भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Friday, July 04, 2008
विदेह 15 मार्च 2008 वर्ष 1 मास 3 अंक 6http://www.videha.co.in/
विदेह 15 मार्च 2008 वर्ष 1 मास 3 अंक 6
एहि अंकमे अछि:- 15 मार्च 2008 वर्ष 1 मास 3 अंक 6
1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा) 2. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आँगा) 3. महाकाव्य महाभारत (आँगा) 4. कथा(प्लाइवुड)
5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य गामक सूर्यास्त
आ’ आन कविक अन्यान्य कविता 6. संस्कृत शिक्षा (आँगा) 7. मिथिला कला- चित्रकला चित्रकार उमेश कुमार महतो
8. संगीत शिक्षा (आँगा) 9. बालानां कृते (एकांकी –अपाला आत्रेयी- पहिल भाग)
10. पंजी प्रबंध श्री विद्यानन्द झा”मोहनजी” पंज्जीकार श्री व्
11. मिथिला आ’ संस्कृत( सर्वतंत्रस्वतंत्र बच्चा झाक जीवनी)
12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी 13. रचना लिखबासँ पहिने... (आँगा) 14. प्रवासी मैथिल English मे
अ. VN Jha केर DO WE REALLY EXIST AS NATION
आ.VIDEHA,Mithila,Tirbhukti, Tirhut…(आँगा)
संपादकीय
वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 6
एहि अंकमे साहित्यकेँ राजनीतिसँ जोड़य बला अंग्रेजीमे विवेकानन्द झा जीक लेख प्रवासी मैथिल स्तंभक अंतर्गत देल गेल अछि। पञ्जीकारजीक पूर्ण परिचयक संग हुनकर लेख सेहो देल गेल अछि। विदेह द्वारा किचुउ पुरान अलभ्य किताबक डिजिटलाइजेशनक कॉर्पोरा सेहो शुरू कएल गेल अछि। पञ्जीक स्कैनिंग आ’ सर्च करबा योग्य डिक्श्नरी जाहिमे पाठक नव-नव शब्द जोड़ि सकताह केर आधार किछु मनोयोगी विदेह कार्यकर्त्ता सभक द्वार शुरू हेल अछि। ई सभटा सभ क्यो नि:शुल्क कए रहल छथि आ’ अपन मातृभाषाक आ’ मातृभूमिक अनुरागी होयबाक प्रमाण दए रहल छथि। हिनका लोकनिक नाम रचना आ’ आर्काइवक सम्मुख अएला पर सोँझा आनल जायत।
अपनेक रचनाक आ’ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
नई दिल्ली 15/03/08 गजेन्द्र ठाकुर
1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
हरकिसन अध्यायक प्रारम्भ 3400 वर्ष पूर्व होइत अछि।कृषि विकासक संग स्थायी निवासक प्रवृत्ति बढ़य लागल। आ’ तकरा बाद परिवारक रूप स्पष्ट होमय लागल। कृषि-विकाससँ वाणिज्य विस्तारक आवश्यकता बढ़ल। ऊनक वस्त्र, चक्की, भीतक घर आ’ इनारक घेराबा बनय लागल।
किसन अध्यायक प्रारम्भ 3300 ई.पूर्व भेल। श्रम-बेचबाक प्रारम्भ भेल। पटौनीक प्रारम्भक संग कृषि-विकास गति पकड़लक। भूगोल जानकारी भेलासँ वाणिज्य बढ़ल। अलंकारक प्रवृत्ति बढ़ल।
हरप्पा:मोहनगाँव अध्याय 3200 वर्ष पूर्व देखाओल गेल अछि।श्रम-बेचबाक हेतु काठक टोलक उदाहरण अबैत अछि। अलंकार प्रवृत्ति बढ़ल। गोलीक मालाक संक कुम्हारक चाक सेहो सम्मुख आयल। समाजमे वर्ग विभाजनक प्रारम्भ भेल।
गणेषक श्रीगणेष अध्याय 3100 ई. पूर्व प्रारम्भ भेल। दक्षिणांचल लोकक आगमन बाद हरप्पा हुनका ल्कनिक द्वारा बनेबाक चर्च लेखक करैत छथि। मोहनजोदड़ो, लोथल आ’ चान्हूदोड़ोक विकास व्यापारिक केन्द्रक रूपमे भेल। लिपि, कटही गाड़ी आ’ मूर्त्तिकलाक आविष्कार भेल आ’ वस्तु विनिमयक हेतु हाट लागय लागल।मेसोपोटामियाक जलप्लावन आ’ सुमेरी आ’ असुरक आगमनक चर्चा लेखक करैत छथि।
किश्न अध्यायक प्रारम्भ 3000 ई.पू. सँ भेल। विदेश व्यापारक आरम्भ भेल। तामक आविष्कार भेल। कृषि दासत्वक सेहो प्रारम्भ भेल। बाढ़िसँ सुरक्षाक हेतु ऊँच डीह बनाओल जाय लागल।
महाजन अध्याय 2800 पू. प्रार्म्भ होइत अछि। नगरक प्रारम्भ वाणिज्यक हेतु भेल। नहरि पटौनीक हेतु बनाओल जाय लागल। डंडी तराजूक आविष्कार आवश्यकता स्वरूप भेल। प्रकाशक व्यवस्थाक ब्योँत लागल।
मंडल अध्यायमे चर्च 2600 ई.पू.क छैक। संस्था निर्माण, विवाह व्यवस्था आ’ दूरक यात्राक हेतु पाल बला नावक निर्माण प्रारम्भ भेल।
किश्न मंडल अध्याय 2400 ई.पू. केर कालखण्डसँ आरम्भ कएल गेल अछि। एहिमे वर्षाक अभावक चर्चा अछि। आर्यक पूर्व दिशामे बढ़बाक चर्चासँ लोकमे भयक सेहो चर्चा अछि। मंडल:मंडली अध्याय 2200 ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल। आर्यक आगमनक आ’ वर्षाक अभाव दुनूकेँ देखैत लोथल वैकल्पिक रूपसँ विकसित होमय लागल।
पतन:पुरंदर: एहि अध्यायक कालखण्ड 2000 ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल अछि। आर्यक राजा द्वारा पुरकेँ तोड़ि महान केंद्र हड़प्पाकेँ ध्वस्त करबाक चर्चासँ मायानन्द जी अपन पहिल किताब ‘प्रथमं शैल पुत्री च’ केर समापन करैत छथि। आर्य हड़प्पाकेँ हरियूपियासँ संबोधित कएल, आर्य बाहरसँ अयलाह प्रभृत्ति किछु सिद्धांतक आधार पर रचित ई उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास होयबाक दावा करैत अछि। आ’ एहिमे 20,000 ई.पू.सँ 1800 ई.पू. तकक इतिहासोपाख्यानक चर्चा अछि। मुदा मौलिक एतिहासिक विचारधारा आ’ नवीन शोधक आधार पर एकर बहुतो बात समीचीन बुझना नहि जाइत अछि।
अग्नासँ शुरू भेल ई कथानक बड्ड आशा दिअओने छल। लेखक पहिल अध्यायमे लिखैत छथि जे पृथ्वीक उत्पत्ति लगभग 200 करोड़ वर्ष पूर्व भेल जे सर्वथा समीचीन अछि। कर्मकाण्डमे एक स्थान पर वर्णन अछि- “ ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री स्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्ठाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरणे” आ’ एहि आधार पर गणना कएला उत्तर 1,97,29,49,032 वर्ष पृथ्वीक आयु अबैत अछि। रेडियोएक्टिव विधि द्वारा सेहो ईएह उत्तर अबैत अछि। ई अनुमानित अछि जे यूरेनियमक 1.67 भाग 10,00,00,000 वर्षमे सीसामे बदलि जाइत अछि। विभिन्न प्रकारक पाथर आ’ चट्टानमे सीसाक मात्रा भिन्न रहैत अछि। एहि प्रकारसँ गणना कएला पर ई ज्ञात होइछ जे रेडियोएक्टिव पदार्थ 1,50,00,00,000 वर्ष पहिने विद्यमान छल। एहि प्रकारेँ कोनो शैलक आयु 2,00,00,00,000 वर्षसँ अधिक नहि भ’ सकैछ। यूरोपमे सत्रहम शाब्दी तक पृथ्वीक आयु 4000 वर्ष मानल जाइत रहल। ईरानक विद्वान 1200 वर्ष पहिने पृथ्वीक उत्पत्ति मनलैन्ह। ई दुनू दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ हास्यास्पद अछि। एहि तरहक पाश्चात्य शोधकेँ लेखक पहिल अध्यायमेतँ नकारि देलन्हि मुदा अंत धरि जाइत-जाइत ओ’ आर्य लोकनि हड़प्पाकेँ हरियूपिया कहैत छथि एहि प्रकारक पाश्चात्य दुराग्रहक प्रभावमे आबि गेलाह। पश्चिमी विद्वानक उच्छिष्ट भोजसँ बचि श्रुति परम्पराक परीक्षा तर्क आ’ श्रद्धाक मिश्रणसँ नहि कए सकलाह। एहि प्रकारे ‘प्रतमं शैल पुत्री च’ निम्न आधार पर अपन इतिहासोपाख्यान साहित्यिक रूपसँ नहि बना पओलक..............
