि-छटाक संग-संग फिल्मी गीत गायनक लूरि-भास सेहो छलनि।
गामे-गाम उपनयन, वियाह, कोजगरा वा अन्य अवसर पर ई पाटी साइ-साटा कएकऽ दू-दू, तीन-तीन सय प्रति राति, भोजन-भार सहित पबैत छल। ओहि दिनमे जँ खा-पी कऽ ५०-६० टाका कए हिस्सा पाबए कलाकार, तँ से पैघ बात होइक।अस्तु।
ओहि पाटीक टुटला-बिखरलापर एकटा शून्यताक अनुभव भरि गामक लोककेँ होइत छलैक, तकरे पूर्ति हेतु महिनाथपुरमे हर्षनारायणक नेतृत्वमे एकटा रामलीला पाटी शुरु भेल छलै आ मेंहथमे पढ़ुआ-गुनुला बहुत, तेँ नाट्य-परिषदक सूत्रपात भेल छलै (१९६०-६१क आसपास)। जेनाकि ऊपर कहि आयल छी, सार्वजनिक पुस्तकालयक सफलतासँ सबहु टोलाक शिक्षिते लोकनिटा नहि, अशिक्षितो-अल्प शिक्षितो युवा-वर्ग एक सूत्रमे बन्हा गेल छल आ खूब भव्य तरहेँ शारदा पूजनोत्सव आरम्भ भेल छल ओही प्राथमिक विद्यालयक प्रांगणमे। एहि अवसरपर दू राति नाटक खेलेबाक निर्णय भेल रहैक (प्रायः ६१-६२ मे)। एक राति सरदार भगत सिंह (हिन्दी खेला) आ दोसर राति पं. गोविन्द झा (हालहिं स्व.) द्वारा लिखित आ बहुचर्चित मैथिली नाटक बसात तय भेल छलैक।
हमरा नीक जकाँ मोन अछि जे सरदार-भगत, जनरल डायर, कर्नल (वा मेजर) सान्डर्स, लाला लाजपत राय, असफाक-उल्ला, राजगुरु आ बटुकेश्वर दत्तक संग-संग चन्द्रशेखर आजादक भूमिका लेल नयके तैयार एकताक चद्दरि मसकैत-मसकैत बाँचल छल। आ से, धन्न गोपेशजी एवं मधुबनजी! अंततः यैह दुनू गोटे मुख्य-मुख्य पात्रक भूमिका लेल जे औपबंधिक सूची प्रस्तुत केलनि, तकरा तत्कालीन दूटा वरीय गारजन श्यामबाबू (इन्द्रकान्तजीक काका) आ कचहरी टोलक लालबाबू (जे प्रतिष्ठित डाकबाबू छलाह) केर सक्रियतासँ सलटाओल गेल छल।
पहिल राति किछु महत्त्वपूर्ण अंग्रेजी-हिन्दीक कथोपकथनकेँ बजबाकए (इण्टरव्यू जकाँ) देखल-परेखल गेल आ तखन भगत सिंह मधुबनजी तथा अंग्रेजीक शानदार उच्चारण तथा प्रवाहकेँ देखैत, व्यक्तित्व आकलन करैत, कृपानन्दजीकेँ सान्डर्स ओ डायर- दुनू भूमिकाक लेल फिट पाओल गेल छलनि मुदा दुनूक निर्वहन एक संग सम्भव नहि छलैक, से ई देखैत सान्डर्स साहेबक भूमिका कएने रहथि ई। असाधारण रूपेँ यशस्वी भेल छलाह ठाकुरजी! जनरल डायरक क्रूर छविक ओ स्वयं परित्याग कएने रहथि। ओ फ्रेंच-कट मोंछ-दाढ़ी, फूलल-फूलल गालपर ललछौंह फाउन्डेशन आ तैपर मुर्दाशंखक रोगन आ माथापर अंगरेजिया हैट...!
