भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
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Tuesday, July 22, 2008
विदेह वर्ष-1मास-2अंक-3 (01 फरबरी 2008)
वर्ष-1 मास-2 अंक-3
संपादकीय
(01.02.2008)
विदेहक एहि अंककेँ प्रस्तुत करैत हम हर्षित छी। ।एहि अंकसँ संगीत-शिक्षाक आरंभ कएल जा रहल अछि। एहि अंक मे अछि
1. शोध लेख.
3.मायानन्द मिश्रक इतिहास-बोध (पृ. 5सँ 9)
2. उपन्यास
1.सहस्रबाढ़नि(आगाँ) (पृ. 10 सँ12)
3.महाकाव्य 1.महाभारत(आगाँ) (पृ.13 सँ25)
4.कथा
2.भारत रत्न (पृ. 26 सँ 28)
5.पद्य आगाँ (पृ.29 सँ48)
6.संस्कृतशिक्षा(आगाँ) (पृ.49सँ57) 7.मिथिलाकला-चित्रकला(आगाँ) (पृ.58 सँ 59)
8.संगीत-शिक्षा (पृ.60 सँ 61)
9.बालानांकृते-2.महुवा घटवारिन (पृ.62 सँ 64)
10.पंजी-प्रबंध(आगाँ) (पृ. 65सँ 68)
11.मिथिला आऽ संस्कृत- दरिभङ्गा संस्कृत विश्वविद्यालयक प्रासंगिकता(आगाँ) (पृ.69सँ71)
12.भाषा आऽ प्रौद्योगिकी(कंप्युटर,छायांकन,कीबोर्ड/टंकणक तकनीक) (पृ.72सँ73)
13.रचना लिखबा सँ पहिने...आगाँ) (पृ. 74सँ75)
14.आऽ अंतमे प्रवासी मैथिलक हेतु अंग्रेजीमे
VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT(आगाँ)(पृ.76सँ83)
पछिला अंक जेकाँ अहू अंककेँ नीचाँ लिखल पाँच लिंक पर राखल गेल अछि।
http://www.esnips.com/web/ggajendra-MAITHILI
http://www.esnips.com/web/TIRBHUKTI
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ज्ञान मिश्रक सुझाव लिंक पर प्राप्त भेल मुदा हुनकर ईमेल एडरेस नहि भेटि सकल। अस्तु स्व. श्री हरिमोहन झा जी पर शोध-निबंध, हुनकर सुझावक अनुसार, मायानन्द मिश्रजी पर शोध लेख समाप्त भेलाक उत्तर शुरू कएल जायत। पाठक एहि सभसँ संबंधित आ’ अन्यान्य रचना सभ ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ अटैचमेण्टक रूपमे .doc,.docx,.txt किंवा .pdf फॉर्मेटमे पठाय सकैत छथि।
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अपनेक प्रतिक्रिया आ’ रचनाक प्रतीक्षा अछि।
नई दिल्ली गजेन्द्र ठाकुर
01.02.2008
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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