(अनुवर्तते)
2. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आँगा)
गामक प्राइमरी स्कूलमे सभ कलाक परीक्षा होइत छल। संगीत, चित्र, नाटक। गाममे हारमोनियम, ढ़ोलक बजेनहार खूब रहथि। पहिने दुर्गा पूजाटामे नाटक होइत छल, मुदा पछाति जा’ क’ कृश्णाष्टमी, काली पूजा इत्यादिमे सेहो नाटक खेलेनाइ शुरू भ’ गेल। हरखाक रामलीला पार्टी सेहो एक महिना खेला क’ गेल छल। अहूमे दू चारि दिनमे रामलीलाक बीचमे नाटक होइत छल। शुरू भेल रामलीला पार्टी बिना बजेनहि। मुदा दू चारि दिन धरि माला क्यो न’ क्यो उठबैत गेलाह। रामलीला पार्टीक सभ कलाकारकेँ एक दिनक खेनाइक खर्चाकेँ माला उठेनाइ कहल जाइत छल। दूचारि दिनतँ माइक पर क्यो न क्यो जोशमे जा’ क’ हम माला उथायब तँ हम उठायब कहैत गेलाह, मुदा दू चारि दिनुका बाद रामलीला पार्टीक आर्द्र अनुरोधकेँ देखैत गौँका सभ टोलक अनुसार माला उठेबाक एकटा क्रम बना देलखिन्ह। ओहि समयमे ओकर एकटा चमत्कार छल, आ’ हम अपन कैरियर अभिनेताक रूपमे बादमे करबाक मोने-मोन इच्छा रखैत छलहुँ। ओहि समयमे शनि दिन स्कूलमे नाटक खेलेबाक प्लान शिक्षकगणक स्वीकृतिसँ बनल। नाटकक किताब कतएसँ आयत ताहि हेतु एकटा नाटक दानवीर दधीची लिखलहुँ। स्कूलक कलाकार सभकेँ एकत्र कएलहुँ। आब कलाकार सभक नाम तँ सुनू। पोटहा, लुल्हा, नेँगड़ा, पोटसुड़का,लेलहा,ढ़हीबला,कनहा, अन्हरा, तोतराहा,बौका,बहिरा ई सभ हमर बालकलाकार रहथि। कारण जे अपनाकेँ शुभ्र-शाभ्र बुझथि से किएक नाटक खेलेताह। दहीकेँ तोतराकेँ कहियो क्यो ढ़ही बजल तँ ओकर नाम ढ़हीबला भ’ गेलैक। सर्दीमे कहियो पोटा चुबैत रहि गेलैकतँ पोटहा भ’ गेल आ’ दोसर एहन भेल तँ दुनूमे अन्तर कोना करी। से ओ’ पोटा खसैत काल सुरकतो अछि से ओकर नाम भ’ गेल पोटसुरका। आँगा आऊ। ककरो अन्हरिया रातिमे ठेस लागि गेलैक तँ कोन अत्ततः भेलैक। हँ ओकर नाम अन्हरा भ’ गेलैक। बच्चामे देरीसँ बजनाइ शुरू कएने छलहुँ तँ अहाँ भ’ गेलहुँ बौका। सोझगर छी तँ लेलहा। गपकेँ अनठबैत छी तँ भेलहुँ बहिरा। नव घड़ी पहिरलाक बाद(घड़ी पाबनि दिन वनस्पतिक घड़ी) हाथ कनेक सोझ राखि लेलहुँ तँ भेलहुँ लुल्हा। तोतराइत तँ सभ अछि, मुदा कबियाठी टोलक छी तँ लोक नाम राखि देलक तोतराहा। कनेक डेढ़ भ’ ताकि देलहुँ आकि पिपनीकेँ उनटा क’ ककरो डरेलहुँ त’ भेलहुँ कनहा। ठेस लगलाक बाद कनेक झका क’ चललहुँ तँ भेलहुँ नेंगड़ा।
आ’ जौँ कनेक पाइ बलाक बेटा छी, आकि माय कनेक दबंग छथि तँ कनाह रहलो उत्तर क्यो कनहा कहि क’ देखओ। अस्तु एहि बाल कलाकार सभक संग शनि दिन होयत हमर नाटक दानवीर दधीची।
(अनुवर्तते)
3. महाकाव्य महाभारत (आँगा) बीच यज्ञमे उठल छल प्रश्न अग्र-पूजाक , भीष्मक सम्मति युधिष्ठिर पुछलन्हि जा’, भीष्म कहल छथि श्रेष्ठ कृष्ण नृप बीच, सहदेव सुनि वचन चरण पखारय लाग।
चेदिराज शिशुपालसँ सहल नहि भेल, अपशब्द कृष्ण-भीष्मकेँ देब’ लागल, दुर्यओधन-भ्राता प्रसन्न छल भेल, भीमक क्रोध बढ़ल छल ओ,झपटल,
भीष्म रोकि शांत छल ओकरा कएल।
शिशुपालक गारि सुनियो छल कृष्ण प्रशांत, छलाह किएकतँ ओ’पिसियौत कृष्णक, दिन बीतल कृष्ण देलथि वचन दीदीकेँ एक, सय अपराध क्षमा हम करब ओकर।
सय गारि सुनलाक उपरांत चलल सुदर्शन, चक्र कएलक चेदिराजक शिरोच्छेद तखन, सभा मध्य शांति – पसरल छल जाय, शिशुपाल पुत्रकेँ चेदिक गद्दी पर बैसाय।
यज्ञक क्रिया निर्विघ्न संपन्न छल भेल, सभ राजाकेँ ससम्मान विदा कएल गेल।
सभा भवनक चामत्कृत्यक भेल चर्चित, दुर्योधन-शकुनि भवनकेँ देखल चकित। नीँचा देखि मृग-मरीचिका बान्हल फाँढ़, पानि नहि छल हसलि द्रौपदी ई जानि, अयना सोँझा पारदरर्शी नहि ई देखल,
ओ’ चोटिल भीमक अट्टहाससँ विकल।
आँगा स्फटिक फर्श छल जकरा बुझल, पानि भरल भीजल छल सभ हँसल।
अपमानित छल लय युधिष्ठिरसँ आज्ञा, चलल हस्तिनापुर शीघ्रहि सभ भ्राता। (अनुवर्तते)
4. कथा
प्लाइवुड
प्लाइवुड
“नहि एहन कोनो बात नहि अछि”, ई तँ हमर सभक कार्यक अंतर्गत करइए पड़ैत अछि”।
“ मुदा अहाँकेँ ई नहि बुझि पड़ैत अछि जे एहि बेर किछु बेशी क्रूर भ’ गेलहुँ अहाँ सभ?”
“क्रूरताक तँ कोनो बात नहि अछि। हमरा सभ तँ कोनो विशेष सूचनाक आधार पर कार्य करैत छी”। ”मानि लिय’ जे हमरा ककरोसँ दुश्मनी अछि, आ’ ओहि आधार पर विभागकेँ ओ’ अपन व्यक्त्तिगत स्वार्थ आ’ झगड़ाक हेतु प्रयोग कए सकैत अछि”।
“ अहाँक शंका ककरो पर अछि?”
“ नहि हम तँ उदाहरण दय रहल छलहुँ”। ” नहि हमरा सभ कोनो सूचनाक आधार पर सोझे बिदा नहि होइत छी। पहिने ओकर गंवेषणा करैत छी, आ’ तकरे बाद एतेक ठाम सर्च करबाक अनुमति भेटैत अछि”।
“ मुदा आब अहाँ ई कहियो देब जे अहाँक कोनो गलती नहि अछि, तँ की हमर इज्जत लौटि कए आयत”। ” एनातँ हमरा सभकेँ हाथ-पर हाथ दए बैसि जाय पड़त। मुदा अहूँक गप ठीक अछि। अहाँक प्रति जौँ द्वेषवश क्यो कार्य कएने होयत तँ ओकरा पर कार्यवाही कएल जायत।”
“ की कार्यवाही होयत। हमरा परतँ कार्यवाही भ’ गेल। हमर सभटा बायर टूटि जायत।हम सभ एतेक पुरान छी, तीन पुस्तसँ एहि कार्यमे लागल छी। करबो करब तँ क्लेंडेस्टाइन रिमूवल करब। सभ परतँ रेड भ’ गेल, किछु कतहु नहि भेटल से के पतियायत”।
ओकर बातो ठीक छलैक। ई प्लाइवुडक व्यापारी एक नंबरक काजक हेतु जानल जाइत छल, मुदा संकर्षणकेँ जे सूचना प्राप्त भेल छलन्हि से ओकर विपरीत छल। मुदा ई रेडतँ खाली गेल। फैक्टरी, घर, डीलर सभ ठामसँ टीम खाली हाथ आयल। मुदा आब ऑफिसरकेँ की जवाब देताह। नामी कंपनी छल, अधिकारीगण डरा क’ रेडक अनुमति संकर्षणक व्यक्त्तिगत प्रतिष्ठाक देखैत देने छलाह। हेडक्वार्टरसँ फोन पर फोन संकर्षणकेँ आबि रहल छलन्हि, भोरतँ रेडमे भइये गेल छल, दस बजे ऑफिसमे रिपोर्ट देबाक हेतु कहल गेल छलन्हि। फैक्टरीक मालिक सेहो एम्हर- ओम्हरक बात ल’ क’ दस बात सुना देलाकन्हि। स्वर्णप्लाइ नाम्ना ई कंपनीक दिल्ली धरि पहुँचि छलैक। अकच्छ भ’ क’ संकर्षण भोरमे घर पहुँचि मोबाइल ऑफ क’ कय 9 बजेक अलार्म लगा’ क’ सुतबाक प्रयास करय लगलाह। काल्हि भोरेसँ रेड चलि रहल छल, ई कोना भेल, कोनो क्लेंडेस्टाइन रिमूवलक कच्चा पर्ची किएक नहि भेटल। केस लीकतँ नहि भ’ गेल। मुदा केसक विषयमे संकर्षणक अतिरिक्त्त डायरेक्टर विजीलेंसकेँ मात्र बुझल छलन्हि। ई सभ बिछौन पर सोचिते रहथि, तावत निन्द तँ नहि लगलन्हि मुदा 9 बजेक अलार्म बाजि उठल।
ऑफिसमे सभ क्यो जेना हिनके बाट ताकि रहल छलाह। कतेक गोटे ईहो सुना देलकन्हि, जे एहि केसक इंटेलिजेंस हुनको सभक लग छलन्हि, मुदा एहि तरहक केसमे क्लेंडेसटाइन रिमूवलकेँ सिद्ध केनाइ मुश्किल होइत छैक, ताहि हेतु ओ’ लोकनि एहिमे हाथ नहि देलन्हि। कानाफूसी होमय लागल जे बड्ड हीरो बनैत छलाह, आब ट्रांसफर ऑर्डर ल’ कय निकलताह डायरेक्टरक ऑफिससँ।
संकर्षण डायरेक्टरक ऑफिसमे गेलाह आ’ सोझे किछु दिनक समय माँगि लेलन्हि। की प्लान छन्हि, एहि विषयमे गप-शप घुमा देलथि। एहि बेर कोनो प्रकारक कोनो भ्रम नहि राख’ चाहैत छलाह।
आब संकर्षण स्वर्ण प्लाइक फैक्टरीसँ हटि क’ आ’ ओकर डीलरसँ हटि क’ कार्य करए लगलाह। सभटा दस्तावेजकेँ घोखि गेलाह। किछु कागज पर सेहो लिखय लगलाह। फेर अपन प्लानक हिसाबसँ पटनासँ अररियाक हेतु बिदा भ’ गेलाह।