दुनू अंगरेजक डायलॉग जतऽ-जतऽ बेसी लमगर रहैक आ शब्द कठिनाह, ततऽ-ततऽ बहुत कारीगरीसँ एकटा-दूटा कए हिन्दीक वाक्य सेहो ओही तेबरक, घोंसिया देल गेल छलैक जाहिसँ ग्रामीण-तमशगीरक लेल बोधगम्यता सहज भए गेल छलैक। नाटकक सफलताक 'ग्राफ' कतबा आ केहन दिव्य छल, से एहिसँ बूझल जा सकैछ जे दुनू अंग्रेजबा खलनायककेँ दर्शक दीर्घासँ जुत्ता-चप्पल आ ढेपा पर्यन्त देखाओल गेल छलैक तथा 'मार ने रौ- अइ बनरमूहाँ के पटकिकऽ ओध-बाढ कर ने रौ'- तेहन-तेहन टिप्पणी सभ बेर-बेर उछलल छलै। ताहूसँ आगूक बात ई भेल छलै जे चारिटा मेडल (रजत) लाल-भाइ (लाल बाबू, कचहरी टोल) तथा दूटा मेडल श्याम-भाइ दए-दए सम्मानित-प्रोत्साहित कएने छलाह कलाकार लोकनिकेँ। आ कृपा-बाबू दुनू गोटेक सूचीमे एक नम्मर पर रहथि। आ ताहूसँ आगाँक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि ई भेल रहैक जे ठीक साल-डेढ़ सालक भीतरे कोनो शुभ अवसर पर एहि नाटकक मंचन फेर करए पड़ल छलैक नाट्य-परिषदकेँ आ ताहि लेल लाल-भाइ अन्य खर्चा संग-संग ५००/- टाका देने रहथिन- एक सेट परदा एवं शाही-ड्रेस कीनबा लेल। से सभ यथासमय दरभंगासँ किना गेल रहैक।
लग-पासक गाम-कोठिया, पट्टी, महिनाथपुर, भराम-गोपलखा आदिक लोक उनटिकए अबैत छल खेला देखबा लेल। वरिष्ठ गारजन लोकनि अनुशासन आ स्त्रीगण-पुरुषादिक बैसबाक समुचित व्यवस्था-भार टेकैत छलाह। कएक बेर बी.डि.यो, सी.ओ. तथा डिप्टी-इन्सपेक्टर (स्कूल) आयल रहथि आ भरि-भरि राति इसकूलक बरंदा पर दसेक कुरसी लगाए, लालबच्चा (पूर्व विधायक झंझारपुर विधान सभा), लालबाबू, कमलाबाबू, गौरीबाबू, श्यामबाबू, बाबूजीझा (पंचायत-मुखिया), फुसियाहा बच्चा (कोठिया) सन-सन सम्भ्रान्त लोकनि बैसैत छलाह। ई लोकनि बिना निवेदन अपना मोने सय-पचास टाकाक मदति देल करथि परिषदकेँ। ई क्रम एकटा परम्परा बनैत १९६०-६१ सँ १९८०-८१ धरि चलैत रहल छल जाहिमे क्रमशः दिनेशजी, नरेशजी, दुर्गानन्दजी, रवीन्द्र, उदयचन्द्रजी, ताराकान्त, हीरालाल, लक्ष्मणजी (अभियन्ता), आदि जुड़ैत चल गेल छलाह। एकरे कहैत छैक- 'हमनवा आते गए और कारबाँ बढ़ता गया'! सरस्वती पूजाक संग-संग नाटको देखबाक हँकार जाइत छलैक लगपासक सभ गामकेँ।
पुस्तकालय-प्रसंग: बहुत बात पहिनहुँ चर्च भेल अछि, तकरा दोहरेबाक प्रयोजन नहि। एतबा कहब मुदा जरूरी अछि जे ओहि रामबहादुर सार्वजनिक पुस्तकालय (मेंहथ) केर भाग्य १९६१ सँ १९८१ धरि दनदनाइत-सनसनाइत उच्च सँ उच्चतर होइत रहल छलैक। पुस्तकक संख्या १३०० लगभग गौँआक सहयोगेँ आ १८०० लगभग सरकारी अनुदानसँ, कुल ३१०० सँ बेसीए (दू अलमारी भरि) जमा भए गेल छलैक। अनुदानसँ पूर्व दू-दू खेप एस.डी.ओ. एवं जिला शिक्षा पदाधिकारीक निरीक्षण भेल छलैक, तिनकर स्वागत-सत्कारक व्यवस्था उत्तम रीतिएँ सकल समाजक सहयोगेँ भेल रहैक। माछ-भात, दही-चीनी-रसगुल्ला ओ पाँच चङेरा आमक व्यवस्था भेल रहैक। चाह-जलखै आ भोजनादिक व्यवस्था-बात नित्यानन्दजी एवं तकरा क्रियारूप देब हमरे पर छल।
