भोजक यदि बात करी त', मिथिलाक भोजक होइछ और बाते ।
एहि बेर बनल एहन संयोग
ग्रह-नक्षत्रक उत्तम योग
परि लागल हमरो एक भोज
छलौ करैत जकर हम खोज
छुट्टी मे हम गेलहुँ गाम
निमंत्रण आयल पुरूषे-दफान
सब मे छलनि भोजक उत्साह
धीया-पुता मे आनंद अथाह
चिंटू-पिंटू के भोरे सॅ उमंग
जेबै हमहू लालकाका क' संग
सॉंझ होइत भ' गेल अनघोल
चलै चलू पुबारी टोल
सब जन चलला लोटा लेने
छला कतेको बूटी देने
पहिल तोर भ' गेल प्रारंभ
भोक्ता केलनि भोजन आरंभ
आब सुनू व्यंजनक लिस्ट
सभक भेल पूर्ण अभिष्ट
छल आगू मे केराक पात
ताहि पर छल गमकौआ भात
डलना, कदीमा, बर, बरी
घी के संग दालिक तरी
अन्न-तीमन छल केहन विशेख
सब तरकारी एक पर एक
झुंगनी, कटहर, भॉटा-अदौरी
पुष्ट दही-चीनीक संग सकरौड़ी
केहन खटतुरूस बरीक झोर
खेलैन सब कियो पोरे-पोर
भोक्ता सब क' देलैन सत्याग्रह
तैयो भेल आग्रह पर आग्रह
भ' गेल बूझू महोमहो
सकरौड़ी बहल दहोबहो
मिथिला मे प्रसिद्ध अछि दही-चूड़ा,
पूरी-तरकारीक भोज मध्यम ।
कियो पँचमेर करथु तें की,
दालि-भाते होइछ सब सॅ उत्तम ।
भोक्तागण के पूर्ण संतुष्टि भोज मे होई छै बारीकक हाथे ।
भोजक यदि बात करी त', मिथिलाक भोजक होइछ और बाते ।
बाहरो मे खेने छी भोज परन्तु,
भोज-भात की करत इ दुनियॉ ।
मिथिलाक भोज अछि जतए रूपैया,
बाहरक भोज होइत अछि चौअनियॉ ।
नै कोनो आग्रह नै कोनो पात
हर-हर गीत नै भोज आ भात
पहिने लाऊ टाका वा गिफ्ट,
तखने भेटत भोजनक लिफ्ट ।
मांगू खाउ लाईन मे जाऊ,
जौं छी अहॉ भोजनक इच्छुक ।
प्लेट मे अहॉंके भेटत सामग्री,
ठाड़े रहु, जेना अकिंचन भिक्षुक ।
प्लेट लीय' आ बढि़ क' आऊ,
लागल अछि "सिस्टम बफर" ।
पूरी, पोलाव लीय प्लेट मे,
ठाड़े खाऊ जेना "डकहर" ।
इ कोन आदर, इ कोन सम्मान ?
पीबू जल आ करू प्रस्थान
भोजनोत्तर नै भेटत पान-सुपारी
एहन नोत नै हम स्वीकारी
हमरा प्रिय "मिथिलाक भोज"
नोत मानी हम सोझे-सोझ
लक्ष्मीपति के छथि मिथिला मे, तकर प्रतीक अछि भोजे-भाते
भोजक यदि बात करी त, मिथिलाक भोजक होइछ और बाते ।
प्रवीण जी, मैथिल आर मिथिलामे अहांक स्वागत अछि। एहिना अहांक लेखनी पाठक लोकनिक समक्ष अबैत रहतन्हि से आशा अछि।
ReplyDeleteठीके अहाँ तँ भोजक आनन्द एतहिसँ करा देलहुँ।
प्रवीण जी अद्भुत. अपनेक रचना बहुत नीक लागल. कविता में मिथिलाक महान संस्कृति केर एकटा पहलू, ओहिठामक भोज केर वर्णन तते नीक लागल जे दोसर कविता पढ़े सs पहिने टिप्पणी देवाक इच्छा भs गेल. हमर शुभकामना जे अपनेक एक सs बढ़ के एक मिथिली साहित्यिक रचना करी आओर मैथिलि साहित्य के समृद्ध करी.
ReplyDeleteमनोरंजन कुमार
दिल्ली
प्रवीण जी, मैथिल आर मिथिलामे अहांक स्वागत अछि। बहुत - बहुत धान्यवाद अपनेक कॆ जे ऐतेक निक कविता लके अहां मैथिल और मिथिला में ऐलो , अहां के हम ई कविता बहुत दिन पहिने मिथिला लाईव . कोम में पढने रहि , बहुत निक लागल । आब आषा अछि और निक-निक कविता आ कहानि के ----
ReplyDeleteजय मेंथिल जय मिथिला
परि लागल हमरो एक भोज
ReplyDeleteछलौ करैत जकर हम खोज
छुट्टी मे हम गेलहुँ गाम
निमंत्रण आयल पुरूषे-दफान
सब मे छलनि भोजक उत्साह
धीया-पुता मे आनंद अथाह
चिंटू-पिंटू के भोरे सॅ उमंग
जेबै हमहू लालकाका क' संग
nik
nik lagal
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