पान तँ खाइत नहि रहथि आ’ चाह सेहो घरे टा मे पिबैत रहथि। मुदा लोकसँ किछु जनबाक हो तँ बिना चाह आ’ पानक दोकान गेने कोना काज चलत। से ओ’ चाह पान शुरू कएलन्हि। बाबुल दादाक गुलकन्द बला पान नीको बड्ड लागन्हि। तकरा बाद बाबुल दादा अररियाक लग पासक सभटा प्लाइवुडक फैक्टरीक लिस्ट द’ देलकन्हि। मुदा फैक्ट्री सभक पहुँचबाक रोड सभक भगवाने मालिक रहथि। धूल-धक्करमे कहुना जा’ कय एकटा फैक्टरीक पता चलल जे स्वर्णप्लाइकेँ सप्लाइ दैत छल, ओतुक्का दरबान संकर्षणकेँ कहलकन्हि जे मालिक दोसर फैक्टरीमे बैसैत छथि, से दू टा फैक्ट्रीक पता चलि गेलन्हि संकर्षणकेँ।
संकर्षण थाकल-हारल ओहि फैक्टरी पहुँचलाह।एक गोट मारवाड़े सज्जन बैसल रहथि।
“कतयसँ आयल छी”। ”आयल तँ पटनासँ छी, मुदा घुरब कोना से नहि बुझि पड़ैत अछि”। ” हँ, एक गोट नेताक जेलसँ बाहर गोली मारि कय हत्या क’ देल गेल। नेताजी रहथि तँ जेलमे मुदा घुमय फिरय पूर्णियाँ जेलसँ बाहर बिना नियमक निकलल रहथि। जेलर की करताह। पिछला मास एक गोट कैदीकेँ पुरनका जेलर घुमय हेतु नहि देने छलथिन्ह तँ भट्टा बजारमे गोली मारि देलकन्हि। एहि बेर जे घुमय देलखिन्ह तँ सरकार सस्पेन्ड क’ देलकन्हि। ताहि ह्त्याक बाद बन्दक आह्वान अछि। हमरा संगे रहू।एतय हमहू अपन गेस्ट हाउसमे रहैत छी। परिवार सिलीगुड़ीमे रहैत अछि। विवाह नहि भेल अछि। भोरमे हमरा कलकत्ता जयबाक अछि। पहिने सिलिगुरी अपन गाड़ीसँ जायब तँ रूट बदलि क’ पूर्णियाँ बस स्टैण्डमे अहाँकेँ छोड़ैत जायब”।
युवा बजक्कर रहथि से संकर्षणकेँ नीक लगलन्हि। रातिमे गेस्ट हाउसमे बहुत गप्प भेलन्हि। नेताक रंगदारीक, चन्दा बला सभ जबर्दस्ती रसीद काटि जाइत छलन्हि।
“एनामे तँ बिना क्लेनडेस्टाइन कएने घाटा भ’ जायत, हँ मजबूरी छैक। आ’ तकर दोषी तँ ई नेता सभ छथि। व्यापारी की करओ”।
आब मारवाड़ी युवा जकर नाम नवल छल कनेक कनछिया क’ संकर्षण दिशि देखलक। संकर्षणकेँ भेलन्हि जे ओकरा कोनो शंकातँ नहि भेलैक।
“ नहि क्लेंडेस्टाइन नहि करबाक तँ सिद्धांत अछि हमरा सभक। हँ किछु एडजेस्टमेंट करय पड़ैत अछि”। संकर्षणकेँ यादि पडलन्हि जे कोना स्वर्ण प्लाइक मालिको बजैत-बजैत बाजि देने छल, जे करबो करब तँ क्लेनडेस्टाइन रिमूवल करब। तखन करैत की जाइत अछि ई सभ। ओना अररियाक ई फैक्टरी स्वर्ण प्लाइक हेतु जॉब वर्क करैत छल, आ’ ताहि हेतु सरकारी ड्यूटीक सभ भार स्वर्ण प्लाइ पर रहैक। ई क्लेनडेस्टाइन करियो क’ की करत। टैक्स तँ दोसराकेँ देबाक छैक।
तखने एकटा फोन अयलैक। रिंग नमगर रहैक से संकर्षणकेँ बुझबामे भांगठ नहि भेलन्हि जे ई बाहरक एस.टी.डी.कॉल अछि। ओहि कॉलक बाद एकाएक ओ’ युवा संकर्षण दिशि ताकि कय चुप्पी लगा’ गेल।
भनसिया जकरा नवलजी झा सँ संबोधित क’ रहल छलाह खेनाइ बनि जेबाक सूचना देलकन्हि। संकर्षण आ’ नवलक बीच मात्र औपचारिक गप भेल। फेर दुनू गोटे सूति गेलाह। भोरमे अपन वचनक अनुसार ओ’ युवा संकर्षणकेँ पूर्णियाँ बस स्टैण्ड छोड़ि देलकन्हि। उतरबासँ पहिने संकर्षण नवलसँ पुछलन्हि।“ कलकत्तामे स्वर्ण प्लाइक ऑफिस छैक। ओतहि जा’ रहल छी की”। ओ’ युवा हँसल।
“ अहाँ विजिलेंस सँ छी। हमरा काल्हि जे एस.टी.डी. आयल छल, से स्वर्ण-प्लाइक कलकत्ता ऑफिस सँ आयल छल। अहाँक विभागेक क्यो गोटे हुनका सभकेँ अहाँक अररिया यात्राक विषयमे सूचना देलखिन्ह। देखू हम कहने छी जे हम मात्र एडजेस्टमेंट करैत छी। आ’ ताहिसँ हमरा कोन फायदा होइत अछि? टैक्स तँ हमरा लगैत नहि अछि। हँ ताहिसँ हमरा काज भेटैत अछि। आ’ बाहरी छोट-मोट खर्चा, विभागक,पुलिसक, नेताक निकलि जाइत अछि। तखन बेश”।
ई कहि ओ’ सज्जन संकर्षणकेँ हतप्रभ करैत चलि गेलाह।
आब पटना पहुँचि कय संकर्षण जखन ऑफिस पहुँचलाह तँ सभकेँ बुझल रहैक जे संकर्षण ताहि फैक्ट्रीक विजिट सरकारी खर्चा पर कएलन्हि अछि, जकरा पर सरकार टैक्सक माफी देने छैक।
डायरेक्टसँ भेँट कएलाक बाद संकर्षण पहुँचि गेलाह कलकत्ता। पुलिस थानामे घुमैत रहलाह आ’ पता करैत रहलाह जे स्वर्ण-प्लाइ आकि ओकर कोनो कर्मचारीक विरुद्ध कोनो केस छैक तँ नहि। मुदा ओतय तँ स्वर्ण प्लाइ बड्ड नीक छवि बनेने छल।आब संकर्षण सोचमे पड़ि गेलाह। इनपुट-आउटपुट केर अनुपातसँ ई कंपनी करोड़ो रुपयाक टैक्सक चोरि कए रहल अछि। मुदा प्रमाण कोनो नहि। संकर्षण ओतुक्का थाना सभमे अपन पता आ’ फोन नंबर छोड़ि देलन्हि, जे जौँ कोनो केस एहि कंपनी किंवा एकर कर्मचारीक संबंधमे होय तँ तकर सूचना हुनका देल जाइन्ह।
घुरि कए आबि गेलाह संकर्षण। डायरेक्टरसँ कहलखिन्ह, जे क्लोजर रिपोर्ट अखन नहि देब। देखैत छी किछु जानकारी कतहु सँ भेटैत अछि कि नहि।
छह मासक बाद। भोरमे एस.टी.डी. केर रिंग भेल। ” हम कलकत्ता, साल्ट लेक थाना सँ बाजि रहल छी। एक गोटे एकटा कमप्लेन लिखेने छथि, जे स्वर्ण-प्लाइ ऑफिससँ पेमेन्ट ल’ क’ घुरैत काल हुनकर सूटकेस ऑटो बला छीनि लेलकन्हि, जाहिमे किछु कैश आ’ चेक छलन्हि”। ” कतेक कैस आ’ कतेक चेक”। ”1.79 लाख कैस आ’ 1.83 लाखक चेक, प्रायः कैसक कोनो इनस्योरेंस रहन्हि, ताहि द्वारे एफ.आइ.आर. करओलन्हि अछि।चेकक तँ पेमेंट स्टॉप भ’ जायत”।
भोरे बिना रिजर्वेशनक संकर्षण पहुँचि गेलाह कलकत्ता। आ’ लोकल टीमक संग ओहि गोटेक घर पर छापा माड़लन्हि जकर पाइ आ’ कैस ऑटो बला छीनि लेने छल।
छापाक बीचमे संकर्षणकेँ एकटा डायरी भेटलन्हि। तकरा बाद पटना फोन क’ अररियाक फैक्टरीसँ नवीनतम रिमूवलक रिटर्न मँगा लेलथि। फेर ओ’ सज्जन जिनका घर पर छापा पड़ल छल केँ ट्रांजिट रिमांड पर ल’ क’ पटना आबि गेलाह। रस्तामे पता चलल जे ओ’ सज्जन नवलक बहनोइ छलाह, आ’ अररियाक फैक्टरीक एकाउन्टेन्ट होयबाक संगहि, स्वर्ण-प्लाइक संग ओकर लाइजन अधिकारी सेहो छलाह।
आब सभ तथ्य सोँझा छल। जे डायरी भेटल छल ताहिमे कैस आ’ चेकक कॉलम बनल छल। तिथि सहित विवरण छल। चेकक भुगतानक कॉलम अररिया फैक्टरीक क्लियरेंस सँ मिलि गेल छल, आ’ ईहो सिद्ध भ’ गेल जे सभ ट्रांजेक्सनमे लगभग अदहाक पेमेंट स्वर्ण-प्लाइ द्वारा कैसमे देल जाइत छल। आ’ तकर विवरण नहि तँ स्वर्ण-प्लाइक खातामे रहैत छल आ’ नहिये अररियाक फैक्टरीमे। स्वर्णप्लाइ टैक्स सेहो मात्र चेकक (पकिया) द्वारा गेल अदहा रिमूवलक पेमेंट पर दैत छल। संकर्षण ई रिपोर्ट डायरेक्टर केँ द’ देलन्हि।
एकाउन्टेन्टक अपराध बेलेबल छलैक। कोर्ट ओकरा बेल पर छोड़ि देलकैक। ”नवलक समाचार कहू। बड्ड नीक लोक अछि। मुदा किछु बतेलक नहि”। ” ओकर काल्हि अररियासँ सिल्लीगुड़ी जाइत काल सड़क दुर्घटनामे मृत्यु भ’ गेलैक किंवा करा देल गेलैक। जमाय बाबूक संग एतयसँ सोझे हमरा सभ ओतहि जायब”। एक गोट उत्तेजित स्वर जे एकाउन्टेन्ट बाबू केँ लेबाक हेतु आयल छल बाजि उठल।
“ मुदा ई बूझि लिय’ जे अहाँक ई सफलता हमर बुरबकीसँ भेटल अछि। जौँ हम कैसक इनस्योरेंस क्लेमक लालचमे नहि पड़ितहुँ तँ ई सभ नहि होइत”। जमाय बाबू बाजि उठलाह। डायरेक्टर स्वर्णप्लाइक विरुद्ध कार्यवाहीक लेल कलकत्ता ऑफिसकेँ लिखि देलन्हि। स्वर्ण प्लाइक विरुद्ध करोड़ोक ड्राफ्ट शो-कॉज नोटिस सेहो पठा देल गेल। संकर्षन चिंतामग्न छलाह।“ ठीके तँ कहलक नवल। एडजेस्टमेंटे तँ क’ रहल छल। चोरि तँ क्यो आन क’ रहल छल। ओ’ तँ मात्र माध्यम छल। “ मुदा ई बूझि लिय’ जे अहाँक ई सफलता हमर बुरबकीसँ भेटल अछि। जौँ हम कैसक इनस्योरेंस क्लेमक लालचमे नहि पड़ितहुँ तँ ई सभ नहि होइत”। जमाय बाबू बाजि उठलाह। डायरेक्टर स्वर्णप्लाइक विरुद्ध कार्यवाहीक लेल कलकत्ता ऑफिसकेँ लिखि देलन्हि। स्वर्ण प्लाइक विरुद्ध करोड़ोक ड्राफ्ट शो-कॉज नोटिस सेहो पठा देल गेल। संकर्षन चिंतामग्न छलाह।“ ठीके तँ कहलक नवल। एडजेस्टमेंटे तँ क’ रहल छल। चोरि तँ क्यो आन क’ रहल छल। ओ’ तँ मात्र माध्यम छल। हमहू तँ कतहु नहि बनि गेल छी माध्यम, नवलक मृत्युक”। --------