ई पुस्तकालय केवल रामबहादुरजीकेँ श्रद्धांजलिएक लेल नहि स्थापित भेल छल, वरंच वास्तविक रूपेँ ई एकटा सामाजिक परिवर्तनक माध्यम छल आ से, प्रायः ४-५ वर्षक अभ्यंतरे बहुत रास बदलाओ निखरि-कए सोझाँ आबय लागल छल। यथा प्राथमिक इस्कूल 'लोअर' सँ 'अपर' प्राइमरी भए गेल छलैक। बातकेँ एना बूझल जाए जे हमर नाम चारिम वर्गमे (१९५७ ई) कोठिया बोर्ड मिड्ल स्कूलमे लिखाओल गेल छल मुदा हमरे छोट भाय रमेशजी (मैथिलीक लेखक, अवकाश-प्राप्त उप-समाहर्त्ता) केर नामांकन कोठिया इसकूलमे छठम वर्गमे भेल छलनि। ततबे किएक? आन गाम किं वा कर-कुटुमक गाम बूझि मेंहथक अधिकांश धी-बेटी तेसर किलासक बाद जे पढ़ाइ छोड़ि देबालेल अभिशप्ते जकाँ छल, से सब आब कम सँ कम पाँचम वर्ग धरि तँ गामहिंसँ करए लागल छलि। हमर अपने तीन-तीनटा बहिन, परशुरामजीक पुत्री, देवनारायणजीक पुत्री सहित गोट दसेक बेटी-डाँटी छठा-सातबाँक पढ़ाइ कोठिया इसकूलसँ कए आगू बढ़लि छलि।
बिजलीक लाइन गाममे आबए, ताहि लेल जे विद्युत-अनुमण्डलीय अभियन्ताकेँ आवेदन पड़ल छ्ल, सेहो एही पुस्तकालयमे बैसिकय सर्वश्री इन्द्रकान्तजी, तृप्तिनारायणजी आ लालबाबू लोकनि तैयार कएने छलाह। तहिना मधुबनीसँ कमलाक पश्चिमी तटबन्ध (कचहरी ढड़ान) धरिकेँ डिस्टीक्ट बोर्डक सड़क केर पक्कीकरणक लेल यत्न भेल छल।
जखन मधुबनी अनुमंडल कार्यालय एवं दरभंगा जिला मुख्यालयमे जा-जाकए धक्का पड़लैक, तँ द्वितीय पंचवर्षीय योजनाक ई काज सब तृतीय पंचवर्षीय योजना कालमे (शुरुहेमे) निष्पादित भेल छलै, तहिया महिनाथपुर-कोठिया-पट्टी सन-सन बहुतो पड़ोसिया गामकेँ डाह-ईर्ष्या भेल छलैक; तकर उपराग ओ गाम सब तत्कालीन विधायक (हमर गौआँ) केँ जहिं-तहिं बाट चलैत दैत रहै छलनि, सेहो देखल अछि।
पुस्तकालयकेँ भारत सरकारसँ बेस पैघ 'आयरन-चेस्ट' सनक रेडियो-सेट भेटल छलैक (१९६२- जनवरी-मार्चमे), ताहिपर भरो गामक लोक भोर-८ आ राति-८ बजेसँ ९ बजे धरिक हिन्दी-अंग्रेजीक समाचार सुनैत छल। समय पर रेडियो-फोलब-बन्द करब हमरे (सहायक पुस्तकालयाध्यक्षक) काज रहैत छल। खास बात ई रहैक जे ई रेडियो बिना स्पीकरे नै बजैत छलैक (इन-बिल्ट-स्पीकर नै रहैक सेटमे)। तैँ एकरा, कम्यूनिटी (सामुदायिक) रेडियो कहल जाइक। एहि स्थितिमे पुस्तकालय-बंगलाक एक कोन पर एकटा तीस-फिट्टा मोटकर बाँसमे रेडियोक भोम्हाकेँ बान्हि टाँगल गेल छलै आ भरि गाम आवाज पहुँचैक, ताहि लेल ओहि बाँसकेँ आध-आध घण्टापर घुमाबए पड़ैत छलैक; नै तँ दोसरे दिन कोनो टोलक उपराग सूनय पड़ैत छल (विशेषकए १९६२ केर चीन-भारतक युद्धक समयमे)। कहि सकैत छी जे ७०-७५% अनपढ़-किसान वा मजदूर-बोनिहार-महिंसबारक बीचहुमे समाचार ओ रेडियो पर पटना केन्द्रसँ चौपाल कार्यक्रम सूनब एकटा सुखद अनुभूति बनि रहल छलै।
एही पुस्तकालय-कक्षमे १९६४ सँ १९७०-७२ ई. क बीच भवानीपुर गामक गमैया-डाकदर (जे निष्णात कम्पाउण्डर मात्र रहथि) साहेब तथा बिजली मिस्त्री अनिरुद्ध बाबू (भवानीएँपुरक) सेहो रहल छलाह- गौआँक सहमति सँ। ई दुनू गोटे आस-पड़ोसक सभ गाममे साइकिल सँ भ्रमण कएल करथि आ मोटामोटी सर्वप्रिय भए गेल रहथि। आ हिनके दुनूक सूत्रसँ हम भवानीपुरक जमाए (समय-पूर्वे) बनि गेल रही।
हम गामसँ बहरेलहुँ (१९७० जुलाइ), तकरा बाद ३-४ वर्ष धरि नरेशजी, दुर्गानन्दजी, रबीन्द्र, गौरीझा, जुगेशर भाइ (हमर दियाद लोकनि) घीचि-घाचिकए चलौलनि मुद प्रगति थकमका गेलैक। एही अवधिमे गाममे दोपाटी भए गेल रहैक, भरि गामक पढ़ुआ-गुनुआ आ कलकतिया लोकनि एक दिस आ पूर्व विधायक- गामक जबर्दस्तीक जमीन्दार पाँच-दसटा जी-हजूरी एवं लाठीवलाक संग दोसर दिस।
फुटबॉलक प्रसंग: मेंहथहुमे एकटा टीम रहैक, तै मे ३० टा सँ बेसी समर्थ खेलाड़ी रहैक; निछड़ल-छाँटल छहछह करैत- १६ सँ ३०-३२ बरखक बयसवला; मैट्रिकसँ स्नातकोत्तर धरिक शिक्षावला आ किछु अल्प-शिक्षितो।
कृपानन्दजी आ सत्यनारायण ठाकुर उच्च श्रेणीक 'बैक-पोजीसन' (फुल-बैक वा हाफ बैक दुनू) वला प्लेयर छलाह। नारायण चौधरी, पीताम्बर (इण्डियन नेभीमे जॉइन- जॉइनक बादो जखन-तखन), तृप्तिनारायणजी आ नागेश्वरजी (हमर पितियौत) आदि नीक कोटिक (तेजस्वी दौड़निहार आ बामा-दहिना दुनू पैर चलैत) 'सेंटर फारवर्ड' छलाह। गणपतिजी तथा कृष्णदेवजी (दछिनबारि टोल, पछाति मास्टर साहैब) नीक गोली रहथि। भन्नू मण्डल, गौरी झा (पुबारि टोल), सीतम्बर, बेदानन्द (सब पुबारि टोल) लोकनि पढ़ाइमे पछड़ल किन्तु खेलमे बेस टिकाउ आ विश्वसनीय छलाह।
एकबेर गरमी तातिलमे तीनटा 'कपवला' (ट्रॉफी) चैम्पियनशिप मैच राखल गेल छलै। घोँघरडीहा बनाम मेंहथ, खड़ौआ बनाम मेंहथ आ रैमा बनाम मेंहथ। रैमाक टीम मे कोठिया-पट्टीक 'बोड़ो' तँ मेंहथहुमे भरामक रामचन्द्र सिंह (सेन्टर फॉरवर्ड) बोड़ो कएल गेल छलाह। कृपानन्दजी प्रायः सेवामे आबि गेल रहथि (१९६४-६५), तेँ केवल दुइए मैच मे खेलाएल रहथि। से दुनू मैच क्रमशः खड़ौआ तथा रैमासँ मेंहथ जीतल छल मुदा तेसर मे हिनका नहि रहने तथा घोंघरडीहाक टीम २० नहि, २१ छलै, ताहू कारणे तीन-एक सँ हमर गाम हारल छल। ई सबटा मैच आ चैम्पियनशिप झंझारपुरक टिबड़ेबाल स्कूल-ग्राउण्डमे भेल रहैक। एहि दुनू ठाकुरजी (के.एन.टी/ एस.एन.टी.) केर ब्यूह-भेदन केहनो भारी टीमक लेल असम्भवे जकाँ रहैत छलैक, से हमरा आँखिक देखल अछि। अस्तु।
एहेन विलक्षण टीमक फुटबॉल-ग्राउन्ड (बल्ली-पोखरिक कात मे- उत्तरी भागमे) अकस्माते, अजराजोड़ी बन्दुकक नोंक पर हड़पि लेल गेल छलैक मेंहथमे। तेँ गाम दोपाटी! तेँ विभेद पराकाष्ठापर। ९९% धरि कलकतिया-नोकरिहारा समेत भरो गामक पढ़ुआ लोकनि प्रो. धनेश्वर झा, प्रो. परशुराम झा, प्रो. राजेन्द्र झा, प्रो. देवनारायण ठाकुर, लालबाबू, मधुबनजी, इन्द्रकान्तजी प्रभृतिक सक्षम नेतृत्व पाबि संगठित भेल छला आ यएह दल धनेश्वरजीक अपमानक बदलामे जमीन्दारक जेठ सपूत (जे बन्दूक भँजैत फुटबॉल ग्राउन्ड पहुँचल रहथि पिताक बाँहि पूरैत) केँ अंततः बनिसार (जहल) मे हप्ता भरिक लेल बन्हबा देने छलनि। ई छलैक एकताक बल!
मुदा से बड़े महग ओलि छल। गामसँ फुटबॉल केर बीजधरि उपटिए गेल! तहिना, पुस्तकालयो श्रीहीन होइत चल गेल!