5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य
गामक सूर्यास्त
गामक सूर्यास्त
एक अद्भुत दृष्य यादि पाड़ि चकित भेलहुँ,
पोखरिक भीड़ पर हम ठाढ़ छलहुँ
आसमानक नीलवर्ण भेल रंगमय
दिया बातीक मुहुर्तमे सुर्य सबसॅं विदा लय
क्षितिजमे विलीन हुअ लागल
संग ओकर प्रकाशपुंज सेहो भागल
सबहक खरिहानमे लालटेन टिमटिमाय छल
पक्षी सब समदाओन गाबि रहल छल
सेहो ध्वनि मन्द पड़ि गेल
सॉंझ रातिमे बदलि गेल
फेरि स अगिला भोर मे पक्षिगण
गायत प्राती सब मिलि एक संग।
आ’ आन कविक अन्यान्य कविता
होली
धुरखेलक कादो-माटिसँ रहथि अकच्छ, रंग अबीर भने आयल मुदा लगैछ टका,
साफ-सुथड़ा बुझैत छलहुँ एकरा मुदा, निबंध निकलैत अछि रंगक केमिकलक, विषय अछि पुरनके छल ठीक यौ कका।
दारू पिनहार सोमरसक चर्चा करैत नहि अघाइत छथि, देवतो पिबैत रहथि ओकरा पुरनका नामसँ, अछि होली,
मित्रता बढ़ेबासँ बेशी घटा रहल अछि आइ काल्हि ई।
6. संस्कृत शिक्षा (आँगा) सुभाषितम्
वज्रादपि कठोराणि मृदुणि कुसुमादपि। लोकोत्तराणाम चेतांसि को हि विज्ञातुमर्हति।
श्रुतस्य सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति। कदाचित महापुरुषाणाम् चेतांसि( मनांसि) वज्रादपि कठोराणि भवन्ति। पुष्पादपि मृदुणि भवन्ति। अतः सुभाषितकारः वदति। कः महापुरुषाणाम् ज्ञातुम् शक्नोति। ज्ञातुमेव न शक्नुमः।
कथा
चन्द्रगुप्तः इति एकः महाराजः आसीत्। सः महाराजः मगधदेशम् पालयति स्म। मगध देशस्य राजा आसीत्। तस्य अमात्यः -चन्द्रगुप्तस्य अमात्यः-चाणक्यः इति। सः बहु विद्वान् निस्पृहः आचार्य आसीत्। यद्यपि सः महाराजस्य अमात्य तथापि सः सरल जीवनयापयति स्म। एकदा चन्द्रगुप्तः चाणक्यम् प्रजाभ्यः दातुम् कंबलम् यच्छति। सः चाणक्यः तस्य कंबलम् कुटीरे नयति। । सः सामान्य कुटीरे वासं करोति। शीतकालः आसीत्। सः कंपति स्म। एकः चोरः मित्रे संग आगतवान्। सः पश्यति। बहूनि धनानि संति। कंबलान् राशिः अस्ति। परंतु चाणक्यः न धृतवान्। सः सुप्तवान् अस्ति। पत्नी अपि सुप्तवती अस्ति। चाणक्य उठापेत्।चाणक्य मुखापेत पृच्छति।भोः। किमर्थम् आगतवन्तः। अनंतरं सः चोरः वदति। शीतकालः अस्ति। निद्रां करोति, कंबलान राशिः अस्ति। तथापि न धृतवान्। चाणक्यः वदति। कंबलानां मदर्थं न दत्तवान। प्राजाभ्याः वितरणम् कर्त्तुम् दत्तवान्। अतः अहम् एतानि कंबलानि न धराम्। तदा चोरः चाणक्यं पृच्छति। भवान् कीदृशः दयालुः।निस्पृहः अस्ति। वयम् इतःपरम् चौरकार्यं न कुर्मः। अतः भवतः सकाशः वयं शिक्षितवन्तः। ते चौरकार्यं त्यक्त्तवा सज्जनः भवन्ति। क्षमाम् याचन्ति। भवतः निस्पृहताम् दृष्ट्वा अस्माकं लज्जा भवति। वयम् इतःपरं चौर्कार्यं न कुर्मः। इति क्षमायाचन्।
पद्य
नृत्यति पुत्तलिका ग्रामे, बालः पश्यति अवैरामे। विहसति, गायति,रोदति सा
यदा सा जीवति बाला। सा अस्ति मनोहरा बाला, अहं इच्छामि पुत्तलिका।
नमोनमः ।
संस्कृतभाषा शिक्षणे भवताम् सर्वेषाम् स्वागतम्। आरम्भे मम परिचयं वदामि। मम नाम गजेन्द्रः।अहं शिक्षकः। भवान वदतु। भवान् कः। भवती का।
भवान् उत्तिष्ठतु। भवान् उपविशतु।
भवान् उत्तिष्ठति। भवती उपविशति। भवंटः उत्तिष्ठन्ति। भवत्यः उपविशन्ति। उपविशति- उपविशन्तु। वदतु- वदन्तु। गायतु- गायन्तु।
अहं एकवचनं वदामि। भवन्तः बहुवचन वदन्तु। नृत्यतु- नृत्यन्ति। अहम् उत्तिष्ठामि।– अहम् उपविशामि। अहं पठामि। वयम् उत्तिष्ठामः। भवन्तः उपविशामः। भवान् गच्छति।– भवन्तः गच्छन्ति। भवती गच्छतु।– भवत्यः गच्छन्तु। सः-ते एषः- एते कः- के तत्- तानि एतत्- एतानि किम्- कानि। अहं गच्छामि। वयं गच्छामः। भवान् गच्छतु-।- भवन्तः गच्छन्तु।
भवती गच्छतु- भवत्याः गच्छन्तु।एतस्य-तस्य(पु.) एतस्याः-तस्याः(स्त्री.) सा ताः एषा- एताः का- काः
गच्छतु- गच्छन्तु।
अत्र कति पुस्तकानि सन्ति। चत्वारि पुस्तकानि सन्ति। हरीशः गणयतु। कति अङ्कन्याः सन्ति। कति पर्णानि सन्ति। षट् पर्णानि सन्ति। कति चमषाः सन्ति। अष्ट चमषाः सन्ति।
पाण्डवाः कति जनाः। पाण्डवाः पञ्च जनाः। कौरवाः कति जनाः। कौरवाः शत जनाः। वर्षे कति मासाः सन्ति। वर्षे द्वादश मासाः सन्ति। मासे त्रिंशः दिनानि सन्ति। पक्षे पञ्चदश दिनानि सन्ति। अत्र त्रिंशत जनाः सन्ति। अत्र कति जनाः सन्ति। त्रिंशत दन्ताः सन्ति। कति दन्ताः सन्ति। एषः दण्डः/हस्तः।
दण्डः हस्ते अस्ति। दण्डः कुत्र अस्ति। एषः आसन्दे अस्ति। एषः स्यूतः।
एतत् धनम्। धनं कोषे अस्ति। वार्त्ता पत्रिकायाम् अस्ति।
स्थालिका/फलं स्थालिकायाम् अस्ति। जलं कूप्याम् अस्ति। अङ्गुल्यकम् अङ्गुल्याम् अस्ति।
वृक्षः- वृक्षे आपणः- आपणे वित्तकोषः- वित्तकोषे विद्यालयः- विद्यालये पुस्तकः- पुस्तके हिमालयः- हिमालये मार्गः- मार्गे आसन्दः-आसन्दे
मन्दिरम्- मन्दिरे नगरम्- नगरे स्थालिका- स्थालिकायाम्
संचिका- संचिकायाम्
पेटिका- पेटिकायाम्
कूपी- कूप्याः घटी- घट्याः अङ्कनी- अङ्कन्याः लेखनी- लेखन्याः]
स्यूते पुस्तकम् अस्ति। वाटिकायां फलम् अस्ति। लेखन्याः मसी अस्ति। नद्याः नीरः अस्ति। इदानीम् अहं शब्दद्वयं वदामि। भवन्तः योजयित्वा/ मिलित्वा वदतु। लखनऊ उत्तर प्रदेशे अस्ति। भोपाल मध्यप्रदेशे अस्ति। मुम्बई महाराष्ट्रे अस्ति। मैसूर कर्णाटके अस्ति। इदानीं भवन्तः एकेकं वाक्यं कथयन्तिवः। कः वदति आरम्भे। शिक्षकः विद्यालये अस्ति। दन्ताः मुखे सन्ति। मम गृहं भारत देशे अस्ति।
भारत देशे कुत्र अस्ति। मम गृहं भारत देशे बिहार प्रदेशे अस्ति। बिहार प्रदेशे कुत्र अस्ति। बिहार प्रदेशे मधुबनी मंडले अस्ति। मधुबनी मण्डले कुत्र अस्ति। मधुबनी मण्डले मेहथ ग्रामे अस्ति। मेहथ ग्रामे कुत्र अस्ति। तत्रैव अस्ति। अहं पञ्चवादने उत्तिष्ठामि। भवान् कदा उत्तिष्ठति। भवान् कदा दंतधावनं करोति। अहं सार्द्ध सप्तवादने योगाभ्यासं करोमि। अहम् अष्टवादने विद्यालयं गच्छामि। भवती कदा विद्यालयं गच्छति।
भवती कदा पूजां करोति। इदानीं कदा इति शब्दम् उपयोज्य प्रश्नं पृच्छन्तु। अहम् उत्तरं वदामि। भवान् कदा पूजां करोति। अहं पञ्चवादने पूजां करोमि। अहं न क्रीडामि। रवीन्द्रस्य दिनचरे अत्र अस्ति। इदानीम् अहं चित्रं दर्शयामि। भवन्तः वाक्यं वदन्तु। रवीन्द्रः पादोन अष्टवादने स्नानं करोति। रवीन्द्रः अष्टवादने अल्पाहारँ स्वीकरोति।
(अनुवर्तते)
7. मिथिला कला- चित्रकला चित्रकार उमेश कुमार महतो
मधुश्रावणी अरिपन
गतांकमे एकर चर्चा छल जे मधुश्रावनीमे संगमे सूर्य चन्द्र गौर, साठि आ’ नवग्रहक चित्र सेहो लिखल जाइत अछि।
एकर चित्र एहि अंकमे प्रस्तुत अछि।
8. संगीत शिक्षा (आँगा) गायन काल सेहो सभ राग-रागिनीक हेतु निश्चित रहैत अछि। 12 बजे दिनसँ 12 बजे राति धरि पूर्वांग आ’ 12 बजे रातिसँ 12 बजे दिन धरि उत्तरांग राग गाओल-बजाओल जाइत अछि।
पूर्वांग रागक वादी स्वर मे कोनो एक टा (सा, रे, ग, म, प ) होइत अछि। उत्तरांगक वादी स्वरमे (म,प,ध,नि,सा)मे सँ कोनो एक टा होइत अछि। सूर्योदय आ’ सूर्यास्तक समयमे गाओल ज्आय बला रागकेँ संधि प्रकाश राग कहल जाइत अछि।
रागक जाति
रागक आरोह आ’ अवरोहमे प्रयुक्त्त स्वरक संख्याक आधार पर रागक जातिक निर्धारण होइत अछि।
एकर प्रधान जाति तीन टा अछि। 1. संपूर्ण (7) 2.षाड़व(6) 3.औड़व(5) आ’ एहिमे सामान्य स्वर संख्या क्रमशः 7,6,5 रहैत अछि।
आब एहि आधार पर तीनूकेँ फेँटू।