गुरु-शिष्य ओ सेवा-व्रत: श्रीमान् भवानन्द झा असाधारण सूझ-बूझ ओ मेधा-प्रतिभाबला अभियन्ता छलाह। ढंगा-हरिपुर बासी, एहि बी.एन. झाक जोति बड़ैत रहनि- सातम-आठम-नवम दशक (१९६५-९५) मे। सहायक अभियन्तासँ अविभाजित बिहारक चीफ-इंजिनियर (इंजिनियर-इन-चीफ सहित) होइत 'बिहारक विश्वेश्वरैया' पर्यंत कहओनिहार एहि महामानव लग प्रत्येक विभूषण झुझुआने लगैछ। के करत विश्वास ५० वर्षक बाद जे हमरा लोकनिक एकटा एहनो ऋषिकल्प समाङ भेल छलाह जे प्रत्यक्ष आ परोक्षरूपेँ सोन-कमांड, कोयल-कारो, डी.भी.सी., तेनूघाट, बराकर-बाँध, राँचीक आसपासक कएक जलापूर्ति योजना (डैम निर्माण) सहिते गंगा नदी पर गांधी-सेतु (पटना) क आरेखक स्वप्नदर्शी रहथि? जे एहेन-एहेन हजारो-लाखो करोड़क योजना-परियोजनाक सूत्रधार-संचालक- महा-पर्यवेक्षक होइतो, जीवन-पर्यंत एकटा मड़ौसी खपड़पोश (ढंगाक ओ स्थायी निवास हमरा बेर-बेर देखल अछि)मे बितौलनि। बड़का-बड़का करोड़पति-अरबपति ठीकेदारकेँ सेहन्ते रहि गेलैक जे एक कप चाहो हुनका पियबतनि किं वा एक खिल्ली पानो खुअबितनि।
ताही महामनाक सहोदर, ओही लोक निर्माण विभागमे कार्यपालक अभियन्ता (अनुज- श्री सूर्यानन्द झा) सेहो छलथिन मुदा से सर्वथा दोसर लोक रहथिन।
.. आ ताही गुरुक पट्ट-शिष्य (कार्यक्षेत्रमे) रहथि हमरालोकनिक मार्गदर्शी कृपाबाबू। भेलैक एना जे संसारक सभसँ नम्मा नदी पुल (५.७५० किलोमीटर प्रायः) गाँधी सेतुक निर्माण हेतु जखन भारत सरकारक स्वीकृति (१९७०-७१: पंचम पंचवर्षीय योजनान्तर्गत) भेटलैक, तखनेसँ-तहियेसँ एकदिस ग्लोबल-टेण्डर द्वारा विश्व-स्तरीय निर्माण एजेन्सीक चयन प्रक्रिया चलल छलैक आ से 'गेमन इण्डिया' केर चयन होइते, दोसर दिस कार्य-गुणवत्ताक निरीक्षण-परीक्षण हेतु सुयोग्य नहि, सुयोग्यतम अभियांत्रिक कार्य-दलक खोज-बीन सेहो चलल छलैक। ई पूरा निर्माण कार्य १९७२ सँ १९८२ ई. धरि चलल छलैक आ मई-१९८२ मे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी एकर उद्घाटन कएने छलीह।
से, ओहि वृहदाकार परियोजनाक सम्पूर्ण देखभालक भार जखन भवानन्द बाबूक हाथ सौंपल गेल छलनि, तँ (हमरा मोन अछि- हमरो पदस्थापन पटने छल) ओ दू टूक भाषामे तत्कालीन मुख्यमंत्री (डा. जगन्नाथ मिश्र) केँ कहने छलथिन एकटा शर्तेक रूपेँ जे निरीक्षण-परीक्षण हेतु अभियांत्रिक कार्य-दल हम अपना हिसाबेँ बनाएब आ तकर कार्य-प्रक्रियामे कोनो तरहक हस्तक्षेप कोनो मंत्री-संत्री नहि करताह। आ से यथावत् मानलो गेल छलनि। ई बड्ड पैघ बात (कहू जे आश्चर्य आ अजबे जकाँ) बूझल गेल रहैक ताहि समय मे, असाधारण रूपेँ प्रिंट-मीडिया मे चर्चित सेहो।
आ हम मैथिल लोकनि विशिष्ट गौरव-बोधक अधिकारी छी जे एहि विश्व-विश्रुत परियोजनाक संचालन-परिचालन-निरीक्षण एवं सावधिक परीक्षण मे मुखियाजी भवानन्द बाबूक संग उप-मुखिया वा सरपंचक भूमिकामे हमरा सभक अप्पन कृपानन्देजी छलाह (यद्यपि अभियन्ता आओरो कएक छलाह दलमे किन्तु काबिलियत एवं इमानदारीक प्रतिमूर्ति यैहटा! अपना सन एकमात्र अपने! हमरा सनक बहुतो लोक छुट्टीक दिनमे निर्माण देखए जाइत छल।
एहि इमानदारी तथा कर्मठताक एकटा एहेन सत्य घटनाक विवरण रखैत एहि निबन्धक इतिश्री करए चाहब जे सिनेमाक रील जकाँ हमरा मानस-पटल पर विगत ४० वर्ष सँ यथावत अंकित अछि। एहेन-एहेन साँचमे की, कहियो आँच आबि सकैए!