संपूर्ण-औरव की भेल? हँ पहिल रहत आरोही आ’ दोसर रहत अवरोही। कहू आब। (7,5) एहिमे सात आरोही स्वर संख्या आ’ 5 अवरोही स्वर संख्या अछि। संपूर्णक सामान्य स्वर संख्या ऊपर लिखल अछि(7) आ’ औड़वक (5) । तखन संपूर्ण-औड़व भेल(7,5)। अहिना 9 तरहक राग जाति होयत। 1.संपूर्ण-संपूर्ण(7,7) 2.संपूर्ण-षाड़व(7,6) 3.संपूर्ण-औड़व(7,5)
4. षाड़व-संपूर्ण- (6,7)
5. षाड़व- षाड़व - (6,6)
6. षाड़व -औड़व (6,5)
7.औड़व-संपूर्ण(5,7)
8.औड़व- षाड़व(5,6)
9. औड़व- औड़व(5,5)
थाट:
(अनुवर्तते) 9. बालानां कृते एकाङ्की
अपाला आत्रेयी
पात्र: अपाला: ऋगवैदिक ऋचाक लेखिका अत्रि: अपालाक पिता
वैद्य 1,2,3: कृशाश्व: अपालाक पति।
वेषभूषा
उत्तरीय वस्त्र (पुरुष), वल्कल, जूहीक माला(अपालाक केशमे), दण्ड।
मंच सज्जा
सहकार-कुञ्ज(आमक गाछी), वेदी, हविर्गन्ध, रथक छिद्र, युगक छिद्र, सोझाँमे साही, गोहि आ’ गिरग़िट।
दृश्य एक
(आमक गाछीक मध्य एक गोट बालिका आ’ बालक)।
बालिका: हमर नाम अपाला अछि। हम ऋषि अत्रिक पुत्री छी।अहाँ के छी ऋषि बालक।
बालक: हम शिक्षाक हेतु आयल छी। ऋषि अत्रि कतए छथि।
अपाला: ऋषि जलाशय दिशि नहयबाक हेतु गेल छथि, अबिते होयताह। (तखनहि दहिन हाथमे कमंडल आ’ वाम हाथमे वल्कल लेने महर्षि अत्रिक प्रवेश।) अत्रि: पुत्री ई कोन बालक आयल छथि। अपाला: ऋषिवर। आश्रमवासीक संख्यामे एक गोट वृद्धि होयत। ई बालक शिक्षाक हेतु... बालक: नहि। हमर अखन उपनयन नहि भेल अछि। हम अखन माणवक बनि उपाध्यायक लग शिक्षाक हेतु आयल छी। ई देखू हमर हाथक दण्ड। हम दण्ड- माणवक बनि सभ दिन अपन गामसँ आयब आ’ साँझमे चलि जायब। हम वेद मंत्रसँ अपरिचित अनृच छी। अत्रि: बेश तखन अहाँ हमर शिष्यक रूपमे प्रसिद्ध होयब। दिनक पूर्व भाग प्रहरण विद्याक ग्रहणक हेतु राखल गेल अछि। हम जे मंत्र कहब तकरा अहाँ स्मरण राखब। पुनः हम अहाँक विधिपूर्वक उपनयन करबाय संग ल’ आनब। बालक: विपश्चित गुरुक चरणमे प्रणाम। (पटाक्षेप)
दृश्य दू
(उपनयन संस्कारक अंतिम दृश्य। अपाला आ’ किछु आन ऋषि बालक बालिकाक उपनयन संस्कार कराओल जा चुकल अछि।)
अत्रि: अपाला। आब अहाँक असल शिक्षा आ’ विद्या शुरू होयत।(पुनः आन विद्यार्थी सभक दिशि घूमि।) अहाँ सभकेँ सावित्री मंत्रक नियमित पाठ करबाक चाही। ॐ भूरभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। सविता- जे सभक प्रेरक छथि- केर वरेण्य- सभकेँ नीक लागय बला तेज- पृथ्वी, अंतरिक्ष आ’ स्वर्गलोक-सर्वोच्च अकाश-मे पसरल अछि। हम ओकर स्मरण करैत छी। ओ’ हमर बुद्धि आ’ मेधाकेँ प्रेरित करथु। अपाला: पितृवर।“ ॐ नमः सिद्धम” केर संग विद्यारम्भक पूर्व शिक्षाक अंतर्गत की सभ पढ़ाओल जायत। अत्रि: वर्ण, अक्षर-स्वर-, मात्रा- ह्र्स्व,दीर्घ आ’ प्लुत- बलाघात- उदात्त, अनुदात्त, स्वरित- शुद्ध उच्चारण, अक्षरक क्रमिक विन्यास- वर्त्तनी-, पढ़बाक आ’ बजबाक शैली, एकहि वर्णकेँ बजबाक कैकटा प्रकार, ई सभ शिक्षाक अंतर्गत सिखाओल जायत। साम संतान- जेकि सामान्य गान अछि- केर माध्यमसँ शिक्षा देल जायत। अपाला: गुरुवर। आश्रमक नियमसँ सेहो अवगत करा देल जाय। अत्रि: वनक प्राणी अवध्य छथि। आहारार्थ फल पूर्व-संध्यामे वन-वृक्षसँ एकत्र कएल जायत। प्रातः आ’ सायं अग्निहोत्र होयत, ताहि हेतु समिधा, कुश, घृत-आज्य-, एवम् दुग्धक व्यवस्था प्रतिदिन मिलि-जुलि कय कएल जायत। हरिणकेँ निर्विघ्न आश्रममे टहलबाक अनुमति अछि। कदम्ब, अशोक, केतकी, मधूक, वकुल आ’ सूदकारक गाछक मध्य आश्रममे यद्यपि कृषिक अनुमति नहि अछि, परञ्च अकृष्य भूमि पर स्वतः आ’ बीयाक द्वारा उत्पन्न अकृष्टपच्य अन्नक प्रयोग भ’ सकैछ। बालक: हम सभ एकहि विद्यापीठक रहबाक कारण सतीर्थ्य छी। गुरुवर। दण्ड आ’ कमण्डलक अतिरिक्त्त किचुउ रखबाक अनुमति अछि?
अत्रि: कटि मेखला आ’ मृगचर्म धारण करू आ’ अपनाकेँ एहि योग्य बनाऊ, जाहिसँ द्वादशवर्षीय यज्ञ सत्रक हेतु अहाँ तैयार भ’ सकी आ’ महायज्ञक समाप्तिक पश्चात् ब्रह्मोदय, विदथ परिषद आ’ उपनिषद ओ’ अरण्य संसदमे गंभीर विषय पर चर्चा क’ सकी। (पटाक्षेप)
दृश्य तीन
(कुटीरमे ऋषि अत्रि कैक गोट वैद्यक संग विचार-विमर्श कए रहल छथि।)
अत्रि: वैद्यगण। बालिका अपालाक शरीरमे त्वक् रोगक लक्षण आबि रहल अछि। शरीर पर श्वेत कुष्ठक लक्षण देखबामे आबि रहल अछि। वैद्य 1: कतबा महिनासँ कतेको औषधिक निर्माण कए बालिकाकेँ खोआओल, आ’ लेपनक हेतु सेहो देल।
अत्रि: अपाला आब विवाहयोग्य भ’ रहल छथि। हुनका हेतु योग्य वर सेहो ताकि रहल छी। वैद्य 2: कृशाश्वक विषयमे सुनल अछि, जे ओ’ सर्वगुणसंपन्न छथि, आ’ वृद्ध माता-पिताक सेवामे लागल छथि। ओ’ अपन अपालाक हेतु सर्वथा उपयुक्त वर होयताह। अत्रि: तखन देरी कथीक। अपने सभ उचित दिन हुनकर माता-पितासँ संपर्क करू।
दृश्य चारि
(आश्रमक सहकार-कुञ्जमे वैवाहिक विधिक अनुष्ठान अछि। वेदी बनाओल गेल अछि, आ’ ओतय ऋत्विज लोकनि जव-तील केर हवन क’ रहल छथि।) अपाला(मोने मोन): माथ पर त्रिपुंडक भव्य-रेखा, आ’ शरीर-सौष्ठवक संग विनयक मूर्त्ति, ईएह कृशाश्व हमर जीवनक संगी छथि। (तखने कृशाश्वक नजरि अपालासँ मिलैत छन्हि, आ’ अपाला नजरि नीँचा कए लैत छथि।। मुदा स्त्रीत्वक मर्यादाकेँ रखैत ललाट ऊँचे बनल रहैत छन्हि।) अत्रि: उपस्थित ऋषि-मण्डली आ’ अग्निकेँ साक्षी मानैत, हम अपाला आ’ कृशाश्वक पाणिग्रहण करबैत छी। (अग्निक प्रदक्षिणा करैत काल कृशाश्वक उत्तरीय वस्त्र कनेक नीँचा खसि पड़ल आ’ अपालाक केशक जूही-माला पृथ्वी पर खसि पड़ल।)
दृश्य पाँच
(अनुवर्तते)
10. पंजी प्रबंध श्री विद्यानन्द झा”मोहनजी” पंज्जीकार
अतः विवाहक पहिल चरण अधिकारक निर्णय रहल होयत। वर पक्ष ओ’ कन्या पक्षक लोक परस्पर बैसि अपन-अपन परिचयक आधार पर निर्णय करैत छल होएताह, जे ‘अमुक’ कन्यासँ ‘अमुक’ वरक विवाह हो वा नहि। मुदा परिचय रखबाक प्रवृत्तिक ह्रासक कारणेँ अधिकार-निर्णयक हेतु प्रत्येक परिवारक सुयोग्य ओ’ आस्थावान व्यक्ति अपन यावतो परिचय(32 मूलक उल्लेख) लिखि कए राखय लगलाह। सातम शाब्दीसँ पूर्वहि ए लिखित कौलिक परिचय ‘समूह लेख्य’ क उल्लेख सर्वप्रथम विद्वद्वैरैण्य कुमारिल भट्ट रचित ‘तंत्र वार्त्तिक’मे भेल अछि, जे मीमांसा दर्शनक जैमिनी सूत्रक शबर द्वारा कएल भाष्यक ग्द्यात्मक ‘वार्त्तिक’ थीक। तंत्रवार्त्तिक दर्शनक ग्रंथ थीक जाहिमे यथार्थ वस्तुस्थितिक वर्णनसँ जातिक विशुद्धि सिद्ध कएल गेल अछि। जाहि आधार पर धर्मक निरूपण भए सकैत। कुमारिल भट्टक कहब छलन्हि जे “ बड़का कुलीन लोक बड़ विशेष प्रयत्नसँ अपन जातिक रक्षा करैत छथि। तैहि त’ क्षत्रिय ओ’ ब्राह्मण अपन पिता-पितामहादिक परम्परा बिसरि नहि जाए तेँ समूह-लेख्य चलौलन्हि। ओ’ प्रत्येक कुलमे गुण आ’ दोष देखि ओहि अनुरूप सम्बंध करबामे प्रवृत्त होइत छथि।
“विशिष्टेनैव हि प्रयत्नेन महाकुलीनाः परिक्षन्ति आत्मानम् अनेनैव हि हेतुना राजाभिब्रह्मिणैश्च स्व पितृ-पितामहादि पारम्पर्यो विस्मणार्थं समूहलेख्यानिप्रवर्तितानि तथा च प्रतिकुलं गुण-दोष स्मर्णांतदनुरूपाः प्रभृति-निवृतयो दृश्यंते”।
(तंत्रवार्त्तिक, अध्याय 1, पाद-2, सूत्र-2क वार्त्तिक)