(प्रायः) समय १९८०-८१ क एक राति। स्थान-गांधी सेतु (निर्माणाधीन)क हाजीपुर-मुहाना परहक राजकीय निरीक्षण-भवन परिसर। अस्थायी बिजलीक खुट्टामे जत्र-कुत्र टांगल तार आ छोट-छोट पीयर-पीयर क्वाटरमे टिमटिमाइत लट्टू बॉल। तकरा छपने-झँपने अबैत सन गंगा कातक कुहेसी अन्हारक महजाल! शान्त शिविरमे अशांत वा उद्विग्न-मना बइसल एक अयाचीक वरद् हस्त संतान, ओछाइन आ टेबुलपर मारते रास कागत-पत्र-फाइल पसरल।
साइट पर, बीच बालुका-राशि पर (गंगाक उतरबरिया कछेर दिस) दूर-दूर धरि पसरल लोहा-लक्कड़, छोट-पैघ रौटी-तम्मुक आ गैंता-बेलचाक संग सिक्कड़ झुलबैत गजराजक सूँढ़ सन अनेक साँवल-क्रेन-हिटाची-टाटा-कैटरपीलरक भारवाही मशीनक धर्रोहि आ तै बीच-बीचमे सिमेण्ट-लोहा-कंक्रीटक जमौआ बड़े-बड़े चट्टान (खण्डांश) जहत्तरि-बहत्तरि ढंगड़ि आयल।
तै सिमिटिया चट्टान सभकेँ हथौंड़ा मारि-मारि कोण-किनारकेँ झाड़ि-झाड़ि देखैत आ 'टेम्पर' जँचैत एक विशेषज्ञ। 'यहाँ से तोड़ो'- 'यहाँ से फोड़ो'- 'रॉड निकालकर दिखाओ', 'रॉड की मोटाई १६ एम.एम. क्योँ?', 'रॉड टाटा-ब्रैण्ड क्यों नहीं?', 'बालू क्लासिक सोन-सैण्ड क्यों नहीं?', 'स्टोन-चिप्स अण्डर-साइज क्यों?' एहेन एहेन पचासनि सवाल गेमन इण्डियाक मुख्य अभियन्तासँ होइए, से आइयो, फेर काल्हियो आ फेर परसुओ! ओकर प्रोजेक्ट डायरेक्टर तंग-तंग होइए। ओ अपन मातहतक लघु संवेदक सभक बैसार करैए। उप्पर के बाँस अपनासँ नीचाँ, तै सँ नीचाँ, तहूसँ नीचाँ... होइत-होइत सभसँ नीचाँ धरि खोँचाड़ल जाइए मुदा सही जवाब नै पबैए। अंततः निम्न स्तरीय वा स्तरहीन-निर्माण प्रमाणित करैत बीसोसँ अधिक खण्डांश [जकरा अंग्रेजीमे 'सेग्मेण्ट' (segment) कहल जाइछ] केँ खारिज वा रद्दी घोषित करबा देल गेलैक। तकरा सभ प्रक्रियाक पालन करैत, राज्य सरकार आ केन्द्र सरकारहुकेँ प्रतिवेदित हेबाक छलैक- ठीक अगिला दिन।
ओहि कम्पनीमे तँ हड़कम्प मचबे कएलैक, संगहिं (ओही कालखण्ड मे नया-नया बनल) टेक्निकल सचिवालय पर्यन्तो प्रकम्पित छल, किएक तँ ओहि कम्पनीक चयन ग्लोबल-टेण्डर सँ आ दिल्लीक सहभागितासँ भेल रहैक। दोसर महत्त्वक बात छलैक जे एहि 'सेगमेण्टेशन-बीज' क वैचारिकी एकदम्मे अभिनव रहैक जकर व्यावहारिक ज्ञान अधिकांश अभियन्तोकेँ नै छलैक ताहि दिनमे। तेसर बात जे खास रहैक से छलैक- एक-एकटा ढलाइ कएल खण्डांशक लागत लाखहु रुपैया पड़ैत छलैक, तेँ कम्पनीकेँ करोड़क नोकसान सम्भावित छलैक।
गुरुदेव (बी.एन. झा) साहेब चरणबद्ध रूपेँ उक्त प्रतिवेदनक प्रक्रियासँ अवगतेटा नहि, ओहिमे शामिलो छलखिन, स्थल-निरीक्षण कए स्वयं निम्न-स्तरीय निर्णयसँ आश्वस्तो भेल छलखिन। ओहि दिनमे फोनपर भारते सरकारक एकाधिकार छलैक तथापि छत्तासँ उड़ल मधुमाछी जकाँ फोन सब तीनू दिन अनवरत घनघनाइते रहल छलै। चोङा हाथसँ रखलौं नहि कि फेर घनर-घनर...।
ओहि बिध-पुराओने सनक निरीक्षण भवनमे नाम मात्रेक दू टा प्रहरी छलै जे बहरी मे बैसल तमाकुल लटा रहल छलै। भीतरमे एकटा आदेशपाल साहेब लेल रोटी-दालि-तरकारी बना रहल छलै आ साहेब अपन शयन-कक्षेमे, टेबुल-कुरसी लगौने रिपोर्ट-रीटर्नमे लागल छलाह। एहि शिविरसँ थोड़े हँटिकए हाथीक देखौआ दाँत सन एकटा पुलिस-पोस्टो छलैक जाहिमे कखनो दूटा लाठी-पाटी सिपाही रहैत छलै आ कखनो सेहो नदारद!
राति, घड़ीक हिसाबेँ बहुत नै भेल रहैक मुदा आबादी सँ दूर गंगा-तटक एहि टोलबा पर एकदम सन्नाटा पसरल रहैक। कि तैखन एकटा गार्ड बरंदा परक खिड़की लग लाठी पटकैत, ओही खिड़की लगाकए भीतरी बैसल हाकिमकेँ आवाज दैत बाजल- साहेब-साहेब! कोई जीप आई है फाटक पर। दो-तीन आदमी उतरा है जो फाटक खोलने बोलता है। का, तो हाकिम से मिलना है।
साहेब ठामहिं बैसले-बैसल खिड़कीक एकटा पल्ला कनिएँ फोलैत, गार्डकेँ कहलखिन- अभी ई कौन है जी? बोलो कल सुबह मे आएगा- जो भी है.. कल आठ बजे आएगा!
किन्तु ताबत काल धरि दूटा भारी-भरकम मोछेला सनसनाएल बरन्दा पर चढ़ि गेल छलैक। आ गार्डकेँ धकिअबिते जकाँ कोठलीक ओठङाओल केबाड़केँ धक्का दैत, भीतर पैसि गेल छलै। ई गौरसँ चेहरा देखलनि- एकटाक मूऽ-कान चिन्हार सन लगलनि, प्रायः साइट परहक मुंशी-तुंशी छल हैत। दोसर गोटे साफे अनचिन्हार... देखबामे एकदम्मे सुलताना डाकूक सहोदर। डाँड़मे चमौटी आ चमौटीमे ओजनगर पेस्तौल लटकल। दुनूक हाथमे एक-एकटा ब्रीफ-केस। चेहरा पर गलौधी बन्हने।
-आपलोग...? क्या बात है? इस समय कोई काम है मुझसे?
-जी सर! घबराइएगा नहीं! साहेब भी आए हैं, गाड़ियेमे बइठल हैं। ये (हाथक ब्रीफ-केस देखबैत) सर, आपके लिए कुछ लाए हैं!
-अच्छा-अच्छा! क्या है इनमें? मैंने तो किसी को कुछ लाने के लिए नहीं कहा था!
-सरजी! सरजी! इसमें (अपन दुनू हाथक थापड़ जकाँ देखबैत, प्रायः संकेत सँ पाँच-पाँच दस-दस केर) इतना अभी है। और जो हुकुम होगा, कल-परसू फिन आ जायेगा- साहब बोले हैं...।
-ऐ। चलो, ये उठाओ और यहाँ से भागो! चलो, भागो!...
से एतबा कहैत साहेब कोठलीक दोसर कोनमे टेबुल पर राखल फोन दिस डेग बढ़ौलनि किन्तु ततबेमे एकटा तेसरो प्रवेश केलक कोठलीमे।
-सर, सर! सुनिये न! फोन-ओन किसको कीजिएगा? इतना जो दिन-रात खटते हैं सो का मिलना है? ई नोकरी से आजकल गुजारा चलना है का?
ओ तेसर आगन्तुक समुझाबैत जकाँ कहलकनि।
-सुनिए-सुनिए! नौकरी हम करते हैं, क्या मिलता है, कितना मिलता है- उससे आपको क्या मतलब? चलिए, आइए, ये सब लीजिए और चलते बनिए यहाँ से! हमारा गुजारा कैसे चलेगा, वो मुझे सोचना है न, आप उसमें टाङ मत अड़ाइए!
-सर-सर! बाल है, बच्चा है! परिवार का राजी-खुशी सब्बे चाहता है सर! इसलिए घर आइल लछमी का अपमान तो नहीं न होना चाहिए सर!
-सुनो-सुनो बाबू! कितनी उमर है तुम्हारी? और वजन कितना है?
-सर! ५८ बरिस हो चला है! आउ ओजन तो.. ८० किलो तक...!
-और बाल-बच्चे कितने हैं?
-सर, पाँच हैं! तीनठो बेटी और दो ठो लड़का है! काहे सर! ई सब काहे पूछते हैं?
-देखो तुमको वेतन मिलता होगा पाँच-दस हजार। और फैमिली होगा, माता-पिता होंगे, तो नौ आदमी, है कि नहीं?
-जी सर! सो तो है!
ओ तीनू मुह ताकऽ लागल साहेबक।
-हाँ, तो तुमको चोरी-डकैती करना पड़ेगा, हो सकता है। और तुम जब ये सब बेइमानी-शैतानी करोगे तो बाल-बच्चे तुमसे भी बड़े शैतान-गुण्डे -मवाली होंगे। समझे? तुम्हें नमक-रोटी के साथ दारू-मुरगा भी चाहिए। तुम्हारा वजन यही हराम का खा-खा कर ८० किलो हुआ है! और बी.पी.- सूगर भी बढ़ा होगा, जाँच कराया है?
-नहीं सर! एकबार चक्कर आ गया था, तो डाक्टर बोला था ऊ दोनों जाँच कराने, नहीं करा पायें!
-बस-बस! यही समझने की बात है! मैं खुद भी स्वस्थ हूँ और बाल-बच्चों को भी तन और मन से स्वस्थ रखना चाहता हूँ। सभी परिश्रमी हैं। मन लगाकर पढ़ते-लिखते हैं। घर में न नाजायज आमद, न फालतू खर्च! न चोरी-डकैती का कोई डर! और ये मूँछबाला जो पेस्तौल लटकाके घूमता है न, कहीं सिपाही-हवलदार से रिटायर हुआ होगा और कम्पनी के जी.एम. का बॉडीगार्ड है! है न जी? तुम्हारा नाम रामेश्वर सिंह और घर बिहटा है न?