मुदा तेरहम शताब्दीक उत्तरार्ध होइत-होइत साधारण लोकक कोन कथा पण्डित लोकनि समेत समूह लेख्य राखब छोड़ि देलन्हि। एकर परिणाम ई भेल जे पं हरिनाथ उपाध्याय(धर्म-शास्त्रक महान ज्ञाता) “स्मृतिसार” सन धर्मशास्त्रक विषयक ग्रंथकर्त्ता ओ’ महापंडित परिचयक अभावमे विवाह कए लेल, स्वजनमे अनधिकारमे अपन साक्षात पितयौत भाइक दौहित्रीमे। फलतः चौदहम शताब्दीक तृतीय दशक होइत-होइत एहि कौलिक परिचयकेँ विशिष्ट पण्डितक अधीन कए देबाक आवश्यकताक अनुभव कएल जे विवाहक समय अधिकारक निर्णय कए सकथि। मिथिलाक तत्कालीन शासक राजा हरिसिंहदेवक प्रेरणासँ मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके 1248 तदनुसार 1326 ई. मे निर्णय कएलन्हि, जे “ परिचय राखब लोककेँ अपना पर नहि छोड़ल जाय, प्रत्युत ओकरा संगृहित कए विशिष्ट पण्डितजनक जिम्मा कए देल जाए, ओ’ ई राजकीय एक गोट विभाग बना देल जाए जाहिसँ पण्डित राजाज्ञासँ नियुक्त होथि सैह संगृहित परिचय राखथि। प्रत्येक विवाह तखनहि स्थिर हो जखन नियुक्त पंडित(पञ्जीकार) अधिकार जाँचि कए लिखिके देथि, जे अमुक कन्या ओ’ अमुक वर ‘स्वजना’ नहि छथि। अर्थात् शास्त्रीयनियमानुसार कन्याक संग वरकेँ वैवाहिक अधिकार छन्हि। इयैह पत्र ‘अस्वजन पत्र’ वा ‘सिद्धांत पत्र’ कहौलक। आइयो कन्या वरक विवाह पूर्व अधिकार जँचाए सिद्धांत पत्र लेल आवश्यक बूझल जाइत अछि। पञ्जी-प्रबंधमे इएह सभसँ प्रधान नियम भेल जे बिनु सिद्धांत भेने विवाह अशास्त्रीय मानल जायत। ‘अस्वजन पत्र’ देनिहार राजाज्ञासँ नियुक्त इएह पण्डित पञ्जीकार कहओलाह। संगृहित परिचय जाहिमे प्रत्येक नव जन्म ओ विवाह जोड़ल जाय लागल से भेल पञ्जी। जिनकर पञ्जीमे आएल से भेलाह पञ्जीबद्ध।
महाराज हरिसिंहदेव ओ’ तत्कालीन पण्डितक संयुक्त निर्णय अनुसार परिचेता लोकनिक नियुक्त्ति कए समस्त मैथिल ब्राह्मणक सम्पूर्ण परिचय संगृहित कएल गेल। परिचेता लोकनि घुमि-घुमि प्रत्येक परिवारक मुख्य व्यक्तिसँ हुनक परिचय पुछि लिखि लेल करथि। सामान्य रूँपे छओ पुरुषक परिचय सभ जनैत रहथि। किछु गोटा एहिसँ बहुतो अधिक परिचय जनैत रहथि। एहिना किछु गोटए मात्र दू वा तीन पुरुषाक ज्ञान रखैत छलाह। जे जतबा जनैत रहथि हुनकासँ ओतबहि संग्रह कए हुनकर पूरवजक वास-स्थान, गोत्र, प्रवर तथा हुनक वेद ओ’ शाखाक सूचना लिखि लेल जाइत रहैए। एहि संग्रहसँ एकहि कुलक अनेक शाखा जे विभिन्ना ग्राममे बसैत छलाह, तकर परिचय एकत्र भए गेल। एहि रूपे गोत्रक अनुसार भिन्न-भिन्न कुलक सम्पूर्ण परिचय प्राप्त भए गेल। एहि परिचय संकलनक समय सभसँ प्रमुख मानल गेल बीजी पुरुष ओ मूल ग्रामकेँ। कारण कौलिक परिचयक हेतु सर्वाधिक उपयोगी इयैह सूत्र भेल। विभिन्न गाममे बसैत एकहि कुलक विभिन्न व्यक्तिक कौलिक परिचय एहि मूल ग्रामक आधार पर संगृहित कएल गेल रहए। एहि कारणे पञ्जीमे अनिवार्य रूपसँ मूल ग्रामक उल्लेख भेल अछि। पञ्जी-प्रबंधक समय जे व्यक्ति जतए बसैत रहथि से हुनक भावी संतानक ग्राम कहओलक ओ परिचय लिखौनिहार अपन पूर्वजक प्राचीनतम वास स्थानक जे नाम कहल से ओहि व्यक्तिक मूल भेल। एहिना प्रत्येक कुलक प्राचीनतम ज्ञात पूर्वज ओहि कुलक बीजी पुरुष कहाओल। एकर प्रमाणमे एक गोट उदाहरण देखल जाए सकैत अछि। काश्यप गोत्रीय एक महाकुल जकर शतावधि शाखा मिथिलामे अनुवर्त्तमान रहए, संगृहित परिचयक आधार पर मूलतः माण्डर ग्रामक वासी सिद्ध भेलाह। मुदा पञ्जी-प्रबंधसँ बहुत पहिनहि, एकर दू गोट शाखा स्पष्टतः प्रमाणित भए गेल। एक मँगरौनी गामक आ’ दोसर गढ़-गामक। अतः पञ्जीमे आदिअहिसँ मण्डरक संग-संग गढ़ ओ मँगरौनी विशेषण जोड़ल जाए लागल। मुदा उपलब्ध परिचयक आधार पर दुनू एकहि कुलक दू शाखा सिद्ध भेल। तैय दुनू कुलक मूल एकहि भेल ओ बीजी पुरुष सेहो एकहि भेलाह।
गोत्र- कहल जाइत अछि जे सकल गोत्रक समस्त जन समुदाय एकहि प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक वंशज थिकाह। ईएह प्राचीनतम ज्ञात महापुरुष गोत्र कहाए सुविख्यात छथि। श्री एम.पी. चिंतालाल राव महोदय चारि हजार गोत्रक सूची तैयार कएने छथि। “ अमरकोष”मे गोत्रक हेतु तीन अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, वंश आ’ नाम। “वाचस्पत्य” कोषमे गोत्रक एगारह अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, नाम ,ज्ञान, जंगल,खेत,क्षत्र,संघ,धन, मार्ग, वृद्धि आ’ मुनि लोकनिक वंश। प्राचीन संस्कृत साहित्यमे गोत्र शब्दक प्रयोग प्रायः वंश वा पिताक नामक लेल भेल अछि। छान्दोग्य उपनिषद (4/4) मे जीवन गुरु सत्यकामसँ गोत्र पुछैत छथिन्ह तँ हुनक अभिप्राय सत्यकामक कुल अथ्वा पिताक नामसँ छन्हि, मुदा ऋगवेदमे गोत्रक उल्लेख चारि ठाम मेघ अथवा पहाड़क लेल आ’ दू ठाम पशु समूह अथवा जनसमुदाय अथवा पशु रक्षक रूपमे भेल अछि। अंततः वंश अथवा परिवरक अर्थमे गोत्र शब्दक प्रयोग पश्चातक प्रयोग थिक। वंश अथवा परिवारक अर्थमे गोत्रक प्रयोग सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषदमे भेल अछि।
मैथिल ब्राह्मण समाजमे गोत्र वंशा-बोधक थीक। मैथिल ब्राह्मणक समस्त गोत्र पितृ प्रधान थीक- अर्थात् प्रत्येक गोत्र अपन-अपन वंशक प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक नाम थीक। मैथिल ब्राह्मणमे सभ मिलाए 20 गोट गोत्र अछि। मैथिल ब्राह्मणमे सात गोट गोत्रक कुल व्यवस्थित, सुपरिचित ओ बहुसंख्यक अछि। ई सात गोट गोत्र थीक- 1.शाण्डिल्य 2.वत्स 3.काश्यप 4.सावर्ण 5.पराशर 6.भारद्वाज 7.कात्यायन। शेष 13 गोट गोत्र थीक- 1.गर्ग 2.कौशिक 3.अलाम्बुकाक्ष
4.कृष्णात्रेय 5.गौतम 6.मौद्गल्य 7.वशिष्ठ 8.कौण्डिन्य 9.उपमन्यु 10.कपिल 11.विष्णुवृद्धि 12.तण्डि 13.जातिकर्ण।
प्रत्येक गोत्रमे कतौक मूल्य अछि। मिथिलामे 153 मूलक ब्राह्मणक परिच्अय प्राप्त होइत अछि। कतैक मूल एहन अछि, जे एकसँ अधिक गोत्रमे पाओल जाइत अछि।‘ब्रह्मपुरा’ एकटा एहने मूल थिक। एहि मूलक ब्राह्मण- शाण्डिल्य,वत्स,काश्यप,अलाम्बुकाक्ष,गौतम ओ गर्ग गोत्रमे पाओल जाइत छथि। प्रवर- प्रवरक उल्लेख वैदिक युगमे दर्श ओ पौर्णमास नामक इष्टिमे भेटैत अछि। इ इष्टि सभ आन सभ प्रकारक यज्ञक आधार थीक। अतः एहिमे प्रवरक पाठ होइत अछि। एहि पाठक प्रयोजन तखनहि होइत अछि जाहि क्षण यज्ञाग्नि उद्दिप्त करएबाली(सामधेनी) ऋचाक पाठक अनंतर अध्वर्यु ओहि अग्नि पर आज्य(घृत) दैत छथिन्ह। एकर निहितार्थ अछि जे प्रवर, यज्ञमे अग्निकेँ बजएबाक प्रार्थना थीक। प्रवरकेँ बादमे ‘आर्षेय’ सेहो कहल गेल अछि- जकर अर्थ थिक ऋषिसँ संबंधराखए बला(ऋग्वेद-09/97/51)। शोनक ऋषिक सुविख्यात पूर्वज लोकनि मैथिल ब्राह्मण मध्य प्रवर कहबैत छथि अर्थात् ऋगवेदक ऋचाक प्रणेता लोकनि प्रवर थिकाह।
मैथिल ब्राह्मणक मध्य 2 वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ’ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ’ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
1. शाण्डिल्य- शाण्डिल्य, असित आ’ देवल. 2. वत्स---] ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ’ आप्लावन।
3. सावर्ण--] ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ’ आप्लावन।
4. काश्यप-काश्यप, अवत्सार आ’ नैघ्रूव. 5. पराशर-शक्ति, वशिष्ठ आ’ पराशर. 6. भारद्वाज-भारद्वाज, आंगिरस आ’ बार्ह्स्पत्य. 7. कात्यायन-कात्यायन, विष्णु आ’ आंगिरस. 8. गर्ग-गार्ग्य, घृत, वैशम्पायन, कौशिक आ’ माण्डव्याथर्वन। 9. कौशिक- कौशिक, अत्रि आ’ जमदग्नि. 10. अलाम्बुकाक्ष-गर्ग, गौतम आ’ वशिष्ठ. 11. कृष्णात्रेय-कृष्णात्रेय, आप्ल्वान आ’ सारस्वत. 12. गौतम-अंगिरा, वशिष्ठ आ’ बार्हस्पत. 13. मौदगल्य-मौदगल्य, आंगिरस आ’ बार्हस्पत्य. 14. वशिष्ठ-वशिष्ठ,अत्रि आ’ सांकृति. 15. कौण्डिन्य-आस्तिक,कौशिक आ कौण्डिन्य. 16. उपमन्यु-उपमन्यु, आंगिरस आ’ बार्हस्पत्य। 17. कपिल-शातातप, कौण्डिल्यआ’ कपिल. 18. विष्णुवृद्धि-विष्णुवृद्धि, कौरपुच्छ आ’ त्रसदस्य 19. तण्डी-तण्डी, सांख्य आ’ अंगीरस.