पेस्तौलवला अपन नाम-गाम सुनिते मूड़ी झुकौने तत्काले कोठलीसँ बाहर भऽ गेल। ओकर घाड़ ओतेक नै झुकल रहैक, जतेक टेरल-टेरल कर्ड़ल-कर्ड़ल मोंछ।
-हाँ तो अब आपलोग भी ये माल-असबाब उठाइए और जाकर अपने बॉस को बोल दीजिए कि यह पण्डित दो क्या, बीस ब्रीफकेस में भी बिकाउ नहीं है। और यह भी बोलिएगा कि अभी कम से कम डेढ़ दसक तक मृत्यु-योग नहीं है हमारा!
दृढ़ स्वरेँ एतबा कहैत, ओकरा सभकेँ बाहर बरंदा परहक सीढ़ी धरि अरिआइत देलखिन। ओ दुनू बरंदा सँ उतरि एकबेर पाछाँ घूमि हिनका भरि आँखि देखलक, कल जोड़ैत आ माफी मँगैत फाटक लगक इस्टाट भेल गाड़ी मे जा घोंसिआएल-फुर्र!
ई असाधारण हाकिम आर क्यो नहि, हमरा गामक अथवा हमरालोकनिक गौरवशाली 'अयाची-परम्परा' केर प्रायः आखरी स्तम्भ भवानन्दे जी ओ कृपानन्द ठाकुरेजी छलाह। आ एहि घटनाक अनुगुंज पहिले-पहिल चेतना समितिक एक बैसार मे मैथिल-गौरव भवानन्दे बाबूक मुहेँ (संक्षेपमे) आ पछाति स्वयं ठाकुरेजीक मुहेँ दरभंगा-प्रवास (१९८९-९० क हमर गृह-प्रवेश, लक्ष्मीसागर कॉलोनी) कालमे सुनने छलहुँ।
तहिया ठाकुरजीक मुहसँ बहराएल ओ (बाल-बच्चाक मादे भविष्यवाणी वला) बात सभ आ आजुक मैथिली साहित्यांगनक 'कुरुक्षेत्र विजयी गजेन्द्र' आकि 'पञ्जी-प्रबन्धक नब व्यवस्थापक गजेन्द्र' किं वा 'ई-पत्रिका विदेहक संस्थापक-सम्पादक गजेन्द्र' अथवा कतेको 'अवडेरल-अभेलित मैथिलीक साहित्यकारकेँ प्रतिष्ठापित करैत गजेन्द्र' केँ निंघारैत-हियासैत हम साँचे दंग भेल छी! संगहिं कुल-वधू प्रीतिक बिकास-उजास से, भिन्ने तरहक सुख-संतोष प्रदान करैत अछि। यैह थिक बाढ़हि पूत पिताके धर्मे! यैह थिक - माता-पिताक श्रेष्ठ गुण-सूत्रक तथा सुलक्षण संस्कारक विलक्षण प्रमाण!
हँ, मुदा कचोटक बात इहो मोन रखबाक छी जे एहि चर्चित गुरु-शिष्यकेँ सामाजिक रूपेँ जेहन मान-सम्मान भेटब वांछित छलनि, जकर ई लोकनि सभ तरहेँ अधिकारी छलाह; से भेटि नहि सकलनि। देखैत छी, सामान्यों धन्धा-पेशाक लोककेँ अथवा झूठ-साँच भाँजिकए, खादीक बदला हैण्डलूमो चमकाकए, एक-दू बेर विधायक-सांसद वा मंत्री-संत्री भऽ जाइए, सेहो तिकड़म आ जोगाड़क बलेँ पद्म-पुरस्कारक तमगा पाबि लैए। तेहनाठाम गांधी सेतु सन-सन कालजयी कृतिकेँ जमीनपर उतारि देखओनिहार आ सेहो जीवनकेँ दाओ पर लगाकए निर्लिप्त सेवा देनिहार युग-पुरुषक नाम पर दरभंगो-मधुबनी मे एकटा पथ-पार्क-पुल वा चौक-चौराहो पर्यंतक नहि होयब साबित करैछ मैथिलक अकर्मण्यताकेँ!
करौट फेड़ैत अपना गाम, अपन जिला-जवार आ देश-कोसकेँ मजगूत खाम्ह-खम्हेली सँ युक्त कैनिहार कीर्ति-पुरुष-कृपानन्द जीक पुण्य-स्मृतिकेँ शतशः नमन्।
-सम्पर्क- सियाराम झा 'सरस', फ्लैट सं- बी/ १, सम्भव अपार्टमेण्ट, डाक बंगला रोड, डिप्टीपाड़ा, राँची (झारखण्ड)-८३४००१. मोबाइल: ९९३१३४६३३४
अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।