गोत्र आ’ मूल
शाण्डिल्य- दिर्धोष(दिघवे), सरिसब, महुआ, पर्वपल्ली(पवौली),खण्डबला, गंगोली, यमुशाम, करिअन, मोहरी, सझुआल, मड़ार, पण्डोली, जजिवाल, दहिसत, तिलय, माहब, सिम्मुआल, सिंहाश्रम, सोदरपुर, कड़रिया, अल्लारि, होइयार,तल्हनपुर,परिसरा,परसड़ा,वीरनाम, उत्तमपुर, कोदरिया, छतिमन, वरेवा, मधुआल, गंगौर, भटोर, बुधौरा, ब्रह्मपुरा, कोइआर, केटहिवार, गंगुआल, घोषियाम, छतौनी, भिगुआल, ननौती, तपनपुर।
वत्स- पल्ली(पाली), हरिअम्ब, तिसुरी, राउढ़, टकवाल, घुसौत, जजिवाल, पहद्दी, जल्लकी(जालय), भन्दवाल, कोइयार, केरहिवार, ननौर, डढ़ार, करमहा, बुधवाल, मड़ार, लाही, सौनी, सकौना, फनन्दह, मोहरी, वंठवाल, तिसउँत, बरुआली, पण्डौली, बहेटाढ़ी, बरैवा, अलय, भाप्रारिसमथ, बभनियाम, उचति, तपनपुर, विठुआल, नरवाल, चित्रपल्ली, जरहटिया, ब्रह्मपुरा,सरौनी।
काश्यप- ओइनि, खौआल, संकराढ़ी, जगति, दरिहरा, माण्डर, वलियास, पचाउर, कटाइ, सतलखा, पण्डुआ, मालिछ, मेरन्दी, नदुआल, पकलिया, बुधवाल, दिभू, मौरी, भूतहरी, छादन, विस्फी, थरिया, दोस्ती, भरेहा, कुसुम्बाल, नरवाल, लगुरदह।
सावर्ण- सोन्दपुर, पनिचोभ, बरेबा, नन्दोर, मेरन्दी। पराशर- नरौन, सुरगन, सकुरी, सुइरी, सम्मूआल, दिहवाल, नदाम, महेशारि, सकरहोन, सोइनि, तिलय, बरेबा। भारद्वाज- एकहरा, विल्वपञ्चक(बेलौँच), देयाम, कलिगाम, भूतहरी, गोढ़ार, गोधूलि। कात्यायन- कुजौली, ननौती, जल्लकी, वतिगाम। अलाम्बुकाक्ष- बसाम,कटाइ, ब्रह्मपुरा।
गार्ग्य – बसहा, बसाम, ब्रह्मपुरा, सुरौर, विधौर, उरौर। कौशिक- निटेरति कृष्नात्रेय- लोहना, बुसवन, पोदौनी। मौद्गल्य- रतवाल, मालिछ, दिघौष, कपिञ्जल, जल्लकी। गौतम- ब्रह्मपुरा, उंतिमपुर, कोइयार। वशिष्ठ- कोथुआ। कौंडिल्य- एकहरा, परौन। जातुकर्ण- देवहार। तण्डि- कटाई।
मिथिलाधीश कार्णाट वंशीय क्षत्रिय महाराज हरिसिंहदेव जीक सभामे उपस्थित सभ्य लोकनि महिन्द्रपुर पण्डुआ मूलक सदुपाध्याय गुणाकर झाकेँ मैथिल ब्राह्मणक पञ्जी प्रबन्धक भार देलन्हि
नन्देहु शुन्यं शशि शाक वर्षे (1099 शाके) तच्छ्रावणस्य धवले मुनितिथ्यधस्तात। स्वाती शनैश्चर दिने सुपूजित लग्ने श्री नान्यदेव नृपतिढ़र्यधीत वास्तं॥1॥ शास्तानान्द पतिर्व्वभूव नृपतिः श्री गंगदेवो नृपस्तत् सूनू(पुत्र) नरसिंहदेव विजयी श्री शक्ति सिंह सुतः तत् सूनू खलू राम सिंह विजयी भूपालवंत सुतो जातः श्री हरिसिंह देव नृपतिः कार्णाट चूड़ामणि ॥2॥ श्रीमंतं गुणवन्त मुत्तम कुलस्नाया विशुद्धाशयँ सञ्जातानु गवेषणोत्सुक यातः सर्वानुव्यक्तिक्षमां चातुर्यश्चतुराननः प्रतिनिधिंकृत्वा च्च्तुर्द्धाकिमां पंचादित्यकुलांविता विवजया दित्यै ददौ पञ्जिकाम्॥3॥
भूपालवनि मौलि रत्न मुकुटोलंकार हिरांकुर ज्योत्सोज्वाल यटाल माल शशिनिः लीलञ्च चञ्चलम्तावः शोभा भाजि गुणाकरे गुणवतां मानन्द कन्दोदरे दृष्ट्वात्मा हरिसिंह देव नृपतिः पाणौ ददौ पञ्जिकाम॥4॥ दृष्ट्वा सभां श्री हरिसिंहदेव विचार्य चिंते गुणिणी सहिष्णौ॥ गुणाकरे मैथिल वंश जाते पञ्जी ददौ धर्म विवेचणार्थम॥
(अनुवर्तते)
11. मिथिला आ’ संस्कृत( सर्वतंत्रस्वतंत्र बच्चा झाक जीवनी)
सर्वतंत्र स्वतंत्र श्री धर्मदत्त झा(बच्चा झा) (1860 ई.-1918 ई.)
मिथिला आ’ संस्कृत स्तंभमे एहि अंकमे सर्वतंत्र स्वतंत्र श्री धर्मदत्त झा जिनकर प्रसिद्धि बच्चा झाक नामसँ बेशी छन्हि, केर जीवनी द’ रहल छी।
मधुबनी जिलांतर्गत लवाणी(नवानी) गाममे हिनकर जन्म भेलन्हि। वाराणसीमे श्री विशुद्धानन्द सरस्वती आ’ बालशास्त्रीसँ शिक्षा ग्रहण करबाक बाद गाम आबि गेलाह आ’ शारदा भवन विद्यापीठक स्थापना गामेमे कएलन्हि।गुरुकुल पद्धति सँ एतय संन्यासी आ’ गृहस्थ शिक्षा ग्रहण करैत छलाह। विद्यार्थीगणक खर्चा गुरुजी उठबैत रहलाह। द्वारकाक शंकराचार्य हिनका आमंत्रित कए नव्यन्यायक अध्ययन कएलन्हि। आस्तिक आ’ नास्तिक आ’ नव्यन्यायक विद्वत्तक दृष्टिये हिनका सर्वतंत्र स्वतंत्रक उपाधि देल गेलन्हि। हिनका बच्चामे लोक बच्चा झा कहैत छलन्हि, आ’ ईएह नाम धर्मदत्त झाक अपेक्षा बेशी प्रचलित रहल। हिनक कृति सभ अछि। 1. सुलोचन-माधव चम्पू काव्य, 2.न्यायवार्त्तिक तात्पर्य व्याख्यान, 3.गूढ़ार्थ तत्त्वलोक(श्री मदभागवतगीता व्याख्याभूत मधुसूदनी टीका पर) 4.व्याप्तिपंचक टीका 5.अवच्छदकत्व निरुक्त्ति विवेचन 6.सव्यभिचार टिप्पण 7.सतप्रतिपक्ष टिप्पण 8.व्याप्तनुगन विवेचन 9.सिद्धांत लक्षण विवेक 10.व्युत्पत्तिवाद गूढार्थ तत्वालोक 11.शक्त्तिवाद टिप्पण 12.खण्डन-ख़ण्ड खाद्य टिप्पण 13. अद्वैत सिद्धि चन्द्रिका टिप्पण 14.कुकुकाञ्जलि प्रकाश टिप्पण.
12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी
अ सँ ह तक वर्णमाला अछि। क्ष, त्र ,ज्ञ ओनातँ संयुक्त्त अक्षर अछि, मुदा बच्चेसँ हमरा सभ अ सँ ज्ञ तक वर्ण्मालाक रूपमे पढ़ने छी। श्र सेहो क्ष, त्र, ज्ञ जेकाँ संयुक्त अक्षर अछि। ज्ञ केर उच्चारण ताहि द्वारे हमरा सभ ग आ’ य केर मिश्रण द्वारा करैत छी से धरि गलत अछि। ई अछि ज आ’ ञ केर संयुक्त । ऋ केर उच्चारण हमर सभ करैत छी, री। लृ केर उच्चारण करैत छी, ल, र आ’ ई केर संयुक्त्त। मुदा ऋ आ’ लृ स्वयं स्वर अछि, संयुक्ताक्षर नहि। विदेहक आर्काइवमे एहि बेर सँ शुद्ध उच्चारणक आवश्यकताकेँ देखि कय अ सँ ज्ञ तक सभ वर्णक उच्चारण देल गेल अछि।एकरा डाउनलोड क’ अपन आ’ अपन बच्चाक हेतु प्रयोग कए सकैत छी। मैथिली अकादमीक भाषाक मानकीकरणक प्रयासमे सहयोग करबाक दृष्टिसँ ओकरा द्वारा निर्धारित मानककेँ रचना लिखबासँ पहिने कॉलममे आन नव रचनाक संग स्थायी रूपसँ देल जायत, जेना अ सँ ज्ञ केर .mp3फाइल आर्काइवमे स्थायी रूपसँ डाउनलोडक हेतु उपलब्ध रहत। मैथिली अकादमीक ई आग्रह जे संख्याक देवनागरी रूप प्रयोग कएल जाय, केर प्रयोग रूप देबाक हेतु सभ एकमत नहि क्ह्हथि, भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूपक प्रयोगक देवनागरीमे चलन भ’ गेल अछि। ताहि द्वारे रचना लिख्बासँ पहिने स्तंभमे जे भाषाक मानकीकरणक संस्तुति अछि, ताहिमे देवनागरी अंकक प्रयोगक आग्रहकेँ हटा देल गेल अछि। भारतीय संविधानक अनुच्छेद 343(1) कहैत अछि जे संघक राजकीय प्रयोजनक हेतु प्रयुक्त होमय बला अंकक रूप, भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूप होयत, मुदा राष्ट्रपति अंकक देवनागरी रूपकेँ सेहो प्राधिकृत क’ सकैत छथि।
(अनुवर्तते)
13. रचना लिखबासँ पहिने... (आँगा) 1.पूर्वार्चिकमे क्रमसँ अग्नि, इन्द्र आ’ सोम पयमानकेँ संबोधित गीत अछि।तदुपरान्त आरण्यक काण्ड आ’ महानाम्नी आर्चिक अछि।आग्नेय, ऐन्द्र आ’ पायमान पर्वकेँ ग्रामगेयण आ’ पूर्वार्चिकक शेष भागकेँ आरण्यकगण सेहो कहल जाइछ। सम्मिलित रूपेँ एक प्रकृतिगण कहैत छी। 2.उत्तरार्चिक: विकृति आ’ उत्तरगण सेहो कहैत छी। ग्रामगेयगण आ’ आरण्यकगणसँ मंत्र चुनि कय क्रमशःउहगण आ’ ऊह्यगण कहबैछ- तदन्तर प्रत्येक गण दशरात्र, संवत्सर, एकह, अहिन, प्रायश्चित आ’ क्षुद्र पर्वमे बाँटल जाइछ। पूर्वार्चिक मंत्रक लयकेँ स्मरण क’ उत्तरार्चिक केर द्विक,त्रिक, आ’ चतुष्टक आदि (2,3, आ’ 4 मंत्रक समूह)मे एहि लय सभक प्रयोग होइछ। अधिकांश त्रिक आदि प्रथम मंत्र पूर्वार्चिक होइत अछि, जकर लय पर पूरा सूक्त(त्रिक आदि) गाओल जाइछ।
उत्तरार्चिक उहागण आ’ उह्यगण प्रत्येक लयकेँ तीन बेर तीन प्रकारेँ पढ़ैछ। वैदिक कर्मकाण्डमे प्रस्ताव, प्रस्तोतर द्वारा, उद्गीत उदगातर द्वारा, प्रतिघार प्रतिहातर द्वारा, उपद्रव पुनः उदगातृ द्वारा आ’ निधान तीनू द्वारा मिलि कय गाओल जाइछ। प्रस्तावक पहिने हिंकार (हिं,हुं,हं) तीनू द्वारा आ’ ॐ उदगातृ द्वारा उदगीतक पहिने गाओल जाइछ। ई पाँच भक्त्ति भेल। हाथक मुद्रा-
(अनुवर्तते)
14. प्रवासी मैथिल English मे
अ. VN Jha केर DO WE REALLY EXIST AS NATION
आ.VIDEHA,Mithila,Tirbhukti, Tirhut…(आँगा)
अ. VN Jha केर DO WE REALLY EXIST AS NATION
By Vivekanand Jha
Does India really exist as a nation?
Raj Thackrey‘s North Indian bashing has unleashed the biggest intellectual debate ever: “Does India really exist” if so, - where? If Mumbai is for Maharastrains, Delhi is for Punjabis, Kolkata is for Bengalis and Chennai is for Madarisis, than what is left for the Indians to claim?
Nation has just ended up its commemoration of 59th of its Republic Day anniversary with a lot of hype and hoopla. After all, it is newly invented confident nation, marching ahead in this radically changed globalised world. The cause of celebration assumed even greater significance in the backdrop of a radical change in the global perception of India as a booming economy with ever increasing malls, BPOs and software revolution and on top of it all: its vast pool of English educated manpower (a doubtless cause of envy for other lesser developed world economies). The evidence of India’s growing strength and recognition was adequately vindicated by the conspicuous gracing of the occasion by the French President Sarkozy. How the world perception of India being a nation of snake charmers and half-naked fakirs metamorphosed into that of a growing world power reasserting its authority to claim its rightful and legitimate place in the world affairs, within a decade or two, is itself a glowing tribute to the millions of middle-class youth who wanted to give India its long over due place in the committee of nations? But all these much trumpeted Indian achievements aside, the biggest question that current Raj Thackeray episode has unfolded is: Which India we talk about, the India that exist buried in the history and the pages of our constitution or the India that erupts in the cricketing ground in the midst of cricketing frenzy, or in the wake of Kargil war, or India which becomes the lofty terms for the politicians to whip the nation sentiments, or the India that lay buried with the corpses of all our freedom fighters who dreamed the concept of a nation-state?
How the nation with such tremendous amount of diversity could exist for more than five decades is itself a miracle for Westerners who prophesied that a nation-state like India with multiple inherent contradictions would collapse under its own heavy weight sooner than later? But still India survives at least in the eyes of the outsiders. But where does India exist for those residing within, once again brings to the fore the most burning issue which politicians of national status prefer to avoid or at best duck: Where does India exist and who are the Indians?
The biggest irony of the whole the episode is the inscrutable and enigmatic silence of our so called nation parties – Congress and the BJP which preferred to remain incommunicado when defining India ought to have been there prerogative. Where and to whom these poor creatures of BIMARU (Cow-belt Regions) would go to seek a direct answer as to what India is and where does it exist? They further ask that gala celebration 59th of its Republic anniversary glorifying India and the Indians meant for whom?
Do these innocent people from cow-belt regions, especially from Bihar and UP, having no sources of bread and butter in their home states, need to apply for the visas and work permits for working in the metropolises from M/s Thackeray and company, if so, where does the government of India exist? If the writ of the M/s Thackeray and company over rides that of government of India’s enforcement of rule of law, the immediate question mark is raised on the status and the ability of the government to govern.
The mood conclusive point all these argument is that the concept of Indian nation-state has been hurriedly conceived to claim independence from the foreign imperialistic rule and the truth is that India never existed as a nation-state in the past, neither does it exist at present and nor will it ever exist in the future. The loosely structured concept of nationhood as that of India which at best exist in the constitution, celebration of India’s victory in a cricketing ground or in the midst of Kargil frenzy and India’s resultant victory, cannot co-relate with a life of day-to-day struggle for the millions of North-Indians who lead a life of virtual refugees in their own country (The sobriquet of ‘Bihari denoting the inferior status is given to the toiling millions of people from North-India). Who will provide solace or reassurance to these struggling mass that India is not a product of cricketing frenzy and Kargil war drumbeats, but a day to day reality where they have every right to free movement within the sovereignty of India and no visa followed by the working permits are required from the THUGS like Thackeray and company?
Will the answer come from the prime minister – designate of BJP Mr. Advani who, in his grand endeavor to catapult BJP to power, invented Lord Rama as a unifying factor for the nation (tragically Kuranidhi has in his recent controversial outburst dubbed Lord Rama as North-Indian God) or whether Madam (Mrs.) Sonia Gandhi will provide answer to the millions of aggrieved North-Indians? But alias, nothing inspires our politicians more than political expediency and as such, Mr. Advani is compelled by his own coalition partner running amok and Madam (Mrs.) Sonia Gandhi remaining incommunicado because of the vote bank politics.
The crux of the whole issue boils down to this: if the nation’s destiny setter remains aloof from the biggest crisis engulfing the nation – its identity crisis – who will bail the nation from its biggest predicament engulfing it? In the past, we pooh-poohed Pakistan for being the most fragile nation surviving on anti-India stand, what about us Indians who survive on cricket and Kargil for our existence as a nation? At least, Pakistan has one unifying identity – Islam – but lamentably we have none. No doubt Raj Thackeray may be arrested and situation may calm down, but the Pandora Box that he has unleashed will have much wider ramifications for the future India. Raj Thackeray’s North-Indian bashing has opened up an unprecedented debate – “Does India really exist”, if so, - where? If Mumbai is for Maharastrains, Delhi is for Punjabis, Kolkata is for Bengalis and Chennai is for Madarisis, than what is left for the Indians to claim?
Jai Hind.
आ.VIDEHA,Mithila,Tirbhukti, Tirhut…(आँगा)
The accounts of Janaka Vaideha in the Vedic texts mention kingdoms and tribes of the northern, middle and eastern regions of India, e.g., Gandhara, Kekaya, Madra, Kuru, Panchala, Kasi and Videha. Kaushitiki -Upanishad furnishes list of states that existed in the time of Gargya Balaki, a contemporary of Ajatshaatru of Kasi and Janaka of Videha, the Usinaras, the Matsyas, the Kurus and the Panchalas.The Aitareya-Brahmana, mentions types of government. Sankhayana-Srauta-Sutra says that the Kasi, Kosala and Videha kingdoms had a common Purohita, Jala Jatukarna, a contemporary of Uddalaka Aruni and Svetaketu Aruneya. So Gandhara,Kekaya, Madra, Uginara, Vatsa, Malaya, Kuru, Panchala, Kasi, Videha, Kosala and Satvat were existant. The Puran-Jataka list has the following states-Vatsa, Kuru, Panchala, Kasi, Videha, Kosala, Surasena, Magadha, Avanti, Mahishmati, Mamaka, Kalinga and Anga. The number of states occurring in the time of Janaka Vaideha comes to eighteen. There were other states also in Janaka's time.Gandhara region was famous for learning, Uddalaka Aruni of the Kuru-Panchala toured it,it is supported by the Jatakas(journeyed to Takshasila). The Svetaketu Jataks sys that son of Uddalaka called Svetaketu also travelled to to Taxila and
learned all the arts.Asvapati of Kekaya was one of the four great rulers of the time, the three others being Javali of Panchala, Ajatasatru of Kasi and Janaka of Videha. He instructed a number of Brahhmanas.Madra was the home of many famous scholars and teachers. Gargya Balaki, lived for some time in the Usinara country .Gargya Balaki lived for some time among the Vatsas also. Gargya Balaki dwelt among the Matsyas and Kuru also.The Brahmanas of the Kuru-Panchala country gathered at the sacrifice of Janaka Vaideha.
Ushasti Chakrayana visited the sacrificial place of a king or chief (presumably in Kuru-land where he had been living) and pointed out certain deficiencies in the sacrifice there.
The Kuru-Panchala Brahmanas took part in the intellectual contest at the court of Videha.
Ajatasatru is represented as being jealous of Janaka's fame as a patron of Brahmanical sages and learning. Kosala was father¬land of Janaka's Hotri priest Asvala.
Janaka was a real lover of learning was anxious to acquire knowledge about Brahma and besides Yajnavalkya, he learnt from ( as per Brihadaranyaka¬ Upanishad) Jitvan Salini, Udarika Saulbayana , Barku Varshna ,Gardabh Bhradvaja , Satyakama Jabala and Vidagdha Sakalya.Vaideha instituted a sacrifice at which many presents were to he distributed. He enclosed a thousand cows., to the horns of each ten padas (of gold) were bound.Yajnavalkya drove away the thousand cows meant for the most learned Brahmana, was challenged by other Brahmana scholars, viz., Asvala, Jatkarana Artabhaga, Bhujyu Lahyayani, Ushasta Chakrayana, Kaushitakeya, Gargi Vachaknavi, Uddalaka Aruni and Vidagdha Sakalya. Asvala was appointed the Hotri priest of Janaka Vaideha and was the first to challenge Yajnavalkya ,received suitable. Ushashti Chakrayan was a very poor man and lived among the Kurus in the village of a rich man with his wife Atiki. He was not greedy. Kahoda-According to him the cap of the plants (e,g., barley and rice) offered as first-fruits at the commencement of the harvest truly belonged to those two, heaven and earth, and that it might be eaten after having been offered to the gods.
सिद्धिरस्तु
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।